मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने ईटखोरी, चतरा में नवनिर्मित ग्रिड सब स्टेशन और चतरा- लातेहार ट्रांसमिशन लाइन का उद्घाटन किया

*सोलर पावर प्लांट लगाने वालों को सब्सिडी देगी सरकार, जल्द ही शुरू होगी नई

योजना

*आप सोलर पावर प्लांट लगाएं, आपकी सरप्लस बिजली खरीदेगी सरकार

*सरकार की योजनाओं से जुड़कर राज्य के विकास में  भागीदार बनें – श्री हेमंत सोरेन

 मुख्यमंत्री झारखंड

ईटखोरी, चतरा, मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने आज ईटखोरी में नवनिर्मित ग्रिड सब स्टेशन एवं चतरा- लातेहार ट्रांसमिशन लाइन का    शुभारम्भ  कर चतरा जिले को बड़ी सौगात दी । अब इस जिले के बड़े हिस्से को निर्बाध और गुणवत्ता युक्त बिजली मिलेगी। लो वोल्टेज की समस्या नही होगी। मुख्यमंत्री ने  कहा कि  ग्रिड सब स्टेशन और ट्रांसमिशन लाइन के चालू होने से यहां के लोगों की वर्षों की चिर प्रतिक्षित मांग पूरी हो गई है । अब यहां का हर घर ना सिर्फ रोशन होगा बल्कि नई ऊर्जा के साथ विकास के रास्ते पर चतरा जिला तेजी से आगे बढ़ेगा ।

  विकास के लिए बिजली अहम

मुख्यमंत्री ने कहा कि विकास के लिए बिजली बेहद अहम है । यही वजह है कि सरकार पूरे राज्य में ग्रिड सब स्टेशन और संचरण लाइन का जाल बिछा रही है, ताकि राज्य वासियों को बिजली की आंख मिचौली नहीं झेलनी पड़े । निर्बाध और क्वालिटी बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।

सोलर पावर प्लांट्स को बढ़ावा दे रही सरकार

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार द्वारा सोलर पावर प्लांट्स को बढ़ावा दिया जा रहा है ।  उन्होंने लोगों से कहा कि वे खेती की तरह बिजली की भी खेती करें।     अपनी बंजर भूमि और घर की छत का इस्तेमाल सोलर पावर प्लांट लगाने में करे । इससे ना सिर्फ अपने लिए बिजली का उत्पादन कर सकेंगे, बल्कि सरप्लस बिजली को सरकार खरीदेगी । इससे आपकी आमदनी में इज़ाफ़ा होगा और आप राज्य के विकास में भागीदार बनेंगे। सोलर पावर प्लांट लगाने के लिए सरकार सब्सिडी देगी । इसके लिए बहुत जल्द एक नई योजना लांच की जाएगी ।

आपकी भावनाओं के अनुरूप काम कर रही सरकार

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह आपकी सरकार है । आपकी भावनाओं के अनुरूप हमारी सरकार काम कर रही है । राज्यवासियों के कल्याण और  विकास के लिए कार्य योजना बनाई जाती है । उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे सरकार की योजनाओं से जुड़े और उसका लाभ ले ।उन्होंने पदाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों से कहा कि वे ग्रामीण इलाकों में लोगों को सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से अवगत कराएं ताकि वे इन योजनाओं के माध्यम से स्वावलंबी बन सके ।

पिछड़े जिलों के विकास पर विशेष फोकस

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार की नजर चतरा, गढ़वा, लातेहार जैसे पिछड़े जिलों पर विशेष रूप से है । इसलिए ऐसे जिलों के लिए विशेष योजना भी बनाई जा रही है । इससे पहले गृह गढ़वा में भी सब स्टेशन का उद्घाटन इसी का परिचायक है।

शहरों में बाईपास बनाए जाएंगे

मुख्यमंत्री ने चतरा शहर में बाईपास की मांग पर कहा कि  इस दिशा में सरकार लगातार मंथन कर रही है । वैसे शहर, जहां बाईपास की जरूरत है, इसकी योजना स्वीकृत की जाएगी ।इतना ही नहीं , भविष्य की जरूरतों को देखते हुए भी शहरों के लिए बाईपास की  योजना बनाई जा रही है । उन्होंने बताया कि चतरा शहर के लिए बाईपास की स्वीकृति दे दी गई है । इसकी नींव अगले साल जनवरी में रखी जाएगी । उन्होंने यहां एक डेहरी प्लांट स्थापित करने की भी बात कही।

 कोरोना काल से निकलकर विकास को दे रहे गति

मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले लगभग डेढ़ साल कोविड-19 की वजह से काफी चुनौती भरा रहा। व्यवस्थाएं अस्त व्यस्त हो गई थी । लेकिन अब कोरोना काल से निकलते हुए विकास को गति दी जा रही है । राज्य के विकास और लोगों के कल्याण के लिए कई योजनाएं शुरू की गई है ।इस मौके पर उन्होंने सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और उपलब्धियों से लोगों को अवगत कराया ।

अफीम की खेती रोकने के लिए उठाए जा रहे कदम

मुख्यमंत्री ने कहा कि चतरा समेत कई जिलों में बड़े पैमाने पर अवैध रूप से अफीम की खेती होती है । इसे रोकने की दिशा में कई कदम उठाए जा रहे हैं । अफीम की बजाय मेडिसिनल प्लांट्स आदि की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है ।इससे लोगों की आमदनी में काफी इजाफा होगा ।उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जो भी लोग अफीम की खेती से जुड़े होंगे, उनके खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।  उन्होंने कहा कि अफीम अथवा अन्य मादक पदार्थों का सेवन करने वाले लोग ना सिर्फ अपना बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ी को भी बर्बाद कर रहे हैं।  ऐसे में हम सभी को इससे दूर रहने की जरूरत है ।

189.70 करोड़ की लागत से बना है ग्रिड सब स्टेशन और ट्रांसमिशन लाइन

ईटखोरी, चतरा में नवनिर्मित  220 /132/ 33 केवी ग्रिड की कुल क्षमता 400 मेगावाट है, जबकि 220 केवी चतरा- लातेहार ट्रांसमिशन लाइन की कुल लंबाई 108 किलोमीटर है । इस परियोजना की कुल लागत 189. 70 करोड़ रुपए है । इस ग्रिड सब स्टेशन और ट्रांसमिशन लाइन के चालू होने से चतरा जिले के इटखोरी, मयूरहंड, सिमरिया, गिद्धौर, हंटरगंज, कान्हाचट्टी, कुन्दा,  प्रतापपुर, डाढा आदि प्रखंडों और हजारीबाग जिले के बरही अनुमंडल में बेहतर विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी ।

82 योजनाओं का उद्घाटन और 18 योजनाओं का शिलान्यास

मुख्यमंत्री ने यहां आयोजित कार्यक्रम में विभिन्न विभागों की 100 योजनाओं का उद्घाटन शिलान्यास किया । इन योजनाओं की कुल लागत राशि 467.28 करोड़ रुपए है । इनमें 275.45 करोड़ रुपए की 82 योजनाओं का उद्घाटन और 91.79 करोड़ रुपए की 18 योजनाओं की आधारशिला रखी गई । इस मौके पर उन्होंने विभिन्न योजनाओं के लाभुकों के बीच परिसंपत्तियों का वितरण किया। इसके अलावा अफीम की खेती को रोकने की दिशा में चतरा जिला प्रशासन द्वारा शुरू किए जा रहे अभियान के पोस्टर की लॉन्चिंग की।

इस मौके पर मंत्री श्री सत्यानंद भोक्ता,सांसद श्री सुनील कुमार सिंह, विधायक श्री उमा शंकर अकेला, सुश्री अम्बा प्रसाद और श्री किशुन कुमार दास, ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव श्री अविनाश कुमार, उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के आयुक्त श्री कमल जॉन लकड़ा, झारखंड ऊर्जा संचरण निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री के के वर्मा एवं जिले की उपायुक्त श्रीमती अंजली यादव तथा पुलिस अधीक्षक श्री राकेश रंजन  समेत कई पदाधिकारी उपस्थित थे ।

प्राकृतिक आपदा में जान गंवाने वालों के परिजनों को तार्किक व राहतकारी हो अनुग्रह राशि

