नई दिल्ली 23 दिसंबर (आरएनएस )। दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र से भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटी एंड एच) के माध्यम से उस नियम और सर्कुलर के बारे में जवाब मांगा, जिसमें कार्यात्मक फास्टैग के बिना यात्रियों को दोहरा टोल टैक्स चुकाने की आवश्यकता होती है।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने एक नोटिस जारी किया और सरकार को एक हलफनामा पेश करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया। मामले की सुनवाई अब 18 अप्रैल, 2023 को होगी। वकील रविंदर त्यागी ने जनहित याचिका दायर कर सरकार के नियमों और फैसलों को अनुचित, मनमाना और जनहित के खिलाफ बताया है।
याचिकाकर्ता रविंदर त्यागी ने राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दरों और संग्रह का निर्धारण) संशोधन नियम, 2020 के एक प्रावधान को रद्द करने का अनुरोध किया है। फास्टैग एक ऐसा उपकरण है जिसमें टोल भुगतान करने के लिए ‘रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशनÓ (आईएफआईडी टैग) तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि सरकार ने देश भर में लोगों और चीजों की आवाजाही पर तर्कहीन प्रतिबंध लगा दिया है, जिसका पीछा किए जा रहे लक्ष्य से कोई लेना-देना नहीं है।
याचिका के अनुसार, यह भी निवेदन किया गया है कि राज्य की प्रशासनिक सुविधा (ऑनलाइन तंत्र के माध्यम से टोल शुल्क के संग्रह की) भेदभाव का आधार नहीं हो सकती है। यह भी निवेदन किया गया है कि राज्य की कोई भी सुविधा नियम और आक्षेपित आदेशों/परिपत्रों/अधिसूचनाओं द्वारा लगाए गए प्रकृति के भेदभाव के लिए आधार नहीं हो सकती है।
इसमें कहा गया है कि नकद भुगतान करने वाले लोगों से दो गुना ज्यादा वसूल करने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि एनएचएआई और एमओआरटी एंड एच द्वारा यात्रियों को प्रदान की जाने वाली सेवाएं समान हैं।
अधिकारियों को, कम से कम 50 प्रतिशत, टोल गेटों का 25 प्रतिशत कैश/फास्टैग और शेष केवल फास्टैग के रूप में रखना चाहिए था। यह प्रस्तुत किया जाता है कि इस पद्धति से, वर्तमान स्थिति बनाए बिना, निर्बाध यात्रा के मुद्दे को संबोधित किया गया होगा।
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