घरेलू उड्डयन की समस्या का समाधान किया जाय

*बीते समय में अपने देश में घरेलू उड्डयन की हालत गड़बड़ ही चल रही है

*घरेलू उड्डयन की समस्या का समाधान किया जाय

*जेट एयरवेज बंद हो गयी है. इंडिगो के प्राफिट में भारी गिरावट आई है

*सरकारी प्रबन्धन के दुराचार के बाद एयर इंडिया वापस टाटा समूह को बेच दी गयी है

*सरकार को अपनी उड्डयन नीति में परिवर्तन करना होगा

– भरत झुनझुनवाला
सत्तर साल तक सरकारी प्रबन्धन के दुराचार के बाद एयर इंडिया वापस टाटा समूह को बेच दी गयी है। लेकिन एयर इंडिया को वापस पटरी पर लाने के लिए टाटा को मशक्कत करनी पड़ेगी। बीते समय में अपने देश में घरेलू उड्डयन की हालत गड़बड़ ही चल रही है। जेट एयरवेज बंद हो गयी है, स्पाइस लगभग बंद हो गयी थी, इंडिगो के प्राफिट में भारी गिरावट आई है और एयर इंडिया के घाटे को पूरा करने के लिए देश के नागरिक से भारी टैक्स वसूल किया गया है। अत: घरेलू उड्डयन की मूल समस्याओं को भी सरकार को दूर करना होगा।
मुख्य समस्या यह है कि अपने देश में यात्रा के रेल और सड़क के विकल्प उपलब्ध हैं, जिसके कारण हवाई यात्रा लम्बी दूरी में ही सफल होती दिख रही है। जैसे दिल्ली से बेंगलुरू की रेल द्वारा एसी2 में यात्रा का किराया 2925 रुपये है जबकि एक माह आगे की हवाई यात्रा का किराया 3170 रुपये है। दोनों लगभग बराबर हैं। अंतर यह है कि रेल से यात्रा करने में 1 दिन और 2 रात का समय लगता है और भोजन आदि का खर्च भी पड़ता है। जिसे जोड़ लें तो रेल यात्रा हवाई यात्रा की तुलना में महंगी पड़ती है। तुलना में हवाई यात्रा में कुल 7 घंटे लगते हैं। इसलिए लम्बी दूरी की यात्रा में हवाई यात्रा सफल है।
हां, यदि आपको तत्काल यात्रा करनी हो तो परिस्थिति बदल जाती है। उस समय हवाई यात्रा महंगी हो जाती है जैसे दिल्ली से बेंगलुरू का किराया 10,000 रुपये भी हो सकता है जबकि एसी2 का किराया वही 2925 रुपये रहता है, यदि टिकट उपलब्ध हो। इसलिए तत्काल यात्रा को छोड़ दें तो लम्बी दूरी की यात्रा में हवाई यात्रा सफल है।
इसकी तुलना में मध्य दूरी की यात्रा की स्थिति भिन्न हो जाती है। दिल्ली से लखनऊ का एसी2 का किराया 1100 रुपये है जबकि एक माह आगे की हवाई यात्रा का किराया 1827 रुपये है। रेल यात्रा में एक लाभ यह भी है कि आप इस यात्रा को रात्रि में कर सकते हैं, जिससे आपका दिन का उत्पादक समय बचा रहता है; जबकि वायु यात्रा आपको दिन में करनी पड़ती है और इसमें आपका लगभग आधा दिन व्यय हो जाता है। इसलिए दिल्ली से लखनऊ की यात्रा किराए और समय दोनों की दृष्टि से रेल द्वारा सफल है।
यदि छोटी दूरी की बात करें तो दिल्ली से देहरादून रेल, सड़क और हवाई यात्रा सभी में लगभग 5 घंटे का समय लगता है। हवाई यात्रा में यात्रा के दोनों छोर पर हवाई अड्डा दूर होता है (1+1 घंटा), चेक-इन करना होता है (1/2 घंटा) और बैगेज लेने में समय लगता है (1/2 घंटा)। समय के इस व्यय के कारण यद्यपि हवाई यात्रा विशेष में केवल 1 घंटे का समय लगता है परन्तु घर से घर तक कुल समय 4 घंटे लगता जो कि सड़क से लगने वाले 5 घंटे के लगभग बराबर है। हवाई यात्रा में आपको लाइन में लगना होगा, लगेज लेने के लिए इन्तजार करना होगा और हवाई अड्डे तक पहुंचने में भी मेहनत करनी होगी। इसलिए मध्य दूरी की यात्रा जैसे दिल्ली से लखनऊ और छोटी दूरी के यात्रा जैसे दिल्ली से देहरादून रेल या सड़क सफल है और लम्बी दूरी की यात्रा जैसे दिल्ली से बेंगलुरू में हवाई यात्रा सफल है। इतना जरूर है कि यदि तत्काल यात्रा करनी हो तो हवाई यात्रा सफल हो सकती है।
यहां एक विषय यह भी है कि अक्सर क्षेत्रीय उड़ानें लम्बी उड़ानों को जोडती हैं। जैसे देहरादून से दिल्ली आप एक उड़ान से आये और फिर दिल्ली से कलकत्ता दूसरी उड़ान से गये। इस प्रकार बड़े हवाई अड्डों को हब बना दिया जाता है जहां किसी एक समय तमाम क्षेत्रीय उड़ाने पहुंचती हैं और उसके कुछ समय बाद तमाम लम्बी उड़ानें निकलती हैं। ऐसा करने से क्षेत्रीय उड़ानों का देहरादून से कलकत्ता या बेंगलुरू की उड़ान भरना आसान हो जाता है। अनुमान है कि क्षेत्रीय उड़ानों में इस लम्बी दूरी की उड़ानों के यात्रियों का हिस्सा कम ही होता है, जिसके कारण लम्बी दूरी की यात्रा से जोडऩे के बावजूद क्षेत्रीय उड़ानें सफल नहीं हो रही हैं।
सरकार की नीति इस कटु सत्य को नजरअंदाज करती दिख रही है। केन्द्र सरकार ने 2012 में एक वर्किंग ग्रुप बनाया था, जिसको घरेलू उड्डयन को बढ़ावा देने के लिए सुझाव देने को कहा गया था। ग्रुप ने कहा था कि क्षेत्रीय उड्डयन को सब्सिडी दी जानी चाहिए। इसके बाद सरकार ने राष्ट्रीय घरेलू उड्डयन नीति बनाई, जिसके अंतर्गत क्षेत्रीय उड़ानों को तीन साल तक सब्सिडी देना शुरू किया गया। हाल में 2018 अंतर्राष्ट्रीय सलाहकारी कम्पनी डीलायट ने भी छोटे शहरों को उड्डयन के विस्तार की बात कही है। लेकिन इन सब संस्तुतियों को कुछ हद तक लागू करने के बावजूद घरेलू उड्डयन की स्थिति खराब ही रही है। जैसा कि एयर इंडिया, जेट एयरवेज, स्पाइस जेट और इंडिगो की दुरूह स्थिति में दिखाई पड़ती है। इसलिए मूलत: सरकार को अपनी उड्डयन नीति में परिवर्तन करना होगा।
जरूरत इस बात की है कि लम्बी दूरी की उड़ानों को और सरल बनाया जाए। लन्दन में आप हवाई जहाज के उडऩे के मात्र 15 मिनट पहले हवाई अड्डे पहुंच कर हवाई जहाज में प्रवेश कर सकते हैं जबकि अपने यहां सिक्योरिटी इत्यादि में 1-2 घंटा लग जाना मामूली बात है। इसलिए सरकार को चाहिए कि सिक्योरिटी चेक और अपने सामान को वापस पाने की व्यवस्थाओं में सुधार करे। साथ-साथ शहरों के दूरदराज के इलाकों से हवाई अड्डे तक पहुंचने के लिए सड़क, मेट्रो इत्यादि की समुचित व्यवस्था करे, जिससे कि अपने देश में लम्बी दूरी के घरेलू उड्डयन का भरपूर विस्तार हो सके। इस दृष्टि से दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तार की योजना सही है क्योंकि इससे लम्बी दूरी की यात्राएं सरल हो जायेंगी। इस दृष्टि से एयर इंडिया की स्थिति भी अच्छी है क्योंकि एयर इंडिया के पास तमाम विदेशी हवाई अड्डों में अपने विमानों को उतारने के अधिकार हैं। इसलिए लम्बी दूरी की विदेशी उड़ानों में एयर इंडिया सफल हो सकती है।
एयर इंडिया के प्रकरण से एक विषय यह भी निकलता है कि 70 साल के सरकारी प्रबन्धन में इस कम्पनी की स्थिति खराब हो गयी है। इसी तर्ज पर सरकारी बैंकों, इंश्योरेंस कम्पनियों, कोल इंडिया आदि इकाइयों आदि का समय रहते निजीकरण कर देना चाहिए। जिस प्रकार एयर इंडिया का निजीकरण भारी घाटा खाने के बाद किया गया, वही स्थिति इन इकाइयों के साथ उत्पन्न नहीं होनी चाहिए।

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।)

श्री हेमन्त सोरेन ने 11वीं राष्ट्रीय महिला जूनियर हॉकी प्रतियोगिता 2021 का शुभारंभ किया

समाजवादी लोकतंत्र के अग्रणी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया

महर्षि बाल्मीकि का विश्व विख्यात रामायण और भ्रातृत्व स्नेह

 

श्री हेमन्त सोरेन ने 11वीं राष्ट्रीय महिला जूनियर हॉकी प्रतियोगिता 2021 का शुभारंभ किया

*मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने सिमडेगा में 11वीं राष्ट्रीय महिला जूनियर हॉकी प्रतियोगिता 2021

का शुभारंभ एवं अंतरराष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम का शिलान्यास किया

*27 करोड से अधिक की लागत से 25 योजनाओं का शिलान्यास 

32 करोड़ से अधिक की लागत 35  योजनाओं का उद्घाटन हुआ है

*28 करोड़ से अधिक की राशि की कुल 6 योजनाओं के जरिये 990 लाभुकों को लाभान्वित किया गया

एवं स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के स्वावलंबन हेतु बकरी, मुर्गी, सुकर पालन हेतु आर्थिक सहायता दी गई।

क्रेडिट लिंकेज से लाभान्वित हुईं एसएचजी की महिलाएं

*कुल 101.590 करोड़ की विकासशील एवं कल्याणकारी योजनाओं

उद्घाटन और शिलान्यास एवं परिसंपत्तियों का वितरण

*मुख्यमंत्री ने सांकेतिक तौर पर 12 युवक एवं युवतियों को नियुक्ति पत्र सौंपा, कुल 79 युवाओं को मिला नियुक्ति पत्र

सिमडेगा के लिये अविस्मरणीय दिन है। सिमडेगा में पुनः राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। एक ओर 11वीं राष्ट्रीय महिला जूनियर हॉकी प्रतियोगिता 2021 का शुभारंभ हो रहा है। वहीं दूसरी ओर, बड़े पैमाने पर सिमडेगा में विभिन्न योजनाओं का शिलान्यास,उद्घाटन एवं युवाओं को नियुक्ति पत्र सौंपा गया। हॉकी को उसकी पराकाष्ठा और खिलाड़ियों को उम्दा संसाधन उपलब्ध कराने के

उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय स्तर के हॉकी स्टेडियम के निर्माण की आधारशिला रखी गई। यह सुखद क्षण है। यहां आयोजित प्रतियोगिता की गूंज दूर तलक जाएगी। ये बातें मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने कही। मुख्यमंत्री सिमडेगा के एस एस बालिका उच्च विद्यालय परिसर में 11वीं राष्ट्रीय महिला जूनियर हॉकी प्रतियोगिता 2021 के शुभारंभ एवं अंतरराष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम के शिलान्यास और परिसंपत्तियों के वितरण समारोह में बोल रहे थे।

खिलाड़ियों को मिल रहा है सम्मान

मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को सरकार अपना अंग बनाकर सीधी नियुक्ति दे रही है। झारखण्ड के युवाओं को रोजगार से जोड़ने के संकल्प के साथ निरंतर कार्य किया जा रहा है। आज उसके तहत 79 नवयुवकों व नवयुवतियों को नियुक्ति पत्र सौंपा गया।

जहां भी है संभावना, वहां सरकार बढ़ावा देगी

मुख्यमंत्री ने कहा कि सब जूनियर टूर्नामेंट का आयोजन कुछ माह पूर्व ही सम्पन्न हुआ। पुनः राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता का आयोजन हो रहा है। राज्य के लिए यह सौभाग्य की बात है कि यहां देश भर से हॉकी खिलाड़ी आये हैं। देश की बच्चियां जो देश-विदेश में अपना जौहर दिखाती हैं। आज वे सिमडेगा की भूमि पर आईं हैं। झारखण्ड के खिलाड़ियों को बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलेगा। खेल एक ऐसा कार्यक्रम है जहां सौहार्द और प्रेम का सम्प्रेषण होता है। झारखण्ड सिर्फ खनिज के लिए ही नहीं बल्कि खेल के लिए भी जाना जाएगा। सरकार का संकल्प है कि खेल में जहां की संभावना है वहां सरकार खेल को बढ़ावा देगी।

खिलाड़ियों को सीधी नियुक्ति मिली

सिमडेगा विधायक श्री भूषण बाड़ा ने कहा कि आज का काफी अहम है। आज यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर के हॉकी स्टेडियम का शिलान्यास हुआ है। राज्य सरकार खेल और खिलाड़ियों को सम्मान देने का कार्य कर रही है। सरकार ने 39 खिलाड़ियों को सीधी नियुक्ति दी है। राज्य भर में खेल के मैदान का निर्माण पंचायत, प्रखंड और जिला स्तर पर किया जा रहा है।

खेल सामुहिक एकता को प्रतिविम्बित करता है

कोलेबिरा विधायक श्री नमन विक्सल कोंगाडी ने कहा कि खेल हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। खेल सामुहिक एकता को प्रतिविम्बित करता है। यह रोजगार पाने का बड़ा साधन है। यही वजह है कि राज्य सरकार खेल के विकास को लेकर कार्य कर रही है। खिलाड़ियों को हर संभव सुविधा प्रदान करने की कोशिश की जा रही है।

 खिलाड़ियों से मिले मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री ने 11वीं राष्ट्रीय महिला जूनियर हॉकी प्रतियोगिता 2021 में भाग ले रहीं सभी टीमों के खिलाड़ियों से मिलकर उन्हें शुभकामनाएं दीं और प्रतियोगिता के शुभारंभ की घोषणा की। इस प्रतियोगिता में देश भर की 26 टीमें भाग ले रहीं हैं।

इस अवसर पर सिमडेगा विधायक श्री भूषण बाड़ा, कोलेबिरा विधायक श्री नमन विक्सल कोंगाडी, मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे, सचिव पर्यटन, कला, संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग श्री अमिताभ कौशल, उपायुक्त सिमडेगा श्री सुशांत गौरव, हॉकी इंडिया के अध्यक्ष श्री ज्यान्द्रों दियोंगम, अध्यक्ष हॉकी झारखण्ड के अध्यक्ष श्री भोलानाथ सिंह, खिलाड़ी एवं अन्य उपस्थित थे।

 

समाजवादी लोकतंत्र के अग्रणी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया

कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग क्यों?

महर्षि बाल्मीकि का विश्व विख्यात रामायण और भ्रातृत्व स्नेह

 

समाजवादी लोकतंत्र के अग्रणी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया

डॉ राम मनोहर लोहिया : भारतीय समाजवाद का उन्हें अग्रणी वाहक कहा जाता है

*उनका विश्वास था कि लोकतंत्र में विरोधी विचारों का सदैव सम्मान होना चाहिए

*प्रतिनिधि यदि भ्रष्ट हो तो उन्हें सत्ता से भी हटाने में नहीं सोचना चाहिए

*जातिवाद और नस्लवाद किसी भी देश के लिए शुभ संकेत नहीं होता

*वे ये भी चाहते थे कि बेहतर सरकारी स्कूलों की स्थापना हो

विकास कुमार
डॉ राम मनोहर लोहिया का नाम लोकतंत्र के अग्रणी चिंतकों में बेशुमार है। जो लोकतंत्र को अंतिम व्यक्ति की भागीदारी और सहभागिता में देखने पर विश्वास करते थे। उनका विचार था की संसाधनों का वितरण समानांतर हो जिसमें अंतिम व्यक्ति को भी योजनाओं और सुविधाओं का लाभ मिल सके। भारतीय समाजवाद का उन्हें अग्रणी वाहक कहा जाता है ।क्योंकि उन्होंने समाजवाद को पाश्चात्य दृष्टिकोण की अवधारणा को ना अपना कर भारतीय और भारतीयता के परिप्रेक्ष्य में चिंतन किया। उनका विश्वास था कि लोकतंत्र में विरोधी विचारों का सदैव सम्मान होना चाहिए। वह लोकतंत्र सफल नहीं माना जा सकता जिसमें विरोधी विचारों का सम्मान नहीं होता। जनता को इतना जागरूक होना चाहिए की उनके द्वारा चुने गए प्रतिनिधि यदि भ्रष्ट हो तो उन्हें सत्ता से भी हटाने में नहीं सोचना चाहिए। डॉक्टर लोहिया का विश्वास था कि जातिवाद और नस्लवाद किसी भी देश के लिए शुभ संकेत नहीं होता, क्योंकि इससे सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है और संप्रदायिकता से लोकतंत्र विखंडित हो जाता है। उनका विश्वास था कि लोकतंत्र को विविधता और समग्रता में देखने की जरूरत होती है ,क्योंकि लोकतंत्र ही एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें प्रत्येक जन समुदाय अपने हित की चेतना के बारे में सोच समझ और बोल सकने का अधिकार रखता है।लोहिया ने हमेशा भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अंग्रेजी से अधिक हिंदी को प्राथमिकता दी. उनका विश्वाश था कि अंग्रेजी शिक्षित और अशिक्षित जनता के बीच दूरी पैदा करती है. वे कहते थे कि हिन्दी के उपयोग से एकता की भावना और नए राष्ट्र के निर्माण से सम्बन्धित विचारों को बढ़ावा मिलेगा। वे जात-पात के घोर विरोधी थे।उन्होंने जाति व्यवस्था के विरोध में सुझाव दिया कि “रोटी और बेटी” के माध्यम से इसे समाप्त किया जा सकता है. वे कहते थे कि सभी जाति के लोग एक साथ मिल-जुलकर खाना खाएं और उच्च वर्ग के लोग निम्न जाति की लड़कियों से अपने बच्चों की शादी करें. इसी प्रकार उन्होंने अपने ‘यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी’ में उच्च पदों के लिए हुए चुनाव के टिकट निम्न जाति के उम्मीदवारों को दिया और उन्हें प्रोत्साहन भी दिया. वे ये भी चाहते थे कि बेहतर सरकारी स्कूलों की स्थापना हो, जो सभी को शिक्षा के समान अवसर प्रदान कर सकें.24 मई, 1939 को लोहिया को उत्तेजक बयान देने और देशवासियों से सरकारी संस्थाओं का बहिष्कार करने के लिए लिए पहली बार गिरफ्तार किया गया, पर युवाओं के विद्रोह के डर से उन्हें अगले ही दिन रिहा कर दिया गया. हालांकि जून 1940 में उन्हें “सत्याग्रह नाउ” नामक लेख लिखने के आरोप में पुन: गिरफ्तार किया गया और दो वर्षों के लिए कारावास भेज दिया गया. बाद में उन्हें दिसम्बर 1941 में आज़ाद कर दिया गया. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वर्ष 1942 में महात्मा गांधी, नेहरू, मौलाना आजाद और वल्लभभाई पटेल जैसे कई शीर्ष नेताओं के साथ उन्हें भी कैद कर लिया गया था। अंग्रेजी सरकार सदैव उनके ओजस्वी भाषणों और उनके विचारों से डरती थी। डॉक्टर लोहिया कई भाषाओं के जानकार थे वह कई भाषाओं में अपनी बात को श्रोताओं तक पहुंचा सकते थे और लेखन कार्य भी कर सकते थे। डॉक्टर लोहिया का विकेंद्रीकरण प्रणाली और लोकतंत्र में अटूट विश्वास था। वह सदैव यही कहते थे जिंदा कौम में 5 वर्ष इंतजार नहीं करती है। यह तो सच है कि लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार होता है कि वह अपने जनमत का प्रयोग करते समय विवेक का प्रयोग करें। परंतु यदि जनमत से गलत प्रतिनिधि का चुनाव हो गया है तो जनता को चाहिए कि उसको सत्ता से हटाकर दूसरे प्रतिनिधि को सत्तारूढ़ कर सकें। दूसरा उनका मत था कि लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष का होना अत्यन्त आवश्यक है , क्योंकि सत्ता को नीतियां बनाते समय यह ध्यान नहीं रहता क्या उचित है या अनुचित है ।इसलिए वक्त समय-समय पर उनको सुधर सुधारने का मौका देता है ताकि सही नीतियां जनता तक पहुंच सके। डॉक्टर लोहिया ने समाज की संरचना में 4 परतों की अवधारणा दी । पहला था गांव दूसरा था जनपद तीसरा प्रांत और चौथा था राष्ट्र। यदि राज्यों का संगठन इन 4 पदों के अनुरूप हो जाए तो वह समुदाय का सच्चा प्रतिनिधि बन जाएगा परंतु गांव को अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है। नीतियों का क्रियान्वयन और सत्ता की सोच ग्रामीण को देखकर विकसित स्वरूप में निर्मित होनी चाहिए सभी आम जन समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी। इस परिपेक्ष को डॉक्टर लोहिया चौखंभा राज्य की संज्ञा दी। उन्होंने समाजवाद को एशियाई संदर्भ में परिभाषित किया। कहां की पाश्चात्य सभ्यता में समस्याएं समानांतर रूप से दूसरी प्रकार की हैं और एशियाई परिपेक्ष में समस्याएं दूसरी हैं इसलिए समाजवाद को एशियाई परिस्थितियों को ध्यान में रखकर विकसित करना चाहिए। उन्होंने बताया एशिया में निरंकुश तंत्र, सामंतवाद, धार्मिक रूढिय़ां जाति प्रथाओं की संकीर्ण मनोवृत्ति, अधिकारी तंत्र और तानाशाही तंत्र आदि का प्रचलन है। एशियाई परिपेक्ष्य में समाजवाद के लिए यह सब समस्याएं हैं जिनके कारण आम जन समुदाय तक संसाधनों का वितरण नहीं हो पा रहा है। सामाजिक न्याय के लोहिया बहुत बड़े समर्थक थे। जिस देश में सामाजिक न्याय नहीं हैं वह देश विकास की ओर अग्रसर नहीं हो सकता है। उनके विचारों में सामाजिक न्याय का तात्पर्य केवल जाति प्रथा वाला सामाजिक न्याय नहीं था बल्कि प्रत्येक समुदाय चाहे स्त्री, हो विकलांग हो या अन्य समुदाय का प्रत्येक को न्याय सुनिश्चित कराना था। वह सदैव लघु एवं कुटीर उद्योगों के समर्थन में थे क्योंकि उनका मानना था कि यदि बड़ी-बड़ी मशीनों का प्रयोग बड़े पैमाने पर होगा उसने मालिकाना पूंजीपतियों का होगा जिसमें जनसाधारण को भागीदारी नहीं मिल सकेगी। उनकी स्वतंत्रता भी उसमें छीन ली जाएगी। क्योंकि कई प्रकार के शर्तों पर उन से काम करवाया जाएगा। 1962 में प्रकाशित एक लेख में सात प्रकार की क्रांतियों का विवेचन किया। जिसमें एक स्त्रियों के प्रति भेदभाव के विरुद्ध क्रांति, जाति प्रथा के विरुद्ध क्रांति, अन्याय के विरुद्ध क्रांति, एवं अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा को राजनीतिक प्रक्रिया के रूप में अपनाने के लिए लोगों के सोचने के ढंग में क्रांति। अत:डॉक्टर लोहिया स्त्री विमर्श के भी बड़े चिंतक हैं। उनका कहना था कि जब तक स्त्रियों के प्रति भेदभाव समाप्त नहीं होगा तब तक राष्ट्रपति नहीं कर सकता है क्योंकि आधी आबादी के योगदान से कोई भी राष्ट्र प्रगति कैसे कर सकता है। जाति प्रथा को वह सबसे बड़ा संक्रमण और कैंसर समाज के लिए मानते थे। उनका मानना था कि यदि जाति व्यवस्था का अंत नहीं हुआ तो यह आगे चलकर बहुत बड़ी समस्या भारतीय समाज के लिए बन सकती हैं। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उत्थान के लिए कई प्रकार के नीतियों का सुझाव उन्होंने सरकारों को दिया। अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण के बहुत बड़े समर्थक थे उनका मानना था बेरोजगारी किसी भी देश के लिए अभिशाप होती है इसलिए सरकार को यह चाहिए कि उत्पादन का वितरण समानांतर होना चाहिए। आज डॉक्टर लोहिया के विचार पहले की अपेक्षा अधिक प्रासंगिक प्रतीत हो रहे हैं। डॉक्टर लोहिया के विचारों को पड़ता और समझता तो सभी है परंतु उन को व्यावहारिक रूप में लागू करने की आवश्यकता है। उनके विचार आज भी प्रेरणा प्रदान करते हैं। ऐसे विचारक और राजनेता शारीरिक रूप से भले ही आम जनमानस के बीच ना रहे परंतु उनके चेतना में ऐसे विचार को का निवास सदैव रहता है।

(लेखक- केंद्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में रिसर्च स्कॉलर हैं एवं राजनीति विज्ञान में गोल्ड मेडलिस्ट हैं)

 

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कितने बहुकोणीय होंगे आगामी चुनाव

*अगले कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनावों में

विपक्षी एकता की कोशिश फिलहाल धूमिल हो चुकी है

*बहुकोणीय चुनाव से वोट बंटने का असर क्या होता है

* उस बारे में तो अगले साल चुनाव के नतीजे ही कुछ बता पाएंगे

*अधिकतर क्षेत्रीय दलों को वोट बेस कांग्रेस से ही मिलता रहा है

*मुस्लिम मतों का बंटवारा नहीं हुआ. 85 फीसदी वोट

दो पक्षों के बीच ही बंटता रहा है

– नरेंद्र नाथ –
कितने बहुकोणीय होंगे आगामी चुनाव।  अगले कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनावों में विपक्षी एकता की कोशिश फिलहाल धूमिल हो चुकी है। सभी सियासी दल बहुकोणीय चुनाव के नफा-नुकसान की चर्चा करने लगे हैं। अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने हैं। अब तक के जो राजनीतिक संकेत हैं उसके अनुसार इन सभी राज्यों में बहुकोणीय चुनाव ही होंगे। हाल के सालों में आम धारणा यही बनी है कि बहुकोणीय चुनाव से बीजेपी को लाभ होता है क्योंकि इससे उनके विरोधी मतों का ही बंटवारा होता है। हालांकि जानकारों के अनुसार हर चुनाव के समीकरण अलग होते हैं, और इसे कोई एक स्थापित ट्रेंड मान लेना मुनासिब नहीं। लेकिन पांच राज्यों के चुनाव में आए नतीजे एक ठोस ट्रेंड बता सकते हैं।
क्यों उठ रहे सवाल
अभी बहुकोणीय चुनाव और इसके असर की बात पर बहस इसलिए शुरू हुई कि एक के बाद एक कई घटनाक्रम हुए हैं। पिछले हफ्ते गुजरात में हुए निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी भले सीट जीतने में सफल नहीं रही, लेकिन कांग्रेस के वोट बैंक में उसने बड़ी सेंध लगाई। इसका असर यह हुआ कि बीजेपी पिछली बार से भी बड़ी जीत पाने में सफल रही। गुजरात में भी अगले साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। अभी कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी लखीमपुर कांड के बाद जिस तरह उत्तर प्रदेश में आक्रामक हुईं और वाराणसी में बड़ी रैली कर उन्होंने कांग्रेस के चुनावी प्रचार का शंखनाद किया, उसके बाद वहां भी यह बात उठी कि अगर कांग्रेस अपना वोट बढ़ाती है तो वह किसकी कीमत पर बढ़ाएगी। तर्क दिया गया कि जितना कांग्रेस बेहतर करेगी, बीजेपी के लिए राहत की बात होगी क्योंकि इससे बीजेपी विरोधी वोट ही बंटेगा।
इसी तरह साल की शुरुआत में गोवा और उत्तराखंड में भी यही सवाल उठेगा। गोवा में आम आदमी पार्टी और टीएमसी पूरी ताकत के साथ उतर रही है। वहां दोनों दल बीजेपी सरकार के सामने कांग्रेस के साथ खुद को विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं। वहीं उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी मैदान में उतर चुकी है। पंजाब में भी सत्तारूढ़ कांग्रेस के सामने आम आदमी पार्टी, अकाली दल और बीजेपी मैदान में हैं। मणिपुर में भी एक साथ कई दल चुनावी मैदान में हैं। हाल के सालों में अधिकतर चुनावों में दो पक्षों के बीच सीधी टक्कर ही देखने को मिली है। लेकिन इस बार जिस तरह इन सभी राज्यों में कई कोण अभी से दिख रहे हैं, यह देश की राजनीति में उस पुराने दौर की वापसी की आहट दे रहा है जब सियासी मैदान में कई खिलाड़ी होते थे। लेकिन क्या कई दलों के मैदान में उतरने से बहुकोणीय चुनाव हो जाएगा या मौजूदा ट्रेंड की तरह अंत में वोटर पक्ष और विपक्ष के लिए सिर्फ एक-एक विकल्प को चुनेगा? इसका जवाब तो चुनाव में ही मिलेगा। इसी से सभी दलों के राष्ट्रीय स्तर पर उभरने की ख्वाहिश का विस्तार होगा या नहीं, इसका भी पता चलेगा।
वोट बंटने का फायदा
बहुकोणीय चुनाव से वोट बंटने का असर क्या होता है, उस बारे में तो अगले साल चुनाव के नतीजे ही कुछ बता पाएंगे। लेकिन अब तक का ट्रेंड यही है कि इसका लाभ हाल के सालों में बीजेपी को मिला है। इसके पीछे कारण रहा है कि अधिकतर क्षेत्रीय दल चाहे तेलंगाना में हो या आंध्र प्रदेश में, पश्चिम बंगाल में हो या महाराष्ट्र में, वे सारे कांग्रेस के पतन की कीमत पर ही उभरे हैं। जिन-जिन राज्यों में कांग्रेस कमजोर होती गई वहां-वहां क्षेत्रीय दल उभरते गए। यह ट्रेंड पिछले तीन दशकों से है। सबसे नया उदाहरण दिल्ली में आम आदमी पार्टी है। बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली हो या झारखंड जैसे राज्य, वहां कांग्रेस से जो वोट बैंक निकला, उस पर ही अपनी पकड़ बनाकर क्षेत्रीय दल स्थापित हुए। अधिकतर क्षेत्रीय दलों को वोट बेस कांग्रेस से ही मिलता रहा है। ऐसे में चूंकि क्षेत्रीय दल और कांग्रेस एक ही पिच पर खेलते रहे हैं तो ये एक ही वोट वर्ग में साझा करते हैं और बीजेपी का वोट बैंक इससे प्रभावित नहीं होता है। यह चुनाव दर चुनाव दिखा भी है। लेकिन जानकारों के अनुसार पिछले कुछ दिनों में हालात बदले भी हैं। अब इन सभी के लिए बीजेपी से लडऩा प्राथमिक सियासी चुनौती बन गई। लगभग एक दशक से देश की राजनीति के केंद्र में आ चुकी बीजेपी इन क्षेत्रीय दलों के लिए बड़ा खतरा बन गई। इसके अलावा बीजेपी की तरह कांग्रेस हो या क्षेत्रीय दल, इनका भी अपना वोट बैंक बन गया।
ऐसे में अब बहुकोणीय चुनाव का असर किसके वोट बैंक पर पड़ेगा, उसका आकलन गलत भी साबित हो सकता है। उत्तर प्रदेश की ही मिसाल लें, तो यहां अगर कांग्रेस उभर कर अपना वोट बैंक बढ़ाती है तो वह बीजेपी में सेंध लगाएगी या विपक्ष में, यह अभी कहना जल्दबाजी होगा। एसपी के नेता ने कहा कि पारंपरिक रूप से बीजेपी का वोट कांग्रेस की ओर जा सकता है, जो एसपी की ओर कभी नहीं आएगा। यही बात दूसरे राज्यों में भी लागू होती है। जाहिर है, सभी दल बहुकोणीय चुनाव में अपने लिए लाभ का आकलन अधिक करेंगे, लेकिन इसके लिए ठोस आधार नहीं है। इसी तरह ओवैसी की पार्टी के बारे में कहा गया है कि उनकी पार्टी मुस्लिम वोट बांटती है। लेकिन अब तक इसके कोई स्पष्ट सियासी प्रमाण नहीं मिले हैं। पश्चिम बंगाल में टीएमसी के सामने कांग्रेस-लेफ्ट का गठबंधन था, जो वहां की स्थापित पार्टियां है। उनके साथ इंडियन सेक्युलर फ्रंट की पार्टी भी थी। लेकिन जब चुनाव परिणाम सामने आए तो यही बात देखी गई कि मुस्लिम मतों का बंटवारा नहीं हुआ। वहीं पिछले 15 विधानसभा चुनाव के नतीजे यही बता रहे हैं कि 85 फीसदी वोट दो पक्षों के बीच ही बंटता रहा है। ऐसे में क्या बहुकोणीय चुनाव सही में बहुकोणीय बन पाएगा या नहीं, इसे तमाम दलों की भागीदारी भर से तो नहीं मान सकते हैं।

 

कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग क्यों?