अनूप भटनागर –

यह कितना विचित्र लगता है कि प्राकृतिक आपदा में जान गंवाने वालों के परिजनों को दो से पांच लाख रुपए तक की अनुग्रह राशि दी जाती है लेकिन सरकार वैश्विक महामारी कोविड से जान गंवाने वालों के परिजनों को सिर्फ पचास-पचास हजार रुपये ही अनुग्रह राशि देना चाहती है। कोरोना महामारी की चपेट में आये लोगों के इलाज, कई मामलों में सिर्फ ऑक्सीजन, पर परिवारों का 50,000 रुपए से ज्यादा खर्च हुआ और वे प्रियजनों का ठीक से अंतिम संस्कार भी नहीं कर सके। क्या 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि ऊंट के मुंह में जीरे की कहावत चरितार्थ नहीं करती है? यानी महामारी में जान गंवाने वालों की जिंदगी की कीमत सरकार ने सिर्फ 50,000 रुपये ही निर्धारित की है।
यही नहीं, यह अनुग्रह राशि उन्हीं परिवारों को मिलेगी, जिनके परिवार के मृत सदस्य के मृत्यु प्रमाणपत्र पर मृत्यु का कारण कोरोना या कोविड दर्ज होगा। मृत्यु प्रमाणपत्र पर मृत्यु का कारण दर्ज होना या कराना भी एक चुनौती भरा काम है क्योंकि अस्पताल से जारी होने वाले प्रमाणपत्र में मृत्यु का कारण अलग ही दर्ज होता है। तभी उच्चतम न्यायालय को हस्तक्षेप करके सरकार को यह निर्देश देना पड़ा था कि कोरोना महामारी से जान गंवाने वाले व्यक्तियों के मृत्यु प्रमाणपत्र पर स्पष्ट रूप से मृत्यु का कारण ‘कोरोनाÓ दर्ज होना चाहिए।
मृतकों के प्रमाणपत्र पर मृत्यु का कारण कोरोना दर्ज नहीं होने और पीडि़त परिजनों के लिए अनुग्रह राशि के मामले में सरकार के टाल-मटोल के रवैये की वजह से ही शीर्ष अदालत को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा था। वैसे भी गृह मंत्रालय ने न्यायालय में तर्क दिया था कि आपदा प्रबंधन कानून के अंतर्गत शामिल भूकंप और बाढ़ सहित 12 अधिसूचित प्राकृतिक आपदा इस महामारी से एकदम भिन्न हैं।
कानून में अधिसूचित प्राकृतिक आपदाओं के मामले में आमतौर पर राज्य आपदा मोचन कोष से चार-चार लाख रुपये की अनुग्रह राशि देते हैं। यह सही है कि कोरोना महामारी ने एक अलग किस्म की चुनौती पेश की लेकिन क्या इसे दिसंबर, 2004 में आई सुनामी से अलग रखा जा सकता है। शायद नहीं। न्यायालय ने कोरोना से पीडि़त परिवारों के प्रति सरकार के इस रवैये पर नाराजगी व्यक्त करते हुए उसे कोविड पीडि़तों के लिए योजना तैयार करने का निर्देश दिया था। उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद बनाए गए दिशा-निर्देशों के अंतर्गत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने कोविड-19 से मरने वाले लोगों के परिजन को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि देने की सिफारिश की है।
कोविड-19 राहत कार्य में शामिल रहने या महामारी से निपटने की तैयारियों से जुड़ी गतिविधियों में शामिल होने के कारण इस संक्रमण से जान गंवाने वालों के परिजन को भी अनुग्रह राशि दी जाएगी। सरकार कहती है कि जीवन को पहुंची क्षति की भरपाई तो नहीं की जा सकती लेकिन पीडि़त परिवारों के लिए देश यथासंभव कर रहा है। लेकिन इस महामारी से जान गंवाने वाले व्यक्तियों का अभी तक सही आंकड़ा भी उपलब्ध नहीं है। शीर्ष अदालत को भी विचार करना होगा कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान कोरोना पीडि़तों और उनके परिजनों में कैसी बदहवासी व्याप्त थी। जीवनरक्षक दवाओं और ऑक्सीजन की अनुपलब्धता ने कोरोना पीडि़तों की जिंदगी पर समय से पहले ही विराम लगा दिया और सत्ताधीश नेता आरोप-प्रत्यारोपों में व्यस्त रहे।
कोरोना के कारण माता-पिता को खोने वाले बच्चों के निमित्त कल्याणकारी योजनाओं के लाभ के लिए मृत्यु प्रमाणपत्र पर मृत्यु का कारण ‘कोविड-19Ó दर्ज होना जरूरी था। लेकिन नौकरशाही के उदासीन रवैये के कारण इस तरह का मृत्यु प्रमाणपत्र हासिल करना भी एक चुनौती थी। मृत्यु प्रमाणपत्र में इस खामी का भी संज्ञान देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने लिया है। ऐसी शिकायतें मिल रही थीं कि एक समान मृत्यु प्रमाणपत्र की नीति के अभाव में प्राधिकारी मृत्यु प्रमाणपत्र में मृत्यु का कारण कोविड-19 या कोरोना संक्रमण की बजाय दूसरी बीमारियों का उल्लेख कर रहे थे या फिर उस कालम को रिक्त छोड़ रहे थे।
इस खामी के मद्देनजर न्यायालय ने सरकार से कहा कि अस्पतालों में कोविड की वजह मरने वाले व्यक्तियों के मृत्यु प्रमाणपत्र में वे सभी तथ्य परिलक्षित होने चाहिए जो मरीज के साथ घटित हुई ताकि परिवार भविष्य में मिलने वाले लाभ प्राप्त कर सकें। न्यायालय को इस बात का अहसास है कि इसके बाद भी मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने में कई तरह के विवाद हो सकते हैं। इसकी संभावना देखते हुए अब न्यायालय ने संकेत दिया है कि ऐसा कोई विवाद होने पर जिला स्तर पर शिकायत निवारण समितियों को मृतक का अस्पताल का रिकॉर्ड मंगाने के लिए अधिकृत किया जा सकता है। न्यायालय को यह भी सुनिश्चित कराना होगा कि जिला स्तर की शिकायत निवारण समितियां एक निश्चित अवधि में इन शिकायतों का समाधान करें।
कोरोना महामारी की विभीषिका से उत्पन्न स्थिति में न्यायपालिका के हस्तक्षेप ने कई समस्याओं के तेजी से समाधान के लिए कदम उठाने पर सरकार को बाध्य किया। न्यायिक हस्तक्षेप का ही परिणाम है कि देश में अब ऑक्सीजन या जीवनरक्षक दवाओं की कमी की कोई खबर नहीं है और कोरोना से पीडि़त मरीजों का सही तरीके से उपचार हो रहा है।
मृत्यु प्रमाणपत्र में कोविड दर्ज होने तथा परिजनों को उचित अनुग्रह राशि पर अब उच्चतम न्यायालय चार अक्तूबर को आदेश पारित करेगा। साथ ही इस आदेश में केन्द्र और राज्यों के लिए कुछ दिशा-निर्देश भी होंगे।
उम्मीद की जानी चाहिए कि शीर्ष अदालत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा कोविड के कारण जान गंवाने वालों के परिजनों के लिए पचास पचास हजार रुपये की अनुग्रह राशि देने की सिफारिश के बावजूद इस राशि को बढ़ाने पर विचार करने का निर्देश सरकार को देगी।

यह दौलत किस काम की जो मां-बाप को अपनी औलाद से दूर कर दे?

संस्कारों की दौलत ही सच्चा धन

योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण –

आजकल समाज में संस्कारों की कमी देखकर कभी-कभी मन उद्वेलित हो उठता है। समाचारपत्रों में ऐसे समाचार देखकर कि कोई वृद्धा मां या वृद्ध पिता विदेश में या किसी बड़े शहर में नौकरी करने गए अपने पुत्र को देखने को तरसते रहते हैं और एकाकी रहते हुए जब मर जाते हैं, तो भी पुत्र अंतिम संस्कार के लिए नहीं आ पाते तो मन व्यथित हो उठता है। तब मन में एक ही सवाल कौंधता है कि यह दौलत किस काम की जो मां-बाप को अपनी औलाद से दूर कर दे?
लोकजीवन में बार-बार सुनी हुई एक कहावत मन में अनायास ही गूंज उठती है—पूत सपूत तो क्यों धन संचै, पूत कपूत तो क्या धन संचै अर्थात् अगर किसी का पुत्र कपूत हो तो उसके लिए धन एकत्र करना बेकार ही है, क्योंकि वह तो मुफ्त मिले धन को उड़ा ही देगा। और अगर पुत्र सपूत है तो उसके लिए धन एकत्र करना व्यर्थ है क्योंकि वह तो स्वयं ही अपने संस्कारों के बल पर इतना धन कमा लेगा कि किसी और के धन की उसे जरूरत ही नहीं होगी।
आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि माता-पिता अपने बच्चों को इंजीनियर और डॉक्टर बनाकर विदेशों में धन कमाने तो भेज देते हैं और फिर अकेले वृद्धावस्था में उन्हें देखने तक को तरस जाते हैं। समाज में वृद्धाश्रम आखिर क्यों हैं? क्या हमारी संयुक्त परिवार-प्रथा से मिले संस्कारों से हमारा जीवन सुख से भरापूरा नहीं रहता था? एकल परिवार हमारे अवसाद का बड़ा कारण बनते जा रहे हैं, यह आज का ऐसा भीषण सच है, जिसने समाजशास्त्रियों को बेचैन कर दिया है।
लगभग दस साल की उम्र का अख़बार बेचने वाला एक बालक एक मकान का गेट बजा रहा था, तभी मालकिन ने बाहर आकर पूछा, ‘क्या बात है? बालक बोला, ,आंटी जी, क्या मैं आपका गार्डेन साफ कर दूं?, तो मालकिन ने उसे मना कर दिया। बालक ने हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में उस महिला से कहा, ‘प्लीज आंटी जी, करा लीजिये न, मैं बहुत अच्छे से साफ करूंगा। द्रवित होकर मालकिन ने पूछा, ‘क्या लेगा? तो बालक बोला कि पैसा नहीं देना आंटी जी, मुझे तो आप खाना दे देना। मालकिन बोली, ‘लेकिन अच्छे से काम करना है। औरत ने सोचा कि शायद लड़का भूखा है तो मैं पहले इसे खाना दे देती हूं।
उसने लड़के से कहा कि बेटे पहले खाना खा ले, फिर काम कर लेना। लड़के ने उत्तर दिया, ‘नहीं, नहीं, आंटी जी, पहले आपका काम कर लूं, फिर आप मुझे खाना दे देना। एक घंटे बाद लड़के ने मालकिन को बुलाकर कहा, ‘आंटी जी, देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई है कि नहीं। मालकिन खुश होकर बोली, ‘अरे वाह! तूने तो बहुत ही बढिय़ा सफाई की है, सारे गमले भी करीने से जमा दिए हैं। यहां बैठ, मैं तेरे लिए खाना लाती हूं। जैसे ही मालकिन ने उसे खाना लाकर दिया, तुरंत बालक अपने जेब से एक पन्नी का लिफाफा निकाल कर उसमें खाना रखने लगा। यह देखकर मालकिन बोली कि तूने भूखे ही सारा काम किया है, अब खाना तो यहीं बैठ कर खा ले। यह सुनकर बालक ने कहा, ‘नहीं, नहीं आंटी जी, मेरी बीमार मां घर पर है। सरकारी अस्पताल से उसके लिए दवा तो मिल गयी है, पर डॉ. साहब ने कहा है कि यह दवा खाली पेट नहीं खानी है। मैं मां के लिए खाना घर ले जाऊंगा और मां को खिलाकर दवाई भी दे दूंगा।
लड़के की यह बात सुनकर मालकिन रो पड़ी और अपने हाथों से उस मासूम को, उसकी दूसरी मां बनकर खुद खाना खिलाया और फिर उसकी मां के लिए भी रोटियां बनाई और लड़के के साथ उसके घर जाकर उसकी मां को रोटियां खिलाकर आयी। भावुक होकर लड़के की मां से उसने कहा, ‘बहन, आप तो बहुत अमीर हो। जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है, वो तो हम अपने बच्चों को दे ही नहीं पाते हैं! आज तुम्हारे बेटे ने मुझे अहसास कराया है कि मां-बाप का सम्मान कैसे किया जाता है? बहन, मेरे पास चांदी-सोना तो बहुत है, लेकिन तुम्हारे जैसा ऐसा बेटा नहीं है। क्या हमने खुद अपने जीवन को सिर्फ और सिर्फ धन-दौलत की चमक का गुलाम नहीं बना लिया है? किसी के घर कार आ जाए तो हम उसे बधाइयां देते हैं, लेकिन जब संस्कार मिट रहे हों, तो हमें बिल्कुल चिन्ता या दु:ख नहीं होता? महाकवि जयशंकर प्रसाद की ‘श्रद्धा ने ‘मनु को यही तो कहा था :-
अपने में भर सब कुछ कैसे,
व्यक्ति विकास करेगा?
यह एकांत स्वार्थ है भीषण,
अपना नाश करेगा।
क्या अपने लिए जीना ही जीना होता है? प्रश्न सभी को चौंकाता है, लेकिन हम दौलत की अंधी दौड़ में इस प्रश्न का उत्तर कभी खोजने की कोशिश ही नहीं करते। आज इतना तो संकल्प ले ही लें कि अपने बच्चों को हम संस्कारों की दौलत जरूर देंगे, ताकि कारों की दौड़ में वे अपने माता-पिता और बड़ों को भूल न जाएं।

