फिल्म ‘पलक’ प्रदर्शन के लिए तैयार

चित्रगुप्त आर्ट्स के बैनर तले बनी फिल्म ‘पलक’ अब बहुत जल्द ही सिनेदर्शकों तक पहुँचने वाली है। इस फिल्म की कहानी एक दिव्यांग लड़की की है जो दूसरे दिव्यांग लड़की का जीवन सुधारती है, उसके जीवन में रोशनी लेकर आती है। इस फ़िल्म के लिए ‘आय (नेत्र) बैंक’ (एन जी ओ) भी सहयोग कर रहा है। ‘ऑय बैंक’ के फाउंडर शैलेश श्रीवास्तव के द्वारा इस फिल्म के निर्माण में पुरा सहयोग दिया गया है। यह फ़िल्म राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिलीज होगी। जिसमें ऑय ब्रांड के कलाकारों का भी साथ होगा जिनमें से एक महानायक अमिताभ बच्चन भी हैं।

इस फ़िल्म को रिलीज होने से पहले ही दो फिल्म पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है जो गर्व की बात है। फिल्म की कहानी में एक महत्वपूर्ण संदेश है साथ ही चार गीत भी है जिसमें कव्वाली, सैड सांग, सगाई का गीत और सोलो गीत मुख्य हैं। फिल्म में सभी रंगमंच से जुड़े अनुभवी कलाकार हैं जो ज्यादातर उत्तर भारतीय हैं। इस फिल्म में ‘नदिया के पार’ फेम अभिनेत्री शीला शर्मा, अभिनेता अतुल श्रीवास्तव, वेब सिरीज़ आश्रम की तूलिका बनर्जी, विक्रम शर्मा जैसे मंझे हुये कलाकार हैं। सिवान (बिहार) के मूल निवासी फिल्म निर्माता मधुप श्रीवास्तव ने संदेशपरक फिल्म ‘पलक’ के पहले भी प्रोडक्शन डिजाइन और निर्देशन जैसे कई काम फ़िल्म और टेलीविजन के लिए किये हैं। दूरदर्शन पर उनकी क्राइम बेस्ड सीरियल भी टेलीकास्ट हो चुकी है। उनकी ‘उड़ेंगे ऊंची उड़ान’ नाम की धारावाहिक भी टेलीविजन पर आ चुकी है। निर्देशन के क्षेत्र में वह कई अवार्ड से भी सम्मानित हो चुके हैं। नवीनतम प्रोजेक्ट ‘पलक’ के बाद मधुप श्रीवास्तव अपनी चित्रगुप्त आर्ट्स के बैनर तले पुनः फिल्म निर्माण का कार्य करने जा रहे हैं जिसमें उनके सहयोगी बैनर युनिप्लेयर फिल्म्स है। यूनिप्लेयर फिल्मस की संचालिका अनामिका श्रीवास्तव हैं। बकौल मधुप श्रीवास्तव मौज़ूदा दौर में

फिल्मों के प्रति लोगों के मन में काफी बदलाव आए हैं वो कुछ नया देखना चाहते हैं जिसमें मनोरंजन के साथ नई कहानी और संदेश भी हो और उनकी यह तुष्टि फिल्म ‘पलक’ से पूर्ण होगी। यह फिल्म एक संदेशपरक सामाजिक कहानी है जिसे सभी दर्शकों तक पहुंचाना जरूरी है।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

केजरीवाल का कद भी तय करेगा पंजाब

राजकुमार सिंह –
कल जब पंजाब के मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे तो अपने लिए नयी सरकार ही नहीं चुनेंगे, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व संकट से गुजर रहे विपक्ष की भावी राजनीति की दिशा भी तय करेंगे। दशकों तक कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल ही पंजाब की राजनीति के प्रमुख किरदार रहे। बेशक भाजपा और बसपा ने भी अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज करवायी, लेकिन अक्सर इन बड़े दलों के छोटे साझीदार के तौर पर ही। वर्ष 2014 में पहली बार एक नये राजनीतिक दल ने पंजाब की चुनावी राजनीति में धमाकेदार एंट्री की। यह दल है, अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी, जो अब आप के संबोधन से लोकप्रिय है। लगातार तीन कार्यकाल तक सत्तारूढ़ रही कांग्रेस और उसकी परंपरागत प्रतिद्वंद्वी भाजपा को करारी शिकस्त देकर आप दिल्ली की सत्ता पर पहले ही काबिज हो चुकी थी। कुछ ही अरसा पहले भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना आंदोलन से उपजी आप ने जिस तरह देश के दोनों प्रमुख दलों को हाशिये पर धकेल कर देश की राजधानी दिल्ली (बेशक उसे पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है) की सत्ता पर कब्जा किया, उसने देश ही नहीं, दुनिया को भी चौंका दिया।
शायद इसलिए भी कि अराजनीतिक लोगों के समूह द्वारा गठित इस दल ने चुनाव और सत्ता राजनीति में माहिर दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों को अप्रत्याशित मात दी थी। बेशक पहले चुनाव में बहुमत का आंकड़ा कुछ दूर रह गया था, लेकिन जब केजरीवाल ने मध्यावधि चुनाव का दांव चला तो मतदाताओं ने सारी कसर निकालते हुए कांग्रेस-भाजपा को मानो राजनीतिक वनवास ही दे दिया। आप ने यह करिश्मा तब कर दिखाया, जब नरेंद्र मोदी की लहर पर सवार भाजपा (तीन दशक लंबे अंतराल के बाद) लोकसभा में अकेले दम बहुमत हासिल कर केंद्र की सत्ता पर काबिज हो चुकी थी। बेशक उन्हीं लोकसभा चुनाव में आप दिल्ली में तो खाता खोलने में नाकाम रही, लेकिन पंजाब में अपनी शानदार राजनीतिक उपस्थिति दर्ज करायी थी—चार सीटें जीत कर। पहले दिल्ली और फिर पंजाब, आप की इस अप्रत्याशित चुनावी सफलता का निष्कर्ष यही निकाला गया कि परंपरागत राजनीति से जन साधारण का मोहभंग हो रहा है। यह भी कि अब राजनीतिक दलों को आम आदमी और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी मुश्किलों को अपने चुनावी एजेंडा में प्रमुखता से शामिल करना होगा। इसे उत्तर भारत में मुफ्त की रेवडिय़ों की लोकलुभावन चुनावी राजनीति की विधिवत एंट्री भी कह सकते हैं। बेशक मुफ्त बिजली-पानी से लेकर महिलाओं और बेरोजगार युवाओं को नकदी बांटने के वादों से वोट बटोर सत्ता में आ कर उन पर अमल करने वाले राजनीतिक दल या नेता अपने खजाने से खर्च नहीं करते, बल्कि सरकारी खजाने का मुंह ही खोलते हैं, जो दरअसल ईमानदार करदाताओं की गाढ़ी कमाई का पैसा होता है, जिसे वोट की राजनीति के बजाय सर्वांगीण विकास पर खर्च होना चाहिए।
बेशक बहस और विश्लेषण का मुद्दा यह भी है कि कितने चुनावी वादों पर कब कितना अमल किया जाता है, लेकिन तेजी से फैलती मुफ्त की राजनीति को सरकारों द्वारा उद्योगों या अमीरों को दिये जाने वाले तमाम तरह के राहत पैकेज के मद्देनजर अब समाज कल्याण की अवधारणा से जोड़ कर देखा-दिखाया जाने लगा है। मुफ्त की राजनीति के सहारे ही सही, अधूरे राज्य दिल्ली में भी अपने वादों पर अमल कर अरविंद केजरीवाल ने उत्तर भारत में खुद को ऐसी राजनीति का ब्रांड बना लिया है। जो लोग कल तक उनकी इस राजनीति का मजाक उड़ाते थे या विरोध करते थे, आज उन्हीं का अनुसरण करते नजर आ रहे हैं। जिन पांच राज्यों में अब विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें से किसी के लिए भी किसी भी दल का चुनाव घोषणापत्र देख लीजिए बेहतर शासन के दृष्टिकोण के नाम पर मुफ्त की रेवडिय़ों की फेहरिस्त ही मिलेगी। अगर देश भर में किये जाने वाले ऐसे लोकलुभावन चुनावी वादों पर अमल की लागत का अनुमान लगाया जाये तो शायद आंकड़ा देश के बजट से भी आगे निकल जायेगा। दक्षिण भारत से शुरू हुई लोकलुभावन वादों से वोट बटोरने की यह राजनीतिक प्रवृत्ति अब जिस तरह सभी राजनीतिक दलों में पैर पसार रही है, उससे लगता नहीं कि तार्किक असहमति को भी खुले दिलो-दिमाग से सुना जायेगा।
पंजाब विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार आप सत्ता की प्रमुख दावेदार नजर आ रही है तो उसका मुख्य कारण, दोनों प्रमुख दलों : कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल से मोहभंग के अलावा, मुफ्त की राजनीति और दिल्ली में वैसे वादों पर अमल का केजरीवाल का ट्रैक रिकॉर्ड ही है, वरना तो ऐसे वादे करने में अब पीछे कोई भी दल नहीं रहा। 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव प्रचार में भी प्रतिद्वंद्वियों से आगे नजर आ रही आप अगर निर्णायक क्षणों में लंबे फासले से दूसरे स्थान पर रह गयी थी, तो उसके कई कारण बताये गये। जाहिर है, खुद आप के रणनीतिकारों को जो कारण नजर आये, वे विरोधियों को नजर आये कारणों से अलग थे। सच यह भी है कि 2014 में जीते चार लोकसभा सदस्यों का मामला हो या फिर 2017 में जीते 20 विधायकों का—आप उन्हें अगले चुनाव तक भी एकजुट नहीं रख पायी। निश्चय ही इसके लिए केजरीवाल किसी अन्य को दोषी नहीं ठहरा सकते और असल कारण उन्हें आप की राजनीति में ही खोजने होंगे। उस बिखराव के बावजूद अगर इस बार भी विधानसभा चुनाव में आप पंजाब में सत्ता की प्रमुख दावेदार नजर आ रही है तो मान लेना चाहिए कि मतदाताओं का परंपरागत राजनीतिक दलों से मोहभंग इतना ज्यादा है कि वे नया प्रयोग करना चाहते हैं। कांग्रेस ने नेतृत्व परिवर्तन कर और फिर आप के चुनावी वादों की तर्ज पर तत्काल राहत की घोषणाएं कर संभावित चुनावी नुकसान से बचने की कोशिश की है तो भाजपा से तकरार के बाद शिरोमणि अकाली दल ने बसपा से गठबंधन कर विजयी समीकरण बनाने की कवायद की है। सीमावर्ती राज्य होने के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पंजाब की संवेदनशीलता के मद्देनजर केजरीवाल की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। केजरीवाल की सत्ता महत्वाकांक्षाओं की बाबत उनके पुराने मित्र और आप के संस्थापक सदस्य रहे कवि कुमार विश्वास का ऐन चुनाव से पहले खुलासा आप की चुनावी संभावनाओं को ग्रहण भी लगा सकता है।
कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही आप को एक-दूसरे की फोटोकॉपी बताते हैं, पर सच यह है कि केजरीवाल की राजनीति इन दोनों की राजनीतिक शैली का मिश्रण है। वह धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद, दोनों की बात एक साथ कर लेते हैं। शायद इसीलिए सत्ता से त्वरित लाभ की आस में न कांग्रेस के परंपरागत मतदाता को झाड़ू का बटन दबाने में संकोच होता है, न ही भाजपा के परंपरागत मतदाताओं को। आखिर दिल्ली में आप ने कांग्रेस और भाजपा, दोनों के ही परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगायी। पंजाब में तो वह शिरोमणि अकाली दल के धार्मिक रुझान वाले परंपरागत वोट बैंक तक में सेंध लगाती नजर आ रही है। पंजाब के मतदाताओं ने अगली सरकार के लिए किसके पक्ष में जनादेश दिया—यह 10 मार्च को पता चल जायेगा, लेकिन अगर यह आप के पक्ष में हुआ तो उसका असर विपक्ष की राष्ट्रीय राजनीति पर पड़े बिना भी नहीं रहेगा। लगातार चुनावी पराभव झेल रही कांग्रेस में जैसी भगदड़ मची है, उसकी स्वाभाविक प्राथमिकता विपक्ष का नेतृत्व करने से पहले अपना अस्तित्व बचाना होगी। उस स्थिति में विपक्ष के नेतृत्व की दौड़ मुख्यत: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच रह जायेगी। माना कि पश्चिम बंगाल की गिनती देश के बड़े राज्यों में होती है,पर दिल्ली के बाद पंजाब में भी आप की सरकार बन जाने पर केजरीवाल उस अंतर को मिटा पाने की स्थिति में आ जायेंगे। बेशक कुशल हिंदी वक्ता होना भी अंतत: राष्ट्रीय राजनीति में केजरीवाल का कद बढ़ायेगा ही, लेकिन तभी जब दिल्ली के अलावा भी किसी राज्य में आप की सरकार बन पाये– जिसकी संभावना पंजाब से बेहतर कहीं और नजर नहीं आती।

