केंद्र को राज्यों और आईएएस अधिकारियों दोनों से परामर्श करके केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में आयी कमी का समाधान करना चाहिए

केएम चंद्रशेखर और टीकेए नायर –
भारतीय प्रशासनिक सेवा सुर्खियों में है, क्योंकि पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा आईएएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति संबंधी नियमों में केंद्र सरकार के प्रस्तावित संशोधनों पर गंभीर आपत्तियां दर्ज करायी गईं हैं। प्रभावी शासन के लिए और सहकारी संघवाद की भावना का सम्मान करते हुए, नियमों में किसी भी बड़े बदलाव के लिए राज्यों के साथ परामर्श किया जाना चाहिए।
आईएएस अधिकारियों की भर्ती, नियुक्ति, उन्हें प्रशिक्षण देने तथा विभिन्न राज्य कैडर में आवंटित करने का कार्य केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, आईएएस अधिकारियों को न केवल अपने राज्य कैडर में बल्कि, केंद्र सरकार में भी, जब भी ऐसा करने के लिए कहा जाये, सेवाएँ प्रदान करने का कार्यादेश दिया जाता है।
केंद्र सरकार में उप सचिव/निदेशक से सचिव तक के वरिष्ठ पदों पर विभिन्न राज्य कैडर से आईएएस अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति एवं अन्य सेवाओं के अधिकारियों, क्षेत्र-विशेष के विशेषज्ञों तथा अन्य अधिकारियों की नियुक्ति होने की उम्मीद की जाती है।
इस प्रकार आईएएस अधिकारी उन राज्य सरकारों, जिनसे वे संबंधित हैं और केंद्र सरकार जो उनकी नियुक्ति प्राधिकारी है, के दोहरे नियंत्रण में होते हैं। आईएएस की योजना और संरचना में केंद्र और राज्य दोनों को- देश के प्रभावी शासन के लिए अधिकारियों की सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाने के लिए शक्ति के विभाजन की परिकल्पना की गई है।
आईएएस अधिकारियों की सेवा शर्तों से संबंधित मामलों में अंतिम अधिकार केंद्र सरकार में निहित है, जिसमें नियुक्ति, स्थानान्तरण और अनुशासनात्मक कार्रवाई शामिल हैं, लेकिन राज्य सरकारों के पास भी प्रासंगिक नियमों के माध्यम से इन मामलों में भागीदारी की भूमिका है।
इसलिए केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित आईएएस कैडर नियमों में बदलाव को हमारी अर्ध-संघीय राजनीति के अंतर्गत केंद्र एवं राज्य सरकारों की संरचना और कामकाज के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा 5 और 12 जनवरी को लिखे दो पत्रों में आईएएस कैडर नियमों में बदलाव करने और कुछ जोडऩे का प्रस्ताव दिया गया है। पहले पत्र में प्रस्ताव है कि राज्य सरकारें केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति के लिए विभिन्न स्तरों पर पात्र अधिकारी उपलब्ध कराएंगी, जिन्हें प्रतिनियुक्ति आरक्षित माना जायेगा। इसकी गणना केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से की जाएगी और असहमति की स्थिति में केंद्र सरकार का विचार अंतिम रूप से मान्य होगा। इसके अलावा, यह राज्य सरकारों को एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर केंद्र सरकार के निर्देश को पूरा करने का कार्यादेश देता है।
12 जनवरी को लिखे पत्र के माध्यम से और आगे जाते हुए, केंद्र ने किसी भी केंद्रीय पद पर नियुक्ति के लिए किसी राज्य में किसी भी आईएएस अधिकारी की सेवाओं को प्राप्त करने का अधिकार अपने पास रखा है, जहां राज्य सरकार निर्धारित समय के भीतर केंद्र के निर्णय को प्रभाव में लायेगी। अधिक बदलाव के साथ यह कहा गया है कि यदि राज्य सरकार केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट अवधि के भीतर इस निर्देश की उपेक्षा करती है, तो अधिकारी (अधिकारियों) को केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट तिथि से कैडर से कार्यभार-मुक्त कर दिया जाएगा।
