मानवीय त्याग और समर्पण पर आधारित है भोजपुरी फिल्म ‘संदेश’ 

भोजपुरी फिल्म जगत के चर्चित फिल्म निर्माता आर बी गौतम की बहुप्रतीक्षित भोजपुरी फिल्म ‘संदेश’ अब बहुत जल्द ही सिनेदर्शकों तक पहुँचने वाली है। 7 कर्णप्रिय गीतों से सजी इस फिल्म के कथाकार अनिल विश्वकर्मा, निर्देशक लखीचंद ठाकुर, सहायक निर्देशक अमृत लाल अमन, गीतकार मो. इदरीश खान व धर्मेंद्र राज, संगीतकार विपिन बिहारी व माधव सिंह राजपूत, नृत्य निर्देशक फिरोज खान और कैमरामैन बिरजू चौधरी व पंकज जोशी हैं।

गौतम फिल्म प्रोडक्शन के बैनर तले बनी इस फिल्म के मुख्य कलाकार अविनाश शाही, कल्पना शाह, प्रमोद माउथो, रवींद्र अरोड़ा, दीपक भाटिया, अमित बिग बी, ज्योति ठाकुर, धर्मेंद्र त्रिपाठी, राम विश्वकर्मा, बसंत कुमार, कर्ण मिश्रा, राधेश्याम गुप्ता और अशोक चतुर्वेदी आदि हैं। ‘महिला सशक्तिकरण’  के पक्ष में आवाज़ बुलंद करती इस फिल्म के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि महिलाएं आगे बढ़ेगी….तभी देश तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ेगा। बकौल फिल्म निर्माता आर बी गौतम भोजपुरी फिल्म ‘संदेश’ के माध्यम से ये भी समझाने का प्रयास किया गया है कि अशिक्षित समाज में अनेक तरह की समस्याएं जन्म लेती है और उसका दंश पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को झेलना पड़ता है। डिजिटल युग में समाज के सभी वर्ग को शिक्षित होना अति आवश्यक है। मूल रूप से मानवीय त्याग और समर्पण पर आधारित है भोजपुरी फिल्म ‘संदेश’।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

आधे से ज्यादा भ्रम दूर हुआ, संघर्ष जारी रहेगा – अखिलेश

लखनऊ ,11 मार्च (आरएनएस)। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार को लेकर अखिलेश यादव का पहला रिएक्शन का आया है। समाजवादी पार्टी के नेता ने इन नतीजों को भी सकारात्मक ढंग से लेने की बात कही है। अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा, उत्तर प्रदेश की जनता को हमारी सीटें ढाई गुनी व मत प्रतिशत डेढ़ गुना बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद। हमने दिखा दिया है कि भाजपा की सीटों को घटाया जा सकता है। भाजपा का ये घटाव निरंतर जारी रहेगा। आधे से ज़्यादा भ्रम और छलावा दूर हो गया है बाकी कुछ दिनों में हो जाएगा। जनहित के लिए संघर्ष जारी रहेगा। इससे पहले गुरुवार को नतीजों के वक्त अखिलेश यादव का कोई रिएक्शन सामने नहीं आया था।

अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया से साफ है कि वह वोट प्रतिशत और सीटों में इजाफे को लेकर खुश हैं। उन्होंने साफ कहा कि आपने हमारी सीटों को ढाई गुना तक बढ़ा दिया है, जो 2017 में मिलीं 47 सीटों के मुकाबले बढ़ते हुए 125 हो गई हैं। इसके अलावा समाजवादी पार्टी का वोट प्रतिशत भी तेजी से बढ़ते हुए 20 फीसदी की बजाय 32 फीसदी पर पहुंच गया है। इस तरह सपा ने वोट प्रतिशत के मामले में बड़ी सफलता हासिल की है, लेकिन फिर सीटों के मामले में उतनी बड़ी कामयाबी नहीं मिल सकी है। दरअसल इसकी एक वजह यह है कि मामला पूरी तरह से दो ध्रुवीय हो गया था और उसका फायदा सपा से कहीं ज्यादा भाजपा को ही मिला है।समाजवादी पार्टी के लिए दरअसल वोट शेयर के मामले में खुश होने की बड़ी वजह है। 2012 में सपा को जब पूर्ण बहुमत मिला था, तब उसे 224 सीटें मिली थीं, लेकिन वोट शेयर 29 फीसदी ही रहा था। लेकिन आज उसका वोट प्रतिशत तेजी से बढ़ते हुए 32 फीसदी के पार पहुंच गया है। यही वजह है कि सपा एक तरफ सरकार बनाने से भले ही चूक गई है, लेकिन दूसरी तरफ इस बढ़े वोट को भविष्य के लिए अपनी उम्मीदों के तौर पर देख रही है। इस चुनाव का सबसे बड़ा पहलू यह है कि बसपा का वोट फीसदी तेजी से घटते हुए 12 फीसदी के करीब ही रह गया है, जो कभी 20 फीसदी से कम नहीं रहा है।

पंजाब में जीत के साथ ही राष्ट्रीय पार्टी बनने की राह पर आप

नई दिल्ली ,11 मार्च (आरएनएस)। पंजाब में विधानसभा चुनाव जीत चुकी आम आदमी पार्टी (आप) को राष्ट्रीय दल के दर्जे का दावेदार बनने के लिए अगले दो विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने की जरूरत है जो इस साल के आखिर या अगले साल के प्रारंभ में होंगे। चुनाव आयोग के एक पूर्व अधिकारी ने चुनाव निशान (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि स्वत: ही राष्ट्रीय पार्टी बन जाने के लिए किसी भी पार्टी को चार राज्यों में प्रादेशिक (क्षेत्रीय) दल बनने की जरूरत होती है। आम आदमी पार्टी पहले से ही दिल्ली और पंजाब में प्रादेशिक दल है। वह दिल्ली में सत्ता में है जबकि वह पंजाब चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बाद वहां सत्तासीन होने जा रही है।
आदेश के प्रावधानों का हवाला देते हुए आयोग के पूर्व अधिकारी ने कहा कि किसी भी पार्टी को प्रादेशिक (क्षेत्रीय दल) का दर्जा प्राप्त करने के लिए आठ फीसद वोटों की जरूरत होती है। उन्होंने कहा,  विविध विकल्प हैं। यदि किसी पार्टी को विधानसभा चुनाव में छह फीसद वोट और दो सीटें मिलती है तो उसे प्रादेशिक पार्टी का दर्जा मिल जाता है। प्रादेशिक दल का दर्जा प्राप्त करने का दूसरा विकल्प है कि विधानसभा में कम से कम तीन सीटें मिल जाएं , भले ही वोटों की हिस्सेदारी कुछ भी हो।
उन्होंने कहा,  लोकसभा चुनाव में भी प्रदर्शन के संदर्भ में प्रावधान हैं लेकिन वे 2024 में होने वाले हैं। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध नवीनतम रूझानों के अनुसार आप गोवा विधानसभा चुनाव में 6.77 फीसद वोट हासिल करने में कामयाब रही है।
हिमाचल प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल आठ जनवरी, 2023 तक है जबकि गुजरात विधानसभा का कार्यकाल अगले साल 18 फरवरी को खत्म होगा। ये दोनों चुनाव इस साल के आखिर या 2023 के प्रारंभ में हो सकते हैं। आप गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश में चुनाव के लिए अपनी जमीन तैयार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।
चुनाव आयोग के अनुसार फिलहाल आठ राष्ट्रीय दल–तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एवं नेशनल पीपुल्स पार्टी हैं।

चुनावी मुद्दा नहीं बनता नदियों का जीना-मरना

कृष्ण प्रताप सिंह –

पहले चुनाव आते थे तो आम लोगों के रोटी, कपड़ा और मकान कहें या उनके जीवन निर्वाह से जुड़े मुद्दों पर सार्थक चर्चाएं हुआ करती थीं। पार्टियां व प्रत्याशी मतदाताओं को इन मुद्दों से जुड़ा अपना नजरिया व नीतियां समझाते नहीं थकते थे। साथ ही अपीलें करते थे कि मतदाता बूथों पर जायें तो किसी के बहकावे में न आयें और इन मुद्दों के आधार पर ही वोट दें। लेकिन अब चुनाव आते हैं, तो जान-बूझकर ऐसे मुद्दों को हाशिये में डालकर कुछ बहकाने वाले मुद्दों को आगे ला दिया जाता है और सारी बहसें उन्हीं के इर्द-गिर्द केंद्रित कर दी जाती हैं। ताकि मतदाताओं की जातियां व धर्म आगे आ जायें और उनके कौआ रोर में किये जाने वाले इमोशनल अत्याचार से वे इतने त्रस्त हो जायें कि अपनी जाति’ व अपने धर्म’ से आगे सोच ही न सकें। फिर उन्हीं के आधार पर सरकार चुन लें और फुरसत से पश्चाताप करते रहें।इन विधानसभा चुनावों में इसकी सबसे बड़ी नजीर यह है कि पंजाब में पीने के पानी के जहरीले हो जाने की जटिल होती जा रही समस्या वहां मतदान के दिन तक मुद्दा नहीं बन पाई। यह तब था, जब कभी पांच नदियों के पानी के लिए जाने जाने वाले इस प्रदेश में जहरीला पानी पीने की मजबूरी के शिकार अनेक नागरिक कैंसर से पीडि़त होकर त्रासद मौतों के शिकार हो रहे हंै। जब यह समस्या मुद्दा ही नहीं बन पाई तो इसी पर चर्चा क्यों होती। दरअसल, बीती शताब्दी के सातवें दशक में हरित क्रांति लाने की कोशिशों के दौरान अत्यधिक अनाज उगाने के लिए अपनाई गई कृषि पद्धति रासायनिक उर्वरकों पर कुछ ज्यादा ही निर्भर है। और अब वह अपना विकल्प तलाशे जाने की मांग करती है। इसी तरह मानव जीवन की रेखा कही जाने वाली नदियों से उनका ही जीवन छीन लेने पर आमादा प्रदूषण न सत्तापक्ष के लिए चुनाव का कोई मुद्दा है, न ही विपक्षी दलों के लिए। भले ही नदियां न केवल लोगों की प्यास बुझाती आई हों, बल्कि उनकी आजीविका का माध्यम भी हों। साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र और भूजल के स्तर को बनाए रखने में भी बड़ा योगदान देती हों। एक जानकार के शब्द उधार लें तो आज जो नदियां मैल व गन्दगी ढोने को अभिशापित हैं, वे धरती पर अपने अवतरण के वक्त से ही जीवन बांटती आई हैं। खास तौर पर मनुष्य का जीवन-मरण किस तरह नदियों पर निर्भर है, इसे यों समझ सकते हैं कि मनुष्य के मरणोपरांत उसके शारीरिक अवशेष भी नदियों में बहाए जाते हैं। ऐसे में कायदे से होना तो यह चाहिए था कि लगातार बढ़ते जा रहे प्रदूषण के कारण अस्तित्व के खतरे झेल रही नदियों और उनके बहाने मानव जीवन को पैदा हो रहे अंदेशों पर भरपूर चर्चा होती। इस कारण और कि इंग्लैंड की यॉर्क यूनिवर्सिटी द्वारा दुनिया भर की नदियों में दवाओं के अंशों का पता लगाने के लिए हाल में ही किये गये शोध से खुलासा हुआ है कि अब नदियों के जल के लिए पैरासिटामोल, निकोटिन व कैफीन के अलावा मिर्गी और मधुमेह आदि की वे दवाएं भी खतरा बनती जा रही हैं, जिनके अंश लापरवाही से नदियों के हवाले कर दिये जा रहे हंै। किसी एक देश में नहीं, प्राय: दुनिया भर में। अमेरिका की प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा प्रकाशित की गई इस शोध की रिपोर्ट में इस स्थिति को पर्यावरण के साथ ही मानव स्वास्थ्य के लिए भी घातक बताया गया है। यॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने इस शोध के लिए 104 देशों में नदियों की शहरों व कस्बों के नजदीक बहने वाली 1,052 साइटों से उनके पानी के नमूने एकत्रित किये और उनमें सक्रिय 61 दवाओं के अंशों (एपीआई) का परीक्षण किया, तो पाया कि दवा निर्माण संयंत्रों से निकले दूषित जल, बिना उपचार के सीवेज के पानी, शुष्क जलवायु और कचरा निपटान के तरीके का नदियों के पानी को प्रदूषित करने में योगदान लगातार बढ़ रहा है। हां, जिन देशों में आधुनिक दवाओं का इस्तेमाल कम होता है या उनके अंशों के अत्याधुनिक दूषित जल उपचार का ढांचा और नदियों में पर्याप्त बहाव है, वहां वे दवा प्रदूषण से अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं।दवाओं से नदी जल प्रदूषण की समस्या इसलिए भी जटिल हो रही है क्योंकि ज्यादातर देशों में दवा उद्योग से निकले प्रदूषित जल के निपटान के कानून बने तो हैं लेकिन उन पर अमल नहीं हो रहा। लेकिन अपने देश के सिलसिले में इसकी बात करें तो हम पाते हैं कि अभी इसे लेकर न सरकारें ठीक से सजग हैं और न ही लोग इतने जागरूक कि इसे लेकर सरकारों पर दबाव बना सकें। जहां तक राजनीतिक दलों की बात है, जब वे चुनावों के वक्त भी ऐसी समस्याओं को चर्चा के केन्द्र में नहीं लाना चाहते तो उनकी वास्तविक मंशा समझने के लिए और कौन से तथ्यों की जरूरत है? बिना जन दबाव के इन दलों को क्या फर्क पड़ता है अगर कल-कारखानों की निकासी, घरों की गंदगी, खेतों में मिलाये जा रहे रसायन, उर्वरक और भूमि कटाव के साथ दवाओं में प्रयुक्त हो रहे रसायन भी नदी जल को दूषित करने वाले कारकों में शामिल हो जायें। इसे लेकर वोट की चोट के बगैर वे क्योंकर समझने लगे कि नदियां महज जल-मार्ग नहीं हैं, वे बरसात की बूंदों को सहजेती हैं और धरती की नमी बनाये रखती है। जलवायु में हो रहे बदलाव में नदियां ही धरती पर जीवन का आधार हैं और उनमें बहता पानी मनुष्य की सांस की सीमा भी तय करता है। सिविल सोसायटी ने अभी भी इसके लिए सत्तातंत्र पर दबाव नहीं बनाया और सब कुछ राजनीतिक दलों व सरकारों की इच्छा और मंशा पर ही छोड़े रखा, तो कौन कह सकता है कि हालात वैसे ही नहीं होंगे, जैसे गंगा की सफाई के मामले में हुए हैं?

