जान और जहान

ऐसे वक्त में जब कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर में संक्रमितों का आंकड़ा ढाई लाख पार कर गया है, प्रधानमंत्री का विभिन्न मुख्यमंत्रियों के साथ महामारी से लड़ाई के लिये बैठक करना तार्किक नजर आता है। एक सप्ताह में यह प्रधानमंत्री की दूसरी बैठक थी, जिसमें कहा गया कि संक्रमण से बचाव हेतु प्रतिबंधों व उपायों को लागू करते वक्त ध्यान रहे कि स्थानीय स्तर पर लोगों की जीविका पर प्रतिकूल असर न पड़े। स्मरण रहे कि पहली लहर के दौरान लगे सख्त लॉकडाउन से नयी तरह का मानवीय संकट पैदा हुआ था। देश ने विभाजन के बाद पलायन की सबसे बड़ी त्रासदी को देखा। अब तक भी आर्थिक दृष्टि से स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो पायी है। तीसरी लहर के दौरान राज्य सरकारों को स्थानीय प्रशासन को निर्देश देने होंगे कि संक्रमण की कड़ी तोडऩे के लिये एहतियाती उपाय जरूरी हैं, लेकिन जान के साथ जहान की रक्षा भी जरूरी है। देर-सवेर संक्रमण का दायरा सिमटेगा, लेकिन अर्थव्यवस्था को लगी चोट से उबरने में लंबा वक्त लग सकता है। मगर नये संक्रमण को लेकर जैसी दुविधा शासन-प्रशासन के सामने है, वैसी ही दुविधा देश की श्रमशील आबादी के सामने है। हालांकि, केंद्र व राज्य सरकारें आश्वासन दे रही हैं कि पूरा व सख्त लॉकडाउन नहीं लगाया जायेगा, लेकिन दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। पहली लहर की सख्त बंदिशों से महानगरों में श्रमिकों की त्रासदी की कसक अभी मिटी नहीं है। यही वजह है कि देश के कई राज्यों से श्रमिकों के पलायन की खबरें मीडिया में तैरती रही हैं। जाहिर है असुरक्षा बोध को दूर करने का आश्वासन उन उद्योगों की तरफ से श्रमिकों को नहीं मिल पाया, जहां वे काम करते हैं। ऐसे संकट के दौर में उद्योग व श्रमिकों के रिश्ते महज आर्थिक आधार पर न देखे जायें और उन्हें मानवीय संकट के संदर्भ में देखकर ऐसे आश्वासन दिये जाएं कि वे ऊहापोह की स्थिति से निकल सकें।
निस्संदेह, कोरोना की तीसरी लहर ने देश के सामने नये सिरे से बड़ी चुनौती पैदा की है, अच्छी बात यह है कि तेज संक्रमण के बावजूद अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है। निस्संदेह, इसके मूल में देश में चला सफल टीकाकरण अभियान भी है। आंकड़े बता रहे हैं कि मरने व अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों में बड़ी संख्या उन लोगों की है जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई थी। अब वे लोग भी टीका लगवा रहे हैं, जिन्होंने पहले इसकी अनदेखी की। सुखद है कि देश की पंद्रह से 18 साल तक की किशोर आबादी का टीकाकरण शुरू हो गया है और किशोरों ने उत्साह के साथ टीकाकरण अभियान में भागीदारी की है। इसके बावजूद जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि टेस्टिंग, ट्रैकिंग और ट्रीटमेंट की व्यवस्था जितनी बेहतर होगी, लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाने की जरूरत उतनी ही कम पड़ेगी। उन्होंने अधिक संक्रमण वाले इलाकों में निषेध क्षेत्र घोषित करने तथा घरों में पृथकवास पर जोर दिया। दरअसल, जब से विशेषज्ञों ने कहा कि नया वेरिएंट कम घातक है, तो लोग इस संकट को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। भीड़भाड़ वाले इलाकों में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन न करने की खबरें हैं। पूरी दुनिया कह रही है कि मास्क, सुरक्षित दूरी और बार-बार हाथ धोने से बचाव संभव है। विडंबना ही है कि जब तक प्रशासन सख्ती नहीं करता, हम नियम-कानूनों का पालन स्वेच्छा से नहीं करते। जबकि हमने पहली व दूसरी लहर में बड़ी कीमत चुकायी है। एक संकट यह भी है कि देश में बड़ी आबादी ऐसी है जो खांसी-जुकाम को सामान्य फ्लू मानकर जांच करने से बचती है। फिर गांव-देहात में कोरोना जांच की पर्याप्त चिकित्सा सुविधा न होने की बात कही जाती है। यही वजह है कि विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यदि अमेरिका में रोज दस लाख मामले आ रहे हैं तो उनकी जांच प्रक्रिया में तेजी और पर्याप्त चिकित्सा तंत्र का होना है। जांच की स्थिति ठीक होने पर भारत में वास्तविक संक्रमण की दर काफी अधिक हो सकती है।

कमाल ख़ान के नहीं होने का अर्थ

मैं पूछता हूँ तुझसे , बोल माँ वसुंधरे ,
तू अनमोल रत्न लीलती है किसलिए ?

राजेश बादल –
कमाल ख़ान अब नहीं है। भरोसा नहीं होता। दुनिया से जाने का भी एक तरीक़ा होता है। यह तो बिल्कुल भी नहीं। जब से ख़बर मिली है ,तब से उसका शालीन ,मुस्कुराता और पारदर्शी चेहरा आँखों के सामने से नहीं हट रहा। कैसे स्वीकार करूँ कि पैंतीस बरस पुराना रिश्ता टूट चुका है। रूचि ने इस हादसे को कैसे बर्दाश्त किया होगा ,जब हम लोग ही सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं।यह सोच कर ही दिल बैठा जा रहा है।मुझसे तीन बरस छोटे थे ,लेकिन सरोकारों के नज़रिए से बहुत ऊँचे ।
पहली मुलाक़ात कमाल के नाम से हुई थी,जब रूचि ने जयपुर नवभारत टाइम्स में मेरे मातहत बतौर प्रशिक्षु पत्रकार ज्वाइन किया था। शायद 1988 का साल था । मैं वहाँ मुख्य उप संपादक था। अँगरेज़ी की कोई भी कॉपी दो,रूचि की कलम से फटाफट अनुवाद की हुई साफ़ सुथरी कॉपी मिलती थी। मगर,कभी कभी वह बेहद परेशान दिखती थी। टीम का कोई सदस्य तनाव में हो तो यह टीम लीडर की नजऱ से छुप नहीं सकता। कुछ दिन तक वह बेहद व्यथित दिखाई दे रही थी। एक दिन मुझसे नहीं रहा गया। मैने पूछा,उसने टाल दिया। मैं पूछता रहा,वह टालती रही।एक दिन लंच के दरम्यान मैंने उससे तनिक क्षुब्ध होकर कहा , रूचि ! मेरी टीम का कोई सदस्य लगातार किसी उलझन में रहे ,यह ठीक नहीं।उससे काम पर उल्टा असर पड़ता है।उस दिन उसने पहली बार कमाल का नाम लिया।कमाल नवभारत टाइम्स लखनऊ में थे।दोनों विवाह करना चाहते थे। कुछ बाधाएँ थीं । उनके चलते भविष्य की आशंकाएँ रूचि को मथती रही होंगीं । एक और उलझन थी । मैनें अपनी ओर से उस समस्या के हल में थोड़ी सहायता भी की । वक़्त गुजऱता रहा। रूचि भी कमाल की थी।कभी अचानक बेहद खुश तो कभी गुमसुम। मेरे लिए वह छोटी बहन जैसी थी।पहली बार उसी ने कमाल से मिलवाया।मैं उसकी पसंद की तारीफ़ किए बिना नहीं रह सका।मैने कहा, तुम दोनों के साथ हूँ।अकेला मत समझना।फिर मेरा जयपुर छूट गया। कुछ समय बाद दोनों ने ब्याह रचा लिया।अक्सर रूचि और कमाल से फ़ोन पर बात हो जाती थी। दोनों बहुत ख़ुश थे।
इसी बीच विनोद दुआ का दूरदर्शन के साथ साप्ताहिक न्यूज़ पत्रिका परख प्रारंभ करने का अनुबंध हुआ।यह देश की पहली टीवी समाचार पत्रिका थी। हम लोग टीम बना रहे थे।कुछ समय वरिष्ठ पत्रकार दीपक गिडवानी ने परख के लिए उत्तरप्रदेश से काम किया।अयोध्या में बाबरी प्रसंग के समय दीपक ही वहाँ थे। कुछ एपिसोड प्रसारित हुए थे कि दीपक का कोई दूसरा स्थाई अनुबंध हो गया और हम लोग उत्तर प्रदेश से नए संवाददाता को खोजने लगे। विनोद दुआ ने यह जि़म्मेदारी मुझे सौंपी । मुझे रूचि की याद आई। मैनें उसे फ़ोन किया।उसने कमाल से बात की और कमाल ने मुझसे।संभवतया तब तक कमाल ने एनडीटीवी के संग रिश्ता बना लिया था।चूँकि परख साप्ताहिक कार्यक्रम था इसलिए रूचि गृहस्थी संभालते हुए भी रिपोर्टिंग कर सकती थी।कमाल ने भी उसे भरपूर सहयोग दिया।यह अदभुत युगल था ।दोनों के बीच केमिस्ट्री भी कमाल की थी।बाद में जब उसने इंडिया टीवी ज्वाइन किया तो कभी कभी फ़ोन पर दोनों से दिलचस्प वार्तालाप हुआ करता था।एक ही ख़बर के लिए दोनों संग संग जा रहे हैं।टीवी पत्रकारिता में शायद यह पहली जोड़ी थी जो साथ साथ रिपोर्टिंग करती थी।जब भी लखनऊ जाना हुआ,कमाल के घर से बिना भोजन किए नहीं लौटा।दोनों ने अपने घर की सजावट बेहद सुरुचिपूर्ण ढंग से की थी। दोनों की रुचियाँ भी कमाल की थीं.एक जैसी पसंद वाली ऐसी कोई दूसरी जोड़ी मैंने नहीं देखी।जब मैं आज तक चैनल का सेन्ट्रल इंडिया का संपादक था,तो अक्सर उत्तर प्रदेश या अन्य प्रदेशों में चुनाव की रिपोर्टिंग के दौरान उनसे मुलाक़ात हो जाती थी।कमाल की तरह विनम्र,शालीन और पढऩे लिखने वाला पत्रकार आजकल देखने को नहीं मिलता।कमाल की भाषा भी कमाल की थी। वाणी से शब्द फूल की तरह झरते थे।इसका अर्थ यह नहीं था कि वह राजनीतिक रिपोर्टिंग में नरमी बरतता था। उसकी शैली में उसके नाम का असर था। वह मुलायम लफ्ज़़ों की सख़्ती को अपने विशिष्ट अंदाज़ में परोसता था। सुनने देखने वाले के सीधे दिल में उतर जाती थी।आज़ादी से पहले पद्य पत्रकारिता हमारे देशभक्तों ने की थी ।लेकिन,आज़ादी के बाद पद्य पत्रकारिता के इतिहास पर जब भी लिखा जाएगा तो उसमें कमाल भी एक नाम होगा। किसी भी गंभीर मसले का निचोड़ एक शेर या कविता में कह देना उसके बाएं हाथ का काम था । कभी कभी आधी रात को उसका फ़ोन किसी शेर, शायर या कविता के बारे में कुछ जानने के लिए आ जाता ।फिर अदबी चर्चा शुरू हो जाती। यह कमाल की बात थी कि कि रूचि ने मुझे कमाल से मिलवाया ,लेकिन बाद में रूचि से कम,कमाल से अधिक संवाद होने लगा था।
कमाल के व्यक्तित्व में एक ख़ास बात और थी। जब परदे पर प्रकट होता तो सौ फ़ीसदी ईमानदारी और पवित्रता के साथ। हमारे पेशे से सूफ़ी परंपरा का कोई रिश्ता नहीं है ,लेकिन कमाल पत्रकारिता में सूफ़ी संत होने का सुबूत था। वह राम की बात करे या रहीम की ,अयोध्या की बात करे या मक्क़ा की ,कभी किसी को ऐतराज़ नहीं हुआ।वह हमारे सम्प्रदाय का कबीर था।
सच कमाल ! तुम बहुत याद आओगे। आजकल पत्रकारिता में जिस तरह के कठोर दबाव आ रहे हैं ,उनको तुम्हारा मासूम रुई के फ़ाहे जैसा नरम दिल शायद नहीं सह पाया।पेशे के ये दबाव तीस बरस से हम देखते आ रहे हैं। दिनों दिन यह बड़ी क्रूरता के साथ विकराल होते जा रहे हैं । छप्पन साल की उमर में सदी के संपादक राजेंद्र माथुर चले गए। उनचास की उमर में टीवी पत्रकारिता के महानायक सुरेंद्र प्रताप सिंह याने एस पी चले गए। असमय अप्पन को जाते देखा,अजय चौधरी को जाते देखा ।दोनों उम्र में मुझसे कम थे । साठ पार करते करते कमाल ने भी विदाई ले ली।अब हम लोग भी कतार में हैं।क्या करें ? मनहूस घडिय़ों में अपनों का जाना देख रहे हैं ।

याद रखना दोस्त।

जब ऊपर आएँ तो पहचान लेना।

कुछ उम्दा शेर लेकर आऊंगा ।

कुछ सुनूंगा ,कुछ सुनाऊंगा ।

महफि़ल जमेगी ।

अलविदा कमाल !

हम सबकी ओर से श्रद्धांजलि।

खेल से इतर विवादों के बीच जोकोविच

अरुण नैथानी  –
यह परिस्थितियों का खेल है कि दुनिया के नंबर एक टेनिस खिलाड़ी सर्बिया के नोवाक जोकोविच खेल से अलग कारणों से सुर्खियों में हैं। दरअसल, जोकोविच को आस्ट्रेलिया में प्रवेश करने से रोक दिया गया। हालिया विवाद खेल से जुड़ा नहीं है। जोकोविच कोरोना वैक्सीन लगाने के पक्षधर नहीं रहे हैं। एक सर्बिया डॉक्टर के पुत्र नोवाक की मान्यता रही है कि वैक्सीन लगाना, न लगाना व्यक्ति का निजी मामला है। लेकिन वैक्सीन को लेकर सोच के चलते उनकी आस्ट्रेलिया सरकार से ठन गई और हवाई अड्डे पर पहुंचते ही उनका वीजा रद्द कर दिया गया। उन्हें होटल में बने डिटेंशन सेंटर में ठहरा दिया गया, जिसके चलते आस्ट्रेलिया व विदेश में टेनिस व जोकोविच के समर्थकों की तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई। यहां तक कि आस्ट्रेलिया की केंद्र सरकार व विक्टोरिया राज्य सरकार इस मुद्दे पर आमने-सामने आ गई। दरअसल, विक्टोरिया प्रांत की सरकार आस्ट्रेलिया ओपन टूर्नामेंट का आयोजन कराती है। नोवाक जोकविच ने वर्ष 2021 समेत नौ बार आस्ट्रेलिया ओपन टूर्नामेंट जीता है।
अब सर्बिया सरकार के तल्ख विरोध और खेल जगत की तीखी प्रतिक्रिया के बाद लगता है कि जोकोविच आगामी 17 जनवरी से आरंभ होने वाले वर्ष के पहले ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में अपना दमखम दिखा सकेंगे। इससे पहले आस्ट्रेलिया में प्रवेश पर रोक लगाने के आस्ट्रेलियाई प्राधिकरण के फैसले के खिलाफ जोकोविच कोर्ट गये थे। वकीलों की बहस के बाद अदालत ने वीजा रद्द करने के फैसले को खारिज कर दिया। इसके मायने यह हैं कि जोकोविच का वीजा वैध है और वे साल के पहले ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में भाग ले सकते हैं।
वास्तव में दुनिया के नंबर वन टेनिस खिलाड़ी चौंतीस वर्षीय नोवाक जोकोविच कोरोना संक्रमण की शुरुआत से ही वैक्सीन लगाने के पक्षधर नहीं रहे हैं। उन्होंने यह कभी स्पष्ट भी नहीं किया है कि उन्होंने वैक्सीन लगाई है। वर्ष 2020 में जब कोरोना संक्रमण बढ़ रहा था तब उन्होंने कहा था कि वे टीके लगाने का विरोध करते हैं। हालांकि, तब कोरोना का टीका नहीं आया था। उनकी धारणा थी कि व्यक्ति के शरीर के लिये अच्छा-बुरा क्या है, यह तय करना व्यक्ति का नितांत निजी मामला है। उनका मानना था कि यात्रा व किसी टूर्नामेंट में भाग लेने के लिये टीका लगाने हेतु बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही उनका यह भी कथन था कि वे अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं और उन उपायों पर ध्यान देते हैं जो हमें कोरोना संक्रमण से बचाने में सहायक होते हैं। हालांकि, उनके देश सर्बिया में महामारी विशेषज्ञों का कथन था कि उनकी सोच अवैज्ञानिक है और लोगों के मन में वैक्सीन को लेकर संदेह पैदा करती है। वहीं जोकोविच की दलील थी कि सकारात्मक सोच हमारे स्वास्थ्य को बेहतर करती है, जैसे पानी के अणु हमारी भावनाओं के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं। हालांकि, जोकोविच ने कभी वैक्सीन का पुरजोर विरोध नहीं किया, लेकिन वैक्सीन विरोधी उन्हें अपना आइकन मानने लगे हैं। वे जोकोविच का वीजा रद्द करने पर खुलकर उनके समर्थन में आ खड़े हुए हैं। वहीं आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन कहते हैं कि कोई व्यक्ति चाहे कितना भी महत्वपूर्ण क्यों न हो, वह कानून से ऊपर नहीं हो सकता। दरअसल, इस मुद्दे पर राजनीति भी हो रही है क्योंकि कोरोना के मामले में सरकार की नीति को लेकर आलोचना होती रही है। फिर आस्ट्रेलिया में अगले साल चुनाव भी होने हैं। संघीय सरकार चाहती है कि प्रत्येक व्यक्ति कोरोना नियमों का पालन करे। वहीं आस्ट्रेलिया ओपन टूर्नामेंट का आयोजन करने वाली टेनिस ऑस्ट्रेलिया चाहती है कि अंतर्राष्ट्रीय खिलाडिय़ों को स्वस्थ रहने पर छूट दी जाये क्योंकि यह आयोजन देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा सवाल है। आस्ट्रेलिया सरकार की सख्ती को लेकर जहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल जगत में आलोचना होती रही है, वहीं आस्ट्रेलिया में भी टेनिस प्रेमियों का बड़ा वर्ग जोकोविच के समर्थन में उतरा।
बहरहाल, कोर्ट के आदेश के बाद जोकोविच प्रवासी हिरासत केंद्र से बाहर आ चुके हैं। लोग मान रहे हैं कि संघीय सरकार व विक्टोरिया प्रांत की सरकार की अलग-अलग राय होने से हुई खींचतान के चलते लोगों में अविश्वास की भावना पैदा हुई है। जहां वैक्सीन विरोधी इस जीत को मनोबल बढ़ाने वाली बता रहे हैं, वहीं आम आस्ट्रेलियाई लोग मानते हैं कि खास लोगों को वैक्सीन से छूट दिया जाना गलत है। दरअसल, आस्ट्रेलिया में भी नये कोरोना वेरिएंट का खासा प्रभाव है और संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं।
इसी बीच जोकोविच के प्रबंधकों ने दावा किया है कि उन्हें चिकित्सा छूट के आधार पर आस्ट्रेलिया आने की अनुमति दी गई थी। अदालत में प्रस्तुत दस्तावेजों में कहा गया कि इस यात्रा से पूर्व टेनिस आस्ट्रेलिया के दो पैनलों ने नोवाक जोकोविच को वैक्सीन लगाने में छूट दी थी। दरअसल, यह ही संस्थान आस्ट्रेलिया व विक्टोरिया में टेनिस टूर्नामेंटों का आयोजन करता है। बहरहाल, 17 जनवरी से शुरू होने वाले आस्ट्रेलिया ओपन टूर्नामेंट में भाग लेने से जोकोविच को रोकने के बाद उन्हें व्यापक सहानुभूति भी मिली है। कुछ लोग मानते हैं कि उनके साथ उनकी प्रतिष्ठा के विपरीत व्यवहार किया गया। यहां तक कि कई मानवाधिकार संगठन भी उनके समर्थन में खड़े नजर आये। जोकोविच के देश सर्बिया में इस फैसले का तीखा विरोध हुआ। यहां तक कि सर्बिया के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर वुचिच ने नोवाक को उत्पीडि़त बताया। लोगों का मानना है कि नौ बार टूर्नामेंट जीत चुके जोकोविच के साथ कम से कम ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था।

