बदलाव वक्त की मांग

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद अगर कांग्रेस के अंदर से असंतोष के स्वर उठने शुरू हुए तो इसे अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। यह जरूर पूछा जा सकता है कि ये स्वर कितने मजबूत हैं और पार्टी के अंदर सुधार की प्रक्रिया को किसी तार्किक परिणति तक ले जा सकते हैं या नहीं। इसमें दो राय नहीं कि ये चुनावी नतीजे कांग्रेस के लिए करारा झटका हैं। पांच राज्यों की कुल 690 विधानसभा सीटों पर हुए हुए चुनावों में कांग्रेस बमुश्किल 55 सीटें जीत पाई। यूपी में 403 सीटों पर लड़कर वह महज दो सीटें हासिल कर सकी। पंजाब में आम आदमी पार्टी की आंधी के सामने वह टिक नहीं पाई। उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर कहीं से भी ऐसी कोई खबर नहीं आई, जिससे थोड़ी बहुत भी तसल्ली मिल पाती। इसके बाद जी-23 के एक प्रमुख सदस्य गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वह पार्टी को इस तरह मरते नहीं देख सकते। जी-23 के ही एक और अहम सदस्य शशि थरूर ने भी कहा कि अगर पार्टी कामयाब होना चाहती है तो बदलाव अनिवार्य हैं। ध्यान रहे जी-23 नाम तब सामने आया, जब कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने अगस्त 2020 में पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी को संगठनात्मक सुधार का सुझाव देते हुए पत्र लिखा था। हालांकि पार्टी नेतृत्व ने इनके प्रमुख सुझावों पर सहमति जताते हुए संगठनात्मक चुनाव का इरादा भी घोषित किया था, लेकिन कोरोना के कारण उन पर अमल नहीं हो सका।बहरहाल, विचार-विमर्श को लेकर पार्टी नेतृत्व ने भी तैयारी दिखाई है। सोनिया गांधी ने चुनाव परिणामों पर विचार के लिए जल्द ही पार्टी कार्यसमिति की बैठक बुलाने की बात कही है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि विचार-विमर्श के नाम पर क्या होने वाला है और पार्टी के अंदर किस हद तक बदलाव स्वीकार किए जाने वाले हैं। क्या पार्टी को गांधी परिवार की अगुआई से मुक्ति मिलने वाली है? हालांकि गांधी परिवार से बाहर के किसी शख्स को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने भर से इस बात की गारंटी नहीं हो जाती कि पार्टी में गांधी परिवार का प्रभाव समाप्त हो जाएगा। पहले भी कई बार पार्टी का नेतृत्व गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति के हाथों में गया है, लेकिन पार्टी इस परिवार के आभामंडल से बाहर नहीं निकल पाई। फिर यह बात भी है कि अच्छा हो या बुरा, पर पिछले काफी समय से यही परिवार पार्टी की मुख्य प्राण शक्ति भी बना हुआ है। ऐसे में पार्टी और गांधी परिवार, संकट दोनों के सामने है। वे जिन मूल्यों की भी बात करें, उन्हें बचाने की उनकी कवायद का कोई मतलब तभी बनता है, जब वे राजनीति में प्रासंगिक बने रहें। और राजनीति पूरी तरह बदल चुकी है। अगर देश की सबसे पुरानी पार्टी को इतिहास में दफन हो जाने से बचना है तो अपना कायाकल्प करना ही होगा।

कोरोना से मौत के झूठे दावे पर सुप्रीम कोर्ट चिंतित

कहा-हमने इस बारे में कभी सोचा नहीं था

नईदिल्ली,14 मार्च (आरएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कोविड से हुई मौत के संबंध में मुआवजे के फर्जी दावों पर अपनी चिंता जताई और कहा कि वह इस मामले में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) को जांच का निर्देश दे सकता है। शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया कि कथित फर्जी मौत के दावों की जांच महालेखा परीक्षक कार्यालय को सौंपी जा सकती है।
न्यायमूर्ति एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा: हमने कभी नहीं सोचा था कि इस तरह के फर्जी दावे आ सकते हैं। हमने कभी नहीं सोचा था कि इस योजना का दुरुपयोग किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि अगर इसमें कुछ अधिकारी भी शामिल हैं तो यह बहुत गंभीर है। अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल ने आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 52 की ओर इशारा किया, जो इस तरह की चिंताओं को दूर करता है। न्यायमूर्ति शाह ने कहा, हमें शिकायत दर्ज करने के लिए किसी की आवश्यकता है।
एक वकील ने राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों द्वारा मुआवजे के दावों की रैंडम जांच करने का सुझाव दिया। बच्चों को मुआवजे के पहलू पर, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि उसके द्वारा आदेशित 50,000 रुपये का अनुग्रह भुगतान, कोविड -19 के कारण प्रत्येक मृत्यु के लिए किया जाना है, न कि प्रभावित परिवार के प्रत्येक बच्चे को। 7 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों द्वारा कोविड की मौतों के लिए अनुग्रह मुआवजे का दावा करने के लिए लोगों को नकली चिकित्सा प्रमाण पत्र जारी करने पर चिंता व्यक्त की, और कहा कि वह इस मामले की जांच का आदेश दे सकता है।
केंद्र ने प्रस्तुत किया था कि कोविड की मृत्यु से संबंधित दावों को प्रस्तुत करने के लिए एक बाहरी सीमा तय की जा सकती है, अन्यथा प्रक्रिया अंतहीन हो जाएगी, और कहा कि कुछ राज्य सरकारों को डॉक्टरों द्वारा जारी किए गए नकली चिकित्सा प्रमाण पत्र मिले हैं। मेहता ने यह भी बताया कि कुछ मामलों में डॉक्टर के प्रमाण पत्र के माध्यम से अनुग्रह मुआवजे पर शीर्ष अदालत के आदेश का दुरुपयोग किया गया है।
फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट पर चिंता जताते हुए पीठ ने कहा, चिंता की बात यह है कि डॉक्टरों द्वारा दिया गया फर्जी सर्टिफिकेट बहुत गंभीर बात है। शीर्ष अदालत ने मेहता की इस दलील से भी सहमति जताई कि कोविड की मौत के दावों को दर्ज करने की समय सीमा होनी चाहिए। पीठ ने कहा, कुछ समय-सीमा होनी चाहिए, अन्यथा प्रक्रिया अंतहीन रूप से चलेगी..।
शीर्ष अदालत अधिवक्ता गौरव बंसल द्वारा कोविड पीडि़तों के परिवारों को राज्य सरकारों द्वारा अनुग्रह मुआवजे के वितरण के संबंध में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। शीर्ष अदालत विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा कोविड -19 मौतों के लिए 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि के वितरण की निगरानी कर रही है।

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16 मार्च को सिर्फ भगवंत मान लेंगे सीएम पद की शपथ

अन्य मंत्रियों को लेकर फैसला जल्द

नईदिल्ली,14 मार्च (आरएनएस)। पंजाब में आम आदमी पार्टी की प्रचंड जीत के बाद अब 16 मार्च को भगवंत मान मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। सूत्रों के मुताबिक कहा जा रहा है कि 16 मार्च को भगवंत मान अकेले ही शपथ लेंगे। इस दिन कोई भी मंत्री शपथ ग्रहण नहीं होगा। भगवंत मान 16 मार्च को नवांशहर जिले में महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के पैतृक गांव खटकड़ कलां में पंजाब के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। जबकि बाकी मंत्री बाद में शपथ लेंगे।
सूत्रों के अनुसार, पार्टी ने फैसला किया है कि केवल मान ही शपथ लेंगे क्योंकि शपथ ग्रहण एक विशेष और ऐतिहासिक स्थान पर हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि 16 अन्य मंत्रियों के शपथ ग्रहण के साथ जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाएगा।
बता दें, मान ने केजरीवाल को शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया है। रविवार को आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल एक दिन के अमृतसर दौरे पर पहुंचे, जहां उन्होंने पंजाब में पार्टी को दो-तिहाई बहुमत देने के लिए राज्य के लोगों का आभार व्यक्त करने के लिए एक रोड शो में हिस्सा लिया। मान और केजरीवाल ने रविवार को जलियांवाला बाग का दौरा किया और अमृतसर में रोड शो से पहले स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की।
स्मारक जाने से पहले आप के दो वरिष्ठ नेताओं ने आशीर्वाद लेने के लिए स्वर्ण मंदिर का दौरा किया। इस बीच, आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेताओं द्वारा अपने मनोनीत मुख्यमंत्री भगवंत मान को अपने मंत्री सहयोगी चुनने की छूट देने की खबरों के बीच मंत्रिमंडल के संभावित गठन को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं।

 

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गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा में बिखर रही होली की अद्भुत छटा

