गोवा में कांग्रेस की स्थिति समझेंगी रजनी पाटिल

अध्यक्ष पद समेत कई चुनौतियों से होगा सामना

पणजी ,17 मार्च (आरएनएस)। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चुनाव के बाद की स्थिति की समीक्षा और संगठन में बदलाव के सुझाव के लिए 5 नेताओं को नियुक्त किया है। इनमें राज्यसभा सांसद रजनी पाटिल का नाम भी शामिल है। पार्टी नेतृत्व के लिए गोवा के सियासी हाल की जानकारी जुटाने निकलीं पाटिल के लिए समय व्यस्त रहने वाला है। क्योंकि इस दौरान वे गोवा में पार्टी को हार के दौर से उबारने की कोशिश करेंगी। खास बात है कि पार्टी को गोवा में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन नतीजों में निराशा हाथ लगी। इसके अलावा गिरीश चूड़ांकर की तरफ से इस्तीफे की घोषणा के बाद राज्य में पार्टी लीडरशिप को लेकर भी चर्चाएं तेज हो रही हैं। नेताओं के पार्टी बदलने और सरकार के खिलाफ नाराजगी के बीच कांग्रेस 11 सीटें ही हासिल कर सकी। हालांकि, इससे पहले भी साल 2012 में ऐसा दौर आया था, जब पार्टी को 9 सीटें ही मिल सकी थी। 2022 चुनाव में कांग्रेस के सहयोगी दल गोवा फॉरवर्ड पार्टी ने 3 सीटों पर चुनाव लड़ा और एक जीतने में सफलता हासिल की।
राज्य में पार्टी की हार के बाद ही गोवा कांग्रेस के अध्यक्ष गिरीश चूड़ांकर ने भी पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया है। साल 2018 में पार्टी तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की तरफ से प्रदेश इकाई के प्रमुख बनाए गए चूड़ांकर के कार्यकाल में कांग्रेस को कई चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। इनमें 2019 के उपचुनाव शामिल है, जहां पार्टी को एक ही सीट मिल सकी थी। यहां भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडऩे वाले एटेनाजियो मॉन्जरेट भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। यहां तक कि चूड़ांकर ने भी पणजी उपचुनाव और उत्तर गोवा सीट से लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाई, लेकिन दोनों बार उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।
चूड़ांकर को पार्टी की कमान ऐसे समय पर दी गई थी, जब कांग्रेस राहुल गांधी के साथ नेतृत्व स्तर के पदों के लिए युवा चेहरों के लिए उत्साहित थी। लेकिन दल बदल और नेतृत्व पर भरोसे की कमी से जूझ रही पार्टी को एकजुट करने में चूड़ांकर असफल रहे। हालांकि, इससे पहले भी वे पद से इस्तीफा देने की पेशकश कर चुके हैं, लेकिन पार्टी ने उन्हीं के साथ बने रहने का फैसला किया।
कौन संभाल सकता है पद?
फिलहाल, यह साफ नहीं है कि चूड़ांकर की जगह कौन लेगा। स्थिति देखी जाए, तो पार्टी के पास पद के लिए ज्यादा विकल्प भी मौजूद नहीं हैं। वरिष्ठ नेताओं में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और वर्तमान में कार्यकारी अध्यक्ष एलेक्सियो सीक्वेरा का नाम है। वहीं, युवा चेहरे को देखें, तो गोवा प्रदेश युवा अध्यक्ष संकल्प अमोनकर का नाम सामने आता है। भाजपा के मिलिंद नाइक को हराकर अमोनकर इस महीने पहली बार चुने गए हैं। दोनों में से खासतौर से कोई ऐसा विकल्प नहीं है, जो कांग्रेस को दोबारा तैयार कर सकेगा।
गोपनीयता की शर्त पर एक कांग्रेस नेता बताते हैं, अमोनकर कांग्रेस के बारे में जानते हैं और पार्टी के संगठन से परिचित हैं। विधायक होने के चलते शीर्ष पद के लिए उनका दावा भी मजबूत हुआ है। जबकि, चुनाव में बार-बार असफल होने के चलते चूड़ांकर में यह कमी थी।
कई सीटों पर नजदीकी हार के बाद कांग्रेस में एक रणनीतिकार की कमी पर सभी का ध्यान गया है। इनमें से कई सीटों पर अगर कांग्रेस समान सोच वाले प्रतिद्विंदियों को चुनाव से हटाने में सफल हो जाती है, तो यह जीत में बदल सकती थीं। कम से कम तीन सीटों (नावेलिम, वेलिम और दाबोलिम) में पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के वोटों से हार गई। पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र की सरकार में दोनों पार्टियां गठबंधन का हिस्सा हैं।
उम्मीदवारों के नाम तय करने में देरी के चलते भी कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा है। वहीं, कई सीटों पर कमजोर उम्मीदवार उतारने के फैसले ने भी अन्य सीटों पर असर डाला। पार्टी को सत्ता में आने के लिए बची हुई सीटों पर 100 फीसदी स्ट्राइक रेट की जरूरत पड़ी।
इसके अलावा आम आदमी पार्टी और रिवॉल्युशनरी गोअन्स जैसी पार्टियों के चलते कांग्रेस को वोट शेयर के मामले में भी नुकसान हु आहै। हालांकि, केवल एक विधायक (दिगंबर कामत) के साथ मैदान उतरी कांग्रेस का आंकड़ा 11 पर पहुंच गया है। वहीं, पहले 27 सीटों पर जीतने वाली भाजपा 20 सीटों पर आ गई है। साथ ही पार्टी ने भाजपा के दोनों मुख्यमंत्रियों की हार को भी सुनिश्चित किया।
इधर, कांग्रेस ने उत्तरी गोवा की बरदेज तालुका में भाजपा को हाथों गंवाई सियासी जमीन को भी दोबारा हासिल कर लिया। मुख्य रूप से इसका श्रेय भाजपा सरकार के पूर्व मंत्री रहे माइकल लोबो को जाता है, जो कांग्रेस में शामिल हो गए। पार्टी ने उनके सहारे 7 में से चार सीटें जीती और 5वीं सीट पर मुकाबला नजदीकी रहा। इस प्रदर्शन के साथ ही लोबो राज्य में कामत के बाद दूसरे सबसे अहम नेता बन गए हैं। अब सवाल है कि क्या कांग्रेस नेतृत्व बड़े पद को लेकर उनपर भरोसा करेगा?

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