जी. पार्थसारथी
बाईस फरवरी की शाम राष्ट्रपति व्लादिमीर ने अपने लोगों और शेष विश्व के नाम संबोधन में रूस को अमेरिका से दरपेश चुनौतियों के बारे में बताया। उनके दावे के मुताबिक यह सब रूस को पड़ोसी मुल्कों से दूर करने की गर्ज से है। उनका यह भाषण पड़ोसी यूक्रेन से बढ़ते तनावपूर्ण रिश्तों के बीच आया था। पुतिन ने भाषण में विशेष रूप से जिक्र किया कि अमेरिका ने दुर्भावनावश सोवियत रूस को कमतर और अस्थिर किया था। पुतिन ने पड़ोसी यूक्रेन की कथित भूमिका के बारे में भी तफ्सील से बताया कि वह भी रूसी संघ को अस्थिर करने वाली हालिया पश्चिमी साजिशों में शामिल हो गया है। उन्होंने भावुक होकर कहा, ‘यहां मैं पुन: कहना चाहूंगा कि यूक्रेन हमारे लिए केवल पड़ोसी देश नहीं है। यह हमारे साझे इतिहास, संस्कृति और आध्यात्मिकता का अभिन्न हिस्सा रहा है।’ उन्होंने आखिर में कहा कि मौजूदा हालात में यह जरूरी हो जाता है कि यूक्रेन में ‘दोनेस्तक गणतंत्र’ और ‘लुहांस्क गणराज्य’ द्वारा अपनी आजादी और संप्रभुता पाने वाली लंबित मांगों पर निर्णय लिया जाए। उनके इस प्रस्ताव को रूसी संसद ने आनन-फानन में मंजूर कर लिया।
इस तरह 22 फरवरी को यूक्रेन के साथ बढ़ते तनावों में रूसी आक्रमण की भूमिका तैयार हो गई थी जो मुख्यत: अमेरिका के खिलाफ थी। राष्ट्रपति बाइडेन को इस घटनाक्रम पर तीखी घरेलू आलोचना का सामना करना पड़ा है। पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप और उनके विदेश मंत्री रहे पोम्पियो के नेतृत्व में रिपब्लिकन राजनेताओं ने हल्ला बोलते हुए कहा कि जो कुछ हुआ वह स्थिति से सही तरह निपट पाने में बाइडेन प्रशासन की विफलता का नतीजा है और ठीक वैसा है जब प्रशासनिक शिकस्त की वजह से अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज को बेइज्जत होकर वापसी करनी पड़ी थी। इसी बीच रूसी मीडिया ने गर्व से घोषणा की है कि दोनेस्तक और लुहांस्क ने यूक्रेन से निश्चयपूर्ण आजादी पा ली है।
पुतिन ने यह साफ कर दिया है कि अब केवल दोनेस्तक और लुहांस्क ही नहीं बल्कि इलाकाई महत्वाकांक्षा का निशाना समूचा यूक्रेन है। उन्होंने अपने संबोधन में पूर्व सोवियत संघ की नीतियों की कटु आलोचना करते हुए किसी को नहीं बख्शा, जिसमें सोवियत काल के प्रतीक-पुरुष जैसे कि लेनिन, स्तालिन, ख्रुशचेव के अलावा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ सोवियत यूनियन के नेतृत्व की तीन पीढिय़ां भी शामिल हैं। कम शब्दों में कहें तो, पुतिन द्वारा विगत के उन राजनेताओं की आलोचना करना अजीब और गैरवाजिब है, जिन्होंने रूस की वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियों की नींव रखी और सोवियत संघ को विश्वशक्ति बनाया था।
पुतिन की इलाकाई महत्वाकांक्षा जाहिर होने के बाद चले घटनाक्रम ने रूस और दुनियाभर में हलचल पैदा कर दी है। जहां पहले यह महत्वाकांक्षा यूक्रेन के चंद इलाकों को ‘आजादी’ दिलवाने तक सीमित थी वहीं अब समूचा यूक्रेन कब्जाने के फैसले ने विश्व को चौंकाया है। उनका यह दावा यूक्रेन पर धावा बोलने के साथ लागू हुआ। आरंभ में कइयों को लगा कि वे सिर्फ क्रीमिया को रूस में मिलाना चाहते हैं, लेकिन पुतिन के ताजा कृत्य ने दुनिया को हैरान-परेशान कर दिया है। भारत ने पहले भी वार्ता के जरिए रूस-यूक्रेन तनाव कम करने वाले प्रयासों का समर्थन करके सही किया था और अब भी यूक्रेन की मौजूदा सीमारेखा में बदलावों के प्रयास की ताईद न करके समझदारी दिखाई है। भारत सहित शायद ही कोई मुल्क ऐसा होगा जो रूस द्वारा सैन्य कार्रवाई करके यूक्रेन को हड़पने या टुकड़ों में बांट देने को सही ठहराए।