होली मनाने देश विदेश से हजारों की संख्या में गोवर्धन पहुंच रहे श्रद्धालु

मथुरा ,13 मार्च (आरएनएस)। गिरिराज तहलहटी इस समय मिनी भारत का नजारा पेश कर रही है। कोरोना के प्रतिबंध शिथिल होने के बाद देश विदेश से बडी संख्या में श्रद्धालु बडी संख्या में अपने आराध्य के सथ होली मनाने के लिए पहुंच रहे हैं। देश विदेश से आ रहीं श्रद्धालुओं की ये टोलियां अद्भुत दृश्य पैदा कर रही हैं। अलग अलग बोली, अलग अलग भाषा और परिधानों में होली खेलते ये टोलियां ब्रज में होली का अलग ही अंदाज पैदा कर रही हैं। वहीं प्रशासन की ओर से भी होली पर समुचित व्यवस्था की गई है। किसी भी श्रद्धालु को कोई परेशानी न हो इसके व्यापक इंतजाम किए गए हैं। पार्किंग से लेकर साफ सफाई तक का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। इससे भी यहां आ रहे श्रद्धालु खुश नजर आए। ऐसे श्रद्धालुओं की संख्या भी बहुतायत में है जो वर्षों से लगातर ब्रज में आकर होली मना रहे हैं। इंदौर से आए महेश कालरा ने बताया कि वह पिछले सात साल से यहां आकर होली मना रहे हैं। यहां व्यवस्थाएं बहुत अच्छी है। बहुत सहयोग मिलता है बहुत आनंद आता है। यहां आकर दुनियांदारी को भूल जाते हैं। मध्यप्रदेश से आए माही लाल अग्रवाल ने कहा वह पिछले दस साल से आ रहे हैं। ठाकुर जी के साथ होली खेलकर मन को आनंद प्रप्त होता है। सप्तकोसीय परिक्रमा मार्ग में देवास से सैकडों की संख्या आए श्रद्धालु भक्तों ने गिरिराज जी के साथ होली खेली। वहीं ढोल नगाड़ों की धुन पर नाचते गाते और होली का आनंद लिया। गोवर्धन में इस समय दिल्ली, हरियाणा, एमपी, राजस्थान, गुजरात सहित दूसरे प्रदेशों के श्रद्धालु भी दिख रहे हैं। विदेश से आने वाले पर्यटकों की संख्या भी बढ गई है।

 

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जीत की इंजीनियरिंग

प्रभु देवा अभिनीत रेकला पर काम शुरू

यूक्रेन में मारे गए नवीन का पार्थिव शरीर लाया जाएगा भारत

प्रधानमंत्री मोदी ने दिए निर्देश

नई दिल्ली,13 मार्च (आरएनएस)।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अधिकारियों को यूक्रेन से नवीन शेखरप्पा के पार्थिव शरीर को वापस लाने के लिए हर संभव प्रयास करने का निर्देश दिया। प्रधानमंत्री ने इससे पहले दिन में भारत की सुरक्षा तैयारियों और यूक्रेन में चल रहे संघर्ष के संदर्भ में मौजूदा वैश्विक परिदृश्य की समीक्षा के लिए एक सीसीएस बैठक की अध्यक्षता की।
प्रधानमंत्री को सीमावर्ती क्षेत्रों के साथ-साथ समुद्री और हवाई क्षेत्र में भारत की सुरक्षा तैयारियों के नवीनतम विकास और विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया गया। प्रधानमंत्री को यूक्रेन में नवीनतम घटनाओं के बारे में भी जानकारी दी गई, जिसमें भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए ऑपरेशन गंगा के विवरण के साथ-साथ भारत के पड़ोसी देशों के कुछ नागरिकों को यूक्रेन से निकाला गया।
पीएम मोदी ने अतीत में कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों के साथ कई उच्च स्तरीय बैठकों की अध्यक्षता की थी क्योंकि रूस ने 24 फरवरी को यूक्रेन के खिलाफ एक सैन्य अभियान शुरू किया था और भारत ने छात्रों सहित फंसे हुए भारतीय नागरिकों को एयरलिफ्ट करने के लिए ऑपरेशन गंगा नामक एक बड़े पैमाने पर निकासी मिशन शुरू किया था। अब तक, सरकार यूक्रेन के पड़ोसी देशों के माध्यम से युद्धग्रस्त देश से 20,000 से अधिक भारतीयों को वापस ला चुकी है।

भोपाल में 4 बांग्लादेशी आतंकी पकड़ाए

बड़ी मात्रा में संदिग्घ सामग्री भी मिली

भोपाल ,13 मार्च (आरएनएस)। राजधानी भोपाल में एटीएस ने 4 आतंकियों को पकड़ा है। प्रारंभिक पूछताछ में इनका बांग्लादेशी होना पाया गया है। जो कि प्रतिबंधित आतंकी संगठन जमात-ए-मुजाहिद्दीन (बांग्लादेश) के सदस्य हैं। आरोपी जेहादी गतिविधियों में शामिल थे और देश विरोधी घटनाओं को अंजाम देने के लिए रिमोट बेस/ स्लीपर सेल तैयार कर रहे थे। फिलहाल आरोपियों से पूछताछ की जा रही है। इनमें से दो आतंकी ऐशबाग इलाके की फातिमा मस्जिद के पास किराए से रह रहे थे। इनकी निशानदेही पर करोंद इलाके की खातिजा मस्जिद के करीब एक घर में रह रहे 2 और आतंकियों को पकड़ा गया। हिरासत में लिए गए आतंकियों से भारी मात्रा में जेहादी साहित्य, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण व संदिग्ध दस्तावेज मिले हैं।

प्रारंभिक पूछताछ में चारों के बाग्लादेशी होने की जानकारी मिली है। पकड़े गए आरोपी में 32 वर्षीय फजहर अली उर्फ मेहमूद पिता अशरफ इस्लाम, 24 वर्षीय मोहम्मद अकील उर्फ अहमद पिता नूर अहमद शेख, 28 वर्षीय जहूरउद्दीन उर्फ इब्राहिम उर्फ मिलोन पठान उर्फ जौहर अली पिता शाहिद पठान और फजहर जैनुल आबदीन उर्फ अकरम अल अहसन उर्फ हुसैन पिता अब्दुल रहमान शामिल है।
आरोपियों के पास से भारी मात्रा में जेहादी साहित्य, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण व संदिग्ध दस्तावेज मिले हैं। आरोपी कट्टर तालिबानी सोच के हैं। एटीएस ने करौंद में भी संदिग्ध ठिकाने पर सर्च की है। चारों सदस्य प्रतिबंधित संगठन जमात ए मुजाहिद्दीन बांग्लोदश के सक्रिय सदस्य हैं।
जेएमबी ने पश्चिम बंगाल के वर्धमान में बम ब्लास्ट किया था, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई थी। वर्ष 2018 में बोधगया में भी बम ब्लास्ट किया था। इन आतंकी घटनाओं के चलते केन्द्र सरकार ने जेएमबी को 2019 में 5 वर्ष के लिए प्रतिबंधित संगठन घोषित किया है। इस प्रतिबंध के चलते जेएमबी देश भर में अलग-अलग जगह स्लीपर सेल चला रहा है। भोपाल में पकड़ाया मॉडयूल ऐसी ही एक स्लीपर सेल का हिस्सा है। जिसके माध्यम से भविष्य में कोई बड़ी घटना को अंजाम दे सकें। साल 2005 में बांग्लादेश के 50 शहरों व कस्बों में 300 स्थानों पर करीब 500 बम विस्फोट हुए थे। ये धमाके जेएमबी ने ही कराए थे।
मकान मालकिन नायाब जहां ने बताया कि इनमें से एक का नाम अहमद है, इसके बाद उसके साथ दूसरे लड़के आते रहे। मकान मालकिन नायाब जहां ने कहा सलमान नाम का एक लड़का हमारे यहां कम्प्यूटर सुधारने आया था। उसने कहा कि कोई मकान खाली हो तो दे दीजिए एक युवक (धार्मिक शिक्षा) की पढ़ाई कर रहा है, बाद में वो अपने परिवार को भी साथ ले आएगा। इसके बाद उन्हें किराए पर घर दे दिया। इसके बाद जब मैंने उनसे आधार कार्ड मांगा तो लगातार टालते रहे, कभी कहते घर से लाकर देंगे। फिर कहने लगे हम 15 दिन में घर खाली कर जा रहे हैं। मकान मालकिन ने कहा कि इसके बाद मैंने भी सोचा कि अब आधार की क्या जरूरत जब ये जाने ही वाले हैं। महिला ने बताया कि देर रात शोर हुआ तो हम बाहर निकले, पहले लगा ये आपस में लड़ रहे हैं, बाहर निकले तो पुलिस वाले खड़े थे। हमने पूछा क्या हो रहा है तो पुलिस वालों ने कहा कि आप अंदर चले जाइये।
गिरफ्तारी के बाद घर को सील कर दिया गया है। बताया जा रहा है कि सभी आतंकी छात्रों के भेष में यहां रह रहे थे, इन्होंने किसी कालेज में दाखिला भी ले रखा था।