महर्षि बाल्मीकि का विश्व विख्यात रामायण और भ्रातृत्व स्नेह

नाले में गिरते लोग कुम्भकर्णी नीद में रांची नगर निगम अधिकारी

मामला साईकिल चोरी का

 – दिलीप सिंह –
मामला साईकिल चोरी का.जाड़ा का दिन था। हम अपने छत पर बैठ कर दोपहर के धूप का आनन्द ले रहे थे। काॅलेज के विद्यार्थी होेने के नाते सबेरे-सबेरे बिस्तर छोड़ देना,किताब लेकर छत पर चला जाना,माँ-बाप के आँखो में धूल झोंकने के समान ही था। बेचारे माँ-बाप ये सोचते थे बेटा बड़ा होनहार है,जब देखो किताब से चिपके रहता है। अब उनको क्या मालूम की उनका होनहार बेटा छत पर जाकर क्या करता हैं।
           वैसे आम विद्यार्थियों की तरह उस समय देश-प्रेम और आदर्शवादिता हमारे सर पर हर समय छायी रहती थी। किसी के सुख-दुःख में शामिल होना हम साथियों का कर्तव्य था। लगभग दोपहर का समय था,मैं किताबें लिए छत पर आँख बंद कर के धूप का आनन्द ले रहा था। तभी हमारा मित्र गिरधारी हाँफते-हाँफते छत पर पहुँचा। ऐ रामखेलावन भैया,ए रामखेलावन भैया। उसके जोर से बोलने के कारण मैं चौक कर उठ गया और उसे देखकर पूछा का है रे?इस पर उसने कहा-भैया हमरा साइकिल चोरी हो गया है बहीन का काॅलेज के पास से। मैने पूछा-तुम वहाँ का करने गए थे। उसका जवाब था-भैया साइकिल बाहरे रखकर मैं बहीन का काॅलेज में फ़ीस भरने गया था।मैने पूछा अब का किया जाए। चूँकि उस समय साइकिल का ही जमाना था अभी की तरह मोटरसाइकिल बहुत कम हुआ करते थे। थाना में साइकिल चोरी होने का कम्पलेन दर्ज कराया, मैने उससे पूछा। नही भैया मैं अकेले नही गया आप भी चलिए उसने कहा।
            मामला साइकिल चोरी का था। शिकायत करना जरूरी था। हमलोग  थाना पहुँच गए। वहाँ जा कर सामने बैठे आदमी से बोले हवलदार साहब। सामने बैठा व्यक्ति और अकड़ कर बैठ गया और जोर से चिल्लाया का  बोला रे हम तुमको हवलदार दिखते है हम इस थाना के मुँशी हैं। हमने कहा गलती हो गया मुँशी साहब। उसने पूछा का काम है। हमारा साइकिल चोरी  हो गया हमने उससे कहा।साइकिल चोरी हो गया।ठीक है ठीक है.उधर जा के बैठो साहब नहीं है। साहब आएंगे तो कम्पलेन दर्ज होगा। हमने मुँशी से पूछा साहब कब आएंगे। थाने का मुँशी जोर से चिल्लाया साहब-साहब है, तुमसे पूछकर आना-जाना करेगें का।जाओ उधर बैठो वो चिल्लाकर बोला।उसकी आवाज से हमलोग की आधी जान निकल गई।डरकर हमलोग किनारे खड़े हो गए। हमे वहाँ खड़े-खड़े लगभग एक घंटा हो चूका था। थाने के साहब का पता नही। दुबारा हमारी हिम्मत नही हुई कि हम मुँशी से जाकर पूछे कि दारोगा साहब कब आयेगे। हमारी स्थिति ऐसी हो गई थी कि न हम वहाँ से जा सकते थे और न ही हिल सकते थे।
       तभी एक सिपाही को हम पर तरस आया वो आकर कान में पुफसपुफसाया का बात है?हमने अपना किस्सा उसे बताया सिपाही जी बोले कुछ चढ़ावा चढ़ाना होगा। हमने उससे कहा कि आज तो मंगलवार भी नही है कि बजरंगबली का प्रसाद आपको खिलावे ।सिपाही जी बोले अरे वो चढ़ावा नहीं कुछ रूपया उपया खर्च करना होगा। हमने सिपाही जी से कहा कि हम विद्यार्थी है पैसा कहाँ से लावेंगे। तब सिपाही ने कहा तब हम तुम्हारी कोई मदद नही कर सकते है, यह बोल सिपाही वहाँ से खिसक लिया। 2 घंटे के बाद दारोगा साहब पधरे। मुँशी जी खड़े हुए। दारोगा ने मुँशी जी से पूछा क्या बात है?हुजुर इनकी साइकिल चोरी हो गई है। दारोगा साहब ने हमारी ओर इशारा किया। हम दौेड़कर उनके पास पहुँचे। हमने अपनी पूरी बात उनके सामने रखी ।हमने अपनी बात खत्म भी नही की थी कि बीच में ही दारोगा चिल्लाए मुँशी साहब इ दोनों तो खुद ही चोर लगते हैं। हमलोग घबड़ाकर बोले हमलोग तो काॅलेज का छात्र हैं। अकड़कर दारोगा बोला लड़की काॅलेज के पास क्या करने गये थे। वहाँ लड़कियों से छेड़छाड़ की घटना बढ़ी है। कहीं तुमलोग तो इस घटना में शामिल नहीं हो। इ का कह रहें हैं सर। हमारी बात अनसुनी कर दरोगा चिल्लाया, मुँशी जी इनको पकड़कर लाॅकअप में बंद कर दो। आकर देखतें है मामला क्या है। यह कहकर दारोगा राउंड पर चला गया। मुँशी हमारे पास आया। हमने उससे कापफी विनती की, हमें मामला दर्ज नहीं कराना है। पता नहीं हमारी बातों का मुँशी पर क्या असर हुआ वह बोला भागो यहाँ से, दुबारा शक्ल मत दिखाना। हमें लगा की हमारी जान बची। हम निकल भागे।
लेकिन अभी भी हमारा आदर्श हमें ललकार रहा था। हमनें सोचा क्यों ना अपनी व्यथा,अपनी पीड़ा और उस दारोगा की हरकत को किसी को बताया जाए। तब ध्यान में आया क्यों ना यह बात अखबार के संपादक को बता दिया जाए। हम चल दिए अखबार के दफतर की ओर। वहाँ जाकर हमनें संपादक को अपना दुखड़ा सुनाया। संपादक ने हमारी बातें सुनकर कहा लिखकर दे दीजिए। साथ में एक लाईन और जोड़ दीजिएगा कि दारोगा ने हमसे पचास रूपये छिन लिए ताकि दारोगा के विरुद्ध केस मजबुत हो सके। वो पत्र हम संपादक को देकर  खुशी-खुशी घर लौटे कि अब पता चलेगा दारोगा को।
      घर पहुचे तो घरवाले परेशान थे। पिताजी पुछे कहाँ से आ रहे हो?पिताजी को थाने से लेकर अखबार के दफतर तक की बातें बता दी। मेरी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि पिताजी चिल्लाए, अरे मुर्ख नालायक यह तुमनें क्या कर डाला कल अगर अखबार में यह बात छपती है, तो वह दारोगा तुम पर क्या-क्या आरोप लगा कर तुम्हें जेल मे डाल देगा यह तुम्हें पता है। गुस्से मे आकर पिताजी ने दो छड़ी मुझ पर जमायी। अभी तुरंत जाओ,  संपादक को दिए गए पत्र को वापस ले लो। कहना हमकों कम्पलेन नहीं करना है। हम दौड़कर भागें अखबार के दफतर पहँुचे। संपादक  महोदय से बोले कि हमें अपना मामला वापस लेना है। संपादक  महोदय ने ना जाने हमें कितनी नसीहतें दी और हमनें जो पत्र दिया था वो हमें वापस कर दिया। तब हमारी जान में जान आई। अब हम हमेशा के लिए भुल गए कि आदर्शवादिता किस चिड़िया का नाम है।

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन से श्री राजीव लोचन बख्शी ने शिष्टाचार भेंट की

रांची, मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन से सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, झारखण्ड रांची के पद पर नवनियुक्त निदेशक श्री राजीव लोचन बख्शी ने मुलाकात की। मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन से श्री राजीव लोचन बख्शी की यह  शिष्टाचार भेंट थी. ज्ञातव्य  है कि श्री राजीव लोचन बक्शी पुनः सुचना एवं जनसंपर्क विभाग झारखण्ड  का निदेशक बनाया गया है। इसके पहले वे मुख्य. वन संरक्षक-सह-परियोजना निदेशक, परियोजना समन्वय ईकाई, झारखण्ड सहभागी वन प्रबन्धन परियोजना, रॉची व सेवा वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखण्ड, राँची  के पद पर पदस्थापित थे।

कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग क्यों?

महर्षि बाल्मीकि का विश्व विख्यात रामायण और भ्रातृत्व स्नेह

नाले में गिरते लोग कुम्भकर्णी नीद में रांची नगर निगम अधिकारी

 

कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग क्यों?

*अफगानिस्तान में तख्तापलट के बाद आतंकवाद के हौसले बुलंद हैं

*आतंकवाद पूरी दुनिया का तालिबानीकरण करना चाहता है

*कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग क्यों?

*370 की समाप्ति के बाद हिन्दुओं की हत्याएं बेहद खतरनाक

मंसूबों की तरफ इशारा करती हैं

*सवाल उठता है कि कश्मीर क्या कभी अपनी रौ में वापस लौटेगा

*दक्षिण एशिया में ‘इस्लामिक एजेंडा’ काम कर रहा है

*अगर हम पंजाब में आतंकवाद को समूल नष्ट कर सकते हैं

तो कश्मीर में क्यों नहीं?

*बांग्लादेश में भी नवरात्र के दौरान पूजा पंडालों पर हमले किए गए

जिस बांग्लादेश को पाकिस्तान के दमन से आजादी दिलाई

आज वहीं भारत के खिलाफ खड़ा दिख रहा है

*कश्मीर के अलगाववादी संगठन, राजनीतिक दल और राजनेता

धारा 370 के खात्मे से खुश नहीं है

क्योंकि उनकी अघोषित आजादी छीन गई है

*अब वक्त आ गया है जब आतंकवाद पर निर्णायक फैसले की जरूरत है

प्रभुनाथ शुक्ल
कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग क्यों? दक्षिण एशिया में चरमपंथ और अतिवाद को खूब खाद-पानी मिल रहा है। अफगान में तालिबानी संस्करण आने के बाद आतंकवाद को ‘सेफ्टी ऑक्सीजन’ मिल गया है। अफगानिस्तान में तख्तापलट के बाद आतंकवाद के हौसले बुलंद हैं। आतंकवाद पूरी दुनिया का तालिबानीकरण करना चाहता है। कश्मीर घाटी में ‘हिन्दुओं की टारगेट किलिंग’ इसी तरफ इशारा करती है। आतंकवादी संगठन कश्मीर को छोटा तालिबान बनाना चाहते है। हालांकि तालिबानी सरकार ने साफ तौर पर कई बार यह संकेत दिया है कि वह किसी भी देश के अंदरूनी मामले में दखल नहीं करेगा, लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ दिखता नहीं है। पाकिस्तान में फैली आतंक की नर्सरी कश्मीर में अल्पसंख्य हिन्दुओं और सिखों का कत्ल तालिबानी संस्कृति की एक तरह से लान्चिंग है।
कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति के बाद हिन्दुओं की हत्याएं बेहद खतरनाक मंसूबों की तरफ इशारा करती हैं। सवाल उठता है कि कश्मीर क्या कभी अपनी रौ में वापस लौटेगा। भारत के लिए यह बड़ा सवाल है। अगर हम पंजाब में आतंकवाद को समूल नष्ट कर सकते हैं तो कश्मीर में क्यों नहीं? यह हमारी सत्ता और सरकारों के लिए आत्म विश्लेषण का विषय है। हम सर्जिकल स्ट्राइक की घुड़की देकर आतंकवाद से मुकाबला नहीं कर सकते हैं। हमें सियासी नफे-नुकसान को किनारे रख कर कश्मीर पर निर्णायक फैसले और दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाने की जरूरत है। आतंकवाद पर पाकिस्तान को कब तक करते रहेंगे यह जानते हुए भी कि वह अपनी आदत से बाज आने वाला नहीं।
कश्मीर में आतंकवाद की लड़ाई में कब तक हमारे सैनिक शहीद होते रहेंगे। आतंकवाद के मसले को लेकर अगर पाकिस्तान हमारे लिए चुनौती है तो उसके खिलाफ हमें निर्णय लेने की आवश्यकता है। घाटी में आतंकवाद का फन हमें किसी भी तरीके से कुछ चलना होगा जिस तरह हमने पंजाब में कुचला। घाटी में हिंदुओं की हत्या पर कश्मीर के राजनीतिक दल और संगठन चुप्पी साधे हैं। अतिवाद, कश्मीरियत और उसकी संस्कृति एवं सभ्यता को नंगा कर रहा है। आम कश्मीरी आवाम को इसके लिए लामबंद होना पड़ेगा। आम कश्मीरियों के बीच जो आतंकवादी पनाह बनाए हुए हैं उस अड्डे को खत्म करना होगा।
कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग क्यों? पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने एक बेहद अहम सवाल उठाया है। उन्होंने साफ तौर से इशारा किया है कि दक्षिण एशिया में ‘इस्लामिक एजेंडा’ काम कर रहा है। कश्मीर से लेकर बांग्लादेश तक हिंदुओं की हत्या की जा रही है। निश्चित रूप से यह अहम सवाल है। कश्मीर में गैर इस्लामिक धर्म के लोगों को निशाना क्यों बनाया जा रहा है। आतंकवादी, हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों की हत्याएं क्यों कर रहे हैं। चरमपंथी इस नीति से पूरी दुनिया में इस्लाम और आम कश्मीरी मुसलमानों को खुश करना चाहते हैं। उन्हें संदेश देना चाहते हैं कि हमारी लड़ाई आम कश्मीरी नागरिकों के खिलाफ नहीं, लेकिन हम यहां किसी गैर अल्पसंख्यक समुदायक की दखल बर्दाश्त नहीं कर सकते।
कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग क्यों? बांग्लादेश में भी नवरात्र के दौरान पूजा पंडालों पर हमले किए गए। हिंदू मंदिरों को निशाना बनाया गया। इस्कॉन टेंपल में आतंकवादियों ने हमला कर दिया। जिसकी वजह से एक व्यक्ति की मौत हो गई और 200 से अधिक लोग घायल हो गए। जिस बांग्लादेश को कभी भारत ने पाकिस्तान से अलग कर उसे पाकिस्तान के दमन से आजादी दिलाई आज वहीं भारत के खिलाफ खड़ा दिख रहा है। बांग्लादेश में हिंदू धार्मिक स्थलों और हिंदुओं की हत्या साफ तौर पर जाहिर करती है कि वहां बांग्लादेश भी हिंदुत्व और हिंदुओं के खिलाफ चरमपंथ की जमीन मजबूत हो रही है।
कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग क्यों? कश्मीर में हिंदू अल्पसंख्यकों पर आतंकी हमले पूर्व नियोजित है। आतंकवादियों के दिमाग में है कि हिंदू अल्पसंख्यकों एवं सिखों की हत्या कर उन्हें बड़ा फायदा होने वाला है। क्योंकि ‘टारगेट किलिंग्स’ से घाटी में एक बार फिर दहशत और भय की वजह से पलायन शुरू हो सकता है। यह पलायन ठीक उसी तरह होगा जिस तरह सालों पूर्व कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोडऩा पड़ा था। कश्मीर में आतंकवाद से निपटना आसान नहीं है। क्योंकि वहां तालिबान और पाकिस्तान का एजेंडा चलता है। आम कश्मीरी जो कश्मीरियत में विश्वास करते हैं उस संस्कृत में रचे बसे हैं वह कत्लेआम नहीं चाहते हैं।
कश्मीर के अलगाववादी संगठन, राजनीतिक दल और राजनेता धारा 370 के खात्मे से खुश नहीं है। क्योंकि उनकी अघोषित आजादी छीन गई है। घाटी में भारतीय फौजों की कदमताल को वे पसंद नहीं करते हैं। खुलेआम पाकिस्तान का समर्थन करते हैं और कश्मीर को भारत से अलग मानते हैं। सुरक्षाबलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती आम कश्मीरियों के बीच रहने वाले आतंकवादी हैं। जब तक कश्मीर का आम नागरिक आतंकवाद के खिलाफ उठ खड़ा नहीं होगा तब तक घाटी से आतंकवाद का सफाया होना मुश्किल है। क्योंकि कश्मीर में पाकिस्तान के साथ दुनिया की अतिवादी ताकतें काम कर रहीं हैं। कश्मीर के जरिए भारत में वह अपना एजेंडा लागू करना चाहती हैं।
कश्मीर घाटी में तीन दशक से आतंकवाद फल फूल रहा है। आतंकवाद के समूल सफाए के लिए भारत की फौज और सरकारों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार घाटी में अब तक 14000 आम नागरिकों की हत्या हुई है। 5300 से अधिक भारतीय फौज के जवान शहीद हुए हैं। 70,000 से अधिक आतंकी हमले हुए हैं। हमारी सेना ने आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देते हुए 2500 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया है। साल 2021 से अब तक 30 कश्मीरी नागरिकों की हत्या हुई है। पाकिस्तान आतंकवाद के जरिए कश्मीर में इस्लामिक एजेंडा लागू करना चाहता है। वह हिंदुओं व सिखों की हत्या कर कश्मीरीयत को खत्म करना चाहता है।कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति मानती है कि कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर अभी बहुत कुछ नहीं हो पा रहा है। कश्मीरी पंडितों को अभी तक सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई है। 90 के दशक में सरकारी नौकरियों में कश्मीरी पंडितों का बोलबाला होता था। 60 से 70 फीसदी कश्मीरी पंडित सरकारी नौकरियों में हुआ करते थे।
कश्मीर में आतंकवादी हिंदुओं की शिनाख्त आधार कार्ड से कर रहे हैं। अक्टूबर के पहले सप्ताह में आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडित और हिन्दू चिकित्सक बिंद्रु की हत्या कर दिया। जबकि बिंद्रु आम कश्मीरियों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं थे। उन्होंने कभी हिन्दू और मुसलमान में फर्क नहीं किया। वह चुनौतियों को सामाना करते हुए कश्मीर कभी नहीं छोड़ा। प्रवासी मजदूरों की भी हत्या की गई। उस महिला प्रिंसिपल की भी हत्या कर दी गई जिसने एक मुसलमान बच्चे को शिक्षा के लिए गोद लिया था। कश्मीर से अब तक लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडित पलायन कर चुके हैं। आज भी वहां 800 से अधिक कश्मीरी हिंदू का परिवार रहता है। एक आंकड़े के अनुसार 1990 से लेकर अब तक 730 से अधिक कश्मीरी पंडितों की हत्या की जा चुकी है। घाटी में सेना और हिंदुओं का कत्लेआम कर सीधे हिंदुत्व को चुनौती देने की कोशिश है। अब वक्त आ गया है जब आतंकवाद पर निर्णायक फैसले की जरूरत है।

 

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महर्षि बाल्मीकि का विश्व विख्यात रामायण और भ्रातृत्व स्नेह

( 20 अक्तूबर बाल्मीकि जयंती विषेश )

*ढाई हजार वर्ष पूर्व भारतीय भूमि पर एक

अद्भुत घटना के रूप में महर्षि वाल्मीकि का आविर्भाव हुआ

*महर्षि वाल्मीकि प्रारंभ में चोरी का कार्य करते थे

जिनका नाम रत्नाकर था 

*किसी समय उन्हें नारदमुनि से भेट हुई

*उन्होंने रत्नाकर से पूछा कि यह चोरी का कार्य क्यों करते हो?

