आजादी के अमृत महोत्सव के तहत राष्ट्रीय कानूनी जागरूकता एवं आउटरीच कार्यक्रम का आयोजन

रेलवे स्टेशन और रिनपास में कार्यक्रम का आयोजन

नशा उन्मूलन पर आमजनों को दी गयी जानकारी

रांची, झारखण्ड राज्य विधिक सेवा प्राधिकार, रांची के निर्देश पर अखिल भारतीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन 02 अक्टूबर से 14 नवम्बर, 2021 तक रांची जिला के सभी ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में किया जा रहा है। इसी कड़ी में आज दिनांक 05 अक्टूबर 2021 को रांची रेलवे स्टेशन और रिनपास, कांके में जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

इस दौरान नशीली दवाओं के दुरूपयोग और खतरे के उन्मूलन हेतु पीड़ितों को कानूनी सेवाओं की जानकारी दी गयी। कार्यक्रम में नशापान से होने वाले नुकसान पर विचार विमर्श किया गया।

कार्यक्रम के दौरान श्रीमती कमला, कुमारी डालसा सचिव और रेलवे मजिस्ट्रेट श्री गौतम गोविंदा ने नशे से होने वाले नुकसान के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि आपकी समस्याओं का समाधान जिला विधिक सेवा प्राधिकार के कार्यालय के माध्यम से किया जा सकता है, आप अपने अधिकारों को समझें और कानून का पालन करें।

रिनपास कांके में भी डालसा टीम द्वारा जागरूकता फैलाया गया। पीएलवी के द्वारा झालसा द्वारा निर्मित सरल भाषा में कानून की जानकारी से संबंधित पम्फलेट का वितरण आमलोगों में किया गया।

कार्यक्रम में श्रीमति कमला कुमारी, डालसा सचिव, श्री गौतम गोविंदा, रेलवे मजिस्ट्रेट, श्री रूपेश कुमार सिंह, जी.आर.पी., रांची, श्री सुमन कुमार झा, श्री संजय कुमार शर्मा, पैनल अधिवक्ता, एस दास, प्रीति पाल, मानव कुमार सिंह, मुक्तेश्वर पाहन, पिंकू कुमारी, सगीता देवी, भारती देवी, मालती देवी पीएलवी समेत अन्य लोग उपस्थित थे।

 

पति-पत्नी साथ नहीं रह सकते तो एक-दूसरे को छोडऩा ही बेहतर : सुप्रीम कोर्ट

डॉ. जाकिर हुसैन पार्क का 75 घंटे में हुआ जीर्णोद्धार

डॉ. जाकिर हुसैन पार्क का 75 घंटे में हुआ जीर्णोद्धार

आम लोगों के लिए फिर से खुला पार्क

तनाव से मिलेगी मुक्ति, बच्चों के मनोरंजन की होगी पूरी व्यवस्था

रांची, शहर के बीचो-बीच स्थित डॉ. जाकिर हुसैन पार्क में अब फिर से बच्चों की खिलखिलाहट गूंजने लगी है। तरह-तरह के रंग बिरंगे झूलों पर उन्हें झूलने का मौका मिल रहा है। पार्क में बच्चों के साथ पहुंचनेवाले अभिभावकों के चेहरे पर भी मुस्कान दिखती है। बच्चों व उनके अभिभावकों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए रांची जिला प्रशासन और नगर निगम की टीम ने दिन रात मेहनत की। सिर्फ 75 घंटे में ही डॉ. जाकिर हुसैन पार्क का जीर्णोद्धार का काम किया गया है। जीर्णोद्धार के बाद यह पार्क शहरवासियों के लिए खोल दिया गया है।

मुख्यमंत्री का मिला था आदेश

हाल ही में मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने अधिकारियों को राजधानी शहर के सौंदर्यीकरण और पार्कों के उचित देखभाल का निर्देश दिया था। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद नगर प्राधिकरण निदेशालय, झारखंड के तहत रांची नगर निगम ने शहर के लोगों के लिए स्वच्छ वातावरण बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू की है। इसके तहत ‘रमनीक रांची’ नामक एक समर्पित योजना भी शुरू की गई है।

खराब थी पार्क की स्थिति

मालूम हो कि डॉ. जाकिर हुसैन पार्क की स्थिति काफी खराब थी। विगत आठ वर्ष से पार्क बंद पड़ा था और देखभाल के अभाव में जहां-तहां घनी झाड़ियां उग आई थीं। पार्क में लगे झूले खराब हो चुके थे। गेट में भी जंग लगा हुआ था और जहां तहां गंदगी का अंबार था। लोगों को याद भी नहीं रहा था कि वहां कोई पार्क भी था। लेकिन, नगर निगम की टीम ने दिन- रात मेहनत कर झाड़ियों व गंदगी को साफ किया। पार्क में लगे झूलों को दुरुस्त किया गया। नये झूले भी लगाये गये हैं। पार्क में रोशनी की बेहतरीन व्यवस्था की गई है और रात में भी वह जगमगा रहा है। रंग-रोगन और नये स्वरूप में पार्क जनता को समर्पित किया जा चुका है। यह पार्क जनता के लिए है और जनसहयोग से ही यह आगे भी उपयोग में लाया जायेगा। गौरतलब है कि कोरोना की वजह से पौने दो साल से लोगों की जिंदगी में एक ठहराव आ गया था। कहीं भी आना-जाना बंद था और एक तनाव भरी जिंदगी जी रहे थें। पर, अब डॉ.जाकिर हुसैन पार्क का फिर से खुलना और उसमें लोगों की खिलखिलाहट यह बता रही है कि जिंदगी अब धीरे-धीरे फिर से सामान्य हो रही है।

डॉ. जाकिर हुसैन पार्क  केजीर्णोद्धार के बारे में मुकेश कुमार, नगर आयुक्त ने बताया कि ” पार्क को सुव्यवस्थित स्थिति में लाना एक कठिन लक्ष्य था, लेकिन हमने समय सीमा के भीतर इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए एक मिशन मोड पर काम किया। यह हमारे सहयोगी, सफाई कर्मचारियों एवं अन्य का संयुक्त प्रयास था। अब हम सभी को यह देखकर गर्व होता है कि अगर हम प्रतिबद्धता के साथ काम करते हैं, तो सुखद परिणाम हमारे सामने आता है।”

 

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पति-पत्नी साथ नहीं रह सकते तो एक-दूसरे को छोडऩा ही बेहतर : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली  (आरएनएस)  एक पति-पत्नी के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि पति पत्नी एक साथ नहीं रह सकते हें तो उन्हें एक-दूसरे को छोडऩा ही बेहतर होगा। दरअसल यह मामला एक दंपती का है, जो 1995 में शादी के बाद से महज 5 दिन साथ रहा है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने हाईकोर्ट के तलाक के आदेश के खिलाफ अपील करने वाली पत्नी से कहा कि आपको व्यवहारिक होना चाहिए, पूरी जिंदगी अदालत में एक दूसरे से लड़ते हुए नहीं बिताई जा सकती। आपकी उम्र 50 साल और पति 55 साल के हैं। पीठ ने दंपती को स्थायी गुजारा भत्ता पर पारस्परिक रूप से निर्णय लेने के लिए कहा और दिसंबर में याचिका पर विचार करने का निर्णय लिया है।

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पत्नी की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि हाईकोर्ट द्वारा तलाक को मंजूरी देना गलत था। हाईकोर्ट ने इस बात की भी अनदेखी की कि समझौते का सम्मान नहीं किया गया था। वहीं पति की ओर से पेश वकील ने कहा कि वर्ष 1995 में शादी के बाद से उसका जीवन बर्बाद हो गया है। दांपत्य संबंध सिर्फ पांच-छह दिन तक चला।
उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा क्रूरता और शादी के अपरिवर्तनीय टूट के आधार पर तलाक की अनुमति देना बिल्कुल सही था। वकील ने कहा कि पति पत्नी के साथ नहीं रहना चाहता और वह स्थायी गुजारा भत्ता देने को तैयार है।
पति ने दावा किया कि 13 जुलाई, 1995 को शादी के बाद उच्च शिक्षित और संपन्न परिवार से आने वाली उनकी पत्नी ने उन पर अपनी बूढ़ी मां और बेरोजगार भाई को छोड़ अगरतला स्थित अपने घर में ‘घर जमाई’ बनकर रहने के लिए दबाव डाला। पत्नी के पिता आईएएस अधिकारी थे। पति ने मामले को शांत करने की हरसंभव कोशिश की लेकिन पत्नी ससुराल छोड़कर अपने मायके चली गई। तब से दोनों अलग रह रहे हैं।

 

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एसडीओ के नेतृत्व में मधुलिका, शाही दरबार, रसोई में छापामारी

तीनों प्रतिष्ठान में मिली भारी अनियमितता, वसूला गया 1.22 लाख जुर्माना।

मधुलिका पर ₹21000 की फाइन की गई।

शाही दरबार पर 51000 तथा रसोई पर ₹50000 की फाइन लगाई।

धनबाद, अभिहित पदाधिकारी सह अनुमंडल पदाधिकारी श्री प्रेम कुमार तिवारी के नेतृत्व में फूड सेफ्टी ऑफिसर अदिति सिंह ने संयुक्त रूप से आज शहर के कई फूड आउटलेट्स में छापामारी अभियान चलाया। अभियान के तहत कई स्थान से खाद्य पदार्थ का नमूना लिया गया। अनियमितता मिलने वाले प्रतिष्ठानों पर भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) अधिनियम 2006 के शिड्यूल्ड 4 के तहत कार्रवाई की गई। ऐसे 3 प्रतिष्ठानों से ₹1,22,000 की फाइन वसूली गई।

इस संबंध में एसडीओ ने बताया कि आज हीरापुर स्थित मधुलिका तथा आईआईटी आईएसएम के पास स्थित शाही दरबार व रसोई में टीम द्वारा छापामारी की गई।

हीरापुर स्थित मधुलिका से टीम ने मैसूर पाक, पेंडा, काजू बर्फी के सैंपल एकत्रित किए। शेल्फ पर एक्सपायरी डेट की ब्रेड मिली। क्लिनिंग शेड्यूल, मेडिकल फिटनेस रिपोर्ट तथा खाद्य सुरक्षा प्रशिक्षण और प्रमाणन (फोस्टेक) के तहत प्रशिक्षित सुपरवाइजर नहीं मिला। मधुलिका पर ₹21000 की फाइन की गई।

फूड सेफ्टी ऑफिसर ने बताया कि इसके बाद टीम जब आईआईटी आईएसएम के पास स्थित शाही दरबार एवं रसोई में पहुंची तो वहां भारी गंदगी देखने को मिली। तंदूरी आइटम में तय मानक से अधिक मात्रा में रंग का उपयोग पाया गया। जो सेहत के लिए बहुत ही हानिकारक है। शाही दरबार एवं रसोई के फ्रिज में सड़ा गला सामान मिला। बिना ढंकी हुई ग्रेवी मिली।

शाही दरबार पर 51000 तथा रसोई पर ₹50000 की फाइन लगाई।

एसडीओ ने बताया कि इसी तरह का अभियान आगे भी निरंतर जारी रहेगा। वही एकत्रित किए गए खाद्य पदार्थ को जांच के लिए लेबोरेटरी भेजा जाएगा।

सामान्य परिस्थितियों में डीएनए जांच के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

एजुकेशन और हेल्थ हब के रूप में विकसित होगी रांची – विनय कुमार चौबे

सामान्य परिस्थितियों में डीएनए जांच के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, (आरएनएस)। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि सामान्य परिस्थितियों में किसी व्यक्ति को डीएनए जांच के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने पैतृक संपत्ति के मालिकाना हक से जुड़े एक विवाद में डीएनए जांच के आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर शुक्रवार को अपने फैसले में ये रेखांकित किया। शीर्ष अदालत ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा संबंधित पक्ष के एक व्यक्ति का डीएनए जांच कराने के आदेश को पलटते हुए कहा कि वैकल्पिक सबूतों के रहते डीएनए जांच का आदेश देना उस व्यक्ति के व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं निजता के अधिकार का उल्लंघन है। उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि डीएनए जांच के आदेश देने से पहले अदालतों को यह देखना चाहिए कि संबंधित मामले में सबूत के तौर पर वह जांच कितने महत्वपूर्ण हैं। डीएनए जांच का आदेश विशेष परिस्थितिओं ही दिया जा सकता है। किसी व्यक्ति की पहचान जानने, पारिवारिक संबंधों का पता लगाने और स्वास्थ्य संबंधी अनिवार्य जानकारी हासिल करने आदि परिस्थितियों में संबंधित व्यक्ति की सहमति से किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि डीएनए जांच संबंधित व्यक्ति की सहमति के विपरीत नहीं किया जा सकता है। बिना सहमति जांच का आदेश न केवल उस व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों का हनन है, बल्कि संबंधित पक्ष पर एक बोझ की तरह है। न्यायालय ने इस संबंध में के एस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ मामले में नौ न्यायाधीशों के सर्वसम्मत फैसले का उल्लेख किया। अदालत ने कहा सामान्य परिस्थितियों में डीएनए जांच के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। संविधान में इसे संरक्षित किया गया है। उच्चतम न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश के कालका के एडिशनल सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के 2017 उस फैसले को बहाल करने का कभी आदेश दिया, जिसमें डीएनए जांच कराने की मांग को खारिज कर दी गई थी। यह मामला वर्ष 2013 से हिमाचल प्रदेश के कालका जिले की अदालत में दाखिल किया गया था, जिसमें अशोक कुमार नाम के एक व्यक्ति ने दिवंगत त्रिलोक चंद्र गुप्ता और सोना देवी का बेटा होने के साथ-साथ उनकी रिहायशी पैतृक संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा किया था। सुनवाई के दौरान दिवंगत दंपति की तीन बेटियों ने कहा कि अशोक (दिवंगत गुप्ता दंपति) का बेटा नहीं है। तीनों बेटियों ने सच्चाई का पता लगाने के लिए अदालत से अशोक का डीएनए जांच कराने की मांग उठाई थी, जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दिया था। दंपति की बेटियों का कहना था कि अशोक से उनका खून का कोई नाता नहीं है। निचली अदालत ने जमीन संबंधी कागजातों में अशोक का नाम पाया था। अशोक के अन्य प्रमाण पत्रों में त्रिलोकचंद और सोना देवी का नाम दर्ज किए जाने को सबूत मानते हुए अपना फैसला दिया था।

 

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पुनर्वितरण ज़रूरी लेकिन विकास की कीमत पर नहीं

