डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट –
14 जनवरी को मकर राशि में सूर्य और शनि ग्रह का एक साथ होना बहुत ही दुर्लभ संयोग है। यह संयोग 29 साल के बाद पड़ रहा है। इससे पूर्व यह योग सन 1993 में बना था।मकर संक्रांति का पुण्यकाल मुहूर्त सूर्य के संक्रांति समय से 16 घटी पहले और 16 घटी बाद का पुण्यकाल होता है। इस बार पुण्यकाल 14 जनवरी को सुबह 7 बजकर 15 मिनट से शुरू हो जाएगा, जो शाम को 5 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। इसमें स्नान, दान, जाप कर सकते हैं. वहीं स्थिर लग्न यानि समझें तो महापुण्य काल मुहूर्त 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इसके बाद दोपहर 1 बजकर 32 मिनट से 3 बजकर 28 मिनट तक भी पुण्यकाल है।पंजाब, यूपी, बिहार और तमिलनाडु में यह समय नई फसल काटने का होता है। इसलिए किसान इस दिन को आभार दिवस के रूप में भी मनाते हैं। इस दिन तिल और गुड़ की बनी मिठाई बांटी जाती है। इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की भी परंपरा है।महाभारत काल में मकर संक्रांति दिसंबर में मनाई जाती थी। ऐसा उल्लेख मिलता है कि छ्ठी शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय में 24 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाई गयी थी। अकबर के समय में 10 जनवरी और शिवाजी महाराज के काल में 11 जनवरी को मकर संक्रांति मनाये जाने का उल्लेख मिलता है।
मकर संक्रांति की तिथि का यह रहस्य इसलिए है क्योंकि सूर्य की गति एक साल में 20 सेकंड बढ जाती है। इस हिसाब से 5000 साल के बाद संभव है कि मकर संक्रांति जनवरी में नहीं, बल्कि फरवरी में मनाई जाने लगे। मकर सक्रांति को देश मे विभिन्न नामो से जाना जाता है।तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति उत्तरायण से भिन्न है। हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य का उत्तरायण होना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन गंगा नदी या पवित्र जल में स्नान करने का विधान है। साथ ही इस दिन गरीबों को गर्म कपड़े, अन्न का दान करना शुभ माना गया है। संक्रांति के दिन तिल से निर्मित सामग्री ग्रहण करने शुभ होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।गरीब और असहाय लोगों को गर्म कपड़े का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस माह में लाल और पीले रंग के वस्त्र धारण करने से भाग्य में वृद्धि होती है। माह के रविवार के दिन तांबे के बर्तन में जल भर कर उसमें गुड़, लाल चंदन से सूर्य को अर्ध्य देने से पद सम्मान में वृद्धि होने के साथ शरीर में सकारात्मक शक्तियों का विकास होता है। साथ ही आध्यात्मिक शक्तियों का भी विकास होता है।कहते है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर फेंका था। भगवान की जीत को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। शरद ऋतु का प्रभाव कम होने लगता है और इसके बाद बसंत मौसम का आगमन आरंभ हो जाता है। इसके फलस्वरूप दिन लंबे और रात छोटी होने लगती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव के घर जाते हैं। ऐसे में पिता और पुत्र के बीच प्रेम बढ़ता है। ऐसे में भगवान सूर्य और शनि की अराधना शुभ फल देने वाला होता है।संक्रांति का यह पर्व भारतवर्ष तथा नेपाल के सभी प्रान्तों में अलग-अलग नाम व भांति-भांति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है।भारत में इसके विभिन्न नाम है छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू में मकर सक्रांति,तमिलनाडु मेंताइ पोंगल, उझवर तिरुनल गुजरात, उत्तराखण्ड में उत्तरायण, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब में माघी,असम में
भोगाली बिहु ,कश्मीर में शिशुर सेंक्रात ,उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में खिचड़ी,पश्चिम बंगाल में
पौष संक्रान्ति ,कर्नाटक में मकर संक्रमण व पंजाब में लोहड़ी रूप में मनाया जाता है।इस खगोलीय परिवर्तन का स्वागत मकर सक्रांति रूप में हम करते है।साथ ही अपने बड़ो का सम्मान करने की परंपरा भी वर्षों से चली आ रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।)
मकर संक्रांति का महत्व
कु. कृतिका खत्री –
– मकर संक्राति के दिन सूर्य मकर राशी में प्रवेश करता है । हिन्दू धर्म में संक्रांति को भगवान माना गया है। भारतीय संस्कृति में मकरसंक्रांति का त्योहार आपसी कलह को मिटाकर प्रेमभाव बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन तिल गुड़ एक दुसरे को देकर आपसी प्रेम बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। वर्तमान में सर्वत्र कोरोना महामारी के कारण सदा की भांति त्योहार मनाने में बाधा आ सकता है। तो भी इस आपातकाल में सरकार द्वारा बताए गए सभी नियमों का कठोरता से पालन कर यह त्योहार मनाया जा सकता है। यह त्योहार मनाते समय इसका महत्त्व, त्योहार मनाने की पद्धति, तिल गुड़ का महत्त्व, पर्व काल में दान का महत्त्व, अन्य स्त्रियों को हल्दी कुमकुम लगाने का आध्यात्मिक महत्त्व तथा इस दिन की जाने वाली धार्मिक विधियों की जानकारी इस लेख में देने का प्रयास किया है। हम इसका लाभ लेंगे।
तिथि – यह त्योहार तिथि वाचक न होकर अयन-वाचक है। इस दिन सूर्य का मकर राशि में संक्रमण होता है। वर्तमान में मकर संक्रांति का दिन 14 जनवरी है। सूर्य भ्रमण के कारण होने वाले अंतर को भरने ने लिए ही संक्रांति का दिन एक दिन आगे बढ़ाया जाता है। सूर्य के उत्सव को ‘संक्रांत’ कहते हैं। कर्क संक्रांति के उपरांत सूर्य दक्षिण की ओर जाता है और पृथ्वी सूर्य के निकट, अर्थात नीचे जाती है। इसे ही ‘दक्षिणायन’ कहते हैं। मकर संक्रांति के पश्चात सूर्य उत्तर की ओर जाता है और पृथ्वी सूर्य से दूर, अर्थात ऊपर जाती है। इसे ‘उत्तरायण’ कहते हैं। मकरसंक्रांति अर्थात नीचे से ऊपर चढने का उत्सव; इसलिए इसे अधिक महत्व है।
इतिहास – संक्रांति को देवता माना गया है। संक्रांति ने संकरासुर दैत्य का वध किया, ऐसी कथा है ।
तिल गुड़ का महत्व – तिल में सत्त्वतरंगें ग्रहण और प्रक्षेपित करने की क्षमता अधिक होती है । इसलिए तिलगुड का सेवन करने से अंत:शुद्धि होती है और साधना अच्छी होने हेतु सहायक होते हैं । तिलगुड के दानों में घर्षण होने से सात्त्विकता का आदान-प्रदान होता है । ‘श्राद्ध में तिल का उपयोग करने से असुर इत्यादि श्राद्ध में विघ्न नहीं डालते ।’ सर्दी के दिनों में आने वाली मकर संक्रांति पर तिल खाना लाभप्रद होता है । ‘इस दिन तिल का तेल एवं उबटन शरीर पर लगाना, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल मिश्रित जल पीना, तिल होम करना, तिल दान करना, इन छहों पद्धतियों से तिल का उपयोग करने वालों के सर्व पाप नष्ट होते हैं ।’ संक्रांति के पर्व काल में दांत मांजना, कठोर बोलना, वृक्ष एवं घास काटना तथा कामविषयक आचरण करना, ये कृत्य पूर्णत: वर्जित हैं ।’
त्यौहार मनाने की पद्धति – ‘मकर संक्रांति पर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पुण्य काल रहता है । इस काल में तीर्थ स्नान का विशेष महत्त्व हैं । गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियोंके किनारे स्थित क्षेत्र में स्नान करने वाले को महापुण्य का लाभ मिलता है ।
मकर संक्रांति पर दिए गए दान का महत्व – मकर संक्रांति से रथ सप्तमी तक की अवधि पर्वकाल है। इस पर्व में किया गया दान और शुभ कार्य विशेष फलदायी होता है। धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन दान, जप और साथ ही धार्मिक अनुष्ठानों का अत्यधिक महत्व बताया गया है।
हल्दी और कुमकुम का आध्यात्मिक महत्व – हल्दी और कुमकुम लगाने से सुहागिन स्त्रियों में श्री दुर्गा देवी का अप्रकट तत्त्व जागृत होता है तथा श्रद्धा पूर्वक हल्दी और कुमकुम लगाने से यह जीव में कार्यरत होता है। हल्दी कुमकुम धारण करना अर्थात एक प्रकार से ब्रह्मांड में अव्यक्त आदिशक्ति तरंगों को जागृत होने हेतु आवाहन करना है । हल्दी कुमकुम के माध्यम से पंचोपचार करना अर्थात एक जीव का दूसरे जीव में उपस्थित देवता तत्त्व की पूजा करना है । हल्दी, कुमकुम और उपायन देने आदि विधि से व्यक्ति पर सगुण भक्ति का संस्कार होता है साथ ही ईश्वर के प्रति जीव में भक्ति भाव बढऩे में सहायता होती है ।
उपायन देने का महत्व तथा उपायन में क्या दें – ‘उपायन देना’ अर्थात तन, मन एवं धन से दूसरे जीव में विद्यमान देवत्व की शरण में जाना । संक्रांति-काल साधना के लिए पोषक होता है । अतएव इस काल में दिए जाने वाले उपायन से देवता की कृपा होती है और जीव को इच्छित फल प्राप्ति होती है । आजकल प्लास्टिक की वस्तुएं , स्टील के बर्तन इत्यादि व्यावहारिक वस्तुएं उपायन के रूप में देने के कारण उपायन देनेवाला तथा ग्रहण करने वाला दोनों के बीच लेन देन का सम्बन्ध निर्माण होता है । वर्तमान में अधार्मिक वस्तुओं के उपायन देने की गलत प्रथा आरम्भ हुई है इन वस्तुओं की अपेक्षा सौभाग्य की वस्तु जैसे उदबत्ती (अगरबत्ती), उबटन, धार्मिक ग्रंथ, पोथी, देवताओं के चित्र, अध्यात्म संबंधी दृश्य श्रव्य-चक्रिकाएं (ष्टष्ठह्य) जैसी अध्यात्म के लिए पूरक वस्तुएं उपायन स्वरूप देनी चाहिए । सात्विक उपायन देने के कारण ईश्वर से अनुसन्धान होकर दोनों व्यक्ति को चैतन्य मिलता है जिसके कारण ईश्वर की कृपा होती है।
मिटटी के बर्तनों (घडिया) के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का त्यौहार – सूर्य देव ने अधिक मात्रा में उष्णता देकर पृथ्वी के बर्फ को पिघलाने के लिए साधना (तपस्या) आरम्भ की । उस समय रथ के घोड़े सूर्य की गर्मी को सहन नहीं कर पा रहे थे और उन्हें प्यास लगी । तब सूर्यदेव ने मिट्टी के घड़े के माध्यम से पृथ्वी से जल खींचकर घोड़ों को पीने के लिए दिया; इसलिए संक्रांति पर घोड़ों को पानी पिलाने के कारण मटकों की प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मिट्टी के बर्तनों की पूजा करने की प्रथा आरम्भ हुई। रथ सप्तमी के दिन तक सुहागिन महिलाऐं हल्दी कुमकुम के अवसर पर इन पूजित बर्तनों को एक-दूसरे को उपायन स्वरूप भेंट में देती हैं । मिट्टी के बर्तन (घडिय़ा) को अपनी अंगुलिओं के माध्यम से हल्दी-कुमकुम लगा कर घडि़ए पर धागा लपेटा जाता तथा उसमे गाजर, बेर, गन्ने के टुकड़े, मूंगफली, कपास, काले चने, तिल के लड्डू, हल्दी आदि वस्तु भरकर भेंट स्वरुप दिया जाता है ।
पतंग न उड़ाएं – इस काल में अनेक स्थानों पर पतंग उड़ाने की प्रथा है परन्तु वर्तमान में राष्ट्र एवं धर्म संकट में होते हुए मनोरंजन हेतु पतंग उडाना, ‘जब रोम जल रहा था, तब निरो बेला (फिडल) बजा रहा थाÓ, इस स्थिति समान है । पतंग उडाने के समय का उपयोग राष्ट्र के विकास हेतु करें, तो राष्ट्र शीघ्र प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा और साधना एवं धर्मकार्य हेतु समय का सदुपयोग करने से अपने साथ समाज का भी कल्याण होगा ।
मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन किया
मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन किया। मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर राज्यवासियों को शुभकामनाएं और बधाई दी।
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युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर शत-शत नमन।
आज #राष्ट्रीय_युवा_दिवस के अवसर पर सभी लोगों को अनेक-अनेक शुभकामनाएं और जोहार। pic.twitter.com/TJVBGAY5K8— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) January 12, 2022
मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने वर्चुअल माध्यम से सात नए पीएसए ऑक्सीजन प्लान्ट का उद्घाटन किया
*रांची में दो तथा जमशेदपुर, रामगढ़, देवघर चाकुलिया (पूर्वी सिंहभूम) और कुचाई (सरायकेला- खरसावां) में एक -एक पीएसए
प्लान्ट अधिष्ठापित किए गए हैं
*सीमित संसाधनों के बीच बेहतर प्रबंधन से कोविड-19 को नियंत्रित करने का प्रयास
* लोगों को उनके घर के निकटवर्ती अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्रों में बेहतर चिकित्सीय सुविधा कराया जा रहा उपलब्ध
*सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही स्वास्थ्य संरचनाओं का भविष्य में भी बेहतर इस्तेमाल सुनिश्चित हो – श्री हेमन्त सोरेन,
मुख्यमंत्री, झारखंड
रांची,कोविड-19 महामारी के बीच राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ करने का प्रयास जारी है । इस कड़ी में स्वास्थ्य सुविधाओं का लगातार विस्तार हो रहा है। प्रखंड से लेकर जिला स्तर तक स्वास्थ्य से संबंधित आधारभूत संरचना को मजबूत किया जा रहा है, ताकि लोगों को उनके घर के निकटवर्ती अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्रों में बेहतर चिकित्सीय लाभ मिल सके । मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने आज पाथ ऑर्गनाइजेशन के सहयोग से राज्य के विभिन्न अस्पतालों में सात नए पीएसए ऑक्सीजन प्लांट का ऑनलाइन उद्घाटन करते हुए कही । उन्होंने कहा कि सरकार के द्वारा जो भी स्वास्थ्य संरचनाएं खड़ी की गई हैं, इसका कोरोना महामारी के अलावा भविष्य में भी बेहतर इस्तेमाल हो, इसे सुनिश्चित करना जरूरी है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में हर दिन नई कड़ी जोड़ रहे हैं
मुख्यमंत्री ने कहा कि लगभग 2 वर्ष पहले जब कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया में दस्तक दी थी तो झारखंड भी इससे अछूता नहीं था। हमारी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि कोरोना की जांच की सुविधा तक राज्य में उपलब्ध नहीं थी।लेकिन, आज हर जिले में पीएसए प्लांट अधिष्ठापित किए जा चुके हैं। कोरोना की जांच के लिए आरटीपीसीआर और अत्याधुनिक कोबास मशीन भी यहां है। अस्पतालों में लगभग 25 हज़ार बेड उपलब्ध हैं। अब राज्य में ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड, आईसीयू और वेंटीलेटर की पर्याप्त उपलब्धता है। सरकार का प्रयास है कि चिकित्सीय संसाधनों की कमी से किसी मरीज को किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़े।
तीसरी लहर को भी काबू में करने का प्रयास
मुख्यमंत्री ने कहा कि सीमित संसाधनों के बीच बेहतर प्रबंधन के साथ हमने कोरोना के खिलाफ जंग शुरू की और सभी ने देखा है कि पहली दो लहरों को नियंत्रित करने में काफी हद तक कामयाबी हासिल की। अभी तीसरी लहर चल रही है और इसे भी काबू में करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं ।
लोगों को जागरूक करना जरूरी
मुख्यमंत्री ने कहा कि कोविड-19 महामारी कब तक जारी रहेगा । इसका आकलन करना बेहद मुश्किल है। लेकिन, ऐसे हालात में इसके संक्रमण से बचने के लिए हम सभी को सावधान तथा सतर्क रहना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि सरकार बेहतर चिकित्सीय व्यवस्था तो कर ही रही है । लेकिन, इसके साथ इस महामारी से बचाव के तौर- तरीके लोगों को बताने के साथ कोविड-19 दिशा निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित कराना सबसे ज्यादा अहमियत रखता है।इसमें हम सभी का सहयोग बेहद जरूरी है।
यहां अधिष्ठापित किए गए हैं पीएसए प्लांट
पाथ संगठन के सहयोग से रांची के सदर अस्पताल में दो, जमशेदपुर के मर्सी हॉस्पिटल में एक, रामगढ़ ट्रॉमा सेंटर में एक, देवघर सदर अस्पताल में एक और चाकुलिया (पूर्वी सिंहभूम) तथा कुचाई (सरायकेला- खरसावां) सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक -एक पीएसए ऑक्सीजन प्लांट अधिष्ठापित किए गए हैं ।
इस अवसर पर स्वास्थ्य मंत्री श्री बन्ना गुप्ता, मुख्य सचिव श्री सुखदेव सिंह, स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री अरुण कुमार सिंह के अलावा मुख्यमंत्री आवासीय कार्यालय से मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजीव अरुण एक्का और मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे के अलावा पाथ संगठन के कंट्री डायरेक्टर श्री नीरज जैन और स्टेट लीड, झारखंड श्री अभिजीत सिन्हा ऑनलाइन मौजूद थे।
रजाई-कंबल या स्वेटर धोते समय कभी भी ना करें यह गलती
इस समय देशभर में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। ऐसे में गिरते तापमान के साथ ही लोगों के कई सारे रजाई-गद्दे और स्वेटर बाहर निकल लिए हैं। ऐसे में ठंड से बचने के लिए लोग इसका खूब इस्तेमाल कर रहे हैं, हालाँकि रजाई- कंबल और स्वेटर को सही तरीके से ना धोने से यह जल्दी खराब हो जाते हैं, और इनके खराब होने से ना हमें गर्माहट मिलती है और इसको पहनने से खुजली भी होती है। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं वुलन कपड़े धोने का सही तरीका, जिससे उसकी सॉफ्टनेस, चमक और गर्माहट लंबे समय तक बनी रहेगी।
एक साथ ना धोएं खूब सारे कपड़े- वैसे तो कई बार वॉशिंग मशीन में हम ढेर सारे कपड़े एक साथ डाल देते हैं और उन्हें घंटों तक उन्हें मशीन में धुलने देते हैं। हालाँकि वूलन कपड़ों को धोते समय यह बात ध्यान रखें कि कभी भी मशीन को ओवरलोड न करे। केवल पांच से सात कपड़े ही मशीन में एक समय में धोना चाहिए, ताकि यह अच्छी तरीके से साफ हो सके।
हमेशा कपड़ों को उल्टा करके धोएं- वुलन कपड़ों को धोते समय इस बात का ध्यान रखें कि हमें इन कपड़ों को हमेशा उल्टा धोना चाहिए इससे कपड़े का रेशा खराब नहीं होता है और वुलन क्लॉथ सॉफ्ट बना रहता है।
पानी में ना गलाएं विंटर क्लोथ- वुलन कपड़ों को कभी भी ज्यादा देर तक सर्फ में गलाकर नहीं रखना चाहिए। कहा जाता है इससे इनका रंग निकल सकता है और सर्फ के पानी में ज्यादा देर रहने से इनकी सॉफ्टनेस भी खत्म हो जाती है। आप इन्हें बिना गलाएं तुरंत ही धो लें।
गर्म पानी में ना धोएं वुलन कपड़े- कई लोग गंदे कपड़े या वुलन कपड़े धोने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से कपड़े ज्यादा अच्छे से साफ हो जाएंगे, जबकि स्वेटर या गर्म कपड़ों को गर्म पानी से धोने से इनकी सेल्फ लाइफ कम होती है। ऐसे में इन कपड़ों को हमेशा नॉर्मल पानी में ही धोना चाहिए।
बार-बार ना धोएं वुलन क्लॉथ- गर्म कपड़ों को बार-बार नहीं धोना चाहिए। ध्यान रहे एक वुलन कपड़े को कम से कम चार से पांच बार पहनने के बाद ही इसे धोएं।
रजाई और कंबल को धोते समय ध्यान रखेंगे बात- रजाई और कंबल को कभी भी वॉशिंग मशीन में नहीं धोना चाहिए, क्योंकि इससे इनकी रूई अपनी जगह से हिल जाती है और यह समतल नहीं रहती है। इस वजह से हमेशा रजाई और कंबल को हाथ से धोए। (एजेंसी)
थायराइड की समस्या से ग्रसित लोगों में अक्सर दिखने लगते हैं ऐसे शुरूआती लक्ष्ण
आज के जमाने में महिलाओं में थायराइड की समस्या काफी तेजी से बढती जा रही है। आज का खराब लाइफस्टाइल और गलत खानपान के कारण ये समस्यायें तेजी से शरीर में घर कर जाती है।
ऐसे में कई बार आपके गले का हिस्सा उभरा हुआ नजर आता है यदि इस डबल चिन को मोटापा समझ रहे हैं तो सावधान हो जाएं क्योंकि यह थायराइड का संकेत हो सकता है। जिसे थायराइड की बीमारी भी कहा जाता है।
गले में ये लक्षण थायराइड का संकेत
थाइराइड कैंसर के मामले में गले का इंफेक्शन, पेट की समस्या या श्वसन नली में एलर्जी भी हो सकती है। गर्दन में गांठ, सूजन, बार-बार ड्राईनेस, आवाज भारी होना, खराश हो रही है जो दवा से भी ना जाएं तो थायराइड की जांच करवा लें।
कैसे करें बीमारी पर कंट्रोल?
