नई दिल्ली,31 मार्च (आरएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के वन्नियार समुदाय को दिए गए 10.5 फीसदी के आरक्षण को खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी समुदाय को आरक्षण देने के लिए जाति ही एकमात्र आधार नहीं हो सकती है। वन्नियार समुदाय को तमिलनाडु में मोस्ट बैकवर्ड कम्युनिटी माना जाता है। जस्टिस एल. नागेश्वर राव और बीआर गवई की बेंच ने मद्रास हाई कोर्ट के 1 नवंबर को दिए गए फैसले को बरकरार रखते हुए यह आदेश दिया। हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ तमिलनाडु सरकार और पीएमके ने याचिका दायर की थी।
जस्टिस नागेश्वर राव ने कहा कि 2021 में तमिलनाडु सरकार की ओर से बनाया गया यह कानून संविधान की शक्तियों का बेजा इस्तेमाल है। उन्होंने कहा कि इस बात का कोई आधार नहीं बनता है कि वन्नियार समुदाय को अलग श्रेणी में रखा जाए। फरवरी 2021 में वन्नियार समुदाय को मोस्ट बैकवर्ड कम्युनिटी घोषित करते हुए तमिलनाडु विधानसभा में 10.5 फीसदी आरक्षण देने का कानून पारित किया गया था। यह कोटा एमबीसी के लिए तय 20 फीसदी आरक्षण में से ही दिया जाना था। इस फैसले के तुरंत बाद इसे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। तब शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए सुनवाई से इनकार कर दिया था कि इस बारे में हाई कोर्ट फैसला देगा।
हाई कोर्ट ने आरक्षण को खारिज कर दिया था और फिर उसके आदेश को चुनौती दिए जाने पर शीर्ष अदालत ने भी उसके फैसले को सही करार दिया है। हाई कोर्ट ने बीते साल अपने फैसले में कहा था कि एआईएडीएमके सरकार की ओर से वन्नियार समुदाय को दिए गए 10.5 फीसदी आरक्षण का कोई आधार नहीं बनता है। अदालत ने कहा था कि यह आरक्षण देने के लिए ऐ्सा कोई डेटा नहीं है, जो यह साबित करता हो कि वन्नियार समुदाय अति पिछड़े वर्ग में हैं। इसके बाद तमिलनाडु सरकार और पीएमके ने हाई कोर्ट के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
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