*रत्नाकर ने उत्तर दिया हैं कि मैं इसीसे अपने परिवार

का पालन- पोषण करता हूं

डा. संजय कुमार
आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व भारतीय भूमि पर एक अद्भुत घटना के रूप में महर्षि वाल्मीकि का आविर्भाव हुआ जिन्होंने आदिकाव्य वाल्मीकि रामायण की रचना की। यह आदिकाव्य रामचरित के रूप में केवल प्रसिद्ध ही नहीं है अपितु यह आचरण, व्यवहार, जीवन- दर्शन ,कर्म ,त्याग ,प्रेम ,समर्पण और वैराग्य का ऐसा समुच्चय प्रस्तुत करता है जिसके कारण उसे भारतीय संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। कथा प्रसिद्ध है कि व्याध के बाण से विधि हुए क्रौंच पक्षी के लिए विलाप करने वाली क्रोंची के करुण- क्रंदन को सुनकर महर्षि वाल्मीकि के मुख से अकस्मात ही प्रथम लौकिक छंद निकल पड़ा था- मा निषाद प्रतिष्ठास्त्वमगम:शाश्वती:समा:। यत क्रौंच मिथुनादेकमवधी: काममोहितम। अर्थात हे निषाद तुमने काम से मोहित इस क्रौंच पक्षी को मारा है अत: सदा- सदा के लिए प्रतिष्ठा को मत प्राप्त होओ। महर्षि वाल्मीकि के हृदय में स्थित शोक ही श्लोक रूप में परिणित होकर चतुर्विंशति साहस्री संहिता से युक्त बाल्मीकीय रामायण नाम से प्रसिद्ध हो गया। चतुर्विंशति साहस्री संहिता का अभिप्राय चौबीस हजार श्लोक से है7यह संख्या उतने ही हजार है जितने गायत्री मंत्र में अक्षर हैं। प्रत्येक हजार प्रथम गायत्री मंत्र के अक्षर से ही प्रारंभ होता है7 यद्यपि महर्षि वाल्मीकि के जीवन परिचय के विषय में बहुत कुछ जानकारी प्राप्त नहीं होती है। कहीं उन्हें बल्मीक( दीमक )के कारण बाल्मीकि नाम से अभिहित किया गया है तो कहीं जन- सामान्य से जुड़ा एक व्यक्ति बताया गया है। एक किंबदंती के अनुसार यह भी कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि प्रारंभ में चोरी का कार्य करते थे जिनका नाम रत्नाकर था उस चोरी के कार्य से ही रत्नाकर अपने परिवार का भरण -पोषण करते थे।किसी समय उन्हें नारदमुनि से भेट हुई। उन्होंने रत्नाकर से पूछा कि यह चोरी का कार्य क्यों करते हो? तब रत्नाकर ने उत्तर दिया हैं कि मैं इसीसे अपने परिवार का पालन- पोषण करता हूं। पुन: नारद ने कहा कि इससे पाप का भागी बनना पड़ेगा। इस पाप कर्म से अर्जित धन से जिस परिवार को पालते हो क्या वे भी इसके भागी बनेगें ? इस प्रश्न पर बाल्मीकि मौन हो जाते हैं और पूछने के लिए अपने परिवार के पास जाते हैं। परिवार के लोग सीधे-सीधे कहते हैं कि जो करेगा वह भरेगा। यानी पाप कर्म तो आप कर रहे हैं तो पाप का फल भी आप ही भोगेगें। परिवार जनों की यह बात सुनकर महर्षि वाल्मीकि को बहुत ही कष्ट हुआ और वे महर्षि नारद के शरण में आ गए। महर्षि नारद ने उन्हें राम-राम का जांप मंत्र दिया और इसी राम नाम से वे रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बन गये। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह भी माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नवे पुत्र वरूण और उनकी पत्नी चर्षणी के कोख से हुआ है। इन्हें भृगु का छोटा भाई भी कहा जाता है। अश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन इनका जन्म हुआ था। इसलिए आश्विन पूर्णिमा को बाल्मिकीय जयंती के मनाया जाता है। इस दिन आकाश से अमृत की वर्षा होती है। जिसका भरतीय परम्परा में विशेष महत्व माना जाता है। इस तरह महर्षि बाल्मीकि कोई भी रहे हों यह अलग विषय है। लेकिन जो उनका अवदान है , उससे संपूर्ण भारत की प्रतिष्ठा विश्व के आकाश मंडल में व्याप्त हो गई है। इनकी कृति बाल्मीकीयरामायण को भारत का गौरव ग्रंथ कहा जाता है और महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि। बल्मिकीयरामायण के राम से ही प्रभावित होकर विश्व की अनेक भाषाओं में रामचरित लिखा गया।संपूर्ण विश्व वाड्मय का प्रेरणा स्रोत बाल्मीकि रामायण को माना जाता है। क्योंकि यहां जो समाज दर्शन का प्रतिबिंबन किया गया है वह अन्यत्र दुर्लभ है। सभी साहित्य इसके त्याग, पारिवारिक संबंध ,सामाजिक संबंध, समर्पण और कर्तव्य से प्रभावित हैं। महर्षि बाल्मीकि ने ऐसे रामचरित का निर्माण किया है जिनका नाम सुनते ही प्रजा वत्सल राजा, आज्ञाकारी पुत्र ,स्नेही भ्राता, विपद ग्रस्त मित्रों के बंधु का चित्र हमारे मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं। वहीं जनकनंदिनी सीता का नाम आते ही पतिव्रता स्त्री की ऐसी मूर्ति उपस्थित हो जाती है जो युगों युगों तक अपने आदर्शमय जीवन से सबके हृदय को रंजीत करती रहेगी। यदि पिता के स्नेह को देखा जाए तो वह पुत्र वियोग में अंतिम परिणति तक पहुंचता है। माता सदैव पुत्र का उपकार ही करती है और पुत्र का लाख अपकार करने वाली माँ को भी सदैव पूजनीय, वन्दनीय रूप में ही स्वीकार किया गया है। इस रामायण को मित्रता की कसौटी के रूप में भी देखा जाता है। इस तरह यह एक व्यावहारिक शास्त्र के रूप में सामने आता है।
मानव जीवन में भ्रातृत्वभाव का यहां अद्भुत स्वरूप दिखलाया गया है।यहां राम के बिना लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न या लक्ष्मण के बिना राम या भरत के बिना राम आदिका जीवन नगण्य है।यद्यपि बाली सुग्रीव को अत्यधिक प्रताडि़त किया हुआ रहता है फिर भी जब राम बाली का वध करते हैं तब सुग्रीव का भ्रातृत्व वियोग पाषाण हृदय को भी द्रवित करने वाला दृष्टिगोचर होता है।कुंभकरण की मृत्यु पर रावण का क्रंदन और रावण की मृत्यु पर विभीषण का रुदन भ्रातृ प्रेम के उत्कट निदर्शन के रूप में सामने आया हुआ है। इतना ही नहीं महर्षि वाल्मीकि ने तो पशु-पक्षियों के भ्रातृत्वभाव स्नेह को भी अपने रामायण में अंकित किया है। यहाँ संपाति और जटायु के मध्य भ्रातृत्व प्रेम को देखा जाए तो वह बहुत महत्वपूर्ण है। जब कपियों के मुख से जटायु के विनाश की बात संपाति सुनता है तो वह दु:खी होकर कहता है यह कौन है जो मेरे प्राणों से भी बढ़कर प्रिय मेरे भाई जटायु के वध की बात कर रहा है। यह बात सुनकर मेरा ह्रदय कंपित हो रहा है। संपाति जटायु के गुणों को व्यक्त करता हुआ कहता है कि जटायु मुझसे छोटा,गुणज्ञ और पराक्रमी है। उसके बिना मैं जीवन धारण नहीं कर सकूंगा।रावण जैसा घमंडी भी अपने भाइयों से अगाध स्नेह करता था। कुंभकरण के मारे जाने पर वह विलाप करता हुआ कहता है कि अब मुझे राज्य से कोई प्रयोजन नहीं है।सीता को लेकर भी मैं अब क्या करूंगा। कुंभकरण के बिना मैं एक क्षण थी जीवित नहीं रहना चाहता हूँ। इस तरह अद्भुत रूप में महर्षि बाल्मीकि अपने आदि काव्य बाल्मीकि रामायण में भ्रातृत्व स्नेह का वर्णन किये हैं। उनके भ्रातृत्व प्रेम के विषय में यह श्लोक अत्यंत प्रसिद्ध है जिसमे वे कहते हैं-देशे देशे कलास्त्राणी देशे देशे च बांधवा:। तं तु देशे न पश्यामि यत्र भ्राता सहोदरा। अर्थात स्थान- स्थान पर स्त्रियां मिल सकती है तथा बंदुजन भी प्राप्त हो सकते हैं परंतु मैं ऐसा कोई देश ,कोई स्थान नहीं देखता हूं जहां सहोदर भ्राता उन्हें इस जीवन में मिल सके। इस तरह से हम देखते हैं की यह बाल्मीकि रामायण आदि काव्य भारतीय संस्कृति, सभ्यता, जीवन मूल्य, दर्शन को प्रस्तुत करते हुए भ्रातृत्व स्नेह का अद्भुत रूप उपस्थित किया है। ऐसा भ्रातृत्व स्नेह संपूर्ण वांग्मय मैं दुर्लभ है।यह बाल्मीकीयरामायण मनुष्य के जीवन में आने वाली विभिन्न समस्याओं का भी सहज समाधान प्रस्तुत करने के साथ यह राजधर्म, लोकधर्म, पर्यावरण,शिक्षा, स्वस्थ्य आदि से संबंधित सर्वत्र लोक कल्याण का विधान करता है। ऐसे आदि काव्य के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि की जयंती है पर हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं।
(लेखक सहायक आचार्य-संस्कृत विभाग डाक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय ,सागर ,म प्र हैं)

रक्षा निर्माण को मिली नयी उड़ान

म्यांमार से संवाद बनाये रखने की जरूरत

नाले में गिरते लोग कुम्भकर्णी नीद में रांची नगर निगम अधिकारी

श्री राजीव लोचन बक्शी पुनः सुचना एवं जनसंपर्क विभाग के निदेशक बने

रांची, श्री राजीव लोचन बक्शी पुनः सुचना एवं जनसंपर्क विभाग झारखण्ड  का निदेशक बनाया गया है। इसके पहले वे मुख्य. वन संरक्षक-सह-परियोजना निदेशक, परियोजना समन्वय ईकाई, झारखण्ड सहभागी वन प्रबन्धन परियोजना, रॉची व सेवा वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखण्ड, राँची  के पद पर पदस्थापित थे।

 

शारदीय नवरात्र पर रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने राज्यवासियों को विजयादशमी की बधाई और शुभकामनाएं दी है

नाले में गिरते लोग कुम्भकर्णी नीद में रांची नगर निगम अधिकारी

अलाई बलाई सामाजिक एकता और सद्भावना को देता है बढ़ावा : पीएम मोदी

*एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना को मजबूत करते हुए अलाई बलाई एक बेहतरीन मंच

को प्रस्तुत करता है

*इस उत्सव ने तेलंगाना के लोगों में त्यौहार के जश्न की भावना को और बढ़ा दिया है

*अलाई बलाई समाज में एकता और सद्भावना को बढ़ावा देती है

*यह उत्सव समावेशी भावना के साथ-साथ सामाजिक सद्भभावना की दिशा में अपना

योगदान देगा

हैदराबाद, (आरएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद के नेकलेस रोड पर जल विहार में आयोजित अलाई बलाई समारोह के शुभ अवसर पर सभी को हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना को मजबूत करते हुए अलाई बलाई एक बेहतरीन मंच को प्रस्तुत करता है, जिसके माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों के लोक कलाकार अपनी कला को प्रस्तुत कर सकेंगे।
हरियाणा के राज्यपाल बण्डारु दत्तात्रेय को संबोधित एक पत्र में श्री मोदी ने कहा कि हैदराबाद में आयोजित अलाई बलाई समारोह के बारे में जानकर खुशी हो रही है। विजयादशमी के तुरंत बाद मनाए जा रहे इस उत्सव ने तेलंगाना के लोगों में त्यौहार के जश्न की भावना को और बढ़ा दिया है। यह हमारी अदम्य इच्छाशक्ति का भी सबूत है।
उन्होंने कहा कि हमारी समृद्ध संस्कृति के एक हिस्से के रूप में अलाई बलाई समाज में एकता और सद्भावना को बढ़ावा देती है। इस तरह के खुशी के अवसर सभी बाधाओं को तोड़ते हुए लोगों को साथ में लाते हैं। यह अवसर सभी को एक मौका देता है कि वे तेलंगाना की संस्कृति, परंपराओं और व्यंजनों के बारे में जाने।
प्रधानमंत्री ने लिखा, मुझे यकीन है कि यह उत्सव समावेशी भावना के साथ-साथ सामाजिक सद्भभावना की दिशा में अपना योगदान देगा। एकता और अच्छाई की भावना हर किसी के दिल में हो। तेलंगाना के राज्यपाल डॉ. तमिलिसाई सौंदर्यराजन ने इस सांस्कृतिक उत्सव का उद्घाटन किया, जिसे श्री दत्तात्रेय की बेटी सुश्री बंडारू विजयलक्ष्मी द्वारा दशहरा मिलन के रूप में आयोजित किया गया है।
अलाई बलाई दशहरे से पहले नवरात्रि के जश्न के रूप में आयोजित किया जाने वाला एक सांस्कृतिक कार्यक्रम है। यह तेलंगाना में रहने वाले लोगों के जीवन को दर्शाता है। इस त्योहार का मकसद लोगों में भाईचारे की भावना को पैदा करना है। इसकी शुरुआत हरियाणा के राज्यपाल, पूर्व सांसद एवं केंद्रीय मंत्री बण्डारु दत्तात्रेय ने निजाम कॉलेज में की थी। इसे हर साल हैदराबाद में दशहरे के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।इसमें समाज के सभी वर्गों क लोग और हर प्रांत के नेता भाग लेते हैं।

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फिर महंगा हुआ पेट्रोल, डीजल

*वाहन ईंधन के दाम विमान ईंधन से 30 प्रतिशत ज्यादा!

*करीब एक दर्जन राज्यों में डीजल शतक को पार कर गया है

नईदिल्ली, वाहन ईंधन कीमतों में रविवार को फिर बढ़ोतरी हुई। पेट्रोल और डीजल दोनों के दाम 35-35 पैसे प्रति लीटर और बढ़ाए गए हैं। इससे अब वाहन ईंधन के दाम विमान ईंधन (एटीएफ) से एक-तिहाई ज्यादा हो गए हैं। साथ ही देशभर में पेट्रोल और डीजल के दाम अब नयी ऊंचाई पर पहुंच गए हैं। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार चौथे दिन 35 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि हुई है।सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलयम विपणन कंपनियों द्वारा जारी मूल्य अधिसूचना के अनुसार, पेट्रोल और डीजल दोनों की कीमतों में 35 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की गई है। दिल्ली में अब पेट्रोल 105.84 रुपये प्रति लीटर के अपने सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुंच गया है। मुंबई में यह अब 111.77 रुपये प्रति लीटर हो गया है। मुंबई में डीजल 102.52 रुपये प्रति लीटर और दिल्ली में 94.57 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया है। इस बढ़ोतरी के साथ सभी राज्यों की राजधानियों में पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर के पार निकल गया है। वहीं करीब एक दर्जन राज्यों में डीजल शतक को पार कर गया है। अब बेंगलुरु, दमन और सिलवासा में डीजल 100 रुपये प्रति लीटर के पार हो गया है। इससे अब पेट्रोल का दाम एटीएफ से 33 प्रतिशत अधिक हो गया है। दिल्ली में एटीएफ 79,020.16 रुपये प्रति किलोलीटर यानी 79 रुपये प्रति लीटर है। राजस्थान के गंगानगर में पेट्रोल 117.86 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया है। वहां डीजल 105.95 रुपये प्रति लीटर हो गया है। सितंबर के आखिरी सप्ताह में वाहन ईंधन कीमतों में तीन सप्ताह के बाद संशोधन का सिलसिला फिर शुरू हुआ था। उसके बाद से यह पेट्रोल में 16वीं वृद्धि है। वहीं इस दौरान डीजल के दाम 19 बार बढ़ाए गए हैं।

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कैमरे का सही ढंग से देखभालऔर स्क्रैच से बचाए रखने के लिए ये बेहतरीन तरीके

*कैमरे को किसी बैग या बॉक्स में रखें

*कैमरे को नमी और स्क्रैच से बचाने के लिए फोम बॉक्स का इस्तेमाल करें

*कैमरे को ठंडे या रूम टेम्परेचर वाले कमरे में सुरक्षित जगह पर रखें

*लेंस की सफाई करते समय हाथों में ग्लव्स जरूर पहनें

अगर कैमरे की सही ढंग से देखभाल न की जाए तो इस पर फंगस लगने और इसके लेंस पर स्क्रैच पडऩे का खतरा रहता है। फंगस नमी की वजह से होती, वहीं रखरखाव सही से नहीं होने की वजह से कैमरे के लेंस पर स्क्रैच पड़ जाते हैं। इसलिए इसकी अतिरिक्त देखभाल करें। आइए जानते हैं कि आप अपने कैमरे को फंगस और स्क्रैच से कैसे बचाए रख सकते हैं।

फोम बॉक्स का करें इस्तेमाल

अक्सर लोग ट्रैवलिंग के दौरान कैमरे को अपने पास रखना पसंद करते हैं, लेकिन जब उनके आराम का समय होता है तो वे किसी अलमारी या फिर कैबिनेट में कैमरे को ऐसे ही रख देते हैं। इससे कैमरे पर फंगस या स्क्रैच लग सकती है। इसलिए बहुत जरूरी है कि आप इसे ऐसी जगह रखें जहां नमी न हो। कैमरे को नमी और स्क्रैच से बचाने के लिए फोम बॉक्स का इस्तेमाल करें।

कैमरे के बैग में रखें सिलिका जेल

जब आप इस्तेमाल के बाद अपने कैमरे को किसी बैग या बॉक्स में रखें तो इसके साथ सिलिका जेल भी जरूर रखें। सिलिका जेल नमी को सोखने में मदद करता है। हालांकि ध्यान रखें कि सिलिका जेल रखने के बाद कैमरे के बैग या बॉक्स के अंदर हवा या नमी नहीं पहुंचनी चाहिए। कोशिश करें कि बैग या बॉक्स की चैन और ढक्कन पूरी तरह से बंद हो।

ठंडी जगह पर रखें

कैमरे का लेंस बहुत ज्यादा नाजुक होता है, इसलिए इस पर जल्द स्क्रैच पडऩे की संभावना अधिक होती है। हालांकि अगर आप अपने कैमरे को ऐसे नुकसान से बचाना चाहते हैं तो इसे ठंडे या रूम टेम्परेचर वाले कमरे में सुरक्षित जगह पर रखें। इसके अलावा अगर आप कैमरे को बैग में रखते हैं तो उस बैग को समय-समय पर साफ जरूर करें। कई बार बैग भी कैमरे को नुकसान पहुंचाने का कारण बन सकता है।