‘गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट’ की तिमाही बैठक सम्पन्न

गौ वंश पर आधारित भारत की पहली व एक मात्र राष्ट्रीय समाचार पत्र ‘गऊ भारत भारती’ द्वारा संचालित ‘गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट’ की तिमाही बैठक 10 मार्च को गोरेगाँव (मुम्बई) स्थित संस्था के कार्यालय में 10 मार्च को

‘गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट’ तथा  ‘गऊ भारत भारती’ के संस्थापक ट्रस्टी संजय अमान ,महासचिव ट्रस्टी राम कुमार पाल , सचिव प्रेम कुमार , विशाल भगत , राजेश मेहता और अन्य  कार्यकारिणी सदस्यों की उपस्थिति में संपन्न हुई। इस तिमाही बैठक में यूपी में 11.8 लाख से भी अधिक छुट्टा पशुधन पर संस्था के महासचिव और ट्रस्टी रामकुमार पाल ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि -” इस समस्या के समाधान के लिए ” गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट ” पहल करे और उत्तरप्रदेश में व्याप्त इस विषय पर हो रही राजनीति पर अंकुश लगाना जरुरी है क्योंकि यूपी में छुट्टा पशुओं की संख्‍या तेजी से बढ़ रही है। साल 2012 से 2019 के बीच सात सालों में छुट्टा पशुओं की संख्‍या 17.3% बढ़ गई। पशुगणना के मुताबिक, उत्‍तर प्रदेश में 2012 में 10 लाख से ज्‍यादा छुट्टा पशु थे, सात साल बाद 2019 में यह संख्‍या करीब 11.8 लाख हो गई। साल 2019 में आई 20वीं पशुगणना के मुताबिक, देश में राजस्‍थान के बाद सबसे ज्‍यादा छुट्टा पशु यूपी में मौजूद हैं। श्री पाल ने आगे कहा कि उत्तरप्रदेश में गौशालाओं के अलावा यूपी में ‘बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना’ भी चलाई जा रही है, ज‍िसके तहत लोगों को छुट्टा पशुओं को पालने के ल‍िए ₹30 प्रतिदिन द‍िए जाते हैं। इस योजना में एक लाख पशुओं को देने का लक्ष्‍य है। यह लक्ष्‍य करीब-करीब हास‍िल कर ल‍िया गया है। मगर इतना काफी नहीं है हमें आगे आ कर बड़े पैमाने पर छुट्टा पशुधन पर काम करने की जरुरत है। श्री पाल के इस सुझाव पर तुरंत ही  गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट तथा ” गऊ भारत भारती ”के संस्थापक ट्रस्टी संजय अमान , ने संस्था के सभी ट्रस्टियों से विचार कर एक रिजुलेशन पास किया कि उत्तर प्रदेश में छुट्टा पशुधन को गौशालाओ में पहुंचाने , उनके चारे पानी की समुचित व्यवस्था , उन के चिकित्सा व्यवस्था के लिए संस्था सरकार के साथ मिल कर जमीनी स्तर पर कार्य करेगी। बैठक के अंत में संस्था के सचिव प्रेम कुमार ने बैठक में आए सभी ट्रस्ट्रियों को धन्यवाद देते हुए पुनः उत्तरप्रदेश में भाजपा की जीत पर सब को बधाई दी।

विदित हो कि ”गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट ” अपनी 7वीं  वार्षिक वर्षगाँठ मना रहा है।  इस का वार्षिक उत्सव का कार्यक्रम 25 मार्च को महराष्ट्र के राज्यपाल माननीय महामहिम श्री भगत सिंह कोश्यारी जी के संरक्षण में राजभवन में होने जा रहा है। जिसमें गौसेवा और समाज से जुड़े लोगों को  राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान दे कर उन्हें सम्मानित भी किया जायेगा।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

प्रधानमंत्री मोदी ने 5 में से 4 राज्यों में जीत पर कार्यकर्ताओं को दी बधाई

*यूपी में 37 साल बाद कोई सरकार लगातार दूसरी बार आई है

नई दिल्ली ,10 मार्च (आरएनएस)। 5 में से 4 राज्यों में भाजपा को मिले जनादेश पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। पीएम मोदी ने कहा कि आज उत्साह का दिन है, उत्सव का दिन है। ये उत्सव भारत के लोकतंत्र के लिए है। मैं इन चुनावों में हिस्सा लेने वाले सभी मतदाताओं को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। उनके निर्णय के लिए मतदाताओं का आभार व्यक्त करता हूं। विशेष रूप से हमारी माताओं, बहनों और युवाओं ने जिस तरह से बीजेपी का समर्थन किया वह अपने आप में बड़ा संदेश है।
पीएम मोदी ने दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि चुनाव के दौरान भाजपा के कार्यकर्ताओं ने मुझसे वादा किया था कि इस बार होली 10 मार्च से ही शुरू हो जाएगी। हमारे कर्मठ कार्यकर्ताओं ने अपने वादे को पूरा करके दिखाया है। मैं अपने कार्यकर्ताओं की भूरी-भूरी प्रशंसा करूंगा, जिन्होंने इन चुनावों में कड़ी मेहनत की है। यूपी ने देश को अनेक प्रधानमंत्री दिए हैं, लेकिन 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले मुख्यमंत्री के दोबारा चुने जाने का ये पहला उदाहरण है। यूपी में 37 साल बाद कोई सरकार लगातार दूसरी बार आई है।
पीएम मोदी ने आगे कहा कि तीन राज्य यूपी, गोवा और मणिपुर में सरकार में होने के बावजूद भाजपा के वोट शेयर में वृद्धि हुई है। गोवा में सारे एग्जिट पोल गलत निकल गए और वहां की जनता ने तीसरी बार सेवा करने का मौका दिया है। सीमा से सटा एक पहाड़ी राज्य, एक समुद्र तटीय राज्य, मां गंगा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त एक राज्य और पूर्वोत्तर सीमा पर एक राज्य, भाजपा को चारों दिशाओं से आशीर्वाद मिला है। इन राज्यों की चुनौतियों भिन्न हैं, सबकी विकास यात्रा का मार्ग भिन्न है, लेकिन सबको जो बात एक सूत्र में पिरो रही है, वो है- भाजपा पर विश्वास, भाजपा की नीति, भाजपा की नीयत और भाजपा के निर्णयों पर अपार विश्वास।
इस दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत पार्टी के अन्य नेताओं ने पीएम मोदी को माला पहनाकर सम्मानित किया। इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा कि उत्तर प्रदेश में चार बार नरेंद्र मोदी को प्रदेश की जनता ने लगातार अपना आशीर्वाद दिया है। 2014 लोकसभा में प्रचंड जीत हासिल हुई थी, 2017 में प्रदेश की जनता ने आशीर्वाद दिया था। 2019 में जनता ने फिर से लोकसभा में आशीर्वाद दिया था। इस बार 2022 में चौथी बार भाजपा को उत्तर प्रदेश की जनता ने आशीर्वाद दिया है।
जेपी नड्डा ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की राजनीति की संस्कृति बदली है। लंबे समय तक एक राजनीति चल रही थी। वह राजनीति थी भाई, भतीजावाद, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता, जातिवाद, परिवारवाद, क्षेत्रवाद। इनकी राजनीति लंबे समय से चल रही थी। प्रधानमंत्री ने भारत की राजनीति की संस्कृति बदल दी है। अब रिपोर्ट कार्ड की राजनीति है। काम करोगे, जनता के बीच में जाओगे और जनता का आशीर्वाद लोगे। आज विकास की राजनीति है, महिला सशक्तिकरण, किसानों का सशक्तिकरण की राजनीति है।

चार राज्यों मेें भगवा दल का जलवा, पंजाब आप के हवाले

चुनाव आयोग के अनुसार उत्तर प्रदेश की 403 सीटों में से 399 सीटों के रुझानों में भाजपा 252, सपा 110 तथा अपना दल 12 सीटों पर आगे चल रहा है। इसके अलावा भी कुछ अन्य राजनीतिक दलों के उम्मीदवार आगे चल रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर शहरी सीट पर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीदवार से करीब 20 हजार मतों से तथा सपा के अखिलेश यादव करहल सीट पर 30 हजार से ज्यादा मतों से आगे चल रहे हैं। राज्य के बुंदेलखंड के सात जिलों की कुल 19 सीटों में सभी पर भाजपा एवं उसके सहयोगी दलों के उम्मीदवार काफी बढत बनाए हुए हैं। पंजाब में सभी 117 सीटों के रुझान आ चुके हैं और आम आदमी पार्टी 90 सीटों पर आगे है, कांग्रेस 18, शिरोमणि अकाली दल छह और भाजपा दो सीटों पर बढ़त बनाये हुए है।
मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी चमकौर साहिब सीट से पीछे चल रहे हैं और पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी अमृतसर पूर्वी सीट पर आम आदमी पार्टी की जीवन जोत कौर से, पटियाला सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह आम आदमी पार्टी से और पूर्व मुख्यमंत्री तथ शिरोमणी अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल लम्बी सीट से पिछड़ रहे हैं। उत्तराखंड में सभी 70 सीटों के प्रारंभिक रुझान आ चुके हैं और वहां भाजपा 42, कांग्रेस 22 आगे चल रही है। इस राज्य में बहुजन समाज पार्टी एक सीट पर बढ़त बनाये हुए है। मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी खटीमा सीट से करीब एक हजार वोटों से और कांग्रेस उम्मीदवार तथा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत लालकुआं सीट से 12 वोटों से पीछे चल रहे हैं।
मणिपुर की 60 सीटों में 41 के रुझान आ गए हैं, जिनमें भापजा 21, कांग्रेस तीन, नागा पीपुल्स फ्रंट तथा नेशनल पीपुल्स पार्टी छह-छह सीटों पर बढत बनाए हुए है। राज्य विधानसभा चुनाव का पहला परिणाम घोषित किया जा चुका है और यह परिणाम जनता दल यू के पक्ष में गया है और इसके प्रत्याशी नगूरसंगलूर सनाते ने भाजपा के सीएल येमो को 1249 मतों से पराजित किया है। भाजपा नेता तथा राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह हींगांग सीट से 18 हजार वोटों से बढ़त बनाए हुए हैं।

संदेशपरक फिल्म ‘बांछड़ा’ और ‘धर्म द्वन्द’ की शूटिंग

 

