मोदी सरकार के जनगणना नहीं करने की वजह से 14 करोड़ भारतीय भोजन के अधिकार से वंचित : कांग्रेस

नई दिल्ली , 08  सितंबर (एजेंसी)। कांग्रेस महासचिव और सांसद जयराम रमेश ने कहा कि भारत अपनी बारी से अनुसार 18वें जी20 की अध्यक्षता कर रहा है। जी20 शिखर सम्मेलन की शुरुआत उस विषय पर विचार करने का भी समय है, जो एनडीए(नो डेट अवेलेबल)  सरकार की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक को उजागर करता है। सरकार 2021 में होने वाली दशकीय जनगणना कराने में विफल रही है।

इंडोनेशिया, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे अन्य विकासशील देश सहित, लगभग हर दूसरे जी20  देश कोविड-19 के बावजूद जनगणना कराने में कामयाब रहे हैं। जय राम रमेश ने कहा कि मोदी सरकार इतनी अयोग्य और अक्षम है कि वह 1951 से तय समय पर होने वाली भारत की सबसे महत्वपूर्ण सांख्यिकीय प्रक्रिया को पूरा करने में असमर्थ रही है। यह हमारे देश के इतिहास में एक अभूतपूर्व विफलता है। एक रिपोर्ट के अनुसार जनगणना कराने में मोदी सरकार की विफलता के कारण 14 करोड़ भारतीयों को अनुमानित रूप से उनके भोजन के अधिकार से वंचित कर दिया गया है।

यह संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा नागरिक को गारंटीकृत उनके मौलिक अधिकार से वंचित करन है, जिसे  यूपीए सरकार ने ऐतिहासिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के माध्यम से लागू किया था। जयराम रमेश ने कहा कि मोदी सरकार को पूरे भारत में परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा के रूप में एनएफएसए पर भरोसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा था, जिसने कोविड-19 महामारी के दौरान सबसे ग़रीब लोगों के लिए अतिआवश्यक सुरक्षा जाल प्रदान किया था। एनएफएसए के तहत, 67% भारतीय भोजन के लिए राशन के हक़दार हैं। चूंकि मोदी सरकार 2021 में जनगणना कराने में विफल रही, इसलिए यह 2011 की जनगणना के आधार पर केवल 81 करोड़ लोगों को NFSA कवरेज दे रही है।

हालांकि, जनसंख्या के मौजूदा अनुमान के अनुसार, 95 करोड़ भारतीय NFSA कवरेज के हक़दार हैं। लेकिन नए लाभार्थियों को नहीं जोड़ा जा रहा है। कम से कम दो साल से लोगों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। जुलाई 2022 में, सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर संज्ञान लिया था और मोदी सरकार को जनसंख्या अनुमानों का उपयोग करते हुए इस स्थिति को सुधारने का निर्देश दिया था। लेकिन कोई बदलाव नहीं किया गया। यह बड़ी विफलता न सिर्फ़ सर्वोच्च न्यायालय के प्रति प्रधान मंत्री की अवमानना को दर्शाती है, बल्कि इससे यह भी पता चलता है भारत के लोगों के संवैधानिक अधिकारों से उनका कोई लेना देना नहीं है।

मोदी सरकार न केवल जनगणना कराने में विफल रही है, बल्कि इसने 2011 में UPA सरकार द्वारा कराई गई सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना को भी दबा दिया है। इसने सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार के राज्य-स्तरीय जाति जनगणना के प्रयास का भी विरोध किया। जैसा कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान श्री राहुल गांधी ने हाइलाइट किया था और कांग्रेस अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने 16 अप्रैल, 2023 को प्रधान मंत्री को लिखे एक पत्र में दोहराया, एक अपडेटेड और विश्वसनीय जाति जनगणना होना बेहद महत्वपूर्ण है।

आबादी की गिनती, वर्गीकरण और OBC की बहुसंख्यक आबादी के स्पष्ट विवरण के बिना सभी भारतीयों के लिए पर्याप्त विकास और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना असंभव है। हम दान नहीं बल्कि समानता के सिद्धांत में दृढ़ता से विश्वास करते हैं, जिसके लिए जाति जनगणना आवश्यक है।

मोदी सरकार को जब कोई डेटा अपने नैरेटिव के हिसाब से सही नहीं लगता है तो वह उसे कैसे बदनाम करती है, ख़ारिज करती या यहां तक कि उसे एकत्र करना बंद कर देती है, इसका एक पैटर्न है। ये कुछ सबसे प्रमुख उदाहरण हैं। द नेशनल सैंपल सर्वे (NSS) 2017-18 में आयोजित किया गया था लेकिन मोदी सरकार ने इसे दबा दिया। NSS का बेरोज़गारी से संबंधित डेटा 2019 के चुनावों के बाद तक जारी नहीं किया गया था; उपभोग डेटा अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। NSS की लीक रिपोर्ट से पता चला था कि बेरोज़गारी 45 साल के उच्चतम स्तर पर है और 2011-12 के बाद से ग्रामीण उपभोग व्यय में अभूतपूर्व गिरावट देखी गई है।

NSS ने मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी और ग़लत ढंग से डिजाइन की गई GST के कारण अर्थव्यवस्था के बर्बाद होने की सच्चाई का खुलासा किया। यही कारण है कि अब इसे किसी काम का नहीं छोड़ा गया है। 2024 के चुनावों के बाद तक सरकार द्वारा रोके जाने की संभावना है, जबकि यह जुलाई 2023 में ही पूरा हो गया है। मोदी सरकार स्पष्ट रूप से डरती है कि इससे इसके भारी कुप्रबंधन और ख़राब शासन का पर्दाफाश हो जाएगा। वर्ष 2019-20 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) ने मोदी सरकार के झूठ का पर्दाफ़ाश किया था।

इसमें सामने आया था कि खुले में शौच करना अभी ख़त्म नहीं हुआ है, महिलाओं और बच्चों में एनीमिया का प्रसार बढ़ गया है। स्वास्थ्य संकेतकों में अपने बेहद ख़राब प्रदर्शन से शर्मिंदा होकर, मोदी सरकार ने NFHS का संचालन करने वाले इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज के निदेशक को निलंबित कर दिया; साथ ही NFHS-6 से एनीमिया को मापना भी बंद कर दिया है।

जय राम रमेश ने कहा कि श्रम ब्यूरो के रोज़गार-बेरोज़गारी सर्वेक्षण को 2017 में समाप्त कर दिया गया था; राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2017 में मॉब लिंचिंग पर डेटा एकत्र करना बंद कर दिया; UPA के शासन काल में विकास को कम दिखाने के लिए 2018 में GDP के आंकड़ों में हेरफेर किया गया; मोदी सरकार ने संसद को बताया कि बिना किसी तैयारी के लगाए गए लॉकडाउन के कारण हज़ारों किलोमीटर पैदल चलकर घर जा रहे प्रवासी श्रमिकों की मौत का कोई डेटा नहीं है, COVID-19 योद्धाओं की मौत का कोई डेटा नहीं है, साथ ही किसानों की आत्महत्या का भी कोई डेटा नहीं है।

जयराम रमेश ने कहा कि रोज़गार प्रदान करने में, मॉब लिंचिंग रोकने में, आय में वृद्धि करने में, प्रवासी श्रमिकों और कोविड-19 वॉरियर्स के सम्मान को सुनिश्चित करने या किसानों की आय बढ़ाने में – मोदी सरकार अपनी विफलताओं पर पर्दा डाल रही है।

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