चीन के रक्षा बजट में अप्रत्याशित बढ़ोतरी गंभीर चिंता का विषय

खतरनाक मंसूबे

रूस व यूक्रेन के संघर्ष के दौरान अंतर्राष्ट्रीय नियामक संस्थाओं व विश्व बिरादरी की लाचारगी के बीच चीन के रक्षा बजट में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हमारी गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। कहीं न कहीं चीन के मन में यह विचार जरूर होगा कि विश्व बिरादरी जब रूस की आक्रामकता पर अंकुश नहीं लगा पायी तो उसे रोकना भी मुश्किल होगा, क्योंकि वह आज विश्व की बड़ी आर्थिक ताकत है। वहीं चीन में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का होना, उसकी अतिरिक्त शक्ति भी है। यूं तो चीन लगातार सात सालों से अपने रक्षा बजट में वृद्धि करता रहा है। लेकिन इस बार चौंकाने वाली स्थिति यह है कि उसके रक्षा बजट में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि की गई है। वह भी ऐसे समय में जब उसकी अर्थव्यवस्था की रफ्तार कोरोना संकट के दौर में मंथर गति से आगे बढ़ी है। वर्तमान में चीन की विकास दर 5.5 फीसदी दर्ज की गई है। यह विकास दर पिछले तीन दशक में सबसे कम है। इसके बावजूद उसके द्वारा रक्षा बजट में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि करना उसके खतरनाक मंसूबों को ही उजागर करता है, जो कहीं न कहीं उसके साम्राज्यवादी इरादों को पुष्ट करता है। बहुत संभव है कि कल वह यूक्रेन की तरह ताइवान व हांगकांग को पूर्ण रूप से देश का हिस्सा बनाने को रूस जैसे हथकंडे अपनाये। निस्संदेह, विकास दर के कम होने के बावजूद रक्षा खर्च में अधिक वृद्धि बताती है कि चीन की प्राथमिकताएं क्या हैं। इस कदम ने अंतर्राष्ट्रीय जनमानस की चिंताओं को बढ़ाया है। यही वजह है कि पिछले कुछ समय से अमेरिका चीन के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाये हुए है। उसे इस बात का बखूबी अंदाजा है कि कोरोना संकट के बावजूद मजबूत आर्थिक स्थिति में खड़ा चीन अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को सिरे चढ़ाने का प्रयास करेगा। यूक्रेन संकट में रूस के साथ खड़ा चीन, अमेरिका समेत पश्चिमी जगत की चिंताओं को बढ़ा रहा है क्योंकि विश्व में शक्ति का नया ध्रुव बन रहा है।कोरोना काल के बाद उपजे परिदृश्य में चीन के रक्षा बजट में वृद्धि भारत की गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। दरअसल, चीन की इस तैयारी से हमारी वह चिंता और बढ़ जाती है, जो पिछले दो साल से एलएसी पर बनी हुई है। चौदह दौर की सैन्य कमांडर स्तर की वार्ता के बाद समस्या का निर्णायक समाधान नहीं निकला है। वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब लगते इलाकों में उसका सैन्य मकसद से स्थायी निर्माण करना और भारी-भरकम हथियारों के साथ बड़ी संख्या में सैन्य बलों की तैनाती हमारी गंभीर फिक्र का विषय होना चाहिए। हालांकि, भारत ने इस इलाके में सड़कों, सुरंगों व नये पुलों के निर्माण के जरिये इस चुनौती का मुकाबला करने का प्रयास किया, लेकिन इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है। हाल ही के दिनों में चीन के रुख में कोई बदलाव नजर नहीं आया। रूस-यूक्रेन संकट के बीच भारत का रूस के साथ सामंजस्य इसी रणनीति का हिस्सा है कि यदि कहीं चीन से टकराव हो तो रूस भारत के साथ नजर आये। विगत में भी एक आजमाये दोस्त के रूप में रूस संकट के मौकों पर भारत के साथ खड़ा रहा है। लगता है चीन की यह तैयारी युद्ध की रणनीति का ही हिस्सा है। वह आधुनिकीकरण के क्रम में बड़े पैमाने पर लड़ाकू जहाज व पनडुब्बियां बना रहा है। चिंता की बात यह भी है कि चीन का रक्षा बजट भारत के रक्षा बजट का तीन गुना अधिक है, जिसका उपयोग वह उन्नत युद्ध तकनीकों के शोध व अनुसंधान पर करता है। जबकि भारतीय रक्षा बजट का साठ फीसदी हिस्सा सैन्य कर्मियों के वेतन-पेंशन आदि पर व्यय होता है। चीन का यह खर्च भारत के मुकाबले आधा ही है। अपनी रक्षा तैयारियों के बूते ही चीन आज वास्तविक नियंत्रण रेखा और हिंद प्रशांत क्षेत्र में लगातार आक्रामकता दिखा रहा है। ऐसे में एलएसी के विवादों के निपटारे के लिये भारत को कूटनीतिक विकल्प भी खुले रखने चाहिए क्योंकि दोनों देशों के संबंध अब तक के खराब दौर से गुजर रहे हैं।

रिजर्व बैंक कमेटी की संस्तुति-पूंजी का पलायन रोकने के हों प्रयास

भरत झुनझुनवाला – रिजर्व बैंक कमेटी ने संस्तुति की है कि देश को पूंजी के मुक्त आवागमन की छूट देनी चाहिए। यानी विदेशी निवेशक भारत में स्वच्छंदता से आ सकें और भारतीय निवेशक अपनी पूंजी को स्वच्छंदता से भारत से बाहर ले जाकर निवेश कर सकें, ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए। कमेटी का कहना है इसके चार लाभ हैं। पहला यह कि देश में पूंजी की उपलब्धि बढ़ जाएगी। यह सही है कि विदेशी पूंजी का भारत में आना सरल हो जाएगा। जो विदेशी निवेशक भारत में निवेश करेंगे उनके लिए समय क्रम में अपनी पूंजी को निकाल कर अपने देश वापस ले जाना आसान हो जाएगा।

लेकिन यह दोधारी तलवार है। यदि विदेशी निवेशकों के लिए भारत में पूंजी लाना आसान हो जाएगा तो उसी प्रकार भारतीयों के लिए भी अपनी पूंजी को बाहर ले जाना आसान हो जाएगा। रिजर्व बैंक के ही आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में हमारा पूंजी खाता ऋणात्मक रहा है यानी जितनी विदेशी पूंजी अपने देश में आई है उससे ज्यादा पूंजी अपने देश से बाहर गई है।

इससे प्रमाणित होता है कि पूंजी का मुक्त आवागमन विपरीत दिशा में ज्यादा चल रहा है। जैसे दो टंकियों के बीच में एक वॉल लगा हो तो पानी उस तरफ ज्यादा जाएगा जहां पानी का स्तर कम होगा। इसी प्रकार विदेशी और भारतीय पूंजी के बीच में वॉल को खोल दें तो किस तरफ पूंजी का बहाव होगा यह इस पर निर्भर करेगा कि पूंजी का आकर्षण किस तरफ अधिक है।

कमेटी का दूसरा कथन है कि पूंजी के मुक्त आवागमन से अपने देश में पूंजी की लागत कम हो जाएगी और ब्याज दर कम हो जाएगी। लेकिन रिजर्व बैंक के ही आंकड़े इसी के विपरीत खड़े हैं जो कि बता रहे हैं हमारा पूंजी खाता ऋणात्मक है यानी पूंजी बाहर जा रही है और जिसके कारण अपने देश में पूंजी का मूल्य बढ़ रहा है, घट नहीं रहा है। कमेटी ने तीसरा तर्क दिया है कि पूंजी के मुक्त आवागमन से भारतीय कंपनियों द्वारा लिए जाने वाले लोन का विविधीकरण हो जाएगा।

जैसे किसी कंपनी को यदि फैक्टरी लगानी हो तो कुछ पूंजी वह भारतीय बैंक से लेंगे, कुछ विदेशी बैंक से लेंगे, कुछ विदेशी निवेशकों से लेंगे। इस प्रकार उनके ऊपर जो लोन का भार है वह किसी एक स्रोत पर निर्भर होने के स्थान पर विविध स्रोतों पर बंट जाएगा और ज्यादा टिकाऊ होगा। यह बात सही है। कई कंपनियों ने हाल ही में विदेशी पूंजी का लोन लिया भी है।

लेकिन जितना इन्होंने लिया है उससे ज्यादा बाहर भी गया है इसलिए यह विविधीकरण कंपनियों के लिए लाभप्रद रहा हो सकता है लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ हो, ऐसा नहीं दिखता है। कमेटी के अनुसार चौथा लाभ भारतीय निवेशकों के लिए निवेश का विविधीकरण है। भारतीय निवेशक विदेशी प्रॉपर्टी एवं शेयर बाजार के साथ-साथ भारतीय प्रॉपर्टी एवं शेयर बाजार में निवेश कर सकेंगे।

लेकिन पुन: यह लाभ निवेशक विशेष को होगा। यह देश का लाभ नहीं है क्योंकि जब भारतीय निवेशक अपनी पूंजी को विदेशों में निवेश करते हैं तो भारत की पूंजी बाहर जाती है और भारत की अर्थव्यवस्था कमजोर होती है।

इन इस दृष्टि से कमेटी के दिए गए तर्क मान्य नहीं हैं।विशेष बात यह है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि आपदा के समय विकासशील देशों को पूंजी के मुक्त आवागमन पर रोक लगानी चाहिए। उन्होंने कोरिया और पेरू द्वारा कोविड संकट के दौरान ऐसे प्रतिबंध लगाने का स्वागत किया है। हमें भी इस दिशा पर विचार करना चाहिए। वर्तमान में हमारे सामने एक और संकट है कि अभी तक अमेरिकी फेडरल रिजर्व बोर्ड ने ब्याज दर शून्य के लगभग कर रखी थी। निवेशकों के लिए लाभप्रद था कि अमेरिका में लोन लेते और भारत में निवेश करते।

लेकिन अब फेडरल रिजर्व बोर्ड ने संकेत दिए हैं कि वे शीघ्र ही ब्याज दरों में वृद्धि करेंगे। यदि ऐसा होता है तो निवेशकों के लिए अपनी पूंजी को भारत से निकालकर अमेरिका ले जाना ज्यादा लाभप्रद हो जाएगा क्योंकि अमेरिका में निवेश को ज्यादा स्थाई और टिकाऊ माना जाता है। इसलिए हमको विचार करना चाहिए कि आखिर हमारी देश से पूंजी का पलायन हो क्यों रहा है।जर्नल ऑफ इंडियन एसोसिएशन ऑफ सोशल साइंस इंस्टिट्यूशन में छपे एक पर्चे के अनुसार, भारत से पूंजी के पलायन के चार कारण हैं।

पहला कारण भ्रष्टाचार का है। यह सही है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के स्तर पर भ्रष्टाचार में भारी कमी आई है लेकिन यह भी सही है कि जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार में उससे ज्यादा वृद्धि हुई है। इसलिए सरकार को नीचे से भ्रष्टाचार को दूर करने के कदम उठाने चाहिए। दूसरा यह कि सरकारी ऋण ज्यादा होने से निवेशकों को भय होता है कि ऋण की भरपाई करने के लिए आने वाले समय में रिजर्व बैंक नोटों को ज्यादा मात्रा में छापेगा, जिससे देश में महंगाई बढ़ेगी और भारतीय रुपये का अवमूल्यन होगा। तब उनकी पूंजी का मूल्य स्वत: घट जाएगा।

इसलिए सरकारी ऋण की अधिकता से पूंजी का पलायन होता है। वर्तमान में कोविड संकट के कारण ही क्यों न हो फिर भी यह तो सत्य है ही कि अपनी सरकार द्वारा लिए गए ऋण में भारी वृद्धि हुई है। इस परिस्थिति में भारत सरकार को ऋण कम लेना चाहिए। लेकिन इससे निवेश में कमी नहीं होनी चाहिए अन्यथा पुन: आर्थिक विकास की गति में ठहराव आएगा।

इसलिए सरकार को चाहिए कि अपनी खपत को कम करे, जिससे कि सरकार को लोन कम लेने पड़ें और पूंजी का पलायन न हो। तीसरा कारण बताया गया है कि मुक्त व्यापार को अपनाने से भी पूंजी का पलायन होता है। इसका कारण यह दिखता है कि जब हम मुक्त व्यापार को अपनाते हैं तो उद्यमियों के लिए आसान हो जाता है कि अपनी पूंजी को उस देश में ले जाएं जहां पर उत्पादन करना सुलभ हो।

जैसे भारतीय उद्यमी के लिए यह सुलभ हो जाएगा कि वह अपनी फैक्टरी को बांग्लादेश में लगाए और बांग्लादेश में माल का उत्पादन करके भारत को निर्यात कर दे। ऐसे में मुक्त व्यापार के कारण पूंजी का पलायन बढ़ता है।

इसलिए सरकार को चाहिए कि रिजर्व बैंक की कमेटी की रिपोर्ट को अमान्य करते हुए भ्रष्टाचार पर रोक लगाए, सरकारी खपत को घटाए और मुक्त व्यापार को अपनाने के स्थान पर आयात कर बढ़ाये। तब ही अपने देश से पूंजी का पलायन कम होगा और देश की आर्थिक विकास दर बढ़ेगी।

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उनके जीने के अधिकार का हो सम्मान

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100 करोड़ के काफी करीब है ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’

आलिया भट्ट की हालिया रिलीज फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ बॉक्स ऑफिस की खिड़की पर धमाल मचाती हुई नजर आ रही है , जो कोरोनोवायरस महामारी के बाद सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर में इतिहास रचने की दिशा में अग्रसर है। फिल्म ट्रेड के आंकड़ों के अनुसार, रॉबर्ट पैटिनसन अभिनीत बैटमैन का प्रतिद्वंद्वी के रूप में सामना करने के बावजूद फिल्म ने अच्छा प्रदर्शन किया है।फिल्म ने रिलीज के दिन शुक्रवार को 5.01 करोड़ की कमाई की, जबकि शनिवार और रविवार को इसने क्रमश: 8.20 करोड़ और 10.08 करोड़ की कमाई की और दूसरे सप्ताहांत में कुल 23.29 करोड़ की कमाई की।  जबकि बैटमैन ने उसी वीकेंड में 21.50 करोड़ की कमाई की। एक अच्छी शुरुआत के बाद फिल्म के कारोबार ने अपने शुरुआती सप्ताहांत और पहले सप्ताह में भी जबरदस्त वृद्धि देखी।  अब, अपने दूसरे वीकेंड पर, गंगूबाई काठियावाड़ी के कलेक्शन में एक और उछाल देखने को मिला है। यह फिल्म 100 करोड़ के काफी करीब है और फिल्म प्रेमियों की पहली पसंद बनी हुई है।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