अमिताभ कांत
हमारी आजादी के बाद के सालों में भारत में आर्थिक विकास के बजाय संपदा के पुनर्वितरण को तरजीह दी गई। हालांकि, ये पुनर्वितरण नीतियां गरीबी के स्तर में गंभीर चोट कर पाने में नाकाम रहीं, और इन्होंने आर्थिक विकास को सुस्त रखा। जहां 90 के दशक की शुरुआत में उदारीकरण की कोशिशों से संपदा के सृजन में विस्फोट हुआ और गरीबी में काफी कमी आई, वहीं उसके बाद के दशकों में इस सुधार के एजेंडे का असर खत्म हो गया। इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च और सुधारों में बढ़ोतरी के नतीजतन जो असरदार विकास हुआ उसकी बुनियाद पर 2000 के दशक के आखिर में भारत में बड़े पैमाने पर पुनर्वितरण नीतियां लाई गईं। हालांकि, वैश्विक वित्तीय संकट के बाद जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था धीमी हुई, सरकारी खर्च का दायरा टिकाऊ नहीं रहा।
यहां कहने का मतलब ये नहीं है कि पुनर्वितरण नहीं करना चाहिए। जिन साधनों से पुनर्वितरण किया जाता है वे बड़े महत्वपूर्ण हैं। आईएमएफ के एक पेपर के मुताबिक कैश ट्रांसफर, प्रगतिशील टैक्स व्यवस्था और मानव पूंजी में निवेश ही वे मुख्य साधन हैं जिनके ज़रिए पुनर्वितरण किया जाता है। बेशक, यहां ऐसी सीमाएं हैं जिनमें से पहले और दूसरे साधन का इस्तेमाल किया जा सकता है। मसलन, 1970 के दशक की शुरुआत को ही लीजिए। इस दौरान व्यक्तिगत आयकर का सबसे ऊंचा ब्रैकेट 95त्न से ज्यादा था। किसी प्रगतिशील टैक्स व्यवस्था में, एक चौड़े टैक्स बेस के जरिए सरकारी राजस्व को बढ़ाने की कोशिशें की जानी चाहिए, न कि मार्जिनल टैक्स रेट्स को बढ़ाकर। ठीक इसी तरह, कैश ट्रांसफर जहां महत्वपूर्ण हैं लेकिन इन्हें सरकारी लाभों और सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने की कोशिशों के साथ किया जाना चाहिए। मानव पूंजी में निवेश की भी नियमित रूप से निगरानी और मूल्यांकन किया जाना चाहिए, सिर्फ इनपुट के लिहाज से ही नहीं बल्कि आउटपुट और नतीजों के लिहाज से भी।
बड़े पैमाने वाले पुनर्वितरण कार्यक्रमों की अपनी वित्तीय लागत भी होती है। सरकारी राजस्व या तो कर राजस्व से आ सकता है या फिर गैर-कर राजस्व से। कर राजस्व भारत में राजस्व का एक बड़ा हिस्सा है। जिसके नतीजतन कर राजस्व हमारी अर्थव्यवस्था की पूरी सेहत से बहुत महत्वपूर्ण रूप से जुड़ा हुआ है। इसका तर्क बड़ा सीधा सा है। जैसे-जैसे लोग ज्यादा कमाते हैं, टैक्स भी उतना ही ज्यादा इक_ा किया जाता है। कर संग्रह तंत्र भी खासा महत्वपूर्ण है, जिसे स्वैच्छिक अनुपालन को बढ़ावा देना चाहिए। घाटे के वित्तपोषण को तब उपयोग में लाया जाता है जब सरकारी खर्च उसके राजस्व से ज्यादा होता है। इसका मतलब ये है कि सरकार अपने खर्चों को पूरा करने के लिए बाजार से पैसा उधार ले रही है। इसे ही राजकोषीय घाटा कहा गया है।
अब जब हमने ये स्थापित कर लिया है कि टैक्स कलेक्शंस का निर्धारण करने में अर्थव्यवस्था की सेहत बड़ी महत्वपूर्ण है, तो फिर हम अनुमान लगा सकते हैं कि टैक्स कलेक्शन को बढ़ाने के लिए अर्थव्यवस्था को बूस्ट करना यानी आर्थिक टुकड़े के आकार को बढ़ाना महत्वपूर्ण है। नॉर्डिक देशों का ही उदाहरण लीजिए। इन देशों को रहने के लिए लगातार सबसे अच्छी जगहें कहा गया है। फिर भी, उनकी अर्थव्यवस्थाएं सबसे ज्यादा गतिशील भी हैं। इन देशों ने इकोनॉमिक फ्रीडम इंडेक्स में लगातार ऊंचा स्थान पाया है, जो कि एक देश में आर्थिक स्वतंत्रता की हद को मापता है। न्यूजीलैंड, जिसे आर्थिक स्वतंत्रता और ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिजऩेस’ इन दोनों सूचकांकों में शीर्ष पर रखा गया है, उसकी अपने मजबूत सोशल सिक्योरिटी नेट्स के लिए काफी तारीफ की गई है। इसलिए, टिकाऊ और परिवर्तनकारी पुनर्वितरण नीतियों को चलाने की चाबी एक मजबूत और गतिशील अर्थव्यवस्था है।

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भारतीय अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने और लंबे समय से चली आ रही अक्षमताओं को दूर करने के लिए, हमारे देश की मौजूदा सरकार ने खासे महत्वपूर्ण संरचनात्मक सुधार, शासनात्मक सुधार और नियामक सुधार किए हैं। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों करों में एक नई कर व्यवस्था शुरू की गई है। भारत की टैक्स प्रणाली में जो प्रतिकूल व्यवस्था निर्मित हो गई थी, उसके मुकाबले ये नई प्रणाली स्वैच्छिक अनुपालन और भरोसे को बढ़ावा देती है। फेसलेस मूल्यांकन और अपीलें, कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत आयकर दरों में कमी, लंबित विवादों के लिए एक समाधान तंत्र, इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ जीएसटी, ये सब इस बात के सबूत हैं कि कराधान की एक नियम आधारित, स्वैच्छिक अनुपालन की प्रणाली लाई जा रही है।
भारत में हमने पुनर्वितरण नीतियों के तीनों साधनों को अभी और अतीत में भी सक्रिय देखा है। हालांकि, पहुंच इसमें एक प्रमुख बाधा बनी रही। क्योंकि सरकार द्वारा खर्च किया जा रहा पैसा उसके इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुंच रहा था। मुझे याद है एक अधिकारी के तौर पर मेरे शुरुआती दिनों में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने कहा था कि सरकार द्वारा खर्च किए गए हर एक रुपये में से 85 पैसे लीक हो गए। तब से इसमें एक बड़ा कायापलट हुआ है, खासकर हाल के कुछ बरसों में। बीते कुछ सालों में एक बड़ा फर्क लाने वाली चीज ये रही है कि तकनीक से सक्षम सर्विस डिलिवरी, जवाबदेही और पारदर्शिता पर ध्यान केंद्रित किया गया है। गैर-बराबरी का मुकाबला करने के लिए पहुंच यानी एक्सेस के मसलों को हल करना बड़ा जरूरी है। स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, रसोई गैस, इंटरनेट, आवास और वित्त तक पहुंच, ये कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें बड़ी छलांग लगाई गई है। इसमें रिकॉर्ड सबके सामने है। पहुंच के मुद्दों को संबोधित करके ज्यादा संपदा और आय में असमानता की दिशा में एक बड़ी बाधा को दूर किया गया है। और इसे मार्जिनल टैक्स व्यवस्था में कोई खास बढ़ोतरी किए बिना हासिल किया गया है। पीएम-किसान योजना और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के जरिए बड़े पैमाने पर कैश ट्रांसफर भी हो रहे हैं। मानव पूंजी पर भी उचित ध्यान दिया जा रहा है। दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना भारत में चलाई जा रही है। अब शिक्षा की गुणवत्ता को मापने और शिक्षा तक हासिल की गई पहुंच पर ध्यान केंद्रित किया गया है। एक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति शुरू की गई है, जो तीन दशकों में पहली बार हुआ है।
भारत में बीते सालों में असमानता से लडऩे के लिए बहुत कुछ किया गया है, जिसमें सरकारी लाभ और सेवाओं तक पहुंच में सुधार लाने पर जोर दिया गया है। इसे व्यय में किसी बड़ी बढ़ोतरी के जरिए नहीं, बल्कि कई कारकों के संयोजन के जरिए हासिल किया है। सबसे पहले तो बजट में बढ़ोतरी की गई। हालांकि, इसके साथ शासन में सुधार भी किए गए जिन्होंने जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा दिया। तकनीक ने इसमें बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसने मजबूत निगरानी और मूल्यांकन प्रणालियों को सक्षम किया। इसका नतीजा ये था कि पिरामिड के एकदम नीचे तक सेवाओं का कुशल वितरण हुआ। ठीक उसी वक्त, कई संरचनात्मक सुधारों के जरिए हमारी अर्थव्यवस्था की संभावित विकास दर को बढ़ावा देने की कोशिशें की गई हैं, जिनमें से प्रत्येक ने हमारी अर्थव्यवस्था में अंतर्निहित अक्षमताओं को संबोधित किया है। कोई जरूरी नहीं कि पुनर्वितरण और विकास, प्रतिस्पर्धी नीतिगत लक्ष्य हों। पुनर्वितरण कार्यक्रमों के वित्तपोषण के लिए एक मजबूत अर्थव्यवस्था बड़ी जरूरी है। जिसके बदले में, पुनर्वितरण में इन निवेशों का लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था पर कई गुना असर पड़ता है।
*लेखक नीति आयोग के सीईओ हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं।

लगभग 70 वर्षों से, जम्मू एवं कश्मीर एक संवैधानिक विसंगति की छाया में जी रहा था

‘कल्पनाशील जम्मू एवं कश्मीर

–  डॉ. जितेंद्र सिंह
लगभग 70 वर्षों से, जम्मू एवं कश्मीर एक संवैधानिक विसंगति की छाया में जी रहा था। यह विसंगति वास्तव में इतिहास के साथ–साथ सभी मनुष्यों के समान अधिकारों के सिद्धांत के साथ भी एक दुर्घटना जैसी थी। शायद यह ईश्वर की इच्छा थी कि श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनें और जम्मू एवं कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद 370 और 35-ए के बंधनों से मुक्त करायें।
विभिन्न किस्म के बदलावों और नई प्रशासनिक एवं संवैधानिक व्यवस्थाओं के अस्तित्व में आने के बाद, जम्मू एवं कश्मीर ने न सिर्फ विकास की एक तेज गति वाली यात्रा शुरू की है, बल्कि उन मानसिक बाधाओं से भी मुक्ति प्राप्त की है जिसने यहां लोगों को शेष भारत के लोगों की तुलना में अलग महसूस कराया और इसी तरह, शेष भारत को भी जम्मू एवं कश्मीर के साथ एक अलग तरह से बर्ताव करने के लिए तैयार किया।
सभी स्तरों पर संपूर्ण एकीकरण के साथ, जम्मू एवं कश्मीर के लोग आज श्री मोदी के न्यू इंडिया का एक अनिवार्य घटक बनने के अपने सपने को साकार करने की संभावना और इससे होने वाले लाभों को लेकर उत्साहित हैं।
इस कल्पनाशील जम्मू एवं कश्मीर ने न सिर्फ अतीत की एक अप्रिय विरासत को प्रभावी तरीके से पीछे छोड़ा है, बल्कि शेष भारत के साथ एक जैसी आकांक्षाओं को पोषित करना भी सीख लिया है।
आज जम्मू एवं कश्मीर ने विकास की एक नई यात्रा शुरू कर दी है। 170 केंद्रीय कानून, जो पहले लागू नहीं थे, अब लागू कर दिए गए हैं। इसी तरह, सभी केंद्रीय कानून केंद्र-शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर में लागू होते हैं।
बाल विवाह अधिनियम, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार (आरटीआई) और भूमि सुधार जैसे कई कानून भी अब प्रभावी हैं। दशकों से यहां रह रहे वाल्मीकि, दलित और गोरखा समुदायों को भी अब अन्य निवासियों के समान अधिकार प्राप्त हैं। अब स्थानीय निवासियों और अन्य राज्यों के निवासियों को समान अधिकार प्राप्त हैं। राज्य के 334 कानूनों में से, 164 कानूनों को निरस्त कर दिया गया है और 167 कानूनों को भारतीय संविधान के अनुरूप बनाया गया है। अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में तीन प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

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15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान केंद्र-शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर और केंद्र-शासित प्रदेश लद्दाख को क्रमश: 30,757 करोड़ रुपये और 5,959 करोड़ रुपये का अनुदान मंजूर किया गया है।
पिछले वर्ष पहली बार ग्राम पंचायतों और जिला पंचायतों के चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हुए है। कई सालों के बाद 2018 में पंचायत चुनाव हुए थे और उनमें 74.1 प्रतिशत मतदान हुआ था। 2019 में ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव पहली बार हुए और उनमें 98.3 प्रतिशत मतदान हुआ। हाल ही में संपन्न जिला स्तरीय चुनावों में भी लोगों की रिकॉर्ड भागीदारी रही।
आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत जम्मू एवं कश्मीर में 51.7 लाख लाभार्थियों की पहचान की गई है। इस योजना के तहत, जम्मू एवं कश्मीर के विभिन्न अस्पतालों में 2.24 लाख उपचारों को अधिकृत किया गया है और इसके लिए 223 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की गई है। पीएम किसान योजना के तहत अब तक 12.03 लाख लाभार्थियों को शामिल किया जा चुका है।
अधिवास कानून को लागू किया गया है और 1990 में कश्मीर घाटी से निकाले गए कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया है, जिसके लिए 6000 नौकरियों और 6000 पारगमन आवास के प्रावधान की दिशा में काम चल रहा है।
सेब की खेती के लिए एक बाजार हस्तक्षेप योजना लागू की गई है। इस योजना के तहत केंद्रीय खरीद एजेंसी द्वारा डीबीटी भुगतान और परिवहन की व्यवस्था ने सेब की कीमतों में स्थिरता ला दी है।
कश्मीरी केसर को जी. आई. टैग मिल गया है। अब कश्मीरी केसर पूर्वोत्तर राज्यों तक भी पहुंच रहा है। पुलवामा के उखु गांव को ‘पेंसिल वाला गांवÓ का उपनाम मिलने वाला है।
श्रीनगर के बहुप्रतीक्षित रामबाग फ्लाईओवर को आवागमन के लिए खोल दिया गया है। आईआईटी जम्मू को अपना परिसर मिल गया है और एम्स, जम्मू का काम भी शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री द्वारा अटल सुरंग को राष्ट्र को समर्पित करने के साथ ही इसका इंतजार खत्म हुआ। जम्मू सेमी रिंग रोड और 8.45 किलोमीटर लंबी नई बनिहाल सुरंग को इसी साल आवाजाही के लिए खोल दिया जाएगा।
आतंक की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है और घाटी में शांति एवं सुरक्षा का एक नया वातावरण बना है। पर्यटन के क्षेत्र में तेज वृद्धि का रुझान दिखाई दे रहा है।
40 साल से ठप पड़ी शाहपुर-कंडी बांध परियोजना पर फिर से काम शुरू हो गया है। रतले पनबिजली परियोजना का काम भी फिर से शुरू किया जा रहा है।
ऐसा पहली बार है जब भारत सरकार की औद्योगिक प्रोत्साहन योजना के तहत जम्मू एवं कश्मीर में औद्योगिक विकास को ब्लॉक स्तर तक ले जाया जाएगा। नई केंद्रीय योजना के तहत, अगले 15 वर्षों में 28,400 करोड़ रुपये के प्रोत्साहन से राज्य में विकास के नए द्वार खुलेंगे।
प्राथमिक क्षेत्र में रोजगार सृजन के अलावा, इस योजना से कृषि, बागवानी, रेशम उत्पादन, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी उद्योग के क्षेत्र में और 4.5 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होने की उम्मीद है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जम्मू एवं कश्मीर आज तेज गति से आगे बढ़ रहा है। आज का कल्पनाशील जम्मू एवं कश्मीर भविष्य का आदर्श (रोल मॉडल) बनने की ओर अग्रसर है।
– केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार);पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार);प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत,पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष विभाग राज्यमंत्री हैं

