अनिल सिन्हा –
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की आहट से संबंधित राज्यों में राजनीतिक उठापटक तेज हो गई है। बीजेपी ने उत्तराखंड में चार महीने में तीन मुख्यमंत्री दे दिए। कर्नाटक में (हालांकि वहां चुनाव 2023 में हैं) येदियुरप्पा को सीएम की कुर्सी से हटाया और गुजरात में तो मुख्यमंत्री के साथ उनका पूरा मंत्रिमंडल ही बदल डाला। मुख्यमंत्रियों की छुट्टी करने की इस लहर की चपेट में पंजाब भी आ गया है। वहां नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने शपथ ले ली है। वह राज्य के पहले दलित मुख्यमंत्री हैं। वहां दलितों की आबादी करीब एक तिहाई है, लेकिन उन्हें राज्य का नेतृत्व संभालने का मौका अभी तक नहीं मिल पाया था। अगर सामाजिक प्रगति के लिहाज से देखें तो यह एक क्रांतिकारी घटना है। पंजाब की राजनीति में संपन्न किसानों का, बल्कि कहें जाट समुदाय का वर्चस्व रहा है। सिखों और हिंदुओं, दोनों में वे ही नेतृत्व में रहे हैं।
विभाजन का जख्म
भारत-पाक विभाजन में सबसे ज्यादा नुकसान पंजाब ने ही उठाया। यह इसके बावजूद हुआ कि वहां मुस्लिम लीग की राजनीति का कोई असर नहीं था और बड़े किसानों ने एक सेकुलर गठबंधन बना रखा था। विभाजन ने राज्य की राजनीति और जीवन, दोनों को बदल दिया। बंटवारे के बाद दोनों ओर सामूहिक कत्लेआम हुए और इसका नतीजा है कि पाकिस्तान वाले हिस्से में हिंदुओं-सिखों की आबादी ना के बराबर रह गई। यही हाल भारत वाले हिस्से का हुआ। यहां भी डेढ़ प्रतिशत मुसलमान रह गए। पंजाब में हिंदुओं, सिखों और मुसलमानों की आपस में गुंथी हुई जिंदगी थी। विभाजन से सब कुछ टूट गया। विभाजन के बाद वहां की राजनीति नए सिरे से शुरू हुई। इस नई राजनीति में अकाली दल और कांग्रेस के अलावा वाम दल प्रमुख भूमिका में थे।
खालिस्तानी आतंकवाद भी विभाजन से कम बड़ी परेशानी लेकर नहीं आया। इसने भी वहां के जन-जीवन को अस्त-व्यस्त किया। ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसी घटनाएं हुईं। इसके बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी गई। राज्य के लोग इस दौर से भी निकल गए। ध्यान देने लायक बात है कि इस कठिन दौर में भी खेती और औद्योगिक उत्पादन नीचे नहीं आया।
सामाजिक-आर्थिक हिसाब से देखें तो देश के बाकी हिस्सों की तरह यहां भी दलित हाशिए पर ही हैं। करीब 32 प्रतिशत की आबादी होने के बावजूद जमीन और संपत्ति में उनका न्यूनतम हिस्सा है। सिख धर्म के कारण उन्हें उस तरह के सामाजिक उत्पीडऩ का शिकार नहीं होना पड़ता है, जो देश के बाकी हिस्सों में दिखाई देता है, लेकिन उनका आर्थिक शोषण कम नहीं है। शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में भी उनकी भागीदारी काफी कम है।
यह भी समझना गलत होगा कि समुदाय के रूप में दलित आपस में एक हैं। उनका एक तिहाई हिस्सा सिख है और मजहबी सिख कहलाता है। वे खेती से जुड़े हैं और ज्यादातर भूमिहीन किसान और खेतिहर मजदूर हैं। चर्मकार और वाल्मिकी समाज की तादाद भी अच्छी है। वे क्षेत्रीय आधार पर भी आपस में बंटे हुए हैं। उनकी राजनीतिक भागीदारी क्षेत्रीय आधार पर भी तय होती है।
कांशीराम ने अस्सी के दशक में दलितों को एक करने की कोशिश की थी और उनके प्रयासों का असर 1992 के चुनावों में दिखाई पड़ा। बीएसपी ने तब विधानसभा की नौ सीटें जीत ली थीं और उसे कुल 16 प्रतिशत वोट मिले। पार्टी ने 1996 का लोकसभा चुनाव शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर लड़ा और तीन सीटों पर कब्जा किया। कांशीराम भी चुने गए। लेकिन कांशीराम के बाद बीएसपी का फोकस उत्तर प्रदेश पर ही रहा और पंजाब में पार्टी का आधार कमजोर होता गया। 2017 के चुनावों में उसे सिर्फ डेढ़ प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा।
परंपरागत रूप से दलित कांग्रेस के साथ रहे हैं। उसके जनाधार में बीएसपी की ओर से सेंध लगी थी, लेकिन अब दलित वापस इस ओर आ गए हैं। कांग्रेस ने 2017 के चुनावों में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 34 में से 22 सीटें जीती थीं। इसे ध्यान में रख कर ही अकाली दल ने आने वाले चुनावों के लिए मायावती से गठबंधन किया है। उसने बीएसपी को बीस सीटें दी हैं। अकाली दल ने यह वादा भी किया है कि उसकी सरकार आई तो वह दलित को उपमुख्यमंत्री पद देगा।
यह कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती थी कि दलित समुदाय को वह किस तरह संतुष्ट करे। सत्ता-विरोधी भावना से डरी हुई कांग्रेस के लिए दलित समुदाय का वोट काफी मायने रखता है। कांग्रेस के इस दांव ने अकाली दल के उपमुख्यमंत्री पद के वादे को तो निरर्थक बना ही दिया है, लेकिन क्या दलित समुदाय का दिल जीतने के लिए यह काफी होगा?