नूरानी चेहरा से फिल्मी करियर शुरू करने जा रही हैं नुपुर सैनन

अभिनेत्री कृति सैनन की छोटी बहन नुपुर सैनन पिछले काफी समय से अपने बॉलीवुड डेब्यू को लेकर सुर्खियों में हैं। उनका नाम कई फिल्मों से जुड़ चुका है और अब आखिरकार नुपुर की पहली फिल्म नूरानी चेहरा का ऐलान हो गया है। वह बॉलीवुड के मंझे हुए अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ अपना फिल्मी करियर शुरू करने जा रही हैं। 26 वर्षीया नुपुर की पहली फिल्म का पोस्टर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
नुपुर की पहली फिल्म नूरानी चेहरा का निर्देशन नवानियत सिंह कर रहे हैं। फिल्म और ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श ने भी सोशल मीडिया पर यह जानकारी दी है। दूसरी तरफ नुपुर ने नवाजुद्दीन के साथ अपनी अनूठी लव स्टोरी वाली इस फिल्म का पोस्टर साझा करते हुए लिखा, नूरानी चेहरा में नूर और हिबा के प्यार में पडऩे के लिए तैयार रहें। यह होगी इस साल की बेमेल जोड़ी। आज यानी वैलेंटाइन डे से शूटिंग शुरू हो गई है।
बता दें कि नुपुर ही नहीं, बल्कि अभिनेत्री अवनीत कौर भी नवाजुद्दीन के साथ बतौर लीड एक्ट्रेस बॉलीवुड में अपनी शुरुआत करने जा रही हैं। दोनों की जोड़ी कंगना रनौत के होम प्रोडक्शन के बैनर तले बन रही फिल्म टीकू वेड्स शेरू में बनी है।
नवाजुद्दीन ने भी सोशल मीडिया पर नूरानी चेहरा का ऐलान कर दिया है। उन्होंने फिल्म के पोस्टर के साथ नुपुर संग फिल्म के सेट से ली गई अपनी एक दूसरी तस्वीर पोस्ट कर लिखा, प्यार, मुस्कुराहट और कुबूलनामा। तस्वीर में दोनों एक-दूसरे की तरफ देख मुस्कुरा रहे हैं। इस फिल्म को पंजाबी फिल्म काला शाह काला का हिंदी रीमेक बताया जा रहा है। इसका निर्माण पैनोरमा स्टूडियो, वाइल्ड रिवर पिक्चर्स और पल्प फिक्शन एंटरटेनमेंट के जरिए किया जा रहा है।
निर्देशक नवानियत सिंह कहते हैं, मैं खुश हूं कि मैंने जैसा सोचा था, ठीक वैसा ही हो रहा है। इस फिल्म की कहानी को लेकर बेहद रोमांचित हूं। मुझे खुशी है कि नवाजुद्दीन और नुपुर को फिल्म की कहानी बहुत पसंद आई। उन्होंने कहा, दोनों कहीं से भी कपल नहीं लगते, लेकिन एक कपल के तौर पर मुझे उनसे बेहतर कोई कलाकार नहीं लगे। शूटिंग शुरू करने के लिए वैलेंटाइन डे से बेहतर और कोई दिन नहीं हो सकता था।
नुपुर, अक्षय कुमार के साथ दो सुपरहिट म्यूजिक वीडियो फिलहाल 1 और फिलहाल 2 में नजर आ चुकी हैं। इन दोनों ही गानों में अक्षय और नुपुर की केमिस्ट्री ने दर्शकों का दिल छू लिया था। फिलहाल 2019 में रिलीज हुआ था। इसे अब तक यू-ट्यूब पर एक अरब से ज्यादा व्यूज मिल चुके हैं। दूसरी तरफ फिलहाल 2 को अब तक 560 मिलियन से ज्यादा लोग देख चुके हैं। ये दोनों गाने सिंगर बी प्राक ने गाए थे। (एजेंसी)

स्पाई बहू में एक परिष्कृत, कलात्मक महिला की भूमिका निभा रही हैं परिणीता

टीवी शो गुप्ता ब्रदर्स में गंगा की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री परिणीता बोरठाकुर अब आगामी शो स्पाई बहू की कास्ट में शामिल हो गई हैं। यह शो एक जासूस और एक संदिग्ध आतंकवादी के बीच प्रेम कहानी के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे सना सैय्यद और सेहबान अजीम है।
वह कहती है कि मैं टीवी स्क्रीन पर वापस लौटने के लिए वास्तव में बहुत उत्साहित हूं। शो में मेरी भूमिका बहुत शक्तिशाली है और उन भूमिकाओं से अलग है जो मैंने पहले पर्दे पर निभाई थीं। अपने आखिरी शो के ऑफ एयर जाने के बाद मैं एक छोटे से ब्रेक पर थी। मैं अपने व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित कर रही थी, और अपने बेटे और परिवार को कुछ समय दे रही थी।
परिणीता अपनी भूमिका के बारे में बताती हैं और कहती हैं कि मैं वीरा का किरदार निभा रही हूँ, जो एक बहुत ही परिष्कृत और कलात्मक व्यक्ति है। मैं योहन की सौतेली माँ हूँ । मेरा किरदार कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
स्पाई बहू का प्रोमो हाल ही में बॉलीवुड दिवा करीना कपूर खान के साथ प्रसारित हुआ। शो में अयूब खान, शोभा खोटे, भावना बलसावर भी हैं।

(एजेंसी)

30 की उम्र के बाद इन चीजों के सेवन से बना लें दूरी

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे शरीर में हाई ब्लड प्रेशर और मधुमेह जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए स्वास्थ्य का खास ध्यान देना जरूरी है। इस दौरान डाइट का खास ध्यान रखें क्योंकि एक उम्र के बाद खान-पान की कुछ चीजें स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं। आइए आज हम आपको ऐसी ही कुछ चीजों के बारे में बताते हैं, जिनका सेवन 30 की उम्र के बाद करना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।

पैकेज्ड सूप

अगर आपकी उम्र 30 के पार हो चुकी है और आप हल्की-फुल्की भूख मिटाने के लिए पैकेज्ड सूप का सेवन कर लेते हैं तो आज से ही इनका सेवन करना बंद कर दें। दरअसल, पैकेज्ड सूप में सोडियम की मात्रा अधिक होती है, जो शरीर में पहुंचकर इसे हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर और स्ट्रोक आदि बीमारियों का घर बना सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि आप अपनी डाइट में पैकेज्ड सूप की बजाय होममेड सूप को ही शामिल करें।

ज्यादा मीठे पेय पदार्थ

कई लोग फ्लेवर्ड सोडा पानी, स्पोर्टस ड्रिंक, एनर्जी ड्रिंक और सॉफ्ट ड्रिंक्स जैसे मीठे पेय पदार्थों का सेवन करना काफी पसंद करते हैं, लेकिन अगर आप 30 साल के हो गए हैं तो इन पेय पदार्थों का सेवन करना बंद कर दें। दरअसल, इन पेय पदार्थों में पोषक तत्वों की कमी होती है और इनमें शुगर की मात्रा भी अधिक होती है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने का कारण बन सकती है।

रिफाइंड कार्ब्स

अगर आपकी उम्र 30 साल से ज्यादा है तो आपको रिफाइंड कार्ब्स से युक्त चीजों के सेवन से दूरी बना लेनी चाहिए क्योंकि रिफाइनिंग प्रक्रिया के दौरान खाद्य पदार्थों में से सभी पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। रिफाइंड कार्ब्स से भरपूर भोजन एक उच्च ग्लाइसेमिक आहार होता है, जो आपके रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ा सकता है, जिसके कारण न सिर्फ मधुमेह बल्कि याददाशत में कमी और डिमेंशिया जैसी गंभीर बीमारियों की संभावना भी बढ़ जाती है।

अधिक वसा युक्त खाद्य पदार्थ

अध्ययनों पर गौर फरमाया जाए तो अत्याधिक वसा युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन भी 30 की उम्र के बाद करना सही नहीं है क्योंकि यह लीवर को कमजोर कर सकता है। दरअसल, इस तरह के खाद्य पदार्थ शरीर में पहुंचकर शरीर की तंत्रिकाओं और कोशिकाओं में सूजन पैदा करते है जिसकी वजह से लीवर कमजोर होने लगता है। इसके अलावा, ऐसे खाद्य पदार्थों के सेवन से वजन बढऩे की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।
अगर आपकी उम्र 30 साल से अधिक है तो आपकी डाइट में जरूरी पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ और होममेड पेय पदार्थ शामिल होने चाहिए ताकि शरीर में टॉक्सिन का स्तर कम रहे। टॉक्सिन का स्तर कम रहने से बीमारियों का खतरा नहीं रहता। (एजेंसी)

सेहत की सुध

यह सर्वविदित है कि देश की बड़ी आबादी तमाम बीमारियों की जड़ मोटापे से जूझ रही है, जिसके चलते बड़े ही नहीं, किशोरों व बच्चों तक में मधुमेह, थायराइड, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां बढ़ी हैं। अच्छी बात यह है कि महामारी की तरह बढ़ते मोटापे को लेकर अब सरकार भी सतर्क हुई है। देश की नीति-नियंता संस्था नीति आयोग ने नागरिकों को मोटापे से मुक्त करने के लिये इसकी वृद्धि के प्रमुख कारकों मसलन चीनी, नमक व वसा की अधिकता वाले पदार्थों को चिन्हित करने और इन खाद्य पदार्थों पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने की संस्तुति की है। इसी कड़ी में उत्पादों पर ‘फ्रंट ऑफ दि पैक लेबलिंग’ जैसे कदम उठाने की बात कही गई है, ताकि लोगों को मोटापे के खतरे से आगाह किया जा सके। मकसद यही है कि लोग खाने की वस्तुएं चयन करते वक्त सावधानी बरतें और उन्हें पता हो कि उनके स्वास्थ्य के लिये क्या घातक है। नीति आयोग के शोध संस्थान की वर्ष 2021-2022 की रिपोर्ट में चेताया गया है कि देश में बच्चों, किशोरों और महिलाओं में अधिक वजन व मोटापे की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। नीति आयोग देश के आर्थिक विकास संस्थान और भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर इस दिशा में कदम उठा रहा है। दरअसल, भारतीय भोजन में परंपरागत रूप से नमकीन, चिप्स, भुजिया आदि का प्रचलन तो रहा है लेकिन हाल के वर्षों में स्नैक्स के नाम पर ऐसे खाद्य पदार्थों का प्रचलन बढ़ा है जो सेहत के लिये हानिकारक हैं। यह हमारी चिंता का विषय होना चाहिए कि राष्ट्रीय परिवार सेहत सर्वेक्षण के अनुसार देश में मोटापे से पीडि़त महिलाओं की संख्या चौबीस फीसदी हो गई है, जबकि पुरुषों का यह आंकड़ा 22.9 फीसदी है। ऐसे में सरकार का इस दिशा में कदम उठाना वक्त की जरूरत ही कहा जाना चाहिए। निस्संदेह, मोटापा तमाम बीमारियों की जड़ है और इससे होने वाले रोगों के चलते भारतीय चिकित्सा तंत्र दबाव महसूस करता है।
दरअसल, कहीं न कहीं शहरी जीवन शैली व खानपान की आदतों में बदलाव के चलते मोटापे की समस्या चिंताजनक हुई है। इस समस्या के बाबत बात तो होती रही, लेकिन इस दिशा में गंभीर पहल होती नजर नहीं आई। बाजार के मायाजाल के चलते देश में जंक फूड और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का उपयोग बढ़ा। इसमें उत्पादकों ने बाजार तो तलाशा लेकिन आम आदमी की सेहत की फिक्र नहीं की। विडंबना यह भी रही कि मोटापा बढ़ाने वाले कारकों का जिक्र तो हुआ मगर इन पर रोक की गंभीर कोशिश होती नजर नहीं आई। इन्हें रोकने को जो कदम उठाये गये वे महज प्रतीकात्मक ही रहे। बाजार में ऐसे खाद्य पदार्थों का अंबार लगा है जो स्वाद में तो लुभाते हैं, लेकिन सेहत पर भारी हैं। इनका दीर्घकालिक हानिकारक असर सेहत पर होता है जिसके चलते मोटापा बढ़ता है और उसकी आड़ में मधुमेह से लेकर हृदय रोग तक की गंभीर बीमारियां पनपने लगती हैं। जो कालांतर अनदेखी के चलते भयावह रूप ले लेती हैं। निस्संदेह वक्त की जरूरत है कि मोटापा पैदा करने वाले कारकों का सख्ती से नियमन किया जाये। लोगों को पता होना चाहिए कि जिस चीज का वे सेवन कर रहे हैं उसका उनकी सेहत पर क्या असर पड़ता है। दरअसल, खानपान की आदतों में बदलाव के चलते विकसित देशों की मोटापे की समस्या ने भारत में भी तेजी से पांव पसारने शुरू कर दिये हैं। भारत में ऐसी समस्या इसलिये विकराल रूप धारण कर लेती है क्योंकि लोग वक्त रहते सचेत नहीं होते। मोटापे के प्रति आम लोगों में सजगता पैदा करने में हम विफल रहे हैं। हमें यह ध्यान नहीं रहता कि हमारे दैनिक जीवन में मोटापा बढ़ाने वाले कारक कब हिस्सा बन गये हैं। यह भी कि कौन से खाद्य पदार्थ वास्तव में मोटापा बढ़ाने वाले हैं। ऐसी लापरवाही के चलते शरीर कब जानलेवा बीमारियों का घर बन जाता है, व्यक्ति को अहसास ही नहीं होता। लेकिन ऐसे खाद्य पदार्थों पर कर लगाते वक्त ध्यान रखें कि आम व गरीब लोगों का जीवन प्रभावित न हो। इसके साथ ही देश में मोटापे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने की भी जरूरत है।