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स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी प्रदेश कार्यकारिणी के नव निर्वाचित सभी पदाधिकारियों, सदस्यों को पदभार और प्रमाणपत्र दिया गया

रांची, 03.10.2021 को राॅंची कारमेल स्कूल,हरमू बाईपास रोड,राॅंची में स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी, झारखंड प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हुई।

बैठक की अध्यक्षता प्रदेश अध्यक्ष श्री रामप्रकाश तिवारी ने किया।

बैठक में प्रदेश अध्यक्ष श्री रामप्रकाश तिवारी जी और प्रदेश प्रधान महासचिव श्री रामरंजन कुमार सिंह जी ने पूर्व दिनांक-26.09.2021 को स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी प्रदेश कार्यकारिणी के  नव निर्वाचित सभी पदाधिकारियों, सदस्यों को पदभार सौंपते हूए प्रमाणपत्र दिया गया।

बैठक में पार्टी कार्यकारिणी के प्रदेश पदाधिकारियों, सदस्यों को सम्बोधित करते हुए प्रदेश अध्यक्ष श्री राम प्रकाश तिवारी ने कहा कि झारखंड की आम जनता एनडीए,यूपीए गठबंधन सरकारों से निराश हो चुकी है अब उन्हें स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव-2024 में  विकल्प देने के लिए 81 सीट पर शिक्षित युवाओं को खड़ा करने जा रही है आपलोग पार्टी के नीतियों,सिद्धान्तो, कार्यक्रमो के प्रचार-प्रसार करने के लिए आगे रणनीति अनुसार युद्धस्तर पर कार्य करें।

बैठक को सम्बोधित करते हुए पार्टी के प्रदेश प्रधान महासचिव श्री रामरंजन कुमार सिंह ने कहा हेमन्त सरकार के आदेश पर लाखों गरीब आदिवासी दलित पिछड़े अगड़े अल्पसंख्यक बच्चों बच्चियों की पढ़ाई लिखाई पिछले 19 माह से बंद है बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए हेमन्त सरकार तत्काल कक्षा-नर्सरी से पांच की पढ़ाई शुरू करें और आरटीई प्रथम संशोधित नियमावली-2019 का काला कानून रद्द करें। बिना शर्त सभी प्राइवेट स्कूलों को मान्यता दे।

बैठक को संबोधित करते हुए प्रदेश उपाध्यक्ष श्री शंभू लाल वर्णवाल ने कहा मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन हम जी 2019 के अपने चुनावी वादेनुसार झारखंड के पांच लाख बेरोजगारो को सरकारी नौकरी दे और सभी शिक्षित बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता दे यह दुर्भाग्यपूर्ण है हेमन्त सरकार ने अभी तक बेरोजगारी भत्ता देना शुरू नहीं किया है।

बैठक को सम्बोधित करते हूए प्रदेश महासचिव श्री अजय शंकर कुमार ने कहा कोरोना महामारी में बेरोजगार हूए लाखों मजदूरों,आर्थिक संकट झेल रहे किसानों, प्राइवेट स्कूल संचालकों, शिक्षकों,छोटे कारोबारियों को हेमन्त सरकार तत्काल आर्थिक सहायता उपलब्ध करायें।

बैठक को संबोधित करते हुए प्रदेश उपाध्यक्ष प्रहलाद महतो ने कहा हेमन्त सरकार हर मोर्चे पर विफल है झारखंड में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, मंहगाई अपराध चरम सीमा तक पहुंच गया है आम जनता परेशान हैं हेमंत सरकार इसपर ध्यान दें।

बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव पारित करते हूए हेमंत सरकार से सभी नागरिकों को मुफ्त बिजली पेयजल शिक्षा चिकित्सा सुविधा के साथ गरीब परिवारों को पक्का मकान बनाकर और सभी शिक्षित अशिक्षित बेरोजगार युवाओं को सरकारी नौकरी,रोजी रोजगार के साधन उपलब्ध करायें,सभी सरकारी/प्राइवेट स्कूलों में कक्षा-नर्सरी से पांच की पढ़ाई शुरू करें।

अन्य प्रस्ताव पारित करते हुए प्रदेश अध्यक्ष रामप्रकाश तिवारी,प्रदेश प्रधान महासचिव श्री रामरंजन कुमार को पार्टी के भावी कार्यक्रमो, आंदोलन की घोषणा करने और झारखंड के सभी जिला संयोजक,जिला अध्यक्ष मनोनित करने का अधिकार दिया गया।

प्रदेश उपाध्यक्ष श्री मनोरंजन कुमार ने धंन्यवाद ज्ञापन देते हूए कहा हेमन्त सरकार लगभग 22 माह शासन कर चुकी है अब मात्र तीन वर्ष दो माह शेष कार्यकाल बचा है यूपीए गठबंधन के सभी सहयोगियों मंत्रियो, झारखंड सरकार के विभागीय अधिकारियों के बीच तालमेल का घोर अभाव है हेमन्त सरकार ट्राॅस्फर पोस्टिंग उद्योग चला रही है।

बैठक में सर्वश्री इरफान खान,केडी मोदी(प्रदेश महासचिव) सुरेंद्र भगत(प्रदेश उपाध्यक्ष), केदारनाथ प्रसाद,बमदत्त शंभू मिश्रा,(संगठन सचिव),बिमल डे, कार्यकारिणी सदस्य इत्यदि उपस्थित थे।

इसकी जानकारी  पीयूष झा और विवेक कुमार त्रिपाठी ने दी.

 

 

एजुकेशन और हेल्थ हब के रूप में विकसित होगी रांची – विनय कुमार चौबे

*रांची स्मार्ट सिटी का इन्वेस्टर्स मीट संपन्न

*प्रदेश  के डेढ़ सौ से ज्यादा संभावित निवेशक ने लिया मीट में हिस्सा

*एजुकेशन और हेल्थ हब के रूप में  विकसित होगी रांची

*स्मार्ट सिटी के विकास में  शैक्षणिक और स्वास्थ्य क्षेत्र राज्य सरकार की प्राथमिकता

*पूरा स्मार्ट सिटी हाई सिक्योरिटी जोन  होगा

रांची, रांची शहर को एजुकेशनल हब एवं मेडिकल हब के रूप में विकसित करना राज्य सरकार की प्राथमिकता है, इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए रांची स्मार्ट सिटी  में  शैक्षणिक  संस्थान  एवं  मेडिकल सेक्टर को विकसित करने की प्राथमिकता दी गई है. रांची  शैक्षणिक राजधानी के रूप में विकसित हो  इस हेतु  रांची स्मार्ट सिटी के अंदर 21% भूमि शैक्षणिक संस्थानों के लिए रखी गई है  साथ ही अभी हाल में ही लांच की गई नई उद्योग नीति के तहत  मेडिकल सेक्टर के निर्माण  को ध्यान में रखते हुए आकर्षक नीति बनाई गई है .उक्त बातें श्री विनय कुमार चौबे, सचिव,  नगर  विकास  एवं आवास विभाग ने कही. वे आज  रांची स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन लिमिटेड  द्वारा होटल बीएनआर चाणक्य  में आयोजित  इन्वेस्टर मीट 2021 में उपस्थित उद्योग जगत के प्रतिनिधियों को  संबोधित कर रहे थे.

पूरा स्मार्ट सिटी होगा हाई सिक्योरिटी जोन में

श्री विनय कुमार चौबे ने कहा कि रांची  स्मार्ट सिटी के अंदर ही  राज्य सरकार का मंत्रालय होगा साथ ही सभी मंत्रियों का  आवास भी स्मार्ट सिटी  के अंदर ही बनेगा.इस तरह से  यह पूरा स्मार्ट सिटी   हाई सिक्योरिटी जोन में होगा.

रांची शहर को विकसित करने में रांची स्मार्ट सिटी काफी महत्वपूर्ण

श्री विनय कुमार चौबे ने कहा कि  रांची शहर का फैलाओ  काफी जरुरी हो गया है .इस दिशा में रांची स्मार्ट सिटी का महत्वपूर्ण योगदान होगा. रांची स्मार्ट सिटी के डेवलप होने से इस एरिया में शहर का फैलाओ बढ़ेगा.

नए विधानसभा के पीछे हाउसिंग कॉलोनी बनेगी

सचिव श्री विनय कुमार चौबे ने कहा कि जी आर डी ए एरिया में  शैक्षणिक संस्थाओं को जमीन दी जाएगी साथ ही नए विधानसभा के पीछे 100 एकड़ में हाउसिंग कॉलोनी बनने जा रही है ,जहां सभी तरह की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध होगी. SKIPA के निर्माण के लिए भी 25 एकड़ जमीन चिन्हित की गई है.

मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन का निर्देश ,रांची को पूरे झारखंड के लोगों की आकांक्षाओं एवं आशाओं के अनुरूप बनाएं

रांची स्मार्ट सिटी कॉरपोरेशन के सीईओ श्री अमित कुमार ने कहा है कि मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन का स्पष्ट निर्देश है कि रांची को झारखंड के लोगों की आकांक्षाओं एवं आशाओं के अनुरूप बनाया जाए. इसलिए यहां पर हर आय वर्ग के लोगों के लिए आवासीय फ्लैट निर्माण को ध्यान में रखते हुए लैंड प्लॉट चिन्हित किए गए हैं.. उन्होंने कहा  कि स्मार्ट सिटी में  रोड, ड्रेनेज , यूटिलिटी सर्विसेज,जलापूर्ति, विद्युत आपूर्ति  विश्व स्तरीय होगी.

सीईओ श्री अमित कुमार ने कहा कि  विश्व के टॉप 100 यूनिवर्सिटी का कोई भी एक विश्वविद्यालय अगर दिलचस्पी दिखाता है तो उसे ₹1 में 25 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई जाएगी. किसी भी प्लॉट 400 मीटर की दूरी के अंदर ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट उपलब्ध होगा.निर्बाध बिजली आपूर्ति के लिए जीआईएस सब स्टेशन का निर्माण हो रहा है.कोई भी तार स्मार्ट सिटी के अंदर ओवरहेड वायर के रूप में नहीं दिखाई देगा.सभी यूटिलिटी सर्विसेज यूटिलिटी डक्ट के अंदर से होकर हर प्लॉट तक पहुंचेगा. उन्होंने कहा कि ई ऑक्शन प्रक्रिया में शामिल होने से जुड़ी अन्य जानकारी के लिए किसी भी एजेंसी का प्रतिनिधि स्मार्ट सिटी कारपोरेशन के वेबसाइट  rsccl.in  और  eauction.rsccl.in पर विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

प्रेजेंटेशन के माध्यम से स्मार्ट सिटी की बताई गई खूबियां

इससे पहले कार्यक्रम में स्मार्ट सिटी के महाप्रबंधक राकेश कुमार नंदकुलयार ने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के जरिए स्मार्ट सिटी योजना की पूरी जानकारी निवेशकों के समक्ष रखा ..और आश्वस्त किया कि अगर कोई तकनीकी दिक्कत होती है तो जगह-जगह पर स्मार्ट सिटी की ओर से आपको फैसिलिटेट किया जाएगा..

ई ऑक्शन के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है तैयार

प्लॉट्स के ई निलामी के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तैयार है और इस ऑक्शन में दुनियां में कहीं भी बैठा व्यक्ति वहीं से भाग ले सकता है। पारदर्शिता  का भी पूरा ख्याल रखा गया है । इसके साथ हीं ई ऑक्शन से जुड़ी जानकारी लोग कॉरपोरेशन के वेबसाइट rsccl.in और eauction.rsccl.in पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं।

कार्यक्रम में रांची धनबाद,जमशेदपुर हजारीबाग,बोकारो सहित प्रदेश के सभी महत्वपूर्ण शहरों के निवेशक शामिल हुए। उद्योग जगत के इन प्रतिनिधियों ने भी अपने विचार रखें. सभी प्रतिनिधियों ने राज्य सरकार की सराहना करते हुए कहा कि सरकार ने जिस प्रकार शिक्षा के क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्र में निवेशकों को ध्यान में रखते हुए जितनी सहूलियते दी हैं वह काबिले तारीफ है.

