नई दिल्ली,15 नवंबर (एजेंसी)। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के मुताबिक सभी तकनीकी प्रगति के बावजूद, समुद्री डकैती और नशीली दवाओं की तस्करी अभी भी एक चुनौती बनी हुई है। धनखड़ ने कहा कि इनसे उत्पन्न धन का उपयोग राज्येतर तत्वों द्वारा शांति और सद्भाव को बाधित करने के लिए किया जाता है।
धनखड़ ने कहा, वैश्विक शांति प्रयासों में राज्येतर तत्व सबसे बड़े नकारात्मक हस्तक्षेप के रूप में उभरे हैं। निजी प्रयास उन्हें बेअसर करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकते हैं। केवल राष्ट्रों के बीच एकजुटता और मज़बूत तंत्र के द्वारा इनसे निपटा जा सकता है।
वह नई दिल्ली में हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद के 2023 संस्करण में बोल रहे थे। समुद्रों में अपार अप्रयुक्त संपदा वैश्विक भागीदारों के बीच प्रतिस्पर्धा के लिए नया फ्रंटिअर बन गया है। बुधवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह बात कही।
उन्होंने समुद्र और इसकी संपदा के वैश्विक भागीदारों के प्रतिस्पर्धी दावों को रोकने के लिए एक नियामक व्यवस्था और इसके प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता पर बल दिया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में, भारत एक स्वतंत्र और शांतिपूर्ण नियम आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र चाहता है, जिसमें वैध व्यापार का मुक्त और अप्रतिबंधित प्रवाह हो।
स्थापित अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और समझौतों के अनुसार, नौवाहन और ओवर-फ्लाइट के लिए स्वतंत्रता का आह्वान करते हुए, धनखड़ ने जोर देकर कहा, हम एक न्यायसंगत वैश्विक नियामक व्यवस्था चाहते हैं, जो समुद्री संसाधनों और समुद्री तल के स्थायी और न्यायसंगत दोहन के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) पर अधिकार का सम्मान करता है।
उपराष्ट्रपति ने कहा, आप कमजोर हालात में शांति लागू नहीं कर सकते, शांति पर बातचीत नहीं कर सकते और शांति की आकांक्षा नहीं कर सकते। आपको मजबूत होना होगा और आपको सभी मौलिक तथ्यों पर मजबूत होना होगा। मौजूदा परिदृश्य में भारत इसके लिए बहुत उपयुक्त है।
अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने इस बात पर भी दुख और पीड़ा व्यक्त की कि भारत, एक ऐसा देश जिसमें सारी दुनिया की जनसंख्या का छठवां हिस्सा रहता है, को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता है, जो निश्चित रूप से इस वैश्विक निकाय की प्रभावकारिता को कम करता है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि अब समय आ गया है, जब हमें इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। एआई, रोबोटिक्स, ड्रोन और हाइपरसोनिक हथियारों जैसी परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि इन क्षेत्रों की महारत और उत्कृष्ट निपुणता भविष्य के स्ट्रटीजिक हैव और स्ट्रटीजिक हैव नॉट निर्धारित करेगा।
इस संबंध में, उन्होंने भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र से आगे आने, नागरिक और सैन्य बलों के साथ समन्वय करने और ऐसी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए काम करने का आग्रह किया, जैसा कि पश्चिमी देशों में किया जा रहा है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने कहा कि हम एक अस्थिर वैश्विक परिदृश्य का सामना कर रहे हैं, जिसमें कई कठिन चुनौतिया सामने हैं जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापार और कनेक्टिविटी के रखरखाव को बाधित कर सकती हैं। उन्होंने रेखांकित किया, इन खतरनाक प्रवृत्तियों को रोकने के लिए और चुनौतियों से निपटने के लिए एक रणनीति का विकास पूरी मानवता के कल्याण के लिए प्राथमिकता है।
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