देश में बने अनेक जनजातीय परंपरागत क़ानून पर अनुसंधान की ज़रूरत : अमित शाह

– राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान उद्घाटित

नईदिल्ली,07 जून (आरएनएस)।देश में बने अनेक जनजातीय परंपरागत क़ानून पर अनुसंधान की ज़रूरत. केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को नई दिल्ली में राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान का उद्घाटन किया। इस अवसर पर केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा, केन्द्रीय विधि और न्याय मंत्री किरेन रिजीजू, जनजातीय कार्य राज्यमंत्री श्रीमती रेणुका सिंह सरुता और जनजातीय कार्य एवं जलशक्ति राज्यमंत्री विश्वेश्वर टुडु सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

अपने संबोधन में केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि आज का दिन पूरे देश, विशेषकर जनजातीय समाज, के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कल्पना के अनुसार आज ये राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान अस्तित्व में आ रहा है। देश में अनेक जनजातीय अनुसंधान संस्थान काम कर रहे हैं लेकिन जनजातीय समाज की अनेक विविधताओं को राष्ट्रीय रूप से जोडऩे वाली कड़ी नहीं थी और नरेन्द्र मोदी की कल्पना के अनुसार बन रहा ये संस्थान वो कड़ी बनेगा।

अमित शाह ने कहा कि आज़ादी के बाद पहली बार नरेन्द्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस मनाने की घोषणा भी की और मनाया भी। गुजरात के मुख्यमत्री रहते हुए मोदी ने जनजातीय समाज के समग्र विकास के लिए वनबंधु कल्याण योजना के रूप में एक ऐसी योजना शुरू की जिससे व्यक्ति, गाँव और क्षेत्र का समानांतर विकास हुआ।

जब तक व्यक्ति, गांव और क्षेत्र का संपूर्ण विकास नहीं होता तब तक जनजातीय समाज का विकास नहीं हो सकता। इसके लिए मोदी ने पहली बार वनबंधु कल्याण योजना गुजरात में ज़मीन पर उतारी थी और आज़ादी के बाद पहली बार जनजातीय समाज को संविधानप्रदत्त अधिकार अगर की राज्य ने दिया तो वो नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात ने दिया। सबका, समावेशी और सर्वस्पर्शीय विकास को ध्यान में रखकर वनबंधु कल्याण योजना बनाई गई थी। अब मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर भी अनेक प्रकार की विविधता वाले इस देश के 8 प्रतिशत जनजातीय समाज के विकास को एकसूत्र में पिरोने के लिए इस संस्थान की कल्पना की थी।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि जल, जंगल, ज़मीन, शिक्षा, स्वास्थ्य, कला, संस्कृति, भाषा, परंपरा से संबंधित देश में अनेक जनजातीय परंपरागत क़ानून बने हुए हैं जिनपर अनुसंधान की ज़रूरत है। इन क़ानूनों का वर्तमान क़ानून के साथ सामंजस्य किए बिना किसी भी जनजातीय कल्याण के क़ानून पर अमल नहीं हो सकता। इन सभी विषयों पर अनुसंधान राष्ट्रीय स्तर पर ही हो सकता है और उसे राष्ट्रीय मान्यता भी तभी मिलेगी।

शाह ने कहा कि ये संस्थान विभिन्न विषयों पर अनुसंधान और उनका मूल्यांकन करेगा, कर्मचारियों का प्रशिक्षण और अन्य संस्थानों का क्षमता निर्माण करेगा, डेटा संग्रह भी करेगा और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए अच्छी बातों का प्रचार-प्रसार भी करेगा। जनजातीय त्यौहारों को, उनकी मूल भावना को संजोए रखते हुए, आधुनिक स्वरूप देकर लोकप्रिय बनाने का काम भी करेगा। मोदी द्वारा कल्पित जनजातीय संग्रहालयों की विविधता, रखरखाव पर भी काम करेगा। एक प्रकार से समग्र जनजातीय समाज के विकास का ख़ाका खींचने का काम ये अनुसंधान संस्थान करेगा। ये अनुसंधान संस्थान आने वाले 25 सालों में जनजातीय विकास की रीढ़ की हड्डी बनने वाला है।

अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने शुरूआत से ही अनुसंधान संस्थान और जनशिक्षा पर बहुत बल दिया है। पिछली सरकार के समय वर्ष 2014 में इसके लिए बजट सात करोड़ रूपए था जिसे 2022 के बजट में बढ़ाकर 150 करोड़ रूपए कर दिया गया। किसी भी विकास के लिए नींव ठोस होनी चाहिए और विकास योजनाओं के आधार को मज़बूत उनकी कमियों का अभ्यास करके, नीति बनाकर और उसपर अमल करके ही किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि स्वीकृत ट्राईबल रिसर्च इंस्टिट्यूट की संख्या में भी बहुत बढ़ोतरी करके 27 बनाए गए हैं।