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मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने ईटखोरी, चतरा में नवनिर्मित ग्रिड सब स्टेशन और चतरा- लातेहार ट्रांसमिशन लाइन का उद्घाटन किया

*सोलर पावर प्लांट लगाने वालों को सब्सिडी देगी सरकार, जल्द ही शुरू होगी नई

योजना

*आप सोलर पावर प्लांट लगाएं, आपकी सरप्लस बिजली खरीदेगी सरकार

*सरकार की योजनाओं से जुड़कर राज्य के विकास में  भागीदार बनें – श्री हेमंत सोरेन

 मुख्यमंत्री झारखंड

ईटखोरी, चतरा, मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने आज ईटखोरी में नवनिर्मित ग्रिड सब स्टेशन एवं चतरा- लातेहार ट्रांसमिशन लाइन का    शुभारम्भ  कर चतरा जिले को बड़ी सौगात दी । अब इस जिले के बड़े हिस्से को निर्बाध और गुणवत्ता युक्त बिजली मिलेगी। लो वोल्टेज की समस्या नही होगी। मुख्यमंत्री ने  कहा कि  ग्रिड सब स्टेशन और ट्रांसमिशन लाइन के चालू होने से यहां के लोगों की वर्षों की चिर प्रतिक्षित मांग पूरी हो गई है । अब यहां का हर घर ना सिर्फ रोशन होगा बल्कि नई ऊर्जा के साथ विकास के रास्ते पर चतरा जिला तेजी से आगे बढ़ेगा ।

  विकास के लिए बिजली अहम

मुख्यमंत्री ने कहा कि विकास के लिए बिजली बेहद अहम है । यही वजह है कि सरकार पूरे राज्य में ग्रिड सब स्टेशन और संचरण लाइन का जाल बिछा रही है, ताकि राज्य वासियों को बिजली की आंख मिचौली नहीं झेलनी पड़े । निर्बाध और क्वालिटी बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।

सोलर पावर प्लांट्स को बढ़ावा दे रही सरकार

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार द्वारा सोलर पावर प्लांट्स को बढ़ावा दिया जा रहा है ।  उन्होंने लोगों से कहा कि वे खेती की तरह बिजली की भी खेती करें।     अपनी बंजर भूमि और घर की छत का इस्तेमाल सोलर पावर प्लांट लगाने में करे । इससे ना सिर्फ अपने लिए बिजली का उत्पादन कर सकेंगे, बल्कि सरप्लस बिजली को सरकार खरीदेगी । इससे आपकी आमदनी में इज़ाफ़ा होगा और आप राज्य के विकास में भागीदार बनेंगे। सोलर पावर प्लांट लगाने के लिए सरकार सब्सिडी देगी । इसके लिए बहुत जल्द एक नई योजना लांच की जाएगी ।

आपकी भावनाओं के अनुरूप काम कर रही सरकार

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह आपकी सरकार है । आपकी भावनाओं के अनुरूप हमारी सरकार काम कर रही है । राज्यवासियों के कल्याण और  विकास के लिए कार्य योजना बनाई जाती है । उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे सरकार की योजनाओं से जुड़े और उसका लाभ ले ।उन्होंने पदाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों से कहा कि वे ग्रामीण इलाकों में लोगों को सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से अवगत कराएं ताकि वे इन योजनाओं के माध्यम से स्वावलंबी बन सके ।

पिछड़े जिलों के विकास पर विशेष फोकस

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार की नजर चतरा, गढ़वा, लातेहार जैसे पिछड़े जिलों पर विशेष रूप से है । इसलिए ऐसे जिलों के लिए विशेष योजना भी बनाई जा रही है । इससे पहले गृह गढ़वा में भी सब स्टेशन का उद्घाटन इसी का परिचायक है।

शहरों में बाईपास बनाए जाएंगे

मुख्यमंत्री ने चतरा शहर में बाईपास की मांग पर कहा कि  इस दिशा में सरकार लगातार मंथन कर रही है । वैसे शहर, जहां बाईपास की जरूरत है, इसकी योजना स्वीकृत की जाएगी ।इतना ही नहीं , भविष्य की जरूरतों को देखते हुए भी शहरों के लिए बाईपास की  योजना बनाई जा रही है । उन्होंने बताया कि चतरा शहर के लिए बाईपास की स्वीकृति दे दी गई है । इसकी नींव अगले साल जनवरी में रखी जाएगी । उन्होंने यहां एक डेहरी प्लांट स्थापित करने की भी बात कही।

 कोरोना काल से निकलकर विकास को दे रहे गति

मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले लगभग डेढ़ साल कोविड-19 की वजह से काफी चुनौती भरा रहा। व्यवस्थाएं अस्त व्यस्त हो गई थी । लेकिन अब कोरोना काल से निकलते हुए विकास को गति दी जा रही है । राज्य के विकास और लोगों के कल्याण के लिए कई योजनाएं शुरू की गई है ।इस मौके पर उन्होंने सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और उपलब्धियों से लोगों को अवगत कराया ।

अफीम की खेती रोकने के लिए उठाए जा रहे कदम

मुख्यमंत्री ने कहा कि चतरा समेत कई जिलों में बड़े पैमाने पर अवैध रूप से अफीम की खेती होती है । इसे रोकने की दिशा में कई कदम उठाए जा रहे हैं । अफीम की बजाय मेडिसिनल प्लांट्स आदि की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है ।इससे लोगों की आमदनी में काफी इजाफा होगा ।उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जो भी लोग अफीम की खेती से जुड़े होंगे, उनके खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।  उन्होंने कहा कि अफीम अथवा अन्य मादक पदार्थों का सेवन करने वाले लोग ना सिर्फ अपना बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ी को भी बर्बाद कर रहे हैं।  ऐसे में हम सभी को इससे दूर रहने की जरूरत है ।

189.70 करोड़ की लागत से बना है ग्रिड सब स्टेशन और ट्रांसमिशन लाइन

ईटखोरी, चतरा में नवनिर्मित  220 /132/ 33 केवी ग्रिड की कुल क्षमता 400 मेगावाट है, जबकि 220 केवी चतरा- लातेहार ट्रांसमिशन लाइन की कुल लंबाई 108 किलोमीटर है । इस परियोजना की कुल लागत 189. 70 करोड़ रुपए है । इस ग्रिड सब स्टेशन और ट्रांसमिशन लाइन के चालू होने से चतरा जिले के इटखोरी, मयूरहंड, सिमरिया, गिद्धौर, हंटरगंज, कान्हाचट्टी, कुन्दा,  प्रतापपुर, डाढा आदि प्रखंडों और हजारीबाग जिले के बरही अनुमंडल में बेहतर विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी ।

82 योजनाओं का उद्घाटन और 18 योजनाओं का शिलान्यास

मुख्यमंत्री ने यहां आयोजित कार्यक्रम में विभिन्न विभागों की 100 योजनाओं का उद्घाटन शिलान्यास किया । इन योजनाओं की कुल लागत राशि 467.28 करोड़ रुपए है । इनमें 275.45 करोड़ रुपए की 82 योजनाओं का उद्घाटन और 91.79 करोड़ रुपए की 18 योजनाओं की आधारशिला रखी गई । इस मौके पर उन्होंने विभिन्न योजनाओं के लाभुकों के बीच परिसंपत्तियों का वितरण किया। इसके अलावा अफीम की खेती को रोकने की दिशा में चतरा जिला प्रशासन द्वारा शुरू किए जा रहे अभियान के पोस्टर की लॉन्चिंग की।

इस मौके पर मंत्री श्री सत्यानंद भोक्ता,सांसद श्री सुनील कुमार सिंह, विधायक श्री उमा शंकर अकेला, सुश्री अम्बा प्रसाद और श्री किशुन कुमार दास, ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव श्री अविनाश कुमार, उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के आयुक्त श्री कमल जॉन लकड़ा, झारखंड ऊर्जा संचरण निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री के के वर्मा एवं जिले की उपायुक्त श्रीमती अंजली यादव तथा पुलिस अधीक्षक श्री राकेश रंजन  समेत कई पदाधिकारी उपस्थित थे ।

प्राकृतिक आपदा में जान गंवाने वालों के परिजनों को तार्किक व राहतकारी हो अनुग्रह राशि

अनूप भटनागर –

यह कितना विचित्र लगता है कि प्राकृतिक आपदा में जान गंवाने वालों के परिजनों को दो से पांच लाख रुपए तक की अनुग्रह राशि दी जाती है लेकिन सरकार वैश्विक महामारी कोविड से जान गंवाने वालों के परिजनों को सिर्फ पचास-पचास हजार रुपये ही अनुग्रह राशि देना चाहती है। कोरोना महामारी की चपेट में आये लोगों के इलाज, कई मामलों में सिर्फ ऑक्सीजन, पर परिवारों का 50,000 रुपए से ज्यादा खर्च हुआ और वे प्रियजनों का ठीक से अंतिम संस्कार भी नहीं कर सके। क्या 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि ऊंट के मुंह में जीरे की कहावत चरितार्थ नहीं करती है? यानी महामारी में जान गंवाने वालों की जिंदगी की कीमत सरकार ने सिर्फ 50,000 रुपये ही निर्धारित की है।
यही नहीं, यह अनुग्रह राशि उन्हीं परिवारों को मिलेगी, जिनके परिवार के मृत सदस्य के मृत्यु प्रमाणपत्र पर मृत्यु का कारण कोरोना या कोविड दर्ज होगा। मृत्यु प्रमाणपत्र पर मृत्यु का कारण दर्ज होना या कराना भी एक चुनौती भरा काम है क्योंकि अस्पताल से जारी होने वाले प्रमाणपत्र में मृत्यु का कारण अलग ही दर्ज होता है। तभी उच्चतम न्यायालय को हस्तक्षेप करके सरकार को यह निर्देश देना पड़ा था कि कोरोना महामारी से जान गंवाने वाले व्यक्तियों के मृत्यु प्रमाणपत्र पर स्पष्ट रूप से मृत्यु का कारण ‘कोरोनाÓ दर्ज होना चाहिए।
मृतकों के प्रमाणपत्र पर मृत्यु का कारण कोरोना दर्ज नहीं होने और पीडि़त परिजनों के लिए अनुग्रह राशि के मामले में सरकार के टाल-मटोल के रवैये की वजह से ही शीर्ष अदालत को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा था। वैसे भी गृह मंत्रालय ने न्यायालय में तर्क दिया था कि आपदा प्रबंधन कानून के अंतर्गत शामिल भूकंप और बाढ़ सहित 12 अधिसूचित प्राकृतिक आपदा इस महामारी से एकदम भिन्न हैं।
कानून में अधिसूचित प्राकृतिक आपदाओं के मामले में आमतौर पर राज्य आपदा मोचन कोष से चार-चार लाख रुपये की अनुग्रह राशि देते हैं। यह सही है कि कोरोना महामारी ने एक अलग किस्म की चुनौती पेश की लेकिन क्या इसे दिसंबर, 2004 में आई सुनामी से अलग रखा जा सकता है। शायद नहीं। न्यायालय ने कोरोना से पीडि़त परिवारों के प्रति सरकार के इस रवैये पर नाराजगी व्यक्त करते हुए उसे कोविड पीडि़तों के लिए योजना तैयार करने का निर्देश दिया था। उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद बनाए गए दिशा-निर्देशों के अंतर्गत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने कोविड-19 से मरने वाले लोगों के परिजन को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि देने की सिफारिश की है।
कोविड-19 राहत कार्य में शामिल रहने या महामारी से निपटने की तैयारियों से जुड़ी गतिविधियों में शामिल होने के कारण इस संक्रमण से जान गंवाने वालों के परिजन को भी अनुग्रह राशि दी जाएगी। सरकार कहती है कि जीवन को पहुंची क्षति की भरपाई तो नहीं की जा सकती लेकिन पीडि़त परिवारों के लिए देश यथासंभव कर रहा है। लेकिन इस महामारी से जान गंवाने वाले व्यक्तियों का अभी तक सही आंकड़ा भी उपलब्ध नहीं है। शीर्ष अदालत को भी विचार करना होगा कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान कोरोना पीडि़तों और उनके परिजनों में कैसी बदहवासी व्याप्त थी। जीवनरक्षक दवाओं और ऑक्सीजन की अनुपलब्धता ने कोरोना पीडि़तों की जिंदगी पर समय से पहले ही विराम लगा दिया और सत्ताधीश नेता आरोप-प्रत्यारोपों में व्यस्त रहे।
कोरोना के कारण माता-पिता को खोने वाले बच्चों के निमित्त कल्याणकारी योजनाओं के लाभ के लिए मृत्यु प्रमाणपत्र पर मृत्यु का कारण ‘कोविड-19Ó दर्ज होना जरूरी था। लेकिन नौकरशाही के उदासीन रवैये के कारण इस तरह का मृत्यु प्रमाणपत्र हासिल करना भी एक चुनौती थी। मृत्यु प्रमाणपत्र में इस खामी का भी संज्ञान देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने लिया है। ऐसी शिकायतें मिल रही थीं कि एक समान मृत्यु प्रमाणपत्र की नीति के अभाव में प्राधिकारी मृत्यु प्रमाणपत्र में मृत्यु का कारण कोविड-19 या कोरोना संक्रमण की बजाय दूसरी बीमारियों का उल्लेख कर रहे थे या फिर उस कालम को रिक्त छोड़ रहे थे।
इस खामी के मद्देनजर न्यायालय ने सरकार से कहा कि अस्पतालों में कोविड की वजह मरने वाले व्यक्तियों के मृत्यु प्रमाणपत्र में वे सभी तथ्य परिलक्षित होने चाहिए जो मरीज के साथ घटित हुई ताकि परिवार भविष्य में मिलने वाले लाभ प्राप्त कर सकें। न्यायालय को इस बात का अहसास है कि इसके बाद भी मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने में कई तरह के विवाद हो सकते हैं। इसकी संभावना देखते हुए अब न्यायालय ने संकेत दिया है कि ऐसा कोई विवाद होने पर जिला स्तर पर शिकायत निवारण समितियों को मृतक का अस्पताल का रिकॉर्ड मंगाने के लिए अधिकृत किया जा सकता है। न्यायालय को यह भी सुनिश्चित कराना होगा कि जिला स्तर की शिकायत निवारण समितियां एक निश्चित अवधि में इन शिकायतों का समाधान करें।
कोरोना महामारी की विभीषिका से उत्पन्न स्थिति में न्यायपालिका के हस्तक्षेप ने कई समस्याओं के तेजी से समाधान के लिए कदम उठाने पर सरकार को बाध्य किया। न्यायिक हस्तक्षेप का ही परिणाम है कि देश में अब ऑक्सीजन या जीवनरक्षक दवाओं की कमी की कोई खबर नहीं है और कोरोना से पीडि़त मरीजों का सही तरीके से उपचार हो रहा है।
मृत्यु प्रमाणपत्र में कोविड दर्ज होने तथा परिजनों को उचित अनुग्रह राशि पर अब उच्चतम न्यायालय चार अक्तूबर को आदेश पारित करेगा। साथ ही इस आदेश में केन्द्र और राज्यों के लिए कुछ दिशा-निर्देश भी होंगे।
उम्मीद की जानी चाहिए कि शीर्ष अदालत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा कोविड के कारण जान गंवाने वालों के परिजनों के लिए पचास पचास हजार रुपये की अनुग्रह राशि देने की सिफारिश के बावजूद इस राशि को बढ़ाने पर विचार करने का निर्देश सरकार को देगी।

यह दौलत किस काम की जो मां-बाप को अपनी औलाद से दूर कर दे?