आतंक का हश्र

अहमदाबाद में वर्ष 2008 में हुए शृंखलाबद्ध बम धमाकों के दोषियों को आखिर अदालत ने कानून के राज का अहसास करा ही दिया है। भारत के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी सजा में अहमदाबाद ब्लास्ट के 49 दोषियों में से 38 को फांसी सुनाई गई और ग्यारह आखिरी सांस तक सलाखों के पीछे कैद रहेंगे। दरअसल, 26 जुलाई, 2008 को अहमदाबाद के विभिन्न स्थानों पर सत्तर मिनट के भीतर 22 बम विस्फोट हुए थे। इन धमाकों में 56 लोग मारे गये थे और दो सौ से अधिक घायल हुए थे। जिधर देखो उधर तबाही का मंजर था। बाद में विशेष जांच टीमों के प्रयास से धमाकों में शामिल 78 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। गत आठ फरवरी को इस मामले में जल्द कार्रवाई को अंजाम देने के लिये बनी विशेष अदालत ने 49 को दोषी पाया। इसके साथ ही दोषियों पर आर्थिक दंड भी लगाया गया है। साथ ही घायलों को हर्जाना देने के भी आदेश दिये गये हैं। धमाके वाले दिन अहमदाबाद के अस्पतालों, बसों व अन्य सार्वजनिक स्थानों को निशाने पर लिया गया था। हमले से पहले इंडियन मुजाहिद्दीन नाम के संगठन की तरफ से मीडिया को मेल भेजी गई थी और इसे गोधरा कांड का जवाबी हमला बताया गया था। दरअसल, अहमदाबाद से पहले बेंगलुरू व जयपुर में भी धमाके हुए थे। यही नहीं, अहमदाबाद में धमाके के अगले दिन सूरत को भी धमाके से दहलाने की कोशिश थी, अच्छा हुआ 29 बम तकनीकी खामी के कारण फट नहीं पाये थे। इस मामले में अहमदाबाद में बीस व सूरत में 15 मामले दर्ज किये गये थे। निस्संदेह, भारतीय इतिहास में पहली बार 38 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई है। इससे पहले राजीव गांधी हत्याकांड में एक साथ 26 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। अहमदाबाद बम कांड में 29 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी किया गया है। दूसरी ओर 49 आरोपियों को गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत दोषी करार दिया गया।
बहरहाल, जटिल जांच प्रक्रिया और अदालत की लंबी कार्यवाही के बाद सामने आया फैसला आतंक के मंसूबे पालने वाले लोगों के लिये सबक है कि अपराधी कितने भी शातिर क्यों न हों, उन्हें एक दिन कानून के हिसाब से दंड मिलता ही है। निस्संदेह फांसी या उम्रकैद इस अपराध का अंतिम दंड नहीं कहा जा सकता, लेकिन कानून के शासन की स्थापना के लिये मानवता से खिलवाड़ करने वालों को दंडित करना भी जरूरी होता है। यहां सवाल यह भी कि इस हमले की जिम्मेदारी लेने वाले कथित आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन व प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया कैसी घातक सोच से पैदा होते हैं। उनमें इतना दुस्साहस कैसे पैदा होता है कि वे धमाके की जिम्मेदारी खुलेआम लें। इस मामले में पुलिस की कार्रवाई भी तत्परता वाली रही, जिसने महज 19 दिन में तीस आतंकियों को पकड़कर जेल भेज दिया। बाकी कुछ अपराधी बाद में उत्तर प्रदेश के मेरठ व बिजनौर तथा अन्य राज्यों से पकड़े गये। निश्चित तौर पर ऐसी चुनौतियां हमारे सामने आने वाले वक्त में आ सकती हैं। हमें ऐसी सोच पर अंकुश लगाने का प्रयास करना चाहिए जो निर्दोष के खून से खेलने में सुकून महसूस करती है। ऐसी सोच के खिलाफ सशक्त सामाजिक प्रतिरोध विकसित करने की जरूरत है। साथ ही पुलिस प्रशासन को सतर्क रहते हुए ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिये अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। कहीं न कहीं सीरियल ब्लास्ट का होना हमारे खुफिया तंत्र की नाकामी की ओर भी इशारा करता है। इतने बड़े षड्यंत्र को आतंकी चुपचाप कैसे अंजाम देने में सफल रहे। निस्संदेह, बम धमाकों को अंजाम देने वाले संगठन के बारे में आम लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन 2007 में मीडिया के जरिये संगठन ने भारत में अपनी उपस्थिति का इजहार किया था। इसे गंभीर संकेत मानकर इस दिशा में सतर्क प्रतिक्रिया दी जाती तो शायद अहमदाबाद बम धमाकों को टाला जा सकता था।

दिव्या अग्रवाल के ग्लैमरस लुक ने बढ़ाया इंटरनेट का पारा

 तस्वीरों से नजरें नहीं हटा पा रहे फैंस

देश के चर्चित रियलिटी शो बिग बॉस ओटीटी की विजेता और टीवी की मशहूर एक्ट्रेस दिव्या अग्रवाल ने अपनी ग्लैमरस अदाएं दिखाकर सोशल मीडिया का पारा एक बार फिर बढ़ा दिया है. दिव्या ने इंस्टा पर बिकिनी में अपनी फोटोज साझा की हैं. इनमें दिव्या की टोन्ड फिगर एवं स्वैग देखने लायक है. फोटोज में दिव्या क्रीम कलर बिकिनी पहन किलर पोज दे रही हैं. लॉन्ग स्ट्रेट हेयर्स, न्यूड लिप्स, स्मोकी आईमेकअप दिव्या के अवतार में चार चांद लगा रहे हैं. अभिनेत्री ने फोटोशूट के लिए अपने लुक को नार्मल रखा है.
वही सिंपल रहते हुए भी दिव्या जबरदस्त नजर आ रही हैं. दिव्या की इन ग्लैमरस तस्वीरों को बहुत पसंद किया जा रहा है. फोटोज को साझा करते हुए दिव्या ने लिखा-पोज ए थ्रीट. दिव्या की इन ग्लैमरस फोटोज में सबसे स्पेशल है उनके बॉयफ्रेंड वरुण सूद का कमेंट. वरुण ने लिखा- स्टॉप, स्टॉप, स्टॉप. अब वरुण के इस कमेंट को पढ़ स्पष्ट पता चलता है कि उन्हें दिव्या की ये फोटोज बहुत पसंद आई हैं.
वही प्रशंसकों ने दिव्या की इन फोटोज पर हार्ट और फायर इमोजी की बरसात ही कर दी है. दिव्या के स्टनिंग लुक्स के प्रशंसक दीवाने हो रहे हैं. बता दे कि सोशल मीडिया पर दिव्या अक्सर अपनी खूबसूरत फोटोज साझा करती रहती हैं. दिव्या को रियलिटी शोज की च्ीन भी बोला जाता है. दिव्या अग्रवाल ने पिछले वर्ष बिग बॉस ओटीटी अपने नाम किया था. निशांत भट्ट को पराजित कर दिव्या शो जीती थीं. दिव्या कई शोज तथा वेब सीरीज में नजर आ चुकी हैं. वे टेलीविजऩ जगत की यंग टैलेंट में शुमार की जाती हैं.  (एजेंसी)

सोनल वेंगुर्लेकर ‘मेरे साईं – श्रद्धा और सबूरी’ में अहम भूमिका निभाएंगी

अभिनेत्री सोनल वेंगुर्लेकर शो ‘मेरे साईं – श्रद्धा और सबूरी’ की नवीनतम जोड़ी हैं। उन्हें एक महिला डॉक्टर की भूमिका निभाने के लिए चुना गया है, जो भयंकर महामारी के बीच शिरडी आती है। एक्ट्रेस ने शो में अपने रोल के बारे में बात की।
शो का हिस्सा बनने और अपनी भूमिका के बारे में बताते हुए सोनल कहती हैं: मैं ‘मेरे साईं’ की एक उत्साही दर्शक रही हूं। हर एपिसोड से बहुत कुछ सीखने को मिलता है क्योंकि यह बहुत ज्ञान और सीख देता है। इसका हिस्सा बनने के लिए इतना प्रतिष्ठित शो मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
इसके अलावा, मैं अपने ऑन-स्क्रीन चरित्र से बहुत प्रेरित हूं, जो कठिन से कठिन समय में भी जीवन के उज्जवल पक्ष को देखता है। भले ही शिरडी आने पर उसे विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, साईं उसके साथ खड़ा होता है। वह इसमें विश्वास करता है। उसे और यहां तक कि लोगों को उस पर विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
इसके अलावा, ‘ये है चाहतें’ की अभिनेत्री साझा करती है: हालांकि, अगर हम इसके बारे में सोचते हैं, तो इतने सालों के बाद भी, आज का पितृसत्तात्मक समाज किसी भी पेशे में एक महिला की विश्वसनीयता पर संदेह करता है। मुझे उम्मीद है कि इस शो के माध्यम से हम कई लोगों के दिमाग को प्रभावित कर सकते हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और प्रत्येक व्यक्ति को वह अधिकार दे सकते हैं जिसके वे हकदार हैं।
‘मेरे साईं – श्रद्धा और सबूरी’ सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर प्रसारित होता है। (एजेंसी)

मुंहासों की समस्या से राहत दिलाने में कारगर हैं ये खाद्य पदार्थ

मुंहासें रहित त्वचा पाने के लिए लोग स्किन केयर प्रोडक्ट्स और ट्रीटमेंट पर न जाने कितने रूपये यूं ही खर्च कर देते हैं, लेकिन आप चाहें तो डाइट में कुछ खाद्य पदार्थों को शामिल करके इस समस्या से जल्द राहत पा सकते हैं। आइए आज हम आपको कुछ ऐसे ही खाद्य पदार्थों के बारे में बताते हैं, जिनका सेवन प्राकृतिक रूप से त्वचा के अतिरिक्त सीबम के उत्पादन को नियंत्रित करके मुंहासों से छुटकारा दिला सकता है।

कैरोटीनॉयड से भरपूर खाद्य पदार्थ

कैरोटीनॉयड एक ऐसा पोषक तत्व है, जो एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रोपर्टीज से युक्त होता है, इसलिए इससे भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन मुंहासों से राहत दिलाने में काफी मदद कर सकता है। बता दें कि गाजर, पालक, केल, वेजिटेबल सूप, आम, पपीता, टमाटर और शकरकंद कैरोटेनॉयड्स के समृद्ध स्रोत हैं। वहीं, इन खाद्य पदार्थों में जिंक की भी अच्छी खासी मात्रा मौजूद होती है, जो त्वचा के अतिरिक्त सीबम को नियंत्रित करने में मदद करता है।

नींबू

नींबू का सेवन भी मुंहासों से राहत दिलाने में मदद कर सकता है क्योंकि यह विटामिन- सी से समृद्ध होता है। वहीं, विटामिन- सी में एंटी-इंफ्लेमेटरी गतिविधि होती है। इस गतिविधि की वजह से विटामिन- सी मुंहासों से बचाने में मदद क सकता है। इसके अतिरिक्त, यह मुंहासों के कारण होने वाले घाव को भरने और हाइपरपिग्मेंटेशन को रोकने में भी सहायता प्रदान कर सकता है। इसलिए डाइट में नींबू को जरूर शामिल करें।

सूखे मेवे

अगर आपकी त्वचा पर मुंहासें होते रहते हैं तो आपके लिए अपनी डाइट में बादाम और अखरोट जैसे सूखे मेवे शामिल करना फायदेमंद हो सकते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि सूखे मेवे एंटी-ऑक्सिडेंट गुण युक्त होते हैं, जो मुंहासों से राहत दिलाने में मदद कर सकता है। इसके अतिरिक्त, सूखे मेवे सेलेनियम, विटामिन- ई, कॉपर, मैग्नीशियम, मैंगनीज, पोटेशियम, कैल्शियम और आयरन युक्त होता है, जो स्वस्थ त्वचा के लिए आवश्यक हैं।

सालमन मछली और मैकेरल मछली

सालमन, मैकेरल और सार्डिन जैसी मछलियां ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड के बेहतरीन स्रोत हैं। ये दोनों फैटी एसिड हार्मोन टेस्टोस्टेरोन को नियंत्रित कर सकते हैं, जो मुंहासों का कारण माना जाता है। इसके अतिरिक्त, ये फैटी एसिड आपकी त्वचा को सूरज की हानिकारक किरणों के प्रभाव से बचाने, त्वचा के कैंसर के जोखिम को कम करने और किसी भी तरह के दाग-धब्बों को दूर करने में सहायक हैं। इसलिए डाइट में इन मछिलयों को जरूर शामिल करें।
अगर आपको मुंहासें की समस्या है और आप जंक फूड, एनर्जी ड्रिंक, शराब, दुग्ध उत्पाद, रिफाइंड खाद्य पदार्थ और मसालेदार खाद्य पदार्थ का सेवन करते हैं तो आज से ऐसा करना छोड़ दें क्योंकि ये आपकी समस्या बढ़ा सकते हैं।

