भरत झुनझुनवाला –
चीन इस समय तीन संकटों से जूझ रहा है। पहला संकट बेल्ट एंड रोड परियोजना या बीआरआई का है। बीते दो दशकों में चीन ने सम्पूर्ण विश्व को माल निर्यात किया है और चीन को भारी मात्रा में आय हुई है। इस रकम का निवेश करना जरूरी था। चीन ने इसका उपयोग बीआरआई में किया है। इससे चीन के निर्यातकों को आसानी होगी क्योंकि चीन का माल दूसरे देशों में आसानी से पहुंच सकेगा। साथ-साथ चीन की निर्माण कंपनियों को भी बड़े ठेके मिलेंगे। लेकिन दूसरे देशों पर बीआरआई का प्रभाव संदिग्ध है। विश्व बैंक के अनुसार चीन से यूरोप को जाने वाली बीआरआई पर कजाखस्तान और पोलैंड में निर्माण की गतिविधियां बढ़ी हैं।
लेकिन बीआरआई में भ्रष्टाचार व्याप्त है। चीन की नौकरशाही द्वारा परियोजनाओं की लागत को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है और पर्याप्त रकम का रिसाव कर लिया जाता है। इस दृष्टि से मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने बीआरआई को ‘नया उपनिवेशवाद’ बताया है। म्यांमार ने कुछ बंदरगाह परियोजनाओं को निरस्त किया है। अन्य तमाम देशों ने परियोजनाओं के आकार में बदलाव की मांग की है। इसलिए बीआरआई के दो परस्पर विरोधी संकेत उपलब्ध हैं। एक तरफ कजाखस्तान और पोलैंड जैसे देशों को लाभ हो रहा है जबकि दूसरी तरफ मलेशिया जैसे देश इसका विरोध कर रहे हैं। इन दोनों परस्पर विरोधी संकेतों के बीच चीन को बीआरआई की सर्जरी करनी होगी, जिसमें केवल कुशल परियोजनाओं को लागू किया जाए और परियोजनाओं में रिसाव पर नियंत्रण किया जाए। फिलहाल चीन यह सर्जरी नहीं कर रहा है। इसलिए बीआरआई पर संकट विद्यमान रहने की संभावना है।
चीन का दूसरा संकट एवरग्रैंड नाम की कंस्ट्रक्शन कंपनी और दूसरी इसी तरह की विशाल कंपनियों का है। इन कंपनियों ने भारी मात्रा में लोन लिए थे। एवरग्रैंड ने भारी मात्रा में बहुमंजिले रिहायशी मकान बनाए लेकिन कोविड संकट के कारण इनकी बिक्री नहीं हो सकी। फलस्वरूप यह कंपनी लोन से दब गई और समय के अनुसार रिपेमेंट नहीं कर पा रही थी। इस तरह की कंपनियों के डूबने से संपूर्ण अर्थव्यवस्था में संकट पैदा न हो, इसलिए शी जिनपिंग ने नियम बनाया कि किसी भी कंपनी को लोन तब ही दिए जायेंगे जब वे तीन शर्तों को पूरा करेंगी।
पहली शर्त थी कि कंपनी की कुल संपत्ति, कंपनी द्वारा लिए गए कुल लोन से अधिक होनी चाहिए। दूसरी शर्त थी कि कंपनी के पास अल्प समय में लोन के रिपेमेंट को जितनी रकम की जरूरत है, उससे अधिक नकद उपलब्ध होना चाहिए। तीसरी शर्त थी कि कंपनी के अपनी पूंजी या शेयर कैपिटल की तुलना में लिया गया लोन कम होना चाहिए। जिन कंपनियों द्वारा इन तीनों शर्तों को पूरा किया जाता था, केवल उन्हीं को बैंक लोन दे सकते थे। एवरग्रैंड इन तीनों ही शर्तों को पूरा नहीं कर सकी। फलस्वरुप एवरग्रैंड को नए लोन नहीं मिल सके। वह लिए गए लोन का रिपेमेंट नहीं कर सकी क्योंकि उसके द्वारा बनाए गए रिहायशी मकान बिक नहीं रहे थे। इस संकट से उबरने के लिए एवरग्रैंड को अपनी संपत्तियों को कम मूल्य पर बेचना पड़ा।