यदि आपको इस बीमारी का पता समय पर चल जाए तो दवा के सहारे इसे कंट्रोल किया जा सकता है। वहीं इसके साथ जरूरी है कि सही लाइफस्टाइल, अच्छी नींद, स्वस्थ खान-पान बीमारी को कंट्रोल करने के लिए सबसे जरूरी है। इसके साथ ही आप कुछ घरेलू नुस्खे भी अजमा सकते हैं जैसे-
1.आयरन से भरपूर चीजें खाएं, जैसे बादाम, हरी पत्तेदार सब्जियां, दालें, पालक, अंजीर, चुकंदर आदि।
2. रोज नाश्ते में 1 गिलास लौकी का जूस पीएं से भी फायदा होगा।
3. हल्दी वाला दूध पीने से भी थायराइड कंट्रोल में रहता है।
4. प्याज को दो हिस्सों में काटकर गले के आस-पास क्लॉक वाइज मसाज करें और रातभर के लिए छोड़ दें। लगातार ऐसे करने से थायराइड कंट्रोल होगा।
(एजेंसी)
सिर्फ स्वेटर पहनकर जाह्नवी कपूर ने दिखाईं ऐसी अदाएं, बढ़ा इंटरनेट का पारा!
बॉलीवुड एक्ट्रेस जाह्नवी कपूर अपने लुक्स और अदाओं के अलावा अपने ड्रेसिंग सेन्स के लिए जानी जाती हैं. हाल ही में जाह्नवी कपूर की एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें अभिनेत्री सिर्फ स्वेटर में नजर आ रही हैं.
इस वायरल तस्वीर में जाह्नवी कपूर लाइट ब्राउन कलर का सिर्फ स्वेटर पहने हुई हैं. तस्वीर को देखकर साफ लग रहा है कि एक्ट्रेस ने इसके साथ कोई भी ट्राउजर या फिर पैंट नहीं पहनी है. तस्वीर में एक्ट्रेस बेहद खुश दिख रही हैं.
सामने आई इस तस्वीर में जाह्नवी कपूर कभी कुर्सी पर बैठकर पोज दे रही हैं तो कभी जमीन पर बैठकर अपनी अदाएं दिखा रही हैं. तस्वीर में एक्ट्रेस सटल मेकअप के साथ ओपन हेयर में नजर आईं जिसमें उनका लुक फैंस को काफी पसंद आ रहा है.
जाह्नवी कपूर का नाम यूं तो उनके को-एक्टर ईशान खट्टर के साथ जुड़ चुका है. ईशान के साथ वो कई बार स्पॉट भी की जाती थीं, लेकिन समय के साथ उनकी राहें अलग हो गईं. लेकिन इस बीच एक्ट्रेस का एक ऐसा वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वो एक लड़के के काफी करीब नजर आईं.
जाह्नवी कपूर कुछ समय पहले एक पार्टी की फोटो इंस्टाग्राम पर शेयर की थीं. इस पार्टी में उनके साथ उनकी छोटी बहन खुशी कपूर भी दिखाई दी थीं. जाह्नवी की इन तस्वीरों और वीडियो में एक्ट्रेस सफेद कलर की बॉडीकॉन ड्रेस पहने बेहद खूबसूरत दिखाई दीं. वहीं खुशी कपूर ब्लैक कलर की शर्ट में दिखीं. इसके साथ ही उन्होंने काले रंग की शर्ट और पैंट को ग्रे ओवरसाइज्ड ब्लेजर के साथ पेयर किया था. वहीं अक्षत अभिनेत्री को बाहों में भर कर बड़े ही प्यार से किस करते हुए भी दिखाई दिए. (एजेंसी)
सरकार की दूसरी वर्षगांठ के अवसर पर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने राज्यवासियों को दी कई सौगातें
*मुख्यमंत्री ने 17,222.02 करोड़ रुपए की 1454 योजनाओं का उद्घाटन-शिलान्यास किया, लाभुकों के बीच बांटी परिसंपत्ति
*मुख्यमंत्री ने पेट्रोल में प्रति लीटर 25 रुपए का राहत देने की घोषणा की, अगले वर्ष 26 जनवरी से गरीबों को मिलेगा लाभ
*मुख्यमंत्री ने कहा- छात्र -छात्राओं के लिए स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना जल्द, विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति योजना का बढ़ेगा दायरा
*जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास कर रही है यह सरकार
*शासन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए चलाए गए “आपके अधिकार आपकी सरकार आपके द्वार ” कार्यक्रम का मिला सार्थक परिणाम – श्री रमेश बैस राज्यपाल, झारखंड
*झारखंड अब ना रुकेगा और झुकेगा, निश्चित रूप से आगे बढ़ेगा. सरकार कर रही काम
*आपके दरवाजे पर अब पहुंच रहा सरकारी महकमा ,कल्याणकारी योजनाओं से आपको जोड़ने का चल रहा अभियान – श्री हेमन्त सोरेन मुख्यमंत्री , झारखंड
मोरहाबादी मैदान, रांची – लोकतंत्र में जनता का हित सर्वोपरि होता है . सरकार का लक्ष्य होना चाहिए कि वह जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं पर खरा उतरे. राज्यपाल श्री रमेश बैस ने आज मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार के 2 वर्ष पूरे होने के अवसर पर रांची के मोरहाबादी मैदान में आयोजित राज्य स्तरीय समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए कही । उन्होंने मुख्यमंत्री को की दूसरी वर्षगांठ की बधाई देते हुए कहा कि सरकार आम जनता के कल्याण के लिए लगातार कोशिश कर रही है . उन्होंने कोरोना काल में सरकार द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की . राजपाल ने शिक्षा स्वास्थ्य और क्षेत्रों में सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर खुशी जाहिर की. उन्होंने शासन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए चलाए गए आपके अधिकार आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम को कारगर कदम बताया . राज्यपाल ने उम्मीद जताई कि यह सरकार भविष्य में भी समाज के सभी वर्ग और तबके के हित में कार्य करती रहेगी।
गरीबों को हर माह 10 लीटर पेट्रोल पर प्रति लीटर 25 रुपए की मिलेगी राहत
झारखंड अब ना रुकेगा और झुकेगा, निश्चित रूप से आगे बढ़ेगा. सरकार इस संकल्प के साथ अपनी कार्य योजनाओं को धरातल पर उतारने का काम तेजी से कर रही है. मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने सरकार की दूसरी वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित राज्यस्तरीय समारोह में राज्यवासियों को कई सौगातें दी. उन्होंने कहा कि आज पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं. इसका बुरा असर गरीब एवं मध्यम वर्ग के परिवारों को हुआ है . एक गरीब व्यक्ति घर में मोटरसाइकिल होते हुए भी पेट्रोल के पैसे नहीं रहने के कारण उसको चला नहीं पा रहा है. अपना फसल बेचने बाजार नहीं जा पा रहा है . इसलिए मैंने निर्णय लिया है कि वैसे राशन कार्डधारी यदि अपने मोटरसाइकिल या स्कूटर में पेट्रोल भरातें हैं तो 25 रुपए प्रति लीटर की दर से राशि उनके बैंक खाते में ट्रांसफर करेंगे। यह व्यवस्था अगले वर्ष 26 जनवरी से लागू करने जा रहे हैं । एक गरीब परिवार प्रतिमाह 10 लीटर पेट्रोल तक यह राशि प्राप्त कर सकता है ।
छात्र-छात्राओं के लिए स्टूडेंट्ड क्रेडिट कार्ड योजना बहुत जल्द
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर राज्य के छात्र-छात्राओं के लिए स्टूडेंट्स क्रेडिटकार्ड योजना लागू करने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि जल्द ही राज्य के विद्यार्थियों को इस योजना का लाभ मिलेगा. उन्हें अपनी शिक्षा के लिए पैसे की कमी कभी बाधा नहीं बनेगी. स्टूडेट्स क्रेडिट योजना उनके बेहतर शिक्षा के सपनों का सार्थक करेगा.
झारखंड आंदोलनकारी के आश्रितों को नौकरियों में 5 प्रतिशत क्षैतिज आऱक्षण मिलेगा
मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड राज्य आंदोलन की उपज है. कई लोगों ने इस राज्य के लिए हुए आंदोलन में अपनी शहादत दी. हमारी सरकार ऐसेआंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को सम्मान के साथ पेंशन तो दे ही रही है. अब उन्हें सरकारी नौकरियों में पांच प्रतिशत क्षैतिज आऱक्षण मिलेगा. मुख्यमंत्री ने समारोह में मंच से इसकी घोषणा की.
विदेशों में पढ़ाई के लिए शत प्रतिशत छात्रवृति योजना का दायरा बढ़ेगा
मुख्यमंत्री ने कहा कि अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए शत प्रतिशत छात्रवृति दे रही है. इस वर्ष इस योजना के तहत छह विद्यार्थियों को विदेशों में पढ़ाई के लिए चयनित किय़ा गया है. अब राज्य सरकार इस स्कॉलरशिप योजना का दायरा बढ़ाने की दिशा में भी काम कर रही है. अन्य वर्ग के होनहार विद्यार्थियों को भी विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप योजना से जोड़ा जाएगा.
सरकारी कर्मियों की ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की मांग पर भी सरकार कर रही विचार
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार के कर्मियों द्वारा लंबे अर्से से ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की मांग की जा रही है. सरकार उनकी इस मांग पर विचार कर रही है और जल्द ही विधिसम्मत निर्णय लिया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि राज्य के कई विभागों में हजारों की संख्या में अनुबंधकर्मी कार्यरत है. वे अपनी मांगों और समस्याओं को लेकर लगातार आंदोलन करते रहते हैं. उनकी मांगें सरकार के संज्ञान में है. लेकिन, समस्याओं का समाधान आंदोलन और धरना प्रदर्शन से नहीं होगा. आप हमें सहयोग करें. वार्ता के लिए आगे आएं. हम आपकी मांग पर यथोचित निर्णय लेंगे, ताकि सभी के सहयोग से राज्य को विकास के पथ पर आगे ले जा सकें.
प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के गरीब विद्यार्थियों को भी बेहतर और गुणवत्तायुक्त शिक्षा मिले, इस दिशा में सरकार लगातार काम कर रही है. इसी वजह से अगले सेशन से कई सरकारी विद्यालयों में निजी स्कूलों की तर्ज पर पढ़ाई शुरू करने का निर्णय सरकार ने लिया है. यहां विद्यार्थियों को शिक्षा से संबंधित सभी जरूरी एवं मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध होंगी.
आप सभी के सहयोग से सरकार ने सफलतापूर्वक पूरे किए हैं दो साल
इससे पहले मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि राज्यवासियों के सहयोग से हमारी सरकार ने सफलतापूर्वक दो साल पूरे किए हैं. लेकिन, ये दो साल ना सिर्फ झारखंड बल्कि पूरी दुनिया के लिए संकट औऱ चुनौतीपूर्ण रहे हैं. कोरोना महामारी के कारण पूरी दुनिया की व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई. लॉक डाउन लगा और लोग अपने घरों में कैद होने को मजबूर हो गए. लोगों के सामने जीवन औऱ जीविका का संकट पैदा हो गया. ऐसे हालात में लोगों को कैसे राहत मिले, इसे लेकर सरकार लगातार मंथन करती रही. जब हालात थोड़े बेहतर हुए तो पूरी सतर्कता के साथ सरकार ने अपनी योजनाओं को धरातल पर उतारने का काम शुरू किया, ताकि लोगों के जीवन और जीविका पर जो संकट आया था, उसका समाधान हो सके. इसमें हमारी सरकार की योजनाएं काफी कारगर रही. हालांकि, कोरोना का खतरा अभी भी बरकरार है. लेकिन, पूरी सावधानी के साथ विकास कार्यक्रमों को गति देने का काम चल रहा है.
आपका विश्वास हमारी ताकत, आपकी समस्याओं का कर रहे समाधान
मुख्यमंत्री ने कहा का पिछले दो वर्षों में सरकार द्वारा 28-30 योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया है. शहर से लेकर गांव में अंतिम पंक्ति में बैठे व्यक्तिय़ों को लाभ दिलाने की दिशा में सरकार लगातार प्रयास कर रही है. पहले जहां सुदूरवर्ती गांवों में अधिकारी नहीं जाते थे. योजनाएं नहीं पहुंच पाती थी, लेकिन हमारी सरकार ने आपके अधिकार आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम चलाया. इसके तहत ना सिर्फ आपके दरवाजे पर सरकारी महकमा पहुंच रहा है, बल्कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से उन्हें जोड़ने के साथ उनकी समस्याओं का समाधान किया जा रहा है. यह जनता की सरकार है. जनता की उम्मीदों और आंकाक्षाओं को पूरा कर रहे हैं. आपकी हर समस्य़ा का समाधान होगा, हमारी सरकार पर आपने दो सालों तक विश्वास किया है, आगे भी ऐसा ही विश्वास बनाए रखें.
भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर बना रहे कार्ययोजनाएं
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य को आगे ले जाने की दिशा में सरकार लगातार प्रयत्नशील है. हमारी सरकार ना सिर्फ वर्तमान बल्कि अगले 25 से 30 सालों की जरूरतों को ध्यान में रखकर कार्य योजनाएं बना रही है. भविष्य की जरूरतें सरकार के ध्यान में है. ऐसे में हमारी जो भी योजनाएं लागू हो रही है, उसका दूरगामी प्रभाव देखने को मिलेगा. वह दिन दूर नहीं जब झारखंड एक सक्षम और सशक्त राज्य के रुप में पहचान स्थापित करेगा और अन्य राज्यों को सहयोग करने में अग्रणी भूमिका निभाएगा.