इस बार आसान नहीं चुनावी डगर

*पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव लंबे समय तक याद रहेंगे

*चुनाव हर भारतीय की भागीदारी का उत्सव रहे हैं

*चुनाव प्रचार राजनीतिक दलों-प्रत्याशियों के लिए

किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं रहा

राजकुमार सिंह –
अभूतपूर्व कोरोना प्रतिबंधों के साये में हो रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव लंबे समय तक याद रहेंगे। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनाव किसी लोक पर्व से कम नहीं रहे। धर्म-क्षेत्र विशेष के दायरे से परे चुनाव हर भारतीय की भागीदारी का उत्सव रहे हैं। इसलिए जन साधारण का उत्साह देखते ही बनता रहा है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से पहले ग्रामीण क्षेत्रों में तो चुनाव प्रचार किसी दीर्घकालीन मेले जैसा ही नजर आता था, पर इस बार सब कुछ बदला-बदला सा है। सभाओं में उपस्थिति की संख्या सीमित है तो घर-घर जन संपर्क का सिलसिला अरसे बाद लौटा है। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के समय तेज रफ्तार से बढ़ते कोरोना केस, अब आंकड़ों में तो कम होते नजर आ रहे हैं। इसे साहस कहिए या दुस्साहस– तेजी से खुलते जहान के बीच लोगों में कोरोना से जान का डर भी कम होता नजर आ रहा है। सात चरणों में मतदान वाले उत्तर प्रदेश में पहले चरण में मतदान का अच्छा प्रतिशत भी यही बताता है। तमाम तरह के प्रतिबंधों के बीच चुनाव प्रचार राजनीतिक दलों-प्रत्याशियों के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं रहा। यह अलग बात है कि राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और अमर्यादित भाषा का चिर-परिचित खेल इस बीच भी बदस्तूर जारी है। शायद इसलिए भी कि ऐसा करने से असल मुद्दों से ध्यान हटाने में मदद मिलती है।
बेशक छोटे राज्यों उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा के लिए भी विधानसभा चुनाव समान रूप से महत्वपूर्ण हैं, लेकिन राज्यों की राजनीति अंतत: देश की राजनीति भी तय करती है। इसीलिए उत्तर प्रदेश और पंजाब सरीखे बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव की चर्चा कुछ ज्यादा है। उत्तर प्रदेश लोकसभा सदस्य संख्या की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है। इसीलिए माना जाता है कि देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से निकलता है। उत्तर प्रदेश ने ही देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिये हैं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को केंद्र में लगातार दूसरी बार सत्तारूढ़ करने में भी उत्तर प्रदेश की निर्णायक भूमिका रही है। इसलिए स्वाभाविक ही उत्तर प्रदेश में चुनाव से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जुड़ी हर गतिविधि पर देश ही नहीं, दुनिया की भी नजरें लगी हैं। पिछली बार 300 से भी ज्यादा सीटें जीत कर उत्तर प्रदेश में बनी योगी आदित्यनाथ सरकार को इस बार कड़ी चुनावी चुनौती मिल रही है—यह बात भाजपा नेता भी निजी बातचीत में स्वीकारते हैं। पिछली बार दो लड़कों (अखिलेश यादव-राहुल गांधी) की जोड़ी भाजपा का विजय रथ रोकने में नाकाम रही थी। इस बार अखिलेश यादव-जयंत चौधरी के रूप में दो लड़कों की नयी जोड़ी भाजपा से मुकाबिल है। बेशक इस सपा-रालोद गठबंधन में अन्य छोटे दल भी शामिल हैं, लेकिन भाजपाई रणनीतिकारों के पसीने ये दो लड़के ही छुड़ा रहे हैं। वजह भी साफ है : 10 फरवरी को पहले चरण में जिन 58 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ है, उनमें से भाजपा ने पिछली बार 53 सीटें जीती थीं। कारण था : 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद परंपरागत जाट-मुस्लिम समीकरण का टूट जाना। दंगों के बाद हुए ध्रुवीकरण से नलकूप सूख गया और साइकिल पंचर हो गयी–सिर्फ कमल खिला, और खूब खिला।
पहले चरण का मतदान हो चुका है। मतगणना तो 10 मार्च को होगी, लेकिन उससे पहले भी यह बात दावे से कही जा सकती है कि 2017 के चुनाव परिणामों की पुनरावृत्ति इन सीटों पर हरगिज नहीं होने जा रही। यह उत्तर प्रदेश की चुनावी चिंता का ही परिणाम था कि मजबूत प्रधानमंत्री की छवि वाले नरेंद्र मोदी देश से क्षमा याचना सहित तीनों विवादास्पद कृषि कानून वापस लेने को बाध्य हुए, क्योंकि दिल्ली की दहलीज पर साल भर चले किसान आंदोलन में पंजाब और हरियाणा के बाद सबसे बड़ी और मुखर भागीदारी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ही थी। साल भर बाद तीन कृषि कानूनों की वापसी से भी भाजपा को वांछित राजनीतिक लाभ नहीं मिला—इसका संकेत चुनाव प्रचार के बीच भी जयंत चौधरी पर डोरे डालने तथा मतदाताओं को बार-बार दंगों की याद दिलाने से मिल जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ही 55 विधानसभा सीटों पर 14 फरवरी को मतदान होना है। कुल मिला कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ये 103 सीटें शेष पांच चरणों के मतदान की दिशा भी तय कर सकती हैं। अगर किसान आंदोलन से जाट-मुस्लिम विभाजन की खाई पटी है और सवालिया निशानों वाले अतीत के बावजूद अखिलेश, जयंत के साथ मिलकर दो लड़कों की छवि से निकल कर विश्वसनीय विकल्प का विश्वास मतदाताओं में जगाने में सफल रहे हैं तो तय मानिए कि उत्तर प्रदेश की सत्ता का सूर्य इस बार पश्चिम से ही उदय होगा। बेशक अंतिम परिणाम 10 मार्च को ही पता चलेंगे, लेकिन अगर इन 103 सीटों पर भाजपा आधी ही रह गयी तो उसके लिए 403 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी 202 का आंकड़ा छू पाना आसान तो हरगिज नहीं होगा। हां, अंतिम तस्वीर उभरने में अहम भूमिका उस बसपा की रह सकती है, जिसे फिलहाल प्रेक्षक ज्यादा महत्व नहीं दे रहे। दलित वर्ग में जाटव मतदाता अभी भी मायावती के साथ एकजुट हैं। अगर बसपा परंपरागत रूप से मुस्लिम मतों में हिस्सा बंटाने में सफल रही तो उसका सीधा लाभ भाजपा को ही मिलेगा, जो जातिगत राजनीति की चुनौतियों को हिंदुत्व के नारे से नाकाम करने की जांची-परखी रणनीति पर चल रही है। संक्षिप्त में कहें तो अगर अखिलेश अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ मिल कर भाजपा के कमंडल से मंडल के बड़े हिस्से को निकाल पाने में सफल रहे तो लखनऊ ही नहीं, दिल्ली की राह भी भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले तक पंजाब की राजनीति मुख्यत: दो दलीय नहीं तो दो ध्रुवीय ही रही है। 2014 में चार लोकसभा सीटें जीत कर आम आदमी पार्टी पंजाब की तीसरी बड़ी राजनीतिक धारा बनी तो 2017 के विधानसभा चुनाव में सत्ता की दावेदार भी बन गयी, पर अंतिम क्षणों में बाजी पलटी और कांग्रेस सत्ता पर काबिज हो गयी। पिछले पांच सालों में पंजाब की राजनीति ने कई रंग बदले हैं। जिन कैप्टन अमरेंद्र सिंह को चेहरा बना कर पिछली बार कांग्रेस ने सत्ता हासिल की थी, उन्हें ही बेआबरू कर सत्ता से बेदखल कर दिया गया। कैप्टन अमरेंद्र की विदाई में निर्णायक भूमिका भाजपाई से कांग्रेसी बने जिन नवजोत सिंह सिद्धू ने निभायी थी, उनके हिस्से सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष पद ही आया और मुख्यमंत्री पद के लिए चरणजीत सिंह चन्नी की लॉटरी खुल गयी। सुनील जाखड़ या सुखजिंदर सिंह रंधावा को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए सिद्धू भी चन्नी के नाम पर मान गये। शायद उन्हें उम्मीद रही कि नये चुनाव के बाद तो वह ही मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार होंगे, लेकिन सर्वाधिक प्रतिशत दलित मतदाताओं वाले पंजाब में कांग्रेस ने चन्नी को चुनावी ट्रंप कार्ड के रूप में इस्तेमाल करना चाहा तो सिद्धू के होश उड़ गये। अभी तक दबाव की राजनीति में सफल रहे सिद्धू ने इस बार मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के लिए कांग्रेस आलाकमान पर जो दबाव बनाया, वह उन पर ही भारी पड़ गया। चन्नी के मुख्यमंत्रित्व में चुनाव लड़ते हुए किसी अन्य को चेहरा घोषित करना आत्मघाती होगा—यह समझने में कांग्रेस आलाकमान को भी मुश्किल नहीं हुई। चेहरा घोषित किये बिना चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिलने पर तो शायद सिद्धू के लिए संभावनाओं के द्वार खुले भी रहते, पर उतावलेपन में गुरु खुद तो गुड़ ही रह गये, जबकि चन्नी शक्कर बन गये।
विरोधी भी मानते हैं कि उठापटक के बावजूद कांग्रेस पंजाब में सत्ता की दावेदार है, पर उसका मुकाबला किससे होगा—इस पर प्रेक्षक भी एकमत नहीं हैं। दबाव में ही सही, आम आदमी पार्टी ने इस बार सांसद भगवंत मान को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है, पर पंजाब के मतदाता ऐसी छवि के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनायेंगे—यह देखना दिलचस्प होगा। जैसे-जैसे चुनाव प्रचार आगे बढ़ रहा है, शिरोमणि अकाली दल-बसपा गठबंधन भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है। भाजपा ने भी बागी कांग्रेसी कैप्टन अमरेंद्र सिंह और बागी अकाली सुखदेव सिंह ढींढसा के दलों के साथ गठबंधन कर चुनावी मुकाबले में चौथा कोण बनने की कोशिश की है। हत्या और बलात्कार सरीखे अपराधों में सजा काट रहे विवादास्पद डेरा प्रमुख राम रहीम को जेल से मिली फरलो को भी जानकार इसी रणनीति से जोड़ कर देख रहे हैं, लेकिन लगता नहीं कि त्रिशंकु विधानसभा बने बिना पंजाब के सत्ता समीकरणों में भाजपा के लिए कोई भूमिका बन पायेगी।

मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर करने वाले यात्री डिजिटल ऐप्स का लाभ ले पाएंगे

सेंट्रल रेलवे (मुंबई डिवीजन) और दुनिया का पहला हाइपरलोकल एज क्लाउड प्लेटफॉर्म शुगरबॉक्स नेटवर्क्स के साथ लोकल ट्रेनों में यात्रियों को सफर के दौरान मनोरंजन उपलब्ध कराने के लिए हुये अनुबंध को मंजूरी मिल गई है। इसके लिए मध्य रेलवे ने शुगरबॉक्स कंपनी से हाथ मिलाया है, जो ट्रेनों में मनोरंजक कॉन्टेंट मुहैया कराएगी। रेलवे को यह कंपनी 5 साल में 8.17 करोड़ रुपये देगी। मध्य रेलवे की लोकल ट्रेनों में अब ऐसे डिवाइस लगाए गए हैं, जिससे यात्रियों का मनोरंजन होगा। यात्री अपने मोबाइल पर ही फिल्में, वेब सीरीज या सीरियल का लुत्फ बिना इंटरनेट का इस्तेमाल किए ही उठा सकेंगे। मध्य रेलवे के यात्री अपनी पूरी ट्रेन यात्रा के दौरान मांग पर प्रचलित व प्रासंगिक डिजिटल ऐप्स का भी लाभ ले पाएंगे।

शुगरबॉक्स नेटवर्क्स के को-फ़ाउंडर रोहित परांजपे के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार ट्रेन के हर कोच में दो डिवाइस लगाए गए हैं, जो लोकल एरिया नेटवर्क के तौर पर काम करेंगे। ऐप पर लॉगिन करने के बाद यात्रियों को अपना  मोबाइल नंबर डालना पड़ेगा और ओटीपी मिलने के बाद उनका फोन कनेक्ट हो जाएगा। यात्रीगण कॉन्टेंट को डाउनलोड भी कर सकते हैं। मध्य रेलवे के महाप्रबंधक अनिल कुमार लाहोटी का मानना है कि यह साझेदारी आधुनिकतम प्रौद्योगिकी के ज़रिए अपने  यात्रियों को प्रदान किए जाने वाले सुविधाओं को बढ़ाने व मध्य रेलवे के भविष्य के लक्ष्यों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

राज्यपाल श्री रमेश बैस और मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने वीर शहीद एसबी तिर्की के पार्थिव शरीर पर पुष्प चक्र अर्पित कर दी श्रद्धांजलि

*सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडेंट और झारखंड निवासी श्री एसबी तिर्की कल

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में उग्रवादियों के साथ मुठभेड़ में हुए थे शहीद

*राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने शहीद की वीरता को किया नमन

  दुख की इस घड़ी में परिजनों का ढाढ़स बंधाया

*शहीदों के परिजनों आश्रितों की सहायता के लिए कमेटी गठन

पर किया जा रहा विचार  –  श्री रमेश बैस, राज्यपाल

 *शहीद के परिजनों के साथ पूरी संवेदना है

 मदद के लिए सरकार हमेशा उनके साथ  खड़ी है – श्री हेमन्त सोरेन, मुख्यमंत्री

 रांची, राज्यपाल श्री रमेश बैस और मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने छत्तीसगढ़ के बीजापुर में कल उग्रवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद 168 बटालियन,   सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडेंट एस बी तिर्की के पार्थिव शरीर पर पुष्प चक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी और उनकी वीरता को नमन किया । राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने शहीद के शोकाकुल परिजनों से मुलाकात कर उनका ढाढ़स बंधाया।  उन्होंने कहा कि शहीद के परिजनों की सहायता के लिए सरकार हमेशा खड़ी रहेगी ।