49 प्रतिष्ठान आज सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रूप में सर्टिफाइड हैं। जनजातीय जनप्रतिनिधियों, जनजातीय क्षेत्रों में काम करने वाले एनजीओ, रिसर्च इंस्टिट्यूट को इनका बहुत अच्छे से उपयोग करना चाहिए कि आदिवासी का स्वास्थ्य कैसे ठीक हो, उनमें न्यूट्रीशन की कमी को कैसे हल किया जाए, परंपरागत रोगों को कैसे दूर किया जाए और कैसे उन्हें सम्मान के साथ आत्मनिर्भर बनाया जाए। इन सारी चीजों को इस संस्थान और सेंटर फॉर एक्सीलेंस से ही आगे बढ़ा सकते हैं।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि नरेन्द्र मोदी ने 2014 में महसूस किया कि राष्ट्रीय स्तर पर जनजातीय नीतियां देश की सभी जनजातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं। जनजाति संबंधी लीगेसी के मुद्दों पर भी कई विवाद सालों से लंबित हैं जिनका निपटारा भी जरूरी है और जनजातीय मुद्दों पर नॉलेज बैंक भी बनाना चाहिए। इन सभी को ध्यान में रखकर इस संस्थान की कल्पना की गई थी जो लगभग 10 करोड रूपए की लागत से आज पूरी हो गई है। उन्होंने कहा कि यह अनुसंधान संस्थान सरकार को नीतिगत जानकारी देगा, राष्ट्रीय नोडल एजेंसी के रूप में भी काम करेगा, सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और संवर्धन के लिए राष्ट्रीय ज्ञान केंद्र भी यहीं बनाया जाएगा, और, शैक्षणिक, कार्यकारी और विधायी क्षेत्र में जनजातियों की समस्याओं के समाधान के लिए भी काम करेगा।

शाह ने कहा कि जनजातियों के सम्मान के लिए मोदी सरकार ने ढेर सारे काम किए हैं। कई राज्यों में ठुकराए और भुला दिए गए जनजातीय नेताओं को गौरव प्रदान करने का काम नरेंद्र मोदी ने किया है। चाहे खासी-गारो आंदोलन हो, मिज़ो आंदोलन हो, मणिपुर का आंदोलन हो, वीर दुर्गावती का शौर्य हो या रानी कमलावती का बलिदान हो, इन सबको गौरव देने का काम मोदी सरकार ने किया है। भगवान बिरसा मुंडा के साथ जोड़कर आदिवासी जनजातीय गौरव दिवस मनाने का भी हमने फैसला किया है। लगभग 200 करोड़ रूपए की लागत से 10 संग्रहालय भी हम बना रहे हैं।

अमित शाह ने कहा कि गृह मंत्रालय के अंतर्गत नॉर्थ-ईस्ट, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों और जम्मू कश्मीर में जनजातियों से जुड़ी हुई अनेक समस्याएं लंबित थीं, जो धीरे-धीरे कानून और व्यवस्था की स्थिति में परिवर्तित हो गईं। मोदी ने 2019 के बाद नॉर्थईस्ट में एक के बाद एक कई कदम उठाए हैं। कई जनजातियों के साथ हमने समझौते किए हैं कि आज एएफएसपीए को नॉर्थईस्ट के लगभग 66त्न से ज्यादा क्षेत्र से हमने उठा लिया है और शांति प्रस्थापित की है। वर्ष 2006 से 2014 तक के पिछली सरकार के आठ सालों में छोटी-छोटी घटनाओं को गिनकर पूर्वोत्तर में 8700 घटनाएं हुईं थीं जबकि नरेंद्र मोदी के 8 सालों के शासन में इन घटनाओं में लगभग 70त्न की कमी आई है।