चीन की सरकार ने सार्वजनिक इकाइयों को आदेश दिए कि एवरग्रैंड की संपत्तियों को वे कम दाम पर खरीद सकते हैं। इस प्रकार भारी भरकम लोन से दबी हुई एवरग्रैंड कंपनी को अपनी संपत्तियां बेचकर अपने को हल्का बनाना पड़ रहा है। यदि सरकार इस प्रकार का सख्त कदम नहीं उठाती तो बैंक इस कंपनी को और लोन देते रहते और आने वाले समय में यह बड़े संकट के रूप में संपूर्ण चीन की अर्थव्यवस्था को डुबा सकती थी। इसलिए चीन द्वारा अपनी वित्तीय अर्थव्यवस्था की सर्जरी की गई है, ऐसा मानना चाहिए। यह शुभ संकेत है क्योंकि स्वयं अपने ऊपर लाये गए इस छोटे संकट से चीन अपनी अर्थव्यवस्था को भविष्य में बड़े संकट से बचा सकेगा।
वर्तमान में चीन के सामने तीसरा संकट बिजली का है। इसका कारण यह है कि शी जिनपिंग ने प्रदूषण फैलाने वाले थर्मल संयंत्रों द्वारा वायु के प्रदूषण किए जाने पर रोक लगाई है। कोयले से बिजली उत्पादन करने वाले कई संयंत्र बंद हो गए हैं और बिजली का संकट पैदा हो गया है। नशेड़ी को गुटखा न दिया जाए तो वह पस्त हो जाता है। इसी प्रकार वायु प्रदूषण के नशे में धुत चीन की अर्थव्यवस्था को प्रदूषण पर रोक लगाने से यह संकट पैदा हुआ है। यह भी चीन के लिए शुभ संकेत है। प्रदूषण कम होने से अर्थव्यवस्था मूलत: सुदृढ़ होती है। ऊर्जा का कुशल उपयोग होता है और लम्बे समय में सस्ता माल बनाया जाता है। बिजली महंगी होगी तो बिजली का सदुपयोग होगा और अंत में चीन की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी।
चीन के तीन संकटों में एवरग्रैंड का वित्तीय संकट और पावर कट का संकट इसलिए पैदा हुआ है कि चीन स्वयं अपनी सर्जरी कर रहा है। बीआरआई की सर्जरी फिलहाल चीन करता नहीं दिख रहा है लेकिन यदि इसकी भी सर्जरी करेगा तो चीन उस संकट से भी सुदृढ़ता से निकलेगा। इस परिस्थिति में भारत को चीन द्वारा उठाए गए कदमों से सीख लेनी चाहिए। पहला यह कि अपने देश में थर्मल बिजली संयंत्रों और जल विद्युत परियोजनाओं द्वारा भारी मात्रा में प्रदूषण किया जा रहा है, जिस पर रोक लगाने से हमारी अर्थव्यवस्था कुशल होगी। भारत सरकार फिलहाल सस्ती बिजली के लिए प्रदूषण को छूट दे रही है जो कि अर्थव्यवस्था को डुबाएगी।
फिर भी भारत सरकार ने वित्तीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए सही कदम उठाए हैं। बड़ी संकटग्रस्त कमजोर कंपनियों को भारतीय बैंकों से लोन मिलने कम हो गए हैं और आने वाले समय में वित्तीय संकट भारत पर उत्पन्न नहीं होगा। लेकिन बिजली के क्षेत्र में भारत को चीन की तरह अपनी सर्जरी करनी होगी अन्यथा हम आने वाले समय में चीन से पिछड़ जाएंगे।
लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।