जापान के नए प्रधानमंत्री ने विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना

वेद प्रताप वैदिक – जापान के नए प्रधानमंत्री फ्यूमियों किशिदा ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना, यह अपने आप में महत्वपूर्ण है। भारत और जापान के बीच कुछ दिन पहले चौगुटे (क्वाड) की बैठक में ही संवाद हो चुका था लेकिन इस द्विपक्षीय भेंट का महत्व इसलिए भी था कि यूक्रेन-रूस युद्ध अभी तक चला हुआ है। दुनिया यह देख रही थी कि जो जापान दिल खोलकर भारत में पैसा बहा रहा है, कहीं वह यूक्रेन के सवाल पर भारत को फिसलाने की कोशिश तो नहीं करेगा. लेकिन भारत सरकार को हमें दाद देनी होगी कि मोदी-किशिदा वार्ता और संयुक्त बयान में वह अपनी टेक पर अड़ी रही और अपनी तटस्थता की नीति पर टस से मस नहीं हुई।यह ठीक है कि जापानी प्रधानमंत्री ने अगले पांच साल में भारत में 42 बिलियन डॉलर की पूंजी लगाने की घोषणा की और छह मुद्दों पर समझौते भी किए लेकिन वे भारत को रूस के विरुद्ध बोलने के लिए मजबूर नहीं कर सके। भारत ने राष्ट्रों की सुरक्षा और संप्रभुता को बनाए रखने पर जोर जरुर दिया और यूक्रेन में युद्धबंदी की मांग भी की लेकिन उसने अमेरिका के सुर में सुर मिलाते हुए जबानी जमा-खर्च नहीं किया। अमेरिका और उसके साथी राष्ट्रों ने पहले तो यूक्रेन को पानी पर चढ़ा दिया।उसे नाटो में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया और रूस ने जब हमला किया तो सब दुम दबाकर बैठ गए। यूक्रेन को मिट्टी में मिलाया जा रहा है लेकिन पश्चिमी राष्ट्रों की हिम्मत नहीं कि वे रूस पर कोई लगाम कस सकें। किशिदा ने मोदी के साथ बातचीत में और बाद में पत्रकारों से बात करते हुए रूस की काफी भर्त्सना की. लेकिन मोदी ने कोरोना महामारी की वापसी की आशंकाओं और विश्व राजनीति में आ रहे बुनियादी परिवर्तनों की तरफ ज्यादा जोर दिया। जापानी प्रधानमंत्री ने चीन की विस्तारवादी नीति की आलोचना भी की।उन्होंने दक्षिण चीनी समुद्र का मुद्दा तो उठाया लेकिन उन्होंने गलवान घाटी की भारत-चीन मुठभेड़ का जिक्र तक नहीं किया। भारत सरकार अपने राष्ट्रहितों की परवाह करे.या दुनिया भर के मुद्दों पर फिजूल की चौधराहट करती फिरे ? चीनी विदेश मंत्री वांग यी भी भारत आ रहे हैं।

चीन और भारत, दोनों की नीतियां यूक्रेन के बारे में लगभग एक-जैसी हैं।भारत कोई अतिवादी रवैया अपनाकर अपना नुकसान क्यों करें? भारत-जापान द्विपक्षीय सहयोग के मामले में दोनों पक्षों का रवैया रचनात्मक रहा।

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रियायती दर पर तेल मिलना भारत के लिए फायदे की बात है

22.03.2022, रियायती दर पर तेल मिलना और गेहूं निर्यात मे मुनाफा भारत के लिए फायदे की बात है। संभवत: इसीलिए रूस के खिलाफ पश्चिमी लामबंदी में शामिल नहीं हुआ।अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि आने वाले दिनों में भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी।यूक्रेन पर रूस के हमले से बने हालात में भारत को दो फौरी फायदे हुए हैँ। पहला यह कि रूस से भारत को रियायती दर पर कच्चा तेल मिल रहा है।

बताया जाता है कि रूस भारत को अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमत से 25 से 30 फीसदी कम रेट पर तेल दे रहा है। फिर इस तेल के बदले भुगतान रुपये में करना होगा, जिसका मतलब है कि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर इसका कोई बोझ नहीं आएगा। दूसरा लाभ गेहूं के निर्यात में हो रहा है। रूस और यूक्रेन दोनों गेहूं के बड़े निर्यातक हैं। चूंकि उनका निर्यात ठहर गया है, तो दुनिया में गेहूं की कीमत बढ़ गई है।

इस बीच भारतीय व्यापारियों को एक नया ऐसा बाजार मिला है, जहां ऊंची कीमत पर वे अपना गेहूं बेच पा रहे हैँ। जाहिर है, भारत सरकार ने ऐसे ही फायदों को देखा और रूस के खिलाफ पश्चिमी लामबंदी में शामिल नहीं हुआ। लेकिन ये लाभ आखिर कितना टिकाऊ होगा?

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि आने वाले दिनों में भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी। आईएमएफ के कम्यूनिकेशन डायरेक्टर गेरी राइस ने कहा है- ऐसी आशंका है कि यूक्रेन युद्ध भारत की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डालेगा। विभिन्न रास्तों से होने वाला यह नुकसान कोविड-19 के दौरान हुए नुकसान के अतिरिक्त होगा।

नई स्थितियों में महंगाई बढ़ेगी और देशों का कुल घाटा भी।राइस ने स्वीकार किया कि कुछ बातें भारत के पक्ष में जा सकती हैं। कहा- गेहूं जैसी चीजों के निर्यात से भारत के आर्थिक घाटे में कुछ हद तक कमी हो सकती है। लेकिन यह फायदा उतना नहीं होगा, क्योंकि युद्ध का अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन की अर्थव्यवस्थाओं पर भी बुरा असर होगा और उनकी आयात क्षमता घट जाएगी। इससे भारत का निर्यात प्रभावित होगा।

इसके अलावा सप्लाई चेन में आने वाली बाधाओं का असर भारत के आयात पर पड़ेगा और उसे महंगाई झेलनी होगी। तंग होतीं वित्तीय स्थितियों और बढ़ती अनिश्चितता के कारण भी घरेलू मांग पर असर पड़ेगा। मौद्रिक हालात तंग होंगे क्योंकि लोगों का अर्थव्यवस्था में भरोसा कम रहेगा। तो कुल मिला कर आईएमएफ ने भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर खासी अनिश्चितता जताई है।

यह किस हद तक बढ़ेगी, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कितना बड़ा धक्का लगता है और व्यापक आर्थिक स्तर पर उठाए जा रहे खतरों का फायदा पहुंचता है या नहीं। और स्थिति से निपटने के लिए सरकार क्या नीतियां अपनाती है।

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सरकारी स्कूलों में नया ड्रेस कोड लागू

कोलकाता ,21 मार्च (आरएनएस)। पश्चिम बंगाल सरकार ने प्रदेश के सरकारी स्कूलों में यूनिफोर्म को लेकर बड़ा बदलाव किया है। जानकारी के मुताबिक बंगाल में सभी सरकारी, अर्ध-सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के स्टूडेंट्स की ड्रेस नीले और सफेद रंग की होगी। नए ड्रेस कोड में बंगाल सरकार का बिस्वा बांग्ला लोगो भी होगा। इसका डिजाइन खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया था।

राज्य के एमएसएमई विभाग की ओर से नई यूनिफॉर्म की आपूर्ति की जाएगी। प्री-प्राइमरी से कक्षा 8 तक के लड़कों के लिए सफेद शर्ट और नेवी ब्लू पैंट और लड़कियों के लिए नेवी ब्लू फ्रॉक और सलवार कमीज के साथ सफेद शर्ट ड्रेस कोड तय किया गया है।
इसके साथ ही हर ड्रेस की जेब पर बिस्वा बांग्ला का लोगो लगा होगा। यहां तक कि राज्य सरकार की ओर से छात्रों को दिए जा रहे स्कूल बैग पर भी बिस्वा बांग्ला का लोगो होगा।

सरकारी आदेश में कहा गया है कि प्री-प्राइमरी से कक्षा 8 तक के लड़कों को 1 हाफ पैंट और 1 फुल शर्ट मिलेगी। प्री-प्राइमरी से दूसरी कक्षा तक की लड़कियों को शर्ट और ट्यूनिक फ्रॉक के दो सेट मिलेंगे। कक्षा तीन से 5वीं तक शर्ट और स्कर्ट के दो सेट दिए जाएंगे। जबकि कक्षा 6 से 8वीं तक सलवार और कमीज के दुपट्टे के दो सेट दिए जाएंगे।

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भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने की तैयारी में आप

नई दिल्ली ,21 मार्च (आरएनएस)। पंजाब में कांग्रेस को हराने के बाद अब आम आदमी पार्टी की नजरें भाजपा शासित राज्य हिमाचल प्रदेश पर हैं। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मंडी में रोड शो करने जा रहे हैं। मंडी राज्य के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर का क्षेत्र है। जानकारी है कि केजरीवाल 6 अप्रैल को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ रोड शो करेंगे।

आप के प्रभारी रत्नेश गुप्ता बताते हैं, हमने अपना अभियान शुरू करने के लिए मंडी को दो कारणों से चुना। पहला, यह मध्य में से स्थित है और दूसरा, यह फिलहाल हिमाचल प्रदेश की राजनीति का केंद्र बना हुआ है। आप के प्रवक्ता गौरव शर्मा ने कहा, यह अपने आप में ऐतिहासिक कार्यक्रम होगा, क्योंकि यह राज्य की राजनीतिक आकार बदल देगा, जो अब तक बड़े स्तर पर दो धुरो वाली बनी हुई है। आप के हजारों कार्यकर्ता केजरीवाल और मान का स्वागत करेंगे।

शर्मा ने कहा, लंबे समय से राज्य के लोगों को तीसरे विकल्प की तलाश थी और अब आप उन्हें विकल्प दे रही है और लंबित परेशानियों को दूर करने में मदद कर रही है। आप की लहर सुनामी की तरह पूरे राज्य में फैलेगी।

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सरकार का हिजाब मामले में छात्रों को दूसरा मौका देने से इनकार

बेंगलुरु,21 मार्च (आरएनएस)। कर्नाटक में हिजाब मामले को लेकर परीक्षा का बहिष्कार कर विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए छात्रों को बड़ा झटका लगा है। सरकार ने ऐसे छात्रों को प्रेक्टिकल एग्जाम में शामिल होने के लिए दूसरा मौका देने से इनकार कर दिया है।

राज्य में पीयू 2 के सैकड़ों छात्र विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए थे। 15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों में वर्दी को लेकर राज्य सरकार के आदेश को बरकरार रखा था।

कर्नाटक में कक्षा 12 को ही पीयू 2 कहा जाता है। सरकार ने दो दिन पहले ही दोबारा परीक्षा लेने के संकेत दिए थे हालांकि, रविवार को सरकार ने प्रैक्टिल से गायब रहे छात्रों के लिए यह विकल्प हटा दिया है।

प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने कहा, हम इसकी संभावनाओं पर भी कैसे विचार कर सकते हैं?