उनके जीने के अधिकार का हो सम्मान

चेतनादित्य आलोक –
वैसे तो पशुओं से मनुष्य जाति का नाता आरंभ से ही रहा है, लेकिन हमारी सभ्यता में पशुओं का सदा से विशेष स्थान रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि हमारे पूर्वजों ने पशुओं को मित्र एवं सहचर मान-समझकर उन्हें अपने जीवन में स्थान प्रदान किया था। हमारी परंपरा में एक ओर गाय को माता मानकर उसकी पूजा-अर्चना करने का विधान है तो दूसरी ओर हमारे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के अतिरिक्त गणेश, दुर्गा, इंद्र एवं यमराज समेत विभिन्न देवी-देवताओं द्वारा पशुओं को अपने वाहन बनाकर उन्हें प्यार और सम्मान देने के प्रमाण भी मौजूद हैं। उल्लेखनीय है कि हमारी संस्कृति ने केवल पालतू पशुओं से ही नहीं, बल्कि हिंस्र एवं विषैले जानवरों समेत तमाम जीव-जगत से प्रेम और करुणापूर्ण व्यवहार करने की शिक्षाएं दी हैं। यही कारण है कि पंचतंत्र समेत हमारे तमाम प्राचीन ग्रंथों एवं धार्मिक आख्यानों में पशुओं और मनुष्यों के सहजीवन एवं उनकी मित्रता की कहानियां भरी पड़ी हैं। हमारे आधुनिक हिन्दी साहित्य में भी मनुष्य के साथ पशुओं की मित्रता एवं उनके बीच के सहजीवन के महत्व को बखूबी दर्शाया गया है। प्रेमचंद की ‘दो बैलों की कथा’ शीर्षक कहानी एवं बांग्ला के महान लेखक शरतचंद्र की प्रसिद्ध कहानी ‘महेश’ को कैसे भुलाया जा सकता है?
बहरहाल, विश्वभर में हो रही बेतहाशा जनसंख्या वृद्धि एवं विकास के नाम पर वनों के विनाश तथा वन्यजीवों के विरुद्ध बढ़ते अत्याचारों के कारण संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ मनाये जाने की घोषणा 20 दिसंबर, 2013 को की, जिसके बाद प्रत्येक वर्ष 3 मार्च को इसका आयोजन किया जाने लगा। बहरहाल, भारत सरकार की ओर से संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में दिसंबर, 2018 में प्रस्तुत छठी राष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस समय वन्य जीवों की 900 से भी अधिक दुर्लभ प्रजातियां लुप्तप्राय एवं संकटग्रस्त श्रेणियों में शामिल हैं। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ नामक पुस्तक में संकटग्रस्त एवं लुप्तप्राय वन्य जीवों की 1180 प्रजातियों का वर्णन चिंतित करने वाला है। वैसे एशियाई शेरों, दक्षिण अंडमान के माउंट हैरियट में पाये जाने वाले विशेष छछूंदरों, दलदली क्षेत्रों में पाये जाने वाले बारहसिंगा हिरण एवं मालाबर गंधबिलाव की स्थिति भी दयनीय है। मालाबर गंधबिलाव अब महज कुछ सैकड़ों की संख्या में मौजूद हैं। वहीं एशियाई शेर गुजरात के गिर वनों तक सिमट चुके हैं, जबकि बारहसिंगा हिरण अब देश के कुछ वनों में ही पाये जाते हैं।
ऐसे ही कश्मीर में पाये जाने वाले हांगलुओं की संख्या भी अब कुछ सैकड़ों में ही सिमट चुकी है। इसी प्रकार देश में पायी जाने वाले विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है। ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ की बात मानें तो भारत में पायी जाने वाली फूलों की 15 हजार प्रजातियों में से डेढ़ हजार प्रजातियां आज लुप्तप्राय हो चुकी हैं, जबकि पौधों की लगभग 45 हजार प्रजातियों में से 1336 प्रजातियां भी अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। इनके अतिरिक्त वन्य जीवों पर मंडरा रहे खतरों के संदर्भ में यदि बाघों की बात की जाये तो आंकड़ों के अनुसार बाघों की संख्या में हालांकि वृद्धि तो हुई है, लेकिन उनकी हत्याओं का दौर अभी समाप्त नहीं हुआ है और न ही उनके आश्रय-स्थलों में बढ़ती मानवीय घुसपैठ पर रोक लग पायी है। यही कारण है कि बाघ अब नये-नये गलियारे स्वयं ही ढूंढऩे लगे हैं। उत्तराखंड वन विभाग के अनुसार तो हैडाखाल के अतिरिक्त यहां पिथौरागढ़ के अस्कोट एवं केदारनाथ में भी बाघों की मौजूदगी के सबूत मिले हैं। वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार अब पहाड़ों पर स्थित जंगलों में पलायन करने वाले बाघ अपने नये आश्रय बनाने लगे हैं।
हालांकि, सरकार की मानें तो इस वर्ष देश में पांच नये टाइगर रिजर्वों का निर्माण किये जाने की योजना है। फिलहाल छत्तीसगढ़ के गुरु घासीदास नेशनल पार्क, राजस्थान के रामगढ़ विषधारी अभयारण्य, बिहार के कैमूर वन्यजीव अभयारण्य, अरुणाचल के दिव्यांग वन्यजीव अभयारण्य एवं कर्नाटक के एमएम हिल अभयारण्य को टाइगर रिजर्व के रूप में विकसित करने की सरकार ने स्वीकृति दे दी है। वैसे भारत में वन्य जीव-संरक्षण हेतु समय-समय पर कानून भी बनाये जाते रहे हैं। वर्ष 1956 में संशोधित एवं पारित ‘भारतीय वन अधिनियम’ मूलत: स्वतंत्रता से पूर्व 1927 में ही अस्तित्व में आ गया था। स्वतंत्रता के बाद पहली बार 1983 में ‘राष्ट्रीय वन्य जीव योजना’ बनाकर नेशनल पार्कों एवं अभयारण्यों का निर्माण शुरू किया गया। वैसे इससे पूर्व भी कस्तूरी मृग परियोजना-1970, गिर सिंह परियोजना-1972, बाघ परियोजना -1973, कछुआ संरक्षण परियोजना-1975 जैसी कई परियोजनाओं के माध्यम से वन्य जीवों एवं वनों की सुरक्षा की पहल की गयी थी।
इनके अतिरिक्त, 1987 में गैंडा परियोजना, 1992 में हाथी परियोजना, 2006 में गिद्ध संरक्षण परियोजना एवं 2009 में हिम तेंदुआ परियोजना के माध्यम से भी हमारी सरकारों ने देश में वन्य जीवों एवं वनों की सुरक्षा-संरक्षा करने का कार्य किया है। हालांकि, इस दिशा में किये गये सारे प्रयास कम ही महसूस होते हैं। कदाचित इसका प्रमुख कारण वन्य जीवों एवं वनों के प्रति हमारे भीतर करुणा एवं प्रेम का अभाव है। इसलिए अब आवश्यक हो गया है कि हम अपने पूर्वजों की शिक्षाओं को पुन: स्वीकार करते हुए हिंस्र एवं विषैले जानवरों समेत तमाम जीव-जगत से प्रेम एवं करुणापूर्ण व्यवहार करें, ताकि सबको जीने का अधिकार मिल सके।

अभिनेता स्व जवाहर ताराचंद कौल चौक का उद्घाटन

उपनगर मलाड पश्चिम में गुजरे जमाने के अभिनेता स्व जवाहर कौल की स्मृति में महाविकास अघाड़ी सरकार के कैबिनेट मंत्री असलम शेख ने भाजपा अध्यक्ष मंगल प्रभात लोढ़ा ,फिल्म अभिनेता सुनील शेट्टी और भाजपा सांसद गोपाल शेट्टी की उपस्थिति में ‘अभिनेता जवाहर ताराचंद कौल चौक’ का उद्घाटन किया। विदित हो कि अभिनेता जवाहर ताराचंद कौल 1947 से 1989 तक फिल्मों में काफी एक्टिव रहे। रईस (1947), खिलाड़ी (1948), आज़ादी की राह पर (1948), खिड़की (1948), भिखारी (1949), गरीबी (1949), शीश महल (1950), अपनी छाया (1950), घायल (1951), दाग (1952), पहली झलक (1955),  एक शोला (1956), लाल बत्ती(1957), कठपुतली (1957), देख कबीरा रोया (1957), भाभी (1957), एक झलक (1957), अदालत(1958), साहब बीबी गुलाम (1962), पापी (1977), मुक्ति (1977), द नक्सलाईट (1980), बंटवारा (1989), आखरी बदला (1989) और गीता गोविन्दम (2018) जैसी सुपर हिट फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता जवाहर ताराचंद कौल का जन्म 27 सितंबर 1927 को काश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के परिवार से जुड़े अभिनेता जवाहर ताराचंद कौल जवाहर कौल एक अच्छे अभिनेता ही नहीं समाज सेवक भी थे। उनका निधन 15 अप्रैल 2019 को 91 वर्ष की उम्र में हो गया था। स्व कौल ने अपने जीवनकाल में हमेशा  समाज की चिंता की और शिक्षा को बढ़ावा दिया। आज उनके पुत्र प्राचार्य अजय कौल उसी मुहीम को आगे बढ़ाते हुए कार्य कर रहे है। अजय कौल अपने एन जी ओ एकता मंच व चिल्ड्रेन वेल्फेअर सेंटर व हाईस्कूल के माध्यम से समाज और देश हित में कार्य करते हुए शिक्षा को हर वर्ग तक पहुंचाने में लगे हैं।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

श्रेया राइस मिल, नगड़ी को किया गया सील

*एसडीओ रांची ने की कार्रवाई

*औचक निरीक्षण में पायी गयी भारी अनियमितता

*नहीं मेंटेंन किया जा रहा था रजिस्टर

*मिल प्रतिनिधि ने जिला प्रशासन को दी गलत जानकारी

रांची,  (दिव्या राजन)

अनुमण्डल पदाधिकारी सदर, राँची श्री दीपक दुबे एवं जिला प्रबंधक, झारखण्ड राज्य खाद्य निगम, राँची द्वारा संयुक्त रूप से श्रेया राईस मिल, नगड़ी का औचक निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के क्रम में राइस मिल में कई अनियमितता पायी गयी, जिसके बाद मिल को सील कर दिया गया।

पायी गयी भारी अनियमितता

श्रेया राईस मिल, नगड़ी में व्यवसायिक कार्य दु्रत गति से चल रहा था। यहां खरीफ विपणन मौसम 2021-22 के तहत् किये गये एकरारनामा का सरासर उल्लघंन करते हुए राज्य सरकार का कार्य नहीं किया जा रहा है। तीन चार मजदूरों द्वारा सीएमआर हेतु दिये गये बोरों पर कई तरह के चावलों को मिलाकर पैकेट तैयार किया जा रहा था।

नहीं मेंटेंन किया जा रहा था रजिस्टर

साथ ही कार्यालय में किसी तरह का पंजी संधारित नहीं किया जा रहा था। मिल में स्टॉक पंजी, आगत-निर्गत पंजी किसी तरह के पंजियों का संधारण नहीं किया गया था। मिल के मुंशी, श्री आशीष कुमार यादव के द्वारा बताया गया कि रजिस्टर हेड ऑफिस में है।

मिल प्रतिनिधि ने जिला प्रशासन को दी गलत जानकारी

जिला स्तरीय अनुश्रवण समिति की बैठक में श्रेया राईस मिल के प्रतिनिधि द्वारा बताया गया था कि एक बॉयलर काम नहीं करता है, जबकि दोनों बॉयलर चलते पाये गये एवं धड़ल्ले से चावल तैयार कर अपने ब्रांडेड पैकेट में पैक किया जा रहा था।

जिला प्रशासन के आदेश की अवहेलना

श्रेया राईस मिल द्वारा सरकार के महत्वकांक्षी योजना, जो स्थानीय किसानों के हित में जुड़ा है, उसे प्रभावित किया जा रहा है। जिला आपूर्ति कार्यालय द्वारा स्पष्टीकरण एवं उपायुक्त, रांची द्वारा निदेश दिया गया था बावजूद इसके जिला प्रशासन के आदेश एवं निर्देशों की अवहेलना करते हुए दो माह अर्थात् (60 दिनों) में मिल द्वारा मात्र 04 लॉट सीमएमआर दिया गया, जबकि 42 लॉट सीएमआर दिया जाना चाहिए था। 04 लॉट आरओ के विरूद्ध मात्र 02 लॉट का धान उठाव किया गया। इस गति से कार्य करने से किसान धान (एमएसपीसी) में में नहीं बेच पायेंगे बल्कि थक-हार के मिल के पास औने-पौने दाम में बेचने के लिए मजबूर हो जायेंगे।

श्रेया राईस मिल द्वारा एफसीआई को घटिया (मिलावट वाला) चावल सीएमआर के रूप में भेजा गया है, जो रिजेक्ट पड़ा हुआ है। आपको बतायें कि राज्य सरकार के संकल्प से स्पष्ट निदेश दिया गया है कि मिलर को मात्र 30 प्रतिशत कार्य सरकार का करना है परंतु श्रेया राईस मिल द्वारा आज की तिथि तक 09 प्रतिशत का कार्य ही सरकार के निदेशानुसार नहीं किया गया है।

स्किन केयर रूटीन के दौरान इस क्रम में लगाएं प्रोडक्ट्स, मिलेगा पूरा फायदा

एक बेहतरीन स्किन केयर रूटीन के लिए सिर्फ अच्छे प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना ही काफी नहीं है। अगर आप स्किन केयर प्रोडक्ट्स को सही समय और सही क्रम में अप्लाई करती हैं, तभी आपको उनका पूरा फायदा मिलता है। हालांकि, समस्या यह है कि कई लोगों को इसके सही क्रम के बारे में पता ही नहीं है। अगर आप भी इन्हीं लोगों में एक हैं तो चलिए आज आपको स्किन केयर प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल करने का सही क्रम बताते हैं।

सबसे पहले क्लींजर, फिर टोनर का करें इस्तेमाल

क्लींजर : सबसे पहले अपने चेहरे को साफ करने के लिए किसी ऐसे क्लींजर का इस्तेमाल करें जो आपकी त्वचा के प्रकार के हिसाब से अच्छा हो। उदाहरण के लिए तैलीय त्वचा के लिए एक्सफोलिएटिंग फेसवॉश का इस्तेमाल करें, लेकिन अगर आपकी त्वचा रूखी या संवेदनशील है तो सल्फेट मुक्त माइल्ड क्लींनर का चयन करें। टोनर: क्लींजर के बाद हाइड्रेटिंग टोनर का इस्तेमाल करें। टोनर त्वचा को हाइड्रेट करके अतिरिक्त तेल को नियंत्रित करने का काम करता है।

फेस सीरम हैं जरूरी और स्पॉट ट्रीटमेंट से हटेंगे दाग-धब्बे

सीरम : टोनर के बाद चेहरे पर सीरम लगाएं क्योंकि इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट प्रोपर्टीज मौजूद होती हैं, जो त्वचा को हर तरह के नुकसान से बचाने में मदद कर सकता है। बेहतर होगा कि आप विटामिन-ष्ट युक्त फेस सीरम का इस्तेमाल करें। स्पॉट ट्रीटमेंट: अगर आपके चेहरे पर किसी तरह के दाग-धब्बे हैं तो आप उन्हें हटाने के लिए सीरम के बाद एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें। हालांकि, अगर आपके चेहरे पर कोई दाग-धब्बे हैं तो आप इस स्टेप को छोड़ दें।

आंखों की देखभाल के लिए आई क्रीम लगाएं और चेहरे को मॉइश्चराइज करना न भूलें

आई क्रीम : आंखों के आस-पास की त्वचा काफी पतली और नाजुक होती है, इसलिए यहां जल्द झुर्रियां और फाइन लाइन्स उभरने लगती हैं। इस परिस्थिति में आंखों की देखभाल के लिए विटामिन- सी युक्त आई क्रीम का इस्तेमाल करें। मॉइश्चराइजर: मॉइश्चराइजिंग त्वचा को पर्याप्त नमी प्रदान करती है। आप चाहें तो त्वचा को मॉइश्चराइज करने के लिए केमिकल युक्त प्रोडक्ट्स की बजाय जैतून का तेल और नारियल का तेल आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं।

रेटिनॉल से मिलेगा स्मूद चेहरा और फेस ऑयल से चेहरे पर आएगी चमक

रेटिनॉल : अगर आप समय से पहले झलकने वाले बढ़ती उम्र के प्रभाव, मुंहासों और दाग-धब्बे आदि से परेशान हैं तो अपने स्किन केयर रूटीन में रेटिनॉल से युक्त क्रीम या सीरम को जरूर शामिल करें। यह आपके चेहरे को एकदम स्मूद और ग्लोइंग बना देगा। फेस ऑयल: फेस ऑयल के इस्तेमाल से चेहरे को भरपूर नमी के साथ ही कई तरह के पोषक तत्व मिल सकते हैं, जिसके कारण चेहरा स्वस्थ और चमकदार नजर आता है।

सनस्क्रीन के बिना अधूरा है स्किन केयर रूटीन

मौसम भले ही कोई भी हो, रोजाना सीमित मात्रा में सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना जरूरी है। बेहतर होगा कि आप अपनी त्वचा के प्रकार के अनुसार ही सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें। दरअसल, सनस्क्रीन त्वचा को सूरज की हानिकारक यूवी किरणों से बचाने के साथ-साथ झुर्रियों, पिगमेंटेंशन और असमान रंगत को भी दूर करती है। हालांकि, अगर आपको समझ नहीं आ रहा है कि कौन सी सनस्क्रीन लगानी चाहिए तो हाइड्रेटिंग और प्राकृतिक सामग्रियों से युक्त सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें।

गेहूं के आटे की शुद्धता जांचने के लिए अपनाएं ये तरीके

पहले कई महिलाएं खुद ही गेंहू को पीसकर आटा बनाती थीं, जो शुद्ध होता था और इसे लंबे समय तक स्टोर भी किया जा सकता था। हालांकि, आजकल लोग इतनी मेहनत नहीं करते और बाजार से गेंहू का आटा खरीद लाते हैं जिसका रंग अलग होता है और इसे लंबे समय तक स्टोर भी नहीं किया जा सकता। ये मिलावटी भी हो सकता है। चलिए आज आपको गेंहू के आटे की शुद्धता पता लगाने के कुछ तरीके बताते हैं।

