‘गंगा किनारे परदेसी’ की शूटिंग उत्तराखंड में होगी

एबी बंसल प्रोडक्शन के बैनर तले बनने जा रही निर्माता डॉ अभय बंसल की भोजपुरी फिल्म ‘गंगा किनारे परदेसी’ के लिए बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता शाहबाज खान को अनुबन्धित किया गया है। इस सामाजिक और पारिवारिक भोजपुरी सिनेमा में चर्चित स्टार सत्येंद्र सिंह राजपूत और अभिनेत्री अलीशा अली खान की जोड़ी स्क्रीन पर नए अंदाज में नज़र आएगी। एन आर घिमरे के निर्देशन में बनाई जा रही इस फिल्म के लेखक अविनाश कुमार रजक, डीओपी दिव्यराज सुबेदी, फाइट मास्टर शुक्रज शाह, डांस मास्टर पप्पू खन्ना, आर्ट डायरेक्टर रणधीर और कार्यकारी निर्माता आशीष कुमार हैं। इस फिल्म में तनुश्री चटर्जी, केके गोस्वामी, अरुण सिंह काका, धर्मेंद्र कुमार,  नीलू यादव, अभय बंसल, रमेश द्विवेदी और उमेश सिंह की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इस फिल्म की शूटिंग फरवरी माह के प्रथम सप्ताह में उत्तराखंड के देहरादून, मसूरी, हरिद्वार, ऋषिकेश के विभिन्न लोकेशनों में की जाएगी।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

बॉलीवुड कॉलिंग’ कंसल्टेंसी वेबसाइट के जरिये हम नवोदित प्रतिभाओं को प्रकाश में लाना चाहते हैं – फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा

पिछले दिनों बॉलीवुड के प्रसिद्ध फिल्म पत्रकार ज्योति वेंकटेश द्वारा फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा और  अविराज दापोडिकर के द्वारा मुम्बई में संचालित मीडिया एजेंसी और कंसल्टेंसी की वेबसाइट ‘बॉलीवुड कॉलिंग’ का उद्घाटन किया गया। उद्घाटन समारोह में संचिता सेन, अमित मिश्रा, उज्जवल रॉय चौधरी, अंकुर त्यागी, शुभम शर्मा और परिधि शर्मा के अलावा बॉलीवुड के कई नामचीन शख्शियत मौजूद थे। इसके साथ ही झारखंड की धरती से जुड़े फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा की चर्चा बड़े जोर शोर से बॉलीवुड में होने लगी है। चाईबासा (झारखंड) के मूल निवासी फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा ने अपना फिल्मी कैरियर 1992 में बतौर फिल्म पत्रकार शुरू किया था। बाद में इन्होंने अपना रुख पटकथा लेखन, निर्देशन और फिल्म निर्माण की ओर किया और अपनी प्रतिभा के बदौलत बॉलीवुड में झारखंड का परचम लहराया।

फिल्म ‘काबू’ (2002), ‘बॉर्डर हिंदुस्तान का’ (2003), ‘शबनम मौसी’, ‘धमकी’ (2005), ‘मिस अनारा’ (2007), ‘माई फ्रेंड गणेशा (फिल्म श्रृंखला 2007), ‘सावंरिया’ (2007), ‘माई हस्बैंडस वाइफ’ (2010), ‘मैं कृष्णा हूँ’, ‘ज़िन्दगी 50-50′(2013), ‘लव यू फैमिली’ (2017), ‘सत्य साईं बाबा’ (2021) के अलावा मराठी फिल्म ‘बाला’ जैसी कई हिट फिल्मों का लेखन व निर्देशन कर चुके फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा की फिल्म ‘ मुम्बई कैन डांस साला’ (1915) उनकी काफी चर्चित फिल्मों में से एक है। आम लीक से हट कर सिनेदर्शकों को स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करने के लिए ब्लू अम्ब्रेला एंटरटेनमेंट के बैनर तले फिल्म ‘जैक एंड मिस गिल’ के निर्माण कार्य को मूर्तरूप देने की दिशा में फिलवक्त फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा अग्रसर हैं। यशराज स्टूडियो में ‘जैक एंड मिस गिल’ का एक गाना सिंगर श्रेयांश बी  के स्वर में रिकॉर्ड किया जा चुका है। फिल्म निर्देशक अविराज डी के निर्देशन में बनने वाली इस फिल्म के लिए गीतकार विजय संदीप गोलछा के द्वारा लिखे गीत को संगीतकार मिलन हर्ष अपने मधुर संगीत से सजाया है। फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा को बॉलीवुड में उनके द्वारा नवोदित प्रतिभाओं को प्रकाश में लाने के उद्देश्य से किये गए कार्यों के लिए देहरादून इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (छठा सीजन) में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की उपस्थिति में अवार्ड दे कर सम्मानित किया जा चुका है।

बकौल फिल्मकार सचिन्द्र शर्मा वर्तमान समय में ओटीटी प्लेटफार्म के जरिये भारी संख्या में दर्शकों का एक नया वर्ग सामने आया है और उनकी संख्या में उत्तरोत्तर इजाफ़ा हो रहा है ये बॉलीवुड के लिए शुभ संकेत है। कई फिल्म निर्माता निर्देशक नवोदित प्रतिभाओं के साथ संदेशपरक कंटेंट के साथ सामने आ रहे हैं। उसी दिशा में अग्रसर रहते हुए ‘बॉलीवुड कॉलिंग’ कंसल्टेंसी वेबसाइट के जरिये हम नवोदित प्रतिभाओं को प्रकाश में लाना चाहते हैं।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

रूपा तिर्की मौत मामले में न्यायमूर्ति श्री वी के गुप्ता ने वर्चुअल माध्यम से संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया

रांची, पुलिस उप निरीक्षक (सब इंस्पेक्टर) रूपा तिर्की मौत मामले की जांच कर रहे एक  सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग के न्यायमूर्ति श्री वी के गुप्ता  (झारखंड उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश) ने आज वर्चुअल माध्यम से संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया।  उन्होंने बताया कि जांच रिपोर्ट स्थानिक आयुक्त श्री एम आर मीणा को सौंप दी गई है। विधिक प्रक्रिया के तहत सरकार द्वारा अब इस रिपोर्ट को स्वीकृत किए जाने के बाद सार्वजनिक किया जाएगा  । वहीं, सार्वजनिक करने के 6 माह के अंदर   जांच रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर  रखा जाएगा।

भारत की जवाबी परमाणु नीति के मायने

जी. पार्थसारथी –
भारत की परमाणु प्रति-चेतावनी उपायों की एक खासियत इस पर गोपनीयता बरतने की रही है। यह आवश्यक भी है क्योंकि भारत के परमाणु अस्त्र और मिसाइल कार्यक्रम में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र, मसलन, डीआरडीओ, परमाणु ऊर्जा विभाग, अकादमिक संस्थान और व्यावसायिक संगठनों के वैज्ञानिक एवं इंजीनियरों की प्रतिबद्धता जुड़ी है। भारत के परमाणु कार्यक्रम पर दुनियाभर के विशेषज्ञों की टोही नजर लगातार बने रहना स्वाभाविक है, जैसे कि फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट, यूके, फ्रांस, रूस के संगठन और फिर चीन और पाकिस्तान की खास नजऱ तो रहती ही है।
जहां भारतीय वैज्ञानिक बैलेस्टिक मिसाइल परीक्षणों पर न्यूनतम जानकारी वाले वक्तव्य देते हैं, वहीं अमेरिकी प्रकाशन जैसे कि बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट और मैक्आर्थर फाउंडेशन सरीखे संगठनों की पत्रिकाओं में भारतीय परमाणु अस्त्र और अणु कार्यक्रम के बारे में तफ्सील होती है। यह लेख, अध्ययन सावधानीपूर्वक खोजपरक और सत्यापना युक्त होते हैं। रोचक यह कि उक्त जानकारी भारत में समय-समय पर छपे लेखों से कुछ खास अधिक नहीं होती।
बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट के मुताबिक, भारत के पास 150-200 परमाणु अस्त्रास्त्र बनाने लायक मात्रा का संवर्धित प्लूटोनियम है और तैयार हथियारों का अनुमानित भंडार लगभग 150 है। फिर भारत के पास फास्ट ब्रीडर एवं अन्य प्लूटोनियम रिएक्टरों के बूते परमाणु हथियार ग्रेड परमाणु पदार्थ बढ़ाने की क्षमता भी है। कुख्यात रहे पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक डॉ. एक्यू खान के मुताबिक, पाकिस्तान ने चीन को यूरेनियम संवर्धन की सेंट्रीफ्यूगल तकनीक दी थी, जिसकी जानकारी उन्होंने 1970 और 1980 के दशक में यूरोप में काम करते वक्त चुराई थी। बदले में, चीन ने पाकिस्तान को परमाणु अस्त्रास्त्र लायक स्वदेशी यूरेनियम संवर्धन करने की तकनीक साझा की थी। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने इस घटनाक्रम को जानबूझकर अनदेखा किया था क्योंकि तब वे 1978 में चीनी नेता देंग शियाओ पिंग की वाशिंगटन यात्रा के दौरान दिखाए दोस्ताना रवैये से अभिभूत हो चुके थे।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस इंस्टिट्यूट (सिपरी) के आकलन के अनुसार, आज की तारीख में चीन के पास कोई 350 परमाणु अस्त्र हैं, पाकिस्तान की संख्या 165 है, तो भारत के पास 156 आणविक मिसाइलें हैं। भारत ने थलीय मिसाइलों के परीक्षणों के अलावा लगभग एक महीने पहले अपनी तीसरी परमाणु पनडुब्बी को सेवारत किया है, जो कि 8 बैलेस्टिक मिसाइलों से लैस है। इससे पहले वाली दो पनडुब्बियों में, प्रत्येक में 4 बैलेस्टिक मिसाइलें तैनात हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि में अब भारत के पास मिसाइलें पाइपनुमा मौसम-रोधी सील युक्त डिब्बों में रखकर एक से दूसरी जगह पहुंचाने की काबिलियत भी है। यह नई सुविधा हाल ही में परीक्षणों से गुजरी है और 5000 किमी. तक मार करने वाली अग्नि-पी और अग्नि-वी समेत तमाम अन्य मिसाइलों के लिए उपयुक्त है। अनेकानेक अध्ययनों में भारत की आणविक मिसाइलें दागने की क्षमता में फ्रांस निर्मित मिराज़-2000 और राफेल विमानों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है।
चीन ने पाकिस्तान को परमाणु हथियार और कई दूरियों वाली मिसाइलें बनाने का डिज़ाइन दिया है। उसने पाकिस्तान को जो मिसाइलें दी हैं, उनमें कम दूरी (320 किमी.) की गजऩवी से लेकर 2500 किमी. तक मार करने वाली शाहीन-2 और 2780 किलोमीटर रेंज वाली शाहीन-3 शामिल हैं। मजेदार यह कि चीन ने आणविक-अस्त्रों का जो डिज़ाइन पाकिस्तान को दिया है, वह वही है जो एक्यू खान ने लीबिया और इराक जैसे इस्लामिक देशों से भी साझा किया था।
भारत अब तक तीन परमाणु-शक्ति चालित पनडुब्बियां बना चुका है और चौथी अगले साल बेड़े में शामिल होने की उम्मीद है। यह खबर भी है कि भारत में मल्टीपल वार-हैड युक्त मिसाइलें बनाने पर काम चल रहा है। फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि 18 दिसंबर, 2021 को भारत ने अग्नि-पी मिसाइल का दूसरा परीक्षण अब्दुल कलाम रेंज नामक एकीकृत परीक्षण स्थल से किया है। इसका पहला टेस्ट जनवरी, 2020 में हुआ था। इससे भारत के लगातार बढ़ते परमाणु पनडुब्बी बेड़े में अग्नि-पी मिसाइलों की तैनाती की संभावना प्रशस्त हो गई है, जिसके पास पहले ही पनडुब्बियों से दागी जाने वाली अग्नि-5 और मल्टीपल वारहैड मिसाइलें हैं।
रिवायती ‘महान हान समुदाय श्रेष्ठता’ से ग्रस्त चीन आगे भी दिखावा करता रहेगा कि उसे भारत के साथ परमाणु अस्त्रों पर कोई संवाद करने में दिलचस्पी नहीं है। इसी बीच भारत पनडुब्बी से दागी जा सकने और 3500 किमी. रेंज वाली के-4 मिसाइल विकसित कर रहा है। यह अंतर-मध्यम दूरी वाली अग्नि-3 का नौसैन्य रूपांतर है। के-4 के अनेक परीक्षण हो चुके हैं लेकिन तैनाती होना बाकी है। जनवरी, 2020 में इसका एक परीक्षण विशाखापट्टनम के तट से लगे समुद्र में जलमग्न पन्टून मंच से दागकर किया गया था। हालांकि डीआरडीओ ने इस टेस्ट की तस्दीक नहीं की थी, लेकिन अधिकारियों को उद्धृत करती मीडिया रिपोर्टों में इसके सफल रहने का दावा था।
हालांकि पाकिस्तान ने कभी औपचारिक रूप से अपने परमाणु अस्त्र उपयोग सिद्धांत का खुलासा नहीं किया है, परंतु न्यूक्लियर कमांड ऑथोरिटी के सामरिक योजना विभाग के लंबे अर्से तक मुखिया रहे ले. जनरल खालिद किदवई ने वर्ष 2002 में इटली के लांडाऊ नेटवर्क के भौतिक वैज्ञानिकों को बताया था कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार ‘केवल भारत को निशाना बनानेÓ हेतु हैं। किदवई ने आगे कहा कि यदि कभी भारत बड़े पाकिस्तानी हिस्से को जीत लेता है या हमारी थल और वायुसेना को भारी नुकसान पहुंचाता है या फिर पाकिस्तान की आर्थिकी का गला घोटे अथवा राजनीतिक रूप से अस्थिर करे, इन सूरतों में भी हम परमाणु हथियार इस्तेमाल करेंगे। वह शख्स, जो एक दशक से ज्यादा समय तक पाकिस्तान के परमाणु हथियार जखीरे का नियंता और बांग्लादेश लड़ाई में 1971-73 के बीच युद्ध-बंदी रहने के अलावा एक व्यावसायिक फौजी हो, उसका यह वक्तव्य पाकिस्तान के परमाणु मंतव्यों की रूपरेखा स्पष्ट करता है। चूंकि भारत का इरादा पाकिस्तान के साथ लंबा युद्ध चलाकर अपने स्रोतों का ह्रास करने का नहीं है और न ही घनी आबादी से पटे शहर कब्जाने की ख्वाहिश है, तथापि पाकिस्तान को मुगालता न रहे कि 26/11 जैसा हमला होने की सूरत में नया भारतीय नेतृत्व, गांधी के अहिंसावादी विचारों का नव-अनुगामी होने के बावजूद, आराम से बैठा रहेगा।
अब यह एकदम साफ है कि दिवालिया हुए पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संगठनों का भारी दबाव है, ऐसे में उसको भारत को अस्थिर करने की चाहत में आतंकवादियों की मदद जारी रखने से पहले सोच-विचार करना चाहिए। फिर, वह ड्यूरंड सीमा रेखा को मान्यता न देने वाली पश्तून आकांक्षा को तालिबान का समर्थन मिलने के मद्देनजर दूरंदेशी से काम ले। रोचक है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में कहा है कि बेशक भारत परमाणु हथियार पहले प्रयोग न करने वाली अपनी नीति पर कायम है, वहीं भविष्य में क्या होता है यह हालात पर निर्भर होगा।
देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को चीन और पाकिस्तान से दरपेश दोहरी चुनौतियों का सामना करने के लिए विकसित की गई स्वदेशी मिसाइल एवं परमाणु क्षमता प्राप्त करने में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम एवं उनकी टीम के इंजीनियरों और परमाणु ऊर्जा विभाग के विशिष्ट साइंसदानों का योगदान सदा याद रखना चाहिए। साथ ही निजी क्षेत्र के उन लोगों का भी, जिन्होंने इस राष्ट्रीय प्रयास में गुप्त रूप से महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।