’’ग्रामीणों की आस मनरेगा से विकास’’ अभियान के तहत् विकास भवन सभागार में एक दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न

पूर्व योजनाओं को यथाशीघ्र पूरा करें तथा प्रत्येक बृहस्पतिवार को प्रखण्ड स्तर पर

रोजगार दिवस का आयोजन करें – उपायुक्त

प्रत्येक पंचायत में 5 हजार मानव दिवस सृजन का लक्ष्य – उप विकास आयुक्त

गुमला,28 सितम्बर 2021  – ग्रामीणों की आस, मनरेगा से विकास अभियान के तहत विकास भवन के सभागार में कार्यशाला आयोजित की गई। उपायुक्त शिशिर कुमार सिन्हा एवं उप विकास आयुक्त संजय बिहारी अम्बष्ठ ने संयुक्त रूप से कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

मौके पर उपायुक्त ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों का समेकित विकास राज्य सरकार की सर्वाेच्च प्राथमिकताओं में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि लाने के उपायों में महात्मा गांधी नरेगा योजना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ऐसे में सभी पदाधिकारी ग्रामीणों की आस, मनरेगा से विकास अभियान को सफल बनाने में अपना विशेष योगदान दें।

वहीं उप विकास आयुक्त ने बताया कि यह अभियान दिनांक 22 सितंबर से 15 दिसंबर 2021 तक चलाया जाएगा। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य नियमित रोजगार दिवस का आयोजन, नियमित ग्राम सभा का आयोजन, इच्छुक सभी परिवारों को ससमय रोजगार उपलब्ध कराना, महिला एवं अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति कोटि के श्रमिकों के भागीदारी में वृद्धि, प्रति परिवार औसतन मानव दिवस में वृद्धि, जॉब कार्ड निर्गत करना अथवा उसका नवीनीकरण करना, जॉब कार्ड का सत्यापन, प्रत्येक गांव/टोला में हर समय औसतन 5 से 6 योजनाओं का क्रियान्वयन, पूर्व से चली आ रही पुरानी योजनाओं को पूर्ण करना, प्रत्येक ग्राम पंचायतों में पर्याप्त योजनाओं की स्वीकृति व शत प्रतिशत महिला मेट का नियोजन समेत अन्य है, ऐसे में उपस्थित पदाधिकारी इन कार्यों को विशेष प्राथमिकता दें ताकि हर जरूरतमंद व्यक्ति को इसका लाभ मिल सके।

विकास भवन के सभागार में आयोजित जिला स्तरीय कार्यशाला में सभी प्रखंड विकास पदाधिकारी, सभी प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी, सभी बीबीएम जेएसएलपीएस, बीपीओ परियोजना पदाधिकारी मनरेगा के द्वारा ग्रामीणों की आस, मनरेगा से विकास अभियान से जुड़ी बारीकियों व आगे किस प्रकार से इस अभियान के तहत कार्य करते हुए लोगों को लाभान्वित किया जाएगा उसके संदर्भ में जानकारी दी।

कार्यशाला में बताया गया कि गुमला जिले में प्रधानमंत्री आवास $ में 3917 आवास निर्माण का कार्य लंबित है। साथ ही सिसई, भरनो एवं पालकोट प्रखण्ड में इंदिरा आवास के बैकलाॅग पूर्ण कराने में लक्ष्य से काफी पीछे है। डुमरी, रायडीह एवं गुमला प्रखण्ड में ग्राम पंचायत के कार्य असंतोषजनक है। इन पंचायतों में योजना के लिए निर्धारित राशि का व्यय भी अबतक शून्य है। उपायुक्त ने कार्यशाला के दौरान इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए सभी संबंधित प्रखण्ड विकास पदाधिकारी एवं प्रखण्ड कार्यक्रम पदाधिकारी को कार्यपद्धति में सुधार लाने का निर्देश दिया तथा कार्यशाला में भरनो प्रखण्ड के प्रखण्ड कार्यक्रम पदाधिकारी की अनुपस्थिति पर उनका वेतन स्थगित करने का निर्देश दिया। उपायुक्त ने कहा कि 30 सितम्बर को राज्य मुख्यालय में विभिन्न विभागों के कार्यों की प्रगति भौतिक एवं वित्तीय उपलब्धि की समीक्षा माननीय मुख्यमंत्री द्वारा की जाएगी। इस बैठक में ग्रामीण विकास विभाग एवं मनरेगा योजनाओं पर विस्तृत समीक्षा की जाएगी। उन्होंने सभी प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को उप विकास आयुक्त से समन्वय बनाकर अद्यतन प्रतिवेदन जिला ग्रामीण विकास अभिकरण में 29 सितम्बर तक समर्पित करने का निर्देश दिया।

कार्यशाला में उपायुक्त, उप विकास आयुक्त, जिला जनसम्पर्क पदाधिकारी देवेन्द्र नाथ भादुड़ी, जिला ग्रामीण विकास अभिकरण के परियोजना पदाधिकारी सहित सभी प्रखण्डों के प्रखण्ड विकास पदाधिकारी एवं प्रखण्ड कार्यक्रम पदाधिकारी उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री की पहल पर 14 वर्ष से लापता जयंती पहुंची अपने घर

*श्रम विभाग के प्रयास से पंजाब से लाई गई गुमला

* गुमला के किताम गांव की है जयंती

रांची,28.09.2021 मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन के आदेश के बाद गुमला के किताम गांव निवासी जयंती लकड़ा 14 वर्ष तक लापता रहने के बाद मंगलवार को अपने गांव वापस पहुंच गई है। जयंती एक दशक पूर्व चैनपुर से लापता हो गई थी। कुछ समय पहले पता चला कि वह पंजाब में है। इसके बाद मुख्यमन्त्री के निर्देश पर श्रम विभाग के राज्य प्रवासी नियंत्रण कक्ष की कोशिशों से उसे पंजाब से दिल्ली होते हुए रांची लाया गया। मंगलवार को उसे परिजनों के साथ गुमला स्थित उसके गांव भेज दिया गया।

खाना बनाने का काम करती थी, अचानक हो गई थी लापता

जयंती गुमला के डुमरी प्रखंड स्थित किताम गांव की निवासी है। वह संत अन्ना चैनपुर में खाना बनाने का काम करती थी। परिजनों के मुताबिक वह करीब 14 साल पहले लापता हो गई थी। लापता हो जाने के बाद वह पंजाब में मिली, जहां उसे काफी भटकना पड़ा था। पंजाब में उसे गुरुनानक वृद्धा आश्रम में शरण मिली। यह मामला 9 सितंबर 2021 को राज्य प्रवासी नियंत्रण कक्ष के पास पहुंचा। मुख्यमन्त्री श्री हेमन्त सोरेन को जब मामले की जानकारी मिली, तो उन्होंने जयंती को वापस झारखंड उसके परिजनों के पास पहुंचाने का निर्देश दिया। जयंती लकड़ा के परिवार और पंजाब स्थित गुरुनानक वृद्ध आश्रम से लगातार बात कर उसे रांची तक लाने की व्यवस्था की गई।

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन से झारखंड मंत्रालय में रोलर स्केटिंग एसोसिएशन ऑफ़ झारखंड के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की

रांची, 28.09.2021 मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन से झारखंड मंत्रालय में आज रोलर स्केटिंग एसोसिएशन ऑफ़ झारखंड के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल ने रांची के मोरहाबादी में अंतरराष्ट्रीय स्केटिंग रिंग के निर्माण कार्य का शिलान्यास किए जाने हेतु राज्य सरकार की ओर से मिले सहयोग के लिए मुख्यमंत्री को धन्यवाद दिया। प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री के समक्ष कहा कि झारखंड में खेल को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है। प्रतिनिधिमंडल ने विश्वास जताया कि तय समय सीमा के अंदर रांची के मोराबादी में अंतर्राष्ट्रीय स्केटिंग रिंग का निर्माण कार्य पूरा होगा। मुख्यमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को अपनी शुभकामनाएं दीं। मौके पर राज्य के खेल मंत्री श्री हफीजुल हसन अंसारी, रोलर स्केटिंग एसोसिएशन ऑफ़ झारखंड के अध्यक्ष श्री विकास सिंह, सचिव श्री सुमित शर्मा एवं कोषाध्यक्ष श्री जय प्रकाश गुप्ता उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने Suport of CARE India in Covid-19 vaccine drive (टीका एक्सप्रेस) in Jharkhand को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।

*टीकाकरण अभियान में तेजी लाने का हो रहा प्रयास

*कोविड-19 की चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार की पूरी तैयारी

*राज्य में 1 करोड़ 70 लाख से अधिक लोगों का हो चुका है टीकाकरण – हेमन्त सोरेन

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने आज पुराना विधानसभा के बगल स्थित मैदान, धुर्वा, रांची से Suport of CARE India in Covid-19 vaccine drive (टीका एक्सप्रेस) in Jharkhand को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि राज्य में कोविड-19 टीकाकरण अभियान में तेजी लाने के उद्देश्य से आज 60 मोबाइल वैक्सीनेशन वैन को राज्य के विभिन्न जिलों में रवाना किया जा रहा है। ये सभी वैन “टीका एक्सप्रेस” के रूप में टीकाकरण अभियान को जन-जन तक पहुंचाने का काम करेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि कोरोना संक्रमण से आने वाली संभावित चुनौती से निबटने के लिए राज्य सरकार द्वारा पूरी तैयारी की गयी है। राज्य के सभी जिलों में “टीका एक्सप्रेस” चलाकर छूटे हुए लोगों का  वैक्सीनेशन कराने का काम आज से शुरू हो रहा है। इन “टीका एक्सप्रेसों” की मदद से लोगों को टीका लेने में सहूलियत होगी। लोगों को यह सुविधा उनके घरों पर ही उपलब्ध होगी।