पानी आएगा काम

पानी के इस्तेमाल से गेहूं के आटे की शुद्धता चेक की जा सकती है। इसके लिए आपको बस इतना करना है कि सबसे पहले एक गिलास में पानी भर लें, फिर इसमें एक चम्मच गेंहू का आटा डालकर छोड़ दें। इसके बाद अगर आपको गेंहू का आटा पानी में तैरता मिले तो समझ जाइए कि मिलावट है। दरअसल, ऐसा तब होता है, जब आटे में चोकर की मात्रा कम और मिलावट सामग्री की मात्रा अधिक होती है।

नींबू का रस करेगा मदद

आप चाहें तो गेहूं के आटे की शुद्धता का पता लगाने के लिए नींबू के रस का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले एक कटोरी में एक चम्मच आटा डालकर इसके ऊपर नींबू के रस की कुछ बूंदें डालें, फिर चार से पांच मिनट के लिए इसे ऐसे ही छोड़ दें। समय पूरा होने के बाद अगर आटे में बुलबुले उठने लगें तो समझ जाइए कि इसमें किसी न किसी चीज की मिलावट जरूर है।

हाइड्रोक्लोरिक एसिड सॉल्यूशन आएगा काम

गेहूं का आटा शुद्ध है या नहीं, इसका पता आप हाइड्रोक्लोरिक एसिड सॉल्यूशन की मदद से लगा सकते हैं। इसके लिए एक टेस्ट ट्यूब में एक चम्मच आटा और हाइड्रोक्लोरिक एसिड की तीन से चार बूंदें डालें, फिर इस मिश्रण में एक हल्दी पेपर की स्ट्रिप को डुबोकर निकाल लें। अगर स्ट्रिप के रंग में कोई बदलाव नहीं आया तो समझ जाइए कि आटा शुद्ध है, लेकिन अगर स्ट्रिप लाल रंग की हो जाती है तो आटे में मिलावट है।

अपनी उंगलियों की मदद से लगाएं पता

गेहूं के आटे में किसी तरह की मिलावट है या नहीं, इसका पता आप अपनी उंगलियों से भी लगा सकते हैं। इसके लिए बस थोड़े से आटे को अपनी उंगलियों पर अच्छे से रगड़ें। अगर आटे को रगडऩे के बाद उसमें कोई बदलाव नहीं आए तो समझ जाए कि इसमें मिलावट नहीं है, लेकिन अगर यह इक_ा हो जाता है तो इसमें किसी चीज की मिलावट हो सकती है।

सान म्यूजिक कंपनी ने जारी किया म्यूजिक वीडियो ‘तेरे शहर में’

झारखंड प्रदेश के जमशेदपुर स्टील सिटी के संस्थापक जमशेद जी नसरवानजी टाटा के जन्म दिन( 3 मार्च ) के अवसर पर बॉलीवुड की चर्चित म्यूजिक कंपनी सान म्यूजिक द्वारा गीतकार हरिशंकर सूफी की नई पेशकश म्यूजिक वीडियो ‘तेरे शहर में’ जारी किया गया।
बॉलीवुड की मशहूर गायिका साधना सरगम के स्वर से सजे इस म्यूजिक सिंगल ‘तेरे शहर में’ के ऑडियो को भी अलग अलग प्लेटफॉर्म क्रमशः यूट्यूब म्यूजिक, गाना, स्पॉटीफाई, हंगामा म्यूजिक, जिओ सावन, आई ट्यून स्टोर, साउंड क्लाउड, विंक और अन्य डिजिटल म्यूजिक स्टोर और चैनल पर बहुत जल्द ही रिलीज किया जाएगा। इस म्यूजिक वीडियो में अभिनेता शान्तनु भाभरे अपनी भावपूर्ण अदायगी पेश करते नज़र आएंगे। शांतनु भामरे
कला और वाणिज्य के क्षेत्र में एक जाने माने शख्सियत हैं और राजीव चौधरी एवं अशोक त्यागी की फिल्म ‘रेड’ में अभिनेता कमलेश सावंत      ( फेम दृश्यम) और मेगा स्टार अमिताभ बच्चन के साथ ‘भूतनाथ रिटर्न्स’ आदि में काम कर चुके हैं। शान से एंटरटेनमेंट के सहयोग से सीफेस प्रोडक्शन और एच एल प्रोडक्शन के संयुक्त तत्वाधान में निर्मित इस म्यूजिक वीडियो के निर्माता हीरा लाल(अधिवक्ता), निर्देशक आगा रिज़वी, क्रिएटिव डायरेक्टर पवन शर्मा, पी आर ओ काली दास पाण्डेय, गीतकार हरिशंकर सूफी और संगीतकार शौरिष हैं।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

कोई भी नागरिक पीछे न छूटे

*केंद्रीय बजट 2022-23 का मूल तत्व

*ग्रामीण भारत में जीवन यापन में आसानी और आधारभूत अवसंरचना सुनिश्चित

करने वाली सूक्ष्म कल्याण योजनाओं पर रणनीतिक रूप से विशेष ध्यान

डॉ. नागेंद्र नाथ सिन्हा –
केंद्रीय बजट 2022-23 ने आर्थिक विकास के लिए पर्यावरण-अनुकूल और सतत दृष्टिकोण के साथ सूक्ष्म कल्याण पर ध्यान देते हुए वृहद् स्तर पर विकास हासिल करने की योजना बनाई है। भारत महामारी की चुनौतियों को पीछे छोडऩे और ग्रामीण भारत को तेजी से प्रगति के लिए तैयार करने की मजबूत स्थिति में है। 2022-23 का बजट ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और ग्रामीण गरीबों को आजीविका प्रदान करने पर केंद्रित है। बजट में जलवायु के अनुकूल आवास, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी और ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क तथा डिजिटल इन्फो-वे के विस्तार पर ध्यान देने के साथ आजीविका, आधारभूत अवसंरचना तक पहुंच का आश्वासन दिया गया है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आजीविका को सुदृढ़ करना
माननीय प्रधानमंत्री के विजन-ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन यापन में आसानी और कोई भी नागरिक पीछे न छूटे- को साकार करने का केंद्र बिंदु गुणवत्तापूर्ण आजीविका को सर्व-सुलभ बनाना है। इस विजन के अनुरूप, केंद्रीय बजट 2022; भारतञ्च100 के लिए एक महत्वाकांक्षी आधारशिला रखता है, जिसमें अवसंरचना, डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे आर्थिक रूप से सक्षम बनाने वाले कारकों पर विशेष ध्यान दिया गया है- पूंजीगत व्यय के लिए 1 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया गया है, जिसमें पीएम ग्राम सड़क योजना के लिए पूरक आवंटन, सीमावर्ती क्षेत्रों में वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम, किफायती ब्रॉडबैंड और मोबाइल सेवा का प्रसार, भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण आदि शामिल है। हर घर नल से जल, पीएम आवास योजना, हर घर उज्ज्वला, सौभाग्य आदि कार्यक्रमों ने ग्रामीण जीवन को बेहतर बनाने में मदद की है। 15वें वित्त आयोग के तहत उपलब्ध धनराशि के साथ, पंचायतों को पानी और स्वच्छता के लिए 1.42 लाख करोड़ रुपये और प्राथमिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 70,000 करोड़ रुपये का अनुदान – ये जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के अभूतपूर्व प्रयास हैं, जो ग्राम पंचायतों को लोगों तक सेवाएं उपलब्ध कराने के साथ स्थानीय ‘सार्वजनिक सेवाओं’ के प्रदाता के रूप में सक्षम बनाएगा। नागरिक सेवाओं में हो रहे सुधार के साथ हम जल्द ही बेहतर सामाजिक सुविधाओं वाले गांवों को देखेंगे।
आवास, पाइप से जलापूर्ति, सड़क और इन्फो-वे कनेक्टिविटी के सार्वभौमिक कवरेज का ग्रामीण नौकरियों पर गुणात्मक प्रभाव पड़ेगा। इन बातों को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने आजीविका के अवसरों के तेजी से सृजन की योजना बनाई है और अगले 3 वर्षों में 2.5 करोड़ आजीविका के मौकों का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। 2022-23 में, ग्रामीण विकास विभाग को मनरेगा के मांग-आधारित पूरक आवंटन के साथ कुल 1,35,944 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं- पिछले 7 वर्षों में ग्रामीण अवसंरचना, सामाजिक सुरक्षा और आजीविका पर निरंतर ध्यान केंद्रित किया गया है। मनरेगा ग्रामीण गरीब परिवारों की आय बढ़ाने के प्रयास में 100 दिनों तक का रोजगार प्रदान करता है और इसके तहत परिवारों की आजीविका गतिविधियों का समर्थन करने के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक संपत्ति का निर्माण किया जाता है और डीएवाई-एनआरएलएम महिलाओं की आजीविका गतिविधियों के लिए सामुदायिक समूहों की ताकत का लाभ उठाता है, ताकि पारिवारिक आय में वृद्धि हो सके। एनएसएपी, डीडीजीकेयूवाई के साथ मंत्रालय 2030 के एसडीजी लक्ष्यों से बहुत पहले; विविध और लाभकारी स्व-रोजगार और कुशल मजदूरी आधारित रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देकर गरीबी को खत्म करने की सकारात्मक स्थिति में है।
महामारी के दौरान प्रशासन से संबंधित पंचायतों और महिला समूहों के बीच नए गठबंधन की शुरुआत हुई है, हमने पंचायत योजना के साथ आजीविका योजना प्रक्रिया के एकीकरण के लिए उपाय किए हैं, जिससे दोनों पारस्परिक रूप से मजबूत हुए हैं और सभी परिवारों को विशेष रूप से सबसे कमजोर लोगों को शामिल करना सुनिश्चित हुआ है। सरकार ने स्वयं सहायता समूहों के लिए जमानत-मुक्त ऋण को 10 लाख रुपये से दोगुना करके 20 लाख रुपये कर दिया है। अब सरकार यह सुनिश्चित करने की भी योजना बना रही है कि एसएचजी को बिना किसी परेशानी के अपनी गतिविधियों को मजबूत करने के लिए ऐसे ऋण मिल सकें। डिजिटल लेन-देन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग, बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच में सुधार और वित्तीय समझ; इन प्रयासों के प्राथमिक लक्ष्य हैं। कार्य का नया और अपेक्षाकृत अधिक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र होगा- उद्यम शुरू करने वाले एसएचजी सदस्यों के लिए ऋण जुटाना। वर्तमान में डीएवाई-एनआरएलएम स्वयं सहायता समूह की महिला सदस्यों को- मिशन द्वारा महिला संस्थानों को दिए जाने वाले अनुदान एवं वित्तीय संस्थानों से ऋण के माध्यम से- पूंजी तक पहुंच प्रदान करता है। (2013-14 से लगभग 4.5 लाख करोड़ रुपये का ऋण महिला एसएचजी द्वारा जुटाया गया है)। इसके अलावा, समन्वय के हाल के प्रयासों के परिणामस्वरूप मनरेगा से परिसंपत्ति समर्थन, डीडीजीकेयूवाई के तहत कौशल/प्रौद्योगिकी सहायता तथा पीएमएफएमई और विभिन्न सरकारी योजनाओं द्वारा समर्थन मिला है, जिससे स्वयं सहायता समूहों के सदस्य आजीविका को सुदृढ़ बनाने में सक्षम हुए हैं।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का वाटरशेड विकास घटक और डिजिटल इंडिया भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआईएलआरएमपी) भी एक बड़ा बदलाव लाएगा और ग्रामीण विकास में तेजी लाएगा, क्योंकि बजट 2022-23 में इन पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस योजना आवंटन में 64 प्रतिशत की वृद्धि की गई है और मनरेगा के साथ समन्वय से जलवायु अनुकूल भविष्य की आजीविका सुनिश्चित होगी। डीआईएलआरएमपी डिजिटल इंडिया पहल का एक हिस्सा है। कार्यक्रम के प्रमुख घटकों में शामिल हैं: (द्ब) सभी मौजूदा भूमि रिकॉर्ड का कम्प्यूटरीकरण, (द्बद्ब) नक्शों का डिजिटलीकरण, (द्बद्बद्ब) सर्वेक्षण/पुन: सर्वेक्षण और बंदोबस्त के सभी रिकॉर्ड को अद्यतन करना एवं (द्ब1) पंजीकरण प्रक्रिया का कम्प्यूटरीकरण और भूमि रिकॉर्ड रख-रखाव प्रणाली के साथ इसका एकीकरण।
कोई भी नागरिक पीछे न छूटे और जीवन यापन में आसानी
सरकार ने रेखांकित किया है कि सामुदायिक संस्थानों के माध्यम से डीएवाई-एनआरएलएम के तहत संरचना-आधारित सामाजिक विकास प्रयासों को विस्तार देना बहुत महत्वपूर्ण है। एसएचजी महिलाओं के सन्दर्भ में जीवन की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए पोषण, स्वास्थ्य, स्वच्छता व लैंगिक मुद्दों से संबंधित सेवाओं के प्रति जागरूकता और पहुंच पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, क्योंकि ये स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। मंत्रालय ने अब अतिरिक्त आजीविका गतिविधियों का समर्थन करने के लक्ष्य के लिए समग्र ग्रामीण विकास (डब्ल्यूआरडी) दृष्टिकोण अपनाया है। एकीकृत दृष्टिकोण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों से आजीविका योजनाओं और कार्यक्रमों की आपूर्ति का एक सहज मिलान करना होगा- कौशल, परिसंपत्ति, सेवाएं और संसाधन; समुदाय की मांगों के साथ उपलब्ध किए जाने चाहिए। सीएसओ तथा स्टार्टअप सहित कृषि क्षेत्र की कंपनियों के साथ साझेदारी और गठबंधन पर ध्यान देना भी महत्वपूर्ण है, जो सार्वजनिक इकोसिस्टम से अलग उपभोक्ताओं/अंतिम उपयोगकर्ताओं, प्रौद्योगिकियों और अन्य सेवाओं के साथ मूल्य श्रृंखला तक पहुंच प्रदान करते हैं। यह और भी महत्वपूर्ण है कि केंद्र व राज्य सरकारों के सभी स्तर और संबंधित क्षेत्र अपनी सफलता के एक महत्वपूर्ण मानदंड के रूप में अतिरिक्त आजीविका विकास को अपनाएं। इसके अलावा, उद्यम विकास के लिए बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली भी वित्तीय संसाधनों तक पहुंच को सक्षम बनाएं।
सौभाग्य से, गरीबी-उन्मूलन की व्यापक रणनीति के एक घटक के रूप में उपरोक्त अधिकांश संरचनायें तैयार है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के अन्य उपायों के साथ, सरकार; जन धन खाताधारकों और अन्य गरीबों तक अपनी पहुंच का विस्तार करके खाद्यान्न और नकद सहायता प्रदान करना जारी रखे हुए हैं। सरकार सामाजिक सुरक्षा पात्रता जैसे राशन कार्ड को प्रशासनिक सीमाओं के साथ-साथ राज्यों के बाहर भी उपयोगी बनाने के लिए कदम उठा रही है।
केंद्रीय बजट 2022-23 में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों को सीधे समर्थन, पूंजीगत व्यय और सूक्ष्म स्तर के कल्याण कार्यक्रमों पर रणनीतिक ध्यान देने के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के माध्यम से विकास को बढ़ावा देने की एक विवेकपूर्ण रणनीति का पालन किया गया है, जो भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए जीवन यापन को आसान बनाएगा।
लेखक सचिव (ग्रामीण विकास), भारत सरकार हैं