खनिजों के अलावे अन्य क्षेत्रों में काफी संभावनाएं
मुख्यमंत्री ने कहा कि आमतौर पर झारखंड राज्य की पहचान खनिज संसाधनों के लिए होती है. लेकिन, यहां पर्यटन और खेल समेत कई अन्य क्षेत्रों में भी काफी संभावनाएं हैं. ऐसे में राज्य के पर्यटक स्थलों को विकसित करने के लिए नई पर्यटन नीति बनाई गई है. पर्यटक स्थलों पर मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था की जा रही है. वहीं खेल और खिलाडियों के लिए भी सरकार ने कई नीति बनाई है. खिलाड़ियों की सीधी नियुक्ति हो रही है और खेल प्रतिभाओं को उभारने के लिए प्रशिक्षण के साथ विभिन्न प्रतियोगिताओं का लगातार आयोजन किया जा रहा है.
आंतरिक संसाधनों को बढाने के लिए उठाए जा रहे कई कदम
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्यवासियों के हित में सरकार कई योजनाएं बना रही है. ये योजनाएं कैसे सफलतापूर्वक लागू हों, इसके लिए संसाधनों की व्यवस्था होनी बेहद जरूरी है. इसी बात को ध्यान में रखकर हमारी सरकार ईमानदार सोच, विजन और बेहतर प्रबंधन के साथ आंतरिक संसाधनों को बढ़ाने का लगातार प्रयास कर रही है.
कई नए कार्यक्रमों की हुई शुरूआत
समेकित बिरसा ग्राम विकास योजना सह किसान पाठशाला की शुरूआत
राज्य के किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए सरकार लगातार प्रयत्नशील है. आज राज्यस्तरीय समारोह में इसके लिए समेकित बिरसा ग्राम विकास योजना सह किसान पाठशाला का शुभारंभ किया गया. पहले चरण में 17 किसान पाठशाला खोले जाएंगे, जबकि आने वाले तीन सालों में इसकी संख्या को बढ़ाकर एक सौ करने की योजना है.
कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ एक हजार दिनों के विशेष समर अभियान का शुभारंभ
महिलाओं को एनिमिया और बच्चों को कुपोषण की समस्या से निजात दिलाना सरकार की विशेष प्राथमिकता है. इसी संदर्भ में आज एक हजार दिनों का विशेष समर अभियान शुरू करने का मुख्यमंत्री ने ऐलान किया.
प्लेसमेंट लिंक्ड ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए एमओयू
राज्य में 12वीं पास विद्यार्थियों को आईटी की ट्रेनिंग देने के लिए श्रम विभाग और एचसीएल टेक्नोलॉजी के बीच आज एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया. इसके तहत यहां के इंटर पास विद्यार्थियों को एचसीएल कंपनी के द्वारा प्लेसमेंट लिंक्ड ट्रेनिंग प्रोगाम से जोड़ा जाएगा और प्लेसमेंट की भी व्यवस्था की जाएगी.
वन उपज को बढ़ावा और बाजार उपलब्ध कराने के लिए एमओयू
झारखंड आदिवासी बाहुल्य राज्य है. यहां की एक बड़ी आबादी अपनी जीविका के लिए वनोत्पादों पर निर्भर है. ऐसे में सरकार ने वनोत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने की दिशा में नीति बनाई है. इसी के तहत आज वन विभाग, कल्याण विभाग और इंडियन स्कूल ऑ फ बिजनेस के बीच त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया गया. इससे यहां के वन उपज को व्यवसायिक बाजार उपलब्ध कराने में सहूलियत होगी.
पत्रकार स्वास्थ्य बीमा योजना का शुभारंभ
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर राज्य के पत्रकारों के लिए पत्रकार स्वास्थ्य बीमा योजना लागू करने की घोषणा की. इस योजना के तहत उन्हें पांच लाख रुपए तक का बीमा कवर मिलेगा. मीडियाकर्मियों के साथ उनके परिजनों को भी इस योजना का लाभ मिलेगा.
कई योजनाओं का उद्घाटन-शिलान्यास
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर 17,222.02 करोड़ रुपए की 1454 योजनाओं का उद्घाटन-शिलान्यास किया. इसमें 2965.22 करोड़ रुपए की 20 राज्यस्तरीय और 10770.88 करोड़ रुपए की अन्य 1014 योजनाओं का शिलान्यास किया. इस तरह शिलान्यास किए जाने वाले योजनाओं की कुल लागत 13,736.1 करोड़ रुपए है. वहीं, 1287.51 करोड़ रुपए की लागत से 20 राज्यस्तरीय और 2198.41 करोड़ रुपए की लागत से 400 योजनाओं का उद्घाटन हुआ. इसके अलावा 1493.38 रुपए की परिसंपत्तियों का वितरण लाभुकों के बीच किया गया. वहीं, कई नव चयनित अभ्यर्थियों को मुख्यमंत्री के द्वारा नियुक्ति पत्र प्रदान किया गया.
इस अवसर पर राज्यसभा सांसद श्री शिबू सोरेन, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री श्री आरपीएन सिंह, मंत्री श्री आलमगीर आलम और श्री सत्यानंद भोक्ता, विधायक श्री बंधु तिर्की और श्री राजेश कच्छप, मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी श्रीमती कल्पना सोरेन, मुख्य सचिव श्री सुखदेव सिंह, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री राजीव अरुण एक्का, पुलिस महानिदेशक श्री नीरज सिन्हा, मुख्यमंत्री के सचिव श्री विनय कुमार चौबे के अलावे विभिन्न विभागों के अपर मुख्य सचिव/ प्रधान सचिव / सचिव मौजूद थे.
संकटकाल में नयी चाल में ढला साहित्य
अतुल सिन्हा –
निस्संदेह, कोरोना काल में मानवीय त्रासदी का चरम दिखा, जिसने रचनाकारों को उद्वेलित किया। इस काल के सृजन में मानवीय त्रासदी की गहरी छाया रही। इस दौरान साहित्य ने अपनी चाल बदली। विपुल साहित्य का सृजन हुआ। डिजिटल माध्यम की स्वीकार्यता बढ़ी।?लेकिन पुस्तक छपवाने का मोह कम नहीं हुआ। प्रकाशकों का काम बढ़ा। इस दौरान हमने अनेक नामचीन साहित्यकारों को भी?खोया।
एक महामारी ने पूरी जीवन शैली बदल दी। तकरीबन दो सालों से हम सब के बीच फासले बढ़ गए। सोचने-समझने और लिखने-पढऩे के तौर-तरीकों में बदलाव आया और साहित्य सृजन की दृष्टि भी काफी हद तक बदल गई। कोरोना काल में साहित्य रचने का यह दूसरा साल था। लॉकडाउन भले ही कुछ महीनों का रहा हो, लेकिन इसका असर दीर्घकालिक है। वर्ष 2021 के इस सबसे भयानक कालखंड में हमारे बीच से बहुत से लोग, रचनाकार, पत्रकार, लेखक, संस्कृतिकर्मी चले गए। कुछ रचते हुए चले गए, कुछ रचने की बहुत-सी योजनाओं को साथ लिए चले गए। सन् 2020 के कोरोना कालखंड में जहां मजदूरों का पलायन और सड़कों पर मजबूरन धकेल दिए गए श्रमिकों का दर्द रचनाओं में झलकता रहा तो इस बार लगातार और असमय अलविदा कह देने वालों से जुड़ी मानवीय पीड़ा और एक बेबसी दिखाई देती रही। रचनाकार या तो सदमे में रहा, लिखने-पढऩे से विरक्ति का शिकार रहा, या फिर रचा तो इतना रचा कि उसकी सारी संवेदनाएं अपने विभिन्न रूपों में सामने आती रहीं। कविताएं हों, कहानियां हों, डायरी के पन्ने हों, उपन्यास हों या संस्मरण– इस दौर में जो भी लिखा गया, ज्यादातर में इसकी झलक मिली। सत्ता के प्रति गुस्सा, संवेदनहीन सरकार और बेबस प्रशासन की अव्यवस्थाएं, अस्पतालों की भयावहता, ऑक्सीजन को लेकर त्राहि-त्राहि और सरकारों के दावे, वैक्सीनेशन की सरकारी प्रतियोगिताएं और सबसे ज्यादा उन परिवारों और व्यक्तियों की त्रासदी जो या तो अचानक चले गए, या अव्यवस्थाओं के शिकार होकर अलविदा कह गए।
कोरोना काल में डिजिटल हो चुके देश में वैसे तो अब ज्यादातर साहित्य फेसबुक या सोशल मीडिया पर रचा जा रहा है, लेकिन ये प्लेटफॉर्म बस आपके डायरी के पन्नों की तरह है। आखिरकार सभी की यह चाहत रहती है कि उनका यह रचनाकर्म पुस्तक के रूप में आए, बेशक इसके लिए पैसे खर्च करके प्रकाशकों की तलाश की जाए और अपने हिस्से का साहित्य रच दिया जाए। ज्यादातर लेखक और कवि चाहते हैं कि उनकी कोई न कोई किताब पुस्तक मेलों में जरूर आए ताकि कम से कम उनके रचनाकर्म को एक पहचान मिल सके। लखनऊ समेत तमाम शहरों में पुस्तक मेले लगने शुरू हो गए हैं और एक बार फिर जनवरी के दूसरे हफ्ते में दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले की तैयारी है। वर्ष 2021 में छपी हजारों पुस्तकों को एक बड़ा आयाम यहां मिलने जा रहा है। प्रकाशकों के पास पुस्तकों के जबरदस्त ऑर्डर हैं और तमाम पुस्तकें छपने के अंतिम चरण में हैं। प्रकाशकों के लिए यह वक्त बहुत मुफीद होता है और कोरोना काल ने तो उनका प्रिंट ऑर्डर काफी बढ़ा दिया है। तमाम प्रकाशक बताते हैं कि कोरोना काल से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा है, बल्कि पहले से कहीं ज्यादा किताबें इस बार छप रही हैं। कोरोना काल में घर बैठे लोगों ने खूब लिखा है। सबसे बड़ी बात कि अब किताबों को बेचने के लिए पुस्तक मेलों के अलावा अमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध होने से काफी सहूलियत हो गई है, इसलिए बड़ी संख्या में किताबें छप भी रही हैं और बिक भी रही हैं। किताबें छपवाने के लिए कई लेखक प्रकाशकों को मोटी धनराशि भी देने लगे हैं इसलिए आम तौर पर प्रकाशन के व्यवसाय पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। फिर भी कई प्रकाशक ऐसे भी हैं, जिनके लिए मुश्किलें बढ़ गईं और उन्हें अपने कर्मचारियों की छंटनी भी करनी पड़ी।
कोरोना काल में 2021 का विश्व पुस्तक मेला पहली बार डिजिटल माध्यम से जनवरी की जगह मार्च के पहले हफ्ते में चार दिनों के लिए 6 से 9 मार्च तक आयोजित हुआ। कोरोना की पहली लहर से धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य होती दिख रही थीं, लेकिन लोगों में डर था, ढेर सारी पाबंदियां थीं और अगले ही महीने कोरोना का सबसे खतरनाक दूसरा दौर आया जो तमाम लोगों पर कहर बनकर टूटा और एक बार फिर दहशत से भरी जि़ंदगी घरों में कैद हो गई। फेसबुक और सोशल मीडिया मौत की सूचनाओं के अलावा अस्पतालों की चरमराई व्यवस्थाओं से भरा रहा। इसी दौरान तमाम लेखकों ने फेसबुक पर रोजाना साहित्य रचना शुरू कर दिया। जाने-माने कवि मदन कश्यप कहते हैं कि 2020 के लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद रचे गए साहित्य में जहां विस्थापन का दर्द बहुत गहराई से सामने आया, वहीं 2021 में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में हुई मौतों और आदमी की असहायता और करुणा को साहित्य के विभिन्न रूपों में पेश किया गया। अभी यह सिलसिला जारी है और लंबे समय तक यह कविता, कहानी, उपन्यास और डायरी जैसे रूपों में सामने आता रहेगा। उनका कहना है कि जिस तरह विश्वयुद्ध के बाद पोस्ट वर्ल्डवार लिटरेचर का दौर था, वैसे ही पोस्ट कोरोना पोएट्री, फिक्शन और अन्य लेखन का एक रचनात्मक आंदोलन दिखाई दे रहा है।
मदन कश्यप की लॉकडाउन डायरी भी छपकर लगभग तैयार है। 2021 में श्रीप्रकाश शुक्ल की ‘महामारी और कविताÓ के अलावा अरुण होता के संपादन में ‘तिमिर में ज्योति जैसेÓ और कौशल किशोर के संपादन में ‘दर्द के काफिलेÓ जैसे कई महत्वपूर्ण संग्रह आए हैं, जिनमें कोरोना काल के दौरान रची गई कविताएं, आलेख और संस्मरण शामिल हैं।
कवि और संस्कृतिकर्मी कौशल किशोर बताते हैं कि इस महामारी के दौर में सभी संवेदनशील रचनाकारों ने सृजनात्मक हस्तक्षेप किया और इस दौरान रची गई कविताएं, कहानियां और संस्मरण अपने समय के दस्तावेज हैं। जब भी ऐसा कोई बड़ा संकट आया है, साहित्यकारों ने अपने दायित्व का निर्वाह किया है। इस बार भी ऐसा ही देखने में आ रहा है। इस बार तो कोरोना ही नहीं, दूसरी तरह की तमाम परिस्थितियां भी झेलनी पड़ रही हैं, जिसकी अभिव्यक्ति रचनाओं में हो रही है। इसी दौरान सेतु प्रकाशन ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें छापीं। आनंद स्वरूप वर्मा का ‘पत्रकारिता का अंधा युगÓ से लेकर रज़ा फाउंडेशन के साथ कई किताबों की शृंखला, ज्ञानरंजन की किताब ‘जैसे अमरूद की खुशबूÓ, जयप्रकाश चौकसे का ‘सिनेमा जलसाघरÓ, प्रचंड प्रवीर का ‘कल की बात – षडज़, ऋषभ और गांधारÓ, रणवीर सिंह की पारसी थिएटर पर एक महत्वपूर्ण किताब, संजीव की ‘पुरबी बयारÓ, आधुनिक हिन्दी रंगमंच और हबीब तनवीर के रंगकर्म पर अमितेश कुमार की किताब ‘वैकल्पिक विन्यासÓ, चंडी प्रसाद भट्ट की जीवनगाथा, फणीश्वरनाथ रेणु पर भारत यायावर की पुस्तकें और ऐसी तमाम पुस्तकें जो अलग अलग विषयों और संदर्भों में रची गईं।
सेतु प्रकाशन के अमिताभ राय का कहना है कि साहित्य सृजन एक निरंतर प्रक्रिया है और कोरोना काल के दौरान लेखकों, रचनाकारों और कई पत्रकारों ने इस प्रक्रिया को और तेज़ किया है। लॉकडाउन की त्रासदी, कोरोना का आतंक, जीवन शैली से लेकर सोच में आए बदलाव के साथ-साथ सत्ता की विद्रूपता के कई रंग इन रचनाओं में सामने आए हैं। उनके पास पुस्तक मेले को लेकर कम से कम सौ से ज्यादा किताबों को छापने का दबाव तत्काल है। इसके अलावा अशोक वाजपेयी रचनावली भी अंतिम चरण में है। मधुकर उपाध्याय की दस खंडों में छपी किताब– बापू और मदीह हाशमी की लिखी फैज़ अहमद फ़ैज़ की जीवनी – प्रेम और क्रांति के अलावा मंगलेश डबराल का कविता संग्रह भी सेतु प्रकाशन ने इसी साल छापा है।
वहीं अनुभव प्रकाशन के पराग कौशिक कहते हैं कि कोरोना काल में इस साल उनके कामकाज में और तेजी आई है। अब तक इस साल करीब डेढ़ सौ किताबें छाप चुके हैं। पुस्तक मेले में भी कुछ किताबें आने वाली हैं। उनका कहना है कि इस दौरान ई-बुक के क्षेत्र में भी काफी काम हुआ है और तमाम प्लेटफॉर्म्स पर उनकी ई-बुक्स उपलब्ध हैं।
इस दौरान प्रलेक प्रकाशन से सुभाष राय की किताब भी आई ‘अंधेरे के पारÓ जो कई कवियों और लेखकों पर आलेख और संस्मरणों का संकलन है। इसके अलावा कवि और पत्रकार शैलेन्द्र का छठा कविता संग्रह ‘सुने तो कोईÓ, सुरेश कांटक का कहानी संग्रह ‘अनावरणÓ, चंद्रेश्वर का कविता संग्रह ‘डुमराव नजर आएगाÓ, उषा राय का कहानी संग्रह ‘हवेलीÓ, सुभाष चंद्र कुशवाहा का ‘भील विद्रोहÓ, मीना सिंह का कविता संग्रह ‘काली कविताएं, दक्षिणी भूखंड और मैं, आशा राम जाग्रत की अवधी काव्य गाथा ‘पाही माफीÓ, प्रलेक प्रकाशन से छपा सलिल सुधाकर का उपन्यास ‘तपते कैनवास पर चलते हुएÓ, रणेन्द्र का ‘गूंगी रुलाई का कोरसÓ, संजीव पालीवाल का न्यूजरूम थ्रिलर ‘पिशाचÓ, सुरेन्द्र मनन का उपन्यास ‘हिल्लोलÓ, राजवंत राज का ‘ट्रंपकार्डÓ, सीमा आजाद का ‘औरत का सफर – जेल से जेल तकÓ, रामकुमार कृषक की कोरोना केन्द्रित कविताओं का संकलन ‘साधो, कोरोना जनहंताÓ, उर्मिलेश की किताब ‘गाजीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेलÓ, शोभा सिंह का कविता संग्रह ‘यह मिट्टी दस्तावेज़ हमाराÓ जैसी कई अहम किताबें 2021 में आईं। एक महत्वपूर्ण किताब इस बीच ममता कालिया की भी आई ‘जीते जी इलाहाबादÓ। इसमें उनके भीतर रचे-बसे इलाहाबाद की वो यादें हैं जो उनके स्नायुतंत्र में दौड़ती रहती हैं। इस बीच स्त्री विमर्श और उसकी आलोचना पक्ष पर केन्द्रित पुस्तकें भी आई हैं। इसी कड़ी में राजकमल प्रकाशन ने सुजाता की एक अच्छी किताब छापी है ‘आलोचना का स्त्री पक्षÓ।
प्रभात प्रकाशन की ओर से सच्चिदानंद जोशी की दो किताबें आईं ‘जिंदगी का बोनसÓ और ‘पुत्रिकामेष्टिÓ। आनंद स्वरूप वर्मा ने नेपाली साहित्य पर केन्द्रित समकालीन तीसरी दुनिया का एक संग्रहणीय अंक निकाला। फेहरिस्त बहुत लंबी है, कितनों का जि़क्र करें। प्रभात प्रकाशन ने भी इस बीच सौ से ज्यादा पुस्तकें छापीं और साल के जाते-जाते आशुतोष चतुर्वेदी के संपादन में पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी पर एक खास किताब भी छापी, जिसका लोकार्पण राज्यसभा के सभापति हरिवंश ने किया। प्रभात कुमार कहते हैं कि कोरोना काल में लेखकों की संख्या बहुत बढ़ गई है और ई-बुक्स का चलन काफी बढ़ा है। किताबें छप तो रही हैं लेकिन बिक कम रही हैं।
