22.03.2022, रियायती दर पर तेल मिलना और गेहूं निर्यात मे मुनाफा भारत के लिए फायदे की बात है। संभवत: इसीलिए रूस के खिलाफ पश्चिमी लामबंदी में शामिल नहीं हुआ।अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि आने वाले दिनों में भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी।यूक्रेन पर रूस के हमले से बने हालात में भारत को दो फौरी फायदे हुए हैँ। पहला यह कि रूस से भारत को रियायती दर पर कच्चा तेल मिल रहा है।
बताया जाता है कि रूस भारत को अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमत से 25 से 30 फीसदी कम रेट पर तेल दे रहा है। फिर इस तेल के बदले भुगतान रुपये में करना होगा, जिसका मतलब है कि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर इसका कोई बोझ नहीं आएगा। दूसरा लाभ गेहूं के निर्यात में हो रहा है। रूस और यूक्रेन दोनों गेहूं के बड़े निर्यातक हैं। चूंकि उनका निर्यात ठहर गया है, तो दुनिया में गेहूं की कीमत बढ़ गई है।
इस बीच भारतीय व्यापारियों को एक नया ऐसा बाजार मिला है, जहां ऊंची कीमत पर वे अपना गेहूं बेच पा रहे हैँ। जाहिर है, भारत सरकार ने ऐसे ही फायदों को देखा और रूस के खिलाफ पश्चिमी लामबंदी में शामिल नहीं हुआ। लेकिन ये लाभ आखिर कितना टिकाऊ होगा?
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि आने वाले दिनों में भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी। आईएमएफ के कम्यूनिकेशन डायरेक्टर गेरी राइस ने कहा है- ऐसी आशंका है कि यूक्रेन युद्ध भारत की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डालेगा। विभिन्न रास्तों से होने वाला यह नुकसान कोविड-19 के दौरान हुए नुकसान के अतिरिक्त होगा।
नई स्थितियों में महंगाई बढ़ेगी और देशों का कुल घाटा भी।राइस ने स्वीकार किया कि कुछ बातें भारत के पक्ष में जा सकती हैं। कहा- गेहूं जैसी चीजों के निर्यात से भारत के आर्थिक घाटे में कुछ हद तक कमी हो सकती है। लेकिन यह फायदा उतना नहीं होगा, क्योंकि युद्ध का अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन की अर्थव्यवस्थाओं पर भी बुरा असर होगा और उनकी आयात क्षमता घट जाएगी। इससे भारत का निर्यात प्रभावित होगा।
इसके अलावा सप्लाई चेन में आने वाली बाधाओं का असर भारत के आयात पर पड़ेगा और उसे महंगाई झेलनी होगी। तंग होतीं वित्तीय स्थितियों और बढ़ती अनिश्चितता के कारण भी घरेलू मांग पर असर पड़ेगा। मौद्रिक हालात तंग होंगे क्योंकि लोगों का अर्थव्यवस्था में भरोसा कम रहेगा। तो कुल मिला कर आईएमएफ ने भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर खासी अनिश्चितता जताई है।
यह किस हद तक बढ़ेगी, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कितना बड़ा धक्का लगता है और व्यापक आर्थिक स्तर पर उठाए जा रहे खतरों का फायदा पहुंचता है या नहीं। और स्थिति से निपटने के लिए सरकार क्या नीतियां अपनाती है।
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