झारखंड में फिल्म विकास की असीम संभावनाएं हैं..गीतकार नवाब आरजू

29.12.2024 – झारखंड में फिल्म विकास की असीम संभावनाएं हैं….., ना तो यहां प्रतिभा की कमी है और ना ही शूटिंग के लिए रमणीक स्थलों की कमी है। डिजिटल युग में ओटीटी प्लेटफार्म के विस्तार से नवोदित प्रतिभाओं के लिए प्रतिभा प्रदर्शन का दायरा बढ़ा है। मौजूदा सरकार को अपनी फिल्म पॉलिसी के तहत ठोस कदम उठाना चाहिए ताकि यहां की फिल्मी गतिविधियों से जुड़े फिल्मकारों को एक नई दिशा मिल सके।

उक्त बातें भारतीय फिल्म जगत के मशहूर गीतकार, पटकथा व संवाद लेखक नवाब आरजू ने अपने झारखंड प्रवास के दौरान कही। नवाब आरजू इन दिनों चाईबासा (झारखंड), अपने एक रिश्तेदार के विवाह कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए हुए हैं। विदित हो कि 1982 में नवाब आरजू ने बॉलीवुड की धरती पर कदम रखा।

एक लम्बे संघर्ष के बाद उनके शब्दों को सराहा गया। 90 के दशक में भारतीय फिल्म जगत के मशहूर फिल्मकार महेश भट्ट की फिल्म ‘साथी’ का गीत ‘हुई आँखें नम और ये दिल मुस्कुराया, तो साथी कोई भुला याद आया….’ के हिट होने के बाद नवाब आरजू ने कभी पीछे मूड कर नहीं देखा।

‘बाज़ीगर’, ‘साथी’, ‘भाभी’, ‘दिल का क्या क़ुसुर’, ‘जान तेरे नाम’, ‘हक़ीक़त’, ‘बाली उमर को सलाम’, ‘मुक़ाबला’, ‘आ गले लग जा’, ‘मालामाल वीकली’ ‘मिस्टर बेचारा’, ‘धर्म कर्म’ और ‘आज़म’ जैसी हिट फिल्मों के लिए गीत लिख चुके गीतकार नवाब आरजू की खास बात ये रही कि फिल्मी जद्दोजहद के साथ साथ वो अदब से भी जुड़े रहे। 2013 में हिंदी उर्दू साहित्य अवार्ड कमिटी उत्तर प्रदेश ने लखनऊ में ‘उर्दू अदब’ अवार्ड से उन्हें नवाज़ा। 2014 में नारायणी साहित्य अकादमी ने भी सम्मानित किया, फिल्म लेखन के लिए भी समय समय पर उन्हें कई अवार्ड मिले मसलन ‘इंडियन टेली अवार्ड’ और ‘इंडियन टेलीविज़न अकादमी अवार्ड’ वगैरह।

वर्तमान समय में यूट्यूब पर भी नवाब आरजू के कई धार्मिक भजन उपलब्ध हैं। अपनी लेखन प्रतिभा के बदौलत बॉलीवुड में झारखंड का परचम लहराने वाले नवाब आरजू ने छोटे परदे पर भी बहुत उम्दा काम किया है उन्होंने ‘हिना’, ‘हवाएं’, ‘कांच के रिश्ते’, ‘कैसे कहूं’ जैसे सीरियल लिखे।

‘सास भी कभी बहु थी’, ‘कहानी हर घर की’, ‘कसौटी ज़िन्दगी की’, ‘कुसुम’, ‘कुटुंब’, ‘कसम से’, ‘कुमकुम’, ‘कोई अपना सा’, ‘बड़े अच्छे लगते हैं’, ‘ढाई किलो प्रेम के’ और ‘नागिन’ जैसी सफल टीवी शो के टाइटल ट्रैक को जनता ने काफी सराहा। नवाब आरजू का पहला ग़ज़लों और नज़मों का संकलन ‘एहसास’ 2014 में प्रकाशित हुआ था।

‘सुख़न दर्पन’ उनका दूसरा मजमुआ कलाम है जो नए साल में पाठकों तक पहुंच जाएगा। फिलवक्त नवाब आरजू फिल्मों और टेलीविज़न की दुनिया में मसरूफ हैं।

प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय

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