वहीं अनुभव प्रकाशन के पराग कौशिक कहते हैं कि अब तक इस साल करीब डेढ़ सौ किताबें वो छाप चुके हैं। उनका कहना है कि इस दौरान ई-बुक के क्षेत्र में भी काफी काम हुआ है और तमाम प्लेटफॉर्म्स पर उनके ई-बुक्स उपलब्ध हैं। इस दौरान अनुभव प्रकाशन ने सूरजपाल चौहान, डॉ. प्रदीप जैन, कैलाश दहिया, नरेन्द्र निगम, मृदुला भटनागर, ईशकुमार गंगानी, डॉ. धनंजय सिंह जैसे 30 से ज्यादा लेखकों की किताबें छापीं। दरअसल, इस बीच रचनात्मकता के कई आयाम दिखे। कोरोना काल में लिखी गई रचनाओं के ज्यादातर संग्रह आए, कई पत्रिकाओं ने अपने विशेषांक निकाले। खास बात यह भी रही कि सबने सिर्फ महामारी की विभीषिका की ही बात नहीं की, कई ऐसे उपन्यास, कहानी संग्रह, संस्मरण और कविताएं रची गईं, जिनका सरोकार समाज के तमाम आयामों, जीवन की सच्चाइयों, राजनीतिक व्यवस्था और जातिगत, धार्मिक उन्माद जैसे विषयों से भी जुड़ा रहा। जाहिर है देश में मौजूदा सत्ता और सोच पर केन्द्रित किताबों की भी लंबी फेहरिस्त रही और तमाम लेखकों ने अपनी आस्था का रचनात्मक इजहार भी किया। धार्मिक और पौराणिक पुस्तकों के अलावा, देशप्रेम और शौर्य गाथाओं के भी किस्से खूब छापे गए और यह सिलसिला जारी है।
साल के अंत में चंडीगढ़ में भारत-पाक युद्ध की स्वर्ण जयंती पर आधारित पांचवां मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल-2021 देश की सुरक्षा चुनौतियों व गौरवशाली सैन्य उपलब्धियों पर गंभीर विमर्श नई पीढ़ी तक पहुंचाने में सफल रहा।
डिजिटल मंचों पर साहित्यिक आयोजन
कोरोना काल के पहले कालखंड ने साहित्यकारों और रचनाकारों को फेसबुक लाइव से लेकर ऑनलाइन तमाम ऐसे मंच दिए, जिसमें साहित्य की तमाम धाराओं पर समय-समय पर चर्चाएं होती रहीं। 2021 में अब यह परंपरा थोड़े और वृहद और स्वीकार्य रूप में सामने आई। ज्यादातर प्रकाशन संस्थानों ने अपनी नई किताबों का ऑनलाइन विमोचन करवाए, उसपर चर्चाएं करवाईं और तमाम साहित्यिक मंचों पर कविताओं, कहानियों के पाठ हुए, साहित्यिक चर्चाएं हुईं। विश्व पुस्तक मेला और दिल्ली पुस्तक मेला तो ऑनलाइन हुआ ही, यहां के साहित्यिक सेशन भी डिजिटल मंचों पर हुए।
प्रतिरोध का साहित्य
सत्ता के जनविरोधी चरित्र को केन्द्र में रखकर अशोक वाजपेयी के नेतृत्व में कई लेखकों और संस्कृतिकर्मियों ने प्रतिरोध के साहित्य सृजन का अभियान शुरू किया। इस दौरान अशोक वाजपेयी ने प्रतिरोध पूर्वज के नाम से तमाम कालजयी रचनाकारों की कविताओं का संग्रह छापा। स्वप्निल श्रीवास्तव के संपादन में ताकि स्पर्श बचा रहे और विमल कुमार की मृत्यु की परिभाषा बदल दो, किताबों में स्त्री जैसी कई किताबें भी इसी कड़ी में सामने आईं और सौ से ज्यादा रचनाकारों ने एक प्रस्ताव पास करके पूरे देश के रचनाकारों से अपील की कि वो अपनी सीमा में प्रतिरोध का साहित्य रचते रहें और जनपक्षधर साहित्य का सृजन करते रहें।
जिनको हमने खो दिया
कोरोना काल के दूसरे सबसे भयानक काल ने बहुत से साहित्यकारों, लेखकों, संस्कृतिकर्मियों को हमसे छीन लिया। वर्ष 2021 में मन्नू भंडारी, कुंअर बेचैन, नरेन्द्र कोहली, विनोद दुआ, रमेश उपाध्याय, ईश मधु तलवार, ओम भारती, राजकुमार केसवानी को हमने खो दिया।?
कांग्रेस का आजादी व देश के विकास में योगदान अहम!
कांग्रेस स्थापना दिवस पर विशेष
डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट –
कांग्रेस का स्वर्णिम इतिहास देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है। इसका गठन सन 1885 में हुआ, जिसका श्रेय एलन ऑक्टेवियन ह्यूम को जाता है। एलेन ओक्टेवियन ह्यूम का जन्म सन1829 को इंग्लैंड में हुआ था। वह अंग्रजी शासन की सबसे प्रतिष्ठित ‘बंगाल सिविल सेवा’ में पास होकर सन 1849 में ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी बने।सन 1857 की गदर के समय वह इटावा के कलक्टर थे। लेकिन ए ओ ह्यूम ने खुद ब्रटिश सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाई और सन1882 में पद से अवकाश ले लिया और कांग्रेस यूनियन का गठन किया। उन्हीं की अगुआई में मुंबई में पार्टी की पहली बैठक हुई थी। शुरुआती वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिल कर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की और इसने प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया। लेकिन सन1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी का रुख़ कड़ा हुआ और अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरु हए।इसी बीच महात्मा गाँधी भारत लौटे और उन्होंने ख़िलाफ़त आंदोलन शुरु किया। शुरु में बापू ही कांग्रेस के मुख्य विचारक रहे। इसको लेकर कांग्रेस में अंदरुनी मतभेद गहराए। चित्तरंजन दास, एनी बेसेंट, मोतीलाल नेहरू जैसे नेताओं ने अलग स्वराज पार्टी बना ली।साल 1929 में ऐतिहासिक लाहौर सम्मेलन में जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया। पहले विश्व युद्ध के बाद पार्टी में
महात्मा गाँधी की भूमिका बढ़ी, हालाँकि वो आधिकारिक तौर पर इसके अध्यक्ष नहीं बने, लेकिन कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस से निष्कासित करने में उनकी मुख्य भूमिका थी।स्वतंत्र भारत के इतिहास में कांग्रेस सबसे मज़बूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। महात्मा गाँधी की हत्या और सरदार पटेल के निधन के बाद जवाहरलाल नेहरु के करिश्माई नेतृत्व में पार्टी ने पहले संसदीय चुनावों में शानदार सफलता पाई और ये सिलसिला सन 1967 तक लगातार चलता रहा। पहले प्रधानमंत्री के तौर पर जवाहर लाल नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता, आर्थिक समाजवाद और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति को सरकार का मुख्य आधार बनाया जो कांग्रेस पार्टी की पहचान बनी।नेहरू की अगुआई में सन1952, सन1957 और सन1962 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अकेले दम पर बहुमत हासिल करने में सफलता पाई। सन1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री के हाथों में कमान सौंप गई लेकिन उनकी भी सन 1966 में ताशकंद में रहस्यमय हालात में मौत हो गई। इसके बाद पार्टी की मुख्य कतार के नेताओं में इस बात को लेकर ज़ोरदार बहस हुई कि अध्यक्ष पद किसे सौंपा जाए। आखऱिकार पंडित नेहरु की बेटी इंदिरा गांधी के नाम पर सहमति बनी।देश की आजादी के संघर्ष से जुड़े सबसे मशहूर और जाने-माने लोग इसी कांग्रेस का हिस्सा थे।गांधी-नेहरू से लेकर सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद तक आजादी की लड़ाई में आम हिंदुस्तानियों की नुमाइंदगी करने वाली पार्टी ने देश को एकता के सूत्र में बांधने की कोशिश की थी।एलेन ओक्टेवियन ह्यूम सन1857 के गदर के वक्त इटावा के कलेक्टर थे। ह्यूम ने खुद ब्रटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और 1882 में पद से अवकाश लेकर कांग्रेस यूनियन का गठन किया। उन्हीं की अगुआई में बॉम्बे में पार्टी की पहली बैठक हुई थी. व्योमेश चंद्र बनर्जी इसके पहले अध्यक्ष बने। शुरुआती वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की और इसने प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया लेकिन 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी का रुख कड़ा हुआ और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हुए।दादाभाई नौरोजी और बदरुद्दीन तैयबजी जैसे नेता कांग्रेस के साथ आ गए थे।आजादी के बाद सन1952 में देश के पहले चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई। सन1977 तक देश पर केवल कांग्रेस का शासन था।लेकिन सन 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता की कुर्सी छीन ली थी। हालांकि तीन साल के अंदर ही सन1980 में कांग्रेस वापस गद्दी पर काबिज हो गई।सन 1989 में कांग्रेस को फिर हार का सामना करना पड़ा।दादा भाई नौरोजी 1886 और 1893 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन1887 में बदरुद्दीन तैयबजी तो सन1888 में जॉर्ज यूल कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे।सन1889 से सन1899 के बीच विलियम वेडरबर्न, फिरोज़शाह मेहता, आनंदचार्लू, अल्फ्रेड वेब, राष्ट्रगुरु सुरेंद्रनाथ बनर्जी, आगा खान के अनुयायी रहमतुल्लाह सयानी, स्वराज का विचार देने वाले वकील सी शंकरन नायर, बैरिस्टर आनंदमोहन बोस और सिविल अधिकारी रोमेशचंद्र दत्त कांग्रेस अध्यक्ष रहे।इसके बाद हिंदू समाज सुधारक सर एनजी चंदावरकर, कांग्रेस के संस्थापकों में शुमार दिनशॉ एडुलजी वाचा, बैरिस्टर लालमोहन घोष, सिविल अधिकारी एचजेएस कॉटन, गरम दल व नरम दल में पार्टी के टूटने के वक्त गोपाल कृष्ण गोखले, वकील रासबिहारी घोष, शिक्षाविद मदनमोहन मालवीय, बीएन दार, सुधारक राव बहादुर रघुनाथ नरसिम्हा मुधोलकर, नवाब सैयद मोहम्मद बहादुर, भूपेंद्र नाथ बोस, ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में पहले भारतीय सदस्य बने एसपी सिन्हा, एसी मजूमदार, पहली महिला कांग्रेस अध्यक्ष एनी बेसेंट, सैयद हसन इमाम और नेहरू परिवार के मोतीलाल नेहरू सन 1900 से सन 1919 के बीच कांग्रेस अध्यक्ष रहे।सन 1915 में अफ्रीका से लौटकर भारत आए मोहनदास करमचंद गांधी का प्रभाव कांग्रेस की विचारधारा व आंदोलन तय करने में सन1920 के आसपास से साफ दिखना शुरू हो गया था।जो गांधी के जीवन के बाद तक भी बना हुआ है। सन1920 से भारत की आज़ादी अर्थात सन 1947 के बीच के युग में कांग्रेस अध्यक्ष पंजाब केसरी लाला लाजपत राय थे, जिन्होंने सन1920 के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की। स्वराज संविधान बनाने में अग्रणी रहे सी विजयराघवचारियार, जामिया मिल्लिया के संस्थापक हकीम अजमल खान, देशबंधु चितरंजन दास, मोहम्मद अली जौहर, शिक्षाविद मौलाना अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन1924 में बेलगाम अधिवेशन की अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की थी और यहां से कांग्रेस के ऐतिहासिक स्वदेशी, सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलनों की नींव पड़ी थी। सरोजिनी नायडू, मद्रास के एडवोकेट जनरल रहे एस श्रीनिवास अयंगर, मुख्तार अहमद अंसारी कांग्रेस अध्यक्ष रहे। गांधी के अनुयायी जवाहरलाल नेहरू सन 1929 में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष बने थे सरदार वल्लभभाई पटेल, नेली सेनगुप्ता, राजेंद्र प्रसाद, नेताजी सुभाषचंद्र बोस और गांधी के अनुयायी जेबी कृपलानी भारत को आज़ादी मिलने तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे।सन1948 और सन 1949 में पट्टाभि सीतारमैया कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और यही वह साल था जब गांधी की हत्या हो चुकी थी. महात्मा गांधी का प्रभाव आज तक भी भारतीय राजनीति पर है, लेकिन उनकी हत्या के बाद कांग्रेस का नेहरू युग शुरू हुआ। पहले प्रधानमंत्री बन चुके पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय में जिस साल संविधान लागू हुआ ।सन 1950 में कांग्रेस के अध्यक्ष साहित्यकार पुरुषोत्तमदास टंडन थे।सन1951 से सन 1954 तक खुद नेहरू अध्यक्ष रहे। पंडित नेहरू युग में 1955 से सन19 59 तक यूएन धेबार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन 1959 में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी बनी थी।सन 1960 से सन 1963 तक नीलम संजीव रेड्डी, नेहरू के निधन के सन 1964 से सन19 67 तक कामराज कांग्रेस अध्यक्ष रहे। हालांकि नेहरू का निधन 1964 में हो चुका था, लेकिन कांग्रेस का अगला इंदिरा गांधी युग लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद शुरू होता है।सन 1966 में पहली बार देश की पहली और इकलौती महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बनीं। कामराज के साथ उनका सत्ता संघर्ष काफी चर्चित रहा। इसके बाद ही इंदिरा की लीडरशिप और उनके ‘आयरन लेडी’ होने के ख्याति मिलने लगी। इंदिरा गांधी के प्रभाव के समय में सन 1968से सन 1969 तक निजालिंगप्पा, 1970से सन 1971 तक बाबू जगजीवन राम ,1972से सन 1874 तक शंकर दयाल शर्मा और सन 1975 से सन 1977 तक देवकांत बरुआ कांग्रेस अध्यक्ष रहे।
सन1977 से सन1978 के बीच केबी रेड्डी ने कांग्रेस को संभाला लेकिन इमरजेंसी के बाद कांग्रेस टूटी तो सन 1978 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की अध्यक्ष वे स्वयं बनीं।कुछ समय को छोड़कर 1984 में अपनी हत्या के पहले तक इंदिरा ही अध्यक्ष रहीं। कांग्रेस ने करीब 15 साल का इंदिरा गांधी युग देखा और इसके बाद राजीव गांधी युग शुरू हुआ, कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री भी बने और सन1985 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी बन गए थे। जब प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी की हत्या हुई तब फिर कांग्रेस के सामने अध्यक्ष को लेकर संकट खड़ा हो गया था,क्योंकि शुरुआत में सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने में रुचि नहीं दिखाई थी।इसी कारण सन1992 से सन1996 तक पीवी नरसिम्हाराव ने कांग्रेस का नेतृत्व किया ।सन 1996 से सन 19 98 तक गांधी परिवार के वफादार सीताराम केसरी अध्यक्ष रहे।सोनिया गांधी का सक्रिय राजनीति में पदार्पण हुआ और सन1998 से सन 2017 तक करीब 20 वर्षो तक सोनिया ही कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं।राहुल गांधी को सन 2017 में पार्टी की कमान सौंपी गई, लेकिन सन 2019 के आम चुनावों में बड़ी हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोडऩे की पेशकश की और कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर के नेता को होना चाहिए।लेकिन इसपर सहमति नही हुई। तबसे कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी ही ने कांग्रेस का नेतृत्व कर रही है। सन1991,सन 2004, सन2009 में कांग्रेस ने दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर केंद्र की सत्ता हासिल की।आजादी के बाद कांग्रेस कई बार विभाजित हुई। लगभग 50 नई पार्टियां इस संगठन से निकल कर बनीं। इनमें से कई निष्क्रिय हो गए तो कईयों का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और जनता पार्टी में विलय हो गया। कांग्रेस का सबसे बड़ा विभाजन सन1967 में हुआ। जब इंदिरा गांधी ने अपनी अलग पार्टी बनाई जिसका नाम कांग्रेस (आर) रखा। सन 1971 के चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने इसका नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कर दिया।राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का काम देखना एआईसीसी की जिम्मेदारी होती है. राष्ट्रीय अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के अलावा पार्टी के महासचिव, खजांची, पार्टी की अनुशासन समिती के सदस्य और राज्यों के प्रभारी इसके सदस्य होते हैं.हर राज्य में कांग्रेस की ईकाई है जिसका काम स्थानीय और राज्य स्तर पर पार्टी के कामकाज को देखना होता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)
