आरंभ में जीएसटी काउंसिल को सहयोगात्मक संघवाद की उत्कृष्ट मिसाल बताया गया था। लेकिन व्यवहार में हालत यह है कि कांग्रेस ने इसकी बैठक में भी ‘बुल्डोजर चलाए जाने’ का आरोप लगाया है।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू हुए पांच साल पूरे हो गए हैँ। पांचवीं सालगिरह से ठीक पहले जीएसटी काउंसिल की बैठक हुई। उसमें घरेलू जरूरत की चीजों पर टैक्स बढ़ाने का फैसला हुआ। इस फैसले से देश की आर्थिक हालत से परिचित लोग अचंभित हुए। इसलिए कि इस वक्त जबकि लगभग सारी दुनिया रिकॉर्ड महंगाई झेल रही है, सरकारों से अपेक्षा ऐसे कदम उठाने की है, जिससे मूल्यवृद्धि पर लगाम लगे।
जबकि भारत में उलटा फैसला हुआ है। जीएसटी काउंसिल की बैठक में एक एजेंडा राज्यों की यह मांग भी था कि उनके लिए मुआवजे का प्रावधान चार साल के लिए और बढाया जाए। जीएसटी लागू होते वक्त मुआवजे की पांच साल की अवधि तय की गई थी, जो जाहिर है कि अब पूरी हो चुकी है। इस बीच जीएसटी के आम असर, महामारी और अर्थव्यवस्था की खस्ताहाली के कारण राज्यों माली सेहत काफी बिगड़ चुकी है।
ऐसे में अगर उनके लिए धन की व्यवस्था नहीं होगी, तो उनके लिए उन जिम्मेदारियों को पूरा करना संभव नहीं रह जाएगा, जिसकी भारतीय संविधान के तहत उनसे अपेक्षा की जाती है। लेकिन इस मांग को अगली बैठक तक के लिए टाल दिया गया।
आरंभ में जीएसटी काउंसिल को सहयोगात्मक संघवाद की उत्कृष्ट मिसाल बताया गया था। लेकिन व्यवहार में हालत यह है कि कांग्रेस ने इसकी बैठक में भी ‘बुल्डोजर चलाए जाने’ का आरोप लगाया है। दरअसल, एक जुलाई को कांग्रेस ने जीएसटी पर अब तक के अनुभव की जो आलोचना पेश की, उसमें बहुत-सी ऐसी खास बातें हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
इस लिहाज से कांग्रेस की यह मांग उचित है कि पांच साल पूरा होने के बाद अब सरकार को सर्वदलीय बैठक बुला कर इसके अमल के तजुर्बे पर विचार-विमर्श करना चाहिए। लेकिन जब बुल्डोजर सचमुच हमारी राजनीतिक संस्कृति का प्रतीक बन गया है, तब ऐसा होने की उम्मीद कम ही है।
बहरहाल, जीएसटी के कारण छोटे और मझौले कारोबार की मुश्किलें जिस तरह बढ़ीं और अब आम उपभोक्ताओं की और बढऩे वाली हैं, उसे देखते हुए इस मामले में बुल्डोजरी नजरिये का मतलब और भी बड़ी आर्थिक मुसीबतों को न्योता देना होगा।
*******************************