राज्य में 1 करोड़ 70 लाख से अधिक लोगों का हो चुका है टीकाकरण

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि अब तक राज्य भर में 1 करोड़ 70 लाख से अधिक लोगों को कोविड-19 का टीका लग चुका है। लगभग 40 लाख लोगों को टीका का दूसरा डोज भी लग चुका है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में अधिक से अधिक लोगों तक टीकाकरण अभियान पहुंचे इसी क्रम में आज राज्य में CARE India के सहयोग से “टीका एक्सप्रेस” का शुभारंभ हुआ है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे पहले भी कोविड-19 संक्रमण काल में राज्य सरकार ने टीकाकरण अभियान में गति लाने को लेकर नए-नए कार्यक्रमों के जरिए लोगों तक पहुंचने का काम किया है।

कोविड-19 से सुरक्षित रहने के लिए अपनी समझदारी और विवेक का उपयोग करें

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि कोविड-19 संक्रमण से बचने का बहुत ही सीमित औषधियां देश और दुनिया में उपलब्ध है। वैज्ञानिकों ने  इस संक्रमण से बचने के लिए कोविड-19 वैक्सीन का खोज किया है। हमसभी लोग वैक्सीन लगाकर कोविड-19 से सुरक्षा तो पाएंगे ही साथ-साथ स्वयं की समझदारी और विवेक का उपयोग करके भी संक्रमण से बचा जा सकता है। हम हर हाल में अपने समझदारी का उपयोग करें और खुद के साथ-साथ अपने परिवार को भी इस संक्रमण से बचाएं।

मुख्यमंत्री ने राज्यवासियों से की अपील, खतरा टला नही अभी संक्रमण को हल्के में न लें

मुख्यमंत्री ने राज्यवासियों से अपील किया कि कोविड-19 संक्रमण से बचने के लिए जरूरी सुरक्षा अवश्य बरतें। संक्रमण का खतरा अभी टला नहीं है। संक्रमण को हल्के में लेने की भूल न करें। अतएव आवश्यक है कि सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन हर हाल में किया जाए। फेस मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, हाथो को सैनिटाइज करना इत्यादि जरूरी बचाव के उपाय को अपनी दिनचर्या में अवश्य शामिल करें।

इस अवसर पर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री श्री बन्ना गुप्ता, अपर मुख्य सचिव-सह-स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव श्री अरुण कुमार सिंह, मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे, मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार श्री अभिषेक प्रसाद, मुख्यमंत्री के वरीय आप्त सचिव श्री सुनील श्रीवास्तव, CARE India के राज्य कार्यक्रम प्रबंधक श्री अभय कुमार भगत, राष्ट्रीय सलाहकार श्री सी.के.भगत सहित अन्य लोग उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन की अध्यक्षता में झारखंड जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की दूसरी बैठक हुई

*बैठक में 11 बिंदुओं पर हुई चर्चा। कई महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए गए।

* जनजातीय समुदाय का सर्वांगीण विकास टीएसी का मुख्य उद्देश्य

 *अवैध मानव व्यापार में संलिप्त लोगों पर कठोर कानूनी कार्रवाई करें

– हेमन्त,सोरेन मुख्यमंत्री

रांची,27.09.2021 – मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की अध्यक्षता में आज झारखंड मंत्रालय स्थित सभागार में झारखंड जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की दूसरी बैठक संपन्न हुई। बैठक में कई मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श किया गया। मौके पर अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के मंत्री-सह-उपाध्यक्ष श्री चम्पाई सोरेन भी उपस्थित थे। बैठक में मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) राज्य के जनजातीय समुदाय के सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण इकाई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि टीएसी जनजातीय वर्गों के सभी महत्वपूर्ण विषय जैसे आर्थिक, सामाजिक शैक्षणिक एवं समुदाय से जुड़े अन्य विकास के मुद्दों पर चर्चा करती है। जनजातीय समुदाय का उत्थान और विकास अधिक से अधिक कैसे हो, इस पर टीएससी कड़ियों को जोड़ने का कार्य कर रही है। जनजातीय समुदायों के बेहतरी के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है। बैठक में समिति ने झारखंड राज्य में जनजातीय समुदाय के लोगों के बीच उद्यमिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार से संविधान की अनुसूची 05 के आदिवासी राज्यों को देश के उत्तर पूर्व के राज्य जो संविधान के अनुसूची 6 के अंतर्गत आते हैं, के समान उद्योग लगाने एवं करों आदि में दी जाने वाली सुविधाओं के अनुरूप सुविधा दिए जाने की अनुशंसा की । बैठक में विधायक प्रो०स्टीफन मरांडी की अध्यक्षता में एक उप समिति का गठन किया गया। इस उप समिति में विधायक श्री दीपक विरूवा,श्री बंधु तिर्की, श्री भूषण तिर्की एवं श्री चमरा लिंडा सदस्य होंगे। यह उप समिति अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों को कृषि ऋण, गृह ऋण तथा शिक्षा ऋण सहित अन्य ऋण बैंकों के माध्यम से सुलभ तरीके से उपलब्ध कराने, विभिन्न बैंकों के साथ विचार विमर्श कर ऋण उपलब्ध कराने के लिए नियमों में सुधार तथा राज्य में अनुसूचित जनजाति धारित पूर्व एवं वर्तमान भूमि अधिग्रहण का गहन अध्ययन कर टीएसी को रिपोर्ट सौपेंगी तथा इस संबंध में उप समिति टीएसी को परामर्श भी देगी। बैठक में सरना धर्म कोड लागू किए जाने के संबंध में यह निर्णय लिया गया कि टीएससी जल्द ही सरना कोड दिए जाने के पहलुओं पर एक प्रस्ताव तैयार कर  राज्यपाल के माध्यम से इसे राष्ट्रपति को भेजेगी। बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में टीएससी का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात करेगा। बैठक में इस बात पर भी सहमति बनी की वीर-शहीदों तथा झारखंड आंदोलन के शीर्ष नेतृत्वकर्ताओं के बारे में व्यापक प्रचार-प्रसार तथा स्कूलों के पाठ्यक्रमों में भी शामिल करने के संबंध में विचार कर कार्य योजना तैयार की जाएगी। बैठक में मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने अवैध मानव व्यापार पर रोक लगाने के लिए गृह, कारा विभाग को कठोर कानून बनाने तथा निरंतर मॉनिटरिंग करने का निर्देश दिया। टीएसी के सभी सदस्यों ने मानव व्यापार को लेकर चिंता जाहिर की तथा दोषियों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई किए जाने पर बल दिया। बैठक में बताया गया कि अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों के खिलाफ होने वाले अत्याचार के संबंध में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है। इस समिति के माध्यम से सभी प्रकार के अत्याचार एवं शोषण से संबंधित मामलों की समीक्षा कर कार्रवाई हेतु अनुशंसा की जाती है। बैठक में बताया गया कि जनजातीय भाषा-संस्कृति-ज्ञान आदि को सहेजने एवं विकसित करने एवं जनजातीय समुदाय के विकास हेतु शोध करने के उद्देश्य से राज्य में एक ट्राईबल यूनिवर्सिटी जमशेदपुर में स्थापित की जा रही है। जल्द ही एक्ट बनाकर यूनिवर्सिटी का संचालन किया जाएगा। बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में जनजातीय समुदाय के लोगों को अधिक से अधिक जाति प्रमाण पत्र निर्गत हो इस हेतु सरकार प्रतिबद्ध है। बैठक में जनजातीय समुदाय के लोगों को जीवन काल में एक ही बार जाति प्रमाण पत्र निर्गत किए जाने के प्रस्ताव पर सहमति बनी। अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों को जाति प्रमाण पत्र बनाने में हो रही दिक्कतों को देखते हुए जीवन में एक बार जाति प्रमाण पत्र निर्गत किये जाने का निर्णय लिया गया इससे लोगों को जाति प्रमाण पत्र बनाने में सहूलियत होगी। बैठक में झारखंड राज्य गठन के समय राज्य में सरना, मसना, कब्रिस्तान आदि जो अवस्थित थे यदि उनके अभिलेख उक्त रूप में न भी हों तो ग्राम सभा और अंचल कार्यालय से उसकी संपुष्टि कराते हुए हुए उनकी घेराबंदी कराए जाने की  अनुशंसा समिति ने की।

 बैठक में इन बिंदुओं पर हुई चर्चा

 जाति प्रमाण पत्र बनाने में जनजातीय समुदायों को बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कार्मिक विभाग इस संबंध में अधिसूचना निर्गत करने पर विचार करे जिससे कि जीवन काल में एक बार जनजातीय समुदायों के लोगों को जाति प्रमाण पत्र बनाना पड़े जो कि जीवन भर उपयोग में लाया जा सके।

जनजातीय समाज के लोगों को  बैंकों से ऋण लेने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। जनजातीय समाज के लोगों के लिए व्यवस्था ऐसी करनी चाहिए जिससे कि वित्तीय संस्थान उन्हें ऋण देने से मना नहीं करें। वित्त विभाग सभी बैंको से इस संबंध में विस्तृत चर्चा कर सुधार लाने की कार्रवाई करे।

जनजातियों के भूमि के अवैध हस्तांतरण पर रोक लगना चाहिए।

सरना धर्म कोड को मान्यता दिलवाने को लेकर आगे की कार्यवाही एवं रणनीति पर विचार-विमर्श।

विभिन्न औद्योगिक प्रतिष्ठानों के द्वारा जनजातियों के जमीन अधिग्रहण एवं उनके विस्थापन पर एक शोध की आवश्यकता है। शोध के साथ-साथ एक सशक्त पुनर्स्थापन नीति बनाई जाए। इस संबंध में पुनर्स्थापन आयोग का गठन किया जाए।

अवैध मानव व्यापार को रोकने हेतु ठोस कदम उठाने की जरूरत है। आदिवासी महिलाओं/लड़कियों के अवैध व्यापार एवं शोषण के विषय पर कठोर कार्रवाई की जरूरत है।

अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों के खिलाफ होने वाले अपराध का विशेष पुनरीक्षण की आवश्यकता है। ऐसी परिस्थिति में उन्हें मिलने वाले लाभ/सहायता के विषय में कल्याण एवं गृह विभाग अगली बैठक में विस्तृत रिपोर्ट समर्पित करेगा।

जनजातीय समुदाय के लोगों के बीच उद्यमियों का घोर अभाव है। ऐसी स्थिति में अनुसूचित जनजाति वर्ग के युवकों/युवतियों के द्वारा अपना उद्यम प्रारम्भ करवाने हेतु विशेष प्रोत्साहन योजना की जरूरत है। इस समुदाय के उद्यमियों को विभिन्न शुल्क यथा CGST/IGST/Income Tax आदि में छूट देने हेतु प्रस्ताव भारत सरकार को भेजना चाहिए।

बैठक में जनजातीय परामर्शदातृ  परिषद में सदस्य-सह-विधायक प्रो० स्टीफन मरांडी, श्री बंधु तिर्की, श्रीमती सीता सोरेन, श्री दीपक बिरुआ, श्री चमरा लिंडा, श्री सुखराम उरांव, श्री दशरथ गगराई, श्री नमन विक्सल कोंगाड़ी, श्री राजेश कच्छप, श्री भूषण तिर्की, श्री सोनाराम सिंकू अनुसूचित जाति से मनोनीत श्री विश्वनाथ सिंह सरदार और अनुसूचित जनजाति से मनोनीत श्री जमल मुंडा, सहित राज्य के मुख्य सचिव श्री सुखदेव सिंह, अपर मुख्य सचिव श्री के०के०खंडेलवाल, अपर मुख्य सचिव श्री एल०खियांगते, प्रधान सचिव श्री राजीव अरुण एक्का, प्रधान सचिव श्रीमती वंदना दादेल, प्रधान सचिव श्री अविनाश कुमार, प्रधान सचिव श्री अजय कुमार सिंह, प्रधान सचिव श्री राजेश शर्मा, सचिव श्री के०के०सोन, सचिव श्री अमिताभ कौशल, सचिव श्रीमती आराधना पटनायक, सचिव श्री राहुल शर्मा एवं संबंधित विभाग के अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।

 

दलित सीएम से क्या कांग्रेस को फायदा होगा

अनिल सिन्हा –
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की आहट से संबंधित राज्यों में राजनीतिक उठापटक तेज हो गई है। बीजेपी ने उत्तराखंड में चार महीने में तीन मुख्यमंत्री दे दिए। कर्नाटक में (हालांकि वहां चुनाव 2023 में हैं) येदियुरप्पा को सीएम की कुर्सी से हटाया और गुजरात में तो मुख्यमंत्री के साथ उनका पूरा मंत्रिमंडल ही बदल डाला। मुख्यमंत्रियों की छुट्टी करने की इस लहर की चपेट में पंजाब भी आ गया है। वहां नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने शपथ ले ली है। वह राज्य के पहले दलित मुख्यमंत्री हैं। वहां दलितों की आबादी करीब एक तिहाई है, लेकिन उन्हें राज्य का नेतृत्व संभालने का मौका अभी तक नहीं मिल पाया था। अगर सामाजिक प्रगति के लिहाज से देखें तो यह एक क्रांतिकारी घटना है। पंजाब की राजनीति में संपन्न किसानों का, बल्कि कहें जाट समुदाय का वर्चस्व रहा है। सिखों और हिंदुओं, दोनों में वे ही नेतृत्व में रहे हैं।
विभाजन का जख्म
भारत-पाक विभाजन में सबसे ज्यादा नुकसान पंजाब ने ही उठाया। यह इसके बावजूद हुआ कि वहां मुस्लिम लीग की राजनीति का कोई असर नहीं था और बड़े किसानों ने एक सेकुलर गठबंधन बना रखा था। विभाजन ने राज्य की राजनीति और जीवन, दोनों को बदल दिया। बंटवारे के बाद दोनों ओर सामूहिक कत्लेआम हुए और इसका नतीजा है कि पाकिस्तान वाले हिस्से में हिंदुओं-सिखों की आबादी ना के बराबर रह गई। यही हाल भारत वाले हिस्से का हुआ। यहां भी डेढ़ प्रतिशत मुसलमान रह गए। पंजाब में हिंदुओं, सिखों और मुसलमानों की आपस में गुंथी हुई जिंदगी थी। विभाजन से सब कुछ टूट गया। विभाजन के बाद वहां की राजनीति नए सिरे से शुरू हुई। इस नई राजनीति में अकाली दल और कांग्रेस के अलावा वाम दल प्रमुख भूमिका में थे।
खालिस्तानी आतंकवाद भी विभाजन से कम बड़ी परेशानी लेकर नहीं आया। इसने भी वहां के जन-जीवन को अस्त-व्यस्त किया। ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसी घटनाएं हुईं। इसके बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी गई। राज्य के लोग इस दौर से भी निकल गए। ध्यान देने लायक बात है कि इस कठिन दौर में भी खेती और औद्योगिक उत्पादन नीचे नहीं आया।
सामाजिक-आर्थिक हिसाब से देखें तो देश के बाकी हिस्सों की तरह यहां भी दलित हाशिए पर ही हैं। करीब 32 प्रतिशत की आबादी होने के बावजूद जमीन और संपत्ति में उनका न्यूनतम हिस्सा है। सिख धर्म के कारण उन्हें उस तरह के सामाजिक उत्पीडऩ का शिकार नहीं होना पड़ता है, जो देश के बाकी हिस्सों में दिखाई देता है, लेकिन उनका आर्थिक शोषण कम नहीं है। शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में भी उनकी भागीदारी काफी कम है।
यह भी समझना गलत होगा कि समुदाय के रूप में दलित आपस में एक हैं। उनका एक तिहाई हिस्सा सिख है और मजहबी सिख कहलाता है। वे खेती से जुड़े हैं और ज्यादातर भूमिहीन किसान और खेतिहर मजदूर हैं। चर्मकार और वाल्मिकी समाज की तादाद भी अच्छी है। वे क्षेत्रीय आधार पर भी आपस में बंटे हुए हैं। उनकी राजनीतिक भागीदारी क्षेत्रीय आधार पर भी तय होती है।
कांशीराम ने अस्सी के दशक में दलितों को एक करने की कोशिश की थी और उनके प्रयासों का असर 1992 के चुनावों में दिखाई पड़ा। बीएसपी ने तब विधानसभा की नौ सीटें जीत ली थीं और उसे कुल 16 प्रतिशत वोट मिले। पार्टी ने 1996 का लोकसभा चुनाव शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर लड़ा और तीन सीटों पर कब्जा किया। कांशीराम भी चुने गए। लेकिन कांशीराम के बाद बीएसपी का फोकस उत्तर प्रदेश पर ही रहा और पंजाब में पार्टी का आधार कमजोर होता गया। 2017 के चुनावों में उसे सिर्फ डेढ़ प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा।
परंपरागत रूप से दलित कांग्रेस के साथ रहे हैं। उसके जनाधार में बीएसपी की ओर से सेंध लगी थी, लेकिन अब दलित वापस इस ओर आ गए हैं। कांग्रेस ने 2017 के चुनावों में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 34 में से 22 सीटें जीती थीं। इसे ध्यान में रख कर ही अकाली दल ने आने वाले चुनावों के लिए मायावती से गठबंधन किया है। उसने बीएसपी को बीस सीटें दी हैं। अकाली दल ने यह वादा भी किया है कि उसकी सरकार आई तो वह दलित को उपमुख्यमंत्री पद देगा।
यह कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती थी कि दलित समुदाय को वह किस तरह संतुष्ट करे। सत्ता-विरोधी भावना से डरी हुई कांग्रेस के लिए दलित समुदाय का वोट काफी मायने रखता है। कांग्रेस के इस दांव ने अकाली दल के उपमुख्यमंत्री पद के वादे को तो निरर्थक बना ही दिया है, लेकिन क्या दलित समुदाय का दिल जीतने के लिए यह काफी होगा?
मजबूरियां कम नहीं
निश्चित रूप से विपक्षी दल इस कदम के पीछे छुपी कांग्रेस की मजबूरियां गिनाएंगे। सच भी है, पंजाब में दलित मुख्यमंत्री बनाने के पीछे कुछ तात्कालिक कारण भी काम कर रहे थे। एक बड़ा कारण तो यह था कि लंबे समय से कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे कैप्टन अमरिंदर की जगह भरने के लिए ऐसे नेता की जरूरत थी, जो पार्टी के भीतर का शक्ति-संतुलन स्थिर रखे। नवजोत सिंह सिद्धू से खार खाए कैप्टन ने उनके खिलाफ ऐसा बयान दे दिया, जिससे विपक्ष को तिल मिल गया है। वह जब चाहे इसका ताड़ बना सकता है। जाटों के दो बड़े नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा और सुनील जाखड़ के नाम पर सहमति न हो पाना भी एक कारण रहा, जिसकी वजह से अंत में चन्नी का नाम तय करना पड़ा।
इन सबके बावजूद कांग्रेस का यह फैसला दूरगामी परिणाम ला सकता है। उत्तर प्रदेश में मायावती कांग्रेस पर निशाना साधती रही हैं। प्रतीकों की राजनीति के दौर में यह कदम अनदेखा नहीं रह सकता। यह भी ध्यान रखना होगा कि तमाम किंतु-परंतु के बावजूद यह सामाजिक प्रगति की ओर एक कदम है।