रूस के हमले से दांव पर दुनिया

जी. पार्थसारथी
बाईस फरवरी की शाम राष्ट्रपति व्लादिमीर ने अपने लोगों और शेष विश्व के नाम संबोधन में रूस को अमेरिका से दरपेश चुनौतियों के बारे में बताया। उनके दावे के मुताबिक यह सब रूस को पड़ोसी मुल्कों से दूर करने की गर्ज से है। उनका यह भाषण पड़ोसी यूक्रेन से बढ़ते तनावपूर्ण रिश्तों के बीच आया था। पुतिन ने भाषण में विशेष रूप से जिक्र किया कि अमेरिका ने दुर्भावनावश सोवियत रूस को कमतर और अस्थिर किया था। पुतिन ने पड़ोसी यूक्रेन की कथित भूमिका के बारे में भी तफ्सील से बताया कि वह भी रूसी संघ को अस्थिर करने वाली हालिया पश्चिमी साजिशों में शामिल हो गया है। उन्होंने भावुक होकर कहा, ‘यहां मैं पुन: कहना चाहूंगा कि यूक्रेन हमारे लिए केवल पड़ोसी देश नहीं है। यह हमारे साझे इतिहास, संस्कृति और आध्यात्मिकता का अभिन्न हिस्सा रहा है।’ उन्होंने आखिर में कहा कि मौजूदा हालात में यह जरूरी हो जाता है कि यूक्रेन में ‘दोनेस्तक गणतंत्र’ और ‘लुहांस्क गणराज्य’ द्वारा अपनी आजादी और संप्रभुता पाने वाली लंबित मांगों पर निर्णय लिया जाए। उनके इस प्रस्ताव को रूसी संसद ने आनन-फानन में मंजूर कर लिया।
इस तरह 22 फरवरी को यूक्रेन के साथ बढ़ते तनावों में रूसी आक्रमण की भूमिका तैयार हो गई थी जो मुख्यत: अमेरिका के खिलाफ थी। राष्ट्रपति बाइडेन को इस घटनाक्रम पर तीखी घरेलू आलोचना का सामना करना पड़ा है। पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप और उनके विदेश मंत्री रहे पोम्पियो के नेतृत्व में रिपब्लिकन राजनेताओं ने हल्ला बोलते हुए कहा कि जो कुछ हुआ वह स्थिति से सही तरह निपट पाने में बाइडेन प्रशासन की विफलता का नतीजा है और ठीक वैसा है जब प्रशासनिक शिकस्त की वजह से अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज को बेइज्जत होकर वापसी करनी पड़ी थी। इसी बीच रूसी मीडिया ने गर्व से घोषणा की है कि दोनेस्तक और लुहांस्क ने यूक्रेन से निश्चयपूर्ण आजादी पा ली है।
पुतिन ने यह साफ कर दिया है कि अब केवल दोनेस्तक और लुहांस्क ही नहीं बल्कि इलाकाई महत्वाकांक्षा का निशाना समूचा यूक्रेन है। उन्होंने अपने संबोधन में पूर्व सोवियत संघ की नीतियों की कटु आलोचना करते हुए किसी को नहीं बख्शा, जिसमें सोवियत काल के प्रतीक-पुरुष जैसे कि लेनिन, स्तालिन, ख्रुशचेव के अलावा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ सोवियत यूनियन के नेतृत्व की तीन पीढिय़ां भी शामिल हैं। कम शब्दों में कहें तो, पुतिन द्वारा विगत के उन राजनेताओं की आलोचना करना अजीब और गैरवाजिब है, जिन्होंने रूस की वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियों की नींव रखी और सोवियत संघ को विश्वशक्ति बनाया था।
पुतिन की इलाकाई महत्वाकांक्षा जाहिर होने के बाद चले घटनाक्रम ने रूस और दुनियाभर में हलचल पैदा कर दी है। जहां पहले यह महत्वाकांक्षा यूक्रेन के चंद इलाकों को ‘आजादी’ दिलवाने तक सीमित थी वहीं अब समूचा यूक्रेन कब्जाने के फैसले ने विश्व को चौंकाया है। उनका यह दावा यूक्रेन पर धावा बोलने के साथ लागू हुआ। आरंभ में कइयों को लगा कि वे सिर्फ क्रीमिया को रूस में मिलाना चाहते हैं, लेकिन पुतिन के ताजा कृत्य ने दुनिया को हैरान-परेशान कर दिया है। भारत ने पहले भी वार्ता के जरिए रूस-यूक्रेन तनाव कम करने वाले प्रयासों का समर्थन करके सही किया था और अब भी यूक्रेन की मौजूदा सीमारेखा में बदलावों के प्रयास की ताईद न करके समझदारी दिखाई है। भारत सहित शायद ही कोई मुल्क ऐसा होगा जो रूस द्वारा सैन्य कार्रवाई करके यूक्रेन को हड़पने या टुकड़ों में बांट देने को सही ठहराए।
कोई हैरानी नहीं कि राष्ट्रपति बाइडेन ने रूस पर दबाव बनाने के लिए तमाम नाटो, यूरोपियन और एशियाई सहयोगियों को लामबंद होने का आह्वान किया है। बाइडेन ने सबसे ज्यादा जिन मारक प्रतिबंधों का प्रस्ताव दिया था, उसमें रूस को उपलब्ध विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग सुविधाओं से महरूम करना शामिल था। अब इस पर अमल भी हो चुका है। अमेरिका स्थित ब्लूमबर्ग डॉट कॉम ने हालांकि बताया है कि राष्ट्रपति पुतिन द्वारा पृथक दोनेस्तक और लुहांस्क को मान्यता देने वाले दस्तावेज पर दस्तखत करने के 24 घंटों के अंदर अमेरिका और यूके ने आनन-फानन में रूस से 350 लाख बैरल कच्चा एवं परिशोधित तेल, सोना सहित 700 मिलियन डॉलर मूल्य की प्राकृतिक गैस, एल्यूमीनियम, टाइटेनियम, कोयला खरीदा है। रूस से इनका निर्यात आज भी जारी है। यूक्रेनी फौज और नागरिकों द्वारा रूसी सेना को कड़ी टक्कर के बीच पश्चिमी प्रतिबंध और सख्त होने जा रहे हैं। इसका विश्वव्यापी असर होना अवश्यम्भावी है।
अमेरिका और उसके यूरोपियन सहयोगियों द्वारा रूस पर प्रतिबंधों में सबसे करारा असर ‘स्विफ्ट’ नामक बैंकिंग व्यवस्था से महरूम करने से होगा। इसके अभाव में रूस की विश्व-व्यापार परिचालन क्षमता बाधित हो जाएगी और रूस के केंद्रीय बैंक का दुनिया के अन्य देशों से वैश्विक लेन-देन पंगु हो जाएगा। हालांकि, रूसी बैंक नियंताओं को इन उपायों का कयास पहले से था। इस सबके बीच रूसी अपना सैन्य अभियान बंद करने को तैयार नहीं हैं। हालांकि यूक्रेन ने सूझ-बूझ दिखाते हुए स्थिति सामान्य बनाने के लिए वारसा में शांति-वार्ता की पेशकश की है, लेकिन उम्मीद के मुताबिक रूस ने पहले यह प्रस्ताव ठुकरा दिया था। हालांकि बैठक का एक दौर हो चुका है।
रूस द्वारा यूक्रेन पर दमन जारी रखने पर न केवल यूक्रेन को बल्कि रूसी नागरिकों को भी लंबे समय तक दुश्वारियां झेलनी पड़ेंगी, जिससे कटुता बढ़ेगी एवं आपसी एकता भंग होगी और बदनामी झेलनी पड़ेगी। उम्मीद करें कि रूस और यूक्रेन द्वंद्व में तमाम संबंधित पक्ष अपने जहन में रखेंगे कि अपने पड़ोस में शांति और सद्भावना कायम रखना दोनों की जिम्मेवारी है। शांति प्रयासों में फ्रांस और जर्मनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। रूसी समस्याओं पर अमेरिका और अन्य मुल्कों द्वारा व्यर्थ का छद्म-राष्ट्रवाद बघारने और घुड़कियों का भयावह परिणाम हो सकता है। रूस के पास फिलहाल 6400 परमाणु अस्त्रों का भंडार है, जिसमें 1600 सामरिक मिसाइलें तैयार हैं। रूस ने भड़काए जाने पर इनका इस्तेमाल करने का इरादा गुप्त नहीं रखा है।
यूक्रेन में स्थिति हाथ से निकलने पाए, इस हेतु वैश्विक राजनीतिक और कूटनीतिक प्रयास बहुत महत्वपूर्ण बन जाते हैं। राष्ट्रपति बाइडेन और पुतिन जब जेनेवा में मिले थे तो आदर्श राजनेता की तरह कहा था- ‘परमाणु युद्ध में कोई विजेता नहीं होता और यह कभी नहीं होना चाहिए।’ उम्मीद करें कि यह दोनों ताकतें तनाव को काबू से बाहर नहीं होने देंगी। अमेरिका और सहयोगियों द्वारा लगाए प्रतिबंधों की वजह से रूस के साथ भारत के व्यापारिक और आर्थिक संबंधों पर असर पड़ेगा। हालांकि इन अड़चनों से जुगत लगाकर पार पाया जा सकता है। लेकिन पुतिन के कृत्यों ने नया वैश्विक तनाव ऐसे समय बना डाला है जब दुनिया पहले से ही कोरोना महामारी का घातक असर झेल रही है। किंतु फिलहाल लगता नहीं कि व्लादिमीर पुतिन पीछे हटने को राजी होंगे, जाहिर है उन्हें अपने परमाणु भंडार की पाश्विक शक्ति पर यकीन है।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन महाशिवरात्रि के अवसर पर पहाड़ी मंदिर परिसर में आयोजित शिव बारात कार्यक्रम में शामिल हुए

 

* मुख्यमंत्री ने बाबा भोलेनाथ की पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना कर राज्य के सुख समृद्धि और कल्याण की कामना की

रांची (दिव्या राजन) महाशिवरात्रि का त्यौहार आज श्रद्धा ,आस्था ,परंपरा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है । इस अवसर पर ऐतिहासिक पहाड़ी मंदिर परिसर में आयोजित शिव बारात कार्यक्रम में मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन शामिल हुए । मुख्यमंत्री ने बाबा भोलेनाथ की पूरे विधि विधान से पूजा- अर्चना कर राज्य एवं राज्य वासियों के सुख समृद्धि और कल्याण की कामना की । मुख्यमंत्री ने कहा कि हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी बाबा भोले शंकर के दरबार में पूजा अर्चना और आशीर्वाद लेने हजारों की संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं । शिव बारात में शामिल होने के लिए श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बन रहा है । यह परंपरा आगे भी अनवरत चलता रहेयही हमारी बाबा भोलेनाथ से विनती है । मुख्यमंत्री ने राज्यवासियों को महाशिवरात्रि की बधाई और शुभकामनाएं दी। इस अवसर पर सांसद श्री संजय सेठ, पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री सुबोध कांत सहाय, पूर्व मंत्री और विधायक श्री सीपी सिंह तथा श्री शिव बारात आयोजन समिति के तमाम सदस्यगण मौजूद थे ।

वेब सीरीज ‘रोहतक सिस्टर्स’ शूटिंग भोपाल में

ग्लिट्ज़ टेलीप्ले द्वारा निर्मित और मनोज सिंह द्वारा निर्देशित सत्य घटना पर आधारित वेब सीरीज ‘रोहतक सिस्टर्स’ शूटिंग भोपाल में स्टार्ट टू फिनिश शूटिंग शेड्यूल के तहत बहुत ही तेज गति से चल रही है।

राजोरा एंटरटेनमेंट के द्वारा प्रस्तुत की जा रही इस वेब सीरीज के निर्माता द्वय बच्चन तोमर और अज़रा सईद हैं।  इस वेब सीरीज के लेखक आबिद निसार, डीओपी धर्मेंद्र बिस्वास, कास्टिंग डायरेक्टर सोनू सिंह राजपूत, कार्यकारी निर्माता बुनियाद अहमद और एसोसिएट डायरेक्टर प्रमोद पंडित हैं। इस वेब सीरीज के मुख्य कलाकार तेज सप्रू, बृजेश त्रिपाठी, अनिल नागरथ, मृणाल जैन, गौरव शर्मा, सोनम अरोड़ा, उर्वी सिंह, विक्रम कोचर, स्मिता शरण, विभा छिबर श्वेता खंडूरी, प्रीति मेहरा, एहसान खान, उपासना रथ, कल्याणी झा, अरुण सिंह, हेराम त्रिपाठी, सुनीत राजदान, मुनि झा, कुणाल, सिकंदर मिर्ज़ा और परेश ब्रह्मभट्ट आदि हैं। इस वेब सीरीज के मुख्य कलाकार तेज सप्रू, बृजेश त्रिपाठी, अनिल नागरथ, मृणाल जैन, गौरव शर्मा, सोनम अरोड़ा, उर्वी सिंह, विक्रम कोचर, स्मिता शरण, विभा छिबर श्वेता खंडूरी, प्रीति मेहरा, एहसान खान, फ़्लोरा सैनी, उपासना रथ, कल्याणी झा, अरुण सिंह, हेराम त्रिपाठी, सुनीत राजदान, मुनि झा, कुणाल, सिकंदर मिर्ज़ा, स्वेज़ रिज़वी और परेश ब्रह्मभट्ट आदि हैं। इस वेब सीरीज में नवोदित कलाकारों के साथ बॉलीवुड के नामचीन कलाकार भी अपने अभिनय का जलवा बिखेरते नज़र आएंगे।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

जानलेवा सड़कें

भारत की सड़कों पर दुर्घटनाओं में प्रतिदिन सैकड़ों लोगों की मौत गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। यह भी चिंता की बात है कि हरियाणा में पिछले साल प्रतिदिन औसतन 13 लोगों की सड़क हादसों में मौत हुई। दुर्घटना उन्मुख क्षेत्रों पर केंद्र सरकार के ध्यान देने के बावजूद स्थिति गंभीर बनी हुई है। पिछले दिनों लोकसभा में केंद्र सरकार ने बताया कि वर्ष 2020 के दौरान एक्सप्रेस-वे सहित राष्ट्रीय राजमार्गों पर दुर्घटनाओं में 47,984 लोग मारे गये। वहीं वर्ष 2019 में यह आंकड़ा 53,872 था। महामारी के पहले वर्ष में कोविड के चलते लॉकडाउन और कई अन्य तरह की वजह से आवाजाही में रोक के चलते मौत के आंकड़ों में गिरावट दर्ज की गई। इसके बावजूद एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2020 में सभी प्रकार की सड़क दुर्घटनाओं में 1.33 लाख लोग मारे गये। ये आंकड़े स्थिति की गंभीरता दर्शाते हैं। वहीं वर्ष 2021 में वेस्टर्न और ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे पर 151 दुर्घटनाओं में 125 लोगों की जान चली गई और 105 लोग घायल हुए। वहीं कुंडली मानेसर पलवल यानी केएमपी और कुंडली गाजियाबाद पलवल एक्सप्रेस-वे पर अधिकांश दुर्घटनाओं की मुख्य वजह गलत साइड से ओवरटेकिंग रही। साथ ही ओवर स्पीडिंग, अचानक लेन बदलना, अनुपयुक्त प्रकाश व्यवस्था आदि भी दुर्घटना की वजह रही हैं। ऐसे में भारी वाहन चालकों के लिये जागरूकता अभियान चलाये जाने की जरूरत है, जिनकी वजह से बड़ी दुर्घटनाएं होती हैं।
यदि हम राष्ट्रीय राजमार्गों पर हादसों के कारणों की पड़ताल करते हैं तो कई कारण सामने आते हैं, जिनमें प्रमुख वजह वाहनों को तेज गति से चलाना है। इसके अलावा नशे में धुत्त होकर गाड़ी चलाना, गलत तरफ से ड्राइविंग, सड़कों का डिजाइन व स्थिति तथा वाहन चलाते समय समय मोबाइल पर बात करते रहना भी वजह रही। यदि वर्ष 2020 में होने वाली दुर्घटनाओं पर नजर डालें तो साठ फीसदी लोगों की मौत तेज रफ्तार की वजह से हुई। निस्संदेह सड़क दुर्घटनाओं को रोकने तथा आपराधिक लापरवाही करने वाले चालकों को दंडित करने के लिये बड़े पैमाने पर आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए। राजमार्गों पर बड़ी संख्या में क्लोज सर्किट टीवी यानी सीसीटीवी कैमरे लगाने से चालक कानून के उल्लंघन के प्रति सतर्क रहेंगे। यदि तुरंत चालान मिलने लगेंगे तो लोग कायदे-कानूनों के उल्लंघन के प्रति सजग रहेंगे। वाहन चालकों को अपनी लेन में चलने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिए ताकि लेन बदलने से होने वाली दुर्घटनाओं से बचा जा सके। वर्ष 2020 में लापरवाह ड्राइविंग तथा ओवरटेकिंग की वजह से 24 फीसदी दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें पैंतीस हजार लोगों की जान गई। ऐसे स्थिति में जब देश में राष्ट्रीय व राज्य मार्गों की कुल लंबाई पूरे सड़क नेटवर्क का सिर्फ पांच से दस प्रतिशत ही है, इनमें दुर्घटनाओं का अनुपात बेहद ज्यादा है। वहीं इन दुर्घटनाओं में समय पर चिकित्सा सहायता न मिलने से बड़ी संख्या में यात्री चोटों के कारण दम तोड़ देते हैं। राष्ट्रीय व राज्य मार्गों पर चौबीस घंटे की गश्त बढ़ाने के लिये केंद्र व राज्य अतिरिक्त प्रयास करें।