उन्होंने आगे कहा, हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश देने के बाद भी अगर उन छात्रों को अनुमति दी जाती है, जो परीक्षा में हिजाब पहनने की अनुमति नहीं मिलने पर प्रैक्टिल्स का बहिष्कार कर रहे थे, तो दूसरे छात्र भी कुछ और कारण लेकर आएंगे और दूसरा मौका मांगेंगे। यह संभव नहीं है।

पीयू परीक्षाओं में प्रैक्टिकल के 30 और थ्यौरी के 70 अंक होते हैं।

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द कश्मीर फाइल्स चंडीगढ़ में भी टैक्स फ्री

चंडीगढ़,21 मार्च (आरएनएस)। चंडीगढ़ के प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित ने केंद्र शासित प्रदेश में बॉलीवुड फिल्म द कश्मीर फाइल्स को टैक्स फ्री कर दिया है। आधिकारिक आदेश के अनुसार, मल्टीप्लेक्स और सिनेमा थिएटर दर्शकों से यूटीजीएसटी नहीं वसूल सकेंगे।

फिलहाल, यह आदेश 4 महीनों तक लागू रहेगा। कश्मीरी पंडितों के पलायन की कहानी को बताती हुई इस फिल्म को हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में टैक्स फ्री घोषित किया जा चुका है।

सरकारी आदेश के अनुसार, सिनेमा थियेटर या मल्टीप्लेक्स एंट्री फीस में इजाफा नहीं कर सकेंगे। साथ ही अलग-अलग श्रेणियों में बैठने की क्षमता में भी बदलाव की अनुमति नहीं होगी। आगे कहा गया है कि सिनेमाघर यूटीजीएसटी की राशि को कम करने के बाद मिली कीमत पर टिकट बेचेंगे। आदेश में कहा गया है कि यूटीजीएसटी के रिइंबर्समेंट या प्रतिपूर्ति को लेकर अलग से गाइडलाइंस जारी की जा रही हैं।
फिल्म स्क्रीनिंग पर कांग्रेस ने जताई आपत्ति

पंजाब के राज्यपाल पुरोहित ने पंजाब राज भवन के गुरु नानक ऑडिटोरियम में द कश्मीर फाइल्स की स्क्रीनिंग आयोजित की थी। अब चंडीगढ़ कांग्रेस ने इस फैसले पर आपत्ति जाहिर करते हुए इसे राज्यपाल के दफ्तर की गरीमा के खिलाफ बताया है। होली के मौके पर शाम 4 बजे आयोजित हुई इस स्क्रीनिंग में कई गणमान्य लोगों को आमंत्रित किया गया था।

चंडीगढ़ कांग्रेस के प्रमुख सुभाष चावला ने कहा, राज्यपाल एक संवैधानिक प्राधिकारी है, जिन्हें एक आम फिल्म का प्रचार करने के स्तर तक नहीं गिरना चाहिए। उन्होंने आगे आरोप लगाए, यह फिल्म भाजपा और आरएसएस के विभाजनकारी एजेंडा को बढ़ावा देती है और देश के लोगों को यह एहसास हो चुका है। अब दर्शकों को थियेटर में वापस लाने के लिए भाजपा राज्य व्यवस्था और संवैधानिक प्राधिकारियों का इस्तेमाल करने पर मजबूर है।

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35वें सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले का उद्घाटन

नईदिल्ली,20 मार्च (आरएनएस)। आज 35वें सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले का उद्घाटन हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने किया।

इस अवसर पर हरियाणा के पर्यटन वन, आतिथ्य और कला, शिक्षा, संसदीय कार्य मंत्री कंवर पाल, उज़्बेकिस्तान दूतावास के विशिष्ठ राजदूत दिलशोद अखतोव, बडख़ल की विधायक श्रीमती सीमा त्रिखा, भारत सरकार के केंद्रीय विद्युत और भारी उद्योग राज्य मंत्री कृष्ण पाल, परिवहन, खान और भूविज्ञान, कौशल विकास और औद्योगिक प्रशिक्षण एवं चुनाव मंत्री मूल चंद शर्मा और भारत सरकार पर्यटन मंत्रालय के सचिव अरविंद सिंह सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति और केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।

उद्घाटन सत्र के दौरान हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने अपने संबोधन में सभ्यता और संस्कृति के विकास में कला और शिल्प के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने शिल्प मेला आयोजित करने के लिए केंद्र सरकार और हरियाणा सरकार के मंत्रालयों की प्रशंसा करते हुए कहा कि इससे भारत के शिल्पियों के साथ-साथ प्रतिभागी देशों को अपने-अपने देशों की कला और शिल्प की समृद्ध विरासत को प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि सूरज कुंड शिल्प मेला पूरे भारत के हजारों शिल्पकारों को अपनी कला और उत्पादों को बड़ी संख्या में आने वाले दर्शकों के सामने प्रदर्शित करने में सहायता करता है। इस प्रकार, इस मेले ने भारत के विरासत शिल्प को पुनर्जीवित करने में भी सहायता की है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष का सूरज कुंड शिल्प मेला विशेष है क्योंकि वर्तमान में हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। मेला पहली बार 1987 में आयोजित किया गया था और यह इस वर्ष आयोजित होने वाला 35वां शिल्प मेला है और यह न केवल हरियाणा के शिल्पियों के लिए बल्कि पूरे भारत के कारीगरों के लिए अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर प्रदान करता है और हमारी समृद्ध विरासत और संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए प्रोत्साहन भी देता है।

भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय सचिव अरविंद सिंह ने फरीदाबाद में आयोजित इस सूरजकुंड शिल्प मेले में अपने संबोधन में कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण 35वां सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला-2022 लंबे अंतराल के बाद आयोजित किया जा रहा है, क्योंकि वर्ष 2021 में कोविड महामारी के कारण इस बहुप्रतीक्षित शिल्प कार्यक्रम का आयोजन नहीं हो पाया था। हालांकि, इस वर्ष सूरजकुंड मेला नई ऊर्जा के साथ एक बड़े आयोजन के वादे के साथ आया है।

उन्होंने इस वर्ष शिल्प मेले के आयोजन और कार्यान्वयन के लिए हरियाणा सरकार के प्रयासों और कड़ी मेहनत की प्रशंसा की और भारत में पर्यटन को बढ़ावा देने में यह कैसे मदद करेगा, इस विषय पर जानकारी भी दी।

हरियाणा सरकार के प्रमुख पर्यटन सचिव एम.डी. सिन्हा ने कहा कि मेला ग्राउंड 43.5 एकड़ भूमि में फैला हुआ है और शिल्पकारों के लिए 1183 वर्क हट्स और एक बहु-व्यंजन फूड कोर्ट है, जो आगंतुकों के बीच बेहद लोकप्रिय है। मेले का परिवेश महुआ, नरगिस, पांचजन्य जैसे रूपांकनों और सजावट के साथ इसे विशिष्ट संस्कृति से जोड़ता है और इसके साथ ही स्वतंत्रता के 75 वर्ष की थीम के साथ स्वतंत्रता पदक, तिरंगे झंडे और स्मारक टिकटों के रूपांकनों और प्रतिकृतियों के साथ इसकी शोभा को बढ़ाता है।

उन्होंने कहा कि सूरजकुंड मेला अब विदेशों में अत्यधिक लोकप्रियता के साथ एक पर्यटक कार्यक्रम भी बन चुका है और हम आने वाले संस्करणों में नए नवाचारों के साथ इस आयोजन को और भी भव्य बनाने की उम्मीद करते हैं।

सूरजकुंड शिल्प मेला 1987 में पहली बार भारत की हस्तशिल्प, हथकरघा और सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि और विविधता को प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया गया था। केंद्रीय पर्यटन, कपड़ा, संस्कृति, विदेश मंत्रालय और हरियाणा सरकार के सहयोग से सूरजकुंड मेला प्राधिकरण एवं हरियाणा पर्यटन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित, यह उत्सव शिल्प, संस्कृति के सौंदर्य और भारत के स्वादिष्ट व्यंजनों से सृजित परिवेश के शानदार प्रदर्शन के मामले में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन कैलेंडर पर गौरव और प्रमुखता की श्रेणी पर पहुँच गया है।

समय के साथ सामंजस्य बनाते हुए, पेटीएम इनसाइडर जैसे पोर्टलों के माध्यम से ऑनलाइन टिकट उपलब्ध कराए जाते हैं, जिससे आगंतुकों को लंबी कतारों की परेशानी के बिना मेला परिसर में आसानी से प्रवेश करने में मदद मिलती है। मेला स्थल तक आसपास के क्षेत्रों से आने वाले दर्शकों को लाने के लिए विभिन्न स्थानों से विशेष बसों का संचालन किया जाएगा।

जम्मू और कश्मीर 35वें सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला 2022 का थीम स्टेट है, जो राज्य से विभिन्न कला रूपों और हस्तशिल्प के माध्यम से अपनी अनूठी संस्कृति और समृद्ध विरासत को प्रदर्शित कर रहा है। जम्मू-कश्मीर के सैकड़ों कलाकार विभिन्न लोक कलाओं और नृत्यों का प्रदर्शन करेंगे। पारंपरिक नृत्य कला रूपों से लेकर उत्कृष्ट शिल्प तक, दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने के लिए जम्मू और कश्मीर से विरासत और संस्कृति के एक गुलदस्ता के साथ उपस्थित है।

वैष्णो देवी मंदिर, अमरनाथ मंदिर, कश्मीर से वास्तुकला का प्रतिनिधित्व करने वाले हाउस बोट का लाइव प्रदर्शन और स्मारक द्वार मुबारक मंडी-जम्मू की प्रतिकृतियां इस वर्ष के मेले में मुख्य आकर्षण के रूप में उपस्थित हैं।

सूरजकुंड शिल्प मेले के इतिहास में एक शानदार उपलब्धि स्थापित करते हुए इसे 2013 में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपग्रेड किया गया था। 2020 में, यूरोप, अफ्रीका और एशिया के 30 से अधिक देशों ने मेले में भाग लिया। इस वर्ष 30 से अधिक देश मेले का हिस्सा होंगे, जिसमें भागीदार राष्ट्र- उज्बेकिस्तान शामिल है। लैटिन अमेरिकी देशों, अफगानिस्तान, इथियोपिया, इस्वातिनी, मोजाम्बिक, तंजानिया, जिम्बाब्वे, युगांडा, नामीबिया, सूडान, नाइजीरिया, इक्वेटोरियल गिनी, सेनेगल, अंगोला, घाना, थाईलैंड, नेपाल, श्रीलंका, ईरान, मालदीव और बहुत से अन्य देश भी पूर्ण उत्साह के साथ भागीदार होंगे।

आगंतुकों के मन को प्रफुल्लित करने के लिए, भारत के राज्यों के कलाकारों सहित भाग लेने वाले विदेशी देशों के अंतर्राष्ट्रीय लोक कलाकारों द्वारा शानदार प्रदर्शनों की प्रस्तुति की जाएगी।