मजबूरियां कम नहीं
निश्चित रूप से विपक्षी दल इस कदम के पीछे छुपी कांग्रेस की मजबूरियां गिनाएंगे। सच भी है, पंजाब में दलित मुख्यमंत्री बनाने के पीछे कुछ तात्कालिक कारण भी काम कर रहे थे। एक बड़ा कारण तो यह था कि लंबे समय से कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे कैप्टन अमरिंदर की जगह भरने के लिए ऐसे नेता की जरूरत थी, जो पार्टी के भीतर का शक्ति-संतुलन स्थिर रखे। नवजोत सिंह सिद्धू से खार खाए कैप्टन ने उनके खिलाफ ऐसा बयान दे दिया, जिससे विपक्ष को तिल मिल गया है। वह जब चाहे इसका ताड़ बना सकता है। जाटों के दो बड़े नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा और सुनील जाखड़ के नाम पर सहमति न हो पाना भी एक कारण रहा, जिसकी वजह से अंत में चन्नी का नाम तय करना पड़ा।
इन सबके बावजूद कांग्रेस का यह फैसला दूरगामी परिणाम ला सकता है। उत्तर प्रदेश में मायावती कांग्रेस पर निशाना साधती रही हैं। प्रतीकों की राजनीति के दौर में यह कदम अनदेखा नहीं रह सकता। यह भी ध्यान रखना होगा कि तमाम किंतु-परंतु के बावजूद यह सामाजिक प्रगति की ओर एक कदम है।
चीन हमारे मुकाबले में कहीं खड़ा ही नहीं हो सकता
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को जो भाषण दिया, वह ऐतिहासिक सिर्फ इसलिए नहीं है कि उसमें अफगानिस्तान, आतंकवाद और कोरोना जैसी चुनौतियों पर बड़ी स्पष्टता और उतनी ही गंभीरता से भारत का पक्ष रखा गया है। प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की अहमियत इस बात में है कि छोटे मसलों में उलझने के बजाय इसमें बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों से उभरी चुनौतियों को रेखांकित करने की कोशिश की गई और इससे भी बड़ी बात यह कि इन चुनौतियों के पीछे छिपे अवसर को पहचानते हुए उसका उपयुक्त इस्तेमाल करने की दूरदर्शिता दिखाई गई है। यह अकारण नहीं है कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भारत को लोकतंत्र की जननी के रूप में चित्रित करते हुए वैश्विक बिरादरी को याद दिलाया कि हमारे देश में लोकतंत्र की हजारों वर्षों की परंपरा है।
विविधता हमारे समाज की पारंपरिक विशिष्टता रही है। कामकाज में पारदर्शिता हमारी स्वाभाविक शैली है। गौर करने की बात यह है कि ये कुछ ऐसे बिंदु हैं, जहां चीन मुकाबले में कहीं खड़ा ही नहीं हो सकता। न तो वहां लोकतंत्र है और ना ही पारदर्शिता। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में ठीक ही कोरोना की उत्पत्ति और वर्ल्ड बैंक के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स के कैंसिलेशन का मुद्दा उठाया। वैश्विक बिरादरी इन दोनों सवालों पर चीनी रुख में पारदर्शिता की कमी से जूझ रही है। दुनिया देख सकती है कि एक तरफ भारत है, जो कोरोना की चुनौती से खुद जूझते हुए भी दूसरे देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराने की जद्दोजहद में जुटा हुआ है, दूसरी तरफ चीन है जो कोरोना की उत्पत्ति की गुत्थी को सुलझाने तक में सहयोग देने को तैयार नहीं।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण के जरिए बड़ी खूबसूरती से वैश्विक मामलों पर बोलने के चीन के नैतिक अधिकार पर सवाल खड़ा कर दिया। ध्यान रहे, नए अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के लिहाज से चीन का वर्चस्ववादी और आक्रामक रुख ही सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र के मंच से प्रधानमंत्री का यह दर्शाना महत्वपूर्ण है कि चीन का रुख न केवल अन्य देशों की भौगोलिक सीमाओं और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों में स्वतंत्र व्यापारिक गतिविधियों के लिए खतरा बनता जा रहा है बल्कि यह आधुनिकता और प्रगतिशील मूल्यों के भी खिलाफ है।