इन कदमों में जल्दबाजी दिखती है। ऐसा करना जरूरी हो गया, क्योंकि केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले अधिकारियों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गयी है। एक अनुमान के मुताबिक, अनिवार्य आरक्षित वर्ग 2014 के 69 फीसदी से कम होकर 2021 में 30 फीसदी रह गया है।
यह निश्चित रूप से गंभीर कमी को दर्शाता है, लेकिन नियमों में बड़े बदलावों का प्रस्ताव करने के बजाय, भारत सरकार को पहले आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और जांच करनी चाहिए कि केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति अब पहले की तरह लोकप्रिय क्यों नहीं रह गई है।
क्या केंद्र में सेवा की शर्तें राज्यों की तुलना में खराब हो गई हैं, जिससे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति राज्यों में नियुक्त अधिकारियों के लिए कम आकर्षक हो गई है? क्या उच्च स्तर पर पैनल प्रणाली में बदलाव ने उन अधिकारियों के लिए दरवाजे बंद कर दिए हैं जो अन्यथा केंद्र में सेवा के लिए उपलब्ध होते? क्या केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर आईएएस अधिकारियों के सेवा कार्यकाल में अनिश्चितता बढ़ गई है?
भारत सरकार को इस तथ्य से भी अवगत होना चाहिए कि जमीनी स्तर के प्रशासन की जिम्मेदारी राज्यों की होती है। यहां तक कि केंद्रीय योजनाओं को भी बड़े पैमाने पर राज्य सरकारों के माध्यम से लागू किया जाता है। राज्यों से केंद्र में अधिकारियों का मनमाना और अचानक स्थानांतरण राज्य में शासन को कमजोर करते हुए अत्यधिक हानिकारक हो सकता है।
इसके अलावा, गैर-भाजपा राज्य इस बात से चिंतित हैं कि वे अपने संवैधानिक रूप से प्रदत्त शासन करने के अधिकार के गंभीर उल्लंघन के रूप में देखते हैं, जिसमें कुछ औचित्य भी है राज्य संस्थानों के माध्यम से शासन करते हैं, जिनका एक महत्वपूर्ण हिस्सा आईएएस होते हैं।
केंद्र सरकार और गैर-भाजपा राज्य सरकारों के बीच बढ़ते मतभेदों और टकराव के क्षेत्रों की पृष्ठभूमि में, प्रस्तावित संशोधनों पर विवाद टाला जा सकता है।
इसलिए यह अच्छा है कि केंद्र सरकार ने राज्यों के साथ परामर्श की प्रक्रिया शुरू की है। उन्हें अधिकारियों को भी शामिल करते हुए प्रक्रिया को व्यापक करने की सलाह दी जाएगी। इसके बाद राज्य तय करें कि केंद्र में प्रतिनियुक्ति के लिए विभिन्न स्तरों पर आईएएस अधिकारियों की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रस्तावित संशोधन सही दिशा में हैं, या नहीं – इसके साथ ही राज्यों के प्राधिकार, शासन की जिम्मेदारी और कार्यात्मक दक्षता को भी कमजोर नहीं किया जाना चाहिए तथा अधिकारियों पर अनुचित संकट और उनके पारिवारिक जीवन में व्यवधान भी पैदा नहीं होना चाहिए।
अंत में, यह कहा जा सकता है कि समाधान, सहकारी संघवाद में निहित है। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2015 में बर्नपुर में एक समारोह में कहा था, हमारे संविधान ने हमें एक संघीय ढांचा दिया है। अफसोस की बात है कि केंद्र-राज्य संबंध लंबे समय से तनावपूर्ण थे। मैं मुख्यमंत्री रहा हूं, और मैं जानता हूं कि ऐसा नहीं होना चाहिए। इसलिए हमने सहकारी संघवाद पर फोकस रखते हुए बदलाव किये हैं… इसलिए मैं टीम इंडिया कहता हूं… टीम इंडिया के दृष्टिकोण के बिना देश आगे नहीं बढ़ सकता।

(लेखक-केएम चंद्रशेखर, पूर्व कैबिनेट सचिव, भारत सरकार रहे हैं और

टीकेए नायर ने पीएम मनमोहन सिंह के प्रधान सचिव के रूप में कार्य किया है।)

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