ठंडे बस्ते में गया फिल्म अय्यपनम कोशियुम का हिंदी रीमेक

12-Mar-2022, पिछले काफी समय से जॉन अब्राहम और अर्जुन कपूर फिल्म अय्यपनम कोशियुम के हिंदी रीमेक को लेकर सुर्खियों में हैं। दोनों के साथ आने की खबर से फैंस बेहद उत्साहित हो गए थे, लेकिन अब जो खबर आ रही है, उससे बेशक प्रशंसक निराश हो जाएंगे। दरअसल, फिल्म का हिंदी रीमेक डिब्बाबंद हो गया है। खुद फिल्म के निर्देशक ने इस खबर पर अपनी मुहर लगा दी है।जॉन अब्राहम आजकल सिद्धार्थ आनंद की फिल्म पठान की शूटिंग में व्यस्त हैं। हाल ही में इस फिल्म का फिर काम शुरू हुआ है। जॉन स्पेन में इस फिल्म के शूट में व्यस्त हैं। पठान के बाद उनके अपने कुछ और कमिटमेंट पूरे करने हैं। जॉन की डेट डायरी फुल है। वह इस साल बेहद व्यस्त रहने वाले हैं। दूसरी तरफ अर्जुन भी अपने पुराने कमिटमेंट निपटा रहे हैं। वह एक के बाद एक फिल्म की शूटिंग में व्यस्त रहेंगे। जॉन और अर्जुन का व्यस्त शेड्यूल देख अब फिल्म के निर्देशक जगन शक्ति ने भी फिल्म का काम रोक दिया है और अपने दूसरे प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है। अभी यह जानकारी नहीं मिली है कि अय्यपनम कोशियुम के हिंदी रीमेक की शुरुआत कब होगी?उन्होंने भी इस फिल्म के डिब्बाबंद होने की पुष्टि की। बता दें कि जगन ने पिछली बार फिल्म मिशन मंगल का निर्देशन किया था।जल्द ही कई साउथ फिल्मों के हिंदी रीमेक दर्शकों के बीच आएंगे। तमिल फिल्म विक्रम वेधा और मलयालम फिल्म ड्राइविंग लाइसेंस व तमिल फिल्म थडम का हिंदी रीमेक बन रहा है। तमिल फिल्म कैथी और तेलुगु फिल्म जर्सी का हिंदी रीमेक भी चर्चा में है। अय्यपनम कोशियुम पिछले साल दर्शकों के बीच आई थी और इसे लोगों ने खासा पसंद किया था। फिल्म में बीजू मेनन और पृथ्वीराज लीड रोल में थे। फिल्म का निर्देशन जगन शक्ति ने किया है, जो हिंदी रीमेक के निर्देशक भी हैं। इस फिल्म की कहानी एक पूर्व हवलदार और एक सब-इंस्पेक्टर के संघर्ष के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें पृथ्वीराज एक पूर्व हवलदार की भूमिका में थे और बीजू मेनन ने सब-इंस्पेक्टर का किरदार निभाया था। जॉन जल्द ही फिल्म अटैक में नजर आएंगे। उनकी यह फिल्म 1 अप्रैल को रिलीज होने वाली है। वह एक्शन थ्रिलर फिल्म तेहरान में भी दिखेंगे। यह फिल्म अगले साल गणतंत्र दिवस पर रिलीज होगी। भूषण कुमार की एक फिल्म से भी जॉन बतौर निर्माता जुड़े हुए हैं। दूसरी तरफ अर्जुन फिल्म कुत्ते में नजर आएंगे। वह फिल्म द लेडी किलर में भूमि पेडनेकर के साथ नजर आएंगे। इसके अलावा एक विलेन रिटर्न्स भी उनके खाते से जुड़ी हुई है। (एजेंसी)

लोकतंत्र

विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद सोनिया गांधी ने बुलाई मीटिंग

महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करना राज्य सरकार की प्राथमिकता- श्री आलमगीर आलम

मंत्री श्री आलमगीर आलम ने महिला मेट एवं लाभुकों को किया सम्मानित

रांची,(दिव्या राजन) महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करना राज्य सरकार की प्राथमिकता है। सरकार महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में काम कर रही है। इसी का नतीजा है कि हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। वह चाहे महिला जनप्रतिनिधि, एसएचजी, महिला श्रमिक अथवा महिला मेट हों। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, समानता, स्वरोजगार एवं आत्मनिर्भरता का समान अवसर प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसी के तहत ग्रामीण विकास विभाग एवं मनरेगा अंतर्गत कई महत्वाकांक्षी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है।उक्त बातें ग्रामीण विकास मंत्री श्री आलमगीर आलम ने प्रोजेक्ट भवन में अतंरराष्ट्रीय महिला दिवस सप्ताह के अवसर पर महिला मेट एवं लाभार्थियों के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में कहीं।

समाज, देश एवं राज्य के विकास में महिलाओं की भागीदारी जरूरी

मंत्री श्री आलमगीर आलम ने कहा कि महिला सशक्तिकरण के लिए जरूरी है कि महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में बढ़ाई जाए। किसी भी समाज, देश एवं राज्य के विकास में महिलाओं की भागीदारी जरूरी है और ग्रामीण विकास विभाग महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये कई कार्यक्रम चला रहा है, जिससे उनका आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान हो सके। विभाग की ओर से लगातार कई ऐसे कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं जिससे उन्हें स्वरोजगार से जोड़ा जा सके ताकि उनके जीवन में खुशहाली आये साथ ही वे स्वावलंबी बनें। महिलायें आर्थिक रूप से सुदृढ़ बने यह सरकार की सोच है। उन्होंने कहा कि समाज में नारी शक्ति के उत्थान के बिना किसी भी प्रकार के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। एक महिला के विकास का मतलब एक पूरे परिवार का विकास है और इसलिए समाज के हर वर्ग को महिला उत्थान की दिशा में अपना सक्रिय एवं सार्थक योगदान देना चाहिए।

 

पूरे राज्य में 50 लाख से अधिक परिवारों को दिये गये जॉब कार्ड में से 21 लाख से अधिक महिलाएं निबंधित

मनरेगा आयुक्त श्रीमती राजेश्वरी बी ने कहा कि महिला मेट एवं लाभार्थियों को सम्मानित किया जा रहा है, यह विभाग के लिये हर्ष की बात है। उन्होंने कहा कि पूरे राज्य में 50 लाख से अधिक परिवारों को जाब कार्ड दिया गया है, उसमें से 21 लाख से अधिक महिलाएं निबंधित है। हमने पूरे राज्य में 4.8 करोड़ मानव दिवस सृजन किया है। महिलाओं की भागीदारी को और अधिक बढ़ाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है। राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी दीदी बाड़ी योजना, बिरसा हरित ग्राम योजना से जुड़ कर महिलाएं स्वावलंबी बन रही हैं। सरकार की सोच है कि महिलाओं की आजीविका के साधन को बढ़ाया जाये। मनरेगा के अंतर्गत चलने वाली कई योजनाओं से महिलाओं को रोजगार और स्वावलंबन का मार्ग प्रशस्त हुआ है। महिलाएं दीदी बाड़ी योजनाओं में कार्य कर कूप निर्माण एवं अन्य योजना से लाभान्वित होकर अपने परिवार का सहारा बन रही हैं। इससे उनमें एक नया आत्मविश्वास उभर रहा है। उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी होने में मदद मिल रही है । उन्होंने कहा कि महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर सकती हैं और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को संवार सकती हैं। ग्राम स्तर पर ऐसी हजारों महिलाओं ने आज अपने भविष्य को संवारने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। यह महिला सशक्तिकरण का एक अनुपम उदाहरण है।

महिला सशक्तिकरण की दिशा में जेएसएलपीएस का महत्वपूर्ण योगदान

झारखण्ड लाइवलीहुड प्रोमोशन सोसाईटी के सीईओ श्री सूरज कुमार ने कहा कि पूरे राज्य में सखी मंडल का गठन किया जा रहा है। इन सखी मंडल के माध्यम से कई कार्य किये जा रहे हैं,जिनसे महिलाएं आत्मनिर्भर एवं स्वावलंबी बन रही हैं। महिला सशक्तिकरण की दिशा में जेएसएलपीएस महत्वपूर्ण योगदान निभा कर महिलाओं की आर्थिक एवं सामाजिक विकास में सहायक साबित हो रहा है। उन्होंने कहा कि जेएसएलपीएस के तहत पलाश ब्रांड को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके तहत महिलाएं स्वावलंबी बन रही हैं । आने वाले दिनों में पलाश ब्रांड एक बेहतरीन ब्रांड के तौर पर उभर कर सामने आयेगा।

 

महिला मेट एवं लाभार्थियों ने अपने अनुभव एवं विचार को किया साझा

कार्यक्रम में महिला मेट एवं लाभार्थियों ने भी अपने अनुभव एवं विचार साझा किए। गुमला जिला के बसिया प्रखण्ड की लाभार्थी विश्वासी कुजूर ने अपने अनुभव को साझा करते हुये कहा कि सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं का लाभ लेकर आज वह स्वावलंबी बन रही हैं। मनरेगा के तहत दीदी बगिया योजना का लाभ लेकर आज पशुपालन से जुड़ी हुई हैं। मुर्गी पालन,बत्तख पालन कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। वे कहती हैं कि अब वह आसानी से अपनी आजीविका चला रही हैं।
खूंटी, तोरपा की महिला मेट एतवारी देवी कहती हैं कि मनरेगा से जुड़ने के पहले परिवार की आर्थिक स्थिती दयनीय थी। परिवार की जरुरते पूरी नहीं हो पाती थीं। मनरेगा मेट के रूप में जुड़ने के बाद उनकी आय में भी वृद्धि होने लगी। मनरेगा के तहत आम बागवानी एवं अंतर कृषि कर उनकी आय में बढ़ोत्तरी होने लगी। वे कहतीं है कि मनरेगा ने उनके जीवन को बदल डाला। अब उनकी जीवनशैली में काफी सुधार होने लगा है।अब वह अपनी आय से परिवार की सही तरीके से देख-भाल कर सकती हैं। इसी तरह कई अन्य महिला मेट एवं लाभार्थियों ने भी अपने अनुभव एवं विचार रखे।

कार्यक्रम में महिला मेट एवं महिला लाभार्थियों का उत्सव से संबंधित पुस्तक का विमोचन भी किया गया

इस अवसर पर कई महिला मेट एवं लाभुको को मंत्री श्री आलमगीर आलम ने सम्मानित किया, जिसमें बेड़ों प्रखण्ड की रुकसाना खातुन, सोनाहातू की माहेश्वरी देवी , तोरपा की एतवारी देवी, रनिया की ममता देवी, घाघरा, गुमला की सीता देवी, कैरो की संगीता देवी, किस्को की रशिदा खातुन, पतरातु की रेखा देवी एवं माण्डू की रूपा देवी शामिल थीं। लाभार्थियों में पूनम देवी,निर्मला देवी,पुष्पा देवी, विश्वासी कुजूर,रिंकी देवी,सुमनती तिग्गा आदि थीं।