उनके जाने से सूना हुआ कथक का आंगन

अतुल सिन्हा –
16 जनवरी, 2022 की रात करीब बारह-सवा बारह बजे का वक्त। दिल्ली के अपने घर में पंडित जी अपनी दो पोतियों रागिनी और यशस्विनी के अलावा दो शिष्यों के साथ पुराने फिल्मी गीतों की अंताक्षरी खेल रहे थे। हंसते-मुस्कराते, बात-बात पर चुटकी लेते पंडित जी को अचानक सांस की तकलीफ हुई और कुछ ही देर में वह सबको अलविदा कह गए। आगामी 4 फरवरी को 84 वर्ष के होने वाले थे। बेशक उन्हें कुछ वक्त से किडनी की तकलीफ थी, डायलिसिस पर भी थे, लेकिन उनकी जीवंतता और सकारात्मकता अंतिम वक्त तक बरकरार थी।
पंडित जी में आखिर ऐसा क्या था जो उन्हें सबका एकदम अपना बना देता था? कथक को दुनियाभर में एक खास मुकाम और पहचान दिलाने वाले पंडित जी आखिर कैसे एक संस्था बन गए थे और कैसे उन्हें नई पीढ़ी भी उतना ही प्यार और सम्मान देती थी? इसके पीछे थी उनकी कभी न टूटने वाली उम्मीद। कुछ साल पहले उनके साथ हुई मुलाकात के दौरान ऐसी कई यादगार बातें पंडित जी ने कहीं। वे कहते– कथक और शास्त्रीय नृत्य का भविष्य उज्ज्वल है, इसकी संजीदगी और भाव-भंगिमाएं आपको बांध लेती हैं। नई पीढ़ी को इसकी बारीकी समझ में आ रही है और बड़ी संख्या में देश-विदेश में बच्चे कथक सीख रहे हैं। वह यह भी बताते थे कि कैसे कथक मुगलों के ज़माने से सम्मान पाता रहा, भारतीय नृत्य और संगीत की परंपरा कितनी पुरानी है और कैसे उनके वंशज आसफुद्दौला से लेकर नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में राज नर्तक और गुरु थे। उनके दादा कालिका महाराज और उनके चाचा बिंदादीन महाराज ने मिलकर लखनऊ के कालिका-बिंदादीन घराने की नींव रखी।
बातचीत में अक्सर पंडित जी अपने पिता अच्छन महाराज के अलावा अपने चाचा लच्छू महाराज और शंभु महाराज का जिक्र करते थे। तीन साल के थे तभी पिता अच्छन महाराज ने उनमें ये प्रतिभा देखी और नृत्य सिखाने लगे। नौ साल के होते-होते पिता का साया उठ गया तो चाचा लच्छू महाराज और शंभु महाराज ने उन्हें शिक्षा दी। एक दिलचस्प किस्सा भी पंडित जी ने बताया था कि जिस वार्ड में उनका जन्म हुआ, उसमें उस दिन वे अकेले बालक थे, बाकी लड़कियां। सबने तभी कहा कि कृष्ण-कन्हैया आया है साथ में गोपियां भी आई हैं। ऐसे में नाम रखा गया बृजमोहन, जो बाद में बिरजू हो गया।
अपने जीवन से जुड़े ऐसे कई दिलचस्प किस्से पंडित जी सुनाया करते थे। वह यह भी कहते कि नर्तक सिर्फ नर्तक नहीं होता, उसे सुर की समझ होती है, संगीत उसके रग-रग में होता है। संगीत और नृत्य को कभी अलग करके देखा ही नहीं जा सकता। इसलिए पंडित बिरजू महाराज बेहतरीन गायक भी थे, शानदार तबलावादक भी थे और तमाम तरह के तार और ताल वाद्य वे बजा लेते थे। अपने घराने की खासियत पंडित जी कुछ इस तरह बताते थे– बिंदादीन महाराज ने करीब डेढ़ हजार ठुमरियां रचीं और गाईं, कथक की इस शैली में ठुमरी गाकर भाव बताना इसी शैली में आपको मिलेगा। तत्कार के टुकड़ों ‘ता थई, तत थई कोÓ भी कई शैलियों और तरीकों से नाच में उतारा जाता है।
कथक के तकनीकी पहलुओं पर आप उनसे घंटों बात कर सकते थे। नृत्य में आंखों का इस्तेमाल, भाव-भंगिमाएं और पैरों की थिरकन और हाथों की मूवमेंट के बारे में उनसे बैठे-बैठे बहुत कुछ समझ सकते थे। एक खास बात और जो वह बार-बार कहते थे कि नृत्य को कभी लड़का या लड़की की सीमा में बांध कर नहीं देखना चाहिए। ये सोच बदलनी चाहिए कि शास्त्रीय नृत्य सिर्फ लड़कियों के लिए है। जिसके अंदर लचक है, सुर की समझ है, संवेदनशीलता है, भाव-भंगिमाएं हैं वह नाच सकता है। शायद इसी लिए पंडित बिरजू महाराज को एक संस्था कहा जाता है।
पंडित जी ने कई नृत्य शैलियां भी विकसित कीं और नए-नए प्रयोग किए। चाहे वह माखन चोरी हो, मालती माधव हो या फिर गोवर्धन लीला। इसी तरह उन्होंने कुमार संभव को भी उतारा और फाग बहार की रचना की।
मात्र तेरह साल के थे तभी दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य सिखाने लगे थे। भारतीय कला केन्द्र से लेकर कथक केन्द्र तक वह लगातार संगीत और नृत्य की शिक्षा देते रहे। 1998 में कथक केन्द्र से रिटायर होने के बाद पंडित जी ने दिल्ली के गुलमोहर पार्क में अपना केन्द्र खोला– कलाश्रम कथक स्कूल। देश-विदेश में पंडित जी ने हजारों प्रस्तुतियां दीं। कोई भी संगीत और नृत्य समारोह पंडित बिरजू महाराज के बगैर खाली खाली-सा लगता था। स्पिक मैके के तमाम आयोजनों में नए बच्चों के बीच अक्सर पंडित जी घुल-मिलकर बातें करते और कथक के बारे में बताते।
पद्मविभूषण से नवाजे जाने से पहले पंडित जी को संगीत नाटक अकादमी सम्मान और कालीदास सम्मान समेत तमाम प्रतिष्ठित मंचों पर सम्मानित किया गया। लेकिन वह हमेशा यही कहते कि हमारा सबसे बड़ा सम्मान लोगों का प्यार है। फिल्म देवदास के मशहूर डांस सीक्वेंस काहे छेड़े मोहे… के बारे में बात करते हुए वह माधुरी दीक्षित को एक बेहतरीन कलाकार बताते थे। वे कहते थे कि माधुरी को इस नृत्य में जो भाव-भंगिमाएं और आंखों की अदा हमने एक-दो दफा बताई और उन्होंने इसे लाजवाब तरीके से कर दिखाया। बाद में उन्होंने दीपिका पादुकोण की फिल्म बाजीराव मस्तानी के मशहूर डांस सीक्वेंस का निर्देशन किया – मोहे रंग दो लाल। शतरंज के खिलाड़ी में भी पंडित जी के दो डांस सीक्वेंस थे। ऐसी फेहरिस्त बहुत लंबी है।
जाहिर है पंडित जी का जाना कथक और भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य परंपरा के लिए एक गहरे सदमे की तरह है। बेशक उनके काम को उनकी अगली पीढिय़ां आगे बढ़ाती रहेंगी और कथक को लेकर उनके भीतर जो जुनून था वह बरकरार रहेगा। लेकिन पंडित जी जैसा भला कोई और कैसे हो सकता है।

राशनकार्ड धारियों के लिए पेट्रोल सब्सिडी योजना एप लांच

*गणतंत्र दिवस पर मुख्यमंत्री दुमका से करेंगे योजना का शुभारम्भ, लाभुकों को मिलने लगेगा योजना का लाभ

रांची, मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना अथवा झारखण्ड राज्य खाद्य सुरक्षा योजना से आच्छादित गरीब लोगों  को उनके दो-पहिया वाहन के लिए “पेट्रोल सब्सिडी योजना” के तहत निबंधन हेतु CMSUPPORTS एप लांच किया।

अब एप या http://jsfss.jharkhand.gov.in में निबंधन कर राशन कार्ड धारी योजना का लाभ ले सकेंगे। 26 जनवरी 2022 से योजना के जरिये राशन कार्ड से आच्छादित लाभुकों को अपने दो-पहिया वाहन के लिए प्रति माह अधिकतम 10 लीटर पेट्रोल के लिए प्रति लीटर 25 रूपये की सब्सिडी यानि 250 रूपये प्रतिमाह उनके बैंक खाते में डीबीटी के माध्यम से हस्तांतरित की जायेगी। मुख्यमंत्री 26 जनवरी 2022 को दुमका से योजना का शुभारम्भ कर योजना की आहर्ता पूर्ण करने वाले लाभुकों को लाभान्वित करेंगे।

 *पेट्रोल सब्सिडी योजना हेतु ये है अहर्ता:-

 *आवेदक को राज्य के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम अथवा झारखण्ड राज्य खाद्य सुरक्षा अधिनियम का राशन कार्ड धारी होना चाहिए।

* राशन कार्ड में परिवार के सभी सदस्यों का सत्यापित आधार संख्या अंकित होना चाहिए।

 *आवेदक के आधार से लिंक बैंक खाता संख्या एवं मोबाइल नंबर अपडेट होना चाहिए।

* आवेदक के वाहन का निबंधन आवेदक के नाम से होना चाहिए।

*आवेदक का वैद्य ड्राइविंग लाइसेंस होना चाहिए।

 *आवेदक का दो- पहिया वाहन झारखण्ड राज्य में निबंधित होना चाहिए।

 *ऐसे करें रजिस्टर/निबंधन:-

* CMSUPPORT एप अथवा http://jsfss.jharkhand.gov.in में जाकर आवेदक को अपना राशन कार्ड एवं आधार संख्या डालना होगा, जिसके उपरांत उनके आधार से जुड़े मोबाइल नंबर पर OTP जायेगा।

* आवेदक का राशन कार्ड संख्या Login तथा परिवार के मुखिया का आधार का अंतिम आठ अंक का Password होगा।

* OTP सत्यापन के बाद आवेदक राशनकार्ड में नाम चुनते हुए वाहन संख्या एवं ड्राइविंग लाइसेंस नंबर दर्ज करेंगे।

* ऐसे होगा सत्यापन:-

*वाहन संख्या DTO के लॉगिन में जायेगा, जिसे DTO द्वारा सत्यापित किया जाएगा।

*सत्यापन के बाद सूची जिला आपूर्ति पदाधिकारी के लॉगिन में जायेगी।

 इस अवसर पर मंत्री श्री आलमगीर आलम, मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव, मंत्री श्री चम्पाई सोरेन, मंत्री श्री सत्यानंद भोक्ता, मंत्री श्री बन्ना गुप्ता, मंत्री श्री मिथलेश ठाकुर, मंत्री श्रीमती जोबा मांझी, मंत्री श्री बादल पत्रलेख, मंत्री श्री हफीजुल हसन, मुख्य सचिव श्री सुखदेव सिंह, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजीव अरुण एक्का, मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे, श्रीमती हिमानी पांडेय, सचिव खाद्य आपूर्ति व सार्वजानिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग एवं अन्य उपस्थित थे |

मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद माली में फंसे श्रमिकों तक पहुंची मदद

*गिरिडीह एवं हजारीबाग के 33 श्रमिकों ने मुख्यमंत्री से लगाई थी मदद की गुहार

*श्रम आयुक्त ने माली स्थित भारतीय दूतावास को लिखा था पत्र, जानकारी मिलने पर दूतावास ने की कार्रवाई

*भारतीय दूतावास के अधिकारियों की उपस्थिति में कंपनी एवं कर्मियों के बीच हुई बैठक

*बैठक के जरिए कंपनी की तरफ से श्रमिकों के रांची तक के हवाई टिकट एवं बकाया वेतन भुगतान की हुई व्यवस्था

*भारतीय दूतावास ने बताया-  कोविड19 की वजह से माली से इंडिया के लिए एक ही साप्ताहिक फ्लाइट, जल्द घर पहुंचेंगे सभी श्रमिक

रांची, 16 दिसंबर 2021 को रांची स्थित प्रोजेक्ट भवन में आयोजित कार्यक्रम में SRMI(Safe Responsible Migration Initiative) योजना के लॉन्च के दौरान मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने राज्यभर से दूसरे राज्यों एवं विदेशों तक काम की तलाश में जाने वाले श्रमिकों के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि कोरोना काल के दौरान प्रवासी श्रमिकों के साथ देशभर में हुई त्रासदी को देखते हुए राज्य सरकार इस समस्या के समाधान के लिए लगातार प्रयासरत है। साथ ही, प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए इस योजना की शुरुआत की जा रही है। हमारा प्रयास है कि अगर हमारे राज्य का श्रमिक या कोई भी कामगार कमाने के लिए राज्य से बाहर किसी भी स्थान पर जाता है , तो वह निर्भीक एवं सुरक्षित महसूस करे कि उनके राज्य की सरकार किसी भी प्रकार की समस्या की स्थिति में उनके साथ है।

इस योजना की शुरुआत से पहले एवं योजना की शुरुआत के बाद भी ऐसे कई मौके आए जब राज्य के बाहर किसी विपरीत परिस्थिति में फंसे श्रमिकों ने राज्य सरकार से मदद की गुहार लगाई एवं मुख्यमंत्री ने उन मामलों में पूरी संवेदनशीलता दिखाते हुए श्रमिकों की सकुशल घर वापसी की व्यवस्था सुनिश्चित की।

अफ्रीकी देश माली में फंसे 33 मजदूरों ने लगाई थी देश वापसी की गुहार

रविवार, दिनांक- 16 जनवरी को मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन को यह जानकारी मिली की अफ्रीकी देश माली में गिरिडीह एवं हजारीबाग जिले के 33 प्रवासी श्रमिक फंसे हुए हैं एवं उन्हें उनके काम का मेहनताना भी नहीं दिया जा रहा है। तीन महीने से अधिक वक्त बीत जाने के बाद भी कंपनी द्वारा प्रवासी श्रमिकों को वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने लिया संज्ञान, मंत्री श्री सत्यानन्द भोक्ता को कहा- श्रमिकों के लिए हर संभव मदद की करें व्यवस्था

मामले पर त्वरित संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने मंत्री श्रम, नियोजन, प्रशिक्षण एवं कौशल विभाग श्री सत्यानंद भोक्ता को मामले में त्वरित कार्रवाई कर श्रमिकों तक हर संभव मदद पहुंचाने का निर्देश दिया। जिसपर त्वरित कार्रवाई करते हुए मंत्री श्री सत्यानंद भोक्ता ने ट्वीटर के जरिए ही मजदूरों का संपर्क सूत्र पता कर लेबर कमिश्नर, झारखण्ड सरकार को माली स्थित भारतीय दूतावास से संपर्क करने का निर्देश दिया।

श्रम आयुक्त ने माली स्थित भारतीय दूतावास में राजनयिक को लिखा पत्र

मजदूरों से तत्काल संपर्क स्थापित कर एवं उनसे उनकी समस्या की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के उपरांत लेबर कमिश्नर, श्री ए मुथूकुमार ने माली स्थित भारतीय दूतावास के राजनयिक श्री अंजनी कुमार से संपर्क कर मजदूरों की समस्या के समाधान का आग्रह किया।

दूतावास के जरिए मजदूरों तक पहुंची मदद

अफ्रीकी देश माली के बमाको स्थित भारतीय दूतावास ने राज्य सरकार द्वारा दी गई जानकारी पर संज्ञान लिया। तत्पश्चात दूतावास ने मजदूरों एवं कंपनी से संपर्क स्थापित किया। दोनों ही पक्षों को मामले के समाधान के लिए 18 जनवरी को बैठक के लिए आमंत्रित किया गया। भारतीय दूतावास की मध्यस्थता में आयोजित बैठक के दौरान कंपनी के अधिकारियों ने मजदूरों का बकाया वेतन भुगतान करने एवं सभी 33 मजदूरों के माली से रांची तक की फ्लाइट टिकट की व्यवस्था करने की जिम्मेवारी ली।

