12-Mar-2022, पिछले काफी समय से जॉन अब्राहम और अर्जुन कपूर फिल्म अय्यपनम कोशियुम के हिंदी रीमेक को लेकर सुर्खियों में हैं। दोनों के साथ आने की खबर से फैंस बेहद उत्साहित हो गए थे, लेकिन अब जो खबर आ रही है, उससे बेशक प्रशंसक निराश हो जाएंगे। दरअसल, फिल्म का हिंदी रीमेक डिब्बाबंद हो गया है। खुद फिल्म के निर्देशक ने इस खबर पर अपनी मुहर लगा दी है।जॉन अब्राहम आजकल सिद्धार्थ आनंद की फिल्म पठान की शूटिंग में व्यस्त हैं। हाल ही में इस फिल्म का फिर काम शुरू हुआ है। जॉन स्पेन में इस फिल्म के शूट में व्यस्त हैं। पठान के बाद उनके अपने कुछ और कमिटमेंट पूरे करने हैं। जॉन की डेट डायरी फुल है। वह इस साल बेहद व्यस्त रहने वाले हैं। दूसरी तरफ अर्जुन भी अपने पुराने कमिटमेंट निपटा रहे हैं। वह एक के बाद एक फिल्म की शूटिंग में व्यस्त रहेंगे। जॉन और अर्जुन का व्यस्त शेड्यूल देख अब फिल्म के निर्देशक जगन शक्ति ने भी फिल्म का काम रोक दिया है और अपने दूसरे प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है। अभी यह जानकारी नहीं मिली है कि अय्यपनम कोशियुम के हिंदी रीमेक की शुरुआत कब होगी?उन्होंने भी इस फिल्म के डिब्बाबंद होने की पुष्टि की। बता दें कि जगन ने पिछली बार फिल्म मिशन मंगल का निर्देशन किया था।जल्द ही कई साउथ फिल्मों के हिंदी रीमेक दर्शकों के बीच आएंगे। तमिल फिल्म विक्रम वेधा और मलयालम फिल्म ड्राइविंग लाइसेंस व तमिल फिल्म थडम का हिंदी रीमेक बन रहा है। तमिल फिल्म कैथी और तेलुगु फिल्म जर्सी का हिंदी रीमेक भी चर्चा में है। अय्यपनम कोशियुम पिछले साल दर्शकों के बीच आई थी और इसे लोगों ने खासा पसंद किया था। फिल्म में बीजू मेनन और पृथ्वीराज लीड रोल में थे। फिल्म का निर्देशन जगन शक्ति ने किया है, जो हिंदी रीमेक के निर्देशक भी हैं। इस फिल्म की कहानी एक पूर्व हवलदार और एक सब-इंस्पेक्टर के संघर्ष के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें पृथ्वीराज एक पूर्व हवलदार की भूमिका में थे और बीजू मेनन ने सब-इंस्पेक्टर का किरदार निभाया था। जॉन जल्द ही फिल्म अटैक में नजर आएंगे। उनकी यह फिल्म 1 अप्रैल को रिलीज होने वाली है। वह एक्शन थ्रिलर फिल्म तेहरान में भी दिखेंगे। यह फिल्म अगले साल गणतंत्र दिवस पर रिलीज होगी। भूषण कुमार की एक फिल्म से भी जॉन बतौर निर्माता जुड़े हुए हैं। दूसरी तरफ अर्जुन फिल्म कुत्ते में नजर आएंगे। वह फिल्म द लेडी किलर में भूमि पेडनेकर के साथ नजर आएंगे। इसके अलावा एक विलेन रिटर्न्स भी उनके खाते से जुड़ी हुई है। (एजेंसी)
लोकतंत्र
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महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करना राज्य सरकार की प्राथमिकता- श्री आलमगीर आलम
मंत्री श्री आलमगीर आलम ने महिला मेट एवं लाभुकों को किया सम्मानित
रांची,(दिव्या राजन) महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करना राज्य सरकार की प्राथमिकता है। सरकार महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में काम कर रही है। इसी का नतीजा है कि हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। वह चाहे महिला जनप्रतिनिधि, एसएचजी, महिला श्रमिक अथवा महिला मेट हों। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, समानता, स्वरोजगार एवं आत्मनिर्भरता का समान अवसर प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसी के तहत ग्रामीण विकास विभाग एवं मनरेगा अंतर्गत कई महत्वाकांक्षी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है।उक्त बातें ग्रामीण विकास मंत्री श्री आलमगीर आलम ने प्रोजेक्ट भवन में अतंरराष्ट्रीय महिला दिवस सप्ताह के अवसर पर महिला मेट एवं लाभार्थियों के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में कहीं।
समाज, देश एवं राज्य के विकास में महिलाओं की भागीदारी जरूरी
मंत्री श्री आलमगीर आलम ने कहा कि महिला सशक्तिकरण के लिए जरूरी है कि महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में बढ़ाई जाए। किसी भी समाज, देश एवं राज्य के विकास में महिलाओं की भागीदारी जरूरी है और ग्रामीण विकास विभाग महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये कई कार्यक्रम चला रहा है, जिससे उनका आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान हो सके। विभाग की ओर से लगातार कई ऐसे कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं जिससे उन्हें स्वरोजगार से जोड़ा जा सके ताकि उनके जीवन में खुशहाली आये साथ ही वे स्वावलंबी बनें। महिलायें आर्थिक रूप से सुदृढ़ बने यह सरकार की सोच है। उन्होंने कहा कि समाज में नारी शक्ति के उत्थान के बिना किसी भी प्रकार के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। एक महिला के विकास का मतलब एक पूरे परिवार का विकास है और इसलिए समाज के हर वर्ग को महिला उत्थान की दिशा में अपना सक्रिय एवं सार्थक योगदान देना चाहिए।
पूरे राज्य में 50 लाख से अधिक परिवारों को दिये गये जॉब कार्ड में से 21 लाख से अधिक महिलाएं निबंधित
मनरेगा आयुक्त श्रीमती राजेश्वरी बी ने कहा कि महिला मेट एवं लाभार्थियों को सम्मानित किया जा रहा है, यह विभाग के लिये हर्ष की बात है। उन्होंने कहा कि पूरे राज्य में 50 लाख से अधिक परिवारों को जाब कार्ड दिया गया है, उसमें से 21 लाख से अधिक महिलाएं निबंधित है। हमने पूरे राज्य में 4.8 करोड़ मानव दिवस सृजन किया है। महिलाओं की भागीदारी को और अधिक बढ़ाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है। राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी दीदी बाड़ी योजना, बिरसा हरित ग्राम योजना से जुड़ कर महिलाएं स्वावलंबी बन रही हैं। सरकार की सोच है कि महिलाओं की आजीविका के साधन को बढ़ाया जाये। मनरेगा के अंतर्गत चलने वाली कई योजनाओं से महिलाओं को रोजगार और स्वावलंबन का मार्ग प्रशस्त हुआ है। महिलाएं दीदी बाड़ी योजनाओं में कार्य कर कूप निर्माण एवं अन्य योजना से लाभान्वित होकर अपने परिवार का सहारा बन रही हैं। इससे उनमें एक नया आत्मविश्वास उभर रहा है। उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी होने में मदद मिल रही है । उन्होंने कहा कि महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर सकती हैं और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को संवार सकती हैं। ग्राम स्तर पर ऐसी हजारों महिलाओं ने आज अपने भविष्य को संवारने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। यह महिला सशक्तिकरण का एक अनुपम उदाहरण है।
महिला सशक्तिकरण की दिशा में जेएसएलपीएस का महत्वपूर्ण योगदान
झारखण्ड लाइवलीहुड प्रोमोशन सोसाईटी के सीईओ श्री सूरज कुमार ने कहा कि पूरे राज्य में सखी मंडल का गठन किया जा रहा है। इन सखी मंडल के माध्यम से कई कार्य किये जा रहे हैं,जिनसे महिलाएं आत्मनिर्भर एवं स्वावलंबी बन रही हैं। महिला सशक्तिकरण की दिशा में जेएसएलपीएस महत्वपूर्ण योगदान निभा कर महिलाओं की आर्थिक एवं सामाजिक विकास में सहायक साबित हो रहा है। उन्होंने कहा कि जेएसएलपीएस के तहत पलाश ब्रांड को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके तहत महिलाएं स्वावलंबी बन रही हैं । आने वाले दिनों में पलाश ब्रांड एक बेहतरीन ब्रांड के तौर पर उभर कर सामने आयेगा।
महिला मेट एवं लाभार्थियों ने अपने अनुभव एवं विचार को किया साझा
कार्यक्रम में महिला मेट एवं लाभार्थियों ने भी अपने अनुभव एवं विचार साझा किए। गुमला जिला के बसिया प्रखण्ड की लाभार्थी विश्वासी कुजूर ने अपने अनुभव को साझा करते हुये कहा कि सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं का लाभ लेकर आज वह स्वावलंबी बन रही हैं। मनरेगा के तहत दीदी बगिया योजना का लाभ लेकर आज पशुपालन से जुड़ी हुई हैं। मुर्गी पालन,बत्तख पालन कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। वे कहती हैं कि अब वह आसानी से अपनी आजीविका चला रही हैं।
खूंटी, तोरपा की महिला मेट एतवारी देवी कहती हैं कि मनरेगा से जुड़ने के पहले परिवार की आर्थिक स्थिती दयनीय थी। परिवार की जरुरते पूरी नहीं हो पाती थीं। मनरेगा मेट के रूप में जुड़ने के बाद उनकी आय में भी वृद्धि होने लगी। मनरेगा के तहत आम बागवानी एवं अंतर कृषि कर उनकी आय में बढ़ोत्तरी होने लगी। वे कहतीं है कि मनरेगा ने उनके जीवन को बदल डाला। अब उनकी जीवनशैली में काफी सुधार होने लगा है।अब वह अपनी आय से परिवार की सही तरीके से देख-भाल कर सकती हैं। इसी तरह कई अन्य महिला मेट एवं लाभार्थियों ने भी अपने अनुभव एवं विचार रखे।
कार्यक्रम में महिला मेट एवं महिला लाभार्थियों का उत्सव से संबंधित पुस्तक का विमोचन भी किया गया
