मानव कल्याण ही धर्म का अंतिम लक्ष्य

सीताराम गुप्ता
कहा गया है कि धर्म एव हतो हंति धर्मो रक्षति रक्षित: अर्थात् मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश करता है और रक्षित किया हुआ धर्म अपने रक्षक की रक्षा करता है। सामान्य जीवन में भी यदि कोई किसी व्यक्ति का वध कर देता है तो मृतक पक्ष के लोग उसका वध करने के लिए पागल हो उठते हैं और कई बार परस्पर प्रतिशोध लेने का ये सिलसिला कई पीढिय़ों तक चलता रहता है। यदि हम किसी व्यक्ति की सहायता करते हैं या किसी के जीवन की रक्षा करते हैं तो वो भी हमारी सहायता करने अथवा हमारे जीवन की रक्षा करने के लिए हमेशा तत्पर रहता है। धर्म की भूमिका भी बिल्कुल ऐसी ही होती है। धर्म की रक्षा करने अथवा एक बार स्वयं में धर्म स्थापित करने के उपरांत धर्म सदैव हमारी रक्षा करता रहता है।
इसी प्रकार से यदि हम सुरक्षा के नियमों का पालन करते हैं तो वे नियम हर हाल में हमारी सुरक्षा करने में सक्षम होते हैं लेकिन यदि हम सुरक्षा के नियमों को तोड़ते हैं तो हमारा जीवन संकट में पड़ जाता है। कई बार हम देखते हैं कि किसी नदी अथवा झील के किनारे बोर्ड लगा होता है कि यहां नहाना अथवा पानी में जाना मना है। यदि हम इस नियम का पालन करते हैं तो ये नियम हमारी रक्षा करता है लेकिन यदि हम इस नियम को तोड़कर पानी में चले जाते हैं तो बहुत संभव है कि हम डूब जाएं। धर्म की भी बिल्कुल ऐसी ही स्थिति होती है।
यदि हम धर्म का पालन करते हैं तो धर्म हमारी हर प्रकार से रक्षा करता है लेकिन यदि हमसे धर्म का पालन करने में चूक हो जाती है तो वही धर्म हमारे पतन अथवा विनाश का कारण बन जाता है।
प्रश्न उठता है कि मरे हुए धर्म से क्या तात्पर्य है और रक्षित किया हुआ धर्म कैसे हमारी रक्षा करता है? इन प्रश्नों के उत्तर देना सरल है, यदि हम धर्म को समझ लें। धर्म क्या है? धर्म की अनेकानेक व्याख्याएं व परिभाषाएं मिलती हैं। धर्म स्वभाव को भी कहते हैं। इस दृष्टि से हमारा व्यवहार भी धर्म ही हुआ। लेकिन हर प्रकार का व्यवहार धर्म कैसे हो सकता है? वास्तव में हमारा अच्छा व्यवहार व हमारी अच्छी आदतें ही वास्तविक धर्म है। धर्म की एक अत्यंत प्रचलित परिभाषा मिलती है :-
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥
धैर्य, क्षमा, दम (संयम), चोरी न करना, शुचिता (स्वच्छता), इंद्रिय-संयम, बुद्धि, विद्या, सत्य और अक्रोध (क्रोध न करना) ये दस गुण ही धर्म के महत्त्वपूर्ण लक्षण माने गए हैं। कुछ अन्य परिभाषाओं में धर्म के इन लक्षणों के अतिरिक्त अन्यान्य लक्षणों की चर्चा भी की गई है। कहा जाता है कि जिसे धारण किया जाए वही धर्म है। यदि व्यक्ति ने इन विभिन्न लक्षणों को धारण किया है तभी वह धार्मिक है अन्यथा नहीं।
नि:संदेह, स्वयं में अच्छी आदतें विकसित करना ही धर्म है। देश व काल के अनुसार इन आदतों में अंतर भी हो सकता है लेकिन जो अच्छी आदतें नहीं हैं, जिनसे हमारा व्यवहार दूषित या विकृत होता है, उन्हें धर्म में सम्मिलित नहीं किया जा सकता। धर्म केवल सद्गुणों का समुच्चय ही हो सकता है। यदि हमारे किसी कार्य से चाहे वो कितना भी अच्छा क्यों ना हो, दूसरों के विकास में बाधा उत्पन्न होती है अथवा अन्य किसी भी प्रकार से दूसरों को पीड़ा पहुंचती है तो उसे धर्म की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इस दृष्टि से किसी का जी न दुखाना भी धर्म है। करुणावतार बुद्ध ने कहा है कि सर्वेषु भूतेषु दया हि धर्म: अर्थात सभी जीवों के प्रति दयाभाव ही धर्म है।
सही मायनों में दूसरों की भलाई पुण्य है और दूसरों को कष्ट पहुंचाना पाप है। जो धर्म, धर्म के लक्षण अथवा क्रियाकलाप व्यक्ति में अच्छे गुणों का विकास नहीं करते, वे धर्म नहीं हो सकते। व्यक्ति ही नहीं समाज के संदर्भ में भी ये उतना ही अनिवार्य है। जो समाज धर्म अथवा उदात्त जीवन मूल्यों की रक्षा करने में सक्षम होता है वही आगे बढ़ता है।
कर्मकांड अथवा प्रतीक धर्म नहीं होते। ये तो मात्र हमें स्मरण कराने का माध्यम होते हैं कि हमें इनसे जुड़े उदात्त जीवन मूल्यों का पालन करना है। जब हम किसी की पूजा अथवा आराधना करते हैं तो धर्म यही है कि हम अपने आराध्य के गुणों को जीवन में उतारें। जब हम ऐसा नहीं करते तो धर्म पाखंड बन जाता है और ऐसा धर्म अथवा पाखंड हमारी रक्षा नहीं करता। धर्म के किसी भी लक्षण को ले लीजिए। यदि हम उसकी रक्षा नहीं करेंगे अथवा उसे अपने व्यवहार में नहीं लाएंगे तो वो लक्षण नष्ट हो जाएगा और उसके स्थान पर जो उसका विपरीत लक्षण अथवा दुर्गुण होगा प्रकट होने लगेगा और हमारा विनाश कर डालेगा। हम धर्म के एक लक्षण अस्तेय अथवा चोरी न करने की बात करते हैं। यदि हम अपने आचरण में दृढ़तापूर्वक इस लक्षण को विकसित नहीं करेंगे तो स्वाभाविक है कि हममें चोरी की आदत विकसित हो जाएगी। चोरी की आदत हमारा पूरी तरह से विनाश भी कर सकती है। सद्गुणों अथवा धर्म का पालन करने में कुछ कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती हैं लेकिन इससे उसी अनुपात में हमें संतुष्टि भी मिलती है लेकिन धर्म का पालन न करने पर हम सदैव असंतुष्ट व तनावयुक्त रहेंगे जो हमारे स्वास्थ्य के लिए भी घातक होगा।