करुणा क्यों नहीं जागती युद्ध की विभीषिका से

क्षमा शर्मा –
प्लेट में गरमा-गरम भरवां परांठा हो, डोसा हो, पूरी-कचौरी, अचार हो, कॉफी-चाय की चुस्कियां हों, चॉकलेट, हलवा, मिठाई की मिठास हो, परिवार आसपास हो, हंसी–मजाक हो और सामने टीवी के पर्दे पर लाइव दिखता युद्ध हो, तो कहने ही क्या। ऐसे दृश्य रोज तो देखने को मिलते नहीं। दफ्तर से लौटकर थकान मिटाने का यह सबसे मनोरंजक तरीका है। कोई बड़ी से बड़ी मारधाड़ वाली फिल्म इसके सामने फीकी है। युद्ध हमारे मन में कोई दु:ख, परेशानी, सहानुभूति नहीं जागता। रोते-बिलखते लोग हमें सच्चे नहीं लगते। बल्कि लाइव लड़ाई एक एडवेंचर का भाव पैदा करती है। भागते, खून से सने लोग, साइकिल पर जाता बच्चा बम से उड़ता, टूटे, तहस-नहस हुए घर, खाने-पीने की चीजों की भारी कमी, एटीएम खाली, पेट्रोल पंप खाली, पानी, नमक की कमी, स्टेशनों पर गाडिय़ां कैंसिल होने के कारण भारी भीड़, एयर लाइंस का टिकटों के दामों को दोगुना करना, भागते लोगों की बदहवासी, बचाने की पुकार, हममें युद्ध के प्रति कोई नाराजगी पैदा नहीं करती, न करुणा जगाती है। हम लगातार हथियारों की आधुनिक तकनीक और मारक क्षमता के सामने नतमस्तक होते रहते हैं। और वाह-वाह करते हैं। यही ताकत की पूजा है। जबकि आम लोग लड़ाई को आमंत्रण नहीं देते हैं, वे अपने-अपने नेताओं की नीतियों के कारण इसे झेलने को अभिशप्त होते हैं।
इन दिनों हम जबरा मारे और रोने भी न दे की कहावत को चरितार्थ होते देख रहे हैं। पुतिन की ताकत से बड़े से बड़े देश घबरा रहे हैं। दुनिया को बात-बात पर आंखें दिखाने वाले देश, इधर–उधर हो रहे हैं। कल तक जिस यूक्रेन की पीठ पर हाथ धर कर उकसा रहे थे, आज कोई ढांढ़स बंधाने वाला तक नहीं दिख रहा है।
देखने वालों की तो एक एडवेंचर और वो मारा, वाह क्या निशाना साधा है, जैसे वाक्यों से आंखें चमक उठती हैं। करुणा क्या हमारी जिंदगियों से इस तरह विदा हो गई है? किसी और के दु:ख से क्या द्रवित होना भूल गए हैं? या पुराने वक्त के वे योद्धा दिलों में जगह बनाए हैं, जो जितने सिर काटकर लाते थे, उतने ही सम्मानित होते थे। दुश्मन कभी मनुष्य क्यों नहीं लगते। उनकी लाशें और कटे सिर वीरता का भाव क्यों जगाते हैं।
याद कीजिए 1991 के इराक-अमेरिका के युद्ध को, जब बहुत से देशों की सेनाओं ने अमेरिका के नेतृत्व में इराक पर हमला बोल दिया था। कहा गया था कि सद्दाम हुसैन के पास खतरनाक जैविक हथियार हैं। वहां कुछ नहीं मिला था, मगर सद्दाम को फांसी दे दी गई थी। पश्चिमी देशों की इस दरोगाई और एक से एक मारक हथियारों के प्रदर्शन का लाइव प्रसारण किया गया था। आसमान में तेज गति से दौड़ती मिसाइलें किसी जादू की तरह लगती थीं जो ठीक निशाने पर वार करती थीं। तब कहा गया था कि अमेरिका और पश्चिमी देशों ने आने वाले सौ साल के हथियारों का परीक्षण कर लिया है। उसके बाद यही भारत में हुआ। कारगिल की लड़ाई का भी प्रसारण किया गया था। दुनिया भर के चैनल्स इसे खूब दिखा रहे थे। हमारे यहां की एक मशहूर पत्रकार ने जब युद्ध स्थल से मोबाइल पर संदेश भेजा तो पाकिस्तान ने उसे इंटरसेप्ट करके मिसाइल दाग दी थी और हमारे कई सैनिक मारे गए थे। एक तरह से लालची मीडिया द्वारा युद्ध हमारे घर-घर में घुसा दिया गया। युद्ध से नफरत करने की जगह हम उसमें आनंद प्राप्त करने लगे।
जिस तरह से हिंसा से भरी फिल्में हमें चकित करती हैं, परेशान नहीं, जबकि हम जानते हैं कि फिल्म में कोई असली लड़ाई नहीं होती है। बीस-बीस को मौत के घाट उतारने वाला हीरो निजी तौर पर शायद एक आदमी से लड़ाई का खतरा मोल नहीं ले सकता। जबकि असली युद्ध में कितने मरते हैं, कितने घायल होते हैं, अर्थव्यवस्था तबाह होती है। नदियां प्रदूषित होती हैं। फसलें चौपट होती हैं। और पशु-पक्षियों की तो गिनती ही कौन करता है। उनकी जान जाए या रहे, हमें क्या फर्क पड़ता है।
लेकिन ताकतवर के खौफ के कारण हम उसे आदर की दृष्टि से देखते हैं। जब से पुतिन ने हमला बोला है, भारत में भी उनके प्रशंसकों की तादाद में भारी इजाफा हुआ है। लोग बाइडेन और पुतिन की तुलना कर रहे हैं। पुतिन को असली शेर और चीता बता रहे हैं। जबकि देखा जाए तो अमेरिका या रूस दुनिया भर में अपने हथियार बेचते हैं। नाम जरूर अहिंसा का लेते होंगे। हथियारों के सौदों के बारे में भी यही कहा जाता है कि वे शक्ति-संतुलन के लिए होते हैं और असली शांति शक्ति-संतुलन से ही होती है। कमजोर को तो सब मार लेते हैं। इस सच को हम अक्सर भूल जाते हैं कि बड़े से बड़े युद्ध के बाद हमें समझौतों की तरफ बढऩा पड़ता है, क्योंकि युद्ध से उस देश की अर्थव्यवस्था तो तबाह होती ही है जिस पर आक्रमण किया जाता है, हमलावर देश भी नहीं बचता है।
लेकिन लड़ाई में आनंद प्राप्त करने वाले ये सब नहीं सोचते हैं। वैसे भी जब तक खुद की उंगली न कटती हो, हर लड़ाई हमें बहुत आनंद देती है।
इसी आनंद को दुनिया भर के चैनल्स पकड़ते हैं। उन्हें पता है कि यह सबसे ज्यादा बिकने वाली चीज है, कोई मरे-जिये हमारी टीआरपी और मुनाफे में कोई कमी नहीं आनी चाहिए। इसीलिए आपने देखा होगा कि बहुत से एंकर अपने-अपने माइक हाथ में पकड़े बता रहे हैं कि वे सीधे युद्ध स्थल से ही रिपोर्ट कर रहे हैं, कि वे सबसे पहले वहां पहुंचे हैं, कि उन्होंने ही सबसे अधिक मारक दृश्य दिखाए हैं, कि उनके ही कैमरा एंगल सर्वश्रेष्ठ रहे हैं। कई तो इसे तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत की तरह बेच रहे हैं। कुछ दिन पहले तक जो लोग अफगानिस्तान की लड़ाई और भागती अमेरिकी सेना को अपने-अपने घरों में देखकर तालियां बजा रहे थे, अब यही उक्रेन और रूस की लड़ाई में हो रहा है।
हम भूल गए हैं कि चाहे हम युद्ध में भाग लें या न लें, उसकी तबाही से नहीं बच सकते। यह नहीं कह सकते कि वहां होने वाले युद्ध से हमें क्या। बेशक वहां की सेनाएं हमारे यहां न आएं, लेकिन अगर दुनिया की अर्थव्यवस्था चौपट होती है, तो भला हम भी उससे कैसे बच सकते हैं।
 – लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।

शिव साधना का महान पर्व महाशिवरात्रि!

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट –
शिवरात्रि का पावन पर्व शिव साधना से परमात्मा शिव को खुश करके उनकी कृपा प्राप्त कर अपनी मनोकामना की पूर्ति करना है। यह वह दिन है जब सभी साधक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पूजा अर्चना करते हैं। इस साल महाशिवरात्रि 1 मार्च को मनाई जा रही है। शिवरात्रि के दिन लोग मंदिर जाते हैं और वहाँ जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। इसी के साथ सभी साधक अपने-अपने तरीकों से भगवान शिव को साधना का प्रयास करते हैं। शिव की पूजा के समय खास रंग के कपड़े पहनने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस शिवरात्रि कौन से रंग के कपड़े आपकी पूजा को सफल बना सकते हैं।
भगवान शिव की आराधना के समय हरे रंग के कपड़े धारण करना शुभ माना जाता है। इसी के साथ अगर आप हरे रंग के साथ सफ़ेद रंग के वस्त्र भी धारण करते हैं तो यह अधिक लाभदायक होगा। जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि भोले बाबा को सफ़ेद और हरा रंग बहुत प्रिये होता है इसलिए शिवरात्रि के दिन शिव जी को चढ़ाये हुए फूल और बेल-धतूरा सफ़ेद और हरे रंग के ही होते हैं।
इसी के साथ शिवरात्रि के दिन हरे रंग को धारण करना बहुत शुभ मन जाता है। वहीं अगर आपके पास हरे या सफ़ेद रंग के वस्त्र नहीं हैं तो आप लाल, केसरिया, पीला, नारंगी तथा गुलाबी रंग के वस्त्र धारण कर के भोले बाबा की आराधना कर सकते हैं। ध्यान रहे भगवान शिव को काला रंग बिलकुल भी प्रिये नहीं होता। दरअसल काला रंग अंधकार और भसम का प्रतीक होता है इसलिए कभी भी शिवरात्रि के दिन काले रंग के वस्त्र न धारण करें। आपको बता दें कि काले वस्त्रों के साथ काला दुपट्टा, बिंदी, चूडिय़ां भी नहीं पहनना चाहिए। वहीं अगर आप भगवान शिव को अपनी श्रद्धा और आराधना से प्रसन्न करना चाहते हैं तो शिवरात्रि के दिन काले रंग का त्याग कर दें।
महाशिवरात्रि पर्व शिव और शक्ति के मिलन का पर्व माना जाता है। वैसे तो प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ये पर्व मनाया जाता है। लेकिन फाल्गुन महीने में आने वाली मासिक शिवरात्रि सबसे खास होती है जिसे महा शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। शिव भक्तों के लिए ये दिन काफी खास होता है। इस साल ये पर्व 1 मार्च को मनाया जा रहा है।महाशिवरात्रि 1 मार्च को सुबह 3 बजकर 16 मिनट से शुरू होकर 2 मार्च को सुबह 10 तक रहेगी।
पहला प्रहर का मुहूर्त-:1 मार्च शाम 6 बजकर 21 मिनट से रात्रि 9 बजकर 27 मिनट तक है।
दूसरे प्रहर का मुहूर्त-: 1 मार्च रात्रि 9 बजकर 27 मिनट से 12 बजकर 33 मिनट तक है।
तीसरे प्रहर का मुहूर्त-: 1 मार्च रात्रि 12 बजकर 33 मिनट से सुबह 3 बजकर 39 मिनट तक है।
चौथे प्रहर का मुहूर्त-: 2 मार्च सुबह 3 बजकर 39 मिनट से 6 बजकर 45 मिनट तक है।
पारण समय-: 2 मार्च को सुबह 6 बजकर 45 मिनट के बाद है।सनातन धर्म के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घृत और चौथे प्रहर में मधु, यानी शहद से स्नान कराने का विधान है. इतना ही नहीं चारों प्रहर में शिवलिंग स्नान के लिये मंत्र भी अलग हैं।
प्रथम प्रहर में- ‘ह्रीं ईशानाय नम:”
दूसरे प्रहर में- ‘ह्रीं अघोराय नम:”
तीसरे प्रहर में- ‘ह्रीं वामदेवाय नम:”
चौथे प्रहर में- ‘ह्रीं सद्योजाताय नम:”।। मंत्र का जाप करना चाहिए।एक साल में कुल 12 शिवरात्रि आती हैं, लेकिन फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान शिव और शक्ति का मिलन हुआ था। वहीं ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि को भोलेनाथ दिव्य ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। शिवपुराण में उल्लेखित एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था और भोलेनाथ ने वैराग्य जीवन त्याग कर गृहस्थ जीवन अपनाया था। इस दिन विधिवत आदिदेव महादेव की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है व कष्टों का निवारण होता है।अमावस्या से एक दिन पूर्व, हर चंद्र माह के चौदहवें दिन को शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्ष में आने वाली सभी शिवरात्रियों के अलावा फरवरी-मार्च माह में महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इन सभी में से महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व सबसे ज्यादा है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध कुछ ऐसी स्थिति में होता है कि मनुष्य में ऊर्जा सहज ही ऊपर की ओर बढ़ती है। इस दिन प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में सहायता करती है। इस अवसर का लाभ उठाने के लिए ही, इस परंपरा में हमने इस पूरी रात चलने वाले उत्सव की स्थापना की। इस उत्सव का एक सबसे मुख्य पहलू ये पक्का करना है कि प्राकृतिक ऊर्जाओं के प्रवाह को अपनी दिशा मिल सके। इसलिए आप अपनी रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए जागते रहते हैं।आध्यात्मिक पथ पर चलने वालों के लिए महाशिवरात्रि का पर्व बहुत महत्वपूर्ण है। पारिवारिक परिस्थितियों में जी रहे लोगों तथा महत्वाकांक्षियों के लिए भी यह उत्सव बहुत महत्व रखता है। जो लोग परिवार के बीच गृहस्थ हैं, वे महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव के रूप में मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं से घिरे लोगों को यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण लगता है क्योंकि शिव ने अपने सभी शत्रुओं पर विजय पा ली थी।
साधुओं के लिए यह दिन इसलिए महत्व रखता है क्योंकि वे इस दिन कैलाश पर्वत के साथ एकाकार हो गए थे। वे एक पर्वत की तरह बिल्कुल स्थिर हो गए थे। यौगिक परंपरा में शिव को एक देव के रूप में नहीं पूजा जाता,, वे आदि गुरु माने जाते हैं जिन्होंने ज्ञान का शुभारंभ किया। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के बाद, एक दिन वे पूरी तरह से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि था। उनके भीतर की प्रत्येक हलचल शांत हो गई और यही वजह है कि साधु इस रात को स्थिरता से भरी रात के रूप में देखते हैं।
यौगिक परंपरा के अनुसार इस दिन और रात का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इस दिन आध्यात्मिक जिज्ञासु के सामने असीम संभावनाएँ प्रस्तुत होती हैं। आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से गुजऱते हुए, उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ वे ये प्रमाणित कर रहे हैं – कि आप जिसे जीवन के रूप में जानते हैं, जिसे आप पदार्थ और अस्तित्व के तौर पर जानते हैं, जिसे ब्रह्माण्ड और आकाशगंगाओं के रूप में जानते हैं, वह केवल एक ऊर्जा है जो अलग-अलग तरह से प्रकट हो रही है।
यह वैज्ञानिक तथ्य ही प्रत्येक योगी का भीतरी अनुभव होता है। योगी शब्द का अर्थ है, ऐसा व्यक्ति जिसने अस्तित्व की एकात्मकता का एहसास पा लिया हो। जब मैं ‘योगÓ शब्द का प्रयोग करता हूँ तो मैं किसी एक अभ्यास या तंत्र की बात नहीं कर रहा। उस असीमित को जानने की हर प्रकार की तड़प, अस्तित्व के उस एकत्व को जानने की इच्छा – योग है। महाशिवरात्रि की वह रात, उस अनुभव को पाने का अवसर भेंट करती है।हम सत्यम,शिवम,सुंदरम को आत्मसात कर स्वयं को आत्म बोध में स्थापित कर परमात्मा से अपनी लौ लगाये।यह लौ हमारे अंदर के विकारों से हमे मुक्त कर हमारे कल्याण का माध्यम बनती है।युग परिवर्तन के लिए भी परमात्मा शिव हमे संगम युग मे ईश्वरीय ज्ञान प्राप्ति कराकर कलियुग से सतयुग में लाने के लिए यज्ञ रचते है।जिसमे स्त्री शक्ति का पोषण कर उन्हें युग परिवर्तन के निमित्त बनाया जाता है।वस्तुत:विश्व रचियता परमात्मा एक है जिसे कुछ लोग भगवान,कुछ लोग अल्लाह,कुछ लोग गोड ,कुछ लोग ओम, कुछ लोग ओमेन ,कुछ लोग सतनाम कहकर पुकारते है। यानि जो परम ऐश्वर्यवान हो,जिसे लोग भजते हो अर्थात जिसका स्मरण करते हो एक रचता के रूप में ,एक परमशक्ति के रूप में एक परमपिता के रूप में वही ईश्वर है और वही
शिव है। एक मात्र वह शिव जो ब्रहमा,विष्णु और शकंर के भी रचियता है। जीवन मरण से परे है। ज्योति बिन्दू स्वरूप है। वास्तव में शिव एक ऐसा शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से परमात्मा की सुखद अनुभूति होने लगती है। शिव को कल्याणकारी तो सभी मानते है, साथ ही शिव ही सत्य है