बॉलीवुड के चर्चित गीतकार हरिशंकर सूफी की नई पेशकश म्यूजिक वीडियो ‘तेरे शहर में’ का फर्स्ट लुक जारी किया गया

बॉलीवुड के चर्चित गीतकार हरिशंकर सूफी की नई पेशकश म्यूजिक वीडियो ‘तेरे शहर में’ का फर्स्ट लुक पिछले दिनों मुंबई में जारी किया गया। सीफेस प्रोडक्शन और एच एल प्रोडक्शन के संयुक्त तत्वाधान में निर्मित इस म्यूजिक वीडियो के निर्माता हीरा लाल(अधिवक्ता), निर्देशक आगा रिज़वी, क्रिएटिव डायरेक्टर पवन शर्मा, गीतकार हरिशंकर सूफी और संगीतकार शौरिष हैं। बॉलीवुड की मशहूर गायिका साधना सरगम के स्वर से सजे इस म्यूजिक सिंगल ‘तेरे शहर में’ का वीडियो और ऑडियो को अलग अलग प्लेटफॉर्म क्रमशः यूट्यूब म्यूजिक, गाना, स्पॉटीफाई, हंगामा म्यूजिक, जिओ सावन, आई ट्यून स्टोर, साउंड क्लाउड, विंक और अन्य डिजिटल म्यूजिक स्टोर और चैनल पर बहुत जल्द ही रिलीज किया जाएगा।
(प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय)

अवांछित एप्लीकेशंस पर कानून से अंकुश

पवन दुग्गल –
‘बुल्ली बाई’ एप मामले में मोबाइल फोन पर उपलब्ध होने वाली सामग्री में न केवल महिलाओं बल्कि समुदाय विशेष को निशाना बनाकर पेश करने वाली करतूतों ने यथेष्ट लगाम लगाने की जरूरत को पुन: रेखांकित किया है। इंटरनेट ने किसी दुनिया के एक हिस्से में बैठे रहकर दूसरे छोर के इंसानों तक पहुंच करने या किसी को निशाना बनाने की जुर्रत करने की सहूलियत इलेक्ट्रॉनिक सामग्री और मोबाइल एप्लीकेशंस के जरिए बना दी है।
मोबाइल एप्लीकेशंस आज के समय की जरूरत बन गई हैं, लगभग हर कोई इन पर निर्भर है। नित दिन नई-नई एप्लीकेशंस आती हैं, इस तथ्य से इंकार नहीं है कि इनका असर न केवल व्यक्ति की जिंदगी बल्कि उसकी सोच, व्यवहार या नजरिए पर भी काफी हो गया है। इसीलिए मोबाइल एप्लीकेशन बनाने वाले, किस क्षेत्र में मांग हो सकती है, इस पर लगातार नजऱ रखते हैं। ‘बुल्ली बाई’ एप मध्ययुगीन मानसिकता का एक जाहिर रूप है- जब महिलाओं को बतौर निजी वस्तु की तरह खरीदा-बेचा जाता था।
आज, यह कहना कि ऑनलाइन नीलामी के जरिये कोई महिला एक वस्तु की भांति उपलब्ध है, वह विचार है जो आधुनिक सभ्यता के मूल्यों के नितांत खिलाफ है। हालांकि, तथ्य यह है कि इस तरह की सामग्री अभी भी किसी न किसी आनलाइन प्लेटफॉर्म पर होगी। गौर करने लायक सवाल यह है कि भारत का कानून इस बाबत कहां खड़ा है? फिलहाल भारत के पास विशेष तौर पर मोबाइल एप्लीकेशंस को लेकर नीति नहीं है। भारत ने अमेरिका के राज्य कैलिफोर्निया से भी नहीं सीखा, जिसके पास इस विषय पर विस्तृत दिशा-निर्देश वाली नीति है कि एप्लीकेशन निर्माता किन जरूरी नियमों का पालन करके अपना एप बनाएं।
साइबर कानून के नाम पर भारत के पास ले-देकर इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कानून-2000 है, जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से संबंधित हर दिशा-निर्देश की जननी है। वर्ष 2000 में जब यह कानून बना था तब मोबाइल फोन इसके अंतर्गत नहीं आते थे। लेकिन आईएटी (संशोधन) एक्ट 2008 में मोबाइल फोन समेत सभी प्रकार के संचार उपकरणों को इस कानून के दायरे में लाया गया। हालांकि, इस आईटी कानून के प्रावधानों को भी गहराई से पढ़ें, तो इसमें अभी भी मोबाइल एप्लीकेशंस संबंधित कोई स्पष्ट नियम नहीं है। साफ है, कानून के अनुसार, एप्लीकेशंस बनाने वाले सभी निर्माता या तमाम एप्लीकेशन स्टोर, जहां सब एप्लीकेशंस उपलब्ध होती हैं, उन्हें इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाले सेवा-बिचौलिए की तरह लिया जाता है। इसमें आगे, यह वह वैध इकाइयां हैं जो अन्य लोगों के निमित्त, विशेष इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड को प्राप्त-भण्डारण-संप्रेषित कर सकते हैं। हालांकि, सरकार के पास आईटी एक्ट के अनुच्छेद 87 में सेवा-बिचौलियों से यथेष्ट सावधानी बरतवाने संबंधी अनेक मापदंड लागू करवाने की शक्ति है, किंतु मोबाइल एप्लीकेशंस के संदर्भ में आज तक इसका इस्तेमाल नहीं हुआ। दरअसल, अब इस देश में तमाम सेवा-बिचौलियों को, यदि संबंधित कानूनन जिम्मेवारी में संवैधानिक छूट चाहिए, तो उन्हें केवल अनुच्छेद 79 के प्रावधानों के तहत अपने फर्ज को अंजाम देते समय यथेष्ट सावधानी रखना अनिवार्य है।
जहां केंद्र सरकार ने सेवा-बिचौलियों के लिए माकूल सावधानी बरतने संबंधी नियम-कानून बनाए हैं, वहीं मोबाइल एप्लीकेशंस और इनको होस्ट करने वाले एप्लीकेशन प्लेटफॉर्म्स के व्यवहार संबंधी अलग से नियम बनाने के बारे में विचार नहीं किया गया।
यहां तक कि इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटर मीडिएट्री गाइड लाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स-2021 में भी मोबाइल एप्लीकेशंस के लिए अलग से दिशा-निर्देश नहीं हैं। अब तक हमने यही देखा है कि किसी अवांछित एप्लीकेशंस पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया यही होती है कि आईटी एक्ट 69-ए के तहत प्राप्त शक्ति का प्रयोग कर उसको ब्लॉक करवा दे। नतीजतन, पिछले सालों के दौरान सरकार ने कई मोबाइल एप्लीकेशंस को प्रतिबंधित किया है। हाल ही में कई चीनी एप्लीकेशंस को भारतीय डिजिटल अधिकार क्षेत्र में ब्लॉक किया गया है। लेकिन यह उपाय कभी भी जादुई गोली सिद्ध नहीं हुए, क्योंकि जैसे ही आपने इन्हें ब्लॉक किया वहीं उत्सुकतावश लोग इनकी ओर खिंचते हैं, परिणामस्वरूप इन प्रतिबंधित मोबाइल एप्लीकेशंस की ओर इंटरनेट ट्रैफिक और अधिक मुड़ जाता है। इसीलिए आपस में जुड़े मौजूदा विश्व में ऐसे प्रतिबंध कभी भी पूर्णरूपेण नहीं हो सकते। आप किसी एप्लीकेशन को भारतीय अधिकार क्षेत्र में ब्लॉक कर भी दें, फिर भी भारत के उपभोक्ताओं की इन तक पहुंच वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क के जरिए बरकरार रहती है। इसलिए इस किस्म की किसी मोबाइल सामग्री को प्रतिबंधित करने की बजाय मुल्कों को अवांछित सामग्री से निपटने को नूतन तरीका अपनाना पड़ेगा। भारत के संदर्भ में, देश के अधिकार क्षेत्र में मोबाइल एप्लीकेशंस पर नियंत्रण करने को एक अच्छा उपाय है, एक विस्तृत कानूनी ढांचा बनाना, साथ ही न्यूनतम मानदंड निर्धारण करना, जिनका पालन करना-करवाना प्रत्येक मोबाइल एप्लीकेशन निर्माता और इनको अपने प्लेटफॉर्म पर जगह देने वालों के लिए अनिवार्य हो।
उम्मीद है ‘बुल्ली बाई’ और अन्य मामले सरकार को मोबाइल एप्लीकेशंस पर उपलब्ध सामग्री पर अंकुश रखने के लिए एक अलग से नया कानून बनाने के लिए उत्प्रेरित करेंगे। आगे, आम उपभोक्ताओं की समझ एवं जागृति का स्तर बढ़ाने को सरकार प्रचार अभियान चलाए ताकि वे अवांछित मोबाइल एप्लीकेशंस पर आने वाली सामग्री से बहकने न पाएं।
तकनीक और कानून के बीच सदा ही प्रतिस्पर्धा रही है और तकनीक अक्सर कानून से दस कदम आगे रहती है। इसलिए, अब जबकि मोबाइल तकनीक और एप्लीकेशंस ने अच्छी-खासी प्रौढ़ता प्राप्त कर ली है, तो ऐसे यथेष्ट कदम उठाना भी लाजिमी हो जाता है, जिससे कि अवांछित एप्लीकेशंस द्वारा पेश मौजूदा चुनौतियों से निपटने को भारतीय कानून के ढांचे में सुधार हो। इस किस्म की राह अपनाकर देश को एप्लीकेशंस और मोबाइल के अन्य उपयोगों से प्राप्त अवांछित सामग्री की संभावित उपलब्धता से बचाया जा सकता है।
(लेखक साइबर कानून विशेषज्ञ हैं)

यह भारत के सामर्थ्य की जीत की कहानी है

डॉ. मनोहर अगनानी –
एक साल, 156 करोड़ वैक्सीनेशन! यानि कि हर दिन औसतन 42 लाख से ज़्यादा टीके। यह आलेख टीम हैल्थ इंडिया की इस असाधारण उपलब्धि की बेमिसाल यात्रा की कहानी, देशवासियों के साथ साझा करने की एक कोशिश है।
हम सभी जानते हैं कि दुनिया के सबसे बड़े कोविड टीकाकरण अभियान की तैयारी करते समय कुछ बुद्धिजीवियों और विषय विशेषज्ञों ने अनेक तरह की शंकाएं अपने व्यक्तिगत अनुभवों, तथ्यों और तर्कों के आधार पर ज़ाहिर की थीं। मसलन-
* अव्वल तो देश की ज़रुरत के मुताबिक वैक्सीन उपलब्ध ही नहीं हो पाएगा। और अगर हो भी गया तो हमारे देश में इतनी अधिक मात्रा में वैक्सीन को सुरक्षित रखने की स्टोरेज क्षमता भी नहीं है।
*इस क्षमता को विकसित करने में तो बहुत समय लग जाएगा।
* वैक्सीन की स्टोरेज हो भी गई तो परिवहन की व्यवस्था और ट्रेन्ड मैन-पॉवर कहाँ है।
* इतनी विशाल जनसंख्या के टीकाकरण के लिए ट्रेन्ड मैन-पॉवर तैयार करने में कितना समय लगेगा, इसका कोई अंदाज़ा ही नहीं है।
* पूरी जनसंख्या को कवर करने में अनेकों साल लग जाएंगे।
* अब तक हमने कभी भी वयस्क आबादी को टीका नहीं लगाया है। राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत हमने सिफऱ् छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण किया है, जो कि देश की आबादी का बहुत छोटा हिस्सा ही है।
* किस बच्चे को कौन सा टीका लगा? कब लगा? इसका नामवर डिजिटल रिकॉर्ड रखने की तो हमने शुरुआत भी नहीं की है।
* जनमानस की कोविड टीके से सम्बंधित शंकाओं का समाधान कैसे होगा? वैक्सीन हैज़ीटेंसी कैसे एड्रेस करेंगे?
* दूरदराज़ के क्षेत्रों में वैक्सीन समय पर और सुरक्षित कैसे पहुंचेगा? उनको टीका कौन लगाएगा? आदि-आदि !
इन सभी आलोचनाओं और अविश्वास के माहौल के बीच टीम हैल्थ इंडिया ने एक सुव्यवस्थित रणनीति और आत्मविश्वास के साथ एकजुट होकर काम करना शुरू कर दिया। इस आत्मविश्वास की पृष्ठभूमि में था-
* हमारा राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम (यू.आई.पी.) को चलाने का वर्षों का अनुभव।
* पल्स पोलियो अभियान के तहत सीमित समय में लगभग 10 करोड़ छोटे बच्चों को पोलियो की 2 बूँद पिलाने का 25 वर्षों से अधिक का तजुर्बा।
* पंद्रह साल तक के 35 करोड़ से ज़्यादा बच्चों को मीसल्स एवं रूबेला वैक्सीन लगा पाने की क्षमता।
* 29,000 से अधिक कोल्ड चेन पॉइंट्स पर वैक्सीन स्टोरेज कर दूर दराज़ के क्षेत्रों में नियमित रूप से वैक्सीन पहुंचाने का अनुभव।
* मानकों के अनुरूप वैक्सीन के रखरखाव एवं वितरण की मॉनिटरिंग करने वाली भारतीय प्रणाली ई-विन (इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क) का सफल क्रियान्वयन,
* छूटे हुए बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को केन्द्रित कर टीकाकरण करने की मिशन इन्द्रधनुष रुपी सटीक रणनीति को क्रियान्वित करने का अनुभव। और,
इस आत्मविश्वास का सबसे महत्वपूर्ण सबब बना- हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री जी का देश के नागरिकों की छुपी हुई क्षमताओं और योग्यताओं पर अटूट विश्वास, जिसने शुरुआत से ही एक नैतिक संबल प्रदान करने का काम किया।
इस पृष्ठभूमि के साथ टीम हैल्थ इंडिया ने सबसे पहले बुद्धिजीवियों एवं विषय विशेषज्ञों द्वारा ज़ाहिर की गई अपेक्षाओं एवं शंकाओं को व्यवस्थित रूप से समाधान करने की रणनीति पर ध्यान केन्द्रित किया। भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय, राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के स्वास्थ्य विभाग, स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों आदि सभी ने मिलकर ना सिफऱ् लगातार हुई मैराथन बैठकों में भाग लिया, हर विषय पर गहन चिंतन और विचार विमर्श किया बल्कि इन चिंतन बैठकों के निष्कर्षों को विभिन्न स्ट्रेटेजीज़ एवं गाइडलाइन्स का स्वरुप भी प्रदान किया।
आज से ठीक एक साल पहले माननीय प्रधानमंत्री द्वारा दुनिया के इस सबसे बड़े कोविड टीकाकरण अभियान की शुरुआत से पहले ना सिफऱ् सभी बुनियादी गाइडलाइन्स को अंतिम रूप दिया जा चुका था, बल्कि इसके लिए आवश्यक प्रशिक्षण भी पूरे किए जा चुके थे।
हालांकि अभी टीकाकरण कार्यक्रम का औपचारिक प्रारंभ होना बाकी था, लेकिन टीम हैल्थ इंडिया आत्मविश्वास से सराबोर थी और इसके सबब भी थे। 16 जनवरी 2021 से पहले सभी आवश्यक तैयारियां जो पूरी हो चुकी थीं, उनमें प्रमुख हैं-
* कोविड टीकाकरण से संबंधित ऑपरेशनल गाइडलाइंस
* टीकाकरण के लिए पर्याप्त मात्रा में आवश्यक दलों के सदस्यों की पहचान एवं उनका प्रशिक्षण
* वैक्सीन को व्यवस्थित रूप से टीकाकरण केन्द्रों तक सुरक्षित रूप से पहुंचाने और आवश्यक अतिरिक्त भंडारण क्षमता का निर्माण
* वैक्सीन हैज़ीटेंसी, ईगरनेस और कोविड एप्रोप्रिएट बिहेवियर जैसे विषयों पर केंद्रित कम्यूनिकेशन स्ट्रेटेजी और
* सभी भारतीयों के टीकाकरण से संबंधित आवश्यक रिकॉर्ड डिजिटल रूप में संधारित करने के लिए आकल्पित कोविन प्लेटफार्म आदि।
इन सभी तैयारियों से संबंधित ड्राय रन भी सभी राज्यों में किया जा चुका था, जिससे संबंधित एक व्यक्तिगत अनुभव साझा करना प्रासंगिक है। देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के हज़ारों कोविड वैक्सीनेशन सेंटरों, राज्य के मुख्यालयों एवं भारत सरकार के मंत्रालय में पदस्थ टीम जो कोविन प्लेटफार्म पर काम कर रही थी, सभी को 15 जनवरी की सारी रात जागना पड़ा। कोई ऐसी तकनीकी समस्या थी, जिसे हल करने के लिए सभी थे। कड़ाके की ठंड थी। सूर्योदय होने तक सभी के दिल उसी तरह से ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहे थे, जैसे किसी अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण करते समय कमांड सेंटर पर बैठे वैज्ञानिकों का दिल धड़कता होगा। राष्ट्रीय कोविड टीकाकरण अभियान का नोडल अधिकारी होने के नाते मैं भी टीम हैल्थ इंडिया के नैतिक संबल के लिए मंत्रालय में ही साथ था और उस रात टीम की बेचैनी और अंततोगत्वा मिले सुखद परिणाम की अनुभूति का इज़हार शब्दों में नहीं कर सकता। ‘कोविन’ बखूबी चल पड़ा और हम सभी गवाह हैं, इस अनोखे भारतीय डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की खूबियों के, जिसने लगातार कार्यक्रम की ज़रूरतों के मुताबिक खुद को और बेहतर किया है। यह वाकई देश-दुनिया के लिए एक अनूठी सौगात है।
और फिर अभी तो शुरुआत हुई थी। वैक्सीन सीमित मात्रा में उपलब्ध थी और अपेक्षाएं अनन्त थीं। सीमित मात्रा में उपलब्ध वैक्सीन का लगातार तर्कसंगत वितरण एक चुनौती थी। ना सिफऱ् भारत सरकार के स्तर पर, अपितु राज्यों एवं जिलों के स्तर पर भी। ऐसे में आलोचनाएं स्वभाविक थीं। टीम हैल्थ इंडिया ने इस काम को भी बखूबी अंजाम दिया। लेकिन यह आसान नहीं था। इसके लिए हर रोज़ घंटों वर्चुअल बैठकें करनी पड़ती थीं। वैक्सीन निर्माताओं के साथ, वैक्सीन परिवहन करने वाली एजेंसियों के साथ, वैक्सीन के भंडारण केंद्रों के साथ, वैक्सीन वितरण करने वाले कोल्ड चेन पाइंट्स के साथ और वैक्सीन लगाने वाले केंद्रों के साथ। और मकसद सिर्फ एक होता था, उपलब्ध वैक्सीन का यथासंभव सर्वश्रेठ इस्तेमाल और वैक्सीन की हर बूंद का सदुपयोग।
और अंदाज़ा लगाइए, देश के दूरदराज के क्षेत्रों में वैक्सीन पहुंचाया गया। जहां सड़क नहीं थी, वहां साइकिल दौड़ाई गई, रेगिस्तान में ऊंट का सहारा लिया गया, नदी पार करने के लिए नाव पर सवारी की गई। पहाड़ों पर तो वैक्सीन कैरियर को अपनी पीठ पर ही उठा लिया। वैक्सीन पहुंचाया भी, लगाया भी। पीले चावल देकर वैक्सीनेशन के लिए आमंत्रित किया। वैक्सीन नहीं लगवाने वाले नागरिकों के लिए ‘हर घर दस्तक’ देकर पुकार भी लगाई। इस सारी प्रक्रिया का कोई वेस्टर्न मॉडल नहीं था। यह विशुद्ध रूप से भारतीय मॉडल था। इसमें भारत के सामर्थ्य की अनूठी छाप थी।
एक वर्ष की कोविड टीकाकरण की यह अनूठी गाथा है क्योंकि तैयारी करने के लिए वक्त सीमित था। वक्त के साथ-साथ फील्ड से प्राप्त अनुभवों और सकारात्मक आलोचनाओं और सुझावों से हम सीखते चले गए, कार्यक्रम में सुधार करते चले गए, अपने संकल्प और इरादों को और दृढ़ करते चले गए और सही मायने में अंग्रेजी कहावत बिल्डिंग द शिप व्हाइल सेलिंग को चरितार्थ करते चले गए।
टीम हैल्थ इंडिया ने इस सारी धुन में अनदेखी की है अपनी जरूरतों की, अनदेखी की है अपने व्यक्तिगत समय की, अनदेखी की है अपने परिवार की, भुलाया है अपने सपनों को और खोया है अपनों को। लेकिन फ़ख्र ही नहीं, बल्कि यह टीम हैल्थ इंडिया का सौभाग्य भी है कि उसे सदियों में कभी एक बार आने वाला यह अवसर मिला और देश की सेवा करते हुए इस नोबल प्रोफेशन की नोबेलनेस बनाए रखने का मौका भी। हाँ, उन्हें ढेर सारा प्यार भी मिला।
मैं जो कुछ देख पाया हूं या लिख पाया हूँ वो तो मात्र टिप ऑफ़ द आइसबर्ग के समान है। टीम हैल्थ इंडिया के पास तो ऐसे अनगिनत संघर्ष और संतुष्टि के उदाहरण होंगे। ऐसे उदाहरण जो इंसानियत की मिसाल होंगे, ऐसे उदाहरण जो कृतज्ञता का एहसास कराते होंगे और ऐसे उदाहरण जो आशावाद के वाहक होंगे ।
अंत में यह याद दिलाना चाहता हूं कि हैल्थ को पब्लिक गुड माना गया है और भारत के कोविड टीकाकरण की इस असाधारण गाथा में सरकारी तंत्र की भूमिका ने इस विचारधारा को और पुख्ता किया है, मज़बूत किया है। जय हिन्द!
(लेखक अतिरिक्त सचिव, स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली हैं)