कार्यक्रम में जलछाजन के सीईओ श्री विनयकान्त मिश्रा , ग्रामीण विकास विभाग के उप सचिव श्री रंजीत रंजन प्रसाद, अवर सचिव श्री चन्द्रभूषण, कई पदाधिकारीगण विभिन्न जिलों से आई महिला मेट एवं लाभार्थी उपस्थित थे

ओडिशा में भाजपा कार्यकर्ताओं पर विधायक ने चढ़ाई गाड़ी

भुवनेश्वर,12 मार्च (आरएनएस)। ओडिशा के खुर्दा जिले में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजद) के एक निलंबित विधायक ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कार्यकर्ताओं के जुलूस में कथित तौर पर अपनी एसयूवी चला दी। इस हादसे में पुलिस निरीक्षक सहित 24 लोग घायल हो गए। पांच की हालत नाजुक बताई जा रही है। जिसके बाद गुस्साई भीड़ ने विधायक को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। साथ ही विधायक की गाड़ी पर आग लगा दी। पुलिस ने इलाके में पुलिस बल को बढ़ा दिया है। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि पंचायत समिति अध्यक्ष के चुनाव के लिए शनिवार सुबह करीब 200 भाजपा कार्यकर्ता चिल्का झील के पास बानपुर पंचायत समिति कार्यालय के बाहर जुलूस निकाल रहे थे, तभी विधायक प्रशांत जगदेव की एसयूवी वहां पहुंची।
एक दलित भाजपा नेता की पिटाई के कारण पिछले साल बीजद से निलंबित किए गए जगदेव ने अपनी एसयूवी को कार्यालय की ओर बढ़ाई, उन्हें शुरू में पुलिस निरीक्षक के साथ-साथ अन्य पुलिसकर्मियों और भाजपा कार्यकर्ताओं ने रोक दिया। पुलिस महानिरीक्षक (मध्य रेंज) नरसिंह भोल ने कहा कि विधायक ने किसी की नहीं मानी और गाड़ी को आगे बढ़ाना जारी रखा, इसी बीच आसपास लोग एसयूवी की चपेट में आ गए। इस घटना में कम से कम 24 घायल हो गए। बानपुर पुलिस स्टेशन के निरीक्षक सहित पांच घायल गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। इसके बाद गुस्साई भीड़ ने विधायक की पिटाई कर दी जिससे वह घायल हो गए।
प्रत्यक्षदर्शियों का आरोप है कि घटना के वक्त विधायक नशे में थे और पहले पुलिस से झड़प की और फिर बिना कोई बात सुने लोगों के ऊपर गाड़ी चढ़ा दी। घटना के बाद आक्रोशित स्थानीय लोगों ने जगदेव को उनके वाहन से खींच लिया और उनके वाहन में आग लगाते हुए उनकी पिटाई कर दी। घायल विधायक को भुवनेश्वर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

फिल्म समीक्षा – ‘द कश्मीर फाइल्स’ 

रिलीज डेट : 11 मार्च 2022

कलाकार : मिथुन चक्रवर्ती, अमान इकबाल, अनुपम खेर, भाषा सुंबली, पुनीत इस्सर, अर्पण भिखारी, पल्लवी जोशी, एकता सिंह, आरके गौरव, चिन्मय मंडलेकर और दर्शन कुमार आदि।

डायरेक्टर : विवेक अग्निहोत्री

निर्माता : ज़ी स्टूडियोज़, अभिषेक अग्रवाल आर्ट्स

वितरक : ज़ी स्टूडियोज़

संगीत :  स्वप्निल बंदोड़कर, रोहित शर्मा

छायांकन : उदय सिंह मोहिते

एडिटर     : शंख राजाध्यक्ष

अवधि: 170 मिनट

रेटिंग : * 3.5/5

वास्तविक घटनाओं पर आधारित और कश्मीरी पंडितों के तकलीफों को बयां करती, निर्देशक  विवेक अग्निहोत्री की ‘द कश्मीर फाइल्स’ 1989 में घटी घटनाओं का एक नाटकीय संस्करण है। परंतु प्रस्तुतिकरण उत्कृष्ट होने की वजह से पूरी फिल्म दिल मे उतर जाती है और सिनेदर्शकों को बांधे रखती है। साल 2019 में विवेक अग्निहोत्री  की फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ रिलीज हुई थी और यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई। इस फिल्म को दो नेशनल अवॉर्ड भी मिले थे। ‘द ताशकंद फाइल्स’ के बाद अब विवेक अग्निहोत्री ‘द कश्मीर फाइल्स’ लेकर आए हैं, जिसमें उन्होंने 90 के दशक में कश्मीर में हुए कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के नरसंहार और पलायन की कहानी को दर्शाया है। इस फिल्म में अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती जैसे धुरंधर कलाकार तो हैं ही, लेकिन साथ ही फिल्म में पल्लवी जोशी और दर्शन कुमार जैसे मंझे हुए कलाकार ने भी अपनी अभिनय प्रतिभा का जलवा स्क्रीन पर बिखेरा है।

The Kashmir Files

फिल्म की कहानी कश्मीर के एक टीचर पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है। कृष्णा (दर्शन कुमार) दिल्ली से कश्मीर आता है, अपने दादा पुष्कर नाथ पंडित की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए. कृष्णा अपने दादा के जिगरी दोस्त ब्रह्मा दत्त (मिथुन चक्रवर्ती) के यहां ठहरता है। उस दौरान पुष्कर के अन्य दोस्त भी कृष्णा से मिलने आते हैं इसके बाद फिल्म फ्लैशबैक में चली जाती है। फ्लैशबैक में दिखाया गया है कि 1990 से पहले कश्मीर कैसा था। इसके बाद 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों को मिलने वाली धमकियों और जबरन कश्मीर और अपना घर छोड़कर जाने वाली उनकी पीड़ादायक कहानी को दर्शाया गया है। अभिनय के मामले में फिल्म के सभी कलाकारों ने अपने अभिनय कौशल से फिल्म की कहानी से जुड़े सभी पात्रों को जीवंत किया है। इसे फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की निर्देशकीय प्रतिभा का प्रतिफल कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। विवेक अग्निहोत्री ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को उजागर करते हुए एक रोंगटे खड़े करने वाली अलग तरह की हृदयस्पर्शी कहानी को दर्शाने की कोशिश की है।

