क्रिप्टो माइनिंग : क्या भारत डिजिटल क्रांति का बड़ा मौका गंवा रहा है?

नई दिल्ली, 27 मार्च (Final Justice Digital News Desk/एजेंसी)। क्रिप्टो माइनिंग वह प्रक्रिया है जिसका उपयोग बिटकॉइन और कई अन्य क्रिप्टो संपत्तियां नए टोकन बनाने और लेनदेन को सत्यापित करने के लिए करती हैं। यह पूरी तरह विकेंद्रीकृत (Decentralized) नेटवर्क होता है, जिसमें विशेष कंप्यूटरों का उपयोग किया जाता है।

ये मशीनें जटिल गणनाएँ करती हैं, जिसे आमतौर पर क्रिप्टोग्राफ़िक पहेलियाँ हल करना कहा जाता है, ताकि हर लेनदेन की पुष्टि हो सके और इसे ब्लॉकचेन में सुरक्षित रूप से जोड़ा जा सके। ब्लॉकचेन एक डिजिटल खाता बही की तरह काम करता है, जिसमें हर लेनदेन दर्ज होता है। इस प्रक्रिया में योगदान देने वाले माइनर्स को नए टोकन के रूप में इनाम दिया जाता है, जिससे न केवल नेटवर्क सुरक्षित रहता है, बल्कि माइनर्स को भी इसे लगातार सक्रिय बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

दुनिया के कई देश पहले ही इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ चुके हैं। अमेरिका, कनाडा और कजाकिस्तान ने अपने ऊर्जा संसाधनों, अनुकूल नीतियों और तकनीकी बुनियादी ढांचे का लाभ उठाकर क्रिप्टो माइनिंग को बड़े स्तर पर अपनाया है। अमेरिका फिलहाल वैश्विक बिटकॉइन माइनिंग का 37.8% हिस्सा संभाल रहा है, जो वहां की सस्ती ऊर्जा और उदार बाजार नीतियों का नतीजा है। वहीं, भूटान जैसे छोटे देशों ने भी अपने जलविद्युत संसाधनों का उपयोग करके संप्रभु माइनिंग संचालन विकसित कर लिया है

। टेक्सास में तो बिटकॉइन माइनिंग न केवल आर्थिक लाभ पहुंचा रही है, बल्कि ऊर्जा ग्रिड को स्थिर करने, गैस-आधारित बिजली संयंत्रों पर निर्भरता कम करने और उपभोक्ताओं के लिए बिजली लागत को कम करने में भी मदद कर रही है।इसके विपरीत, भारत अब भी इस उभरते उद्योग में पीछे छूटा हुआ है। देश में 11% वैश्विक आईटी कार्यबल है और हर साल 15 लाख से अधिक इंजीनियरिंग स्नातक तैयार होते हैं, फिर भी भारत की हिस्सेदारी वैश्विक क्रिप्टो माइनिंग में 1% से भी कम है।

यह स्थिति इसलिए नहीं है क्योंकि भारत में क्रिप्टो माइनिंग प्रतिबंधित है। वास्तव में, इस पर कोई स्पष्ट रोक नहीं है, लेकिन नीतिगत अस्थिरता, भारी कराधान और सहयोगी ढांचे की कमी इस क्षेत्र के विकास में बड़ी बाधा बनी हुई है। 2022 में क्रिप्टो आय पर 30% कर और लेनदेन पर 1% टीडीएस लागू करने के बाद कई स्टार्टअप भारत से बाहर निकलकर दुबई, सिंगापुर और एस्टोनिया जैसी जगहों पर बस गए, जहां नियामक नीतियां अधिक अनुकूल हैं। क्रिप्टो माइनिंग सिर्फ एक सट्टा बाजार नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा सुरक्षा, तकनीकी आत्मनिर्भरता और वित्तीय समावेशन का एक नया रास्ता खोल सकता है।

भारत ने अब तक इस अवसर का पूरी तरह से लाभ नहीं उठाया है, लेकिन इसके पास विशाल तकनीकी प्रतिभा, बढ़ते नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन और मजबूत लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं, जो इसे वैश्विक दक्षिण में डिजिटल क्रांति का नेतृत्व करने की क्षमता प्रदान करती हैं। सवाल यह नहीं है कि भारत ने यह अवसर खो दिया है या नहीं, बल्कि यह है कि क्या भारत समय रहते निर्णायक कदम उठाएगा या नहीं।

यदि देश अपने नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का सही उपयोग करता है और नवाचार को बढ़ावा देने वाली नीतियां अपनाता है, तो भारत अभी भी वैश्विक क्रिप्टो माइनिंग क्षेत्र में अपनी जगह बना सकता है। अब जरूरत है सही दिशा में कदम बढ़ाने की।

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