म्यांमार से संवाद बनाये रखने की जरूरत

– जी. पार्थसारथी
म्यांमार से संवाद बनाये रखने की जरूरत.हालिया वक्त में दुनिया के ध्यान का केंद्र ज्यादातर अफगानिस्तान में तालिबान शासन द्वारा महिलाओं पर थोपे गए कड़े और क्रूर प्रतिबंधों से उत्पन्न मानवाधिकार हनन पर अधिक रहा है। जिस तरह बाइडेन प्रशासन ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी की बेढंगी योजना बनाई और क्रियान्वित किया है, उससे अमेरिकियों के अंदर खासा रोष है। यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि अमेरिकी सैनिकों के पलायन से दुनिया ने जो अफरातफरी मचते देखी और जिस बेतरतीब तरीके से इसको अंजाम दिया गया, वह सबको चैंकाने और झटका देने वाला रहा है। निकलते समय जैसी जिल्लत अमेरिकी फौज और नागरिकों को झेलनी पड़ी है, उससे अमेरिकी जनता खासतौर पर खफा है। पाकिस्तान के साथ गलबहियां डालने वाली नीति, वह भी उस वक्त, जब आईएसआई तालिबान को सुरक्षित पनाहगारें, हथियार और प्रशिक्षण मुहैया करवा रही हो, इससे कभी न खत्म होने वाला संकट बन चुका है।
अब यह ज्यादातर महसूस किया जा रहा है कि अफगानिस्तान से जल्दबाजी में हुए सैन्य पलायन के पीछे राष्ट्रपति बाइडेन को मिली गलत सलाह है। अमेरिकी लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि अफगानिस्तान पर चढ़ाई, जिसकी कीमत अमेरिकी खजाने को 8 ट्रिलियन डॉलर और कुल मिलाकर लगभग 9०० जानों से चुकानी पड़ी है, उसका अंत क्या इस तरह जलील होकर करना बनता था। जले पर नमक तब और हुआ, जब आईएसआई प्रमुख ने काबुल पहुंचकर अपेक्षाकृत नर्म मुल्ला बरादर के नेतृत्व वाली सरकार में आईएसआई के प्रिय, किंतु कट्टरवादी, हक्कानी परिवार का प्रभुत्व बड़ी आसानी से बनवा डाला। इतिहास में श्दहशत के खिलाफ दुनिया की जंग्य के नाम पर अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज की आमद को अब कूटनीतिक, सैन्य और आर्थिक रूप से एक गलत सलाह पर किए गए दुस्साहस की तरह देखा जाएगा।
वाशिंगटन में संपन्न हुई क्वाड शिखर वार्ता, जो कि अमेरिकी पलायन के बाद जल्द हुई थी, उसमें यूं तो चर्चा का मुख्य विषय उत्तरोतर दबंग होते चीन से पैदा होने वाली चुनौतियों के मद्देनजर हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में आवाजाही को मुक्त, खुला और नियम-प्रचालित बनाने पर था। लेकिन इसमें म्यांमार को लेकर हुई चर्चा भी गौरतलब है। क्वाड ने कहा श्हम म्यांमार में हिंसा बंद करने का आह्वान जारी रखे हुए हैं, पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहाल किया जाए, साथ ही आसियान संगठन के श्पांच सूत्रीय आम समहति वाले समझौता उपायों्य पर अमल किया जाए्य। यह पहली मर्तबा है कि भारत ने अपने किसी पड़ोसी के मानवाधिकार हनन पर विशेष रूप से नाम लेकर की गई ताडना पर अन्य मुल्कों, यहां तक कि अमेरिका का भी, साथ दिया हो।
म्यांमार की भारत के साथ 1640 किमी लंबी थलीय सीमा रेखा है, जो हमारे विद्रोह प्रभावित राज्योंकृ मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश से लगती है। सीमापारीय विद्रोहियों से निपटने में भारत और म्यांमार की सेना के बीच सहयोग दोनों देशों के परस्पर संबंधों का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है। दूसरी ओर, चीन ने म्यांमार से बरतने में श्इनाम अथवा दंड्य की नीति अपना रखी है, गोया वह सेवक हो।