इन बातों का रखें खास ध्यान

जब भी आप कैमरे का लेंस साफ करें तो उस पर जमी धूल-मिट्टी को साफ करने के लिए फूंक न मारें क्योंकि फूंक के साथ निकली लार लेंस को नुकसान पहुंचा सकती है। लेंस की सफाई के दौरान अपने पास हमेशा लेंस क्लीनिंग लिक्विड, क्लीनिंग ब्रश और क्लीनिंग टिश्यू जरूर रखें। लेंस की सफाई करते समय हाथों में ग्लव्स जरूर पहनें। लेंस को बैग में माइक्रोफाइबर कपड़े से साफ करने के बाद ही रखें।

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म्यांमार से संवाद बनाये रखने की जरूरत

– जी. पार्थसारथी
म्यांमार से संवाद बनाये रखने की जरूरत.हालिया वक्त में दुनिया के ध्यान का केंद्र ज्यादातर अफगानिस्तान में तालिबान शासन द्वारा महिलाओं पर थोपे गए कड़े और क्रूर प्रतिबंधों से उत्पन्न मानवाधिकार हनन पर अधिक रहा है। जिस तरह बाइडेन प्रशासन ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी की बेढंगी योजना बनाई और क्रियान्वित किया है, उससे अमेरिकियों के अंदर खासा रोष है। यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि अमेरिकी सैनिकों के पलायन से दुनिया ने जो अफरातफरी मचते देखी और जिस बेतरतीब तरीके से इसको अंजाम दिया गया, वह सबको चैंकाने और झटका देने वाला रहा है। निकलते समय जैसी जिल्लत अमेरिकी फौज और नागरिकों को झेलनी पड़ी है, उससे अमेरिकी जनता खासतौर पर खफा है। पाकिस्तान के साथ गलबहियां डालने वाली नीति, वह भी उस वक्त, जब आईएसआई तालिबान को सुरक्षित पनाहगारें, हथियार और प्रशिक्षण मुहैया करवा रही हो, इससे कभी न खत्म होने वाला संकट बन चुका है।
अब यह ज्यादातर महसूस किया जा रहा है कि अफगानिस्तान से जल्दबाजी में हुए सैन्य पलायन के पीछे राष्ट्रपति बाइडेन को मिली गलत सलाह है। अमेरिकी लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि अफगानिस्तान पर चढ़ाई, जिसकी कीमत अमेरिकी खजाने को 8 ट्रिलियन डॉलर और कुल मिलाकर लगभग 9०० जानों से चुकानी पड़ी है, उसका अंत क्या इस तरह जलील होकर करना बनता था। जले पर नमक तब और हुआ, जब आईएसआई प्रमुख ने काबुल पहुंचकर अपेक्षाकृत नर्म मुल्ला बरादर के नेतृत्व वाली सरकार में आईएसआई के प्रिय, किंतु कट्टरवादी, हक्कानी परिवार का प्रभुत्व बड़ी आसानी से बनवा डाला। इतिहास में श्दहशत के खिलाफ दुनिया की जंग्य के नाम पर अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज की आमद को अब कूटनीतिक, सैन्य और आर्थिक रूप से एक गलत सलाह पर किए गए दुस्साहस की तरह देखा जाएगा।
वाशिंगटन में संपन्न हुई क्वाड शिखर वार्ता, जो कि अमेरिकी पलायन के बाद जल्द हुई थी, उसमें यूं तो चर्चा का मुख्य विषय उत्तरोतर दबंग होते चीन से पैदा होने वाली चुनौतियों के मद्देनजर हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में आवाजाही को मुक्त, खुला और नियम-प्रचालित बनाने पर था। लेकिन इसमें म्यांमार को लेकर हुई चर्चा भी गौरतलब है। क्वाड ने कहा श्हम म्यांमार में हिंसा बंद करने का आह्वान जारी रखे हुए हैं, पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहाल किया जाए, साथ ही आसियान संगठन के श्पांच सूत्रीय आम समहति वाले समझौता उपायों्य पर अमल किया जाए्य। यह पहली मर्तबा है कि भारत ने अपने किसी पड़ोसी के मानवाधिकार हनन पर विशेष रूप से नाम लेकर की गई ताडना पर अन्य मुल्कों, यहां तक कि अमेरिका का भी, साथ दिया हो।
म्यांमार की भारत के साथ 1640 किमी लंबी थलीय सीमा रेखा है, जो हमारे विद्रोह प्रभावित राज्योंकृ मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश से लगती है। सीमापारीय विद्रोहियों से निपटने में भारत और म्यांमार की सेना के बीच सहयोग दोनों देशों के परस्पर संबंधों का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है। दूसरी ओर, चीन ने म्यांमार से बरतने में श्इनाम अथवा दंड्य की नीति अपना रखी है, गोया वह सेवक हो।
पश्चिमी ताकतों द्वारा संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार को लेकर पेश किए जाने वाले प्रस्तावों पर चीन उसकी ढाल बन जाता है लेकिन बाकी जगह उसके प्रति रवैया मनमानी और दोहन करने वाला है। इसका सीधा संबंध म्यांमार के विद्रोही संगठनों से उसके गहरे नाते से है, इसमें विशेष रूप से शान प्रांत के अत्यधिक हथियारों से लैस यूनाइटेड वास स्टेट आर्मी और अन्य सशस्त्र विद्रोही गुट हैं। म्यांमार पर काबिज सैनिक शासन के खिलाफ मुखालफत लगातार बढ़ रही है, लेकिन चीन पर निर्भरता इस कदर है कि अनेकानेक द्विपक्षीय और राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों पर ज्यादा चीन की चलती है। इसी बीच चीन को म्यांमार से होकर गुजरती अपनी 800 किमी लंबी तेल एवं गैस आपूर्ति पाइप लाइन, जिसका एक छोर बंगाल की खाड़ी में क्याकपऊ बंदरगाह स्थित टर्मिनल में है तो दूजा चीन के युन्नान प्रांत तक है, उसकी विशेष सुरक्षा सुनिश्चित करने को म्यांमार का साथ चाहिए। म्यांमार की सेना को फिलवक्त जितना विरोध अब सहना पड़ा रह है वह उम्मीद से परे है और सौदेबाजी से शांत करना कठिन है।
म्यांमार में जारी हिंसा को लेकर विश्वभर में रंज है, वहीं पड़ोसी आसियान संगठन के देश फौजी निजाम पर लगातार दबाव बढ़ा रहे हैं। आसियान मुल्कों के राष्ट्राध्यक्षों ने श्पांच सूत्रीय आम सहमति वाले समझौता उपाय्य वाला फार्मूला तैयार किया है। इसके तहत हिंसा पर तुरंत रोक, सभी पक्षों को अधिकतम संयम बरतना पहला काम है। साथ ही, नागरिक हित में, शांतिपूर्ण हल हेतु संबंधित पक्षों में रचनात्मक संवाद की शुरुआत करना है। ब्रुनेई के अतिरिक्त विदेश मंत्री एरिवान यूसुफ को म्यामांर मामलों पर आसियान का विशेष दूत नियुक्त किया गया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि टीएस कृष्णमूर्ति ने इसी बीच म्यामांर सरकार से संयम बरतने और आंग सान सू की समेत सभी नजरबंद राजनीतिक कैदियों को रिहा करने की मांग की है। अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने भी इन प्रयासों का स्वागत किया है, जिन्हें दुर्भाग्यवश फौजी शासकों ने रोक रखा है। इस दौरान म्यांमार ने आसियान के विशेष दूत द्वारा आन सान सू की को रिहा करने वाले सुझाव को खारिज कर दिया है।
म्यांमार के हालात जड़ता की ओर अग्रसर हैं, परिणामवश और अधिक जानें जाएंगी, भारत को सुनिश्चित करना होगा कि इन घटनाओं का असर म्यांमार के साथ लगते हमारे इलाकों की शांति और स्थायित्व पर न होने पाए। म्यांमार के सैनिक शासकों द्वारा अपनाए अडियल रुख से आसियान संगठन में गुस्सा और मायूसी है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में म्यांमार के सैनिक शासन पर दंडात्मक उपाय लागू करने वाले प्रस्तावों का न तो चीन और न ही रूस ने समर्थन किया है। इस बीच, यह सुनिश्चित करने को कि म्यांमार में बने हालातों से हमारे उत्तर-पूरबी राज्यों में बड़े पैमाने पर शरणार्थियों की आमद न बनने पाए, भारत को म्यांमार की सरकार से निकट संवाद बनाए रखना होगा।
अगरचे म्यांमार से भागे शरणार्थियों को शरण देनी भी पड़े, तो पूरे मामले से बड़ी संवेदनशीलता से बरतने की जरूरत है। यह बात दिमाग में बनाए रखनी होगी कि म्यांमार भारत के विद्रोहियों के खिलाफ अभियानों में बहुत सहयोग करता आया है लिहाजा भारत की उत्तर-पूरबी सीमा पर शांति और सुरक्षा बनाए रखने को म्यांमार सेना के साथ विमर्श कायम रखना जरूरी है।
आसियान संगठन के राष्ट्राध्यक्ष इस बात को लेकर ऊहापोह में हैं कि जिस तरह उनके शांति प्रस्तावों को म्यांमार ने खारिज किया है और इस राह पर कोई प्रगति नहीं हो पाई, उसके चलते इस महीने के अंत में होने वाले वार्षिक शिखर सम्मेलन में सैनिक शासक को आमंत्रित किया जाए या नहीं। हाल ही में विशेष दूत एरिवान यूसुफ ने एक पत्रकार वार्ता में कहा था कि सैन्य पंचाट ने पहले आसियान के सुझाए पांच सूत्रीय आम सहमति समझौता प्रपत्र पर हामी भरकर अप्रैल माह से अमल करना माना था, लेकिन फिर पीछे हट गया, इसको श्वादे से मुकरना्य माना जाएगा। भारत को आसियान के विशेष दूत और म्यांमार सरकार के साथ निकट संवाद कायम रखते हुए क्षेत्रीय आम सहमति बनाने वाले उपायों पर काम जारी रखना होगा। हमारे पूरबी पड़ोस में स्थायित्व एवं शांति कायम रहे, इसलिए यह करना जरूरी है।

लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने राज्यवासियों को विजयादशमी की बधाई और शुभकामनाएं दी है

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रक्षा निर्माण को मिली नयी उड़ान

* 7 नई कंपनियों का उदय

*देह शिव बर मोहे ईहे, शुभ कर्मन ते कबहूं न डरूं

*रक्षा निर्माण को मिली नयी उड़ान

*रक्षा में आत्मनिर्भरता, भारत की रक्षा उत्पादन नीति की आधारशिला रही है

*इन नई कंपनियों में से अधिकांश के पास पर्याप्त कार्य आदेश होंगे

*ओएफबी के सभी लंबित कार्य आदेश,

जिनका मूल्य लगभग 65,000 करोड़ रुपये से अधिक है

– राजनाथ सिंह
किसी भी बड़े सुधार को शुरू करने और पूरा करने के लिए बहुत धैर्य, प्रतिबद्धता तथा संकल्प की आवश्यकता होती है। हितधारकों की प्रतिस्पर्धी आकांक्षाओं को पूरा करते हुए यथास्थिति में बदलाव के लिए सूक्ष्म संतुलित प्रयास की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल मार्गदर्शन में, हमारी सरकार ऐसे मजबूत निर्णय लेने और महत्वपूर्ण सुधार करने में कभी नहीं हिचकिचाती है, जो लाभदायक होने के साथ-साथ राष्ट्र के दीर्घकालिक हित में हों।
रक्षा में आत्मनिर्भरता, भारत की रक्षा उत्पादन नीति की आधारशिला रही है। सरकार द्वारा हाल ही में आत्मनिर्भर भारत के आह्वान से इस लक्ष्य की प्राप्ति को और गति मिली है। भारतीय रक्षा उद्योग, मुख्य रूप से सशस्त्र बलों की जरूरतों को पूरा करता है और इसने बाजार तथा विभिन्न उत्पादों के साथ स्वयं को भी विकसित किया है। निर्यात में हाल की सफलताओं से प्रेरित होकर, भारत एक उभरते हुए रक्षा विनिर्माण केंद्र के रूप में अपनी क्षमता के अनुरूप कार्य करने के लिए तैयार है। हमारा लक्ष्य सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से, निर्यात सहित बाजार तक पहुंच के साथ-साथ डिजाइन से लेकर उत्पादन तक में, भारत को रक्षा क्षेत्र के सन्दर्भ में दुनिया के शीर्ष देशों में स्थापित करना है।

2014 के बाद से, भारत सरकार ने रक्षा क्षेत्र में कई सुधार किये हैं, ताकि निर्यात, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और स्वदेशी उत्पादों की मांग को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए एक अनुकूल तंत्र तैयार किया जा सके। आयुध निर्माणी बोर्ड, रक्षा मंत्रालय के अधीन था, जिसे 100 प्रतिशत सरकारी स्वामित्व वाली 7 नई कॉर्पोरेट संस्थाओं में बदलने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया, ताकि कार्य स्वायत्तता व दक्षता को बढ़ाया जा सके और नई विकास क्षमता तथा नवाचार को शुरू किया जा सके। इस निर्णय को निश्चित रूप से इस श्रृंखला का सबसे महत्वपूर्ण सुधार माना जा सकता है।
आयुध निर्माण संयंत्रों का 200 से भी अधिक वर्षों का गौरवशाली इतिहास रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा में उनका बहुमूल्य योगदान रहा है। उनका बुनियादी ढांचा और कुशल मानव संसाधन देश की महत्वपूर्ण रणनीतिक संपत्ति हैं। हालांकि, पिछले कुछ दशकों में, सशस्त्र बलों द्वारा ओएफबी उत्पादों की उच्च लागत, असंगत गुणवत्ता और आपूर्ति में देरी से संबंधित चिंताएं व्यक्त की गयी हैं।
आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) की मौजूदा प्रणाली में कई खामियां थीं। आयुध निर्माणी बोर्ड के पास अपनी आयुध निर्माणियों (ओएफ) के भीतर सब कुछ उत्पादन करने की विरासत थी, जिसके परिणामस्वरूप आपूर्ति श्रृंखला प्रभावहीन थी और प्रतिस्पर्धी बनने तथा बाजार में नए अवसरों की खोज करने को लेकर प्रोत्साहन की कमी थी। आयुध निर्माणी बोर्ड द्वारा एक ही जगह विविध श्रेणी की वस्तुओं के उत्पादन में शामिल होने के कारण विशेषज्ञता का अभाव था।
सात नई कॉरपोरेट इकाइयां बनाने का यह निर्णय व्यापार प्रशासन के मॉडल में उभरने के लक्ष्य के अनुरूप है। यह नई संरचना इन कंपनियों को प्रतिस्पर्धी बनने और आयुध कारखानों को अधिकतम उपयोग के माध्यम से उत्पादक और लाभदायक परिसंपत्तियों के रूप में बदलने के लिए प्रोत्साहित करेगी; उत्पादों की विविधता के मामले में विशेषज्ञता को गहराई प्रदान करेगी; गुणवत्ता एवं लागत संबंधी दक्षता में सुधार करते हुए प्रतिस्पर्धा की भावना को बढ़ावा देगी और नवाचार एवं लक्षित सोच (डिजाइन थिंकिंग) के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत करेगी।
सरकार ने इस फैसले को लागू करते हुए यह आश्वासन दिया है कि कर्मचारियों के हितों की रक्षा की जाएगी।
इन सात नई कंपनियों को अब सूचीबद्ध कर लिया गया है और उन्होंने अपना कारोबार शुरू भी कर दिया है। म्यूनिशन्स इंडिया लिमिटेड (एमआईएल), जोकि मुख्य रूप से विभिन्न क्षमता वाले गोला-बारूद और विस्फोटकों के उत्पादन से जुड़ी होगी और इसकी न सिर्फ मेक इन इंडिया के जरिए बल्कि मेकिंग फॉर द वर्ल्ड के माध्यम से भी तेजी से बढऩे की व्यापक संभावना है। बख्तरबंद वाहन कंपनी (अवनी) मुख्य रूप से टैंक और बारूदी सुरंग रोधी वाहन (माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल) जैसे युद्ध में इस्तेमाल होने वाले वाहनों के उत्पादन में संलग्न होगी और इसके द्वारा अपनी क्षमता का बेहतर इस्तेमाल करते हुए घरेलू बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की उम्मीद है। यही नहीं, यह नए निर्यात बाजारों का भी पता लगा सकती है। उन्नत हथियार एवं उपकरण (एडब्ल्यूई इंडिया) मुख्य रूप से तोपों और अन्य हथियार प्रणालियों के उत्पादन में संलग्न होगी और इसके द्वारा घरेलू मांग को पूरा करने के साथ-साथ उत्पाद विविधीकरण के माध्यम से घरेलू बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की उम्मीद है। अन्य चार कंपनियों के साथ भी यही स्थिति रहेगी।
सरकार ने यह भी आश्वासन दिया है कि इन नई कंपनियों में से अधिकांश के पास पर्याप्त कार्य आदेश होंगे। ओएफबी के सभी लंबित कार्य आदेश, जिनका मूल्य लगभग 65,000 करोड़ रुपये से अधिक है, को अनुबंधों के जरिए इन कंपनियों को सौंप दिया जाएगा। इसके अलावा, विविधीकरण और निर्यात के जरिए कई क्षेत्रों में नई कंपनियों के फलने-फूलने की काफी संभावनाएं हैं। असैन्य इस्तेमाल के लिए दोहरे उपयोग वाले रक्षा उत्पाद भी इनमें शामिल हैं। इसी तरह आयात प्रतिस्थापन के जरिए भी नई कंपनियों का कारोबार बढऩे की व्यापक संभावनाएं हैं।
इस दिशा में एक नई शुरुआत कर दी गई है। वैसे तो आयुध कारखानों को पहले केवल सशस्त्र बलों की जरूरतों को ही पूरा करने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन नई कंपनियां अब उस तय दायरे से भी परे जा सकेंगी और देश-विदेश दोनों में ही नए अवसरों का पता लगाएंगी। पहले के मुकाबले कहीं अधिक कार्यात्मक एवं वित्तीय स्वायत्तता मिल जाने से ये नई कंपनियां अब आधुनिक कारोबारी मॉडलों को अपना सकेंगी और इसके साथ ही नई तरह के सहयोग सुनिश्चित कर सकेंगी।
वर्तमान में हम आत्मनिर्भरता और निर्यात के लिए देश की रक्षा उत्पादन क्षमताओं पर सुव्यवस्थित ढंग से विशेष जोर देने के लिए विभिन्न विशिष्ट क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। यह परिकल्पना की गई है कि इन नई कंपनियों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र की मौजूदा कंपनियां देश में एक मजबूत ‘सैन्य औद्योगिक परिवेशÓबनाने के लिए निजी क्षेत्र के साथ मिलकर काम करेंगी। इससे हमें समय पर स्वदेशी क्षमता विकास की योजना बनाकर आयात को कम करने और इन संसाधनों को स्वदेश में ही बने रक्षा उत्पादों की खरीद में लगाने में काफी मदद मिलेगी। इसमें सफलता मिलने पर हमारी अर्थव्यवस्था में व्यापक निवेश आएगा और रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे।
हालांकि, इस दिशा में आगे विभिन्न तरह की चुनौतियां हैं। सदियों पुरानी परंपराओं और कार्य संस्कृति को रातों-रात बदलना वाकई मुश्किल है। मेरा यह मानना है कि यह एक बेहद जटिल परिवर्तन प्रक्रिया की शुरुआत है और हमारा मंत्रालय शुरुआती मुद्दों को हल करने एवं मार्गदर्शन करने के साथ-साथ इन नवगठित कंपनियों को व्यवहार्य या लाभप्रद व्यावसायिक इकाइयों में परिवर्तित करने के लिए हरसंभव सहायता प्रदान करेगा। मुझे विश्वास है कि नई कंपनियों के कर्मचारी और प्रबंधन एक नई संगठनात्मक संस्कृति के बीज बोएंगे, ताकि उनकी कंपनियों में व्यापक सकारात्मक बदलाव आए और उनका कारोबार काफी तेजी से बढ़ सके।

