*एम्स फैकल्टी एसोसिएशन ने विरोध जताकर सदस्यों से मांगी राय*
नई दिल्ली ,03 सितंबर (आरएनएस/FJ)। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली की फैकल्टी एसोसिएशन ने देश के सभी 23 एम्स को विशिष्ट नाम देने के सरकारी प्रस्ताव का विरोध किया है और इस मुद्दे पर अपने सदस्यों की राय मांगी है। एसोसिएशन ने तर्क दिया है कि इस प्रस्ताव पर अमल से संस्थान की पहचान समाप्त हो जाएगी।
सदस्यों के बीच प्रसारित एक नोट में एसोसिएशन ने कहा है कि पहचान नाम से जुड़ी होती है और अगर पहचान खो जाती है तो देश के भीतर और बाहर संस्थागत मान्यता भी खो जाती है। यही कारण है कि ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज और हार्वर्ड जैसे प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों का नाम सदियों से एक ही है।
एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अचल कुमार श्रीवास्तव और महासचिव डॉ. हर्षल रमेश साल्वे के दस्तखत वाले नोट के मुताबिक, भारत में आईआईटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) की पहचान उनके नाम से है, जो उन्हें एक संस्थान की पहचान देती है और इसे बदलने का कोई प्रस्ताव नहीं है। आईआईएम (भारतीय प्रबंधन संस्थान) के मामले में भी ऐसा ही है।
इसमें लिखा है कि नाम पर आधारित पहचान कितनी मजबूत होती है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कलकत्ता, बंबई और मद्रास विश्वविद्यालय ने अपना नाम बरकरार रखा है, जबकि वे जिन शहरों में स्थित हैं, उनका नाम बदलकर कोलकाता, मुंबई और चेन्नई किया जा चुका है। अगर नाम बदल दिया जाता है तो एम्स दिल्ली को पहचान और मनोबल की भारी क्षति का सामना करना पड़ेगा। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की स्थिति को भी प्रभावित करेगा।
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों यह सामने आया था कि सरकार ने दिल्ली सहित देश के सभी 23 एम्स का नाम स्थानीय नायकों, स्वतंत्रता सेनानियों, क्षेत्र की ऐतिहासिक घटनाओं या स्मारकों के नाम पर रखने का प्रस्ताव किया है।
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