26.03.2022 – श्रीलंका के शरणार्थियों ने बताया कि उनके अपना देश छोड़ कर भारत आने का कारण गंभीर आर्थिक संकट है। पर्यटन पर निर्भर श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर पहले ही कोविड के दौरान पर्यटन बंद रहने से मार पड़ी थी। अब देश में विदेशी मुद्रा की भारी कमी हो गई है। साथ ही महंगाई आसमान पर है।
श्रीलंका गहरे आर्थिक संकट में है, ये बात तो अब जग-जाहिर है। लेकिन वहां की हालत अब भारत के लिए चिंता का विषय बनने जा रही है। ऐसी खबर पहली बार आई है कि श्रीलंका में असहनीय हालात से परेशान लोग लोग देश छोड़ कर समुद्र के रास्ते भारत आ रहे हैं। इस हफ्ते खबर आई कि 16 श्रीलंकाई तमिल नावों के जरिए तमिलनाडु के रामेश्वरम पहुंचे। इस बात की पुष्टि रामनाथपुरम के जिला कलेक्टर ने भी की है।
उसके बाद 31 और लोगों के आने की जानकारी सामने आई। मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि श्रीलंका के जाफना और मन्नार इलाकों से ये लोग समुद्र के रास्ते दो जत्थों में तमिलनाडु पहुंचे। फिलहाल इन लोगों को समुद्री पुलिस की निगरानी में रखा गया है। इन लोगों के पास उनके पासपोर्ट तक नहीं हैं। मीडिया रिपोर्टों में तमिलनाडु के खुफिया अधिकारियों के हवाले से यह भी बताया गया है कि आने वाले हफ्तों में करीब 2,000 शरणार्थी श्रीलंका से तमिलनाडु आ सकते हैं।
तमिलनाडु सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए क्या तैयारी कर रही है, यह अभी मालूम नहीं हुआ है। शरणार्थियों ने बताया कि उनके अपना देश छोड़ कर भारत आने का कारण श्रीलंका का गंभीर आर्थिक संकट है। पर्यटन पर निर्भर श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर पहले ही कोविड के दौरान पर्यटन बंद रहने से मार पड़ी थी।अब देश में विदेशी मुद्रा की भारी कमी हो गई, जिसकी वजह से सरकार आम जरूरत के सामान के आयात की कीमत नहीं चुका पा रही है।
इस वजह से दवाओं, ईंधन, दूध का पाउडर, रसोई गैस आदि जैसी चीजों की भारी कमी हो गई है। जितना भंडार उपलब्ध है, उसके दाम आसमान छू रहे हैं। ऐसी खबरें लगातार आती रही हैं कि श्रीलंका में चावल और चीनी के दाम लगभग 300 रुपए किलो तक पहुंच गए हैं। दूध का पाउडर करीब 1600 रुपए किलो बिक रहा है। पेट्रोल पंपों और मिट्टी तेल की दुकानों के बार लंबी लंबी कतारें लग रही हैं, जिनमें लोगों को घंटों खड़े रहना पड़ रहा है।
उन कतारों में खड़े तीन लोगों की मौत की खबर इसी हफ्ते आई थी। हालात इतने गंभीर हैं कि कॉपी की किल्लत के कारण सरकार को स्कूली परीक्षाएं रद्द करनी पड़ी हैँ। इसलिए और शरणार्थी आएंगे, ये अनुमान लगाया जा सकता है। इस स्थिति से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर कदम उठाने होंगे।
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चुनावी मुद्दा नहीं बनता नदियों का जीना-मरना
उनके जीने के अधिकार का हो सम्मान
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