साथ ही, फ्लाइट मिलने तक ये सभी मजदूर श्रमिक जब तक माली में रहेंगे, उनके रहने, खाने एवं किसी भी प्रकार की आपात व्यवस्था के लिए कंपनी जिम्मेवार होगी। इस मध्यस्थता पत्र पर श्रमिकों की तरफ से एक प्रतिनिधि एवं कंपनी की ओर से एक प्रतिनिधि ने हस्ताक्षर किया। साथ ही, भारतीय दूतावास के दो उच्च अधिकारियों ने इस पर सहमति जताई।

दूतावास ने कंपनी को मजदूरों से नो ड्यूज सर्टिफिकेट प्राप्त कर उनकी घर वापसी की व्यवस्था पूरी कर सूचित करने का निर्देश भी दिया है।

चर्चा में है अदाकारा अमृता राव की प्रेम कहानी

आज के प्रयोगात्मक दौर में  एक अलग तरह की प्रस्तुति ‘कपल ऑफ थिंग्स’ बॉलीवुड अदाकारा अमृता राव अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन दिनों पेश कर रही हैं और इस अनोखे कार्यक्रम में उनका साथ दे रहे हैं चर्चित रेडियो जॉकी अनमोल, जो पिछले 11 साल से अमृता के साथ एक ही छत के नीचे रहते चले आ रहे हैं। वैसे अपनी पूरी प्रेम कहानी को ‘कपल ऑफ थिंग्स’ टाइटल के अंतर्गत अपनी प्रेम कहानी का खुलासा करने का एलान करने के बाद से ही अमृता और अनमोल की चर्चा बॉलीवुड में शुरू हो गई थी। एक फिल्म अभिनेत्री और एक रेडियो जॉकी के बीच की प्रेम कहानी सिनेदर्शकों के बीच कभी नहीं आई थी। यह बॉलीवुड में पहली बार हुआ है जब अमृता और अनमोल एक साथ एक ही फ्रेम में नजर आये और अपने प्रशंसकों को अपने रोमांस से जुड़ी कई निजी जानकारियां भी संयुक्त रूप से, उपलब्ध कराते हुए दोनों प्रशंसकों का मनोरंजन भी कर रहे हैं। ‘कपल ऑफ थिंग्स’ के एपिसोड 12 के लिए दोनों एक दूसरे की असुरक्षाओं और मतभेदों के बारे में चर्चा करने के लिए आमने सामने बैठे। शो के दौरान ही अमृता और अनमोल ने प्रशंसकों के साथ एक स्वस्थ और खुशहाल रिश्तों से जुडी रहस्यों का भी खुलासा किया। उनका शो दिन पर दिन लोकप्रिय होता जा रहा है और प्रशंसक सोशल मीडिया के माध्यम से उनपर अपना प्यार बरसा रहे हैं।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

एक्टर गौरव बजाज के बढ़ते कदम..

मेड इन इंडिया पिक्चर्स’ और ‘स्काई 247’ प्रोडक्शन के बैनर तले बनी शार्ट फिल्म ‘खेल खेल में’ में टीवी एक्टर गौरव बजाज बिल्कुल नए अवतार में नज़र आएंगे। टी वी जगत का नामचीन चेहरा , जिसकी पर्सनालिटी में जितना दम हैं उतना ही वजन उनकी अदाकारी में है। एक्टर गौरव बजाज जो कई टीवी सीरियल के जरिये अपनी एक्टिंग की छाप छोड़ चुके हैं। अब गौरव की एक तूफानी पारी की शुरुवात हो रही है। अंकुर पाण्डेय की कहानी पर आधारित इस शार्ट फिल्म ‘खेल खेल में’ को सोशल मीडिया पर काफी सराहना मिल रही है। इस फिल्म के निर्माता संतोष गुप्ता, निर्देशिका काम्या पाण्डेय और सिनेमेटोग्राफर राज गिल हैं। विदित हो कि गौरव बजाज बॉलीवुड के चर्चित सिंगर अरमान मलिक के साथ भी हाल ही में एक बांग्ला भाषा की म्यूजिक वीडियो की शूटिंग समाप्त कर चुके हैं , जिसकी शूटिंग कोलकाता में सम्पन्न हुई है। म्यूजिक वीडियो में शामिल सॉन्ग को अरमान मलिक ने गाया है। गौरव बजाज के साथ नवोदित एक्ट्रेस करिश्मा शर्मा इस म्यूजिक वीडियो में नज़र आएगी। एक्टर गौरव बजाज के लिए ये बंगाली म्यूजिक वीडियो भी एक अलग तरह का सुखद अनुभव रहा है और तो और गौरव बहुत ही जल्द एक और रोमांटिक म्यूजिक सांग में दिखाई देनेवाले हैं जिसपर अभी भी थोड़ा काम बाकी है। इस साल के मिड तक गौरव की एक वेब सीरीज रिलीज होनेवाली हैं जो एक खूबसूरत कहानी है जिसमें गौरव का ऐसा किरदार निभा रहे हैं जो आज तक उन्होंने नही किया और जिस रोल को वो हमेशा से निभाना चाहते थे। इस बात को लेकर टीवी एक्टर गौरव बजाज फ़िलवक्त बेहद उत्साहित हैं।

प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय

अमेरिका से अच्छे संकेत

अमेरिका से मिल रहे ये ताजा संकेत स्वागत योग्य हैं कि रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने के मामले में वह भारत को प्रतिबंधों से छूट दे सकता है। भारत ने अक्टूबर 2018 में रूस के साथ 5 अरब डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके मुताबिक एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की पांच युनिट खरीदने की बात तय हुई थी। अमेरिका की तत्कालीन ट्रंप सरकार ने चेतावनी दी थी कि अगर भारत ने इस समझौते पर अमल किया तो उसे काटसा (काउंटरिंग अमेरिकाज ऐडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट) के तहत कड़े प्रतिबंध झेलने पड़ सकते हैं। बावजूद इसके, भारत ने सौदे को रद्द या स्थगित नहीं किया और समझौते के मुताबिक पिछले साल इसकी सप्लाई शुरू हो गई।
हालांकि अभी तक बाइडन प्रशासन ने प्रतिबंधों को लेकर कोई फैसला नहीं किया है, लेकिन जिस तरह की चर्चा वहां निर्णयकर्ताओं के बीच चल रही है, उससे लगता है कि अमेरिकी सरकार प्रतिबंध लगाने से बचना चाहेगी। सैंक्शन पॉलिसी के को-ऑर्डिनेटर पद के लिए राष्ट्रपति बाइडन के नॉमिनी जेम्स ओÓब्रायन का यह कहना महत्वपूर्ण है कि भारत पर प्रतिबंध लगाने का फैसला करने से पहले अमेरिका को जियो स्ट्रैटजिक पहलुओं, खासकर चीन के संदर्भ में बदले समीकरणों पर विचार करना होगा। यह भी कि इस मामले में भारत की तुलना तुर्की से नहीं की जा सकती। तुर्की ने भी रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा था, जिसके कारण अमेरिका उस पर प्रतिबंध लगा चुका है।
अच्छी बात है कि अमेरिका में नीति-निर्माताओं को नए अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के मद्देनजर भारत की बढ़ती अहमियत का अहसास है। वे भारत की स्थिति और उसकी जरूरतों को लेकर भी संवेदनशीलता दिखा रहे हैं। वैसे उन्हें यह भी पता है कि यूक्रेन के सवाल पर रूस के साथ अमेरिका के संबंधों में चाहे जितना भी तनाव आ गया हो, भारत को रूस से दूर करने की कोशिश में वे एक हद से आगे नहीं बढ़ सकते। फिलहाल चीन के आक्रामक तेवर के मद्देनजर क्वॉड के एक महत्वपूर्ण सदस्य की हैसियत से भी भारत की भूमिका खासी महत्वपूर्ण है। ऐसे में बहुत संभव है कि अमेरिका प्रतिबंध लगाकर भारत को खुद से दूर कर लेने के बजाय उसे रूस से हथियार के और ज्यादा समझौता न करने को राजी करने की नीति अपनाए।
जहां तक भारत की बात है तो यह पहले दिन से साफ है कि उसकी विदेश नीति दूसरे देशों के आग्रहों या सुझावों से नहीं बल्कि अपने हितों से निर्धारित होती है। हथियारों के मामले में रूस लंबे अर्से से भारत का सबसे बड़ा सहयोगी रहा है। पिछले दशक के दौरान भी भारत में हथियारों के कुल आयात का करीब दो तिहाई हिस्सा रूस से ही आया है। ऐसे में अचानक इस पर रोक लगाना न तो उचित है और न व्यावहारिक। यह बात अमेरिका समझ रहा है तो यह दोनों देशों के रिश्तों में आती गहराई का सूचक है।

 मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने दन्ता हॉस्पिटल, बोकारो में अत्याधुनिक प्राइम स्कैन इकोसिस्टम ऑफ मशीन का ऑनलाइन उद्घाटन किया

*झारखंड- बिहार में पहली बार  दंत चिकित्सा के क्षेत्र इस अत्याधुनिक मशीन का होगा इस्तेमाल

* लोगों के दांतो से संबंधित सभी बीमारियों का सटीक और संपूर्ण इलाज हो सकेगा

रांची,  मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने आज वर्चुअल माध्यम से दन्ता हॉस्पिटल, बोकारो में अत्याधुनिक प्राइम स्कैन इकोसिस्टम ऑफ मशीन का उद्घाटन किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड जैसे राज्य में दंत चिकित्सा के क्षेत्र में  इस अत्याधुनिक मशीन का स्थापित होना गौरव की बात है । इससे दांतों से संबंधित सभी बीमारियों का संपूर्ण इलाज हो सकेगा।  यहां के लोगों को दांतों की बीमारियों के लिए बड़े शहरों के बड़े अस्पतालों का रुख नहीं करना होगा। उन्होंने इसके लिए हॉस्पिटल के संचालकों को बधाई दी।

 कम समय में बेहतर इलाज

इस मौके पर हॉस्पिटल के संचालकों ने बताया कि झारखंड और बिहार में पहली बार इस अत्याधुनिक प्राइम स्कैन इकोसिस्टम ऑफ मशीन की सुविधा लोगों को मिलने जा रही है । इस मशीन के जरिए दांतो का कारगर और सटीक इलाज हो सकेगा । इसके अलावा दांतों के इलाज में पहले जहां कई कई -कई दिन लग जाते हैं, वहीं इस मशीन के माध्यम से अब काफी कम समय में दांतों से जुड़ी बीमारियों का पूरा उपचार हो सकेगा । लोगों को दांतो के इलाज के लिए बार-बार चिकित्सकों और अस्पताल में जाने की जरूरत नहीं होगी ।

इस मौके पर मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे और दन्ता के डॉ अभय सिन्हा तथा डॉ मनीषा सिन्हा  के अलावा हॉस्पिटल के कई चिकित्सक मौजूद थे ।

कम पानी में कृषि कार्यों से दोगुना मुनाफा कमा खुशहाल उद्यमी बन रहे किसान

*राज्य के 9 जिलों के 30 प्रखण्डों में पर्यावरण अनुकूल सब्जी उत्पादन से किसानों को मिल रहा है फायदा

*महिला किसान भी बन रहीं सफल किसान

रांची, हमेशा से परंपरागत तरीके से खेती करने वाली रांची के ओरमांझी की रहनेवाली महिला किसान सुनीता देवी ने नहीं सोचा था कि सिंचाई के तरीके में बदलाव लाने से उत्पादन में बहुत फ़र्क आयेगा और पानी की भी समस्या नहीं रहेगी। सुनीता ने सिंचाई की कठिनाई को टपक सिंचाई से दूर करते हुए दूसरे किसानों के लिए एक मिसाल पेश की है। आज सुनीता ग्रामीण विकास विभाग अंतर्गत झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी के तहत झारखण्ड बागवानी सघनीकरण टपक सिंचाई परियोजना से जुड़कर टपक सिंचाई से खेती शुरू कर अच्छी आमदनी कर रही हैं। सुनीता कहती हैं, टपक सिंचाई योजना से उनकी जिंदगी में काफी बदलाव आ गया। हमारे पास सिंचाई के लिए सिर्फ कुआँ था, जो अक्सर सूख जाता था। जिस कारण हम सिंचाई के लिए पूरी तरह बारिश पर ही आश्रित थे। लेकिन, अब ड्रिप के लग जाने के बाद खेती करना काफी आसान हो गया है। आज एक साथ कई तरह की फसल की खेती कर सालाना 1.5 लाख तक की आमदनी कर लेती हूं।

कम मेहनत, कम लागत और कम पानी में दोगुना हो रहा मुनाफा

सुनीता की ही तरह झारखण्ड बागवानी सघनीकरण टपक सिंचाई परियोजना ने राज्य की हजारों महिला किसानों के जीवन में बदलाव की नई कहानी लिखी है। पश्चिमी सिंहभूम के तांतनगर प्रखण्ड के चिरची गांव निवासी संकरी परंपरागत तरीके से खेती कर सालाना 20-25 हज़ार रुपये अर्जित करती थी, अब वह टपक सिंचाई परियोजना से जुड़कर सालाना 80-90 हज़ार रुपये का मुनाफा कमा रही हैं ।

कृषि कार्यों से उद्यमी बनते कृषक

राज्य के 9 जिलों के 30 प्रखण्ड में इस परियोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है। अब तक पूरे राज्य में करीब 11800 किसान सूक्ष्म टपक सिंचाई एवं अन्य सुविधाओं को लेकर अच्छे उत्पादन से ज्यादा कमाई कर उद्यमिता के पथ पर हैं। अबतक इस परियोजना से जुड़ने के लिए करीब 23 हजार किसानों का पंजीकरण किया जा चुका है। राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में किसानों को सुविधाओं से लैस करना है, ताकि झारखण्ड के कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में भी उन्हें सिंचाई समेत किसी प्रकार की दिक्कत ना हो। इसी कड़ी में राज्य के किसानों को टपक सिंचाई के जरिए कम पानी में बेहतर फसल उपजाने के लिए प्रशिक्षण एवं सुविधा मुहैया करायी जा रही है। जिसका उद्देश्य राज्य के कृषकों को स्थायी एवं पर्यावरण अनुकूल कृषि के जरिए सब्जी उत्पादन में बढ़ोतरी दर्ज करवाना है। सरकार अपने उद्देश्य में सफल भी हो रही है, जिससे हजारों कृषक जो पहले साल में एक फसल पर निर्भर रहते थे, अब साल में तीन-चार फसल उपजाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं।

देवघर से 13 (तेरह) साईबर ठग गिरफ्तार

पुलिस अधीक्षक देवघर, श्री धनंजय कुमार सिंह को प्राप्त गुप्त सूचना पर दिनांक 16.01.2022 को पुलिस उपाधीक्षक (सा०प०), श्री सुमित प्रसाद एवं पुलिस उपाधीक्षक (मु0), श्री मंगल सिंह जामुदा के नेतृत्व में देवघर जिला के मोहनपुर थाना अंतर्गत ग्राम बाबूपुर तथा करौं थाना अंतर्गत ग्राम जगाडीह से कुल 13 (तेरह) साईबर ठगों को गिरफ्तार किया गया है । गिरफ्तार किये गये साइबर ठगों की अपराध शैली निम्न प्रकार हैं.1 8-30 4G₁ LTE2 KB  s 1- Google  पर Flipkart केCustomer Care नम्बर के स्थान पर अपना फर्जी नम्बर Customize कर हेल्प लाईन अधिकारी बनकर तथा JUST DIAL के Business App में login कर Customer Leads प्राप्त कर झांसे में लेकर आम सहायता के नाम से गुप्त जानकारी प्राप्त कर ठगी करते हैं। 2. बैंक के ग्राहकों को फर्जी बैंक अधिकारी बनकर आधार नंबर/पैन नं० लिंक करने के नाम पर मांगते हैं एवं उनसे online अकाउंट खोल लेते हैं तथा उसपर साईबर ठगी की अवैध राशी मंगवाते हैं। 983- Phone Pe Customer को Cash Back का Request भेजकर अन्य E – Wallets जैसे PayU Money, Freecharge, DhaniPay, तथा Gaming App & Dream 11,Skill Clash के माध्यम से साईबर ठगी करते हैं।  4. फर्जी मोबाइल नम्बर से फर्जी बैंक पदाधिकारी बनकर आम लोगों को ATM बंद होने एवं उसे चालू कराने के लिएSeries Call करते हैं । उसके बाद Customer को झांसे में लेकर OTP प्राप्त कर ठगी करते हैं । छापामारी का स्थान 5. PhonePe @ Paytm में पीड़ित का ATM  CARD Number को ADD Money कर OTP प्राप्त कर रूपये ठगी करते हैं। 6. Team viewer एवं Quick Support जैसे Remote Access APPs Install करवाकर पीड़ित के मोबाइल पर आये OTP को अपने मोबाइल पर access कर साईबर ठगी का काम करते है ।

