नई दिल्ली, 11 जनवरी (Final Justice Digital News Desk/एजेंसी)। भारत में वित्तीय तकनीक और डिजिटल अर्थव्यवस्था तेजी से विकास कर रही है, लेकिन इस क्रांति के साथ जोखिम और चुनौतियां भी जुड़ी हुई हैं। वर्चुअल डिजिटल एसेट्स, जिसे आमतौर पर क्रिप्टोकरेंसी कहा जाता है, ने वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय क्षेत्र को पुनर्परिभाषित किया है।
हालांकि, वर्चुअल डिजिटल एसेट्स का संचालन, नियमन और इसके व्यापक प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए एक समर्पित और समग्र नियामक ढांचे का अभाव भारत के सामने एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
क्या है सरकार की मौजूदा स्थिति?
16 दिसंबर, 2024 को लोकसभा में वित्त मंत्रालय द्वारा पेश उत्तर ने सरकार की रणनीति और दृष्टिकोण को स्पष्ट किया। यह समझा गया कि वर्चुअल डिजिटल एसेट्स एक सीमाहीन प्रणाली है, जिसे प्रभावी रूप से नियामित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
भारत ने 7 मार्च, 2023 को वर्चुअल डिजिटल एसेट्स को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत लाकर पहला कदम उठाया। इसके साथ ही वर्चुअल डिजिटल एसेट्स से होने वाली आय पर आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कर लगाया जा रहा है। लेकिन, यह कदम सीमित प्रभावी हैं और व्यापक नियामक ढांचे का विकल्प नहीं हो सकते।
भारत ने अपने जी20 अध्यक्षता के दौरान, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और वित्तीय स्थिरता बोर्ड के साथ मिलकर एक समन्वित नीति और नियामक ढांचे के लिए ‘क्रिप्टो एसेट्स पर जी20 रोडमैप’ को अपनाया। यह रोडमैप नवाचार के साथ-साथ जोखिमों के मूल्यांकन को केंद्र में रखता है। लेकिन, इस प्रक्रिया में हर कदम अंतरराष्ट्रीय सहमति और देश-विशेष जोखिमों के गहन मूल्यांकन पर निर्भर करता है।
वर्चुअल डिजिटल एसेट्स के क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहन देना भारत के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह अर्थव्यवस्था को डिजिटलीकरण और निवेश के नए आयाम दे सकता है। लेकिन, यह ध्यान रखना होगा कि यह नवाचार निवेशकों और आम जनता के लिए वित्तीय जोखिम न बने। क्रिप्टो बाजार की अस्थिरता, मनी लॉन्ड्रिंग, कर चोरी और धोखाधड़ी जैसी समस्याएं गहरी चिंताओं को जन्म देती हैं।
सरकार का यह दावा सही है कि “निवेशक सुरक्षा उपाय जोखिम को सीमित हद तक ही कम कर सकते हैं और इन्हें पूरी तरह से समाप्त नहीं कर सकते।” यह स्पष्ट करता है कि डिजिटल एसेट्स की प्रकृति और जोखिम इतने व्यापक और बहुआयामी हैं कि केवल घरेलू नीति पर्याप्त नहीं हो सकती।
वर्चुअल डिजिटल एसेट्स का नियमन भारत के वित्तीय भविष्य को आकार देगा। लेकिन इसके लिए ठोस, विचारशील और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, ताकि देश नवाचार का केंद्र बन सके और आर्थिक स्थिरता बनी रहे।
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