मैट्रिक तथा इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षा में जिला स्तरीय पदों के लिए जनजातीय भाषाओं सहित क्षेत्रीय भाषाओं की सूची जारी
रांची, झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा मैट्रिक तथा इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षाओं के आयोजन हेतु कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग के द्वारा “झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (मैट्रिक/ 10वीं) संचालन (संशोधन) नियमावली, 2021”, “झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (इंटरमीडिएट/ 10+2 स्तर) संचालन( संशोधन) नियमावली, 2021 एवं झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (इंटरमीडिएट/ 10+2 कंप्यूटर ज्ञान एवं कंप्यूटर में हिंदी टंकण अहर्त्ता धारा पद हेतु) संचालन (संशोधन) नियमावली 2021 का गठन किया गया था।
उक्त नियमावलियों में पत्र-2-चिन्हित क्षेत्रीय/जानजातीय भाषा में जिला स्तरीय पदों के लिए जिलावार चिन्हित क्षेत्रीय/ जनजातीय भाषाओं की सूची कार्मिक, प्रशासनिक सुधार राजभाषा विभाग द्वारा अलग से संसूचित किया जाना था। जिसके आलोक में सम्यक विषय विचारोंपरांत झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा मैट्रिक तथा इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षा में जिला स्तरीय पदों के लिए क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं को जिलावार चिन्हित किया गया है। इसके तहत जनजातीय भाषा में संथाली, कुडुख, खड़िया, मुंडारी, हो, असुर, बिरजिया, बिरहोरी, भूमिज, माल्तो एवं क्षेत्रीय भाषा में नागपुरी, पंचपरगनिया, बंगला, अंगिका, कुरमाली, मगही, उड़िया, खोरठा, भोजपुरी भाषा शामिल हैं।
गरिमा परियोजना अंतर्गत डायन कुप्रथा मुक्त पंचायत के लिए होगा काम – डॉ मनीष रंजन
*डायन कुप्रथा पीड़ितों को सुरक्षा व काउन्सेलिंग की जाएगी व्यवस्था
*जेंडर मंच बनाने का कार्य शुरू
*महिला सशक्तिकरण एवं शिक्षा के अलख से
खत्म होगा डायन कुप्रथा – डॉ सुनीता रॉय
रांची, 22.12.2021 – ,झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी के द्वारा आयोजित डायन कुप्रथा मुक्त झारखण्ड के निर्माण के लिए आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन कई तकनीकी सेशन का आयोजन हुआ। विभिन्न विभागों के समन्वय, शिक्षा एवं जागरुकता की जरुरत एवं साझा रणनीति को केन्द्र में रखकर विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी। कार्यशाला के दूसरे दिन मुख्य अतिथि के रुप में शिक्षाविद् डॉ सुनीता रॉय ने कार्यशाला की अध्यक्षता की।
गरिमा परियोजना अंतर्गत डायन कुप्रथा मुक्त पंचायत के लिए होगा काम- डॉ मनीष रंजन
ग्रामीण विकास सचिव, डॉ मनीष रंजन ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि गरिमा परियोजना तो एक शुरूआत है, हमारा लक्ष्य झारखण्ड को डायन कुप्रथा मुक्त बनाना है। गरिमा परियोजना के तहत वल्नेबरिलिटी मैंपिंग एवं ग्राम संगठन के प्रशिक्षण के जरिए डायन कुप्रथा उन्मूलन को गति दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि जल्द ही जेंडर मंच बनाया जाएगा, जिससे डायन कुप्रथा जैसे अंधविश्वास एवं भेदभाव को दूर कर जागरुक करने का काम किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि सखी मंडल की बहनों द्वारा नुक्कड़ नाटक के जरिए भी प्रभावित गांवों में जागरुकता अभियान चलाया जाएगा एवं डायन कुप्रथा पीड़ितों को सुरक्षा व काउन्सेलिंग की व्यवस्था भी गरिमा परियोजना के जरिए की जाएगी। उन्होने कहा कि डायन कुप्रथा की पीडित महिलाओं को पुनर्वास पर भी काम किया जाएगा और सशक्त आजीविका से जोड़ा जाएगा।
श्री रंजन ने कहा कि इस कार्यशाला मे मिले सुझावों पर रणनीति तैयार कर डायन कुप्रथा मुक्त पंचायत का निर्माण किया जाएगा।
महिला सशक्तिकरण एवं शिक्षा के अलख से खत्म होगा डायन कुप्रथा – डॉ सुनीता रॉय
शिक्षाविद् व यूजीसी वूमेन्स सेंटर की प्रमुख डॉ सुनीता रॉय ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि समाज को शिक्षित करने से ही डायन कुप्रथा का उन्मूलन संभव है। उन्होंने अपील की कि डायन प्रथा की पीडित महिलाओं को प्रशिक्षित करके ही सशक्त आजीविका से जोड़ा जा सकता है। कल के सुंदर विकसित समाज के निर्माण के लिए डायन कुप्रथा का उन्मुलन जरुरी है। ग्रामीण इलाके से ओझा गुणी प्रथा को खत्म करने के लिए शिक्षा के अलख जगाने की जरुरत है। इस हेतु ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को जागरुक करना अत्यंत आवश्यक है।
उन्होंने समाज में लैंगिंक समानता एवं महिला सशक्तिकरण के लिए कार्य करने की जरुरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि किन्नरों को भी विभिन्न जागरुकता अभियान में जोड़ने की जरुरत है ताकि उनके आजीविका की भी व्यवस्था हो।
कार्यशाला के तकनीकी सेशन में झालसा के संतोष कुमार ने बताया कि झालसा राज्य में डायन कुप्रथा पीड़ितों को कानूनी मदद करने के लिए लगातार प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि हमें वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने की जरुरत है, जल्द ही झालसा के द्वारा स्कूलों में लीगल साक्षरता क्लब का गठन किया जा रहा है जो डायन कुप्रथा उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ के वाइस चांसेलर डॉ केशव राव ने बच्चों को डायन कुप्रथा के बारे में जागरुक करने की जरुरत पर बल दिया। उन्होने कहा कि इस कुप्रथा के उन्मूलन के लिए सबको मिलकर साझा प्रयास करने की जरुरत है। सेंटर फॉर लीगल एड प्रोग्राम के तहत डायन कुप्रथा के पीडितों को लगातार मदद उपलब्ध कराई जाती है।
सीआईपी के निदेशक डॉ बासुदेब प्रसाद ने कहा कि गरिमा परियोजना के अंतर्गत सीआईपी मानसिक स्वास्थय एवं मनोचिकित्सिय सहयोग के लिए कार्य करेगा। मानसिक स्वास्थ्य जागरुकता के लिए भी जेएसएलपीएस के साथ मिलकर कार्य करने की जरुरत है। पीड़ित महिलाओं को एक नया जीवन देने में मानसिक स्वास्थ्य की पहल की जाएगी। उन्होने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य काउन्सेलिंग के लिए साआईपी के 15 हेल्पलाईन नंबर दिन-रात कार्य़ कर रहे है।
राष्ट्रीय स्तर की वक्ता गोविंद केलकर ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए डायन कुप्रथा के अंतर्राष्ट्रीय परिपेक्ष्य को सामने रखा। अफ्रिका, यूरोप घाना समेत कई देशो का जिक्र करते हुए डॉ केलकर ने डायन कुप्रथा के कारण, निदान एवं उन्मूलन पर अपनी बातें रखी।
कार्यशाला के समापन समारोह में सीईओ जेएसएलपीएस श्रीमती नैन्सी सहाय ने कहा कि यह कार्यशाला गरिमा परियोजना के क्रियान्वयन एवं राज्य से डायन कुप्रथा के उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सखी मंडल की बहनों के जरिए गांव –गांव तक जागरुकता का कार्य किया जाएगा एवं सभी स्टेकहोल्डर्स की साझा रणनीति पर कार्य करने का प्रयास रहेगा।
इस अवसर पर तकनीकी चर्चा को डॉ राकेश रंजन, रेशमा सिंह, मनीषा किरण ने भी संबोधित किया।
झरखण्ड फोटो जर्नलिस्ट एसोसिएशन के सदस्यों को पाकी विधायक डॉ शशिभूषण मेहता ने शॉल ओढ़ाकर समानित किया
रांची , झरखण्ड फोटो जर्नलिस्ट एसोसिएशन के तत्वावधान में हुए कार्यक्रम में एसोसिएशन के सदस्यों को पाकी विधायक डॉ शशिभूषण मेहता ने शॉल ओढ़ाकर समानित किया. उन्होंने अपने सम्बोधन मे कहा कि हमारे विद्यालय में नामांकन लेने वाले झरखण्ड फोटो जर्नलिस्ट एसोसिएशन के बच्चों को एल केजी से टेन प्लस टू तक ट्युशन फीस 50%माफ कर दिया जायेगा.
उक्त जानकारी झरखण्ड फोटो जर्नलिस्ट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष प्रोमोद कुमार कुशवाहा ने दी
जीत गये किसान, क्या भाजपा भी जीतेगी
राजकुमार सिंह –
साल भर पहले याचक की मुद्रा में देश की राजधानी दिल्ली की दहलीज पर पहुंच कर आंदोलनकारी बन गये किसान कल 11 दिसंबर को विजय दिवस मना कर घर वापसी करेंगे। इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि केंद्र सरकार के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के विरुद्ध पिछले साल 26 नवंबर को जब किसानों ने दिल्ली में प्रवेश न मिलने पर दहलीज पर ही अनंतकाल तक धरने पर बैठ जाने का ऐलान किया था, तब खुद उनके अलावा किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि कठोर निर्णय लेने और उन पर अडिग रहने के लिए चर्चित, प्रचंड बहुमत से निर्वाचित नरेंद्र मोदी सरकार कानून वापसी की उनकी मांग कभी मानेगी। सरकार ने आंदोलनकारी किसानों के विभिन्न संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा प्रतिनिधियों से एक नहीं, 12 दौर की बातचीत की, लेकिन हर बार वार्ता तीन कृषि कानूनों की वापसी की शर्त पर ही टूटी। सरकार ने कृषि कानून वापसी से दो टूक इनकार कर दिया था और संयुक्त किसान मोर्चा कानून वापसी से कम पर तैयार ही नहीं था। दोनों पक्षों की हठधर्मिता से उपजी संवादहीनता के बीच ही 26 जनवरी का दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम भी सामने आया तो लगा कि किसान आंदोलन अपना नैतिक दबाव खो रहा है, जिससे सरकार को सख्ती का अवसर मिल जायेगा, पर वही नाजुक मोड़ आंदोलन को नयी धार दे गया।
26 जनवरी के घटनाक्रम के बाद बढ़ते पुलिस दबाव के चलते सूने होते धरनास्थलों पर, गाजीपुर बॉर्डर पर निकले किसान नेता राकेश टिकैत के आंसुओं से, फिर से जुटे किसानों के जज्बे को फिर न मौसम की मार हरा पायी और न ही सरकार। किसानों का यह अहसास और भी गहरा हो गया कि इस बार उनके आंदोलन की हार दरअसल सम्मानजनक जीवन के लिए संघर्ष की हार होगी, जिसका खमियाजा आने वाली पीढिय़ों को भी भुगतना पड़ेगा। इसी अहसास ने किसानों को सरकार की उपेक्षा के साथ ही कोरोना के कहर और मौसम की मार के बीच भी दिल्ली की दहलीज पर डटे रहने का मनोबल दिया। संघर्ष आसान नहीं था, बकौल संयुक्त किसान मोर्चा 700 किसानों की आंदोलनकाल में विभिन्न कारणों से मौत इसका प्रमाण है। इसलिए मानना होगा कि विश्व के सबसे लंबे आंदोलनों में शुमार इस आंदोलन की 380 दिन बाद अपनी शर्तों पर समाप्ति दरअसल एकजुटता और संघर्ष क्षमता के साथ किसानों के विश्वास की जीत भी है। भोलेभाले किसानों ने अपने शांतिपूर्ण, मगर सुनियोजित आंदोलन के जरिये एक मजबूत सरकार से जिस तरह अपनी मांगें मनवायी हैं, उसके विजय दिवस का संदेश बहुत दूर तक जायेगा। लोक के दबाव में अगर तंत्र को झुकना पड़े तो उससे अंतत: लोकतंत्र मजबूत ही होता है, पर मांगों को जस-का-तस मानने में भी पूरा साल गुजार देने वाली सरकार को इसका सकारात्मक फल नहीं मिल पाता, क्योंकि तब तक अविश्वास की खाई बहुत चौड़ी हो चुकी होती है। जनवरी में वार्ताओं के दौरान ही मांगें स्वीकार कर लेने पर जहां सरकार की संवेदनशीलता की चर्चा होती, वहीं नौ दिसंबर को सभी मांगें लिखित रूप में मानने को भी चुनावी डर से उपजी मजबूरी माना जा रहा है।
सच तो यह है कि नयी पीढ़ी तक इस बात पर विश्वास से ज्यादा आश्चर्य करने लगी थी कि बीसवीं शताब्दी में महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसक आंदोलन के जरिये उस अंग्रेज सत्ता को भारत से खदेड़ कर आजादी हासिल कर ली गयी थी, जिसके साम्राज्य में सूरज ही नहीं डूबता था। आम आदमी के मन में संघर्ष के टूटते विश्वास को किसान आंदोलन की सफलता मजबूत करेगी कि खासकर लोकतांत्रिक व्यवस्था में, सरकार कितनी भी मजबूत क्यों न हो, जनता की जायज मांगों के लिए संघर्ष की अनदेखी अनिश्िचतकाल तक नहीं कर सकती। यह अलग बात है कि इक्कीसवीं शताब्दी आते-आते बदली जीवन और कार्यशैली में कामकाजी आम आदमी के लिए संघर्ष का रास्ता सहज नहीं रह गया है, और इसी मजबूरी का लाभ व्यवस्था उठाती है। किसानों ने विवादास्पद तीन कृषि कानूनों को अपने जीवन-मरण का प्रश्न मान कर संघर्ष किया तो परिणाम सामने है कि कानून वापसी पर बातचीत से ही इनकार करने वाली सरकार के प्रधानमंत्री ने क्षमा-याचना करते हुए राष्ट्र के नाम संदेश में तीनों कानून वापस लेने की एकतरफा घोषणा की। हर किसी के मन में सवाल होगा कि अचानक सरकार का हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? इस स्वाभाविक प्रश्न का उत्तर भी लोकतंत्र की शक्ति में निहित है। कोई सरकार कितने ही प्रचंड बहुमत से क्यों न चुनी गयी हो, समय-समय पर सत्तारूढ़ दल को जनता के बीच आना ही पड़ता है, और तब एक-एक वोट कीमती होता है।
सरकार के हृदय परिवर्तन का रहस्य पांच राज्यों के आसन्न विधानसभा चुनावों में निहित है। पूछा जा सकता है कि आखिर किसान आंदोलन जारी रहते हुए ही बिहार और पश्चिम बंगाल में भी तो विधानसभा चुनाव हुए। बेशक हुए और उनमें से बिहार में भाजपानीत राजग सत्ता बरकरार रखने में सफल रहा, जबकि पश्चिम बंगाल में भी भाजपा की सीटें कई गुणा बढ़ीं, पर मत भूलिए कि कृषि की बदहाली राष्ट्रव्यापी होने के बावजूद किसान आंदोलन का असर पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पूर्वी राजस्थान यानी कि दिल्ली के निकटवर्ती क्षेत्रों में ज्यादा रहा है। इसलिए अब जबकि अगले साल के शुरू में ही पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भी चुनाव होने हैं, किसान आंदोलन के राजनीतिक प्रभाव और परिणाम का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। माना कि पंजाब में भाजपा का बहुत कुछ दांव पर नहीं है, पर हाल तक कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरेंद्र सिंह और शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) से गठबंधन कर वह इस सीमावर्ती राज्य में अपनी गोटियां तो बिछा ही रही है। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है, पर चंद महीने में तीन मुख्यमंत्री बदलने के बावजूद बरकरार रहने के आसार कम ही हैं। सबसे अहम है उत्तर प्रदेश, जो लोकसभा में सर्वाधिक सांसद चुन कर भेजता है। लंबे वनवास के बाद भाजपा वहां सत्ता में लौटी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके विश्वस्त केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बखूबी जानते हैं कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही निकलता है। नहीं भुलाया जा सकता कि वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अकेलेदम बहुमत दिलवाने में उत्तर प्रदेश की ही निर्णायक भूमिका रही।
