भारत की जवाबी परमाणु नीति के मायने

जी. पार्थसारथी –
भारत की परमाणु प्रति-चेतावनी उपायों की एक खासियत इस पर गोपनीयता बरतने की रही है। यह आवश्यक भी है क्योंकि भारत के परमाणु अस्त्र और मिसाइल कार्यक्रम में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र, मसलन, डीआरडीओ, परमाणु ऊर्जा विभाग, अकादमिक संस्थान और व्यावसायिक संगठनों के वैज्ञानिक एवं इंजीनियरों की प्रतिबद्धता जुड़ी है। भारत के परमाणु कार्यक्रम पर दुनियाभर के विशेषज्ञों की टोही नजर लगातार बने रहना स्वाभाविक है, जैसे कि फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट, यूके, फ्रांस, रूस के संगठन और फिर चीन और पाकिस्तान की खास नजऱ तो रहती ही है।
जहां भारतीय वैज्ञानिक बैलेस्टिक मिसाइल परीक्षणों पर न्यूनतम जानकारी वाले वक्तव्य देते हैं, वहीं अमेरिकी प्रकाशन जैसे कि बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट और मैक्आर्थर फाउंडेशन सरीखे संगठनों की पत्रिकाओं में भारतीय परमाणु अस्त्र और अणु कार्यक्रम के बारे में तफ्सील होती है। यह लेख, अध्ययन सावधानीपूर्वक खोजपरक और सत्यापना युक्त होते हैं। रोचक यह कि उक्त जानकारी भारत में समय-समय पर छपे लेखों से कुछ खास अधिक नहीं होती।
बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट के मुताबिक, भारत के पास 150-200 परमाणु अस्त्रास्त्र बनाने लायक मात्रा का संवर्धित प्लूटोनियम है और तैयार हथियारों का अनुमानित भंडार लगभग 150 है। फिर भारत के पास फास्ट ब्रीडर एवं अन्य प्लूटोनियम रिएक्टरों के बूते परमाणु हथियार ग्रेड परमाणु पदार्थ बढ़ाने की क्षमता भी है। कुख्यात रहे पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक डॉ. एक्यू खान के मुताबिक, पाकिस्तान ने चीन को यूरेनियम संवर्धन की सेंट्रीफ्यूगल तकनीक दी थी, जिसकी जानकारी उन्होंने 1970 और 1980 के दशक में यूरोप में काम करते वक्त चुराई थी। बदले में, चीन ने पाकिस्तान को परमाणु अस्त्रास्त्र लायक स्वदेशी यूरेनियम संवर्धन करने की तकनीक साझा की थी। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने इस घटनाक्रम को जानबूझकर अनदेखा किया था क्योंकि तब वे 1978 में चीनी नेता देंग शियाओ पिंग की वाशिंगटन यात्रा के दौरान दिखाए दोस्ताना रवैये से अभिभूत हो चुके थे।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस इंस्टिट्यूट (सिपरी) के आकलन के अनुसार, आज की तारीख में चीन के पास कोई 350 परमाणु अस्त्र हैं, पाकिस्तान की संख्या 165 है, तो भारत के पास 156 आणविक मिसाइलें हैं। भारत ने थलीय मिसाइलों के परीक्षणों के अलावा लगभग एक महीने पहले अपनी तीसरी परमाणु पनडुब्बी को सेवारत किया है, जो कि 8 बैलेस्टिक मिसाइलों से लैस है। इससे पहले वाली दो पनडुब्बियों में, प्रत्येक में 4 बैलेस्टिक मिसाइलें तैनात हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि में अब भारत के पास मिसाइलें पाइपनुमा मौसम-रोधी सील युक्त डिब्बों में रखकर एक से दूसरी जगह पहुंचाने की काबिलियत भी है। यह नई सुविधा हाल ही में परीक्षणों से गुजरी है और 5000 किमी. तक मार करने वाली अग्नि-पी और अग्नि-वी समेत तमाम अन्य मिसाइलों के लिए उपयुक्त है। अनेकानेक अध्ययनों में भारत की आणविक मिसाइलें दागने की क्षमता में फ्रांस निर्मित मिराज़-2000 और राफेल विमानों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है।
चीन ने पाकिस्तान को परमाणु हथियार और कई दूरियों वाली मिसाइलें बनाने का डिज़ाइन दिया है। उसने पाकिस्तान को जो मिसाइलें दी हैं, उनमें कम दूरी (320 किमी.) की गजऩवी से लेकर 2500 किमी. तक मार करने वाली शाहीन-2 और 2780 किलोमीटर रेंज वाली शाहीन-3 शामिल हैं। मजेदार यह कि चीन ने आणविक-अस्त्रों का जो डिज़ाइन पाकिस्तान को दिया है, वह वही है जो एक्यू खान ने लीबिया और इराक जैसे इस्लामिक देशों से भी साझा किया था।
