एक्शन मोड में क्यों दिखने लगे- शिवराज, कमल और कैलाश

अरुण पटेल – एक्शन मोड में इन दिनों पूरी तरह से हैं  मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  और सतपुड़ा सुंदरी पचमढ़ी की सुरम्य वादियों में दो दिन अपने मंत्रि-मंडलीय सहयोगियों के साथ चिंतन कर 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए एक ऐसा मंत्र तलाशेंगे जिसके सहारे प्रदेश फिर से भाजपा के अजेय गढ़ में तब्दील हो जाए जो कि 2018 में मामूली अन्तर से ढह गया था। पचमढ़ी में चिंतन-मनन के बाद निश्चित तौर पर शिवराज कुछ और नवाचार करेंगे तथा इस बार उनका सारा ध्यान इस बात पर रहेगा कि हरिजनों, आदिवासियों, महिलाओं व समाज के कमजोर वर्गों सहित जिस भी वर्ग के लिए योजनायें बनाई जा रही हैं

उनका क्रियान्वयन धरातल पर हो और इसमें किसी भी तरह की कोताही वे सहन करने वाले नहीं है। मंथन के बाद शिवराज एक ऐसे रुप में नजर आयेंगे जो माफियाओं, अपराधियों, निहित स्वार्थी तत्वों पर कहर बनकर टूटेंगे और इसमें आड़े आने वाली नौकरशाही को भी सहन नहीं करेंगे। अपने कार्यकाल के दो साल पूरे होने पर अपने नागरिक अभिनंदन के अवसर पर उन्होंने दो-टूक शब्दों में कहा कि राज्य शासन के ऊपर कोई दबंग नहीं जा सकता और उसे कुचल देंगे।

अपनी तथा कमलनाथ की कांग्रेस सरकार का अन्तर स्पष्ट करते हुए शिवराज का कहना है कि हमारी सरकार मिशन की सरकार है और कमलनाथ की सरकार कमीशन की सरकार थी। दिग्विजय सिंह के कार्यकाल की चर्चा करते हुए बिना नाम लिए उन्होंने कहा कि एक जमाना था जब सड़क में गड्ढा था या गड्ढ़े में सड़क समझ में ही नहीं आता था, बिजली आती ही नहीं थी यह आम बाती थी, आज दो घंटे के लिए बिजली चली जाए तो वह बड़ी खबर बन जाती है।

कमलनाथ दादा तो पैसे छोड़कर ही नहीं गये थे लेकिन चाह होती है वहां राह निकालनी पड़ती है और हमने गरीबों को सुविधा देने में पैसों की कमी नहीं आने दी।

शिवराज चाहते हैं कि हितग्राहियों का एक ऐसा वर्ग बने जो यह महसूस करे कि सरकार उनके लिए काफी कुछ कर रही है और क्रियान्वयन इस ढंग से हो कि लोगों को सीधे लाभ पहुंचाने वाली जो योजनायें है उससे न केवल वे लाभान्वित हों बल्कि भाजपा के लिए एक मजबूत वोट बैंक भी तैयार हो। राज्य में कांग्रेस एवं भाजपा के बीच मत प्रतिशत का बहुत बारीक-सा अन्तर है और इसी अन्तर को बढ़ाकर भाजपा का मत प्रतिशत किस प्रकार 51 प्रतिशत किया जाए वही इस चिंतन का केंद्रीय बिन्दु होगा।

भांजे-भांजियों के मामा के रुप में सामाजिक रिश्ते जोडऩे वाले शिवराज की छवि अब एक सख्त प्रषासक के रुप में उभर रही है तथा मामा से लेकर अब उनकी छवि बुलडोजर मामा की गढ़ी जा रही है, जिसकी शुरुआत राजधानी भोपाल के भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा ने प्रारंभ कर दी है। शिवराज सिंह चौहान के पुन: मध्यप्रदेश की कमान संभालने के बाद दो साल पूरे हो गये हैं और इसके साथ ही उनके पुराने कार्यकाल को मिलाकर वह भाजपा के सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड बना चुके हैं।

दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ ही कोरोना महामारी की चपेट में देश के साथ ही प्रदेश भी आ गया था और यह समय उनके नेतृत्व के लिए परीक्षा की घड़ी था जिसका उन्होंने सफलतापूर्वक सामना किया और ऐसे कोई हालात पैदा नहीं हुए जैसी दुश्वारियां अन्य राज्यों में देखी गयीं। न तो आक्सीजन की कमी हुई और न ही मरीजों में किसी प्रकार की अफरा-तफरी थी। दवाइयां और इंजेक्शन का भी समय रहते प्रबंध किया गया। लेकिन इस अवधि में भी उन्होंने विकास की गति अवरुद्ध नहीं होने दी।

शिवराज सरकार ने पिछले दो वर्षों में 1 लाख 72 हजार करोड़ रुपये से अधिक की सहायता किसानों को दी तथा प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण एवं शहरी के तहत 10 लाख से अधिक आवास बनाये गये। केन-बेतवा लिंक परियोजना जिससे 8 लाख 11 हजार हेक्टेयर में सिंचाई होगी और अटल प्रगति पथ 313 किलोमीटर की योजनायें स्वीकृत हुईं। ग्रामीण आजीविका मिशन के द्वारा महिला स्व-सहायता समूहों के लगभग 9 लाख सदस्यों को आर्थिक गतिविधियों के लिए 2 हजार करोड़ रुपये के ऋण वितरित किये गये।