डब्ल्यूएचओ की चेतावनी को गंभीरता से लें

*विश्व के सभी देश विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों,

सलाह और उसके द्वारा दी गई चेतावनी को बहुत गंभीरता से लेते हैं.

*लेकिन पर आश्चर्य है कि शराब पीने-पिलाने के काम में भारत सरकार

और राज्य सरकारें चेतावनी को पूरी तरह अनसुना कर रही हैं.

*वैश्विक तौर पर वर्ष 2016 में शराब से जुड़ी मौतों का आंकड़ा करीब तीस लाख था.

लक्ष्मीकांता चावला
भारत सरकार और विश्व के सभी देश विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों, सलाह और उसके द्वारा दी गई चेतावनी को बहुत गंभीरता से लेते हैं। कोई भी बीमारी या महामारी हो, इस संगठन की ओर ही पूरी दुनिया देखती है। लेकिन पर आश्चर्य है कि शराब पीने-पिलाने के काम में भारत सरकार और राज्य सरकारें चेतावनी को पूरी तरह अनसुना कर रही हैं। कितनी भयानक सच्चाई है कि वैश्विक तौर पर वर्ष 2016 में शराब से जुड़ी मौतों का आंकड़ा करीब तीस लाख था। यह सबसे बड़ा और नवीनतम आंकड़ा है। संगठन के अनुसार, बहुत अधिक शराब पीने से जो मौतें हुई हैं उनकी संख्या एड्स, हिंसा और सड़क हादसों में होने वाली मौतों को मिलाने से प्राप्त आंकड़ों से भी ज्यादा है। इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में हर साल होने वाली बीस में से एक मौत शराब की वजह से होती है।
डब्ल्यूएचओ के शराब और अवैध नशीले पदार्थों पर नजर रखने वाले प्रोग्राम की मैनेजर करिना फेरिएरा बार्जेस का कहना है कि दुनिया भर में हर साल शराब पीने वाले तीस लाख लोगों की मौत होती है। यूरोप में एक-तिहाई मौतें शराब पीने से होती हैं। कोरोना से मरे लोगों में अधिकतर शराब पीते थे। इसमें भी पुरुष ज्यादा हैं। एक अध्ययन के अनुसार, प्रति दस मृत संक्रमितों में से एक व्यक्ति शराब पीता था।
अपनी रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने कहा कि करीब 23 करोड़ सत्तर लाख पुरुष और चार करोड़ साठ लाख महिलाएं शराब से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रही हैं। भारत में शराब पीने वाले लोगों को चेताने का काम दिल्ली के एम्स के डाक्टरों ने किया। उनका कहना है कि महामारी में शराब पीने का असर रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है और संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है।? लेकिन अफसोस कि पंजाब, केरल और अन्य राज्य राजस्व के लिए लोगों की जान जोखिम में डाल शराब की अधिक दुकानें खोलने पर आमादा हैं। केवल भारत में ही 2018 में शराब पीने से 2 लाख साठ हजार लोगों की मौत हुई थी। इसीलिए एम्स के डाक्टरों तथा डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि लोगों की सेहत का ध्यान रखते हुए लाकडाउन में शराब की दुकानों का बंद रहना जरूरी है।
एक तरफ तो यह जीवन की रक्षा के लिए चेतावनी वाली रिपोर्ट है, पर दूसरी ओर पंजाब सरकार और कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू ने तो कुछ सप्ताह पहले कहा कि पंजाब में शराब पीने-पिलाने का ऐसा प्रबंध करेंगे जिससे सत्तर हजार करोड़ रुपया वार्षिक कमाई हो सके। उनका यह कहना था कि आर्थिक समृद्धि से पंजाब सुखी होगा। लेकिन यह नहीं बताया कि शराब पीने से कितने लोग महामारी, बीमारी, मृत्यु का शिकार हो जाएंगे। कितनी हिंसा होगी, पारिवारिक क्लेश बढ़ेगा, परिवार टूटेंगे। माता-पिता में मतभेद से बचपन अनाथ हो जाएगा। लेकिन किसी ने नहीं कहा कि सिद्धू का शराब मॉडल हानिकारक और पंजाब के हित में नहीं है।
इस समय देश और दुनिया में बड़ी विकट स्थिति है। कोरोना महामारी बहुत तेजी से फैल रही है। भारत के पांच राज्यों में चुनाव है। शराब घातक होने की रिपोर्ट डब्ल्यूएचओ ने दी, पर सरकारों ने तो मुनाफे के लिये शराब पिलानी है। चुनाव के दिनों में राजनीतिक दल शराब बांटते हैं। लोग बीमार हों, नशे की हालत में परिवारों में या समाज में अशांति फैलाएं, दुर्घटनाओं में मारे जाएं या कोरोना पीडि़त हों, राजनेताओं को तो वोट चाहिए। यह लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि आजादी का अमृत महोत्सव मनाने वाली सरकारें इस वर्ष भी शराब की कोई कमी नहीं रखेंगी। उन्हें वोट चाहिए। कितना अच्छा हो अगर चुनाव आयोग शराब पीने-पिलाने वालों को चुनाव लडऩे से अयोग्य घोषित करे।
पिछले डेढ़ वर्ष से कोरोना महामारी के कारण गरीबी और अन्न-धन का अभाव झेल रहे भारतवासियों को राहत देने के लिए भारत सरकार मुफ्त अनाज बांटती है। यह सच है कि अनाज इतनी मात्रा में दिया जाता है कि कोई परिवार भूखा न रहे, लेकिन विडंबना यह है कि जिन परिवारों को गरीब होने के कारण अनाज दिया जाता है, उनमें एक बड़ी संख्या में शराब पीने वाले लोग भी हैं। देश के कुछ बुद्धिजीवी बड़े लंबे समय से यह आवाज उठा रहे थे कि जो लोग शराब स्वयं अपनी कमाई से खरीदकर पी सकते हैं वे अन्न क्यों नहीं खरीद सकते। क्या यह तर्कसंगत है कि अपनी कमाई से तो ये कुछ गरीब लोग शराब पी लें और इनका पेट भरने के लिए देश के लोगों के टैक्सों के पैसों से इन्हें मुफ्त में अनाज दिया जाए। भारत सरकार कानून बनाए कि जो लोग शराब पीते हैं उन्हें मुफ्त अनाज योजना से बाहर निकाल दिया जाए। वहीं चुनाव के दौरान कोई राजनीतिक पार्टी यह नहीं बताती कि चुनावों में मुफ्त शराब देने के लिए बजट की व्यवस्था कौन कर रहा है। चुनाव से पहले ही और महामारी की भयावहता के बीच यह जरूरी है कि शराब पीने वालों को नियंत्रित करने के लिए विशेष कदम उठाये जायें। इसका लाभ होगा कि कोरोना महामारी के दिनों में शराब न पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। बहुत अच्छा होगा कि डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों पर चलते हुए शराब पीने-पिलाने और सरकारी गैर-सरकारी शराब की बिक्री पर रोक लगाई जाए।

मुख्यमंत्री के आदेश, बंधक बनी हुनर मंद बेटियां लौट रहीं अपने घर

*बेंगलुरु से मुक्त करायी गईं छह युवतियां

रांची, मुसाबनी की हुनरमंद अंजली पान अब खुश है। उसकी घर वापसी सुनिश्चित हो गई है। कुछ घंटों में वह अपने परिवार से मिल सकेगी। राज्य सरकार ने उसे बेंगलुरू से सुरक्षित मुक्त करा लिया है। अंजली पान जैसी ही पोटका प्रखंड की अन्य छह युवतियां अपने घर लौट रही हैं।

बंधक बनी थीं युवतियां

सिलाई में निपुण अंजली पान ने बताया कि कौशल विकास केंद्र डिमना से प्रशिक्षण लेने के बाद वह अपने सहयोगियों के साथ बेंगलुरु स्थित एक वस्त्र उद्योग में सिलाई – कढ़ाई का काम करने गयी थी। वहां पहुंचने पर सभी को काम पर लगा दिया गया।लेकिन, जिस तरह की सुविधा देने की बात कही गयी थी, वैसी नहीं दी गई। उनके साथ अच्छा व्यवहार भी नहीं किया जा रहा था। ना तो सही तरह से रहने की सुविधा दी और ना खाने की सुविधा मिली। वार्डेन से शिकायत करने पर वार्डेन द्वारा मारपीट की धमकी दी जाती थी। वे लोग घर लौटना चाहती थी, लेकिन आने नहीं दिया जा रहा था। उन्हें बंधक बना कर रखा गया था।

ऐसे हुई वापसी

युवतियों ने मामले की जानकारी कौशल विकास केंद्र डिमना को देने के साथ घर वापसी के लिए मुख्यमंत्री और स्थानीय विधायक से गुहार लगायी। मुख्यमंत्री के संज्ञान में मामला आते ही श्रम विभाग और पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त को यथाशीघ्र युवतियों के सुरक्षित वापसी का आदेश दिया गया। इसके उपरांत श्रम   विभाग ने सक्रियता के साथ सभी के घर वापसी का मार्ग प्रशस्त किया।

 

अव्यावहारिक नीतियों से उपजा बेरोजगारी संकट

भरत झुनझुनवाला –
वर्तमान में अर्थव्यवस्था सुचारु रूप से चल रही दिखती है। जीएसटी की वसूली 1,30,000 करोड़ रुपये प्रति माह के नजदीक पहुंच गई है जो कि आज तक का अधिकतम स्तर है। कोविड के ओमीक्रोन वेरिएंट के आने के बावजूद शेयर बाजार का सेंसेक्स 5,500 से 6,000 के स्तर पर बना हुआ है। रुपये का मूल्य 70 से 75 रुपए प्रति डॉलर पर बीते कई वर्षों से स्थिर टिका हुआ है। तमाम वैश्विक संस्थाओं के आकलन के अनुसार, भारत विश्व की सबसे तेज बढऩे वाली व्यवस्था बन चुकी है। इन सब उपलब्धियों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेरोजगारी को एक विशेष चुनौती बताया है। तमाम आकलन भी बताते हैं कि वर्तमान में देश की जनता द्वारा की जा रही खपत कोविड-पूर्व के स्तर से भी नीचे है। यानी जीएसटी की वसूली 1,30,000 करोड़ रुपये प्रति माह के स्तर पर पहुंचने और अर्थव्यवस्था के सुचारु रूप से चलता दिखने के बावजूद आम आदमी की खपत सपाट है और रोजगार नदारद हैं। इस समस्या की जड़ें नीति आयोग के चिंतन में निहित हैं।
वर्ष 2018 में नीति आयोग ने देश की 75वीं वर्षगांठ के लिए बनाए गए रोड मैप में कहा था कि औपचारिक रोजगार को बढ़ावा देना होगा और श्रम-सघन रोजगार को भी बढ़ावा देना होगा। नीति आयोग इन दोनों उद्देश्यों को एक साथ बढ़ावा देना चाहता है। आयोग समझता है कि यह दोनों उद्देश्य एक साथ मिलकर चल सकते हैं जैसे गाड़ी के दो चक्के मिल-जुलकर एक साथ चलते हैं। लेकिन वास्तव में इन दोनों उद्देश्यों के बीच में अंतर्विरोध है जैसे गाड़ी का एक चक्का आगे और दूसरा चक्का पीछे की तरफ चले तो गाड़ी डगमग हो जाती है। इसीलिए वर्तमान में रोजगार की गाड़ी डगमग हो चली है जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है।
औपचारिक रोजगार और श्रम-सघन उद्योग के बीच पहला अंतर्विरोध श्रम की लागत का है। जैसे मान लीजिए नुक्कड़ पर मोमो बेचने वाले अनौपचारिक कर्मियों को हम औपचारिक छत्रछाया के नीचे ले आते हैं। अब इनका पंजीकरण होगा। पंजीकरण के बाद इन्हें अपने द्वारा बेचे गए मोमो का वजन नियमानुसार प्रमाणित करना होगा। इनके कार्य पर स्वास्थ्य निरीक्षक की नजर रहेगी। इन्हें अपनी दुकान को खोलने व बंद करने के समय निर्धारित करने होंगे। इन्हें सही क्वालिटी की प्लेट लगानी होगी। अपने सहायकों को दिए गए वेतन का प्रोविडेंट फंड काटना होगा और उन्हें न्यूनतम वेतन देना होगा। बैंक में जाकर प्रोविडेंट फंड जमा कराने में इनका समय लग जायेगा। सरकारी निरीक्षक महोदय को मुफ्त मोमो भी देने होंगे। इन तमाम कार्यों से इनके द्वारा बनाए गए मोमो की लागत बढ़ जाएगी। आज वर्तमान में यदि ये 7 रुपये में मोमो बेचते हैं जो औपचारिक रोजगारी बनने के बाद इनके द्वारा उत्पादित मोमो का मूल्य बढ़कर 10 रुपये हो जाएगा। इनके मोमो का मूल्य बढ़ जाने से इनकी जो कम दाम में बेचने की विशेषता है, वह समाप्त हो जाएगी। खरीदार 7 रुपये में नुक्कड़ पर मोमो खरीदने के स्थान पर 10 रुपये में मॉल में मोमो खरीदेगा क्योंकि नुक्कड़ पर भी मोमो का दाम अब मॉल की तरह 10 रुपये हो जाएगा। श्रम-सघन उद्योग की बलि औपचारिक रोजगार की वेदी पर चढ़ा दी जायेगी। दोनों उद्देश्य साथ-साथ नहीं चलेंगे।
औपचारिक उत्पादन में दूसरा संकट ऑटोमेटिक मशीनों का है। मॉल में मोमो बेचने वाले औपचारिक विक्रेता द्वारा डिश वॉशर लगाया जाएगा और ऑटोमेटिक ओवन होगा, जिसमें बिजली की खपत कम होगी। इन ऑटोमेटिक मशीनों के कारण मोमो के औपचारिक उत्पादन में रोजगार की संख्या कम होगी। इसलिए औपचारिक रोजगार के चलते श्रम-सघन नहीं बल्कि श्रम -विघन रोजगार उत्पन्न होंगे। रोजगार की संख्या कम होगी।
औपचारिक रोजगार में तीसरा संकट वित्तीय औपचारिकता यानी नोटबंदी और जीएसटी का है। नोटबंदी के बाद वर्ष 2017 में एक ओला के ड्राइवर से चर्चा हुई। उन्होंने बताया कि वे 35 वर्षों से चार महिलाओं को रोजगार दे रहे थे। उनसे घर पर कपड़ों में कसीदा करा रहे थे। नोटबंदी के बाद उनके क्रेताओं ने उन्हें नकद में पेमेंट करना बंद कर दिया। उनके पास व्यवस्था नहीं थी कि वे बैंक के माध्यम से कपड़े का पेमेंट ले सकें। यह भी कहा कि नकद माल खरीदने वाले ही नहीं रहे। अब बड़ी दुकानों में डेबिट कार्ड के पेमेंट से ही कपड़े खरीदे जा रहे हैं। उनका बाजार समाप्त हो गया। उन्होंने चारों महिलाओं को मुअत्तल कर दिया और स्वयं जीविका चलने के लिए ओला के ड्राइवर का काम शुरू कर दिया। लगभग यही स्थिति जीएसटी की है जीएसटी के कारण छोटे उद्योगों को तमाम कानूनी पेचों से जूझना पड़ रहा है, जिसके कारण उनका धंधा कम हो रहा है। यह बात तमाम रपटों में दिखाई पड़ती है।
इन तमाम कारणों से औपचारिक और श्रम-सघन रोजगार में सीधा अंतर्विरोध है। औपचारिक रोजगार के चलते श्रम-सघन उत्पादन का मूल्य बढ़ता है और ऑटोमेटिक मशीनों के उपयोग से श्रम का उपयोग घटता है। नोटबंदी और जीएसटी के कारण पुन: रोजगार घटता है। लेकिन नीति आयोग इस अंतर्विरोध को नहीं समझता अथवा नहीं समझना चाहता है इसलिए अनायास ही औपचारिक रोजगार को बढ़ावा देने में नीति आयोग ने देश में रोजगार ही समाप्त कर दिए हैं। न्यून स्तर के अनौपचारिक जीवन के स्थान पर नीति आयोग ने औपचारिक मृत्यु को देशवासियों के पल्ले में डाल दिया है, जिसके कारण प्रधानमंत्री ने कहा है कि रोजगार हमारे सामने प्रमुख चुनौती है।
संभवत: नीति आयोग भारत को विकसित देशों की तर्ज पर औपचारिक श्रम की तरफ धकेलना चाहता है। लेकिन आयोग इस बात को भूल रहा है कि वर्तमान में पश्चिमी देश भी अनौपचारिक रोजगार की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। इसे वहां ‘गिगÓ रोजगार कहा जाता है जैसे श्रमिक घर में 3 घंटे बैठकर डेटा एंट्री इत्यादि करते हैं। इन गिग श्रमिकों को निर्धारित न्यूनतम वेतन से भी कम वेतन दिए जाते हैं, बिल्कुल उसी तरह जैसे अपने देश में नुक्कड़ पर मोमो विक्रेता को न्यूनतम वेतन से कम आय होती है। इसलिए हमें विकसित देशों के मोह को छोडऩा चाहिए। उनकी अंदरूनी रोजगार की परिस्थिति को समझना चाहिए। अपने देश में अनौपचारिक रोजगार को बढऩे देना चाहिए, नुक्कड़ के मोमो बेचने वाले को सम्मान देना चाहिए कि वह स्वरोजगार कर रहा है और सरकार पर मनरेगा का बोझ नहीं डाल रहा है। औपचारिक मृत्यु की तुलना में न्यून स्तर का अनौपचारिक जीवन ही उत्तम है। वर्तमान में अर्थव्यवस्था ऊपर से सुचारु रूप से चल रही दिखती है। अन्दर गड़बड़ है।

