अनाथ बच्चों को क्यों नहीं मिल रही प्यार भरी गोद

अनु जैन रोहतगी –
नैशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने आंकड़ों में बताया है कि अप्रैल 2021 से अब तक देश में कोरोना के कारण 10,094 बच्चों के सिर से मां-बाप का साया उठ गया। 1,36,910 बच्चों के मां या पिता कोरोना की भेंट चढ़ गए और 488 बच्चों को अनाथों की तरह छोड़ दिया गया।
इसके बरक्स एक और रिपोर्ट ध्यान देने लायक है कि देश में बच्चों को गोद देने के काम को नियंत्रित करने वाली नोडल एजेंसी ‘सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स एजेंसी'(कारा) की लिस्ट में दिसंबर 2021 तक सिर्फ 1,936 बच्चे ही गोद देने कि लिए उपलब्ध थे जबकि गोद लेने की चाहत रखने वाले कपल्स की लिस्ट 36 हजार तक लंबी है। बता दें कि यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल, दि इंपिरियल कॉलेज ऑफ लंदन और ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी तक ने भारत में कोरोना के कारण अनाथ हुए बच्चों के भविष्य पर चिंता जताई है। एक मार्च 2020 से 30 अप्रैल 2021 तक देश में एक लाख 19 हजार बच्चों ने अपने माता-पिता और रखरखाव करने वाले ग्रैंड पैरंट्स खो दिए।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि पिछले डेढ़-दो सालों में कोरोना के कारण हजारों बच्चों के सिर से मां-बाप का साया उठ जाने के बावजूद इन्हें गोद देने के लिए सही समय पर सरकारी प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई गई? बता दें कि जब कोई भी अनाथ, लावारिस, घर से भागा बच्चा मिलता है तो उसे सबसे पहले उस स्थान की चाइल्ड वेल्फेयर कमिटी के समक्ष पेश किया जाता है। कमिटी पूरी जांच-पड़ताल के बाद उसे देखभाल के लिए अलग-अलग बाल गृहों, अडॉप्शन एजेंसियों में भेजती है। इसके बाद कमिटी निर्णय लेती है कि कौन-कौन से बच्चे कानूनी रूप से गोद दिए जाने की स्थिति में हैं। उन बच्चों को चिह्नित कर उनके लिए प्रमाणपत्र जारी किया जाता है और उसके बाद प्रमाणपत्र और बच्चे के पूरे विवरण को ‘कारा’ की ओर से संचालित बच्चा गोद देने की नोडल लिस्ट में अपलोड किया जाता है।
लेकिन यह प्रक्रिया उतनी सरल नहीं जितनी दिखती है। अगर सरकारी आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि वर्ष 2015 से 2021 के बीच दो साल से कम उम्र के 18,415, दो से चार साल के 1,782, चार से छह साल के 1,398 और छह से आठ साल के 797 बच्चों को गोद दिया गया है। ये संख्याएं अपने आप में ही एजेंसियों के काम पर सवाल खड़ा करती हैं। कोरोना काल में कई कारणों से हालात बद से बदतर हुए हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि पिछले पांच साल के मुकाबले वर्ष 2020-21 में कोरोना के चलते सबसे कम केवल 3,142 बच्चों को गोद दिया गया। गोद देने वाली संस्थाओं का कहना है कि वित्तीय संकट के कारण वे अनाथ बच्चों को अपने यहां जगह नहीं दे सकीं। कुछ संस्थाओं की शिकायत है कि कोरोना काल में उन्हें राज्य सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली।
हैरानी की बात है कि जब एक तरफ देश में अनाथ बच्चों की संख्या इतनी अधिक है तो दूसरी तरफ कानूनी रूप से बच्चा गोद लेने का फैसला करने के बाद भी कपल्स को अमूमन दो-तीन साल का इंतजार करना पड़ जाता है। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि देश में अनाथ, घर से निकाले गए या छोड़ दिए गए बच्चों की देखभाल करने और उनसे जुड़ी सारी जानकारी एकत्र करने के बाद उनका नाम अडॉप्शन पूल लिस्ट में डालने में मदद करने वाली संस्थाएं बहुत कम हैं। सवाल है कि क्या इन संस्थाओं की संख्या या इनका संसाधन बढ़ाने के उपाय क्यों नहीं किए जा रहे।
कोरोना काल ने हमें बहुत सी सीख दी है। एक सीख बच्चों की देखभाल करने में लगी संस्थाओं, अडॉप्शन एजेंसियों, कारा और सरकार को भी लेनी चाहिए कि कोरोना के कारण अनाथ हुए बच्चों को जल्दी से जल्दी एक नया घर-परिवार देने के लिए सिस्टम में सुधार के जरूरी कदम जल्द से जल्द उठाने हैं। इस दिशा में की गई पहल अनाथ बच्चों को एक नया भविष्य देने के साथ बच्चों की किलकारियां और शरारतें सुनने-देखने को तरसते कपल्स के लिए भी वरदान के समान होगी।

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