चीन हमारे मुकाबले में कहीं खड़ा ही नहीं हो सकता

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को जो भाषण दिया, वह ऐतिहासिक सिर्फ इसलिए नहीं है कि उसमें अफगानिस्तान, आतंकवाद और कोरोना जैसी चुनौतियों पर बड़ी स्पष्टता और उतनी ही गंभीरता से भारत का पक्ष रखा गया है। प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की अहमियत इस बात में है कि छोटे मसलों में उलझने के बजाय इसमें बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों से उभरी चुनौतियों को रेखांकित करने की कोशिश की गई और इससे भी बड़ी बात यह कि इन चुनौतियों के पीछे छिपे अवसर को पहचानते हुए उसका उपयुक्त इस्तेमाल करने की दूरदर्शिता दिखाई गई है। यह अकारण नहीं है कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भारत को लोकतंत्र की जननी के रूप में चित्रित करते हुए वैश्विक बिरादरी को याद दिलाया कि हमारे देश में लोकतंत्र की हजारों वर्षों की परंपरा है।
विविधता हमारे समाज की पारंपरिक विशिष्टता रही है। कामकाज में पारदर्शिता हमारी स्वाभाविक शैली है। गौर करने की बात यह है कि ये कुछ ऐसे बिंदु हैं, जहां चीन मुकाबले में कहीं खड़ा ही नहीं हो सकता। न तो वहां लोकतंत्र है और ना ही पारदर्शिता। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में ठीक ही कोरोना की उत्पत्ति और वर्ल्ड बैंक के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स के कैंसिलेशन का मुद्दा उठाया। वैश्विक बिरादरी इन दोनों सवालों पर चीनी रुख में पारदर्शिता की कमी से जूझ रही है। दुनिया देख सकती है कि एक तरफ भारत है, जो कोरोना की चुनौती से खुद जूझते हुए भी दूसरे देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराने की जद्दोजहद में जुटा हुआ है, दूसरी तरफ चीन है जो कोरोना की उत्पत्ति की गुत्थी को सुलझाने तक में सहयोग देने को तैयार नहीं।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण के जरिए बड़ी खूबसूरती से वैश्विक मामलों पर बोलने के चीन के नैतिक अधिकार पर सवाल खड़ा कर दिया। ध्यान रहे, नए अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के लिहाज से चीन का वर्चस्ववादी और आक्रामक रुख ही सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र के मंच से प्रधानमंत्री का यह दर्शाना महत्वपूर्ण है कि चीन का रुख न केवल अन्य देशों की भौगोलिक सीमाओं और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों में स्वतंत्र व्यापारिक गतिविधियों के लिए खतरा बनता जा रहा है बल्कि यह आधुनिकता और प्रगतिशील मूल्यों के भी खिलाफ है।
ऐसे में चीन के साथ सहयोग का दायरा बढ़ाने की कोई भी कोशिश उदार वैश्विक मूल्यों को खतरे में डालेगी। इसी बिंदु पर भारत के लिए संभावनाओं के नए द्वार भी खुलते हैं। निवेश के अवसरों से भरपूर एक लोकतांत्रिक और पारदर्शितापूर्ण समाज के तौर पर भारत बेहतर विकल्प के रूप में दुनिया के सामने मौजूद है। ग्लोबल सप्लाई चेन में चीन की जगह लेने को भारत तैयार है। भारत और वैश्विक समुदाय का यह साथ न केवल भारत के विकास की दृष्टि से बल्कि सद्भावपूर्ण, लोकतांत्रिक और उदार दुनिया सुनिश्चित करने के लिहाज से भी उपयोगी होगा।

एडीपी ने क्षेत्रीय असमानता को कैसे दूर किया

अमिताभ कांत –
दुर्गम पहाड़ी इलाके में स्थित नागालैंड का किफिर भारत के सबसे दूरस्थ जिलों में से एक है। जिले के अधिकतर लोग कृषि और इससे जुड़े काम करते हैं। उन्हें खोलर या राजमा की खेती करना अधिक पंसद है। स्थानीय लोगों की आजीविका बढ़ाने के लिए खोलर की खेती की संभावना को देखते हुए 2019 में आकांक्षी जिला कार्यक्रम के माध्यम से इसकी पैकेजिंग सुविधा स्थापित की गई थी। यह सुविधा किसानों के बीच बड़ी तेजी से लोकप्रिय हुई थी। तब से, बड़े पैमाने पर खोलर की खेती शुरू हो गई है और किफिर के राजमा अब पूरे देश में जनजातीय कार्य मंत्रालय के पोर्टल ञ्जह्म्द्बड्ढद्गह्यढ्ढठ्ठस्रद्बड्ड.ष्शद्व पर बेचे जा रहे हैं।
इसी तरह की सफलता की दास्तान 112 जिलों में भी हैं, जो 2018 में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए आकांक्षी जिला कार्यक्रम (एडीपी) का हिस्सा हैं। शुरुआत से ही एडीपी ने भारत के कुछ सबसे पिछड़े और दूरदराज के जिलों में विकास को बढ़ावा देने की दिशा में लगातार काम किया है।
इस वर्ष के शुरु में यूएनडीपी ने इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए स्थानीय क्षेत्र के विकास का अत्यंत सफल मॉडल बताया और कहा कि इसे ऐसे अन्य देशों में भी अपनाया जाना चाहिए, जहां अनेक कारणों से विकास में क्षेत्रीय असमानताएं रहती हैं। वर्ष 2020 में प्रतिस्पर्धात्मकता संस्थान ने भी भारत के सबसे कम विकसित क्षेत्रों के इस कार्यक्रम के दूरगामी प्रभाव को सराहा था।
कार्यक्रम की शुरूआत से ही सकारात्मक सामाजिक और आर्थिक प्रभाव के साथ ही स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के राउंड 5 के चरण 1 के अनुसार प्रसवपूर्व देखभाल, संस्थागत प्रसव, बाल टीकाकरण, परिवार नियोजन की विधियों का उपयोग जैसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्रों में आकांक्षी जिलों में अपेक्षाकृत तेजी से सुधार हुआ है। इसी तरह से इन जिलों में बुनियादी ढांचागत सुविधाएं, बिजली, स्वच्छ ईंधन और स्वच्छता के लक्ष्य भी अपेक्षाकृत तेजी से हासिल किए गए हैं।
इस कार्यक्रम से पांच क्षेत्रों: स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि और जल संसाधन, बुनियादी ढांचा, वित्तीय समावेशन और कौशल विकास के 49 प्रमुख निष्पादन संकेतकों (केपीआई) पर जिलों के प्रदर्शन को ट्रैक कर और रैंक देकर इन उपलब्धियों को हासिल किया गया है ।
एडीपी का ध्यान इन जिलों के शासन में सुधार पर केंद्रीत होने से न केवल सरकारी सेवाएं प्रदान करने में सुधार हुआ है, बल्कि स्वयं इन जिलों द्वारा ऊर्जावान और अभिनव प्रयास भी किए गए।
एडीपी तैयार करने में दो महत्वपूर्ण वास्तविकताओं को ध्यान में रखा गया है। पहला, निधि की कमी ही पिछड़ेपन का एकमात्र या प्रमुख कारण नहीं है क्योंकि खराब शासन के कारण मौजूदा योजनाओं (केंद्र और राज्य दोनों की) के तहत उपलब्ध कोष का बेहतर तरीके से उपयोग नहीं किया जाता है। दूसरा, लंबे समय से इन जिलों की उपेक्षा किए जाने के कारण जिला अधिकारियों में उत्साह कम हो गया है। असल में इन जिलों की क्षमता को उजागर करने में आंकड़ो पर आधारित शासन से इस मानसिकता को समाप्त करना महत्वपूर्ण है।
कार्यान्वयन के तीन वर्ष में ही कार्यक्रम के जरिए संमिलन (केंद्र और राज्य की योजनाओं के बीच), सहयोग (केंद्र, राज्य, जिला और विकास साझेदारों के बीच) और प्रतिस्पर्धा (जिलों के बीच) के अपने मूल सिद्धांतों के माध्यम से कई क्षेत्रों में पर्याप्त सुधार लाने के लिए उचित संस्थागत ढांचा उपलब्ध कराया गया है।
एडीपी के माध्यम से सरकार न केवल सुव्यवस्थित समन्वय के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रही है, बल्कि लक्ष्य हासिल करने के लिए उचित प्रयास भी कर रही है। नीति आयोग द्वारा विकसित एडीपी का चैम्पियंस ऑफ चेंज प्लेटफॉर्म का स्वसेवा विश्लेषण उपकरण जिला प्रशासन के लिए मददगार है। इससे उन्हें आंकड़ों का विश्लेषण करने और स्थानीय क्षेत्र की लक्षित योजनाएं तैयार करने में सहायता मिलती है। इस प्लेटफॉर्म से यह सुनिश्चित किया जाता है कि कार्यक्रम की डेल्टा रैंकिंग में अपनी स्थिति सुधारने के लिए जिले लगातार एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करें। प्रतिस्पर्धा से बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए लगातार नए विचारों को तलाशा जाता है।
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में अनेक योजनाओं के जरिए क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने का प्रयास किया गया है, लेकिन उनके बीच बहुत कम संमिलन रहा है। जिलों को 49 केपीआई पर आंककर एडीपी ने उन योजनाओं को सुव्यवस्थित और प्रसारित करना उनके विवेक पर छोड़ दिया है, जिससे वे बेहतर उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह, व्यक्तिगत योजनाओं के दायरे से परे विकास के प्रयास किए जाते हैं। केंद्र, राज्य और जिला स्तर के प्रयासों का यह संमिलन एडीपी के संस्थापक सिद्धांतों में से एक है।
इस कार्यक्रम ने समान प्रयास करने या साइलो में काम करने के विपरित गैर सरकारी संगठनों/नागरिक समाज संगठनों और जिला प्रशासन को एक-दूसरे के सहयोग से काम करने के लिए एकजुट किया है। इसने यह सुनिश्चित किया है कि सरकार, समाज और बाजार सभी अपनी-अपनी परिसंपत्ति का लाभ उठाकर समान उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में काम कर सकते हैं।
पिछले कुछ वर्षों से जिलों द्वारा अपने- अपने बेहतर तरीकों को एक-दूसरे से साझा करने से सभी लाभान्वित हुए हैं। एक जिले द्वारा नवोन्मेषी और अपनाए गए तरीकों का अन्य जिले द्वारा अनुसरण किया गया है। कार्यक्रम में स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप तरीकों को बदलने के लिए आवश्यक लचीलापन अपनाने के साथ ही जिलों में ऐसी प्रेरक भावना भरी जा सकती है।
आकांक्षी जिला कार्यक्रम राज्यों और यहां तक कि जिलों के मतभेदों के प्रति अत्यधिक जागरूक है और यह उन मतभेदों को दूर करने के लिए एक उपयुक्त तंत्र उपलब्ध कराता है। असल में, कार्यक्रम का उद्देश्य ब्लॉक स्तर पर इस मॉडल को दोहराने के लिए जिलों को प्रोत्साहित कर इस विचार को बढ़ावा देना है। हमें उम्मीद है कि इस मॉडल को बढ़ावा देने से जिले के समक्ष आने वाली चुनौतियों और उनसे निपटने के तरीके के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होगी।
एडीपी सहकारी-प्रतिस्पर्धी संघवाद का एक शानदार उदाहरण है। एडीपी के खाके और सफलताओं के बारे में अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सराहना और सिफारिशें हमारे प्रयासों को अत्यधिक सार्थक बनाती हैं। असल में, यह उचित है कि क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने का मॉडल दुनिया के सबसे विविध देशों में से एक से आना चाहिए और हम समान विकास के सर्वोत्तम साधन के तौर पर इस कार्यक्रम को तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
(लेखक नीति आयोग के मुख्य कार्यकार अधिकारी (सीईओ) हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