भारत अब तक तीन परमाणु-शक्ति चालित पनडुब्बियां बना चुका है और चौथी अगले साल बेड़े में शामिल होने की उम्मीद है। यह खबर भी है कि भारत में मल्टीपल वार-हैड युक्त मिसाइलें बनाने पर काम चल रहा है। फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि 18 दिसंबर, 2021 को भारत ने अग्नि-पी मिसाइल का दूसरा परीक्षण अब्दुल कलाम रेंज नामक एकीकृत परीक्षण स्थल से किया है। इसका पहला टेस्ट जनवरी, 2020 में हुआ था। इससे भारत के लगातार बढ़ते परमाणु पनडुब्बी बेड़े में अग्नि-पी मिसाइलों की तैनाती की संभावना प्रशस्त हो गई है, जिसके पास पहले ही पनडुब्बियों से दागी जाने वाली अग्नि-5 और मल्टीपल वारहैड मिसाइलें हैं।
रिवायती ‘महान हान समुदाय श्रेष्ठता’ से ग्रस्त चीन आगे भी दिखावा करता रहेगा कि उसे भारत के साथ परमाणु अस्त्रों पर कोई संवाद करने में दिलचस्पी नहीं है। इसी बीच भारत पनडुब्बी से दागी जा सकने और 3500 किमी. रेंज वाली के-4 मिसाइल विकसित कर रहा है। यह अंतर-मध्यम दूरी वाली अग्नि-3 का नौसैन्य रूपांतर है। के-4 के अनेक परीक्षण हो चुके हैं लेकिन तैनाती होना बाकी है। जनवरी, 2020 में इसका एक परीक्षण विशाखापट्टनम के तट से लगे समुद्र में जलमग्न पन्टून मंच से दागकर किया गया था। हालांकि डीआरडीओ ने इस टेस्ट की तस्दीक नहीं की थी, लेकिन अधिकारियों को उद्धृत करती मीडिया रिपोर्टों में इसके सफल रहने का दावा था।
हालांकि पाकिस्तान ने कभी औपचारिक रूप से अपने परमाणु अस्त्र उपयोग सिद्धांत का खुलासा नहीं किया है, परंतु न्यूक्लियर कमांड ऑथोरिटी के सामरिक योजना विभाग के लंबे अर्से तक मुखिया रहे ले. जनरल खालिद किदवई ने वर्ष 2002 में इटली के लांडाऊ नेटवर्क के भौतिक वैज्ञानिकों को बताया था कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार ‘केवल भारत को निशाना बनानेÓ हेतु हैं। किदवई ने आगे कहा कि यदि कभी भारत बड़े पाकिस्तानी हिस्से को जीत लेता है या हमारी थल और वायुसेना को भारी नुकसान पहुंचाता है या फिर पाकिस्तान की आर्थिकी का गला घोटे अथवा राजनीतिक रूप से अस्थिर करे, इन सूरतों में भी हम परमाणु हथियार इस्तेमाल करेंगे। वह शख्स, जो एक दशक से ज्यादा समय तक पाकिस्तान के परमाणु हथियार जखीरे का नियंता और बांग्लादेश लड़ाई में 1971-73 के बीच युद्ध-बंदी रहने के अलावा एक व्यावसायिक फौजी हो, उसका यह वक्तव्य पाकिस्तान के परमाणु मंतव्यों की रूपरेखा स्पष्ट करता है। चूंकि भारत का इरादा पाकिस्तान के साथ लंबा युद्ध चलाकर अपने स्रोतों का ह्रास करने का नहीं है और न ही घनी आबादी से पटे शहर कब्जाने की ख्वाहिश है, तथापि पाकिस्तान को मुगालता न रहे कि 26/11 जैसा हमला होने की सूरत में नया भारतीय नेतृत्व, गांधी के अहिंसावादी विचारों का नव-अनुगामी होने के बावजूद, आराम से बैठा रहेगा।
अब यह एकदम साफ है कि दिवालिया हुए पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संगठनों का भारी दबाव है, ऐसे में उसको भारत को अस्थिर करने की चाहत में आतंकवादियों की मदद जारी रखने से पहले सोच-विचार करना चाहिए। फिर, वह ड्यूरंड सीमा रेखा को मान्यता न देने वाली पश्तून आकांक्षा को तालिबान का समर्थन मिलने के मद्देनजर दूरंदेशी से काम ले। रोचक है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में कहा है कि बेशक भारत परमाणु हथियार पहले प्रयोग न करने वाली अपनी नीति पर कायम है, वहीं भविष्य में क्या होता है यह हालात पर निर्भर होगा।
देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को चीन और पाकिस्तान से दरपेश दोहरी चुनौतियों का सामना करने के लिए विकसित की गई स्वदेशी मिसाइल एवं परमाणु क्षमता प्राप्त करने में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम एवं उनकी टीम के इंजीनियरों और परमाणु ऊर्जा विभाग के विशिष्ट साइंसदानों का योगदान सदा याद रखना चाहिए। साथ ही निजी क्षेत्र के उन लोगों का भी, जिन्होंने इस राष्ट्रीय प्रयास में गुप्त रूप से महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।

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