इस अवसर पर कई महिला मेट एवं लाभुको को मंत्री श्री आलमगीर आलम ने सम्मानित किया, जिसमें बेड़ों प्रखण्ड की रुकसाना खातुन, सोनाहातू की माहेश्वरी देवी , तोरपा की एतवारी देवी, रनिया की ममता देवी, घाघरा, गुमला की सीता देवी, कैरो की संगीता देवी, किस्को की रशिदा खातुन, पतरातु की रेखा देवी एवं माण्डू की रूपा देवी शामिल थीं। लाभार्थियों में पूनम देवी,निर्मला देवी,पुष्पा देवी, विश्वासी कुजूर,रिंकी देवी,सुमनती तिग्गा आदि थीं।
कार्यक्रम में जलछाजन के सीईओ श्री विनयकान्त मिश्रा , ग्रामीण विकास विभाग के उप सचिव श्री रंजीत रंजन प्रसाद, अवर सचिव श्री चन्द्रभूषण, कई पदाधिकारीगण विभिन्न जिलों से आई महिला मेट एवं लाभार्थी उपस्थित थे
ओडिशा में भाजपा कार्यकर्ताओं पर विधायक ने चढ़ाई गाड़ी
भुवनेश्वर,12 मार्च (आरएनएस)। ओडिशा के खुर्दा जिले में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजद) के एक निलंबित विधायक ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कार्यकर्ताओं के जुलूस में कथित तौर पर अपनी एसयूवी चला दी। इस हादसे में पुलिस निरीक्षक सहित 24 लोग घायल हो गए। पांच की हालत नाजुक बताई जा रही है। जिसके बाद गुस्साई भीड़ ने विधायक को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। साथ ही विधायक की गाड़ी पर आग लगा दी। पुलिस ने इलाके में पुलिस बल को बढ़ा दिया है। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि पंचायत समिति अध्यक्ष के चुनाव के लिए शनिवार सुबह करीब 200 भाजपा कार्यकर्ता चिल्का झील के पास बानपुर पंचायत समिति कार्यालय के बाहर जुलूस निकाल रहे थे, तभी विधायक प्रशांत जगदेव की एसयूवी वहां पहुंची।
एक दलित भाजपा नेता की पिटाई के कारण पिछले साल बीजद से निलंबित किए गए जगदेव ने अपनी एसयूवी को कार्यालय की ओर बढ़ाई, उन्हें शुरू में पुलिस निरीक्षक के साथ-साथ अन्य पुलिसकर्मियों और भाजपा कार्यकर्ताओं ने रोक दिया। पुलिस महानिरीक्षक (मध्य रेंज) नरसिंह भोल ने कहा कि विधायक ने किसी की नहीं मानी और गाड़ी को आगे बढ़ाना जारी रखा, इसी बीच आसपास लोग एसयूवी की चपेट में आ गए। इस घटना में कम से कम 24 घायल हो गए। बानपुर पुलिस स्टेशन के निरीक्षक सहित पांच घायल गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। इसके बाद गुस्साई भीड़ ने विधायक की पिटाई कर दी जिससे वह घायल हो गए।
प्रत्यक्षदर्शियों का आरोप है कि घटना के वक्त विधायक नशे में थे और पहले पुलिस से झड़प की और फिर बिना कोई बात सुने लोगों के ऊपर गाड़ी चढ़ा दी। घटना के बाद आक्रोशित स्थानीय लोगों ने जगदेव को उनके वाहन से खींच लिया और उनके वाहन में आग लगाते हुए उनकी पिटाई कर दी। घायल विधायक को भुवनेश्वर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
फिल्म समीक्षा – ‘द कश्मीर फाइल्स’
रिलीज डेट : 11 मार्च 2022
कलाकार : मिथुन चक्रवर्ती, अमान इकबाल, अनुपम खेर, भाषा सुंबली, पुनीत इस्सर, अर्पण भिखारी, पल्लवी जोशी, एकता सिंह, आरके गौरव, चिन्मय मंडलेकर और दर्शन कुमार आदि।
डायरेक्टर : विवेक अग्निहोत्री
निर्माता : ज़ी स्टूडियोज़, अभिषेक अग्रवाल आर्ट्स
वितरक : ज़ी स्टूडियोज़
संगीत : स्वप्निल बंदोड़कर, रोहित शर्मा
छायांकन : उदय सिंह मोहिते
एडिटर : शंख राजाध्यक्ष
अवधि: 170 मिनट
रेटिंग : * 3.5/5
वास्तविक घटनाओं पर आधारित और कश्मीरी पंडितों के तकलीफों को बयां करती, निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की ‘द कश्मीर फाइल्स’ 1989 में घटी घटनाओं का एक नाटकीय संस्करण है। परंतु प्रस्तुतिकरण उत्कृष्ट होने की वजह से पूरी फिल्म दिल मे उतर जाती है और सिनेदर्शकों को बांधे रखती है। साल 2019 में विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ रिलीज हुई थी और यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई। इस फिल्म को दो नेशनल अवॉर्ड भी मिले थे। ‘द ताशकंद फाइल्स’ के बाद अब विवेक अग्निहोत्री ‘द कश्मीर फाइल्स’ लेकर आए हैं, जिसमें उन्होंने 90 के दशक में कश्मीर में हुए कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के नरसंहार और पलायन की कहानी को दर्शाया है। इस फिल्म में अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती जैसे धुरंधर कलाकार तो हैं ही, लेकिन साथ ही फिल्म में पल्लवी जोशी और दर्शन कुमार जैसे मंझे हुए कलाकार ने भी अपनी अभिनय प्रतिभा का जलवा स्क्रीन पर बिखेरा है।
फिल्म की कहानी कश्मीर के एक टीचर पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है। कृष्णा (दर्शन कुमार) दिल्ली से कश्मीर आता है, अपने दादा पुष्कर नाथ पंडित की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए. कृष्णा अपने दादा के जिगरी दोस्त ब्रह्मा दत्त (मिथुन चक्रवर्ती) के यहां ठहरता है। उस दौरान पुष्कर के अन्य दोस्त भी कृष्णा से मिलने आते हैं इसके बाद फिल्म फ्लैशबैक में चली जाती है। फ्लैशबैक में दिखाया गया है कि 1990 से पहले कश्मीर कैसा था। इसके बाद 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों को मिलने वाली धमकियों और जबरन कश्मीर और अपना घर छोड़कर जाने वाली उनकी पीड़ादायक कहानी को दर्शाया गया है। अभिनय के मामले में फिल्म के सभी कलाकारों ने अपने अभिनय कौशल से फिल्म की कहानी से जुड़े सभी पात्रों को जीवंत किया है। इसे फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की निर्देशकीय प्रतिभा का प्रतिफल कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। विवेक अग्निहोत्री ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को उजागर करते हुए एक रोंगटे खड़े करने वाली अलग तरह की हृदयस्पर्शी कहानी को दर्शाने की कोशिश की है।
फिल्म समीक्षक – काली दास पाण्डेय
मोदी मैजिक व कांग्रेसी चूक ने जमाया केसरिया रंग
दिनेश जुयाल –
एक हाथ में गरीबों के लिए राशन की थैली, दूसरे में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का मिक्स्चर, वाणी में देवभूमि की आराधना… उत्तराखंड में मोदी मैजिक इस बार कुछ इस रूप में था। पिछले राज के पहले सीएम त्रिवेंद्र सिंह की बेअंदाजी, उल्टे-सीधे फैसले और तीरथ सिंह के अनाड़ीपन ने जो जबरदस्त सत्ता विरोधी रुझान बनाया था उसके जहर को काटने के लिए ये जादू कारगर साबित हुआ। वैसे कांग्रेस के बुजुर्ग क्षत्रप हरीश रावत भी श्रेय के हकदार हैं। फिर से सीएम बनने की जिद में अपने आगे किसी को खड़ा नहीं होने दिया। कांग्रेस की दिल्ली भी समझ रही थी कि बुजुर्गवार इस बार नैया डुबो सकते हैं लेकिन उन्होंने बड़े ही भावुक अंदाज में ऐसी सौदेबाजी की कि इधर कुआं उधर खाई वाली कहानी बना कर ही माने। भारी बहुमत से भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता में लौट रही है। बसपा को सीट मिली लेकिन वोट पिछली बार जितने भी नहीं, आम आदमी पार्टी कुछ नहीं कर पाई। निर्दलीयों की सौदेबाजी की गुंजाइश नहीं बची। भाजपा के सारे अवगुण हर की पौड़ी में धुल गए हैं। सीएम फेस कांग्रेस और आप का ही नहीं, भाजपा का भी पिट गया। यहां का मुख्यमंत्री वैसे भी 22 साल से दिल्ली से तय होकर आता है। अब कौनÓ का जवाब भी जल्द मिलेगा।कुछ एक्जिट पोल विशेषज्ञों के अलावा, सारे चुनावी विश्लेषक, ग्राउंड रिपोर्ट लिखने वाले और एनालिस्ट भी हार गए। भाजपा का अपना खुफिया एक्जिट पोल भी फेल। उत्तराखंड में मोदी पास हो गए, वह भी विशेष योग्यता के साथ। मोदी के जादू ने उत्तराखंड में सत्ता की सवारी बारी-बारी’ के मिथक को भी तोड़ दिया लेकिन एक मिथक नहीं टूटा कि सीएम दुबारा नहीं जीतता।14 फरवरी को वोट पडऩे के बाद एक के बाद एक भाजपा के चार विधायक बोले, हम तो हार रहे हैं और हमें पार्टी अध्यक्ष हरा रहे हैं। कुछ और आवाजें ऐसी ही आईं तो लगा भाजपा तो गई। तभी पोस्ट पोल अपनी खास भूमिका निभाने वाले कैलाश विजयवर्गीय की उत्तराखंड में एंट्री हुई और वह निशंक के साथ बसपा और जीतने की क्षमता वाले निर्दलीयों को साधने लगे। वहीं कांग्रेस ने अपना रेवड़ बचाने के लिए छत्तीसगढ़ से भूपेश बघेल की मदद मांगी और राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत साहब को विधायकों की सेवा के लिए तैयार रहने को कहा। हरदा यानी अपने हरीश रावत कभी अपनी आने वाली सरकार की प्राथमिकताएं गिनाने तो कभी अपनी विजय की पूर्व-घोषणा करने के लिए मीडिया को दर्शन देते रहे। पार्टी देना तो उन्हें अच्छा लगता है। कुछ नहीं तो सड़क किनारे टिक्की तलते हुए ही अपनी खुशी बांटते रहे। उत्तराखंड के दो पत्रकारों ने यहां के बाकी पत्रकारों को जोड़ कर दो एक्जिट पोल अलग से किए। सब कांग्रेस को बढ़त दे रहे थे। तो हरदा के लिए खुश होने के तमाम कारण थे। गांव-गांव में महिला मंगल दलों को चंदा तो कांग्रेस ने भी दिया, वे गई भी उत्साह से थीं। पुरुषों से दो फीसदी अधिक वोट करने वाली इन संगठित महिलाओं ने कुछ और ही सोच रखा था। हरक सिंह जैसे बेजोड़ खर्चीले कांग्रेसियों का सोमरस भी तो सबने पिया लेकिन सुबह जब नहा-धोकर वोट करने निकले तो उसका असर गायब था।