इसी अवधि में 8 हजार 276 करोड़ रुपये की लागत से 5 हजार 322 किमी लम्बी सड़कों का निर्माण भी हुआ। अपने इस दो साल के कार्यकाल में शिवराज काफी बदले-बदले नजर आ रहे हैं और उन्होंने अपनी छवि एक सख्त प्रशासक की गढ़ ली है और अब जहां एक और नौकरशाही को भी नियंत्रित कर रहे हैं तो वहीं माफियाओं के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति अपना रखी है और उन्हें नेस्तनाबूद करने की दिशा में कदम उठाते हुए 21 हजार एकड़ से अधिक शासकीय भूमि अवैध कब्जे से मुक्त कराई गई है।

कमलनाथ की नजर में शिवराज के दो साल

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ की नजर में शिवराज सरकार के दो वर्षों में प्रदेश विकास की दृष्टि से आगे बढऩे की बजाय हर दृष्टि से पीछे ही गया है। कमलनाथ का आरोप है कि इस अवधि में किसी वर्ग का भला नहीं हुआ बल्कि हर वर्ग परेशान ही हुआ है। इन दो वर्षों में सिर्फ इवेन्ट आयोजनों के नाम पर जनता को गुमराह करने का काम जमकर हुआ है। उनका आरोप है कि उनकी सरकार के जाते और शिवराज सरकार के आते हमने प्रदेश में कोरोना काल में सरकार का कुप्रबंधन देखा है कि किस प्रकार हजारों लोगों की इलाज, बेड, अस्पताल, आक्सीजन, जीवन रक्षक दवाइयों के अभाव में मौतें हुई हैं। कोरोना के संकटकाल में भी सरकार लोगों को बचाने की बजाय सत्याग्रह पर बैठने, रथ पर सवार होकर घूमने, गोले बनाने जैसे इवेन्ट करती नजर आई है। सबसे ज्यादा परेशान किसान हुआ है और उसे अभी तक अतिवृष्टि व ओलावृष्टि से खराब हुई फसलों का मुआवजा नहीं मिल सका है, और यदि कुछ मिला है तो तो फिर केवल कोरे आश्वासन और भाषण। और यह भी

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि मध्यप्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ही लड़ा जायेगा। पार्टी ने अभी कोई निर्णय नहीं किया है अभी तो उन्हीं का चेहरा है और वे अच्छा काम कर रहे हैं। यूपी में बुलडोजर बाबा के रूप में योगी आदित्यनाथ की ख्याति के बाद शिवराज को बुलडोजर मामा प्रोजेक्ट किए जाने के सवाल पर विजयवर्गीय ने कहा कि मध्यप्रदेश में काफी पहले से बुलडोजर चल रहा है।

उनका कहना था कि शिवराज ने लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड कायम किया है और आज भी वे लोकप्रिय हैं। बच्चों के बीच मामा के नाम से जाने जाते हैं। उमा भारती और बाबूलाल गौर ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में प्रदेश के विकास की नींव रखी थी उसके बाद शिवराज के नेतृत्व में एक बड़ी विकास की इमारत प्रदेश में बनाई गई है। चुनावी राजनीति में वापसी के सवाल पर कैलाश ने दोटूक शब्दों में कहा कि इस मामले में हमारा नेतृत्व फैसला करता है, संगठन का काम करने को कहा गया है वह मैं कर रहा हूं।

मैं स्वयं अपने बारे में निर्णय नहीं लेता। राजनीति में जितना आगे बढ़ जाओ उतना ग्लैमर बढ़ता जाता है लेकिन जनप्रतिनिधि के रुप में उनका सबसे अच्छा कार्यकाल तो पार्षद का था क्योंकि वह कार्यकाल आत्मीयता से भरा था। विजयवर्गीय लम्बे समय बाद भोपाल में पत्रकारों से पिट्टू टूर्नामेंट के आयोजन की जानकारी देने रुबरु हुए थे लेकिन उनसे ज्यादातर सवाल राजनीति पर हुए। उनका कहना था कि पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के बाद विपक्ष पूरी तरह धराशाई हो गया है

इसलिए इस राजनीतिक माहौल में अभी सेकेंड या थर्ड फ्रंट बनेगा, इस बारे में कहना जल्दबाजी होगी। 2024 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी बड़ी चुनौती नहीं है। छोटा-छोटा कर कम करने से कुछ नहीं होगा क्योंकि 130 करोड की जनसंख्या वाले देश में प्रभाव जमाने के लिए एक बड़े चिंतन की जरुरत है और आम आदमी पार्टी में इसका अभाव नजर आ रहा है।

****************************************************

इसे भी पढ़ें : सहकारिता के रास्ते ग्रामीण भारत में विकास को बढ़ावा

इसे भी पढ़ें : चुनावी मुद्दा नहीं बनता नदियों का जीना-मरना

इसे भी पढ़ें : उनके जीने के अधिकार का हो सम्मान

इसे भी पढ़ें : कोई भी नागरिक पीछे न छूटे

इसे भी पढ़ें : *मैरिटल रेप या वैवाहिक दुष्कर्म के सवाल पर अदालत में..

इसे भी पढ़ें : आर्द्रभूमि का संरक्षण, गंगा का कायाकल्प

इसे भी पढ़ें : जारा के हौसलों ने नाप दी दुनिया

इसे भी पढ़ें : अदालत का सुझाव स्थाई व्यवस्था बने

इसे भी पढ़ें : प्राणायाम ओवरथिंकिंग से राहत दिलाने में मदद कर सकते हैं

इसे भी पढ़ें : सैम बहादुर की शूटिंग अगस्त में,जो फिल्म विक्की कौशल की है

इसे भी पढ़ें : अजय देवगन भंसाली की बैजू बावरा में तानसेन की भूमिका निभाएंगे

इसे भी पढ़ें : संकटकाल में नयी चाल में ढला साहित्य

इसे भी पढ़ें : पत्रकार ऐसे होते हैं!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version