संस्कारों की दौलत ही सच्चा धन

योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण –

आजकल समाज में संस्कारों की कमी देखकर कभी-कभी मन उद्वेलित हो उठता है। समाचारपत्रों में ऐसे समाचार देखकर कि कोई वृद्धा मां या वृद्ध पिता विदेश में या किसी बड़े शहर में नौकरी करने गए अपने पुत्र को देखने को तरसते रहते हैं और एकाकी रहते हुए जब मर जाते हैं, तो भी पुत्र अंतिम संस्कार के लिए नहीं आ पाते तो मन व्यथित हो उठता है। तब मन में एक ही सवाल कौंधता है कि यह दौलत किस काम की जो मां-बाप को अपनी औलाद से दूर कर दे?
लोकजीवन में बार-बार सुनी हुई एक कहावत मन में अनायास ही गूंज उठती है—पूत सपूत तो क्यों धन संचै, पूत कपूत तो क्या धन संचै अर्थात् अगर किसी का पुत्र कपूत हो तो उसके लिए धन एकत्र करना बेकार ही है, क्योंकि वह तो मुफ्त मिले धन को उड़ा ही देगा। और अगर पुत्र सपूत है तो उसके लिए धन एकत्र करना व्यर्थ है क्योंकि वह तो स्वयं ही अपने संस्कारों के बल पर इतना धन कमा लेगा कि किसी और के धन की उसे जरूरत ही नहीं होगी।
आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि माता-पिता अपने बच्चों को इंजीनियर और डॉक्टर बनाकर विदेशों में धन कमाने तो भेज देते हैं और फिर अकेले वृद्धावस्था में उन्हें देखने तक को तरस जाते हैं। समाज में वृद्धाश्रम आखिर क्यों हैं? क्या हमारी संयुक्त परिवार-प्रथा से मिले संस्कारों से हमारा जीवन सुख से भरापूरा नहीं रहता था? एकल परिवार हमारे अवसाद का बड़ा कारण बनते जा रहे हैं, यह आज का ऐसा भीषण सच है, जिसने समाजशास्त्रियों को बेचैन कर दिया है।
लगभग दस साल की उम्र का अख़बार बेचने वाला एक बालक एक मकान का गेट बजा रहा था, तभी मालकिन ने बाहर आकर पूछा, ‘क्या बात है? बालक बोला, ,आंटी जी, क्या मैं आपका गार्डेन साफ कर दूं?, तो मालकिन ने उसे मना कर दिया। बालक ने हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में उस महिला से कहा, ‘प्लीज आंटी जी, करा लीजिये न, मैं बहुत अच्छे से साफ करूंगा। द्रवित होकर मालकिन ने पूछा, ‘क्या लेगा? तो बालक बोला कि पैसा नहीं देना आंटी जी, मुझे तो आप खाना दे देना। मालकिन बोली, ‘लेकिन अच्छे से काम करना है। औरत ने सोचा कि शायद लड़का भूखा है तो मैं पहले इसे खाना दे देती हूं।
उसने लड़के से कहा कि बेटे पहले खाना खा ले, फिर काम कर लेना। लड़के ने उत्तर दिया, ‘नहीं, नहीं, आंटी जी, पहले आपका काम कर लूं, फिर आप मुझे खाना दे देना। एक घंटे बाद लड़के ने मालकिन को बुलाकर कहा, ‘आंटी जी, देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई है कि नहीं। मालकिन खुश होकर बोली, ‘अरे वाह! तूने तो बहुत ही बढिय़ा सफाई की है, सारे गमले भी करीने से जमा दिए हैं। यहां बैठ, मैं तेरे लिए खाना लाती हूं। जैसे ही मालकिन ने उसे खाना लाकर दिया, तुरंत बालक अपने जेब से एक पन्नी का लिफाफा निकाल कर उसमें खाना रखने लगा। यह देखकर मालकिन बोली कि तूने भूखे ही सारा काम किया है, अब खाना तो यहीं बैठ कर खा ले। यह सुनकर बालक ने कहा, ‘नहीं, नहीं आंटी जी, मेरी बीमार मां घर पर है। सरकारी अस्पताल से उसके लिए दवा तो मिल गयी है, पर डॉ. साहब ने कहा है कि यह दवा खाली पेट नहीं खानी है। मैं मां के लिए खाना घर ले जाऊंगा और मां को खिलाकर दवाई भी दे दूंगा।
लड़के की यह बात सुनकर मालकिन रो पड़ी और अपने हाथों से उस मासूम को, उसकी दूसरी मां बनकर खुद खाना खिलाया और फिर उसकी मां के लिए भी रोटियां बनाई और लड़के के साथ उसके घर जाकर उसकी मां को रोटियां खिलाकर आयी। भावुक होकर लड़के की मां से उसने कहा, ‘बहन, आप तो बहुत अमीर हो। जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है, वो तो हम अपने बच्चों को दे ही नहीं पाते हैं! आज तुम्हारे बेटे ने मुझे अहसास कराया है कि मां-बाप का सम्मान कैसे किया जाता है? बहन, मेरे पास चांदी-सोना तो बहुत है, लेकिन तुम्हारे जैसा ऐसा बेटा नहीं है। क्या हमने खुद अपने जीवन को सिर्फ और सिर्फ धन-दौलत की चमक का गुलाम नहीं बना लिया है? किसी के घर कार आ जाए तो हम उसे बधाइयां देते हैं, लेकिन जब संस्कार मिट रहे हों, तो हमें बिल्कुल चिन्ता या दु:ख नहीं होता? महाकवि जयशंकर प्रसाद की ‘श्रद्धा ने ‘मनु को यही तो कहा था :-
अपने में भर सब कुछ कैसे,
व्यक्ति विकास करेगा?
यह एकांत स्वार्थ है भीषण,
अपना नाश करेगा।
क्या अपने लिए जीना ही जीना होता है? प्रश्न सभी को चौंकाता है, लेकिन हम दौलत की अंधी दौड़ में इस प्रश्न का उत्तर कभी खोजने की कोशिश ही नहीं करते। आज इतना तो संकल्प ले ही लें कि अपने बच्चों को हम संस्कारों की दौलत जरूर देंगे, ताकि कारों की दौड़ में वे अपने माता-पिता और बड़ों को भूल न जाएं।

’’ग्रामीणों की आस मनरेगा से विकास’’ अभियान के तहत् विकास भवन सभागार में एक दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न

पूर्व योजनाओं को यथाशीघ्र पूरा करें तथा प्रत्येक बृहस्पतिवार को प्रखण्ड स्तर पर

रोजगार दिवस का आयोजन करें – उपायुक्त

प्रत्येक पंचायत में 5 हजार मानव दिवस सृजन का लक्ष्य – उप विकास आयुक्त

गुमला,28 सितम्बर 2021  – ग्रामीणों की आस, मनरेगा से विकास अभियान के तहत विकास भवन के सभागार में कार्यशाला आयोजित की गई। उपायुक्त शिशिर कुमार सिन्हा एवं उप विकास आयुक्त संजय बिहारी अम्बष्ठ ने संयुक्त रूप से कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

मौके पर उपायुक्त ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों का समेकित विकास राज्य सरकार की सर्वाेच्च प्राथमिकताओं में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि लाने के उपायों में महात्मा गांधी नरेगा योजना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ऐसे में सभी पदाधिकारी ग्रामीणों की आस, मनरेगा से विकास अभियान को सफल बनाने में अपना विशेष योगदान दें।

वहीं उप विकास आयुक्त ने बताया कि यह अभियान दिनांक 22 सितंबर से 15 दिसंबर 2021 तक चलाया जाएगा। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य नियमित रोजगार दिवस का आयोजन, नियमित ग्राम सभा का आयोजन, इच्छुक सभी परिवारों को ससमय रोजगार उपलब्ध कराना, महिला एवं अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति कोटि के श्रमिकों के भागीदारी में वृद्धि, प्रति परिवार औसतन मानव दिवस में वृद्धि, जॉब कार्ड निर्गत करना अथवा उसका नवीनीकरण करना, जॉब कार्ड का सत्यापन, प्रत्येक गांव/टोला में हर समय औसतन 5 से 6 योजनाओं का क्रियान्वयन, पूर्व से चली आ रही पुरानी योजनाओं को पूर्ण करना, प्रत्येक ग्राम पंचायतों में पर्याप्त योजनाओं की स्वीकृति व शत प्रतिशत महिला मेट का नियोजन समेत अन्य है, ऐसे में उपस्थित पदाधिकारी इन कार्यों को विशेष प्राथमिकता दें ताकि हर जरूरतमंद व्यक्ति को इसका लाभ मिल सके।

विकास भवन के सभागार में आयोजित जिला स्तरीय कार्यशाला में सभी प्रखंड विकास पदाधिकारी, सभी प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी, सभी बीबीएम जेएसएलपीएस, बीपीओ परियोजना पदाधिकारी मनरेगा के द्वारा ग्रामीणों की आस, मनरेगा से विकास अभियान से जुड़ी बारीकियों व आगे किस प्रकार से इस अभियान के तहत कार्य करते हुए लोगों को लाभान्वित किया जाएगा उसके संदर्भ में जानकारी दी।

कार्यशाला में बताया गया कि गुमला जिले में प्रधानमंत्री आवास $ में 3917 आवास निर्माण का कार्य लंबित है। साथ ही सिसई, भरनो एवं पालकोट प्रखण्ड में इंदिरा आवास के बैकलाॅग पूर्ण कराने में लक्ष्य से काफी पीछे है। डुमरी, रायडीह एवं गुमला प्रखण्ड में ग्राम पंचायत के कार्य असंतोषजनक है। इन पंचायतों में योजना के लिए निर्धारित राशि का व्यय भी अबतक शून्य है। उपायुक्त ने कार्यशाला के दौरान इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए सभी संबंधित प्रखण्ड विकास पदाधिकारी एवं प्रखण्ड कार्यक्रम पदाधिकारी को कार्यपद्धति में सुधार लाने का निर्देश दिया तथा कार्यशाला में भरनो प्रखण्ड के प्रखण्ड कार्यक्रम पदाधिकारी की अनुपस्थिति पर उनका वेतन स्थगित करने का निर्देश दिया। उपायुक्त ने कहा कि 30 सितम्बर को राज्य मुख्यालय में विभिन्न विभागों के कार्यों की प्रगति भौतिक एवं वित्तीय उपलब्धि की समीक्षा माननीय मुख्यमंत्री द्वारा की जाएगी। इस बैठक में ग्रामीण विकास विभाग एवं मनरेगा योजनाओं पर विस्तृत समीक्षा की जाएगी। उन्होंने सभी प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को उप विकास आयुक्त से समन्वय बनाकर अद्यतन प्रतिवेदन जिला ग्रामीण विकास अभिकरण में 29 सितम्बर तक समर्पित करने का निर्देश दिया।

कार्यशाला में उपायुक्त, उप विकास आयुक्त, जिला जनसम्पर्क पदाधिकारी देवेन्द्र नाथ भादुड़ी, जिला ग्रामीण विकास अभिकरण के परियोजना पदाधिकारी सहित सभी प्रखण्डों के प्रखण्ड विकास पदाधिकारी एवं प्रखण्ड कार्यक्रम पदाधिकारी उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री की पहल पर 14 वर्ष से लापता जयंती पहुंची अपने घर

*श्रम विभाग के प्रयास से पंजाब से लाई गई गुमला

* गुमला के किताम गांव की है जयंती

रांची,28.09.2021 मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन के आदेश के बाद गुमला के किताम गांव निवासी जयंती लकड़ा 14 वर्ष तक लापता रहने के बाद मंगलवार को अपने गांव वापस पहुंच गई है। जयंती एक दशक पूर्व चैनपुर से लापता हो गई थी। कुछ समय पहले पता चला कि वह पंजाब में है। इसके बाद मुख्यमन्त्री के निर्देश पर श्रम विभाग के राज्य प्रवासी नियंत्रण कक्ष की कोशिशों से उसे पंजाब से दिल्ली होते हुए रांची लाया गया। मंगलवार को उसे परिजनों के साथ गुमला स्थित उसके गांव भेज दिया गया।

खाना बनाने का काम करती थी, अचानक हो गई थी लापता

जयंती गुमला के डुमरी प्रखंड स्थित किताम गांव की निवासी है। वह संत अन्ना चैनपुर में खाना बनाने का काम करती थी। परिजनों के मुताबिक वह करीब 14 साल पहले लापता हो गई थी। लापता हो जाने के बाद वह पंजाब में मिली, जहां उसे काफी भटकना पड़ा था। पंजाब में उसे गुरुनानक वृद्धा आश्रम में शरण मिली। यह मामला 9 सितंबर 2021 को राज्य प्रवासी नियंत्रण कक्ष के पास पहुंचा। मुख्यमन्त्री श्री हेमन्त सोरेन को जब मामले की जानकारी मिली, तो उन्होंने जयंती को वापस झारखंड उसके परिजनों के पास पहुंचाने का निर्देश दिया। जयंती लकड़ा के परिवार और पंजाब स्थित गुरुनानक वृद्ध आश्रम से लगातार बात कर उसे रांची तक लाने की व्यवस्था की गई।

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन से झारखंड मंत्रालय में रोलर स्केटिंग एसोसिएशन ऑफ़ झारखंड के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की

रांची, 28.09.2021 मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन से झारखंड मंत्रालय में आज रोलर स्केटिंग एसोसिएशन ऑफ़ झारखंड के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल ने रांची के मोरहाबादी में अंतरराष्ट्रीय स्केटिंग रिंग के निर्माण कार्य का शिलान्यास किए जाने हेतु राज्य सरकार की ओर से मिले सहयोग के लिए मुख्यमंत्री को धन्यवाद दिया। प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री के समक्ष कहा कि झारखंड में खेल को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है। प्रतिनिधिमंडल ने विश्वास जताया कि तय समय सीमा के अंदर रांची के मोराबादी में अंतर्राष्ट्रीय स्केटिंग रिंग का निर्माण कार्य पूरा होगा। मुख्यमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को अपनी शुभकामनाएं दीं। मौके पर राज्य के खेल मंत्री श्री हफीजुल हसन अंसारी, रोलर स्केटिंग एसोसिएशन ऑफ़ झारखंड के अध्यक्ष श्री विकास सिंह, सचिव श्री सुमित शर्मा एवं कोषाध्यक्ष श्री जय प्रकाश गुप्ता उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने Suport of CARE India in Covid-19 vaccine drive (टीका एक्सप्रेस) in Jharkhand को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।

*टीकाकरण अभियान में तेजी लाने का हो रहा प्रयास

*कोविड-19 की चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार की पूरी तैयारी

*राज्य में 1 करोड़ 70 लाख से अधिक लोगों का हो चुका है टीकाकरण – हेमन्त सोरेन

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने आज पुराना विधानसभा के बगल स्थित मैदान, धुर्वा, रांची से Suport of CARE India in Covid-19 vaccine drive (टीका एक्सप्रेस) in Jharkhand को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि राज्य में कोविड-19 टीकाकरण अभियान में तेजी लाने के उद्देश्य से आज 60 मोबाइल वैक्सीनेशन वैन को राज्य के विभिन्न जिलों में रवाना किया जा रहा है। ये सभी वैन “टीका एक्सप्रेस” के रूप में टीकाकरण अभियान को जन-जन तक पहुंचाने का काम करेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि कोरोना संक्रमण से आने वाली संभावित चुनौती से निबटने के लिए राज्य सरकार द्वारा पूरी तैयारी की गयी है। राज्य के सभी जिलों में “टीका एक्सप्रेस” चलाकर छूटे हुए लोगों का  वैक्सीनेशन कराने का काम आज से शुरू हो रहा है। इन “टीका एक्सप्रेसों” की मदद से लोगों को टीका लेने में सहूलियत होगी। लोगों को यह सुविधा उनके घरों पर ही उपलब्ध होगी।