13 (thirteen) cyber thugs arrested from Deoghar

गिरफ्तार

1.अलिमुद्दीन अंसारी उम्र करीब 24 वर्ष पिता कांग्रेस मियाँ,तसलीम अंसारी उम्र करीब 26 वर्ष पिता तैयब मियाँ , अभियुक्तों का नाम व पता

1. अनिल यादव उम्र करीब 26 वर्ष पिता जगरनाथ यादव , 2. अजय कुमार यादव उम्र करीब 19 वर्ष , 3. संजय यादव उम्र करीब 22 वर्ष दोनों पिता सुभाष प्रसाद यादव , 4. छोटू कुमार राय उम्र करीब 19 वर्ष पिता – कालेश्वर राय चारो ग्राम बाबूपुर , थाना दृ मोहनपुर , 5. महेन्द्र कुमार मंडल उम्र करीब 19 वर्ष पिता भवानी मंडल , ग्रामदृ जगाडीह , गिरफ्तार अभियुक्तों के पास से बरामद सामग्री । 8. काबुल मियाँ उम्र करीब 27 वर्ष पिता वहाब मियाँ , 9. अफजल अंसारी उम्र करीब 26 वर्ष पिता- हलीम मियाँ चारो ग्राम पंचरूखी , थाना- मारगोमुण्डा , 10. कलाम अंसारी उम्र करीब 23 वर्ष पिता मुस्तफा अंसारी , ग्राम बदीया , थाना- करौं सभी जिला – देवघर , 11. आलम अंसारी उम्र करीब 25 वर्ष पिता – रफीक अंसारी , ग्राम कासीटांड , थाना- करमाटांड , जिला- जामताड़ा , 12. सलीम अंसारी उम्र करीब 27 वर्ष पिता – राजाउद्दीन मियाँ , ग्राम- खेसवा थाना – मारगोमुण्डा , , 13. मो ० जावेद अंसारी उम्र करीब 24 वर्ष पिता- सनाउल अंसारी , ग्राम घाघरा , थाना- मारगोमुण्ड , जिला देवघर । जप्त सामान मोबाईल स नोट- अभियुक्त काबुल मियाँ साईबर थाना काण्ड संख्या 71 / 2020 दिनांक 29.10.2020 , धारा 419 / 420 / 467 / 468 / 471 / 120 ( बी ) / 34 भा 0 द 0 वि 0 एवं 66 ( बी ) 66 ( सी ) 66 ( डी ) / 84 ( सी ) आई 0 टी 0 एक्ट में आरोपित हैं जो वर्तमान मे जमानत पर मुक्त थे ।

विचार शून्य राजनीति की चुनावी नाटकीयता

राजकुमार सिंह –
दशकों तक नीति-सिद्धांत-कार्यक्रम के आवरण में लिपटी रही राजनीति अब पूरी तरह नाटकीय हो गयी है। खासकर चुनाव के समय तो यह नाटकीयता चरम पर होती है। देश की राजनीति को दिशा देते रहे उत्तर प्रदेश के राजनेताओं का यह आलम है कि लगभग पांच साल तक सत्ता-सुख भोग चुकने के बाद ऐन चुनाव से पहले उन्हें अहसास होता है कि वे अपने-अपने वर्गों की सेवा करने के बजाय उनका शोषण करने वाली व्यवस्था का ही हिस्सा बने हुए थे। तीन दिन में योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल से इस्तीफा देनेवाले तीनों मंत्रियों के इस्तीफे की समान भाषा से उनकी समझ के साथ ही मंसूबों पर भी सवाल उठते ही हैं। अपने-अपने जाति-वर्ग के बड़े नेता माने जानेवाले ये तीनों महानुभाव पिछले विधानसभा चुनाव से पहले ही अचानक निष्ठा बदल कर भाजपाई बने थे। जाहिर है, तब भी उन्होंने अपने समुदाय के हित में पाला बदलने का दावा किया था, जैसा कि अब भाजपा को अलविदा कहते समय किया है। वैसे इन सभी ने दावा किया है कि मंत्री पद पर रहते हुए अपने दायित्व का पूरी निष्ठा से निर्वहन किया। ऐसे में यह स्वाभाविक प्रश्न अनुत्तरित है कि अगर पिछड़े, दलित, युवाओं, बेरोजगारों आदि वर्गों की योगी सरकार में निरंतर अनदेखी हुई तो ये महानुभाव किस दायित्व का निर्वहन कर रहे थे, और क्यों? कई दलों की परिक्रमा कर चुके इन महानुभावों से पूछा जाना चाहिए कि नेताजी, आखिर आपकी राजनीति क्या है!
आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भाजपा और उसके मित्र दलों को अलविदा कह कर मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी में शामिल होने वाले विधायक भी खुद को अपने-अपने जाति-वर्गों के हितों के प्रति चिंतित दिखा रहे हैं—बिना इस स्वाभाविक प्रश्न का उत्तर दिये कि पांच साल तक वे अपने लोगों के हितों के साथ अन्याय के मूकदर्शक क्यों बने रहे? असहज सवालों से मुंह चुराना हमारी राजनीति की पुरानी फितरत है। फिर भी, चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही उत्तर प्रदेश भाजपा में जैसी भगदड़ मची है,उसे सामान्य नहीं माना जा सकता—खासकर तब जबकि केंद्र में भाजपा सरकार का कार्यकाल अभी दो वर्ष से भी ज्यादा शेष है। ऐन चुनाव से पहले दलबदल करनेवाले राजनेताओं के लिए भारतीय राजनीति में एक नया शब्द ईजाद हुआ—चुनावी मौसम विज्ञानी। दिवंगत रामविलास पासवान को इस श्रेणी के राजनेताओं में अगुवा गिना जा सकता है। उत्तर प्रदेश में अब चुनाव से ठीक पहले दल बदलने वाले नेताओं के लिए भी यही शब्द इस्तेमाल करते हुए सवाल पूछा जा रहा है, क्या यह राज्य के बदलते राजनीतिक मिजाज का संकेत है? शायद शब्द कटु लगें,पर सच यही है कि अब खुद को तमाम जाति-वर्गों का हित चिंतक दर्शा रहे ये नेता दरअसल अपनी-अपनी जातियों के ही नेता हैं और उन्हीं के लिए सत्ता में हिस्सेदारी के नाम पर राजनीति करते हैं। आश्चर्यजनक सच यह भी है कि ये महानुभाव किसी भी सरकार या राजनीतिक दल में रहते हुए अपने वर्ग की हितचिंता में कभी मुखर नजर नहीं आये। वैसे दो दशक से भी ज्यादा समय तक उत्तर प्रदेश में सामाजिक न्याय के स्वयंभू ठेकेदार दलों-नेताओं की सरकारें रहने के बावजूद पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की बदहाली की बातें क्या उनके रहनुमाओं को ही कठघरे में खड़ा नहीं करतीं?
स्वामी प्रसाद मौर्य कांशीराम-मायावती की बसपा से राजनीति में आगे बढ़े। बसपा ने उन्हें अपनी सरकार में मंत्री ही नहीं, विपक्ष में आने पर नेता प्रतिपक्ष भी बनाया, पर पिछले चुनाव से पहले वह अचानक भाजपाई हो गये। अगर भाजपा ने उन्हें लिया और फिर सरकार बनने पर कई महत्वपूर्ण विभागों का मंत्री भी बनाया तो जाहिर है, उनकी राजनीतिक उपयोगिता ही मुख्य आधार रहा होगा, पर अब जब फिर चुनाव की बारी आयी तो मौर्य अपने समर्थकों सहित समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये। तीन मंत्रियों और आधा दर्जन से भी अधिक विधायकों के भाजपा से इस्तीफे के बाद दावा किया जा रहा है कि यह सिलसिला जारी रहेगा। तब क्या इस कदर मची भगदड़ को वाकई राज्य की राजनीति में किसी बड़े बदलाव की आहट माना जाये? ध्यान रहे कि अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में भी बबुआ की छवि से नहीं उबर पाये सपा प्रमुख अखिलेश न सिर्फ इस बार गठबंधन के लिए छोटे दलों की पहली पसंद हैं, बल्कि उनकी सभाओं में भीड़ भी जुट रही है। राजनीति की सामान्य समझ भी कहती है कि उत्तर प्रदेश में राजनीति को गहरे तक प्रभावित करने वाले सामाजिक समीकरण बदल रहे हैं। यह भी कि यह बदलाव भाजपा के लिए नुकसानदेह और सपा के लिए फायदेमंद नजर आ रहा है, लेकिन वर्ष 2017 के विधानसभा तथा 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और सपा के मत प्रतिशत और सीटों में फासला इतना ज्यादा रहा, जिसे हालिया नेताओं के पाला बदल और सीमित जनाधार वाले छोटे दलों से गठबंधन के जरिये मिटा पाना आसान नहीं होगा। फिर इस बीच कांग्रेस न सही, बसपा ने तो अपना मत प्रतिशत बढ़ाया ही होगा, जिसे जीत की संभावना वाली सीटों पर अल्पसंख्यक मतों का साथ भी मिलेगा ही। सभी राजनीतिक दलों-नेताओं की बयानबाजी से साफ है कि विधानसभा चुनाव कमंडल-मंडल के बीच होगा। ऐसे में परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि योगी के कमंडल में से अखिलेश कितना मंडल वापस ले पाते हैं।
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सत्ता के लिए जारी सेंधमारी के साथ ही सीमावर्ती राज्य पंजाब में भी चुनावी राजनीति नित नये रंग बदल रही है। पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने के बाद से ही अपनी राज्य सरकार के साथ-साथ आलाकमान का भी सिरदर्द बढ़ाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने अब पार्टी चुनाव घोषणापत्र से पहले ही अपना अलग पंजाब मॉडल घोषित करते हुए यह ऐलान भी कर दिया है कि मुख्यमंत्री आलाकमान नहीं, पंजाब के लोग चुनेंगे। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि विधानसभा चुनाव में राज्य के मतदाता अपना-अपना विधायक चुनते हुए मुख्यमंत्री कैसे चुनेंगे? भारतीय राजनीति, खासकर कांग्रेस की रीति-नीति को जानने वाले समझ सकते हैं कि यह सीधे-सीधे पार्टी आलाकमान को चुनौती है कि वह दलित कार्ड के चुनावी लालच में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा न घोषित कर दे। कांग्रेस आलाकमान के लिए यह सांप-छछूंदर वाली स्थिति है : ऐन चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष को नाराज करना भी ठीक नहीं और उनकी बेलगाम राजनीति के खतरे भी कम नहीं।
पिछली बार पंजाब के मतदाताओं ने कांग्रेस को जनादेश दिया था और आम आदमी पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी थी। उससे पहले लगातार 10 साल तक, भाजपा के साथ गठबंधन कर, सरकार चलाने वाला शिरोमणि अकाली दल भी इस बार बसपा से गठबंधन कर ताल ठोंक रहा है और भाजपा भी कैप्टन अमरेंद्र सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस एवं सुखदेव सिंह ढींढसा के संयुक्त अकाली दल से गठबंधन कर चुनाव को चतुष्कोणीय बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन फिलहाल मुख्य मुकाबला कांग्रेस और आप के बीच ही नजर आ रहा है। यही नहीं, मुख्यमंत्री चुनने के सवाल पर भी कांग्रेस-आप में अंतर्कलह कमोवेश एक जैसा ही है। जैसे चन्नी का दबाव है कि मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुनाव लडऩा कांग्रेस के लिए फायदेमंद रहता है, वैसे ही आप सांसद भगवंत मान भी दबाव बना रहे हैं कि इस बार तो उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जाये। चन्नी के दबाव की काट में ही सिद्धू ने रंग बदलते हुए अब पंजाब के लोगों द्वारा मुख्यमंत्री चुने जाने का दांव चला है तो आप में अंतर्कलह से संभावित नुकसान को न्यूनतम रखने के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा चुनने को अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के लोगों के बीच रायशुमारी का रास्ता निकाला है। प्रयोगवादी कहें या नाटकीय, इस कवायद से दलीय हित पर नेता की निजी राजनीति हावी होती दिख रही है, जिससे चुनावी मुद्दे पार्श्व में चले जायेंगे, जिसे चुनाव प्रक्रिया और लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं माना जा सकता। ऐसी चुनावी राजनीति में विचारधारा की तो बात ही अप्रासंगिक लगती है, पर क्या यह भारतीय राजनीति की बड़ी विडंबना नहीं है!

जान और जहान

ऐसे वक्त में जब कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर में संक्रमितों का आंकड़ा ढाई लाख पार कर गया है, प्रधानमंत्री का विभिन्न मुख्यमंत्रियों के साथ महामारी से लड़ाई के लिये बैठक करना तार्किक नजर आता है। एक सप्ताह में यह प्रधानमंत्री की दूसरी बैठक थी, जिसमें कहा गया कि संक्रमण से बचाव हेतु प्रतिबंधों व उपायों को लागू करते वक्त ध्यान रहे कि स्थानीय स्तर पर लोगों की जीविका पर प्रतिकूल असर न पड़े। स्मरण रहे कि पहली लहर के दौरान लगे सख्त लॉकडाउन से नयी तरह का मानवीय संकट पैदा हुआ था। देश ने विभाजन के बाद पलायन की सबसे बड़ी त्रासदी को देखा। अब तक भी आर्थिक दृष्टि से स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो पायी है। तीसरी लहर के दौरान राज्य सरकारों को स्थानीय प्रशासन को निर्देश देने होंगे कि संक्रमण की कड़ी तोडऩे के लिये एहतियाती उपाय जरूरी हैं, लेकिन जान के साथ जहान की रक्षा भी जरूरी है। देर-सवेर संक्रमण का दायरा सिमटेगा, लेकिन अर्थव्यवस्था को लगी चोट से उबरने में लंबा वक्त लग सकता है। मगर नये संक्रमण को लेकर जैसी दुविधा शासन-प्रशासन के सामने है, वैसी ही दुविधा देश की श्रमशील आबादी के सामने है। हालांकि, केंद्र व राज्य सरकारें आश्वासन दे रही हैं कि पूरा व सख्त लॉकडाउन नहीं लगाया जायेगा, लेकिन दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। पहली लहर की सख्त बंदिशों से महानगरों में श्रमिकों की त्रासदी की कसक अभी मिटी नहीं है। यही वजह है कि देश के कई राज्यों से श्रमिकों के पलायन की खबरें मीडिया में तैरती रही हैं। जाहिर है असुरक्षा बोध को दूर करने का आश्वासन उन उद्योगों की तरफ से श्रमिकों को नहीं मिल पाया, जहां वे काम करते हैं। ऐसे संकट के दौर में उद्योग व श्रमिकों के रिश्ते महज आर्थिक आधार पर न देखे जायें और उन्हें मानवीय संकट के संदर्भ में देखकर ऐसे आश्वासन दिये जाएं कि वे ऊहापोह की स्थिति से निकल सकें।
निस्संदेह, कोरोना की तीसरी लहर ने देश के सामने नये सिरे से बड़ी चुनौती पैदा की है, अच्छी बात यह है कि तेज संक्रमण के बावजूद अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है। निस्संदेह, इसके मूल में देश में चला सफल टीकाकरण अभियान भी है। आंकड़े बता रहे हैं कि मरने व अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों में बड़ी संख्या उन लोगों की है जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई थी। अब वे लोग भी टीका लगवा रहे हैं, जिन्होंने पहले इसकी अनदेखी की। सुखद है कि देश की पंद्रह से 18 साल तक की किशोर आबादी का टीकाकरण शुरू हो गया है और किशोरों ने उत्साह के साथ टीकाकरण अभियान में भागीदारी की है। इसके बावजूद जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि टेस्टिंग, ट्रैकिंग और ट्रीटमेंट की व्यवस्था जितनी बेहतर होगी, लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाने की जरूरत उतनी ही कम पड़ेगी। उन्होंने अधिक संक्रमण वाले इलाकों में निषेध क्षेत्र घोषित करने तथा घरों में पृथकवास पर जोर दिया। दरअसल, जब से विशेषज्ञों ने कहा कि नया वेरिएंट कम घातक है, तो लोग इस संकट को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। भीड़भाड़ वाले इलाकों में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन न करने की खबरें हैं। पूरी दुनिया कह रही है कि मास्क, सुरक्षित दूरी और बार-बार हाथ धोने से बचाव संभव है। विडंबना ही है कि जब तक प्रशासन सख्ती नहीं करता, हम नियम-कानूनों का पालन स्वेच्छा से नहीं करते। जबकि हमने पहली व दूसरी लहर में बड़ी कीमत चुकायी है। एक संकट यह भी है कि देश में बड़ी आबादी ऐसी है जो खांसी-जुकाम को सामान्य फ्लू मानकर जांच करने से बचती है। फिर गांव-देहात में कोरोना जांच की पर्याप्त चिकित्सा सुविधा न होने की बात कही जाती है। यही वजह है कि विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यदि अमेरिका में रोज दस लाख मामले आ रहे हैं तो उनकी जांच प्रक्रिया में तेजी और पर्याप्त चिकित्सा तंत्र का होना है। जांच की स्थिति ठीक होने पर भारत में वास्तविक संक्रमण की दर काफी अधिक हो सकती है।