पश्चिमी ताकतों द्वारा संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार को लेकर पेश किए जाने वाले प्रस्तावों पर चीन उसकी ढाल बन जाता है लेकिन बाकी जगह उसके प्रति रवैया मनमानी और दोहन करने वाला है। इसका सीधा संबंध म्यांमार के विद्रोही संगठनों से उसके गहरे नाते से है, इसमें विशेष रूप से शान प्रांत के अत्यधिक हथियारों से लैस यूनाइटेड वास स्टेट आर्मी और अन्य सशस्त्र विद्रोही गुट हैं। म्यांमार पर काबिज सैनिक शासन के खिलाफ मुखालफत लगातार बढ़ रही है, लेकिन चीन पर निर्भरता इस कदर है कि अनेकानेक द्विपक्षीय और राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों पर ज्यादा चीन की चलती है। इसी बीच चीन को म्यांमार से होकर गुजरती अपनी 800 किमी लंबी तेल एवं गैस आपूर्ति पाइप लाइन, जिसका एक छोर बंगाल की खाड़ी में क्याकपऊ बंदरगाह स्थित टर्मिनल में है तो दूजा चीन के युन्नान प्रांत तक है, उसकी विशेष सुरक्षा सुनिश्चित करने को म्यांमार का साथ चाहिए। म्यांमार की सेना को फिलवक्त जितना विरोध अब सहना पड़ा रह है वह उम्मीद से परे है और सौदेबाजी से शांत करना कठिन है।
म्यांमार में जारी हिंसा को लेकर विश्वभर में रंज है, वहीं पड़ोसी आसियान संगठन के देश फौजी निजाम पर लगातार दबाव बढ़ा रहे हैं। आसियान मुल्कों के राष्ट्राध्यक्षों ने श्पांच सूत्रीय आम सहमति वाले समझौता उपाय्य वाला फार्मूला तैयार किया है। इसके तहत हिंसा पर तुरंत रोक, सभी पक्षों को अधिकतम संयम बरतना पहला काम है। साथ ही, नागरिक हित में, शांतिपूर्ण हल हेतु संबंधित पक्षों में रचनात्मक संवाद की शुरुआत करना है। ब्रुनेई के अतिरिक्त विदेश मंत्री एरिवान यूसुफ को म्यामांर मामलों पर आसियान का विशेष दूत नियुक्त किया गया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि टीएस कृष्णमूर्ति ने इसी बीच म्यामांर सरकार से संयम बरतने और आंग सान सू की समेत सभी नजरबंद राजनीतिक कैदियों को रिहा करने की मांग की है। अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने भी इन प्रयासों का स्वागत किया है, जिन्हें दुर्भाग्यवश फौजी शासकों ने रोक रखा है। इस दौरान म्यांमार ने आसियान के विशेष दूत द्वारा आन सान सू की को रिहा करने वाले सुझाव को खारिज कर दिया है।
म्यांमार के हालात जड़ता की ओर अग्रसर हैं, परिणामवश और अधिक जानें जाएंगी, भारत को सुनिश्चित करना होगा कि इन घटनाओं का असर म्यांमार के साथ लगते हमारे इलाकों की शांति और स्थायित्व पर न होने पाए। म्यांमार के सैनिक शासकों द्वारा अपनाए अडियल रुख से आसियान संगठन में गुस्सा और मायूसी है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में म्यांमार के सैनिक शासन पर दंडात्मक उपाय लागू करने वाले प्रस्तावों का न तो चीन और न ही रूस ने समर्थन किया है। इस बीच, यह सुनिश्चित करने को कि म्यांमार में बने हालातों से हमारे उत्तर-पूरबी राज्यों में बड़े पैमाने पर शरणार्थियों की आमद न बनने पाए, भारत को म्यांमार की सरकार से निकट संवाद बनाए रखना होगा।
अगरचे म्यांमार से भागे शरणार्थियों को शरण देनी भी पड़े, तो पूरे मामले से बड़ी संवेदनशीलता से बरतने की जरूरत है। यह बात दिमाग में बनाए रखनी होगी कि म्यांमार भारत के विद्रोहियों के खिलाफ अभियानों में बहुत सहयोग करता आया है लिहाजा भारत की उत्तर-पूरबी सीमा पर शांति और सुरक्षा बनाए रखने को म्यांमार सेना के साथ विमर्श कायम रखना जरूरी है।
आसियान संगठन के राष्ट्राध्यक्ष इस बात को लेकर ऊहापोह में हैं कि जिस तरह उनके शांति प्रस्तावों को म्यांमार ने खारिज किया है और इस राह पर कोई प्रगति नहीं हो पाई, उसके चलते इस महीने के अंत में होने वाले वार्षिक शिखर सम्मेलन में सैनिक शासक को आमंत्रित किया जाए या नहीं। हाल ही में विशेष दूत एरिवान यूसुफ ने एक पत्रकार वार्ता में कहा था कि सैन्य पंचाट ने पहले आसियान के सुझाए पांच सूत्रीय आम सहमति समझौता प्रपत्र पर हामी भरकर अप्रैल माह से अमल करना माना था, लेकिन फिर पीछे हट गया, इसको श्वादे से मुकरना्य माना जाएगा। भारत को आसियान के विशेष दूत और म्यांमार सरकार के साथ निकट संवाद कायम रखते हुए क्षेत्रीय आम सहमति बनाने वाले उपायों पर काम जारी रखना होगा। हमारे पूरबी पड़ोस में स्थायित्व एवं शांति कायम रहे, इसलिए यह करना जरूरी है।

लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।

मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने राज्यवासियों को विजयादशमी की बधाई और शुभकामनाएं दी है

उन्हें कश्मीर के अल्पसंख्यकों के प्रति किया गया कोई भी अपराध दिखाई नहीं देता..?

नाले में गिरते लोग कुम्भकर्णी नीद में रांची नगर निगम अधिकारी

सभी के लिए ब्रॉडबैंड- पीएम गति शक्ति पहल का एक प्रमुख पहलू

*सभी क्षेत्रों में समग्र विकास के लिए डिजिटल कनेक्टिविटी एक महत्वपूर्ण कारक है

*देश भर में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी को मजबूत करना आवश्यक है

*देश के सभी 6 लाख गांवों को आप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) से जोडऩे के लिए भारतनेट

परियोजना लागू की जा रही है

*डिजिटल संचार अवसंरचना के विकास के परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार को बढ़ावा

देना

–  अशोक कुमार मित्तल, हरि रंजन राव

सभी के लिए ब्रॉडबैंड- पीएम गति शक्ति पहल का एक प्रमुख पहलू

राष्ट्रीय अवसंरचना मास्टर प्लान (एनएमपी) जिसे पीएम गति शक्ति कहा जाता है, की घोषणा स्वतंत्रता दिवस पर माननीय प्रधानमंत्री द्वारा की गई थी। यह एक एकीकृत दृष्टि के तहत राजमार्गों, रेलवे, विमानन, गैस, बिजली पारेषण और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सभी उपयोगिताओं और बुनियादी ढांचे की योजना को एकीकृत करने का प्रस्ताव करता है। यह एकल एकीकृत मंच परिवहन और प्रचालन तंत्र के व्यापक और एकीकृत मल्टी-मोडल राष्ट्रीय नेटवर्क को बढ़ावा देने के लिए भौतिक संपर्कों की स्थानिक दृश्यता प्रदान करेगा, जिसका उद्देश्य जीवन में आसानी लाना, व्यवसाय करने में आसानी, व्यवधानों को कम करना और कम लागत में कार्य पूर्ण करने में तेजी लाना है। एनएमपी आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा, विदेशी निवेश को आकर्षित करेगा और देश की वैश्विक प्रतियोगितात्मकता को बढ़ाएगा जिससे वस्तुओं, लोगों और सेवाओं के सुचारू परिवहन को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के अवसर पैदा होंगे। गति शक्ति के शुरू होने और उपयोगिताओं तथा बुनियादी ढांचे के लिए योजना बनाने के लिए एक अधिक समग्र दृष्टिकोण की शुरुआत के साथ, हमारा देश विकास की दिशा में एक और विशाल कदम उठाने और $ 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था में विकसित होने के लिए तैयार होगा।
सभी क्षेत्रों में समग्र विकास के लिए डिजिटल कनेक्टिविटी एक महत्वपूर्ण कारक है। ग्रामीण-शहरी और अमीर-गरीब के बीच डिजिटल अंतर को पाटने और ई-गवर्नेंस, पारदर्शिता, वित्तीय समावेशन और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने के लिए देश भर में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी को मजबूत करना आवश्यक है।
इससे नागरिकों का सामाजिक-आर्थिक विकास होता है। चूंकि ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी सभी बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है, इसलिए राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति – 2018 (एनडीसीपी-2018) डिजिटल संचार बुनियादी ढांचे और सेवाओं को भारत के विकास और कल्याण के प्रमुख कारकों और महत्वपूर्ण निर्धारकों के रूप में मान्यता देती है।

सभी के लिए ब्रॉडबैंड- पीएम गति शक्ति पहल का एक प्रमुख पहलू

एनडीसीपी-18 का एक उद्देश्य सभी के लिए ब्रॉडबैंड प्रदान करना है ताकि व्यापक प्रसार, समान और समावेशी विकास के परिणामी लाभ सभी को मिल सकें। इस नीति का उद्देश्य डिजिटल डिवाइड को प्रभावी ढंग से पाटकर नागरिकों को सशक्त बनाना है। तदनुसार, सभी के लिए ब्रॉडबैंड के परिचालन के लिए, सरकार द्वारा 17 दिसंबर 2019 को राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य डिजिटल संचार बुनियादी ढांचे में तेज बढ़ोतरी को सक्षम करना, डिजिटल सशक्तिकरण और समावेशन के लिए डिजिटल डिवाइड को पाटना और सभी के लिए ब्रॉडबैंड की सस्ती और सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करना है।

2. राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन का लक्ष्य है –

क) पूरे देश में और विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में वृद्धि और विकास के लिए ब्रॉडबैंड सेवाओं तक सार्वभौमिक और समान पहुंच की सुविधा प्रदान करना।
ख) डिजिटल बुनियादी ढांचे और सेवाओं के विस्तार और निर्माण में तेजी लाने के लिए आवश्यक नीति और नियामक परिवर्तनों पर ध्यान देना।
ग) देश भर में ऑप्टिकल फाइबर केबल्स और टावर्स सहित डिजिटल संचार नेटवर्क और बुनियादी ढांचे का एक डिजिटल फाइबर मैप बनाना।
घ) मिशन के लिए निवेश बढ़ाने हेतु संबंधित मंत्रालयों / विभागों / एजेंसियों सहित सभी हितधारकों और वित्त मंत्रालय के साथ काम करना।
ड.) उपग्रह मीडिया के माध्यम से देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए आवश्यक पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने के लिए अंतरिक्ष विभाग के साथ काम करना।
च) विशेष रूप से घरेलू उद्योग द्वारा ब्रॉडबैंड के प्रसार के लिए नवीन प्रौद्योगिकियों को अपनाने को प्रोत्साहित करना और बढ़ावा देना।
छ) मार्ग के अधिकार (राइट ऑफ वे- आरओडब्ल्यू) के लिए नवीन कार्यान्वयन मॉडल विकसित करके संबंधित हितधारकों से सहयोग मांगना।
ज) ओएफसी बिछाने के लिए आवश्यक आरओडब्ल्यू अनुमोदन सहित डिजिटल बुनियादी ढांचे के विस्तार से संबंधित सुसंगत नीतियों के लिए राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के साथ काम करना।
झ) किसी राज्य / केंद्र शासित प्रदेश के भीतर डिजिटल संचार बुनियादी ढांचे और अनुकूल नीति तंत्र की उपलब्धता को मापने के लिए एक ब्रॉडबैंड रेडीनेस इंडेक्स (बीआरआई) विकसित करना।
ञ) डिजिटल संचार अवसंरचना के विकास के परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार को बढ़ावा देना।