आज का राशिफल

मेष : आज आप निर्धारित कार्य आसानी से पूरा कर सकेंगे, परंतु आप जो प्रयत्न कर रहे हैं वे गलत दिशा में हों, ऐसा हो सकता है। धार्मिक या मांगलिक अवसर उपस्थित होंगे। तीर्थयात्रा का योग है। गुस्से पर काबू रखना पड़ेगा।

वृष : हाथ में लिए हुए कार्य समय पर पूरा न होने पर हताशा अनुभव करेंगे। कार्य सफलता में थोड़ा विलंब होगा। खान-पान के कारण स्वास्थ्य खराब होगा। नए कार्य की शुरुआत के लिए उचित समय नहीं है। यात्रा में विघ्न आएंगे। आफिस में या व्यवसाय में अत्यधिक कार्य के कारण कार्यभार से थकान अनुभव होगा।

मिथुन : आरामदायक और प्रसन्नतापूर्वक दिन की शुरुआत स्फूर्ति के साथ करेंगे। मेहमानों और मित्रों के साथ पार्टी पिकनिक और समूहभोजन का आयोजन करेंगे। नए कपड़े, गहने और वाहन की खरीदारी का योग है। मन में आनंद व्याप्त रहेगा। विपरीत लिंगीय पात्रों की तरफ आकर्षण अनुभव करेंगे। सार्वजनिक जीवन में आपको सम्मान मिलेगा और लोकप्रिय बनेंगे।