उग्रवादियों को मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं जवान

 राज्यपाल ने कहा कि देश की खातिर हमारा एक और वीर जवान शहीद हो गया ।सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडेंट एसबी तिर्की की शहादत कभी व्यर्थ नहीं जाएगी। उग्रवादी जिस तरह कायराना हरकत कर रहे हैं, उसका उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।  झारखंड और छत्तीसगढ़ में उग्रवादियों का सुरक्षा बल के जवान डटकर मुकाबला कर रहे हैं ।ऐसे में  अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान कभी-कभी जवान शहीद हो जाते हैं ।आगे ऐसी घटना नहीं हो, इसके लिए सभी ठोस कदम उठाए जाएंगे । राजपाल ने कहा कि शहीदों के परिजनों की सहायता के लिए कमेटी गठन पर सरकार द्वारा विचार किया जा रहा है। उन्होंने भगवान से दिवंगत आत्मा को शांति और अपने चरणों में जगह देने की कामना की।

इस घटना से मर्माहत जरूर हुए हैं, लेकिन मनोबल में नहीं आएगी कोई कमी

 मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड के एक और वीर  सपूत ने देश की रक्षा के लिए अपने को बलिदान कर दिया।उनकी शहादत पर हम सभी को गर्व है। उन्होंने कहा कि उग्रवादियों के इस तरह की कायराना हरकत से हम मर्माहत जरूर हुए हैं। हमने एक बार फिर अपने परिवार के एक सदस्य को खोया है, लेकिन इससे जवानों के मनोबल में कोई कमी नहीं आएगी। हमारे जवान और मजबूती तथा शक्ति के साथ ऐसे तत्वों को मुंहतोड़ जवाब देंगे। उग्रवादियों के नापाक इरादे को नेस्तनाबूद करेंगे ।मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी पूरी संवेदना शहीद के परिजनों के साथ है। उनकी मदद के लिए सरकार हमेशा उनके साथ खड़ी है। मुख्यमंत्री ने ईश्वर से दिवंगत आत्मा को शांति और शोकाकुल परिजनों को दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करने की कामना ईश्वर की।

मुख्य सचिव श्री सुखदेव सिंहमुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजीव अरुण एक्का, एडीजी अभियान श्री संजय आनंद लाटकर, सीआरपीएफ के झारखंड सेक्टर के आईजी श्री राजीव कुमार समेत अन्य वरीय पदाधिकारी तथा शहीद की धर्मपत्नी श्रीमती पुष्पा मंजुला तिर्की एवं पिता श्री स्टीफन तिर्की और अन्य परिजनों ने पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी।

*लालमटिया डैम में एशियन वाटर बर्ड्स सेंसस 2022 के तहत हुई पक्षी गणना

*लालमटिया डैम में बर्ड वाचिंग की सुविधा विकसित कर

इको-टूरिज्म को दिया जाएगा बढ़ावा

लातेहार, लातेहार जिले के ललमटिया डैम में वन विभाग द्वारा एशियन वाटरबर्ड सेंसस 2022 के तहत एशियाई जल पक्षियों की गणना की गई। कार्यक्रम में उपायुक्त अबु इमरान मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। वन विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुख्य रूप से स्थानीय वाटर बर्ड्स व माइग्रेटरी बर्ड्स की पहचान एवं गणना की गई। वन विभाग की टीम द्वारा पक्षियों की फोटोग्राफी की गयी l उपायुक्त लातेहार, अबु इमरान ने इस मौके पर कहा कि लातेहार जिला में देखने के लिए जंगल, पहाड़, जलप्रपात के अलावा विभिन्न प्रजातियों के सुन्दर पक्षी भी हैं l ठंड के मौसम में विभिन्न प्रजाति के प्रवासी पक्षी लातेहार जिला के जलाशयों को अपना आश्रय बनाते हैं l उन्होंने कहा कि लातेहार जिला में बर्ड वाचिंग एवं इको टूरिज्म की काफ़ी संभावना है l लातेहार में एशियन वाटरबर्ड्स सेंसस का आयोजन काफ़ी अच्छी पहल है l वन प्रमंडल पदाधिकारी रोशन कुमार ने प्रवासी एवं स्थानीय वाटर बर्ड्स की पहचान के संदर्भ में जानकारी दी l उन्होंने पर्यावरण के दृष्टिकोण से पक्षियों के महत्व के बारे में बताया l वहीं पक्षियों के प्रति लोगों में जागरूकता लाने एवं पक्षियों के संरक्षण की बात कही l

गणना के दौरान कॉमन किंगफिशर, रेड नेप्ड आईबिस, ओपन बिल स्टॉर्क, कॉमन कॉन्मोरेंट आदि प्रजातिया पाई गई।

मौके पर लालमटिया डैम में बर्ड वाचिंग टावर बनाने तथा इको टूरिज्म को विकसित करने पर चर्चा की गर्वl

इसके साथ ही उपायुक्त लातेहार अबु इमरान ने लालमटिया डैम के सौंदर्यीकरण कार्य का निरीक्षण किया l उन्होंने लालमटिया डैम में कैफ़ेटेरिया निर्माण हेतु स्थल का अवलोकन किया l

मौके पर डीपीओ संतोष कुमार भगत ,नजारत उपसमाहर्ता शिवेंंद्र कुमार सिंह, जिला मत्स्य पदाधिकारी दिव्या गुलाब बा एवं अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कैथलैब का ऑनलाइन उद्घाटन किया

*मुख्यमंत्री  ने  कहा- स्वास्थ्य क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा निवेश हो

*मुख्यमंत्री बोले- राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने में

सरकारी के साथ निजी अस्पतालों का भी अहम योगदान

रांची, राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार और बेहतर बनाने की दिशा में सरकार लगातार प्रयास कर रही है । लोगों को अपने ही राज्य में अच्छी चिकित्सीय सुविधाएं मिले, यह हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है । मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने आज सेंटेविटा अस्पताल, रांची के  कार्डियक यूनिट में कैथलैब का ऑनलाइन उद्घाटन करते हुए ये बातें कहीं। उन्होंने विश्व स्तरीय और अत्याधुनिक कैथलैब स्थापित करने के लिए अस्पताल प्रबंधन को बधाई और शुभकामनाएं दी।

 मरीजों को बड़े शहरों के बड़े अस्पतालों का रुख नहीं करना पड़े

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में ऐसी मजबूत स्वास्थ्य संरचना बनाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि यहां के मरीजों को इलाज के लिए राज्य के बाहर के बड़े शहरों कि बड़े अस्पतालों का रुख नहीं करना पड़े।  इससे ना सिर्फ उनका अपने ही घर में बेहतर इलाज हो सकेगा, बल्कि इसमें होने वाले भारी भरकम खर्च से भी निजात मिलेगी। इसके अलावा दूरदराज के अस्पतालों में जाने से होने वाली विभिन्न परेशानियों से भी निजात मिलेगी।

स्वास्थ्य सुविधाओं में लगातार हो रही बढ़ोतरी

मुख्यमंत्री ने कहा कि चाहे सरकारी अस्पताल हो या निजी, यहां अत्याधुनिक चिकित्सीय सुविधाओं में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। विशेषकर रांची में अब गंभीर से गंभीर बीमारियों के समुचित इलाज के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हो रही है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी ज्यादा से ज्यादा निवेश हो, इसके लिए सरकार के द्वारा तमाम कदम उठाए जा रहे हैं।

 

 स्वास्थ्य क्षेत्र में कई चुनौतियों से निपटना है

मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार कई चुनौतियां आ रही हैं, जिससे निपटना है। उन्होंने कहा कि पिछले 2 वर्षों से कोविड-19 महामारी से लगातार हम जंग कर रहे हैं ।अपने सीमित संसाधनों तथा बेहतर प्रबंधन के माध्यम से इस महामारी को काफी हद तक काबू में करने में कामयाब रहे हैं। इसमें चिकित्सकों और चिकित्सक कर्मियों की काफी अहम भूमिका रही है ।उन्होंने यह भी कहा कि चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई है। लिहाजा, स्वास्थ संसाधनों को लगातार बढ़ाया जा रहा है। इस दिशा में सरकार पूरी तत्परता और संवेदनशीलता के साथ काम कर रही है।

इस मौके पर मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे के अलावा राज्यसभा सांसद श्री धीरज साहू, सेंटेविटा  अस्पताल के निदेशक श्री अमित साहू के अलावा कई चिकित्सक ऑनलाइन मौजूद थे।

देवा थिएटर ग्रुप के तत्वाधान में फ्री डेमो एक्टिंग क्लास का शुभारंभ

नवोदित प्रतिभाओं को प्रकाश में लाने के उद्देश्य से आदर्श नगर मुम्बई में स्थापित देवा थिएटर ग्रुप के द्वारा त्रयमासिक कैमरा एक्टिंग वर्कशॉप की शुरुआत की गई है। इस एक्टिंग वर्कशॉप का संचालन झारखंड की धरती से जुड़े अभिनेता देवानंद पासवान करते है। बॉलीवुड के चर्चित फिल्मकार राज कुमार हिरानी की फिल्म ‘पी के’ जैसी कई हिंदी फीचर फिल्मों में अभिनय का जलवा बिखेर चुके अभिनेता देवानंद पासवान को बॉलीवुड में देवा भाई के नाम से जाना जाता है। मुम्बई में अभिनय का प्रशिक्षण देने वाली कई संस्थान चल रहे हैं परंतु देवा थिएटर ग्रुप द्वारा संचालित इस वर्कशॉप की खास बात यह है कि यहाँ प्रतिदिन फ्री डेमो एक्टिंग क्लास और फ्री शो रील की व्यवस्था भी की गई है। साथ ही साथ कोर्स के दौरान प्रशिक्षुओं को मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी तथ्यों से भी अवगत कराया जाता है ताकि  भूमिका के अनुरूप पात्र जीवंत हो सके। 90 के दशक से ही देवा भाई स्टेज और फिल्म जगत में अपने अभिनय प्रतिभा के बदौलत विशिष्ट छवि कायम कर चुके हैं।

बकौल अभिनेता देवा नवोदित कलाकारों में मानवीय संवेदनाओं को आत्मसात कर कैरेक्टर में डूबने की चाहत को जगाना ही मेरा मूल उद्देश्य है ताकि पात्र मुखर हो कर स्क्रीन पर नज़र आ सके साथ ही साथ डायलॉग से जुड़े शब्दों का भाव भी अभिनय के क्रम में उभर कर सामने आए। इसके लिये हमने शॉर्ट टर्म कोर्स के लिए सहज, सरल व व्यवहारिक पाठ्यक्रम तैयार किया है।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

सोलर सिंचाई का महिला किसानों को मिल रहा लाभ

*बंजर भूमि तक पहुंची अविरल जलधार

*किसानों को मिल रहा बहुफसलीय खेती का लाभ

*ग्रामीण महिलाओं की आय दोगुनी करने की दिशा में हो रहा कार्य

 *जोहार परियोजना वरदान बन कर आया

रांची, (By Divya Rajan) सोलर पंप माउंटेड साइकिल इकाइयों से झारखण्ड के दूरस्थ क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा सुनिश्चित हो रही है। खूंटी के कर्रा स्थित सांगोर गांव की बाहलेन अब आसानी से अपने खेतों तक पानी पहुंचा पा रही हैं। यहां की 33 महिलाएं उच्च मूल्य कृषि के तहत सब्जियों की खेती कर रही हैं। झारखण्ड में छोटे एवं सीमांत किसानों के खेतों तक सिंचाई की सुविधा पहुंचाने के मुश्किल कार्य को सोलर पंप माउंटेड साइकिल के जरिए आसान बनाया गया है। जिन खेतों तक साधारण पंप से पानी पहुंचाना मुश्किल होता था, आज जोहार परियोजना के माध्यम से उत्पादक समूह की महिलाएं साईकिल आधारित सोलर पंप से छोटे–छोटे खेतों तक आसानी से सिंचाई सुविधा उपलब्ध करा रही है। साईकिल आधारित सोलर पंप सिंचाई की ऐसी आधुनिक व्यवस्था है जिसकी मदद से किसान सोलर प्लेट और पंप को साइकिल की तरह अपने खेत और नजदीकी जलाशयों तक आसानी से ले जाते हैं। बाहलेन बताती हैं, इस सोलर पंप के माध्यम से किसान अपने-अपने खेतों की सिंचाई आसानी से कर पा रहे हैं। पहले पटवन के लिए डीज़ल पंप का उपयोग करना पड़ता था, जिससे खेती में लागत बढ़ जाती थी। साइकिल आधारित सोलर पंप की मदद से किसान दिन के सात घंटे का पटवन बिना किसी खर्च के कर पा रहे हैं।

 

किसानों को मिल रहा सीधा लाभ

राज्य के 988 उत्पादक समूहों को चलंत सोलर पंप एवं 650 सोलर लिफ्ट सिंचाई उपकरण उपलब्ध कराया गया है, जिसके माध्यम से लगभग 19,650 किसानों को सीधा लाभ मिल रहा है। सोलर चलंत पंप गाँव और खेत के दुर्गम रास्तों पर भी ले जाया जा सकता है। इससे किसानों को रबी आदि की फसलों को सिंचित करने में मदद मिल रही है। आगामी 6 महीनों में कुल लिफ्ट इकाइयों की संख्या बढ़ा कर 1310 करने की योजना है। इसके एवज में 1200 इकाइयों का पंजीकरण व स्थल निरीक्षण कर अनुमोदित किया जा चुका है। वहीं आगामी 6 महीने में कुल सिंचित भूमि बढ़ा कर 20 हज़ार हेक्टेयर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है।