राज्य में 1 करोड़ 70 लाख से अधिक लोगों का हो चुका है टीकाकरण

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि अब तक राज्य भर में 1 करोड़ 70 लाख से अधिक लोगों को कोविड-19 का टीका लग चुका है। लगभग 40 लाख लोगों को टीका का दूसरा डोज भी लग चुका है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में अधिक से अधिक लोगों तक टीकाकरण अभियान पहुंचे इसी क्रम में आज राज्य में CARE India के सहयोग से “टीका एक्सप्रेस” का शुभारंभ हुआ है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे पहले भी कोविड-19 संक्रमण काल में राज्य सरकार ने टीकाकरण अभियान में गति लाने को लेकर नए-नए कार्यक्रमों के जरिए लोगों तक पहुंचने का काम किया है।

कोविड-19 से सुरक्षित रहने के लिए अपनी समझदारी और विवेक का उपयोग करें

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि कोविड-19 संक्रमण से बचने का बहुत ही सीमित औषधियां देश और दुनिया में उपलब्ध है। वैज्ञानिकों ने  इस संक्रमण से बचने के लिए कोविड-19 वैक्सीन का खोज किया है। हमसभी लोग वैक्सीन लगाकर कोविड-19 से सुरक्षा तो पाएंगे ही साथ-साथ स्वयं की समझदारी और विवेक का उपयोग करके भी संक्रमण से बचा जा सकता है। हम हर हाल में अपने समझदारी का उपयोग करें और खुद के साथ-साथ अपने परिवार को भी इस संक्रमण से बचाएं।

मुख्यमंत्री ने राज्यवासियों से की अपील, खतरा टला नही अभी संक्रमण को हल्के में न लें

मुख्यमंत्री ने राज्यवासियों से अपील किया कि कोविड-19 संक्रमण से बचने के लिए जरूरी सुरक्षा अवश्य बरतें। संक्रमण का खतरा अभी टला नहीं है। संक्रमण को हल्के में लेने की भूल न करें। अतएव आवश्यक है कि सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन हर हाल में किया जाए। फेस मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, हाथो को सैनिटाइज करना इत्यादि जरूरी बचाव के उपाय को अपनी दिनचर्या में अवश्य शामिल करें।

इस अवसर पर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री श्री बन्ना गुप्ता, अपर मुख्य सचिव-सह-स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव श्री अरुण कुमार सिंह, मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे, मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार श्री अभिषेक प्रसाद, मुख्यमंत्री के वरीय आप्त सचिव श्री सुनील श्रीवास्तव, CARE India के राज्य कार्यक्रम प्रबंधक श्री अभय कुमार भगत, राष्ट्रीय सलाहकार श्री सी.के.भगत सहित अन्य लोग उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन की अध्यक्षता में झारखंड जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की दूसरी बैठक हुई

*बैठक में 11 बिंदुओं पर हुई चर्चा। कई महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए गए।

* जनजातीय समुदाय का सर्वांगीण विकास टीएसी का मुख्य उद्देश्य

 *अवैध मानव व्यापार में संलिप्त लोगों पर कठोर कानूनी कार्रवाई करें

– हेमन्त,सोरेन मुख्यमंत्री

रांची,27.09.2021 – मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की अध्यक्षता में आज झारखंड मंत्रालय स्थित सभागार में झारखंड जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की दूसरी बैठक संपन्न हुई। बैठक में कई मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श किया गया। मौके पर अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के मंत्री-सह-उपाध्यक्ष श्री चम्पाई सोरेन भी उपस्थित थे। बैठक में मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कहा कि जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) राज्य के जनजातीय समुदाय के सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण इकाई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि टीएसी जनजातीय वर्गों के सभी महत्वपूर्ण विषय जैसे आर्थिक, सामाजिक शैक्षणिक एवं समुदाय से जुड़े अन्य विकास के मुद्दों पर चर्चा करती है। जनजातीय समुदाय का उत्थान और विकास अधिक से अधिक कैसे हो, इस पर टीएससी कड़ियों को जोड़ने का कार्य कर रही है। जनजातीय समुदायों के बेहतरी के लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है। बैठक में समिति ने झारखंड राज्य में जनजातीय समुदाय के लोगों के बीच उद्यमिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार से संविधान की अनुसूची 05 के आदिवासी राज्यों को देश के उत्तर पूर्व के राज्य जो संविधान के अनुसूची 6 के अंतर्गत आते हैं, के समान उद्योग लगाने एवं करों आदि में दी जाने वाली सुविधाओं के अनुरूप सुविधा दिए जाने की अनुशंसा की । बैठक में विधायक प्रो०स्टीफन मरांडी की अध्यक्षता में एक उप समिति का गठन किया गया। इस उप समिति में विधायक श्री दीपक विरूवा,श्री बंधु तिर्की, श्री भूषण तिर्की एवं श्री चमरा लिंडा सदस्य होंगे। यह उप समिति अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों को कृषि ऋण, गृह ऋण तथा शिक्षा ऋण सहित अन्य ऋण बैंकों के माध्यम से सुलभ तरीके से उपलब्ध कराने, विभिन्न बैंकों के साथ विचार विमर्श कर ऋण उपलब्ध कराने के लिए नियमों में सुधार तथा राज्य में अनुसूचित जनजाति धारित पूर्व एवं वर्तमान भूमि अधिग्रहण का गहन अध्ययन कर टीएसी को रिपोर्ट सौपेंगी तथा इस संबंध में उप समिति टीएसी को परामर्श भी देगी। बैठक में सरना धर्म कोड लागू किए जाने के संबंध में यह निर्णय लिया गया कि टीएससी जल्द ही सरना कोड दिए जाने के पहलुओं पर एक प्रस्ताव तैयार कर  राज्यपाल के माध्यम से इसे राष्ट्रपति को भेजेगी। बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में टीएससी का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात करेगा। बैठक में इस बात पर भी सहमति बनी की वीर-शहीदों तथा झारखंड आंदोलन के शीर्ष नेतृत्वकर्ताओं के बारे में व्यापक प्रचार-प्रसार तथा स्कूलों के पाठ्यक्रमों में भी शामिल करने के संबंध में विचार कर कार्य योजना तैयार की जाएगी। बैठक में मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने अवैध मानव व्यापार पर रोक लगाने के लिए गृह, कारा विभाग को कठोर कानून बनाने तथा निरंतर मॉनिटरिंग करने का निर्देश दिया। टीएसी के सभी सदस्यों ने मानव व्यापार को लेकर चिंता जाहिर की तथा दोषियों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई किए जाने पर बल दिया। बैठक में बताया गया कि अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों के खिलाफ होने वाले अत्याचार के संबंध में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है। इस समिति के माध्यम से सभी प्रकार के अत्याचार एवं शोषण से संबंधित मामलों की समीक्षा कर कार्रवाई हेतु अनुशंसा की जाती है। बैठक में बताया गया कि जनजातीय भाषा-संस्कृति-ज्ञान आदि को सहेजने एवं विकसित करने एवं जनजातीय समुदाय के विकास हेतु शोध करने के उद्देश्य से राज्य में एक ट्राईबल यूनिवर्सिटी जमशेदपुर में स्थापित की जा रही है। जल्द ही एक्ट बनाकर यूनिवर्सिटी का संचालन किया जाएगा। बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में जनजातीय समुदाय के लोगों को अधिक से अधिक जाति प्रमाण पत्र निर्गत हो इस हेतु सरकार प्रतिबद्ध है। बैठक में जनजातीय समुदाय के लोगों को जीवन काल में एक ही बार जाति प्रमाण पत्र निर्गत किए जाने के प्रस्ताव पर सहमति बनी। अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों को जाति प्रमाण पत्र बनाने में हो रही दिक्कतों को देखते हुए जीवन में एक बार जाति प्रमाण पत्र निर्गत किये जाने का निर्णय लिया गया इससे लोगों को जाति प्रमाण पत्र बनाने में सहूलियत होगी। बैठक में झारखंड राज्य गठन के समय राज्य में सरना, मसना, कब्रिस्तान आदि जो अवस्थित थे यदि उनके अभिलेख उक्त रूप में न भी हों तो ग्राम सभा और अंचल कार्यालय से उसकी संपुष्टि कराते हुए हुए उनकी घेराबंदी कराए जाने की  अनुशंसा समिति ने की।

 बैठक में इन बिंदुओं पर हुई चर्चा

 जाति प्रमाण पत्र बनाने में जनजातीय समुदायों को बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कार्मिक विभाग इस संबंध में अधिसूचना निर्गत करने पर विचार करे जिससे कि जीवन काल में एक बार जनजातीय समुदायों के लोगों को जाति प्रमाण पत्र बनाना पड़े जो कि जीवन भर उपयोग में लाया जा सके।

जनजातीय समाज के लोगों को  बैंकों से ऋण लेने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। जनजातीय समाज के लोगों के लिए व्यवस्था ऐसी करनी चाहिए जिससे कि वित्तीय संस्थान उन्हें ऋण देने से मना नहीं करें। वित्त विभाग सभी बैंको से इस संबंध में विस्तृत चर्चा कर सुधार लाने की कार्रवाई करे।

जनजातियों के भूमि के अवैध हस्तांतरण पर रोक लगना चाहिए।

सरना धर्म कोड को मान्यता दिलवाने को लेकर आगे की कार्यवाही एवं रणनीति पर विचार-विमर्श।

विभिन्न औद्योगिक प्रतिष्ठानों के द्वारा जनजातियों के जमीन अधिग्रहण एवं उनके विस्थापन पर एक शोध की आवश्यकता है। शोध के साथ-साथ एक सशक्त पुनर्स्थापन नीति बनाई जाए। इस संबंध में पुनर्स्थापन आयोग का गठन किया जाए।

अवैध मानव व्यापार को रोकने हेतु ठोस कदम उठाने की जरूरत है। आदिवासी महिलाओं/लड़कियों के अवैध व्यापार एवं शोषण के विषय पर कठोर कार्रवाई की जरूरत है।

अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों के खिलाफ होने वाले अपराध का विशेष पुनरीक्षण की आवश्यकता है। ऐसी परिस्थिति में उन्हें मिलने वाले लाभ/सहायता के विषय में कल्याण एवं गृह विभाग अगली बैठक में विस्तृत रिपोर्ट समर्पित करेगा।

जनजातीय समुदाय के लोगों के बीच उद्यमियों का घोर अभाव है। ऐसी स्थिति में अनुसूचित जनजाति वर्ग के युवकों/युवतियों के द्वारा अपना उद्यम प्रारम्भ करवाने हेतु विशेष प्रोत्साहन योजना की जरूरत है। इस समुदाय के उद्यमियों को विभिन्न शुल्क यथा CGST/IGST/Income Tax आदि में छूट देने हेतु प्रस्ताव भारत सरकार को भेजना चाहिए।

बैठक में जनजातीय परामर्शदातृ  परिषद में सदस्य-सह-विधायक प्रो० स्टीफन मरांडी, श्री बंधु तिर्की, श्रीमती सीता सोरेन, श्री दीपक बिरुआ, श्री चमरा लिंडा, श्री सुखराम उरांव, श्री दशरथ गगराई, श्री नमन विक्सल कोंगाड़ी, श्री राजेश कच्छप, श्री भूषण तिर्की, श्री सोनाराम सिंकू अनुसूचित जाति से मनोनीत श्री विश्वनाथ सिंह सरदार और अनुसूचित जनजाति से मनोनीत श्री जमल मुंडा, सहित राज्य के मुख्य सचिव श्री सुखदेव सिंह, अपर मुख्य सचिव श्री के०के०खंडेलवाल, अपर मुख्य सचिव श्री एल०खियांगते, प्रधान सचिव श्री राजीव अरुण एक्का, प्रधान सचिव श्रीमती वंदना दादेल, प्रधान सचिव श्री अविनाश कुमार, प्रधान सचिव श्री अजय कुमार सिंह, प्रधान सचिव श्री राजेश शर्मा, सचिव श्री के०के०सोन, सचिव श्री अमिताभ कौशल, सचिव श्रीमती आराधना पटनायक, सचिव श्री राहुल शर्मा एवं संबंधित विभाग के अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।

 