 

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने राज्यवासियों को विजयादशमी की बधाई और शुभकामनाएं दी है

सभी के लिए ब्रॉडबैंड- पीएम गति शक्ति पहल का एक प्रमुख पहलू

नाले में गिरते लोग कुम्भकर्णी नीद में रांची नगर निगम अधिकारी

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने राज्यवासियों को विजयादशमी की बधाई और शुभकामनाएं दी है

रांची, मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने राज्यवासियों को विजयादशमी की बधाई और शुभकामनाएं दी है।उन्होंने  ने अपने संदेश में कहा कि दशहरा का त्यौहार अधर्म पर धर्म, अन्याय पर न्याय और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है ।उन्होंने कहा कि इस अवसर पर हम सभी  समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराई को खत्म करने का संकल्प लें। मुख्यमंत्री  सपरिवार मुख्यमंत्री आवास स्थित मंदिर में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना कर राज्य में अमन- शांति, सुख -समृद्धि और खुशहाली की कामना की।

रांची के ऐतिहासिक रातू किला में विजयादशमी के अवसर पर मां दुर्गा के पूजन अनुष्ठान में मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन शामिल हुए । इस अवसर पर राज परिवार की श्रीमती माधुरी मंजरी देवी, श्री नितेश कुमार शाहदेव और श्री उज्जवल नाथ चौधरी ने मुख्यमंत्री का परंपरा अनुसार स्वागत किया।

 

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सभी के लिए ब्रॉडबैंड- पीएम गति शक्ति पहल का एक प्रमुख पहलू

*सभी क्षेत्रों में समग्र विकास के लिए डिजिटल कनेक्टिविटी एक महत्वपूर्ण कारक है

*देश भर में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी को मजबूत करना आवश्यक है

*देश के सभी 6 लाख गांवों को आप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) से जोडऩे के लिए भारतनेट

परियोजना लागू की जा रही है

*डिजिटल संचार अवसंरचना के विकास के परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार को बढ़ावा

देना

–  अशोक कुमार मित्तल, हरि रंजन राव

सभी के लिए ब्रॉडबैंड- पीएम गति शक्ति पहल का एक प्रमुख पहलू

राष्ट्रीय अवसंरचना मास्टर प्लान (एनएमपी) जिसे पीएम गति शक्ति कहा जाता है, की घोषणा स्वतंत्रता दिवस पर माननीय प्रधानमंत्री द्वारा की गई थी। यह एक एकीकृत दृष्टि के तहत राजमार्गों, रेलवे, विमानन, गैस, बिजली पारेषण और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सभी उपयोगिताओं और बुनियादी ढांचे की योजना को एकीकृत करने का प्रस्ताव करता है। यह एकल एकीकृत मंच परिवहन और प्रचालन तंत्र के व्यापक और एकीकृत मल्टी-मोडल राष्ट्रीय नेटवर्क को बढ़ावा देने के लिए भौतिक संपर्कों की स्थानिक दृश्यता प्रदान करेगा, जिसका उद्देश्य जीवन में आसानी लाना, व्यवसाय करने में आसानी, व्यवधानों को कम करना और कम लागत में कार्य पूर्ण करने में तेजी लाना है। एनएमपी आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा, विदेशी निवेश को आकर्षित करेगा और देश की वैश्विक प्रतियोगितात्मकता को बढ़ाएगा जिससे वस्तुओं, लोगों और सेवाओं के सुचारू परिवहन को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के अवसर पैदा होंगे। गति शक्ति के शुरू होने और उपयोगिताओं तथा बुनियादी ढांचे के लिए योजना बनाने के लिए एक अधिक समग्र दृष्टिकोण की शुरुआत के साथ, हमारा देश विकास की दिशा में एक और विशाल कदम उठाने और $ 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था में विकसित होने के लिए तैयार होगा।
सभी क्षेत्रों में समग्र विकास के लिए डिजिटल कनेक्टिविटी एक महत्वपूर्ण कारक है। ग्रामीण-शहरी और अमीर-गरीब के बीच डिजिटल अंतर को पाटने और ई-गवर्नेंस, पारदर्शिता, वित्तीय समावेशन और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने के लिए देश भर में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी को मजबूत करना आवश्यक है।
इससे नागरिकों का सामाजिक-आर्थिक विकास होता है। चूंकि ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी सभी बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है, इसलिए राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति – 2018 (एनडीसीपी-2018) डिजिटल संचार बुनियादी ढांचे और सेवाओं को भारत के विकास और कल्याण के प्रमुख कारकों और महत्वपूर्ण निर्धारकों के रूप में मान्यता देती है।

सभी के लिए ब्रॉडबैंड- पीएम गति शक्ति पहल का एक प्रमुख पहलू

एनडीसीपी-18 का एक उद्देश्य सभी के लिए ब्रॉडबैंड प्रदान करना है ताकि व्यापक प्रसार, समान और समावेशी विकास के परिणामी लाभ सभी को मिल सकें। इस नीति का उद्देश्य डिजिटल डिवाइड को प्रभावी ढंग से पाटकर नागरिकों को सशक्त बनाना है। तदनुसार, सभी के लिए ब्रॉडबैंड के परिचालन के लिए, सरकार द्वारा 17 दिसंबर 2019 को राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य डिजिटल संचार बुनियादी ढांचे में तेज बढ़ोतरी को सक्षम करना, डिजिटल सशक्तिकरण और समावेशन के लिए डिजिटल डिवाइड को पाटना और सभी के लिए ब्रॉडबैंड की सस्ती और सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करना है।

2. राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन का लक्ष्य है –

क) पूरे देश में और विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में वृद्धि और विकास के लिए ब्रॉडबैंड सेवाओं तक सार्वभौमिक और समान पहुंच की सुविधा प्रदान करना।
ख) डिजिटल बुनियादी ढांचे और सेवाओं के विस्तार और निर्माण में तेजी लाने के लिए आवश्यक नीति और नियामक परिवर्तनों पर ध्यान देना।
ग) देश भर में ऑप्टिकल फाइबर केबल्स और टावर्स सहित डिजिटल संचार नेटवर्क और बुनियादी ढांचे का एक डिजिटल फाइबर मैप बनाना।
घ) मिशन के लिए निवेश बढ़ाने हेतु संबंधित मंत्रालयों / विभागों / एजेंसियों सहित सभी हितधारकों और वित्त मंत्रालय के साथ काम करना।
ड.) उपग्रह मीडिया के माध्यम से देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए आवश्यक पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने के लिए अंतरिक्ष विभाग के साथ काम करना।
च) विशेष रूप से घरेलू उद्योग द्वारा ब्रॉडबैंड के प्रसार के लिए नवीन प्रौद्योगिकियों को अपनाने को प्रोत्साहित करना और बढ़ावा देना।
छ) मार्ग के अधिकार (राइट ऑफ वे- आरओडब्ल्यू) के लिए नवीन कार्यान्वयन मॉडल विकसित करके संबंधित हितधारकों से सहयोग मांगना।
ज) ओएफसी बिछाने के लिए आवश्यक आरओडब्ल्यू अनुमोदन सहित डिजिटल बुनियादी ढांचे के विस्तार से संबंधित सुसंगत नीतियों के लिए राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के साथ काम करना।
झ) किसी राज्य / केंद्र शासित प्रदेश के भीतर डिजिटल संचार बुनियादी ढांचे और अनुकूल नीति तंत्र की उपलब्धता को मापने के लिए एक ब्रॉडबैंड रेडीनेस इंडेक्स (बीआरआई) विकसित करना।
ञ) डिजिटल संचार अवसंरचना के विकास के परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार को बढ़ावा देना।

3. मिशन के तहत अब-तक की उपलब्धियां इस प्रकार हैं:-

क) 28 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों ने अब तक भारतीय टेलीग्राफ आरओडब्ल्यू नियम, 2016 के साथ अपनी राइट ऑफ वे (आरओडब्ल्यू) नीति को काफी हद तक श्रेणीबद्ध कर दिया है। शेष राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को अपेक्षित श्रेणीबद्ध के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है।
ख) जैसा कि मिशन में परिकल्पित है, सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों ने मिशन के प्रभावी कार्यान्वयन और राज्यों / केंद्र शासित प्रदशों में ब्रॉडबैंड के प्रसार के लिए अपनी राज्य ब्रॉडबैंड समिति का गठन कर दिया है।
ग) देश के सभी 6 लाख गांवों को आप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) से जोडऩे के लिए भारतनेट परियोजना लागू की जा रही है। इस परियोजना के तहत अब तक लगभग 5.48 लाख किलोमीटर ओएफसी बिछाया जा चुका है, लगभग 1.65 लाख ग्राम पंचायतों को सेवा के लिए तैयार (ओएफसी और उपग्रह पर) किया जा चुका है। इसके अलावा, भारतनेट नेटवर्क का उपयोग करके, लगभग 1.04 लाख ग्राम पंचायतों में वाई-फाई हॉटस्पॉट स्थापित किए गए हैं और लगभग 5.14 लाख फाइबर एफटीटीएच कनेक्शन प्रदान किए गए हैं।
घ) देश भर में ब्रॉडबैंड के प्रसार के लिए प्रधान मंत्री वायरलेस एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (पीएम-डब्ल्यूएएनआई) योजना शुरू की गई है। इस योजना के तहत अब तक लगभग 49,000 पीएम-डब्ल्यूएएनआई एक्सेस पॉइंट तैनात किए जा चुके हैं।
ड.) भारत की लगभग 98 प्रतिशत आबादी को 3जी / 4जी मोबाइल नेटवर्क की सुविधा मिल रही है, जिसमें 94 प्रतिशत बसे हुए गांवों में कवरेज शामिल है। वंचित क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए कई यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (यूएसओएफ) योजनाएं हैं, जैसे कि पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए 4404 मोबाइल टावर साइटों की स्थापना के माध्यम से लगभग 5600 गांवों को जोडऩे के लिए व्यापक दूरसंचार विकास योजना, एलडब्ल्यूई-द्वितीय योजना के तहत 4 जी के 2542 टावर, लद्दाख और कारगिल, सीमावर्ती क्षेत्रों और अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में 354 वंचित गांवों में 4जी मोबाइल कनेक्टिविटी, 24 आकांक्षी जिलों में 502 वंचित गांवों को कवर करते हुए 4जी मोबाइल कनेक्टिविटी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 85 वंचित गांवों और एनएच के साथ वाले क्षेत्रों के लिए 4जी मोबाइल कनेक्टिविटी।
च) देश भर में 6.78 लाख से अधिक मोबाइल टावर लगाए गए हैं। 34 प्रतिशत बेस ट्रांसीवर स्टेशनों (बीटीएस) को फाइबरयुक्त किया गया है।
छ) अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह को बढ़ी हुई दूरसंचार कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए चेन्नई और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के बीच सबमरीन ओएफसी कनेक्टिविटी को कमीशन किया गया है।
ज) मेनलैंड भारत (कोच्चि) और लक्षद्वीप द्वीप समूह के बीच 1891 किमी ओएफसी बिछाकर पनडुब्बी ऑप्टिकल फाइबर कनेक्टिविटी की भी योजना बनाई गई है। टेंडर फाइनल होने के बाद प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन के लिए वर्क ऑर्डर दे दिया गया है। इस परियोजना के मई, 2023 तक पूरा होने की संभावना है।
झ) 31 मार्च 2021 को अखिल भारतीय स्तर पर ब्रॉडबैंड उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 778 मिलियन पहुंच गई है, इंटरनेट सब्सक्राइबर्स (प्रति 100 जनसंख्या) की संख्या लगभग 60.7 तक पहुंच गई है और प्रति वायरलेस डेटा ग्राहक प्रति माह औसत वायरलेस डेटा उपयोग 12.33 जीबी तक पहुंच गया है।

4. बहु-क्षेत्रीय प्रभाव:

ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी के आर्थिक प्रभाव कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, वित्तीय और सरकारी सेवाओं जैसी विभिन्न क्षेत्रीय पहलों से जुड़े हुए हैं जैसा कि नीचे चित्र में दर्शाया गया है। हाई स्पीड सर्वव्यापी ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्टिविटी डिजिटल इकोसिस्टम के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवर्तक है जो विकास, आर्थिक परिवर्तन और आय वृद्धि के उद्देश्य से बनाए गए कार्यक्रमों के आवश्यक घटक हैं।
(कनेक्टिविटी का बहुक्षेत्रीय प्रभाव)

(लेखक दूरसंचार विभाग में सलाहकार और 1984 बैच के एक आईटीएस अधिकारी, दूरसंचार विभाग में संयुक्त सचिव और 1994 बैच के एक आईएएस अधिकारी (एमपी कैडर)हैं।)
स्रोत: यूएसएआईडी और इंटेलकैप: इनवेस्टिंग टू कनेक्ट: मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी के वाणिज्यिक अवसर और सामाजिक प्रभाव का आकलन करने के लिए एक ढांचा, 2019.

 

शारदीय नवरात्र पर रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़

न्यू इंडिया व जम्मू-कश्मीर के बेहतर भविष्य के लिए काम कर रहे हैं मोदी सरकार के मंत्री

आम जनता को झटका देने की तैयारी में सरकार, जीएसटी में बढ़ोतरी पर कर रही विचार

 

उन्हें कश्मीर के अल्पसंख्यकों के प्रति किया गया कोई भी अपराध दिखाई नहीं देता..?

*क्या कश्मीर में रहने वाले अल्पसंख्यकों की जान की कोई कीमत नहीं

*क्या वे वहां अल्पसंख्यक नहीं, उनके जीने का कोई अधिकार भी नहीं

*आखिर क्यों नहीं ? धर्म के आधार पर  हत्या की निंदा एक जैसी नफरत से की जानी चाहिए

*जो लोग अल्पसंख्यकों के बहुत ख़ैरख्वाह बनते हैं.

उन्हें कश्मीर के अल्पसंख्यकों के प्रति किया गया कोई भी अपराध दिखाई नहीं देता..?