पंजाब का भांगड़ा, असम का बिहू, बरसाने की होली, हरियाणा के लोक नृत्य, हिमाचल प्रदेश का जमाकड़ा, महाराष्ट्र की लावणी, हाथ की चक्की का सीधा प्रदर्शन और हमेशा से विख्यात रहे बेहरुपिया जैसी अनेक कलाओं में माहिर कलाकार दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने के साथ-साथ मेला मैदान में अपनी मनमोहक प्रतिभा और प्रदर्शन से दर्शकों का मनोरंजन करेंगे।

मेला पखवाड़े के दौरान शाम के सांस्कृतिक कार्यक्रम में दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया जाएगा। रहमत-ए-नुसरत, रिंकू कालिया की गज़लों की गूंज, मंत्रमुग्ध कर देने वाली नृत्य प्रस्तुतियां, भावपूर्ण सूफी प्रदर्शन, माटी बानी द्वारा भारत की लय के अलावा जम्मू-कश्मीर, उज्बेकिस्तान और अन्य अंतरराष्ट्रीय कलाकारों के शानदार नृत्य और गीत शो जैसे बैंड के शानदार प्रदर्शन का आनंद उठा सकते हैं। हर शाम 7.00 बजे से चौपाल पर सभी गतिविधियों और उत्साह को पकड़ें।

हरियाणा का एक परिवार राज्य की प्रामाणिक जीवन शैली को प्रदर्शित करने के लिए विशेष रूप से बनाए गए अपना घर में रहने जा रहा है। अपना घर आगंतुकों को राज्य के लोगों की जीवन शैली का अनुभव प्रदान करने का अवसर देता है और उन्हें अपनी संस्कृति के बारे में जानने और सीखने का मौका प्रदान करता है। अपना घर में पारंपरिक मिट्टी के बर्तन, अन्य सामग्री आदि दिखाई जाएंगी और शिल्पकार इन पारंपरिक शिल्पों का लाइव प्रदर्शन करेंगे।

दोनों चौपालों को एक नया रूप दिया गया है, जो भाग लेने वाले राज्य और भागीदार राष्ट्र की विशेषताओं से प्रेरित है, ताकि पारंपरिक वस्तुओं के उपयोग के साथ-साथ दर्शकों के लिए प्रदर्शनों को जीवंत बनाया जा सके।

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 अशफ़ाक खोपेकर इन दिनों बॉलीवुड में चर्चा का विषय बने हुए हैं

दादासाहेब फाल्के फ़िल्म फाउंडेशन और स्क्रीन राइटर गिल्ड ऑफ इंडिया एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अशफ़ाक खोपेकर इन दिनों बॉलीवुड में चर्चा का विषय बने हुए हैं। इसकी वजह ये है कि इन दिनों वो नवोदित प्रतिभाओं को प्रकाश में लाने के उद्देश्य से कई तरह की योजनाओं को मूर्तरूप देने की दिशा में अग्रसर हैं।

विदित हो कि मुम्बई में जन्मे और बॉलीवुड को अपनी कर्मभूमि बनने वाले अशफ़ाक खोपेकर किसी पहचान के मोहताज नहीं है। सन 1993 में उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और इस मुकाम तक पहुंचकर जीत हासिल की, लेकिन इनका कारवां आज भी आगे बढ़ता जा रहा है। अब ये दूसरों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने के रास्ते दिखा रहे हैं।

इन्होंने इंडस्ट्री में अपने कदम जमाने के लिए काफी संघर्ष किया। कई उतार चढ़ाव आये लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी आगे बढ़ते रहे और धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ा। उनकी तरह किसी और को समस्याओं का सामना ना करना पड़े इसके लिए यह लोगों को मुफ्त में प्लेटफार्म मुहैया करवा रहे हैं। फ़िल्म इंडस्ट्री में नहीं बल्कि हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ने वाले अशफ़ाक जाति और धर्म से ऊपर इंसानियत को मानने वाले व्यक्ति हैं।

अशफ़ाक खोपेकर फिल्म इंडस्ट्री में रहकर कई काम किए हैं। सबसे पहले लीलाधर सावंत के साथ मिलकर फ़िल्म ‘पनाह’ और ‘बेदर्दी’ का निर्माण के लिए फायनेंस  किया था। उसके पश्चात ‘आजादी की ओर’ धारावाहिक का निर्माण किया था, जिसमें महाभारत धारावाहिक के दिग्गज कलाकार शामिल थे।

इन्होंने ‘सियासत द पॉलीटिक्स’ फ़िल्म का भी निर्माण किया है। जिसके लेखक, निर्माता और निर्देशक ये स्वयं हैं। वे एक सौ तीस से अधिक गाने और कई शार्ट फिल्मों का निर्माण कर चुके हैं। लेखन और निर्देशन में भी इनकी उम्दा पकड़ है।

अशफ़ाक खोपेकर दादासाहेब फाल्के फिल्म फाउंडेशन के तहत उन लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं, जिनके सपने अधूरे रह गए या जिनका कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं होता ऐसे लोगों को काफी संघर्ष करना पड़ता है और वो सही मार्गदर्शन के अभाव में भटक जाते हैं। ऐसे ही लोगों के लिए वह एक सुगम रास्ता देने के लिए तत्पर हैं।

हाल ही में दादासाहेब फाल्के फिल्म  फाउंडेशन द्वारा चार गजल के ट्रैक तैयार किये गए हैं जिनमें चार देश के अलग अलग जगह से आये हुए  नवोदित गायक मंजू सिंह, ताहिर खान, मासूम रजा ट्रेसन को मौका दिया गया है। इससे पहले तरुणा शुक्ला और वसुधा पंड्या को भी गायकी का मौका मिल चुका है। इनकी आने वाली एल्बम का नाम है ‘तिनका तिनका’।

अशफ़ाक खोपेकर द्वारा संचालित दादासाहेब फाल्के फिल्म  फाउंडेशन की सर्च टीम ‘स्टारमेकर एप्प’ के माध्यम से नवोदित गायकों का चुनाव करते हैं। इसके लिए निर्णायक मंडल की टीम भी है जो योग्य गायकों का चुनाव करते हैं। इस स्टारमेकर एप्प से चुने गायकों को उनकी सुविधानुसार मंच प्रदान किया जाता है। इसमें किसी भी प्रकार की राशि नहीं ली जाती और यह हर वर्ग के लोगों के लिए है। इसमें उम्र की सीमा नहीं केवल उनकी योग्यता जरूरी है।

अपने घर बैठे ही उन्हें मंच उपलब्ध हो जाता है। व्यक्ति देश के किसी कोने में हो उसे सुविधा मुहैया कराई जाती है। चयनित गायकों को गाने का मौका दिया जाता है और इनके गानों के प्रचार प्रसार के लिए डिजिटल प्लेटफार्म भी मुहैया कराया जाता है साथ ही साथ इन गीतों का इस्तेमाल फिल्मों, शॉर्टफ़िल्मों और एलबम में किया जाता है।

गायक ही नहीं इंडस्ट्री से जुड़े अन्य क्षेत्रों जैसे गीतकार, संगीतकार, कलाकार और टेक्नीशियन का भी चुनाव डिजिटल प्लेटफार्म क्रमशः मौज एप्प, इंस्टाग्राम, रील, फेसबुक आदि कई एप्प के माध्यम से नवोदित प्रतिभाओं का चयन कर उन्हें चांस दिया जाता है।

प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय

अर्जेंटीना ने शूट आउट में भारत को हराया

भुवनेश्वर ,20 मार्च । अर्जेंटीना ने यहां कलिंगा स्टेडियम में शनिवार को खेले गए एफआईएच प्रो हॉकी लीग के मुकाबले में मेजबान भारत को पेनल्टी शूट आउट में 3-1 से हरा दिया।

निर्धारित समय तक दोनों टीमें 2-2 से बराबर थीं। लेकिन शूट आउट में अर्जेंटीना की टीम बेहतर साबित हुई। भारत ने 38वें मिनट में गुरजंत सिंह के गोल से बढ़त बनायी। निकोलस अकोस्टा ने 45वें मिनट में अर्जेंटीना को बराबरी और निकोलस कीनन ने 52वें मिनट में बढ़त दिला दी। मनदीप सिंह ने 60 वें और अंतिम मिनट में भारत के लिए बराबरी का गोल दागा।

शूट आउट में भारत की तरफ से सिर्फ पहला निशाना सही लगा जबकि अर्जेंटीना की तरफ से पहले तीनों निशाने सही लगे।

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 फिल्म ‘लाइफ ऑन रोड’ प्रदर्शन के लिए तैयार

मदारी आर्ट्स और शाश्वत मूवी के संयुक्त तत्वधान में  निर्माता आनंद कुमार गुप्ता द्वारा निर्मित फिल्म ‘लाइफ ऑन रोड’ बहुत जल्द ही सिनेदर्शकों तक पहुँचने वाली है। छत्तीसगढ़ की लोक कला संस्कृति से जुड़ी इस फिल्म की शूटिंग सरगुजा (छत्तीसगढ़) के निकटवर्ती इलाकों के साथ-साथ दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश के विभिन्न लोकेशनों में की गई है।

एक किसान मजदूर की व्यथा को इस फिल्म की कथावस्तु का आधार बनाया गया है। जो पैसा कमाने के लिए दिल्ली जैसे बड़े शहर में जाता है और विश्वव्यापी महामारी कोविड19 की वजह से केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए राष्ट्रीय स्तरीय लॉकडाउन के दरम्यान पैदल दिल्ली से सरगुजा लगभग 12 सौ किलोमीटर की दूरी तय करता है। गोविंद मिश्रा के निर्देशन में बनी इस फिल्म में नवोदित अभिनेत्री संध्या माणिक को इंट्रोड्यूस किया गया है। इस फिल्म में रामचंद्रपुर विकास खंड(छत्तीसगढ़) के ग्राम पंचायत लोधा की धरती से जुड़े अभिनेता आनंद कुमार ने केंद्रीय भूमिका निभाई है।

अभिनेता आनंद कुमार पिछले 22 वर्षों से नुक्कड़ नाटक के माध्यम से समाज मे व्याप्त जन समस्याओं के उन्मूलन हेतु जन जागरूकता अभियान चलाते चले आ रहे हैं। अभिनेता आनंद कुमार छत्तीसगढ़ व झारखंड प्रदेश की लोक कला संस्कृति के सरंक्षण के प्रति सजग हैं और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्थापित करने की दिशा में क्रियाशील हैं।

गीतकार गोविंद मिश्रा के गीत और संगीतकार अंकित शाह के संगीत से सजी इस फिल्म के अन्य मुख्य कलाकार प्रणव चक्रवर्ती, देवेश बेहरा, तान्या शर्मा, किरण गुप्ता, राजेश सिन्हा, राकेश नामदेव, राजेन्द्र सलिल, दिनेश केहरी, ओमप्रकाश गुप्ता, प्रेम सोनी, सुषमा मिंज, ऑगस्टा मिंज, मीनाक्षी माणिक, पूजा गुप्ता, अर्चना, मास्टर वेदांश, अधर्व, कुंजीलाल, शोभित नेताम और संधारी देवांगम आदि हैं।

