उच्च न्यायालय ने फिर खोली नदीमर्ग नरसंहार केस की फाइल

*2003 में 24 कश्मीरी पंडितों की हुई थी सामूहिक हत्या*

श्रीनगर 26 Aug. (Rns/FJ): जम्मू कश्मीर से बड़ी खबर सामने आई है। जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने एक दशक पहले बंद हो चुके नदीमर्ग नरसंहार केस को रि-ओपन करने का आदेश दिया है। मार्च 2003 में मजहबी कट्टपंथियों द्वारा पुलवामा जिले में 24 कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। न्यायमूर्ति संजय धर ने 21.12.2011 के आदेश को वापस लेने का अनुरोध स्वीकार कर लिया, जिसमें आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई थी। नदीमर्ग में हुए कश्मीरों पंडितों के नरसंहार मामले में 2003 में जैनापोरा, शोपियां में धारा 302, 450, 395, 307, 120-बी, 326, 427 आरपीसी, 7/27 आर्म्स एक्ट और धारा 30 के तहत मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में 7 लोगों का चालान किया गया था। जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट 15 सितंबर, 2022 को केस में अगली सुनवाई करेगा।

नदीमर्ग हत्याकांड मामले को फिर से खोलने से संबंधित सुनवाई में जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस संजय धर ने कहा, ‘मामले की सुनवाई के दौरान, अभियोजन पक्ष ने निचली अदालत के समक्ष एक आवेदन दायर किया, जिसमें कमीशन पर सामग्री अभियोजन गवाहों की जांच करने की अनुमति मांगी गई थी। जैसा कि अभियोजन पक्ष के अनुसार, ये गवाह कश्मीर घाटी से बाहर चले गए थे और खतरे के डर से शोपियां में निचली अदालत के समक्ष पेश होने से हिचक रहे थे।’

***********************************

इसे भी पढ़ें : आबादी पर राजनीति मत कीजिए

इसे भी पढ़ें : भारत में ‘पुलिस राज’ कब खत्म होगा?

इसे भी पढ़ें : प्लास्टिक मुक्त भारत कैसे हो

इसे भी पढ़ें : इलायची की चाय पीने से मिलते हैं ये स्वास्थ्य लाभ

तपती धरती का जिम्मेदार कौन?

मिलावटखोरों को सजा-ए-मौत ही इसका इसका सही जवाब

जल शक्ति अभियान ने प्रत्येक को जल संरक्षण से जोड़ दिया है

इसे भी पढ़ें : भारत और उसके पड़ौसी देश

इसे भी पढ़ें : चुनावी मुद्दा नहीं बनता नदियों का जीना-मरना

इसे भी पढ़ें : *मैरिटल रेप या वैवाहिक दुष्कर्म के सवाल पर अदालत में..

इसे भी पढ़ें : अनोखी आकृतियों से गहराया ब्रह्मांड का रहस्य

इसे भी पढ़ें : आर्द्रभूमि का संरक्षण, गंगा का कायाकल्प

इसे भी पढ़ें : गुणवत्ता की मुफ्त शिक्षा का वादा करें दल

इसे भी पढ़ें : अदालत का सुझाव स्थाई व्यवस्था बने

इसे भी पढ़ें : भारत की जवाबी परमाणु नीति के

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version