3. मिशन के तहत अब-तक की उपलब्धियां इस प्रकार हैं:-

क) 28 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों ने अब तक भारतीय टेलीग्राफ आरओडब्ल्यू नियम, 2016 के साथ अपनी राइट ऑफ वे (आरओडब्ल्यू) नीति को काफी हद तक श्रेणीबद्ध कर दिया है। शेष राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को अपेक्षित श्रेणीबद्ध के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है।
ख) जैसा कि मिशन में परिकल्पित है, सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों ने मिशन के प्रभावी कार्यान्वयन और राज्यों / केंद्र शासित प्रदशों में ब्रॉडबैंड के प्रसार के लिए अपनी राज्य ब्रॉडबैंड समिति का गठन कर दिया है।
ग) देश के सभी 6 लाख गांवों को आप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) से जोडऩे के लिए भारतनेट परियोजना लागू की जा रही है। इस परियोजना के तहत अब तक लगभग 5.48 लाख किलोमीटर ओएफसी बिछाया जा चुका है, लगभग 1.65 लाख ग्राम पंचायतों को सेवा के लिए तैयार (ओएफसी और उपग्रह पर) किया जा चुका है। इसके अलावा, भारतनेट नेटवर्क का उपयोग करके, लगभग 1.04 लाख ग्राम पंचायतों में वाई-फाई हॉटस्पॉट स्थापित किए गए हैं और लगभग 5.14 लाख फाइबर एफटीटीएच कनेक्शन प्रदान किए गए हैं।
घ) देश भर में ब्रॉडबैंड के प्रसार के लिए प्रधान मंत्री वायरलेस एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (पीएम-डब्ल्यूएएनआई) योजना शुरू की गई है। इस योजना के तहत अब तक लगभग 49,000 पीएम-डब्ल्यूएएनआई एक्सेस पॉइंट तैनात किए जा चुके हैं।
ड.) भारत की लगभग 98 प्रतिशत आबादी को 3जी / 4जी मोबाइल नेटवर्क की सुविधा मिल रही है, जिसमें 94 प्रतिशत बसे हुए गांवों में कवरेज शामिल है। वंचित क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए कई यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (यूएसओएफ) योजनाएं हैं, जैसे कि पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए 4404 मोबाइल टावर साइटों की स्थापना के माध्यम से लगभग 5600 गांवों को जोडऩे के लिए व्यापक दूरसंचार विकास योजना, एलडब्ल्यूई-द्वितीय योजना के तहत 4 जी के 2542 टावर, लद्दाख और कारगिल, सीमावर्ती क्षेत्रों और अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में 354 वंचित गांवों में 4जी मोबाइल कनेक्टिविटी, 24 आकांक्षी जिलों में 502 वंचित गांवों को कवर करते हुए 4जी मोबाइल कनेक्टिविटी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 85 वंचित गांवों और एनएच के साथ वाले क्षेत्रों के लिए 4जी मोबाइल कनेक्टिविटी।
च) देश भर में 6.78 लाख से अधिक मोबाइल टावर लगाए गए हैं। 34 प्रतिशत बेस ट्रांसीवर स्टेशनों (बीटीएस) को फाइबरयुक्त किया गया है।
छ) अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह को बढ़ी हुई दूरसंचार कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए चेन्नई और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के बीच सबमरीन ओएफसी कनेक्टिविटी को कमीशन किया गया है।
ज) मेनलैंड भारत (कोच्चि) और लक्षद्वीप द्वीप समूह के बीच 1891 किमी ओएफसी बिछाकर पनडुब्बी ऑप्टिकल फाइबर कनेक्टिविटी की भी योजना बनाई गई है। टेंडर फाइनल होने के बाद प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन के लिए वर्क ऑर्डर दे दिया गया है। इस परियोजना के मई, 2023 तक पूरा होने की संभावना है।
झ) 31 मार्च 2021 को अखिल भारतीय स्तर पर ब्रॉडबैंड उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 778 मिलियन पहुंच गई है, इंटरनेट सब्सक्राइबर्स (प्रति 100 जनसंख्या) की संख्या लगभग 60.7 तक पहुंच गई है और प्रति वायरलेस डेटा ग्राहक प्रति माह औसत वायरलेस डेटा उपयोग 12.33 जीबी तक पहुंच गया है।

4. बहु-क्षेत्रीय प्रभाव:

ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी के आर्थिक प्रभाव कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, वित्तीय और सरकारी सेवाओं जैसी विभिन्न क्षेत्रीय पहलों से जुड़े हुए हैं जैसा कि नीचे चित्र में दर्शाया गया है। हाई स्पीड सर्वव्यापी ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्टिविटी डिजिटल इकोसिस्टम के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवर्तक है जो विकास, आर्थिक परिवर्तन और आय वृद्धि के उद्देश्य से बनाए गए कार्यक्रमों के आवश्यक घटक हैं।
(कनेक्टिविटी का बहुक्षेत्रीय प्रभाव)

(लेखक दूरसंचार विभाग में सलाहकार और 1984 बैच के एक आईटीएस अधिकारी, दूरसंचार विभाग में संयुक्त सचिव और 1994 बैच के एक आईएएस अधिकारी (एमपी कैडर)हैं।)
स्रोत: यूएसएआईडी और इंटेलकैप: इनवेस्टिंग टू कनेक्ट: मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी के वाणिज्यिक अवसर और सामाजिक प्रभाव का आकलन करने के लिए एक ढांचा, 2019.

 

शारदीय नवरात्र पर रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़

न्यू इंडिया व जम्मू-कश्मीर के बेहतर भविष्य के लिए काम कर रहे हैं मोदी सरकार के मंत्री

आम जनता को झटका देने की तैयारी में सरकार, जीएसटी में बढ़ोतरी पर कर रही विचार

 

उन्हें कश्मीर के अल्पसंख्यकों के प्रति किया गया कोई भी अपराध दिखाई नहीं देता..?

*क्या कश्मीर में रहने वाले अल्पसंख्यकों की जान की कोई कीमत नहीं

*क्या वे वहां अल्पसंख्यक नहीं, उनके जीने का कोई अधिकार भी नहीं

*आखिर क्यों नहीं ? धर्म के आधार पर  हत्या की निंदा एक जैसी नफरत से की जानी चाहिए

*जो लोग अल्पसंख्यकों के बहुत ख़ैरख्वाह बनते हैं.

उन्हें कश्मीर के अल्पसंख्यकों के प्रति किया गया कोई भी अपराध दिखाई नहीं देता..?