हरदा फैक्टर की बात करें तो उन्होंने पहले सीएम फेस की लड़ाई लड़ी फिर सीएम बनने की जुगत में ऐसी फौज सजाई कि मोदी जी के लिए किला भेदना आसान हो गया। रामनगर से रणजीत सिंह को सल्ट भगा कर ही माने। रामनगर वालों ने हाथ खड़े कर दिए तो लालकुआं के कुएं में जाकर खुद भी डूब गए। इधर सल्ट और रामनगर की जीती हुई-सी सीटें भी गई। नैनीताल सीट भाजपा से लौटे यशपाल आर्य के नाम कर उसे भी गंवा दिया। हरक सिंह को आखिरी वक्त में एंट्री तो दे दी लेकिन चुनाव नहीं लडऩे दिया। मुस्लिम यूनिवर्सिटी खोलने जैसी घोषणा कर नया विवाद खड़ा कर दिया। अब भाजपा की इससे अधिक मदद क्या कर सकते थे। अब घर बैठेंगे जैसा कि उन्होंने वचन दिया है।पिछले 22 साल में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए यहां की सदाबहार म्यूजिकल चेयर रेस में पिछली बार कुछ ज्यादा ही रंग दिखे थे। सत्ता की हनक के नमूने भी जनता ने गजब देखे। हालात ऐसे हो गए कि भाजपा को एक टर्म में तीन मुख्यमंत्रियों को आजमाना पड़ा। पिछले 22 साल में राज्य सरकार की इतनी किरकिरी कभी नहीं हुई। मुख्यमंत्री धामी की हार के बाद एक बार फिर ये तमाशा होगा। 21 साल में 11 मुख्यमंत्री देने वाले उत्तराखंड की नई विधानसभा में मदन कौशिक और सतपाल महाराज के अलावा कितने सीएम फेस हैं अभी पता नहीं। अनिल बलूनी जैसे कुछ दिल्ली में भी बैठे हैं और लंबे समय से जुगाड़ भिड़ा रहे हैं। हां, हरक सिंह के कांग्रेस में जाने से कुर्सी-खींच वाले खेल की रौनक कुछ कम रहेगी। वह अपनी बहू को विधायक बनाने के फेर में खुद भी किनारे हो गए। हो सकता है फिर माफीनामा तैयार कर भाजपाई साफा पहन कर खेल करें। मंत्री बनने के लिए भी यहां खूब रूसा-रूसी होती है। अब पर्यवेक्षकों पर जिम्मेदारी पडऩे वाली है। उत्तराखंड पर 2024 से पहले मोदी जी कितनी कृपा बरसाते हैं, यह भी देखना दिलचस्प होगा।
चला बुल्डोजर’ मंत्र, सपा गई चूक
अतुल सिन्हा –
उत्तर प्रदेश में डबल इंजन’ और बुल्डोजर’ का मंत्र कुछ इस कदर सिर चढ़कर बोला कि विपक्षी गठबंधन के सपने चकनाचूर हो गए। मायावती की सोशल इंजीनियरिंग पूरी तरह फेल हुई तो प्रियंका गांधी का लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ का जबरदस्त अभियान फ्लॉप’ हो गया। बेशक समाजवादी पार्टी एक मजबूत विपक्ष बनकर जरूर उभरने में कामयाब रहा। अगर आपने अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी के अभियानों और सभाओं की भीड़ देखी होगी और खासकर अखिलेश यादव के हौसले देखे होंगे तो यह मानना मुश्किल हो रहा होगा कि आखिर नतीजे ऐसे कैसे आ गए। लेकिन भाजपा की जो कार्यशैली रही है और जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह से लेकर तमाम दिग्गज नेताओं ने खुद को यूपी पर केन्द्रित किया है, उससे ये नतीजे बहुत हैरत नहीं पैदा करते।दरअसल, पिछले कई सालों से यूपी की सियासत एक खास दिशा में चलती रही है और अगर आप भाजपा की रणनीतियों पर गौर करें तो उसका सबसे बड़ा रणक्षेत्र यही प्रदेश रहा है। बेशक राम मंदिर और अयोध्या अब विवादास्पद या चुनावी मुद्दा न रहा हो, लेकिन मंदिर की राजनीति और हिन्दुत्व की प्रयोगशाला में भाजपा ने इस प्रदेश में अपनी पुख्ता ज़मीन ज़रूर तैयार कर ली है। उसे सबसे बड़ा फायदा अगर मिला है तो वह है यहां के बिखरे हुए और कमज़ोर विपक्ष का। सपा के दागदार अतीत और बसपा की लगातार कमजोर होती ज़मीन, देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की बदहाली और इन तमाम पार्टियों से लोगों का तेजी से मोहभंग, भाजपा के लिए हमेशा से फायदेमंद रहा है।बतौर विपक्ष अगर देखें तो इस बार समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर से खड़े होने की कोशिश जरूर की है। चुनाव से पहले के गठबंधन की जो रणनीति बनी थी बेशक उस पर कई सवाल अब उठेंगे और उसकी खामियों का भी विश्लेषण जरूर होगा। लेकिन इतना तो जरूर है कि जब विपक्ष इतने खेमों में बंटा हो और सबके अपने-अपने अहंकार हों तो भला आप भाजपा जैसी पार्टी को सत्ता से कैसे उखाड़ सकते हैं। यूपी के चुनावी गणित कम पेचीदा नहीं हैं। जातिगत आधार पर देखें या धर्म-संप्रदाय के आधार पर, यहां मुख्य मुद्दे हर बार कहीं न कहीं गुम हो जाते हैं और वोटों का ध्रुवीकरण इन आपसी बयानबाजियों और आरोपों-प्रत्यारोपों के भावनात्मक जाल में उलझ कर रह जाता है।यूपी में जिस विपक्ष को कोरोना में सरकार की नाकामी, महंगाई, बेरोजग़ारी, किसानों की समस्या, छुट्टा पशु से त्रस्त किसान, लखीमपुर कांड या महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे अहम लग रहे थे, वहीं भाजपा के लिए इनकी कोई अहमियत नहीं थी। विपक्ष लगातार लोगों में ये अवधारणा बनाने की कोशिश करता रहा कि योगी सरकार तमाम मोर्चों पर नाकाम रही है, वहीं योगी और उनकी टीम डबल इंजन, विकास की गाथाएं, सरकारी योजनाओं के लाभ को अंतिम आदमी तक पहुंचाने के साथ गुंडों, दंगइयों पर बुल्डोजर चलाने के साथ-साथ वाराणसी, अयोध्या और अन्य धर्मस्थलों के कायाकल्प की बात करते रहे। बेशक उनके लाभार्थियों ने उनकी बात सुनी और उन्हें दोबारा मौका दे दिया।लेकिन अब ये अहम सवाल है कि क्या इन नतीजों की रोशनी में हमें सपा या विपक्ष को एकदम कमजोर या असरहीन मान लेना चाहिए? क्या इसे 2024 में मोदी को वॉकओवर देने वाले नतीजे के तौर पर देखा जाना चाहिए? या फिर इससे सीख लेकर विपक्ष को नए और धारदार तरीके से अपनी रणनीति तैयार करने के तौर पर देखा जाना चाहिए। बेशक भाजपा ने यूपी में इतिहास रचा है। पहली बार प्रदेश में कोई सरकार दोबारा बनी है। इसने कई मिथक भी तोड़े हैं लेकिन पिछली बार की तुलना में देखें तो अखिलेश यादव की सपा को भी लोगों ने नकारा नहीं है। पिछली बार जहां विपक्ष सत्ता पक्ष के आगे कहीं नहीं ठहरता था, वहां इस बार वह एक मजबूत ताकत के तौर पर जरूर उभरा है।कांग्रेस को जरूर आत्ममंथन करने की जरूरत है कि आखिर उनकी स्टार महासचिव और लोगों से सीधा कनेक्ट करने वाली, भावनात्मक तौर पर जुडऩे की कोशिश करने वाली प्रियंका गांधी को भी लोगों ने क्यों ठुकरा दिया और क्यों अब कांग्रेस का वजूद इस नई पीढ़ी के नेतृत्व में लगातार खतरे में पड़ता दिख रहा है। अगर अब भी कांग्रेस अपने नेतृत्व में बदलाव और संगठन की खामियों को लेकर गंभीर नहीं हुई तो आने वाले कुछ राज्यों के चुनावों के साथ-साथ 2024 में उसकी हालत और खस्ता हो सकती है। यूपी तो एक बानगी भर है।मायावती की सोशल इंजीनियरिंग अब आम लोगों को या उनके तथाकथित वोट बैंक को कमरे में बंद होकर नहीं पसंद आ रही। न तो उनमें वो धार बची, न सियासत करने का वो जज्बा। ऊपर से उनके भाजपा के साथ दोस्ताना रिश्तों की चर्चा और आने वाले वक्त में उपराष्ट्रपति बनने की महत्वाकांक्षा। अब पता नहीं भाजपा के साथ भीतर ही भीतर उनकी क्या बात’ हुई कि उन्होंने पूरी पार्टी को ही दांव पर लगा दिया।ऐसे में अब भी अगर यूपी के लोगों के लिए उम्मीद की कोई किरण हैं तो वे थोड़े-बहुत अखिलेश यादव ही हैं। बेशक इस बार अखिलेश यादव ने अपने गठबंधन और प्रत्याशियों के चयन में कई रणनीतिक गलतियां कीं, जिसका खमियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। सपा के दागदार इतिहास को दोहराते हुए उन्होंने एक बार फिर ऐसे ही कई दागदार उम्मीदवार उतारने की गलती की। अपने सहयोगियों में न तो राष्ट्रीय लोकदल को सही प्रतिनिधित्व दे पाए और चाचा शिवपाल यादव को खुश करने के चक्कर में अपने ही कुछ लोगों को नाराज होने से भी नहीं बचा पाए। इससे कम से कम उन्हें पचास सीटों का नुकसान तो हुआ ही। जाहिर है ये सपा की अंदरूनी चिंता का विषय है और अखिलेश की टीम इसकी समीक्षा करेगी।लेकिन फिलहाल तो अगले पांच साल एक बार फिर योगी आदित्यनाथ और भाजपा के खाते में चले गए। जाहिर है हर पार्टी अपनी हार की रणनीतिक खामियों की समीक्षा करेगी, कुछ समय बाद फिर से उठ खड़ी भी होगी, कुछ का मोहभंग होगा तो कुछ फिर से सत्ताधारी पार्टी की तरफ दौड़ लगाएंगे लेकिन सियासत में जंग कभी खत्म नहीं होती। खुद को फिर से स्थापित करने की कोशिश और सत्ता के दांवपेंच कभी कम नहीं होते। फिलहाल, यूपी में जश्न का माहौल है। भाजपा की जबरदस्त कामयाबी के बीच अब सबकी निगाह साल 2024 के इंतजार में है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
यूरोप को रूस विरोधी प्रतिबंधों के परिणाम भुगतने होंगे – रूसी मंत्री
मॉस्को, 11 मार्च । रूसी संघ के उप विदेश मंत्री अलेक्जेंडर पंकिन ने कहा है कि यूक्रेन में सैन्य अभियान को लेकर रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के परिणाम यूरोप को भुगतने होंगे।
आप हम पर लगाए गए प्रतिबंधों के प्रभाव अभी से देख सकते हैं, जो पश्चिमी यूरोप पर भी पडऩे वाला है। ये हम पर निर्भरशील हैं । हालांकि ये इसलिए नहीं प्रभावित होंगे कि हम ऊर्जा की आपूर्ति को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं बल्कि इसलिए क्योंकि हम अपने समझौतों और उनमें वर्णित अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी पूरा करते हैं।