प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय

बेटों का संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट

मुंबई,20 मार्च (आरएनएस)। बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि जब तक माता-पिता जिंदा हैं, बेटों का संपत्ति पर कोई हक नहीं होगा। कोर्ट ने एक महिला की याचिका पर यह फैसला दिया है।
दरअसल, एक महिला अपने पति का इलाज कराने के लिए अपनी संपत्ति बेचना चाहती थी, लेकिन उसका बेटा मां को संपत्ति बेचने से रोक रहा था।

इसके बाद उसकी मां ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता सोनिया खान के पक्ष में फैसला दिया। याचिकाकर्ता सोनिया खान ने कहा था कि अपने पति की सभी संपत्ति की वह कानूनी अभिभावक बनना चाहती थी। याचिकाकर्ता का बेटा आसिफ खान उन्हें ऐसा करने से रोक रहा था। वह अपने पिता का फ्लैट बेचने के मां के फैसले के खिलाफ था, इसलिए उसने भी कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर दी।

कोर्ट ने उसकी इन दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया।

आसिफ ने कहा था कि अपने पिता की पूरी संपत्ति का वह लीगल गार्जियन है। उसके माता-पिता के दो फ्लैट हैं। एक मां के नाम पर है और दूसरा पिता के नाम पर है। फ्लैट शेयर्ड हाउसहोल्ड की श्रेणी में आता है। ऐसे में फ्लैट पर उसका पूरा-पूरा हक हैजस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस माधव जामदार की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि आसिफ यह साबित करने में विफल रहा कि उसने पिता की कभी परवाह की थी।

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भारत की गौरवशाली परंपरा को बहाल करने की जरूरत – उपराष्ट्रपति

 

विकास कुमार होंगे दिल्ली मेट्रो के नए एमडी

नई दिल्ली ,20 मार्च (आरएनएस)। दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) के नए प्रबंध निदेशक की तलाश खत्म हो गई है। मेट्रो रेल सेवा से जुड़ा अनुभव रखने वाले विकास कुमार को डीएमआरसी का नया प्रबंध निदेशक नियुक्त किया गया है।

उपराज्यपाल ने चयन समिति के उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, जिसमें उन्हें अगला एमडी नियुक्त किए जाने की सिफारिश की गई है। विकास कुमार का कार्यकाल एक अप्रैल से शुरू होगा जो अगले पांच वर्ष तक के लिए होगा। उपराज्यपाल की तरफ से स्वीकृति मिलने के बाद दिल्ली सरकार ने शनिवार को इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है।

डीएमआरसी के वर्तमान प्रबंध निदेशक मंगू सिंह का 31 मार्च को कार्यकाल पूरा हो रहा है। ऐसे में दिल्ली सरकार ने नए निदेशक की नियुक्त किए चयन प्रक्रिया शुरू की थी। फरवरी में ही आवेदन आमंत्रित किए गए थे।

साथ ही उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की अध्यक्षता में एक चयन समिति का गठन किया था। समिति में परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत, मुख्य सचिव और एक बाहरी विशेषज्ञ शामिल थे।

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भाजपा मणिपुर में सरकार बनाने की तैयारियों में जुटी हुई है

नई दिल्ली,20 मार्च (आरएनएस)। भाजपा मणिपुर में सरकार बनाने की तैयारियों में जुटी हुई है। इसी बीच राज्य के कार्यवाहक मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह भी राजधानी दिल्ली पहुंच गए हैं। इस दौरान वे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह समेत कई बड़े नामों से मुलाकात करेंगे। खबर है कि भाजपा विधायक थोंगम विश्वजीत सिंह भी अलग फ्लाइट से दिल्ली पहुंच चुके हैं। अटकलें लागई जा रही हैं कि मणिपुर के सीएम पद की रेस में उनका नाम भी शामिल है।
दिल्ली पहुंचे बीरेन सिंह शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और पार्टी के महासचिव बीएल संतोष से मिलेंगे। आगामी बैठकों में राज्य में नए मंत्रिमंडल का गठन और सीएम के नाम पर अंतिम मुहर लगाने पर चर्चा की जाएगी। इसके अलावा विश्वजीत सिंह भी दिल्ली में पार्टी के बड़े नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं। वे दो बार के विधायक हैं और पिछली सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं।
मणिपुर में गुटबाजी!
10 मार्च को विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए थे। इसके बाद पार्टी में गुटबाजी की खबरों के बीच बीरेन सिंह, विश्वजीत सिंह और भाजपा की प्रदेश अध्यक्ष ए शारदा देवी ने 15 मार्च को दिल्ली का रुख किया था। इसके बाद तीनों नेता 17 मार्च को इंफाल लौट आए थे।
60 विधानसभा सीटों वाले मणिपुर में भाजपा ने 32 सीटों पर जीत हासिल की है। बीरेन सिंह हींगांग सीट से जीते, तो विश्वजीत सिंह ने थोंग्जु सीट अपने नाम की। साल 2017 में भी भाजपा ने महज 21 सीटों पर जीत के बाद भी सरकार बनाने में सफलता हासिल की थी। उस दौरान कांग्रेस ने दो स्थानीय दलों (नेशनल पीपुल्स पार्टी, नगा पीपुल्स फ्रंट) के साथ मिलकर 28 सीटें जीती थी।

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विपक्षी मोर्चे का पहला मुकाम राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला था

अजीत द्विवेदी, 20.03.2022 – अब अचानक सारी चीजें थम गई हैं। विपक्षी मोर्चे का पहला मुकाम राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला था, जिसका खेला अब खत्म हो गया है। पांच में से चार राज्यों में भाजपा को मिली जीत के बाद विपक्ष की उम्मीदें खत्म हैं।

विपक्षी नेताओं की ओर से की जा रही पहल का निष्कर्ष यह था कि अगर भाजपा उत्तर प्रदेश में चुनाव हारती तो विपक्ष का एक साझा उम्मीदवार उतारा जाता।

पांच राज्यों में हुए हाल के विधानसभा चुनावों के दौरान विपक्षी पार्टियां गजब राजनीति करती दिख रही थीं। जो पार्टियां इन पांच राज्यों में चुनाव लड़ रही थीं उनको छोड़ कर बाकी प्रादेशिक पार्टियों के नेता जबरदस्त भागदौड़ कर रहे थे।

ममता बनर्जी, एमके स्टालिन, के चंद्रशेखर राव, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, हेमंत सोरेन, तेजस्वी यादव आदि प्रादेशिक क्षत्रपों का इन पांच राज्यों में कुछ भी दांव पर नहीं लगा था लेकिन इनके नतीजों से पहले ये सारे नेता विपक्ष का मोर्चा बनाने या भाजपा विरोधी राजनीति के दांव-पेंच में लगे थे।

ममता दिल्ली-मुंबई की दौड़ लगा रही थीं तो चंद्रशेखर राव दिल्ली-मुंबई-रांची की दौड़ लगा रहे थे। केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ संघीय मोर्चा बन रहा था और दिल्ली या हैदराबाद में विपक्षी मुख्यमंत्रियों की बैठक होने वाली थी। राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष का साझा उम्मीदवार तय किया जाना था।

लेकिन अब अचानक सारी चीजें थम गई हैं।विपक्षी मोर्चे का पहला मुकाम राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला था, जिसका खेला अब खत्म हो गया है। पांच में से चार राज्यों में भाजपा को मिली जीत के बाद विपक्ष की उम्मीदें खत्म हैं।

विपक्षी नेताओं की ओर से की जा रही पहल का निष्कर्ष यह था कि अगर भाजपा उत्तर प्रदेश में चुनाव हारती तो विपक्ष का एक साझा उम्मीदवार उतारा जाता। शरद पवार को साझा उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा था। लेकिन उत्तर प्रदेश में भाजपा को बड़ी जीत मिली है। देश में उसके अपने विधायकों की संख्या 1,543 है और दोनों संसद के दोनों सदनों में उसके सदस्यों की संख्या चार सौ है। अगर उसकी सहयोगी पार्टियों के विधायकों और सांसदों की संख्या जोड़ दें तो राष्ट्रपति चुनने वाले इलेक्टोरल कॉलेज में भाजपा के पास 40 से 45 फीसदी तक वोट हो जाते हैं।

उसके बाद जिस राज्य या समूह के व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया जाता है उसका वोट आमतौर पर मिल जाता है। सो, भाजपा बहुत आसानी से राष्ट्रपति के अपने उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित कर लेगी।इसके बाद विपक्ष का दूसरा प्रयास राज्यों के अधिकारों के अतिक्रमण के खिलाफ एक संघीय मोर्चा बनाने का है। यह एक बड़ा मुद्दा है और दक्षिण भारत के राज्यों ने इसे बहुत गंभीरता से लिया है।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और उनके वित्त मंत्री ने इस मसले पर विपक्षी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात की है। जीएसटी में राज्यों का हिस्सा कम होने या मुआवजे की समय सीमा दो साल और बढ़ाने का मसला संसद के चालू बजट सत्र में भी विपक्षी पार्टियों ने उठाया है। इसके अलावा केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी घटने और बीएसएफ का दायरा राज्यों के अंदर 50 किलोमीटर तक करने के मामले में भी राज्यों में एकजुटता है।

ऐसा लग रहा था कि संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण शुरू होते ही विपक्षी मुख्यमंत्रियों की बैठक दिल्ली में होगी लेकिन पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद इस मसले पर भी पार्टियां सुस्त पड़ गई हैं।तीसरा प्रयास भाजपा के खिलाफ एक साझा राजनीतिक मोर्चा बनाने का है। इसकी पहल कैसे होगी और कौन करेगा यह यक्ष प्रश्न है। कांग्रेस पार्टी अंदरूनी कलह से जूझ रही है। पार्टी के नेता आलाकमान से अलग बैठकें कर रहे हैं और पार्टी में बड़ी टूट का अंदेशा भी जताया जा रहा है।

अगर अगले दो-तीन महीने में कांग्रेस अपने को संभालती है और अगस्त से पहले तक पार्टी एक पूर्णकालिक अध्यक्ष का चुनाव करके संगठन को मजबूत करती है फिर उम्मीद की जा सकती है कि कांग्रेस विपक्षी मोर्चा बनाने की पहल का केंद्र रहेगी। हालांकि तब भी यह आसान नहीं होगा क्योंकि कई प्रादेशिक पार्टियां कांग्रेस के साथ सहज महसूस नहीं कर रही हैं।