कमाल ख़ान के नहीं होने का अर्थ

मैं पूछता हूँ तुझसे , बोल माँ वसुंधरे ,
तू अनमोल रत्न लीलती है किसलिए ?

राजेश बादल –
कमाल ख़ान अब नहीं है। भरोसा नहीं होता। दुनिया से जाने का भी एक तरीक़ा होता है। यह तो बिल्कुल भी नहीं। जब से ख़बर मिली है ,तब से उसका शालीन ,मुस्कुराता और पारदर्शी चेहरा आँखों के सामने से नहीं हट रहा। कैसे स्वीकार करूँ कि पैंतीस बरस पुराना रिश्ता टूट चुका है। रूचि ने इस हादसे को कैसे बर्दाश्त किया होगा ,जब हम लोग ही सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं।यह सोच कर ही दिल बैठा जा रहा है।मुझसे तीन बरस छोटे थे ,लेकिन सरोकारों के नज़रिए से बहुत ऊँचे ।
पहली मुलाक़ात कमाल के नाम से हुई थी,जब रूचि ने जयपुर नवभारत टाइम्स में मेरे मातहत बतौर प्रशिक्षु पत्रकार ज्वाइन किया था। शायद 1988 का साल था । मैं वहाँ मुख्य उप संपादक था। अँगरेज़ी की कोई भी कॉपी दो,रूचि की कलम से फटाफट अनुवाद की हुई साफ़ सुथरी कॉपी मिलती थी। मगर,कभी कभी वह बेहद परेशान दिखती थी। टीम का कोई सदस्य तनाव में हो तो यह टीम लीडर की नजऱ से छुप नहीं सकता। कुछ दिन तक वह बेहद व्यथित दिखाई दे रही थी। एक दिन मुझसे नहीं रहा गया। मैने पूछा,उसने टाल दिया। मैं पूछता रहा,वह टालती रही।एक दिन लंच के दरम्यान मैंने उससे तनिक क्षुब्ध होकर कहा , रूचि ! मेरी टीम का कोई सदस्य लगातार किसी उलझन में रहे ,यह ठीक नहीं।उससे काम पर उल्टा असर पड़ता है।उस दिन उसने पहली बार कमाल का नाम लिया।कमाल नवभारत टाइम्स लखनऊ में थे।दोनों विवाह करना चाहते थे। कुछ बाधाएँ थीं । उनके चलते भविष्य की आशंकाएँ रूचि को मथती रही होंगीं । एक और उलझन थी । मैनें अपनी ओर से उस समस्या के हल में थोड़ी सहायता भी की । वक़्त गुजऱता रहा। रूचि भी कमाल की थी।कभी अचानक बेहद खुश तो कभी गुमसुम। मेरे लिए वह छोटी बहन जैसी थी।पहली बार उसी ने कमाल से मिलवाया।मैं उसकी पसंद की तारीफ़ किए बिना नहीं रह सका।मैने कहा, तुम दोनों के साथ हूँ।अकेला मत समझना।फिर मेरा जयपुर छूट गया। कुछ समय बाद दोनों ने ब्याह रचा लिया।अक्सर रूचि और कमाल से फ़ोन पर बात हो जाती थी। दोनों बहुत ख़ुश थे।
इसी बीच विनोद दुआ का दूरदर्शन के साथ साप्ताहिक न्यूज़ पत्रिका परख प्रारंभ करने का अनुबंध हुआ।यह देश की पहली टीवी समाचार पत्रिका थी। हम लोग टीम बना रहे थे।कुछ समय वरिष्ठ पत्रकार दीपक गिडवानी ने परख के लिए उत्तरप्रदेश से काम किया।अयोध्या में बाबरी प्रसंग के समय दीपक ही वहाँ थे। कुछ एपिसोड प्रसारित हुए थे कि दीपक का कोई दूसरा स्थाई अनुबंध हो गया और हम लोग उत्तर प्रदेश से नए संवाददाता को खोजने लगे। विनोद दुआ ने यह जि़म्मेदारी मुझे सौंपी । मुझे रूचि की याद आई। मैनें उसे फ़ोन किया।उसने कमाल से बात की और कमाल ने मुझसे।संभवतया तब तक कमाल ने एनडीटीवी के संग रिश्ता बना लिया था।चूँकि परख साप्ताहिक कार्यक्रम था इसलिए रूचि गृहस्थी संभालते हुए भी रिपोर्टिंग कर सकती थी।कमाल ने भी उसे भरपूर सहयोग दिया।यह अदभुत युगल था ।दोनों के बीच केमिस्ट्री भी कमाल की थी।बाद में जब उसने इंडिया टीवी ज्वाइन किया तो कभी कभी फ़ोन पर दोनों से दिलचस्प वार्तालाप हुआ करता था।एक ही ख़बर के लिए दोनों संग संग जा रहे हैं।टीवी पत्रकारिता में शायद यह पहली जोड़ी थी जो साथ साथ रिपोर्टिंग करती थी।जब भी लखनऊ जाना हुआ,कमाल के घर से बिना भोजन किए नहीं लौटा।दोनों ने अपने घर की सजावट बेहद सुरुचिपूर्ण ढंग से की थी। दोनों की रुचियाँ भी कमाल की थीं.एक जैसी पसंद वाली ऐसी कोई दूसरी जोड़ी मैंने नहीं देखी।जब मैं आज तक चैनल का सेन्ट्रल इंडिया का संपादक था,तो अक्सर उत्तर प्रदेश या अन्य प्रदेशों में चुनाव की रिपोर्टिंग के दौरान उनसे मुलाक़ात हो जाती थी।कमाल की तरह विनम्र,शालीन और पढऩे लिखने वाला पत्रकार आजकल देखने को नहीं मिलता।कमाल की भाषा भी कमाल की थी। वाणी से शब्द फूल की तरह झरते थे।इसका अर्थ यह नहीं था कि वह राजनीतिक रिपोर्टिंग में नरमी बरतता था। उसकी शैली में उसके नाम का असर था। वह मुलायम लफ्ज़़ों की सख़्ती को अपने विशिष्ट अंदाज़ में परोसता था। सुनने देखने वाले के सीधे दिल में उतर जाती थी।आज़ादी से पहले पद्य पत्रकारिता हमारे देशभक्तों ने की थी ।लेकिन,आज़ादी के बाद पद्य पत्रकारिता के इतिहास पर जब भी लिखा जाएगा तो उसमें कमाल भी एक नाम होगा। किसी भी गंभीर मसले का निचोड़ एक शेर या कविता में कह देना उसके बाएं हाथ का काम था । कभी कभी आधी रात को उसका फ़ोन किसी शेर, शायर या कविता के बारे में कुछ जानने के लिए आ जाता ।फिर अदबी चर्चा शुरू हो जाती। यह कमाल की बात थी कि कि रूचि ने मुझे कमाल से मिलवाया ,लेकिन बाद में रूचि से कम,कमाल से अधिक संवाद होने लगा था।
कमाल के व्यक्तित्व में एक ख़ास बात और थी। जब परदे पर प्रकट होता तो सौ फ़ीसदी ईमानदारी और पवित्रता के साथ। हमारे पेशे से सूफ़ी परंपरा का कोई रिश्ता नहीं है ,लेकिन कमाल पत्रकारिता में सूफ़ी संत होने का सुबूत था। वह राम की बात करे या रहीम की ,अयोध्या की बात करे या मक्क़ा की ,कभी किसी को ऐतराज़ नहीं हुआ।वह हमारे सम्प्रदाय का कबीर था।
सच कमाल ! तुम बहुत याद आओगे। आजकल पत्रकारिता में जिस तरह के कठोर दबाव आ रहे हैं ,उनको तुम्हारा मासूम रुई के फ़ाहे जैसा नरम दिल शायद नहीं सह पाया।पेशे के ये दबाव तीस बरस से हम देखते आ रहे हैं। दिनों दिन यह बड़ी क्रूरता के साथ विकराल होते जा रहे हैं । छप्पन साल की उमर में सदी के संपादक राजेंद्र माथुर चले गए। उनचास की उमर में टीवी पत्रकारिता के महानायक सुरेंद्र प्रताप सिंह याने एस पी चले गए। असमय अप्पन को जाते देखा,अजय चौधरी को जाते देखा ।दोनों उम्र में मुझसे कम थे । साठ पार करते करते कमाल ने भी विदाई ले ली।अब हम लोग भी कतार में हैं।क्या करें ? मनहूस घडिय़ों में अपनों का जाना देख रहे हैं ।

याद रखना दोस्त।

जब ऊपर आएँ तो पहचान लेना।

कुछ उम्दा शेर लेकर आऊंगा ।

कुछ सुनूंगा ,कुछ सुनाऊंगा ।

महफि़ल जमेगी ।

अलविदा कमाल !

हम सबकी ओर से श्रद्धांजलि।

खेल से इतर विवादों के बीच जोकोविच

अरुण नैथानी  –
यह परिस्थितियों का खेल है कि दुनिया के नंबर एक टेनिस खिलाड़ी सर्बिया के नोवाक जोकोविच खेल से अलग कारणों से सुर्खियों में हैं। दरअसल, जोकोविच को आस्ट्रेलिया में प्रवेश करने से रोक दिया गया। हालिया विवाद खेल से जुड़ा नहीं है। जोकोविच कोरोना वैक्सीन लगाने के पक्षधर नहीं रहे हैं। एक सर्बिया डॉक्टर के पुत्र नोवाक की मान्यता रही है कि वैक्सीन लगाना, न लगाना व्यक्ति का निजी मामला है। लेकिन वैक्सीन को लेकर सोच के चलते उनकी आस्ट्रेलिया सरकार से ठन गई और हवाई अड्डे पर पहुंचते ही उनका वीजा रद्द कर दिया गया। उन्हें होटल में बने डिटेंशन सेंटर में ठहरा दिया गया, जिसके चलते आस्ट्रेलिया व विदेश में टेनिस व जोकोविच के समर्थकों की तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई। यहां तक कि आस्ट्रेलिया की केंद्र सरकार व विक्टोरिया राज्य सरकार इस मुद्दे पर आमने-सामने आ गई। दरअसल, विक्टोरिया प्रांत की सरकार आस्ट्रेलिया ओपन टूर्नामेंट का आयोजन कराती है। नोवाक जोकविच ने वर्ष 2021 समेत नौ बार आस्ट्रेलिया ओपन टूर्नामेंट जीता है।
अब सर्बिया सरकार के तल्ख विरोध और खेल जगत की तीखी प्रतिक्रिया के बाद लगता है कि जोकोविच आगामी 17 जनवरी से आरंभ होने वाले वर्ष के पहले ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में अपना दमखम दिखा सकेंगे। इससे पहले आस्ट्रेलिया में प्रवेश पर रोक लगाने के आस्ट्रेलियाई प्राधिकरण के फैसले के खिलाफ जोकोविच कोर्ट गये थे। वकीलों की बहस के बाद अदालत ने वीजा रद्द करने के फैसले को खारिज कर दिया। इसके मायने यह हैं कि जोकोविच का वीजा वैध है और वे साल के पहले ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में भाग ले सकते हैं।
वास्तव में दुनिया के नंबर वन टेनिस खिलाड़ी चौंतीस वर्षीय नोवाक जोकोविच कोरोना संक्रमण की शुरुआत से ही वैक्सीन लगाने के पक्षधर नहीं रहे हैं। उन्होंने यह कभी स्पष्ट भी नहीं किया है कि उन्होंने वैक्सीन लगाई है। वर्ष 2020 में जब कोरोना संक्रमण बढ़ रहा था तब उन्होंने कहा था कि वे टीके लगाने का विरोध करते हैं। हालांकि, तब कोरोना का टीका नहीं आया था। उनकी धारणा थी कि व्यक्ति के शरीर के लिये अच्छा-बुरा क्या है, यह तय करना व्यक्ति का नितांत निजी मामला है। उनका मानना था कि यात्रा व किसी टूर्नामेंट में भाग लेने के लिये टीका लगाने हेतु बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही उनका यह भी कथन था कि वे अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं और उन उपायों पर ध्यान देते हैं जो हमें कोरोना संक्रमण से बचाने में सहायक होते हैं। हालांकि, उनके देश सर्बिया में महामारी विशेषज्ञों का कथन था कि उनकी सोच अवैज्ञानिक है और लोगों के मन में वैक्सीन को लेकर संदेह पैदा करती है। वहीं जोकोविच की दलील थी कि सकारात्मक सोच हमारे स्वास्थ्य को बेहतर करती है, जैसे पानी के अणु हमारी भावनाओं के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं। हालांकि, जोकोविच ने कभी वैक्सीन का पुरजोर विरोध नहीं किया, लेकिन वैक्सीन विरोधी उन्हें अपना आइकन मानने लगे हैं। वे जोकोविच का वीजा रद्द करने पर खुलकर उनके समर्थन में आ खड़े हुए हैं। वहीं आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन कहते हैं कि कोई व्यक्ति चाहे कितना भी महत्वपूर्ण क्यों न हो, वह कानून से ऊपर नहीं हो सकता। दरअसल, इस मुद्दे पर राजनीति भी हो रही है क्योंकि कोरोना के मामले में सरकार की नीति को लेकर आलोचना होती रही है। फिर आस्ट्रेलिया में अगले साल चुनाव भी होने हैं। संघीय सरकार चाहती है कि प्रत्येक व्यक्ति कोरोना नियमों का पालन करे। वहीं आस्ट्रेलिया ओपन टूर्नामेंट का आयोजन करने वाली टेनिस ऑस्ट्रेलिया चाहती है कि अंतर्राष्ट्रीय खिलाडिय़ों को स्वस्थ रहने पर छूट दी जाये क्योंकि यह आयोजन देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा सवाल है। आस्ट्रेलिया सरकार की सख्ती को लेकर जहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल जगत में आलोचना होती रही है, वहीं आस्ट्रेलिया में भी टेनिस प्रेमियों का बड़ा वर्ग जोकोविच के समर्थन में उतरा।
बहरहाल, कोर्ट के आदेश के बाद जोकोविच प्रवासी हिरासत केंद्र से बाहर आ चुके हैं। लोग मान रहे हैं कि संघीय सरकार व विक्टोरिया प्रांत की सरकार की अलग-अलग राय होने से हुई खींचतान के चलते लोगों में अविश्वास की भावना पैदा हुई है। जहां वैक्सीन विरोधी इस जीत को मनोबल बढ़ाने वाली बता रहे हैं, वहीं आम आस्ट्रेलियाई लोग मानते हैं कि खास लोगों को वैक्सीन से छूट दिया जाना गलत है। दरअसल, आस्ट्रेलिया में भी नये कोरोना वेरिएंट का खासा प्रभाव है और संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं।
इसी बीच जोकोविच के प्रबंधकों ने दावा किया है कि उन्हें चिकित्सा छूट के आधार पर आस्ट्रेलिया आने की अनुमति दी गई थी। अदालत में प्रस्तुत दस्तावेजों में कहा गया कि इस यात्रा से पूर्व टेनिस आस्ट्रेलिया के दो पैनलों ने नोवाक जोकोविच को वैक्सीन लगाने में छूट दी थी। दरअसल, यह ही संस्थान आस्ट्रेलिया व विक्टोरिया में टेनिस टूर्नामेंटों का आयोजन करता है। बहरहाल, 17 जनवरी से शुरू होने वाले आस्ट्रेलिया ओपन टूर्नामेंट में भाग लेने से जोकोविच को रोकने के बाद उन्हें व्यापक सहानुभूति भी मिली है। कुछ लोग मानते हैं कि उनके साथ उनकी प्रतिष्ठा के विपरीत व्यवहार किया गया। यहां तक कि कई मानवाधिकार संगठन भी उनके समर्थन में खड़े नजर आये। जोकोविच के देश सर्बिया में इस फैसले का तीखा विरोध हुआ। यहां तक कि सर्बिया के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर वुचिच ने नोवाक को उत्पीडि़त बताया। लोगों का मानना है कि नौ बार टूर्नामेंट जीत चुके जोकोविच के साथ कम से कम ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था।