ऐसे में चीन के साथ सहयोग का दायरा बढ़ाने की कोई भी कोशिश उदार वैश्विक मूल्यों को खतरे में डालेगी। इसी बिंदु पर भारत के लिए संभावनाओं के नए द्वार भी खुलते हैं। निवेश के अवसरों से भरपूर एक लोकतांत्रिक और पारदर्शितापूर्ण समाज के तौर पर भारत बेहतर विकल्प के रूप में दुनिया के सामने मौजूद है। ग्लोबल सप्लाई चेन में चीन की जगह लेने को भारत तैयार है। भारत और वैश्विक समुदाय का यह साथ न केवल भारत के विकास की दृष्टि से बल्कि सद्भावपूर्ण, लोकतांत्रिक और उदार दुनिया सुनिश्चित करने के लिहाज से भी उपयोगी होगा।
एडीपी ने क्षेत्रीय असमानता को कैसे दूर किया
अमिताभ कांत –
दुर्गम पहाड़ी इलाके में स्थित नागालैंड का किफिर भारत के सबसे दूरस्थ जिलों में से एक है। जिले के अधिकतर लोग कृषि और इससे जुड़े काम करते हैं। उन्हें खोलर या राजमा की खेती करना अधिक पंसद है। स्थानीय लोगों की आजीविका बढ़ाने के लिए खोलर की खेती की संभावना को देखते हुए 2019 में आकांक्षी जिला कार्यक्रम के माध्यम से इसकी पैकेजिंग सुविधा स्थापित की गई थी। यह सुविधा किसानों के बीच बड़ी तेजी से लोकप्रिय हुई थी। तब से, बड़े पैमाने पर खोलर की खेती शुरू हो गई है और किफिर के राजमा अब पूरे देश में जनजातीय कार्य मंत्रालय के पोर्टल ञ्जह्म्द्बड्ढद्गह्यढ्ढठ्ठस्रद्बड्ड.ष्शद्व पर बेचे जा रहे हैं।
इसी तरह की सफलता की दास्तान 112 जिलों में भी हैं, जो 2018 में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए आकांक्षी जिला कार्यक्रम (एडीपी) का हिस्सा हैं। शुरुआत से ही एडीपी ने भारत के कुछ सबसे पिछड़े और दूरदराज के जिलों में विकास को बढ़ावा देने की दिशा में लगातार काम किया है।
इस वर्ष के शुरु में यूएनडीपी ने इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए स्थानीय क्षेत्र के विकास का अत्यंत सफल मॉडल बताया और कहा कि इसे ऐसे अन्य देशों में भी अपनाया जाना चाहिए, जहां अनेक कारणों से विकास में क्षेत्रीय असमानताएं रहती हैं। वर्ष 2020 में प्रतिस्पर्धात्मकता संस्थान ने भी भारत के सबसे कम विकसित क्षेत्रों के इस कार्यक्रम के दूरगामी प्रभाव को सराहा था।
कार्यक्रम की शुरूआत से ही सकारात्मक सामाजिक और आर्थिक प्रभाव के साथ ही स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के राउंड 5 के चरण 1 के अनुसार प्रसवपूर्व देखभाल, संस्थागत प्रसव, बाल टीकाकरण, परिवार नियोजन की विधियों का उपयोग जैसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्रों में आकांक्षी जिलों में अपेक्षाकृत तेजी से सुधार हुआ है। इसी तरह से इन जिलों में बुनियादी ढांचागत सुविधाएं, बिजली, स्वच्छ ईंधन और स्वच्छता के लक्ष्य भी अपेक्षाकृत तेजी से हासिल किए गए हैं।
इस कार्यक्रम से पांच क्षेत्रों: स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि और जल संसाधन, बुनियादी ढांचा, वित्तीय समावेशन और कौशल विकास के 49 प्रमुख निष्पादन संकेतकों (केपीआई) पर जिलों के प्रदर्शन को ट्रैक कर और रैंक देकर इन उपलब्धियों को हासिल किया गया है ।
एडीपी का ध्यान इन जिलों के शासन में सुधार पर केंद्रीत होने से न केवल सरकारी सेवाएं प्रदान करने में सुधार हुआ है, बल्कि स्वयं इन जिलों द्वारा ऊर्जावान और अभिनव प्रयास भी किए गए।
एडीपी तैयार करने में दो महत्वपूर्ण वास्तविकताओं को ध्यान में रखा गया है। पहला, निधि की कमी ही पिछड़ेपन का एकमात्र या प्रमुख कारण नहीं है क्योंकि खराब शासन के कारण मौजूदा योजनाओं (केंद्र और राज्य दोनों की) के तहत उपलब्ध कोष का बेहतर तरीके से उपयोग नहीं किया जाता है। दूसरा, लंबे समय से इन जिलों की उपेक्षा किए जाने के कारण जिला अधिकारियों में उत्साह कम हो गया है। असल में इन जिलों की क्षमता को उजागर करने में आंकड़ो पर आधारित शासन से इस मानसिकता को समाप्त करना महत्वपूर्ण है।
