*प्रमोद भार्गव*
सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू कश्मीर में विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। इसी के साथ इस केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव कराने के रास्ते की बड़ी बाधा दूर हो गई।अब चाहे तो केंद्र सरकार वहां चुनाव कराने का फैसला ले सकती है। न्यायालय ने यह भी साफ कर दिया है कि परिसीमन पर प्रतिबंध से इंकार वाले इस निर्णय का जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून-2019 की वैधानिकता को चुनौती देने वाले प्रकरण की सुनवाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसी परिप्रेक्ष्य में धारा -370 को शून्य किए जाने के केंद्र के फैसले के विरु द्ध शीर्ष अदालत की संविधान पीठ में अलग सुनवाई चल रही है। यह फैसला न्यायमूर्ति एसके कौल एवं एएस ओका की पीठ ने हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू की याचिका पर दिया है।
जम्मू-कश्मीर के बंटवारे और विधानसभा सीटों के विभाजन संबंधी पुनर्गठन विधेयक-2019, 31 अक्टूबर, 2019 को लागू कर दिया गया था। विधि एवं न्याय मंत्रालय ने 6 मार्च, 2020 को परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा-3 के तहत इसके पुनर्गठन की अधिसूचना जारी की थी। इसी में शीर्ष अदालत की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग के गठन की बात कही गई थी। इसे भंग करने वाली याचिका में दावा किया गया था कि परिसीमन की कवायद संविधान की भावनाओं के विपरीत है।
खैर, इसके लागू होने के बाद राज्य की भूमि ही नहीं, राजनीति का भी भूगोल बदल गया। सही मायनों में परिसीमन से भौगोलिक, सांप्रदायिक और जातिगत असमानताएं तो दूर हुई ही, अनुसूचित जाति/जनजातियों के लिए सीटें भी आरक्षित कर दी गई हैं। जब भी राज्य में चुनाव होगा, इसी रिपोर्ट के मुताबिक होगा क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने आयोग के गठन की वैधता को सही ठहराया है। जम्मू-कश्मीर का करीब 60 प्रतिशत क्षेत्र लद्दाख में है। इसी क्षेत्र में लेह आता है, जो अब लद्दाख की राजधानी है।
यह क्षेत्र पाकिस्तान और चीन की सीमाएं साझा करता है। लगातार 70 साल लद्दाख, कश्मीर के शासकों की बदनीयति का शिकार रहा है। अब तक यहां विधानसभा की मात्र चार सीटें थीं, इसलिए राज्य सरकार इस क्षेत्र के विकास को तरजीह नहीं देती थी। लिहाजा, आजादी के बाद से ही इस क्षेत्र के लोगों में केंद्र शासित प्रदेश बनाने की चिंगारी सुलग रही थी। अप इस मांग की पूर्ति हो गई है।
इस मांग के लिए 1989 में लद्दाख बुद्धिस्ट एसोशिएशन का गठन हुआ और तभी से यह संस्था कश्मीर से अलग होने का आंदोलन छेड़े हुए थी। 2002 में लद्दाख यूनियन टेरिटरी फ्रंट के अस्तित्व में आने के बाद इस मांग ने राजनीतिक रूप ले लिया था। 2005 में इस फ्रंट ने लेह हिल डवलपमेंट काउंसिल की 26 में से 24 सीटें जीत ली थीं। इस सफलता के बाद इसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इसी मुद्दे के आधार पर 2004 में थुप्स्तन छिवांग सांसद बने। 2014 में छिवांग भाजपा उम्मीदवार के रूप में लद्दाख से फिर सांसद बने। 2019 में भाजपा ने लद्दाख से जमयांग सेरिंग नामग्याल को उम्मीदवार बनाया और वे जीत गए। लेह-लद्दाख क्षेत्र विषम हिमालयी भौगोलिक परिस्थितियों के कारण साल में छह माह लगभग बंद रहता है।
सड़क मागरे और पुलों का विकास नहीं होने के कारण यहां के लोग अपने ही क्षेत्र में सिमट कर रह जाते हैं। जम्मू-कश्मीर में अंतिम बार 1995 में परिसीमन हुआ था। राज्य का विलोपित संविधान कहता था कि हर 10 साल में परिसीमन जारी रखते हुए जनसंख्सा के घनत्व के आधार पर विधानसभा और लोक सभा क्षेत्रों का निर्धारण होना चाहिए।
इसी आधार पर राज्य में 2005 में परिसीमन होना था लेकिन 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने राज्य संविधान में संशोधन कर 2026 तक इस पर रोक लगा दी थी। बहाना बनाया कि 2026 के बाद होने वाली जनगणना के प्रासंगिक आंकड़े आने तक परिसीमन नहीं होगा। परिसीमन से पहले जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की कुल 111 सीटें थीं।
इनमें से 24 सीटें पीओके में आती हैं। इस उम्मीद के चलते ये सीटें खाली रहती हैं कि एक न एक दिन पीओके भारत के कब्जे में आ जाएगा। बाकी 87 सीटों पर चुनाव होता है। अब तक कश्मीर यानी घाटी में 46, जम्मू में 37 और लद्दाख में 4 विधानसभा सीटें हैं। 2011 की जनगणना के आधार पर राज्य में जम्मू संभाग की जनसंख्या 53 लाख 78 हजार 538 है।
यह प्रांत की 42.89 प्रतिशत आबादी है। राज्य का 25.93 फीसदी क्षेत्र जम्मू संभाग में आता है। इस क्षेत्र में विधानसभा की 37 सीटें आती हैं। दूसरी तरफ कश्मीर घाटी की आबादी 68 लाख 88 हजार 475 है। प्रदेश की आबादी का यह 54.93 प्रतिशत भाग है। कश्मीर संभाग का क्षेत्रफल राज्य के क्षेत्रफल का 15.73 प्रतिशत है। यहां से कुल 46 विधायक चुने जाते थे।
इसके अलावा राज्य के 58.33 प्रतिशत वाले भू-भाग लद्दाख संभाग में महज 4 विधानसभा सीटें थीं, जो अब लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद विलोपित कर दी गई हैं। साफ है, जनसंख्यात्मक घनत्व और संभागवार भौगोलिक अनुपात में बड़ी असमानता थी, जनहित में इसे दूर किया जाना, जिम्मेवार सरकार की जिम्मेवारी बनती थी। केंद्र सरकार द्वारा गठित आयोग ने यह असमानता दूर करके संविधान और लोकतंत्र, दोनों की रक्षा की है।
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