बॉलीवुड के चर्चित गीतकार हरिशंकर सूफी की नई पेशकश म्यूजिक वीडियो ‘तेरे शहर में’ का फर्स्ट लुक जारी किया गया

बॉलीवुड के चर्चित गीतकार हरिशंकर सूफी की नई पेशकश म्यूजिक वीडियो ‘तेरे शहर में’ का फर्स्ट लुक पिछले दिनों मुंबई में जारी किया गया। सीफेस प्रोडक्शन और एच एल प्रोडक्शन के संयुक्त तत्वाधान में निर्मित इस म्यूजिक वीडियो के निर्माता हीरा लाल(अधिवक्ता), निर्देशक आगा रिज़वी, क्रिएटिव डायरेक्टर पवन शर्मा, गीतकार हरिशंकर सूफी और संगीतकार शौरिष हैं। बॉलीवुड की मशहूर गायिका साधना सरगम के स्वर से सजे इस म्यूजिक सिंगल ‘तेरे शहर में’ का वीडियो और ऑडियो को अलग अलग प्लेटफॉर्म क्रमशः यूट्यूब म्यूजिक, गाना, स्पॉटीफाई, हंगामा म्यूजिक, जिओ सावन, आई ट्यून स्टोर, साउंड क्लाउड, विंक और अन्य डिजिटल म्यूजिक स्टोर और चैनल पर बहुत जल्द ही रिलीज किया जाएगा।
(प्रस्तुति – काली दास पाण्डेय)

अवांछित एप्लीकेशंस पर कानून से अंकुश

पवन दुग्गल –
‘बुल्ली बाई’ एप मामले में मोबाइल फोन पर उपलब्ध होने वाली सामग्री में न केवल महिलाओं बल्कि समुदाय विशेष को निशाना बनाकर पेश करने वाली करतूतों ने यथेष्ट लगाम लगाने की जरूरत को पुन: रेखांकित किया है। इंटरनेट ने किसी दुनिया के एक हिस्से में बैठे रहकर दूसरे छोर के इंसानों तक पहुंच करने या किसी को निशाना बनाने की जुर्रत करने की सहूलियत इलेक्ट्रॉनिक सामग्री और मोबाइल एप्लीकेशंस के जरिए बना दी है।
मोबाइल एप्लीकेशंस आज के समय की जरूरत बन गई हैं, लगभग हर कोई इन पर निर्भर है। नित दिन नई-नई एप्लीकेशंस आती हैं, इस तथ्य से इंकार नहीं है कि इनका असर न केवल व्यक्ति की जिंदगी बल्कि उसकी सोच, व्यवहार या नजरिए पर भी काफी हो गया है। इसीलिए मोबाइल एप्लीकेशन बनाने वाले, किस क्षेत्र में मांग हो सकती है, इस पर लगातार नजऱ रखते हैं। ‘बुल्ली बाई’ एप मध्ययुगीन मानसिकता का एक जाहिर रूप है- जब महिलाओं को बतौर निजी वस्तु की तरह खरीदा-बेचा जाता था।
आज, यह कहना कि ऑनलाइन नीलामी के जरिये कोई महिला एक वस्तु की भांति उपलब्ध है, वह विचार है जो आधुनिक सभ्यता के मूल्यों के नितांत खिलाफ है। हालांकि, तथ्य यह है कि इस तरह की सामग्री अभी भी किसी न किसी आनलाइन प्लेटफॉर्म पर होगी। गौर करने लायक सवाल यह है कि भारत का कानून इस बाबत कहां खड़ा है? फिलहाल भारत के पास विशेष तौर पर मोबाइल एप्लीकेशंस को लेकर नीति नहीं है। भारत ने अमेरिका के राज्य कैलिफोर्निया से भी नहीं सीखा, जिसके पास इस विषय पर विस्तृत दिशा-निर्देश वाली नीति है कि एप्लीकेशन निर्माता किन जरूरी नियमों का पालन करके अपना एप बनाएं।
साइबर कानून के नाम पर भारत के पास ले-देकर इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कानून-2000 है, जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से संबंधित हर दिशा-निर्देश की जननी है। वर्ष 2000 में जब यह कानून बना था तब मोबाइल फोन इसके अंतर्गत नहीं आते थे। लेकिन आईएटी (संशोधन) एक्ट 2008 में मोबाइल फोन समेत सभी प्रकार के संचार उपकरणों को इस कानून के दायरे में लाया गया। हालांकि, इस आईटी कानून के प्रावधानों को भी गहराई से पढ़ें, तो इसमें अभी भी मोबाइल एप्लीकेशंस संबंधित कोई स्पष्ट नियम नहीं है। साफ है, कानून के अनुसार, एप्लीकेशंस बनाने वाले सभी निर्माता या तमाम एप्लीकेशन स्टोर, जहां सब एप्लीकेशंस उपलब्ध होती हैं, उन्हें इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाले सेवा-बिचौलिए की तरह लिया जाता है। इसमें आगे, यह वह वैध इकाइयां हैं जो अन्य लोगों के निमित्त, विशेष इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड को प्राप्त-भण्डारण-संप्रेषित कर सकते हैं। हालांकि, सरकार के पास आईटी एक्ट के अनुच्छेद 87 में सेवा-बिचौलियों से यथेष्ट सावधानी बरतवाने संबंधी अनेक मापदंड लागू करवाने की शक्ति है, किंतु मोबाइल एप्लीकेशंस के संदर्भ में आज तक इसका इस्तेमाल नहीं हुआ। दरअसल, अब इस देश में तमाम सेवा-बिचौलियों को, यदि संबंधित कानूनन जिम्मेवारी में संवैधानिक छूट चाहिए, तो उन्हें केवल अनुच्छेद 79 के प्रावधानों के तहत अपने फर्ज को अंजाम देते समय यथेष्ट सावधानी रखना अनिवार्य है।
जहां केंद्र सरकार ने सेवा-बिचौलियों के लिए माकूल सावधानी बरतने संबंधी नियम-कानून बनाए हैं, वहीं मोबाइल एप्लीकेशंस और इनको होस्ट करने वाले एप्लीकेशन प्लेटफॉर्म्स के व्यवहार संबंधी अलग से नियम बनाने के बारे में विचार नहीं किया गया।
यहां तक कि इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटर मीडिएट्री गाइड लाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स-2021 में भी मोबाइल एप्लीकेशंस के लिए अलग से दिशा-निर्देश नहीं हैं। अब तक हमने यही देखा है कि किसी अवांछित एप्लीकेशंस पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया यही होती है कि आईटी एक्ट 69-ए के तहत प्राप्त शक्ति का प्रयोग कर उसको ब्लॉक करवा दे। नतीजतन, पिछले सालों के दौरान सरकार ने कई मोबाइल एप्लीकेशंस को प्रतिबंधित किया है। हाल ही में कई चीनी एप्लीकेशंस को भारतीय डिजिटल अधिकार क्षेत्र में ब्लॉक किया गया है। लेकिन यह उपाय कभी भी जादुई गोली सिद्ध नहीं हुए, क्योंकि जैसे ही आपने इन्हें ब्लॉक किया वहीं उत्सुकतावश लोग इनकी ओर खिंचते हैं, परिणामस्वरूप इन प्रतिबंधित मोबाइल एप्लीकेशंस की ओर इंटरनेट ट्रैफिक और अधिक मुड़ जाता है। इसीलिए आपस में जुड़े मौजूदा विश्व में ऐसे प्रतिबंध कभी भी पूर्णरूपेण नहीं हो सकते। आप किसी एप्लीकेशन को भारतीय अधिकार क्षेत्र में ब्लॉक कर भी दें, फिर भी भारत के उपभोक्ताओं की इन तक पहुंच वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क के जरिए बरकरार रहती है। इसलिए इस किस्म की किसी मोबाइल सामग्री को प्रतिबंधित करने की बजाय मुल्कों को अवांछित सामग्री से निपटने को नूतन तरीका अपनाना पड़ेगा। भारत के संदर्भ में, देश के अधिकार क्षेत्र में मोबाइल एप्लीकेशंस पर नियंत्रण करने को एक अच्छा उपाय है, एक विस्तृत कानूनी ढांचा बनाना, साथ ही न्यूनतम मानदंड निर्धारण करना, जिनका पालन करना-करवाना प्रत्येक मोबाइल एप्लीकेशन निर्माता और इनको अपने प्लेटफॉर्म पर जगह देने वालों के लिए अनिवार्य हो।
उम्मीद है ‘बुल्ली बाई’ और अन्य मामले सरकार को मोबाइल एप्लीकेशंस पर उपलब्ध सामग्री पर अंकुश रखने के लिए एक अलग से नया कानून बनाने के लिए उत्प्रेरित करेंगे। आगे, आम उपभोक्ताओं की समझ एवं जागृति का स्तर बढ़ाने को सरकार प्रचार अभियान चलाए ताकि वे अवांछित मोबाइल एप्लीकेशंस पर आने वाली सामग्री से बहकने न पाएं।
तकनीक और कानून के बीच सदा ही प्रतिस्पर्धा रही है और तकनीक अक्सर कानून से दस कदम आगे रहती है। इसलिए, अब जबकि मोबाइल तकनीक और एप्लीकेशंस ने अच्छी-खासी प्रौढ़ता प्राप्त कर ली है, तो ऐसे यथेष्ट कदम उठाना भी लाजिमी हो जाता है, जिससे कि अवांछित एप्लीकेशंस द्वारा पेश मौजूदा चुनौतियों से निपटने को भारतीय कानून के ढांचे में सुधार हो। इस किस्म की राह अपनाकर देश को एप्लीकेशंस और मोबाइल के अन्य उपयोगों से प्राप्त अवांछित सामग्री की संभावित उपलब्धता से बचाया जा सकता है।
(लेखक साइबर कानून विशेषज्ञ हैं)

