सेहत की सुध

यह सर्वविदित है कि देश की बड़ी आबादी तमाम बीमारियों की जड़ मोटापे से जूझ रही है, जिसके चलते बड़े ही नहीं, किशोरों व बच्चों तक में मधुमेह, थायराइड, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां बढ़ी हैं। अच्छी बात यह है कि महामारी की तरह बढ़ते मोटापे को लेकर अब सरकार भी सतर्क हुई है। देश की नीति-नियंता संस्था नीति आयोग ने नागरिकों को मोटापे से मुक्त करने के लिये इसकी वृद्धि के प्रमुख कारकों मसलन चीनी, नमक व वसा की अधिकता वाले पदार्थों को चिन्हित करने और इन खाद्य पदार्थों पर उत्पाद शुल्क बढ़ाने की संस्तुति की है। इसी कड़ी में उत्पादों पर ‘फ्रंट ऑफ दि पैक लेबलिंग’ जैसे कदम उठाने की बात कही गई है, ताकि लोगों को मोटापे के खतरे से आगाह किया जा सके। मकसद यही है कि लोग खाने की वस्तुएं चयन करते वक्त सावधानी बरतें और उन्हें पता हो कि उनके स्वास्थ्य के लिये क्या घातक है। नीति आयोग के शोध संस्थान की वर्ष 2021-2022 की रिपोर्ट में चेताया गया है कि देश में बच्चों, किशोरों और महिलाओं में अधिक वजन व मोटापे की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। नीति आयोग देश के आर्थिक विकास संस्थान और भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर इस दिशा में कदम उठा रहा है। दरअसल, भारतीय भोजन में परंपरागत रूप से नमकीन, चिप्स, भुजिया आदि का प्रचलन तो रहा है लेकिन हाल के वर्षों में स्नैक्स के नाम पर ऐसे खाद्य पदार्थों का प्रचलन बढ़ा है जो सेहत के लिये हानिकारक हैं। यह हमारी चिंता का विषय होना चाहिए कि राष्ट्रीय परिवार सेहत सर्वेक्षण के अनुसार देश में मोटापे से पीडि़त महिलाओं की संख्या चौबीस फीसदी हो गई है, जबकि पुरुषों का यह आंकड़ा 22.9 फीसदी है। ऐसे में सरकार का इस दिशा में कदम उठाना वक्त की जरूरत ही कहा जाना चाहिए। निस्संदेह, मोटापा तमाम बीमारियों की जड़ है और इससे होने वाले रोगों के चलते भारतीय चिकित्सा तंत्र दबाव महसूस करता है।
दरअसल, कहीं न कहीं शहरी जीवन शैली व खानपान की आदतों में बदलाव के चलते मोटापे की समस्या चिंताजनक हुई है। इस समस्या के बाबत बात तो होती रही, लेकिन इस दिशा में गंभीर पहल होती नजर नहीं आई। बाजार के मायाजाल के चलते देश में जंक फूड और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का उपयोग बढ़ा। इसमें उत्पादकों ने बाजार तो तलाशा लेकिन आम आदमी की सेहत की फिक्र नहीं की। विडंबना यह भी रही कि मोटापा बढ़ाने वाले कारकों का जिक्र तो हुआ मगर इन पर रोक की गंभीर कोशिश होती नजर नहीं आई। इन्हें रोकने को जो कदम उठाये गये वे महज प्रतीकात्मक ही रहे। बाजार में ऐसे खाद्य पदार्थों का अंबार लगा है जो स्वाद में तो लुभाते हैं, लेकिन सेहत पर भारी हैं। इनका दीर्घकालिक हानिकारक असर सेहत पर होता है जिसके चलते मोटापा बढ़ता है और उसकी आड़ में मधुमेह से लेकर हृदय रोग तक की गंभीर बीमारियां पनपने लगती हैं। जो कालांतर अनदेखी के चलते भयावह रूप ले लेती हैं। निस्संदेह वक्त की जरूरत है कि मोटापा पैदा करने वाले कारकों का सख्ती से नियमन किया जाये। लोगों को पता होना चाहिए कि जिस चीज का वे सेवन कर रहे हैं उसका उनकी सेहत पर क्या असर पड़ता है। दरअसल, खानपान की आदतों में बदलाव के चलते विकसित देशों की मोटापे की समस्या ने भारत में भी तेजी से पांव पसारने शुरू कर दिये हैं। भारत में ऐसी समस्या इसलिये विकराल रूप धारण कर लेती है क्योंकि लोग वक्त रहते सचेत नहीं होते। मोटापे के प्रति आम लोगों में सजगता पैदा करने में हम विफल रहे हैं। हमें यह ध्यान नहीं रहता कि हमारे दैनिक जीवन में मोटापा बढ़ाने वाले कारक कब हिस्सा बन गये हैं। यह भी कि कौन से खाद्य पदार्थ वास्तव में मोटापा बढ़ाने वाले हैं। ऐसी लापरवाही के चलते शरीर कब जानलेवा बीमारियों का घर बन जाता है, व्यक्ति को अहसास ही नहीं होता। लेकिन ऐसे खाद्य पदार्थों पर कर लगाते वक्त ध्यान रखें कि आम व गरीब लोगों का जीवन प्रभावित न हो। इसके साथ ही देश में मोटापे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने की भी जरूरत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version