मोदी मैजिक व कांग्रेसी चूक ने जमाया केसरिया रंग

दिनेश जुयाल –

एक हाथ में गरीबों के लिए राशन की थैली, दूसरे में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का मिक्स्चर, वाणी में देवभूमि की आराधना… उत्तराखंड में मोदी मैजिक इस बार कुछ इस रूप में था। पिछले राज के पहले सीएम त्रिवेंद्र सिंह की बेअंदाजी, उल्टे-सीधे फैसले और तीरथ सिंह के अनाड़ीपन ने जो जबरदस्त सत्ता विरोधी रुझान बनाया था उसके जहर को काटने के लिए ये जादू कारगर साबित हुआ। वैसे कांग्रेस के बुजुर्ग क्षत्रप हरीश रावत भी श्रेय के हकदार हैं। फिर से सीएम बनने की जिद में अपने आगे किसी को खड़ा नहीं होने दिया। कांग्रेस की दिल्ली भी समझ रही थी कि बुजुर्गवार इस बार नैया डुबो सकते हैं लेकिन उन्होंने बड़े ही भावुक अंदाज में ऐसी सौदेबाजी की कि इधर कुआं उधर खाई वाली कहानी बना कर ही माने। भारी बहुमत से भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता में लौट रही है। बसपा को सीट मिली लेकिन वोट पिछली बार जितने भी नहीं, आम आदमी पार्टी कुछ नहीं कर पाई। निर्दलीयों की सौदेबाजी की गुंजाइश नहीं बची। भाजपा के सारे अवगुण हर की पौड़ी में धुल गए हैं। सीएम फेस कांग्रेस और आप का ही नहीं, भाजपा का भी पिट गया। यहां का मुख्यमंत्री वैसे भी 22 साल से दिल्ली से तय होकर आता है। अब कौनÓ का जवाब भी जल्द मिलेगा।कुछ एक्जिट पोल विशेषज्ञों के अलावा, सारे चुनावी विश्लेषक, ग्राउंड रिपोर्ट लिखने वाले और एनालिस्ट भी हार गए। भाजपा का अपना खुफिया एक्जिट पोल भी फेल। उत्तराखंड में मोदी पास हो गए, वह भी विशेष योग्यता के साथ। मोदी के जादू ने उत्तराखंड में सत्ता की सवारी बारी-बारी’ के मिथक को भी तोड़ दिया लेकिन एक मिथक नहीं टूटा कि सीएम दुबारा नहीं जीतता।14 फरवरी को वोट पडऩे के बाद एक के बाद एक भाजपा के चार विधायक बोले, हम तो हार रहे हैं और हमें पार्टी अध्यक्ष हरा रहे हैं। कुछ और आवाजें ऐसी ही आईं तो लगा भाजपा तो गई। तभी पोस्ट पोल अपनी खास भूमिका निभाने वाले कैलाश विजयवर्गीय की उत्तराखंड में एंट्री हुई और वह निशंक के साथ बसपा और जीतने की क्षमता वाले निर्दलीयों को साधने लगे। वहीं कांग्रेस ने अपना रेवड़ बचाने के लिए छत्तीसगढ़ से भूपेश बघेल की मदद मांगी और राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत साहब को विधायकों की सेवा के लिए तैयार रहने को कहा। हरदा यानी अपने हरीश रावत कभी अपनी आने वाली सरकार की प्राथमिकताएं गिनाने तो कभी अपनी विजय की पूर्व-घोषणा करने के लिए मीडिया को दर्शन देते रहे। पार्टी देना तो उन्हें अच्छा लगता है। कुछ नहीं तो सड़क किनारे टिक्की तलते हुए ही अपनी खुशी बांटते रहे। उत्तराखंड के दो पत्रकारों ने यहां के बाकी पत्रकारों को जोड़ कर दो एक्जिट पोल अलग से किए। सब कांग्रेस को बढ़त दे रहे थे। तो हरदा के लिए खुश होने के तमाम कारण थे। गांव-गांव में महिला मंगल दलों को चंदा तो कांग्रेस ने भी दिया, वे गई भी उत्साह से थीं। पुरुषों से दो फीसदी अधिक वोट करने वाली इन संगठित महिलाओं ने कुछ और ही सोच रखा था। हरक सिंह जैसे बेजोड़ खर्चीले कांग्रेसियों का सोमरस भी तो सबने पिया लेकिन सुबह जब नहा-धोकर वोट करने निकले तो उसका असर गायब था।हरदा फैक्टर की बात करें तो उन्होंने पहले सीएम फेस की लड़ाई लड़ी फिर सीएम बनने की जुगत में ऐसी फौज सजाई कि मोदी जी के लिए किला भेदना आसान हो गया। रामनगर से रणजीत सिंह को सल्ट भगा कर ही माने। रामनगर वालों ने हाथ खड़े कर दिए तो लालकुआं के कुएं में जाकर खुद भी डूब गए। इधर सल्ट और रामनगर की जीती हुई-सी सीटें भी गई। नैनीताल सीट भाजपा से लौटे यशपाल आर्य के नाम कर उसे भी गंवा दिया। हरक सिंह को आखिरी वक्त में एंट्री तो दे दी लेकिन चुनाव नहीं लडऩे दिया। मुस्लिम यूनिवर्सिटी खोलने जैसी घोषणा कर नया विवाद खड़ा कर दिया। अब भाजपा की इससे अधिक मदद क्या कर सकते थे। अब घर बैठेंगे जैसा कि उन्होंने वचन दिया है।पिछले 22 साल में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए यहां की सदाबहार म्यूजिकल चेयर रेस में पिछली बार कुछ ज्यादा ही रंग दिखे थे। सत्ता की हनक के नमूने भी जनता ने गजब देखे। हालात ऐसे हो गए कि भाजपा को एक टर्म में तीन मुख्यमंत्रियों को आजमाना पड़ा। पिछले 22 साल में राज्य सरकार की इतनी किरकिरी कभी नहीं हुई। मुख्यमंत्री धामी की हार के बाद एक बार फिर ये तमाशा होगा। 21 साल में 11 मुख्यमंत्री देने वाले उत्तराखंड की नई विधानसभा में मदन कौशिक और सतपाल महाराज के अलावा कितने सीएम फेस हैं अभी पता नहीं। अनिल बलूनी जैसे कुछ दिल्ली में भी बैठे हैं और लंबे समय से जुगाड़ भिड़ा रहे हैं। हां, हरक सिंह के कांग्रेस में जाने से कुर्सी-खींच वाले खेल की रौनक कुछ कम रहेगी। वह अपनी बहू को विधायक बनाने के फेर में खुद भी किनारे हो गए। हो सकता है फिर माफीनामा तैयार कर भाजपाई साफा पहन कर खेल करें। मंत्री बनने के लिए भी यहां खूब रूसा-रूसी होती है। अब पर्यवेक्षकों पर जिम्मेदारी पडऩे वाली है। उत्तराखंड पर 2024 से पहले मोदी जी कितनी कृपा बरसाते हैं, यह भी देखना दिलचस्प होगा।

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