यह भारत के सामर्थ्य की जीत की कहानी है

डॉ. मनोहर अगनानी –
एक साल, 156 करोड़ वैक्सीनेशन! यानि कि हर दिन औसतन 42 लाख से ज़्यादा टीके। यह आलेख टीम हैल्थ इंडिया की इस असाधारण उपलब्धि की बेमिसाल यात्रा की कहानी, देशवासियों के साथ साझा करने की एक कोशिश है।
हम सभी जानते हैं कि दुनिया के सबसे बड़े कोविड टीकाकरण अभियान की तैयारी करते समय कुछ बुद्धिजीवियों और विषय विशेषज्ञों ने अनेक तरह की शंकाएं अपने व्यक्तिगत अनुभवों, तथ्यों और तर्कों के आधार पर ज़ाहिर की थीं। मसलन-
* अव्वल तो देश की ज़रुरत के मुताबिक वैक्सीन उपलब्ध ही नहीं हो पाएगा। और अगर हो भी गया तो हमारे देश में इतनी अधिक मात्रा में वैक्सीन को सुरक्षित रखने की स्टोरेज क्षमता भी नहीं है।
*इस क्षमता को विकसित करने में तो बहुत समय लग जाएगा।
* वैक्सीन की स्टोरेज हो भी गई तो परिवहन की व्यवस्था और ट्रेन्ड मैन-पॉवर कहाँ है।
* इतनी विशाल जनसंख्या के टीकाकरण के लिए ट्रेन्ड मैन-पॉवर तैयार करने में कितना समय लगेगा, इसका कोई अंदाज़ा ही नहीं है।
* पूरी जनसंख्या को कवर करने में अनेकों साल लग जाएंगे।
* अब तक हमने कभी भी वयस्क आबादी को टीका नहीं लगाया है। राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत हमने सिफऱ् छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण किया है, जो कि देश की आबादी का बहुत छोटा हिस्सा ही है।
* किस बच्चे को कौन सा टीका लगा? कब लगा? इसका नामवर डिजिटल रिकॉर्ड रखने की तो हमने शुरुआत भी नहीं की है।
* जनमानस की कोविड टीके से सम्बंधित शंकाओं का समाधान कैसे होगा? वैक्सीन हैज़ीटेंसी कैसे एड्रेस करेंगे?
* दूरदराज़ के क्षेत्रों में वैक्सीन समय पर और सुरक्षित कैसे पहुंचेगा? उनको टीका कौन लगाएगा? आदि-आदि !
इन सभी आलोचनाओं और अविश्वास के माहौल के बीच टीम हैल्थ इंडिया ने एक सुव्यवस्थित रणनीति और आत्मविश्वास के साथ एकजुट होकर काम करना शुरू कर दिया। इस आत्मविश्वास की पृष्ठभूमि में था-
* हमारा राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम (यू.आई.पी.) को चलाने का वर्षों का अनुभव।
* पल्स पोलियो अभियान के तहत सीमित समय में लगभग 10 करोड़ छोटे बच्चों को पोलियो की 2 बूँद पिलाने का 25 वर्षों से अधिक का तजुर्बा।
* पंद्रह साल तक के 35 करोड़ से ज़्यादा बच्चों को मीसल्स एवं रूबेला वैक्सीन लगा पाने की क्षमता।
* 29,000 से अधिक कोल्ड चेन पॉइंट्स पर वैक्सीन स्टोरेज कर दूर दराज़ के क्षेत्रों में नियमित रूप से वैक्सीन पहुंचाने का अनुभव।
* मानकों के अनुरूप वैक्सीन के रखरखाव एवं वितरण की मॉनिटरिंग करने वाली भारतीय प्रणाली ई-विन (इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क) का सफल क्रियान्वयन,
* छूटे हुए बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को केन्द्रित कर टीकाकरण करने की मिशन इन्द्रधनुष रुपी सटीक रणनीति को क्रियान्वित करने का अनुभव। और,
इस आत्मविश्वास का सबसे महत्वपूर्ण सबब बना- हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री जी का देश के नागरिकों की छुपी हुई क्षमताओं और योग्यताओं पर अटूट विश्वास, जिसने शुरुआत से ही एक नैतिक संबल प्रदान करने का काम किया।
इस पृष्ठभूमि के साथ टीम हैल्थ इंडिया ने सबसे पहले बुद्धिजीवियों एवं विषय विशेषज्ञों द्वारा ज़ाहिर की गई अपेक्षाओं एवं शंकाओं को व्यवस्थित रूप से समाधान करने की रणनीति पर ध्यान केन्द्रित किया। भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय, राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के स्वास्थ्य विभाग, स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली स्वयंसेवी संस्थाएं, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों आदि सभी ने मिलकर ना सिफऱ् लगातार हुई मैराथन बैठकों में भाग लिया, हर विषय पर गहन चिंतन और विचार विमर्श किया बल्कि इन चिंतन बैठकों के निष्कर्षों को विभिन्न स्ट्रेटेजीज़ एवं गाइडलाइन्स का स्वरुप भी प्रदान किया।
आज से ठीक एक साल पहले माननीय प्रधानमंत्री द्वारा दुनिया के इस सबसे बड़े कोविड टीकाकरण अभियान की शुरुआत से पहले ना सिफऱ् सभी बुनियादी गाइडलाइन्स को अंतिम रूप दिया जा चुका था, बल्कि इसके लिए आवश्यक प्रशिक्षण भी पूरे किए जा चुके थे।
हालांकि अभी टीकाकरण कार्यक्रम का औपचारिक प्रारंभ होना बाकी था, लेकिन टीम हैल्थ इंडिया आत्मविश्वास से सराबोर थी और इसके सबब भी थे। 16 जनवरी 2021 से पहले सभी आवश्यक तैयारियां जो पूरी हो चुकी थीं, उनमें प्रमुख हैं-
* कोविड टीकाकरण से संबंधित ऑपरेशनल गाइडलाइंस
* टीकाकरण के लिए पर्याप्त मात्रा में आवश्यक दलों के सदस्यों की पहचान एवं उनका प्रशिक्षण
* वैक्सीन को व्यवस्थित रूप से टीकाकरण केन्द्रों तक सुरक्षित रूप से पहुंचाने और आवश्यक अतिरिक्त भंडारण क्षमता का निर्माण
* वैक्सीन हैज़ीटेंसी, ईगरनेस और कोविड एप्रोप्रिएट बिहेवियर जैसे विषयों पर केंद्रित कम्यूनिकेशन स्ट्रेटेजी और
* सभी भारतीयों के टीकाकरण से संबंधित आवश्यक रिकॉर्ड डिजिटल रूप में संधारित करने के लिए आकल्पित कोविन प्लेटफार्म आदि।
इन सभी तैयारियों से संबंधित ड्राय रन भी सभी राज्यों में किया जा चुका था, जिससे संबंधित एक व्यक्तिगत अनुभव साझा करना प्रासंगिक है। देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के हज़ारों कोविड वैक्सीनेशन सेंटरों, राज्य के मुख्यालयों एवं भारत सरकार के मंत्रालय में पदस्थ टीम जो कोविन प्लेटफार्म पर काम कर रही थी, सभी को 15 जनवरी की सारी रात जागना पड़ा। कोई ऐसी तकनीकी समस्या थी, जिसे हल करने के लिए सभी थे। कड़ाके की ठंड थी। सूर्योदय होने तक सभी के दिल उसी तरह से ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहे थे, जैसे किसी अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण करते समय कमांड सेंटर पर बैठे वैज्ञानिकों का दिल धड़कता होगा। राष्ट्रीय कोविड टीकाकरण अभियान का नोडल अधिकारी होने के नाते मैं भी टीम हैल्थ इंडिया के नैतिक संबल के लिए मंत्रालय में ही साथ था और उस रात टीम की बेचैनी और अंततोगत्वा मिले सुखद परिणाम की अनुभूति का इज़हार शब्दों में नहीं कर सकता। ‘कोविन’ बखूबी चल पड़ा और हम सभी गवाह हैं, इस अनोखे भारतीय डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की खूबियों के, जिसने लगातार कार्यक्रम की ज़रूरतों के मुताबिक खुद को और बेहतर किया है। यह वाकई देश-दुनिया के लिए एक अनूठी सौगात है।
और फिर अभी तो शुरुआत हुई थी। वैक्सीन सीमित मात्रा में उपलब्ध थी और अपेक्षाएं अनन्त थीं। सीमित मात्रा में उपलब्ध वैक्सीन का लगातार तर्कसंगत वितरण एक चुनौती थी। ना सिफऱ् भारत सरकार के स्तर पर, अपितु राज्यों एवं जिलों के स्तर पर भी। ऐसे में आलोचनाएं स्वभाविक थीं। टीम हैल्थ इंडिया ने इस काम को भी बखूबी अंजाम दिया। लेकिन यह आसान नहीं था। इसके लिए हर रोज़ घंटों वर्चुअल बैठकें करनी पड़ती थीं। वैक्सीन निर्माताओं के साथ, वैक्सीन परिवहन करने वाली एजेंसियों के साथ, वैक्सीन के भंडारण केंद्रों के साथ, वैक्सीन वितरण करने वाले कोल्ड चेन पाइंट्स के साथ और वैक्सीन लगाने वाले केंद्रों के साथ। और मकसद सिर्फ एक होता था, उपलब्ध वैक्सीन का यथासंभव सर्वश्रेठ इस्तेमाल और वैक्सीन की हर बूंद का सदुपयोग।
और अंदाज़ा लगाइए, देश के दूरदराज के क्षेत्रों में वैक्सीन पहुंचाया गया। जहां सड़क नहीं थी, वहां साइकिल दौड़ाई गई, रेगिस्तान में ऊंट का सहारा लिया गया, नदी पार करने के लिए नाव पर सवारी की गई। पहाड़ों पर तो वैक्सीन कैरियर को अपनी पीठ पर ही उठा लिया। वैक्सीन पहुंचाया भी, लगाया भी। पीले चावल देकर वैक्सीनेशन के लिए आमंत्रित किया। वैक्सीन नहीं लगवाने वाले नागरिकों के लिए ‘हर घर दस्तक’ देकर पुकार भी लगाई। इस सारी प्रक्रिया का कोई वेस्टर्न मॉडल नहीं था। यह विशुद्ध रूप से भारतीय मॉडल था। इसमें भारत के सामर्थ्य की अनूठी छाप थी।
एक वर्ष की कोविड टीकाकरण की यह अनूठी गाथा है क्योंकि तैयारी करने के लिए वक्त सीमित था। वक्त के साथ-साथ फील्ड से प्राप्त अनुभवों और सकारात्मक आलोचनाओं और सुझावों से हम सीखते चले गए, कार्यक्रम में सुधार करते चले गए, अपने संकल्प और इरादों को और दृढ़ करते चले गए और सही मायने में अंग्रेजी कहावत बिल्डिंग द शिप व्हाइल सेलिंग को चरितार्थ करते चले गए।
टीम हैल्थ इंडिया ने इस सारी धुन में अनदेखी की है अपनी जरूरतों की, अनदेखी की है अपने व्यक्तिगत समय की, अनदेखी की है अपने परिवार की, भुलाया है अपने सपनों को और खोया है अपनों को। लेकिन फ़ख्र ही नहीं, बल्कि यह टीम हैल्थ इंडिया का सौभाग्य भी है कि उसे सदियों में कभी एक बार आने वाला यह अवसर मिला और देश की सेवा करते हुए इस नोबल प्रोफेशन की नोबेलनेस बनाए रखने का मौका भी। हाँ, उन्हें ढेर सारा प्यार भी मिला।
मैं जो कुछ देख पाया हूं या लिख पाया हूँ वो तो मात्र टिप ऑफ़ द आइसबर्ग के समान है। टीम हैल्थ इंडिया के पास तो ऐसे अनगिनत संघर्ष और संतुष्टि के उदाहरण होंगे। ऐसे उदाहरण जो इंसानियत की मिसाल होंगे, ऐसे उदाहरण जो कृतज्ञता का एहसास कराते होंगे और ऐसे उदाहरण जो आशावाद के वाहक होंगे ।
अंत में यह याद दिलाना चाहता हूं कि हैल्थ को पब्लिक गुड माना गया है और भारत के कोविड टीकाकरण की इस असाधारण गाथा में सरकारी तंत्र की भूमिका ने इस विचारधारा को और पुख्ता किया है, मज़बूत किया है। जय हिन्द!
(लेखक अतिरिक्त सचिव, स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली हैं)

डब्ल्यूएचओ की चेतावनी को गंभीरता से लें

*विश्व के सभी देश विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों,

सलाह और उसके द्वारा दी गई चेतावनी को बहुत गंभीरता से लेते हैं.

*लेकिन पर आश्चर्य है कि शराब पीने-पिलाने के काम में भारत सरकार

और राज्य सरकारें चेतावनी को पूरी तरह अनसुना कर रही हैं.

*वैश्विक तौर पर वर्ष 2016 में शराब से जुड़ी मौतों का आंकड़ा करीब तीस लाख था.

लक्ष्मीकांता चावला
भारत सरकार और विश्व के सभी देश विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों, सलाह और उसके द्वारा दी गई चेतावनी को बहुत गंभीरता से लेते हैं। कोई भी बीमारी या महामारी हो, इस संगठन की ओर ही पूरी दुनिया देखती है। लेकिन पर आश्चर्य है कि शराब पीने-पिलाने के काम में भारत सरकार और राज्य सरकारें चेतावनी को पूरी तरह अनसुना कर रही हैं। कितनी भयानक सच्चाई है कि वैश्विक तौर पर वर्ष 2016 में शराब से जुड़ी मौतों का आंकड़ा करीब तीस लाख था। यह सबसे बड़ा और नवीनतम आंकड़ा है। संगठन के अनुसार, बहुत अधिक शराब पीने से जो मौतें हुई हैं उनकी संख्या एड्स, हिंसा और सड़क हादसों में होने वाली मौतों को मिलाने से प्राप्त आंकड़ों से भी ज्यादा है। इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में हर साल होने वाली बीस में से एक मौत शराब की वजह से होती है।
डब्ल्यूएचओ के शराब और अवैध नशीले पदार्थों पर नजर रखने वाले प्रोग्राम की मैनेजर करिना फेरिएरा बार्जेस का कहना है कि दुनिया भर में हर साल शराब पीने वाले तीस लाख लोगों की मौत होती है। यूरोप में एक-तिहाई मौतें शराब पीने से होती हैं। कोरोना से मरे लोगों में अधिकतर शराब पीते थे। इसमें भी पुरुष ज्यादा हैं। एक अध्ययन के अनुसार, प्रति दस मृत संक्रमितों में से एक व्यक्ति शराब पीता था।
अपनी रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने कहा कि करीब 23 करोड़ सत्तर लाख पुरुष और चार करोड़ साठ लाख महिलाएं शराब से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रही हैं। भारत में शराब पीने वाले लोगों को चेताने का काम दिल्ली के एम्स के डाक्टरों ने किया। उनका कहना है कि महामारी में शराब पीने का असर रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है और संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है।? लेकिन अफसोस कि पंजाब, केरल और अन्य राज्य राजस्व के लिए लोगों की जान जोखिम में डाल शराब की अधिक दुकानें खोलने पर आमादा हैं। केवल भारत में ही 2018 में शराब पीने से 2 लाख साठ हजार लोगों की मौत हुई थी। इसीलिए एम्स के डाक्टरों तथा डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि लोगों की सेहत का ध्यान रखते हुए लाकडाउन में शराब की दुकानों का बंद रहना जरूरी है।
एक तरफ तो यह जीवन की रक्षा के लिए चेतावनी वाली रिपोर्ट है, पर दूसरी ओर पंजाब सरकार और कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू ने तो कुछ सप्ताह पहले कहा कि पंजाब में शराब पीने-पिलाने का ऐसा प्रबंध करेंगे जिससे सत्तर हजार करोड़ रुपया वार्षिक कमाई हो सके। उनका यह कहना था कि आर्थिक समृद्धि से पंजाब सुखी होगा। लेकिन यह नहीं बताया कि शराब पीने से कितने लोग महामारी, बीमारी, मृत्यु का शिकार हो जाएंगे। कितनी हिंसा होगी, पारिवारिक क्लेश बढ़ेगा, परिवार टूटेंगे। माता-पिता में मतभेद से बचपन अनाथ हो जाएगा। लेकिन किसी ने नहीं कहा कि सिद्धू का शराब मॉडल हानिकारक और पंजाब के हित में नहीं है।
इस समय देश और दुनिया में बड़ी विकट स्थिति है। कोरोना महामारी बहुत तेजी से फैल रही है। भारत के पांच राज्यों में चुनाव है। शराब घातक होने की रिपोर्ट डब्ल्यूएचओ ने दी, पर सरकारों ने तो मुनाफे के लिये शराब पिलानी है। चुनाव के दिनों में राजनीतिक दल शराब बांटते हैं। लोग बीमार हों, नशे की हालत में परिवारों में या समाज में अशांति फैलाएं, दुर्घटनाओं में मारे जाएं या कोरोना पीडि़त हों, राजनेताओं को तो वोट चाहिए। यह लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि आजादी का अमृत महोत्सव मनाने वाली सरकारें इस वर्ष भी शराब की कोई कमी नहीं रखेंगी। उन्हें वोट चाहिए। कितना अच्छा हो अगर चुनाव आयोग शराब पीने-पिलाने वालों को चुनाव लडऩे से अयोग्य घोषित करे।
पिछले डेढ़ वर्ष से कोरोना महामारी के कारण गरीबी और अन्न-धन का अभाव झेल रहे भारतवासियों को राहत देने के लिए भारत सरकार मुफ्त अनाज बांटती है। यह सच है कि अनाज इतनी मात्रा में दिया जाता है कि कोई परिवार भूखा न रहे, लेकिन विडंबना यह है कि जिन परिवारों को गरीब होने के कारण अनाज दिया जाता है, उनमें एक बड़ी संख्या में शराब पीने वाले लोग भी हैं। देश के कुछ बुद्धिजीवी बड़े लंबे समय से यह आवाज उठा रहे थे कि जो लोग शराब स्वयं अपनी कमाई से खरीदकर पी सकते हैं वे अन्न क्यों नहीं खरीद सकते। क्या यह तर्कसंगत है कि अपनी कमाई से तो ये कुछ गरीब लोग शराब पी लें और इनका पेट भरने के लिए देश के लोगों के टैक्सों के पैसों से इन्हें मुफ्त में अनाज दिया जाए। भारत सरकार कानून बनाए कि जो लोग शराब पीते हैं उन्हें मुफ्त अनाज योजना से बाहर निकाल दिया जाए। वहीं चुनाव के दौरान कोई राजनीतिक पार्टी यह नहीं बताती कि चुनावों में मुफ्त शराब देने के लिए बजट की व्यवस्था कौन कर रहा है। चुनाव से पहले ही और महामारी की भयावहता के बीच यह जरूरी है कि शराब पीने वालों को नियंत्रित करने के लिए विशेष कदम उठाये जायें। इसका लाभ होगा कि कोरोना महामारी के दिनों में शराब न पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। बहुत अच्छा होगा कि डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों पर चलते हुए शराब पीने-पिलाने और सरकारी गैर-सरकारी शराब की बिक्री पर रोक लगाई जाए।

मुख्यमंत्री के आदेश, बंधक बनी हुनर मंद बेटियां लौट रहीं अपने घर

*बेंगलुरु से मुक्त करायी गईं छह युवतियां

रांची, मुसाबनी की हुनरमंद अंजली पान अब खुश है। उसकी घर वापसी सुनिश्चित हो गई है। कुछ घंटों में वह अपने परिवार से मिल सकेगी। राज्य सरकार ने उसे बेंगलुरू से सुरक्षित मुक्त करा लिया है। अंजली पान जैसी ही पोटका प्रखंड की अन्य छह युवतियां अपने घर लौट रही हैं।