यूपी समेत चार राज्यों में भाजपा का परचम, पंजाब में खूब चली झाड़ू
नई दिल्ली ,11 मार्च (आरएनएस)। उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में मतगणना पूरी हो गई है। भाजपा पंजाब को छोड़कर बाकी राज्यों में सरकार बनाने जा रही है। यूपी में एक बार फिर ऐतिहासिक जीत के साथ योगी राज वापस लौट रहा है। सपा को हालांकि 2017 के मुकाबले काफी ज्यादा सीटें मिली हैं लेकिन सरकार बनाने का सपना एक बार फिर धराशायी हो गया। पंजाब में आम आदमी पार्टी बंपर जीत के साथ सरकार बना रही है। पांचों राज्यों की मतगणना में चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं। राजनीतिक दलों के दिग्गज अपनी सीट हार गए।
उत्तराखंड की बात करें तो कांग्रेस के सीएम फेस हरीश रावत चुनाव हार गए हैं। उधर, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कांग्रेस प्रतिद्वंदी भुवन चंद्र कापड़ी से चुनाव हार गए हैं। हालांकि इस पहाड़ी प्रदेश में भी भगवा रंग लहराया है।
पंजाब में बड़ा उलटफेर करते हुए आम आदमी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना रही है। आप के सीएम फेस भगवंत मान धुरी विधानसभा सीट से जीत चुके हैं। जबकि कांग्रेस पार्टी की बुरी दशा जारी है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी दोनों सीटों से चुनाव हार गए हैं। वहीं, पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी अपनी सीट हार गए हैं। उन्हें आप कैंडिडेट जीवनजोत कौर ने हरा दिया है। अकाली परिवार भी इस चुनाव में बुरी हार का सामना कर रही है। पार्टी के दोनों दिग्गज प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल अपनी सीटें हार गए हैं। यहां कैप्टन अमरिंदर सिंह भी पटियाल सीट से चुनाव हार गए हैं।
उत्तराखंड में आखिरकार 20 साल का टूटा रिकॉर्ड टूट ही गया है। भाजपा प्रदेश में बहुमत के साथ उत्तराखंड में दोबारा सरकार बनाने जा रही है। हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सीएम पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए हैं, लेकिन भाजपा को बहुमत मिला है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों ने शिवसेना की भी पोल खोल दी है। चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि गोवा, उत्तर प्रदेश, मणिपुर में शिवसेना को नोटा से भी कम वोट मिले हैं। शिवसेना, जो एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन में महाराष्ट्र में सत्ता में है, ने इन तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा था। यूपी में हालांकि भाजपा ने बहुमत के साथ सरकार बना ली है। लेकिन यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य अपनी सीट हार गए हैं। सिराथू सीट पर सपा उम्मीदवार पल्लवी पटेल ने केशव प्रसाद मौर्य को 7337 वोटों के अंतर से हरा दिया है।
मानवीय त्याग और समर्पण पर आधारित है भोजपुरी फिल्म ‘संदेश’
भोजपुरी फिल्म जगत के चर्चित फिल्म निर्माता आर बी गौतम की बहुप्रतीक्षित भोजपुरी फिल्म ‘संदेश’ अब बहुत जल्द ही सिनेदर्शकों तक पहुँचने वाली है। 7 कर्णप्रिय गीतों से सजी इस फिल्म के कथाकार अनिल विश्वकर्मा, निर्देशक लखीचंद ठाकुर, सहायक निर्देशक अमृत लाल अमन, गीतकार मो. इदरीश खान व धर्मेंद्र राज, संगीतकार विपिन बिहारी व माधव सिंह राजपूत, नृत्य निर्देशक फिरोज खान और कैमरामैन बिरजू चौधरी व पंकज जोशी हैं।
गौतम फिल्म प्रोडक्शन के बैनर तले बनी इस फिल्म के मुख्य कलाकार अविनाश शाही, कल्पना शाह, प्रमोद माउथो, रवींद्र अरोड़ा, दीपक भाटिया, अमित बिग बी, ज्योति ठाकुर, धर्मेंद्र त्रिपाठी, राम विश्वकर्मा, बसंत कुमार, कर्ण मिश्रा, राधेश्याम गुप्ता और अशोक चतुर्वेदी आदि हैं। ‘महिला सशक्तिकरण’ के पक्ष में आवाज़ बुलंद करती इस फिल्म के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि महिलाएं आगे बढ़ेगी….तभी देश तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ेगा। बकौल फिल्म निर्माता आर बी गौतम भोजपुरी फिल्म ‘संदेश’ के माध्यम से ये भी समझाने का प्रयास किया गया है कि अशिक्षित समाज में अनेक तरह की समस्याएं जन्म लेती है और उसका दंश पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को झेलना पड़ता है। डिजिटल युग में समाज के सभी वर्ग को शिक्षित होना अति आवश्यक है। मूल रूप से मानवीय त्याग और समर्पण पर आधारित है भोजपुरी फिल्म ‘संदेश’।
प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय
आधे से ज्यादा भ्रम दूर हुआ, संघर्ष जारी रहेगा – अखिलेश
लखनऊ ,11 मार्च (आरएनएस)। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार को लेकर अखिलेश यादव का पहला रिएक्शन का आया है। समाजवादी पार्टी के नेता ने इन नतीजों को भी सकारात्मक ढंग से लेने की बात कही है। अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा, उत्तर प्रदेश की जनता को हमारी सीटें ढाई गुनी व मत प्रतिशत डेढ़ गुना बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद। हमने दिखा दिया है कि भाजपा की सीटों को घटाया जा सकता है। भाजपा का ये घटाव निरंतर जारी रहेगा। आधे से ज़्यादा भ्रम और छलावा दूर हो गया है बाकी कुछ दिनों में हो जाएगा। जनहित के लिए संघर्ष जारी रहेगा। इससे पहले गुरुवार को नतीजों के वक्त अखिलेश यादव का कोई रिएक्शन सामने नहीं आया था।
अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया से साफ है कि वह वोट प्रतिशत और सीटों में इजाफे को लेकर खुश हैं। उन्होंने साफ कहा कि आपने हमारी सीटों को ढाई गुना तक बढ़ा दिया है, जो 2017 में मिलीं 47 सीटों के मुकाबले बढ़ते हुए 125 हो गई हैं। इसके अलावा समाजवादी पार्टी का वोट प्रतिशत भी तेजी से बढ़ते हुए 20 फीसदी की बजाय 32 फीसदी पर पहुंच गया है। इस तरह सपा ने वोट प्रतिशत के मामले में बड़ी सफलता हासिल की है, लेकिन फिर सीटों के मामले में उतनी बड़ी कामयाबी नहीं मिल सकी है। दरअसल इसकी एक वजह यह है कि मामला पूरी तरह से दो ध्रुवीय हो गया था और उसका फायदा सपा से कहीं ज्यादा भाजपा को ही मिला है।समाजवादी पार्टी के लिए दरअसल वोट शेयर के मामले में खुश होने की बड़ी वजह है। 2012 में सपा को जब पूर्ण बहुमत मिला था, तब उसे 224 सीटें मिली थीं, लेकिन वोट शेयर 29 फीसदी ही रहा था। लेकिन आज उसका वोट प्रतिशत तेजी से बढ़ते हुए 32 फीसदी के पार पहुंच गया है। यही वजह है कि सपा एक तरफ सरकार बनाने से भले ही चूक गई है, लेकिन दूसरी तरफ इस बढ़े वोट को भविष्य के लिए अपनी उम्मीदों के तौर पर देख रही है। इस चुनाव का सबसे बड़ा पहलू यह है कि बसपा का वोट फीसदी तेजी से घटते हुए 12 फीसदी के करीब ही रह गया है, जो कभी 20 फीसदी से कम नहीं रहा है।
पंजाब में जीत के साथ ही राष्ट्रीय पार्टी बनने की राह पर आप
नई दिल्ली ,11 मार्च (आरएनएस)। पंजाब में विधानसभा चुनाव जीत चुकी आम आदमी पार्टी (आप) को राष्ट्रीय दल के दर्जे का दावेदार बनने के लिए अगले दो विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने की जरूरत है जो इस साल के आखिर या अगले साल के प्रारंभ में होंगे। चुनाव आयोग के एक पूर्व अधिकारी ने चुनाव निशान (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि स्वत: ही राष्ट्रीय पार्टी बन जाने के लिए किसी भी पार्टी को चार राज्यों में प्रादेशिक (क्षेत्रीय) दल बनने की जरूरत होती है। आम आदमी पार्टी पहले से ही दिल्ली और पंजाब में प्रादेशिक दल है। वह दिल्ली में सत्ता में है जबकि वह पंजाब चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बाद वहां सत्तासीन होने जा रही है।
आदेश के प्रावधानों का हवाला देते हुए आयोग के पूर्व अधिकारी ने कहा कि किसी भी पार्टी को प्रादेशिक (क्षेत्रीय दल) का दर्जा प्राप्त करने के लिए आठ फीसद वोटों की जरूरत होती है। उन्होंने कहा, विविध विकल्प हैं। यदि किसी पार्टी को विधानसभा चुनाव में छह फीसद वोट और दो सीटें मिलती है तो उसे प्रादेशिक पार्टी का दर्जा मिल जाता है। प्रादेशिक दल का दर्जा प्राप्त करने का दूसरा विकल्प है कि विधानसभा में कम से कम तीन सीटें मिल जाएं , भले ही वोटों की हिस्सेदारी कुछ भी हो।
उन्होंने कहा, लोकसभा चुनाव में भी प्रदर्शन के संदर्भ में प्रावधान हैं लेकिन वे 2024 में होने वाले हैं। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध नवीनतम रूझानों के अनुसार आप गोवा विधानसभा चुनाव में 6.77 फीसद वोट हासिल करने में कामयाब रही है।
हिमाचल प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल आठ जनवरी, 2023 तक है जबकि गुजरात विधानसभा का कार्यकाल अगले साल 18 फरवरी को खत्म होगा। ये दोनों चुनाव इस साल के आखिर या 2023 के प्रारंभ में हो सकते हैं। आप गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश में चुनाव के लिए अपनी जमीन तैयार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।