– क्षमा शर्मा
कश्मीर के एक स्कूल में घुसकर वहां के दो अल्पसंख्यक अध्यापकों सुपिंदर कौर और दीपचंद को धर्म के आधार पर आई कार्ड देखकर मार दिया गया, लेकिन हमारी आंखों में इनके लिए एक आंसू नहीं। उनके लिए कोई हो-हल्ला, विरोध प्रदर्शन कश्मीर के अलावा कहीं और क्यों नहीं। क्या कश्मीर में रहने वाले अल्पसंख्यकों की जान की कोई कीमत नहीं। क्या वे वहां अल्पसंख्यक नहीं, उनके जीने का कोई अधिकार भी नहीं। यदि किसी स्कूल में घुसकर शिक्षकों को इस तरह निशाना बनाया जाएगा तो वहां पढऩे वाले बच्चों और बाकी लोगों का क्या होगा। जिन बच्चों ने अपनी आंखों से इस दहशतगर्दी को देखा होगा, क्या वे कभी इसे भूल पाएंगे।
लखीमपुर खीरी, जहां कई किसानों को दौड़ती गाडिय़ों ने कुचल दिया, उनकी दर्दनाक मौत हो गई, इसके बाद भीड़ ने पीट-पीटकर चार लोगों को मार दिया। इस मॉब लिंचिंग, उनकी जान जाने पर बहुत ज्यादा न तो मीडिया में दु:ख प्रकट किया गया, न ही नेताओं को इसकी याद आई।
पिछले साल हाथरस में एक दलित बच्ची के साथ दरिंदगी हुई। उसके बाद देश भर में बहुत-सी लड़कियां दुष्कर्म जैसे अपराध का शिकार हुईं, आज भी हो रही हैं, लेकिन उनके साथ हुए यौन अपराध भुला दिए गए। क्यों? दुनिया में कहीं भी, किसी को भी, यदि धर्म के आधार पर मारा जाए तो यह बेहद निंदनीय है। लेकिन दुनिया में इस तरह का चुना हुआ शोर और चुनी हुई चुप्पियां शायद ही कहीं देखी गई हों।
लेकिन हम अपने यहां देखते हैं कि जो लोग अल्पसंख्यकों के बहुत ख़ैरख्वाह बनते हैं, जरा-सी बात पर आसमान सिर पर उठा लेते हैं, उन्हें कश्मीर के अल्पसंख्यकों के प्रति किया गया कोई भी अपराध दिखाई नहीं देता। उनकी जान इतनी सस्ती क्यों है।
जब से उस महिला प्रिंसिपल की मृत देह और उस अध्यापक का शव, रोते-बिलखते परिजन देखे हैं, तब से जैसे अस्सी के दशक के पंजाब के दिनों की यादें ताजा हो गई हैं। धर्म पूछकर अल्पसंख्यकों को घरों से निकालकर, पार्कों में, दफ्तरों में, बसों से उतारकर मारा जाता था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में सिखों को मारा गया। सिखों के खिलाफ हिंसा की बात होती है, जो निंदनीय है, लेकिन पंजाब में मारे गए लोगों को भुला दिया जाता है। आखिर क्यों नहीं ? धर्म के आधार पर सबकी हत्या की निंदा एक जैसी नफरत से की जानी चाहिए।
इसी तरह कश्मीर के लोगों की आवाजों को जब भी न सुनने की शिकायत की जाती है, तब वे नब्बे हजार से अधिक कश्मीरी पंडित जो आज भी बेघरबार हैं, उनकी आफतें क्यों नजर नहीं आतीं। वे भी तो कश्मीर में अल्पसंख्यक ही थे। कई कश्मीरी पंडित महिलाएं, जो इन दिनों विदेश में रहती हैं, उनकी दर्दनाक कहानियां सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
कश्मीर में बहुसंख्यकों के हाथों मारे गए लोगों को कोई अल्पसंख्यक तक नहीं कहता। क्यों भई? यह कैसे तय किया कि हिन्दू अगर मारे जाएं तो उनकी जान की कोई कीमत ही नहीं। हिन्दुओं की बात करने, उनके प्रति हुए अपराधों को रेखांकित करने भर से ऐसे लोगों को साम्प्रदायिक कहना, क्या यही धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा है! ऐसी बातें कश्मीर की हत्याओं के बाद भी सुनाई दीं, आखिर क्यों? क्या उनका घर, परिवार, जीने का अधिकार किसी और से कम है। क्या उनके वोट इन नेताओं को नहीं चाहिए। क्या एकपक्षीय विमर्श चलाने वाले चैनल्स के दर्शक ये लोग नहीं हैं। इतनी सलेक्टिव चुप्पियां किस काम की हैं। किस न्याय को दिलाती हैं। न्याय की यह परिभाषा भी कितनी शर्मनाक है कि जान की कीमत वोटों के गुणा-भाग से तय की जाए। जो काफिले लखीमपुर खीरी की तरफ दौड़े, क्या वे कश्मीर की तरफ इसलिए नहीं दौड़ेंगे कि अभी वहां चुनाव नहीं हैं। बिहार के दलित गोलगप्पे वाले वीरेंद्र पासवान को मार दिया गया, उसकी मौत पर औरों के साथ दलित नेताओं ने भी चुप्पी साध ली, क्यों भला? हर बात पर अगर वोटों का हिसाब लगाया जाएगा तो एक दिन ऐसा आएगा कि वोट पाने लायक भी नहीं रहेंगे। और मीडिया का जो वर्ग एकपक्षीय नैरेटिव दिखाकर संतोष पा लेता है, वह खत्म हो जाएगा। अतीत में हमने ऐसा होते देखा है। इतिहास स्वयं को दोहराता है, ऐसा सब कहते हैं, लेकिन इतिहास की गलतियों से शायद ही कोई सबक लेता है। वरना तो एक जान का जाना, एक वोट का जाना भी है। यही नहीं, अगर किसी की मौत पर आंसू बहाए जाएं और किसी की मौत पर मुंह छिपा लिया जाए तो यह न समझा जाए कि लोग इस तरह के अवसरवाद को भूल जाते हैं। हां, वे तात्कालिक प्रतिक्रिया न दे पाएं, क्योंकि साधारण आदमी वह सेलिब्रिटी नहीं होता, जिसके पीछे सैकड़ों कैमरे भागते हों। और उसकी बात दिखाने को महत्व देते हों।
नैरेटिव कुछ इस तरह से गढ़ लिया गया है- अगर मंत्रिमंडल में एक ब्राह्मण, एक दलित, एक ओबीसी, एक मुसलमान, एक सिख, एक ईसाई को रख लिया जाए तो यह समावेशी सरकार होगी और सारे वोट झोली में आ जाएंगे। ऐसे गुणा-भाग देखकर हंसी आती है। क्या अतीत में नेहरू को सारे ब्राह्मणों ने ही वोट दिया होगा या कि मोदी को सारे ओबीसीज ने। इस तरह का नैरेटिव गढऩे में चैनल्स पर आने वाले महान बुद्धिजीवियों और सैफोलोजिस्ट की बड़ी भूमिका है, जो अक्सर जाति-धर्म के आधार पर जीत-हार का गणित तय करते हैं। वे मनुष्य के अपने बुद्धि-विवेक को जाति और धर्म के तराजू पर तोलते हैं। रही-सही कसर जातिवादी और धर्मवादी राजनीति ने पूरी कर दी है। इसीलिए विमर्श अब यहां तक आ पहुंचा है कि जब बोलें तब अपनी जाति-धर्म के लिए ही बोलें। कहीं तो आपको अल्पसंख्यकों के अधिकार हनन होने पर दौड़-भाग की प्रतियोगिता, नेताओं, बुद्धिजीवियों के बयान-दर-बयान आते दिखें और कहीं मौन ओढ़कर चुपके से निकल लिया जाए।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

