डब्ल्यूपीएल-2023 : दनादन रन झमाझम धन

संदीप भूषण  –

वर्ष 1976 में पहला टेस्ट मैच खेलने वाली भारतीय महिला क्रिकेट टीम को भारतीय क्रिकेट बोर्ड का हिस्सा बनने में तीन दशक का समय लगा और 2006 के करीब भारतीय महिला क्रिकेट संघ का बीसीसीआई में विलय हुआ।हालांकि, खेल में महिलाओं की दावेदारी 2016 के रियो ओलंपिक और 2018 के क्रिकेट विश्व कप प्रदशर्न ने और मजबूत कर दी।

बदलाव की यही जो नींव पड़ी आज महिला प्रीमियर लीग के रूप में बेहतर मुकाम पाने की तरफ बढ़ रही है। छब्बीस मार्च को जिस भी टीम की जीत हो, महिला क्रिकेट इतिहास के लिए यह स्वर्णिम दिन होगा। इस प्रीमियर लीग ने जहां एक तरफ पुरु ष का खेल माने जाने वाले क्रिकेट में महिलाओं की जबरदस्त उपस्थिति दर्ज कराई है, वहीं आर्थिक मोर्चे पर भी कई सफलताएं हासिल कर ली हैं।

लीग के पहले सत्र में ही मीडिया अधिकार पाने की होड़ लगी हुई थी। अंत में रिलायंस के अधिकार वाले बायोकॉम ने 951 करोड़ की बोली लगाकर पांच वर्ष के लिए इसे हासिल किया और प्रति मैच 7.09 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता जताई। यह पहली कामयाबी थी, जिससे समझना आसान हो गया कि क्रिकेट में महिलाएं भी पुरु षों के बराबर पर खड़ी हो सकती हैं।

पुरु ष आईपीएल की शुरु आत में 2008 में सोनी ने मीडिया अधिकार हासिल करने के लिए (2008-17) 8,200 करोड़ रु पये का भुगतान किया था। बाद में जब डिज्नी-स्टार ने मीडिया अधिकार हासिल किए तो 2018 से 2022 के बीच उसका मूल्य दोगुना बढ़कर 16,347.5 करोड़ रु पये यानी प्रति मैच 55 करोड़ रु पये हो गया। यह महिला प्रीमियर लीग के मुकाबले भले ही कम हो, लेकिन शुरु आत बेहतर होने से आगामी सत्रों के लिए उम्मीद तो बढ़ी ही है।

प्रायोजकों ने भी महिला प्रीमियर लीग को हाथों-हाथ लिया है। साफ है कि बीते 15 वर्षो में ब्रांडों के लिए आईपीएल के साथ जुडऩा प्राथमिकता रही है। सभी बड़े ब्रांड अपने टारगेट ऑडियंस तक पहुंचने के लिए इसे सबसे सटीक माध्यम मानते हैं। चूंकि क्रिकेट में पुरुषों का बोलबाला था, पुरुष को ध्यान में रखकर प्रोडक्ट का प्रचार उनकी मजबूरी बन गई थी। अब महिला प्रीमियर लीग ने उनके लिए नया मंच मुहैया कराया है, जहां वे महिलाओं से जुड़े प्रोडक्ट का भी प्रचार-प्रसार कर पाएंगे।

महिलाओं की जरूरतों को पूरा करने वाले कई ब्रांड या तो महिला टीमों के माध्यम से या फिर ब्रॉडकास्टर के माध्यम से टूर्नामेंट से जुड़े हुए हैं। आज हम सौंदर्य प्रसाधन से लेकर आभूषण और यहां तक कि साड़ी के ब्रांड तक क्रिकेटरों को ब्रांड एम्बेसडर बना रहे हैं। तनिष्क, वेगा ब्यूटी, हिमालय फेस केयर आदि रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के प्रमुख प्रायोजकों शामिल हैं, और नवासा व जॉय पर्सनल केयर दिल्ली कैपिटल्स के प्रमुख प्रायोजक हैं। लोटस हर्बल्स मुंबई इंडियंस का प्रमुख भागीदार है।

इससे साफ हो जाता है कि महिला प्रीमियर लीग ने आगामी क्रिकेटरों के लिए भविष्य के राह खोल दिए हैं। महिला खिलाडिय़ों की खेलों में भागीदारी बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें भी खूब मेहनत कर रही हैं। जमीनी स्तर की प्रतिभा को निखारने के लिए खेलों इंडिया जैसे आयोजन हो रहे हैं, तो इंफ्रास्ट्रक्टर के मोर्चे पर भी खूब खर्च किया जा रहा है।

हॉकी और एथलेटिक्स में कॅरियर बनाने की चाह रखने वाली महिला खिलाडिय़ों के लिए ओडि़शा सबसे माकूल जगह बनकर उभरा है। हरियाणा कुश्ती का हॉटस्पॉट बन गया है तो यूपी उत्तर भारत में बैडमिंटन और एथलेटिक्स के साथ क्रिकेट खिलाडिय़ों की फौज तैयार कर रहा है, तो झारखंड तीरंदाजी, बिहार और हिमाचल रग्बी आदि के खिलाड़ी तैयार कर रहे हैं।

हैदराबाद बैडमिंटन में सिरमौर है तो नॉर्थ-ईस्ट मुक्केबाज तैयार कर रहा है।

उत्तर प्रदेश में महिला खिलाडिय़ों के प्रोत्साहन के लिए राज्य सरकार पूरे प्रदेश में खेल प्रतिभाओं को तलाशने की योजना पर काम कर रही है। सरकार इसके तहत शॉर्टलिस्ट की गई महिला एथलीटों को 5 लाख रु पये तक की वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।गौरतलब है कि क्रिकेट में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए आईसीसी ने जब पहली बार अंडर-19 विश्व कप का आयोजन किया तो पूरे टूर्नामेंट में लड़कियों का दमखम देखते ही बन रहा था।

भारत ने खिताब जीता और टीम में वो लड़कियां शामिल थीं, जिन्होंने अभाव में अपने हुनर को निखारा। ग्यारह में से सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश की चार महिला क्रिकेटरों ने अपने प्रदशर्न से मोहित कर दिया।

एक तरफ बुलंदशहर जैसे छोटे कस्बे से आई हरफनमौला पार्श्वी चोपड़ा थीं तो प्रयागराज की फलक नाज और फिरोजाबाद की सोनम यादव ने अपनी मेहनत का लोहा मनवाया। हरियाणा, पश्चिम बंगाल, पंजाब जैसे राज्यों के छोटे से गांव की लड़कियों ने समाज की रूढि़वादी परंपराओं को तोड़कर लैंगिक समानता हासिल करने की लड़ाई लड़ी।

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