चुनाव आयोग के अनुसार फिलहाल आठ राष्ट्रीय दल–तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एवं नेशनल पीपुल्स पार्टी हैं।
चुनावी मुद्दा नहीं बनता नदियों का जीना-मरना
कृष्ण प्रताप सिंह –
पहले चुनाव आते थे तो आम लोगों के रोटी, कपड़ा और मकान कहें या उनके जीवन निर्वाह से जुड़े मुद्दों पर सार्थक चर्चाएं हुआ करती थीं। पार्टियां व प्रत्याशी मतदाताओं को इन मुद्दों से जुड़ा अपना नजरिया व नीतियां समझाते नहीं थकते थे। साथ ही अपीलें करते थे कि मतदाता बूथों पर जायें तो किसी के बहकावे में न आयें और इन मुद्दों के आधार पर ही वोट दें। लेकिन अब चुनाव आते हैं, तो जान-बूझकर ऐसे मुद्दों को हाशिये में डालकर कुछ बहकाने वाले मुद्दों को आगे ला दिया जाता है और सारी बहसें उन्हीं के इर्द-गिर्द केंद्रित कर दी जाती हैं। ताकि मतदाताओं की जातियां व धर्म आगे आ जायें और उनके कौआ रोर में किये जाने वाले इमोशनल अत्याचार से वे इतने त्रस्त हो जायें कि अपनी जाति’ व अपने धर्म’ से आगे सोच ही न सकें। फिर उन्हीं के आधार पर सरकार चुन लें और फुरसत से पश्चाताप करते रहें।इन विधानसभा चुनावों में इसकी सबसे बड़ी नजीर यह है कि पंजाब में पीने के पानी के जहरीले हो जाने की जटिल होती जा रही समस्या वहां मतदान के दिन तक मुद्दा नहीं बन पाई। यह तब था, जब कभी पांच नदियों के पानी के लिए जाने जाने वाले इस प्रदेश में जहरीला पानी पीने की मजबूरी के शिकार अनेक नागरिक कैंसर से पीडि़त होकर त्रासद मौतों के शिकार हो रहे हंै। जब यह समस्या मुद्दा ही नहीं बन पाई तो इसी पर चर्चा क्यों होती। दरअसल, बीती शताब्दी के सातवें दशक में हरित क्रांति लाने की कोशिशों के दौरान अत्यधिक अनाज उगाने के लिए अपनाई गई कृषि पद्धति रासायनिक उर्वरकों पर कुछ ज्यादा ही निर्भर है। और अब वह अपना विकल्प तलाशे जाने की मांग करती है। इसी तरह मानव जीवन की रेखा कही जाने वाली नदियों से उनका ही जीवन छीन लेने पर आमादा प्रदूषण न सत्तापक्ष के लिए चुनाव का कोई मुद्दा है, न ही विपक्षी दलों के लिए। भले ही नदियां न केवल लोगों की प्यास बुझाती आई हों, बल्कि उनकी आजीविका का माध्यम भी हों। साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र और भूजल के स्तर को बनाए रखने में भी बड़ा योगदान देती हों। एक जानकार के शब्द उधार लें तो आज जो नदियां मैल व गन्दगी ढोने को अभिशापित हैं, वे धरती पर अपने अवतरण के वक्त से ही जीवन बांटती आई हैं। खास तौर पर मनुष्य का जीवन-मरण किस तरह नदियों पर निर्भर है, इसे यों समझ सकते हैं कि मनुष्य के मरणोपरांत उसके शारीरिक अवशेष भी नदियों में बहाए जाते हैं। ऐसे में कायदे से होना तो यह चाहिए था कि लगातार बढ़ते जा रहे प्रदूषण के कारण अस्तित्व के खतरे झेल रही नदियों और उनके बहाने मानव जीवन को पैदा हो रहे अंदेशों पर भरपूर चर्चा होती। इस कारण और कि इंग्लैंड की यॉर्क यूनिवर्सिटी द्वारा दुनिया भर की नदियों में दवाओं के अंशों का पता लगाने के लिए हाल में ही किये गये शोध से खुलासा हुआ है कि अब नदियों के जल के लिए पैरासिटामोल, निकोटिन व कैफीन के अलावा मिर्गी और मधुमेह आदि की वे दवाएं भी खतरा बनती जा रही हैं, जिनके अंश लापरवाही से नदियों के हवाले कर दिये जा रहे हंै। किसी एक देश में नहीं, प्राय: दुनिया भर में। अमेरिका की प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा प्रकाशित की गई इस शोध की रिपोर्ट में इस स्थिति को पर्यावरण के साथ ही मानव स्वास्थ्य के लिए भी घातक बताया गया है। यॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने इस शोध के लिए 104 देशों में नदियों की शहरों व कस्बों के नजदीक बहने वाली 1,052 साइटों से उनके पानी के नमूने एकत्रित किये और उनमें सक्रिय 61 दवाओं के अंशों (एपीआई) का परीक्षण किया, तो पाया कि दवा निर्माण संयंत्रों से निकले दूषित जल, बिना उपचार के सीवेज के पानी, शुष्क जलवायु और कचरा निपटान के तरीके का नदियों के पानी को प्रदूषित करने में योगदान लगातार बढ़ रहा है। हां, जिन देशों में आधुनिक दवाओं का इस्तेमाल कम होता है या उनके अंशों के अत्याधुनिक दूषित जल उपचार का ढांचा और नदियों में पर्याप्त बहाव है, वहां वे दवा प्रदूषण से अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं।दवाओं से नदी जल प्रदूषण की समस्या इसलिए भी जटिल हो रही है क्योंकि ज्यादातर देशों में दवा उद्योग से निकले प्रदूषित जल के निपटान के कानून बने तो हैं लेकिन उन पर अमल नहीं हो रहा। लेकिन अपने देश के सिलसिले में इसकी बात करें तो हम पाते हैं कि अभी इसे लेकर न सरकारें ठीक से सजग हैं और न ही लोग इतने जागरूक कि इसे लेकर सरकारों पर दबाव बना सकें। जहां तक राजनीतिक दलों की बात है, जब वे चुनावों के वक्त भी ऐसी समस्याओं को चर्चा के केन्द्र में नहीं लाना चाहते तो उनकी वास्तविक मंशा समझने के लिए और कौन से तथ्यों की जरूरत है? बिना जन दबाव के इन दलों को क्या फर्क पड़ता है अगर कल-कारखानों की निकासी, घरों की गंदगी, खेतों में मिलाये जा रहे रसायन, उर्वरक और भूमि कटाव के साथ दवाओं में प्रयुक्त हो रहे रसायन भी नदी जल को दूषित करने वाले कारकों में शामिल हो जायें। इसे लेकर वोट की चोट के बगैर वे क्योंकर समझने लगे कि नदियां महज जल-मार्ग नहीं हैं, वे बरसात की बूंदों को सहजेती हैं और धरती की नमी बनाये रखती है। जलवायु में हो रहे बदलाव में नदियां ही धरती पर जीवन का आधार हैं और उनमें बहता पानी मनुष्य की सांस की सीमा भी तय करता है। सिविल सोसायटी ने अभी भी इसके लिए सत्तातंत्र पर दबाव नहीं बनाया और सब कुछ राजनीतिक दलों व सरकारों की इच्छा और मंशा पर ही छोड़े रखा, तो कौन कह सकता है कि हालात वैसे ही नहीं होंगे, जैसे गंगा की सफाई के मामले में हुए हैं?
‘गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट’ की तिमाही बैठक सम्पन्न
गौ वंश पर आधारित भारत की पहली व एक मात्र राष्ट्रीय समाचार पत्र ‘गऊ भारत भारती’ द्वारा संचालित ‘गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट’ की तिमाही बैठक 10 मार्च को गोरेगाँव (मुम्बई) स्थित संस्था के कार्यालय में 10 मार्च को
‘गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट’ तथा ‘गऊ भारत भारती’ के संस्थापक ट्रस्टी संजय अमान ,महासचिव ट्रस्टी राम कुमार पाल , सचिव प्रेम कुमार , विशाल भगत , राजेश मेहता और अन्य कार्यकारिणी सदस्यों की उपस्थिति में संपन्न हुई। इस तिमाही बैठक में यूपी में 11.8 लाख से भी अधिक छुट्टा पशुधन पर संस्था के महासचिव और ट्रस्टी रामकुमार पाल ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि -” इस समस्या के समाधान के लिए ” गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट ” पहल करे और उत्तरप्रदेश में व्याप्त इस विषय पर हो रही राजनीति पर अंकुश लगाना जरुरी है क्योंकि यूपी में छुट्टा पशुओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। साल 2012 से 2019 के बीच सात सालों में छुट्टा पशुओं की संख्या 17.3% बढ़ गई। पशुगणना के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 2012 में 10 लाख से ज्यादा छुट्टा पशु थे, सात साल बाद 2019 में यह संख्या करीब 11.8 लाख हो गई। साल 2019 में आई 20वीं पशुगणना के मुताबिक, देश में राजस्थान के बाद सबसे ज्यादा छुट्टा पशु यूपी में मौजूद हैं। श्री पाल ने आगे कहा कि उत्तरप्रदेश में गौशालाओं के अलावा यूपी में ‘बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना’ भी चलाई जा रही है, जिसके तहत लोगों को छुट्टा पशुओं को पालने के लिए ₹30 प्रतिदिन दिए जाते हैं। इस योजना में एक लाख पशुओं को देने का लक्ष्य है। यह लक्ष्य करीब-करीब हासिल कर लिया गया है। मगर इतना काफी नहीं है हमें आगे आ कर बड़े पैमाने पर छुट्टा पशुधन पर काम करने की जरुरत है। श्री पाल के इस सुझाव पर तुरंत ही गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट तथा ” गऊ भारत भारती ”के संस्थापक ट्रस्टी संजय अमान , ने संस्था के सभी ट्रस्टियों से विचार कर एक रिजुलेशन पास किया कि उत्तर प्रदेश में छुट्टा पशुधन को गौशालाओ में पहुंचाने , उनके चारे पानी की समुचित व्यवस्था , उन के चिकित्सा व्यवस्था के लिए संस्था सरकार के साथ मिल कर जमीनी स्तर पर कार्य करेगी। बैठक के अंत में संस्था के सचिव प्रेम कुमार ने बैठक में आए सभी ट्रस्ट्रियों को धन्यवाद देते हुए पुनः उत्तरप्रदेश में भाजपा की जीत पर सब को बधाई दी।
विदित हो कि ”गौ रक्षक सेवा ट्रस्ट ” अपनी 7वीं वार्षिक वर्षगाँठ मना रहा है। इस का वार्षिक उत्सव का कार्यक्रम 25 मार्च को महराष्ट्र के राज्यपाल माननीय महामहिम श्री भगत सिंह कोश्यारी जी के संरक्षण में राजभवन में होने जा रहा है। जिसमें गौसेवा और समाज से जुड़े लोगों को राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान दे कर उन्हें सम्मानित भी किया जायेगा।