पैंडोरा पेपर्स से जुड़े नाम सामने लाए जाएं

*भारत के 380 खाते पकड़े गए हैं

*उद्योगपति और व्यापारी तो सिर्फ टैक्स बचाने के लिए अपना पैसा इन देशों में छिपाते हैं

*लेकिन नेता, अफसर, तस्कर, आतंकवादी और अपराधी

अपना अनैतिक और अवैधानिक तरीकों से अर्जित धन वहां छिपाते हैं

*जो उद्योगपति खुद को दिवालिया घोषित कर चुके हैं, उनके भी वहां करोड़ों-अरबों रुपये पाए गए हैं

वेद प्रताप वैदिक
अब से 5-6 साल पहले ‘पनामा पेपर्स’ ने सारी दुनिया में तहलका मचा दिया था, अब उससे भी बड़ा भंडाफोड़ हुआ है- ‘पैंडोरा पेपर्स’। ‘पनामा पेपर्स’ से तो पनामा नामक देश की वजह से जाने गए, लेकिन ‘पैंडोरा पेपर्स’ तो पैंडोरा नामक मिथकीय यूनानी महिला पैंडोरा के नाम से जाने जा रहे हैं। यूनानी देवता प्रोमिथियस ने पैंडोरा नामक परम सुंदरी को एक ऐसा बक्सा भेंट किया था, जिसमें दुनिया की सारी बुराइयां छिपा रखी थीं। विदेश में दुनिया के अमीरों ने जो मिल्कियत छुपा रखी है, उसकी जानकारी एक खोपत्रकार संगठन लेकर आया है। जिन दस्तावेजों की जानकारी इस संगठन ने सार्वजनिक की है, उसे ही ‘पैंडोरा पेपर्स’ कहा जा रहा है।
पनामा पेपर्स में क्या हुआ
इस खोपत्रकार संगठन ने 14 कंपनियों के लगभग सवा करोड़ दस्तावेजों की जांच करके 2900 बैंक-खातों को पकड़ा है। इन खातों में गरीब और अमीर देशों के सैकड़ों लोगों ने 130 बिलियन डॉलर जमा कर रखे हैं। जमा करने वाले ये लोग कौन हैं? इनमें कई देशों के बादशाह, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, नेता और उद्योगपति तो हैं ही, उनके साथ कई आतंकवादी, तस्कर, फौजी, सरकारी अधिकारी, फिल्मी और खिलाड़ी लोग भी शामिल हैं। अगर भारत के 380 खाते पकड़े गए हैं तो पाकिस्तान के 700 से भी ज्यादा खाते विदेशी बैंकों में पकड़े गए हैं।
ये खाते अपने-अपने देशों में नहीं हैं। विदेशों में हैं। कुछ अपने नाम से हैं। कुछ फर्जी नाम से हैं और कुछ न्यासों (ट्रस्टों) और कंपनियों के नामों से हैं। अधिकतर खाते ऐसे छोटे-मोटे देशों में हैं, जिनके नाम भी आपने कभी नहीं सुने होंगे। जैसे बहामा, सेंट किट्स, सेंट बार्थालेमी, वनातूआ, वर्जिन आइलैंड, नौरू, बरमूडा आदि। इन देशों में लोग अपना धन इसलिए छिपाते हैं कि एक तो उन्हें वहां आयकर नहीं देना पड़ता और दूसरा कारण यह है कि उनकी गोपनीयता बनी रहती है। किसी को पता ही नहीं चलता कि किसका पैसा कहां छिपा हुआ है।
उद्योगपति और व्यापारी तो सिर्फ टैक्स बचाने के लिए अपना पैसा इन देशों में छिपाते हैं लेकिन नेता, अफसर, तस्कर, आतंकवादी और अपराधी अपना अनैतिक और अवैधानिक तरीकों से अर्जित धन वहां छिपाते हैं। इसीलिए जब कुछ भारतीय अखबारों में कुछ उद्योगपतियों और खिलाडिय़ों के नाम उजागर हुए, तो उन्होंने सफाई पेश करनी शुरू कर दी। जो उद्योगपति खुद को दिवालिया घोषित कर चुके हैं, उनके भी वहां करोड़ों-अरबों रुपये पाए गए हैं।
बीजेपी सरकार ने इस तरह के खाताधारियों के विरुद्ध 2015 में कड़े कानून बनाए थे। लेकिन क्या वजह है कि अभी तक न तो पनामा पेपर्स के दोषियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई हुई है और न अभी तक ‘पेंडोरा पेपर्स’ के नामों को उजागर किया गया है। जो कुछ नाम एक भारतीय अंग्रेअखबार ने उजागर किए हैं, उनमें भी न नेताओं के नाम हैं, न आतंकवादियों के और न ही अफसरों के। जिसका भी खाता इन विदेशी बैंकों में हो, उसका नाम बताने में संकोच की जरूरत क्या है? सांच को आंच कैसी? जरा मालूम तो पड़े कि भारतीयों के 20 हजार करोड़ डॉलर वहां जमा हैं तो किसके कितने हैं?