28 मार्च से लखनऊ में शुरू होगी

जेडी फिल्म प्रोडक्शन हाउस प्राइवेट लिमिटेड व् वाफ्ट स्टूडियोज के बैनर तले सवेंदनशील मुद्दों पर आधारित निर्देशक नीरज सिंह के निर्देशन में बन रही दो फिल्म क्रमशः ‘बांछड़ा’ और ‘धर्म द्वन्द’ की शूटिंग 28 मार्च से लखनऊ में शुरू होगी। स्टार्ट टू फिनिश शूटिंग शेड्यूल के प्रथम चरण में ‘बांछड़ा’ की शूटिंग कम्प्लीट किये जाने के बाद ‘धर्म द्वन्द’ की शूटिंग शुरू होगी। दोनों फिल्मों की कथावस्तु उत्तर प्रदेश की पृष्टभूमि से जुड़ी है। नीरज सिंह, श्रद्धा श्रीवास्तव व् अमित चतुर्वेदी ने दोनों संदेशपरक फिल्मों की कहानी को काफी रिसर्च करने के बाद लिखा है। फिल्म ‘बांछड़ा’ अनुसूचित जनजाति/आदिवासी समुदाय में परंपरा के नाम पर हो रही महिला उत्पीड़न को दर्शाती है तो वहीं दूसरी फिल्म ‘धर्म द्वन्द’ की कहानी देश में हो रहे धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर है। फिल्म निर्माता धर्मेंद्र सिंह की इन दोनों फिल्मों के सह निर्माता कुणाल श्रीवास्तव व् अमरीक सिंह मान, सह निर्देशिका श्रद्धा श्रीवास्तव, क्रिएटिव डायरेक्टर संजीव त्रिगुणायत , एक्सक्यूटिव प्रोडूसर अवि प्रकाश शर्मा , एसोसिएट प्रोडूसर राजकमल सिंह तरकर, सिनेमेटोग्राफर राजकमल गुप्ता व् राजकिरण गुप्ता हैं और मुख्य कलाकार बृजेन्द्र काला, निमाई बाली, मिथिलेश चतुर्वेदी, संजीव जैसवाल और काजल मोदी आदि हैं।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

चीन के रक्षा बजट में अप्रत्याशित बढ़ोतरी गंभीर चिंता का विषय

खतरनाक मंसूबे

रूस व यूक्रेन के संघर्ष के दौरान अंतर्राष्ट्रीय नियामक संस्थाओं व विश्व बिरादरी की लाचारगी के बीच चीन के रक्षा बजट में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हमारी गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। कहीं न कहीं चीन के मन में यह विचार जरूर होगा कि विश्व बिरादरी जब रूस की आक्रामकता पर अंकुश नहीं लगा पायी तो उसे रोकना भी मुश्किल होगा, क्योंकि वह आज विश्व की बड़ी आर्थिक ताकत है। वहीं चीन में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का होना, उसकी अतिरिक्त शक्ति भी है। यूं तो चीन लगातार सात सालों से अपने रक्षा बजट में वृद्धि करता रहा है। लेकिन इस बार चौंकाने वाली स्थिति यह है कि उसके रक्षा बजट में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि की गई है। वह भी ऐसे समय में जब उसकी अर्थव्यवस्था की रफ्तार कोरोना संकट के दौर में मंथर गति से आगे बढ़ी है। वर्तमान में चीन की विकास दर 5.5 फीसदी दर्ज की गई है। यह विकास दर पिछले तीन दशक में सबसे कम है। इसके बावजूद उसके द्वारा रक्षा बजट में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि करना उसके खतरनाक मंसूबों को ही उजागर करता है, जो कहीं न कहीं उसके साम्राज्यवादी इरादों को पुष्ट करता है। बहुत संभव है कि कल वह यूक्रेन की तरह ताइवान व हांगकांग को पूर्ण रूप से देश का हिस्सा बनाने को रूस जैसे हथकंडे अपनाये। निस्संदेह, विकास दर के कम होने के बावजूद रक्षा खर्च में अधिक वृद्धि बताती है कि चीन की प्राथमिकताएं क्या हैं। इस कदम ने अंतर्राष्ट्रीय जनमानस की चिंताओं को बढ़ाया है। यही वजह है कि पिछले कुछ समय से अमेरिका चीन के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाये हुए है। उसे इस बात का बखूबी अंदाजा है कि कोरोना संकट के बावजूद मजबूत आर्थिक स्थिति में खड़ा चीन अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को सिरे चढ़ाने का प्रयास करेगा। यूक्रेन संकट में रूस के साथ खड़ा चीन, अमेरिका समेत पश्चिमी जगत की चिंताओं को बढ़ा रहा है क्योंकि विश्व में शक्ति का नया ध्रुव बन रहा है।कोरोना काल के बाद उपजे परिदृश्य में चीन के रक्षा बजट में वृद्धि भारत की गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। दरअसल, चीन की इस तैयारी से हमारी वह चिंता और बढ़ जाती है, जो पिछले दो साल से एलएसी पर बनी हुई है। चौदह दौर की सैन्य कमांडर स्तर की वार्ता के बाद समस्या का निर्णायक समाधान नहीं निकला है। वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब लगते इलाकों में उसका सैन्य मकसद से स्थायी निर्माण करना और भारी-भरकम हथियारों के साथ बड़ी संख्या में सैन्य बलों की तैनाती हमारी गंभीर फिक्र का विषय होना चाहिए। हालांकि, भारत ने इस इलाके में सड़कों, सुरंगों व नये पुलों के निर्माण के जरिये इस चुनौती का मुकाबला करने का प्रयास किया, लेकिन इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है। हाल ही के दिनों में चीन के रुख में कोई बदलाव नजर नहीं आया। रूस-यूक्रेन संकट के बीच भारत का रूस के साथ सामंजस्य इसी रणनीति का हिस्सा है कि यदि कहीं चीन से टकराव हो तो रूस भारत के साथ नजर आये। विगत में भी एक आजमाये दोस्त के रूप में रूस संकट के मौकों पर भारत के साथ खड़ा रहा है। लगता है चीन की यह तैयारी युद्ध की रणनीति का ही हिस्सा है। वह आधुनिकीकरण के क्रम में बड़े पैमाने पर लड़ाकू जहाज व पनडुब्बियां बना रहा है। चिंता की बात यह भी है कि चीन का रक्षा बजट भारत के रक्षा बजट का तीन गुना अधिक है, जिसका उपयोग वह उन्नत युद्ध तकनीकों के शोध व अनुसंधान पर करता है। जबकि भारतीय रक्षा बजट का साठ फीसदी हिस्सा सैन्य कर्मियों के वेतन-पेंशन आदि पर व्यय होता है। चीन का यह खर्च भारत के मुकाबले आधा ही है। अपनी रक्षा तैयारियों के बूते ही चीन आज वास्तविक नियंत्रण रेखा और हिंद प्रशांत क्षेत्र में लगातार आक्रामकता दिखा रहा है। ऐसे में एलएसी के विवादों के निपटारे के लिये भारत को कूटनीतिक विकल्प भी खुले रखने चाहिए क्योंकि दोनों देशों के संबंध अब तक के खराब दौर से गुजर रहे हैं।

रिजर्व बैंक कमेटी की संस्तुति-पूंजी का पलायन रोकने के हों प्रयास

भरत झुनझुनवाला – रिजर्व बैंक कमेटी ने संस्तुति की है कि देश को पूंजी के मुक्त आवागमन की छूट देनी चाहिए। यानी विदेशी निवेशक भारत में स्वच्छंदता से आ सकें और भारतीय निवेशक अपनी पूंजी को स्वच्छंदता से भारत से बाहर ले जाकर निवेश कर सकें, ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए। कमेटी का कहना है इसके चार लाभ हैं। पहला यह कि देश में पूंजी की उपलब्धि बढ़ जाएगी। यह सही है कि विदेशी पूंजी का भारत में आना सरल हो जाएगा। जो विदेशी निवेशक भारत में निवेश करेंगे उनके लिए समय क्रम में अपनी पूंजी को निकाल कर अपने देश वापस ले जाना आसान हो जाएगा।

लेकिन यह दोधारी तलवार है। यदि विदेशी निवेशकों के लिए भारत में पूंजी लाना आसान हो जाएगा तो उसी प्रकार भारतीयों के लिए भी अपनी पूंजी को बाहर ले जाना आसान हो जाएगा। रिजर्व बैंक के ही आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में हमारा पूंजी खाता ऋणात्मक रहा है यानी जितनी विदेशी पूंजी अपने देश में आई है उससे ज्यादा पूंजी अपने देश से बाहर गई है।

इससे प्रमाणित होता है कि पूंजी का मुक्त आवागमन विपरीत दिशा में ज्यादा चल रहा है। जैसे दो टंकियों के बीच में एक वॉल लगा हो तो पानी उस तरफ ज्यादा जाएगा जहां पानी का स्तर कम होगा। इसी प्रकार विदेशी और भारतीय पूंजी के बीच में वॉल को खोल दें तो किस तरफ पूंजी का बहाव होगा यह इस पर निर्भर करेगा कि पूंजी का आकर्षण किस तरफ अधिक है।

कमेटी का दूसरा कथन है कि पूंजी के मुक्त आवागमन से अपने देश में पूंजी की लागत कम हो जाएगी और ब्याज दर कम हो जाएगी। लेकिन रिजर्व बैंक के ही आंकड़े इसी के विपरीत खड़े हैं जो कि बता रहे हैं हमारा पूंजी खाता ऋणात्मक है यानी पूंजी बाहर जा रही है और जिसके कारण अपने देश में पूंजी का मूल्य बढ़ रहा है, घट नहीं रहा है। कमेटी ने तीसरा तर्क दिया है कि पूंजी के मुक्त आवागमन से भारतीय कंपनियों द्वारा लिए जाने वाले लोन का विविधीकरण हो जाएगा।

जैसे किसी कंपनी को यदि फैक्टरी लगानी हो तो कुछ पूंजी वह भारतीय बैंक से लेंगे, कुछ विदेशी बैंक से लेंगे, कुछ विदेशी निवेशकों से लेंगे। इस प्रकार उनके ऊपर जो लोन का भार है वह किसी एक स्रोत पर निर्भर होने के स्थान पर विविध स्रोतों पर बंट जाएगा और ज्यादा टिकाऊ होगा। यह बात सही है। कई कंपनियों ने हाल ही में विदेशी पूंजी का लोन लिया भी है।

लेकिन जितना इन्होंने लिया है उससे ज्यादा बाहर भी गया है इसलिए यह विविधीकरण कंपनियों के लिए लाभप्रद रहा हो सकता है लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ हो, ऐसा नहीं दिखता है। कमेटी के अनुसार चौथा लाभ भारतीय निवेशकों के लिए निवेश का विविधीकरण है। भारतीय निवेशक विदेशी प्रॉपर्टी एवं शेयर बाजार के साथ-साथ भारतीय प्रॉपर्टी एवं शेयर बाजार में निवेश कर सकेंगे।

लेकिन पुन: यह लाभ निवेशक विशेष को होगा। यह देश का लाभ नहीं है क्योंकि जब भारतीय निवेशक अपनी पूंजी को विदेशों में निवेश करते हैं तो भारत की पूंजी बाहर जाती है और भारत की अर्थव्यवस्था कमजोर होती है।

इन इस दृष्टि से कमेटी के दिए गए तर्क मान्य नहीं हैं।विशेष बात यह है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि आपदा के समय विकासशील देशों को पूंजी के मुक्त आवागमन पर रोक लगानी चाहिए। उन्होंने कोरिया और पेरू द्वारा कोविड संकट के दौरान ऐसे प्रतिबंध लगाने का स्वागत किया है। हमें भी इस दिशा पर विचार करना चाहिए। वर्तमान में हमारे सामने एक और संकट है कि अभी तक अमेरिकी फेडरल रिजर्व बोर्ड ने ब्याज दर शून्य के लगभग कर रखी थी। निवेशकों के लिए लाभप्रद था कि अमेरिका में लोन लेते और भारत में निवेश करते।

लेकिन अब फेडरल रिजर्व बोर्ड ने संकेत दिए हैं कि वे शीघ्र ही ब्याज दरों में वृद्धि करेंगे। यदि ऐसा होता है तो निवेशकों के लिए अपनी पूंजी को भारत से निकालकर अमेरिका ले जाना ज्यादा लाभप्रद हो जाएगा क्योंकि अमेरिका में निवेश को ज्यादा स्थाई और टिकाऊ माना जाता है। इसलिए हमको विचार करना चाहिए कि आखिर हमारी देश से पूंजी का पलायन हो क्यों रहा है।जर्नल ऑफ इंडियन एसोसिएशन ऑफ सोशल साइंस इंस्टिट्यूशन में छपे एक पर्चे के अनुसार, भारत से पूंजी के पलायन के चार कारण हैं।