कम से कम दो प्रादेशिक क्षत्रपों- ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल की महत्वाकांक्षा इतनी बड़ी हो गई है कि किसी भी दूसरी पार्टी का नेतृत्व स्वीकार करने में इनको दिक्कत होगी।अगर कांग्रेस की बजाय विपक्षी मोर्चा बनाने की पहल कहीं और से होती है, जैसे प्रशांत किशोर पहल करते हैं तो वह एक बड़ा प्रयास होगा लेकिन उसमें कांग्रेस के शामिल होने पर संदेह रहेगा।

अभी तक का इतिहास रहा है कि चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस तीसरे मोर्चे की सरकार को समर्थन देती रही लेकिन चुनाव से पहले किसी तीसरे मोर्चे की पार्टियों के पीछे चलने का कांग्रेस का इतिहास नहीं रहा है। अब भी यह संभव नहीं लग रहा है कि वह किसी ऐसे मोर्चे का हिस्सा बनेगी, जिसकी कमान उसके हाथ में न रहे।

ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि विपक्ष का एक साझा मोर्चा कैसे बनेगा? अगले कुछ दिनों में कांग्रेस का संगठन चुनाव हो जाएगा, जिसके बाद संभावना है कि राहुल गांधी अध्यक्ष बनेंगे। उसके बाद कांग्रेस चाहेगी कि कांग्रेस की कमान में राहुल के चेहरे पर चुनाव हो। दूसरी ओर मोदी बनाम ममता और मोदी बनाम केजरीवाल की तैयारी अलग चल रही है।

अब तक का इतिहास रहा है कि चुनाव दो बड़ी पार्टियों या बड़ी ताकतों के बीच होता है। जब कांग्रेस भारतीय राजनीति की केंद्रीय ताकत थी तब भी उसका मुकाबला दूसरी बड़ी ताकत से होता था। किसी एक या दो राज्य का नेता चाहे कितना भी लोकप्रिय क्यों न हो वह राजनीति की केंद्रीय ताकत को चुनौती नहीं दे सकता है।

कांग्रेस के शीर्ष पर रहते विपक्ष में अनेक चमत्कारिक नेता हुए और राज्यों में भी कई करिश्माई नेता रहे लेकिन वे कांग्रेस को चुनौती नहीं दे सके। वैसे ही अभी किसी राज्य में कोई कितना भी चमत्कारिक नेता क्यों न हो वह भाजपा और नरेंद्र मोदी को चुनौती नहीं दे सकता है। ध्यान रहे आम चुनाव सिर्फ चेहरों का चुनाव नहीं होता है।

वह विचारधारा और संगठन का भी चुनाव होता है। भाजपा को चुनौती देने वाली विचारधारा अब भी कांग्रेस के पास है और संगठन के लिहाज से भी भाजपा विरोधी स्पेस का प्रतिनिधित्व कांग्रेस ही कर रही है। इसलिए अगले दो साल में होने वाले विधानसभा चुनावों के नतीजे चाहे जो आएं, कांग्रेस अपने दम पर और अपने बचे हुए सहयोगियों को साथ लेकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ेगी।

राज्यों के प्रादेशिक क्षत्रपों का एक मोर्चा अलग बन सकता है, जो मुख्य रूप से उन राज्यों में होगा, जहां कांग्रेस और भाजपा का सीधा मुकाबला नहीं है। अगर प्रशांत किशोर कांग्रेस और प्रादेशिक क्षत्रपों के मोर्चे का रणनीतिक तालमेल कराने और सीटों के एडजस्टमेंट में कामयाब होते हैं तो चुनाव दिलचस्प होगा।

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कांग्रेस का आजादी व देश के विकास में योगदान अहम!

भारत की गौरवशाली परंपरा को बहाल करने की जरूरत – उपराष्ट्रपति

कांग्रेस के लिए किसी गांव तक में नहीं गए कपिल सिब्बल

गांधी-नेहरू खूंटा तभी कांग्रेस और विकल्प भी!

20.03.2022 – हरिशंकर व्यास – कांग्रेस को ले कर स्यापा है। कोई उस पर परिवारवाद का ठीकरा फोड़ रहा है, उसे प्राइवेट लिमिटेड करार दे रहा है तो कोई उसे खत्म मान रहा है।

कोई राहुल गांधी को कोस रहा है तो कोई उसके कारण सन् 2024 का चुनाव नरेंद्र मोदी का तय मान रहा है। ऐसे ही कई लोग सोनिया-राहुल-प्रियंका को असली-सच्ची कांग्रेस बनाने में बाधक मानता है।

मोटा मोटी कांग्रेसी हताश हैं, निराश हैं और अधिकांश राहुल गांधी को नासमझ, निकम्मा, नालायक मान सोच रहे होंगे कि उन्हें कब अक्ल आएगी? कब सोनिया गांधी समझेंगी? राहुल के चक्कर में प्रियंका की संभावना भी खत्म कर दी है। क्यों यूपी में भाई-बहन ने ऐसे प्रतिष्ठा दांव पर लगाई? क्यों सोनिया गांधी पुत्रमोह में राहुल गांधी का कहना मान रही हैं?

वे क्यों नहीं किसी गैर-परिवार नेता को अध्यक्ष बना कांग्रेस में जान डालती हैं? सोनिया गांधी को भी सोचना चाहिए कि पार्टी को ऐसे खत्म होने दे कर वे अपने ही परिवार की विरासत को मिटा देने का

इतिहासजन्य पाप करेंगी!दरअसल, देश का हर वह व्यक्ति सोनिया-राहुल गांधी से दुखी है जो नरेंद्र मोदी के आइडिया ऑफ इंडिया में घुटन महसूस करता है। हर वह नेता सोनिया-राहुल गांधी को कोसते हुए है, जो मोदी राज के कारण सत्ता से बेदखल है।

पॉवर का भूखा है। हर वह जमात, वह वर्ग नाराज है, जिसने सेकुलर आइडिया ऑफ इंडिया के वक्त में मलाई खाई।

जो लुटियन दिल्ली का एलिट था। ये सब सोचते और मानते हैं कि नरेंद्र मोदी लगातार जीत रहे हैं तो वजह राहुल गांधी हैं। उनकी नासमझी और निकम्मेपन की लोगों के दिल-दिमाग में ऐसी छाप पैठी है कि वे मोदी के बतौर विकल्प क्लिक नहीं हो सकते।

इसलिए उनसे (गांधी-नेहरू परिवार) कांग्रेस की मुक्ति जरूरी है।कैसे? जवाब में तमाम तरह की पतंगबाजी है। हाल-फिलहाल की सुर्खियों में कपिल सिब्बल की दलील है कि वक्त का तकाजा है जो घर की जगह सबकी कांग्रेस बने!

उधर अमेरिकी मॉडल पर मतदाताओं के कच्चे माल को फैक्टरी में अलग-अलग फॉर्मूलों से पका कर प्रोडक्शन लाइन पर भक्त वोटरों में कन्वर्ट करने के पेशेवर प्रशांत किशोर की थीसिस है कि कांग्रेस विकल्प’ के स्पेस पर कब्जा जमाए हुए है सो, वह उसे खाली करे।

लोगों के दिमाग में भाजपा और मोदी के आगे कांग्रेस और राहुल का चेहरा बना हुआ है, वह विकल्प के बोर्ड पर है तो जब तक विपक्ष की दुकान पर लगा खानदानी चेहरों का बोर्ड नहीं हटेगा तब तक लोगों में विकल्प की दुकान लोक-लुभावन नहीं होगी।

सो, विकल्प के खातिर नई कांग्रेस बने, नई दुकान और उसका बोर्ड हो या तृणमूल जैसी कोई अपने को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनाए तो उसकी लीडरशीप में फिर क्षेत्रीय पार्टियों का ग्रैंड एलायंस बनना संभव होगा। तब सन् 2024 में नरेंद्र मोदी हार सकेंगे।

सो परिवारवादी खूंटे से कांग्रेस को छूटाना सन् 2024 के चुनाव की तात्कालिकता से है तो दीर्घकालीन मकसद सेकुलर आइडिया ऑफ इंडिया के इकलौते प्रणेता-पोषक परिवारवादी गांधी-नेहरू खूंटे को हमेशा के लिए मिटाना है।

अपना मानना है कि न सोनिया-राहुल-प्रियंका और न कपिल सिब्बल एंड जी-23 नेताओं को समझ है कि नरेंद्र मोदी-संघ परिवार के मकसद में कैसी दीर्घकालीन राजनीति छुपी हुई है और उसमें देश के आइडिया व अस्तित्व के गंभीर पहलू भी हैं।

परिवार की नासमझी अपनी जगह है तो कपिल सिब्बल, गुलाम नबी, आनंद शर्मा याकि दुखी-अंसुतष्ट-सत्ता भूखे कांग्रेसी चेहरों और प्रशांत किशोर ले देकर सन् 2024 के चुनाव की जल्दी में हैं। वे इस रियलिटी को सोच नहीं पा रहे हैं कि बिना गांधी परिवार के न कांग्रेस रह सकती है, न उसका असली कांग्रेस या सबकी कांग्रेस का रूपांतरण संभव है और न मोदी को हरा सकने का विकल्प संभव।

क्यों? तब आजाद भारत की राजनीति पर गौर करें। सबको ध्यान रखना चाहिए कि 1969 में कांग्रेस की दो बैलों की जोड़ी जब बिखरी थी और इंदिरा गांधी के खिलाफ बगावत हुई व मोरारजी, कामराज, संजीवैय्या रेड्डी ने सबकी कांग्रेस’ के ख्याल में जो संगठन कांग्रेस’ नाम की पार्टी बनाई तो उसका क्या भविष्य हुआ? जगजीवन राम-बहुगुणा ने 1977 में कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी बनाई तो उनका और उनकी कथित असली कांग्रेस का क्या हुआ?

