जम्मू-कश्मीर के बाद अब राजस्थान में मिला लिथियम का महाभंडार

डेगाना 08 May, (एजेंसी): राजस्थान सरकार के अधिकारियों की माने तो राजस्थान के डेगाना (नागौर) में लिथियम के भंडार का पता चला है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) और खनन अधिकारियों का दावा है कि यहां मिले लिथियम भंडार की क्षमता हाल ही में जम्मू-कश्मीर में मिले लिथियम भंडार से अधिक है।

दावा किया जाता है कि यहां इतना लिथियम है कि भारत की कुल मांग का 80 फीसदी यहीं से पूरा किया जा सकता है। लीथियम के लिए अभी तक भारत चीन पर निर्भर है। अब माना जा रहा है कि चीन का एकाधिकार खत्म होगा और खाड़ी देशों की तरह राजस्थान का भी भाग्य उदय होगा।

लिथियम एक अलौह धातु है, जिसका उपयोग मोबाइल-लैपटॉप, इलेक्ट्रिक वाहन और अन्य चार्जेबल बैटरी बनाने में किया जाता है। भारत पूरी तरह से लिथियम की महंगी विदेशी आपूर्ति पर निर्भर है। अब जीएसआई को डेगाना के आसपास लिथियम का बड़ा भंडार मिला है।

राजस्थान में लिथियम के भंडार डेगाना और उसके आसपास के क्षेत्र की उसी रेनवेट पहाड़ी में पाए गए हैं, जहां से कभी टंगस्टन खनिज की आपूर्ति देश में की जाती थी। ब्रिटिश शासन के दौरान, अंग्रेजों ने डेगाना में रेनवाट की पहाड़ी पर वर्ष 1914 में टंगस्टन खनिज की खोज की।

आजादी से पहले, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान यहां उत्पादित टंगस्टन का उपयोग ब्रिटिश सेना के लिए युद्ध सामग्री बनाने के लिए किया जाता था। आजादी के बाद देश में ऊर्जा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सर्जिकल उपकरण बनाने के क्षेत्र में भी इसका इस्तेमाल किया जाने लगा। उस समय यहां करीब 1500 लोग काम करते थे।

वर्ष 1992-93 में चीन की सस्ती निर्यात नीति ने यहां से निकलने वाले टंगस्टन को महंगा कर दिया। आखिरकार यहां टंगस्टन का उत्पादन बंद कर दिया गया। हर समय आबाद रहने वाली और वर्षों तक टंगस्टन की आपूर्ति कर देश के विकास में सहायक रही यह पहाड़ी एक ही झटके में वीरान हो गई।

उस अवधि के दौरान, जीएसआई और अन्य सरकारी एजेंसियों के अधिकारियों द्वारा निर्मित कार्यालय, घर, बगीचे और यहां तक कि स्कूल भी खंडहर में बदल गए थे। अधिकारियों ने कहा कि अब इस पहाड़ी से निकलने वाला लिथियम राजस्थान और देश का भाग्य बदलेगा।

लिथियम दुनिया की सबसे नर्म और हल्की धातु भी है। सब्जी के चाकू से काटे जाने के लिए पर्याप्त नरम और पानी में डालने पर तैरने के लिए पर्याप्त हल्का। यह रासायनिक ऊर्जा को संग्रहीत करता है और इसे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है।

लिथियम आज घर में हर चार्जेबल इलेक्ट्रॉनिक और बैटरी से चलने वाले गैजेट में मौजूद है। इसी वजह से दुनिया भर में लिथियम की जबरदस्त डिमांड है। वैश्विक मांग के कारण इसे व्हाइट गोल्ड भी कहा जाता है। एक टन लीथियम की वैश्विक कीमत करीब 57.36 लाख रुपये है।

पूरे विश्व में ऊर्जा परिवर्तन हो रहा है। हर देश ईंधन ऊर्जा से हरित ऊर्जा की ओर तेजी से बढ़ रहा है। एयरक्राफ्ट से लेकर विंड टर्बाइन, सोलर पैनल, इलेक्ट्रिक व्हीकल, मोबाइल और घर में हर छोटे-बड़े चार्जेबल डिवाइस में लीथियम का इस्तेमाल बढ़ रहा है।

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक लिथियम धातु की वैश्विक मांग में 500 प्रतिशत की वृद्धि होगी। इस दृष्टि से राजस्थान में लिथियम का अपार भण्डार प्राप्त होना न केवल प्रदेश के लिए अपितु देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी अत्यंत लाभदायक है। 21 मिलियन टन का दुनिया का सबसे बड़ा लिथियम भंडार वर्तमान में बोलिविया देश में है। इसके बाद अर्जेंटीना, चिली और अमेरिका में भी बड़े भंडार हैं। इसके बावजूद, चीन, जिसके पास 5.1 मिलियन टन लिथियम का भंडार है, का वैश्विक बाजार में एकाधिकार बना हुआ है।

भारत को भी अपने कुल लिथियम आयात का 53.76 फीसदी हिस्सा चीन से खरीदना पड़ता है। वर्ष 2020-21 में भारत ने 6,000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के लिथियम का आयात किया और इसमें से 3,500 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य का लिथियम चीन से खरीदा गया। ऐसे में अधिकारियों का मानना है कि राजस्थान में लिथियम के भंडार इतने ज्यादा हैं कि चीन के एकाधिकार को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है और देश हरित ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बन सकता है।

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