जगदीश सिंह – 20.03.2022, मेरी पीडा मुझसे न पूछ मैं खुद के घर से दंडित हूं! सवाल सियासत का नहीं! मुझे बचाने कोई न आया मैं कश्मीरी पंडित हूं!सवाल हिमाकत का नहीं! सवाल वक्त के नजाकत नहीं! सवाल सिर्फ सवाल इन्सानियत का है!आखिर कहां चले गये सर्व धर्म सम्भाव का ढपोरशंखी भाषण पिलाने वाले!
कहां चले गये थे सारे जहां से अच्छा का तराना गाने वाले! कहा चले गये थे मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना का सगूफा सुनाने वाले! कहां चले गये थे इस देश में इन्सानियत का फर्ज निभाने वाले! कहा चले गये थे
धर्म मजहब के ठिकेदार जो सबको समान आदर सबको सामान समादर से सलूक करने की गली गली गला फाड़ फाड़ कर तकरीर करते हैं?वो कहां मर गये थे!जिन्हें दम्भ है की देश की सत्ता हमारी कौम के बिना नहीं चल सकती है?
सदीयो सदियों से राजसत्ता से लेकर सियासत तक में दमदार दखल रखने वाले परशुराम के बंशज जो सैकड़ों संगठन बनाकर सियासत की दूकान चला रहें है?कश्मीरी पंडितों के समर्थन में क्यो नहीं उतरे सड़कों पर! क्यो नहीं कश्मीर कूच का ऐलान किया? क्यो गिरवी रख दिये अपना मान सम्मान स्वाभिमान ! जब कश्मीरी पंडितों का कत्लेयाम सरेयाम हो रहा था! कहां सो रहे थे इस देश के रहनुमा!
जो सबका भारत होने का दावा करते है! राष्ट्र वादी होने का दिखावा करते हैं?। बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी! बहुत दर्द हैआज जो कुछ दिखाया जा रहा है देख कर शर्म आ रही है! चुल्लू भर पानी में डुब मरो चाणक्य के बशजों! भगवान परशुराम के अनुयाइयों! इन दंगाईयों को सबक सिखाने की हिम्मत नहीं जुटा पाये!अपने भाईयों को आजाद भारत में बे मौत मरते देखते रहे! कोई पैदा नहीं हुआ चनद्रशेखर आजाद! बर्बाद हो गया कश्मीरी पंडितों का समाज!
बेशर्म सियासत के दोगले रहनुमा 1990से आज तक उन सांपों को दूध पिलाते रहे! गाते रहे सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा!भला हो उस निर्माता का जो असलियत को दुनियां के सामने परोस दिया! दोगले सियासत बाजों की जबान को खामोश कर दिया!दहल उठा है सारा देश! बदल गया घर घर का परिवेश!
आज हम अपने को भाग्यशाली मानते है की देश भक्त मोदी महान ने सम्मान के साथ हिन्दुस्तान के कलंकित इतिहास पर आधारित द कश्मीर फाईल्स मूबी का उद्घाटन कर उच्चाटन मन्त्र का जाप शुरू करा दिया? सोते समाज को जगा दिया! देश में हलचल है!आग फैलती जा रही है! लोगों के दिलों में नफरत की आंधी चल रही है! मगर यह हिन्दू समाज तफरका में बिश्वास नहीं रखता बसुधैव कूटुम्बकम का सूत्र उसके खून में समाहित है।
इसी लिये उसका इतिहास कलंकित है!!इतिहास गवाह है इस देश के आन बान शान को बरवाद करने के लिये बिधर्मियो ने बार बार सनातनी समाज को विखंडित करने का कुत्सित प्रयास किया! सैकड़ों साल तक अत्याचार का खेल खेला! मगर कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी!देश को लूट कर चले आक्रान्ता! चले गये ब्यापारी! मगर आज भी सनातनी समाज सम्बृधी के साथ समता का बिजारोपण करते हुये वैभवशाली ब्यवस्था का अनुगामी बना हुआ है!
सनातनी समाज के लिये 1990 की घटना ने आखरी तबाही की कील कश्मीर मे ठोक दिया !हजारों लोगों को मौत के मुंह में झोंक दिया! आज उसी पर आधारित सच द कश्मीर फाईल्स मूबी का प्रदशर्न जन जागरण करा रही है।कश्मीरी पंडितों की तबाही अत्याचार की कहानी बता रही हैं।
देश द्रोही गद्दारों की जमात इसका भी विरोध कर रही है! जगह जगह अवरोध कर रही है।मगर जन सैलाब कि आवाज बन चुकी मूबी को रोकना आसान नहीं! यह 1990का हिन्दुस्तान नहीं है।मोदी है तो कुछ भी मुमकिन है।मानवाधिकार जिसका हौवा बनाती है सरकार! कश्मीर मैं नाकाम है!वह भी वहीं कामयाब है जहां मुद्दा बेकार है।
आजाद भारत में दुसरी बार कश्मीर में हैवानियत का खेला सियासतदारो की मिलीभगत से खेला गया!तत्कालीन सरकार तत्कालीन रसूखदार तत्कालीन मानवाधिकार संगठन आंखें मूंद कर तमाशा देखते रहे।कश्मीर जलती रही! कश्मीरी पंडितों का बलिदान होता रहा! देश का सम्विधान रोता रहा। शर्म से सर झुक जाता है अपने को हिन्दुस्तानी कहने पर जितना अत्याचार हुआ कश्मीरी बहनों पर! उठो सिंह सावको मां भारती पुकार रही है! मिटा दो कलंकित इतिहास के पन्नों को!
जनसमर्थन के सैलाब से मजबूत सरकार का निर्माण करो! ताकी राणा शिवा के शौर्य गाथा दुबारा सिंहनाद हो सके।आताताईयो का सम्पुर्ण बिनाश हो सके! सियासत के जहरीले सांप विष बमन कर रहें हैं! रोज रोज रंग बदल रहे हैं! समय की मांग है जो तुमको कांटा बुये ताहि बोई तू भाला!——? सठेशाठ्यम समाचरेत! जैसे को तैसा की जरुरत आन पड़ी है।
लेकिन इसके साथ ही सरकार पर की जिम्मेदारी है कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में पुनर्स्थापित करें!उनके जान-माल सुरक्षा की ब्यवस्था करें! उनका हक दिलावे!ऐसा नहीं हुआ तो केवल मूबी से लोग कुछ दिनों तक बदले की आग में जलते रहेंगे! फिर सब कुछ यथावत हो जायेगा!कश्मीर की घटना इतिहास में कहावत हो जायेगा?आज नहीं तो कल इसी को लेकर बगावत हो जायेगा!
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