ककर् : आज का दिन आपको चिंता रहित और खुश रखेगा। पारिवारिक सदस्यों के साथ विशेष समय देंगे और उनके साथ आनंदपूर्वक घर में समय व्यतीत करेंगे। कार्य में सफलता और यश मिलेगा। नौकरीपेशा वालों को नौकरी में लाभ होगा। साथी कार्यकर्ताओं का सहयोग मिलेगा।
सिंह: आज के दिन आप तन-मन से स्वस्थ रहेंगे। आपकी आंतरिक सृजनात्मकता नया स्वरूप प्रदान कर सकेगी। साहित्य लेखन में नए प्रदान कर सकेंगे। प्रिय व्यक्ति के साथ की मुलाकात सुखद रहेगी। संतानों की प्रगति का समाचार मिलेगा। विद्यार्थियों के लिए बहुत अच्छा समय कहा जा सकता है।

कन्या : आज स्वास्थ्य नरम रहेगा। मन भी चिंताओं से घिरा रहेगा। माता के साथ संबंधों में तनाव खड़ा होगा। उनकी तबीयत खराब होगी। स्वजनों के साथ उग्र वाद-विवाद होने से मनमुटाव रहेगा। स्वाभिमान भंग न हो उसका ख्याल रखे। थकान, वाहन आदि के क्रय-विक्रय के लिए समय अनुकूल नहीं है।

तुला : नए कार्य का श्रीगणेश करने के लिए खूब अनुकूल दिन है। भाग्यवृद्धि और धनलाभ की संभावनाएं हैं। पारिवारिक या व्यावहारिक कार्य के अवसर पर बाहर जाना पड़ेगा। नजदीक के स्थान पर धार्मिक प्रवास का सफल आयोजन होगा। विदेश से शुभ समाचार मिलेगा। भाई-बहनों के साथ के संबंध सौहार्दपूर्ण रहेंगे।

वृश्चिक : परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी। सगे-संबंधियों और मित्रों का आगमन होगा। मिष्टान्न भोजन मिलेगा। धार्मिक कार्यों के पीछे खर्च होगा। अलंकारों तथा सुगंधित पदार्थों की खरीदारी होगी। आपकी वाणी के प्रभाव से अन्य लोगों को मोहित कर सकेंगे।

धनु : स्वास्थ्य में सुधार एवं पढ़ाई में सफलता के लिए उत्तम समय है। विदेश व्यापार से लाभ होगा। अपने हाथ से धार्मिक एवं मांगलिक कार्य होंगे। स्नेहीजनों और मित्रों का मिलन आनंदित करेगा। आर्थिक लाभ होगा। जीवनसाथी की तरफ से सुख और आनंद मिलेगा।

मकर : स्वास्थ्य संबंधी शिकायत रहेगी। मन में उचाट अनुभव करेंगे। व्यवसाय में सरकार का हस्तक्षेप बढ़ेगा। धार्मिक कार्यों के पीछे धन खर्च होगा। आध्यात्मिक और धार्मिक व्यवहार में वृद्धि होगी। शत्रुओं द्वारा परेशान किए जाएंगे। संतानों की चिंता रहेगी।

कुंभ : मांगलिक कार्य और नए कार्यों का आयोजन करने के लिए अत्यंत शुभ दिन है। अविवाहितों का विवाह आयोजित होगा। पत्नी और संतानों का शुभ समाचार मिलेगा। गृहस्थजीवन और दांपत्यजीवन में सुख और संतोष की भावना का अनुभव होगा।
मीन: आपके कार्य सफलतापूर्वक सफल होंगे। नौकरी और व्यवसाय में पदोन्नति और वृद्धि होगी। व्यापारियों के रूके हुए पैसे मिलेंगे। पिता तथा बुजुर्गवर्ग से लाभ होगा। आर्थिक लाभ और परिवार में आनंद छाएगा।