न्यायपालिका के सुझावों की फिर अनदेखी

अनूप भटनागर –
लड़कियों की विवाह की आयु बढ़ाकर लड़कों के समान करने के लिए संसद में विधेयक पेश करने वाली केंद्र सरकार के रुख से ऐसा लगता है कि समान नागरिक संहिता बनाने संबंधी संविधान का अनुच्छेद 44 अभी लंबे समय तक सुप्त प्रावधान ही रहेगा। इस निष्कर्ष पर पहुंचने की वजह केन्द्र सरकार का हलफनामा है जो उसने समान नागरिक संहिता के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित जनहित याचिका में दाखिल किया है।
देश में तेजी से हो रहे सामाजिक बदलाव के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और पंथों में प्रचलित विवाह और विवाह विच्छेद के कानून एवं रीति-रिवाज, तलाक की स्थिति में महिलाओं के अधिकार, गुजारा भत्ता और संपत्ति में उनके अधिकार जैसे मुद्दों के न्याय संगत समाधान के लिए अब समान नागरिक संहिता की जरूरत पहले से ज्यादा महसूस की जा रही है।
यही वजह है कि 1985 में शाहबानो प्रकरण से लेकर कई मामलों में न्यायपालिका ने संविधान के अनुच्छेद 44 में प्रदत्त समान नागरिक संहिता लागू करने पर विचार करने का सरकार को सुझाव दिया है। परंतु ऐसा लगता है कि महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने के न्यायपालिका के सुझावों के प्रति केंद्र गंभीर नहीं है या फिर वह इसमें राजनीतिक नफा-नुकसान की संभावनाएं तलाश रहा है। संविधान के अनुच्छेद 44 के अनुसार, ‘शासन भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।’
बहुचर्चित शाहबानो प्रकरण में 1985 में उच्चतम न्यायालय ने समान नागरिक संहिता बनाने का सुझाव दिया था। इसके बाद भी हिन्दू व्यक्ति द्वारा पहली पत्नी से विवाह विच्छेद के बगैर ही धर्म परिवर्तन करके दूसरी शादी करने या फिर अंतरजातीय विवाह में उत्पन्न विवादों के समाधान में आड़े आने वाली परंपराओं और तीन तलाक की कुप्रथा से प्रभावित मुस्लिम महिलाओं के लिए गुजारा भत्ता जैसे मामले हल करने के लिए न्यायपालिका लगातार समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर जोर देती रही है।
लेकिन अब केन्द्र सरकार ने उच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामे में साफ कर दिया है कि यह विधायिका के अधिकार क्षेत्र का मामला है जिस पर गहराई से अध्ययन की आवश्यकता है। सरकार ने यह हलफनामा भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका में दाखिल किया है। उपाध्याय चाहते हैं कि न्यायालय समान नागरिक संहिता का मसौदा तीन महीने के भीतर तैयार करने का निर्देश केंद्र को दे।
केंद्र में दाखिल इस हलफनामे में कानून मंत्रालय ने कहा है कि संविधान के अंतर्गत सिर्फ संसद ही यह काम कर सकती है और न्यायालय कोई कानून विशेष बनाने का निर्देश विधायिका को नहीं दे सकता है। यह सर्वविदित है कि कानून बनाने का अधिकार संसद का ही है और इसीलिए शाहबानो प्रकरण से लेकर अभी तक कई मामलों में न्यायपालिका ने संसद को समान नागरिक संहिता लागू करने पर विचार करने का सुझाव दिया है। यह सुझाव वैसे भी महत्वपूर्ण है क्योंकि गोवा में पहले से ही समान नागरिक संहिता लागू है।
भारतीय जनता पार्टी हमेशा ही समान नागरिक संहिता की पक्षधर रही है और उसने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसे शामिल भी किया था। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने इस संवेदनशील विषय को जून, 2016 में विधि आयोग के पास भेजा था। हालांकि, उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बलबीर सिंह चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने 31 अगस्त, 2018 को सरकार को भेजे अपने परामर्श पत्र में कहा था कि फिलहाल समान नागरिक संहिता की आवश्यकता नहीं है। विधि आयोग का मत था कि समान नागरिक संहिता बनाने में कुछ बाधाएं हैं। आयोग ने इनमें पहली बाधा के रूप में संविधान के अनुच्छेद 371 और इसकी छठवीं अनुसूची की व्यावहारिकता का उल्लेख किया था। अनुच्छेद 371(ए) से (आई) तक में असम, सिक्किम, अरुणाचल, नगालैंड, मिजोरम, आंध्र प्रदेश और गोवा के बारे में कुछ विशेष प्रावधान हैं, जिनके तहत इन राज्यों को कुछ छूट प्राप्त हैं।
विधि आयोग की राय है कि हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी और समाज के विभिन्न धर्मों और समुदायों में प्रचलित कानूनों में महिलाओं को ही कई तरह से वंचित किया गया है। और यही भेदभाव तथा असमानता की मूल जड़ है। इस समानता को दूर करने के लिये संबंधित पर्सनल लॉ में उचित संशोधन करके इनके कतिपय पहलुओं को संहिताबद्ध किया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय में केन्द्र सरकार के हलफनामे के बाद एक बात तो साफ हो गयी है कि संविधान के अनुच्छेद 44 में प्रदत्त समान नागरिक संहिता का विषय फिलहाल जस का तस राजनीतिक मुद्दा ही बना रहेगा और निकट भविष्य में शायद ही प्रावधान अमल में आ सके।
इस बीच, अश्विनी उपाध्याय ने ‘एक देश-एक नागरिक संहिताÓ विषय पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिख कर इसे लागू करने के लाभ और इसे लागू नहीं करने से उत्पन्न हो रही समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि लड़कियों की विवाह की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने संबंधी बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक के माध्यम से विभिन्न समुदायों में प्रचलित उनके निजी कानूनों में भी प्रस्तावित संशोधन करके समस्या का कुछ हद तक समाधान हो सकेगा। फिलहाल तो यह विधेयक संसदीय स्थायी समिति के पास विचारार्थ है।

मकर सक्रांति शुभ कार्यो की शुरुआत का पर्व !

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट –
14 जनवरी को मकर राशि में सूर्य और शनि ग्रह का एक साथ होना बहुत ही दुर्लभ संयोग है। यह संयोग 29 साल के बाद पड़ रहा है। इससे पूर्व यह योग सन 1993 में बना था।मकर संक्रांति का पुण्यकाल मुहूर्त सूर्य के संक्रांति समय से 16 घटी पहले और 16 घटी बाद का पुण्यकाल होता है। इस बार पुण्यकाल 14 जनवरी को सुबह 7 बजकर 15 मिनट से शुरू हो जाएगा, जो शाम को 5 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। इसमें स्नान, दान, जाप कर सकते हैं. वहीं स्थिर लग्न यानि समझें तो महापुण्य काल मुहूर्त 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इसके बाद दोपहर 1 बजकर 32 मिनट से 3 बजकर 28 मिनट तक भी पुण्यकाल है।पंजाब, यूपी, बिहार और तमिलनाडु में यह समय नई फसल काटने का होता है। इसलिए किसान इस दिन को आभार दिवस के रूप में भी मनाते हैं। इस दिन तिल और गुड़ की बनी मिठाई बांटी जाती है। इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की भी परंपरा है।महाभारत काल में मकर संक्रांति दिसंबर में मनाई जाती थी। ऐसा उल्लेख मिलता है कि छ्ठी शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय में 24 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाई गयी थी। अकबर के समय में 10 जनवरी और शिवाजी महाराज के काल में 11 जनवरी को मकर संक्रांति मनाये जाने का उल्लेख मिलता है।
मकर संक्रांति की तिथि का यह रहस्य इसलिए है क्योंकि सूर्य की गति एक साल में 20 सेकंड बढ जाती है। इस हिसाब से 5000 साल के बाद संभव है कि मकर संक्रांति जनवरी में नहीं, बल्कि फरवरी में मनाई जाने लगे। मकर सक्रांति को देश मे विभिन्न नामो से जाना जाता है।तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति उत्तरायण से भिन्न है। हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य का उत्तरायण होना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन गंगा नदी या पवित्र जल में स्नान करने का विधान है। साथ ही इस दिन गरीबों को गर्म कपड़े, अन्न का दान करना शुभ माना गया है। संक्रांति के दिन तिल से निर्मित सामग्री ग्रहण करने शुभ होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।गरीब और असहाय लोगों को गर्म कपड़े का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस माह में लाल और पीले रंग के वस्त्र धारण करने से भाग्य में वृद्धि होती है। माह के रविवार के दिन तांबे के बर्तन में जल भर कर उसमें गुड़, लाल चंदन से सूर्य को अर्ध्य देने से पद सम्मान में वृद्धि होने के साथ शरीर में सकारात्मक शक्तियों का विकास होता है। साथ ही आध्यात्मिक शक्तियों का भी विकास होता है।कहते है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर फेंका था। भगवान की जीत को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। शरद ऋतु का प्रभाव कम होने लगता है और इसके बाद बसंत मौसम का आगमन आरंभ हो जाता है। इसके फलस्वरूप दिन लंबे और रात छोटी होने लगती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव के घर जाते हैं। ऐसे में पिता और पुत्र के बीच प्रेम बढ़ता है। ऐसे में भगवान सूर्य और शनि की अराधना शुभ फल देने वाला होता है।संक्रांति का यह पर्व भारतवर्ष तथा नेपाल के सभी प्रान्तों में अलग-अलग नाम व भांति-भांति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है।भारत में इसके विभिन्न नाम है छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू में मकर सक्रांति,तमिलनाडु मेंताइ पोंगल, उझवर तिरुनल गुजरात, उत्तराखण्ड में उत्तरायण, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब में माघी,असम में
भोगाली बिहु ,कश्मीर में शिशुर सेंक्रात ,उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में खिचड़ी,पश्चिम बंगाल में
पौष संक्रान्ति ,कर्नाटक में मकर संक्रमण व पंजाब में लोहड़ी रूप में मनाया जाता है।इस खगोलीय परिवर्तन का स्वागत मकर सक्रांति रूप में हम करते है।साथ ही अपने बड़ो का सम्मान करने की परंपरा भी वर्षों से चली आ रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।)

मकर संक्रांति का महत्व

कु. कृतिका खत्री –
–  मकर संक्राति के दिन सूर्य मकर राशी में प्रवेश करता है । हिन्दू धर्म में संक्रांति को भगवान माना गया है। भारतीय संस्कृति में मकरसंक्रांति का त्योहार आपसी कलह को मिटाकर प्रेमभाव बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन तिल गुड़ एक दुसरे को देकर आपसी प्रेम बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। वर्तमान में सर्वत्र कोरोना महामारी के कारण सदा की भांति त्योहार मनाने में बाधा आ सकता है। तो भी इस आपातकाल में सरकार द्वारा बताए गए सभी नियमों का कठोरता से पालन कर यह त्योहार मनाया जा सकता है। यह त्योहार मनाते समय इसका महत्त्व, त्योहार मनाने की पद्धति, तिल गुड़ का महत्त्व, पर्व काल में दान का महत्त्व, अन्य स्त्रियों को हल्दी कुमकुम लगाने का आध्यात्मिक महत्त्व तथा इस दिन की जाने वाली धार्मिक विधियों की जानकारी इस लेख में देने का प्रयास किया है। हम इसका लाभ लेंगे।
तिथि – यह त्योहार तिथि वाचक न होकर अयन-वाचक है। इस दिन सूर्य का मकर राशि में संक्रमण होता है। वर्तमान में मकर संक्रांति का दिन 14 जनवरी है। सूर्य भ्रमण के कारण होने वाले अंतर को भरने ने लिए ही संक्रांति का दिन एक दिन आगे बढ़ाया जाता है। सूर्य के उत्सव को ‘संक्रांत’ कहते हैं। कर्क संक्रांति के उपरांत सूर्य दक्षिण की ओर जाता है और पृथ्वी सूर्य के निकट, अर्थात नीचे जाती है। इसे ही ‘दक्षिणायन’ कहते हैं। मकर संक्रांति के पश्चात सूर्य उत्तर की ओर जाता है और पृथ्वी सूर्य से दूर, अर्थात ऊपर जाती है। इसे ‘उत्तरायण’ कहते हैं। मकरसंक्रांति अर्थात नीचे से ऊपर चढने का उत्सव; इसलिए इसे अधिक महत्व है।
इतिहास – संक्रांति को देवता माना गया है। संक्रांति ने संकरासुर दैत्य का वध किया, ऐसी कथा है ।
तिल गुड़ का महत्व – तिल में सत्त्वतरंगें ग्रहण और प्रक्षेपित करने की क्षमता अधिक होती है । इसलिए तिलगुड का सेवन करने से अंत:शुद्धि होती है और साधना अच्छी होने हेतु सहायक होते हैं । तिलगुड के दानों में घर्षण होने से सात्त्विकता का आदान-प्रदान होता है । ‘श्राद्ध में तिल का उपयोग करने से असुर इत्यादि श्राद्ध में विघ्न नहीं डालते ।’ सर्दी के दिनों में आने वाली मकर संक्रांति पर तिल खाना लाभप्रद होता है । ‘इस दिन तिल का तेल एवं उबटन शरीर पर लगाना, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल मिश्रित जल पीना, तिल होम करना, तिल दान करना, इन छहों पद्धतियों से तिल का उपयोग करने वालों के सर्व पाप नष्ट होते हैं ।’ संक्रांति के पर्व काल में दांत मांजना, कठोर बोलना, वृक्ष एवं घास काटना तथा कामविषयक आचरण करना, ये कृत्य पूर्णत: वर्जित हैं ।’
त्यौहार मनाने की पद्धति – ‘मकर संक्रांति पर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पुण्य काल रहता है । इस काल में तीर्थ स्नान का विशेष महत्त्व हैं । गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियोंके किनारे स्थित क्षेत्र में स्नान करने वाले को महापुण्य का लाभ मिलता है ।
मकर संक्रांति पर दिए गए दान का महत्व – मकर संक्रांति से रथ सप्तमी तक की अवधि पर्वकाल है। इस पर्व में किया गया दान और शुभ कार्य विशेष फलदायी होता है। धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन दान, जप और साथ ही धार्मिक अनुष्ठानों का अत्यधिक महत्व बताया गया है।
हल्दी और कुमकुम का आध्यात्मिक महत्व – हल्दी और कुमकुम लगाने से सुहागिन स्त्रियों में श्री दुर्गा देवी का अप्रकट तत्त्व जागृत होता है तथा श्रद्धा पूर्वक हल्दी और कुमकुम लगाने से यह जीव में कार्यरत होता है। हल्दी कुमकुम धारण करना अर्थात एक प्रकार से ब्रह्मांड में अव्यक्त आदिशक्ति तरंगों को जागृत होने हेतु आवाहन करना है । हल्दी कुमकुम के माध्यम से पंचोपचार करना अर्थात एक जीव का दूसरे जीव में उपस्थित देवता तत्त्व की पूजा करना है । हल्दी, कुमकुम और उपायन देने आदि विधि से व्यक्ति पर सगुण भक्ति का संस्कार होता है साथ ही ईश्वर के प्रति जीव में भक्ति भाव बढऩे में सहायता होती है ।
उपायन देने का महत्व तथा उपायन में क्या दें – ‘उपायन देना’ अर्थात तन, मन एवं धन से दूसरे जीव में विद्यमान देवत्व की शरण में जाना । संक्रांति-काल साधना के लिए पोषक होता है । अतएव इस काल में दिए जाने वाले उपायन से देवता की कृपा होती है और जीव को इच्छित फल प्राप्ति होती है । आजकल प्लास्टिक की वस्तुएं , स्टील के बर्तन इत्यादि व्यावहारिक वस्तुएं उपायन के रूप में देने के कारण उपायन देनेवाला तथा ग्रहण करने वाला दोनों के बीच लेन देन का सम्बन्ध निर्माण होता है । वर्तमान में अधार्मिक वस्तुओं के उपायन देने की गलत प्रथा आरम्भ हुई है इन वस्तुओं की अपेक्षा सौभाग्य की वस्तु जैसे उदबत्ती (अगरबत्ती), उबटन, धार्मिक ग्रंथ, पोथी, देवताओं के चित्र, अध्यात्म संबंधी दृश्य श्रव्य-चक्रिकाएं (ष्टष्ठह्य) जैसी अध्यात्म के लिए पूरक वस्तुएं उपायन स्वरूप देनी चाहिए । सात्विक उपायन देने के कारण ईश्वर से अनुसन्धान होकर दोनों व्यक्ति को चैतन्य मिलता है जिसके कारण ईश्वर की कृपा होती है।
मिटटी के बर्तनों (घडिया) के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का त्यौहार – सूर्य देव ने अधिक मात्रा में उष्णता देकर पृथ्वी के बर्फ को पिघलाने के लिए साधना (तपस्या) आरम्भ की । उस समय रथ के घोड़े सूर्य की गर्मी को सहन नहीं कर पा रहे थे और उन्हें प्यास लगी । तब सूर्यदेव ने मिट्टी के घड़े के माध्यम से पृथ्वी से जल खींचकर घोड़ों को पीने के लिए दिया; इसलिए संक्रांति पर घोड़ों को पानी पिलाने के कारण मटकों की प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मिट्टी के बर्तनों की पूजा करने की प्रथा आरम्भ हुई। रथ सप्तमी के दिन तक सुहागिन महिलाऐं हल्दी कुमकुम के अवसर पर इन पूजित बर्तनों को एक-दूसरे को उपायन स्वरूप भेंट में देती हैं । मिट्टी के बर्तन (घडिय़ा) को अपनी अंगुलिओं के माध्यम से हल्दी-कुमकुम लगा कर घडि़ए पर धागा लपेटा जाता तथा उसमे गाजर, बेर, गन्ने के टुकड़े, मूंगफली, कपास, काले चने, तिल के लड्डू, हल्दी आदि वस्तु भरकर भेंट स्वरुप दिया जाता है ।
पतंग न उड़ाएं – इस काल में अनेक स्थानों पर पतंग उड़ाने की प्रथा है परन्तु वर्तमान में राष्ट्र एवं धर्म संकट में होते हुए मनोरंजन हेतु पतंग उडाना, ‘जब रोम जल रहा था, तब निरो बेला (फिडल) बजा रहा थाÓ, इस स्थिति समान है । पतंग उडाने के समय का उपयोग राष्ट्र के विकास हेतु करें, तो राष्ट्र शीघ्र प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा और साधना एवं धर्मकार्य हेतु समय का सदुपयोग करने से अपने साथ समाज का भी कल्याण होगा ।