कार्यान्वयन के तीन वर्ष में ही कार्यक्रम के जरिए संमिलन (केंद्र और राज्य की योजनाओं के बीच), सहयोग (केंद्र, राज्य, जिला और विकास साझेदारों के बीच) और प्रतिस्पर्धा (जिलों के बीच) के अपने मूल सिद्धांतों के माध्यम से कई क्षेत्रों में पर्याप्त सुधार लाने के लिए उचित संस्थागत ढांचा उपलब्ध कराया गया है।
एडीपी के माध्यम से सरकार न केवल सुव्यवस्थित समन्वय के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रही है, बल्कि लक्ष्य हासिल करने के लिए उचित प्रयास भी कर रही है। नीति आयोग द्वारा विकसित एडीपी का चैम्पियंस ऑफ चेंज प्लेटफॉर्म का स्वसेवा विश्लेषण उपकरण जिला प्रशासन के लिए मददगार है। इससे उन्हें आंकड़ों का विश्लेषण करने और स्थानीय क्षेत्र की लक्षित योजनाएं तैयार करने में सहायता मिलती है। इस प्लेटफॉर्म से यह सुनिश्चित किया जाता है कि कार्यक्रम की डेल्टा रैंकिंग में अपनी स्थिति सुधारने के लिए जिले लगातार एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करें। प्रतिस्पर्धा से बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए लगातार नए विचारों को तलाशा जाता है।
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में अनेक योजनाओं के जरिए क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने का प्रयास किया गया है, लेकिन उनके बीच बहुत कम संमिलन रहा है। जिलों को 49 केपीआई पर आंककर एडीपी ने उन योजनाओं को सुव्यवस्थित और प्रसारित करना उनके विवेक पर छोड़ दिया है, जिससे वे बेहतर उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह, व्यक्तिगत योजनाओं के दायरे से परे विकास के प्रयास किए जाते हैं। केंद्र, राज्य और जिला स्तर के प्रयासों का यह संमिलन एडीपी के संस्थापक सिद्धांतों में से एक है।
इस कार्यक्रम ने समान प्रयास करने या साइलो में काम करने के विपरित गैर सरकारी संगठनों/नागरिक समाज संगठनों और जिला प्रशासन को एक-दूसरे के सहयोग से काम करने के लिए एकजुट किया है। इसने यह सुनिश्चित किया है कि सरकार, समाज और बाजार सभी अपनी-अपनी परिसंपत्ति का लाभ उठाकर समान उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में काम कर सकते हैं।
पिछले कुछ वर्षों से जिलों द्वारा अपने- अपने बेहतर तरीकों को एक-दूसरे से साझा करने से सभी लाभान्वित हुए हैं। एक जिले द्वारा नवोन्मेषी और अपनाए गए तरीकों का अन्य जिले द्वारा अनुसरण किया गया है। कार्यक्रम में स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप तरीकों को बदलने के लिए आवश्यक लचीलापन अपनाने के साथ ही जिलों में ऐसी प्रेरक भावना भरी जा सकती है।
आकांक्षी जिला कार्यक्रम राज्यों और यहां तक कि जिलों के मतभेदों के प्रति अत्यधिक जागरूक है और यह उन मतभेदों को दूर करने के लिए एक उपयुक्त तंत्र उपलब्ध कराता है। असल में, कार्यक्रम का उद्देश्य ब्लॉक स्तर पर इस मॉडल को दोहराने के लिए जिलों को प्रोत्साहित कर इस विचार को बढ़ावा देना है। हमें उम्मीद है कि इस मॉडल को बढ़ावा देने से जिले के समक्ष आने वाली चुनौतियों और उनसे निपटने के तरीके के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होगी।
एडीपी सहकारी-प्रतिस्पर्धी संघवाद का एक शानदार उदाहरण है। एडीपी के खाके और सफलताओं के बारे में अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सराहना और सिफारिशें हमारे प्रयासों को अत्यधिक सार्थक बनाती हैं। असल में, यह उचित है कि क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने का मॉडल दुनिया के सबसे विविध देशों में से एक से आना चाहिए और हम समान विकास के सर्वोत्तम साधन के तौर पर इस कार्यक्रम को तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
(लेखक नीति आयोग के मुख्य कार्यकार अधिकारी (सीईओ) हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)
तम्बाकू के छोटे दुकानदारों के साथ-साथ बड़े व्यवसायी पर भी कार्रवाई आवश्यक – श्री बन्ना गुप्ता – स्वास्थ्य मंत्री