माना कि अगले लोकसभा चुनाव 2024 में होंगे, लेकिन अगर 2022 में लखनऊ की सत्ता ही भाजपा के हाथ से फिसल गयी तो दिल्ली किसने देखी है! चुनाव मुद्दों-नारों-जुमलों के साथ-साथ हवा पर भी लड़े जाते हैं, और हवा बनने में देर लगती है, बिगडऩे में नहीं। फिर लगभग 100 विधानसभा सीटों वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ जिस तरह विजयी समीकरण बनाने में जुटे हैं, उसके खतरे का आकलन चुनाव प्रबंधन में माहिर भाजपा-संघ नेतृत्व से बेहतर कौन कर सकता है? कांग्रेस-बसपा के अलग रहने के बावजूद अखिलेश कई अन्य छोटे दलों से भी गठबंधन कर भाजपा की चुनावी घेराबंदी कर रहे हैं, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव परिणाम के मद्देनजर निर्णायक भूमिका पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ही मानी जा रही है। उत्तर प्रदेश हो या उत्तराखंड अथवा पंजाब, सरकार द्वारा मांगें मान लिये जाने पर आंदोलन समाप्त कर किसान सब कुछ भुला कर भाजपा समर्थक हो जायेंगे—ऐसी खुशफहमी शायद भाजपा-संघ रणनीतिकारों को भी नहीं होगी, पर हां साल भर से किसान आंदोलन पर सवार हो कर अपनी राजनीतिक-चुनावी रणनीतियां बनाने वाले विपक्षी दलों से बड़ा भावनात्मक मुद्दा चुनाव से ऐन पहले निश्चय ही छिन गया है। पर सिर्फ चुनावी मुद्दा छीनने के लिए, साल भर चले आंदोलन से सरकार की साख पर लगे सवालिया निशान को और गहरा करते हुए समर्पण की मुद्रा में सभी मांगों की लिखित स्वीकारोक्ति की यह राजनीतिक शैली मोदी-शाह की चार कदम आगे रहने की रणनीतिक छवि से फिलहाल तो उलट ही नजर आती है, बाकी तो जनता जनार्दन है।
अपूरणीय क्षति
ऐसे समय में जब देश चीन-पाक सीमा पर सुरक्षा की गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है, सेना के आधुनिकीकरण और तीनों सेनाओं के बीच रणनीतिक दृष्टि से बेहतर तालमेल बनाने वाले प्रमुख रक्षा अध्यक्ष यानी सीडीएस जनरल बिपिन रावत की हेलिकॉप्टर हादसे में मृत्यु देश के लिये अपूरणीय क्षति है। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी रावत की आवश्यकता देश की सुरक्षा से जुड़े विभिन्न आयामों के लिए अपरिहार्य थी। जब राजग सरकार ने देश की सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनजर तीनों सेनाओं में बेहतर तालमेल और कारगर निर्णय क्षमता के लिये सीडीएस पद सृजित किया तो वे देश की पहली पसंद थे। थल सेनाध्यक्ष के कार्यकाल के रूप में उनका योगदान उन्हें इस महत्वपूर्ण पद के लिये अतिरिक्त योग्यता के रूप में देखा गया। दुखद ही है कि इस हादसे में बिपिन रावत, उनकी पत्नी समेत सेना के वरिष्ठ अधिकारियों, चालक दल के सदस्यों व जवानों समेत तेरह लोगों को देश ने खोया है। एक लेफ्टिनेंट जनरल के पुत्र बिपिन रावत ने सेना को अपना भविष्य बनाने के संकल्प के साथ देश की सेवा में एक बेदाग भूमिका निभायी। हालांकि, अपनी स्पष्टवादिता के चलते कई बार उनके बयानों को लेकर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आई हैं, लेकिन शत्रुओं के खिलाफ उनकी रणनीति स्पष्ट और लक्ष्यों को हासिल करने वाली थी। पुलवामा हमले के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण मानी गई थी। कारगर कार्यशैली के चलते ही वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ बेहतर तालमेल के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अभियानों को बेहतर ढंग से अंजाम दे पाये। उन्हें इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि मौजूदा रक्षा चुनौतियों के बीच वे भारतीय सेना के तीनों अंगों के संरचनात्मक परिवर्तन के माध्यम बने। इसके जरिये सेना के तीनों अंगों में बेहतर तालमेल स्थापित हो पाया। उम्मीद थी कि अपने बचे एक साल के कार्यकाल में वे देश की सुरक्षा से जुड़े बाकी मुद्दों को निर्णायक दिशा दे पायेंगे। मृत्यु से एक दिन पूर्व एक कार्यक्रम में जैविक युद्ध के खतरे के प्रति चेताकर उन्होंने नई सुरक्षा चुनौतियों की ओर दुनिया का ध्यान खींचा था।
निस्संदेह, देश का हर महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने आप में विशिष्ट होता है, उसका कोई विकल्प नहीं होता। ऐसे में उसकी रक्षा देश का दायित्व ही होता है। तमिलनाडु में कुन्नूर के निकट हुए हादसे ने महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े किये हैं। यूं तो वे वायुसेना के जांचे-परखे एम.आई-17, बी-5 के जरिये यात्रा कर रहे थे, जो उन्नत किस्म का हेलिकॉप्टर है, लेकिन इस हादसे ने इसकी उपादेयता पर नये सिरे से बहस छेड़ी है। हालांकि, बकौल रक्षामंत्री इस हादसे की त्रिस्तरीय जांच की जा रही है, लेकिन देश को आश्वस्त करना होगा कि इस हादसे से सबक लेकर देश की अनमोल हस्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। निस्संदेह, दुर्घटना की हकीकत जांच के बाद ही सामने आएगी, लेकिन देश के रक्षा के महत्वपूर्ण निर्णयों से जुड़े बड़े सैन्य अधिकारी की हवाई दुर्घटना मौत में साजिश के कोण से भी जांच होनी चाहिए। विगत में हमने देश के अपने क्षेत्रों के अनमोल रत्नों को संदिग्ध हादसों में खोया है। देश में युद्धक विमानों व हेलिकॉप्टर हादसों से देश को फिर कोई बड़ी क्षति न उठानी पड़े, इस दिशा में गंभीर प्रयासों की जरूरत है। ताकि देश यह भी जान सके कि यह हादसा सिर्फ कोहरे के कारण कम दृश्यता के कारण हुआ है या फिर इसके पीछे कुछ तकनीकी खामियां थीं। आज जब देश आर्थिक व तकनीक के क्षेत्र में नये आयाम स्थापित कर रहा है तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि देश की महत्वपूर्ण हस्तियों की हवाई यात्रा आधुनिक तकनीकी सुविधा से दुर्घटनाओं से निरापद रहे। यूं तो हर भारतीय का जीवन महत्वपूर्ण है, फिर एक जवान का जीवन और महत्वपूर्ण है, तो उन जवानों का नेतृत्व करने वाले सेनानायक का जीवन तो अनमोल होता है, जिसकी कारगर सुरक्षा की जिम्मेदारी देश की है। बहरहाल, जनरल बिपिन रावत और हादसे में मारे गये अन्य सैनिक अधिकारियों व जवानों के बलिदान को कृतज्ञ राष्ट्र याद रखेगा।
आज का राशिफल
मेष : व्यावसायिक क्षेत्र में लाभ के आसार हैं। सब कुछ सामान्य होते हुए भी मन अरुचि का शिकार होगा। शासन-सत्ता व राजकीय क्षेत्र के लोगों की क्रियाशीलता बढ़ेगी। पुराने संबंध प्रगाढ़ होंगे।
बृषभ : दायित्वों की समयानुकूल पूर्ति हेतु प्रयत्नशील होंगे। पुरानी बातों को भूलने की चेष्ठा करें। आलस्य का त्याग करें। किसी नई योजना पर विचारमग्न होंगे। उच्च महत्वाकांक्षा ऊंची प्रगति के लिए प्रेरित करेगी।
मिथुन : महत्वपूर्ण जगहों पर अपनी वाणी पर संयम रखने की चेष्ठा करें। कोई अप्रत्यासित समाचार अचम्भित कर सकता है। कहीं-कहीं अत्याधिक बोलना आपके लिए हानिकारक हो सकता है।
कर्क : नौकरी का वातावरण सुखद होगा। असमाजिक तत्वों से दूरी बनायें। निकट संबंधों में कुछ अप्रिय बातें दूरी पैदा करेंगी। राजनीतिज्ञों के लिए लाभप्रद स्थितियों के आसार हैं।
सिंह : मूल्यवान समय को ब्यर्थ में जाया न करें। ईरीय आस्था में वृद्धि होगी। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। आर्थिक क्षेत्र में परिश्रम का लाभ प्राप्त होगा। भौतिक आकांक्षाएं मन को उद्वेलित करेंगी।
कन्या : महत्वाकांक्षाओं को फलित करने में असमर्थता संभव। जीवनसाथी से वैचारिक मतभेद संभव। माता के स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। परिजनों की छोटी-छोटी बातों का बुरा न मानें।
तुला : स्वास्थ्य संबंधी कुछ कठिनाइयां मन को दुखित कर सकती हैं। कुछ पारिवारिक चिंताएं मन को दुखित करेंगी। पुरानी मर्मस्पर्शी बातें आपको भावनात्मक रुप से नीरस बना सकती हैं।
वृश्चिक : महत्वपूर्ण दायित्वों की पूर्ति हेतु मन पर दबाव बनेगा। अत्याधिक कार्यों के बोझ से मन बोझिल होगा। मन को सकारात्मक दिशा की ओर सक्रिय करते हुए अपनी क्षमता का लाभ उठाएं।
धनु : जीवनसाथी के भावनात्मक सहयोग उत्साह का संचार होगा। कोई महत्वपूर्ण कार्य सार्थक होने का योग है। मधुरवाणी से संबंधों को प्रगाढ़ बनाएंगे। आलस्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अवरोधक होगा।
मकर : जीविका क्षेत्र में लाभ के अच्छे अवसर प्राप्त होंगे। सामान्य दिनचर्या के साथ बीत रहे जीवन में उत्साह का अभाव होगा। किसी संबंधी अथवा खुद की अस्वस्थता से परेशान हो सकतें हैं।
कुंभ : नये कार्यों में ब्यस्तता बढ़ेगी। किसी इच्छित कार्य की पूर्ति से प्रसन्नता संभव। सगे-संबंधों में नैतिक कर्तव्यों से विमुख न हों। पूरा दिन अध्यात्मिक व पारम्परिक कायरें में ब्यतीत होगा।
मीन : अच्छे आचार-विचार से संबंधों में लोकप्रिय बनेंगे। नयी आकांक्षाएं मन को उद्वेलित करेंगी। अपने स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखें। भावुकता व्यावहारिक जगत के अनुकूल चलने में बाधक बनेगी।
मजदूर की दिहाड़ी से कम वेतन में शिक्षक
विश्वनाथ सचदेव –
आपने भी देखी होगी शायद वह तस्वीर टी.वी. पर, जिसमें मोहाली के कुछ अध्यापक पानी की टंकी पर चढ़े हुए हैं। यह उनके विरोध-प्रदर्शन का तरीका है। विरोध इस बात का कि पिछले 18-18 साल से काम करने के बावजूद उन्हें स्थाई नौकरी क्यों नहीं मिल रही? मीरा रानी इनमें से एक हैं, पिछले ग्यारह साल से ‘कांट्रेक्ट टीचरÓ के रूप में बच्चों को पढ़ा रही हैं। देश का भविष्य बना रही हैं मीरा रानी, पर उनके वर्तमान की हालत यह है कि ग्यारह साल से उनका वेतन छह हज़ार प्रति माह ही है। यानी दिन के दो सौ रुपये!
कांट्रेक्ट टीचर अर्थात् नियोजित शिक्षक। यह पूछे जाने पर कि वे घर का नियोजन कैसे करती हैं, मीरा रानी की आंखों में आंसू बहने लगे थे। मनीष शर्मा ने भी अपनी हालत रोते हुए ही बयां की थी। मनीष शर्मा अंग्रेजी में एम.ए. हैं। कंप्यूटर का कोर्स भी कर चुके हैं। उन्हें भी प्रति माह छह हज़ार रुपये ही मिलते हैं। आय बढ़ाने के लिए वे मज़दूरी करते हैं। जब उनसे बात की गयी तो वे एक निर्माणाधीन मकान में इंटें ढोने का काम कर रहे थे। इस काम में उन्हें 450 रुपये रोज़ मिलते हैं! मोहाली में पानी की टंकी पर चढ़कर प्रदर्शन करने वाले इन ‘बेचारे अध्यापकोंÓ को समझाने के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री तो नहीं पहुंचे पर दिल्ली के मुख्यमंत्री पहुंचे हुए थे। वे अध्यापकों से खतरनाक टंकी से नीचे उतरने का आग्रह करते हुए यह आश्वासन दे रहे थे कि यदि पंजाब में उनकी सरकार बनी तो वे ‘दिल्ली की तरहÓ ही पंजाब में भी अध्यापकों की स्थिति बेहतर बना देंगे।
विडम्बना यह है कि टी.वी के जिस कार्यक्रम में मोहाली का यह दृश्य दिखाया जा रहा था, उसी में एक समाचार यह भी था कि पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सिद्धू दिल्ली के मुख्यमंत्री के घर के सामने प्रदर्शन करने वाले अध्यापकों की भीड़ में शामिल थे। दिल्ली का मुख्यमंत्री मोहाली में जाकर स्थिति सुधारने का आश्वासन दे रहा है और पंजाब की सरकारी पार्टी का अध्यक्ष दिल्ली में स्थिति सुधारने की मांग कर रहा है।
बरसों पहले एक फिल्म आयी थी ‘शोलेÓ। शायद इसी फिल्म में पहली बार फिल्म के हीरो को पानी की ऊंची टंकी पर चढ़कर अपनी मांग मनवाते हुए देखा गया था। शायद उसी से प्रेरणा लेकर मोहाली के नियोजित अध्यापक पानी की टंकी पर चढ़ गये थे। पता नहीं उन्हें संबंधित अधिकारियों ने कोई ठोस आश्वासन दिया या नहीं, पर यह दृश्य देश की शिक्षा-व्यवस्था की दुर्दशा को अच्छी तरह दिखा रहा था।
सरकारें भले ही कुछ भी दावे करती रहें पर देश की शिक्षा-व्यवस्था की एक सच्चाई यह भी है कि आज देश में मीरा रानी और मनीष शर्मा जैसे बारह लाख अध्यापक हैं जो सालों से ‘कांट्रेक्ट टीचरÓ की तरह दो सौ रुपये की दिहाड़ी पर देश का भविष्य संवारने का काम कर रहे हैं। पंजाब की शिक्षा-व्यवस्था का सच देश के अनेक राज्यों की स्थिति का प्रतिनिधित्व करने वाला है। अरुणाचल, मेघालय, मिजोरम जैसे कुछ राज्यों में तो आधे से अधिक अध्यापक ठेके पर पढ़ा रहे हैं। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019-2020 में देश में कुल मिलाकर लगभग दस लाख दिहाड़ी अध्यापक हैं। कहीं इन्हें कांट्रेक्ट टीचर कहा जाता है, कहीं ‘गेस्ट टीचरÓ और कहीं शिक्षा मित्र। पंजाब, बंगाल और उत्तर प्रदेश उन राज्यों में से हैं जहां कुछ अध्यापकों की एक-तिहाई संख्या इसी तरह के ‘अस्थाई अध्यापकोंÓ की है।
यह व्यवस्था किस तरह और क्यों काम कर रही है, यह सवाल विस्तृत सर्वेक्षण की अपेक्षा करता है। महत्वपूर्ण यह है कि हमारे हुक्मरानों की दृष्टि में शिक्षा जैसा महत्वपूर्ण मुद्दा वरीयता के क्रम में इतना नीचे क्यों है? क्यों उन्हें नहीं लगता कि शिक्षा की इस तरह उपेक्षा करके वे देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं? हमारी नयी शिक्षा-नीति में शिक्षकों को स्थाई बनाने का उल्लेख तो है, पर फिलहाल इस स्थिति से शिक्षकों और शिक्षा का जो नुकसान हो रहा है, उसकी भरपाई कैसे होगी, उसकी बात कोई नहीं कर रहा। क्यों ऐसी स्थिति आये कि किसी मीरा रानी को पानी की ऊंची टंकी पर चढ़कर यह कहना पड़े कि वह दो सौ रुपये से अपने परिवार को दिनभर का खाना नहीं खिला सकती। मोहाली के प्रदर्शनकारी अध्यापकों ने यह भी बताया कि 2016 के चुनाव से पहले अमरेंद्र सिंह ने ऐसे ही टीचरों के किसी प्रदर्शन-स्थल पर जाकर वादा किया था कि ‘सत्ता में आते ही मैं इन अध्यापकों की नौकरी को नियमित करूंगा।Ó वे सत्ता में आये भी, और सत्ता से चले भी गये, पर ‘बेचारे अध्यापकोंÓ का जीवन ‘अनियमितÓ ही बना रहा।
सच तो यह है कि हमारे राजनेताओं के लिए ऐसी स्थितियां वोट कमाने का साधन बन कर आती हैं। हर चुनाव से पहले राजनीतिक दल और राजनेता वादों की झड़ी लगा देते हैं और फिर चुनाव के बाद ऐसे अधिकांश वादे ठंडे बस्ते में डाल दिये जाते हैं— अगले चुनावों में भुनाने के लिए। पंजाब समेत देश के पांच राज्यों में फिर चुनाव होने वाले हैं। दावों और वादों की बरसात शुरू हो गयी है। शिलान्यासों और योजनाओं के उद्घाटन की झड़ी लगी हुई है। राज्यों के नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री तक, आये दिन अरबों-खरबों की योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं। सवाल उठता है कि यह सब कुछ चुनावों से पहले ही क्यों शुरू होता है, और चुनावों के बाद अक्सर भुला क्यों दिया जाता है? सवाल यह भी उठता है कि क्या यह मात्र संयोग ही है कि शिक्षा जैसा महत्वपूर्ण मुद्दा चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बनता? क्यों किसी नेता को यह अहसास नहीं होता कि कोई मीरा रानी छह हज़ार रुपये महीना में कैसे जीवन-यापन कर सकती है? क्यों एम.ए. पास मनीष शर्मा को बाध्य होना पड़ता है मुंह छिपा कर ईंटें ढोने के लिए? जी हां, दो सौ रुपये रोज़ की दर से बच्चों को पढ़ाने वाले मनीष शर्मा को शर्म आती है, कहीं कोई छात्र उसे ईंटें ढोते हुए देख न ले।