पहला कारण भ्रष्टाचार का है। यह सही है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के स्तर पर भ्रष्टाचार में भारी कमी आई है लेकिन यह भी सही है कि जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार में उससे ज्यादा वृद्धि हुई है। इसलिए सरकार को नीचे से भ्रष्टाचार को दूर करने के कदम उठाने चाहिए। दूसरा यह कि सरकारी ऋण ज्यादा होने से निवेशकों को भय होता है कि ऋण की भरपाई करने के लिए आने वाले समय में रिजर्व बैंक नोटों को ज्यादा मात्रा में छापेगा, जिससे देश में महंगाई बढ़ेगी और भारतीय रुपये का अवमूल्यन होगा। तब उनकी पूंजी का मूल्य स्वत: घट जाएगा।

इसलिए सरकारी ऋण की अधिकता से पूंजी का पलायन होता है। वर्तमान में कोविड संकट के कारण ही क्यों न हो फिर भी यह तो सत्य है ही कि अपनी सरकार द्वारा लिए गए ऋण में भारी वृद्धि हुई है। इस परिस्थिति में भारत सरकार को ऋण कम लेना चाहिए। लेकिन इससे निवेश में कमी नहीं होनी चाहिए अन्यथा पुन: आर्थिक विकास की गति में ठहराव आएगा।

इसलिए सरकार को चाहिए कि अपनी खपत को कम करे, जिससे कि सरकार को लोन कम लेने पड़ें और पूंजी का पलायन न हो। तीसरा कारण बताया गया है कि मुक्त व्यापार को अपनाने से भी पूंजी का पलायन होता है। इसका कारण यह दिखता है कि जब हम मुक्त व्यापार को अपनाते हैं तो उद्यमियों के लिए आसान हो जाता है कि अपनी पूंजी को उस देश में ले जाएं जहां पर उत्पादन करना सुलभ हो।

जैसे भारतीय उद्यमी के लिए यह सुलभ हो जाएगा कि वह अपनी फैक्टरी को बांग्लादेश में लगाए और बांग्लादेश में माल का उत्पादन करके भारत को निर्यात कर दे। ऐसे में मुक्त व्यापार के कारण पूंजी का पलायन बढ़ता है।

इसलिए सरकार को चाहिए कि रिजर्व बैंक की कमेटी की रिपोर्ट को अमान्य करते हुए भ्रष्टाचार पर रोक लगाए, सरकारी खपत को घटाए और मुक्त व्यापार को अपनाने के स्थान पर आयात कर बढ़ाये। तब ही अपने देश से पूंजी का पलायन कम होगा और देश की आर्थिक विकास दर बढ़ेगी।

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उनके जीने के अधिकार का हो सम्मान

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100 करोड़ के काफी करीब है ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’

आलिया भट्ट की हालिया रिलीज फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ बॉक्स ऑफिस की खिड़की पर धमाल मचाती हुई नजर आ रही है , जो कोरोनोवायरस महामारी के बाद सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर में इतिहास रचने की दिशा में अग्रसर है। फिल्म ट्रेड के आंकड़ों के अनुसार, रॉबर्ट पैटिनसन अभिनीत बैटमैन का प्रतिद्वंद्वी के रूप में सामना करने के बावजूद फिल्म ने अच्छा प्रदर्शन किया है।फिल्म ने रिलीज के दिन शुक्रवार को 5.01 करोड़ की कमाई की, जबकि शनिवार और रविवार को इसने क्रमश: 8.20 करोड़ और 10.08 करोड़ की कमाई की और दूसरे सप्ताहांत में कुल 23.29 करोड़ की कमाई की।  जबकि बैटमैन ने उसी वीकेंड में 21.50 करोड़ की कमाई की। एक अच्छी शुरुआत के बाद फिल्म के कारोबार ने अपने शुरुआती सप्ताहांत और पहले सप्ताह में भी जबरदस्त वृद्धि देखी।  अब, अपने दूसरे वीकेंड पर, गंगूबाई काठियावाड़ी के कलेक्शन में एक और उछाल देखने को मिला है। यह फिल्म 100 करोड़ के काफी करीब है और फिल्म प्रेमियों की पहली पसंद बनी हुई है।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

नूरानी चेहरा से फिल्मी करियर शुरू करने जा रही हैं नुपुर सैनन

अभिनेत्री कृति सैनन की छोटी बहन नुपुर सैनन पिछले काफी समय से अपने बॉलीवुड डेब्यू को लेकर सुर्खियों में हैं। उनका नाम कई फिल्मों से जुड़ चुका है और अब आखिरकार नुपुर की पहली फिल्म नूरानी चेहरा का ऐलान हो गया है। वह बॉलीवुड के मंझे हुए अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ अपना फिल्मी करियर शुरू करने जा रही हैं। 26 वर्षीया नुपुर की पहली फिल्म का पोस्टर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
नुपुर की पहली फिल्म नूरानी चेहरा का निर्देशन नवानियत सिंह कर रहे हैं। फिल्म और ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श ने भी सोशल मीडिया पर यह जानकारी दी है। दूसरी तरफ नुपुर ने नवाजुद्दीन के साथ अपनी अनूठी लव स्टोरी वाली इस फिल्म का पोस्टर साझा करते हुए लिखा, नूरानी चेहरा में नूर और हिबा के प्यार में पडऩे के लिए तैयार रहें। यह होगी इस साल की बेमेल जोड़ी। आज यानी वैलेंटाइन डे से शूटिंग शुरू हो गई है।
बता दें कि नुपुर ही नहीं, बल्कि अभिनेत्री अवनीत कौर भी नवाजुद्दीन के साथ बतौर लीड एक्ट्रेस बॉलीवुड में अपनी शुरुआत करने जा रही हैं। दोनों की जोड़ी कंगना रनौत के होम प्रोडक्शन के बैनर तले बन रही फिल्म टीकू वेड्स शेरू में बनी है।
नवाजुद्दीन ने भी सोशल मीडिया पर नूरानी चेहरा का ऐलान कर दिया है। उन्होंने फिल्म के पोस्टर के साथ नुपुर संग फिल्म के सेट से ली गई अपनी एक दूसरी तस्वीर पोस्ट कर लिखा, प्यार, मुस्कुराहट और कुबूलनामा। तस्वीर में दोनों एक-दूसरे की तरफ देख मुस्कुरा रहे हैं। इस फिल्म को पंजाबी फिल्म काला शाह काला का हिंदी रीमेक बताया जा रहा है। इसका निर्माण पैनोरमा स्टूडियो, वाइल्ड रिवर पिक्चर्स और पल्प फिक्शन एंटरटेनमेंट के जरिए किया जा रहा है।
निर्देशक नवानियत सिंह कहते हैं, मैं खुश हूं कि मैंने जैसा सोचा था, ठीक वैसा ही हो रहा है। इस फिल्म की कहानी को लेकर बेहद रोमांचित हूं। मुझे खुशी है कि नवाजुद्दीन और नुपुर को फिल्म की कहानी बहुत पसंद आई। उन्होंने कहा, दोनों कहीं से भी कपल नहीं लगते, लेकिन एक कपल के तौर पर मुझे उनसे बेहतर कोई कलाकार नहीं लगे। शूटिंग शुरू करने के लिए वैलेंटाइन डे से बेहतर और कोई दिन नहीं हो सकता था।
नुपुर, अक्षय कुमार के साथ दो सुपरहिट म्यूजिक वीडियो फिलहाल 1 और फिलहाल 2 में नजर आ चुकी हैं। इन दोनों ही गानों में अक्षय और नुपुर की केमिस्ट्री ने दर्शकों का दिल छू लिया था। फिलहाल 2019 में रिलीज हुआ था। इसे अब तक यू-ट्यूब पर एक अरब से ज्यादा व्यूज मिल चुके हैं। दूसरी तरफ फिलहाल 2 को अब तक 560 मिलियन से ज्यादा लोग देख चुके हैं। ये दोनों गाने सिंगर बी प्राक ने गाए थे। (एजेंसी)

स्पाई बहू में एक परिष्कृत, कलात्मक महिला की भूमिका निभा रही हैं परिणीता

टीवी शो गुप्ता ब्रदर्स में गंगा की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री परिणीता बोरठाकुर अब आगामी शो स्पाई बहू की कास्ट में शामिल हो गई हैं। यह शो एक जासूस और एक संदिग्ध आतंकवादी के बीच प्रेम कहानी के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे सना सैय्यद और सेहबान अजीम है।
वह कहती है कि मैं टीवी स्क्रीन पर वापस लौटने के लिए वास्तव में बहुत उत्साहित हूं। शो में मेरी भूमिका बहुत शक्तिशाली है और उन भूमिकाओं से अलग है जो मैंने पहले पर्दे पर निभाई थीं। अपने आखिरी शो के ऑफ एयर जाने के बाद मैं एक छोटे से ब्रेक पर थी। मैं अपने व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित कर रही थी, और अपने बेटे और परिवार को कुछ समय दे रही थी।
परिणीता अपनी भूमिका के बारे में बताती हैं और कहती हैं कि मैं वीरा का किरदार निभा रही हूँ, जो एक बहुत ही परिष्कृत और कलात्मक व्यक्ति है। मैं योहन की सौतेली माँ हूँ । मेरा किरदार कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
स्पाई बहू का प्रोमो हाल ही में बॉलीवुड दिवा करीना कपूर खान के साथ प्रसारित हुआ। शो में अयूब खान, शोभा खोटे, भावना बलसावर भी हैं।

(एजेंसी)

30 की उम्र के बाद इन चीजों के सेवन से बना लें दूरी

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे शरीर में हाई ब्लड प्रेशर और मधुमेह जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए स्वास्थ्य का खास ध्यान देना जरूरी है। इस दौरान डाइट का खास ध्यान रखें क्योंकि एक उम्र के बाद खान-पान की कुछ चीजें स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं। आइए आज हम आपको ऐसी ही कुछ चीजों के बारे में बताते हैं, जिनका सेवन 30 की उम्र के बाद करना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।

पैकेज्ड सूप

अगर आपकी उम्र 30 के पार हो चुकी है और आप हल्की-फुल्की भूख मिटाने के लिए पैकेज्ड सूप का सेवन कर लेते हैं तो आज से ही इनका सेवन करना बंद कर दें। दरअसल, पैकेज्ड सूप में सोडियम की मात्रा अधिक होती है, जो शरीर में पहुंचकर इसे हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर और स्ट्रोक आदि बीमारियों का घर बना सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि आप अपनी डाइट में पैकेज्ड सूप की बजाय होममेड सूप को ही शामिल करें।

ज्यादा मीठे पेय पदार्थ

कई लोग फ्लेवर्ड सोडा पानी, स्पोर्टस ड्रिंक, एनर्जी ड्रिंक और सॉफ्ट ड्रिंक्स जैसे मीठे पेय पदार्थों का सेवन करना काफी पसंद करते हैं, लेकिन अगर आप 30 साल के हो गए हैं तो इन पेय पदार्थों का सेवन करना बंद कर दें। दरअसल, इन पेय पदार्थों में पोषक तत्वों की कमी होती है और इनमें शुगर की मात्रा भी अधिक होती है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने का कारण बन सकती है।

रिफाइंड कार्ब्स

अगर आपकी उम्र 30 साल से ज्यादा है तो आपको रिफाइंड कार्ब्स से युक्त चीजों के सेवन से दूरी बना लेनी चाहिए क्योंकि रिफाइनिंग प्रक्रिया के दौरान खाद्य पदार्थों में से सभी पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। रिफाइंड कार्ब्स से भरपूर भोजन एक उच्च ग्लाइसेमिक आहार होता है, जो आपके रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ा सकता है, जिसके कारण न सिर्फ मधुमेह बल्कि याददाशत में कमी और डिमेंशिया जैसी गंभीर बीमारियों की संभावना भी बढ़ जाती है।

अधिक वसा युक्त खाद्य पदार्थ

अध्ययनों पर गौर फरमाया जाए तो अत्याधिक वसा युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन भी 30 की उम्र के बाद करना सही नहीं है क्योंकि यह लीवर को कमजोर कर सकता है। दरअसल, इस तरह के खाद्य पदार्थ शरीर में पहुंचकर शरीर की तंत्रिकाओं और कोशिकाओं में सूजन पैदा करते है जिसकी वजह से लीवर कमजोर होने लगता है। इसके अलावा, ऐसे खाद्य पदार्थों के सेवन से वजन बढऩे की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।
अगर आपकी उम्र 30 साल से अधिक है तो आपकी डाइट में जरूरी पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ और होममेड पेय पदार्थ शामिल होने चाहिए ताकि शरीर में टॉक्सिन का स्तर कम रहे। टॉक्सिन का स्तर कम रहने से बीमारियों का खतरा नहीं रहता। (एजेंसी)