– क्षमा शर्मा
कश्मीर के एक स्कूल में घुसकर वहां के दो अल्पसंख्यक अध्यापकों सुपिंदर कौर और दीपचंद को धर्म के आधार पर आई कार्ड देखकर मार दिया गया, लेकिन हमारी आंखों में इनके लिए एक आंसू नहीं। उनके लिए कोई हो-हल्ला, विरोध प्रदर्शन कश्मीर के अलावा कहीं और क्यों नहीं। क्या कश्मीर में रहने वाले अल्पसंख्यकों की जान की कोई कीमत नहीं। क्या वे वहां अल्पसंख्यक नहीं, उनके जीने का कोई अधिकार भी नहीं। यदि किसी स्कूल में घुसकर शिक्षकों को इस तरह निशाना बनाया जाएगा तो वहां पढऩे वाले बच्चों और बाकी लोगों का क्या होगा। जिन बच्चों ने अपनी आंखों से इस दहशतगर्दी को देखा होगा, क्या वे कभी इसे भूल पाएंगे।
लखीमपुर खीरी, जहां कई किसानों को दौड़ती गाडिय़ों ने कुचल दिया, उनकी दर्दनाक मौत हो गई, इसके बाद भीड़ ने पीट-पीटकर चार लोगों को मार दिया। इस मॉब लिंचिंग, उनकी जान जाने पर बहुत ज्यादा न तो मीडिया में दु:ख प्रकट किया गया, न ही नेताओं को इसकी याद आई।
पिछले साल हाथरस में एक दलित बच्ची के साथ दरिंदगी हुई। उसके बाद देश भर में बहुत-सी लड़कियां दुष्कर्म जैसे अपराध का शिकार हुईं, आज भी हो रही हैं, लेकिन उनके साथ हुए यौन अपराध भुला दिए गए। क्यों? दुनिया में कहीं भी, किसी को भी, यदि धर्म के आधार पर मारा जाए तो यह बेहद निंदनीय है। लेकिन दुनिया में इस तरह का चुना हुआ शोर और चुनी हुई चुप्पियां शायद ही कहीं देखी गई हों।
लेकिन हम अपने यहां देखते हैं कि जो लोग अल्पसंख्यकों के बहुत ख़ैरख्वाह बनते हैं, जरा-सी बात पर आसमान सिर पर उठा लेते हैं, उन्हें कश्मीर के अल्पसंख्यकों के प्रति किया गया कोई भी अपराध दिखाई नहीं देता। उनकी जान इतनी सस्ती क्यों है।
जब से उस महिला प्रिंसिपल की मृत देह और उस अध्यापक का शव, रोते-बिलखते परिजन देखे हैं, तब से जैसे अस्सी के दशक के पंजाब के दिनों की यादें ताजा हो गई हैं। धर्म पूछकर अल्पसंख्यकों को घरों से निकालकर, पार्कों में, दफ्तरों में, बसों से उतारकर मारा जाता था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में सिखों को मारा गया। सिखों के खिलाफ हिंसा की बात होती है, जो निंदनीय है, लेकिन पंजाब में मारे गए लोगों को भुला दिया जाता है। आखिर क्यों नहीं ? धर्म के आधार पर सबकी हत्या की निंदा एक जैसी नफरत से की जानी चाहिए।
इसी तरह कश्मीर के लोगों की आवाजों को जब भी न सुनने की शिकायत की जाती है, तब वे नब्बे हजार से अधिक कश्मीरी पंडित जो आज भी बेघरबार हैं, उनकी आफतें क्यों नजर नहीं आतीं। वे भी तो कश्मीर में अल्पसंख्यक ही थे। कई कश्मीरी पंडित महिलाएं, जो इन दिनों विदेश में रहती हैं, उनकी दर्दनाक कहानियां सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
कश्मीर में बहुसंख्यकों के हाथों मारे गए लोगों को कोई अल्पसंख्यक तक नहीं कहता। क्यों भई? यह कैसे तय किया कि हिन्दू अगर मारे जाएं तो उनकी जान की कोई कीमत ही नहीं। हिन्दुओं की बात करने, उनके प्रति हुए अपराधों को रेखांकित करने भर से ऐसे लोगों को साम्प्रदायिक कहना, क्या यही धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा है! ऐसी बातें कश्मीर की हत्याओं के बाद भी सुनाई दीं, आखिर क्यों? क्या उनका घर, परिवार, जीने का अधिकार किसी और से कम है। क्या उनके वोट इन नेताओं को नहीं चाहिए। क्या एकपक्षीय विमर्श चलाने वाले चैनल्स के दर्शक ये लोग नहीं हैं। इतनी सलेक्टिव चुप्पियां किस काम की हैं। किस न्याय को दिलाती हैं। न्याय की यह परिभाषा भी कितनी शर्मनाक है कि जान की कीमत वोटों के गुणा-भाग से तय की जाए। जो काफिले लखीमपुर खीरी की तरफ दौड़े, क्या वे कश्मीर की तरफ इसलिए नहीं दौड़ेंगे कि अभी वहां चुनाव नहीं हैं। बिहार के दलित गोलगप्पे वाले वीरेंद्र पासवान को मार दिया गया, उसकी मौत पर औरों के साथ दलित नेताओं ने भी चुप्पी साध ली, क्यों भला? हर बात पर अगर वोटों का हिसाब लगाया जाएगा तो एक दिन ऐसा आएगा कि वोट पाने लायक भी नहीं रहेंगे। और मीडिया का जो वर्ग एकपक्षीय नैरेटिव दिखाकर संतोष पा लेता है, वह खत्म हो जाएगा। अतीत में हमने ऐसा होते देखा है। इतिहास स्वयं को दोहराता है, ऐसा सब कहते हैं, लेकिन इतिहास की गलतियों से शायद ही कोई सबक लेता है। वरना तो एक जान का जाना, एक वोट का जाना भी है। यही नहीं, अगर किसी की मौत पर आंसू बहाए जाएं और किसी की मौत पर मुंह छिपा लिया जाए तो यह न समझा जाए कि लोग इस तरह के अवसरवाद को भूल जाते हैं। हां, वे तात्कालिक प्रतिक्रिया न दे पाएं, क्योंकि साधारण आदमी वह सेलिब्रिटी नहीं होता, जिसके पीछे सैकड़ों कैमरे भागते हों। और उसकी बात दिखाने को महत्व देते हों।
नैरेटिव कुछ इस तरह से गढ़ लिया गया है- अगर मंत्रिमंडल में एक ब्राह्मण, एक दलित, एक ओबीसी, एक मुसलमान, एक सिख, एक ईसाई को रख लिया जाए तो यह समावेशी सरकार होगी और सारे वोट झोली में आ जाएंगे। ऐसे गुणा-भाग देखकर हंसी आती है। क्या अतीत में नेहरू को सारे ब्राह्मणों ने ही वोट दिया होगा या कि मोदी को सारे ओबीसीज ने। इस तरह का नैरेटिव गढऩे में चैनल्स पर आने वाले महान बुद्धिजीवियों और सैफोलोजिस्ट की बड़ी भूमिका है, जो अक्सर जाति-धर्म के आधार पर जीत-हार का गणित तय करते हैं। वे मनुष्य के अपने बुद्धि-विवेक को जाति और धर्म के तराजू पर तोलते हैं। रही-सही कसर जातिवादी और धर्मवादी राजनीति ने पूरी कर दी है। इसीलिए विमर्श अब यहां तक आ पहुंचा है कि जब बोलें तब अपनी जाति-धर्म के लिए ही बोलें। कहीं तो आपको अल्पसंख्यकों के अधिकार हनन होने पर दौड़-भाग की प्रतियोगिता, नेताओं, बुद्धिजीवियों के बयान-दर-बयान आते दिखें और कहीं मौन ओढ़कर चुपके से निकल लिया जाए।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

शारदीय नवरात्र पर रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़

मध्यरात्रि से ही श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरु हो गया था

श्रद्धालुओं की कतार लंबी होते हुए दो किमी दूर तक पहुंच गया

भारी संख्या में  श्रद्धालुओं ने यहां माता छिन्नमस्तिके की पूजा अर्चना की

रामगढ, शारदीय नवरात्र के महानवमी व विजयादशमी तिथि के शुभ मुहूर्त पर रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़.  शारदीय नवरात्र के महानवमी व विजयादशमी तिथि के शुभ मुहूर्त को लेकर देश के प्रसिद्ध सिद्धपीठ स्थल रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। मध्यरात्रि से ही श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरु हो गया था। इसके कारण सुबह होते ही श्रद्धालुओं की कतार लंबी होते हुए दो किमी दूर तक पहुंच गया। महानवमी के शुभ मुहूर्त को लेकर भारी संख्या में  श्रद्धालुओं ने यहां माता छिन्नमस्तिके की पूजा अर्चना की।  वहीं मंदिर न्यास समिति के पुजारी छोटू पंडा ने बताया की देर रात्रि से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी रही।

 

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नाले में गिरते लोग कुम्भकर्णी नीद में रांची नगर निगम अधिकारी

 

 

 

न्यू इंडिया व जम्मू-कश्मीर के बेहतर भविष्य के लिए काम कर रहे हैं मोदी सरकार के मंत्री

*पिछले 30 वर्षों से सीमा-पार आतंक और उग्रवाद के कारण हम पीछे रह गए हैं

*चरार-ए-शरीफ में एसडीएच एक उच्च गुणवत्ता युक्त केंद्र है

– सभी आधुनिक सुविधा मौजूद हैं

* छात्रों ने अवसरों के लिए अनुरोध किया तथा ऑटोमोबाइल सहायक उद्योगों

को जिले में स्थापित करने की बात कही

– राजीव चंद्रशेखर
मैंने हाल ही में सितंबर के अंतिम सप्ताह में पहली बार जम्मू-कश्मीर का दौरा किया। यह यात्रा कई बातें को स्पष्ट करती है। पिछले कई वर्षों में, मैंने देश-विदेश की यात्राएँ की, तो मैं अब-तक जम्मू-कश्मीर नहीं जा सका/नहीं गया। निराशा होती है, लेकिन यह सच है। न्यू इंडिया के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के बेहतर भविष्य के लिए काम कर रहे हैं मोदी सरकार के मंत्री
मुझे ईमानदार होना चाहिए – कुछ लोगों द्वारा जारी अशांति के इस अंतर्निहित विवरण की पृष्ठभूमि में एक प्रौद्योगिकी और कौशल विकास मंत्री के रूप में मुझे क्या कहना चाहिए या क्या करना चाहिए, इस बारे में मैं घबराहट का अनुभव करता था।
मैंने जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर, बडगाम और बारामूला जिलों की यात्रा की। हमारे प्रधानमंत्री की अपेक्षा के अनुरूप, मेरा कार्यक्रम लोगों से मिलने और बातचीत करने पर आधारित था। इसके साथ ही मुझे कुछ विकास परियोजनाओं का शुभारम्भ करना था, जिन्हें इस चुनौतीपूर्ण कोविड अवधि के दौरान पूरा किया गया था।
यात्रा की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक अधिकारी ने मुझसे एक बात कही और यह बात पूरी यात्रा में मेरे साथ रही। पुलिस अधिकारी भी मेरी पूरी यात्रा के दौरान मेरे साथ रहे थे। उन्होंने कहा, हमारे राज्य के बच्चे जानते हैं कि पिछले 30 वर्षों से सीमा-पार आतंक और उग्रवाद के कारण हम पीछे रह गए हैं। शेष भारत और दुनिया की तरह हम भी बेहतर जीवन चाहते हैं।
मैंने एक नए सब-डिवीजन अस्पताल और चरार-ए-शरीफ दरगाह का दौरा किया तथा युवा कश्मीरियों, उद्यमियों, किसानों, सरपंचों और जनजातीय समुदाय के सदस्यों और इन जिलों के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ महत्वपूर्ण बैठकें कीं। प्रत्येक बैठक में, बातचीत के विषय, उनकी मांग और उनके अनुरोध वर्तमान और भविष्य के सम्बन्ध में थे। कोई उन खोए हुए वर्षों को पीछे मुड़कर नहीं देख रहा था। उन्हें खोए हुए अवसरों पर पश्चाताप जरूर था। जिन युवा छात्रों से मुझे बडगाम, बारामूला और श्रीनगर में बातचीत करने का मौका मिला, तो मैंने यह महसूस किया कि वे सभी अपने कौशल को बेहतर करने या नौकरी पाने के अवसरों में सुधार करने को लेकर गंभीर थे। चरार-ए-शरीफ में एसडीएच एक उच्च गुणवत्ता युक्त केंद्र है – सभी आधुनिक सुविधा मौजूद हैं, स्वास्थ्यकर्मियों की एक सक्षम टीम है और दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों से जिला अस्पताल तक की लंबी कठिन यात्रा से लोगों को राहत मिली।
बडगाम डिग्री कॉलेज की एक बैठक में, पॉलिटेक्निक कॉलेज की छात्राओं ने बातचीत के क्रम में कहा, हम अपने पॉलिटेक्निक में नए पाठ्यक्रम चाहते हैं – हम केवल मैकेनिकल और सिविल डिप्लोमा की बजाय इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर पाठ्यक्रम चाहते हैं। वे उत्साहित और आश्वस्त थीं। मैंने जितने भी तकनीकी कॉलेजों को अब-तक देखा है, उनमें आईटीआई, बडगाम को शीर्ष पायदान पर रखा जा सकता है। इस कॉलेज में एक उत्कृष्ट मोटर वाहन रखरखाव प्रशिक्षण सुविधा है, जहां मैंने यहाँ छात्रों को प्रमाण पत्र सौंपे। प्रमाण पत्र पाने वालों में कई युवा छात्राएं थीं।
बातचीत में छात्रों ने अवसरों के लिए अनुरोध किया तथा ऑटोमोबाइल सहायक उद्योगों को जिले में स्थापित करने की बात कही, ताकि प्रशिक्षण के बाद रोजगार मिल सके। गृह मंत्री अमित शाह द्वारा 50,000 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने की उत्सुकता थी, क्योंकि वे महसूस करते हैं कि नरेन्द्र मोदी सरकार के रिकॉर्ड को देखते हुए यह घोषणा पिछली सरकारों से अलग होगी। यह सुनिश्चित किया जायेगा कि 3 स्तरीय प्रणाली के माध्यम से, यह पैसा आर्थिक गतिविधि का विस्तार करे और / या सीधे लोगों तक पहुंचे। मैंने कहा कि पीएम नरेन्द्र मोदी कौशल विकास को रोजगार का प्रवेश द्वार मानते हैं और रोजगार को कौशल विकास के साथ जोडऩे की जरूरत पर बल देते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के विजऩ के बारे में जानकर छात्र वास्तव में उत्साहित हुए। दूसरे राज्यों की तरह यहां के युवा भी आईटी उद्योग के विकास में शामिल होना चाहते हैं, क्योंकि वे शेष भारत में प्रगति के बारे में पढ़ते और सुनते हैं।
मैंने बडगाम और बारामूला में दो पारंपरिक कौशल क्लस्टर का भी दौरा किया। यहाँ स्थानीय कारीगर कालीन, कागज़ की लुगदी और परिधानों का उत्पादन करते हैं तथा उद्यमी इनका निर्यात करते हैं। पिछले कई वर्षों में, इन उद्यमों के लिए जरूरी कार्य-कुशलता में और कारीगरों की संख्या में गिरावट आई है। इन सुन्दर उत्पादों का जम्मू-कश्मीर से वर्तमान निर्यात 600 करोड़ रुपये का है और दुनिया में मांग लगभग 10-15 हज़ार करोड़ रुपयों की है, जो करीब 25-30 लाख कारीगरों को रोजगार दे सकता है। पारंपरिक कौशल से जुड़े उद्योग के सन्दर्भ में पीएम के विजन को ध्यान में रखते हुए, मैंने इन समूहों के विकास, उनके व्यापार और इन व्यवसायों को विकसित करने हेतु आवश्यक, कारीगरों के कौशल-विकास के लिए समर्थन देने का निर्णय लिया है।
किसी भी बैठक में मेरे सामने सुरक्षा या आतंक का मुद्दा एक बार भी नहीं उठा। यह मेरे स्वयं के अनुभव के लिए उल्लेखनीय था। श्रीनगर का खतरनाक माने जाने वाला लाल चौक भी चहल-पहल से भरा हुआ था और रोज शाम को यहाँ तिरंगे की आभा फैलती थी।
मेरा मानना है कि एक राजनीतिक नेता के लिए सर्वोत्तम उपायों में से एक यह है कि वह अपने लोगों के दिल और दिमाग में कितनी अधिक आकांक्षा और महत्वाकांक्षा पैदा करता है। इस सन्दर्भ में, हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले 75 वर्षों की तुलना में जम्मू-कश्मीर में आकांक्षाओं को एक नया प्रोत्साहन दिया है। निस्संदेह जम्मू-कश्मीर प्रशासन, पुलिस और सुरक्षा बलों ने बहुत प्रयास किये हैं, सेवा और बलिदान का उदाहरण प्रस्तुत किया है तथा लोगों को सुरक्षित रखने के लिए चौबीसों घंटे काम किया है। ऐसे समय में जब हमारे पड़ोस और दुनिया के कई हिस्सों में, महिलाएं और युवा दमनकारी शासन के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि निरंकुश शासन उनकी आशाओं और आकांक्षाओं को नष्ट कर रहे हैं, पीएम मोदी सरकार दृढ़ संकल्प के साथ हमारे युवाओं को अधिक से अधिक सपने देखने और आकांक्षाओं को पूरा करने में सक्षम बना रही है – सरकार की भूमिका, पूरे देश में हमारे युवाओं के लिए आशा और आकांक्षा की किरण बनना है, क्योंकि भारत अपनी स्वतंत्रता के 100वें वर्ष की ओर आगे बढ़ रहा है।
यात्रा के दौरान यह कहने में मुझे आनंद का अनुभव हुआ कि जम्मू-कश्मीर का भाग्य 3 सामंती परिवारों और शायद एक केंद्रीय मंत्री द्वारा नियंत्रित किया जाता था।न्यू इंडिया के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के बेहतर भविष्य के लिए काम कर रहे हैं मोदी सरकार के मंत्री अब नरेन्द्र मोदी सरकार की पूरी ताकत है और 77 मंत्रियों की उनकी टीम, भारत के सभी लोगों के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों के बेहतर भविष्य के लिए काम कर रही है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास का प्रेरणादायी विचार, न्यू इंडिया को गति दे रहा है।

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आम जनता को झटका देने की तैयारी में सरकार, जीएसटी में बढ़ोतरी पर कर रही विचार

नई दिल्ली, ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार कुछ सामान और सेवाओं पर टैक्स बढ़ाने पर विचार कर रही है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस कदम पर ज्यादा सरल टैक्स रेट स्ट्रक्चर करने के मकसद के साथ विचार किया जा रहा है। जीएसटी दरों को बढ़ाने की यह योजना ऐसा समय पर की जा रही है, जब अगले साल की शुरुआत में देश के बड़े राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। जीएसटी पर पैनल की बैठक दिसंबर में होने की उम्मीद है। इस पैनल की अध्यक्षता वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कर रही हैं। इसमें वर्तमान के चार रेट वाले सिस्टम से बदलाव किया जा सकता है। इस समय देश में 5 फीसदी, 12 फीसदी, 18 फीसदी और 28 फीसदी की दर से जीएसटी लगाया जाता है। इसमें कुछ जरूरी सामान जैसे खाने की चीजों पर सबसे कम दर और लग्जरी सामान पर सबसे ज्यादा रेट से टैक्स लगता है। इस मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने ब्लूमबर्ग को बताया है कि अगली बार सबसे कम दो रेट में बढ़ोतरी की जा सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक सबसे कम दो दरों में से एक 5 फीसद को बढ़ाकर 6 फीसद और 12 को 13 फीसदी किया जा सकता है। इन दो दरों से सबसे ज्यादा प्रभावित आम आदमी ही होता है। इस चरणबद्ध योजना के तहत दरों को चार से घटाकर तीन पर लाया जाएगा। राज्य के वित्त मंत्री अगले महीने के आखिर तक इस मामले में अपने प्रस्तावों को रख सकते हैं। ब्लूमबर्ग ने वित्त मंत्रालय को इस पर प्रतिक्रिया लेने के लिए संपर्क किया, लेकिन वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता ने अभी तक इस पर कोई जवाब नहीं दिया है।
बता दें जुलाई 2017 से मोदी सरकार ने जीएसटी लागू किया था। जीएसटी की एक देश, एक टैक्स व्यवस्था के तहत आपको एक ही टैक्स देना होता है। जीएसटी की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि किसी भी सामान या सर्विस पर इस टैक्स की दर पूरे देश में एक जैसी होती है। यानी देश के किसी हिस्से में मौजूद कस्टमर या कंज्यूमर को उस वस्तु या सेवा पर एक जैसा ही टैक्स देना होता है. जीएसटी को 3 प्रकार में बांटा गया है— सेंट्रल जीएसटी(ष्टत्रस्ञ्ज), स्टेट जीएसटी(स्त्रस्ञ्ज) और इंटीग्रेटेड जीएसटी(ढ्ढत्रस्ञ्ज)।  (एजेंसी)

लेगिंग्स को जल्दी खराब होने से बचाने के लिए अपनाएं ये टिप्स

हर कोई कंफर्टेबल कपड़े पहनना पसंद करता है. लेगिंग्स ऐक ऐसा बॉटम वियर है जो हर महिला के वॉर्डरोब में शामिल होता है. जब भी आप कुर्ती खरीदते हैं तो सबसे पहले मैचिंग दुपट्टे के साथ लेगिंग्स का खयाल आता है. इन दिनों कुर्ती के साथ लेगिंग्स और टी -शर्ट पहनने का चलन काफी ज्यादा है. आप चाहे कितनी भी महंगी लेगिंग खरीद लें कुछ समय बाद खराब होने लगते हैं. ऐसे में लोगों की मानसिकता बन गई है कि ये जल्दी खराब हो जाते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. सही रख- रखाव से इस लंबे समय तक इस्तेमाल कर सकते हैं.
ज्यादातर लेगिंग्स खरीदने के कुछ दिन बाद लूज होने लगती है. कई बार लेगिंग्स से रोये भी निकलने लगती हैं. ऐसे में लेगिंग्स को खरीदने के बाद थोड़ी ज्यादा देखभाल करें. इससे आपकी लेगिंग जल्दी खराब भी नहीं होगी और पैसों की बचत भी हो जाएगी. आइए बिना देर किए जानते हैं कि लेगिंग्स का रख रखाव कैसे कर सकते हैं.