जोहार परियोजना वरदान बन कर आया

खूंटी के मुरहू प्रखंड स्थित पंचघाघ जलप्रपात से सटे कोलोम्दा गांव के उत्पादक समूह की 46 महिला किसान अग्रणी किसान हैं, लेकिन खेती योग्य ज़मीन होते हुए भी उपज ज्यादा नहीं हो पाती थी। उत्पादक समूह की सदस्य राधिका देवी बताती हैं कि हम वर्षों से ही खेती-बाड़ी पर निर्भर रहे हैं। हम सभी पारंपरिक ढंग से खेती करते आ रहे हैं। सिंचाई की समस्या से बहुफसलीय खेती नहीं कर पा रहे थे। लेकिन, अक्टूबर 2020 में जोहार परियोजना हमारे लिए वरदान बन कर आयी। समुदाय आधारित लिफ्ट सिंचाई इकाई की शुरुआत की गई है, इस सिंचाई इकाईं के जरिए बदलाव अब दिखने लगा है। लिफ्ट सिंचाई के आने से हम आसानी से तीन फसल ले पा रही हैं। इस तरह खेती में उत्पादकता बढ़ाने एवं किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी के लिए जोहार परियोजना मील का पत्थर साबित हो रहा है। किसानों को सिंचाई सुविधा से जोड़कर फसल उत्पादन क्षमता एवं आमदनी में बढ़ोतरी करने के लिए सोलर आधारित सिंचाई की सुविधा से राज्य के किसानों को जोड़ा जा रहा है। इस पहल की खासियत है कि सिंचाई के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण, सिंचाई इकाईं का उपयोग भूगर्भ जल की निकासी के लिए न करके आस-पास के सतही जलस्रोतो के जरिए सिंचाई की सुविधा बहाल की जाती है, ताकि भूगर्भ जलस्तर बरकरार रहे।

करीब 19650  किसानों को मिल रही सौर लिफ्ट सिंचाई की सुविधा

जोहार परियोजना के तहत ग्रामीण महिलाओं की आय दोगुनी करने की दिशा मे कार्य किये जा रहे है, इसी कड़ी में उत्पादक समूह से जुड़ी महिला किसानों को उच्च मूल्य कृषि से भी जोड़ा जा रहा है, ताकि अच्छी उपज और बड़े बाजार व्यवस्था के जरिए उनकी आमदनी में वृद्धि हो सके। किसान पूरे साल खेती कर सके, इसके लिए परियोजना के तहत सिंचाई की सुविधा भी उपलब्ध कराई जा रही है। उत्पादक समूह से जुड़े किसानों को 90 प्रतिशत अनुदान पर सोलर लिफ्ट सिंचाई उपलब्ध कराया गया है। राज्य भर में अब तक 650 इकाइयों को वाटर यूजर ग्रुप के माध्यम से सफलतापूर्वक संचालित किया जा रहा है। करीब 650 इकाइयों से कुल 8745 हेक्टेयर (लगभग 21,600 एकड़) खेत में सिंचाई के लिए सालों भर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है।

जोहार परियोजना अंतर्गत उत्पादक समूहों के जरिए महिलाओं का वाटर यूजर ग्रुप बनाकर पानी की कमी वाले इलाकों में सिंचाई की सुविधा मुहैया कराई जा रही है। सोलर आधारित लिफ्ट सिंचाई इकाई एवं साइकिल माउंटेड सोलर पंप ग्रामीण महिलाओं के वाटर यूजर ग्रुप को उपलब्ध कराया गया है। राज्य के करीब 20 हजार किसान परिवारों को इस पहल के जरिए सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है।

 

भूख न लगने की समस्या से परेशान है

*तो इन घरेलू उपायों को जरूर अपनाएं

सही समय पर भोजन ग्रहण करना बहुत ही जरूरी है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थो यानी संतुलित भोजन का सेवन करना। वहीं, कुछ लोग भूख न लगने से भी परेशान रहते हैं जिससे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पडऩा शुरू हो जाता है। इसलिए आज हम आपको कुछ ऐसे घरेलू उपायों के बारे में बताएंगे, जिनसे आप जल्द ही भूख न लगने की समस्या से निजात पा सकते हैं। आइए जानें।

भारतीय व्यंजनों में इस्तेमाल किए जाने वाला धनिया भूख बढ़ाने में है मददगार

आधा कप धनिया (पत्तेदार) और आवश्यकतानुसार पानी। इस्तेमाल करने का तरीका: सबसे पहले मिक्सी में धनिए की पत्तियां और पानी डाल लें, फिर मिश्रण को ग्राइंड करके जूस बना लें। अब इस जूस का खाली पेट सेवन करें। समस्या से जल्द निजात पाने के लिए एक हफ्ते तक रोज सुबह इस जूस का सेवन करें। फायदा: धनिए की पत्तियां एंटीइंफ्लेमेटरी गुणों से समृद्ध होती हैं, जो पाचन क्रिया में सुधार कर भूख को बढ़ाने में सहायक हैं।

अजवाइन के साथ गुनगुने पानी का सेवन

एक चम्मच अजवाइन और एक गिलास गुनगुना पानी। इस्तेमाल करने का तरीका: सबसे पहले हाथ में अजवाइन लें और गुनगुने पानी के साथ उसका सेवन झट से कर लें। समस्या से जल्द निजात पाने के लिए दिन में एक ही बार इस उपाय का इस्तेमाल करें। फायदा: अजवाइन एंटी-फ्लैटुलेंस के रूप में काम करने के अलावा पाचन एंजाइमों के स्राव में भी मदद करता है, जो भूख को उत्तेजित करने का काम करते हैं।

भूख न लगने की समस्या से जल्द निजात दिलाता है मेपल सिरप

आधा कप आर्गेनिक मेपल सिरप, नींबू के रस की पांच-छह बूंदें और पांच कप पानी। इस्तेमाल करने का तरीका: एक पैन में पानी और मेपल सिरप डालकर कुछ मिनट गर्म कर लें। फिर मिश्रण को ठंडा कर उसमें नींबू का रस मिलाएं। अब किसी एयरटाइट कंटेनर में इस मिश्रण को स्टोर कर लें और जरूरत पडऩे पर दो-दो चम्मच पिएं। फायदा: यह उपाय पाचन क्रिया और इम्यून सिस्टम को मजबूत कर भूख बढ़ाने में मदद करता है।

पाचन स्वास्थ्य को ठीक कर भूख बढ़ाने में कारगर है आंवले के जूस का सेवन

20-30 एमएल आंवले का रस और आधा कप पानी। इस्तेमाल करने का तरीका: आंवला का जूस बाजार में आसानी से मिल जाता है, बस आपको आधे कप पानी में 20-30 एमएल आंवला का रस डालकर उसका सेवन करना है। समस्या से जल्द निजात पाने के लिए एक हफ्ते तक रोज सुबह इस जूस का सेवन करें। फायदा: आंवला विटामिन-सी और गैस्ट्रोप्रोटेक्टिव जैसे गुणों से समृद्ध होता है, जो इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के साथ-साथ भूख बढ़ाने में भी मददगार है।  (एजेंसी)

*मैरिटल रेप या वैवाहिक दुष्कर्म के सवाल पर अदालत में..

*महिलाएं घर में शारीरिक संबंधों के नाम पर हिंसा झेलने को मजबूर हैं

*पति-पत्नी के जिन संबंधों को बिल्कुल निजी माना जाता है

*वहां कानून, वकील, सरकार और स्वयंसेवी समूह घुसे चले आ रहे हैं

*न्याय की कसौटी पर खरा भी उतरे कानून

– क्षमा शर्मा –
मैरिटल रेप या वैवाहिक दुष्कर्म के सवाल पर इन दिनों अदालत में बहस चल रही है। बताया जा रहा है कि महिलाएं घर में शारीरिक संबंधों के नाम पर हिंसा झेलने को मजबूर हैं। इसलिए मैरिटल रेप के खिलाफ कानून बनना चाहिए। पत्नी अगर सहमत न हो तो पति को संसर्ग नहीं करना चाहिए। बहस के दौरान माननीय न्यायाधीश ने कहा भी कि पत्नी की कंसेंट या सहमति पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया जा रहा है।
अफसोस कि पति-पत्नी के जिन संबंधों को बिल्कुल निजी माना जाता है, वहां कानून, वकील, सरकार और स्वयंसेवी समूह घुसे चले आ रहे हैं। विवाह यदि दो लोगों के बीच हुआ है, तो तीसरी पार्टी आखिर उनके बीच क्यों घुसना चाहती है। वैसे भी यह कैसे पता चलेगा कि पति ने पत्नी के साथ जबर्दस्ती की। मैरिटल रेप के पक्ष में कानून बनाने वाले कहेंगे कि इसे पत्नी के कहे से माना जाएगा। यानी कि पत्नी ही पहली और आखिरी गवाह और प्रमाण होगी। पति के कहे या न कहे के कोई मायने नहीं होंगे। पत्नी के कहते ही पति को अपराधी मान लिया जाएगा। कुछ लोग पत्नी को अनपेड सेक्स वर्कर कह रहे हैं। एक शादी और इतनी तरह की मुसीबतें तो क्या ऐसा दिन दूर नहीं, जब लड़के शादी ही नहीं करेंगे। मेरे एक परिजन बहुत पहले इंग्लैंड में थे। उन्होंने बताया था कि वहां बड़ी संख्या में लोग शादी ही नहीं करते हैं।
हम परिवार नाम की संस्था को शायद सिरे से खत्म करना चाहते हैं। इसके बरक्स यह देखना दिलचस्प है कि एक ओर यूरोप और अमेरिका में बड़ी संख्या में लोग परिवार की वापसी के बारे में बातें कर रहे हैं। कोरोना महामारी के बाद यहां के लोग मनुष्य या ह्यूमन रिसोर्स की जरूरत और महत्व को अधिक महसूस कर रहे हैं। यह ह्यूमन रिसोर्स परिवार के सदस्यों के रूप में ही अधिक से अधिक मिल सकता है। और एक हम हैं कि परिवार किस तरह टूटे, किस तरह उसे एक यूनिट के रूप में रहने ही नहीं दिया जाए, इसकी जुगत भिड़ा रहे हैं। पश्चिमी विचार जिन अतियों से कराह रहा है, हम उनकी तरफ सिर के बल दौड़ रहे हैं। कानून की आड़ लेकर असली निशाना परिवार ही है। परिवार अगर हो तो किसी तीसरे को घर में घुसने में दिक्कत होती है। तीसरी पार्टी अक्सर आपके घर में जब घुसती है तब किसी अच्छे विचार या शुभकामनाओं के साथ नहीं, बल्कि तोड़-फोड़ के लिए ही। दो बिल्लियों की लड़ाई में तीसरी पार्टी बंदर की क्या भूमिका होती है, वह कहानी तो आपने सुनी ही होगी। परिवार में पत्नी को देवी और पति को राक्षस मानने की सोच अगर है, तो परिवार बसाने की क्या जरूरत। परिवार एक-दूसरे की सहायता और बढ़ोतरी के लिए होने चाहिए, न कि सतत् युद्ध में रहने के लिए। स्त्रीवादी सोच के तहत महिलाओं को अधिकार मिलें, उनकी प्रगति हो, यह तो अच्छी बात है, लेकिन इसी सोच के तहत परिवार में लगातार युद्ध की स्थिति हो, तो यह ठीक नहीं है। तब उस स्थिति को चुनना ही क्यों चाहिए। वह विचार सीधे हमारे बेडरूम में घुसा चला आ रहा है, जिसकी जड़ें कहीं ओर हैं।
पति को देवता मानना या खलनायक मानना दोनों ही तरह की सोच अतिवादी सोच है। इन दिनों आपने देखा होगा कि पत्नी की मत्यु चाहे जिस कारण से हुई हो, पुलिस और पत्नी के घर वाले सबसे पहला शक पति और उसके घर वालों पर करते हैं। उन्हें ही पकड़ा जाता है। स्त्रीवादी विमर्शों ने कुछ ऐसा रूप धरा है कि जिस घर में स्त्री रहती है, वहीं उसके सबसे अधिक दुश्मन बताए जाते हैं। इसीलिए सबसे पहले उन्हीं पर शक किया जाता है, उन्हें ही पकड़ा जाता है। महिला ने अगर आत्महत्या की हो, तो सौ में से सौ बार उसे दहेज हत्या कह दिया जाता है। अदालतें कह भी चुकी हैं कि हर आत्महत्या दहेज हत्या नहीं होती है। मगर कौन सुनता है।
यदि हम स्त्री के मानव अधिकार और कानूनी अधिकारों की बातें करते हैं, तो पुरुषों के मानव अधिकार और कानूनी अधिकारों को क्यों भूल जाते हैं। क्या पुरुष पैदाइशी खलनायक होते हैं। क्या उन्हें पैदा ही नहीं होना चाहिए। क्या उनका जीवन फूलों से भरा है, वहां कोई कष्ट नहीं। एनसीआरबी के आंकड़ों को देखें, तो हर साल छियानवे हजार पुरुष आत्महत्या करते हैं। इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद इस बारे में कोई चर्चा तक नहीं होती। इन आत्महत्याओं का कारण पारिवारिक दबाव, कलह बताया जाता है।
अपने देश में स्त्री कानून बेहद एकपक्षीय हैं। वे स्त्री के अधिकारों की बातें करते हैं और अपनी मूल प्रवृत्ति में तानाशाहीपूर्ण हैं। वे दूसरे पक्ष को अपनी बात कहने तक की आजादी नहीं देते। ऐसे जेंडर बायस कानून क्यों होने चाहिए। अदालतें अपने न्याय में स्त्री और पुरुष का भेद क्यों करें। वे सभी को न्याय देने के लिए होती हैं। इसलिए कानूनों को जेंडर न्यूट्रल होना चाहिए। जांच एजेंसियों की मानें तो दहेज प्रताडऩा संबंधी कानून, यौन प्रताडऩा और दुष्कर्म इनका बहुत दुरुपयोग भी हो रहा है। बड़ी संख्या में ऐसी शिकायतें झूठी भी पाई जाती हैं। लेकिन चर्चा अक्सर उस समय होती है, जब किसी अपराध और अपराधी का जिक्र होता है। कितने लोग अपराधी थे ही नहीं, उन्हें झूठा फंसाने की कोशिश की गई- इस पर चर्चा नहीं होती।
यदि मैरिटल रेप या वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाया जाएगा तो इसके खतरे भी यही हैं कि इसे साबित कैसे किया जाएगा। क्या पत्नी की गवाही और उसे सत्यवादी हरिश्चंद्र मान लेना, उसी के आधार पर पति को सजा देना मानवीयता और मानवीय अधिकारों के खिलाफ नहीं होगा। सिर्फ स्त्रीवादी संगठनों की ही नहीं, इस मसले पर पुरुषों के लिए जो संगठन काम करते हैं, उनकी भी सुनी जानी चाहिए।
न्याय का तकाजा है कि कानून किसी के भी प्रति अन्याय न करे। वह सताई गई स्त्री और सताए गए पुरुष दोनों को न्याय दे। इस घिसे-पिटे विचार के दिन लद गए हैं कि पुरुषों के साथ भला कौन अन्याय करता है। कानून का आतंक किसी भी समस्या को हल नहीं करता।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।