सेहत की सुध

यह सर्वविदित है कि देश की बड़ी आबादी तमाम बीमारियों की जड़ मोटापे से जूझ रही है, जिसके चलते बड़े ही नहीं, किशोरों व बच्चों तक में मधुमेह, थायराइड, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां बढ़ी हैं। अच्छी बात यह है कि महामारी की तरह बढ़ते मोटापे को लेकर अब सरकार भी सतर्क हुई है। देश की नीति-नियंता संस्था नीति आयोग ने नागरिकों को मोटापे से मुक्त करने के लिये इसकी वृद्धि के प्रमुख कारकों मसलन चीनी, नमक व वसा की अधिकता वाले पदार्थों को चिन्हित करने और इन खाद्य पदार्थों पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने की संस्तुति की है। इसी कड़ी में उत्पादों पर ‘फ्रंट ऑफ दि पैक लेबलिंग’ जैसे कदम उठाने की बात कही गई है, ताकि लोगों को मोटापे के खतरे से आगाह किया जा सके। मकसद यही है कि लोग खाने की वस्तुएं चयन करते वक्त सावधानी बरतें और उन्हें पता हो कि उनके स्वास्थ्य के लिये क्या घातक है। नीति आयोग के शोध संस्थान की वर्ष 2021-2022 की रिपोर्ट में चेताया गया है कि देश में बच्चों, किशोरों और महिलाओं में अधिक वजन व मोटापे की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। नीति आयोग देश के आर्थिक विकास संस्थान और भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर इस दिशा में कदम उठा रहा है। दरअसल, भारतीय भोजन में परंपरागत रूप से नमकीन, चिप्स, भुजिया आदि का प्रचलन तो रहा है लेकिन हाल के वर्षों में स्नैक्स के नाम पर ऐसे खाद्य पदार्थों का प्रचलन बढ़ा है जो सेहत के लिये हानिकारक हैं। यह हमारी चिंता का विषय होना चाहिए कि राष्ट्रीय परिवार सेहत सर्वेक्षण के अनुसार देश में मोटापे से पीडि़त महिलाओं की संख्या चौबीस फीसदी हो गई है, जबकि पुरुषों का यह आंकड़ा 22.9 फीसदी है। ऐसे में सरकार का इस दिशा में कदम उठाना वक्त की जरूरत ही कहा जाना चाहिए। निस्संदेह, मोटापा तमाम बीमारियों की जड़ है और इससे होने वाले रोगों के चलते भारतीय चिकित्सा तंत्र दबाव महसूस करता है।
दरअसल, कहीं न कहीं शहरी जीवन शैली व खानपान की आदतों में बदलाव के चलते मोटापे की समस्या चिंताजनक हुई है। इस समस्या के बाबत बात तो होती रही, लेकिन इस दिशा में गंभीर पहल होती नजर नहीं आई। बाजार के मायाजाल के चलते देश में जंक फूड और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का उपयोग बढ़ा। इसमें उत्पादकों ने बाजार तो तलाशा लेकिन आम आदमी की सेहत की फिक्र नहीं की। विडंबना यह भी रही कि मोटापा बढ़ाने वाले कारकों का जिक्र तो हुआ मगर इन पर रोक की गंभीर कोशिश होती नजर नहीं आई। इन्हें रोकने को जो कदम उठाये गये वे महज प्रतीकात्मक ही रहे। बाजार में ऐसे खाद्य पदार्थों का अंबार लगा है जो स्वाद में तो लुभाते हैं, लेकिन सेहत पर भारी हैं। इनका दीर्घकालिक हानिकारक असर सेहत पर होता है जिसके चलते मोटापा बढ़ता है और उसकी आड़ में मधुमेह से लेकर हृदय रोग तक की गंभीर बीमारियां पनपने लगती हैं। जो कालांतर अनदेखी के चलते भयावह रूप ले लेती हैं। निस्संदेह वक्त की जरूरत है कि मोटापा पैदा करने वाले कारकों का सख्ती से नियमन किया जाये। लोगों को पता होना चाहिए कि जिस चीज का वे सेवन कर रहे हैं उसका उनकी सेहत पर क्या असर पड़ता है। दरअसल, खानपान की आदतों में बदलाव के चलते विकसित देशों की मोटापे की समस्या ने भारत में भी तेजी से पांव पसारने शुरू कर दिये हैं। भारत में ऐसी समस्या इसलिये विकराल रूप धारण कर लेती है क्योंकि लोग वक्त रहते सचेत नहीं होते। मोटापे के प्रति आम लोगों में सजगता पैदा करने में हम विफल रहे हैं। हमें यह ध्यान नहीं रहता कि हमारे दैनिक जीवन में मोटापा बढ़ाने वाले कारक कब हिस्सा बन गये हैं। यह भी कि कौन से खाद्य पदार्थ वास्तव में मोटापा बढ़ाने वाले हैं। ऐसी लापरवाही के चलते शरीर कब जानलेवा बीमारियों का घर बन जाता है, व्यक्ति को अहसास ही नहीं होता। लेकिन ऐसे खाद्य पदार्थों पर कर लगाते वक्त ध्यान रखें कि आम व गरीब लोगों का जीवन प्रभावित न हो। इसके साथ ही देश में मोटापे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने की भी जरूरत है।

उनके जीने के अधिकार का हो सम्मान

चेतनादित्य आलोक –
वैसे तो पशुओं से मनुष्य जाति का नाता आरंभ से ही रहा है, लेकिन हमारी सभ्यता में पशुओं का सदा से विशेष स्थान रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि हमारे पूर्वजों ने पशुओं को मित्र एवं सहचर मान-समझकर उन्हें अपने जीवन में स्थान प्रदान किया था। हमारी परंपरा में एक ओर गाय को माता मानकर उसकी पूजा-अर्चना करने का विधान है तो दूसरी ओर हमारे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के अतिरिक्त गणेश, दुर्गा, इंद्र एवं यमराज समेत विभिन्न देवी-देवताओं द्वारा पशुओं को अपने वाहन बनाकर उन्हें प्यार और सम्मान देने के प्रमाण भी मौजूद हैं। उल्लेखनीय है कि हमारी संस्कृति ने केवल पालतू पशुओं से ही नहीं, बल्कि हिंस्र एवं विषैले जानवरों समेत तमाम जीव-जगत से प्रेम और करुणापूर्ण व्यवहार करने की शिक्षाएं दी हैं। यही कारण है कि पंचतंत्र समेत हमारे तमाम प्राचीन ग्रंथों एवं धार्मिक आख्यानों में पशुओं और मनुष्यों के सहजीवन एवं उनकी मित्रता की कहानियां भरी पड़ी हैं। हमारे आधुनिक हिन्दी साहित्य में भी मनुष्य के साथ पशुओं की मित्रता एवं उनके बीच के सहजीवन के महत्व को बखूबी दर्शाया गया है। प्रेमचंद की ‘दो बैलों की कथा’ शीर्षक कहानी एवं बांग्ला के महान लेखक शरतचंद्र की प्रसिद्ध कहानी ‘महेश’ को कैसे भुलाया जा सकता है?
बहरहाल, विश्वभर में हो रही बेतहाशा जनसंख्या वृद्धि एवं विकास के नाम पर वनों के विनाश तथा वन्यजीवों के विरुद्ध बढ़ते अत्याचारों के कारण संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ मनाये जाने की घोषणा 20 दिसंबर, 2013 को की, जिसके बाद प्रत्येक वर्ष 3 मार्च को इसका आयोजन किया जाने लगा। बहरहाल, भारत सरकार की ओर से संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में दिसंबर, 2018 में प्रस्तुत छठी राष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस समय वन्य जीवों की 900 से भी अधिक दुर्लभ प्रजातियां लुप्तप्राय एवं संकटग्रस्त श्रेणियों में शामिल हैं। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ नामक पुस्तक में संकटग्रस्त एवं लुप्तप्राय वन्य जीवों की 1180 प्रजातियों का वर्णन चिंतित करने वाला है। वैसे एशियाई शेरों, दक्षिण अंडमान के माउंट हैरियट में पाये जाने वाले विशेष छछूंदरों, दलदली क्षेत्रों में पाये जाने वाले बारहसिंगा हिरण एवं मालाबर गंधबिलाव की स्थिति भी दयनीय है। मालाबर गंधबिलाव अब महज कुछ सैकड़ों की संख्या में मौजूद हैं। वहीं एशियाई शेर गुजरात के गिर वनों तक सिमट चुके हैं, जबकि बारहसिंगा हिरण अब देश के कुछ वनों में ही पाये जाते हैं।
ऐसे ही कश्मीर में पाये जाने वाले हांगलुओं की संख्या भी अब कुछ सैकड़ों में ही सिमट चुकी है। इसी प्रकार देश में पायी जाने वाले विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है। ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ की बात मानें तो भारत में पायी जाने वाली फूलों की 15 हजार प्रजातियों में से डेढ़ हजार प्रजातियां आज लुप्तप्राय हो चुकी हैं, जबकि पौधों की लगभग 45 हजार प्रजातियों में से 1336 प्रजातियां भी अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। इनके अतिरिक्त वन्य जीवों पर मंडरा रहे खतरों के संदर्भ में यदि बाघों की बात की जाये तो आंकड़ों के अनुसार बाघों की संख्या में हालांकि वृद्धि तो हुई है, लेकिन उनकी हत्याओं का दौर अभी समाप्त नहीं हुआ है और न ही उनके आश्रय-स्थलों में बढ़ती मानवीय घुसपैठ पर रोक लग पायी है। यही कारण है कि बाघ अब नये-नये गलियारे स्वयं ही ढूंढऩे लगे हैं। उत्तराखंड वन विभाग के अनुसार तो हैडाखाल के अतिरिक्त यहां पिथौरागढ़ के अस्कोट एवं केदारनाथ में भी बाघों की मौजूदगी के सबूत मिले हैं। वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार अब पहाड़ों पर स्थित जंगलों में पलायन करने वाले बाघ अपने नये आश्रय बनाने लगे हैं।
हालांकि, सरकार की मानें तो इस वर्ष देश में पांच नये टाइगर रिजर्वों का निर्माण किये जाने की योजना है। फिलहाल छत्तीसगढ़ के गुरु घासीदास नेशनल पार्क, राजस्थान के रामगढ़ विषधारी अभयारण्य, बिहार के कैमूर वन्यजीव अभयारण्य, अरुणाचल के दिव्यांग वन्यजीव अभयारण्य एवं कर्नाटक के एमएम हिल अभयारण्य को टाइगर रिजर्व के रूप में विकसित करने की सरकार ने स्वीकृति दे दी है। वैसे भारत में वन्य जीव-संरक्षण हेतु समय-समय पर कानून भी बनाये जाते रहे हैं। वर्ष 1956 में संशोधित एवं पारित ‘भारतीय वन अधिनियम’ मूलत: स्वतंत्रता से पूर्व 1927 में ही अस्तित्व में आ गया था। स्वतंत्रता के बाद पहली बार 1983 में ‘राष्ट्रीय वन्य जीव योजना’ बनाकर नेशनल पार्कों एवं अभयारण्यों का निर्माण शुरू किया गया। वैसे इससे पूर्व भी कस्तूरी मृग परियोजना-1970, गिर सिंह परियोजना-1972, बाघ परियोजना -1973, कछुआ संरक्षण परियोजना-1975 जैसी कई परियोजनाओं के माध्यम से वन्य जीवों एवं वनों की सुरक्षा की पहल की गयी थी।
इनके अतिरिक्त, 1987 में गैंडा परियोजना, 1992 में हाथी परियोजना, 2006 में गिद्ध संरक्षण परियोजना एवं 2009 में हिम तेंदुआ परियोजना के माध्यम से भी हमारी सरकारों ने देश में वन्य जीवों एवं वनों की सुरक्षा-संरक्षा करने का कार्य किया है। हालांकि, इस दिशा में किये गये सारे प्रयास कम ही महसूस होते हैं। कदाचित इसका प्रमुख कारण वन्य जीवों एवं वनों के प्रति हमारे भीतर करुणा एवं प्रेम का अभाव है। इसलिए अब आवश्यक हो गया है कि हम अपने पूर्वजों की शिक्षाओं को पुन: स्वीकार करते हुए हिंस्र एवं विषैले जानवरों समेत तमाम जीव-जगत से प्रेम एवं करुणापूर्ण व्यवहार करें, ताकि सबको जीने का अधिकार मिल सके।

