उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री के खिलाफ बॉम्बे HC में याचिका दाखिल, पद से हटाने की मांग

मुंबई 02 Feb, (एजेंसी): उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई है। बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने जगदीप धनखड़ और किरन रिरिजू के हाल ही में दिये बयानों को लेकर उनके खिलाफ याचिका दायर की है। याचिका में मांग की गई है कि बॉम्बे हाईकोर्ट धनखड़ और रिजिजू को उन्हें अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोके और घोषित करे कि दोनों अपने सार्वजनिक आचरण और अपने बयानों के माध्यम से भारत के संविधान में विश्वास की कमी दिखाते हुए अपने संवैधानिक पदों को धारण करने से अयोग्य हैं।

बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन की याचिका में कहा गया है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने अपने गैर जिम्मेदाराना बयानों से सार्वजनिक रूप से सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिष्ठा को कम किया है। बता दें कि किरेन रिजिजू ने बार-बार कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठाया। यहां तक ​​कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी न्यायपालिका की शक्तियों पर ‘मूल संरचना’ सिद्धांत का हवाला देते हुए सवाल खड़े किए और NJAC अधिनियम को रद्द करने के उसके फैसले को गंभीर कदम बताया।

दोनों के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है, ‘संविधान के तहत उपलब्ध किसी भी उपाय का उपयोग किए बिना सबसे अपमानजनक और अमर्यादित भाषा में न्यायपालिका पर सामने से हमला किया गया। उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री ने सार्वजनिक मंच पर खुले तौर पर कॉलेजियम प्रणाली और बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर हमला किया। संवैधानिक पदों पर बैठे जिम्मेदार लोगों की ओर से इस तरह का अशोभनीय व्यवहार बड़े पैमाने पर जनता की नजर में सर्वोच्च न्यायालय की महिमा को घटा रहा है।’

गौरतलब है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पिछले महीने, केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1973 के ऐतिहासिक फैसले पर बयान दिया था। इस मामले में सर्वोच्च अदालत ने फैसला सुनाया था कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन इसकी मूल संरचना में बदलाव करने का नहीं। जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर सवाल खड़ा किया था और कहा था, ‘क्या हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं’ इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होगा। वहीं दिसंबर 2022 में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान राज्यसभा की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा एनजेएसी अधिनियम को रद्द किए जाने को ‘लोगों के जनादेश’ की अवहेलना बताया था।

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