लेगिंग्स को लगातार न धोएं

लेगिंग्स को लगातार धोने की वजह से लूज हो जाता है. दरअसल इसमें नायलॉन, कॉट्न के फ्रेबिक को मिलाकर बनाया जाता है. इसलिए इसे धोते समय सावधानी बरतनी चाहिए. इसे धोते समय ज्यादा रगडऩे की जरूरत नहीं होती है. मशीन की जगह इसे हाथ से धोना सही रहता है. लेगिंग्स की चमक को बनाएं रखने के लिए हमेशा उल्टा धोना चाहिए.

फैब्रिक सॉफ्टनर का इस्तेमाल न करें

लेगिंग की चमक को बनाएं रखने के लिए फ्रैबिक सॉफ्टनर का इस्तेमाल करना से बचना चाहिए. आप फैब्रिक को सॉफ्ट बनाएं रखने के लिए सिरका का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके लिए आपको ठंडे पानी में सिरका डालकर आधे घंटा लेगिंग्स को भीगोकर रख दें. ऐसा करने से इसकी क्वालिटी और चमक दोनों बनी रहती है.

 लेगिंग्स का सुखाने का तरीका

कई लोग लेगिग्स को अन्य कपड़ों की तरह तेज धूप में सुखाते हैं या जल्दी बाजी होने के पर ड्रायर का इस्तेमल करते हैं. आप इस तरह की गलती न करें. ड्रायर की हीट से लेगिंग जल्दी खराब हो जाते हैं. उसमें रोये और छेंद होने लगते हैं . इसलिए लेगिंग को घर के अंदर हवा में सुखाएं. (एजेंसी)

धोनी ने हमेशा मुझे प्रेरित किया, जितना हो सके उनसे सीखना चाहता हूं – गायकवाड़

दुबई, (आरएनएस) चेन्नई सुपर किंग्स के बल्लेबाज रुतुराज गायकवाड़ ने कहा है कि वह जितना हो सके, उतना कप्तान महेंद्र सिंह धोनी से सीखना चाहते हैं। गायकवाड़ ने आईपीएल चलीफायर-1 मुकाबले में दिल्ली कैपिटल्स को चार विकेट से हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 70 रन बनाए और वह ऑरेंज कप की दौड़ में दूसरे स्थान पर आ गए हैं।
गायकवाड़ ने कहा, हर वक्त धोनी ने मुझे प्रेरित करने की कोशिश की है। वह मुझसे कहते थे कि हर मैच से सीखो और आगे बढ़ो। उन्होंने मैच को खत्म करने की कोशिश करने के लिए भी कहा। यह अच्छे खिलाड़ी और आम खिलाडिय़ों से अलग बनाता है। मैं बस जितना हो सके उनसे सीखने की कोशिश करता हूं।
उन्होंने कहा, पावरप्ले महत्वपूर्ण स्टेज था। हम बस अच्छी शुरूआत करना चाहते हैं। रॉबिन उथप्पा ने बेहतर तरीके से बल्लेबाजी की जिससे मुझे अंत तक टिकने में मदद मिली। मैंने 2-3 ओवर तक प्लान किया और सोचा कि कौन गेंदबाजी कर सकता है और मैं किसे टारगेट करूं।
गायकवाड़ ने कहा, आपको स्पष्ट होने और प्रक्रिया से गुजरने की जरूरत है। एक समय में एक ओवर पर ध्यान दें और सुनिश्चित करें कि जरूरी रन रेट ज्यादा ऊपर नहीं जाए।

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मानवाधिकारों के नाम पर देश की छवि खराब करते हैं कुछ लोग, रहना होगा सावधान – मोदी

*महिलाओं की सुरक्षा के लिए 700 जिलों में वन स्टॉप सेंटर स्थापित किए गए हैं

*यहां मेडिकल. पुलिस, मेंटल काउंसिलिंग और लीगल हेल्प दी जाती है

*650 से ज्यादा फास्ट ट्रैक कोर्ट भी स्थापित किए गए हैं

(आरएनएस) पीएम नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि कुछ लोग मानवाधिकारों के नाम पर देश की छवि खराब करने की कोशिश करते हैं। हमें ऐसे लोगों से सावधान रहने की जरूरत है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए पीएम मोदी ने यह बात कही। इसके साथ ही उन्होंने मानवाधिकारों और महिलाओं के लिए किए गए कामों का भी जिक्र किया। पीएम मोदी ने कहा, महिलाओं की सुरक्षा के लिए 700 जिलों में वन स्टॉप सेंटर स्थापित किए गए हैं। यहां मेडिकल. पुलिस, मेंटल काउंसिलिंग और लीगल हेल्प दी जाती है। इसके अलावा 650 से ज्यादा फास्ट ट्रैक कोर्ट भी स्थापित किए गए हैं। इनमें रेप जैसे गंभीर मामलों की सुनवाई की जा रही है।
मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाए जाने का भी उन्होंने जिक्र किया। पीएम मोदी ने कहा, दशकों से मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के खिलाफ कानून की मांग कर रही थीं। हमने उनके अधिकारों को प्रदान किया। इसके अलावा हज के दौरान मुस्लिम महिलाओं को हमने महरम से भी मुक्त करने का काम किया है। अपने नेतृत्व वाली सरकार की पीठ थपथपाते हुए पीएम मोदी ने कहा, गरीब लोगों को जब टॉयलेट, कुकिंग गैस जैसी मूलभूत सुविधाएं मिलती हैं तो उनकी आकांक्षाएं बढ़ती हैं और उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जानकारी मिलती है।
तीन तलाक के खिलाफ कानून के अलावा मैटरनिटी लीव का भी किया जिक्र
तीन तलाक के खिलाफ कानून के अलावा पीएम मोदी ने महिलाओं के लिए 26 सप्ताह की मैटरनिटी लीव के प्रावधान का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आजादी के लिए संघर्ष और हमारा इतिहास मानवाधिकारों के मूल्यों और उनके लिए प्रेरणा का बहुत बड़ा स्रोत है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद हमारे यहां लोकतंत्र और अधिकार कायम रहे हैं। लेकिन कई ऐसे देश हैं, जहां बीते दशकों में ये अधिकार छीने गए हैं।
मानवाधिकारों पर सेलेक्टिव रवैये से होगा देश को नुकसान
पीएम नरेंद्र मोदी ने मानवाधिकारों को लेकर सेलेक्टिव अप्रोच अपनाने वालों पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि कुछ लोग किसी घटना में मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात करते हैं, लेकिन वैसी ही किसी दूसरी घटना पर चुप्पी साध जाते हैं। पीएम मोदी ने कहा कि इस तरह का सेलेक्टिव व्यवहार लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। ऐसे लोग अपने बर्ताव से देश की छवि को खराब करने की कोशिश करते हैं। इस कार्यक्रम में होम मिनिस्टर अमित शाह भी मौजूद थे।

 

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पैंडोरा पेपर्स से जुड़े नाम सामने लाए जाएं

*भारत के 380 खाते पकड़े गए हैं

*उद्योगपति और व्यापारी तो सिर्फ टैक्स बचाने के लिए अपना पैसा इन देशों में छिपाते हैं

*लेकिन नेता, अफसर, तस्कर, आतंकवादी और अपराधी

अपना अनैतिक और अवैधानिक तरीकों से अर्जित धन वहां छिपाते हैं

*जो उद्योगपति खुद को दिवालिया घोषित कर चुके हैं, उनके भी वहां करोड़ों-अरबों रुपये पाए गए हैं

वेद प्रताप वैदिक
अब से 5-6 साल पहले ‘पनामा पेपर्स’ ने सारी दुनिया में तहलका मचा दिया था, अब उससे भी बड़ा भंडाफोड़ हुआ है- ‘पैंडोरा पेपर्स’। ‘पनामा पेपर्स’ से तो पनामा नामक देश की वजह से जाने गए, लेकिन ‘पैंडोरा पेपर्स’ तो पैंडोरा नामक मिथकीय यूनानी महिला पैंडोरा के नाम से जाने जा रहे हैं। यूनानी देवता प्रोमिथियस ने पैंडोरा नामक परम सुंदरी को एक ऐसा बक्सा भेंट किया था, जिसमें दुनिया की सारी बुराइयां छिपा रखी थीं। विदेश में दुनिया के अमीरों ने जो मिल्कियत छुपा रखी है, उसकी जानकारी एक खोपत्रकार संगठन लेकर आया है। जिन दस्तावेजों की जानकारी इस संगठन ने सार्वजनिक की है, उसे ही ‘पैंडोरा पेपर्स’ कहा जा रहा है।
पनामा पेपर्स में क्या हुआ
इस खोपत्रकार संगठन ने 14 कंपनियों के लगभग सवा करोड़ दस्तावेजों की जांच करके 2900 बैंक-खातों को पकड़ा है। इन खातों में गरीब और अमीर देशों के सैकड़ों लोगों ने 130 बिलियन डॉलर जमा कर रखे हैं। जमा करने वाले ये लोग कौन हैं? इनमें कई देशों के बादशाह, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, नेता और उद्योगपति तो हैं ही, उनके साथ कई आतंकवादी, तस्कर, फौजी, सरकारी अधिकारी, फिल्मी और खिलाड़ी लोग भी शामिल हैं। अगर भारत के 380 खाते पकड़े गए हैं तो पाकिस्तान के 700 से भी ज्यादा खाते विदेशी बैंकों में पकड़े गए हैं।
ये खाते अपने-अपने देशों में नहीं हैं। विदेशों में हैं। कुछ अपने नाम से हैं। कुछ फर्जी नाम से हैं और कुछ न्यासों (ट्रस्टों) और कंपनियों के नामों से हैं। अधिकतर खाते ऐसे छोटे-मोटे देशों में हैं, जिनके नाम भी आपने कभी नहीं सुने होंगे। जैसे बहामा, सेंट किट्स, सेंट बार्थालेमी, वनातूआ, वर्जिन आइलैंड, नौरू, बरमूडा आदि। इन देशों में लोग अपना धन इसलिए छिपाते हैं कि एक तो उन्हें वहां आयकर नहीं देना पड़ता और दूसरा कारण यह है कि उनकी गोपनीयता बनी रहती है। किसी को पता ही नहीं चलता कि किसका पैसा कहां छिपा हुआ है।
उद्योगपति और व्यापारी तो सिर्फ टैक्स बचाने के लिए अपना पैसा इन देशों में छिपाते हैं लेकिन नेता, अफसर, तस्कर, आतंकवादी और अपराधी अपना अनैतिक और अवैधानिक तरीकों से अर्जित धन वहां छिपाते हैं। इसीलिए जब कुछ भारतीय अखबारों में कुछ उद्योगपतियों और खिलाडिय़ों के नाम उजागर हुए, तो उन्होंने सफाई पेश करनी शुरू कर दी। जो उद्योगपति खुद को दिवालिया घोषित कर चुके हैं, उनके भी वहां करोड़ों-अरबों रुपये पाए गए हैं।
बीजेपी सरकार ने इस तरह के खाताधारियों के विरुद्ध 2015 में कड़े कानून बनाए थे। लेकिन क्या वजह है कि अभी तक न तो पनामा पेपर्स के दोषियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई हुई है और न अभी तक ‘पेंडोरा पेपर्स’ के नामों को उजागर किया गया है। जो कुछ नाम एक भारतीय अंग्रेअखबार ने उजागर किए हैं, उनमें भी न नेताओं के नाम हैं, न आतंकवादियों के और न ही अफसरों के। जिसका भी खाता इन विदेशी बैंकों में हो, उसका नाम बताने में संकोच की जरूरत क्या है? सांच को आंच कैसी? जरा मालूम तो पड़े कि भारतीयों के 20 हजार करोड़ डॉलर वहां जमा हैं तो किसके कितने हैं?
जरा गौर करें कि पाकिस्तान के दर्जनों नेताओं, मंत्रियों, फौजियों, अफसरों और दलालों के नाम उजागर हो चुके हैं, लेकिन भारतीयों के नाम पता नहीं चल रहे। इसका कारण यह भी हो सकता है कि अगर नेताओं और अफसरों के नाम उजागर हो गए तो शायद किसी भी पार्टी की कमीज सफेद न पाई जाए। पूरे कुएं में ही भांग पड़ी हुई है। बोफोर्स के लेन-देन में चाहे असली लोग बच गए, लेकिन लोगों को पता चल गया कि राजनीति लंबे-चौड़े लेन-देन के बिना चल ही नहीं सकती। पैंडोरा पेपर्स कांड में सामने आए पाकिस्तानी नामों से यह तर्क अपने आप सिद्ध हो जाता है।
विदेशी बैंकों में यह पैसा नेता और अफसर लोग इसलिए छिपाते हैं कि इसका पता किसी को भी नहीं चले। यदि यह पैसा उसी तरह भारत में भी छिपाकर रख सकते हों तो शायद टैक्स भरने में भी उन्हें कोई एतराज न हो, क्योंकि उनके सैकड़ों विश्वसनीय अनुयायियों के नाम से वे खाते खोलकर टैक्स बचा सकते हैं, लेकिन वे अपने साथियों को भी इस गुप्त धनराशि का सुराग नहीं लगने देना चाहते।
लेकिन व्यापारियों और उद्योपतियों को यदि आयकर भरने का डर न हो तो उन्हें अपनी कमाई छिपाने का कोई कारण नहीं है। दुनिया के 23 देश ऐसे हैं, जिनमें आयकर नाम की कोई चीज ही नहीं है। लेकिन अधिकतर वे सभी छोटे-छोटे देश हैं। उनके सरकारी खर्च भी कम हैं, मगर भारत-जैसे बड़ी जनसंख्या वाले और विशाल देश की सरकार यथेष्ट आमदनी के बिना कैसे चल सकती है? अपनी यथेष्ट आमदनी की खातिर ही इंदिरा-राज में आयकर की दर लगभग गलाघोंटू बन गई थीं। अब भी सरकार को आयकर से हर साल लगभग 11-12 लाख करोड़ रुपये मिलते हैं। यदि सब लोग अपना आयकर ईमानदारी से भरें तो सरकार की आमदनी डेढ़ी-दुगुनी हो सकती है।
आयकर नहीं भरने या बचाने की इच्छा ही काले धन की जननी है। इस काले धन को खत्म करने के लिए ही मोदी सरकार ने नोटबंदी का जबर्दस्त कदम उठाया था, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। नोटबंदी का विचार जिन लोगों ने चलाया था, उनकी सारी शर्तें सरकार लागू कर देती तो शायद कालेधन पर लगाम लग सकती थी। लेकिन अब काला धन रखना ज्यादा आसान हो गया है। एक हजार का नोट खत्म किया, लेकिन सरकार ने उसकी जगह दो हजार का नोट चला दिया। नोट बदलवाने की लाइनों में खड़े सैकड़ों लोगों ने दम तोड़ दिया। नए नोट छापने में हजारों करोड़ रुपये नए सिरे से खर्च हो गए।
बैंकिंग लेन-देन पर टैक्स!
यदि सरकार 100 रुपये को डॉलर की तरह सबसे बड़ा नोट बनाए, बैंकिंग को बढ़ावा दे और बैंक के लेन-देन पर नाम मात्र का टैक्स लगाए तो उसके पास आयकर से भी बड़ा पैसा जमा हो सकता है। इसके अलावा आयकर से ज्यादा वह जायकर (खर्च पर टैक्स) पर जोर दे तो सरकारी खजाना भर जाएगा। मालदार और मध्यमवर्गीय लोग फिजूलखर्ची कम करेंगे और उससे भारी बचत होगी। बचत का यह पैसा उद्योग-धंधों में लगेगा और करोड़ों नए रोजगार पैदा होंगे। लोग अपने धन को छिपाने से बाज आएंगे। जब धन काला नहीं होगा तो उसे वे छिपाएंगे क्यों? विदेशी बैंकों में पैसा छिपाने की कोशिश अपने आप अनावश्यक हो जाएगी और भारत का भद्रलोक उपभोक्तावाद की चक्की में पिसने से भी बचेगा।

 

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