पहले 304 सुरक्षाकर्मियों की मृत्यु हुई थी जिसमें अब 60त्न की कमी आई है, नागरिकों की मृत्यु का आंकड़ा भी पहले की तुलना में 83त्न तक कम हुआ है और इन सबसे आप कल्पना कर सकते हैं कि नॉर्थईस्ट में कितना बड़ा बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि जिस क्षेत्र में शांति होती है उसी क्षेत्र में विकास होता है फिर चाहे वो वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र हो या नॉर्थईस्ट हो, जहां जनजाति ही रहती है। सुरक्षित पूर्वोत्तर और सुरक्षित मध्य भारत के वामपंथी उग्रवादग्रस्त क्षेत्र जनजातीय कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि एकलव्य स्कूल के लिए 278 करोड रूपए का बजट था जिसे इस साल के बजट में बढ़ाकर 1,418 करोड़ रूपए करने का काम हमने किया है। ओलंपिक में मेडल जीतने की सबसे अच्छी क्षमता आदिवासी बच्चों में ही होती है क्योंकि वह परंपरा से खेलता है। उसे बस नियमों की जानकारी देनी है, नियम समझाने हैं, अभ्यास कराना है, प्रशिक्षण देना है और मंच देना है। वह तो एक नेचुरल खिलाड़ी है। इन एकलव्य स्कूलों में खिलाडिय़ों को तैयार करने की विशेष व्यवस्था हमने की है। पहले 42,000 रूपए एक छात्र पर खर्च किए जाते थे लेकिन अब 1,09,000 रूपए खर्च होते हैं।

यही बताता है कि नरेंद्र मोदी सरकार कितनी बारीकी से चीजों को सोचती है और जो योजना हाथ में लेती है उसकी आत्मा को समझकर उसे परिपूर्ण करने का हम प्रयास करते हैं। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा जनजातीय सांसद आज हमारी पार्टी के हैं, सबसे ज्यादा जनजातीय मंत्री और नीतियां बनाने का गौरव भी नरेन्द्र मोदी को प्राप्त है। छात्रवृत्ति में भी हमने काफ़ी वृद्धि की है। वर्ष 2014 में 978 करोड़ रूपए खर्च किए जाते थे और अब 2,546 करोड रुपए खर्च किए जाते हैं। ये वृद्धि नरेंद्र मोदी के अलावा और कोई नहीं कर सकता और जनजातीय योजनाओं के लिए 2014 में 21,000 करोड़ रूपए आवंटित किए गए थे जिसे 2021-22 में बढ़ाकर 86,000 करोड़ रूपए किया गया और इसमें से 93त्न खर्च भी किया गया। पिछली सरकारें पहले जनजातीय कल्याण की बात तो करती थीं, लेकिन आदिवासी के घर में पानी, शौचालय नहीं था, स्वास्थ्य कार्ड नहीं था, कोई आवास योजना नहीं थी, किसान सम्मान निधि नहीं मिलती थी।

आज बात करें तो जल जीवन मिशन के तहत हर घर जल योजना के तहत 1.28 करोड आदिवासी घरों में नल से जल पहुंच चुका है, 1.45 करोड़ आदिवासियों के घर में शौचालय है, 82 लाख जनजातीय परिवारों को आयुष्मान कार्ड दिया गया है, प्रधानमंत्री आवास योजना में 40 लाख से ज्यादा जनजातीय परिवारों को घर देने का काम हो गया है और किसान सम्मान निधि में लगभग 30 लाख किसानों को इसका फायदा पहुंच रहा है। नरेंद्र मोदी ने इन सब योजनाओं की बारीकी से मॉनिटरिंग कर इन्हें जमीन पर उतारा है।

उन्होंने कहा कि यह सारे काम जनजातीय कल्याण के लिए मोदी ने 8 साल में किए हैं लेकिन पहली बार स्ट्रक्चरल तरीके से देशभर की जनजातियों को, छोटी से छोटी जनजाति को समाहित करके, उसके कल्याण की योजना यह अनुसंधान केंद्र बनने के बाद बनेगी, इसका मुझे पूरा विश्वास है।

***********************************

तपती धरती का जिम्मेदार कौन?

मिलावटखोरों को सजा-ए-मौत ही इसका इसका सही जवाब

जल शक्ति अभियान ने प्रत्येक को जल संरक्षण से जोड़ दिया है

इसे भी पढ़ें : भारत और उसके पड़ौसी देश

इसे भी पढ़ें : चुनावी मुद्दा नहीं बनता नदियों का जीना-मरना

इसे भी पढ़ें : *मैरिटल रेप या वैवाहिक दुष्कर्म के सवाल पर अदालत में..

इसे भी पढ़ें : अनोखी आकृतियों से गहराया ब्रह्मांड का रहस्य

इसे भी पढ़ें : आर्द्रभूमि का संरक्षण, गंगा का कायाकल्प

इसे भी पढ़ें : गुणवत्ता की मुफ्त शिक्षा का वादा करें दल

इसे भी पढ़ें : अदालत का सुझाव स्थाई व्यवस्था बने

इसे भी पढ़ें : भारत की जवाबी परमाणु नीति के मायने

इसे भी पढ़ें : संकटकाल में नयी चाल में ढला साहित्य

Leave a Reply

Exit mobile version