नया वैरिएंट आया, तो वह पुराने टीकाकरण को बेअसर कर सकता है

नया वैरिएंट आया, तो वह पुराने टीकाकरण को बेअसर कर सकता है. सिद्धांत तो ठीक है..यही मुद्दा है। विशेषज्ञों की राय यह है कि अगर सभी लोगों का टीकाकरण नहीं हुआ, तो वायरस के नए वैरिएंट पैदा करने की गुंजाइश बनी रहेगी। नया वैरिएंट आया, तो वह पुराने टीकाकरण को बेअसर कर सकता है। इसलिए सबको टीका लगाना जरूरी है। दुनिया भर में इस मुद्दे पर बहस चल रही है।

सुप्रीम कोर्ट का यह व्यवस्था देना कि किसी के शरीर का बिना उसकी सहमति के उल्लंघन नहीं किया जा सकता, निजी स्वतंत्रता की आधुनिक धारणा के अनुरूप है। लेकिन जिस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा, उस पर जरूर बहस की गुंजाइश है। आखिर निजी स्वतंत्रता और बड़े सामाजिक उद्देश्यों के बीच उचित तालमेल बनाना किसी समाज के सामने चुनौती होती है। इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम रखना पड़ता है। ख्याल करने की बात यह होती है कि एक उद्देश्य को पूरा करने की फिक्र में कहीं दूसरे उद्देश्य का उल्लंघन ना हो जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी को भी कोविड टीका लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि कुछ राज्य सरकारों और संस्थाओं के कोविड टीका नहीं लगवाने वाले लोगों पर सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच को लेकर लगाई शर्तें सही नहीं हैं। वैसे कोर्ट ने सरकार की कोविड टीकाकरण नीति को सही ठहराया और कहा कि देश में जिस तरह से कोरोना वायरस का खतरा पैदा हुआ था, उस स्थिति में वैक्सीनेशन की नीति ठीक थी। लेकिन यही मुद्दा है।

विशेषज्ञों की राय यह है कि अगर सभी लोगों का टीकाकरण नहीं हुआ, तो वायरस के नए वैरिएंट पैदा करने की गुंजाइश बनी रहेगी। नया वैरिएंट आया, तो वह पुराने टीकाकरण को बेअसर कर सकता है। इसलिए सबको टीका लगाना जरूरी है। दुनिया भर में इस मुद्दे पर बहस चल रही है। टीका विरोधियों का एक बड़ा समूह अलग-अलग देशों में सामने आया है। ये कहना मुश्किल है कि इन समूहों के पास वैज्ञानिक तथ्य और तर्क हैँ। इसलिए अपेक्षित यह था कि कोर्ट विज्ञान सम्मत राय देता।

बहरहाल, जस्टिस एल नागेश्वर राव और बीआर गवई की बेंच ने उस याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें कहा गया था कि टीकाकरण को लाभ या सेवाओं तक पहुंचने की शर्त बनाना नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है। इसलिए यह असंवैधानिक है। तो फिर अगर इस तर्क को आगे बढ़ाआ जाए, तो फिर किसी भी व्यक्ति के बायोमेट्रिक डेटा को बिना उसकी सहमति से जुटाना क्या संवैधानिक कहा जाएगा? क्या किसी व्यक्ति के जबरन डीएनए टेस्ट या सीसीटीवी कैमरों के जरिए लगातार निगरानी को सही माना जाएगा?

इन मामलों पर कोर्ट का अलग नजरिया सामने आया है। ऐसे में ताजा फैसले पर सवाल उठाने की पूरी गुंजाइश बनी हुई है।

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