मुद्दा बने कार्यस्थल पर यौन शोषण

डॉ. दर्शनी प्रिय
आजादी के पहले स्त्री अपने पारंपरिक अवगुण्ठन में सिमटी हुई दिखाई देती है, जबकि आजादी के बाद नवीन चेतना के संपर्क में आने के बाद बदले हुए परिदृश्य में स्त्री ने घर की दहलीज को लांघने का दुस्साहस किया। इस क्रांतिकारी बदलाव ने ही स्री को उसकी अस्मिता के प्रति जागरूक बनाने में भरपूर मदद की और आज वह पुरुष के वर्चस्व को चुनौती देती हुई अपने अधिकारों के प्रति सजग और सचेत, पुरुष के सामने तन कर खड़ा होने की स्थिति में आ चुकी है।
चाहे इसका परिणाम कुछ भी हो, लेकिन क्या वास्तविक रूप में स्रियां अपनी देह सुरक्षा के संकट बोध से उबर पाई हैं? हालिया आंकड़े तो इसकी बिल्कुल तस्दीक नहीं करते। वो भी तब जब बेंगलुरू जैसे उन्नत प्रौद्योगिकी शहर में 60 फीसद महिलाएं कार्यस्थल पर किसी-न-किसी प्रकार की दैहिक हिंसा और छेड़छाड़ की तो 15 फीसद महिलाएं यौन शोषण की शिकार हैं। देश के सभी बड़े महानगरों में कमोबेश यही स्थिति है। दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में बीते सालों के बरक्स यह आंकड़ा तेजी से बढ़ा है।
सैद्धांतिकी तो यही कहती है कि अस्मिता उपलब्ध करने का मतलब सिर्फ उसका मानसिक अनुभव करते रहना नहीं होता, बल्कि उसे विभिन्न समाज के बीच पुरजोर रूप से प्रतिष्ठित करना भी होता है, लेकिन क्या यह दयनीय स्थिति नहीं है कि खुद को अत्याधुनिक समाज कहलाने वाला विदेशी समाज भी महिलाओं को लेकर अपने इस भेदभाव, हिंसा और बेकद्री से उबर नहीं पाया है। इसकी बानगी 50 फीसद ब्रितानी और 38 फीसद अमेरिकी वे कामकाजी महिलाएं देती हैं, जो कार्यस्थल पर यौन शोषण का शिकार होती हैं।
निश्चित ही एक भद्र समाज के लिए यह चिंतनीय है। भारत के कॉरपोरेट वर्ल्ड की स्थिति तो और भी बदतर है, जहां तकरीबन 50 फीसद महिलाओं से अपमानजनक भाषा, फिजिकल कॉन्टैक्ट या सेक्सुअल फेवर मांगा जाता है। ऐसे में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है। वुमेन इंडियन चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के सर्वे की मानें तो भारत में 68.7 फीसद महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने वर्कप्लेस पर होने वाले सेक्सुअल हैरेसमेंट की लिखित या मौखिक शिकायत दर्ज ही नहीं कराई है। हालांकि 1997 में विशाखा गाइडलाइंस के अस्तित्व में आने के बाद वर्क प्लेस पर महिलाओं के यौन उत्पीडऩ रोकने को लेकर कई कानून बने।
2013 में इसी केस की वजह से ‘सेक्सुअल हैरेसमेंट एट वर्क प्लेस’ नामक मजबूत कानून बनाया गया ताकि महिलाओं के अधिकार को सुनिश्चित किया जा सके, लेकिन समाजिक-आर्थिक कारणों के चलते कई बार महिलाएं खुद भी ऐसी किसी घटना को बातचीत का विषय नहीं बनाना चाहतीं, लेकिन 2018 में ‘मी टू’ आंदोलन के बाद हालत थोड़े बदले हैं। कामकाजी महिलाओं ने अपने ऊपर हो रहे यौन शोषण को लेकर खुलकर आवाज उठानी शुरू की है।
पर कोविड के बाद के न्यू नॉर्मल ने दैहिक शोषण के तरीकों में बदलाव किया है। अब महिलाओं से सेक्सुअल फेवर लेने की चाह ऑनलाइन बैठकों, वेबिनारों और पर्सनल वन टू वन टॉक के माध्यम से उनके कपड़ों, उठने-बैठने के तरीकों पर सेक्सुअल फब्तियों के जरिये निकल रही है। सवाल कई हैं किंतु एक बड़ा सवाल सांस्थानिक चुप्पी का भी है। पर्याप्त कानून होने के बावजूद महिलाएं घुटन, बेबस और दुराचारयुक्त विषाक्त माहौल में काम करने को विवश हैं। सवाल तो उठेंगे। चाहे वो समाज हो, कोई संस्था हो या फिर सरकार ही क्यों न हो?

