साल के अंत तक यमुना का पानी होगा स्वच्छ व निर्मल: दिल्ली जल बोर्ड

नई दिल्ली 16 Feb, (एजेंसी) : बहुत जल्द यमुना का पानी स्वच्छ और निर्मल नजर आएगा। इस बात की जानकारी दिल्ली जल बोर्ड ने ट्विट कर साझा की है। डीजेबी ने अपने ट्वीट में बताया है कि साल के अंत तक यमुना में दिल्ली के नाले का गंदा पानी गिरना बंद हो जाएगा। गौरतलब है कि लंबे अरसे से यमुना में प्रदूषण को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं, लेकिन अब गंदा पानी बहाने वाले सभी नालों को बंद कर दिया जाएगा। इस पानी को अवजल शोधन संयंत्र (एसटीपी) की ओर मोड़ा जाएगा। दिल्ली सरकार का लक्ष्य दिसंबर 2023 तक यमुना में नालों से गिर रहे गंदे पानी को गिरने से रोकना है। इससे यमुना में प्रदूषण कम करने में मदद भी मिलेगी। इस बारे में दिल्ली सरकार के पर्यावरण विभाग के अधिकारियों द्वारा एलजी विनय सक्सेना को प्रजेंटेशन भी दिया जा चुका है।

दिल्ली जल बोर्ड ने बताया कि मोरी गेट नाले के गंदे पानी को यमुना में गिरने से पहले ट्रीट करने के लिए कोरोनेशन पिलर डब्ल्यूडब्ल्यूटीपी का निर्माण किया गया है। इस प्रोजेक्ट के दूसरे चरण के तहत सीवेज पम्पिंग स्टेशन का निर्माण जारी है। यह काम पूरा होने के बाद मोरी गेट नाले का पानी ट्रीट होगा। यह काम इसी साल पूरा होने की संभावना है। इसका सीधा असर यह होगा कि साल 2023 के अंत तक यमुना में नाले का गंदा पानी गिरना बंद हो जाएगा।

दिल्ली में 35 एसटीपी की उपचार क्षमता 632 एमजीडी है। अभी ये एसटीपी अपनी स्थापित क्षमता का केवल 69 प्रतिशत उपयोग कर रहे हैं। इसका मतलब 768 एमजीडी सीवरेज में से सिर्फ 530 एमजीडी का उपचार किया जा रहा है। जून 2024 तक स्थापित उपचार क्षमता 632 एमजीडी से बढ़कर 934.5 एमजीडी हो जाएगी।

हाल ही में यमुना के पानी को स्वच्छ बनाने को लेकर हुई एक बैठक भी हुई थी। और इस बैठक में अधिकारियों ने बताया था दिल्ली में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) दिसंबर तक निर्धारित मानकों के अनुरूप रोजाना 814 मिलियन गैलन अपशिष्ट जल (एमजीडी) का शोधन करने में सक्षम होंगे।

गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने फरवरी 2025 तक यमुना को नहाने के मानकों तक साफ करने का वादा अदालतों और अन्य न्यायिक एजेंसियों से किया है। वादों के मुताबिक यदि बीओडी तीन मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है। और घुलित आक्सीजन (डीओ) पांच मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है, तो नदी को स्नान के लिए उपयुक्त माना जा सकता है।

पर्यावरण विभाग द्वारा तय मानकों के अनुरूप उपचारित अपशिष्ट जल में बीओडी (जैविक आक्सीजन मांग) और टीडीएस (कुल घुलनशील ठोस) 10 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होना चाहिए।

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