तिरुपति मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष एक ईसाई को बनाने से शुरू हुआ विवाद

*हिंदू विरोधी हैं जगन मोहन रेड्‌डी, शुरू हुई सियासी जंग*

*लोगों ने राज्य सरकार से पूछा- जिसे हिंदू धर्म में आस्था नहीं, उसे जिम्मेदारी क्यों दी..?*

नई दिल्ली , 05 दिसंबर (एजेंसी)। देश के सबसे अमीर तिरुमाला तिरुपति मंदिर के ट्रस्ट (तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम) के लिए तिरुपति से विधायक भुमना करुणाकर रेड्डी को अध्यक्ष बनाया गया है। आंध्रप्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी ने इनकी नियुक्ति की थी।  उनके अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से ही राज्य में विवाद पैदा हो गया था। वजह ये थी कि करुणाकर रेड्डी का परिवार ईसाई धर्म को मानता है। आंध्र सरकार के इस फैसले पर तेलुगुदेशम पार्टी (टीडीपी) व कई विपक्षी पार्टियों ने सवाल उठाया है। अब चुनाव नजदीक आते ही सीएम जगन मोहन रेड्‌डी के भी ईसाई होने को लेकर हंगामा शुरू हो गया है।

टीडीपी के प्रदेश सचिव बुच्ची राम प्रसाद ने पूछा है कि हिंदू धर्म में आस्था न रखने वाले व्यक्ति को मंदिर का अध्यक्ष कैसे बना सकते हैं। सबको पता है कि वे ईसाई धर्म मानते हैं, उनके ईसाई लोगों से संबंध हैं। उनकी बेटी की शादी ईसाई रीति-रिवाजों से हुई थी। वहीं उन्होंने सीएम जगन मोहन रेड्‌डी के भी हिंदू विरोधी होने को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं।  टीडीपी सचिव बुच्ची राम प्रसाद ने आरोप लगाया कि वह राजनीति में आने से पहले एक नक्सली कार्यकर्ता थे और उन्होंने अतीत में भगवान वेंकटेश्वर पर निंदनीय टिप्पणी की थी। हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले ऐसे शख्स को तिरुमाला तिरुपति मंदिर ट्रस्ट का अध्यक्ष कैसे बनाया जा सकता है।

सरकार के फैसले से साबित होता है कि इस पद को सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने कटाक्ष किया कि सीएम जगन मोहन रेड्‌डी भी ईसाई होने के चलते कई बार हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचा चुके हैं।  उन्होंने दावा किया कि अध्यक्ष के रूप में पिछले शासन के दौरान भी करुणाकर रेड्डी ने यह घोषणा करके हिंदुओं की भावनाओं को आहत किया था कि तिरुमाला में सात पहाड़ियां नहीं बल्कि केवल पांच पहाड़ियां शामिल हैं। उन्होंने कहा कि भक्तों और हिंदू संगठनों के विरोध के बाद उन्हें पीछे हटना पड़ा था।

आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव और बीजेपी नेता आईवाईआर कृष्ण राव ने भी करुणाकर को अध्यक्ष नियुक्त करने के लिए जगन सरकार की आलोचना की। ट्रस्ट के कार्यकारी अधिकारी के रूप में काम कर चुके राव ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि टीटीडी ट्रस्ट बोर्ड के प्रमुख का पद एक राजनीतिक नियुक्ति बन गया है। उन्होंने कहा, “केवल उन्हीं लोगों को टीटीडी अध्यक्ष नियुक्त किया जाना चाहिए, जिनकी भगवान में असीम आस्था है। उन्होंने कहा कि सरकार को लगता है कि हिंदू संगठनों पर विवादास्पद फैसले लेने पर भी कोई सवाल नहीं उठाएगा।

उन्होंने कहा,”जितनी जल्दी हिंदू धार्मिक संस्थानों के नियंत्रण से सरकार दूरी बनालेगी, हिंदू धर्म के लिए उतना ही बेहतर होगा। वैसे यह दूसरी बार है, जब करुणाकर रेड्डी को अध्यक्ष बनाया गया है। जगन मोहन रेड्डी के पिता वाई एस राजशेखर रेड्‌डी जब आंध्र प्रदेश के सीएम थे, तब उन्होंने 2006-2008 में करुणाकर को ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाया था। अब 15 साल बाद उन्हें फिर से यह मौका दिया गया है। करुणाकर रेड्डी तिरुपति से दो बार (2012 और 2019) विधायक हैं।

उन्होंने वर्तमान अध्यक्ष वाईवी सुब्बा रेड्डी की जगह ली है। वह दो साल के लिए इस पद पर रहेंगे। अध्यक्ष का चयन विशेषज्ञों का एक पैनल करता है। यह पैनल पद के प्रमुख दावेदारों की योग्यता और उनके अनुभव की समीक्षा करता है। इन उम्मीदवारों को विभिन्न व्यक्ति, संगठन या राजनीतिक संस्थाएं नामांकित या अनुशंसित करती हैं। पैनल इन उम्मीदवारों की धार्मिक प्रथाओं के बारे में उनके ज्ञान और समझ का आकलन करता है। इसके अलावा मंदिर और उसके भक्तों की सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का आकलन करता है।

टीटीडी ट्रस्ट प्रमुख मंदिर के मामलों के प्रबंधन और इसके आध्यात्मिक महत्व को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।इसके बाद शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवार का नाम पैनल सरकार को अंतिम मंजूरी के लिए भेजता है। सरकार से मंजूरी मिलने के बाद उसे औपचारिक रूप से टीटीडी ट्रस्ट का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया जाता है।

आंध्र प्रदेश धर्मार्थ और हिंदू धार्मिक संस्थान और बंदोबस्ती अधिनियम, 1987 के तहत टीटीडी को चलाया जा रहा है। यह अधिनियम आंध्र प्रदेश में हिंदू मंदिरों और धर्मार्थ संस्थानों के प्रशासन और प्रबंधन के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है। हालांकि अध्यक्ष की चयन प्रक्रिया का अधिनियम में स्पष्ट रूप से कोई उल्लेख नहीं किया गया है।

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