प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय
प्रधानमंत्री मोदी ने 5 में से 4 राज्यों में जीत पर कार्यकर्ताओं को दी बधाई
*यूपी में 37 साल बाद कोई सरकार लगातार दूसरी बार आई है
नई दिल्ली ,10 मार्च (आरएनएस)। 5 में से 4 राज्यों में भाजपा को मिले जनादेश पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। पीएम मोदी ने कहा कि आज उत्साह का दिन है, उत्सव का दिन है। ये उत्सव भारत के लोकतंत्र के लिए है। मैं इन चुनावों में हिस्सा लेने वाले सभी मतदाताओं को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। उनके निर्णय के लिए मतदाताओं का आभार व्यक्त करता हूं। विशेष रूप से हमारी माताओं, बहनों और युवाओं ने जिस तरह से बीजेपी का समर्थन किया वह अपने आप में बड़ा संदेश है।
पीएम मोदी ने दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि चुनाव के दौरान भाजपा के कार्यकर्ताओं ने मुझसे वादा किया था कि इस बार होली 10 मार्च से ही शुरू हो जाएगी। हमारे कर्मठ कार्यकर्ताओं ने अपने वादे को पूरा करके दिखाया है। मैं अपने कार्यकर्ताओं की भूरी-भूरी प्रशंसा करूंगा, जिन्होंने इन चुनावों में कड़ी मेहनत की है। यूपी ने देश को अनेक प्रधानमंत्री दिए हैं, लेकिन 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले मुख्यमंत्री के दोबारा चुने जाने का ये पहला उदाहरण है। यूपी में 37 साल बाद कोई सरकार लगातार दूसरी बार आई है।
पीएम मोदी ने आगे कहा कि तीन राज्य यूपी, गोवा और मणिपुर में सरकार में होने के बावजूद भाजपा के वोट शेयर में वृद्धि हुई है। गोवा में सारे एग्जिट पोल गलत निकल गए और वहां की जनता ने तीसरी बार सेवा करने का मौका दिया है। सीमा से सटा एक पहाड़ी राज्य, एक समुद्र तटीय राज्य, मां गंगा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त एक राज्य और पूर्वोत्तर सीमा पर एक राज्य, भाजपा को चारों दिशाओं से आशीर्वाद मिला है। इन राज्यों की चुनौतियों भिन्न हैं, सबकी विकास यात्रा का मार्ग भिन्न है, लेकिन सबको जो बात एक सूत्र में पिरो रही है, वो है- भाजपा पर विश्वास, भाजपा की नीति, भाजपा की नीयत और भाजपा के निर्णयों पर अपार विश्वास।
इस दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत पार्टी के अन्य नेताओं ने पीएम मोदी को माला पहनाकर सम्मानित किया। इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा कि उत्तर प्रदेश में चार बार नरेंद्र मोदी को प्रदेश की जनता ने लगातार अपना आशीर्वाद दिया है। 2014 लोकसभा में प्रचंड जीत हासिल हुई थी, 2017 में प्रदेश की जनता ने आशीर्वाद दिया था। 2019 में जनता ने फिर से लोकसभा में आशीर्वाद दिया था। इस बार 2022 में चौथी बार भाजपा को उत्तर प्रदेश की जनता ने आशीर्वाद दिया है।
जेपी नड्डा ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की राजनीति की संस्कृति बदली है। लंबे समय तक एक राजनीति चल रही थी। वह राजनीति थी भाई, भतीजावाद, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता, जातिवाद, परिवारवाद, क्षेत्रवाद। इनकी राजनीति लंबे समय से चल रही थी। प्रधानमंत्री ने भारत की राजनीति की संस्कृति बदल दी है। अब रिपोर्ट कार्ड की राजनीति है। काम करोगे, जनता के बीच में जाओगे और जनता का आशीर्वाद लोगे। आज विकास की राजनीति है, महिला सशक्तिकरण, किसानों का सशक्तिकरण की राजनीति है।
चार राज्यों मेें भगवा दल का जलवा, पंजाब आप के हवाले
चुनाव आयोग के अनुसार उत्तर प्रदेश की 403 सीटों में से 399 सीटों के रुझानों में भाजपा 252, सपा 110 तथा अपना दल 12 सीटों पर आगे चल रहा है। इसके अलावा भी कुछ अन्य राजनीतिक दलों के उम्मीदवार आगे चल रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर शहरी सीट पर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीदवार से करीब 20 हजार मतों से तथा सपा के अखिलेश यादव करहल सीट पर 30 हजार से ज्यादा मतों से आगे चल रहे हैं। राज्य के बुंदेलखंड के सात जिलों की कुल 19 सीटों में सभी पर भाजपा एवं उसके सहयोगी दलों के उम्मीदवार काफी बढत बनाए हुए हैं। पंजाब में सभी 117 सीटों के रुझान आ चुके हैं और आम आदमी पार्टी 90 सीटों पर आगे है, कांग्रेस 18, शिरोमणि अकाली दल छह और भाजपा दो सीटों पर बढ़त बनाये हुए है।
मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी चमकौर साहिब सीट से पीछे चल रहे हैं और पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी अमृतसर पूर्वी सीट पर आम आदमी पार्टी की जीवन जोत कौर से, पटियाला सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह आम आदमी पार्टी से और पूर्व मुख्यमंत्री तथ शिरोमणी अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल लम्बी सीट से पिछड़ रहे हैं। उत्तराखंड में सभी 70 सीटों के प्रारंभिक रुझान आ चुके हैं और वहां भाजपा 42, कांग्रेस 22 आगे चल रही है। इस राज्य में बहुजन समाज पार्टी एक सीट पर बढ़त बनाये हुए है। मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी खटीमा सीट से करीब एक हजार वोटों से और कांग्रेस उम्मीदवार तथा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत लालकुआं सीट से 12 वोटों से पीछे चल रहे हैं।
मणिपुर की 60 सीटों में 41 के रुझान आ गए हैं, जिनमें भापजा 21, कांग्रेस तीन, नागा पीपुल्स फ्रंट तथा नेशनल पीपुल्स पार्टी छह-छह सीटों पर बढत बनाए हुए है। राज्य विधानसभा चुनाव का पहला परिणाम घोषित किया जा चुका है और यह परिणाम जनता दल यू के पक्ष में गया है और इसके प्रत्याशी नगूरसंगलूर सनाते ने भाजपा के सीएल येमो को 1249 मतों से पराजित किया है। भाजपा नेता तथा राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह हींगांग सीट से 18 हजार वोटों से बढ़त बनाए हुए हैं।
संदेशपरक फिल्म ‘बांछड़ा’ और ‘धर्म द्वन्द’ की शूटिंग
28 मार्च से लखनऊ में शुरू होगी
जेडी फिल्म प्रोडक्शन हाउस प्राइवेट लिमिटेड व् वाफ्ट स्टूडियोज के बैनर तले सवेंदनशील मुद्दों पर आधारित निर्देशक नीरज सिंह के निर्देशन में बन रही दो फिल्म क्रमशः ‘बांछड़ा’ और ‘धर्म द्वन्द’ की शूटिंग 28 मार्च से लखनऊ में शुरू होगी। स्टार्ट टू फिनिश शूटिंग शेड्यूल के प्रथम चरण में ‘बांछड़ा’ की शूटिंग कम्प्लीट किये जाने के बाद ‘धर्म द्वन्द’ की शूटिंग शुरू होगी। दोनों फिल्मों की कथावस्तु उत्तर प्रदेश की पृष्टभूमि से जुड़ी है। नीरज सिंह, श्रद्धा श्रीवास्तव व् अमित चतुर्वेदी ने दोनों संदेशपरक फिल्मों की कहानी को काफी रिसर्च करने के बाद लिखा है। फिल्म ‘बांछड़ा’ अनुसूचित जनजाति/आदिवासी समुदाय में परंपरा के नाम पर हो रही महिला उत्पीड़न को दर्शाती है तो वहीं दूसरी फिल्म ‘धर्म द्वन्द’ की कहानी देश में हो रहे धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर है। फिल्म निर्माता धर्मेंद्र सिंह की इन दोनों फिल्मों के सह निर्माता कुणाल श्रीवास्तव व् अमरीक सिंह मान, सह निर्देशिका श्रद्धा श्रीवास्तव, क्रिएटिव डायरेक्टर संजीव त्रिगुणायत , एक्सक्यूटिव प्रोडूसर अवि प्रकाश शर्मा , एसोसिएट प्रोडूसर राजकमल सिंह तरकर, सिनेमेटोग्राफर राजकमल गुप्ता व् राजकिरण गुप्ता हैं और मुख्य कलाकार बृजेन्द्र काला, निमाई बाली, मिथिलेश चतुर्वेदी, संजीव जैसवाल और काजल मोदी आदि हैं।
प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय
चीन के रक्षा बजट में अप्रत्याशित बढ़ोतरी गंभीर चिंता का विषय
खतरनाक मंसूबे