राँची, 27.09.2021 – स्वास्थ्य मंत्री श्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि तंबाकू कंपनियां भी अपना व्यापार बढ़ाने के लिए लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने का कार्य कर रहे हैं। वे अब लड़कों के साथ-साथ लड़कियों में भी इसका प्रचलन बढ़ाने की ओर कार्य कर रहीं है। यदि महिलाएं तंबाकू का सेवन करती हैं, तो उनका स्वास्थ्य तो प्रभावित होगा हि साथ-साथ आने वाले बच्चों पर भी बुरा असर पड़ेगा। लोगों का तंबाकू के इस्तेमाल से मुक्ति के लिए उनके बीच जागरूकता फैलाकर और सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का सख्ती से पालन करा कर ही रोकथाम किया जा सकता है। माननीय मंत्री आज राज्य तम्बाकू नियंत्रण कोषांग एवं सीड्स द्वारा नामकुम में आयोजीत कार्यशाला में बोल रहे थे। इस अवसर पर श्री बन्ना गुप्ता द्वारा Global Youth Tobacco Survey (GYTS) में झारखंड के आंकड़ों का भी विमोचन किया गया।
श्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि भारत सरकार के ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे के अनुसार भारत में 13 से 15 वर्ष के आयु वर्ग में 8.5 प्रतिशत छात्र/छात्रा किसी न किसी रूप में तम्बाकू का सेवन करते है। जबकी झारखण्ड में 13 से 15 वर्ष के आयु वर्ग में 5.1 प्रतिशत छात्र/छात्रा किसी न किसी रूप में तम्बाकू का सेवन करते है। उन्होने कहा कि कोटपा, 2003 के प्रावधानों को लागू करने का मुख्य उद्देष्य कम उम्र के युवाओं एवं छात्र/छात्राओं को तम्बाकू उत्पाद की पहुंच से रोकना है, इस हेतु कोटपा का शत प्रतिशत अनुपालन किया जाना चाहिए। श्री गुप्ता ने कार्यक्रम में उपस्थित केन्द्र सरकार के प्रतिनिधियों को झारखण्ड विधान सभा में कोटपा संशोधन बिल 2021 के तर्ज पर केन्द्रीय कोटपा कानून में संशोधन करने का भी अनुरोध किया।
माननीय मंत्री जी ने बताया कि झारखंड सरकार तम्बाकू के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के लिये प्रतिबद्ध है। सरकार ने इस हेतु विधानसभा में बिल भी पारित किया है, जिसमें तम्बाकू के इस्तेमाल एवं इसके व्यवसाय में संलग्न लोगों के कमसे कम उम्र की सिमा को 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष का प्रावधान किया गया है। सरकार ने सार्वजनिक जगहों पर तम्बाकू के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया ही है, साथ ही साथ स्कूल, कॉलेज, सरकारी संस्थान, कोर्ट आदि के 100 मीटर दायरे में इसके बेचने व इस्तेमाल करने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। राज्य सरकार ने एक नया पहल भी किया है कि सरकारी संस्थाओं में नए जॉइनिंग करने वाले लोगों द्वारा यह घोषणा करवाया जा रहा है कि वह तंबाकू का इस्तेमाल भविष्य में नहीं करेंगे।
श्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि छोटे दुकानदारों पर कार्रवाई के साथ-साथ बड़े व्यवसायी जो तंबाकू निर्माण का काम कर रहे हैं, उन पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक है। झारखंड में सरकार द्वारा तंबाकू के इस्तेमाल में रोक लगाने के लिये लगातार प्रयाश किये जा रहें है। इसी का परिणाम है कि राज्य में तम्बाकू इस्तेमाल करने वालों का आँकडा 50.1 प्रतिशत से घटकर 38.9 प्रतिश्त हो गया है। लेकिन यह आँकड़ा अभी भी देश के आँकड़े 28.6 प्रतिशत से काफि अधिक है। इस ओर हम सब को सम्मिलित रूप से कार्यप्रणाली बनाकर कार्य करते हुए इसे और कम करने का प्रयास करना है।