जरा गौर करें कि पाकिस्तान के दर्जनों नेताओं, मंत्रियों, फौजियों, अफसरों और दलालों के नाम उजागर हो चुके हैं, लेकिन भारतीयों के नाम पता नहीं चल रहे। इसका कारण यह भी हो सकता है कि अगर नेताओं और अफसरों के नाम उजागर हो गए तो शायद किसी भी पार्टी की कमीज सफेद न पाई जाए। पूरे कुएं में ही भांग पड़ी हुई है। बोफोर्स के लेन-देन में चाहे असली लोग बच गए, लेकिन लोगों को पता चल गया कि राजनीति लंबे-चौड़े लेन-देन के बिना चल ही नहीं सकती। पैंडोरा पेपर्स कांड में सामने आए पाकिस्तानी नामों से यह तर्क अपने आप सिद्ध हो जाता है।
विदेशी बैंकों में यह पैसा नेता और अफसर लोग इसलिए छिपाते हैं कि इसका पता किसी को भी नहीं चले। यदि यह पैसा उसी तरह भारत में भी छिपाकर रख सकते हों तो शायद टैक्स भरने में भी उन्हें कोई एतराज न हो, क्योंकि उनके सैकड़ों विश्वसनीय अनुयायियों के नाम से वे खाते खोलकर टैक्स बचा सकते हैं, लेकिन वे अपने साथियों को भी इस गुप्त धनराशि का सुराग नहीं लगने देना चाहते।
लेकिन व्यापारियों और उद्योपतियों को यदि आयकर भरने का डर न हो तो उन्हें अपनी कमाई छिपाने का कोई कारण नहीं है। दुनिया के 23 देश ऐसे हैं, जिनमें आयकर नाम की कोई चीज ही नहीं है। लेकिन अधिकतर वे सभी छोटे-छोटे देश हैं। उनके सरकारी खर्च भी कम हैं, मगर भारत-जैसे बड़ी जनसंख्या वाले और विशाल देश की सरकार यथेष्ट आमदनी के बिना कैसे चल सकती है? अपनी यथेष्ट आमदनी की खातिर ही इंदिरा-राज में आयकर की दर लगभग गलाघोंटू बन गई थीं। अब भी सरकार को आयकर से हर साल लगभग 11-12 लाख करोड़ रुपये मिलते हैं। यदि सब लोग अपना आयकर ईमानदारी से भरें तो सरकार की आमदनी डेढ़ी-दुगुनी हो सकती है।
आयकर नहीं भरने या बचाने की इच्छा ही काले धन की जननी है। इस काले धन को खत्म करने के लिए ही मोदी सरकार ने नोटबंदी का जबर्दस्त कदम उठाया था, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। नोटबंदी का विचार जिन लोगों ने चलाया था, उनकी सारी शर्तें सरकार लागू कर देती तो शायद कालेधन पर लगाम लग सकती थी। लेकिन अब काला धन रखना ज्यादा आसान हो गया है। एक हजार का नोट खत्म किया, लेकिन सरकार ने उसकी जगह दो हजार का नोट चला दिया। नोट बदलवाने की लाइनों में खड़े सैकड़ों लोगों ने दम तोड़ दिया। नए नोट छापने में हजारों करोड़ रुपये नए सिरे से खर्च हो गए।
बैंकिंग लेन-देन पर टैक्स!
यदि सरकार 100 रुपये को डॉलर की तरह सबसे बड़ा नोट बनाए, बैंकिंग को बढ़ावा दे और बैंक के लेन-देन पर नाम मात्र का टैक्स लगाए तो उसके पास आयकर से भी बड़ा पैसा जमा हो सकता है। इसके अलावा आयकर से ज्यादा वह जायकर (खर्च पर टैक्स) पर जोर दे तो सरकारी खजाना भर जाएगा। मालदार और मध्यमवर्गीय लोग फिजूलखर्ची कम करेंगे और उससे भारी बचत होगी। बचत का यह पैसा उद्योग-धंधों में लगेगा और करोड़ों नए रोजगार पैदा होंगे। लोग अपने धन को छिपाने से बाज आएंगे। जब धन काला नहीं होगा तो उसे वे छिपाएंगे क्यों? विदेशी बैंकों में पैसा छिपाने की कोशिश अपने आप अनावश्यक हो जाएगी और भारत का भद्रलोक उपभोक्तावाद की चक्की में पिसने से भी बचेगा।