अभिनेता स्व जवाहर ताराचंद कौल चौक का उद्घाटन

उपनगर मलाड पश्चिम में गुजरे जमाने के अभिनेता स्व जवाहर कौल की स्मृति में महाविकास अघाड़ी सरकार के कैबिनेट मंत्री असलम शेख ने भाजपा अध्यक्ष मंगल प्रभात लोढ़ा ,फिल्म अभिनेता सुनील शेट्टी और भाजपा सांसद गोपाल शेट्टी की उपस्थिति में ‘अभिनेता जवाहर ताराचंद कौल चौक’ का उद्घाटन किया। विदित हो कि अभिनेता जवाहर ताराचंद कौल 1947 से 1989 तक फिल्मों में काफी एक्टिव रहे। रईस (1947), खिलाड़ी (1948), आज़ादी की राह पर (1948), खिड़की (1948), भिखारी (1949), गरीबी (1949), शीश महल (1950), अपनी छाया (1950), घायल (1951), दाग (1952), पहली झलक (1955),  एक शोला (1956), लाल बत्ती(1957), कठपुतली (1957), देख कबीरा रोया (1957), भाभी (1957), एक झलक (1957), अदालत(1958), साहब बीबी गुलाम (1962), पापी (1977), मुक्ति (1977), द नक्सलाईट (1980), बंटवारा (1989), आखरी बदला (1989) और गीता गोविन्दम (2018) जैसी सुपर हिट फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता जवाहर ताराचंद कौल का जन्म 27 सितंबर 1927 को काश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के परिवार से जुड़े अभिनेता जवाहर ताराचंद कौल जवाहर कौल एक अच्छे अभिनेता ही नहीं समाज सेवक भी थे। उनका निधन 15 अप्रैल 2019 को 91 वर्ष की उम्र में हो गया था। स्व कौल ने अपने जीवनकाल में हमेशा  समाज की चिंता की और शिक्षा को बढ़ावा दिया। आज उनके पुत्र प्राचार्य अजय कौल उसी मुहीम को आगे बढ़ाते हुए कार्य कर रहे है। अजय कौल अपने एन जी ओ एकता मंच व चिल्ड्रेन वेल्फेअर सेंटर व हाईस्कूल के माध्यम से समाज और देश हित में कार्य करते हुए शिक्षा को हर वर्ग तक पहुंचाने में लगे हैं।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

श्रेया राइस मिल, नगड़ी को किया गया सील

*एसडीओ रांची ने की कार्रवाई

*औचक निरीक्षण में पायी गयी भारी अनियमितता

*नहीं मेंटेंन किया जा रहा था रजिस्टर

*मिल प्रतिनिधि ने जिला प्रशासन को दी गलत जानकारी

रांची,  (दिव्या राजन)

अनुमण्डल पदाधिकारी सदर, राँची श्री दीपक दुबे एवं जिला प्रबंधक, झारखण्ड राज्य खाद्य निगम, राँची द्वारा संयुक्त रूप से श्रेया राईस मिल, नगड़ी का औचक निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के क्रम में राइस मिल में कई अनियमितता पायी गयी, जिसके बाद मिल को सील कर दिया गया।

पायी गयी भारी अनियमितता

श्रेया राईस मिल, नगड़ी में व्यवसायिक कार्य दु्रत गति से चल रहा था। यहां खरीफ विपणन मौसम 2021-22 के तहत् किये गये एकरारनामा का सरासर उल्लघंन करते हुए राज्य सरकार का कार्य नहीं किया जा रहा है। तीन चार मजदूरों द्वारा सीएमआर हेतु दिये गये बोरों पर कई तरह के चावलों को मिलाकर पैकेट तैयार किया जा रहा था।

नहीं मेंटेंन किया जा रहा था रजिस्टर

साथ ही कार्यालय में किसी तरह का पंजी संधारित नहीं किया जा रहा था। मिल में स्टॉक पंजी, आगत-निर्गत पंजी किसी तरह के पंजियों का संधारण नहीं किया गया था। मिल के मुंशी, श्री आशीष कुमार यादव के द्वारा बताया गया कि रजिस्टर हेड ऑफिस में है।

मिल प्रतिनिधि ने जिला प्रशासन को दी गलत जानकारी

जिला स्तरीय अनुश्रवण समिति की बैठक में श्रेया राईस मिल के प्रतिनिधि द्वारा बताया गया था कि एक बॉयलर काम नहीं करता है, जबकि दोनों बॉयलर चलते पाये गये एवं धड़ल्ले से चावल तैयार कर अपने ब्रांडेड पैकेट में पैक किया जा रहा था।

जिला प्रशासन के आदेश की अवहेलना

श्रेया राईस मिल द्वारा सरकार के महत्वकांक्षी योजना, जो स्थानीय किसानों के हित में जुड़ा है, उसे प्रभावित किया जा रहा है। जिला आपूर्ति कार्यालय द्वारा स्पष्टीकरण एवं उपायुक्त, रांची द्वारा निदेश दिया गया था बावजूद इसके जिला प्रशासन के आदेश एवं निर्देशों की अवहेलना करते हुए दो माह अर्थात् (60 दिनों) में मिल द्वारा मात्र 04 लॉट सीमएमआर दिया गया, जबकि 42 लॉट सीएमआर दिया जाना चाहिए था। 04 लॉट आरओ के विरूद्ध मात्र 02 लॉट का धान उठाव किया गया। इस गति से कार्य करने से किसान धान (एमएसपीसी) में में नहीं बेच पायेंगे बल्कि थक-हार के मिल के पास औने-पौने दाम में बेचने के लिए मजबूर हो जायेंगे।

श्रेया राईस मिल द्वारा एफसीआई को घटिया (मिलावट वाला) चावल सीएमआर के रूप में भेजा गया है, जो रिजेक्ट पड़ा हुआ है। आपको बतायें कि राज्य सरकार के संकल्प से स्पष्ट निदेश दिया गया है कि मिलर को मात्र 30 प्रतिशत कार्य सरकार का करना है परंतु श्रेया राईस मिल द्वारा आज की तिथि तक 09 प्रतिशत का कार्य ही सरकार के निदेशानुसार नहीं किया गया है।

स्किन केयर रूटीन के दौरान इस क्रम में लगाएं प्रोडक्ट्स, मिलेगा पूरा फायदा

एक बेहतरीन स्किन केयर रूटीन के लिए सिर्फ अच्छे प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना ही काफी नहीं है। अगर आप स्किन केयर प्रोडक्ट्स को सही समय और सही क्रम में अप्लाई करती हैं, तभी आपको उनका पूरा फायदा मिलता है। हालांकि, समस्या यह है कि कई लोगों को इसके सही क्रम के बारे में पता ही नहीं है। अगर आप भी इन्हीं लोगों में एक हैं तो चलिए आज आपको स्किन केयर प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल करने का सही क्रम बताते हैं।

सबसे पहले क्लींजर, फिर टोनर का करें इस्तेमाल

क्लींजर : सबसे पहले अपने चेहरे को साफ करने के लिए किसी ऐसे क्लींजर का इस्तेमाल करें जो आपकी त्वचा के प्रकार के हिसाब से अच्छा हो। उदाहरण के लिए तैलीय त्वचा के लिए एक्सफोलिएटिंग फेसवॉश का इस्तेमाल करें, लेकिन अगर आपकी त्वचा रूखी या संवेदनशील है तो सल्फेट मुक्त माइल्ड क्लींनर का चयन करें। टोनर: क्लींजर के बाद हाइड्रेटिंग टोनर का इस्तेमाल करें। टोनर त्वचा को हाइड्रेट करके अतिरिक्त तेल को नियंत्रित करने का काम करता है।

फेस सीरम हैं जरूरी और स्पॉट ट्रीटमेंट से हटेंगे दाग-धब्बे

सीरम : टोनर के बाद चेहरे पर सीरम लगाएं क्योंकि इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट प्रोपर्टीज मौजूद होती हैं, जो त्वचा को हर तरह के नुकसान से बचाने में मदद कर सकता है। बेहतर होगा कि आप विटामिन-ष्ट युक्त फेस सीरम का इस्तेमाल करें। स्पॉट ट्रीटमेंट: अगर आपके चेहरे पर किसी तरह के दाग-धब्बे हैं तो आप उन्हें हटाने के लिए सीरम के बाद एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें। हालांकि, अगर आपके चेहरे पर कोई दाग-धब्बे हैं तो आप इस स्टेप को छोड़ दें।

आंखों की देखभाल के लिए आई क्रीम लगाएं और चेहरे को मॉइश्चराइज करना न भूलें

आई क्रीम : आंखों के आस-पास की त्वचा काफी पतली और नाजुक होती है, इसलिए यहां जल्द झुर्रियां और फाइन लाइन्स उभरने लगती हैं। इस परिस्थिति में आंखों की देखभाल के लिए विटामिन- सी युक्त आई क्रीम का इस्तेमाल करें। मॉइश्चराइजर: मॉइश्चराइजिंग त्वचा को पर्याप्त नमी प्रदान करती है। आप चाहें तो त्वचा को मॉइश्चराइज करने के लिए केमिकल युक्त प्रोडक्ट्स की बजाय जैतून का तेल और नारियल का तेल आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं।

रेटिनॉल से मिलेगा स्मूद चेहरा और फेस ऑयल से चेहरे पर आएगी चमक

रेटिनॉल : अगर आप समय से पहले झलकने वाले बढ़ती उम्र के प्रभाव, मुंहासों और दाग-धब्बे आदि से परेशान हैं तो अपने स्किन केयर रूटीन में रेटिनॉल से युक्त क्रीम या सीरम को जरूर शामिल करें। यह आपके चेहरे को एकदम स्मूद और ग्लोइंग बना देगा। फेस ऑयल: फेस ऑयल के इस्तेमाल से चेहरे को भरपूर नमी के साथ ही कई तरह के पोषक तत्व मिल सकते हैं, जिसके कारण चेहरा स्वस्थ और चमकदार नजर आता है।

सनस्क्रीन के बिना अधूरा है स्किन केयर रूटीन

मौसम भले ही कोई भी हो, रोजाना सीमित मात्रा में सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना जरूरी है। बेहतर होगा कि आप अपनी त्वचा के प्रकार के अनुसार ही सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें। दरअसल, सनस्क्रीन त्वचा को सूरज की हानिकारक यूवी किरणों से बचाने के साथ-साथ झुर्रियों, पिगमेंटेंशन और असमान रंगत को भी दूर करती है। हालांकि, अगर आपको समझ नहीं आ रहा है कि कौन सी सनस्क्रीन लगानी चाहिए तो हाइड्रेटिंग और प्राकृतिक सामग्रियों से युक्त सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें।

गेहूं के आटे की शुद्धता जांचने के लिए अपनाएं ये तरीके

पहले कई महिलाएं खुद ही गेंहू को पीसकर आटा बनाती थीं, जो शुद्ध होता था और इसे लंबे समय तक स्टोर भी किया जा सकता था। हालांकि, आजकल लोग इतनी मेहनत नहीं करते और बाजार से गेंहू का आटा खरीद लाते हैं जिसका रंग अलग होता है और इसे लंबे समय तक स्टोर भी नहीं किया जा सकता। ये मिलावटी भी हो सकता है। चलिए आज आपको गेंहू के आटे की शुद्धता पता लगाने के कुछ तरीके बताते हैं।

पानी आएगा काम

पानी के इस्तेमाल से गेहूं के आटे की शुद्धता चेक की जा सकती है। इसके लिए आपको बस इतना करना है कि सबसे पहले एक गिलास में पानी भर लें, फिर इसमें एक चम्मच गेंहू का आटा डालकर छोड़ दें। इसके बाद अगर आपको गेंहू का आटा पानी में तैरता मिले तो समझ जाइए कि मिलावट है। दरअसल, ऐसा तब होता है, जब आटे में चोकर की मात्रा कम और मिलावट सामग्री की मात्रा अधिक होती है।

नींबू का रस करेगा मदद

आप चाहें तो गेहूं के आटे की शुद्धता का पता लगाने के लिए नींबू के रस का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले एक कटोरी में एक चम्मच आटा डालकर इसके ऊपर नींबू के रस की कुछ बूंदें डालें, फिर चार से पांच मिनट के लिए इसे ऐसे ही छोड़ दें। समय पूरा होने के बाद अगर आटे में बुलबुले उठने लगें तो समझ जाइए कि इसमें किसी न किसी चीज की मिलावट जरूर है।