रूस व यूक्रेन के संघर्ष के दौरान अंतर्राष्ट्रीय नियामक संस्थाओं व विश्व बिरादरी की लाचारगी के बीच चीन के रक्षा बजट में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हमारी गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। कहीं न कहीं चीन के मन में यह विचार जरूर होगा कि विश्व बिरादरी जब रूस की आक्रामकता पर अंकुश नहीं लगा पायी तो उसे रोकना भी मुश्किल होगा, क्योंकि वह आज विश्व की बड़ी आर्थिक ताकत है। वहीं चीन में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का होना, उसकी अतिरिक्त शक्ति भी है। यूं तो चीन लगातार सात सालों से अपने रक्षा बजट में वृद्धि करता रहा है। लेकिन इस बार चौंकाने वाली स्थिति यह है कि उसके रक्षा बजट में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि की गई है। वह भी ऐसे समय में जब उसकी अर्थव्यवस्था की रफ्तार कोरोना संकट के दौर में मंथर गति से आगे बढ़ी है। वर्तमान में चीन की विकास दर 5.5 फीसदी दर्ज की गई है। यह विकास दर पिछले तीन दशक में सबसे कम है। इसके बावजूद उसके द्वारा रक्षा बजट में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि करना उसके खतरनाक मंसूबों को ही उजागर करता है, जो कहीं न कहीं उसके साम्राज्यवादी इरादों को पुष्ट करता है। बहुत संभव है कि कल वह यूक्रेन की तरह ताइवान व हांगकांग को पूर्ण रूप से देश का हिस्सा बनाने को रूस जैसे हथकंडे अपनाये। निस्संदेह, विकास दर के कम होने के बावजूद रक्षा खर्च में अधिक वृद्धि बताती है कि चीन की प्राथमिकताएं क्या हैं। इस कदम ने अंतर्राष्ट्रीय जनमानस की चिंताओं को बढ़ाया है। यही वजह है कि पिछले कुछ समय से अमेरिका चीन के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाये हुए है। उसे इस बात का बखूबी अंदाजा है कि कोरोना संकट के बावजूद मजबूत आर्थिक स्थिति में खड़ा चीन अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को सिरे चढ़ाने का प्रयास करेगा। यूक्रेन संकट में रूस के साथ खड़ा चीन, अमेरिका समेत पश्चिमी जगत की चिंताओं को बढ़ा रहा है क्योंकि विश्व में शक्ति का नया ध्रुव बन रहा है।कोरोना काल के बाद उपजे परिदृश्य में चीन के रक्षा बजट में वृद्धि भारत की गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। दरअसल, चीन की इस तैयारी से हमारी वह चिंता और बढ़ जाती है, जो पिछले दो साल से एलएसी पर बनी हुई है। चौदह दौर की सैन्य कमांडर स्तर की वार्ता के बाद समस्या का निर्णायक समाधान नहीं निकला है। वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब लगते इलाकों में उसका सैन्य मकसद से स्थायी निर्माण करना और भारी-भरकम हथियारों के साथ बड़ी संख्या में सैन्य बलों की तैनाती हमारी गंभीर फिक्र का विषय होना चाहिए। हालांकि, भारत ने इस इलाके में सड़कों, सुरंगों व नये पुलों के निर्माण के जरिये इस चुनौती का मुकाबला करने का प्रयास किया, लेकिन इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है। हाल ही के दिनों में चीन के रुख में कोई बदलाव नजर नहीं आया। रूस-यूक्रेन संकट के बीच भारत का रूस के साथ सामंजस्य इसी रणनीति का हिस्सा है कि यदि कहीं चीन से टकराव हो तो रूस भारत के साथ नजर आये। विगत में भी एक आजमाये दोस्त के रूप में रूस संकट के मौकों पर भारत के साथ खड़ा रहा है। लगता है चीन की यह तैयारी युद्ध की रणनीति का ही हिस्सा है। वह आधुनिकीकरण के क्रम में बड़े पैमाने पर लड़ाकू जहाज व पनडुब्बियां बना रहा है। चिंता की बात यह भी है कि चीन का रक्षा बजट भारत के रक्षा बजट का तीन गुना अधिक है, जिसका उपयोग वह उन्नत युद्ध तकनीकों के शोध व अनुसंधान पर करता है। जबकि भारतीय रक्षा बजट का साठ फीसदी हिस्सा सैन्य कर्मियों के वेतन-पेंशन आदि पर व्यय होता है। चीन का यह खर्च भारत के मुकाबले आधा ही है। अपनी रक्षा तैयारियों के बूते ही चीन आज वास्तविक नियंत्रण रेखा और हिंद प्रशांत क्षेत्र में लगातार आक्रामकता दिखा रहा है। ऐसे में एलएसी के विवादों के निपटारे के लिये भारत को कूटनीतिक विकल्प भी खुले रखने चाहिए क्योंकि दोनों देशों के संबंध अब तक के खराब दौर से गुजर रहे हैं।
रिजर्व बैंक कमेटी की संस्तुति-पूंजी का पलायन रोकने के हों प्रयास
भरत झुनझुनवाला – रिजर्व बैंक कमेटी ने संस्तुति की है कि देश को पूंजी के मुक्त आवागमन की छूट देनी चाहिए। यानी विदेशी निवेशक भारत में स्वच्छंदता से आ सकें और भारतीय निवेशक अपनी पूंजी को स्वच्छंदता से भारत से बाहर ले जाकर निवेश कर सकें, ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए। कमेटी का कहना है इसके चार लाभ हैं। पहला यह कि देश में पूंजी की उपलब्धि बढ़ जाएगी। यह सही है कि विदेशी पूंजी का भारत में आना सरल हो जाएगा। जो विदेशी निवेशक भारत में निवेश करेंगे उनके लिए समय क्रम में अपनी पूंजी को निकाल कर अपने देश वापस ले जाना आसान हो जाएगा।
लेकिन यह दोधारी तलवार है। यदि विदेशी निवेशकों के लिए भारत में पूंजी लाना आसान हो जाएगा तो उसी प्रकार भारतीयों के लिए भी अपनी पूंजी को बाहर ले जाना आसान हो जाएगा। रिजर्व बैंक के ही आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में हमारा पूंजी खाता ऋणात्मक रहा है यानी जितनी विदेशी पूंजी अपने देश में आई है उससे ज्यादा पूंजी अपने देश से बाहर गई है।
इससे प्रमाणित होता है कि पूंजी का मुक्त आवागमन विपरीत दिशा में ज्यादा चल रहा है। जैसे दो टंकियों के बीच में एक वॉल लगा हो तो पानी उस तरफ ज्यादा जाएगा जहां पानी का स्तर कम होगा। इसी प्रकार विदेशी और भारतीय पूंजी के बीच में वॉल को खोल दें तो किस तरफ पूंजी का बहाव होगा यह इस पर निर्भर करेगा कि पूंजी का आकर्षण किस तरफ अधिक है।
कमेटी का दूसरा कथन है कि पूंजी के मुक्त आवागमन से अपने देश में पूंजी की लागत कम हो जाएगी और ब्याज दर कम हो जाएगी। लेकिन रिजर्व बैंक के ही आंकड़े इसी के विपरीत खड़े हैं जो कि बता रहे हैं हमारा पूंजी खाता ऋणात्मक है यानी पूंजी बाहर जा रही है और जिसके कारण अपने देश में पूंजी का मूल्य बढ़ रहा है, घट नहीं रहा है। कमेटी ने तीसरा तर्क दिया है कि पूंजी के मुक्त आवागमन से भारतीय कंपनियों द्वारा लिए जाने वाले लोन का विविधीकरण हो जाएगा।
जैसे किसी कंपनी को यदि फैक्टरी लगानी हो तो कुछ पूंजी वह भारतीय बैंक से लेंगे, कुछ विदेशी बैंक से लेंगे, कुछ विदेशी निवेशकों से लेंगे। इस प्रकार उनके ऊपर जो लोन का भार है वह किसी एक स्रोत पर निर्भर होने के स्थान पर विविध स्रोतों पर बंट जाएगा और ज्यादा टिकाऊ होगा। यह बात सही है। कई कंपनियों ने हाल ही में विदेशी पूंजी का लोन लिया भी है।
लेकिन जितना इन्होंने लिया है उससे ज्यादा बाहर भी गया है इसलिए यह विविधीकरण कंपनियों के लिए लाभप्रद रहा हो सकता है लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ हो, ऐसा नहीं दिखता है। कमेटी के अनुसार चौथा लाभ भारतीय निवेशकों के लिए निवेश का विविधीकरण है। भारतीय निवेशक विदेशी प्रॉपर्टी एवं शेयर बाजार के साथ-साथ भारतीय प्रॉपर्टी एवं शेयर बाजार में निवेश कर सकेंगे।
लेकिन पुन: यह लाभ निवेशक विशेष को होगा। यह देश का लाभ नहीं है क्योंकि जब भारतीय निवेशक अपनी पूंजी को विदेशों में निवेश करते हैं तो भारत की पूंजी बाहर जाती है और भारत की अर्थव्यवस्था कमजोर होती है।
इन इस दृष्टि से कमेटी के दिए गए तर्क मान्य नहीं हैं।विशेष बात यह है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि आपदा के समय विकासशील देशों को पूंजी के मुक्त आवागमन पर रोक लगानी चाहिए। उन्होंने कोरिया और पेरू द्वारा कोविड संकट के दौरान ऐसे प्रतिबंध लगाने का स्वागत किया है। हमें भी इस दिशा पर विचार करना चाहिए। वर्तमान में हमारे सामने एक और संकट है कि अभी तक अमेरिकी फेडरल रिजर्व बोर्ड ने ब्याज दर शून्य के लगभग कर रखी थी। निवेशकों के लिए लाभप्रद था कि अमेरिका में लोन लेते और भारत में निवेश करते।
लेकिन अब फेडरल रिजर्व बोर्ड ने संकेत दिए हैं कि वे शीघ्र ही ब्याज दरों में वृद्धि करेंगे। यदि ऐसा होता है तो निवेशकों के लिए अपनी पूंजी को भारत से निकालकर अमेरिका ले जाना ज्यादा लाभप्रद हो जाएगा क्योंकि अमेरिका में निवेश को ज्यादा स्थाई और टिकाऊ माना जाता है। इसलिए हमको विचार करना चाहिए कि आखिर हमारी देश से पूंजी का पलायन हो क्यों रहा है।जर्नल ऑफ इंडियन एसोसिएशन ऑफ सोशल साइंस इंस्टिट्यूशन में छपे एक पर्चे के अनुसार, भारत से पूंजी के पलायन के चार कारण हैं।
पहला कारण भ्रष्टाचार का है। यह सही है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के स्तर पर भ्रष्टाचार में भारी कमी आई है लेकिन यह भी सही है कि जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार में उससे ज्यादा वृद्धि हुई है। इसलिए सरकार को नीचे से भ्रष्टाचार को दूर करने के कदम उठाने चाहिए। दूसरा यह कि सरकारी ऋण ज्यादा होने से निवेशकों को भय होता है कि ऋण की भरपाई करने के लिए आने वाले समय में रिजर्व बैंक नोटों को ज्यादा मात्रा में छापेगा, जिससे देश में महंगाई बढ़ेगी और भारतीय रुपये का अवमूल्यन होगा। तब उनकी पूंजी का मूल्य स्वत: घट जाएगा।
इसलिए सरकारी ऋण की अधिकता से पूंजी का पलायन होता है। वर्तमान में कोविड संकट के कारण ही क्यों न हो फिर भी यह तो सत्य है ही कि अपनी सरकार द्वारा लिए गए ऋण में भारी वृद्धि हुई है। इस परिस्थिति में भारत सरकार को ऋण कम लेना चाहिए। लेकिन इससे निवेश में कमी नहीं होनी चाहिए अन्यथा पुन: आर्थिक विकास की गति में ठहराव आएगा।
इसलिए सरकार को चाहिए कि अपनी खपत को कम करे, जिससे कि सरकार को लोन कम लेने पड़ें और पूंजी का पलायन न हो। तीसरा कारण बताया गया है कि मुक्त व्यापार को अपनाने से भी पूंजी का पलायन होता है। इसका कारण यह दिखता है कि जब हम मुक्त व्यापार को अपनाते हैं तो उद्यमियों के लिए आसान हो जाता है कि अपनी पूंजी को उस देश में ले जाएं जहां पर उत्पादन करना सुलभ हो।
जैसे भारतीय उद्यमी के लिए यह सुलभ हो जाएगा कि वह अपनी फैक्टरी को बांग्लादेश में लगाए और बांग्लादेश में माल का उत्पादन करके भारत को निर्यात कर दे। ऐसे में मुक्त व्यापार के कारण पूंजी का पलायन बढ़ता है।