पंजाबी फिल्म ‘मैं वियाह नहीं करोना तेरे नाल’ 4 मार्च को रिलीज होगी

डायमंड स्टार वर्ल्डवाइड मूवीज द्वारा निर्मित और जंगली म्यूजिक द्वारा संगीतबद्ध, पंजाबी फिल्म ‘मैं वियाह नहीं करोना तेरे नाल’ 4 मार्च 2022 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। पिछले दिनों इस फिल्म का पोस्टर और टीजर जारी किया जा चुका है साथ ही साथ इस फिल्म का टाइटल ट्रैक रिलीज़ रिलीज हो चुका है। इस रोमांटिक पेप्पी सॉन्ग में प्यार भरी नोकझोंक के साथ गुरनाम भुल्लर और सोनम बाजवा की केमिस्ट्री कमाल लग रही है।

रूपिंदर इंद्रजीत द्वारा लिखित और निर्देशित इस फिल्म की कहानी एक कैनेडा के युट्यूबर  के इर्द-गिर्द घूमती है, जो पहली बार पंजाब आता है और उसे पंजाब की एक गाँव की लड़की से प्यार हो जाता है, जो उसे भारतीय लोक कला संस्कृति की अहमियत को समझने में मदद करती है। पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री के बहुचर्चित शख्सियत गुरनाम भुल्लर और सोनम बाजवा अभिनीत ‘मैं वियाह नहीं करोना तेरे नाल’ के मार्फत इस जोड़ी ने अपने प्रशंसकों का  वेलेंटाइन डे वीक खास बनाने की ठानी है।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

एक्ट्रेस अदिति शंकर बनीं सिंगर

मशहूर डायरेक्टर शंकर की बेटी एक्ट्रेस अदिति शंकर अब सिंगर भी बन गई हैं। जी हाँ, अभिनेत्री, जो एक योग्य डॉक्टर भी है, ने अब निर्देशक किरण कोर्रापति की आगामी तेलुगु फिल्म घनी में रोमियो जूलियट नामक युगल गीत गाया है, जिसमें वरुण तेज मुख्य भूमिका में हैं।

अभिनेत्री ने ट्विटर कहा कि उन्हें मौका देने के लिए संगीत निर्देशक थमन को धन्यवाद।

अदिति ने कहा, मेरी गायन की शुरूआत! इसे आप सभी के साथ साझा करने के लिए बहुत इंतजार किया। एक और सपना सच हुआ। संगीत निर्देशक थमन सर, मुझ पर भरोसा करने और मुझे यह अवसर देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आशा है कि आप लोगों को यह पसंद आएगा।
अदिति निर्देशक मुथैया की तमिल फिल्म विरुमन में एक अभिनेत्री के रूप में अपनी शुरूआत करेंगी, जिसमें कार्थी मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म का निर्माण सूर्या के 2डी एंटरटेनमेंट ने किया है।

संजना संघी की उलझे हुए का ट्रेलर रिलीज

 11 फरवरी को आएगी फिल्म

अभिनेत्री संजना संघी अपनी सुंदरता और स्टाइल को लेकर लाइम लाइट में रहती हैं। वह बहुत जल्द अपनी शॉर्ट फिल्म उलझे हुए में नजर आएंगी। फिल्म वैलेंटाइन वीक में 11 फरवरी को अमेजन मिनी टीवी पर रिलीज होगी। फिल्म में संजना और अभय वर्मा लीड रोल में नजर आएंगे। यह एक रोमांटिक ड्रामा है, जिसका ट्रेलर आज रिलीज कर दिया गया है। ट्रेलर में प्यार, रिलेशनशिप और रोमांस का छौंक लगाया गया है।
अमेजन मिनी टीवी के यूट्यूब हैंडल पर उलझे हुए का ट्रेलर जारी किया गया है। ट्रेलर के शुरुआत में ही सेक्स और डेटिंग की बातें धड़ल्ले से की जाती हैं। संजना ने फिल्म में रसिका की भूमिका निभाई है। वहीं, अभय को वरुण की भूमिका में देखा गया है। संजना और अभय की शुरुआत में काफी नोकझोंक होती है। धीरे-धीरे उनके बीच प्यार पनपने लगता है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे दोनों के बीच लव केमिस्ट्री आगे बढ़ती है।
ट्रेलर में डेटिंग के साथ-साथ ब्रेकअप को भी दिखाया गया है। इसमें पड़ताल की गई है कि मौजूदा दौर में रिश्ते बनते-बिगड़ते रहते हैं। संजना और अभय के बीच एक किसिंग सीन की झलक भी दिखी है। दोनों ने अपने अंदाज से प्रभावित किया है।
सबसे खास बात यह है कि इस फिल्म को लोग अमेजन के शॉपिंग ऐप पर मुफ्त में देख पाएंगे। इसके लिए कोई सब्सक्रिप्शन की जरूरत नहीं होगी। फिल्म का निर्देशन सतीश राज ने किया है। यह अमेजन प्राइम की एक शॉर्ट फिल्म है, जिसे विशेष रूप से वैलेंटाइन वीकेंड के लिए बनाया गया है। इसकी कहानी एक जवान लड़की के इर्दगिर्द घूमती है, जो प्यार में अपनी पसंद को ढूढऩे की कोशिश करती हैं।
फिल्म उलझे हुए को इम्तियाज अली की बेटी इदा अली ने लिखा है। अहाब जाफरी के लॉकडाउन शॉर्ट्स स्टूडियो द्वारा फिल्म का निर्माण किया गया है। फिल्म को लेकर निर्देशक सतीश राज ने भी अपना अनुभव साझा किया है। उन्होंने कहा, फिल्म उलझे हुए एक ऐसी प्रेम कहानी है, जिससे दर्शक अपने आप को जोड़ सकेंगे। फिल्म को विश्वसनीय कलाकारों द्वारा बनाया गया है और यह आधुनिक रोमांस की नब्ज को पकड़ती है।
संजना ने फिल्म रॉकस्टार से बतौर बाल कलाकार अभिनय की दुनिया में कदम रखा था। यह फिल्म 2011 में रिलीज हुई थी। उन्हें हिन्दी मीडियम और फुकरे रिटर्न्स जैसी फिल्मों में सहायक भूमिका में देखा गया था। मुकेश छाबड़ा की दिल बेचारा से संजना लोगों के बीच चर्चा में आईं। अब जल्द ही संजना फिल्म ओम: द बैटल विन में अपनी मौजूदगी दर्ज कराएंगी। इस फिल्म में वह आदित्य रॉय कपूर के साथ इश्क फरमाती दिखेंगी। (एजेंसी)

रोजमर्रा के कई कामों को आसान बना सकते हैं फेस प्राइमर से जुड़े ये हैक्स

फेस प्राइमर एक तरह का मेकअप प्रोडक्ट है, जिसकी मदद से मेकअप बेस तैयार किया जाता है, लेकिन इसका इस्तेमाल सिर्फ यही तक सीमित नहीं है। अगर आपके पास कोई ऐसा फेस प्राइमर है, जो एक्सपायर हो चुका या फिर जिसका आप इस्तेमाल नहीं करते हैं तो उसे फेंकने के बजाय आप उसका इस्तेमाल विभिन्न तरीकों से कर सकते हैं। आइए आज आपको फेस प्राइमर से जुड़े कुछ अद्भुत हैक्स के बारे में बताते हैं।

मेकअप साफ करने के आए काम

रात को सोने से पहले अगर मेकअप न साफ किया जाए तो इससे त्वचा का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। अगर आपके पास मेकअप रिमूवर नहीं है तो आप मेकअप हटाने के लिए फेस प्राइमर का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए मेकअप वाले चेहरे पर थोड़ा सा फेस प्राइमर लगाकर थोड़ी मसाज करें। इसके बाद अपने चेहरे को टिश्यू पेपर से पोंछ लें और अंत में अपना चेहरा पानी से धो लें।

बतौर शेविंग क्रीम करें इस्तेमाल

कई लोग शेविंग क्रीम खत्म होने पर साबुन का इस्तेमाल करने लगते हैं, लेकिन इससे त्वचा रूखी लगने लगती है। इस काम के लिए फेस प्राइमर का इस्तेमाल करना फायदेमंद हो सकता है क्योंकि इससे त्वचा मॉइश्चराइज होती है। इसके अलावा, इसकी मदद से ब्लेड से त्वचा के कटने का डर भी नहीं रहता। इसके लिए शेविंग करते समय फेस प्राइमर को अपनी दाढ़ी वाले हिस्से पर लगाएं, फिर रेजर से अनचाहे बालों को साफ करें।

स्टीकर को आसानी से निकालें

अगर किसी नए बर्तन या किसी अन्य चीज पर लगे स्टीकर को निकालना काफी मुश्किल हो रहा है तो आप इस काम को आसान बनाने के लिए फेस प्राइमर का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले स्टीकर वाली जगह पर थोड़ा फेस प्राइमर लगाकर उसे कुछ मिनट के लिए ऐसे ही छोड़ दें। ऐसा करने से स्टीकर्स की पकड़ कमजोर हो जाएगी, फिर आप चुटकियों में इस स्टीकर को निकाल सकेंगे।

उंगली में फंसी हुई अंगूठी को आसानी से निकालें

अगर कोई अंगूठी उंगली में फंस जाती है तो हम उसे बाहर निकालने के चक्कर में जबरदस्ती से खींचते हैं, जिसके कारण उंगली में चोट लग जाती है। हालांकि, अब आपको ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है क्योंकि फेस प्राइमर की मदद से आप यह काम बड़ी ही आसानी से कर सकते हैं। इसके लिए बस अपनी अंगूठी वाली उंगली पर थोड़ा फेस प्राइमर लगाएं, फिर अंगूठी को निकालें। यकीनन इससे झट से अंगूठी निकल जाएगी।
बता दें कि मार्केट में फेस प्राइमर की कीमत 150 रूपये से शुरू होकर 1000 रूपये तक है। हालांकि, फेस प्राइमर का चयन अपनी त्वचा के प्रकार के अनुसार ही करें क्योंकि गलत प्राइमर कई तरह की त्वचा संबंधित समस्याओं का कारण बन सकता है।  (एजेंसी)