ऐसे ही एक दफा नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह ने अलग कांग्रेस बनाई तो क्या हुआ? ऐसे कई प्रयोग हुए।  ममता बनर्जी, शरद पवार आदि कईयों ने विद्रोह किया। पार्टियां बनाईं लेकिन गांधी-नेहरू के खूंटे से बाहर होने के बाद एक भी कोई नेता व उसकी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर नहीं चली।वह सब याद कराना त्रासद है तो अपने लोकतंत्र व राजनीति की कमियों का खुलासा भी है।

सोचे, जब ऐसी रियलिटी है तो कपिल सिब्बल या ममता बनर्जी, शरद पवार को क्यों यह गलतफहमी पालनी चाहिए कि परिवारवादी कांग्रेस को खत्म करके या उसे दरकिनार करके नरेंद्र मोदी को हरा सकते हैं? या संघ परिवार के आइडिया ऑफ इंडिया के आगे अपने बूते नया-टिकाऊ विकल्प बना सकते हैं? संभव ही नहीं है।

इससे उलटे 2024-2029 में लगातार भाजपा मजे से चुनाव जीतेगी। अगले दस सालों में ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस का अता-पता भी नहीं होगा। न ही महाराष्ट्र में अघाड़ी पार्टियां बचेंगी और न तेजस्वी या अखिलेश यादव या अरविंद केजरीवाल का हल्ला चलता हुआ होगा।मैं फतवाई निष्कर्ष लिख दे रहा हूं।

भारत के हर सुधी नागरिक को समझना चाहिए कि मोदी-शाह-संघ परिवार ने अखिल भारतीय स्तर पर भारत को दो पालों में बांट दिया है। एक पाला शुद्ध भक्त हिंदुओं का है, जिसमें 2024 आते-आते 40 प्रतिशत वोट होंगे और बाकी वोट गैर-हिंदू व सेकुलर होने की अलग पहचान, आईडेंटिटी के बावजूद बिखरे हुए होंगे। 140 करोड़ लोग और वे दो हिस्सों में मोदी जिताओ और मोदी हटाओ के दो पालों में। निश्चित ही 55-60 प्रतिशत वोट मोदी हटाओ की बहुसंख्या वाले।

मगर ये विरोधी वोट इसलिए बेमतलब व जीरो हैसियत लिए हुए होंगे क्योंकि कपिल सिब्बल एंड पार्टी कांग्रेस को खत्म कर चुकी होगी तो प्रशांत किशोर नई कांग्रेस का कोई नया शॉपिंग मॉल लिए हुए होंगे। ममता-केजरीवाल अपने को राष्ट्रीय नेता मान उड़ते हुए होंगे तो मोदी-शाह महाराष्ट्र-झारखंड की विरोधी सरकारों में उथल-पुथल करवा कर, विधानसभा चुनावों से कांग्रेस का उत्तर भारत में पूरा सफाया करके विपक्ष में लडऩे की ताकत ही नहीं बचने देंगे। झूठ के नैरेटिव से क्षत्रप याकि ममता-अखिलेश-तेजस्वी मुस्लिमपरस्त तो केजरीवाल खालिस्तानी-खालिस्तानी के शोर में लिपटे हुए।

मोदी सरकार इन सबकों ऐसे तोड़ेगी-मरोड़ेगी कि मजबूरन ओवैसी से लेकर, मायावती, केजरीवाल सब अलग-अलग लड़ मोदी हटाओ की चाहना वाले 55-60 प्रतिशत वोटों को छितरा देंगे।क्या यह सिनेरियो सोनिया-राहुल, कपिल सिब्बल, ममता, केजरीवाल, प्रशांत किशोर, अखिलेश आदि को दिखलाई नहीं दे रहा होगा?

क्या ये नेता इतना भी नहीं बूझ सकते हैं कि आपस में एक-दूसरे को हरा कर अपना स्पेस बनाना संभव है लेकिन सन् 2024 में नरेंद्र मोदी (या जैसे अभी चार राज्यों में) जीते तो उसके बाद प्रदेशों के चिडीमार नेताओं का सारा स्पेस धरा रह जाएगा। आपस में एक-दूसरे से लड़ कर भले छोटा-मोटा स्पेस बना लें लेकिन वह सब नरेंद्र मोदी के अंगूठे के नीचे!

इसमें मील के पत्थर जैसा मामला परिवार से कांग्रेस की मुक्ति का है। कल्पना करें कांग्रेस खत्म हो जाए। वह सन् 2024 का लोकसभा चुनाव लडऩे लायक नहीं रहे (इसका मिशन है और इस पर कल) तो कपिल सिब्बल-प्रशांत किशोर क्या विकल्प का नया स्पेस बना कर (नई धुरी बना कर) उससे सभी क्षत्रपों को जोड़ करके नरेंद्र मोदी को हरा सकेंगे?

लोगों के जेहन में क्या ममता का चेहरा बनेगा या केजरीवाल का? क्या केजरीवाल 2014-15 जैसे तेवर लिए मोदी के खिलाफ बोलते हुए होंगे? कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, गुलाम नबी क्या नारा लगा सकते हैं कि मोदी हटाओ देश बचाओ? प्रशांत किशोर किसी भी एक्सवाईजेड नेता या पार्टी को उत्तर भारत में बतौर विकल्प मोदी विरोधियों के जहन में पैठा सकते हैं?कतई नहीं!

विपक्ष के लिए सन् 2024 का चुनाव कायदे से लड़ सकना तभी संभव है जब परिवारवादी कांग्रेस जिंदा रहे। परिवार के तीनों चेहरों को समझदार होना होगा तो उन नेताओं, पार्टियां को भी समझदारी बनानी होगी जो चाहते है मोदी को हटाना।

55-60 प्रतिशत मोदी विरोधी वोटों के सभी प्रतिनिधि चेहरों को पहले यह समझना होगा कि उनकी असुरक्षा, उनका पॉवर से दूर रहना मोदी-संघ परिवार व उनके आइडिया ऑफ इंडिया की वजह से है न कि विरोधी पाले में एक-दूसरी की धक्का-मुक्की याकि कांग्रेस बनाम आप बनाम सपा बनाम राजद बनाम बसपा के छोटे-छोटे स्वार्थों और ईगो से।

निश्चित ही समझ की कसौटी में सबसे पहले राहुल गांधी, प्रियंका और सोनिया गांधी को प्राथमिक तौर पर समझदार होना होगा। वे जाने कि वे कैसे सन् 2024 में चुनाव लडऩे लायक नहीं रह सकेंगे।

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कांग्रेस का आजादी व देश के विकास में योगदान अहम!

भारत की गौरवशाली परंपरा को बहाल करने की जरूरत – उपराष्ट्रपति

कांग्रेस के लिए किसी गांव तक में नहीं गए कपिल सिब्बल

 

मुझे बचाने कोई न आया मैं कश्मीरी पंडित हूं!

जगदीश सिंह – 20.03.2022, मेरी पीडा मुझसे न पूछ मैं खुद के घर से दंडित हूं! सवाल सियासत का नहीं! मुझे बचाने कोई न आया मैं कश्मीरी पंडित हूं!सवाल हिमाकत का नहीं! सवाल वक्त के नजाकत नहीं! सवाल सिर्फ सवाल इन्सानियत का है!आखिर कहां चले गये सर्व धर्म सम्भाव का ढपोरशंखी भाषण पिलाने वाले!

कहां चले गये थे सारे जहां से अच्छा का तराना गाने वाले! कहा चले गये थे मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना का सगूफा सुनाने वाले! कहां चले गये थे इस देश में इन्सानियत का फर्ज निभाने वाले! कहा चले गये थे

धर्म मजहब के ठिकेदार जो सबको समान आदर सबको सामान समादर से सलूक करने की गली गली गला फाड़ फाड़ कर तकरीर करते हैं?वो कहां मर गये थे!जिन्हें दम्भ है की देश की सत्ता हमारी कौम के बिना नहीं चल सकती है?

सदीयो सदियों से राजसत्ता से लेकर सियासत तक में दमदार दखल रखने वाले परशुराम के बंशज जो सैकड़ों संगठन बनाकर सियासत की दूकान चला रहें है?कश्मीरी पंडितों के समर्थन में क्यो नहीं उतरे सड़कों पर! क्यो नहीं कश्मीर कूच का ऐलान किया? क्यो गिरवी रख दिये अपना मान सम्मान स्वाभिमान ! जब कश्मीरी पंडितों का कत्लेयाम सरेयाम हो रहा था! कहां सो रहे थे इस देश के रहनुमा!

जो सबका भारत होने का दावा करते है! राष्ट्र वादी होने का दिखावा करते हैं?। बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी! बहुत दर्द हैआज जो कुछ दिखाया जा रहा है देख कर शर्म आ रही है! चुल्लू भर पानी में डुब मरो चाणक्य के बशजों! भगवान परशुराम के अनुयाइयों! इन दंगाईयों को सबक सिखाने की हिम्मत नहीं जुटा पाये!अपने भाईयों को आजाद भारत में बे मौत मरते देखते रहे! कोई पैदा नहीं हुआ चनद्रशेखर आजाद! बर्बाद हो गया कश्मीरी पंडितों का समाज!

बेशर्म सियासत के दोगले रहनुमा 1990से आज तक उन सांपों को दूध पिलाते रहे! गाते रहे सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा!भला हो उस निर्माता का जो असलियत को दुनियां के सामने परोस दिया! दोगले सियासत बाजों की जबान को खामोश कर दिया!दहल उठा है सारा देश! बदल गया घर घर का परिवेश!

आज हम अपने को भाग्यशाली मानते है की देश भक्त मोदी महान ने सम्मान के साथ हिन्दुस्तान के कलंकित इतिहास पर आधारित द कश्मीर फाईल्स मूबी का उद्घाटन कर उच्चाटन मन्त्र का जाप शुरू करा दिया? सोते समाज को जगा दिया! देश में हलचल है!आग फैलती जा रही है! लोगों के दिलों में नफरत की आंधी चल रही है! मगर यह हिन्दू समाज तफरका में बिश्वास नहीं रखता बसुधैव कूटुम्बकम का सूत्र उसके खून में समाहित है।

इसी लिये उसका इतिहास कलंकित है!!इतिहास गवाह है इस देश के आन बान शान को बरवाद करने के लिये बिधर्मियो ने बार बार सनातनी समाज को विखंडित करने का कुत्सित प्रयास किया! सैकड़ों साल तक अत्याचार का खेल खेला! मगर कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी!देश को लूट कर चले आक्रान्ता! चले गये ब्यापारी! मगर आज भी सनातनी समाज सम्बृधी के साथ समता का बिजारोपण करते हुये वैभवशाली ब्यवस्था का अनुगामी बना हुआ है!

सनातनी समाज के लिये 1990 की घटना ने आखरी तबाही की कील कश्मीर मे ठोक दिया !हजारों लोगों को मौत के मुंह में झोंक दिया! आज उसी पर आधारित सच द कश्मीर फाईल्स मूबी का प्रदशर्न जन जागरण करा रही है।कश्मीरी पंडितों की तबाही अत्याचार की कहानी बता रही हैं।

देश द्रोही गद्दारों की जमात इसका भी विरोध कर रही है! जगह जगह अवरोध कर रही है।मगर जन सैलाब कि आवाज बन चुकी मूबी को रोकना आसान नहीं! यह 1990का हिन्दुस्तान नहीं है।मोदी है तो कुछ भी मुमकिन है।मानवाधिकार जिसका हौवा बनाती है सरकार! कश्मीर मैं नाकाम है!वह भी वहीं कामयाब है जहां मुद्दा बेकार है।

आजाद भारत में दुसरी बार कश्मीर में हैवानियत का खेला सियासतदारो की मिलीभगत से खेला गया!तत्कालीन सरकार तत्कालीन रसूखदार तत्कालीन मानवाधिकार संगठन आंखें मूंद कर तमाशा देखते रहे।कश्मीर जलती रही! कश्मीरी पंडितों का बलिदान होता रहा! देश का सम्विधान रोता रहा। शर्म से सर झुक जाता है अपने को हिन्दुस्तानी कहने पर जितना अत्याचार हुआ कश्मीरी बहनों पर! उठो सिंह सावको मां भारती पुकार रही है! मिटा दो कलंकित इतिहास के पन्नों को!