कोई हैरानी नहीं कि राष्ट्रपति बाइडेन ने रूस पर दबाव बनाने के लिए तमाम नाटो, यूरोपियन और एशियाई सहयोगियों को लामबंद होने का आह्वान किया है। बाइडेन ने सबसे ज्यादा जिन मारक प्रतिबंधों का प्रस्ताव दिया था, उसमें रूस को उपलब्ध विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग सुविधाओं से महरूम करना शामिल था। अब इस पर अमल भी हो चुका है। अमेरिका स्थित ब्लूमबर्ग डॉट कॉम ने हालांकि बताया है कि राष्ट्रपति पुतिन द्वारा पृथक दोनेस्तक और लुहांस्क को मान्यता देने वाले दस्तावेज पर दस्तखत करने के 24 घंटों के अंदर अमेरिका और यूके ने आनन-फानन में रूस से 350 लाख बैरल कच्चा एवं परिशोधित तेल, सोना सहित 700 मिलियन डॉलर मूल्य की प्राकृतिक गैस, एल्यूमीनियम, टाइटेनियम, कोयला खरीदा है। रूस से इनका निर्यात आज भी जारी है। यूक्रेनी फौज और नागरिकों द्वारा रूसी सेना को कड़ी टक्कर के बीच पश्चिमी प्रतिबंध और सख्त होने जा रहे हैं। इसका विश्वव्यापी असर होना अवश्यम्भावी है।
अमेरिका और उसके यूरोपियन सहयोगियों द्वारा रूस पर प्रतिबंधों में सबसे करारा असर ‘स्विफ्ट’ नामक बैंकिंग व्यवस्था से महरूम करने से होगा। इसके अभाव में रूस की विश्व-व्यापार परिचालन क्षमता बाधित हो जाएगी और रूस के केंद्रीय बैंक का दुनिया के अन्य देशों से वैश्विक लेन-देन पंगु हो जाएगा। हालांकि, रूसी बैंक नियंताओं को इन उपायों का कयास पहले से था। इस सबके बीच रूसी अपना सैन्य अभियान बंद करने को तैयार नहीं हैं। हालांकि यूक्रेन ने सूझ-बूझ दिखाते हुए स्थिति सामान्य बनाने के लिए वारसा में शांति-वार्ता की पेशकश की है, लेकिन उम्मीद के मुताबिक रूस ने पहले यह प्रस्ताव ठुकरा दिया था। हालांकि बैठक का एक दौर हो चुका है।
रूस द्वारा यूक्रेन पर दमन जारी रखने पर न केवल यूक्रेन को बल्कि रूसी नागरिकों को भी लंबे समय तक दुश्वारियां झेलनी पड़ेंगी, जिससे कटुता बढ़ेगी एवं आपसी एकता भंग होगी और बदनामी झेलनी पड़ेगी। उम्मीद करें कि रूस और यूक्रेन द्वंद्व में तमाम संबंधित पक्ष अपने जहन में रखेंगे कि अपने पड़ोस में शांति और सद्भावना कायम रखना दोनों की जिम्मेवारी है। शांति प्रयासों में फ्रांस और जर्मनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। रूसी समस्याओं पर अमेरिका और अन्य मुल्कों द्वारा व्यर्थ का छद्म-राष्ट्रवाद बघारने और घुड़कियों का भयावह परिणाम हो सकता है। रूस के पास फिलहाल 6400 परमाणु अस्त्रों का भंडार है, जिसमें 1600 सामरिक मिसाइलें तैयार हैं। रूस ने भड़काए जाने पर इनका इस्तेमाल करने का इरादा गुप्त नहीं रखा है।
यूक्रेन में स्थिति हाथ से निकलने पाए, इस हेतु वैश्विक राजनीतिक और कूटनीतिक प्रयास बहुत महत्वपूर्ण बन जाते हैं। राष्ट्रपति बाइडेन और पुतिन जब जेनेवा में मिले थे तो आदर्श राजनेता की तरह कहा था- ‘परमाणु युद्ध में कोई विजेता नहीं होता और यह कभी नहीं होना चाहिए।’ उम्मीद करें कि यह दोनों ताकतें तनाव को काबू से बाहर नहीं होने देंगी। अमेरिका और सहयोगियों द्वारा लगाए प्रतिबंधों की वजह से रूस के साथ भारत के व्यापारिक और आर्थिक संबंधों पर असर पड़ेगा। हालांकि इन अड़चनों से जुगत लगाकर पार पाया जा सकता है। लेकिन पुतिन के कृत्यों ने नया वैश्विक तनाव ऐसे समय बना डाला है जब दुनिया पहले से ही कोरोना महामारी का घातक असर झेल रही है। किंतु फिलहाल लगता नहीं कि व्लादिमीर पुतिन पीछे हटने को राजी होंगे, जाहिर है उन्हें अपने परमाणु भंडार की पाश्विक शक्ति पर यकीन है।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।