डा0 श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट – देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से होली मनाई जाती है। मध्य प्रदेश के मालवा अंचल में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी मनाई जाती है।यह मुख्य होली से भी अधिक जोर-शोर से मनाई जाती है।ब्रज की होली पूरे भारत में मशहूर है। बरसाना की लट्ठमार होली देखने के लिए देश विदेश से लोग आते हैं। हरियाणा में भाभी द्वारा देवर को सताने की परंपरा है। महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन सूखे गुलाल से खेलने की परंपरा है।दक्षिण गुजरात के आदि-वासियों के लिए होली एक खास पर्व है। छत्तीसगढ़ में होली पर लोक-गीतों का प्रचलन है।
विभिन्न रंगो का पर्व होली एक ऐसा सामाजिक त्यौहार है जिसे सभी मिलकर हर्षोल्लास के साथ मनाते है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होली का मुख्य पर्व मनाया जाता है। भद्रा रहित लग्न में सायंकाल के बाद होलिका दहन करने की होली पर परम्परा है। इससे पूर्व दिन भर होलिका का पूजन किया जाता है तथा घर की बालिकाओं द्वारा गोबर से बनाये गए बडकल्ले भी होलिका पर चढाये जाते है।होलिका दहन
के बाद होलिका की राख ठन्डी होने पर उसे भस्म रूप में शरीर पर लगाने की भी परम्परा है। ताकि मन और शरीर वर्षभर स्वस्थ्य रह सके। वैदिक काल में होली पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ कहा जाता था। खेत में पैदा हुए अधपके अन्न को यज्ञ में आहुत किया जाता था और यज्ञ में पके अन्न को होला कहा जाता था। इसी कारण इस पर्व का नाम होला से होली पडा है। एक अन्य मान्यता के अनुसार
होली अग्नि देव की पूजा का माध्यम भी है। चूंकि इस दिन मनु
महाराज का जन्म हुआ था इस कारण इस पर्व को मन्वादितिथि भी कहा जाता है। इस पर्व का एक उददेश्य काम दहन से भी है। कहा जाता है कि भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को
भस्म कर दिया था, तभी से इस पर्व की शुरूआत होना बताई गई
है।प्रकृति जब अपना आवरण बदलने लगे ,मौसम में बासंती ब्यार बहने लगे और लोगो में मस्ती का भाव जगने लगे तो समझो फाल्गुन आ
गया और होली लोगो के दिलो पर दस्तक देकर उन्हे अपने रगं में रगंने लगती है। प्रकृति का यही उल्लास लोगो के मन में एक
नई उमंग,एक नई खुशी, एक नई स्फूर्ति को जन्म देकर उनके
मन को आल्हादित करती है। प्रकृति की इस अनूठी छटा व मादकता के उत्सव को होलिकोत्सव के रूप में मनाए जाने की परम्परा सदियों
से चली आ रही है। जिस पर हम सब रंगो से सराबोर हो जाते है।
होली के इस पर्व को यौवनोत्सव,मदनोत्सव,बसंतोत्सव दोलयात्रा व शिमागा के रूप में मनाये जाने की परम्परा है।लेकिन इस पर्व की
वास्तविक शुरूआत प्रकृति परिवर्तन से ही होती है। प्रकृति अपना आवरण बदलती है। पेड पोधे अपने पुराने पत्तो को त्यागकर पेड का तना
अपने बक्कल को छोडकर नये पत्तो व नये स्वरूप में परिवर्तित होते है। इसी प्रकार मनुष्य के शरीर की खाल तक धीरे धीरे बदल जाती है।
पांच तत्वों से बना हमारा शरीर भी चूंकि प्रकृति का अंग है
इसकारण वह भी मन और शरीर दोनो तरह से अपने आपमें परिवर्तन का अनुभव करता है। यही अनुभव हम होली के रूप में तहसूस करते है।
धार्मिक पुस्तको व शास्त्रों में होली को लेकर विभिन्न दन्त
कथायें प्रचलित है। इन कथाओं के अनुसार नारद पुराण में यह
पर्व हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के अन्त व भक्त प्रहलाद की ईश्वर के प्रति आस्था के प्रति विजय का प्रतीक है। प्रचलित कथा के अनुसार हिरण्य कश्यपको जब उनके पुत्र प्रहलाद ने भगवान मानने से इंकार कर
दिया तो अहंकारी शासक हिरण्य कश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद की हत्या के लिए उसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त होलिका की गोद में जलती
चिता में बैठा दिया किन्तु होलिका का आग में न जलने का वरदान
काम नही आया और वह आग में जलकर भस्म हो गई। जबकि प्रहलाद सकुशल बच गया। तभी से होलिकोत्सव पर होली दहन की परम्परा की शुरूआत हुई।
होली पर्व पर गाये जाने वाले होली से जुडे लोकगीतो की
अनूठी परम्परा है। मै कैसे खेलू होली सांवरियां के संगए कोरे
कोरे कलस भराये उनमें धोला रंग।जैसे लोक गीत का गायन कर महिलाएं झूम झूम कर होली पर नृत्य भी करती है। होली के
लोकगीतो में
ब्रज में हरि होरी मचाईए
इतते निकली सुधर राधिका