जनसमर्थन के सैलाब से मजबूत सरकार का निर्माण करो! ताकी राणा शिवा के शौर्य गाथा दुबारा सिंहनाद हो सके।आताताईयो का सम्पुर्ण बिनाश हो सके! सियासत के जहरीले सांप विष बमन कर रहें हैं! रोज रोज रंग बदल रहे हैं! समय की मांग है जो तुमको कांटा बुये ताहि बोई तू भाला!——? सठेशाठ्यम समाचरेत! जैसे को तैसा की जरुरत आन पड़ी है।

लेकिन इसके साथ ही सरकार पर की जिम्मेदारी है कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में पुनर्स्थापित करें!उनके जान-माल सुरक्षा की ब्यवस्था करें! उनका हक दिलावे!ऐसा नहीं हुआ तो केवल मूबी से लोग कुछ दिनों तक बदले की आग में जलते रहेंगे! फिर सब कुछ यथावत हो जायेगा!कश्मीर की घटना इतिहास में कहावत हो जायेगा?आज नहीं तो कल इसी को लेकर बगावत हो जायेगा!

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कांग्रेस का आजादी व देश के विकास में योगदान अहम!

भारत की गौरवशाली परंपरा को बहाल करने की जरूरत – उपराष्ट्रपति

कांग्रेस के लिए किसी गांव तक में नहीं गए कपिल सिब्बल

हकीकत यह है कि कोरोना महामारी अभी दुनिया से गई नहीं है

20.03.2022 हकीकत यह है कि कोरोना महामारी अभी दुनिया से गई नहीं है। इस बात का ख्याल सबको रखना चाहिए। फिलहाल, इसकी सबसे तीखी मार वही देश झेल रहा है, जहां से इस महामारी की शुरुआत हुई थी। चीन और हांगकांग में संक्रमण के रोज नए मामले आने के रिकॉर्ड बन रहे हैँ।भारत में लोग आम जिंदगी शुरू कर चुके हैँ। बल्कि अब आम तौर पर किसी के मन में कोरोना संक्रमण का भय भी नजर नहीं आता। मास्क और सेनेटाइजर का इस्तेमाल न्यूनतम हो चुका है।

वैसे यह अच्छी बात है। लोगों का भरोसा देख कर बेहतर दिनों का भरोसा बनता है। लेकिन हकीकत यह है कि कोरोना महामारी अभी दुनिया से गई नहीं है। इस बात का ख्याल सबको रखना चाहिए। फिलहाल, इसकी सबसे तीखी मार वही देश झेल रहा है, जहां से इस महामारी की शुरुआत हुई थी। चीन में संक्रमण के रोज नए मामले आने के रिकॉर्ड बन रहे हैँ। महामारी की शुरुआत में भी जितने लोग एक दिन में संक्रमित नहीं हो रहे थे, उतने अब हो रहे हैँ। खबरों के मुताबिक महामारी के इस नए दौर के लिए कोरोना वायरस के डेल्टा और ओमीक्रोन दोनों वैरिएंट जिम्मेदार हैं। यहां यह याद रखना चाहिए कि चीन अब संभवत: अकेला देश बचा है, जहां जीरो कोविड की नीति अभी भी लागू है। यानी वहां संक्रमण के एक भी मामले को अस्वीकार्य माना जाता है। संक्रमण की सूचना मिलते ही सख्त कदम उठाए जाते हैँ।

लेकिन उससे महामारी के नए दौर को आने से रोका नहीं जा सकता है। नतीजतन, कई शहरों में लॉकडाउन लगाया गया है। शेनजेन समेत देशभर में 10 इलाकों में लोगों को घर पर ही रहने के आदेश दिए गए हैँ। यह प्रकोप हांगकांग में पहले ही अपना भीषण रूप दिखा चुका है।हांगकांग में तो वायरस ने तबाही मचा रखी है। वो रोजाना बीसियों लोगों की मौत का कारण बन रहा है। चीन के मुख्य भूभाग में स्वास्थ्य अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि और कड़े कदम भी उठाए जा सकते हैं।

शेनजेन में अधिकारियों ने बताया है कि शहरी ग्रामीण इलाकों और फैक्ट्रियों में छोटे स्तर पर कई क्लस्टर पाए गए हैं। इससे सामुदायिक संचार के बड़े खतरे के संकेत मिलते हैं। पूर्वोत्तर में जिलिन प्रांत में लगातार दो दिनों तकएक हजार से ज्यादा मामले सामने आए। मार्च की शुरआत से इस प्रांत के कम से कम पांच शहरों में तालाबंदी लागू की जा चुकी है। तो सबक यह है कि इस महामारी को खत्म ना माना जाए। दुनिया के किसी भी हिस्से में ये मौजूद है, तो फिर यह कहीं पहुंच सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि लोग मास्क और सेनेटाइजर से अभी तौबा ना करेँ।

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ओटीटी पर रिलीज होगी विक्रम प्रभु की फिल्म तानाक्करन

20.03.2022- निर्देशक तमीज की बहुप्रतीक्षित एक्शन ड्रामा तानाक्करन, जिसमें अभिनेता विक्रम प्रभु, अंजलि नायर और लाल मुख्य भूमिका में हैं, डिज्नी प्लस हॉटस्टार तमिल पर रिलीज होगी।

इंस्टाग्राम पर ले जाते हुए, अभिनेता विक्रम प्रभु ने फिल्म का एक पोस्टर डाला और कहा कि हियर यू गो, तानाक्करन जल्द ही डिज्नी प्लस हॉटस्टार तमिल पर रिलीज होगी।फिल्म ने कई कारणों से बड़ी उम्मीदें जगाई हैं। प्राथमिक कारणों में से एक यह है कि इसे तमीज द्वारा निर्देशित किया गया है, जिन्होंने समीक्षकों द्वारा प्रशंसित कोर्ट रूम ड्रामा, जय भीम में प्रतिपक्षी (एक पुलिस अधिकारी) की भूमिका निभाई थी।कम ही लोग जानते हैं कि निर्देशक तमीज फिल्म निर्देशक बनने से पहले एक पुलिस अधिकारी थे।तमीज ने बताया था कि मैं लगभग 12 वर्षों तक एक पुलिसकर्मी था।

मैंने तिहाड़ सहित कई जगहों पर सेवा की है। 2014 में, मैंने फिल्मों में प्रवेश करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी।तानाक्करन एक पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज की कहानी है। लाल पुलिस प्रशिक्षण अकादमी में एक प्रशिक्षक की भूमिका निभा रहे हैं, और विक्रम प्रभु एक कैडेट की भूमिका निभा रहे हैं। फिल्म के ट्रेलर ने प्रशंसकों के बीच फिल्म को लेकर काफी दिलचस्पी पैदा कर दी है।फिल्म के पिछले साल दिसंबर में स्क्रीन पर आने की उम्मीद थी। हालांकि, यह अब ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार तमिल पर रिलीज हो रही है।

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भारत की गौरवशाली परंपरा को बहाल करने की जरूरत – उपराष्ट्रपति

कांग्रेस के लिए किसी गांव तक में नहीं गए कपिल सिब्बल

 

भारत की गौरवशाली परंपरा को बहाल करने की जरूरत – उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज प्राचीन शिक्षा प्रणालियों और पारंपरिक ज्ञान पर फिर से चर्चा की.  उन्हें वर्तमान समय के लिए प्रासंगिक बनाने के लिए शिक्षा क्षेत्र में भारत की उस गौरवशाली परंपरा को बहाल करने का आह्वान किया।

आज हरिद्वार में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एण्ड रिकंसिलिएशन (एसएआईपीआर) का उद्घाटन करने के बाद सभा को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत की प्रसिद्ध और सदियों पुरानी शिक्षा प्रणाली लंबे समय तक विदेशी शासन की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुई है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि लंबे समय तक औपनिवेशिक शासन ने महिलाओं सहित एक बड़े वर्ग को शिक्षा से वंचित रखा। औपनिवेशिक शासन में केवल एक छोटे अभिजात वर्ग को ही औपचारिक शिक्षा सुलभ थी। उन्होंने कहा, “सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना आवश्यक है, तभी हमारी शिक्षा समावेशी और लोकतांत्रिक हो सकती है।” श्री नायडु ने हमारी शिक्षा प्रणाली का भारतीयकरण करने के राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रयास पर भी प्रसन्नता व्यक्त की और उस मानसिकता के लिए कड़ी अस्वीकृति व्यक्त की जो हर भारतीय चीज को कमतर आंकती है।

​ अपनी जड़ों से फिर से जुड़ने की आवश्यकता पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने इच्छा जताई कि परिवार के बुजुर्ग छोटे बच्चों के साथ अधिक समय बिताएं ताकि वे हमारे समृद्ध सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं को बेहतर ढंग से आत्मसात कर सकें। उन्होंने युवाओं को प्रकृति के साथ समय बिताने की भी सलाह दी और प्रकृति को सर्वश्रेष्ठ शिक्षक बताया।

हमारे जीवन में मातृभाषा के महत्व पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने युवाओं को अपनी मातृभाषा का अभ्यास करने, उसका विस्तार और प्रचार करने के लिए प्रोत्साहित किया। श्री नायडु ने कहा, “मैं वो दिन देखना चाहता हूं जब हर भारतीय अपने साथी देशवासियों से अपनी मातृभाषा में बात करें, प्रशासन का काम मातृभाषा में चले और सभी सरकारी आदेश लोगों की अपनी भाषा में जारी किए जाएं।” उन्होंने अदालती कार्यवाही में भी स्थानीय भाषाओं के इस्तेमाल का आह्वान किया।

संघर्षग्रस्त दुनिया में सामाजिक और अन्य तनावों के बढ़ने पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि मानवता की प्रगति के लिए शांति पहली जरूरत है। उन्होंने कहा, “शांति का व्यापक प्रभाव पड़ता है – यह सामाजिक सद्भाव को बढ़ाता है और प्रगति तथा समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।” उन्होंने कहा कि ‘शांति का लाभांश’ प्रत्येक हितधारक को लाभान्वित करता है और समाज में धन और खुशी लाता है।

श्री नायडु ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ और ‘लोक: समस्तः सुखिनो भवन्तु’ के हमारे सदियों पुराने सभ्यतागत मूल्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि शांति और मानवता के कल्याण के लिए भारत की प्रतिबद्धता भौगोलिक सीमाओं से परे है। उन्होंने कहा कि, “भारत को शांति की भूमि के रूप में जाना जाता है। हमने हमेशा शांति बनाए रखने और समाज के सभी वर्गों के सौहार्दपूर्ण जीवन को सुनिश्चित करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।”

दक्षिण एशियाई देशों के साझा इतिहास और सभ्यता को देखते हुए उन्होंने इस क्षेत्र में भाषाई, जातीय और सांस्कृतिक विविधताओं का सम्मान करने का भी आह्वान किया, जो सहिष्णुता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के मूल मूल्यों को प्रदर्शित करते हैं। उन्होंने कहा, “दुनिया की ‘आध्यात्मिक राजधानी’ के रूप में, भारत शांति बनाए रखने और सद्भाव सुनिश्चित करने में अपनी भूमिका निभाता रहेगा।”