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन किया

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन किया। मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर राज्यवासियों को शुभकामनाएं और बधाई दी।

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मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने वर्चुअल माध्यम से सात नए पीएसए ऑक्सीजन प्लान्ट का उद्घाटन किया

*रांची में दो तथा जमशेदपुर, रामगढ़, देवघर चाकुलिया (पूर्वी सिंहभूम) और कुचाई  (सरायकेला- खरसावां) में एक -एक पीएसए

प्लान्ट अधिष्ठापित किए गए हैं

*सीमित संसाधनों के बीच बेहतर प्रबंधन से कोविड-19 को नियंत्रित करने का प्रयास

* लोगों को उनके घर के निकटवर्ती अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्रों में बेहतर चिकित्सीय सुविधा कराया जा रहा  उपलब्ध

 *सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही स्वास्थ्य संरचनाओं का भविष्य में भी बेहतर इस्तेमाल सुनिश्चित हो – श्री हेमन्त सोरेन,

मुख्यमंत्री, झारखंड

रांची,कोविड-19 महामारी के बीच राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ करने का प्रयास जारी है । इस कड़ी में स्वास्थ्य सुविधाओं का लगातार विस्तार हो रहा है। प्रखंड से लेकर जिला स्तर तक  स्वास्थ्य से संबंधित आधारभूत संरचना को मजबूत किया जा रहा है, ताकि लोगों को उनके घर के  निकटवर्ती अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्रों में बेहतर चिकित्सीय लाभ मिल सके ।  मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने आज पाथ ऑर्गनाइजेशन के सहयोग से राज्य के विभिन्न अस्पतालों में सात नए पीएसए ऑक्सीजन प्लांट का ऑनलाइन उद्घाटन करते हुए कही । उन्होंने कहा कि सरकार के द्वारा जो भी स्वास्थ्य संरचनाएं खड़ी की गई हैं,  इसका कोरोना महामारी के अलावा भविष्य में भी बेहतर इस्तेमाल हो,  इसे सुनिश्चित करना जरूरी है।

स्वास्थ्य क्षेत्र में हर दिन नई कड़ी जोड़ रहे हैं

मुख्यमंत्री ने कहा कि लगभग 2 वर्ष पहले जब कोविड-19  महामारी ने पूरी दुनिया में दस्तक दी थी तो झारखंड भी इससे अछूता नहीं था। हमारी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि कोरोना की जांच की सुविधा तक राज्य में उपलब्ध नहीं थी।लेकिन, आज हर जिले में पीएसए प्लांट अधिष्ठापित किए जा चुके हैं। कोरोना की जांच के लिए आरटीपीसीआर और अत्याधुनिक कोबास मशीन भी यहां है।  अस्पतालों में लगभग 25 हज़ार बेड उपलब्ध हैं। अब राज्य में ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड, आईसीयू और वेंटीलेटर की पर्याप्त उपलब्धता  है। सरकार का प्रयास है कि चिकित्सीय संसाधनों की कमी से किसी मरीज को किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़े।

तीसरी लहर को भी काबू में करने का प्रयास

मुख्यमंत्री ने कहा कि  सीमित संसाधनों के बीच बेहतर प्रबंधन के साथ हमने कोरोना के खिलाफ जंग शुरू की और सभी ने देखा है कि पहली दो लहरों को नियंत्रित करने में काफी हद तक कामयाबी हासिल की। अभी तीसरी लहर चल रही है और इसे भी काबू में करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं ।

लोगों को जागरूक करना जरूरी

मुख्यमंत्री ने कहा कि कोविड-19 महामारी कब  तक जारी रहेगा । इसका आकलन करना बेहद मुश्किल है। लेकिन, ऐसे हालात में इसके संक्रमण से बचने के लिए हम सभी को सावधान तथा सतर्क रहना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि सरकार बेहतर चिकित्सीय व्यवस्था तो कर ही रही है । लेकिन, इसके साथ इस महामारी से बचाव के तौर- तरीके लोगों को बताने के साथ कोविड-19 दिशा निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित कराना सबसे ज्यादा अहमियत रखता है।इसमें हम सभी का सहयोग बेहद जरूरी है।

 यहां अधिष्ठापित किए गए हैं पीएसए प्लांट

पाथ संगठन के सहयोग से रांची के सदर अस्पताल में दो, जमशेदपुर के मर्सी हॉस्पिटल में एक,  रामगढ़  ट्रॉमा सेंटर में एक, देवघर सदर अस्पताल में एक और चाकुलिया (पूर्वी सिंहभूम) तथा कुचाई (सरायकेला- खरसावां)  सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक -एक पीएसए ऑक्सीजन प्लांट अधिष्ठापित किए गए हैं ।

इस अवसर पर स्वास्थ्य मंत्री श्री बन्ना गुप्ता, मुख्य सचिव श्री सुखदेव सिंह, स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री अरुण कुमार सिंह के अलावा मुख्यमंत्री आवासीय कार्यालय से मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजीव अरुण एक्का और मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे के अलावा पाथ संगठन के कंट्री डायरेक्टर श्री नीरज जैन और स्टेट लीड,   झारखंड श्री अभिजीत सिन्हा ऑनलाइन मौजूद थे।

रजाई-कंबल या स्वेटर धोते समय कभी भी ना करें यह गलती

इस समय देशभर में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। ऐसे में गिरते तापमान के साथ ही लोगों के कई सारे रजाई-गद्दे और स्वेटर बाहर निकल लिए हैं। ऐसे में ठंड से बचने के लिए लोग इसका खूब इस्तेमाल कर रहे हैं, हालाँकि रजाई- कंबल और स्वेटर को सही तरीके से ना धोने से यह जल्दी खराब हो जाते हैं, और इनके खराब होने से ना हमें गर्माहट मिलती है और इसको पहनने से खुजली भी होती है। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं वुलन कपड़े धोने का सही तरीका, जिससे उसकी सॉफ्टनेस, चमक और गर्माहट लंबे समय तक बनी रहेगी।
एक साथ ना धोएं खूब सारे कपड़े- वैसे तो कई बार वॉशिंग मशीन में हम ढेर सारे कपड़े एक साथ डाल देते हैं और उन्हें घंटों तक उन्हें मशीन में धुलने देते हैं। हालाँकि वूलन कपड़ों को धोते समय यह बात ध्यान रखें कि कभी भी मशीन को ओवरलोड न करे। केवल पांच से सात कपड़े ही मशीन में एक समय में धोना चाहिए, ताकि यह अच्छी तरीके से साफ हो सके।
हमेशा कपड़ों को उल्टा करके धोएं- वुलन कपड़ों को धोते समय इस बात का ध्यान रखें कि हमें इन कपड़ों को हमेशा उल्टा धोना चाहिए इससे कपड़े का रेशा खराब नहीं होता है और वुलन क्लॉथ सॉफ्ट बना रहता है।
पानी में ना गलाएं विंटर क्लोथ- वुलन कपड़ों को कभी भी ज्यादा देर तक सर्फ में गलाकर नहीं रखना चाहिए। कहा जाता है इससे इनका रंग निकल सकता है और सर्फ के पानी में ज्यादा देर रहने से इनकी सॉफ्टनेस भी खत्म हो जाती है। आप इन्हें बिना गलाएं तुरंत ही धो लें।
गर्म पानी में ना धोएं वुलन कपड़े- कई लोग गंदे कपड़े या वुलन कपड़े धोने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से कपड़े ज्यादा अच्छे से साफ हो जाएंगे, जबकि स्वेटर या गर्म कपड़ों को गर्म पानी से धोने से इनकी सेल्फ लाइफ कम होती है। ऐसे में इन कपड़ों को हमेशा नॉर्मल पानी में ही धोना चाहिए।
बार-बार ना धोएं वुलन क्लॉथ- गर्म कपड़ों को बार-बार नहीं धोना चाहिए। ध्यान रहे एक वुलन कपड़े को कम से कम चार से पांच बार पहनने के बाद ही इसे धोएं।
रजाई और कंबल को धोते समय ध्यान रखेंगे बात- रजाई और कंबल को कभी भी वॉशिंग मशीन में नहीं धोना चाहिए, क्योंकि इससे इनकी रूई अपनी जगह से हिल जाती है और यह समतल नहीं रहती है। इस वजह से हमेशा रजाई और कंबल को हाथ से धोए। (एजेंसी)

थायराइड की समस्या से ग्रसित लोगों में अक्सर दिखने लगते हैं ऐसे शुरूआती लक्ष्ण

आज के जमाने में महिलाओं में थायराइड की समस्या काफी तेजी से बढती जा रही है। आज का खराब लाइफस्टाइल और गलत खानपान के कारण ये समस्यायें तेजी से शरीर में घर कर जाती है।
ऐसे में कई बार आपके गले का हिस्सा उभरा हुआ नजर आता है यदि इस डबल चिन को मोटापा समझ रहे हैं तो सावधान हो जाएं क्योंकि यह थायराइड का संकेत हो सकता है। जिसे थायराइड की बीमारी भी कहा जाता है।
गले में ये लक्षण थायराइड का संकेत
थाइराइड कैंसर के मामले में गले का इंफेक्शन, पेट की समस्या या श्वसन नली में एलर्जी भी हो सकती है। गर्दन में गांठ, सूजन, बार-बार ड्राईनेस, आवाज भारी होना, खराश हो रही है जो दवा से भी ना जाएं तो थायराइड की जांच करवा लें।
कैसे करें बीमारी पर कंट्रोल?
यदि आपको इस बीमारी का पता समय पर चल जाए तो दवा के सहारे इसे कंट्रोल किया जा सकता है। वहीं इसके साथ जरूरी है कि सही लाइफस्टाइल, अच्छी नींद, स्वस्थ खान-पान बीमारी को कंट्रोल करने के लिए सबसे जरूरी है। इसके साथ ही आप कुछ घरेलू नुस्खे भी अजमा सकते हैं जैसे-
1.आयरन से भरपूर चीजें खाएं, जैसे बादाम, हरी पत्तेदार सब्जियां, दालें, पालक, अंजीर, चुकंदर आदि।
2. रोज नाश्ते में 1 गिलास लौकी का जूस पीएं से भी फायदा होगा।
3. हल्दी वाला दूध पीने से भी थायराइड कंट्रोल में रहता है।
4. प्याज को दो हिस्सों में काटकर गले के आस-पास क्लॉक वाइज मसाज करें और रातभर के लिए छोड़ दें। लगातार ऐसे करने से थायराइड कंट्रोल होगा।

(एजेंसी)

सिर्फ स्वेटर पहनकर जाह्नवी कपूर ने दिखाईं ऐसी अदाएं, बढ़ा इंटरनेट का पारा!

बॉलीवुड एक्ट्रेस जाह्नवी कपूर अपने लुक्स और अदाओं के अलावा अपने ड्रेसिंग सेन्स के लिए जानी जाती हैं. हाल ही में जाह्नवी कपूर की एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें अभिनेत्री सिर्फ स्वेटर में नजर आ रही हैं.
इस वायरल तस्वीर में जाह्नवी कपूर लाइट ब्राउन कलर का सिर्फ स्वेटर पहने हुई हैं. तस्वीर को देखकर साफ लग रहा है कि एक्ट्रेस ने इसके साथ कोई भी ट्राउजर या फिर पैंट नहीं पहनी है. तस्वीर में एक्ट्रेस बेहद खुश दिख रही हैं.
सामने आई इस तस्वीर में जाह्नवी कपूर कभी कुर्सी पर बैठकर पोज दे रही हैं तो कभी जमीन पर बैठकर अपनी अदाएं दिखा रही हैं. तस्वीर में एक्ट्रेस सटल मेकअप के साथ ओपन हेयर में नजर आईं जिसमें उनका लुक फैंस को काफी पसंद आ रहा है.
जाह्नवी कपूर का नाम यूं तो उनके को-एक्टर ईशान खट्टर के साथ जुड़ चुका है. ईशान के साथ वो कई बार स्पॉट भी की जाती थीं, लेकिन समय के साथ उनकी राहें अलग हो गईं. लेकिन इस बीच एक्ट्रेस का एक ऐसा वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वो एक लड़के के काफी करीब नजर आईं.
जाह्नवी कपूर कुछ समय पहले एक पार्टी की फोटो इंस्टाग्राम पर शेयर की थीं. इस पार्टी में उनके साथ उनकी छोटी बहन खुशी कपूर भी दिखाई दी थीं. जाह्नवी की इन तस्वीरों और वीडियो में एक्ट्रेस सफेद कलर की बॉडीकॉन ड्रेस पहने बेहद खूबसूरत दिखाई दीं. वहीं खुशी कपूर ब्लैक कलर की शर्ट में दिखीं. इसके साथ ही उन्होंने काले रंग की शर्ट और पैंट को ग्रे ओवरसाइज्ड ब्लेजर के साथ पेयर किया था. वहीं अक्षत अभिनेत्री को बाहों में भर कर बड़े ही प्यार से किस करते हुए भी दिखाई दिए. (एजेंसी)

सरकार की दूसरी वर्षगांठ के अवसर पर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने राज्यवासियों को दी कई सौगातें

*मुख्यमंत्री ने  17,222.02 करोड़ रुपए की 1454 योजनाओं का उद्घाटन-शिलान्यास किया,  लाभुकों के बीच बांटी परिसंपत्ति

*मुख्यमंत्री ने पेट्रोल में प्रति लीटर 25 रुपए का राहत देने की घोषणा की, अगले वर्ष 26 जनवरी से गरीबों को मिलेगा लाभ 

*मुख्यमंत्री ने कहा- छात्र -छात्राओं के लिए स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना जल्द, विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति योजना का बढ़ेगा दायरा

*जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास कर रही है यह सरकार

*शासन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए चलाए गए “आपके अधिकार आपकी सरकार आपके द्वार ” कार्यक्रम का मिला सार्थक परिणाम – श्री रमेश बैस  राज्यपाल, झारखंड

*झारखंड अब ना रुकेगा और झुकेगा, निश्चित रूप से आगे बढ़ेगा. सरकार कर रही काम

*आपके दरवाजे पर अब पहुंच रहा सरकारी महकमा ,कल्याणकारी योजनाओं से आपको जोड़ने का चल रहा अभियान –  श्री हेमन्त सोरेन मुख्यमंत्री , झारखंड

 

मोरहाबादी मैदान, रांची  – लोकतंत्र में जनता का हित सर्वोपरि होता है . सरकार का लक्ष्य होना चाहिए कि वह जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं पर खरा उतरे. राज्यपाल श्री रमेश बैस ने आज मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार के 2 वर्ष पूरे होने के अवसर पर रांची के मोरहाबादी मैदान में आयोजित राज्य स्तरीय समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए कही । उन्होंने मुख्यमंत्री को की दूसरी वर्षगांठ की  बधाई देते हुए कहा कि सरकार आम जनता के कल्याण के लिए लगातार कोशिश कर रही है . उन्होंने कोरोना काल में सरकार द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की . राजपाल ने शिक्षा स्वास्थ्य और क्षेत्रों में सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर खुशी जाहिर की. उन्होंने शासन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए चलाए गए आपके अधिकार आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम को कारगर कदम बताया . राज्यपाल ने उम्मीद जताई कि यह सरकार भविष्य में भी समाज के सभी वर्ग और तबके के हित में कार्य करती रहेगी।

 गरीबों को हर माह 10 लीटर पेट्रोल पर प्रति लीटर 25 रुपए की मिलेगी राहत

झारखंड अब ना रुकेगा और झुकेगा, निश्चित रूप से आगे बढ़ेगा. सरकार इस संकल्प के साथ अपनी कार्य योजनाओं को धरातल पर उतारने का काम तेजी से कर रही है. मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने सरकार की दूसरी वर्षगांठ के अवसर पर  आयोजित राज्यस्तरीय समारोह में राज्यवासियों को कई सौगातें दी. उन्होंने कहा कि आज पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं. इसका बुरा असर गरीब एवं मध्यम वर्ग के परिवारों को हुआ है .  एक गरीब व्यक्ति घर में मोटरसाइकिल होते हुए भी पेट्रोल के पैसे नहीं रहने के कारण उसको चला नहीं पा रहा है.  अपना फसल बेचने बाजार नहीं जा पा रहा है . इसलिए मैंने निर्णय लिया है कि वैसे राशन कार्डधारी यदि अपने मोटरसाइकिल या स्कूटर में पेट्रोल भरातें हैं तो 25 रुपए प्रति लीटर की दर से राशि उनके बैंक खाते में ट्रांसफर करेंगे। यह  व्यवस्था अगले वर्ष 26 जनवरी से लागू करने जा रहे हैं ।  एक गरीब परिवार प्रतिमाह 10 लीटर पेट्रोल तक यह राशि प्राप्त कर सकता है ।

 छात्र-छात्राओं के लिए स्टूडेंट्ड क्रेडिट कार्ड योजना बहुत जल्द

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर राज्य के छात्र-छात्राओं के लिए स्टूडेंट्स क्रेडिटकार्ड  योजना लागू करने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि जल्द ही राज्य के विद्यार्थियों को इस योजना का लाभ मिलेगा. उन्हें अपनी शिक्षा के लिए पैसे की कमी कभी बाधा नहीं बनेगी. स्टूडेट्स क्रेडिट योजना उनके बेहतर शिक्षा के सपनों का सार्थक करेगा.

 झारखंड आंदोलनकारी के आश्रितों को नौकरियों में 5 प्रतिशत क्षैतिज आऱक्षण मिलेगा

मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड राज्य आंदोलन की उपज है. कई लोगों ने इस राज्य के लिए हुए आंदोलन में अपनी शहादत दी. हमारी सरकार ऐसेआंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को सम्मान के साथ पेंशन तो दे ही रही है. अब उन्हें सरकारी नौकरियों में पांच प्रतिशत क्षैतिज आऱक्षण मिलेगा. मुख्यमंत्री ने समारोह में मंच से इसकी घोषणा की.

 विदेशों में पढ़ाई के लिए शत प्रतिशत छात्रवृति योजना का दायरा बढ़ेगा

मुख्यमंत्री ने कहा कि अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए शत प्रतिशत छात्रवृति दे रही है. इस वर्ष इस योजना के तहत छह विद्यार्थियों को विदेशों में पढ़ाई के लिए चयनित किय़ा गया है. अब राज्य सरकार इस स्कॉलरशिप योजना का दायरा बढ़ाने की दिशा में भी काम कर रही है. अन्य वर्ग के होनहार विद्यार्थियों को भी विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप योजना से जोड़ा जाएगा.