फिल्म समीक्षक – काली दास पाण्डेय

मोदी मैजिक व कांग्रेसी चूक ने जमाया केसरिया रंग

दिनेश जुयाल –

एक हाथ में गरीबों के लिए राशन की थैली, दूसरे में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का मिक्स्चर, वाणी में देवभूमि की आराधना… उत्तराखंड में मोदी मैजिक इस बार कुछ इस रूप में था। पिछले राज के पहले सीएम त्रिवेंद्र सिंह की बेअंदाजी, उल्टे-सीधे फैसले और तीरथ सिंह के अनाड़ीपन ने जो जबरदस्त सत्ता विरोधी रुझान बनाया था उसके जहर को काटने के लिए ये जादू कारगर साबित हुआ। वैसे कांग्रेस के बुजुर्ग क्षत्रप हरीश रावत भी श्रेय के हकदार हैं। फिर से सीएम बनने की जिद में अपने आगे किसी को खड़ा नहीं होने दिया। कांग्रेस की दिल्ली भी समझ रही थी कि बुजुर्गवार इस बार नैया डुबो सकते हैं लेकिन उन्होंने बड़े ही भावुक अंदाज में ऐसी सौदेबाजी की कि इधर कुआं उधर खाई वाली कहानी बना कर ही माने। भारी बहुमत से भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता में लौट रही है। बसपा को सीट मिली लेकिन वोट पिछली बार जितने भी नहीं, आम आदमी पार्टी कुछ नहीं कर पाई। निर्दलीयों की सौदेबाजी की गुंजाइश नहीं बची। भाजपा के सारे अवगुण हर की पौड़ी में धुल गए हैं। सीएम फेस कांग्रेस और आप का ही नहीं, भाजपा का भी पिट गया। यहां का मुख्यमंत्री वैसे भी 22 साल से दिल्ली से तय होकर आता है। अब कौनÓ का जवाब भी जल्द मिलेगा।कुछ एक्जिट पोल विशेषज्ञों के अलावा, सारे चुनावी विश्लेषक, ग्राउंड रिपोर्ट लिखने वाले और एनालिस्ट भी हार गए। भाजपा का अपना खुफिया एक्जिट पोल भी फेल। उत्तराखंड में मोदी पास हो गए, वह भी विशेष योग्यता के साथ। मोदी के जादू ने उत्तराखंड में सत्ता की सवारी बारी-बारी’ के मिथक को भी तोड़ दिया लेकिन एक मिथक नहीं टूटा कि सीएम दुबारा नहीं जीतता।14 फरवरी को वोट पडऩे के बाद एक के बाद एक भाजपा के चार विधायक बोले, हम तो हार रहे हैं और हमें पार्टी अध्यक्ष हरा रहे हैं। कुछ और आवाजें ऐसी ही आईं तो लगा भाजपा तो गई। तभी पोस्ट पोल अपनी खास भूमिका निभाने वाले कैलाश विजयवर्गीय की उत्तराखंड में एंट्री हुई और वह निशंक के साथ बसपा और जीतने की क्षमता वाले निर्दलीयों को साधने लगे। वहीं कांग्रेस ने अपना रेवड़ बचाने के लिए छत्तीसगढ़ से भूपेश बघेल की मदद मांगी और राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत साहब को विधायकों की सेवा के लिए तैयार रहने को कहा। हरदा यानी अपने हरीश रावत कभी अपनी आने वाली सरकार की प्राथमिकताएं गिनाने तो कभी अपनी विजय की पूर्व-घोषणा करने के लिए मीडिया को दर्शन देते रहे। पार्टी देना तो उन्हें अच्छा लगता है। कुछ नहीं तो सड़क किनारे टिक्की तलते हुए ही अपनी खुशी बांटते रहे। उत्तराखंड के दो पत्रकारों ने यहां के बाकी पत्रकारों को जोड़ कर दो एक्जिट पोल अलग से किए। सब कांग्रेस को बढ़त दे रहे थे। तो हरदा के लिए खुश होने के तमाम कारण थे। गांव-गांव में महिला मंगल दलों को चंदा तो कांग्रेस ने भी दिया, वे गई भी उत्साह से थीं। पुरुषों से दो फीसदी अधिक वोट करने वाली इन संगठित महिलाओं ने कुछ और ही सोच रखा था। हरक सिंह जैसे बेजोड़ खर्चीले कांग्रेसियों का सोमरस भी तो सबने पिया लेकिन सुबह जब नहा-धोकर वोट करने निकले तो उसका असर गायब था।हरदा फैक्टर की बात करें तो उन्होंने पहले सीएम फेस की लड़ाई लड़ी फिर सीएम बनने की जुगत में ऐसी फौज सजाई कि मोदी जी के लिए किला भेदना आसान हो गया। रामनगर से रणजीत सिंह को सल्ट भगा कर ही माने। रामनगर वालों ने हाथ खड़े कर दिए तो लालकुआं के कुएं में जाकर खुद भी डूब गए। इधर सल्ट और रामनगर की जीती हुई-सी सीटें भी गई। नैनीताल सीट भाजपा से लौटे यशपाल आर्य के नाम कर उसे भी गंवा दिया। हरक सिंह को आखिरी वक्त में एंट्री तो दे दी लेकिन चुनाव नहीं लडऩे दिया। मुस्लिम यूनिवर्सिटी खोलने जैसी घोषणा कर नया विवाद खड़ा कर दिया। अब भाजपा की इससे अधिक मदद क्या कर सकते थे। अब घर बैठेंगे जैसा कि उन्होंने वचन दिया है।पिछले 22 साल में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए यहां की सदाबहार म्यूजिकल चेयर रेस में पिछली बार कुछ ज्यादा ही रंग दिखे थे। सत्ता की हनक के नमूने भी जनता ने गजब देखे। हालात ऐसे हो गए कि भाजपा को एक टर्म में तीन मुख्यमंत्रियों को आजमाना पड़ा। पिछले 22 साल में राज्य सरकार की इतनी किरकिरी कभी नहीं हुई। मुख्यमंत्री धामी की हार के बाद एक बार फिर ये तमाशा होगा। 21 साल में 11 मुख्यमंत्री देने वाले उत्तराखंड की नई विधानसभा में मदन कौशिक और सतपाल महाराज के अलावा कितने सीएम फेस हैं अभी पता नहीं। अनिल बलूनी जैसे कुछ दिल्ली में भी बैठे हैं और लंबे समय से जुगाड़ भिड़ा रहे हैं। हां, हरक सिंह के कांग्रेस में जाने से कुर्सी-खींच वाले खेल की रौनक कुछ कम रहेगी। वह अपनी बहू को विधायक बनाने के फेर में खुद भी किनारे हो गए। हो सकता है फिर माफीनामा तैयार कर भाजपाई साफा पहन कर खेल करें। मंत्री बनने के लिए भी यहां खूब रूसा-रूसी होती है। अब पर्यवेक्षकों पर जिम्मेदारी पडऩे वाली है। उत्तराखंड पर 2024 से पहले मोदी जी कितनी कृपा बरसाते हैं, यह भी देखना दिलचस्प होगा।

चला बुल्डोजर’ मंत्र, सपा गई चूक

अतुल सिन्हा –

उत्तर प्रदेश में डबल इंजन’ और बुल्डोजर’ का मंत्र कुछ इस कदर सिर चढ़कर बोला कि विपक्षी गठबंधन के सपने चकनाचूर हो गए। मायावती की सोशल इंजीनियरिंग पूरी तरह फेल हुई तो प्रियंका गांधी का लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ का जबरदस्त अभियान फ्लॉप’ हो गया। बेशक समाजवादी पार्टी एक मजबूत विपक्ष बनकर जरूर उभरने में कामयाब रहा। अगर आपने अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी के अभियानों और सभाओं की भीड़ देखी होगी और खासकर अखिलेश यादव के हौसले देखे होंगे तो यह मानना मुश्किल हो रहा होगा कि आखिर नतीजे ऐसे कैसे आ गए। लेकिन भाजपा की जो कार्यशैली रही है और जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह से लेकर तमाम दिग्गज नेताओं ने खुद को यूपी पर केन्द्रित किया है, उससे ये नतीजे बहुत हैरत नहीं पैदा करते।दरअसल, पिछले कई सालों से यूपी की सियासत एक खास दिशा में चलती रही है और अगर आप भाजपा की रणनीतियों पर गौर करें तो उसका सबसे बड़ा रणक्षेत्र यही प्रदेश रहा है। बेशक राम मंदिर और अयोध्या अब विवादास्पद या चुनावी मुद्दा न रहा हो, लेकिन मंदिर की राजनीति और हिन्दुत्व की प्रयोगशाला में भाजपा ने इस प्रदेश में अपनी पुख्ता ज़मीन ज़रूर तैयार कर ली है। उसे सबसे बड़ा फायदा अगर मिला है तो वह है यहां के बिखरे हुए और कमज़ोर विपक्ष का। सपा के दागदार अतीत और बसपा की लगातार कमजोर होती ज़मीन, देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की बदहाली और इन तमाम पार्टियों से लोगों का तेजी से मोहभंग, भाजपा के लिए हमेशा से फायदेमंद रहा है।बतौर विपक्ष अगर देखें तो इस बार समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर से खड़े होने की कोशिश जरूर की है। चुनाव से पहले के गठबंधन की जो रणनीति बनी थी बेशक उस पर कई सवाल अब उठेंगे और उसकी खामियों का भी विश्लेषण जरूर होगा। लेकिन इतना तो जरूर है कि जब विपक्ष इतने खेमों में बंटा हो और सबके अपने-अपने अहंकार हों तो भला आप भाजपा जैसी पार्टी को सत्ता से कैसे उखाड़ सकते हैं। यूपी के चुनावी गणित कम पेचीदा नहीं हैं। जातिगत आधार पर देखें या धर्म-संप्रदाय के आधार पर, यहां मुख्य मुद्दे हर बार कहीं न कहीं गुम हो जाते हैं और वोटों का ध्रुवीकरण इन आपसी बयानबाजियों और आरोपों-प्रत्यारोपों के भावनात्मक जाल में उलझ कर रह जाता है।यूपी में जिस विपक्ष को कोरोना में सरकार की नाकामी, महंगाई, बेरोजग़ारी, किसानों की समस्या, छुट्टा पशु से त्रस्त किसान, लखीमपुर कांड या महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे अहम लग रहे थे, वहीं भाजपा के लिए इनकी कोई अहमियत नहीं थी। विपक्ष लगातार लोगों में ये अवधारणा बनाने की कोशिश करता रहा कि योगी सरकार तमाम मोर्चों पर नाकाम रही है, वहीं योगी और उनकी टीम डबल इंजन, विकास की गाथाएं, सरकारी योजनाओं के लाभ को अंतिम आदमी तक पहुंचाने के साथ गुंडों, दंगइयों पर बुल्डोजर चलाने के साथ-साथ वाराणसी, अयोध्या और अन्य धर्मस्थलों के कायाकल्प की बात करते रहे। बेशक उनके लाभार्थियों ने उनकी बात सुनी और उन्हें दोबारा मौका दे दिया।लेकिन अब ये अहम सवाल है कि क्या इन नतीजों की रोशनी में हमें सपा या विपक्ष को एकदम कमजोर या असरहीन मान लेना चाहिए? क्या इसे 2024 में मोदी को वॉकओवर देने वाले नतीजे के तौर पर देखा जाना चाहिए? या फिर इससे सीख लेकर विपक्ष को नए और धारदार तरीके से अपनी रणनीति तैयार करने के तौर पर देखा जाना चाहिए। बेशक भाजपा ने यूपी में इतिहास रचा है। पहली बार प्रदेश में कोई सरकार दोबारा बनी है। इसने कई मिथक भी तोड़े हैं लेकिन पिछली बार की तुलना में देखें तो अखिलेश यादव की सपा को भी लोगों ने नकारा नहीं है। पिछली बार जहां विपक्ष सत्ता पक्ष के आगे कहीं नहीं ठहरता था, वहां इस बार वह एक मजबूत ताकत के तौर पर जरूर उभरा है।कांग्रेस को जरूर आत्ममंथन करने की जरूरत है कि आखिर उनकी स्टार महासचिव और लोगों से सीधा कनेक्ट करने वाली, भावनात्मक तौर पर जुडऩे की कोशिश करने वाली प्रियंका गांधी को भी लोगों ने क्यों ठुकरा दिया और क्यों अब कांग्रेस का वजूद इस नई पीढ़ी के नेतृत्व में लगातार खतरे में पड़ता दिख रहा है। अगर अब भी कांग्रेस अपने नेतृत्व में बदलाव और संगठन की खामियों को लेकर गंभीर नहीं हुई तो आने वाले कुछ राज्यों के चुनावों के साथ-साथ 2024 में उसकी हालत और खस्ता हो सकती है। यूपी तो एक बानगी भर है।मायावती की सोशल इंजीनियरिंग अब आम लोगों को या उनके तथाकथित वोट बैंक को कमरे में बंद होकर नहीं पसंद आ रही। न तो उनमें वो धार बची, न सियासत करने का वो जज्बा। ऊपर से उनके भाजपा के साथ दोस्ताना रिश्तों की चर्चा और आने वाले वक्त में उपराष्ट्रपति बनने की महत्वाकांक्षा। अब पता नहीं भाजपा के साथ भीतर ही भीतर उनकी क्या बात’ हुई कि उन्होंने पूरी पार्टी को ही दांव पर लगा दिया।ऐसे में अब भी अगर यूपी के लोगों के लिए उम्मीद की कोई किरण हैं तो वे थोड़े-बहुत अखिलेश यादव ही हैं। बेशक इस बार अखिलेश यादव ने अपने गठबंधन और प्रत्याशियों के चयन में कई रणनीतिक गलतियां कीं, जिसका खमियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। सपा के दागदार इतिहास को दोहराते हुए उन्होंने एक बार फिर ऐसे ही कई दागदार उम्मीदवार उतारने की गलती की। अपने सहयोगियों में न तो राष्ट्रीय लोकदल को सही प्रतिनिधित्व दे पाए और चाचा शिवपाल यादव को खुश करने के चक्कर में अपने ही कुछ लोगों को नाराज होने से भी नहीं बचा पाए। इससे कम से कम उन्हें पचास सीटों का नुकसान तो हुआ ही। जाहिर है ये सपा की अंदरूनी चिंता का विषय है और अखिलेश की टीम इसकी समीक्षा करेगी।लेकिन फिलहाल तो अगले पांच साल एक बार फिर योगी आदित्यनाथ और भाजपा के खाते में चले गए। जाहिर है हर पार्टी अपनी हार की रणनीतिक खामियों की समीक्षा करेगी, कुछ समय बाद फिर से उठ खड़ी भी होगी, कुछ का मोहभंग होगा तो कुछ फिर से सत्ताधारी पार्टी की तरफ दौड़ लगाएंगे लेकिन सियासत में जंग कभी खत्म नहीं होती। खुद को फिर से स्थापित करने की कोशिश और सत्ता के दांवपेंच कभी कम नहीं होते। फिलहाल, यूपी में जश्न का माहौल है। भाजपा की जबरदस्त कामयाबी के बीच अब सबकी निगाह साल 2024 के इंतजार में है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