आज का राशिफल

मेष : मेष राशि के जातकों के लिए आज का दिन आसान नहीं है। बाजार में चल रही प्रतियोगिता की वजह से आपको काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। सामान के भाव कंपटीशन के चक्कर में कम रखने पड़ सकते हैं और इस वजह से आपका मुनाफा भी घट सकता है। शत्रु आपके इमोशंस का फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं और इस वजह से आपको परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
वृषभ : वृष राशि के जातक परिस्थिति के अनुसार खुद को ढालकर भी अच्छा कार्य कर लेंगे और भाग्य उनका साथ देगा। कार्यक्षेत्र में सफलता मिलेगी और बॉस से आपको तारीफ सुनने को मिल सकती है। कार्यक्षेत्र में मिलने वाले मौकों का फायदा उठाने के लिए दिन अच्छा है। योजनाओं के क्रियान्वयन करने पर आपका फोकस रहेगा। प्रॉडक्ट के डेवलपमेंट में आपकी क्रिएटिविटी निखरकर आएगी। आज आप उन कार्यों को भी पूरा कर लेंगे जो काफी समय से अधूरे हैं।

मिथुन : मिथुन राशि के जातक पारिवारिक सहयोग से कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करेंगे। जमीन जायदाद में किये हुए पुराने निवेश से मोटा लाभ कमा सकते हैं। आज किसी प्रॉपर्टी की खरीद या बेच कर सकते हैं। लाभ होगा। आर्थिक लिहाज से समय अच्छा रहेगा। जमीन से संबंधित पुराने विवाद आज खत्म होंगे और भाग्य आपका साथ देगा।

ककर् : कर्क राशि के जातकों के लिए आज का दिन धन के मामले में लाभ देने वाला है। आपको कहीं से रुका धन प्राप्त होने की उम्मीद है और भाग्य भी आज आपका साथ देगा। जरूरी काम को पूरा करने के लिए यात्रा की संभावना भी बनती है। पराक्रम का प्रदर्शन कर ऑफिस में छवि सुधार पाएंगे। व्यवसाय से जुड़ी अच्छी खबर आज आपको मिल सकती है और भाग्य भी आपका साथ देगा।

सिंह : सिंह राशि के जातक अपने सादे व निष्पक्ष व्यवहार से दूसरों का दिल जीतने में कामयाब रहेंगे। आज आपके लिए धन के लिहाज से अच्छा दिन है। आपने जो भी निवेश किए हैं उनमें आपको सफलता मिलने की पूरी उम्मीद है। ईमानदारी से नियम कायदे के अनुसार अपने काम को करेंगे। मिलनसार व्यक्तित्व लोगों के साथ व्यावसायिक संबंध बनाने में मददगार साबित होगा। आर्थिक दृष्टिकोण से दिन अच्छा है।

कन्या : कन्या राशि के जातकों के लिए आज भाग्यशाली दिन है। आज नौकरी और रोजगार के क्षेत्र में किए गए प्रयोगों में आपको सफलता मिलेगी और भाग्य भी साथ देगा। कार्यक्षेत्र में अकेले पड़ सकते हैं। टीम वर्क में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। आर्थिक दृष्टिकोण से दिन सामान्य है। सेहत से जुड़े कुछ खर्चे आ सकते हैं।