उतते कुंवर कन्हाईखेलत फाग परस्पर हिलमिलए
शोभा वरनी न जाई।
जहां लोकप्रिय हैए वही होली आई रे कन्हाई ब्रज के रसिया
एहोली आई रे भी जोर सोर से गाया जाता है।
चाहे शहर हो या गांव हर गली मोहल्ले में पुरातन परम्परा
से जुडी महिलायें पूर्णिमा की चांदनी में एकत्र होकर होली के
गीत गाती है और होली नृत्य करती है। इन होली लोकगीतो
में ,होली खेलो जी राधे सम्भाल के।जमना तट श्याम खेले
होरी जमना तट ।होरी खेलन आयों श्यामएआज याको रंग में
बोरो सखी वृन्दावन के बीच आज ढफ बाजे है।
।फागुन आयों रे ऐ ली फागण आयों रे ,मेरी भीजे
रेशम चुनरी रे,मै कैसे खेलूं होरी रे।होरी खेल रहे नन्द
लाल मथुरा की कुंज गलिन मे।एआज बिरज की होरी रे रसिया
होरी तो होरी बरजोरी रे रसिया उडत अबीर गुलाल कुमकुम केसर की
पिचकारी रे रसिया। आदि शामिल है।
होली के पर्व को मुगल शासक भी शान से मनाया करते थे।
मुगल बादशाह अकबर अपनी महारानी जोधाबाई के साथ जमकर होली खेलते थे। बादशाह जहांगीर ने भी अपनी पत्नी नूरजहां के साथ रंगो की होली खेली। इसी तरह बादशाह औरंगजेब उनके
पुत्र शाह आलम और पोत्र जहांदर शाह ने भी होली का त्योहार रंगो के साथ मस्ती के आलम में मनाया जिसका उल्लेख इतिहास में पढने को मिलता है। जिससे स्पष्ट है कि हिन्दू ही नही मुस्लमान भी होली का पर्व मनाते रहे है। पिरान कलियर के वार्षिक उर्स में
पाकिस्तान से आने वाले जायरीन हर साल फूलो की होली खेलते है
जिसमें हिन्दू और मुस्लमान दोनो शामिल होते है। राजस्थानी की होली रेगिस्तान की पहचान राजस्थान में सांभर की होली का अपना महत्व है। सांभर की होलीमनाने के लिए आदिवासी समाज की लडकियां वस्त्रो की जगह अपने शरीर को टेसू की फूल मालाओं से
ढककर अपने प्रेमियों के साथ नदी किनारे जाकर सर्प नृत्य करती है।
इस सर्प नृत्य के बाद इन लडकियो की शादी उनके प्रेमियों के साथ कर दी जाती है।
होली जिसमें देवर भाभी व जीजा शाली एक दुसरे को कोडे मार
कर होली के रगं में रंग जाते है। इसी राजस्थान में होली पर
अकबर बीरबल की शोभा यात्रा निकालकर होली का रगं व गुलाल
खेला जाता है। राजस्थान के बाडमेंर में तो होली की मस्ती
के लिए जीवित व्यक्तियों की शवयात्रा बैण्डबाजे के साथ निकालने की
परम्परा है। वही राजस्थान के जालोर क्षेत्र में होली पर लूर नृत्य
किया जाता है तो झालावाड क्षेत्र में गधे पर बैठकर होली की
मस्ती में झूमने की परम्परा है। बीहड क्षेत्र में तो पुरूष धाधरा
चोली पहन कर ढोल नंगाडे बजाते हुए होली का नृत्य करते है
तथा होली का गायन करते है। मथुरा की लठठमार होली बीकानेर
की डोलचीमार होली की कहानी भी गजब है।
मथुरा की लठठमार होली
लठठमार होली मथुरा के बरसाने में खेली जाती है।
जिसमें महिलाए पुरूषो पर लठठ से प्रहार करती है और पुरूष ढाल का
उपयोग कर अपना बचाव करते है।इस लठठमार होली को देखने के
लिए देश विदेश से बडी सख्ंया में श्रद्धालु मथुरा आते है। भले
ही इस होली को लठठमार होली के रूप में मनाया जाता हो परन्तु
किसी के भी मन में होली खेलते समय कोई बैर भाव नही
होता सभी प्यार और माहब्बत को नया जन्म देने के लिए यह होली
खेलते है।
होली यानि पवित्र होने का दिन
यूं तो होली रंगों का त्यौहार है ताकि जीवन रंग बिरगां रहे
और कोई भी दुख दर्द पास न आने पाये लेकिन साथ ही यह पर्व
पांच विकारों को त्यागने का भी एक बडा अवसर है। होली शब्द
का अर्थ यदि हम अंग्रेजी के में देखे तो पवित्र होता है जिसका मायने है कि हमें होली पर पवित्र बनने का सकल्ंप लेना चाहिए। जिसके लिए जरूरी है काम,क्रोध,मोह लोभ और अहंकार से मुक्त हो
जाना। तभी हमारा जीवन देवतूल्य बन सकता है और होली पर्व की सार्थकता हो सकती है। लेकिन कुछ लोग होली पर नशा करते है। एक दुसरे पर कीचड उछालते है और होली के रंग को बदरंग बना देते है। जो कि पूरी तरह से गलत है। होली का सही मायने है।
आपसी भाई चारा बढाना और जो भी बैर भाव किसी के प्रति है
उसे हमेशा हमेशा के लिए समाप्त कर देना। तभी होली का असली
रसानन्द प्राप्त किया जा सकता है। होली का रंग
चढऩे लगा है
हर कोई मदमस्त
होने लगा है
प्रकृति भी खिली खिली
दिखने लगी
मौसम मे गर्माहट सी
होने लगी
पर होली पर हुड़दंग
ठीक नही है
होली पर बदरंगता
ठीक नही है
होली पर होली
रहना जरूरी है
बुराईयों से मुक्ति
पाना जरूरी है
जो भी विकार बचे है
जला दो होली मे
आत्मा का परमात्मा से
योग लगा लो होली में।
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