दलित सीएम से क्या कांग्रेस को फायदा होगा

अनिल सिन्हा –
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की आहट से संबंधित राज्यों में राजनीतिक उठापटक तेज हो गई है। बीजेपी ने उत्तराखंड में चार महीने में तीन मुख्यमंत्री दे दिए। कर्नाटक में (हालांकि वहां चुनाव 2023 में हैं) येदियुरप्पा को सीएम की कुर्सी से हटाया और गुजरात में तो मुख्यमंत्री के साथ उनका पूरा मंत्रिमंडल ही बदल डाला। मुख्यमंत्रियों की छुट्टी करने की इस लहर की चपेट में पंजाब भी आ गया है। वहां नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने शपथ ले ली है। वह राज्य के पहले दलित मुख्यमंत्री हैं। वहां दलितों की आबादी करीब एक तिहाई है, लेकिन उन्हें राज्य का नेतृत्व संभालने का मौका अभी तक नहीं मिल पाया था। अगर सामाजिक प्रगति के लिहाज से देखें तो यह एक क्रांतिकारी घटना है। पंजाब की राजनीति में संपन्न किसानों का, बल्कि कहें जाट समुदाय का वर्चस्व रहा है। सिखों और हिंदुओं, दोनों में वे ही नेतृत्व में रहे हैं।
विभाजन का जख्म
भारत-पाक विभाजन में सबसे ज्यादा नुकसान पंजाब ने ही उठाया। यह इसके बावजूद हुआ कि वहां मुस्लिम लीग की राजनीति का कोई असर नहीं था और बड़े किसानों ने एक सेकुलर गठबंधन बना रखा था। विभाजन ने राज्य की राजनीति और जीवन, दोनों को बदल दिया। बंटवारे के बाद दोनों ओर सामूहिक कत्लेआम हुए और इसका नतीजा है कि पाकिस्तान वाले हिस्से में हिंदुओं-सिखों की आबादी ना के बराबर रह गई। यही हाल भारत वाले हिस्से का हुआ। यहां भी डेढ़ प्रतिशत मुसलमान रह गए। पंजाब में हिंदुओं, सिखों और मुसलमानों की आपस में गुंथी हुई जिंदगी थी। विभाजन से सब कुछ टूट गया। विभाजन के बाद वहां की राजनीति नए सिरे से शुरू हुई। इस नई राजनीति में अकाली दल और कांग्रेस के अलावा वाम दल प्रमुख भूमिका में थे।
खालिस्तानी आतंकवाद भी विभाजन से कम बड़ी परेशानी लेकर नहीं आया। इसने भी वहां के जन-जीवन को अस्त-व्यस्त किया। ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसी घटनाएं हुईं। इसके बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी गई। राज्य के लोग इस दौर से भी निकल गए। ध्यान देने लायक बात है कि इस कठिन दौर में भी खेती और औद्योगिक उत्पादन नीचे नहीं आया।
सामाजिक-आर्थिक हिसाब से देखें तो देश के बाकी हिस्सों की तरह यहां भी दलित हाशिए पर ही हैं। करीब 32 प्रतिशत की आबादी होने के बावजूद जमीन और संपत्ति में उनका न्यूनतम हिस्सा है। सिख धर्म के कारण उन्हें उस तरह के सामाजिक उत्पीडऩ का शिकार नहीं होना पड़ता है, जो देश के बाकी हिस्सों में दिखाई देता है, लेकिन उनका आर्थिक शोषण कम नहीं है। शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में भी उनकी भागीदारी काफी कम है।
यह भी समझना गलत होगा कि समुदाय के रूप में दलित आपस में एक हैं। उनका एक तिहाई हिस्सा सिख है और मजहबी सिख कहलाता है। वे खेती से जुड़े हैं और ज्यादातर भूमिहीन किसान और खेतिहर मजदूर हैं। चर्मकार और वाल्मिकी समाज की तादाद भी अच्छी है। वे क्षेत्रीय आधार पर भी आपस में बंटे हुए हैं। उनकी राजनीतिक भागीदारी क्षेत्रीय आधार पर भी तय होती है।
कांशीराम ने अस्सी के दशक में दलितों को एक करने की कोशिश की थी और उनके प्रयासों का असर 1992 के चुनावों में दिखाई पड़ा। बीएसपी ने तब विधानसभा की नौ सीटें जीत ली थीं और उसे कुल 16 प्रतिशत वोट मिले। पार्टी ने 1996 का लोकसभा चुनाव शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर लड़ा और तीन सीटों पर कब्जा किया। कांशीराम भी चुने गए। लेकिन कांशीराम के बाद बीएसपी का फोकस उत्तर प्रदेश पर ही रहा और पंजाब में पार्टी का आधार कमजोर होता गया। 2017 के चुनावों में उसे सिर्फ डेढ़ प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा।
परंपरागत रूप से दलित कांग्रेस के साथ रहे हैं। उसके जनाधार में बीएसपी की ओर से सेंध लगी थी, लेकिन अब दलित वापस इस ओर आ गए हैं। कांग्रेस ने 2017 के चुनावों में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 34 में से 22 सीटें जीती थीं। इसे ध्यान में रख कर ही अकाली दल ने आने वाले चुनावों के लिए मायावती से गठबंधन किया है। उसने बीएसपी को बीस सीटें दी हैं। अकाली दल ने यह वादा भी किया है कि उसकी सरकार आई तो वह दलित को उपमुख्यमंत्री पद देगा।
यह कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती थी कि दलित समुदाय को वह किस तरह संतुष्ट करे। सत्ता-विरोधी भावना से डरी हुई कांग्रेस के लिए दलित समुदाय का वोट काफी मायने रखता है। कांग्रेस के इस दांव ने अकाली दल के उपमुख्यमंत्री पद के वादे को तो निरर्थक बना ही दिया है, लेकिन क्या दलित समुदाय का दिल जीतने के लिए यह काफी होगा?
मजबूरियां कम नहीं
निश्चित रूप से विपक्षी दल इस कदम के पीछे छुपी कांग्रेस की मजबूरियां गिनाएंगे। सच भी है, पंजाब में दलित मुख्यमंत्री बनाने के पीछे कुछ तात्कालिक कारण भी काम कर रहे थे। एक बड़ा कारण तो यह था कि लंबे समय से कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे कैप्टन अमरिंदर की जगह भरने के लिए ऐसे नेता की जरूरत थी, जो पार्टी के भीतर का शक्ति-संतुलन स्थिर रखे। नवजोत सिंह सिद्धू से खार खाए कैप्टन ने उनके खिलाफ ऐसा बयान दे दिया, जिससे विपक्ष को तिल मिल गया है। वह जब चाहे इसका ताड़ बना सकता है। जाटों के दो बड़े नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा और सुनील जाखड़ के नाम पर सहमति न हो पाना भी एक कारण रहा, जिसकी वजह से अंत में चन्नी का नाम तय करना पड़ा।
इन सबके बावजूद कांग्रेस का यह फैसला दूरगामी परिणाम ला सकता है। उत्तर प्रदेश में मायावती कांग्रेस पर निशाना साधती रही हैं। प्रतीकों की राजनीति के दौर में यह कदम अनदेखा नहीं रह सकता। यह भी ध्यान रखना होगा कि तमाम किंतु-परंतु के बावजूद यह सामाजिक प्रगति की ओर एक कदम है।

चीन हमारे मुकाबले में कहीं खड़ा ही नहीं हो सकता

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को जो भाषण दिया, वह ऐतिहासिक सिर्फ इसलिए नहीं है कि उसमें अफगानिस्तान, आतंकवाद और कोरोना जैसी चुनौतियों पर बड़ी स्पष्टता और उतनी ही गंभीरता से भारत का पक्ष रखा गया है। प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की अहमियत इस बात में है कि छोटे मसलों में उलझने के बजाय इसमें बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों से उभरी चुनौतियों को रेखांकित करने की कोशिश की गई और इससे भी बड़ी बात यह कि इन चुनौतियों के पीछे छिपे अवसर को पहचानते हुए उसका उपयुक्त इस्तेमाल करने की दूरदर्शिता दिखाई गई है। यह अकारण नहीं है कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भारत को लोकतंत्र की जननी के रूप में चित्रित करते हुए वैश्विक बिरादरी को याद दिलाया कि हमारे देश में लोकतंत्र की हजारों वर्षों की परंपरा है।
विविधता हमारे समाज की पारंपरिक विशिष्टता रही है। कामकाज में पारदर्शिता हमारी स्वाभाविक शैली है। गौर करने की बात यह है कि ये कुछ ऐसे बिंदु हैं, जहां चीन मुकाबले में कहीं खड़ा ही नहीं हो सकता। न तो वहां लोकतंत्र है और ना ही पारदर्शिता। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में ठीक ही कोरोना की उत्पत्ति और वर्ल्ड बैंक के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स के कैंसिलेशन का मुद्दा उठाया। वैश्विक बिरादरी इन दोनों सवालों पर चीनी रुख में पारदर्शिता की कमी से जूझ रही है। दुनिया देख सकती है कि एक तरफ भारत है, जो कोरोना की चुनौती से खुद जूझते हुए भी दूसरे देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराने की जद्दोजहद में जुटा हुआ है, दूसरी तरफ चीन है जो कोरोना की उत्पत्ति की गुत्थी को सुलझाने तक में सहयोग देने को तैयार नहीं।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण के जरिए बड़ी खूबसूरती से वैश्विक मामलों पर बोलने के चीन के नैतिक अधिकार पर सवाल खड़ा कर दिया। ध्यान रहे, नए अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के लिहाज से चीन का वर्चस्ववादी और आक्रामक रुख ही सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र के मंच से प्रधानमंत्री का यह दर्शाना महत्वपूर्ण है कि चीन का रुख न केवल अन्य देशों की भौगोलिक सीमाओं और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों में स्वतंत्र व्यापारिक गतिविधियों के लिए खतरा बनता जा रहा है बल्कि यह आधुनिकता और प्रगतिशील मूल्यों के भी खिलाफ है।
ऐसे में चीन के साथ सहयोग का दायरा बढ़ाने की कोई भी कोशिश उदार वैश्विक मूल्यों को खतरे में डालेगी। इसी बिंदु पर भारत के लिए संभावनाओं के नए द्वार भी खुलते हैं। निवेश के अवसरों से भरपूर एक लोकतांत्रिक और पारदर्शितापूर्ण समाज के तौर पर भारत बेहतर विकल्प के रूप में दुनिया के सामने मौजूद है। ग्लोबल सप्लाई चेन में चीन की जगह लेने को भारत तैयार है। भारत और वैश्विक समुदाय का यह साथ न केवल भारत के विकास की दृष्टि से बल्कि सद्भावपूर्ण, लोकतांत्रिक और उदार दुनिया सुनिश्चित करने के लिहाज से भी उपयोगी होगा।

एडीपी ने क्षेत्रीय असमानता को कैसे दूर किया

अमिताभ कांत –
दुर्गम पहाड़ी इलाके में स्थित नागालैंड का किफिर भारत के सबसे दूरस्थ जिलों में से एक है। जिले के अधिकतर लोग कृषि और इससे जुड़े काम करते हैं। उन्हें खोलर या राजमा की खेती करना अधिक पंसद है। स्थानीय लोगों की आजीविका बढ़ाने के लिए खोलर की खेती की संभावना को देखते हुए 2019 में आकांक्षी जिला कार्यक्रम के माध्यम से इसकी पैकेजिंग सुविधा स्थापित की गई थी। यह सुविधा किसानों के बीच बड़ी तेजी से लोकप्रिय हुई थी। तब से, बड़े पैमाने पर खोलर की खेती शुरू हो गई है और किफिर के राजमा अब पूरे देश में जनजातीय कार्य मंत्रालय के पोर्टल ञ्जह्म्द्बड्ढद्गह्यढ्ढठ्ठस्रद्बड्ड.ष्शद्व पर बेचे जा रहे हैं।
इसी तरह की सफलता की दास्तान 112 जिलों में भी हैं, जो 2018 में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए आकांक्षी जिला कार्यक्रम (एडीपी) का हिस्सा हैं। शुरुआत से ही एडीपी ने भारत के कुछ सबसे पिछड़े और दूरदराज के जिलों में विकास को बढ़ावा देने की दिशा में लगातार काम किया है।
इस वर्ष के शुरु में यूएनडीपी ने इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए स्थानीय क्षेत्र के विकास का अत्यंत सफल मॉडल बताया और कहा कि इसे ऐसे अन्य देशों में भी अपनाया जाना चाहिए, जहां अनेक कारणों से विकास में क्षेत्रीय असमानताएं रहती हैं। वर्ष 2020 में प्रतिस्पर्धात्मकता संस्थान ने भी भारत के सबसे कम विकसित क्षेत्रों के इस कार्यक्रम के दूरगामी प्रभाव को सराहा था।
कार्यक्रम की शुरूआत से ही सकारात्मक सामाजिक और आर्थिक प्रभाव के साथ ही स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के राउंड 5 के चरण 1 के अनुसार प्रसवपूर्व देखभाल, संस्थागत प्रसव, बाल टीकाकरण, परिवार नियोजन की विधियों का उपयोग जैसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्रों में आकांक्षी जिलों में अपेक्षाकृत तेजी से सुधार हुआ है। इसी तरह से इन जिलों में बुनियादी ढांचागत सुविधाएं, बिजली, स्वच्छ ईंधन और स्वच्छता के लक्ष्य भी अपेक्षाकृत तेजी से हासिल किए गए हैं।
इस कार्यक्रम से पांच क्षेत्रों: स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि और जल संसाधन, बुनियादी ढांचा, वित्तीय समावेशन और कौशल विकास के 49 प्रमुख निष्पादन संकेतकों (केपीआई) पर जिलों के प्रदर्शन को ट्रैक कर और रैंक देकर इन उपलब्धियों को हासिल किया गया है ।
एडीपी का ध्यान इन जिलों के शासन में सुधार पर केंद्रीत होने से न केवल सरकारी सेवाएं प्रदान करने में सुधार हुआ है, बल्कि स्वयं इन जिलों द्वारा ऊर्जावान और अभिनव प्रयास भी किए गए।
एडीपी तैयार करने में दो महत्वपूर्ण वास्तविकताओं को ध्यान में रखा गया है। पहला, निधि की कमी ही पिछड़ेपन का एकमात्र या प्रमुख कारण नहीं है क्योंकि खराब शासन के कारण मौजूदा योजनाओं (केंद्र और राज्य दोनों की) के तहत उपलब्ध कोष का बेहतर तरीके से उपयोग नहीं किया जाता है। दूसरा, लंबे समय से इन जिलों की उपेक्षा किए जाने के कारण जिला अधिकारियों में उत्साह कम हो गया है। असल में इन जिलों की क्षमता को उजागर करने में आंकड़ो पर आधारित शासन से इस मानसिकता को समाप्त करना महत्वपूर्ण है।
कार्यान्वयन के तीन वर्ष में ही कार्यक्रम के जरिए संमिलन (केंद्र और राज्य की योजनाओं के बीच), सहयोग (केंद्र, राज्य, जिला और विकास साझेदारों के बीच) और प्रतिस्पर्धा (जिलों के बीच) के अपने मूल सिद्धांतों के माध्यम से कई क्षेत्रों में पर्याप्त सुधार लाने के लिए उचित संस्थागत ढांचा उपलब्ध कराया गया है।
एडीपी के माध्यम से सरकार न केवल सुव्यवस्थित समन्वय के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रही है, बल्कि लक्ष्य हासिल करने के लिए उचित प्रयास भी कर रही है। नीति आयोग द्वारा विकसित एडीपी का चैम्पियंस ऑफ चेंज प्लेटफॉर्म का स्वसेवा विश्लेषण उपकरण जिला प्रशासन के लिए मददगार है। इससे उन्हें आंकड़ों का विश्लेषण करने और स्थानीय क्षेत्र की लक्षित योजनाएं तैयार करने में सहायता मिलती है। इस प्लेटफॉर्म से यह सुनिश्चित किया जाता है कि कार्यक्रम की डेल्टा रैंकिंग में अपनी स्थिति सुधारने के लिए जिले लगातार एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करें। प्रतिस्पर्धा से बेहतर सेवा प्रदान करने के लिए लगातार नए विचारों को तलाशा जाता है।
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में अनेक योजनाओं के जरिए क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने का प्रयास किया गया है, लेकिन उनके बीच बहुत कम संमिलन रहा है। जिलों को 49 केपीआई पर आंककर एडीपी ने उन योजनाओं को सुव्यवस्थित और प्रसारित करना उनके विवेक पर छोड़ दिया है, जिससे वे बेहतर उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह, व्यक्तिगत योजनाओं के दायरे से परे विकास के प्रयास किए जाते हैं। केंद्र, राज्य और जिला स्तर के प्रयासों का यह संमिलन एडीपी के संस्थापक सिद्धांतों में से एक है।
इस कार्यक्रम ने समान प्रयास करने या साइलो में काम करने के विपरित गैर सरकारी संगठनों/नागरिक समाज संगठनों और जिला प्रशासन को एक-दूसरे के सहयोग से काम करने के लिए एकजुट किया है। इसने यह सुनिश्चित किया है कि सरकार, समाज और बाजार सभी अपनी-अपनी परिसंपत्ति का लाभ उठाकर समान उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में काम कर सकते हैं।
पिछले कुछ वर्षों से जिलों द्वारा अपने- अपने बेहतर तरीकों को एक-दूसरे से साझा करने से सभी लाभान्वित हुए हैं। एक जिले द्वारा नवोन्मेषी और अपनाए गए तरीकों का अन्य जिले द्वारा अनुसरण किया गया है। कार्यक्रम में स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप तरीकों को बदलने के लिए आवश्यक लचीलापन अपनाने के साथ ही जिलों में ऐसी प्रेरक भावना भरी जा सकती है।
आकांक्षी जिला कार्यक्रम राज्यों और यहां तक कि जिलों के मतभेदों के प्रति अत्यधिक जागरूक है और यह उन मतभेदों को दूर करने के लिए एक उपयुक्त तंत्र उपलब्ध कराता है। असल में, कार्यक्रम का उद्देश्य ब्लॉक स्तर पर इस मॉडल को दोहराने के लिए जिलों को प्रोत्साहित कर इस विचार को बढ़ावा देना है। हमें उम्मीद है कि इस मॉडल को बढ़ावा देने से जिले के समक्ष आने वाली चुनौतियों और उनसे निपटने के तरीके के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होगी।
एडीपी सहकारी-प्रतिस्पर्धी संघवाद का एक शानदार उदाहरण है। एडीपी के खाके और सफलताओं के बारे में अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सराहना और सिफारिशें हमारे प्रयासों को अत्यधिक सार्थक बनाती हैं। असल में, यह उचित है कि क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने का मॉडल दुनिया के सबसे विविध देशों में से एक से आना चाहिए और हम समान विकास के सर्वोत्तम साधन के तौर पर इस कार्यक्रम को तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
(लेखक नीति आयोग के मुख्य कार्यकार अधिकारी (सीईओ) हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