 सरकारी कर्मियों की ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की मांग पर भी सरकार कर रही विचार

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार के कर्मियों द्वारा लंबे अर्से से ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की मांग की जा रही है. सरकार उनकी इस मांग पर विचार कर रही है और जल्द ही विधिसम्मत निर्णय लिया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि राज्य के कई विभागों में हजारों की संख्या में अनुबंधकर्मी कार्यरत है. वे अपनी मांगों और समस्याओं को लेकर लगातार आंदोलन करते रहते हैं. उनकी मांगें सरकार के संज्ञान में है. लेकिन, समस्याओं का समाधान आंदोलन और धरना प्रदर्शन से नहीं होगा. आप हमें सहयोग करें. वार्ता के लिए आगे आएं. हम आपकी मांग पर यथोचित निर्णय लेंगे, ताकि सभी के सहयोग से राज्य को विकास के पथ पर आगे ले जा सकें.

 प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के गरीब विद्यार्थियों को भी बेहतर और गुणवत्तायुक्त शिक्षा मिले, इस दिशा में सरकार लगातार काम कर रही है. इसी वजह से अगले सेशन से कई सरकारी विद्यालयों में निजी स्कूलों की तर्ज पर पढ़ाई शुरू करने का निर्णय सरकार ने लिया है. यहां विद्यार्थियों को शिक्षा से संबंधित सभी जरूरी एवं मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध होंगी.

 आप सभी के सहयोग से सरकार ने सफलतापूर्वक पूरे किए हैं दो साल

इससे पहले मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि राज्यवासियों के सहयोग से हमारी सरकार ने सफलतापूर्वक दो साल पूरे किए हैं. लेकिन, ये दो साल ना सिर्फ झारखंड बल्कि पूरी दुनिया के लिए संकट औऱ चुनौतीपूर्ण रहे हैं. कोरोना महामारी के कारण पूरी दुनिया की व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई. लॉक डाउन लगा और लोग अपने घरों में कैद होने को मजबूर हो गए. लोगों के सामने जीवन औऱ जीविका का संकट पैदा हो गया. ऐसे हालात में लोगों को कैसे राहत मिले, इसे लेकर सरकार लगातार मंथन करती रही. जब हालात थोड़े बेहतर हुए तो पूरी सतर्कता के साथ सरकार ने अपनी योजनाओं को धरातल पर उतारने का काम शुरू किया, ताकि लोगों के जीवन और जीविका पर जो संकट आया था, उसका समाधान हो सके. इसमें हमारी सरकार की योजनाएं काफी कारगर रही. हालांकि, कोरोना का खतरा अभी भी बरकरार है. लेकिन, पूरी सावधानी के साथ विकास कार्यक्रमों को गति देने का काम चल रहा है.

 आपका विश्वास हमारी ताकत, आपकी समस्याओं का कर रहे समाधान

मुख्यमंत्री ने कहा का पिछले दो वर्षों में सरकार द्वारा 28-30 योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया है. शहर से लेकर गांव में अंतिम पंक्ति में बैठे व्यक्तिय़ों को लाभ दिलाने की दिशा में सरकार लगातार प्रयास कर रही है. पहले जहां सुदूरवर्ती गांवों में अधिकारी नहीं जाते थे. योजनाएं नहीं पहुंच पाती थी, लेकिन हमारी सरकार ने आपके अधिकार आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम चलाया. इसके तहत ना सिर्फ आपके दरवाजे पर सरकारी महकमा पहुंच रहा है, बल्कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से उन्हें जोड़ने के साथ उनकी समस्याओं का समाधान किया जा रहा है. यह जनता की सरकार है. जनता की उम्मीदों और आंकाक्षाओं को पूरा कर रहे हैं. आपकी हर समस्य़ा का समाधान होगा, हमारी सरकार पर आपने दो सालों तक विश्वास किया है, आगे भी ऐसा ही विश्वास बनाए रखें.

 भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर बना रहे कार्ययोजनाएं

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य को आगे ले जाने की दिशा में सरकार लगातार प्रयत्नशील है. हमारी सरकार ना सिर्फ वर्तमान बल्कि अगले 25 से 30 सालों की जरूरतों को ध्यान में रखकर कार्य योजनाएं बना रही है. भविष्य की जरूरतें सरकार के ध्यान में है. ऐसे में हमारी जो भी योजनाएं लागू हो रही है, उसका दूरगामी प्रभाव देखने को मिलेगा. वह दिन दूर नहीं जब झारखंड एक सक्षम और सशक्त राज्य के रुप में पहचान स्थापित करेगा और अन्य राज्यों को सहयोग करने में अग्रणी भूमिका निभाएगा.

 खनिजों के अलावे अन्य क्षेत्रों में काफी संभावनाएं

मुख्यमंत्री ने कहा कि आमतौर पर झारखंड राज्य की पहचान खनिज संसाधनों के लिए होती है. लेकिन, यहां पर्यटन और खेल समेत कई अन्य क्षेत्रों में भी काफी संभावनाएं हैं. ऐसे में राज्य के पर्यटक स्थलों को विकसित करने के लिए नई पर्यटन नीति बनाई गई है. पर्यटक स्थलों पर मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था की जा रही है. वहीं खेल और खिलाडियों के लिए भी सरकार ने कई नीति बनाई है. खिलाड़ियों की सीधी नियुक्ति हो रही है और खेल प्रतिभाओं को उभारने के लिए प्रशिक्षण के साथ विभिन्न प्रतियोगिताओं का लगातार आयोजन किया जा रहा है.

आंतरिक संसाधनों को बढाने के लिए उठाए जा रहे कई कदम

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्यवासियों के हित में सरकार कई योजनाएं बना रही है. ये योजनाएं कैसे सफलतापूर्वक लागू हों, इसके लिए संसाधनों की व्यवस्था होनी बेहद जरूरी है. इसी बात को ध्यान में रखकर हमारी सरकार ईमानदार सोच, विजन और बेहतर प्रबंधन के साथ आंतरिक संसाधनों को बढ़ाने का लगातार प्रयास कर रही है.

कई नए कार्यक्रमों की हुई शुरूआत

समेकित बिरसा ग्राम विकास योजना सह किसान पाठशाला की शुरूआत

राज्य के किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए सरकार लगातार प्रयत्नशील है. आज राज्यस्तरीय समारोह में इसके लिए समेकित बिरसा ग्राम विकास योजना सह किसान पाठशाला का शुभारंभ किया गया. पहले चरण में 17 किसान पाठशाला खोले जाएंगे, जबकि आने वाले तीन सालों में इसकी संख्या को बढ़ाकर एक सौ करने की योजना है.

 कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ एक हजार दिनों के विशेष समर अभियान का शुभारंभ

महिलाओं को एनिमिया और बच्चों को कुपोषण की समस्या से निजात दिलाना सरकार की विशेष प्राथमिकता है. इसी संदर्भ में आज एक हजार दिनों का विशेष समर अभियान शुरू करने का मुख्यमंत्री ने ऐलान किया.

प्लेसमेंट लिंक्ड ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए एमओयू

राज्य में 12वीं पास विद्यार्थियों को आईटी की ट्रेनिंग देने के लिए श्रम विभाग और एचसीएल टेक्नोलॉजी के बीच आज एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया. इसके तहत यहां के इंटर पास विद्यार्थियों को एचसीएल कंपनी के द्वारा प्लेसमेंट लिंक्ड ट्रेनिंग प्रोगाम से जोड़ा जाएगा और प्लेसमेंट की भी व्यवस्था की जाएगी.

 वन उपज को बढ़ावा और बाजार उपलब्ध कराने के लिए एमओयू

झारखंड आदिवासी बाहुल्य राज्य है. यहां की एक बड़ी आबादी अपनी जीविका के लिए वनोत्पादों पर निर्भर है. ऐसे में सरकार ने वनोत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने की दिशा में नीति बनाई है. इसी के तहत आज  वन विभाग, कल्याण विभाग और इंडियन स्कूल ऑ फ बिजनेस के बीच त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया गया. इससे यहां के वन उपज को व्यवसायिक बाजार उपलब्ध कराने में सहूलियत होगी.

पत्रकार स्वास्थ्य बीमा योजना का शुभारंभ

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर राज्य के पत्रकारों के लिए पत्रकार स्वास्थ्य बीमा योजना लागू करने की घोषणा की. इस योजना के तहत उन्हें पांच लाख रुपए तक का बीमा कवर मिलेगा. मीडियाकर्मियों के साथ उनके परिजनों को भी इस योजना का लाभ मिलेगा.

 कई योजनाओं का उद्घाटन-शिलान्यास

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर 17,222.02 करोड़ रुपए की 1454 योजनाओं का उद्घाटन-शिलान्यास किया. इसमें 2965.22 करोड़ रुपए की 20 राज्यस्तरीय और 10770.88 करोड़ रुपए की अन्य 1014 योजनाओं का शिलान्यास किया. इस तरह शिलान्यास किए जाने वाले योजनाओं की कुल लागत 13,736.1 करोड़ रुपए है. वहीं, 1287.51 करोड़ रुपए की लागत से 20 राज्यस्तरीय और 2198.41 करोड़ रुपए की लागत से 400 योजनाओं का उद्घाटन हुआ.  इसके अलावा  1493.38 रुपए की परिसंपत्तियों का वितरण लाभुकों के बीच किया गया. वहीं, कई नव चयनित अभ्यर्थियों को मुख्यमंत्री के द्वारा नियुक्ति पत्र प्रदान किया गया.

इस अवसर पर राज्यसभा सांसद श्री शिबू सोरेन, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री श्री आरपीएन सिंह, मंत्री श्री आलमगीर आलम और श्री सत्यानंद भोक्ता, विधायक श्री बंधु तिर्की और श्री राजेश कच्छप, मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी श्रीमती कल्पना सोरेन,  मुख्य सचिव श्री सुखदेव सिंह, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजीव अरुण एक्का, पुलिस महानिदेशक श्री नीरज सिन्हा, मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे के अलावे विभिन्न विभागों के अपर मुख्य सचिव/ प्रधान सचिव / सचिव मौजूद थे.

संकटकाल में नयी चाल में ढला साहित्य

अतुल सिन्हा –
निस्संदेह, कोरोना काल में मानवीय त्रासदी का चरम दिखा, जिसने रचनाकारों को उद्वेलित किया। इस काल के सृजन में मानवीय त्रासदी की गहरी छाया रही। इस दौरान साहित्य ने अपनी चाल बदली। विपुल साहित्य का सृजन हुआ। डिजिटल माध्यम की स्वीकार्यता बढ़ी।?लेकिन पुस्तक छपवाने का मोह कम नहीं हुआ। प्रकाशकों का काम बढ़ा। इस दौरान हमने अनेक नामचीन साहित्यकारों को भी?खोया।
एक महामारी ने पूरी जीवन शैली बदल दी। तकरीबन दो सालों से हम सब के बीच फासले बढ़ गए। सोचने-समझने और लिखने-पढऩे के तौर-तरीकों में बदलाव आया और साहित्य सृजन की दृष्टि भी काफी हद तक बदल गई। कोरोना काल में साहित्य रचने का यह दूसरा साल था। लॉकडाउन भले ही कुछ महीनों का रहा हो, लेकिन इसका असर दीर्घकालिक है। वर्ष 2021 के इस सबसे भयानक कालखंड में हमारे बीच से बहुत से लोग, रचनाकार, पत्रकार, लेखक, संस्कृतिकर्मी चले गए। कुछ रचते हुए चले गए, कुछ रचने की बहुत-सी योजनाओं को साथ लिए चले गए। सन् 2020 के कोरोना कालखंड में जहां मजदूरों का पलायन और सड़कों पर मजबूरन धकेल दिए गए श्रमिकों का दर्द रचनाओं में झलकता रहा तो इस बार लगातार और असमय अलविदा कह देने वालों से जुड़ी मानवीय पीड़ा और एक बेबसी दिखाई देती रही। रचनाकार या तो सदमे में रहा, लिखने-पढऩे से विरक्ति का शिकार रहा, या फिर रचा तो इतना रचा कि उसकी सारी संवेदनाएं अपने विभिन्न रूपों में सामने आती रहीं। कविताएं हों, कहानियां हों, डायरी के पन्ने हों, उपन्यास हों या संस्मरण– इस दौर में जो भी लिखा गया, ज्यादातर में इसकी झलक मिली। सत्ता के प्रति गुस्सा, संवेदनहीन सरकार और बेबस प्रशासन की अव्यवस्थाएं, अस्पतालों की भयावहता, ऑक्सीजन को लेकर त्राहि-त्राहि और सरकारों के दावे, वैक्सीनेशन की सरकारी प्रतियोगिताएं और सबसे ज्यादा उन परिवारों और व्यक्तियों की त्रासदी जो या तो अचानक चले गए, या अव्यवस्थाओं के शिकार होकर अलविदा कह गए।
कोरोना काल में डिजिटल हो चुके देश में वैसे तो अब ज्यादातर साहित्य फेसबुक या सोशल मीडिया पर रचा जा रहा है, लेकिन ये प्लेटफॉर्म बस आपके डायरी के पन्नों की तरह है। आखिरकार सभी की यह चाहत रहती है कि उनका यह रचनाकर्म पुस्तक के रूप में आए, बेशक इसके लिए पैसे खर्च करके प्रकाशकों की तलाश की जाए और अपने हिस्से का साहित्य रच दिया जाए। ज्यादातर लेखक और कवि चाहते हैं कि उनकी कोई न कोई किताब पुस्तक मेलों में जरूर आए ताकि कम से कम उनके रचनाकर्म को एक पहचान मिल सके। लखनऊ समेत तमाम शहरों में पुस्तक मेले लगने शुरू हो गए हैं और एक बार फिर जनवरी के दूसरे हफ्ते में दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले की तैयारी है। वर्ष 2021 में छपी हजारों पुस्तकों को एक बड़ा आयाम यहां मिलने जा रहा है। प्रकाशकों के पास पुस्तकों के जबरदस्त ऑर्डर हैं और तमाम पुस्तकें छपने के अंतिम चरण में हैं। प्रकाशकों के लिए यह वक्त बहुत मुफीद होता है और कोरोना काल ने तो उनका प्रिंट ऑर्डर काफी बढ़ा दिया है। तमाम प्रकाशक बताते हैं कि कोरोना काल से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा है, बल्कि पहले से कहीं ज्यादा किताबें इस बार छप रही हैं। कोरोना काल में घर बैठे लोगों ने खूब लिखा है। सबसे बड़ी बात कि अब किताबों को बेचने के लिए पुस्तक मेलों के अलावा अमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध होने से काफी सहूलियत हो गई है, इसलिए बड़ी संख्या में किताबें छप भी रही हैं और बिक भी रही हैं। किताबें छपवाने के लिए कई लेखक प्रकाशकों को मोटी धनराशि भी देने लगे हैं इसलिए आम तौर पर प्रकाशन के व्यवसाय पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। फिर भी कई प्रकाशक ऐसे भी हैं, जिनके लिए मुश्किलें बढ़ गईं और उन्हें अपने कर्मचारियों की छंटनी भी करनी पड़ी।
कोरोना काल में 2021 का विश्व पुस्तक मेला पहली बार डिजिटल माध्यम से जनवरी की जगह मार्च के पहले हफ्ते में चार दिनों के लिए 6 से 9 मार्च तक आयोजित हुआ। कोरोना की पहली लहर से धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य होती दिख रही थीं, लेकिन लोगों में डर था, ढेर सारी पाबंदियां थीं और अगले ही महीने कोरोना का सबसे खतरनाक दूसरा दौर आया जो तमाम लोगों पर कहर बनकर टूटा और एक बार फिर दहशत से भरी जि़ंदगी घरों में कैद हो गई। फेसबुक और सोशल मीडिया मौत की सूचनाओं के अलावा अस्पतालों की चरमराई व्यवस्थाओं से भरा रहा। इसी दौरान तमाम लेखकों ने फेसबुक पर रोजाना साहित्य रचना शुरू कर दिया। जाने-माने कवि मदन कश्यप कहते हैं कि 2020 के लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद रचे गए साहित्य में जहां विस्थापन का दर्द बहुत गहराई से सामने आया, वहीं 2021 में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में हुई मौतों और आदमी की असहायता और करुणा को साहित्य के विभिन्न रूपों में पेश किया गया। अभी यह सिलसिला जारी है और लंबे समय तक यह कविता, कहानी, उपन्यास और डायरी जैसे रूपों में सामने आता रहेगा। उनका कहना है कि जिस तरह विश्वयुद्ध के बाद पोस्ट वर्ल्डवार लिटरेचर का दौर था, वैसे ही पोस्ट कोरोना पोएट्री, फिक्शन और अन्य लेखन का एक रचनात्मक आंदोलन दिखाई दे रहा है।
मदन कश्यप की लॉकडाउन डायरी भी छपकर लगभग तैयार है। 2021 में श्रीप्रकाश शुक्ल की ‘महामारी और कविताÓ के अलावा अरुण होता के संपादन में ‘तिमिर में ज्योति जैसेÓ और कौशल किशोर के संपादन में ‘दर्द के काफिलेÓ जैसे कई महत्वपूर्ण संग्रह आए हैं, जिनमें कोरोना काल के दौरान रची गई कविताएं, आलेख और संस्मरण शामिल हैं।
कवि और संस्कृतिकर्मी कौशल किशोर बताते हैं कि इस महामारी के दौर में सभी संवेदनशील रचनाकारों ने सृजनात्मक हस्तक्षेप किया और इस दौरान रची गई कविताएं, कहानियां और संस्मरण अपने समय के दस्तावेज हैं। जब भी ऐसा कोई बड़ा संकट आया है, साहित्यकारों ने अपने दायित्व का निर्वाह किया है। इस बार भी ऐसा ही देखने में आ रहा है। इस बार तो कोरोना ही नहीं, दूसरी तरह की तमाम परिस्थितियां भी झेलनी पड़ रही हैं, जिसकी अभिव्यक्ति रचनाओं में हो रही है। इसी दौरान सेतु प्रकाशन ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें छापीं। आनंद स्वरूप वर्मा का ‘पत्रकारिता का अंधा युगÓ से लेकर रज़ा फाउंडेशन के साथ कई किताबों की शृंखला, ज्ञानरंजन की किताब ‘जैसे अमरूद की खुशबूÓ, जयप्रकाश चौकसे का ‘सिनेमा जलसाघरÓ, प्रचंड प्रवीर का ‘कल की बात – षडज़, ऋषभ और गांधारÓ, रणवीर सिंह की पारसी थिएटर पर एक महत्वपूर्ण किताब, संजीव की ‘पुरबी बयारÓ, आधुनिक हिन्दी रंगमंच और हबीब तनवीर के रंगकर्म पर अमितेश कुमार की किताब ‘वैकल्पिक विन्यासÓ, चंडी प्रसाद भट्ट की जीवनगाथा, फणीश्वरनाथ रेणु पर भारत यायावर की पुस्तकें और ऐसी तमाम पुस्तकें जो अलग अलग विषयों और संदर्भों में रची गईं।
सेतु प्रकाशन के अमिताभ राय का कहना है कि साहित्य सृजन एक निरंतर प्रक्रिया है और कोरोना काल के दौरान लेखकों, रचनाकारों और कई पत्रकारों ने इस प्रक्रिया को और तेज़ किया है। लॉकडाउन की त्रासदी, कोरोना का आतंक, जीवन शैली से लेकर सोच में आए बदलाव के साथ-साथ सत्ता की विद्रूपता के कई रंग इन रचनाओं में सामने आए हैं। उनके पास पुस्तक मेले को लेकर कम से कम सौ से ज्यादा किताबों को छापने का दबाव तत्काल है। इसके अलावा अशोक वाजपेयी रचनावली भी अंतिम चरण में है। मधुकर उपाध्याय की दस खंडों में छपी किताब– बापू और मदीह हाशमी की लिखी फैज़ अहमद फ़ैज़ की जीवनी – प्रेम और क्रांति के अलावा मंगलेश डबराल का कविता संग्रह भी सेतु प्रकाशन ने इसी साल छापा है।
वहीं अनुभव प्रकाशन के पराग कौशिक कहते हैं कि कोरोना काल में इस साल उनके कामकाज में और तेजी आई है। अब तक इस साल करीब डेढ़ सौ किताबें छाप चुके हैं। पुस्तक मेले में भी कुछ किताबें आने वाली हैं। उनका कहना है कि इस दौरान ई-बुक के क्षेत्र में भी काफी काम हुआ है और तमाम प्लेटफॉर्म्स पर उनकी ई-बुक्स उपलब्ध हैं।
इस दौरान प्रलेक प्रकाशन से सुभाष राय की किताब भी आई ‘अंधेरे के पारÓ जो कई कवियों और लेखकों पर आलेख और संस्मरणों का संकलन है। इसके अलावा कवि और पत्रकार शैलेन्द्र का छठा कविता संग्रह ‘सुने तो कोईÓ, सुरेश कांटक का कहानी संग्रह ‘अनावरणÓ, चंद्रेश्वर का कविता संग्रह ‘डुमराव नजर आएगाÓ, उषा राय का कहानी संग्रह ‘हवेलीÓ, सुभाष चंद्र कुशवाहा का ‘भील विद्रोहÓ, मीना सिंह का कविता संग्रह ‘काली कविताएं, दक्षिणी भूखंड और मैं, आशा राम जाग्रत की अवधी काव्य गाथा ‘पाही माफीÓ, प्रलेक प्रकाशन से छपा सलिल सुधाकर का उपन्यास ‘तपते कैनवास पर चलते हुएÓ, रणेन्द्र का ‘गूंगी रुलाई का कोरसÓ, संजीव पालीवाल का न्यूजरूम थ्रिलर ‘पिशाचÓ, सुरेन्द्र मनन का उपन्यास ‘हिल्लोलÓ, राजवंत राज का ‘ट्रंपकार्डÓ, सीमा आजाद का ‘औरत का सफर – जेल से जेल तकÓ, रामकुमार कृषक की कोरोना केन्द्रित कविताओं का संकलन ‘साधो, कोरोना जनहंताÓ, उर्मिलेश की किताब ‘गाजीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेलÓ, शोभा सिंह का कविता संग्रह ‘यह मिट्टी दस्तावेज़ हमाराÓ जैसी कई अहम किताबें 2021 में आईं। एक महत्वपूर्ण किताब इस बीच ममता कालिया की भी आई ‘जीते जी इलाहाबादÓ। इसमें उनके भीतर रचे-बसे इलाहाबाद की वो यादें हैं जो उनके स्नायुतंत्र में दौड़ती रहती हैं। इस बीच स्त्री विमर्श और उसकी आलोचना पक्ष पर केन्द्रित पुस्तकें भी आई हैं। इसी कड़ी में राजकमल प्रकाशन ने सुजाता की एक अच्छी किताब छापी है ‘आलोचना का स्त्री पक्षÓ।
प्रभात प्रकाशन की ओर से सच्चिदानंद जोशी की दो किताबें आईं ‘जिंदगी का बोनसÓ और ‘पुत्रिकामेष्टिÓ। आनंद स्वरूप वर्मा ने नेपाली साहित्य पर केन्द्रित समकालीन तीसरी दुनिया का एक संग्रहणीय अंक निकाला। फेहरिस्त बहुत लंबी है, कितनों का जि़क्र करें। प्रभात प्रकाशन ने भी इस बीच सौ से ज्यादा पुस्तकें छापीं और साल के जाते-जाते आशुतोष चतुर्वेदी के संपादन में पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी पर एक खास किताब भी छापी, जिसका लोकार्पण राज्यसभा के सभापति हरिवंश ने किया। प्रभात कुमार कहते हैं कि कोरोना काल में लेखकों की संख्या बहुत बढ़ गई है और ई-बुक्स का चलन काफी बढ़ा है। किताबें छप तो रही हैं लेकिन बिक कम रही हैं।
वहीं अनुभव प्रकाशन के पराग कौशिक कहते हैं कि अब तक इस साल करीब डेढ़ सौ किताबें वो छाप चुके हैं। उनका कहना है कि इस दौरान ई-बुक के क्षेत्र में भी काफी काम हुआ है और तमाम प्लेटफॉर्म्स पर उनके ई-बुक्स उपलब्ध हैं। इस दौरान अनुभव प्रकाशन ने सूरजपाल चौहान, डॉ. प्रदीप जैन, कैलाश दहिया, नरेन्द्र निगम, मृदुला भटनागर, ईशकुमार गंगानी, डॉ. धनंजय सिंह जैसे 30 से ज्यादा लेखकों की किताबें छापीं। दरअसल, इस बीच रचनात्मकता के कई आयाम दिखे। कोरोना काल में लिखी गई रचनाओं के ज्यादातर संग्रह आए, कई पत्रिकाओं ने अपने विशेषांक निकाले। खास बात यह भी रही कि सबने सिर्फ महामारी की विभीषिका की ही बात नहीं की, कई ऐसे उपन्यास, कहानी संग्रह, संस्मरण और कविताएं रची गईं, जिनका सरोकार समाज के तमाम आयामों, जीवन की सच्चाइयों, राजनीतिक व्यवस्था और जातिगत, धार्मिक उन्माद जैसे विषयों से भी जुड़ा रहा। जाहिर है देश में मौजूदा सत्ता और सोच पर केन्द्रित किताबों की भी लंबी फेहरिस्त रही और तमाम लेखकों ने अपनी आस्था का रचनात्मक इजहार भी किया। धार्मिक और पौराणिक पुस्तकों के अलावा, देशप्रेम और शौर्य गाथाओं के भी किस्से खूब छापे गए और यह सिलसिला जारी है।
साल के अंत में चंडीगढ़ में भारत-पाक युद्ध की स्वर्ण जयंती पर आधारित पांचवां मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल-2021 देश की सुरक्षा चुनौतियों व गौरवशाली सैन्य उपलब्धियों पर गंभीर विमर्श नई पीढ़ी तक पहुंचाने में सफल रहा।
डिजिटल मंचों पर साहित्यिक आयोजन
कोरोना काल के पहले कालखंड ने साहित्यकारों और रचनाकारों को फेसबुक लाइव से लेकर ऑनलाइन तमाम ऐसे मंच दिए, जिसमें साहित्य की तमाम धाराओं पर समय-समय पर चर्चाएं होती रहीं। 2021 में अब यह परंपरा थोड़े और वृहद और स्वीकार्य रूप में सामने आई। ज्यादातर प्रकाशन संस्थानों ने अपनी नई किताबों का ऑनलाइन विमोचन करवाए, उसपर चर्चाएं करवाईं और तमाम साहित्यिक मंचों पर कविताओं, कहानियों के पाठ हुए, साहित्यिक चर्चाएं हुईं। विश्व पुस्तक मेला और दिल्ली पुस्तक मेला तो ऑनलाइन हुआ ही, यहां के साहित्यिक सेशन भी डिजिटल मंचों पर हुए।
प्रतिरोध का साहित्य
सत्ता के जनविरोधी चरित्र को केन्द्र में रखकर अशोक वाजपेयी के नेतृत्व में कई लेखकों और संस्कृतिकर्मियों ने प्रतिरोध के साहित्य सृजन का अभियान शुरू किया। इस दौरान अशोक वाजपेयी ने प्रतिरोध पूर्वज के नाम से तमाम कालजयी रचनाकारों की कविताओं का संग्रह छापा। स्वप्निल श्रीवास्तव के संपादन में ताकि स्पर्श बचा रहे और विमल कुमार की मृत्यु की परिभाषा बदल दो, किताबों में स्त्री जैसी कई किताबें भी इसी कड़ी में सामने आईं और सौ से ज्यादा रचनाकारों ने एक प्रस्ताव पास करके पूरे देश के रचनाकारों से अपील की कि वो अपनी सीमा में प्रतिरोध का साहित्य रचते रहें और जनपक्षधर साहित्य का सृजन करते रहें।
जिनको हमने खो दिया
कोरोना काल के दूसरे सबसे भयानक काल ने बहुत से साहित्यकारों, लेखकों, संस्कृतिकर्मियों को हमसे छीन लिया। वर्ष 2021 में मन्नू भंडारी, कुंअर बेचैन, नरेन्द्र कोहली, विनोद दुआ, रमेश उपाध्याय, ईश मधु तलवार, ओम भारती, राजकुमार केसवानी को हमने खो दिया।?