तम्बाकू के छोटे दुकानदारों के साथ-साथ बड़े व्यवसायी पर भी कार्रवाई आवश्यक – श्री बन्ना गुप्ता – स्वास्थ्य मंत्री

राँची, 27.09.2021 – स्वास्थ्य मंत्री श्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि तंबाकू कंपनियां भी अपना व्यापार बढ़ाने के लिए लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने का कार्य कर रहे हैं। वे अब लड़कों के साथ-साथ लड़कियों में भी इसका प्रचलन बढ़ाने की ओर कार्य कर रहीं है। यदि महिलाएं तंबाकू का सेवन करती हैं, तो उनका स्वास्थ्य तो प्रभावित होगा हि साथ-साथ आने वाले बच्चों पर भी बुरा असर पड़ेगा। लोगों का तंबाकू के इस्तेमाल से मुक्ति के लिए उनके बीच जागरूकता फैलाकर और सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का सख्ती से पालन करा कर ही रोकथाम किया जा सकता है। माननीय मंत्री आज राज्य तम्बाकू नियंत्रण कोषांग एवं सीड्स द्वारा नामकुम में आयोजीत कार्यशाला में बोल रहे थे। इस अवसर पर श्री बन्ना गुप्ता द्वारा Global Youth Tobacco Survey (GYTS) में झारखंड के आंकड़ों का भी विमोचन किया गया।

 

श्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि भारत सरकार के ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे के अनुसार भारत में 13 से 15 वर्ष के आयु वर्ग में 8.5 प्रतिशत छात्र/छात्रा किसी न किसी रूप में तम्बाकू का सेवन करते है। जबकी झारखण्ड में 13 से 15 वर्ष के आयु वर्ग में 5.1 प्रतिशत छात्र/छात्रा किसी न किसी रूप में तम्बाकू का सेवन करते है। उन्होने कहा कि कोटपा, 2003 के प्रावधानों को लागू करने का मुख्य उद्देष्य कम उम्र के युवाओं एवं छात्र/छात्राओं को तम्बाकू उत्पाद की पहुंच से रोकना है, इस हेतु कोटपा का शत प्रतिशत अनुपालन किया जाना चाहिए। श्री गुप्ता ने कार्यक्रम में उपस्थित केन्द्र सरकार के प्रतिनिधियों को झारखण्ड विधान सभा में कोटपा संशोधन बिल 2021 के तर्ज पर केन्द्रीय कोटपा कानून में संशोधन करने का भी अनुरोध किया।

माननीय मंत्री जी ने बताया कि झारखंड सरकार तम्बाकू के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के लिये प्रतिबद्ध है। सरकार ने इस हेतु विधानसभा में बिल भी पारित किया है, जिसमें तम्बाकू के इस्तेमाल एवं इसके व्यवसाय में संलग्न लोगों के कमसे कम उम्र की सिमा को 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष का प्रावधान किया गया है। सरकार ने सार्वजनिक जगहों पर तम्बाकू के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया ही है, साथ ही साथ स्कूल, कॉलेज, सरकारी संस्थान, कोर्ट आदि के 100 मीटर दायरे में इसके बेचने व इस्तेमाल करने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। राज्य सरकार ने एक नया पहल भी किया है कि सरकारी संस्थाओं में नए जॉइनिंग करने वाले लोगों द्वारा यह घोषणा करवाया जा रहा है कि वह तंबाकू का इस्तेमाल भविष्य में नहीं करेंगे।

श्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि छोटे दुकानदारों पर कार्रवाई के साथ-साथ बड़े व्यवसायी जो तंबाकू निर्माण का काम कर रहे हैं, उन पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक है। झारखंड में सरकार द्वारा तंबाकू के इस्तेमाल में रोक लगाने के लिये लगातार प्रयाश किये जा रहें है। इसी का परिणाम है कि राज्य में तम्बाकू इस्तेमाल करने वालों का आँकडा 50.1 प्रतिशत से घटकर 38.9 प्रतिश्त हो गया है। लेकिन यह आँकड़ा अभी भी देश के आँकड़े 28.6 प्रतिशत से काफि अधिक है। इस ओर हम सब को सम्मिलित रूप से कार्यप्रणाली बनाकर कार्य करते हुए इसे और कम करने का प्रयास करना है।

कार्यशाला में सीड्स के कार्यपालक निदेशक श्री दिपक कुमार मिश्रा ने प्रजेंटेशन के माध्यम से राज्य में तम्बाकू नियंत्रण हेतु स्वास्थ्य विभाग, राज्य स्तरीय तम्बाकू नियंत्रण समन्वय समिति एवं सीड्स द्वारा सम्मीलित प्रयास से किये जा रहे कार्यों के बारे में बताया। इस अवसर पर उन्होंने राज्य में तम्बाकू इस्तेमाल करने वालों के आँकडे बताये, इन्हें रोकने के लिये सरकार के COTPA-2003 ऐक्ट, JJ ऐक्ट, फूड सेफ्टी ऐक्ट, वेंडर लाइसेंसिंग प्रोविजन आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अपर अभियान निदेशक श्री विद्यानन्द शर्मा,  सीड्स के कार्यपालक निदेशक श्री दीपक मिश्रा, दी यूनियन के वरीय तकनिकी सलाहकार डॉ0 अमीत यादव, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता श्री रंजीत सिंह, राज्य एन.सी.डी. कोषांग के नोडल पदाधिकारी डॉ0 ललित रंजन पाठक, राज्य सलाहकार श्री राजीव कुमार एवं वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से भारत सरकार के उप सचिव श्री पुलकेश कुमार, डॉ रंगासामी नागराजन, पूजा गुप्ता उपस्थित रहें।

नक्सलियों के खिलाफ युद्ध को अवश्य जीतेंगे : हेमन्त सोरेन

* उग्रवादी घटनाओं की संख्या में कमी आयी है

*715 उग्रवादी हुए गिरफ्तार,18 उग्रवादी मारे गए और 27 उग्रवादियों ने किया सरेंडर

* पेंशन योजनाओं की समीक्षा करे केंद्र सरकार – हेमन्त सोरेन, मुख्यमंत्री

नई दिल्ली/रांची, 26.09.2021

वर्ष 2016 में 195 उग्रवादी घटनाएं हुई थीं। यह संख्या वर्ष 2020 में घटकर 125 रह गयी है। वर्ष 2016 में उग्रवादियों द्वारा 61 आम नागरिकों की हत्या की गयी थी, वर्ष 2020 में यह संख्या 28 रही। इस अवधि में कुल 715 उग्रवादी गिरफ्तारी हुए। उक्त अवधि में पुलिस मुठभेड़ में 18 उग्रवादियों को मार गिराया गया था। ये बातें मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कही। मुख्यमंत्री नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में “वामपंथी उग्रवाद” पर आयोजित उच्चस्तरीय बैठक में बोल रहे थे।

चार स्थानों में सिमटे नक्सली

मुख्यमंत्री ने कहा कि उग्रवादी संगठनों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई की जा रही है। इन अभियानों के फलस्वरूप राज्य में उग्रवादियों की उपस्थिति मुख्य रूप से पारसनाथ पहाड़, बूढ़ा पहाड़, सरायकेला, खूंटी, चाईबासा, कोल्हान क्षेत्र तथा बिहार सीमा के कुछ इलाके तक सीमित रह गई है। वह दिन दूर नहीं जब इन स्थानों से भी वामपंथी उग्रवाद का सफाया किया जा सकेगा।

मुख्यधारा में वापस लाने का हो रहा प्रयास

मुख्यमंत्री ने बताया कि वर्ष 2020 तथा 2021 के अगस्त तक 27 उग्रवादियों द्वारा आत्मसमर्पण भी किया गया है। राज्य की आकर्षक आत्मसमर्पण नीति का प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है। कम्युनिटी पुलिसिंग के द्वारा भटके युवाओं को मुख्य धारा में वापस लाने का प्रयास हो रहा है। राज्य सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में युवाओं के लिए ‘सहाय’ योजना लेकर आ रही है, जिसके अन्तर्गत इन क्षेत्रों में विभिन्न खेलों के माध्यम से युवाओं और अन्य लोगों को जोड़ा जायेगा।

राशि की मांग करना व्यवहारिक नहीं

मुख्यमंत्री ने कहा कि उग्रवाद की समस्या केन्द्र तथा राज्य सरकार दोनों के लिए बड़ी चुनौती है। ऐसी परिस्थिति में केन्द्रीय सुरक्षा बलों की प्रतिनियुक्ति के बदले भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों से राशि की मांग करना व्यवहारिक प्रतीत नहीं होता है। इस मद में झारखण्ड के विरुद्ध अबतक 10 हजार करोड़ रुपये का बिल गृह मंत्रालय द्वारा दिया गया है। मेरा अनुरोध होगा कि इन बिलों को खारिज करते हुए भविष्य में इस तरह का बिल राज्य सरकारों को नहीं भेजने का निर्णय भारत सरकार द्वारा लिया जाये।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में योजनाएं अचानक बंद न हो

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत सरकार द्वारा समय-समय पर उग्रवाद के उन्मूलन हेतु कई योजनाएं लागू की गयी हैं। इन योजनाओं से विशेष लाभ भी मिला है, परन्तु ऐसा देखा गया है कि कुछ जिलों के लिए इन योजनाओं को अचानक बंद कर दिया गया, जिससे उग्रवाद उन्मूलन की दिशा में किये जा रहे प्रयासों को आघात पहुंचता है। अचानक इन योजनाओं को बंद कर देने से उग्रवाद को पुनः पैर पसारने का मौका मिल सकता है। इसी संदर्भ में विशेष केंद्रीय सहायता

के तहत् प्रति जिला 33 करोड़ रुपये की राशि भारत सरकार द्वारा उपलब्ध करायी जाती है। प्रारम्भ में यह योजना 16 जिलों के लिए स्वीकृत की गयी थी, परन्तु इस वर्ष यह योजना मात्र 08 जिलों के लिए जारी रखी गयी है। इसी प्रकार एसआरई योजना से कोडरमा, रामगढ़ तथा सिमडेगा को बाहर कर दिया गया है। अतएव मेरा अनुरोध होगा कि दोनों योजनाओं को सभी नक्सल प्रभावित जिलों के लिए अगले पांच वर्षों तक जारी रखा जाय।