हाइड्रोक्लोरिक एसिड सॉल्यूशन आएगा काम

गेहूं का आटा शुद्ध है या नहीं, इसका पता आप हाइड्रोक्लोरिक एसिड सॉल्यूशन की मदद से लगा सकते हैं। इसके लिए एक टेस्ट ट्यूब में एक चम्मच आटा और हाइड्रोक्लोरिक एसिड की तीन से चार बूंदें डालें, फिर इस मिश्रण में एक हल्दी पेपर की स्ट्रिप को डुबोकर निकाल लें। अगर स्ट्रिप के रंग में कोई बदलाव नहीं आया तो समझ जाइए कि आटा शुद्ध है, लेकिन अगर स्ट्रिप लाल रंग की हो जाती है तो आटे में मिलावट है।

अपनी उंगलियों की मदद से लगाएं पता

गेहूं के आटे में किसी तरह की मिलावट है या नहीं, इसका पता आप अपनी उंगलियों से भी लगा सकते हैं। इसके लिए बस थोड़े से आटे को अपनी उंगलियों पर अच्छे से रगड़ें। अगर आटे को रगडऩे के बाद उसमें कोई बदलाव नहीं आए तो समझ जाए कि इसमें मिलावट नहीं है, लेकिन अगर यह इक_ा हो जाता है तो इसमें किसी चीज की मिलावट हो सकती है।

सान म्यूजिक कंपनी ने जारी किया म्यूजिक वीडियो ‘तेरे शहर में’

झारखंड प्रदेश के जमशेदपुर स्टील सिटी के संस्थापक जमशेद जी नसरवानजी टाटा के जन्म दिन( 3 मार्च ) के अवसर पर बॉलीवुड की चर्चित म्यूजिक कंपनी सान म्यूजिक द्वारा गीतकार हरिशंकर सूफी की नई पेशकश म्यूजिक वीडियो ‘तेरे शहर में’ जारी किया गया।
बॉलीवुड की मशहूर गायिका साधना सरगम के स्वर से सजे इस म्यूजिक सिंगल ‘तेरे शहर में’ के ऑडियो को भी अलग अलग प्लेटफॉर्म क्रमशः यूट्यूब म्यूजिक, गाना, स्पॉटीफाई, हंगामा म्यूजिक, जिओ सावन, आई ट्यून स्टोर, साउंड क्लाउड, विंक और अन्य डिजिटल म्यूजिक स्टोर और चैनल पर बहुत जल्द ही रिलीज किया जाएगा। इस म्यूजिक वीडियो में अभिनेता शान्तनु भाभरे अपनी भावपूर्ण अदायगी पेश करते नज़र आएंगे। शांतनु भामरे
कला और वाणिज्य के क्षेत्र में एक जाने माने शख्सियत हैं और राजीव चौधरी एवं अशोक त्यागी की फिल्म ‘रेड’ में अभिनेता कमलेश सावंत      ( फेम दृश्यम) और मेगा स्टार अमिताभ बच्चन के साथ ‘भूतनाथ रिटर्न्स’ आदि में काम कर चुके हैं। शान से एंटरटेनमेंट के सहयोग से सीफेस प्रोडक्शन और एच एल प्रोडक्शन के संयुक्त तत्वाधान में निर्मित इस म्यूजिक वीडियो के निर्माता हीरा लाल(अधिवक्ता), निर्देशक आगा रिज़वी, क्रिएटिव डायरेक्टर पवन शर्मा, पी आर ओ काली दास पाण्डेय, गीतकार हरिशंकर सूफी और संगीतकार शौरिष हैं।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

कोई भी नागरिक पीछे न छूटे

*केंद्रीय बजट 2022-23 का मूल तत्व

*ग्रामीण भारत में जीवन यापन में आसानी और आधारभूत अवसंरचना सुनिश्चित

करने वाली सूक्ष्म कल्याण योजनाओं पर रणनीतिक रूप से विशेष ध्यान

डॉ. नागेंद्र नाथ सिन्हा –
केंद्रीय बजट 2022-23 ने आर्थिक विकास के लिए पर्यावरण-अनुकूल और सतत दृष्टिकोण के साथ सूक्ष्म कल्याण पर ध्यान देते हुए वृहद् स्तर पर विकास हासिल करने की योजना बनाई है। भारत महामारी की चुनौतियों को पीछे छोडऩे और ग्रामीण भारत को तेजी से प्रगति के लिए तैयार करने की मजबूत स्थिति में है। 2022-23 का बजट ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और ग्रामीण गरीबों को आजीविका प्रदान करने पर केंद्रित है। बजट में जलवायु के अनुकूल आवास, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी और ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क तथा डिजिटल इन्फो-वे के विस्तार पर ध्यान देने के साथ आजीविका, आधारभूत अवसंरचना तक पहुंच का आश्वासन दिया गया है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आजीविका को सुदृढ़ करना
माननीय प्रधानमंत्री के विजन-ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन यापन में आसानी और कोई भी नागरिक पीछे न छूटे- को साकार करने का केंद्र बिंदु गुणवत्तापूर्ण आजीविका को सर्व-सुलभ बनाना है। इस विजन के अनुरूप, केंद्रीय बजट 2022; भारतञ्च100 के लिए एक महत्वाकांक्षी आधारशिला रखता है, जिसमें अवसंरचना, डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे आर्थिक रूप से सक्षम बनाने वाले कारकों पर विशेष ध्यान दिया गया है- पूंजीगत व्यय के लिए 1 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया गया है, जिसमें पीएम ग्राम सड़क योजना के लिए पूरक आवंटन, सीमावर्ती क्षेत्रों में वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम, किफायती ब्रॉडबैंड और मोबाइल सेवा का प्रसार, भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण आदि शामिल है। हर घर नल से जल, पीएम आवास योजना, हर घर उज्ज्वला, सौभाग्य आदि कार्यक्रमों ने ग्रामीण जीवन को बेहतर बनाने में मदद की है। 15वें वित्त आयोग के तहत उपलब्ध धनराशि के साथ, पंचायतों को पानी और स्वच्छता के लिए 1.42 लाख करोड़ रुपये और प्राथमिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 70,000 करोड़ रुपये का अनुदान – ये जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के अभूतपूर्व प्रयास हैं, जो ग्राम पंचायतों को लोगों तक सेवाएं उपलब्ध कराने के साथ स्थानीय ‘सार्वजनिक सेवाओं’ के प्रदाता के रूप में सक्षम बनाएगा। नागरिक सेवाओं में हो रहे सुधार के साथ हम जल्द ही बेहतर सामाजिक सुविधाओं वाले गांवों को देखेंगे।
आवास, पाइप से जलापूर्ति, सड़क और इन्फो-वे कनेक्टिविटी के सार्वभौमिक कवरेज का ग्रामीण नौकरियों पर गुणात्मक प्रभाव पड़ेगा। इन बातों को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने आजीविका के अवसरों के तेजी से सृजन की योजना बनाई है और अगले 3 वर्षों में 2.5 करोड़ आजीविका के मौकों का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। 2022-23 में, ग्रामीण विकास विभाग को मनरेगा के मांग-आधारित पूरक आवंटन के साथ कुल 1,35,944 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं- पिछले 7 वर्षों में ग्रामीण अवसंरचना, सामाजिक सुरक्षा और आजीविका पर निरंतर ध्यान केंद्रित किया गया है। मनरेगा ग्रामीण गरीब परिवारों की आय बढ़ाने के प्रयास में 100 दिनों तक का रोजगार प्रदान करता है और इसके तहत परिवारों की आजीविका गतिविधियों का समर्थन करने के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक संपत्ति का निर्माण किया जाता है और डीएवाई-एनआरएलएम महिलाओं की आजीविका गतिविधियों के लिए सामुदायिक समूहों की ताकत का लाभ उठाता है, ताकि पारिवारिक आय में वृद्धि हो सके। एनएसएपी, डीडीजीकेयूवाई के साथ मंत्रालय 2030 के एसडीजी लक्ष्यों से बहुत पहले; विविध और लाभकारी स्व-रोजगार और कुशल मजदूरी आधारित रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देकर गरीबी को खत्म करने की सकारात्मक स्थिति में है।
महामारी के दौरान प्रशासन से संबंधित पंचायतों और महिला समूहों के बीच नए गठबंधन की शुरुआत हुई है, हमने पंचायत योजना के साथ आजीविका योजना प्रक्रिया के एकीकरण के लिए उपाय किए हैं, जिससे दोनों पारस्परिक रूप से मजबूत हुए हैं और सभी परिवारों को विशेष रूप से सबसे कमजोर लोगों को शामिल करना सुनिश्चित हुआ है। सरकार ने स्वयं सहायता समूहों के लिए जमानत-मुक्त ऋण को 10 लाख रुपये से दोगुना करके 20 लाख रुपये कर दिया है। अब सरकार यह सुनिश्चित करने की भी योजना बना रही है कि एसएचजी को बिना किसी परेशानी के अपनी गतिविधियों को मजबूत करने के लिए ऐसे ऋण मिल सकें। डिजिटल लेन-देन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग, बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच में सुधार और वित्तीय समझ; इन प्रयासों के प्राथमिक लक्ष्य हैं। कार्य का नया और अपेक्षाकृत अधिक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र होगा- उद्यम शुरू करने वाले एसएचजी सदस्यों के लिए ऋण जुटाना। वर्तमान में डीएवाई-एनआरएलएम स्वयं सहायता समूह की महिला सदस्यों को- मिशन द्वारा महिला संस्थानों को दिए जाने वाले अनुदान एवं वित्तीय संस्थानों से ऋण के माध्यम से- पूंजी तक पहुंच प्रदान करता है। (2013-14 से लगभग 4.5 लाख करोड़ रुपये का ऋण महिला एसएचजी द्वारा जुटाया गया है)। इसके अलावा, समन्वय के हाल के प्रयासों के परिणामस्वरूप मनरेगा से परिसंपत्ति समर्थन, डीडीजीकेयूवाई के तहत कौशल/प्रौद्योगिकी सहायता तथा पीएमएफएमई और विभिन्न सरकारी योजनाओं द्वारा समर्थन मिला है, जिससे स्वयं सहायता समूहों के सदस्य आजीविका को सुदृढ़ बनाने में सक्षम हुए हैं।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का वाटरशेड विकास घटक और डिजिटल इंडिया भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआईएलआरएमपी) भी एक बड़ा बदलाव लाएगा और ग्रामीण विकास में तेजी लाएगा, क्योंकि बजट 2022-23 में इन पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस योजना आवंटन में 64 प्रतिशत की वृद्धि की गई है और मनरेगा के साथ समन्वय से जलवायु अनुकूल भविष्य की आजीविका सुनिश्चित होगी। डीआईएलआरएमपी डिजिटल इंडिया पहल का एक हिस्सा है। कार्यक्रम के प्रमुख घटकों में शामिल हैं: (द्ब) सभी मौजूदा भूमि रिकॉर्ड का कम्प्यूटरीकरण, (द्बद्ब) नक्शों का डिजिटलीकरण, (द्बद्बद्ब) सर्वेक्षण/पुन: सर्वेक्षण और बंदोबस्त के सभी रिकॉर्ड को अद्यतन करना एवं (द्ब1) पंजीकरण प्रक्रिया का कम्प्यूटरीकरण और भूमि रिकॉर्ड रख-रखाव प्रणाली के साथ इसका एकीकरण।
कोई भी नागरिक पीछे न छूटे और जीवन यापन में आसानी
सरकार ने रेखांकित किया है कि सामुदायिक संस्थानों के माध्यम से डीएवाई-एनआरएलएम के तहत संरचना-आधारित सामाजिक विकास प्रयासों को विस्तार देना बहुत महत्वपूर्ण है। एसएचजी महिलाओं के सन्दर्भ में जीवन की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए पोषण, स्वास्थ्य, स्वच्छता व लैंगिक मुद्दों से संबंधित सेवाओं के प्रति जागरूकता और पहुंच पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, क्योंकि ये स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। मंत्रालय ने अब अतिरिक्त आजीविका गतिविधियों का समर्थन करने के लक्ष्य के लिए समग्र ग्रामीण विकास (डब्ल्यूआरडी) दृष्टिकोण अपनाया है। एकीकृत दृष्टिकोण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों से आजीविका योजनाओं और कार्यक्रमों की आपूर्ति का एक सहज मिलान करना होगा- कौशल, परिसंपत्ति, सेवाएं और संसाधन; समुदाय की मांगों के साथ उपलब्ध किए जाने चाहिए। सीएसओ तथा स्टार्टअप सहित कृषि क्षेत्र की कंपनियों के साथ साझेदारी और गठबंधन पर ध्यान देना भी महत्वपूर्ण है, जो सार्वजनिक इकोसिस्टम से अलग उपभोक्ताओं/अंतिम उपयोगकर्ताओं, प्रौद्योगिकियों और अन्य सेवाओं के साथ मूल्य श्रृंखला तक पहुंच प्रदान करते हैं। यह और भी महत्वपूर्ण है कि केंद्र व राज्य सरकारों के सभी स्तर और संबंधित क्षेत्र अपनी सफलता के एक महत्वपूर्ण मानदंड के रूप में अतिरिक्त आजीविका विकास को अपनाएं। इसके अलावा, उद्यम विकास के लिए बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली भी वित्तीय संसाधनों तक पहुंच को सक्षम बनाएं।
सौभाग्य से, गरीबी-उन्मूलन की व्यापक रणनीति के एक घटक के रूप में उपरोक्त अधिकांश संरचनायें तैयार है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के अन्य उपायों के साथ, सरकार; जन धन खाताधारकों और अन्य गरीबों तक अपनी पहुंच का विस्तार करके खाद्यान्न और नकद सहायता प्रदान करना जारी रखे हुए हैं। सरकार सामाजिक सुरक्षा पात्रता जैसे राशन कार्ड को प्रशासनिक सीमाओं के साथ-साथ राज्यों के बाहर भी उपयोगी बनाने के लिए कदम उठा रही है।
केंद्रीय बजट 2022-23 में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों को सीधे समर्थन, पूंजीगत व्यय और सूक्ष्म स्तर के कल्याण कार्यक्रमों पर रणनीतिक ध्यान देने के लिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के माध्यम से विकास को बढ़ावा देने की एक विवेकपूर्ण रणनीति का पालन किया गया है, जो भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए जीवन यापन को आसान बनाएगा।
लेखक सचिव (ग्रामीण विकास), भारत सरकार हैं