तम्बाकू के छोटे दुकानदारों के साथ-साथ बड़े व्यवसायी पर भी कार्रवाई आवश्यक – श्री बन्ना गुप्ता – स्वास्थ्य मंत्री

राँची, 27.09.2021 – स्वास्थ्य मंत्री श्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि तंबाकू कंपनियां भी अपना व्यापार बढ़ाने के लिए लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने का कार्य कर रहे हैं। वे अब लड़कों के साथ-साथ लड़कियों में भी इसका प्रचलन बढ़ाने की ओर कार्य कर रहीं है। यदि महिलाएं तंबाकू का सेवन करती हैं, तो उनका स्वास्थ्य तो प्रभावित होगा हि साथ-साथ आने वाले बच्चों पर भी बुरा असर पड़ेगा। लोगों का तंबाकू के इस्तेमाल से मुक्ति के लिए उनके बीच जागरूकता फैलाकर और सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का सख्ती से पालन करा कर ही रोकथाम किया जा सकता है। माननीय मंत्री आज राज्य तम्बाकू नियंत्रण कोषांग एवं सीड्स द्वारा नामकुम में आयोजीत कार्यशाला में बोल रहे थे। इस अवसर पर श्री बन्ना गुप्ता द्वारा Global Youth Tobacco Survey (GYTS) में झारखंड के आंकड़ों का भी विमोचन किया गया।

 

श्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि भारत सरकार के ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे के अनुसार भारत में 13 से 15 वर्ष के आयु वर्ग में 8.5 प्रतिशत छात्र/छात्रा किसी न किसी रूप में तम्बाकू का सेवन करते है। जबकी झारखण्ड में 13 से 15 वर्ष के आयु वर्ग में 5.1 प्रतिशत छात्र/छात्रा किसी न किसी रूप में तम्बाकू का सेवन करते है। उन्होने कहा कि कोटपा, 2003 के प्रावधानों को लागू करने का मुख्य उद्देष्य कम उम्र के युवाओं एवं छात्र/छात्राओं को तम्बाकू उत्पाद की पहुंच से रोकना है, इस हेतु कोटपा का शत प्रतिशत अनुपालन किया जाना चाहिए। श्री गुप्ता ने कार्यक्रम में उपस्थित केन्द्र सरकार के प्रतिनिधियों को झारखण्ड विधान सभा में कोटपा संशोधन बिल 2021 के तर्ज पर केन्द्रीय कोटपा कानून में संशोधन करने का भी अनुरोध किया।

माननीय मंत्री जी ने बताया कि झारखंड सरकार तम्बाकू के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के लिये प्रतिबद्ध है। सरकार ने इस हेतु विधानसभा में बिल भी पारित किया है, जिसमें तम्बाकू के इस्तेमाल एवं इसके व्यवसाय में संलग्न लोगों के कमसे कम उम्र की सिमा को 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष का प्रावधान किया गया है। सरकार ने सार्वजनिक जगहों पर तम्बाकू के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया ही है, साथ ही साथ स्कूल, कॉलेज, सरकारी संस्थान, कोर्ट आदि के 100 मीटर दायरे में इसके बेचने व इस्तेमाल करने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। राज्य सरकार ने एक नया पहल भी किया है कि सरकारी संस्थाओं में नए जॉइनिंग करने वाले लोगों द्वारा यह घोषणा करवाया जा रहा है कि वह तंबाकू का इस्तेमाल भविष्य में नहीं करेंगे।

श्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि छोटे दुकानदारों पर कार्रवाई के साथ-साथ बड़े व्यवसायी जो तंबाकू निर्माण का काम कर रहे हैं, उन पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक है। झारखंड में सरकार द्वारा तंबाकू के इस्तेमाल में रोक लगाने के लिये लगातार प्रयाश किये जा रहें है। इसी का परिणाम है कि राज्य में तम्बाकू इस्तेमाल करने वालों का आँकडा 50.1 प्रतिशत से घटकर 38.9 प्रतिश्त हो गया है। लेकिन यह आँकड़ा अभी भी देश के आँकड़े 28.6 प्रतिशत से काफि अधिक है। इस ओर हम सब को सम्मिलित रूप से कार्यप्रणाली बनाकर कार्य करते हुए इसे और कम करने का प्रयास करना है।

कार्यशाला में सीड्स के कार्यपालक निदेशक श्री दिपक कुमार मिश्रा ने प्रजेंटेशन के माध्यम से राज्य में तम्बाकू नियंत्रण हेतु स्वास्थ्य विभाग, राज्य स्तरीय तम्बाकू नियंत्रण समन्वय समिति एवं सीड्स द्वारा सम्मीलित प्रयास से किये जा रहे कार्यों के बारे में बताया। इस अवसर पर उन्होंने राज्य में तम्बाकू इस्तेमाल करने वालों के आँकडे बताये, इन्हें रोकने के लिये सरकार के COTPA-2003 ऐक्ट, JJ ऐक्ट, फूड सेफ्टी ऐक्ट, वेंडर लाइसेंसिंग प्रोविजन आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अपर अभियान निदेशक श्री विद्यानन्द शर्मा,  सीड्स के कार्यपालक निदेशक श्री दीपक मिश्रा, दी यूनियन के वरीय तकनिकी सलाहकार डॉ0 अमीत यादव, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता श्री रंजीत सिंह, राज्य एन.सी.डी. कोषांग के नोडल पदाधिकारी डॉ0 ललित रंजन पाठक, राज्य सलाहकार श्री राजीव कुमार एवं वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से भारत सरकार के उप सचिव श्री पुलकेश कुमार, डॉ रंगासामी नागराजन, पूजा गुप्ता उपस्थित रहें।

नक्सलियों के खिलाफ युद्ध को अवश्य जीतेंगे : हेमन्त सोरेन

* उग्रवादी घटनाओं की संख्या में कमी आयी है

*715 उग्रवादी हुए गिरफ्तार,18 उग्रवादी मारे गए और 27 उग्रवादियों ने किया सरेंडर

* पेंशन योजनाओं की समीक्षा करे केंद्र सरकार – हेमन्त सोरेन, मुख्यमंत्री

नई दिल्ली/रांची, 26.09.2021

वर्ष 2016 में 195 उग्रवादी घटनाएं हुई थीं। यह संख्या वर्ष 2020 में घटकर 125 रह गयी है। वर्ष 2016 में उग्रवादियों द्वारा 61 आम नागरिकों की हत्या की गयी थी, वर्ष 2020 में यह संख्या 28 रही। इस अवधि में कुल 715 उग्रवादी गिरफ्तारी हुए। उक्त अवधि में पुलिस मुठभेड़ में 18 उग्रवादियों को मार गिराया गया था। ये बातें मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कही। मुख्यमंत्री नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में “वामपंथी उग्रवाद” पर आयोजित उच्चस्तरीय बैठक में बोल रहे थे।

चार स्थानों में सिमटे नक्सली

मुख्यमंत्री ने कहा कि उग्रवादी संगठनों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई की जा रही है। इन अभियानों के फलस्वरूप राज्य में उग्रवादियों की उपस्थिति मुख्य रूप से पारसनाथ पहाड़, बूढ़ा पहाड़, सरायकेला, खूंटी, चाईबासा, कोल्हान क्षेत्र तथा बिहार सीमा के कुछ इलाके तक सीमित रह गई है। वह दिन दूर नहीं जब इन स्थानों से भी वामपंथी उग्रवाद का सफाया किया जा सकेगा।

मुख्यधारा में वापस लाने का हो रहा प्रयास

मुख्यमंत्री ने बताया कि वर्ष 2020 तथा 2021 के अगस्त तक 27 उग्रवादियों द्वारा आत्मसमर्पण भी किया गया है। राज्य की आकर्षक आत्मसमर्पण नीति का प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है। कम्युनिटी पुलिसिंग के द्वारा भटके युवाओं को मुख्य धारा में वापस लाने का प्रयास हो रहा है। राज्य सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में युवाओं के लिए ‘सहाय’ योजना लेकर आ रही है, जिसके अन्तर्गत इन क्षेत्रों में विभिन्न खेलों के माध्यम से युवाओं और अन्य लोगों को जोड़ा जायेगा।

राशि की मांग करना व्यवहारिक नहीं

मुख्यमंत्री ने कहा कि उग्रवाद की समस्या केन्द्र तथा राज्य सरकार दोनों के लिए बड़ी चुनौती है। ऐसी परिस्थिति में केन्द्रीय सुरक्षा बलों की प्रतिनियुक्ति के बदले भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों से राशि की मांग करना व्यवहारिक प्रतीत नहीं होता है। इस मद में झारखण्ड के विरुद्ध अबतक 10 हजार करोड़ रुपये का बिल गृह मंत्रालय द्वारा दिया गया है। मेरा अनुरोध होगा कि इन बिलों को खारिज करते हुए भविष्य में इस तरह का बिल राज्य सरकारों को नहीं भेजने का निर्णय भारत सरकार द्वारा लिया जाये।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में योजनाएं अचानक बंद न हो

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत सरकार द्वारा समय-समय पर उग्रवाद के उन्मूलन हेतु कई योजनाएं लागू की गयी हैं। इन योजनाओं से विशेष लाभ भी मिला है, परन्तु ऐसा देखा गया है कि कुछ जिलों के लिए इन योजनाओं को अचानक बंद कर दिया गया, जिससे उग्रवाद उन्मूलन की दिशा में किये जा रहे प्रयासों को आघात पहुंचता है। अचानक इन योजनाओं को बंद कर देने से उग्रवाद को पुनः पैर पसारने का मौका मिल सकता है। इसी संदर्भ में विशेष केंद्रीय सहायता

के तहत् प्रति जिला 33 करोड़ रुपये की राशि भारत सरकार द्वारा उपलब्ध करायी जाती है। प्रारम्भ में यह योजना 16 जिलों के लिए स्वीकृत की गयी थी, परन्तु इस वर्ष यह योजना मात्र 08 जिलों के लिए जारी रखी गयी है। इसी प्रकार एसआरई योजना से कोडरमा, रामगढ़ तथा सिमडेगा को बाहर कर दिया गया है। अतएव मेरा अनुरोध होगा कि दोनों योजनाओं को सभी नक्सल प्रभावित जिलों के लिए अगले पांच वर्षों तक जारी रखा जाय।

मनरेगा मजदूरी दर और पेंशन राशि बढ़े

मुख्यमंत्री ने कहा कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की दशा को सुधारने में मनरेगा एक कारगर उपाय है। मनरेगा झारखण्ड में बहुत मजबूती से आगे बढ़ रहा है। परन्तु, झारखण्ड के श्रमिकों को जो मजदूरी दर मिल रही है, वह देश में सबसे कम है। अन्य राज्यों में 300 रु / दिन से ज्यादा मिल रही है, मगर झारखण्ड में 200 रु. भी नहीं। हमने राज्य की निधि से मजदूरी बढ़ाने का निर्णय लिया है। मेहनतकश झारखंडियों को भी मनरेगा के तहत सही मजदूरी मिलनी चाहिए। सामाजिक सुरक्षा के तहत भारत सरकार के द्वारा जो विभिन्न पेंशन योजनाएं चलायी जा रही हैं उसे फिर से देखने की जरूरत है। अभी भी भारत सरकार एक वृद्ध / विधवा / दिव्यांग को प्रति महीने जीवनयापन सहायता के रूप में मात्र 250  रुपये प्रति महीने देती है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र जहाँ जीविकोपार्जन अन्य क्षेत्रों से ज्यादा कठिन है, वहाँ के लिए तो यह राशि बढ़नी ही चाहिए।

शिक्षा के लिए विद्यालयों की संख्या बढ़े

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में 192 एकलव्य विद्यालय स्वीकृत किये गये हैं। इनमें से 82 उग्रवाद प्रभावित जिलों में स्थापित होंगे। मेरा अनुरोध होगा कि एकलव्य विद्यालय की स्वीकृति हेतु निर्धारित मापदण्ड में 50% की शर्त को समाप्त किया जाए, ताकि आदिवासी बहुल ग्रामीण क्षेत्रों को इस योजना का लाभ मिल सके। झारखण्ड में 261 प्रखंड हैं, परन्तु मात्र 203 प्रखंडों में ही केंद्र सरकार की सहायता से कस्तूरबा विद्यालय का निर्माण किया गया। 57 विद्यालय राज्य सरकार अपनी निधि से प्रारंभ की है। राज्य की बेटियां इन विद्यालयों में नामांकन चाहती हैं। झारखण्ड जो सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित हैं, वहाँ 100 कस्तूरबा विद्यालयों के लिए केंद्र सरकार सहयोग करे। नक्सल विरोधी अभियान में हमारी सरकार एवं केन्द्र सरकार के बीच बेहतर समन्वय हमेशा बना रहेगा और मैं आशा करता हूँ कि हम सब मिलकर इस युद्ध को अवश्य जीत पायेंगे।

पोषण अभियान योजना के तहत प्रशिक्षण का आयोजन

 

रांची, अति कुपोषित बच्चों की पहचान, समुदाय स्तर पर उनका उपचार और कुपोषण के प्रति जागरुकता को लेकर पोषण अभियान योजना अन्तर्गत पोषण माह के दौरान राज्यस्तरीय ऑनलाइन प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। यूनिसेफ द्वारा आयोजित किये गये प्रशिक्षण कार्यक्रम में जिला समाज कल्याण पदाधिकारी श्रीमती श्वेता भारती एवं जिला के सभी बाल विकास परियोजना पदाधिकारी शामिल हुए।

पोषण माह 2021 के अन्तर्गत ऑनलाइन प्रशिक्षण में रिम्म के चिकित्सकों ने कुपोषित बच्चों की पहचान, समुदाय स्तर पर उनका उपचार और जागरुकता को लेकर विस्तार से सभी को जानकारी दी।

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