 

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संकल्प से सिद्धि के सूत्रधार नरेंद्र मोदी

– पीयूष गोयल
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामी विवेकानंद के सपनों के अनुरूप भारत को जगद्गुरु और विश्वशक्ति बनाने की सोच के साथ संकल्पों को सिद्धि तक पहुंचाने का बेजोड़ काम किया है। गुजरात के मेहसाना शहर के छोटे से गाँव वडनगर में अभाव में पैदा हुआ एक बालक कैसे साहस, परिश्रम और दूरदर्शी सोच के बल पर दुनिया के लिए रोल मॉडल बन गया, ये मोदी की प्रेरक जीवन गाथा सिद्ध करती है।
युवा अवस्था में नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े व 1972 में संघ प्रचारक का दायित्व मिला तो पूरे उत्साह से राष्ट्र और समाज कल्याण के मिशन में जुट गए। महात्मा गांधी के ‘ग्राम स्वराज्यÓ और सरदार वल्लभभाई पटेल की कार्यशैली से प्रेरणा ली और लगातार आगे बढ़ते गए। राष्ट्र प्रथम और सेवाधर्म के संस्कार लेकर नरेंद्र मोदी ने निरंतर परिश्रम, जनसेवा और अपनी क्षमता के बल पर प्रत्येक भूमिका को सफलता से निभाया है। 13 वर्ष गुजरात के मुख्यमंत्री और पिछले 7 वर्षों से देश के प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने सार्वजनिक जीवन में जनसेवा के दो दशक पूरे कर लिए हैं जो 135 करोड़ भारतीयों का उनके प्रति भरोसा और प्यार बताता है।
7 अक्टूबर 2001 को नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार सम्भाला और अपने कार्य के बल पर राज्य के विकास पुरुष बन गए। ‘गुजरात मॉडलÓ की देश के अंदर ही नहीं विदेशों में भी बहुत चर्चा हुई। पूरे 13 वर्ष गुजरात में विकास व समृद्धि लाने के साथ-साथ 6 करोड़ गुजरातियों का दिल जीतने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर मोदी की लोकप्रियता लगातार बढ़ती गयी। भारत की सजग जनता ने अपने नेता को स्वीकारा भी और सराहना भी की। जब प्रधानमंत्री मोदी ने देश का नेतृत्व सम्भाला तो उन्हें विरासत में एक कमजोर अर्थव्यवस्था मिली व घोटालों के कारण सरकार जनता का विश्वास खो चुकी थी। इन सब चुनौतियों को स्वीकारते हुए प्रधानमंत्री ने अपने निर्णायक नेतृत्व और दृढ़ निश्चय का परिचय दिया। सोच यह थी कि बिना भेदभाव के सरकार की योजनाओं का लाभ गरीब से गरीब व्यक्ति को भी मिल जाए।
सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास आज केवल एक नारा बनकर नहीं रह गया बल्कि कश्मीर से कन्याकुमारी और कामरूप से कच्छ तक एक नए भारत में जीवंत होता दिखाई दे रहा है। किसी ने नहीं सोचा था कि जम्मू कश्मीर में धारा 370 को हटाया जा सकता है। परंतु राष्ट्र हित में उठाया गया यह कदम केन्द्रशासित जम्मू-कश्मीर राज्य में आज शान्ति, समृद्धि और विकास की एक नयी गाथा लिख रहा है।

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देश को कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से बचाने के साथ मोदी के नेतृत्व में आत्मविश्वास और पर्याप्त संसाधन उपलब्ध करवाये गए। आत्मनिर्भर भारत के नारे को साकार करने का श्रेय प्रत्येक भारतवासी को उतना ही जाता है जितना उनके प्रिय नेता नरेंद्र मोदी को। आज देश में 70 प्रतिशत आबादी को कोरोना वैक्सीन की पहली डोज लगने के साथ वैक्सीनेशन का आंकड़ा 92 करोड़ तक पहुँच गया है, जो सारी दुनिया को अचरज में डाल रहा है। यह सफलता प्रत्येक डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्यकर्मी के साथ देश की जनता की भी है जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी सोच पर अमल कर पूरे विश्व को भारत की ताक़त का अदभुत परिचय दिया। यही नहीं कोरोना काल में देशभर में लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों को राशन और उनके खातों में पैसे पहुंचाने का जो कार्य मोदी ने किया उसे सारी दुनिया ने सराहा है। कोरोना काल में प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना के अंतर्गत 80 करोड़ जरूरतमंदों को मुफ्त राशन एक साल से अधिक अवधि से दिया जा रहा है।
पिछले 7 वर्षों में मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने जनहित से जुड़ी जो विकास योजनाएँ प्रभावी तरीके से लागू की हैं वो सबके सामने हैं। पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन को ज़मीन पर उतारने का काम नरेंद्र मोदी ने शुरू करवाया। जनता के कल्याण से जुडी जो दूरगामी योजनायें उन्होंने शुरू की वह कुछ समय के लिए और कुछ लोगों के लिए नहीं बल्कि बड़ी संख्या में एक लम्बे समय के लिए तैयार हुईं। क्या हम यह कल्पना कर सकते हैं कि अगर बड़ी संख्या में जन धन खाते नहीं खोले गए होते, या आधार, डी बी टी और डिजिटल ट्रांजैक्शन बड़े पैमाने पर शुरू ना होते, या आयुष्मान भारत के माध्यम से इलाज की सुविधा ना मिल पाती तो कोरोना काल में देश इस संकट से किस तरह जूझता? ऐसा लगता है मानों प्रधानमंत्री देश पर आने वाले संकट से निपटने के लिए पहले ही योजनाओं का क्रियान्वयन कर रहे थे।
चाहे वह ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओÓ अभियान हो या फिर अँधेरे में डूबे देश के 18,000 गांवों में बिजली पहुंचाने का मिशन, या फिर धुआंमुक्त रसोई के लिए उज्ज्वला योजना, सभी योजनाओं का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन मोदी द्वारा जनभागीदारी से किया गया। साथ ही किसानों के विकास के लिए पीएम किसान सम्मान निधि, जल जीवन मिशन के माध्यम से 2024 तक हर घर तक नल से जल पहुंचाने का लक्ष्य इत्यादि योजनायें प्रधानमंत्री के दूरदर्शी विजन और देश के गाँव और हर गरीब के प्रति संवेदना का प्रमाण हैं। देश के प्रत्येक वर्ग चाहे किसान हो या जवान, डॉक्टर हो या वैज्ञानिक, खिलाड़ी हो या कलाकार सबके साथ संवाद और सबकी प्रतिभा तथा शक्ति को भारत की प्रगति से जोडऩे का काम नरेंद्र मोदी ने किया है। चुनावी नारों और वादों के बजाय देश के अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क, संचार, रोटी, कपड़ा, मकान, चूल्हा गैस और शौचालय उपलब्ध करवाने के साथ हर एक के जीवन को सुधारने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदैव तत्पर दिखाई देते है।
24 घंटे केवल देश और देशवासियों के विकास के लिए तत्पर ‘कर्मयोगीÓ प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी परिश्रम व जन संवेदना के बल पर रात-दिन बिना रुके बिना थके सक्रिय हैं। वैश्विक स्तर पर 135 करोड़ भारतीयों की आशाओं व आकांक्षाओं को पूरा करने में जुटे सर्वप्रिय नेता नरेंद्र मोदी भारत के हर संकल्प को सिद्धि तक पहुँचाने के सूत्रधार बनकर उभरे हैं।
(लेखक भारत सरकार में वाणिज्य एवं उद्योग, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण और वस्त्र मंत्री हैं)

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