कार्यशाला में सीड्स के कार्यपालक निदेशक श्री दिपक कुमार मिश्रा ने प्रजेंटेशन के माध्यम से राज्य में तम्बाकू नियंत्रण हेतु स्वास्थ्य विभाग, राज्य स्तरीय तम्बाकू नियंत्रण समन्वय समिति एवं सीड्स द्वारा सम्मीलित प्रयास से किये जा रहे कार्यों के बारे में बताया। इस अवसर पर उन्होंने राज्य में तम्बाकू इस्तेमाल करने वालों के आँकडे बताये, इन्हें रोकने के लिये सरकार के COTPA-2003 ऐक्ट, JJ ऐक्ट, फूड सेफ्टी ऐक्ट, वेंडर लाइसेंसिंग प्रोविजन आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अपर अभियान निदेशक श्री विद्यानन्द शर्मा, सीड्स के कार्यपालक निदेशक श्री दीपक मिश्रा, दी यूनियन के वरीय तकनिकी सलाहकार डॉ0 अमीत यादव, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता श्री रंजीत सिंह, राज्य एन.सी.डी. कोषांग के नोडल पदाधिकारी डॉ0 ललित रंजन पाठक, राज्य सलाहकार श्री राजीव कुमार एवं वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से भारत सरकार के उप सचिव श्री पुलकेश कुमार, डॉ रंगासामी नागराजन, पूजा गुप्ता उपस्थित रहें।
नक्सलियों के खिलाफ युद्ध को अवश्य जीतेंगे : हेमन्त सोरेन
* उग्रवादी घटनाओं की संख्या में कमी आयी है
*715 उग्रवादी हुए गिरफ्तार,18 उग्रवादी मारे गए और 27 उग्रवादियों ने किया सरेंडर
* पेंशन योजनाओं की समीक्षा करे केंद्र सरकार – हेमन्त सोरेन, मुख्यमंत्री
नई दिल्ली/रांची, 26.09.2021
वर्ष 2016 में 195 उग्रवादी घटनाएं हुई थीं। यह संख्या वर्ष 2020 में घटकर 125 रह गयी है। वर्ष 2016 में उग्रवादियों द्वारा 61 आम नागरिकों की हत्या की गयी थी, वर्ष 2020 में यह संख्या 28 रही। इस अवधि में कुल 715 उग्रवादी गिरफ्तारी हुए। उक्त अवधि में पुलिस मुठभेड़ में 18 उग्रवादियों को मार गिराया गया था। ये बातें मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कही। मुख्यमंत्री नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में “वामपंथी उग्रवाद” पर आयोजित उच्चस्तरीय बैठक में बोल रहे थे।
चार स्थानों में सिमटे नक्सली
मुख्यमंत्री ने कहा कि उग्रवादी संगठनों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई की जा रही है। इन अभियानों के फलस्वरूप राज्य में उग्रवादियों की उपस्थिति मुख्य रूप से पारसनाथ पहाड़, बूढ़ा पहाड़, सरायकेला, खूंटी, चाईबासा, कोल्हान क्षेत्र तथा बिहार सीमा के कुछ इलाके तक सीमित रह गई है। वह दिन दूर नहीं जब इन स्थानों से भी वामपंथी उग्रवाद का सफाया किया जा सकेगा।
मुख्यधारा में वापस लाने का हो रहा प्रयास
मुख्यमंत्री ने बताया कि वर्ष 2020 तथा 2021 के अगस्त तक 27 उग्रवादियों द्वारा आत्मसमर्पण भी किया गया है। राज्य की आकर्षक आत्मसमर्पण नीति का प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है। कम्युनिटी पुलिसिंग के द्वारा भटके युवाओं को मुख्य धारा में वापस लाने का प्रयास हो रहा है। राज्य सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में युवाओं के लिए ‘सहाय’ योजना लेकर आ रही है, जिसके अन्तर्गत इन क्षेत्रों में विभिन्न खेलों के माध्यम से युवाओं और अन्य लोगों को जोड़ा जायेगा।
राशि की मांग करना व्यवहारिक नहीं
मुख्यमंत्री ने कहा कि उग्रवाद की समस्या केन्द्र तथा राज्य सरकार दोनों के लिए बड़ी चुनौती है। ऐसी परिस्थिति में केन्द्रीय सुरक्षा बलों की प्रतिनियुक्ति के बदले भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों से राशि की मांग करना व्यवहारिक प्रतीत नहीं होता है। इस मद में झारखण्ड के विरुद्ध अबतक 10 हजार करोड़ रुपये का बिल गृह मंत्रालय द्वारा दिया गया है। मेरा अनुरोध होगा कि इन बिलों को खारिज करते हुए भविष्य में इस तरह का बिल राज्य सरकारों को नहीं भेजने का निर्णय भारत सरकार द्वारा लिया जाये।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में योजनाएं अचानक बंद न हो
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत सरकार द्वारा समय-समय पर उग्रवाद के उन्मूलन हेतु कई योजनाएं लागू की गयी हैं। इन योजनाओं से विशेष लाभ भी मिला है, परन्तु ऐसा देखा गया है कि कुछ जिलों के लिए इन योजनाओं को अचानक बंद कर दिया गया, जिससे उग्रवाद उन्मूलन की दिशा में किये जा रहे प्रयासों को आघात पहुंचता है। अचानक इन योजनाओं को बंद कर देने से उग्रवाद को पुनः पैर पसारने का मौका मिल सकता है। इसी संदर्भ में विशेष केंद्रीय सहायता