उपराष्ट्रपति ने साउथ एशिया इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एण्ड रिकंसिलिएशन (एसएआईपीआर) की स्थापना में शामिल सभी लोगों को बधाई देते हुए आशा व्यक्त की कि यह संस्थान अकादमिक विचार-विमर्श के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन जाएगा और शांति एवं समन्वय के मूल्यों को फैलाने में आगे बढ़ने की एक प्रेरणा (स्प्रिंगबोर्ड) के रूप में कार्य करेगा। उल्लेखनीय है कि गायत्री तीर्थ के स्वर्ण जयंती वर्ष में हरिद्वार के देव संस्कृति विश्वविद्यालय में एसएआईपीआर की स्थापना की गई है।

इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने भगवान बुद्ध और सम्राट अशोक को याद किया और कहा कि उन्होंने ‘युद्ध घोष’ (युद्ध) पर धम्म घोष को प्राथमिकता दी और भगवान बुद्ध द्वारा प्रतिपादित पंचशील हमारी विदेश नीति का आधार है।

श्री नायडु ने योग और ध्यान को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाने के लिए विभिन्न संस्थानों के सहयोग से देव संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे प्रयासों की भी सराहना की। उन्होंने योग को मानवता के लिए भारत का अनूठा उपहार बताया।

उपराष्ट्रपति श्री नायडु ने इस संस्थान का उद्घाटन करने के बाद एसएआईपीआर और एशिया के पहले बाल्टिक संस्कृति एवं अध्ययन केंद्र का दौरा किया। उन्होंने प्रज्ञेश महाकाल मंदिर में भी दर्शन किए और विश्वविद्यालय परिसर में रुद्राक्ष का पौधा लगाया। विश्वविद्यालय की यात्रा के दौरान उन्हें संस्थान में कागज निर्माण इकाई, कृषि और गाय आधारित उत्पाद केंद्र और हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र जैसी विभिन्न सुविधाएं भी दिखाई गईं। उपराष्ट्रपति ने डीएसवीवी परिसर में ‘वॉल ऑफ हीरोज़’ पर शहीदों को श्रद्धांजलि भी दी और विश्वविद्यालय की नई वेबसाइट सहित विश्वविद्यालय के विभिन्न प्रकाशनों का शुभारंभ किया।

इस कार्यक्रम में उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह, पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, वीएसएम (सेवानिवृत्त), देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ प्रणव पंड्या, कुलपति श्री शरदपर्धी, प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पंड्या, कुलसचिव श्री बलदाऊ देवांगन, संकाय सदस्य, छात्र और अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।

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श्री अमित शाह ने जम्मू और कश्मीर की सुरक्षा समीक्षा की

जम्मू ,केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने जम्मू में जम्मू और कश्मीर में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की। इस बैठक में  जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा और भारत सरकार व जम्मू-कश्मीर प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे.

केंद्रीय गृह मंत्री ने सुरक्षा स्थिति में सुधार, 2018 में हुई 417 आतंकी घटनाएँ कम होकर 2021 में 229 होने और 2018 में शहीद हुए सुरक्षा बलों के जवानों की संख्या 91 से घटकर 2021 में 42 होने की सराहना की। श्री अमित शाह ने आतंकवादियों के खिलाफ सक्रिय अभियानों और उन्हें सुरक्षित पनाहगाह या वित्तीय सहायता से वंचित करने पर ज़ोर दिया। उन्होंने सुरक्षा बलों और पुलिस को प्रभावी आतंकवाद विरोधी अभियानों और जेलों से आतंकवादियों की निगरानी गतिविधियों के लिए वास्तविक समय आधारित समन्वय (Real Time Coordination) सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। गृह मंत्री ने नार्को आतंकवाद को रोकने के लिए जम्मू-कश्मीर में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) को और मजबूत करने का आदेश दिया।

श्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के शांतिपूर्ण और समृद्ध जम्मू-कश्मीर के सपने को साकार करने के लिए सीमा पार से ज़ीरो घुसपैठ सुनिश्चित करने और आतंकवाद को पूरी तरह से खत्म करने के लिए सुरक्षा ग्रिड को और मजबूत किया जाना चाहिए। (PIB)

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राष्ट्रपति ने होली की पूर्व संध्या पर देशवासियों को दी बधाई

नई दिल्ली ,17 मार्च (आरएनएस)। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने होली की पूर्व संध्या पर सभी देशवासियों को अपनी शुभकामनाएं दी हैं।
राष्ट्रपति ने अपने संदेश में कहा होली के शुभ अवसर पर, मैं देश और विदेश में रह रहे सभी भारतीयों को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।
वसंत ऋतु के आगमन का शुभ समाचार लेकर आने वाला रंगों का पर्व होली, हमारे जीवन में खुशियां और उमंग लेकर आता है। यह पर्व सामाजिक सद्भाव और मेल-मिलाप का जीवंत उदाहरण है। हर उम्र और हर वर्ग के बच्चे, युवा, पुरुष और महिलाएं पूरे उल्लास के साथ इस त्योहार को मनाते हैं।
मेरी कामना है कि रंगों का यह त्योहार सभी के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करे तथा राष्ट्र निर्माण की भावना को भी प्रबल बनाए।

उपराष्ट्रपति ने होली की पूर्व संध्या पर देशवासियों को दी बधाई

नई दिल्ली ,17 मार्च (आरएनएस)। उपराष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडु ने होली के अवसर पर लोगों को बधाई दी है। उन्होंने अपने संदेश में कहा-
रंगों के त्योहार होली के शुभ अवसर पर मैं देशवासियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।
देशभर में पारंपरिक हर्षोल्लास एवं उत्साह के साथ मनाया जाने वाला होली का त्योहार परिवार एवं मित्रों के साथ मिलने और जीवन की स्फूर्त एवं आनंदमयी उत्सव की भावना का आनंद लेने का अवसर है। होली की पूर्व-संध्या पर आयोजित किया जाने वाला ‘होलिका दहन’ बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
होली के इस पावन अवसर पर, आइए हम अपने समाज को एक सूत्र में पिरोकर रखने वाली मित्रता और मेल-जोल के बंधन को मजबूत करने का प्रयास करें।
मेरी कामना है कि यह त्योहार हमारे जीवन में शांति, सौहार्द, समृद्धि और खुशियां लेकर आए।

फिल्मकार सावन कुमार टाक ने किया ‘वेख्या शहर बंबई’ का विमोचन

फिल्म निर्माता गुरचरण सग्गू द्वारा लिखी गई किताब ‘वेख्या शहर बंबई’ का विमोचन बॉलीवुड के चर्चित फिल्म निर्माता- निर्देशक सावन कुमार टाक ने पिछले दिनों मुम्बई में किया। फिल्म जगत में अपनी पहचान बनाने की चाहत ले कर मुम्बई पहुँचने वाले नवोदित कलाकारों व फिल्म मेकरों को समर्पित यह 208 पन्नों की किताब पंजाबी में है। किताब के नाम का अर्थ ‘बॉम्बे सिटी देखा’ है। इस कार्यक्रम में टीना घई, प्रीति सप्रू, राजन लायलपुरी, गोपी भल्ला, अरुण बख्शी और विजय टंडन के अलावा बॉलीवुड के गणमान्य लोग उपस्थित थे।

विदित हो कि 90 के दशक में गुरचरण सग्गू इंग्लैंड से फिल्म प्रोड्यूस करने आए थे। उन्होंने सुनील घोष केे निर्देशन में जैकी श्रॉफ और नीलम को लेकर फिल्म ‘चौथी दुनिया’ का निर्माण कार्य शुरू किया परंतु पूरी फिल्म की शूटिंग कर लेने के बाद उन्हें नए सिरे से सुखवंत दद्दा के निर्देशन में दोबारा शूटिंग करनी पड़ी और फिल्म का टाइटल ‘अंतिम न्याय’ करना पड़ा। इसमें बड़ी रकम खर्च हुई थी। गुरचरण सग्गू को अपने दुस्साहस की कीमत चुकानी पड़ी। उनका घर बिक गया और उसका व्यवसाय भी बुरी तरह प्रभावित हुआ था।

अपने फिल्मी सफर में आये उतार चढ़ाव को इस किताब में उन्होंने विस्तार से वर्णन करते हुए ये बताने का प्रयास किया है कि कैसे उन्हें फिल्म उद्योग में विचलित किया गया। पंजाबी संस्करण के बाद यह किताब हिंदी और अंग्रेजी में भी प्रकाशित होने वाली है। यह किताब उन लोगों के लिए प्रकाशस्तंभ का काम करेगी जो फिल्म उद्योग में आना चाहते हैं।
प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय

कांग्रेस के लिए किसी गांव तक में नहीं गए कपिल सिब्बल

नई दिल्ली ,17 मार्च (आरएनएस)। उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में करारी हार झेलने वाली कांग्रेस में अब आतंरिक कलह मची है। कांग्रेस के सीनियर नेता कपिल सिब्बल ने इस हार के लिए गांधी परिवार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि उन्हें किसी और नेता को कमान देनी चाहिए। यही नहीं राहुल गांधी पर सीधा अटैक करते हुए कपिल सिब्बल ने कहा था कि वह पार्टी के अध्यक्ष नहीं हैं, लेकिन अब भी सारे फैसले वही लेते हैं। कपिल सिब्बल ने कहा था कि अब वक्त आ गया है कि कांग्रेस में आमूलचूल परिवर्तन किया जाना चाहिए।

हालांकि उनकी सलाह पार्टी के कई नेताओं को नागवार गुजरी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने कपिल सिब्बल पर पलटवार करते हुए कहा है कि वह एक अच्छे नेता नहीं रहे हैं। खडग़े ने कहा कि कपिल सिब्बल एक अच्छे वकील हो सकते हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए बढिय़ा नेता नहीं हैं। मल्लिकार्जुन खडग़े ने सिब्बल पर तीखा हमला बोलते हुए कहा, वह कभी कांग्रेस के काम के लिए किसी गांव तक नहीं गए। वह जानबूझकर पार्टी को कमजोर करने का काम कर रहे हैं।

कोई भी सोनिया गांधी और कांग्रेस को कमजोर नहीं कर सकता है।

5 राज्यों में करारी हार के बाद से कांग्रेस में हलचल मची है। अब सोनिया गांधी ने पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू समेत 5 राज्यों के नेताओं से इस्तीफे मांग लिए हैं। नवजोत सिंह सिद्धू तो पद से इस्तीफा भी दे चुके हैं। कांग्रेस ने रविवार को कार्यसमिति की बैठक भी बुलाई थी, जिसमें उन्होंने राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और अपने इस्तीफे की पेशकश की थी, जिसे सदस्यों ने खारिज कर दिया। कांग्रेस में अगस्त महीने में संगठन के चुनाव होने वाले हैं। माना जा रहा है कि उस दौरान कुछ और बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।

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