डब्ल्यूएचओ की चेतावनी को गंभीरता से लें

*विश्व के सभी देश विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों,

सलाह और उसके द्वारा दी गई चेतावनी को बहुत गंभीरता से लेते हैं.

*लेकिन पर आश्चर्य है कि शराब पीने-पिलाने के काम में भारत सरकार

और राज्य सरकारें चेतावनी को पूरी तरह अनसुना कर रही हैं.

*वैश्विक तौर पर वर्ष 2016 में शराब से जुड़ी मौतों का आंकड़ा करीब तीस लाख था.

लक्ष्मीकांता चावला
भारत सरकार और विश्व के सभी देश विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों, सलाह और उसके द्वारा दी गई चेतावनी को बहुत गंभीरता से लेते हैं। कोई भी बीमारी या महामारी हो, इस संगठन की ओर ही पूरी दुनिया देखती है। लेकिन पर आश्चर्य है कि शराब पीने-पिलाने के काम में भारत सरकार और राज्य सरकारें चेतावनी को पूरी तरह अनसुना कर रही हैं। कितनी भयानक सच्चाई है कि वैश्विक तौर पर वर्ष 2016 में शराब से जुड़ी मौतों का आंकड़ा करीब तीस लाख था। यह सबसे बड़ा और नवीनतम आंकड़ा है। संगठन के अनुसार, बहुत अधिक शराब पीने से जो मौतें हुई हैं उनकी संख्या एड्स, हिंसा और सड़क हादसों में होने वाली मौतों को मिलाने से प्राप्त आंकड़ों से भी ज्यादा है। इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में हर साल होने वाली बीस में से एक मौत शराब की वजह से होती है।
डब्ल्यूएचओ के शराब और अवैध नशीले पदार्थों पर नजर रखने वाले प्रोग्राम की मैनेजर करिना फेरिएरा बार्जेस का कहना है कि दुनिया भर में हर साल शराब पीने वाले तीस लाख लोगों की मौत होती है। यूरोप में एक-तिहाई मौतें शराब पीने से होती हैं। कोरोना से मरे लोगों में अधिकतर शराब पीते थे। इसमें भी पुरुष ज्यादा हैं। एक अध्ययन के अनुसार, प्रति दस मृत संक्रमितों में से एक व्यक्ति शराब पीता था।
अपनी रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने कहा कि करीब 23 करोड़ सत्तर लाख पुरुष और चार करोड़ साठ लाख महिलाएं शराब से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रही हैं। भारत में शराब पीने वाले लोगों को चेताने का काम दिल्ली के एम्स के डाक्टरों ने किया। उनका कहना है कि महामारी में शराब पीने का असर रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है और संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है।? लेकिन अफसोस कि पंजाब, केरल और अन्य राज्य राजस्व के लिए लोगों की जान जोखिम में डाल शराब की अधिक दुकानें खोलने पर आमादा हैं। केवल भारत में ही 2018 में शराब पीने से 2 लाख साठ हजार लोगों की मौत हुई थी। इसीलिए एम्स के डाक्टरों तथा डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि लोगों की सेहत का ध्यान रखते हुए लाकडाउन में शराब की दुकानों का बंद रहना जरूरी है।
एक तरफ तो यह जीवन की रक्षा के लिए चेतावनी वाली रिपोर्ट है, पर दूसरी ओर पंजाब सरकार और कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू ने तो कुछ सप्ताह पहले कहा कि पंजाब में शराब पीने-पिलाने का ऐसा प्रबंध करेंगे जिससे सत्तर हजार करोड़ रुपया वार्षिक कमाई हो सके। उनका यह कहना था कि आर्थिक समृद्धि से पंजाब सुखी होगा। लेकिन यह नहीं बताया कि शराब पीने से कितने लोग महामारी, बीमारी, मृत्यु का शिकार हो जाएंगे। कितनी हिंसा होगी, पारिवारिक क्लेश बढ़ेगा, परिवार टूटेंगे। माता-पिता में मतभेद से बचपन अनाथ हो जाएगा। लेकिन किसी ने नहीं कहा कि सिद्धू का शराब मॉडल हानिकारक और पंजाब के हित में नहीं है।
इस समय देश और दुनिया में बड़ी विकट स्थिति है। कोरोना महामारी बहुत तेजी से फैल रही है। भारत के पांच राज्यों में चुनाव है। शराब घातक होने की रिपोर्ट डब्ल्यूएचओ ने दी, पर सरकारों ने तो मुनाफे के लिये शराब पिलानी है। चुनाव के दिनों में राजनीतिक दल शराब बांटते हैं। लोग बीमार हों, नशे की हालत में परिवारों में या समाज में अशांति फैलाएं, दुर्घटनाओं में मारे जाएं या कोरोना पीडि़त हों, राजनेताओं को तो वोट चाहिए। यह लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि आजादी का अमृत महोत्सव मनाने वाली सरकारें इस वर्ष भी शराब की कोई कमी नहीं रखेंगी। उन्हें वोट चाहिए। कितना अच्छा हो अगर चुनाव आयोग शराब पीने-पिलाने वालों को चुनाव लडऩे से अयोग्य घोषित करे।
पिछले डेढ़ वर्ष से कोरोना महामारी के कारण गरीबी और अन्न-धन का अभाव झेल रहे भारतवासियों को राहत देने के लिए भारत सरकार मुफ्त अनाज बांटती है। यह सच है कि अनाज इतनी मात्रा में दिया जाता है कि कोई परिवार भूखा न रहे, लेकिन विडंबना यह है कि जिन परिवारों को गरीब होने के कारण अनाज दिया जाता है, उनमें एक बड़ी संख्या में शराब पीने वाले लोग भी हैं। देश के कुछ बुद्धिजीवी बड़े लंबे समय से यह आवाज उठा रहे थे कि जो लोग शराब स्वयं अपनी कमाई से खरीदकर पी सकते हैं वे अन्न क्यों नहीं खरीद सकते। क्या यह तर्कसंगत है कि अपनी कमाई से तो ये कुछ गरीब लोग शराब पी लें और इनका पेट भरने के लिए देश के लोगों के टैक्सों के पैसों से इन्हें मुफ्त में अनाज दिया जाए। भारत सरकार कानून बनाए कि जो लोग शराब पीते हैं उन्हें मुफ्त अनाज योजना से बाहर निकाल दिया जाए। वहीं चुनाव के दौरान कोई राजनीतिक पार्टी यह नहीं बताती कि चुनावों में मुफ्त शराब देने के लिए बजट की व्यवस्था कौन कर रहा है। चुनाव से पहले ही और महामारी की भयावहता के बीच यह जरूरी है कि शराब पीने वालों को नियंत्रित करने के लिए विशेष कदम उठाये जायें। इसका लाभ होगा कि कोरोना महामारी के दिनों में शराब न पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। बहुत अच्छा होगा कि डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों पर चलते हुए शराब पीने-पिलाने और सरकारी गैर-सरकारी शराब की बिक्री पर रोक लगाई जाए।

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