मनरेगा मजदूरी दर और पेंशन राशि बढ़े

मुख्यमंत्री ने कहा कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की दशा को सुधारने में मनरेगा एक कारगर उपाय है। मनरेगा झारखण्ड में बहुत मजबूती से आगे बढ़ रहा है। परन्तु, झारखण्ड के श्रमिकों को जो मजदूरी दर मिल रही है, वह देश में सबसे कम है। अन्य राज्यों में 300 रु / दिन से ज्यादा मिल रही है, मगर झारखण्ड में 200 रु. भी नहीं। हमने राज्य की निधि से मजदूरी बढ़ाने का निर्णय लिया है। मेहनतकश झारखंडियों को भी मनरेगा के तहत सही मजदूरी मिलनी चाहिए। सामाजिक सुरक्षा के तहत भारत सरकार के द्वारा जो विभिन्न पेंशन योजनाएं चलायी जा रही हैं उसे फिर से देखने की जरूरत है। अभी भी भारत सरकार एक वृद्ध / विधवा / दिव्यांग को प्रति महीने जीवनयापन सहायता के रूप में मात्र 250  रुपये प्रति महीने देती है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र जहाँ जीविकोपार्जन अन्य क्षेत्रों से ज्यादा कठिन है, वहाँ के लिए तो यह राशि बढ़नी ही चाहिए।

शिक्षा के लिए विद्यालयों की संख्या बढ़े

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में 192 एकलव्य विद्यालय स्वीकृत किये गये हैं। इनमें से 82 उग्रवाद प्रभावित जिलों में स्थापित होंगे। मेरा अनुरोध होगा कि एकलव्य विद्यालय की स्वीकृति हेतु निर्धारित मापदण्ड में 50% की शर्त को समाप्त किया जाए, ताकि आदिवासी बहुल ग्रामीण क्षेत्रों को इस योजना का लाभ मिल सके। झारखण्ड में 261 प्रखंड हैं, परन्तु मात्र 203 प्रखंडों में ही केंद्र सरकार की सहायता से कस्तूरबा विद्यालय का निर्माण किया गया। 57 विद्यालय राज्य सरकार अपनी निधि से प्रारंभ की है। राज्य की बेटियां इन विद्यालयों में नामांकन चाहती हैं। झारखण्ड जो सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित हैं, वहाँ 100 कस्तूरबा विद्यालयों के लिए केंद्र सरकार सहयोग करे। नक्सल विरोधी अभियान में हमारी सरकार एवं केन्द्र सरकार के बीच बेहतर समन्वय हमेशा बना रहेगा और मैं आशा करता हूँ कि हम सब मिलकर इस युद्ध को अवश्य जीत पायेंगे।

पोषण अभियान योजना के तहत प्रशिक्षण का आयोजन

 

रांची, अति कुपोषित बच्चों की पहचान, समुदाय स्तर पर उनका उपचार और कुपोषण के प्रति जागरुकता को लेकर पोषण अभियान योजना अन्तर्गत पोषण माह के दौरान राज्यस्तरीय ऑनलाइन प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। यूनिसेफ द्वारा आयोजित किये गये प्रशिक्षण कार्यक्रम में जिला समाज कल्याण पदाधिकारी श्रीमती श्वेता भारती एवं जिला के सभी बाल विकास परियोजना पदाधिकारी शामिल हुए।

पोषण माह 2021 के अन्तर्गत ऑनलाइन प्रशिक्षण में रिम्म के चिकित्सकों ने कुपोषित बच्चों की पहचान, समुदाय स्तर पर उनका उपचार और जागरुकता को लेकर विस्तार से सभी को जानकारी दी।

स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी झारखंड प्रदेश रांची के प्रदेश कार्यकारिणी पदाधिकारियों सदस्यों का चुनाव

रांची, 26.09.2021  – स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी झारखंड प्रदेश रांची के प्रदेश कार्यकारिणी पदाधिकारियों सदस्यों का आम सहमति से चुनाव किया गया जो इस प्रकार है प्रदेश अध्यक्ष श्री राम प्रकाश तिवारी. प्रदेश प्रधान महासचिव श्री राम रंजन कुमार सिंह. प्रदेश उपाध्यक्ष. श्री गोपाल राय, श्री सुरेंद्र भगत.श्री शंभू लाल वर्णवाल, प्रदेश महासचिव.  मोहम्मद इरफान खान, अजय शंकर कुमार, शैलवाहन कुमार, के. डी. मोदी प्रदेश सचिव. जय शंभू मिश्रा, टीयोसियस, दीपक डे. प्रदेश संगठन प्रचार सचिव. तालकेस्वर केसरी, परशुराम प्रसाद, सुधांशु शेखर. प्रदेश कोषाध्यक्ष, विमल कुमार. प्रदेश उपसचिव. अनिल कुमार तिवारी, केदारनाथ प्रसाद, रंजीत खत्री, अनिल लकड़ा ,अमृत कुमार महतो, मंगल सिंह टोप्पो.  प्रदेश संगठन सचिव. लीना अंजना बाड़ा, संजय कुमार सिन्हा. प्रेस  प्रवक्ता. पियूष झा. कार्यकारिणी सदस्य. नीलिमा वर्मा, दिलीप कुमार, विमल देव.

उपरोक्त निर्वाचित प्रदेश कार्यकारिणी पदाधिकारियों, सदस्यों ने निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किया और हेमंत सरकार से मांग करते हुए कार्रवाई करने की मांग की इस प्रकार है लाखों गरीब मध्यम संपन्न वर्गों आदिवासी दलित पिछड़े वर्गों के बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए तत्काल कक्षा नर्सरी  से पांच  की पढ़ाई शुरू करें और  प्राइमरी स्कूलों को खोलें. झारखंड निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा  का अधिकार (प्रथम संशोधन) 2019 के काला कानून रद्द करके बिना शर्त सभी विद्यालयों को मान्यता दे. आर्थिक संकट से गुजर रहे परेशान आम जनता, मजदूर, किसान, प्राइवेट स्कूलों के संचालको, शिक्षकों, कर्मचारियों , विभिन्न कारखाना में कार्यरत को   तत्काल आर्थिक राहत सहायता दे.  कोरोना  महामारी से काम धंधा चौपट आर्थिक संकट से गुजर रहे छोटे मध्यम कारोबारियों को आर्थिक सहायता प्रदान करें अपने चुनावी वादे अनुसार सभी शिक्षित बेरोजगार युवाओं को ₹7000 प्रति माह रोजगारी भत्ता दे और पांच लाख बेरोजगारों को सरकारी नौकरी दे.  सामान्य कार्य का समान वेतन दे .सभी नागरिकों को. बिजली, पेयजल, शिक्षा,चिकित्सा,आवास, सुविधा उपलब्ध कराएं. बैठक में विभिन्न संगठनों संस्थाओं एवं झारखंड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन, नेशनल प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन, आरक्षण गैर सरकारी स्कूल संचालक एवं यूथ इंडिया इत्यादि संगठनों के पदाधिकारी सदस्य शामिल हुए .बैठक में उपस्थित पदाधिकारियों,सदस्य  के  नाम  श्री शिव शंकर सिंह, विवेक कुमार त्रिपाठी, अजय शंकर कुमार, राजदेव प्रसाद अन्य कार्यकर्ता उपस्थित थे

उक्त जानकारी अजय शंकर कुमार प्रदेश महासचिव स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी झारखंड प्रदेश रांची ने दी.

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन वामपंथी उग्रवाद और सुरक्षा और विकास से संबंधित मुद्दों पर आयोजित समीक्षा बैठक में भाग लेंगे

नई दिल्ली/रांची – 25.09.2021
मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन रविवार को नई दिल्ली में होने वाली ‘वामपंथी उग्रवाद और सुरक्षा और विकास से संबंधित मुद्दों पर आयोजित समीक्षा बैठक में भाग लेंगे। केंद्रीय गृह मंत्री, श्री अमित शाह माओवादी प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और केंद्र और राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ उक्त बैठक की अध्यक्षता करेंगे। बैठक के दौरान मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन राज्य में आदिवासी क्षेत्रों के विकास में केंद्र के योगदान के साथ-साथ राज्य में वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों के लिए विशेष केंद्रीय सहायता कोष के विस्तार जैसे मुद्दों को रखेंगे।।

प्रस्ताव होगा पेश

मुख्यमंत्री वामपंथी प्रभावित जिलों में व्यवस्थित विकास और महत्वपूर्ण बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्र द्वारा राज्यों को दी जाने वाली राशि में कटौती से संबंधित मुद्दों को उठा सकते हैं। हाल ही में, केंद्र सरकार ने झारखंड के 08 जिलों के विशेष केंद्रीय सहायता फंड में कटौती की है। इससे पहले यह राज्य के 16 वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों को दिया गया था।

नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई का होगा जिक्र
मुख्यमंत्री राज्य में नक्सल गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए उठाए जा रहे महत्वपूर्ण कदमों से संबंधित रिकॉर्ड भी पेश करेंगे। राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में आवश्यक बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के लिए केंद्र को सहयोग देने का आग्रह किया जाएगा।जिसमें सड़क निर्माण, कस्तूरबा बालिका विद्यालय के लिए सहायता और व्यापक इंटरनेट और मोबाइल-टेलीकॉम सुविधा शामिल है।

अन्य मुद्दे जो होंगे चर्चा का विषय

मनरेगा श्रमिकों के न्यूनतम दैनिक वेतन को बढ़ाने और इसे अन्य राज्यों के बराबर लाने से जुड़े मुद्दे भी उनके संबोधन का हिस्सा होंगे। मुख्यमंत्री सामाजिक सुरक्षा के दायरे में भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही पेंशन योजनाओं में आवश्यक संशोधन पर भी अपनी बात रखेंगे। जो वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में रहने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण है। मुख्यमंत्री आदिवासी क्षेत्रों में एकलव्य विद्यालय के आवंटन के लिए शर्तों में संशोधन का भी प्रस्ताव करेंगे, जिससे राज्य में और एकलव्य विद्यालय स्वीकृत करने के दरवाजे खुल सकते हैं। झारखंड की विभिन्न पंचायतों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर भी मुख्यमंत्री अपना पक्ष रखेंगे।

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