संगीत जगत की कोकिला आदरणीय लता दीदी

विकास कुमार –
रंगमंच एवं संगीत की दुनिया से प्रत्येक व्यक्ति प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है। भारत का शास्त्रीय संगीत केवल भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अपनी अमिट छाप बनाए हुए हैं। भारतवर्ष में बहुत से संगीतकार हुए जिन्होंने अपनी पहचान अपने स्वर संधान के परिप्रेक्ष्य में स्थापित किया। संगीत को प्रत्येक प्रकार के उत्सव धर्मिता में गायन करने की प्रथा भारतीय समाज में ही नहीं ,अपितु वैश्विक विकसित समाजों में भी इसकी परंपरा स्थापित है। वैवाहिक संबंधों, शैक्षणिक उत्सवों, खेल जगत एवं कोई भी शुभ कार्य करने के लिए विविध प्रकार के संगीत का प्रचलन होता है। संगीत की दुनिया में कोकिला के नाम से प्रसिद्ध आदरणीय लता मंगेशकर दीदी का 92 वर्ष की उम्र में, निधन की खबर केवल भारत के व्यक्तियों को ही नहीं अपितु वैश्विक समुदाय को स्तब्ध कर दिया। इनकी मृत्यु की खबर सुनकर सभी ने यही कहा की दुनिया में अब कोई दूसरी लता नहीं बन सकती है।इनका जन्म 29 सितंबर, 1929 को करहाना ब्राह्मण दादा और गोमतंक मराठा दादी के परिवार में, मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में हुआ था। उनके पिताजी का नाम पंडित दीनानाथ मंगेशकर था जो एक रंगमंच के गायक एवं कलाकार थे। अपने परिवार में एक भाई और चार बहनों में यह सबसे बड़ी थी। जिनमे भाई हृदयनाथ मंगेशकर और बहनों में उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और आशा भोसले थी। बचपन में ही लता जी का संगीत के और सर्वाधिक रुझान था । इन्होंने नव वर्ष की उम्र में अपने पिता के साथ ‘सौभाद्र’ नाटक में नारद का किरदार निभाया था इस नाटक में उन्होंने पासना बढऩा या मना नाम का गाना गाया था। बचपन से ही इनकी संगीत के क्षेत्र में सर्वाधिक रुचि थी परंतु इनके पिता जी यह नहीं चाहते थे कि वह संगीत के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाएं। इसीलिए लता जी को बचपन में संगीत क्षेत्र से जुडऩे के लिए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। प्रारंभ में छोटे-छोटे काम मिलते थे और छोटी नाट्य शालाओं में गायन करती थी। इनका सर्वाधिक हौसला बढ़ाने का कार्य इनकी बहन आशा भोसले ने किया। यद्यपि जन्म तो इनका इंदौर में हुआ था परंतु बचपन से ही यह महाराष्ट्र में पली बडी। इसलिए संगीत और अभिनय के इनको अवसर प्राप्त होते रहे। 1942 में पिता की मृत्यु के बाद (जब लता सिफऱ् तेरह साल की थीं), लता को पैसों की बहुत किल्लत झेलनी पड़ी और काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्हें अभिनय बहुत पसंद नहीं था लेकिन पिता की असामयिक मृत्यु की कारण से पैसों के लिये उन्हें कुछ हिन्दी और मराठी फिल्मों में काम करना पड़ा। अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फिल्म पाहिली मंगलागौर (1942) रही, जिसमें उन्होंने स्नेहप्रभा प्रधान की छोटी बहन की भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने कई फि़ल्मों में अभिनय किया जिनमें, माझे बाल, चिमुकला संसार (1943), गजभाऊ (1944), बड़ी माँ (1945), जीवन यात्रा (1946), माँद (1948), छत्रपति शिवाजी (1952) शामिल थी। बड़ी माँ, में लता ने नूरजहाँ के साथ अभिनय किया और उसके छोटी बहन की भूमिका निभाई आशा भोंसलेने। उन्होंने खुद की भूमिका के लिये गाने भी गाये और आशा के लिये पार्श्वगायन किया।उन्होंने अपना पहला गाना मराठी फिल्म ‘किती हसल’ (1942) के लिए गाया था। इन्होंने 20 से अधिक भाषाओं में 30,000 से अधिक गाने गाए हैं जो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए सर्वाधिक गाए हुए गाने हो सकते हैं। 1980 के बाद से फिल्मों में अधिक गाने नागा कर स्टेज शो की ओर इनका ध्यान आकर्षित हुआ। स्टेज शो में भी इनको खूब लोकप्रियता मिली और दर्शकों ने खूब पसंद किया। इनके द्वारा गाया हुआ गाना ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी’ आज भी जब गणतंत्रता दिवस या स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सुना जाता है तब वहां पर खड़े हुए संपूर्ण समुदायों के लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। क्लासिकल म्यूजिक में लता जी ने ठुमरी राग में अधिक गाने गाए हैं जिसमें ‘नदिया किनारे हेराई आई कंगना’ आदि खूब पसंद किए जाते हैं। लता जी संगीत क्षेत्र की एक मात्र व्यक्तित्व हैं जिनके जीवित में उनके नाम से उसी क्षेत्र में पुरस्कार दिए जाते हैं। यही कारण रहा कि कई विधाओं में तथा संगीत के समस्त क्षेत्रों में उनको विभिन्न प्रकार के पुरस्कारों से नवाजा गया। जिसमें 5 से अधिक (1958,1962,1965,1969,1993, तथा 1994) फिल्म फेयर पुरस्कार, तीन बार (1972,1975, एवं 1990) राष्ट्रीय पुरस्कार, 1969 में पदम भूषण, 1974 में गिनीज बुक रिकॉर्ड, 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार, 1993 में फिल्म फेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, 1996 में स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, 1997 में राजीव गांधी पुरस्कार, 2001 में नूरजहां पुरस्कार एवं 2001 में ही भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से उन्हें पुरस्कृत किया गया। लता जी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने संगीत को जिया है। यह धारणा उन समस्त महापुरुषों के लिए अवश्य होती है जो उस क्षेत्र में अपना नाम करते हैं और अपना संपूर्ण जीवन उसी क्षेत्र के लिए न्यौछावर कर देते हैं। छह दशकों में उन्होंने जो नाम और जो काम संगीत के दुनिया के लिए किया है उनके जाने के पश्चात उसकी भरपाई शायद कभी हो सकेगी! इनके जैसे संगीतकार दुनिया में कभी-कभी ही जन्म लेते हैं। यद्यपि, इनका शरीर इस भौतिक दुनिया में उपस्थित नहीं रहेगा परंतु इनके आवाज के कारण यह दुनिया सदैव इन्हें याद रखेगी और जब भी इनके द्वारा गाए हुए गाने सुने जाएंगे तब यही होगा कि भारत में एक कोकिला ऐसी भी थी। इनकी आवाज सदैव भारतीय संगीत और संगीत प्रेमियों के बीच अमर रहेगी। ऐसे महान व्यक्तित्वों के योगदान सदैव आम जनमानस के बीच प्रेरणात्मक तथ्य बनकर अमर रहते हैं। आने वाली आगामी पीढिय़ां संगीत के क्षेत्र में आदरणीय लता दीदी से सदैव प्रेरणा लेती रहेंगी और याद करेंगे की एक संगीत के क्षेत्र में ऐसी भी गायिका थी।
(लेखक केंद्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में रिसर्च स्कॉलर हैं एवं राजनीति विज्ञान में गोल्ड मेडलिस्ट है)

झारखण्डी शिल्प और व्यंजनों को बढ़ावा देगी सरकार

*झारखण्ड की संस्कृति, इतिहास, विरासत और व्यंजनों का  बनायेगा

कल्चरल टूरिज्म

रांची, झारखण्ड की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत को देखने और संजोने का मौका देने में पर्यटन नीति मील का पत्थर साबित होगी। इसके लिए राज्य सरकार एकीकृत आदिवासी परिसर विकसित करेगी। जिसके तहत पर्यटकों को एक ही स्थान पर झारखण्ड की संस्कृति, इतिहास और विरासत का दीदार होगा, वही विविध व्यंजनों के रसास्वादन का लुत्फ़ भी मिलेगा।यह कॉकटेल कल्चरल टूरिज्म पर्यटकों को परोसेगा। इस कॉकटेल में स्थानीय नृत्य, गीत और संगीत को भी शोकेस किया जाएगा। इस पर्यटन पैकेज का मकसद पर्यटकों को राज्य की सांस्कृतिक विविधता और जीवंतता का अनुभव देकर आकर्षित करना है।

 शिल्प और व्यंजनों को बढ़ावा

 पर्यटन नीति के तहत कल्चरल टूरिज्म के जरिये स्थायी आजीविका को बढ़ावा देने और स्वरोजगार पैदा करने के लिए शिल्प और व्यंजनों में झारखण्ड की समृद्ध विरासत को साथ लेकर चलने की योजना है। राज्य के हस्तशिल्प की समृद्ध परंपरा और उद्योग विभाग के अनुरूप निवेश के अवसर को बढ़ावा दिया जाएगा। फूड फेस्टिवल के माध्यम से क्षेत्रीय व्यंजनों को नया आयाम मिलेगा। पर्यटन सूचना केंद्र, होटल, हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन और अन्य महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थानों पर झारखण्ड के हस्तशिल्प प्रदर्शित किए जायेंगे। राज्य और राज्य के बाहर विभिन्न पर्यटन प्रदर्शनियों के माध्यम से हस्तशिल्प और क्षेत्रीय खानपान को बढ़ावा देने के प्रयास किए जाएंगे।

 संस्कृति और परम्परा से अवगत होंगे पर्यटक

 पर्यटकों को यहां की परम्परा और संस्कृति से अवगत कराने के लिए विभिन्न मेलों और त्योहारों, पारंपरिक जीवन शैली, रीति-रिवाजों, पोशाक और खानपान से रूबरू कराने की योजना पर सरकार कार्य कर रही है। सरकार झारखण्ड में आयोजित होने वाले मेलों और त्योहारों को पर्यटन के रूप में विकसित करने का प्रयास करेगी। पूरे राज्य में महत्वपूर्ण स्थलों को पर्यटन के लिहाज से विकसित करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों का एक कैलेंडर तैयार किया जाएगा।

भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर), संगीत नाटक अकादमी, क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों और अन्य संगठनों को झारखण्ड में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों के विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। विभिन्न पर्यटन क्षेत्रों में अंतरराज्यीय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होंगे, ताकि अन्य राज्यों और विदेशों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा और राज्य के कलाकारों को एक्सपोजर प्रदान किया जा सके। होटलों में सम्मेलन आयोजित कर झारखण्ड की संस्कृति, नृत्य, कला संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा।

तानिया श्रॉफ के आगे फेल है बॉलीवुड एक्ट्रेस

 इतनी ख़ूबसूरत परी पर फिदा है अहान शेट्टी

बॉलीवुड अभिनेता सुनील शेट्टी के बेटे अहान शेट्टी, जिन्होंने हाल ही में बहुप्रतीक्षित फिल्म तड़प के माध्यम से अभिनय की शुरुआत की, को फिल्म में उनके प्रदर्शन के लिए प्रशंसा मिल रही है। फिल्म के निर्देशक मिलन लुथरिया हैं और अहान तारा सुतारिया के साथ काम करते हैं, जिन्होंने स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2 से बॉलीवुड में अपनी शुरुआत की। तड़प 2018 की तेलुगु फिल्म आरएक्स 100 का हिंदी रीमेक है।
अहान ने बॉलीवुड में ऐसे समय में डेब्यू किया है, जब नेपोटिज्म के कॉन्सेप्ट ने आग पकड़ ली है। स्टार किड्स को उनके प्रदर्शन के लिए ट्रोल किया जा रहा है, और लोग उन्हें भाई-भतीजावाद का उत्पाद कह रहे हैं, लेकिन इस नवोदित कलाकार ने अपने प्रदर्शन से सभी का मुंह बंद कर दिया।
फिल्म में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के अलावा, उनकी प्रेमिका तानिया श्रॉफ के साथ उनके रिश्ते को हम बी-टाउन में टॉक ऑफ द टाउन कहते हैं। आइए आपको अहान और तानिया के रिश्ते के बारे में कुछ रोचक जानकारियों से रूबरू कराते हैं।
ऐसा कम ही होता है जब करियर की शुरुआत से पहले ही कोई नवागंतुक निजी संबंधों के लिए सुर्खियों में आ गया हो। डेटिंग की अफवाहों पर ज्यादातर एक्टर्स बयान देते हैं कि उनका फोकस सिर्फ काम पर है, अहान-तानिया का रिश्ता काफी मैच्योर लगता है।
तानिया का जन्म 29 मार्च 1997 को मुंबई, महाराष्ट्र में जयदेव श्रॉफ और रोमिला श्रॉफ के घर हुआ था। उनके पिता एक जाने-माने उद्योगपति हैं। वह यूपीए लिमिटेड के वैश्विक सीईओ हैं। तानिया का एक छोटा भाई भी है जिसका नाम वरुण है। वह पेशे से मॉडल और फैशन डिजाइनर हैं। जब वह सिर्फ 7 साल की थीं, तब उनके माता-पिता अलग हो गए थे।
तानिया अपने कमाल के फैशन सेंस के लिए जानी जाती हैं और कई बार कई मैगजीन के कवर पेज पर छाई रहती हैं। उसने विभिन्न फैशन ब्रांडों के लिए कई विज्ञापन किए। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा अमेरिकन कॉलेज ऑफ़ बॉम्बे में की और लंदन कॉलेज ऑफ़ फैशन से फैशन डिजाइनिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।  (एजेंसी)