शिव ही सुन्दर है यह भी सभी स्वीकारते है। परन्तु यदि मनुष्य को शिव का बोध हो जाए तो उसे जीवन मुक्ति का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।
गीता में कहा गया है कि जब जब भी धर्म के मार्ग से लोग विचलित हो जाते है,समाज में अनाचार,पापाचार
,अत्याचार,शोषण,क्रोध,वैमनस्य,आलस्य,लोभ,अहंकार,का प्रकोप बढ़ जाता है।माया मोह बढ जाता है तब परमात्मा को स्वयं आकर राह भटके लोगो को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा का
कार्य करना पडता है। ऐसा हर पाचं हजार साल में पुनरावृत
होता है। पहले सतयुग,फिर द्वापर,फिर त्रेता और फिर कलियुग तक
की यात्रा इन पांच हजार वर्षो में होती है। हांलाकि
सतयुग में हर कोई पवित्र,सस्ंकारवान,चिन्तामुक्त और सुखमय
होता है।परन्तु जैसे जैसे सतयुग से द्वापर और द्वापर से त्रेता
तथा त्रेता से कलियुग तक का कालचक्र धूमता है। वैसे वैसे
व्यक्ति रूप में मौजूद आत्मायें भी शान्त,पवित्र और
सुखमय से अशान्त,दुषित और दुखमय हो जाती है। कलियुग
को तो कहा ही गया है दुखों का काल। लेकिन जब कलियुग
के अन्त और सतयुग के आगमन की धडी आती है तो उसके
मध्य के काल को सगंम युग कहा जाता है यही वह समय जब
परमात्मा स्वंय सतयुग की दुनिया बनाने के लिए आत्माओं
को पवित्र और पावन करने के लिए उन्हे स्वंय ज्ञान देते है
औरउन्हे सतयुग के काबिल बनाते है। समस्त देवी देवताओ में मात्र शिव ही ऐसे देव है
जो देव के देव यानि महादेव है जिन्हे त्रिकालदर्शी भी
कहा जाता है। परमात्मा शिव ही निराकारी और ज्योति स्वरूप
है जिसे ज्योति बिन्दू रूप में स्वीकारा गया है। परमात्मा
सर्व आत्माओं से न्यारा और प्यारा है जो देह से परे है
जिसका जन्म मरण नही होता और जो परमधाम का वासी है
और जो समस्त संसार का पोषक है। दुनियाभर में
ज्योतिर्लिगं के रूप में परमात्मा शिव की पूजा अर्चना और
साधना की जाती है। शिवलिंग को ही ज्योतिर्लिंग के रूप
में परमात्मा का स्मृति स्वरूप माना गया है।धार्मिक दृष्टि में विचार मथंन करे तो भगवान शिव ही एक मात्र ऐसे परमात्मा है जिनकी देवचिन्ह के रूप में शिवलिगं की स्थापना कर पूजा की जाती है। लिगं शब्द का साधारण अर्थ चिन्ह अथवा लक्षण है। चूंकि भगवान शिव ध्यानमूर्ति के रूप में विराजमान ज्यादा होते है इसलिए प्रतीक रूप में अर्थात ध्यानमूर्ति के रूप शिवलिगं की पूजा की जाती है। पुराणों में लयनाल्तिमुच्चते अर्थात लय या प्रलय से लिगं की उत्पत्ति होना बताया गया है। जिनके प्रणेता भगवान शिव है। यही कारण है कि भगवान शिव को प्राय शिवलिगं के रूप अन्य सभी देवी देवताओं को मूर्ति रूप पूजा की जाती है।
शिव स्तुति एक साधारण प्रक्रिया है। ओम नम: शिवाय का साधारण उच्चारण उसे आत्मसात कर लेने का नाम ही शिव अराधना है।

यूक्रेन और रूस युद्ध – गुटबंदी की ओर बढ़ती दुनिया

विकाश कुमार –
युद्ध दोनों पक्षों के लिए हानिकारक होते हैं। मानवता के समर्थक कभी भी युद्ध का समर्थन नहीं कर सकते, क्योंकि यह एक ऐसा भयावह आधार होता है जिससे आम जनमानस को पीड़ा की ज्वाला में झोंक दिया जाता है। यह कुछ तथाकथित हढधर्मी नेताओं का वह निर्णय होता है जो हिंसा के समर्थक और मानवता के शत्रु, शांति में विश्वास ना रखने वाले एवं संवाद प्रणाली से दूरी बनाए रखते हैं। प्रत्येक प्रकार की समस्या का हल संवाद प्रणाली से किया जा सकता है, परंतु याद रखने वाली स्थिति यह भी होती है कि संवादात्मक गतिविधियों में मध्यस्थ करने वाले स्तंभों को भी उन मूल्यों में विश्वास होना चाहिए। कुछ इसी प्रकार की गतिविधियां वर्तमान वैश्विक समुदायों में देखी जा सकती हैं। रूस ने यूक्रेन से जंग का ऐलान कर दिया है उसके प्रमुख सैन्य ठिकानों में बमबारी एवं युद्ध पोतों से हमला करने के साथ-साथ उसके सैनिक यूक्रेन के प्रमुख शहरों में प्रवेश कर चुके हैं। वहां के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी हथियार उठा लिए हैं और उन्होंने वैश्विक महाशक्तियों से अपील की है कि ऐसी परिस्थितियों में संभावित सहायता करें। सहायता के लिए प्राय: फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका एवं कनाडा सहित अन्य देश आगे बढ़े हैं। जेलेंस्की के स्वयं हथियार उठा लेने के बाद वहां के आम नागरिकों में राष्ट्रप्रेम की चेतना और संचार का भाव दोगुना हो गया है। उन्होंने अपने राष्ट्र के रक्षा के लिए मरने और मारने दोनों के लिए तैयार हो गए हैं। उनके इस एक्शन को विश्व में सराहना की जा रही है, परंतु सवाल यह उठता है कि क्या यूक्रेन का जोश बिना हथियारों के रूस के विशाल सैन्य शक्ति के समक्ष कब तक टिक पाएगा? इसी बीच रूस ने यूक्रेन को बातचीत का ऑफर भी दिया ,परंतु जेलेंस्की ने इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा कि बेलारूस जैसे क्षेत्र से मेरे नागरिकों पर बमबारी और गोले बरसाए गए हैं ,ऐसे क्षेत्र से बातचीत का प्रस्ताव को स्वीकार मैं नहीं करता। दरसल रूस और यूक्रेन के मध्य का विवाद नाटो की सदस्यता को लेकर हो रहा है। नाटो की स्थापना 1949 में अमेरिका के नेतृत्व मी साम्यवादी गतिविधियों को रोकने के लिए किया गया था जिसके वर्तमान समय में 30 देश सदस्य हैं जिनकी संख्या स्थापना के समय 12 थी। यह एक सैन्य संगठन है जिसका नारा है कि यदि किसी भी सदस्य देश पर कोई भी बाहरी शक्ति आक्रमण करती है तब ऐसी स्थिति में वह उसका मुकाबला सामूहिक रूप से करेंगे। इस संगठन के विरुद्ध पूर्व सोवियत संघ ने भी 1955 में वारसा पैक्ट की स्थापना की थी परंतु 1991 में सोवियत संघ के बिखरने के पश्चात वारसा पैक्ट का भी विघटन हो गया, परंतु नाटो अभी तक अस्तित्व में हैं। सोवियत संघ से विघटित अधिकतम देशों ने नाटो की सदस्यता ग्रहण कर ली है, यूक्रेन भी नाटो की सदस्यता ग्रहण करना चाहता था ,जिसका रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विरोध किया। उन्होंने तो नोटों से यह भी कहा कि 1997 के पश्चात जितने देशों ने नाटो संगठन की सदस्यता ग्रहण की है उनकी सदस्यता को रद्द किया जाए, यूक्रेन ने नाटो के सदस्यता क प्रस्ताव जैसे ही प्रस्तावित किया वैसे ही व्लादीमीर पुतिन ने अपनी सेनाओं को यूक्रेन के सीमाओं में तैनात कर दिया। यूक्रेन फिर भी नहीं झुका और उसने भी अपने अस्तित्व बचाने के लिए एक विशाल सेना से युद्ध करने की ठान ली। सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि जब यूक्रेन ने नाटो की सदस्यता ग्रहण करने के प्रस्ताव की पेशकश की थी तब ऐसे संकट में नाटो संगठन की सदस्य देश प्रत्यक्ष रूप से उसकी सहायता के लिए आगे क्यों नहीं आए ? नाटो संगठन के चार्टर 5 के अनुसार केवल सदस्य देशों के आक्रमण पर ही कार्यवाही की जा सकती है, परंतु चार्टर 4 के तहत कार्यवाही की जा सकती थी। ऐसी स्थिति में उन्होंने किसी भी प्रकार की कार्यवाही क्यों नहीं की ? क्या उनको रूस का डर था ? क्या विवाद से दूर रहना चाहते थे ? क्या जानबूझकर समस्या को बढ़ाना चाहते थे? यदि नहीं तब ऐसी स्थिति में सभी सदस्यों को मिलकर यूक्रेन की सहायता करनी चाहिए। केवल आर्थिक प्रतिबंध लगा देने से और अपने देश में राजनैतिक आवागमन के प्रतिबंध कर देने से किसी भी देश का सैन्य साहस नहीं टूटता । हां यह जरूर कहा जा सकता है कि यदि युद्ध अधिक समय तक तक चला तोर उसको भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। कभी शाम में वहां का हिस्सा रहे यूक्रेन ने जब नाटो की सदस्यता का प्रस्ताव आगे बढ़ाया तब ऐसी स्थिति में अमेरिका सहित अन्य देशों को सैन्य सहायता अवश्य देनी चाहिए थी। प्रारंभ में यदि यह सभी देश यूक्रेन को विभिन्न प्रकार के आश्वासन ना दिए होते तो शायद आज यह स्थिति नहीं बनती। दरअसल इस युद्ध में विश्व के प्रमुख देश अपने गुट बंदियों की ओर बढ़ रहे हैं ,क्योंकि चीन जैसे देश सदैव रूस के समर्थन में ही रहेंगे। इधर भारत ने भी संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में निंदा प्रस्ताव पर वोटिंग ना करके अपने आप को इससे दूर ही रखा है। उधर अमेरिका जैसे अन्य देश केवल अपील करते दिख रहे हैं विशेष एक्शन नहीं ले पा रहे हैं। छोटे देशों ने काफी कुछ हद तक सहायता पहुंचाई है परंतु वह यूक्रेन के लिए पर्याप्त नहीं होगी। रूस के पास एक विशाल सेन सकती है जो आधुनिक हथियारों से सुसज्जित है, जवाबी कार्यवाही के लिए चाहिए कि उसके पास भी ऐसे ही हथियार, युद्धपोत, मिसाइलें एवं राइफल्स हों जो रूस के अधिक प्रभावशाली हों। अभी तक इस प्रकार की सैन्य सामग्री की पेशकश किसी देश ने यूक्रेन के लिए नहीं किया है। परिस्थितियों में भी गुट बंदियों को आधार बनाया जा रहा है। अमेरिका की यह धारणा जरूर रही होगी कि यदि वह रूस के विरुद्ध सैन्य आक्रमण करता है तब ऐसी स्थिति में चीन भी एक्शन लेने से पीछे नहीं हटेगा और यह बात सर्व विदित है कि अमेरिका ने जहां पर भी हस्तक्षेप किया है उन देशों में सफल लोकतांत्रिक शासन स्थापित नहीं हो सका है। उसने सैन्य सहायता लेने की जगह जेलेंस्की को यह प्रस्ताव दिया कि वह चाहे तो विमान में बैठकर अमेरिका आ सकते हैं। शायद ऐसा ही प्रस्ताव अशरफ गनी को भी दिया होगा। इन सभी प्रकार के प्रभावहीन प्रस्तावों के बीच यूक्रेन अकेला दिख रहा है, परंतु इतने बड़े देश से सेंड संघर्ष लगातार जारी रखना साहस और अपने राष्ट्रप्रेम के प्रति समर्पण और बलिदान का भाव दिखाता है। युद्ध विराम जल्द से जल्द ही होना चाहिए, क्योंकि अधिक समय तक युद्ध चलने से आम नागरिकों की हत्याएं और कत्लेआम अधिक हो सकता। कहने का अभिप्राय यह है कि यह क्षति और रूस और यूक्रेन दोनों को ही उठानी पड़ सकती है। अभी तक के जानकारी के मुताबिक 200 से अधिक यूक्रेन के नागरिकों कि इस युद्ध में मौत हो चुकी है। देश में भय का वातावरण व्याप्त है। ऐसे में मध्यम मार्ग निकालकर व्लादीमीर पुतिन को अपनी हठधर्मिता छोड़कर युद्ध विराम की घोषणा करनी चाहिए। इससे ही मानवता की रक्षा हो सकेगी। दोनों देशों को चाहिए की एक वार्ता करके संवाद शैली के माध्यम से आपसी विवादों को सुलझाएं ,क्योंकि युद्धों से आम नागरिकों की हत्याएं होती हैं।
(लेखक स्कॉलर केंद्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक एवं राजनीति विज्ञान विषय में गोल्ड मेडलिस्ट हैं)