सच यह भी है कि ‘शर्म उनको नहीं आतीÓ जिन्हें आनी चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में यह स्थिति उन सबके लिए शर्म की बात है, जिनके हाथों में देश का वर्तमान संवारने और भविष्य बनाने का काम सौंपा गया है। शानदार सड़कें, भव्य इमारतें, विशालकाय मूर्तियां, इन सबकी भी जगह होती है जीवन में, पर उस शिक्षा की अवहेलना किसी अपराध से कम नहीं है जो देश का भविष्य बनाती है। एक आदत-सी बन गयी है हमारे नेताओं को यह कहने की कि पिछली सरकारों ने वह काम नहीं किया जो उन्हें करना चाहिए था। सही हो सकती है यह बात, पर सही यह भी है कि आज की सरकारें भी शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजग़ारी जैसे मुद्दों को वह वरीयता नहीं दे रहीं जो देनी चाहिए। बुनियादी मुद्दे हैं यह, उनकी उपेक्षा किसी अपराध से कम नहीं है। इस अपराध की सज़ा भी तो किसी को मिलनी चाहिए।
किसी मोहाली में पानी की टंकी पर चढ़कर प्रदर्शन करने वाला दिहाड़ी अध्यापक उन सब प्रदर्शनकारियों से अधिक महत्वपूर्ण है नमाज़ और आरती के नाम पर नारे लगा रहे हैं। शिक्षा के मंदिरों को प्राथमिकता कब मिलेगी? कब हमारे हुक्मरानों का ध्यान इस ओर जायेगा कि अकेले मध्य प्रदेश में 21 हज़ार स्कूलों में एक शिक्षक चार-चार कक्षाओं को पढ़ा रहा है। और इस बात की पूरी संभावना है कि वह ‘दिहाड़ी शिक्षकÓ हो और उसे हमने शिक्षा-मित्र का नाम दे रखा हो!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
आज का राशिफल
मेष : नई-नई युक्तियों के साथ लाभ के नए साधन सुलभ होंगे। समय का लाभ उठाते हुए कार्य क्षेत्र में अनवरत् परिश्रम की आवश्यकता है। पारिवारिक समस्याएं आपको थोड़ा चिन्तित कर सकती हैं।
बृषभ : निराशा त्याग मन को आशावादी विचारों से सिंचित करें। कुछ कठिनाईयों से मन में नकारात्मक विचार स्थान पायेंगे। कुछ भावनात्मक संबंधों को लेकर मन परेशान हो सकता है।
मिथुन : निर्थक दूसरों की आलोचना करना अच्छी बात नहीं। अत्यधिक कायरे में व्यस्तता से मन परेशान होगा। पुरानी समस्याओं को हल कर सुख की अनुभूति करेंगे। संबंधों में मधुर वाणी का प्रयोग करें।
ककर् : सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति से निकट संबंधों आपकी अच्छी छबि बनेगी। किसी महत्वपूर्ण कार्य की तैयारी में समुचित व्यवस्था के लिए मन चिन्तित होगा। नैतिक जिम्मेदारियों में सजगता काबिले तारीफ होगी।
सिंह : परिश्रम के लिए मन चिन्तित होगा। किसी महत्वपूर्ण कार्य में थोड़ी कठिनाई का आभास होगा। महत्वपूर्ण कायरे के प्रति आलस्य न करें। शिक्षा-प्रतियोगिता में समुचित प्रयत्न की आवश्यकता है।
कन्या : जीवन साथी के स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। आवेश में कोई कार्य से हानि संभव। बहुत सारे अवरोधित कायरे के हल होने के आसार बन रहे हैं। किसी नए कार्य की सार्थकता के लिए मन प्रयत्नशील होगा।
तुला : महत्हपूर्ण क्षेत्रों में उच्चस्तरीय व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त होगा। किसी महत्वपूर्ण क्षेत्र में संबंधों का सहयोग प्राप्त होगा। कार्य क्षेत्र में अपने बौद्धिक क्षमता का लाभ उठाएंगे।
वृश्चिक : किसी नए कार्य में मन केन्द्रित होगा। शिक्षा-प्रतियोगिता में समुचित परिश्रम के लिए उत्साहित होंगे। हर बात को लेकर मन को दुखी न होने दें। भावनाओं से उद्वेलित मन से गलतियां स्वाभाविक हैं।
धनु : कुछ नई जिम्मेदारियां मन पर दबाव बनाएंगी। दूसरों की प्रगति से मन में ईष्र्या एवं हीनता न पैदा होने दें। निकटस्थ संबंधों में किसी की कटु वाणी मन को दुखित कर सकती है।
मकर : किसी महत्पूर्ण कार्य में धनाभाव अवरोधक होगा। जीवन की कठिनाईयों के कारण मन में हीन भावना न लाएं। अपनी क्षमताओं पर भरोसा करें। लेकिन प्रियजनों के सहयोग से समस्याएं हल होंगी।
कुंभ : कार्यकुशलता व सुन्दर बौद्धिक क्षमता से जीविका क्षेत्र में सफलता अर्जित करेंगे। शासन-सत्ता से जुड़े व्यक्तियों के लिए लाभ केअवसर प्राप्त होंगे। आर्थिक समृद्धि और प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
मीन : पूर्वाग्रह वश मन में संबंधों के प्रति राजनीतिज्ञों की व्यस्तता व क्रियाशीलता बढ़ेगी। किसी नए रिश्तें में प्रगाढ़ता बढ़ेगी। अच्छी आशाएं आप में क्रियाशीलता बढ़ाएंगी।
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आम नागरिकों को कब सुलभ होंगे मानवाधिकार
10 दिसंबर विश्व मानवाधिकार दिवस
विकास कुमार –
प्रत्येक वर्ष 10 दिसंबर को विश्व मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पहल संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 10 दिसंबर ,1948 से की गयी थी। 1939 से 1945 द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात वैश्विक राजनीति के चिंतकों एवं विचार को ने मानवीय गरिमा एवं मनुष्य के मूलभूत अधिकारों से ओतप्रोत होकर इस नवाचार की पहल को संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धांतों एवं उद्देश्य में लागू किया। तत्पश्चात सदस्य देशों को भी निर्देशित किया गया की वह अपने देश में मानवाधिकार से संबंधित आयोग कि स्थापना करें जो देश में रहने वाले नागरिकों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा कर सकें जिनको सरकारें और शासन नकार देती हैं एवं अनदेखा कर देती हैं। भारत में भी इस अनुक्रम को अपनाते हुए 1993 में मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गई जिसका कार्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है। यह एक यात्रा का परिणाम है सर्वप्रथम 1215 में ब्रिटेन में मैग्नाकार्टा के रूप में नागरिकों के कुछ अधिकारों को सुनिश्चित किया गया था। यही पहल अमेरिका के स्वतंत्रता की घोषणा पत्र 1776 में मानव गरिमा को प्रमुख मानते हुए अधिकारों को सक्रियता प्रदान की गई थी। यही कारण रहा कि अमेरिका जैसे विकसित देश ने संविधान अपनाते समय मौलिक अधिकारों का समायोजन एवं संकलन अपने संविधान में किया। 1789 की फ्रांसीसी क्रांति स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के नारे पर हुई थी जिन में मानवाधिकारों के मूलभूत प्रावधान देखने को मिलते हैं। 1946 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया एवं 1948 में सार्वभौमिक रूप से मानव अधिकार दिवस की घोषणा की गई। इन्हीं आयामों से संबंधित 1949 में जिलों में संधि हुई तथा 1950 में मानव अधिकार तथा मौलिक स्वतंत्रता ओं के संरक्षण हेतु यूरोपीय संधि हुई। इसी प्रक्रिया में 1961 में यूरोपीय सामाजिक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर की हुई तथा 1966 में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय संधि ,नागरिक एवं राजनैतिक अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय संधि, नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों से जुड़ी ऐच्छिक संधि का प्रावधान किया गया। इस प्रकार से आधुनिक समय में मानव अधिकारों का विकास हुआ। भारत में 1993 के अधिनियम के द्वारा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग एवं राज्य के मानव अधिकार आयोग से संबंधित प्रावधान किए गए। मानव अधिकार आयोग के धारा 2(1) स्र में प्रावधान मिलता है कि जो मानव गरिमा एवं मानव सम्मान को प्रबलता प्रदान करते हैं ऐसे अधिकारों को मानव अधिकार की श्रेणी में रखा जाएगा। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मामलों में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 को मानवाधिकार से संबंधित बताया है। संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार से संबंधित है जिसमें जीवन से संबंधित इन मूलभूत अन्य अधिकारों की भी वृहद एवं विस्तृत चर्चा की गई है। कई अन्य मामलों की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई प्रकार की श्रेणियों के अधिकारों को अनुच्छेद 21 में सम्मिलित करने का निर्देश देते रहे हैं। आज विश्व सार्वभौमिक रूप से मानव अधिकारों की अवधारणा को अपना चुका है। यह कहना बिल्कुल सत्य है कि इस अवधारणा को अपनाने के पश्चात मनुष्य में मानव अधिकारों के प्रति जागरूकता एवं उनके अधिकार कुछ हद तक सुरक्षित एवं संरक्षित हुए हैं परंतु जिस संरचना के संरक्षण के तहत इनकी परिकल्पना की गई थी क्या वह आज साकार होते दिख रहे हैं? यह समाज और शासन दोनों के समक्ष एक बड़ा प्रश्न है? जिसको ना अकादमिक जगत के लोग, नाही न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोग और स्वयं मानव अधिकारों के सक्रिय लोग भी इसको नकार नहीं सकते। सामान्य तौर पर शिक्षित नागरिकों के भी अधिकार सुरक्षित होते नहीं दिखाई दे रहे हैं कई प्रकार के मानवाधिकारों से मेल न खाने वाली गतिविधियों का प्रयोजन बता कर उनके अधिकारों को ठेस पहुंचाई जाती है। यहां पर एक पक्ष लेना उचित नहीं होगा। यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि कई संगठन और राजनेताओं का जत्था मानवाधिकारों की दुहाई देकर प्रशासन की गरिमा को भी ठेस पहुंचाते हैं। परंतु यह अल्प संख्या में होता है। गरीब लोगों को नाही कानून की जानकारी होती है और ना ही मानवाधिकारों की। छोटे से छोटे काम के लिए उनसे व्यापक रूप से रिश्वत ली जाती है। फुटपाथ पर सोने वाले बिहारी मजदूरों से वसूली की जाती है। रिक्शा चलाने वाले दैनिक रूप से दो से ?300 कमाने वाले असंगठित मजदूर से छोटे से कानून के उल्लंघन पर पैसा लिया जाता है। किसानों के क्रेडिट कार्ड बनवाने एवं सरकारी योजनाओं से लाभान्वित प्रक्रिया में पहले से ही परसेंटेज तय कर दिया जाता है। आवास एवं सरकारों द्वारा संचालित आवंटित राशन में कई तकनीकी समस्याओं का हवाला देकर परेशान किया जाता है। सरकारी अस्पतालों में अच्छी दवा लेने के लिए डॉक्टर को अलग से पैसा देना होता है। एक ग्लोबल सूचकांक के अनुसार एवं यूएनडीपी के रिपोर्ट के अनुसार 27 फ़ीसद से अधिक भारत की जनसंख्या मूलभूत प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य से वंचित है। आज भ्रष्टाचार का स्तर बढ़ता जा रहा है, लोकतांत्रिक शासन प्रक्रिया में आम नागरिकों को महत्वहीन समझा जा रहा है। केवल मतदान के समय ही उसका महत्व समझा जाता है। कई प्रकार के प्रोटोकॉल और कानूनों को केवल आम नागरिकों पर ही लागू किया जाता है। आज तक किसी सामंत, बड़े घराने, राजनेताओं एवं पूंजी पतियों को किसी भी प्रकार की गतिविधियों में लाइन में खड़े होते हुए नहीं देखा गया है। जब तक मानव अधिकारों का प्रावधान आम जनमानस को नहीं मिलेगा तब तक तब तक मानव अधिकारों का श्रेष्ठ उद्देश्य साकार नहीं होगा। क्योंकि यह अधिकार संपूर्ण मानव के विकास के लिए एवं मानवता के रक्षा के लिए निर्धारित किए गए हैं। यदि किसी वर्ग विशेष को इससे वंचित रखा जाएगा तो इनका सिद्धांत और सपना अधूरा रह जाएगा। संस्थाओं और सरकारों को चाहिए कि मानव अधिकारों से संबंधित गतिविधियों को कानून पर आधारित प्रक्रिया के माध्यम से संचालित करें। जिससे विधि का शासन सुनिश्चित होगा और लोकतंत्र अधिक मजबूत बन सकेगा। 1992 के पश्चात नागरिक समाज कि अधिक सक्रियता और गतिविधियों को सुनिश्चित करने के लिए सुशासन की अवधारणा लोकतंत्र में सुनिश्चित हुई जिसमें मानवाधिकार से संबंधित संरक्षण का प्रावधान एक अहम मूल्य है। क्योंकि मानवाधिकारों का मूल्यांकन शासन की जवाबदेही, उत्तरदाई, विधि के शासन, संविधानवाद, एवं मानव गरिमा को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए किया जाता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि मानव अधिकारों का लाभ संपूर्ण मानव समुदाय को मिले। इसके प्रति सभी जागरूक हों। तभी वास्तविकता मानवाधिकारों के उद्देश्यों का सपना साकार हो सकेगा।
( लेखक- केंद्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में रिसर्च स्कॉलर हैं एवं राजनीति विज्ञान में गोल्ड मेडलिस्ट है।)
आज का राशिफल
मेष : असंयमित शब्दों का प्रयोग सगे-संबंधों में कटुता ला सकता है। प्रियजनों के सहयोग से समस्याएं हल होंगी। क्षमता से अधिक व्यय भविष्य के लिए चिंता उत्पन्न करेगा। पारम्परिक कार्यों में ब्यस्तता बढ़ेगी।
बृषभ : वाक्यपटुता व मधुर वाणी से सगे-संबंधियों के बीच प्रभावशाली होंगे। अत: अपने दिनचर्या को सुधार, समय का पूर्ण उपयोग करें। परिवार में सुखद माहौल बनेगा। जीवन साथी का सहयोग मिलेगा।
मिथुन : भौतिक जगत की चकाचौंध से प्रभावित होंगे। आवेश में लिये गये निर्णय से हानि संभव। परिजनों से किसी प्रकार की शिकायत पर खुलकर बात करें। खराब संगत से दूरी बनाकर रखें।
कर्क : भावनाओं से उद्वेलित मन से गलतियां स्वभाविक हैं। आकस्मिक नई आशंकाओं से प्रभावित मन कोई गलत निर्णय ले सकता है। अत्याधिक कार्यों का बोझ अकेली जान पर पड़ सकता है।
सिंह : संतान संबंधी दायित्वों की पूर्ति हेतु मन चिंतित होगा। भौतिक आकांक्षाएं बलवती होंगी। राजनीतिज्ञों की अपने क्षेत्र में ब्यस्तता व क्रियाशीलता बढ़ेगी। शासन-सत्ता से जुड़े लोगों के लिए समय काफी अच्छा होगा।
कन्या : निराशा त्याग मन को आशावादी विचारों से सिंचित करें। क्रोध व शंकाए छोड़ सगे-संबंधों में प्यार बिखेरें। अत्याधिक कार्यों की ब्यस्तता से मन परेशान होगा। कार्यक्षेत्र में बौद्धिक क्षमता का लाभ उठाएंगे।
तुला : किसी महत्वपूर्ण कार्य में धनाभाव अवरोधक होगा। किसी महत्वपूर्ण कार्य में संबंधों का सहयोग मिलेगा। स्वयं को लाचार बनाए रखना ठीक नहीं है। स्वयं को सकारात्मक दिशा की ओर केंद्रित करें।
वृश्चिक : गैर सांस्कारिक कार्यों की ओर आकषिर्त मन पर अंकुश लगायें। शासन-सत्ता के सहयोग से कार्यक्षेत्र के अवरेाध समाप्त होंगे। अच्छी व्यवहार कुशलता से सामाजिक मान-मर्यादा में वृिद्ध होगी।
धनु : पूर्वाग्रहवश मन में सगे-संबंधों के प्रति नकारात्मकता को न पालें। महत्वपूर्ण जिम्मेदारी में ब्यस्तता से मन बोझिल होगा। परिश्रम द्वारा नये अवसरों का लाभ उठाएंगे। कोई नई योजना उत्साहित करेगी।
मकर : किसी की कटु वाणी मन को दुखित कर सकती है। कार्यक्षेत्र में लोकप्रियता व वर्चस्व बढ़ेगा। पुरानी समस्याओं को हल कर सुख की अनुभूति करेंगे। जीवन साथी का भावनात्मक स्नेह प्राप्त होगा।
कुंभ : कुछ नई प्रबल इच्छाएं आपको उद्वेलित करेंगी। महत्वपूर्ण कार्य में सफलता के आसार बढ़ेंगे। कार्यक्षेत्र में ब्यस्तता बढ़ेगी। व्यावसायिक क्षेत्र के लोगों को लाभ के अच्छे अवसर प्राप्त होंगे।
मीन : नैतिक जिम्मेदारियों में सजगता काबिले तारीफ होगी। किसी नये कार्य में मन केंद्रित होगा। साधनाभाव से मन चिंतित होगा। अच्छी आशाएं आप में क्रियाशीलता बढ़ाएंगी। जीवन साथी का सहयोग मिलेगा।
