बुनियादी सवाल है कि आखिर कार्ड वापस करने का सारा मामला किसके कहने पर चर्चित हुआ? गौरतलब है कि मई महीने की शुरुआत से ही ऐसी खबरें आने लगी थीं। ये खबरें स्थानीय अधिकारियों के हवाले से छप रही थीं।
इस खबर पर गौर कीजिए और लगे हाथ उत्तर प्रदेश के लाखों लोगों के असमंजस पर विचार भी कर लीजिए। खबर यह है कि इस राज्य में 50 हजार से ज्यादा लोगों ने वसूली के डर से राशन कार्ड वापस कर दिया। लेकिन अब राज्य सरकार ने कहा है कि वसूली या कार्ड वापसी के बारे में उसने कोई आदेश दिया ही नहीं। तो बुनियादी सवाल है कि आखिर कार्ड वापस करने का सारा मामला किसके कहने पर बहुचर्चित हुआ? गौरतलब है कि मई महीने की शुरुआत से ही इस तरह की खबरें कई जिलों से आने लगी थीं। ये खबरें स्थानीय अधिकारियों के हवाले से छप रही थीं। कई जगह तो डुगडुगी पिटवाकर इस बारे में बाकायदा घोषणा की जा रही थी। इसका असर यह हुआ कि तमाम जिलों में लोग लाइनों में लगकर राशन कार्ड सरेंडर करने लगे। ऐसी खबरें कई दिन तक अखबारों में छपती रहीं, टीवी चैनलों पर दिखाई जाती रहीं। नतीजतन लोग लाइनों में लगकर राशन कार्ड सरेंडर करने लगे। तब लेकिन ना तो स्थानीय अधिकारियों ने और ना ही राज्य सरकार की ओर से इस बारे में कोई स्पष्टीकरण दिया गया। उसके बाद कांग्रेस पार्टी ने लखनऊ में एक प्रेस कांफ्रेंस की और राशन कार्ड के कथित नए नियमों और राशन वसूली को लेकर सरकार पर जमकर निशाना साधा।
पार्टी ने कहा कि भाजपा सरकार ने वोट लेने के लिए अपने नेताओं की तस्वीर लगे झोलों में भरकर खूब राशन बांटे। अब वही लोगों से उस राशन की वसूली करने पर उतारू है। इसके तुरंत बाद राज्य के खाद्य एवं रसद आयुक्त सौरव बाबू की ओर से एक बयान जारी किया गया। उसमें कहा गया कि ये सारी खबरें फर्जी और भ्रामक हैं। किसी तरह की वसूली करने या फिर राशन कार्ड सरेंडर करने के कोई आदेश जारी नहीं किया गया है। खाद्य एवं रसद आयुक्त स्पष्ट किया कि राशन कार्डों के लिए वही नियम लागू हैं जो सात अक्टूबर 2014 को लागू थे- यानी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बनने के बाद। लेकिन प्रश्न है कि जब मीडिया में इसको लेकर शोर मचा हुआ था, तब सरकार क्यों चुप बैठी रही?
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