तुला : तुला आपका दिन आज शुभ है। आपकी राशि के जातकों को हर मामले में आज शुभ परिणाम प्राप्त होंगे। धन और समृद्धि के मामले में आज आपको शुभ परिणाम प्राप्त होंगे। दूसरों की आलोचनात्मक समीक्षा आपके जुनून को और बढ़ा देगी। आज आप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में कामयाब रहेंगे। आर्थिक दृष्टिकोण से खर्च बढ़े रहेंगे। व्यापारी वर्ग के लोगों को आज लाभ होगा।

वृश्चिक : वृश्चिक राशि के जातकों को आज वित्त मामलों में पूर्ण लाभ होने की उम्मीद है और आज आपके कार्य पूर्ण होने का दिन है। आज आपका दिन अनुकूल है और आज आपको भाग्य का पूरा साथ प्राप्त होगा। आर्थिक दृष्टिकोण से लाभ की अच्छी संभावना बनती है। सेना खिलाड़ी, भौतिक विशेषज्ञ, वैज्ञानिकों, कंप्यूटर से जुड़े हुए लोगों के लिए अच्छा समय है।

धनु : धनु राशि के जातकों में आज परोपकार की भावना रहेगी। आर्थिक मामलों में आपके लिए दिन शुभ है। कार्यक्षेत्र में निष्पक्ष व्यवहार करेंगे और दूसरों की सहायता के लिए भी आगे आएंगे तो आपको लाभ होगा और शुभ परिणाम प्राप्त होंगे। आर्थिक दृष्टिकोण से अच्छा समय है। लाभ की अच्छी संभावना है।

मकर : मकर राशि के जातकों की बहुमुखी प्रतिभा की वजह से कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी और भाग्य भी साथ देगा। अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए किसी तरह का कोई समझौता करना पसंद नहीं करेंगे। बॉस की तरफ से आपके साथ किसी प्रकार का विवाद हो सकता है। थोड़ी मात्रा में धन प्राप्ति का योग हैं। बड़े लाभ के लिए कुछ इंतजार करना पड़ सकता है।

कुंभ : कुंभ राशि के जातक दूसरों से आदर्श और न्याय प्रियता की बातें करेंगे, परंतु स्वयं इन चीजों को नहीं अपनाएंगे। कार्यक्षेत्र में दोहरे आयाम रखने की वजह से छवि धूमिल हो सकती है। सही दिशा में प्रयास करेंगे, तो लाभदायक स्थितियां बनेंगी। खर्च को लेकर मानसिक अशांति रहेगी।

मीन : मीन राशि के जातकों को आज कठिनाई का सामना करना पड़ सकता हे। अधिकारियों से कष्ट हो सकता है। उनके गलत निर्णय उन्हें परेशानी में डाल सकते हैं। धन प्राप्ति को लेकर मन में बेचैनी रहेगी, लेकिन अगर शांत चित्त से काम करेंगे तो धन लाभ के अच्छे अवसर आपको मिलेंगे। खर्चे अनियंत्रित रहेंगे।

