जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज ने तीन दिन उपवास के बाद त्यागा शरीर, चंद्रगिरी पर्वत में ली अंतिम सांस

रायपुर 18 Feb, (एजेंसी): छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी पर्वत में जैन मुनि विद्यासागर ने शनिवार की देर रात को देह त्याग दिया। बताया गया है कि जैन मुनि विद्यासागर तीन दिन के उपवास पर थे और मौन धारण किए हुए थे, इसके बाद उन्होंने देह को त्याग दिया। जैन मुनि विद्यासागर के निधन का समाचार मिलते ही जैन समाज के लोग डोंगरगढ़ पहुंचने लगे हैं। विद्यासागर महाराज जैन समाज के प्रमुख संत थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आचार्य विद्यासागर जी महाराज का ब्रह्मलीन होना देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है, लोगों में आध्यात्मिक जागृति के लिए उनके बहूमूल्य प्रयास सदैव स्मरण किए जाएंगे। मोदी ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट किया कि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी का ब्रह्मलीन होना देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। लोगों में आध्यात्मिक जागृति के लिए उनके बहुमूल्य प्रयास सदैव स्मरण किए जाएंगे। वे जीवनपर्यंत गरीबी उन्मूलन के साथ-साथ समाज में स्वास्थ्य और शिक्षा को बढ़ावा देने में जुटे रहे। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे निरंतर उनका आशीर्वाद मिलता रहा। प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले वर्ष छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरी जैन मंदिर में उनसे हुई भेंट उनके लिए अविस्मरणीय रहेगी। तब आचार्य जी से उन्हें भरपूर स्नेह और आशीष प्राप्त हुआ था। समाज के लिए उनका अप्रतिम योगदान देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा।

जैन धर्म के प्रमुख आचार्यों में से एक आचार्य विद्यासागर महाराज पिछले कई दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में उन्होंने अंतिम सांसें ली। जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज देवलोक गमन से पहले अन्य संतों से चर्चा करते हुए संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ले ली थी। इसके साथ ही उन्होंने आचार्य का पद भी त्याग दिया था। महाराज का डोला राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी तीर्थ स्थल पर रविवार को दोपहर एक बजे पंचतत्व में विलीन किया जाएगा। इस दौरान बड़ी संख्या में जैन संत और गणमान्य नागरिक मौजूद रहेंगे।

जानिए कौन है आचार्य विद्यासागर महाराज

जैन संत संप्रदाय में सबसे ज्यादा विख्यात संत विद्यासागर महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता का नाम मल्लप्पा था, जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता का नाम श्रीमंती था, जो बाद में आर्यिका समयमति बन गई थी। 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर को आचार्य का पद दिया गया था। उनके भाई महावीर, अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योग सागर और मुनि समय सागर, मुनि उत्कृष्ट सागर कहलाए।

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