बंधक बनी थीं युवतियां

सिलाई में निपुण अंजली पान ने बताया कि कौशल विकास केंद्र डिमना से प्रशिक्षण लेने के बाद वह अपने सहयोगियों के साथ बेंगलुरु स्थित एक वस्त्र उद्योग में सिलाई – कढ़ाई का काम करने गयी थी। वहां पहुंचने पर सभी को काम पर लगा दिया गया।लेकिन, जिस तरह की सुविधा देने की बात कही गयी थी, वैसी नहीं दी गई। उनके साथ अच्छा व्यवहार भी नहीं किया जा रहा था। ना तो सही तरह से रहने की सुविधा दी और ना खाने की सुविधा मिली। वार्डेन से शिकायत करने पर वार्डेन द्वारा मारपीट की धमकी दी जाती थी। वे लोग घर लौटना चाहती थी, लेकिन आने नहीं दिया जा रहा था। उन्हें बंधक बना कर रखा गया था।

ऐसे हुई वापसी

युवतियों ने मामले की जानकारी कौशल विकास केंद्र डिमना को देने के साथ घर वापसी के लिए मुख्यमंत्री और स्थानीय विधायक से गुहार लगायी। मुख्यमंत्री के संज्ञान में मामला आते ही श्रम विभाग और पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त को यथाशीघ्र युवतियों के सुरक्षित वापसी का आदेश दिया गया। इसके उपरांत श्रम   विभाग ने सक्रियता के साथ सभी के घर वापसी का मार्ग प्रशस्त किया।

 

अव्यावहारिक नीतियों से उपजा बेरोजगारी संकट

भरत झुनझुनवाला –
वर्तमान में अर्थव्यवस्था सुचारु रूप से चल रही दिखती है। जीएसटी की वसूली 1,30,000 करोड़ रुपये प्रति माह के नजदीक पहुंच गई है जो कि आज तक का अधिकतम स्तर है। कोविड के ओमीक्रोन वेरिएंट के आने के बावजूद शेयर बाजार का सेंसेक्स 5,500 से 6,000 के स्तर पर बना हुआ है। रुपये का मूल्य 70 से 75 रुपए प्रति डॉलर पर बीते कई वर्षों से स्थिर टिका हुआ है। तमाम वैश्विक संस्थाओं के आकलन के अनुसार, भारत विश्व की सबसे तेज बढऩे वाली व्यवस्था बन चुकी है। इन सब उपलब्धियों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेरोजगारी को एक विशेष चुनौती बताया है। तमाम आकलन भी बताते हैं कि वर्तमान में देश की जनता द्वारा की जा रही खपत कोविड-पूर्व के स्तर से भी नीचे है। यानी जीएसटी की वसूली 1,30,000 करोड़ रुपये प्रति माह के स्तर पर पहुंचने और अर्थव्यवस्था के सुचारु रूप से चलता दिखने के बावजूद आम आदमी की खपत सपाट है और रोजगार नदारद हैं। इस समस्या की जड़ें नीति आयोग के चिंतन में निहित हैं।
वर्ष 2018 में नीति आयोग ने देश की 75वीं वर्षगांठ के लिए बनाए गए रोड मैप में कहा था कि औपचारिक रोजगार को बढ़ावा देना होगा और श्रम-सघन रोजगार को भी बढ़ावा देना होगा। नीति आयोग इन दोनों उद्देश्यों को एक साथ बढ़ावा देना चाहता है। आयोग समझता है कि यह दोनों उद्देश्य एक साथ मिलकर चल सकते हैं जैसे गाड़ी के दो चक्के मिल-जुलकर एक साथ चलते हैं। लेकिन वास्तव में इन दोनों उद्देश्यों के बीच में अंतर्विरोध है जैसे गाड़ी का एक चक्का आगे और दूसरा चक्का पीछे की तरफ चले तो गाड़ी डगमग हो जाती है। इसीलिए वर्तमान में रोजगार की गाड़ी डगमग हो चली है जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है।
औपचारिक रोजगार और श्रम-सघन उद्योग के बीच पहला अंतर्विरोध श्रम की लागत का है। जैसे मान लीजिए नुक्कड़ पर मोमो बेचने वाले अनौपचारिक कर्मियों को हम औपचारिक छत्रछाया के नीचे ले आते हैं। अब इनका पंजीकरण होगा। पंजीकरण के बाद इन्हें अपने द्वारा बेचे गए मोमो का वजन नियमानुसार प्रमाणित करना होगा। इनके कार्य पर स्वास्थ्य निरीक्षक की नजर रहेगी। इन्हें अपनी दुकान को खोलने व बंद करने के समय निर्धारित करने होंगे। इन्हें सही क्वालिटी की प्लेट लगानी होगी। अपने सहायकों को दिए गए वेतन का प्रोविडेंट फंड काटना होगा और उन्हें न्यूनतम वेतन देना होगा। बैंक में जाकर प्रोविडेंट फंड जमा कराने में इनका समय लग जायेगा। सरकारी निरीक्षक महोदय को मुफ्त मोमो भी देने होंगे। इन तमाम कार्यों से इनके द्वारा बनाए गए मोमो की लागत बढ़ जाएगी। आज वर्तमान में यदि ये 7 रुपये में मोमो बेचते हैं जो औपचारिक रोजगारी बनने के बाद इनके द्वारा उत्पादित मोमो का मूल्य बढ़कर 10 रुपये हो जाएगा। इनके मोमो का मूल्य बढ़ जाने से इनकी जो कम दाम में बेचने की विशेषता है, वह समाप्त हो जाएगी। खरीदार 7 रुपये में नुक्कड़ पर मोमो खरीदने के स्थान पर 10 रुपये में मॉल में मोमो खरीदेगा क्योंकि नुक्कड़ पर भी मोमो का दाम अब मॉल की तरह 10 रुपये हो जाएगा। श्रम-सघन उद्योग की बलि औपचारिक रोजगार की वेदी पर चढ़ा दी जायेगी। दोनों उद्देश्य साथ-साथ नहीं चलेंगे।
औपचारिक उत्पादन में दूसरा संकट ऑटोमेटिक मशीनों का है। मॉल में मोमो बेचने वाले औपचारिक विक्रेता द्वारा डिश वॉशर लगाया जाएगा और ऑटोमेटिक ओवन होगा, जिसमें बिजली की खपत कम होगी। इन ऑटोमेटिक मशीनों के कारण मोमो के औपचारिक उत्पादन में रोजगार की संख्या कम होगी। इसलिए औपचारिक रोजगार के चलते श्रम-सघन नहीं बल्कि श्रम -विघन रोजगार उत्पन्न होंगे। रोजगार की संख्या कम होगी।
औपचारिक रोजगार में तीसरा संकट वित्तीय औपचारिकता यानी नोटबंदी और जीएसटी का है। नोटबंदी के बाद वर्ष 2017 में एक ओला के ड्राइवर से चर्चा हुई। उन्होंने बताया कि वे 35 वर्षों से चार महिलाओं को रोजगार दे रहे थे। उनसे घर पर कपड़ों में कसीदा करा रहे थे। नोटबंदी के बाद उनके क्रेताओं ने उन्हें नकद में पेमेंट करना बंद कर दिया। उनके पास व्यवस्था नहीं थी कि वे बैंक के माध्यम से कपड़े का पेमेंट ले सकें। यह भी कहा कि नकद माल खरीदने वाले ही नहीं रहे। अब बड़ी दुकानों में डेबिट कार्ड के पेमेंट से ही कपड़े खरीदे जा रहे हैं। उनका बाजार समाप्त हो गया। उन्होंने चारों महिलाओं को मुअत्तल कर दिया और स्वयं जीविका चलने के लिए ओला के ड्राइवर का काम शुरू कर दिया। लगभग यही स्थिति जीएसटी की है जीएसटी के कारण छोटे उद्योगों को तमाम कानूनी पेचों से जूझना पड़ रहा है, जिसके कारण उनका धंधा कम हो रहा है। यह बात तमाम रपटों में दिखाई पड़ती है।
इन तमाम कारणों से औपचारिक और श्रम-सघन रोजगार में सीधा अंतर्विरोध है। औपचारिक रोजगार के चलते श्रम-सघन उत्पादन का मूल्य बढ़ता है और ऑटोमेटिक मशीनों के उपयोग से श्रम का उपयोग घटता है। नोटबंदी और जीएसटी के कारण पुन: रोजगार घटता है। लेकिन नीति आयोग इस अंतर्विरोध को नहीं समझता अथवा नहीं समझना चाहता है इसलिए अनायास ही औपचारिक रोजगार को बढ़ावा देने में नीति आयोग ने देश में रोजगार ही समाप्त कर दिए हैं। न्यून स्तर के अनौपचारिक जीवन के स्थान पर नीति आयोग ने औपचारिक मृत्यु को देशवासियों के पल्ले में डाल दिया है, जिसके कारण प्रधानमंत्री ने कहा है कि रोजगार हमारे सामने प्रमुख चुनौती है।
संभवत: नीति आयोग भारत को विकसित देशों की तर्ज पर औपचारिक श्रम की तरफ धकेलना चाहता है। लेकिन आयोग इस बात को भूल रहा है कि वर्तमान में पश्चिमी देश भी अनौपचारिक रोजगार की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। इसे वहां ‘गिगÓ रोजगार कहा जाता है जैसे श्रमिक घर में 3 घंटे बैठकर डेटा एंट्री इत्यादि करते हैं। इन गिग श्रमिकों को निर्धारित न्यूनतम वेतन से भी कम वेतन दिए जाते हैं, बिल्कुल उसी तरह जैसे अपने देश में नुक्कड़ पर मोमो विक्रेता को न्यूनतम वेतन से कम आय होती है। इसलिए हमें विकसित देशों के मोह को छोडऩा चाहिए। उनकी अंदरूनी रोजगार की परिस्थिति को समझना चाहिए। अपने देश में अनौपचारिक रोजगार को बढऩे देना चाहिए, नुक्कड़ के मोमो बेचने वाले को सम्मान देना चाहिए कि वह स्वरोजगार कर रहा है और सरकार पर मनरेगा का बोझ नहीं डाल रहा है। औपचारिक मृत्यु की तुलना में न्यून स्तर का अनौपचारिक जीवन ही उत्तम है। वर्तमान में अर्थव्यवस्था ऊपर से सुचारु रूप से चल रही दिखती है। अन्दर गड़बड़ है।

न्यायपालिका के सुझावों की फिर अनदेखी

अनूप भटनागर –
लड़कियों की विवाह की आयु बढ़ाकर लड़कों के समान करने के लिए संसद में विधेयक पेश करने वाली केंद्र सरकार के रुख से ऐसा लगता है कि समान नागरिक संहिता बनाने संबंधी संविधान का अनुच्छेद 44 अभी लंबे समय तक सुप्त प्रावधान ही रहेगा। इस निष्कर्ष पर पहुंचने की वजह केन्द्र सरकार का हलफनामा है जो उसने समान नागरिक संहिता के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित जनहित याचिका में दाखिल किया है।
देश में तेजी से हो रहे सामाजिक बदलाव के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और पंथों में प्रचलित विवाह और विवाह विच्छेद के कानून एवं रीति-रिवाज, तलाक की स्थिति में महिलाओं के अधिकार, गुजारा भत्ता और संपत्ति में उनके अधिकार जैसे मुद्दों के न्याय संगत समाधान के लिए अब समान नागरिक संहिता की जरूरत पहले से ज्यादा महसूस की जा रही है।
यही वजह है कि 1985 में शाहबानो प्रकरण से लेकर कई मामलों में न्यायपालिका ने संविधान के अनुच्छेद 44 में प्रदत्त समान नागरिक संहिता लागू करने पर विचार करने का सरकार को सुझाव दिया है। परंतु ऐसा लगता है कि महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने के न्यायपालिका के सुझावों के प्रति केंद्र गंभीर नहीं है या फिर वह इसमें राजनीतिक नफा-नुकसान की संभावनाएं तलाश रहा है। संविधान के अनुच्छेद 44 के अनुसार, ‘शासन भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।’
बहुचर्चित शाहबानो प्रकरण में 1985 में उच्चतम न्यायालय ने समान नागरिक संहिता बनाने का सुझाव दिया था। इसके बाद भी हिन्दू व्यक्ति द्वारा पहली पत्नी से विवाह विच्छेद के बगैर ही धर्म परिवर्तन करके दूसरी शादी करने या फिर अंतरजातीय विवाह में उत्पन्न विवादों के समाधान में आड़े आने वाली परंपराओं और तीन तलाक की कुप्रथा से प्रभावित मुस्लिम महिलाओं के लिए गुजारा भत्ता जैसे मामले हल करने के लिए न्यायपालिका लगातार समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर जोर देती रही है।
लेकिन अब केन्द्र सरकार ने उच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामे में साफ कर दिया है कि यह विधायिका के अधिकार क्षेत्र का मामला है जिस पर गहराई से अध्ययन की आवश्यकता है। सरकार ने यह हलफनामा भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका में दाखिल किया है। उपाध्याय चाहते हैं कि न्यायालय समान नागरिक संहिता का मसौदा तीन महीने के भीतर तैयार करने का निर्देश केंद्र को दे।
केंद्र में दाखिल इस हलफनामे में कानून मंत्रालय ने कहा है कि संविधान के अंतर्गत सिर्फ संसद ही यह काम कर सकती है और न्यायालय कोई कानून विशेष बनाने का निर्देश विधायिका को नहीं दे सकता है। यह सर्वविदित है कि कानून बनाने का अधिकार संसद का ही है और इसीलिए शाहबानो प्रकरण से लेकर अभी तक कई मामलों में न्यायपालिका ने संसद को समान नागरिक संहिता लागू करने पर विचार करने का सुझाव दिया है। यह सुझाव वैसे भी महत्वपूर्ण है क्योंकि गोवा में पहले से ही समान नागरिक संहिता लागू है।
भारतीय जनता पार्टी हमेशा ही समान नागरिक संहिता की पक्षधर रही है और उसने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसे शामिल भी किया था। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने इस संवेदनशील विषय को जून, 2016 में विधि आयोग के पास भेजा था। हालांकि, उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बलबीर सिंह चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने 31 अगस्त, 2018 को सरकार को भेजे अपने परामर्श पत्र में कहा था कि फिलहाल समान नागरिक संहिता की आवश्यकता नहीं है। विधि आयोग का मत था कि समान नागरिक संहिता बनाने में कुछ बाधाएं हैं। आयोग ने इनमें पहली बाधा के रूप में संविधान के अनुच्छेद 371 और इसकी छठवीं अनुसूची की व्यावहारिकता का उल्लेख किया था। अनुच्छेद 371(ए) से (आई) तक में असम, सिक्किम, अरुणाचल, नगालैंड, मिजोरम, आंध्र प्रदेश और गोवा के बारे में कुछ विशेष प्रावधान हैं, जिनके तहत इन राज्यों को कुछ छूट प्राप्त हैं।
विधि आयोग की राय है कि हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी और समाज के विभिन्न धर्मों और समुदायों में प्रचलित कानूनों में महिलाओं को ही कई तरह से वंचित किया गया है। और यही भेदभाव तथा असमानता की मूल जड़ है। इस समानता को दूर करने के लिये संबंधित पर्सनल लॉ में उचित संशोधन करके इनके कतिपय पहलुओं को संहिताबद्ध किया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय में केन्द्र सरकार के हलफनामे के बाद एक बात तो साफ हो गयी है कि संविधान के अनुच्छेद 44 में प्रदत्त समान नागरिक संहिता का विषय फिलहाल जस का तस राजनीतिक मुद्दा ही बना रहेगा और निकट भविष्य में शायद ही प्रावधान अमल में आ सके।
इस बीच, अश्विनी उपाध्याय ने ‘एक देश-एक नागरिक संहिताÓ विषय पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिख कर इसे लागू करने के लाभ और इसे लागू नहीं करने से उत्पन्न हो रही समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि लड़कियों की विवाह की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने संबंधी बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक के माध्यम से विभिन्न समुदायों में प्रचलित उनके निजी कानूनों में भी प्रस्तावित संशोधन करके समस्या का कुछ हद तक समाधान हो सकेगा। फिलहाल तो यह विधेयक संसदीय स्थायी समिति के पास विचारार्थ है।

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