इसलिए सरकार को चाहिए कि रिजर्व बैंक की कमेटी की रिपोर्ट को अमान्य करते हुए भ्रष्टाचार पर रोक लगाए, सरकारी खपत को घटाए और मुक्त व्यापार को अपनाने के स्थान पर आयात कर बढ़ाये। तब ही अपने देश से पूंजी का पलायन कम होगा और देश की आर्थिक विकास दर बढ़ेगी।
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उनके जीने के अधिकार का हो सम्मान
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100 करोड़ के काफी करीब है ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’
आलिया भट्ट की हालिया रिलीज फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ बॉक्स ऑफिस की खिड़की पर धमाल मचाती हुई नजर आ रही है , जो कोरोनोवायरस महामारी के बाद सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर में इतिहास रचने की दिशा में अग्रसर है। फिल्म ट्रेड के आंकड़ों के अनुसार, रॉबर्ट पैटिनसन अभिनीत बैटमैन का प्रतिद्वंद्वी के रूप में सामना करने के बावजूद फिल्म ने अच्छा प्रदर्शन किया है।फिल्म ने रिलीज के दिन शुक्रवार को 5.01 करोड़ की कमाई की, जबकि शनिवार और रविवार को इसने क्रमश: 8.20 करोड़ और 10.08 करोड़ की कमाई की और दूसरे सप्ताहांत में कुल 23.29 करोड़ की कमाई की। जबकि बैटमैन ने उसी वीकेंड में 21.50 करोड़ की कमाई की। एक अच्छी शुरुआत के बाद फिल्म के कारोबार ने अपने शुरुआती सप्ताहांत और पहले सप्ताह में भी जबरदस्त वृद्धि देखी। अब, अपने दूसरे वीकेंड पर, गंगूबाई काठियावाड़ी के कलेक्शन में एक और उछाल देखने को मिला है। यह फिल्म 100 करोड़ के काफी करीब है और फिल्म प्रेमियों की पहली पसंद बनी हुई है।
प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय
नूरानी चेहरा से फिल्मी करियर शुरू करने जा रही हैं नुपुर सैनन
अभिनेत्री कृति सैनन की छोटी बहन नुपुर सैनन पिछले काफी समय से अपने बॉलीवुड डेब्यू को लेकर सुर्खियों में हैं। उनका नाम कई फिल्मों से जुड़ चुका है और अब आखिरकार नुपुर की पहली फिल्म नूरानी चेहरा का ऐलान हो गया है। वह बॉलीवुड के मंझे हुए अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ अपना फिल्मी करियर शुरू करने जा रही हैं। 26 वर्षीया नुपुर की पहली फिल्म का पोस्टर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
नुपुर की पहली फिल्म नूरानी चेहरा का निर्देशन नवानियत सिंह कर रहे हैं। फिल्म और ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श ने भी सोशल मीडिया पर यह जानकारी दी है। दूसरी तरफ नुपुर ने नवाजुद्दीन के साथ अपनी अनूठी लव स्टोरी वाली इस फिल्म का पोस्टर साझा करते हुए लिखा, नूरानी चेहरा में नूर और हिबा के प्यार में पडऩे के लिए तैयार रहें। यह होगी इस साल की बेमेल जोड़ी। आज यानी वैलेंटाइन डे से शूटिंग शुरू हो गई है।
बता दें कि नुपुर ही नहीं, बल्कि अभिनेत्री अवनीत कौर भी नवाजुद्दीन के साथ बतौर लीड एक्ट्रेस बॉलीवुड में अपनी शुरुआत करने जा रही हैं। दोनों की जोड़ी कंगना रनौत के होम प्रोडक्शन के बैनर तले बन रही फिल्म टीकू वेड्स शेरू में बनी है।
नवाजुद्दीन ने भी सोशल मीडिया पर नूरानी चेहरा का ऐलान कर दिया है। उन्होंने फिल्म के पोस्टर के साथ नुपुर संग फिल्म के सेट से ली गई अपनी एक दूसरी तस्वीर पोस्ट कर लिखा, प्यार, मुस्कुराहट और कुबूलनामा। तस्वीर में दोनों एक-दूसरे की तरफ देख मुस्कुरा रहे हैं। इस फिल्म को पंजाबी फिल्म काला शाह काला का हिंदी रीमेक बताया जा रहा है। इसका निर्माण पैनोरमा स्टूडियो, वाइल्ड रिवर पिक्चर्स और पल्प फिक्शन एंटरटेनमेंट के जरिए किया जा रहा है।
निर्देशक नवानियत सिंह कहते हैं, मैं खुश हूं कि मैंने जैसा सोचा था, ठीक वैसा ही हो रहा है। इस फिल्म की कहानी को लेकर बेहद रोमांचित हूं। मुझे खुशी है कि नवाजुद्दीन और नुपुर को फिल्म की कहानी बहुत पसंद आई। उन्होंने कहा, दोनों कहीं से भी कपल नहीं लगते, लेकिन एक कपल के तौर पर मुझे उनसे बेहतर कोई कलाकार नहीं लगे। शूटिंग शुरू करने के लिए वैलेंटाइन डे से बेहतर और कोई दिन नहीं हो सकता था।
नुपुर, अक्षय कुमार के साथ दो सुपरहिट म्यूजिक वीडियो फिलहाल 1 और फिलहाल 2 में नजर आ चुकी हैं। इन दोनों ही गानों में अक्षय और नुपुर की केमिस्ट्री ने दर्शकों का दिल छू लिया था। फिलहाल 2019 में रिलीज हुआ था। इसे अब तक यू-ट्यूब पर एक अरब से ज्यादा व्यूज मिल चुके हैं। दूसरी तरफ फिलहाल 2 को अब तक 560 मिलियन से ज्यादा लोग देख चुके हैं। ये दोनों गाने सिंगर बी प्राक ने गाए थे। (एजेंसी)
स्पाई बहू में एक परिष्कृत, कलात्मक महिला की भूमिका निभा रही हैं परिणीता
टीवी शो गुप्ता ब्रदर्स में गंगा की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री परिणीता बोरठाकुर अब आगामी शो स्पाई बहू की कास्ट में शामिल हो गई हैं। यह शो एक जासूस और एक संदिग्ध आतंकवादी के बीच प्रेम कहानी के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे सना सैय्यद और सेहबान अजीम है।
वह कहती है कि मैं टीवी स्क्रीन पर वापस लौटने के लिए वास्तव में बहुत उत्साहित हूं। शो में मेरी भूमिका बहुत शक्तिशाली है और उन भूमिकाओं से अलग है जो मैंने पहले पर्दे पर निभाई थीं। अपने आखिरी शो के ऑफ एयर जाने के बाद मैं एक छोटे से ब्रेक पर थी। मैं अपने व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित कर रही थी, और अपने बेटे और परिवार को कुछ समय दे रही थी।
परिणीता अपनी भूमिका के बारे में बताती हैं और कहती हैं कि मैं वीरा का किरदार निभा रही हूँ, जो एक बहुत ही परिष्कृत और कलात्मक व्यक्ति है। मैं योहन की सौतेली माँ हूँ । मेरा किरदार कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
स्पाई बहू का प्रोमो हाल ही में बॉलीवुड दिवा करीना कपूर खान के साथ प्रसारित हुआ। शो में अयूब खान, शोभा खोटे, भावना बलसावर भी हैं।
(एजेंसी)
30 की उम्र के बाद इन चीजों के सेवन से बना लें दूरी
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे शरीर में हाई ब्लड प्रेशर और मधुमेह जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए स्वास्थ्य का खास ध्यान देना जरूरी है। इस दौरान डाइट का खास ध्यान रखें क्योंकि एक उम्र के बाद खान-पान की कुछ चीजें स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं। आइए आज हम आपको ऐसी ही कुछ चीजों के बारे में बताते हैं, जिनका सेवन 30 की उम्र के बाद करना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
पैकेज्ड सूप
अगर आपकी उम्र 30 के पार हो चुकी है और आप हल्की-फुल्की भूख मिटाने के लिए पैकेज्ड सूप का सेवन कर लेते हैं तो आज से ही इनका सेवन करना बंद कर दें। दरअसल, पैकेज्ड सूप में सोडियम की मात्रा अधिक होती है, जो शरीर में पहुंचकर इसे हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर और स्ट्रोक आदि बीमारियों का घर बना सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि आप अपनी डाइट में पैकेज्ड सूप की बजाय होममेड सूप को ही शामिल करें।
ज्यादा मीठे पेय पदार्थ
कई लोग फ्लेवर्ड सोडा पानी, स्पोर्टस ड्रिंक, एनर्जी ड्रिंक और सॉफ्ट ड्रिंक्स जैसे मीठे पेय पदार्थों का सेवन करना काफी पसंद करते हैं, लेकिन अगर आप 30 साल के हो गए हैं तो इन पेय पदार्थों का सेवन करना बंद कर दें। दरअसल, इन पेय पदार्थों में पोषक तत्वों की कमी होती है और इनमें शुगर की मात्रा भी अधिक होती है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने का कारण बन सकती है।
रिफाइंड कार्ब्स
अगर आपकी उम्र 30 साल से ज्यादा है तो आपको रिफाइंड कार्ब्स से युक्त चीजों के सेवन से दूरी बना लेनी चाहिए क्योंकि रिफाइनिंग प्रक्रिया के दौरान खाद्य पदार्थों में से सभी पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। रिफाइंड कार्ब्स से भरपूर भोजन एक उच्च ग्लाइसेमिक आहार होता है, जो आपके रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ा सकता है, जिसके कारण न सिर्फ मधुमेह बल्कि याददाशत में कमी और डिमेंशिया जैसी गंभीर बीमारियों की संभावना भी बढ़ जाती है।
अधिक वसा युक्त खाद्य पदार्थ
अध्ययनों पर गौर फरमाया जाए तो अत्याधिक वसा युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन भी 30 की उम्र के बाद करना सही नहीं है क्योंकि यह लीवर को कमजोर कर सकता है। दरअसल, इस तरह के खाद्य पदार्थ शरीर में पहुंचकर शरीर की तंत्रिकाओं और कोशिकाओं में सूजन पैदा करते है जिसकी वजह से लीवर कमजोर होने लगता है। इसके अलावा, ऐसे खाद्य पदार्थों के सेवन से वजन बढऩे की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।
अगर आपकी उम्र 30 साल से अधिक है तो आपकी डाइट में जरूरी पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ और होममेड पेय पदार्थ शामिल होने चाहिए ताकि शरीर में टॉक्सिन का स्तर कम रहे। टॉक्सिन का स्तर कम रहने से बीमारियों का खतरा नहीं रहता। (एजेंसी)