महिलाओं को कितना लुभाएगी प्रियंका की मुहिम

क्षमा शर्मा –
लखनऊ में प्रेस कॉनफ्रेंस करके कांग्रेस की नेता, प्रियंका गांधी ने कहा कि अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव में, चालीस प्रतिशत टिकट महिलाओं को दिए जाएंगे। बैक ग्राउंड में लिखा था-लड़की हूं, लड़ सकती हूं। सुनने में नारा बहुत आकर्षित करता है। लड़कियों को संघर्ष और अपने अधिकारों के लिए लडऩे की प्रेरणा भी दे सकता है। जब से देश में शिक्षित, नौकरीपेशा मध्य वर्ग की महिलाओं की संख्या बढ़ी है, वे बड़ी संख्या में वोट देने लगी हैं। उनकी राय का मायने भी समझा जाने लगा है, तब से जैसे हर राजनीतिक दल उन्हें अपने पाले में खींचना चाहता है।
अतीत में जो लोग 33 प्रतिशत महिला रिजर्वेशन बिल का संसद में विरोध कर चुके हैं, कह चुके हैं कि अगर ऐसा हुआ तो परकटी आ जाएंगी, वे इस बिल में विभिन्न धर्मों और जातियों की महिलाओं को अलग से प्रतिनिधित्व देने की मांग कर चुके हैं, वे महिलाओं को भी जाति और धर्म के चश्मे से ही देखते हैं। जबकि अनुभव कहता है कि जिस तरह गरीब का कोई जाति–धर्म नहीं होता, महिलाओं का भी नहीं होता। वे हर जाति–धर्म में सताई जाती हैं। लेकिन प्रियंका गांधी की इस घोषणा के बाद, ऐसे ही एक दल के प्रवक्ता ने टीवी पर कहा कि वे तो हमेशा से ही इस बिल का समर्थन कर रहे थे, भाजपा और कांग्रेस ने ही इसे पास नहीं होने दिया।
इन दिनों अपना ही बोला हुआ आज का सच, कल का झूठ हो सकता है। जिसने कल जो बात कही थी, आज वही उसे झुठला सकता है। इन दिनों हर बात पर महिलाओं का नाम जपने वाले महिलाओं के ये नए हितू, सचमुच उनके लिए क्या करेंगे। या कि चुनाव के बाद सब भूल जाएंगे। आने वाले दिनों में जब कांग्रेस में टिकटों का बंटवारा होगा तो हो सकता है कि इसी दल के पुरुष अपने-अपने घर की महिलाओं के लिए टिकट की मांग करें, तब उनसे कैसे निपटा जाएगा। यदि उन्हें टिकट दिया गया तो सत्ता पुरुष से खिसक कर महिला के हाथ में आ जाएगी, मगर परिवार के पास ही रहेगी। क्योंकि प्रियंका गांधी ने कहा भी है कि जिन महिलाओं को लोग जानते होंगे, जो अपने क्षेत्र में लोकप्रिय होंगी, पार्टी का टिकट उन्हें ही मिलेगा।
हम जानते ही हैं कि एक साधारण औरत को लोकप्रिय होने के कितने मौके मिलते हैं। अक्सर ही लोकप्रियता की सारी ताकत साधन सम्पन्नों के पास ही पहुंचती है। फिर मान लीजिए यदि तमाम पुराने नेताओं के परिवारों की महिलाओं को टिकट नहीं मिला, तो क्या वे प्रियंका के खिलाफ मोर्चा नहीं खोल देंगे। जिसे टिकट नहीं मिलता है, वह फौरन पुराने दल को छोड़, टिकट मिलने की आस में नए दल में चला जाता है।
आखिर प्रियंका भी ऐसे ही परिवार से आती हैं। क्या उनकी जगह कांग्रेस की कोई साधारण महिला ले सकती है। उसे यह पद मिल सकता है। इसके अलावा एक दिलचस्प बात यह भी है कि जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ा था, तो अध्यक्ष उनके सुपुत्र राहुल गांधी को ही बनाया गया था। चलिए तब तो प्रियंका राजनीति में इतनी एक्टिव नहीं थीं। मगर पिछले दिनों कांग्रेस की जो मीटिंग हुई, उसमें कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से बहुत से वरिष्ठ नेताओं ने राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाने की मांग की। आखिर उन्होंने प्रियंका को अध्यक्ष बनाने की मांग क्यों नहीं की। वह भी तब, जब मां सोनिया गांधी यानी कि एक महिला ही से यह मांग की जानी थी। यानी कि परिवार या दल की सत्ता में जब चुनो, तब पुरुष को ही चुनो। प्रियंका की यह प्रतिज्ञा अच्छी है कि वे लड़कियों को एमपावर्ड करना चाहती हैं, तो पहले यह बदलाव घर से ही शुरू क्यों नहीं किया जाता। उन्हें कुछ संकोच हो तो राहुल गांधी या सोनिया गांधी खुद उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का निर्णय ले सकते हैं। या कि लड़कियों के प्रति इतनी संवेदना सिर्फ चुनाव जीतने का स्टंट भर है।
वैसे भी पूरे देश में लड़कियों के प्रति तरह-तरह के अपराध होते हैं। एनसीआरबी के आंकड़े इसकी गवाही भी दे सकते हैं। मगर नेताओं को उन्हें उठाने की याद वहीं आती है, जहां विपक्षियों की सरकार हो और चुनाव होने वाले हों। इस तरह की रणनीति बनाने में कोई भी दल कम नहीं है। प्रेस कानफ्रेंस में जब पत्रकारों ने प्रियंका से पूछा कि अन्य जिन राज्यों में चुनाव होंगे, क्या वहां भी कांग्रेस यही नीति अपनाएगी, तो उन्होंने बहुत चतुराई से कहा कि वह उत्तर प्रदेश की इंचार्ज हैं। वहीं के बारे में बता सकती हैं।
कई बार यह भी लगता है कि सरकारें अपने कामों का ढोल पीटने के लिए अरबों रुपए खर्च करती हैं। अगर सचमुच जमीनी स्तर पर काम हों तो लोग खुद उनका ढोल पीटते हैं, चर्चा करते हैं। और ऐसे नेताओं को बारंबार चुनते हैं।
दरअसल नेता अपनी गद्दी सुरक्षित करने, सत्ता प्राप्त करने के लिए तरह-तरह के नारे उछालते हैं, जो जनता के एक वर्ग को लुभाएं और वोटों से उनकी झोली भर दें। लेकिन मीडिया का बड़ा वर्ग इस स्ट्रेटेजी को ही सही मान, ले उड़ता है और कभी इसे गेम चेंजर कहता है, कभी मास्टर स्ट्रोक। अजीब-सी बात यह है कि जिसे मास्टर स्ट्रोक कहा जाता है, कई बार वही चुनाव हरवा देता है।
पिछले चुनावों में राहुल और अखिलेश ने मिलकर चुनाव लड़ा था । नारा था- लोगों को यह साथ पसंद है। उनके बारे में मीडिया में स्लोगन छाया हुआ था-यूपी के लड़के। इसे युवाओं को लुभाने का बहुत अच्छा नारा माना गया था। लड़कियों की बात यहां कहीं नहीं थी। हालांकि राहुल और अखिलेश युवा होने की उम्र कब की पार कर चुके थे। लेकिन इस तरह के नारे कांग्रेस या समाजवादी पार्टी के कुछ काम नहीं आए थे। आने वाले चुनावों में देखना होगा कि जिसे प्रियंका का औरतों का दिल जीतने वाला नारा बताया जा रहा है, वह कितना कारगर होता है। औरतों को वह कितना लुभा पाती हैं।