कांग्रेस का आजादी व देश के विकास में योगदान अहम!

कांग्रेस स्थापना दिवस पर विशेष

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट –
कांग्रेस का स्वर्णिम इतिहास देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है। इसका गठन सन 1885 में हुआ, जिसका श्रेय एलन ऑक्टेवियन ह्यूम को जाता है। एलेन ओक्टेवियन ह्यूम का जन्म सन1829 को इंग्लैंड में हुआ था। वह अंग्रजी शासन की सबसे प्रतिष्ठित ‘बंगाल सिविल सेवा’ में पास होकर सन 1849 में ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी बने।सन 1857 की गदर के समय वह इटावा के कलक्टर थे। लेकिन ए ओ ह्यूम ने खुद ब्रटिश सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाई और सन1882 में पद से अवकाश ले लिया और कांग्रेस यूनियन का गठन किया। उन्हीं की अगुआई में मुंबई में पार्टी की पहली बैठक हुई थी। शुरुआती वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिल कर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की और इसने प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया। लेकिन सन1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी का रुख़ कड़ा हुआ और अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरु हए।इसी बीच महात्मा गाँधी भारत लौटे और उन्होंने ख़िलाफ़त आंदोलन शुरु किया। शुरु में बापू ही कांग्रेस के मुख्य विचारक रहे। इसको लेकर कांग्रेस में अंदरुनी मतभेद गहराए। चित्तरंजन दास, एनी बेसेंट, मोतीलाल नेहरू जैसे नेताओं ने अलग स्वराज पार्टी बना ली।साल 1929 में ऐतिहासिक लाहौर सम्मेलन में जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया। पहले विश्व युद्ध के बाद पार्टी में
महात्मा गाँधी की भूमिका बढ़ी, हालाँकि वो आधिकारिक तौर पर इसके अध्यक्ष नहीं बने, लेकिन कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस से निष्कासित करने में उनकी मुख्य भूमिका थी।स्वतंत्र भारत के इतिहास में कांग्रेस सबसे मज़बूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। महात्मा गाँधी की हत्या और सरदार पटेल के निधन के बाद जवाहरलाल नेहरु के करिश्माई नेतृत्व में पार्टी ने पहले संसदीय चुनावों में शानदार सफलता पाई और ये सिलसिला सन 1967 तक लगातार चलता रहा। पहले प्रधानमंत्री के तौर पर जवाहर लाल नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता, आर्थिक समाजवाद और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति को सरकार का मुख्य आधार बनाया जो कांग्रेस पार्टी की पहचान बनी।नेहरू की अगुआई में सन1952, सन1957 और सन1962 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अकेले दम पर बहुमत हासिल करने में सफलता पाई। सन1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री के हाथों में कमान सौंप गई लेकिन उनकी भी सन 1966 में ताशकंद में रहस्यमय हालात में मौत हो गई। इसके बाद पार्टी की मुख्य कतार के नेताओं में इस बात को लेकर ज़ोरदार बहस हुई कि अध्यक्ष पद किसे सौंपा जाए। आखऱिकार पंडित नेहरु की बेटी इंदिरा गांधी के नाम पर सहमति बनी।देश की आजादी के संघर्ष से जुड़े सबसे मशहूर और जाने-माने लोग इसी कांग्रेस का हिस्सा थे।गांधी-नेहरू से लेकर सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद तक आजादी की लड़ाई में आम हिंदुस्तानियों की नुमाइंदगी करने वाली पार्टी ने देश को एकता के सूत्र में बांधने की कोशिश की थी।एलेन ओक्टेवियन ह्यूम सन1857 के गदर के वक्त इटावा के कलेक्टर थे। ह्यूम ने खुद ब्रटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और 1882 में पद से अवकाश लेकर कांग्रेस यूनियन का गठन किया। उन्हीं की अगुआई में बॉम्बे में पार्टी की पहली बैठक हुई थी. व्योमेश चंद्र बनर्जी इसके पहले अध्यक्ष बने। शुरुआती वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की और इसने प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया लेकिन 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी का रुख कड़ा हुआ और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हुए।दादाभाई नौरोजी और बदरुद्दीन तैयबजी जैसे नेता कांग्रेस के साथ आ गए थे।आजादी के बाद सन1952 में देश के पहले चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई। सन1977 तक देश पर केवल कांग्रेस का शासन था।लेकिन सन 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता की कुर्सी छीन ली थी। हालांकि तीन साल के अंदर ही सन1980 में कांग्रेस वापस गद्दी पर काबिज हो गई।सन 1989 में कांग्रेस को फिर हार का सामना करना पड़ा।दादा भाई नौरोजी 1886 और 1893 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन1887 में बदरुद्दीन तैयबजी तो सन1888 में जॉर्ज यूल कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे।सन1889 से सन1899 के बीच विलियम वेडरबर्न, फिरोज़शाह मेहता, आनंदचार्लू, अल्फ्रेड वेब, राष्ट्रगुरु सुरेंद्रनाथ बनर्जी, आगा खान के अनुयायी रहमतुल्लाह सयानी, स्वराज का विचार देने वाले वकील सी शंकरन नायर, बैरिस्टर आनंदमोहन बोस और सिविल अधिकारी रोमेशचंद्र दत्त कांग्रेस अध्यक्ष रहे।इसके बाद हिंदू समाज सुधारक सर एनजी चंदावरकर, कांग्रेस के संस्थापकों में शुमार दिनशॉ एडुलजी वाचा, बैरिस्टर लालमोहन घोष, सिविल अधिकारी एचजेएस कॉटन, गरम दल व नरम दल में पार्टी के टूटने के वक्त गोपाल कृष्ण गोखले, वकील रासबिहारी घोष, शिक्षाविद मदनमोहन मालवीय, बीएन दार, सुधारक राव बहादुर रघुनाथ नरसिम्हा मुधोलकर, नवाब सैयद मोहम्मद बहादुर, भूपेंद्र नाथ बोस, ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में पहले भारतीय सदस्य बने एसपी सिन्हा, एसी मजूमदार, पहली महिला कांग्रेस अध्यक्ष एनी बेसेंट, सैयद हसन इमाम और नेहरू परिवार के मोतीलाल नेहरू सन 1900 से सन 1919 के बीच कांग्रेस अध्यक्ष रहे।सन 1915 में अफ्रीका से लौटकर भारत आए मोहनदास करमचंद गांधी का प्रभाव कांग्रेस की विचारधारा व आंदोलन तय करने में सन1920 के आसपास से साफ दिखना शुरू हो गया था।जो गांधी के जीवन के बाद तक भी बना हुआ है। सन1920 से भारत की आज़ादी अर्थात सन 1947 के बीच के युग में कांग्रेस अध्यक्ष पंजाब केसरी लाला लाजपत राय थे, जिन्होंने सन1920 के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की। स्वराज संविधान बनाने में अग्रणी रहे सी विजयराघवचारियार, जामिया मिल्लिया के संस्थापक हकीम अजमल खान, देशबंधु चितरंजन दास, मोहम्मद अली जौहर, शिक्षाविद मौलाना अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन1924 में बेलगाम अधिवेशन की अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की थी और यहां से कांग्रेस के ऐतिहासिक स्वदेशी, सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलनों की नींव पड़ी थी। सरोजिनी नायडू, मद्रास के एडवोकेट जनरल रहे एस श्रीनिवास अयंगर, मुख्तार अहमद अंसारी कांग्रेस अध्यक्ष रहे। गांधी के अनुयायी जवाहरलाल नेहरू सन 1929 में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष बने थे सरदार वल्लभभाई पटेल, नेली सेनगुप्ता, राजेंद्र प्रसाद, नेताजी सुभाषचंद्र बोस और गांधी के अनुयायी जेबी कृपलानी भारत को आज़ादी मिलने तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे।सन1948 और सन 1949 में पट्टाभि सीतारमैया कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और यही वह साल था जब गांधी की हत्या हो चुकी थी. महात्मा गांधी का प्रभाव आज तक भी भारतीय राजनीति पर है, लेकिन उनकी हत्या के बाद कांग्रेस का नेहरू युग शुरू हुआ। पहले प्रधानमंत्री बन चुके पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय में जिस साल संविधान लागू हुआ ।सन 1950 में कांग्रेस के अध्यक्ष साहित्यकार पुरुषोत्तमदास टंडन थे।सन1951 से सन 1954 तक खुद नेहरू अध्यक्ष रहे। पंडित नेहरू युग में 1955 से सन19 59 तक यूएन धेबार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन 1959 में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी बनी थी।सन 1960 से सन 1963 तक नीलम संजीव रेड्डी, नेहरू के निधन के सन 1964 से सन19 67 तक कामराज कांग्रेस अध्यक्ष रहे। हालांकि नेहरू का निधन 1964 में हो चुका था, लेकिन कांग्रेस का अगला इंदिरा गांधी युग लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद शुरू होता है।सन 1966 में पहली बार देश की पहली और इकलौती महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बनीं। कामराज के साथ उनका सत्ता संघर्ष काफी चर्चित रहा। इसके बाद ही इंदिरा की लीडरशिप और उनके ‘आयरन लेडी’ होने के ख्याति मिलने लगी। इंदिरा गांधी के प्रभाव के समय में सन 1968से सन 1969 तक निजालिंगप्पा, 1970से सन 1971 तक बाबू जगजीवन राम ,1972से सन 1874 तक शंकर दयाल शर्मा और सन 1975 से सन 1977 तक देवकांत बरुआ कांग्रेस अध्यक्ष रहे।
सन1977 से सन1978 के बीच केबी रेड्डी ने कांग्रेस को संभाला लेकिन इमरजेंसी के बाद कांग्रेस टूटी तो सन 1978 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की अध्यक्ष वे स्वयं बनीं।कुछ समय को छोड़कर 1984 में अपनी हत्या के पहले तक इंदिरा ही अध्यक्ष रहीं। कांग्रेस ने करीब 15 साल का इंदिरा गांधी युग देखा और इसके बाद राजीव गांधी युग शुरू हुआ, कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री भी बने और सन1985 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी बन गए थे। जब प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी की हत्या हुई तब फिर कांग्रेस के सामने अध्यक्ष को लेकर संकट खड़ा हो गया था,क्योंकि शुरुआत में सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने में रुचि नहीं दिखाई थी।इसी कारण सन1992 से सन1996 तक पीवी नरसिम्हाराव ने कांग्रेस का नेतृत्व किया ।सन 1996 से सन 19 98 तक गांधी परिवार के वफादार सीताराम केसरी अध्यक्ष रहे।सोनिया गांधी का सक्रिय राजनीति में पदार्पण हुआ और सन1998 से सन 2017 तक करीब 20 वर्षो तक सोनिया ही कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं।राहुल गांधी को सन 2017 में पार्टी की कमान सौंपी गई, लेकिन सन 2019 के आम चुनावों में बड़ी हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोडऩे की पेशकश की और कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर के नेता को होना चाहिए।लेकिन इसपर सहमति नही हुई। तबसे कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी ही ने कांग्रेस का नेतृत्व कर रही है। सन1991,सन 2004, सन2009 में कांग्रेस ने दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर केंद्र की सत्ता हासिल की।आजादी के बाद कांग्रेस कई बार विभाजित हुई। लगभग 50 नई पार्टियां इस संगठन से निकल कर बनीं। इनमें से कई निष्क्रिय हो गए तो कईयों का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और जनता पार्टी में विलय हो गया। कांग्रेस का सबसे बड़ा विभाजन सन1967 में हुआ। जब इंदिरा गांधी ने अपनी अलग पार्टी बनाई जिसका नाम कांग्रेस (आर) रखा। सन 1971 के चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने इसका नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कर दिया।राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का काम देखना एआईसीसी की जिम्मेदारी होती है. राष्ट्रीय अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के अलावा पार्टी के महासचिव, खजांची, पार्टी की अनुशासन समिती के सदस्य और राज्यों के प्रभारी इसके सदस्य होते हैं.हर राज्य में कांग्रेस की ईकाई है जिसका काम स्थानीय और राज्य स्तर पर पार्टी के कामकाज को देखना होता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