के तहत् प्रति जिला 33 करोड़ रुपये की राशि भारत सरकार द्वारा उपलब्ध करायी जाती है। प्रारम्भ में यह योजना 16 जिलों के लिए स्वीकृत की गयी थी, परन्तु इस वर्ष यह योजना मात्र 08 जिलों के लिए जारी रखी गयी है। इसी प्रकार एसआरई योजना से कोडरमा, रामगढ़ तथा सिमडेगा को बाहर कर दिया गया है। अतएव मेरा अनुरोध होगा कि दोनों योजनाओं को सभी नक्सल प्रभावित जिलों के लिए अगले पांच वर्षों तक जारी रखा जाय।
मनरेगा मजदूरी दर और पेंशन राशि बढ़े
मुख्यमंत्री ने कहा कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की दशा को सुधारने में मनरेगा एक कारगर उपाय है। मनरेगा झारखण्ड में बहुत मजबूती से आगे बढ़ रहा है। परन्तु, झारखण्ड के श्रमिकों को जो मजदूरी दर मिल रही है, वह देश में सबसे कम है। अन्य राज्यों में 300 रु / दिन से ज्यादा मिल रही है, मगर झारखण्ड में 200 रु. भी नहीं। हमने राज्य की निधि से मजदूरी बढ़ाने का निर्णय लिया है। मेहनतकश झारखंडियों को भी मनरेगा के तहत सही मजदूरी मिलनी चाहिए। सामाजिक सुरक्षा के तहत भारत सरकार के द्वारा जो विभिन्न पेंशन योजनाएं चलायी जा रही हैं उसे फिर से देखने की जरूरत है। अभी भी भारत सरकार एक वृद्ध / विधवा / दिव्यांग को प्रति महीने जीवनयापन सहायता के रूप में मात्र 250 रुपये प्रति महीने देती है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र जहाँ जीविकोपार्जन अन्य क्षेत्रों से ज्यादा कठिन है, वहाँ के लिए तो यह राशि बढ़नी ही चाहिए।
शिक्षा के लिए विद्यालयों की संख्या बढ़े
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में 192 एकलव्य विद्यालय स्वीकृत किये गये हैं। इनमें से 82 उग्रवाद प्रभावित जिलों में स्थापित होंगे। मेरा अनुरोध होगा कि एकलव्य विद्यालय की स्वीकृति हेतु निर्धारित मापदण्ड में 50% की शर्त को समाप्त किया जाए, ताकि आदिवासी बहुल ग्रामीण क्षेत्रों को इस योजना का लाभ मिल सके। झारखण्ड में 261 प्रखंड हैं, परन्तु मात्र 203 प्रखंडों में ही केंद्र सरकार की सहायता से कस्तूरबा विद्यालय का निर्माण किया गया। 57 विद्यालय राज्य सरकार अपनी निधि से प्रारंभ की है। राज्य की बेटियां इन विद्यालयों में नामांकन चाहती हैं। झारखण्ड जो सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित हैं, वहाँ 100 कस्तूरबा विद्यालयों के लिए केंद्र सरकार सहयोग करे। नक्सल विरोधी अभियान में हमारी सरकार एवं केन्द्र सरकार के बीच बेहतर समन्वय हमेशा बना रहेगा और मैं आशा करता हूँ कि हम सब मिलकर इस युद्ध को अवश्य जीत पायेंगे।
पोषण अभियान योजना के तहत प्रशिक्षण का आयोजन
रांची, अति कुपोषित बच्चों की पहचान, समुदाय स्तर पर उनका उपचार और कुपोषण के प्रति जागरुकता को लेकर पोषण अभियान योजना अन्तर्गत पोषण माह के दौरान राज्यस्तरीय ऑनलाइन प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। यूनिसेफ द्वारा आयोजित किये गये प्रशिक्षण कार्यक्रम में जिला समाज कल्याण पदाधिकारी श्रीमती श्वेता भारती एवं जिला के सभी बाल विकास परियोजना पदाधिकारी शामिल हुए।
पोषण माह 2021 के अन्तर्गत ऑनलाइन प्रशिक्षण में रिम्म के चिकित्सकों ने कुपोषित बच्चों की पहचान, समुदाय स्तर पर उनका उपचार और जागरुकता को लेकर विस्तार से सभी को जानकारी दी।
स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी झारखंड प्रदेश रांची के प्रदेश कार्यकारिणी पदाधिकारियों सदस्यों का चुनाव