यूरोप को रूस विरोधी प्रतिबंधों के परिणाम भुगतने होंगे – रूसी मंत्री

मॉस्को, 11 मार्च ।  रूसी संघ के उप विदेश मंत्री अलेक्जेंडर पंकिन ने कहा है कि यूक्रेन में सैन्य अभियान को लेकर रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के परिणाम यूरोप को भुगतने होंगे।

आप हम पर लगाए गए प्रतिबंधों के प्रभाव अभी से देख सकते हैं, जो पश्चिमी यूरोप पर भी पडऩे वाला है। ये हम पर निर्भरशील हैं । हालांकि ये इसलिए नहीं प्रभावित होंगे कि हम ऊर्जा की आपूर्ति को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं बल्कि इसलिए क्योंकि हम अपने समझौतों और उनमें वर्णित अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी पूरा करते हैं।

यूपी समेत चार राज्यों में भाजपा का परचम, पंजाब में खूब चली झाड़ू

नई दिल्ली ,11 मार्च (आरएनएस)। उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में मतगणना पूरी हो गई है। भाजपा पंजाब को छोड़कर बाकी राज्यों में सरकार बनाने जा रही है। यूपी में एक बार फिर ऐतिहासिक जीत के साथ योगी राज वापस लौट रहा है। सपा को हालांकि 2017 के मुकाबले काफी ज्यादा सीटें मिली हैं लेकिन सरकार बनाने का सपना एक बार फिर धराशायी हो गया। पंजाब में आम आदमी पार्टी बंपर जीत के साथ सरकार बना रही है। पांचों राज्यों की मतगणना में चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं। राजनीतिक दलों के दिग्गज अपनी सीट हार गए।
उत्तराखंड की बात करें तो कांग्रेस के सीएम फेस हरीश रावत चुनाव हार गए हैं। उधर, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कांग्रेस प्रतिद्वंदी भुवन चंद्र कापड़ी से चुनाव हार गए हैं। हालांकि इस पहाड़ी प्रदेश में भी भगवा रंग लहराया है।
पंजाब में बड़ा उलटफेर करते हुए आम आदमी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना रही है। आप के सीएम फेस भगवंत मान धुरी विधानसभा सीट से जीत चुके हैं। जबकि कांग्रेस पार्टी की बुरी दशा जारी है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी दोनों सीटों से चुनाव हार गए हैं। वहीं, पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी अपनी सीट हार गए हैं। उन्हें आप कैंडिडेट जीवनजोत कौर ने हरा दिया है। अकाली परिवार भी इस चुनाव में बुरी हार का सामना कर रही है। पार्टी के दोनों दिग्गज प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल अपनी सीटें हार गए हैं। यहां कैप्टन अमरिंदर सिंह भी पटियाल सीट से चुनाव हार गए हैं।
उत्तराखंड में आखिरकार 20 साल का टूटा रिकॉर्ड टूट ही गया है। भाजपा प्रदेश में बहुमत के साथ उत्तराखंड में दोबारा सरकार बनाने जा रही है। हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सीएम पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए हैं, लेकिन भाजपा को बहुमत मिला है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों ने शिवसेना की भी पोल खोल दी है। चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि गोवा, उत्तर प्रदेश, मणिपुर में शिवसेना को नोटा से भी कम वोट मिले हैं। शिवसेना, जो एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन में महाराष्ट्र में सत्ता में है, ने इन तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा था। यूपी में हालांकि भाजपा ने बहुमत के साथ सरकार बना ली है। लेकिन यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य अपनी सीट हार गए हैं। सिराथू सीट पर सपा उम्मीदवार पल्लवी पटेल ने केशव प्रसाद मौर्य को 7337 वोटों के अंतर से हरा दिया है।

मानवीय त्याग और समर्पण पर आधारित है भोजपुरी फिल्म ‘संदेश’ 

भोजपुरी फिल्म जगत के चर्चित फिल्म निर्माता आर बी गौतम की बहुप्रतीक्षित भोजपुरी फिल्म ‘संदेश’ अब बहुत जल्द ही सिनेदर्शकों तक पहुँचने वाली है। 7 कर्णप्रिय गीतों से सजी इस फिल्म के कथाकार अनिल विश्वकर्मा, निर्देशक लखीचंद ठाकुर, सहायक निर्देशक अमृत लाल अमन, गीतकार मो. इदरीश खान व धर्मेंद्र राज, संगीतकार विपिन बिहारी व माधव सिंह राजपूत, नृत्य निर्देशक फिरोज खान और कैमरामैन बिरजू चौधरी व पंकज जोशी हैं।

गौतम फिल्म प्रोडक्शन के बैनर तले बनी इस फिल्म के मुख्य कलाकार अविनाश शाही, कल्पना शाह, प्रमोद माउथो, रवींद्र अरोड़ा, दीपक भाटिया, अमित बिग बी, ज्योति ठाकुर, धर्मेंद्र त्रिपाठी, राम विश्वकर्मा, बसंत कुमार, कर्ण मिश्रा, राधेश्याम गुप्ता और अशोक चतुर्वेदी आदि हैं। ‘महिला सशक्तिकरण’  के पक्ष में आवाज़ बुलंद करती इस फिल्म के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि महिलाएं आगे बढ़ेगी….तभी देश तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ेगा। बकौल फिल्म निर्माता आर बी गौतम भोजपुरी फिल्म ‘संदेश’ के माध्यम से ये भी समझाने का प्रयास किया गया है कि अशिक्षित समाज में अनेक तरह की समस्याएं जन्म लेती है और उसका दंश पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को झेलना पड़ता है। डिजिटल युग में समाज के सभी वर्ग को शिक्षित होना अति आवश्यक है। मूल रूप से मानवीय त्याग और समर्पण पर आधारित है भोजपुरी फिल्म ‘संदेश’।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

आधे से ज्यादा भ्रम दूर हुआ, संघर्ष जारी रहेगा – अखिलेश

लखनऊ ,11 मार्च (आरएनएस)। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार को लेकर अखिलेश यादव का पहला रिएक्शन का आया है। समाजवादी पार्टी के नेता ने इन नतीजों को भी सकारात्मक ढंग से लेने की बात कही है। अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा, उत्तर प्रदेश की जनता को हमारी सीटें ढाई गुनी व मत प्रतिशत डेढ़ गुना बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद। हमने दिखा दिया है कि भाजपा की सीटों को घटाया जा सकता है। भाजपा का ये घटाव निरंतर जारी रहेगा। आधे से ज़्यादा भ्रम और छलावा दूर हो गया है बाकी कुछ दिनों में हो जाएगा। जनहित के लिए संघर्ष जारी रहेगा। इससे पहले गुरुवार को नतीजों के वक्त अखिलेश यादव का कोई रिएक्शन सामने नहीं आया था।

अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया से साफ है कि वह वोट प्रतिशत और सीटों में इजाफे को लेकर खुश हैं। उन्होंने साफ कहा कि आपने हमारी सीटों को ढाई गुना तक बढ़ा दिया है, जो 2017 में मिलीं 47 सीटों के मुकाबले बढ़ते हुए 125 हो गई हैं। इसके अलावा समाजवादी पार्टी का वोट प्रतिशत भी तेजी से बढ़ते हुए 20 फीसदी की बजाय 32 फीसदी पर पहुंच गया है। इस तरह सपा ने वोट प्रतिशत के मामले में बड़ी सफलता हासिल की है, लेकिन फिर सीटों के मामले में उतनी बड़ी कामयाबी नहीं मिल सकी है। दरअसल इसकी एक वजह यह है कि मामला पूरी तरह से दो ध्रुवीय हो गया था और उसका फायदा सपा से कहीं ज्यादा भाजपा को ही मिला है।समाजवादी पार्टी के लिए दरअसल वोट शेयर के मामले में खुश होने की बड़ी वजह है। 2012 में सपा को जब पूर्ण बहुमत मिला था, तब उसे 224 सीटें मिली थीं, लेकिन वोट शेयर 29 फीसदी ही रहा था। लेकिन आज उसका वोट प्रतिशत तेजी से बढ़ते हुए 32 फीसदी के पार पहुंच गया है। यही वजह है कि सपा एक तरफ सरकार बनाने से भले ही चूक गई है, लेकिन दूसरी तरफ इस बढ़े वोट को भविष्य के लिए अपनी उम्मीदों के तौर पर देख रही है। इस चुनाव का सबसे बड़ा पहलू यह है कि बसपा का वोट फीसदी तेजी से घटते हुए 12 फीसदी के करीब ही रह गया है, जो कभी 20 फीसदी से कम नहीं रहा है।

पंजाब में जीत के साथ ही राष्ट्रीय पार्टी बनने की राह पर आप

नई दिल्ली ,11 मार्च (आरएनएस)। पंजाब में विधानसभा चुनाव जीत चुकी आम आदमी पार्टी (आप) को राष्ट्रीय दल के दर्जे का दावेदार बनने के लिए अगले दो विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने की जरूरत है जो इस साल के आखिर या अगले साल के प्रारंभ में होंगे। चुनाव आयोग के एक पूर्व अधिकारी ने चुनाव निशान (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि स्वत: ही राष्ट्रीय पार्टी बन जाने के लिए किसी भी पार्टी को चार राज्यों में प्रादेशिक (क्षेत्रीय) दल बनने की जरूरत होती है। आम आदमी पार्टी पहले से ही दिल्ली और पंजाब में प्रादेशिक दल है। वह दिल्ली में सत्ता में है जबकि वह पंजाब चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बाद वहां सत्तासीन होने जा रही है।
आदेश के प्रावधानों का हवाला देते हुए आयोग के पूर्व अधिकारी ने कहा कि किसी भी पार्टी को प्रादेशिक (क्षेत्रीय दल) का दर्जा प्राप्त करने के लिए आठ फीसद वोटों की जरूरत होती है। उन्होंने कहा,  विविध विकल्प हैं। यदि किसी पार्टी को विधानसभा चुनाव में छह फीसद वोट और दो सीटें मिलती है तो उसे प्रादेशिक पार्टी का दर्जा मिल जाता है। प्रादेशिक दल का दर्जा प्राप्त करने का दूसरा विकल्प है कि विधानसभा में कम से कम तीन सीटें मिल जाएं , भले ही वोटों की हिस्सेदारी कुछ भी हो।
उन्होंने कहा,  लोकसभा चुनाव में भी प्रदर्शन के संदर्भ में प्रावधान हैं लेकिन वे 2024 में होने वाले हैं। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध नवीनतम रूझानों के अनुसार आप गोवा विधानसभा चुनाव में 6.77 फीसद वोट हासिल करने में कामयाब रही है।
हिमाचल प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल आठ जनवरी, 2023 तक है जबकि गुजरात विधानसभा का कार्यकाल अगले साल 18 फरवरी को खत्म होगा। ये दोनों चुनाव इस साल के आखिर या 2023 के प्रारंभ में हो सकते हैं। आप गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश में चुनाव के लिए अपनी जमीन तैयार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।
चुनाव आयोग के अनुसार फिलहाल आठ राष्ट्रीय दल–तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एवं नेशनल पीपुल्स पार्टी हैं।

चुनावी मुद्दा नहीं बनता नदियों का जीना-मरना

कृष्ण प्रताप सिंह –

पहले चुनाव आते थे तो आम लोगों के रोटी, कपड़ा और मकान कहें या उनके जीवन निर्वाह से जुड़े मुद्दों पर सार्थक चर्चाएं हुआ करती थीं। पार्टियां व प्रत्याशी मतदाताओं को इन मुद्दों से जुड़ा अपना नजरिया व नीतियां समझाते नहीं थकते थे। साथ ही अपीलें करते थे कि मतदाता बूथों पर जायें तो किसी के बहकावे में न आयें और इन मुद्दों के आधार पर ही वोट दें। लेकिन अब चुनाव आते हैं, तो जान-बूझकर ऐसे मुद्दों को हाशिये में डालकर कुछ बहकाने वाले मुद्दों को आगे ला दिया जाता है और सारी बहसें उन्हीं के इर्द-गिर्द केंद्रित कर दी जाती हैं। ताकि मतदाताओं की जातियां व धर्म आगे आ जायें और उनके कौआ रोर में किये जाने वाले इमोशनल अत्याचार से वे इतने त्रस्त हो जायें कि अपनी जाति’ व अपने धर्म’ से आगे सोच ही न सकें। फिर उन्हीं के आधार पर सरकार चुन लें और फुरसत से पश्चाताप करते रहें।इन विधानसभा चुनावों में इसकी सबसे बड़ी नजीर यह है कि पंजाब में पीने के पानी के जहरीले हो जाने की जटिल होती जा रही समस्या वहां मतदान के दिन तक मुद्दा नहीं बन पाई। यह तब था, जब कभी पांच नदियों के पानी के लिए जाने जाने वाले इस प्रदेश में जहरीला पानी पीने की मजबूरी के शिकार अनेक नागरिक कैंसर से पीडि़त होकर त्रासद मौतों के शिकार हो रहे हंै। जब यह समस्या मुद्दा ही नहीं बन पाई तो इसी पर चर्चा क्यों होती। दरअसल, बीती शताब्दी के सातवें दशक में हरित क्रांति लाने की कोशिशों के दौरान अत्यधिक अनाज उगाने के लिए अपनाई गई कृषि पद्धति रासायनिक उर्वरकों पर कुछ ज्यादा ही निर्भर है। और अब वह अपना विकल्प तलाशे जाने की मांग करती है। इसी तरह मानव जीवन की रेखा कही जाने वाली नदियों से उनका ही जीवन छीन लेने पर आमादा प्रदूषण न सत्तापक्ष के लिए चुनाव का कोई मुद्दा है, न ही विपक्षी दलों के लिए। भले ही नदियां न केवल लोगों की प्यास बुझाती आई हों, बल्कि उनकी आजीविका का माध्यम भी हों। साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र और भूजल के स्तर को बनाए रखने में भी बड़ा योगदान देती हों। एक जानकार के शब्द उधार लें तो आज जो नदियां मैल व गन्दगी ढोने को अभिशापित हैं, वे धरती पर अपने अवतरण के वक्त से ही जीवन बांटती आई हैं। खास तौर पर मनुष्य का जीवन-मरण किस तरह नदियों पर निर्भर है, इसे यों समझ सकते हैं कि मनुष्य के मरणोपरांत उसके शारीरिक अवशेष भी नदियों में बहाए जाते हैं। ऐसे में कायदे से होना तो यह चाहिए था कि लगातार बढ़ते जा रहे प्रदूषण के कारण अस्तित्व के खतरे झेल रही नदियों और उनके बहाने मानव जीवन को पैदा हो रहे अंदेशों पर भरपूर चर्चा होती। इस कारण और कि इंग्लैंड की यॉर्क यूनिवर्सिटी द्वारा दुनिया भर की नदियों में दवाओं के अंशों का पता लगाने के लिए हाल में ही किये गये शोध से खुलासा हुआ है कि अब नदियों के जल के लिए पैरासिटामोल, निकोटिन व कैफीन के अलावा मिर्गी और मधुमेह आदि की वे दवाएं भी खतरा बनती जा रही हैं, जिनके अंश लापरवाही से नदियों के हवाले कर दिये जा रहे हंै। किसी एक देश में नहीं, प्राय: दुनिया भर में। अमेरिका की प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा प्रकाशित की गई इस शोध की रिपोर्ट में इस स्थिति को पर्यावरण के साथ ही मानव स्वास्थ्य के लिए भी घातक बताया गया है। यॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने इस शोध के लिए 104 देशों में नदियों की शहरों व कस्बों के नजदीक बहने वाली 1,052 साइटों से उनके पानी के नमूने एकत्रित किये और उनमें सक्रिय 61 दवाओं के अंशों (एपीआई) का परीक्षण किया, तो पाया कि दवा निर्माण संयंत्रों से निकले दूषित जल, बिना उपचार के सीवेज के पानी, शुष्क जलवायु और कचरा निपटान के तरीके का नदियों के पानी को प्रदूषित करने में योगदान लगातार बढ़ रहा है। हां, जिन देशों में आधुनिक दवाओं का इस्तेमाल कम होता है या उनके अंशों के अत्याधुनिक दूषित जल उपचार का ढांचा और नदियों में पर्याप्त बहाव है, वहां वे दवा प्रदूषण से अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं।दवाओं से नदी जल प्रदूषण की समस्या इसलिए भी जटिल हो रही है क्योंकि ज्यादातर देशों में दवा उद्योग से निकले प्रदूषित जल के निपटान के कानून बने तो हैं लेकिन उन पर अमल नहीं हो रहा। लेकिन अपने देश के सिलसिले में इसकी बात करें तो हम पाते हैं कि अभी इसे लेकर न सरकारें ठीक से सजग हैं और न ही लोग इतने जागरूक कि इसे लेकर सरकारों पर दबाव बना सकें। जहां तक राजनीतिक दलों की बात है, जब वे चुनावों के वक्त भी ऐसी समस्याओं को चर्चा के केन्द्र में नहीं लाना चाहते तो उनकी वास्तविक मंशा समझने के लिए और कौन से तथ्यों की जरूरत है? बिना जन दबाव के इन दलों को क्या फर्क पड़ता है अगर कल-कारखानों की निकासी, घरों की गंदगी, खेतों में मिलाये जा रहे रसायन, उर्वरक और भूमि कटाव के साथ दवाओं में प्रयुक्त हो रहे रसायन भी नदी जल को दूषित करने वाले कारकों में शामिल हो जायें। इसे लेकर वोट की चोट के बगैर वे क्योंकर समझने लगे कि नदियां महज जल-मार्ग नहीं हैं, वे बरसात की बूंदों को सहजेती हैं और धरती की नमी बनाये रखती है। जलवायु में हो रहे बदलाव में नदियां ही धरती पर जीवन का आधार हैं और उनमें बहता पानी मनुष्य की सांस की सीमा भी तय करता है। सिविल सोसायटी ने अभी भी इसके लिए सत्तातंत्र पर दबाव नहीं बनाया और सब कुछ राजनीतिक दलों व सरकारों की इच्छा और मंशा पर ही छोड़े रखा, तो कौन कह सकता है कि हालात वैसे ही नहीं होंगे, जैसे गंगा की सफाई के मामले में हुए हैं?