मैट्रिक तथा इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षा में जिला स्तरीय पदों के लिए जनजातीय भाषाओं सहित क्षेत्रीय भाषाओं की सूची जारी

रांची, झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा मैट्रिक तथा इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षाओं के आयोजन हेतु कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग के द्वारा “झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (मैट्रिक/ 10वीं) संचालन (संशोधन) नियमावली, 2021”, “झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (इंटरमीडिएट/ 10+2 स्तर) संचालन( संशोधन) नियमावली, 2021 एवं झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (इंटरमीडिएट/ 10+2 कंप्यूटर ज्ञान एवं कंप्यूटर में हिंदी टंकण अहर्त्ता धारा पद हेतु) संचालन (संशोधन) नियमावली 2021 का गठन किया गया था।

उक्त नियमावलियों में पत्र-2-चिन्हित क्षेत्रीय/जानजातीय भाषा में जिला स्तरीय पदों के लिए जिलावार चिन्हित क्षेत्रीय/ जनजातीय भाषाओं की सूची कार्मिक, प्रशासनिक सुधार राजभाषा विभाग द्वारा अलग से संसूचित किया जाना था। जिसके आलोक में सम्यक विषय विचारोंपरांत झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा मैट्रिक तथा इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षा में जिला स्तरीय पदों के लिए क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं को जिलावार चिन्हित किया गया है। इसके तहत जनजातीय भाषा में संथाली, कुडुख, खड़िया, मुंडारी, हो, असुर, बिरजिया, बिरहोरी, भूमिज, माल्तो एवं क्षेत्रीय भाषा में नागपुरी, पंचपरगनिया, बंगला, अंगिका, कुरमाली, मगही, उड़िया, खोरठा, भोजपुरी भाषा शामिल हैं।

गरिमा परियोजना अंतर्गत डायन कुप्रथा मुक्त पंचायत के लिए होगा काम – डॉ मनीष रंजन

*डायन कुप्रथा पीड़ितों को सुरक्षा व काउन्सेलिंग की जाएगी व्यवस्था

*जेंडर मंच बनाने का कार्य शुरू

*महिला सशक्तिकरण एवं शिक्षा के अलख से

खत्म होगा डायन कुप्रथा – डॉ सुनीता रॉय

रांची, 22.12.2021 – ,झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी के द्वारा आयोजित डायन कुप्रथा मुक्त झारखण्ड के निर्माण के लिए आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन कई तकनीकी सेशन का आयोजन हुआ। विभिन्न विभागों के समन्वय, शिक्षा एवं जागरुकता की जरुरत एवं साझा रणनीति को केन्द्र में रखकर विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी। कार्यशाला के दूसरे दिन मुख्य अतिथि के रुप में शिक्षाविद् डॉ सुनीता रॉय ने कार्यशाला की अध्यक्षता की।

गरिमा परियोजना अंतर्गत डायन कुप्रथा मुक्त पंचायत के लिए होगा काम- डॉ मनीष रंजन

ग्रामीण विकास सचिव, डॉ मनीष रंजन ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि गरिमा परियोजना तो एक शुरूआत है, हमारा लक्ष्य झारखण्ड को डायन कुप्रथा मुक्त बनाना है। गरिमा परियोजना के तहत वल्नेबरिलिटी मैंपिंग एवं ग्राम संगठन के प्रशिक्षण के जरिए डायन कुप्रथा उन्मूलन को गति दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि जल्द ही जेंडर मंच बनाया जाएगा, जिससे डायन कुप्रथा जैसे अंधविश्वास एवं भेदभाव को दूर कर जागरुक करने का काम किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि सखी मंडल की बहनों द्वारा नुक्कड़ नाटक के जरिए भी प्रभावित गांवों में जागरुकता अभियान चलाया जाएगा एवं डायन कुप्रथा पीड़ितों को सुरक्षा व काउन्सेलिंग की व्यवस्था भी गरिमा परियोजना के जरिए की जाएगी। उन्होने कहा कि डायन कुप्रथा की पीडित महिलाओं को पुनर्वास पर भी काम किया जाएगा और सशक्त आजीविका से जोड़ा जाएगा।

श्री रंजन ने कहा कि इस कार्यशाला मे मिले सुझावों पर रणनीति तैयार कर डायन कुप्रथा मुक्त पंचायत का निर्माण किया जाएगा।

महिला सशक्तिकरण एवं शिक्षा के अलख से खत्म होगा डायन कुप्रथा – डॉ सुनीता रॉय

शिक्षाविद् व यूजीसी वूमेन्स सेंटर की प्रमुख डॉ सुनीता रॉय ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि समाज को शिक्षित करने से ही डायन कुप्रथा का उन्मूलन संभव है। उन्होंने अपील की कि डायन प्रथा की पीडित महिलाओं को प्रशिक्षित करके ही सशक्त आजीविका से जोड़ा जा सकता है। कल के सुंदर विकसित समाज के निर्माण के लिए डायन कुप्रथा का उन्मुलन जरुरी है। ग्रामीण इलाके से ओझा गुणी प्रथा को खत्म करने के लिए शिक्षा के अलख जगाने की जरुरत है। इस हेतु ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को जागरुक करना अत्यंत आवश्यक है।

उन्होंने समाज में लैंगिंक समानता एवं महिला सशक्तिकरण के लिए कार्य करने की जरुरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि किन्नरों को भी विभिन्न जागरुकता अभियान में जोड़ने की जरुरत है ताकि उनके आजीविका की भी व्यवस्था हो।

कार्यशाला के तकनीकी सेशन में झालसा के संतोष कुमार ने बताया कि झालसा राज्य में डायन कुप्रथा पीड़ितों को कानूनी मदद करने के लिए लगातार प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि हमें वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने की जरुरत है, जल्द ही झालसा के द्वारा स्कूलों में लीगल साक्षरता क्लब का गठन किया जा रहा है जो डायन कुप्रथा उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ के वाइस चांसेलर डॉ केशव राव ने बच्चों को डायन कुप्रथा के बारे में जागरुक करने की जरुरत पर बल दिया। उन्होने कहा कि इस कुप्रथा के उन्मूलन के लिए सबको मिलकर साझा प्रयास करने की जरुरत है। सेंटर फॉर लीगल एड प्रोग्राम के तहत डायन कुप्रथा के पीडितों को लगातार मदद उपलब्ध कराई जाती है।

सीआईपी के निदेशक डॉ बासुदेब प्रसाद ने कहा कि गरिमा परियोजना के अंतर्गत सीआईपी मानसिक स्वास्थय एवं मनोचिकित्सिय सहयोग के लिए कार्य करेगा। मानसिक स्वास्थ्य जागरुकता के लिए भी जेएसएलपीएस के साथ मिलकर कार्य करने की जरुरत है। पीड़ित महिलाओं को एक नया जीवन देने में मानसिक स्वास्थ्य की पहल की जाएगी। उन्होने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य काउन्सेलिंग के लिए साआईपी के 15 हेल्पलाईन नंबर   दिन-रात कार्य़ कर रहे है।

राष्ट्रीय स्तर की वक्ता गोविंद केलकर ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए डायन कुप्रथा के अंतर्राष्ट्रीय परिपेक्ष्य को सामने रखा। अफ्रिका, यूरोप घाना समेत कई देशो का जिक्र करते हुए डॉ केलकर ने डायन कुप्रथा के कारण, निदान एवं उन्मूलन पर अपनी बातें रखी।

कार्यशाला के समापन समारोह में सीईओ जेएसएलपीएस श्रीमती नैन्सी सहाय ने कहा कि यह कार्यशाला गरिमा परियोजना के क्रियान्वयन एवं राज्य से डायन कुप्रथा के उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सखी मंडल की बहनों के जरिए गांव –गांव तक जागरुकता का कार्य किया जाएगा एवं सभी स्टेकहोल्डर्स की साझा रणनीति पर कार्य करने का प्रयास रहेगा।

इस अवसर पर तकनीकी चर्चा को डॉ राकेश रंजन, रेशमा सिंह, मनीषा किरण ने भी संबोधित किया।

झरखण्ड फोटो जर्नलिस्ट एसोसिएशन के  सदस्यों को पाकी विधायक डॉ शशिभूषण मेहता ने शॉल ओढ़ाकर समानित किया

रांची , झरखण्ड फोटो जर्नलिस्ट एसोसिएशन के तत्वावधान में हुए कार्यक्रम में  एसोसिएशन के  सदस्यों को पाकी विधायक डॉ शशिभूषण मेहता ने शॉल ओढ़ाकर समानित किया. उन्होंने अपने सम्बोधन मे कहा कि हमारे विद्यालय में नामांकन लेने वाले  झरखण्ड फोटो जर्नलिस्ट एसोसिएशन के बच्चों को एल केजी से टेन प्लस टू तक ट्युशन फीस 50%माफ कर दिया जायेगा.

उक्त जानकारी झरखण्ड फोटो जर्नलिस्ट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष प्रोमोद कुमार कुशवाहा ने दी

जीत गये किसान, क्या भाजपा भी जीतेगी

राजकुमार सिंह –
साल भर पहले याचक की मुद्रा में देश की राजधानी दिल्ली की दहलीज पर पहुंच कर आंदोलनकारी बन गये किसान कल 11 दिसंबर को विजय दिवस मना कर घर वापसी करेंगे। इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि केंद्र सरकार के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के विरुद्ध पिछले साल 26 नवंबर को जब किसानों ने दिल्ली में प्रवेश न मिलने पर दहलीज पर ही अनंतकाल तक धरने पर बैठ जाने का ऐलान किया था, तब खुद उनके अलावा किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि कठोर निर्णय लेने और उन पर अडिग रहने के लिए चर्चित, प्रचंड बहुमत से निर्वाचित नरेंद्र मोदी सरकार कानून वापसी की उनकी मांग कभी मानेगी। सरकार ने आंदोलनकारी किसानों के विभिन्न संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा प्रतिनिधियों से एक नहीं, 12 दौर की बातचीत की, लेकिन हर बार वार्ता तीन कृषि कानूनों की वापसी की शर्त पर ही टूटी। सरकार ने कृषि कानून वापसी से दो टूक इनकार कर दिया था और संयुक्त किसान मोर्चा कानून वापसी से कम पर तैयार ही नहीं था। दोनों पक्षों की हठधर्मिता से उपजी संवादहीनता के बीच ही 26 जनवरी का दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम भी सामने आया तो लगा कि किसान आंदोलन अपना नैतिक दबाव खो रहा है, जिससे सरकार को सख्ती का अवसर मिल जायेगा, पर वही नाजुक मोड़ आंदोलन को नयी धार दे गया।
26 जनवरी के घटनाक्रम के बाद बढ़ते पुलिस दबाव के चलते सूने होते धरनास्थलों पर, गाजीपुर बॉर्डर पर निकले किसान नेता राकेश टिकैत के आंसुओं से, फिर से जुटे किसानों के जज्बे को फिर न मौसम की मार हरा पायी और न ही सरकार। किसानों का यह अहसास और भी गहरा हो गया कि इस बार उनके आंदोलन की हार दरअसल सम्मानजनक जीवन के लिए संघर्ष की हार होगी, जिसका खमियाजा आने वाली पीढिय़ों को भी भुगतना पड़ेगा। इसी अहसास ने किसानों को सरकार की उपेक्षा के साथ ही कोरोना के कहर और मौसम की मार के बीच भी दिल्ली की दहलीज पर डटे रहने का मनोबल दिया। संघर्ष आसान नहीं था, बकौल संयुक्त किसान मोर्चा 700 किसानों की आंदोलनकाल में विभिन्न कारणों से मौत इसका प्रमाण है। इसलिए मानना होगा कि विश्व के सबसे लंबे आंदोलनों में शुमार इस आंदोलन की 380 दिन बाद अपनी शर्तों पर समाप्ति दरअसल एकजुटता और संघर्ष क्षमता के साथ किसानों के विश्वास की जीत भी है। भोलेभाले किसानों ने अपने शांतिपूर्ण, मगर सुनियोजित आंदोलन के जरिये एक मजबूत सरकार से जिस तरह अपनी मांगें मनवायी हैं, उसके विजय दिवस का संदेश बहुत दूर तक जायेगा। लोक के दबाव में अगर तंत्र को झुकना पड़े तो उससे अंतत: लोकतंत्र मजबूत ही होता है, पर मांगों को जस-का-तस मानने में भी पूरा साल गुजार देने वाली सरकार को इसका सकारात्मक फल नहीं मिल पाता, क्योंकि तब तक अविश्वास की खाई बहुत चौड़ी हो चुकी होती है। जनवरी में वार्ताओं के दौरान ही मांगें स्वीकार कर लेने पर जहां सरकार की संवेदनशीलता की चर्चा होती, वहीं नौ दिसंबर को सभी मांगें लिखित रूप में मानने को भी चुनावी डर से उपजी मजबूरी माना जा रहा है।
सच तो यह है कि नयी पीढ़ी तक इस बात पर विश्वास से ज्यादा आश्चर्य करने लगी थी कि बीसवीं शताब्दी में महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसक आंदोलन के जरिये उस अंग्रेज सत्ता को भारत से खदेड़ कर आजादी हासिल कर ली गयी थी, जिसके साम्राज्य में सूरज ही नहीं डूबता था। आम आदमी के मन में संघर्ष के टूटते विश्वास को किसान आंदोलन की सफलता मजबूत करेगी कि खासकर लोकतांत्रिक व्यवस्था में, सरकार कितनी भी मजबूत क्यों न हो, जनता की जायज मांगों के लिए संघर्ष की अनदेखी अनिश्िचतकाल तक नहीं कर सकती। यह अलग बात है कि इक्कीसवीं शताब्दी आते-आते बदली जीवन और कार्यशैली में कामकाजी आम आदमी के लिए संघर्ष का रास्ता सहज नहीं रह गया है, और इसी मजबूरी का लाभ व्यवस्था उठाती है। किसानों ने विवादास्पद तीन कृषि कानूनों को अपने जीवन-मरण का प्रश्न मान कर संघर्ष किया तो परिणाम सामने है कि कानून वापसी पर बातचीत से ही इनकार करने वाली सरकार के प्रधानमंत्री ने क्षमा-याचना करते हुए राष्ट्र के नाम संदेश में तीनों कानून वापस लेने की एकतरफा घोषणा की। हर किसी के मन में सवाल होगा कि अचानक सरकार का हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? इस स्वाभाविक प्रश्न का उत्तर भी लोकतंत्र की शक्ति में निहित है। कोई सरकार कितने ही प्रचंड बहुमत से क्यों न चुनी गयी हो, समय-समय पर सत्तारूढ़ दल को जनता के बीच आना ही पड़ता है, और तब एक-एक वोट कीमती होता है।
सरकार के हृदय परिवर्तन का रहस्य पांच राज्यों के आसन्न विधानसभा चुनावों में निहित है। पूछा जा सकता है कि आखिर किसान आंदोलन जारी रहते हुए ही बिहार और पश्चिम बंगाल में भी तो विधानसभा चुनाव हुए। बेशक हुए और उनमें से बिहार में भाजपानीत राजग सत्ता बरकरार रखने में सफल रहा, जबकि पश्चिम बंगाल में भी भाजपा की सीटें कई गुणा बढ़ीं, पर मत भूलिए कि कृषि की बदहाली राष्ट्रव्यापी होने के बावजूद किसान आंदोलन का असर पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पूर्वी राजस्थान यानी कि दिल्ली के निकटवर्ती क्षेत्रों में ज्यादा रहा है। इसलिए अब जबकि अगले साल के शुरू में ही पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भी चुनाव होने हैं, किसान आंदोलन के राजनीतिक प्रभाव और परिणाम का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। माना कि पंजाब में भाजपा का बहुत कुछ दांव पर नहीं है, पर हाल तक कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरेंद्र सिंह और शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) से गठबंधन कर वह इस सीमावर्ती राज्य में अपनी गोटियां तो बिछा ही रही है। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है, पर चंद महीने में तीन मुख्यमंत्री बदलने के बावजूद बरकरार रहने के आसार कम ही हैं। सबसे अहम है उत्तर प्रदेश, जो लोकसभा में सर्वाधिक सांसद चुन कर भेजता है। लंबे वनवास के बाद भाजपा वहां सत्ता में लौटी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके विश्वस्त केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बखूबी जानते हैं कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही निकलता है। नहीं भुलाया जा सकता कि वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अकेलेदम बहुमत दिलवाने में उत्तर प्रदेश की ही निर्णायक भूमिका रही।
माना कि अगले लोकसभा चुनाव 2024 में होंगे, लेकिन अगर 2022 में लखनऊ की सत्ता ही भाजपा के हाथ से फिसल गयी तो दिल्ली किसने देखी है! चुनाव मुद्दों-नारों-जुमलों के साथ-साथ हवा पर भी लड़े जाते हैं, और हवा बनने में देर लगती है, बिगडऩे में नहीं। फिर लगभग 100 विधानसभा सीटों वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ जिस तरह विजयी समीकरण बनाने में जुटे हैं, उसके खतरे का आकलन चुनाव प्रबंधन में माहिर भाजपा-संघ नेतृत्व से बेहतर कौन कर सकता है? कांग्रेस-बसपा के अलग रहने के बावजूद अखिलेश कई अन्य छोटे दलों से भी गठबंधन कर भाजपा की चुनावी घेराबंदी कर रहे हैं, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव परिणाम के मद्देनजर निर्णायक भूमिका पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ही मानी जा रही है। उत्तर प्रदेश हो या उत्तराखंड अथवा पंजाब, सरकार द्वारा मांगें मान लिये जाने पर आंदोलन समाप्त कर किसान सब कुछ भुला कर भाजपा समर्थक हो जायेंगे—ऐसी खुशफहमी शायद भाजपा-संघ रणनीतिकारों को भी नहीं होगी, पर हां साल भर से किसान आंदोलन पर सवार हो कर अपनी राजनीतिक-चुनावी रणनीतियां बनाने वाले विपक्षी दलों से बड़ा भावनात्मक मुद्दा चुनाव से ऐन पहले निश्चय ही छिन गया है। पर सिर्फ चुनावी मुद्दा छीनने के लिए, साल भर चले आंदोलन से सरकार की साख पर लगे सवालिया निशान को और गहरा करते हुए समर्पण की मुद्रा में सभी मांगों की लिखित स्वीकारोक्ति की यह राजनीतिक शैली मोदी-शाह की चार कदम आगे रहने की रणनीतिक छवि से फिलहाल तो उलट ही नजर आती है, बाकी तो जनता जनार्दन है।

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