राज्य के विकास में सहकारिता का महत्वपूर्ण स्थान : श्री बादल
कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग (सहकारिता प्रभाग) द्वारा
सहकार से समृद्धि – सह लोकार्पण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम का हुआ आयोजन
राज्य की 3 सर्वश्रेष्ठ सहकारी समिति को किया गया सम्मानित।
500 लैंप्स/पैक्स को 2-2 लाख के कार्यशील पूंजी उपलब्ध कराई जाएगी।
रांची, हमने कृषि के क्षेत्र में विकास का बीड़ा उठाया है। हम इंटीग्रेटेड फार्मिंग की सोच को धरातल पर उतारने की दिशा में काम कर रहे हैं। राज्य में सहकारिता को लेकर कई तरह की चुनौतियां हैं और उन चुनौतियों का सामना कर हमने विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर काम किया है। उक्त बातें राज्य के कृषि,पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री माननीय श्री बादल ने हेसाग स्थित पशुपालन भवन में सहकारिता सभागार में आयोजित सहकार से समृद्धि – सह – लोकार्पण- सह- प्रशिक्षण कार्यक्रम मैं बतौर मुख्य अतिथि कहीं।
एनसीडीसी द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम श्री बादल ने कहा कि सोच को बदलने की जरूरत है। 1904 से मद्रास से चला सहकारिता आंदोलन विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के कई नए आयाम गढ़ चुका है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ हमारे साथ ही अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था लेकिन आज वह कृषि के क्षेत्र में तेजी से काम कर रहा है और वहाँ सहकारी समितियां काफी सक्रिय है। श्री बादल ने 500 लैंप्स /पैक्स के बीच दस करोड़ रुपए की कार्यशील पूँजी के वितरण की शुरुआत करते हुए कहा कि कार्यशील पूंजी का सदुपयोग सुनिश्चित होना चाहिए साथ ही जिला स्तर पर इसकी मॉनिटरिंग सुनिश्चित की जाए।
कृषि मंत्री ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान हमारे सहकारी बंधुओं ने जान की परवाह किये बिना धान उत्पादन के क्षेत्र में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर लक्ष्य से ज्यादा धान की अधिप्राप्ति की है। 60 लाख मैट्रिक टन के विरुद्ध 62.85 लाख मैट्रिक टन धान की अधिप्राप्ति हुई है। साथ ही हमने अगले वित्तीय वर्ष के लिए 80 लाख मैट्रिक टन का लक्ष्य रखा है।
उन्होंने बताया कि कृषि विभाग राज्य में धान स्टॉक के लिए 200 यार्ड्स बनाने की योजना पर काम चल रहा है साथ ही राज्य में कम से कम 100 राइस मिल के लिए संबंधित विभाग को जमीन के लिए भी लिखा जा चुका है। राइस मिल प्रोजेक्ट को हम पायलट प्रोजेक्ट के रूप में ले रहे हैं और 5000 मेट्रिक टन क्षमता का कोल्ड स्टोरेज और 30 मेट्रिक टन क्षमता के कई कोल्ड रूम तैयार किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि विभाग कृषि के क्षेत्र में के आधारभूत संरचनाओं का विकास करने जा रहा है।
विभागीय सचिव श्री अबूबक्कर सिद्दीक पी. ने कहा कि एनसीडीसी ने पहली बार सहकारी समिति को सम्मानित करने का काम किया है उन्होंने कहा कि सहकारिता के क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं इस पर और ज्यादा काम करने की जरूरत है। सरकार की विभिन्न योजनाओं को सहकारिता के माध्यम से कार्यान्वित करने से बेहतर नतीजे दिखाई देते हैं।
कार्यक्रम में निबंधक, सहयोग समितियाँ कार्यालय की ओर से प्रकाशित होने वाले मासिक पत्रिका”सहकार संवाद” के प्रवेशांक का तथा झारखण्ड सहकारी मैनुअल का लोकार्पण क कृषि मंत्री के द्वारा किया गया।
कार्यशाला में मुख्य रूप से एनसीडीसी के क्षेत्रीय निदेशक श्री सिद्धार्थ कुमार, रजिस्ट्रार सहकारिता श्री मृत्युंजय कुमार बरनवाल, निदेशक पशुपालन श्री शशि प्रकाश झा सहित कई पदाधिकारी व सहकारी समिति के सदस्य उपस्थित थे।
रोजगार व संप्रभुता हेतु संरक्षणवाद जरूरी
भरत झुनझुनवाला –
बीते वर्ष में अपने निर्यातों में 10 अरब डालर की वृद्धि हुई है तो आयातों में 21 अरब डालर की। सच यह है कि निर्यात बढ़ाने के प्रयास में हमारे आयात बढ़ रहे हैं और हम दबते जा रहे हैं। सरकार ने पिछले वर्ष इस समस्या का संज्ञान लेते हुए चीन के की एप जैसे जूम और कैम स्कैनर पर और रक्षा से सम्बन्धित लगभग 100 वस्तुओं पर प्रतिबन्ध लगाया था। कोट, पैंट, ज्यूलरी, प्लास्टिक, केमिकल, चमड़ा इत्यादि पर आयात कर बढ़ाए थे। लेकिन ये कदम पर्याप्त सिद्ध नहीं हुए हैं। हमारे आयात दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। कारण यह है कि हमने खुले व्यापार को अपना रखा है।
अर्थव्यवस्था को चलाने के दो माडल हैं। एक यह कि हम खुले व्यापार को अपनाएं और अपने माल का निर्यात करने का प्रयास करें। विदेशी माल आयात करने की छूट दें ताकि हमारे निर्यात क्षेत्र में रोजगार उत्पन्न हो सके और हमारे उपभोक्ता को सस्ता विदेशी माल उपलब्ध हो। इस माडल की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम कितना निर्यात कर पाते हैं। सस्ते आयातों का पेमेंट करने के लिए निर्यात से डॉलर अर्जित करना जरूरी होता है। पिछले वर्ष का अनुभव प्रमाणित करता है कि खुले व्यापार के माडल से हमें सफलता नहीं मिल रही है। निर्यातों में वृद्धि कम और आयातों में वृद्धि अधिक हो रही है। इसलिए हमें दूसरे संरक्षणवाद के माडल को अपनाना चाहिए।
इस माडल में हम केवल अति जरूरी माल के आयात को छूट देते हैं। शेष माल पर भारी आयात कर लगा देते हैं, जिससे कि अधिकाधिक माल का उत्पादन अपने देश में हो। संरक्षणवाद का लाभ यह है कि हम अधिकतर माल में आत्मनिर्भर हो जाते हैं। हमारी आर्थिक संप्रभुता की रक्षा होती है। नुकसान यह है कि हमें विदेशों में बना सस्ता माल नहीं मिलता। दूसरा नुकसान है कि हमारे उद्यमी अकुशल उत्पादन में लिप्त हो जाते हैं। विदेशी माल पर आयात कर अधिक होने से आयातित माल महंगा पड़ता है और हमारे उद्यमी मुनाफाखोरी करते हैं या अकुशल उत्पादन करते हैं क्योंकि उन्हें सस्ते विदेशी माल से प्रतिस्पर्धा करने की जरूरत नहीं रह जाती। इस तथ्य के बावजूद हमें संरक्षणवाद को अपनाना चाहिए।
मान लें कि संरक्षणवाद को अपनाने से अपने देश में अकुशल उत्पादन होता है तो भी इस अकुशल उत्पादन में हमारे श्रमिकों को रोजगार मिलता ही है। उनकी क्रय शक्ति में वृद्धि होती है। अत: प्रश्न यह है कि हम अपने श्रमिकों को रोजगार के साथ महंगा घरेलू माल परोसेंगे या बेरोजगारी के साथ सस्ता विदेशी माल? यदि हम खुले व्यापार को अपनाते हैं और सस्ता विदेशी माल अपने देश में आता है तो हमारे उद्योग बंद हो जाते हैं। हमारे श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं। विदेश का बना सस्ता माल हमारी दुकानों में उपलब्ध तो होता है लेकिन श्रमिक की जेब में नकद नहीं होता कि वह उस माल को खरीद सके। सस्ता माल उपलब्ध कराकर उन्हें बेरोजगारी के साथ भुखमरी की कगार पर लाने की तुलना में रोजगार के साथ महंगा माल उपलब्ध कराना उत्तम है। तब माल कम भी मिलेगा तो भी वे कुछ खपत तो कर ही सकेंगे। भूखे नहीं मरेंगे।
खुले व्यापार का सिद्धांत है कि हर देश उस माल का उत्पादन करेगा, जिसे वह कुशलतापूर्वक बना सकता है। जैसे भारत गलीचे का कुशल उत्पादन करे और चीन बिजली के बल्ब का कुशल उत्पादन करे। भारत सस्ते गलीचों का निर्यात करे और चीन सस्ते बल्ब का निर्यात करे। तब भारत में गलीचे के उत्पादन में रोजगार बनेंगे और उस आय से भारतीय नागरिक चीन के सस्ते बल्ब को खरीद सकेंगे। इसी प्रकार चीन के नागरिक को बल्ब के उत्पादन में रोजगार मिलेंगे और उस आय से वे भारत में बने सस्ते गलीचे को खरीद सकेंगे।
यह सिद्धांत सही है लेकिन यह गैर आवश्यक माल मात्र पर लागू होता है। जैसे मान लीजिये हम स्टील का आयात चीन से करने लगें तब हम अपने देश में बंदूक, पनडुब्बियां, हवाई जहाज इत्यादि का उत्पादन भी नहीं कर सकेंगे क्योंकि इनके उत्पादन के लिए हमें स्टील चाहिए, जिसे प्राप्त करने के लिए हम चीन पर आश्रित हो जायेंगे। इसलिए अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए जरूरी है कि हम आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन अपने देश में ही करें, यह चाहे महंगा ही क्यों न पड़े। जैसे यदि देश में उत्पादित स्टील का दाम 50 रुपये प्रति किलो है और विदेश में उत्पादित स्टील का दाम 40 रुपयेे प्रति किलो है तो हम विदेशी स्टील पर 10 रुपये का संप्रभुता अधिभार लगा सकते हैं। चूंकि हमारे लिए अपने ही देश में स्टील का उत्पादन करना आवश्यक है। तब अपने देश में बने स्टील और आयातित स्टील दोनों का दाम 50 रुपये प्रति किलो हो जाएगा और अपने देश में स्टील का उत्पादन हो सकेगा। फिर हम चीन पर आश्रित नहीं होंगे।
संरक्षणवाद के विरोध में तर्क 1950 से 1990 की हमारी दुर्गति का दिया जाता है। यह सही है कि उस समय हमने संरक्षणवाद को अपनाया और और अपना देश वांछित प्रगति नहीं कर सका लेकिन इसका कारण केवल संरक्षणवाद को ही नहीं ठहराया जा सकता है। सही बात यह है कि यदि हम संरक्षणवाद के साथ अपने घरेलू उद्यमियों के बीच प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन दें तो आपसी प्रतिस्पर्धा में ये स्वयं कुशल उत्पादन करने लगेंगे। फिर उद्यमी कुशल भी हो जायेंगे और हम निर्यातों का सामना भी कर सकेंगे।
आश्चर्य की बात है कि इस तथ्य को हमारे सरकारी अधिकारी क्यों नहीं समझते? अधिकांश अधिकारियों और नेताओं के संतानें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में कार्य करती हैं। सेवानिवृत्ति के बाद ये स्वयं विश्व बैंक की सलाहकारी करने को उत्सुक रहते हैं। इसलिए इनकी मानसिकता ही बन जाती है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हितों को साधें और वे अनजाने में ही देश हित की ऐसी गलत परिभाषा कर बैठते हैं जिसके अंतर्गत हम आयातों पर निर्भर होते जा रहे हैं और हमारे नागरिक बेरोजगार होते जा रहे हैं।
आज का राशिफल
मेष : व्यवसायिक क्षेत्र में उच्च अधिकारियों के साथ आवश्यक विषयो पर चर्चा होगी। आपके किसी परियोजना को सरकारी लाभ प्राप्त होने की संभावना है। कार्यालय से जुड़े कार्य के लिए प्रवास के भी योग हैं। परिवार में आनंद का वातावरण छाया रहेगा।
वृषभ : आज का दिन मिश्र फलदायी रहेगा। व्यापारी अपने व्यापार में धन लगाकर नए कार्य का प्रारंभ कर सकेंगे और भविष्य के लिए योजना भी बना पाएंगे। विदेशगमन की संभावना भी है। किसी धार्मिक स्थल की भेंट से सात्विकता में वृद्धि होगी। फिर भी स्वास्थ्य संभालिएगा। कार्यभार आज कुछ अधिक रहेगा।
मिथुन : रोगी का इलाज या शल्यचिकित्सा संभवत: आज टालिए। क्रोध से स्वयं कोई हानि होने की संभावना अधिक है। दिमाग को शांत रखिएगा। मानहानि न हो जाय इसका ध्यान रखिएगा। शारीरिक और मानसिकरूप से आज आप अस्वस्थ रहेंगे, इसलिए वाणी पर संयम रखने से वाद-विवाद को टालने में सफलता प्राप्त होगी।
ककर् : आज का दिन मित्रों और स्वजनों के साथ आनंदपूर्वक बिता सकेंगे। मनोरंजक प्रवृत्तियों का भी आनंद प्राप्त होगा। व्यापार के क्षेत्र में भी लाभ होने की संभावना अधिक है। भागीदारों से भी लाभ होगा। छोटा सा प्रवास या पर्यटन की स्मृति लंबे समय तक बनी रहेगी।
सिंह : मानसिक रूप से चिंता से मन व्यग्र रहेगा। शंका और उदासी भी मन पर छाए रहेंगे। इसलिए आज मन भारी रहेगा। किसी कारणवश दैनिक कार्यों में विध्न आ सकते है। व्यवसाय में सहकर्मियों का सहयोग आज नहीं के बराबर मिलेगा। उच्च अधिकारी से भी संभलकर चलिएगा।
कन्या : आज विद्यार्थियों के लिए समय कठिन है। संतानों के विषय में आपको चिंता बनी रहेगी। शेयर-सट्टे में संभलकर चलिएगा। मन में खिन्नता का अनुभव होगा। आज बौद्धिक चर्चाओं में न उतरने की सलाह है।
तुला : आज आप शारीरिकरूप से शिथिलता और मानसिकरूप से व्यग्रता का अनुभव करेंगे। माता के विषय में चिंता रहेगी। स्थावर संपत्ति से संबंधित दस्तावेजी कार्य सावधानी से करें। प्रवास को आज संभव हो तो टाल दीजिएगा।
वृश्चिक : आज आपके लिए लाभदायी दिन है। आज आर्थिक लाभ होने के साथ-साथ भाग्य में भी लाभ होगा। स्नेहीजनों के साथ सम्बंधों में प्रेम की अधिकता रहेगी। नए कार्य का शुभारंभ करने के लिए समय शुभ है। छोटे से प्रवास का आयोजन आप कर पाएंगे। मानसिकरूप से प्रसन्नता बनी रहेगी।
धनु : आज आपका मन दुविधा में फंसा रहेगा। पारिवारिक वातावरण क्लेशपूर्ण रहेगा। निर्धारित कार्यों को पूर्ण न कर पाने से मन में हताशा भी बनी रहेगी। किसी महत्त्वपूर्ण निर्णय को आज न लेने की सलाह है। घर या व्यवसाय के क्षेत्र में कार्यभार अधिक रहेगा।
मकर : आज निर्धारित कार्य सरलतापूर्वक पूरे होंगे। आफिस या व्यवसायिक स्थान पर आपका वर्चस्व बढ़ेगा। गृहजीवन में आनंद का वातावरण रहेगा। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। मानसिक स्वस्थता बनी रहेगी। मित्रों और स्नेहीजों के साथ की मुलाकात से खुशी का वातावरण रहेगा।
कुंभ : आज किसी की जमानत लेने तथा आर्थिक लेन-देन नहीं करने की सलाह है। खर्च की मात्रा अधिक रहेगी। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य नहीं रहेगें। स्वजनों के साथ मतभेद खड़े होंगे। किसी का हित करने में स्वंय परेशानी में पड़ जाने की संभावना है। क्रोध पर नियंत्रण रखें।
मीन : सामाजिक कार्यों या समारोहों में भाग लेने का अवसर आएगा। मित्रों-स्नेहीजनों के साथ की मुलाकात मन को खुशी देगी। सुंदर स्थान पर पर्यटन का आयोजन होगा। शुभ समाचार मिलेगा। पत्नी और संतानों से लाभ प्राप्त होगा। आकस्मिक धन प्राप्त होने की संभावना है।
प्रधानमंत्री ने हेलीकॉप्टर दुर्घटना में जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और सशस्त्र बलों के अन्य कर्मियों के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने तमिलनाडु में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और सशस्त्र बलों के अन्य कर्मियों के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
प्रधानमंत्री ने सिलसिलेवार ट्वीट में कहा –
‘तमिलनाडु में हेलीकॉप्टर दुर्घटना से मैं अत्यंत दुखी हूं, जिसमें हमने जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और सशस्त्र बलों के अन्य कर्मियों को खो दिया। उन्होंने अत्यंत कर्मठता से भारत की सेवा की। मेरी गहरी संवेदनाएं शोक संतप्त परिवारों के साथ हैं।
जनरल बिपिन रावत एक उत्कृष्ट सैनिक थे। एक सच्चे देशभक्त के रूप में उन्होंने सशस्त्र बलों और समस्त सुरक्षा व्यवस्था के आधुनिकीकरण में बहुमूल्य योगदान दिया। सामरिक मामलों में उनकी दूरदृष्टि असाधारण थी। उनके निधन से मुझे गहरा सदमा पहुंचा है। ओम शांति।
भारत के प्रथम ‘सीडीएस’ के रूप में जनरल बिपिन रावत ने रक्षा सुधारों सहित सशस्त्र बलों से संबंधित विभिन्न आयामों पर उत्कृष्ट काम किया। उन्हें सेना में अपनी सेवाएं देने का व्यापक अनुभव था। भारत कभी भी उनकी असाधारण सेवा को नहीं भूलेगा।’