24 फरवरी को रिलीज होगी अदाकारा हुमा कुरैशी की फिल्म ‘वलीमई’ 

बॉलीवुड की चर्चित अदाकारा हुमा कुरैशी की फिल्म ‘वलीमई’ 24 फरवरी को रिलीज होगी। फिलवक्त हुमा कुरैशी इस फिल्म के प्रमोशन के लिए बैंगलोर, हैदराबाद और चेन्नई इन शहरों के चक्कर लगा रही है।
‘वलीमई’ के रिलीज़ के दिन चेन्नई में आयोजित किए गए  मॉर्निंग फैन शो में हुमा कुरैशी उपस्थित रहेंगी। प्राप्त जानकारी के अनुसार ‘वलीमई’ की एडवांस बुकिंग पूरे देश में शुरू हो गई है। साउथ सुपरस्टार अजित कुमार और हुमा कुरैशी अभिनीत फिल्म ‘वलीमई’ सिर्फ एक एक्शन फिल्म नहीं है बल्कि एक फैमिली एंटरटेनर है जो सामाजिक मुद्दों पर भी बात करती है। इस फिल्म में पहली बार हुमा एक पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रही है, साथ ही पहली बार एक्शन करती भी नजर आएंगी। इस फिल्म के ट्रेलर जारी किए जाने के बाद पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिलने पर प्रोड्यूसर बोनी कपूर ने इस फिल्म को हिंदी, तेलुगू और कन्नड़ में बड़े पैमाने पर रिलीज करने का फैसला किया हैै। इस फिल्म में कार्तिकेय गुम्माकोंडा विलेन के रोल में नजर आएंगे। अदाकारा हुमा कुरैशी की यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर आलिया भट्ट की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से टकराने वाली है। फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ 25 फरवरी को रिलीज होने वाली है।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

फिल्म ‘पलक’ प्रदर्शन के लिए तैयार

चित्रगुप्त आर्ट्स के बैनर तले बनी फिल्म ‘पलक’ अब बहुत जल्द ही सिनेदर्शकों तक पहुँचने वाली है। इस फिल्म की कहानी एक दिव्यांग लड़की की है जो दूसरे दिव्यांग लड़की का जीवन सुधारती है, उसके जीवन में रोशनी लेकर आती है। इस फ़िल्म के लिए ‘आय (नेत्र) बैंक’ (एन जी ओ) भी सहयोग कर रहा है। ‘ऑय बैंक’ के फाउंडर शैलेश श्रीवास्तव के द्वारा इस फिल्म के निर्माण में पुरा सहयोग दिया गया है। यह फ़िल्म राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिलीज होगी। जिसमें ऑय ब्रांड के कलाकारों का भी साथ होगा जिनमें से एक महानायक अमिताभ बच्चन भी हैं।

इस फ़िल्म को रिलीज होने से पहले ही दो फिल्म पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है जो गर्व की बात है। फिल्म की कहानी में एक महत्वपूर्ण संदेश है साथ ही चार गीत भी है जिसमें कव्वाली, सैड सांग, सगाई का गीत और सोलो गीत मुख्य हैं। फिल्म में सभी रंगमंच से जुड़े अनुभवी कलाकार हैं जो ज्यादातर उत्तर भारतीय हैं। इस फिल्म में ‘नदिया के पार’ फेम अभिनेत्री शीला शर्मा, अभिनेता अतुल श्रीवास्तव, वेब सिरीज़ आश्रम की तूलिका बनर्जी, विक्रम शर्मा जैसे मंझे हुये कलाकार हैं। सिवान (बिहार) के मूल निवासी फिल्म निर्माता मधुप श्रीवास्तव ने संदेशपरक फिल्म ‘पलक’ के पहले भी प्रोडक्शन डिजाइन और निर्देशन जैसे कई काम फ़िल्म और टेलीविजन के लिए किये हैं। दूरदर्शन पर उनकी क्राइम बेस्ड सीरियल भी टेलीकास्ट हो चुकी है। उनकी ‘उड़ेंगे ऊंची उड़ान’ नाम की धारावाहिक भी टेलीविजन पर आ चुकी है। निर्देशन के क्षेत्र में वह कई अवार्ड से भी सम्मानित हो चुके हैं। नवीनतम प्रोजेक्ट ‘पलक’ के बाद मधुप श्रीवास्तव अपनी चित्रगुप्त आर्ट्स के बैनर तले पुनः फिल्म निर्माण का कार्य करने जा रहे हैं जिसमें उनके सहयोगी बैनर युनिप्लेयर फिल्म्स है। यूनिप्लेयर फिल्मस की संचालिका अनामिका श्रीवास्तव हैं। बकौल मधुप श्रीवास्तव मौज़ूदा दौर में

फिल्मों के प्रति लोगों के मन में काफी बदलाव आए हैं वो कुछ नया देखना चाहते हैं जिसमें मनोरंजन के साथ नई कहानी और संदेश भी हो और उनकी यह तुष्टि फिल्म ‘पलक’ से पूर्ण होगी। यह फिल्म एक संदेशपरक सामाजिक कहानी है जिसे सभी दर्शकों तक पहुंचाना जरूरी है।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

केजरीवाल का कद भी तय करेगा पंजाब

राजकुमार सिंह –
कल जब पंजाब के मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे तो अपने लिए नयी सरकार ही नहीं चुनेंगे, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व संकट से गुजर रहे विपक्ष की भावी राजनीति की दिशा भी तय करेंगे। दशकों तक कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल ही पंजाब की राजनीति के प्रमुख किरदार रहे। बेशक भाजपा और बसपा ने भी अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज करवायी, लेकिन अक्सर इन बड़े दलों के छोटे साझीदार के तौर पर ही। वर्ष 2014 में पहली बार एक नये राजनीतिक दल ने पंजाब की चुनावी राजनीति में धमाकेदार एंट्री की। यह दल है, अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी, जो अब आप के संबोधन से लोकप्रिय है। लगातार तीन कार्यकाल तक सत्तारूढ़ रही कांग्रेस और उसकी परंपरागत प्रतिद्वंद्वी भाजपा को करारी शिकस्त देकर आप दिल्ली की सत्ता पर पहले ही काबिज हो चुकी थी। कुछ ही अरसा पहले भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना आंदोलन से उपजी आप ने जिस तरह देश के दोनों प्रमुख दलों को हाशिये पर धकेल कर देश की राजधानी दिल्ली (बेशक उसे पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है) की सत्ता पर कब्जा किया, उसने देश ही नहीं, दुनिया को भी चौंका दिया।
शायद इसलिए भी कि अराजनीतिक लोगों के समूह द्वारा गठित इस दल ने चुनाव और सत्ता राजनीति में माहिर दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों को अप्रत्याशित मात दी थी। बेशक पहले चुनाव में बहुमत का आंकड़ा कुछ दूर रह गया था, लेकिन जब केजरीवाल ने मध्यावधि चुनाव का दांव चला तो मतदाताओं ने सारी कसर निकालते हुए कांग्रेस-भाजपा को मानो राजनीतिक वनवास ही दे दिया। आप ने यह करिश्मा तब कर दिखाया, जब नरेंद्र मोदी की लहर पर सवार भाजपा (तीन दशक लंबे अंतराल के बाद) लोकसभा में अकेले दम बहुमत हासिल कर केंद्र की सत्ता पर काबिज हो चुकी थी। बेशक उन्हीं लोकसभा चुनाव में आप दिल्ली में तो खाता खोलने में नाकाम रही, लेकिन पंजाब में अपनी शानदार राजनीतिक उपस्थिति दर्ज करायी थी—चार सीटें जीत कर। पहले दिल्ली और फिर पंजाब, आप की इस अप्रत्याशित चुनावी सफलता का निष्कर्ष यही निकाला गया कि परंपरागत राजनीति से जन साधारण का मोहभंग हो रहा है। यह भी कि अब राजनीतिक दलों को आम आदमी और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी मुश्किलों को अपने चुनावी एजेंडा में प्रमुखता से शामिल करना होगा। इसे उत्तर भारत में मुफ्त की रेवडिय़ों की लोकलुभावन चुनावी राजनीति की विधिवत एंट्री भी कह सकते हैं। बेशक मुफ्त बिजली-पानी से लेकर महिलाओं और बेरोजगार युवाओं को नकदी बांटने के वादों से वोट बटोर सत्ता में आ कर उन पर अमल करने वाले राजनीतिक दल या नेता अपने खजाने से खर्च नहीं करते, बल्कि सरकारी खजाने का मुंह ही खोलते हैं, जो दरअसल ईमानदार करदाताओं की गाढ़ी कमाई का पैसा होता है, जिसे वोट की राजनीति के बजाय सर्वांगीण विकास पर खर्च होना चाहिए।
बेशक बहस और विश्लेषण का मुद्दा यह भी है कि कितने चुनावी वादों पर कब कितना अमल किया जाता है, लेकिन तेजी से फैलती मुफ्त की राजनीति को सरकारों द्वारा उद्योगों या अमीरों को दिये जाने वाले तमाम तरह के राहत पैकेज के मद्देनजर अब समाज कल्याण की अवधारणा से जोड़ कर देखा-दिखाया जाने लगा है। मुफ्त की राजनीति के सहारे ही सही, अधूरे राज्य दिल्ली में भी अपने वादों पर अमल कर अरविंद केजरीवाल ने उत्तर भारत में खुद को ऐसी राजनीति का ब्रांड बना लिया है। जो लोग कल तक उनकी इस राजनीति का मजाक उड़ाते थे या विरोध करते थे, आज उन्हीं का अनुसरण करते नजर आ रहे हैं। जिन पांच राज्यों में अब विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें से किसी के लिए भी किसी भी दल का चुनाव घोषणापत्र देख लीजिए बेहतर शासन के दृष्टिकोण के नाम पर मुफ्त की रेवडिय़ों की फेहरिस्त ही मिलेगी। अगर देश भर में किये जाने वाले ऐसे लोकलुभावन चुनावी वादों पर अमल की लागत का अनुमान लगाया जाये तो शायद आंकड़ा देश के बजट से भी आगे निकल जायेगा। दक्षिण भारत से शुरू हुई लोकलुभावन वादों से वोट बटोरने की यह राजनीतिक प्रवृत्ति अब जिस तरह सभी राजनीतिक दलों में पैर पसार रही है, उससे लगता नहीं कि तार्किक असहमति को भी खुले दिलो-दिमाग से सुना जायेगा।
पंजाब विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार आप सत्ता की प्रमुख दावेदार नजर आ रही है तो उसका मुख्य कारण, दोनों प्रमुख दलों : कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल से मोहभंग के अलावा, मुफ्त की राजनीति और दिल्ली में वैसे वादों पर अमल का केजरीवाल का ट्रैक रिकॉर्ड ही है, वरना तो ऐसे वादे करने में अब पीछे कोई भी दल नहीं रहा। 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव प्रचार में भी प्रतिद्वंद्वियों से आगे नजर आ रही आप अगर निर्णायक क्षणों में लंबे फासले से दूसरे स्थान पर रह गयी थी, तो उसके कई कारण बताये गये। जाहिर है, खुद आप के रणनीतिकारों को जो कारण नजर आये, वे विरोधियों को नजर आये कारणों से अलग थे। सच यह भी है कि 2014 में जीते चार लोकसभा सदस्यों का मामला हो या फिर 2017 में जीते 20 विधायकों का—आप उन्हें अगले चुनाव तक भी एकजुट नहीं रख पायी। निश्चय ही इसके लिए केजरीवाल किसी अन्य को दोषी नहीं ठहरा सकते और असल कारण उन्हें आप की राजनीति में ही खोजने होंगे। उस बिखराव के बावजूद अगर इस बार भी विधानसभा चुनाव में आप पंजाब में सत्ता की प्रमुख दावेदार नजर आ रही है तो मान लेना चाहिए कि मतदाताओं का परंपरागत राजनीतिक दलों से मोहभंग इतना ज्यादा है कि वे नया प्रयोग करना चाहते हैं। कांग्रेस ने नेतृत्व परिवर्तन कर और फिर आप के चुनावी वादों की तर्ज पर तत्काल राहत की घोषणाएं कर संभावित चुनावी नुकसान से बचने की कोशिश की है तो भाजपा से तकरार के बाद शिरोमणि अकाली दल ने बसपा से गठबंधन कर विजयी समीकरण बनाने की कवायद की है। सीमावर्ती राज्य होने के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पंजाब की संवेदनशीलता के मद्देनजर केजरीवाल की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। केजरीवाल की सत्ता महत्वाकांक्षाओं की बाबत उनके पुराने मित्र और आप के संस्थापक सदस्य रहे कवि कुमार विश्वास का ऐन चुनाव से पहले खुलासा आप की चुनावी संभावनाओं को ग्रहण भी लगा सकता है।
कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही आप को एक-दूसरे की फोटोकॉपी बताते हैं, पर सच यह है कि केजरीवाल की राजनीति इन दोनों की राजनीतिक शैली का मिश्रण है। वह धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद, दोनों की बात एक साथ कर लेते हैं। शायद इसीलिए सत्ता से त्वरित लाभ की आस में न कांग्रेस के परंपरागत मतदाता को झाड़ू का बटन दबाने में संकोच होता है, न ही भाजपा के परंपरागत मतदाताओं को। आखिर दिल्ली में आप ने कांग्रेस और भाजपा, दोनों के ही परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगायी। पंजाब में तो वह शिरोमणि अकाली दल के धार्मिक रुझान वाले परंपरागत वोट बैंक तक में सेंध लगाती नजर आ रही है। पंजाब के मतदाताओं ने अगली सरकार के लिए किसके पक्ष में जनादेश दिया—यह 10 मार्च को पता चल जायेगा, लेकिन अगर यह आप के पक्ष में हुआ तो उसका असर विपक्ष की राष्ट्रीय राजनीति पर पड़े बिना भी नहीं रहेगा। लगातार चुनावी पराभव झेल रही कांग्रेस में जैसी भगदड़ मची है, उसकी स्वाभाविक प्राथमिकता विपक्ष का नेतृत्व करने से पहले अपना अस्तित्व बचाना होगी। उस स्थिति में विपक्ष के नेतृत्व की दौड़ मुख्यत: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच रह जायेगी। माना कि पश्चिम बंगाल की गिनती देश के बड़े राज्यों में होती है,पर दिल्ली के बाद पंजाब में भी आप की सरकार बन जाने पर केजरीवाल उस अंतर को मिटा पाने की स्थिति में आ जायेंगे। बेशक कुशल हिंदी वक्ता होना भी अंतत: राष्ट्रीय राजनीति में केजरीवाल का कद बढ़ायेगा ही, लेकिन तभी जब दिल्ली के अलावा भी किसी राज्य में आप की सरकार बन पाये– जिसकी संभावना पंजाब से बेहतर कहीं और नजर नहीं आती।

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