रांची, 26.09.2021 – स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी झारखंड प्रदेश रांची के प्रदेश कार्यकारिणी पदाधिकारियों सदस्यों का आम सहमति से चुनाव किया गया जो इस प्रकार है प्रदेश अध्यक्ष श्री राम प्रकाश तिवारी. प्रदेश प्रधान महासचिव श्री राम रंजन कुमार सिंह. प्रदेश उपाध्यक्ष. श्री गोपाल राय, श्री सुरेंद्र भगत.श्री शंभू लाल वर्णवाल, प्रदेश महासचिव. मोहम्मद इरफान खान, अजय शंकर कुमार, शैलवाहन कुमार, के. डी. मोदी प्रदेश सचिव. जय शंभू मिश्रा, टीयोसियस, दीपक डे. प्रदेश संगठन प्रचार सचिव. तालकेस्वर केसरी, परशुराम प्रसाद, सुधांशु शेखर. प्रदेश कोषाध्यक्ष, विमल कुमार. प्रदेश उपसचिव. अनिल कुमार तिवारी, केदारनाथ प्रसाद, रंजीत खत्री, अनिल लकड़ा ,अमृत कुमार महतो, मंगल सिंह टोप्पो. प्रदेश संगठन सचिव. लीना अंजना बाड़ा, संजय कुमार सिन्हा. प्रेस प्रवक्ता. पियूष झा. कार्यकारिणी सदस्य. नीलिमा वर्मा, दिलीप कुमार, विमल देव.
उक्त जानकारी अजय शंकर कुमार प्रदेश महासचिव स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी झारखंड प्रदेश रांची ने दी.
मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन वामपंथी उग्रवाद और सुरक्षा और विकास से संबंधित मुद्दों पर आयोजित समीक्षा बैठक में भाग लेंगे
नई दिल्ली/रांची – 25.09.2021
मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन रविवार को नई दिल्ली में होने वाली ‘वामपंथी उग्रवाद और सुरक्षा और विकास से संबंधित मुद्दों पर आयोजित समीक्षा बैठक में भाग लेंगे। केंद्रीय गृह मंत्री, श्री अमित शाह माओवादी प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और केंद्र और राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ उक्त बैठक की अध्यक्षता करेंगे। बैठक के दौरान मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन राज्य में आदिवासी क्षेत्रों के विकास में केंद्र के योगदान के साथ-साथ राज्य में वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों के लिए विशेष केंद्रीय सहायता कोष के विस्तार जैसे मुद्दों को रखेंगे।।
प्रस्ताव होगा पेश
मुख्यमंत्री वामपंथी प्रभावित जिलों में व्यवस्थित विकास और महत्वपूर्ण बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्र द्वारा राज्यों को दी जाने वाली राशि में कटौती से संबंधित मुद्दों को उठा सकते हैं। हाल ही में, केंद्र सरकार ने झारखंड के 08 जिलों के विशेष केंद्रीय सहायता फंड में कटौती की है। इससे पहले यह राज्य के 16 वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों को दिया गया था।
नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई का होगा जिक्र
मुख्यमंत्री राज्य में नक्सल गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए उठाए जा रहे महत्वपूर्ण कदमों से संबंधित रिकॉर्ड भी पेश करेंगे। राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में आवश्यक बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के लिए केंद्र को सहयोग देने का आग्रह किया जाएगा।जिसमें सड़क निर्माण, कस्तूरबा बालिका विद्यालय के लिए सहायता और व्यापक इंटरनेट और मोबाइल-टेलीकॉम सुविधा शामिल है।
अन्य मुद्दे जो होंगे चर्चा का विषय
मनरेगा श्रमिकों के न्यूनतम दैनिक वेतन को बढ़ाने और इसे अन्य राज्यों के बराबर लाने से जुड़े मुद्दे भी उनके संबोधन का हिस्सा होंगे। मुख्यमंत्री सामाजिक सुरक्षा के दायरे में भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही पेंशन योजनाओं में आवश्यक संशोधन पर भी अपनी बात रखेंगे। जो वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में रहने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण है। मुख्यमंत्री आदिवासी क्षेत्रों में एकलव्य विद्यालय के आवंटन के लिए शर्तों में संशोधन का भी प्रस्ताव करेंगे, जिससे राज्य में और एकलव्य विद्यालय स्वीकृत करने के दरवाजे खुल सकते हैं। झारखंड की विभिन्न पंचायतों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर भी मुख्यमंत्री अपना पक्ष रखेंगे।