अनोखी आकृतियों से गहराया ब्रह्मांड का रहस्य

मुकुल व्यास –
हमारा ब्रह्मांड विचित्रताओं और रहस्यों से भरपूर है। इसके बारे में बहुत-सी चीजें अभी तक अज्ञात हैं। खगोल वैज्ञानिक निरंतर इन रहस्यों से पर्दा उठाने की कोशिश करते रहते हैं। इस क्रम में उन्होंने कुछ ऐसी अनोखी संरचनाओं का पता लगाया है, जिनके बारे में पहले नहीं सुना गया था। इन संरचनाओं में हजारों प्रकाश वर्ष दूर तक फैली पट्टी, पटाखों की लडिय़ों जैसी आकृतियां और प्रचंड ऊर्जा छोडऩे वाले पिंड शामिल हैं। खगोल वैज्ञानिकों ने हाल ही में पृथ्वी से 55000 प्रकाश-वर्ष दूर एक हाइड्रोजन की लंबी पट्टी खोजी है। उनका कहना है कि यह हमारी मिल्की-वे यानी आकाशगंगा की सबसे बड़ी संरचना है। मैगी नामक हाइड्रोजन की यह विशाल पट्टी 3900 प्रकाश वर्ष लंबी और 130 प्रकाश वर्ष चौड़ी है। यह करीब 13 अरब वर्ष पहले बनी थी। जर्मनी के मैक्स प्लांक एस्ट्रोनॉमी इंस्टिट्यूट के खगोल वैज्ञानिकों के नेतृत्व में एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के गाइया उपग्रह की मदद से इस संरचना की नाप-जोख की है।
इस अध्ययन के एक सह-लेखक जुआन सोलेर को एक वर्ष पहले इस संरचना के अस्तित्व के कुछ संकेत मिल गए थे। उन्होंने अपने देश कोलंबिया की सबसे लंबी नदी के नाम पर इस संरचना का नाम मैगी रखा। आंकड़ों के प्रारंभिक विश्लेषण में मैगी को पहचानना संभव हो गया था लेकिन वर्तमान अध्ययन से ही यह साबित हुआ कि यह एक लंबी पट्टी है। बिग बैंग अथवा ब्रह्मांडीय महाविस्फोट के करीब 380000 वर्ष बाद हाइड्रोजन का निर्माण हुआ था। मिल्की-वे का गठन उससे एक अरब साल पहले हुआ था। हाइड्रोजन ब्रह्मांड में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला पदार्थ है। लेकिन इस गैस को डिटेक्ट करना बहुत ही दुष्कर कार्य है। इस संदर्भ में हाइड्रोजन की लंबी पट्टी की खोज बहुत ही रोमांचक है।
इस अध्ययन के प्रथम लेखक जोनास सैयद ने कहा कि पट्टी की लोकेशन से इस खोज में मदद मिली। हम अभी यह नहीं जानते कि ये पट्टी वहां कैसे बनी लेकिन यह मिल्की-वे के समतल करीब 1600 प्रकाश वर्ष तक फैली हुई है। इसकी वजह से हाइड्रोजन से होने वाले विकिरण को पृष्ठभूमि में आसानी से देखा जा सकता है। इससे पट्टी को देखना संभव हो जाता है। मैगी का गहराई से विश्लेषण करने के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि पट्टी में कुछ बिंदुओं पर गैस आकर मिलती है। ये संभवत: वे क्षेत्र हैं जहां गैस जमा होकर बड़े बादलों में तब्दील होती है। शोधकर्ताओं का ख्याल है कि ऐसे क्षेत्रों में आणविक गैस मॉलिक्यूल के रूप में परिवर्तित होती है। नया अध्ययन एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
मिल्की-वे में हाइड्रोजन की पट्टी को खोजने में गाइया उपग्रह का बहुत बड़ा योगदान है। यह उपग्रह इस समय मिल्की-वे आकाशगंगा का त्रिआयामी नक्शा तैयार कर रहा है। अपने मिशन के दौरान उसने इसकी संरचना, गठन और विकास के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं। इस उपग्रह को दिसंबर, 2013 में भेजा गया था। तब से यह पृथ्वी की कक्षा से करीब 16 लाख किलोमीटर की दूरी पर सूरज की परिक्रमा कर रहा है। अपनी यात्रा के दौरान वह मिल्की-वे की तस्वीरें खींच रहा है और छोटी आकाशगंगाओं के तारों की पहचान कर रहा है जिन्हें काफी समय पहले हमारी आकाशगंगा द्वारा निगल लिया गया था। गाइया के मिशन के दौरान हजारों पिंडों का पता चलने की उम्मीद है जो अभी तक खोजे नहीं गए हैं। इनमें निकटवर्ती तारों के इर्द-गिर्द घूमने वाले ग्रह, पृथ्वी के लिए खतरा बनने वाले क्षुद्रग्रह और सुपरनोवा विस्फोट शामिल हैं। इस मिशन से भौतिक-खगोलविदों को अंतरिक्ष में डार्क मैटर (अदृश्य पदार्थ) के वितरण के बारे में नई जानकारियां मिलने की उम्मीद है। समझा जाता है कि यह पदार्थ ब्रह्मांड को जोड़े हुए है।
ब्रह्मांड से आने वाली रेडियो तरंगों की निगरानी करने वाले खगोल वैज्ञानिकों के एक दूसरे दल को एक ऐसे रहस्यमय पिंड का पता चला है जो प्रचंड ऊर्जा उत्सर्जित कर रहा है। ऐसी कोई चीज पहले कभी नहीं देखी गई थी। इस फिरकते हुए पिंड का पता मार्च, 2018 में चला था लेकिन इसकी पुष्टि आंकड़ों के विस्तृत विश्लेषण के बाद हाल ही में हुई है। पृथ्वी से करीब 4000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित इस पिंड से हर 18 मिनट में तीव्र विकिरण निकल रहा था। उन क्षणों में यह ‘ब्रह्मांडीय प्रकाश स्तंभÓ की तरह रेडियो तरंगों का सबसे चमकदार स्रोत बन गया था, जिसे पृथ्वी से भी देखा जा सकता था। खगोल वैज्ञानिकों का ख्याल है कि यह या तो किसी ढह चुके तारे का अवशेष है या कुछ और है।
दरअसल, तारे के अवशेष भी दो तरह के हो सकते हैं। या तो यह अवशेष किसी न्यूट्रॉन तारे का है या एक प्रबल चुंबकीय क्षेत्र वाले एक छोटे तारे (वाइट ड्वार्फ स्टार) का है। इस खोज का विवरण नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन की प्रमुख लेखक और ऑस्ट्रेलिया के कर्टिन विश्वविद्यालय की खगोल भौतिकविद नताशा हर्ले-वॉकर ने कहा कि हमारे पर्यवेक्षण के दौरान यह पिंड कुछ-कुछ घंटों में प्रकट होता रहा और गायब होता रहा। यह हमारे लिए अप्रत्याशित घटना थी। कर्टिन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता टायरोन डोहर्टी ने पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया स्थित मर्चिसन वाइडफील्ड टेलीस्कोप की मदद से इस अनोखे पिंड की खोज की।
इस बीच, मिल्की-वे के मध्य भाग की टेलीस्कोप से ली गई तस्वीर में करीब 1000 रहस्यमय लडिय़ों का पता चला है जो अंतरिक्ष में लटकती हुई प्रतीत होती हैं। 150 प्रकाश वर्ष तक फैली हुई ये लडिय़ां, जोड़ों या झुंड में हैं और हार्प वाद्य यंत्र के तारों की तरह समान दूरी पर स्थित हैं। अमेरिका की नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्स यूनिवर्सिटी के खगोल वैज्ञानिक फरहद यूसफ-जादेह ने सबसे पहले अस्सी के दशक में मिल्की-वे में चुंबकीय लडिय़ों का पता लगाया था। तब से इनकी उत्पत्ति को लेकर एक बड़ा रहस्य बना हुआ था अब टेलीस्कोप से ली गई नई तस्वीर में दस गुणा ज्यादा लडिय़ां दिखाई दे रही हैं। नई जानकारी से इन लडिय़ों के रहस्य को सुलझाने में मदद मिलेगी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

लता मंगेशकर – सुरीले सुरों की मूरत के ओझल हो जाने के मायने

उमेश त्रिवेदी –
बानवे साल की उम्र में लता मंगेशकर का चले जाना न हैरान करता है, ना ही हतप्रभ करता है। घटनाक्रम ऐसा कुछ नही हैं, जिसका एहसास लोगों को पहले से नहीं था या जिसके लिए लोग मानसिक रूप से तैयार नही थे। नियति का यही तकाजा था, जिसे रोक पाना मेडिकल साईंस के सामर्थ्य से बाहर था। इसके बावजूद उनके चले जाने की खबर को दिमाग आसानी से जब्त नहीं कर पा रहा है। एक अजीबोगरीब गुमसुम चुप्पी हमारे जैसे कई लोगों के जहन में बरबस चस्पा हो गई है।
लता मंगेशकर के हमारे बीच सशरीर मौजूद होने के मायने के भिन्न थे। भले ही अर्से से उनकी आवाज खामोश थी, फिर भी उनकी आवाज की अनुगूंज में एक दिव्य और दैविक ऊर्जा थी, जो जिंदगी की धड़कनों को रवानी देती थी, समय के तकाजों को मुस्कराहटट देती थी। घर-आंगन में जब तक मां की आवाज हरकत मे रहती है, तब तक हर व्यक्ति की जिंदगी चहकती रहती है। सभी जानते है कि मां की आवाज के खामोश हो जाने के बाद आंगन कितने भुतहे और सूने हो जाते हैं? ममत्व और प्यार से सराबोर सुरों की प्रतिमूर्ति लता मंगेशकर का ओझल हो जाना घर-आंगन की रौनक को बियबान में तब्दील करने जैसा ही है। उनके असंख्य मुरीदों के दिलों के हालात भी एक अनचाहे सूनेपन की चपेट मे हैं। लोगो के दिलों मे अनवरत बहने वाले सुरों की निर्झर धारा में यह खलल रास नहीं आ रहा है। मन की गहराइयों में गीतों की स्वर-लहरियों का सिलसिला टूट सा रहा है। उनके अनगिनत गीतों के मुखड़ों की तरन्नुम मन की गहराइयों को भिगोने सी लगी है।
कहा जाता है चौबीस घंटे के समय-चक्र में कोई पल ऐसा नहीं होता है, जब लता मंगेशकर की आवाज खामोश होती हो। दुनिया में कहीं भी, किसी भी कोने मे लता मंगेशकर के गीतों का कोई रिकार्ड अवश्य बज रहा होता है। भारत की आजादी के बाद जन्में ज्यादातर लोगों की अभिव्यक्तियों ने लता मंगेशकर की सुर-लहरियों के सहारे उड़ाने भरी हैं। उनींदी आंखो से अनगिन मांओ ने उनकी लोरी को गुनगुनाया है, तो भाई-बहनों ने एक-दूसरे की रक्षा की कसमें खाईं है, हरी-भरी वादियों में प्रेमी-जोड़ो ने उनके प्रणय-गीतों के सहारे खुद को अभिव्यक्त किया है, तो आमजनों ने उनके गीतों के माध्यम से वतनपरस्ती का मूल-मंत्र सीखा है। वतन को लोगों ने आंखो मे पानी भरकर शहीदों को याद करने का सबक लता मंगेशकर से ही सीखा है।
जाने-अनजाने लता मंगेशकर अधिकांश भारतीयों की जिंदगी का हिस्सा थीं, जिनके साथ वो आशाओं की परवान चढ़ता था, निराशों से जूझता था, प्रेम-पत्र लिखता था, मां-बेटों के रिश्तों को प्राण देता था, विरहृ-गीतों को गुनगुनाता था, बादलों को उलाहने देता था, कौओं से अतिथियों का पता पूछता था, प्रणय के पलछिनों में चहकता था, सावन के हिंडोलों पर इतराता था, शादियों मे बाबुल की दुआओं को कबूल करता था। लता मंगेशकर अपने गीतों के जरिए आम लोगों की जिंदगी के हर पहलू को भिगोती रही हैं। लोगों की निजता और निजी जीवन में लता का सुरीला हस्तक्षेप एक अदभूत कथानक है, जो अपने आप में शोध का विषय हो सकता है। कवि प्रदीप व्दारा रचित गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों ‘ सुनकर तो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखे भर आईं थीं, लेकिन इससे बड़ा सच यह है कि लता मंगेशकर ने अपने गीतों के जरिए असंख्य लोगों को हंसाया-रूलाया है।
उनकी शख्सियत का कोई भी तकनीकी पहलू अज्ञात नही हैं। लता ने अपनी जिंदगी के सफर में पांच साल रंगमंच किया, साठ सालों तक तीस हजार गीतों के साथ जिंदगी का सफरनामा लिखा और हमसे विदा हो गईं। लता मंगेशकर के जाने के बाद उनके बारे में औपचारिक और अनौपचारिक चर्चाओं का जलजला अथवा तूफान धीरे-धीरे थम जाएगा। जो लोग उन्हें जानते थे या जिन्हे वो जानती थी, उनकी प्रतिक्रियाओं में, बातों में लता मंगेशकर के बखान की औपचारिक परतों की मियाद मीडिया के गलियारों अथवा टीवी स्क्रीन के जरूरतों के हिसाब से छोटी-बड़ी हो सकती है, लेकिन लता मंगेशकर की संगीत-साधना का पक्ष उन्हें शाश्वत बनाता है। चौंसठ कलाओं की व्याख्या में संगीत को सर्वश्रेष्ठ कलाओं में गिना जाता है। इसे श्रेष्ठ इसलिए माना जाता है कि इस विधा में कलाकार और समाज के बीच सीधी संवाद और संप्रेषण होता है। कला और समाज के बीच संगीतमय संप्रेषण को सार्थक और सफल बनाने के लिए अथक साधना की आवश्यकता होती है। शास्त्रों में लिखा है कि चाहे संगीत हो, साहित्य हो, अथवा चित्रकारी, चौंसठ कलाओ में किसी भी कला के सफल सृजन के लिए कलाकार को मन से पवित्र, विशुध्द,निर्दोष, निस्पृह, निर्लिप्त होना जरूरी है। इन सभी शास्त्रोक्क गुणों ने लता मंगेशकर का मस्ताभिषक किया था। शायद इसीलिए वो आमजनों के दिलों में धड़कती थी।

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