रूस के हमले से दांव पर दुनिया

जी. पार्थसारथी
बाईस फरवरी की शाम राष्ट्रपति व्लादिमीर ने अपने लोगों और शेष विश्व के नाम संबोधन में रूस को अमेरिका से दरपेश चुनौतियों के बारे में बताया। उनके दावे के मुताबिक यह सब रूस को पड़ोसी मुल्कों से दूर करने की गर्ज से है। उनका यह भाषण पड़ोसी यूक्रेन से बढ़ते तनावपूर्ण रिश्तों के बीच आया था। पुतिन ने भाषण में विशेष रूप से जिक्र किया कि अमेरिका ने दुर्भावनावश सोवियत रूस को कमतर और अस्थिर किया था। पुतिन ने पड़ोसी यूक्रेन की कथित भूमिका के बारे में भी तफ्सील से बताया कि वह भी रूसी संघ को अस्थिर करने वाली हालिया पश्चिमी साजिशों में शामिल हो गया है। उन्होंने भावुक होकर कहा, ‘यहां मैं पुन: कहना चाहूंगा कि यूक्रेन हमारे लिए केवल पड़ोसी देश नहीं है। यह हमारे साझे इतिहास, संस्कृति और आध्यात्मिकता का अभिन्न हिस्सा रहा है।’ उन्होंने आखिर में कहा कि मौजूदा हालात में यह जरूरी हो जाता है कि यूक्रेन में ‘दोनेस्तक गणतंत्र’ और ‘लुहांस्क गणराज्य’ द्वारा अपनी आजादी और संप्रभुता पाने वाली लंबित मांगों पर निर्णय लिया जाए। उनके इस प्रस्ताव को रूसी संसद ने आनन-फानन में मंजूर कर लिया।
इस तरह 22 फरवरी को यूक्रेन के साथ बढ़ते तनावों में रूसी आक्रमण की भूमिका तैयार हो गई थी जो मुख्यत: अमेरिका के खिलाफ थी। राष्ट्रपति बाइडेन को इस घटनाक्रम पर तीखी घरेलू आलोचना का सामना करना पड़ा है। पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप और उनके विदेश मंत्री रहे पोम्पियो के नेतृत्व में रिपब्लिकन राजनेताओं ने हल्ला बोलते हुए कहा कि जो कुछ हुआ वह स्थिति से सही तरह निपट पाने में बाइडेन प्रशासन की विफलता का नतीजा है और ठीक वैसा है जब प्रशासनिक शिकस्त की वजह से अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज को बेइज्जत होकर वापसी करनी पड़ी थी। इसी बीच रूसी मीडिया ने गर्व से घोषणा की है कि दोनेस्तक और लुहांस्क ने यूक्रेन से निश्चयपूर्ण आजादी पा ली है।
पुतिन ने यह साफ कर दिया है कि अब केवल दोनेस्तक और लुहांस्क ही नहीं बल्कि इलाकाई महत्वाकांक्षा का निशाना समूचा यूक्रेन है। उन्होंने अपने संबोधन में पूर्व सोवियत संघ की नीतियों की कटु आलोचना करते हुए किसी को नहीं बख्शा, जिसमें सोवियत काल के प्रतीक-पुरुष जैसे कि लेनिन, स्तालिन, ख्रुशचेव के अलावा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ सोवियत यूनियन के नेतृत्व की तीन पीढिय़ां भी शामिल हैं। कम शब्दों में कहें तो, पुतिन द्वारा विगत के उन राजनेताओं की आलोचना करना अजीब और गैरवाजिब है, जिन्होंने रूस की वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियों की नींव रखी और सोवियत संघ को विश्वशक्ति बनाया था।
पुतिन की इलाकाई महत्वाकांक्षा जाहिर होने के बाद चले घटनाक्रम ने रूस और दुनियाभर में हलचल पैदा कर दी है। जहां पहले यह महत्वाकांक्षा यूक्रेन के चंद इलाकों को ‘आजादी’ दिलवाने तक सीमित थी वहीं अब समूचा यूक्रेन कब्जाने के फैसले ने विश्व को चौंकाया है। उनका यह दावा यूक्रेन पर धावा बोलने के साथ लागू हुआ। आरंभ में कइयों को लगा कि वे सिर्फ क्रीमिया को रूस में मिलाना चाहते हैं, लेकिन पुतिन के ताजा कृत्य ने दुनिया को हैरान-परेशान कर दिया है। भारत ने पहले भी वार्ता के जरिए रूस-यूक्रेन तनाव कम करने वाले प्रयासों का समर्थन करके सही किया था और अब भी यूक्रेन की मौजूदा सीमारेखा में बदलावों के प्रयास की ताईद न करके समझदारी दिखाई है। भारत सहित शायद ही कोई मुल्क ऐसा होगा जो रूस द्वारा सैन्य कार्रवाई करके यूक्रेन को हड़पने या टुकड़ों में बांट देने को सही ठहराए।
कोई हैरानी नहीं कि राष्ट्रपति बाइडेन ने रूस पर दबाव बनाने के लिए तमाम नाटो, यूरोपियन और एशियाई सहयोगियों को लामबंद होने का आह्वान किया है। बाइडेन ने सबसे ज्यादा जिन मारक प्रतिबंधों का प्रस्ताव दिया था, उसमें रूस को उपलब्ध विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग सुविधाओं से महरूम करना शामिल था। अब इस पर अमल भी हो चुका है। अमेरिका स्थित ब्लूमबर्ग डॉट कॉम ने हालांकि बताया है कि राष्ट्रपति पुतिन द्वारा पृथक दोनेस्तक और लुहांस्क को मान्यता देने वाले दस्तावेज पर दस्तखत करने के 24 घंटों के अंदर अमेरिका और यूके ने आनन-फानन में रूस से 350 लाख बैरल कच्चा एवं परिशोधित तेल, सोना सहित 700 मिलियन डॉलर मूल्य की प्राकृतिक गैस, एल्यूमीनियम, टाइटेनियम, कोयला खरीदा है। रूस से इनका निर्यात आज भी जारी है। यूक्रेनी फौज और नागरिकों द्वारा रूसी सेना को कड़ी टक्कर के बीच पश्चिमी प्रतिबंध और सख्त होने जा रहे हैं। इसका विश्वव्यापी असर होना अवश्यम्भावी है।
अमेरिका और उसके यूरोपियन सहयोगियों द्वारा रूस पर प्रतिबंधों में सबसे करारा असर ‘स्विफ्ट’ नामक बैंकिंग व्यवस्था से महरूम करने से होगा। इसके अभाव में रूस की विश्व-व्यापार परिचालन क्षमता बाधित हो जाएगी और रूस के केंद्रीय बैंक का दुनिया के अन्य देशों से वैश्विक लेन-देन पंगु हो जाएगा। हालांकि, रूसी बैंक नियंताओं को इन उपायों का कयास पहले से था। इस सबके बीच रूसी अपना सैन्य अभियान बंद करने को तैयार नहीं हैं। हालांकि यूक्रेन ने सूझ-बूझ दिखाते हुए स्थिति सामान्य बनाने के लिए वारसा में शांति-वार्ता की पेशकश की है, लेकिन उम्मीद के मुताबिक रूस ने पहले यह प्रस्ताव ठुकरा दिया था। हालांकि बैठक का एक दौर हो चुका है।
रूस द्वारा यूक्रेन पर दमन जारी रखने पर न केवल यूक्रेन को बल्कि रूसी नागरिकों को भी लंबे समय तक दुश्वारियां झेलनी पड़ेंगी, जिससे कटुता बढ़ेगी एवं आपसी एकता भंग होगी और बदनामी झेलनी पड़ेगी। उम्मीद करें कि रूस और यूक्रेन द्वंद्व में तमाम संबंधित पक्ष अपने जहन में रखेंगे कि अपने पड़ोस में शांति और सद्भावना कायम रखना दोनों की जिम्मेवारी है। शांति प्रयासों में फ्रांस और जर्मनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। रूसी समस्याओं पर अमेरिका और अन्य मुल्कों द्वारा व्यर्थ का छद्म-राष्ट्रवाद बघारने और घुड़कियों का भयावह परिणाम हो सकता है। रूस के पास फिलहाल 6400 परमाणु अस्त्रों का भंडार है, जिसमें 1600 सामरिक मिसाइलें तैयार हैं। रूस ने भड़काए जाने पर इनका इस्तेमाल करने का इरादा गुप्त नहीं रखा है।
यूक्रेन में स्थिति हाथ से निकलने पाए, इस हेतु वैश्विक राजनीतिक और कूटनीतिक प्रयास बहुत महत्वपूर्ण बन जाते हैं। राष्ट्रपति बाइडेन और पुतिन जब जेनेवा में मिले थे तो आदर्श राजनेता की तरह कहा था- ‘परमाणु युद्ध में कोई विजेता नहीं होता और यह कभी नहीं होना चाहिए।’ उम्मीद करें कि यह दोनों ताकतें तनाव को काबू से बाहर नहीं होने देंगी। अमेरिका और सहयोगियों द्वारा लगाए प्रतिबंधों की वजह से रूस के साथ भारत के व्यापारिक और आर्थिक संबंधों पर असर पड़ेगा। हालांकि इन अड़चनों से जुगत लगाकर पार पाया जा सकता है। लेकिन पुतिन के कृत्यों ने नया वैश्विक तनाव ऐसे समय बना डाला है जब दुनिया पहले से ही कोरोना महामारी का घातक असर झेल रही है। किंतु फिलहाल लगता नहीं कि व्लादिमीर पुतिन पीछे हटने को राजी होंगे, जाहिर है उन्हें अपने परमाणु भंडार की पाश्विक शक्ति पर यकीन है।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन महाशिवरात्रि के अवसर पर पहाड़ी मंदिर परिसर में आयोजित शिव बारात कार्यक्रम में शामिल हुए

 

* मुख्यमंत्री ने बाबा भोलेनाथ की पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना कर राज्य के सुख समृद्धि और कल्याण की कामना की

रांची (दिव्या राजन) महाशिवरात्रि का त्यौहार आज श्रद्धा ,आस्था ,परंपरा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है । इस अवसर पर ऐतिहासिक पहाड़ी मंदिर परिसर में आयोजित शिव बारात कार्यक्रम में मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन शामिल हुए । मुख्यमंत्री ने बाबा भोलेनाथ की पूरे विधि विधान से पूजा- अर्चना कर राज्य एवं राज्य वासियों के सुख समृद्धि और कल्याण की कामना की । मुख्यमंत्री ने कहा कि हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी बाबा भोले शंकर के दरबार में पूजा अर्चना और आशीर्वाद लेने हजारों की संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं । शिव बारात में शामिल होने के लिए श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बन रहा है । यह परंपरा आगे भी अनवरत चलता रहेयही हमारी बाबा भोलेनाथ से विनती है । मुख्यमंत्री ने राज्यवासियों को महाशिवरात्रि की बधाई और शुभकामनाएं दी। इस अवसर पर सांसद श्री संजय सेठ, पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री सुबोध कांत सहाय, पूर्व मंत्री और विधायक श्री सीपी सिंह तथा श्री शिव बारात आयोजन समिति के तमाम सदस्यगण मौजूद थे ।

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