‘गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट’ की तिमाही बैठक सम्पन्न

गौ वंश पर आधारित भारत की पहली व एक मात्र राष्ट्रीय समाचार पत्र ‘गऊ भारत भारती’ द्वारा संचालित ‘गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट’ की तिमाही बैठक 10 मार्च को गोरेगाँव (मुम्बई) स्थित संस्था के कार्यालय में 10 मार्च को

‘गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट’ तथा  ‘गऊ भारत भारती’ के संस्थापक ट्रस्टी संजय अमान ,महासचिव ट्रस्टी राम कुमार पाल , सचिव प्रेम कुमार , विशाल भगत , राजेश मेहता और अन्य  कार्यकारिणी सदस्यों की उपस्थिति में संपन्न हुई। इस तिमाही बैठक में यूपी में 11.8 लाख से भी अधिक छुट्टा पशुधन पर संस्था के महासचिव और ट्रस्टी रामकुमार पाल ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि -” इस समस्या के समाधान के लिए ” गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट ” पहल करे और उत्तरप्रदेश में व्याप्त इस विषय पर हो रही राजनीति पर अंकुश लगाना जरुरी है क्योंकि यूपी में छुट्टा पशुओं की संख्‍या तेजी से बढ़ रही है। साल 2012 से 2019 के बीच सात सालों में छुट्टा पशुओं की संख्‍या 17.3% बढ़ गई। पशुगणना के मुताबिक, उत्‍तर प्रदेश में 2012 में 10 लाख से ज्‍यादा छुट्टा पशु थे, सात साल बाद 2019 में यह संख्‍या करीब 11.8 लाख हो गई। साल 2019 में आई 20वीं पशुगणना के मुताबिक, देश में राजस्‍थान के बाद सबसे ज्‍यादा छुट्टा पशु यूपी में मौजूद हैं। श्री पाल ने आगे कहा कि उत्तरप्रदेश में गौशालाओं के अलावा यूपी में ‘बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना’ भी चलाई जा रही है, ज‍िसके तहत लोगों को छुट्टा पशुओं को पालने के ल‍िए ₹30 प्रतिदिन द‍िए जाते हैं। इस योजना में एक लाख पशुओं को देने का लक्ष्‍य है। यह लक्ष्‍य करीब-करीब हास‍िल कर ल‍िया गया है। मगर इतना काफी नहीं है हमें आगे आ कर बड़े पैमाने पर छुट्टा पशुधन पर काम करने की जरुरत है। श्री पाल के इस सुझाव पर तुरंत ही  गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट तथा ” गऊ भारत भारती ”के संस्थापक ट्रस्टी संजय अमान , ने संस्था के सभी ट्रस्टियों से विचार कर एक रिजुलेशन पास किया कि उत्तर प्रदेश में छुट्टा पशुधन को गौशालाओ में पहुंचाने , उनके चारे पानी की समुचित व्यवस्था , उन के चिकित्सा व्यवस्था के लिए संस्था सरकार के साथ मिल कर जमीनी स्तर पर कार्य करेगी। बैठक के अंत में संस्था के सचिव प्रेम कुमार ने बैठक में आए सभी ट्रस्ट्रियों को धन्यवाद देते हुए पुनः उत्तरप्रदेश में भाजपा की जीत पर सब को बधाई दी।

विदित हो कि ”गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट ” अपनी 7वीं  वार्षिक वर्षगाँठ मना रहा है।  इस का वार्षिक उत्सव का कार्यक्रम 25 मार्च को महराष्ट्र के राज्यपाल माननीय महामहिम श्री भगत सिंह कोश्यारी जी के संरक्षण में राजभवन में होने जा रहा है। जिसमें गौसेवा और समाज से जुड़े लोगों को  राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान दे कर उन्हें सम्मानित भी किया जायेगा।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

प्रधानमंत्री मोदी ने 5 में से 4 राज्यों में जीत पर कार्यकर्ताओं को दी बधाई

*यूपी में 37 साल बाद कोई सरकार लगातार दूसरी बार आई है

नई दिल्ली ,10 मार्च (आरएनएस)। 5 में से 4 राज्यों में भाजपा को मिले जनादेश पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। पीएम मोदी ने कहा कि आज उत्साह का दिन है, उत्सव का दिन है। ये उत्सव भारत के लोकतंत्र के लिए है। मैं इन चुनावों में हिस्सा लेने वाले सभी मतदाताओं को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। उनके निर्णय के लिए मतदाताओं का आभार व्यक्त करता हूं। विशेष रूप से हमारी माताओं, बहनों और युवाओं ने जिस तरह से बीजेपी का समर्थन किया वह अपने आप में बड़ा संदेश है।
पीएम मोदी ने दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि चुनाव के दौरान भाजपा के कार्यकर्ताओं ने मुझसे वादा किया था कि इस बार होली 10 मार्च से ही शुरू हो जाएगी। हमारे कर्मठ कार्यकर्ताओं ने अपने वादे को पूरा करके दिखाया है। मैं अपने कार्यकर्ताओं की भूरी-भूरी प्रशंसा करूंगा, जिन्होंने इन चुनावों में कड़ी मेहनत की है। यूपी ने देश को अनेक प्रधानमंत्री दिए हैं, लेकिन 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले मुख्यमंत्री के दोबारा चुने जाने का ये पहला उदाहरण है। यूपी में 37 साल बाद कोई सरकार लगातार दूसरी बार आई है।
पीएम मोदी ने आगे कहा कि तीन राज्य यूपी, गोवा और मणिपुर में सरकार में होने के बावजूद भाजपा के वोट शेयर में वृद्धि हुई है। गोवा में सारे एग्जिट पोल गलत निकल गए और वहां की जनता ने तीसरी बार सेवा करने का मौका दिया है। सीमा से सटा एक पहाड़ी राज्य, एक समुद्र तटीय राज्य, मां गंगा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त एक राज्य और पूर्वोत्तर सीमा पर एक राज्य, भाजपा को चारों दिशाओं से आशीर्वाद मिला है। इन राज्यों की चुनौतियों भिन्न हैं, सबकी विकास यात्रा का मार्ग भिन्न है, लेकिन सबको जो बात एक सूत्र में पिरो रही है, वो है- भाजपा पर विश्वास, भाजपा की नीति, भाजपा की नीयत और भाजपा के निर्णयों पर अपार विश्वास।
इस दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत पार्टी के अन्य नेताओं ने पीएम मोदी को माला पहनाकर सम्मानित किया। इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा कि उत्तर प्रदेश में चार बार नरेंद्र मोदी को प्रदेश की जनता ने लगातार अपना आशीर्वाद दिया है। 2014 लोकसभा में प्रचंड जीत हासिल हुई थी, 2017 में प्रदेश की जनता ने आशीर्वाद दिया था। 2019 में जनता ने फिर से लोकसभा में आशीर्वाद दिया था। इस बार 2022 में चौथी बार भाजपा को उत्तर प्रदेश की जनता ने आशीर्वाद दिया है।
जेपी नड्डा ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की राजनीति की संस्कृति बदली है। लंबे समय तक एक राजनीति चल रही थी। वह राजनीति थी भाई, भतीजावाद, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता, जातिवाद, परिवारवाद, क्षेत्रवाद। इनकी राजनीति लंबे समय से चल रही थी। प्रधानमंत्री ने भारत की राजनीति की संस्कृति बदल दी है। अब रिपोर्ट कार्ड की राजनीति है। काम करोगे, जनता के बीच में जाओगे और जनता का आशीर्वाद लोगे। आज विकास की राजनीति है, महिला सशक्तिकरण, किसानों का सशक्तिकरण की राजनीति है।

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