आज का राशिफल

मेष : आज का दिन मिश्र फलदायी है। रहस्यमयी बातों में आज आपको रुचि रहेगी तथा गूढ़ विद्याओं की ओर आकर्षण अधिक रहेगा। संभवत: आज प्रवास टालिएगा। प्रवास में अनपेक्षित बाधाएं खड़ी हो सकती हैं। आज नए कार्य का प्रारंभ न करें।

वृष : आज का दिन शुभफलदायी है। आप शारीरिक रूप से स्वस्थ रहेंगे। मानसिक प्रसन्नता का अनुभव होगा। परिजनों के साथ अधिक समय बीतेगा। सामाजिक जीवन में आप सफलता और यश प्राप्त कर पाएंगे। दांपत्य जीवन में मधुरता छलकेगी।

मिथुन : आज आपका दिन बहुत अच्छा बीतेगा। घर में शांति और आनंद का वातावरण रहेगा। सुखमय प्रसंग बनेंगे। खर्च होगा, लेकिन वह निरर्थक नहीं होगा। आर्थिक लाभ की संभावना है। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। कार्य में यश की प्राप्ति होगी। स्त्री मित्रों के साथ भेंट होगी। रूके हुए काम संपन्न हो जाएंगे। क्रोध की मात्रा अधिक रहेगी।

कर्क : आज का दिन आपके लिए थोड़ी सावधानी रखने का है। शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। किसी भी नए कार्य के प्रारंभ के लिए यह दिन उचित नहीं है। मानसिक अशांति और उद्वेग आपके मन पर छाया रहेगा। आकस्मिक धनखर्च होगा। प्रियपात्रों से दिल को चोट पहुंच सकती है या न बोलने के प्रसंग उपस्थित हो सकते हैं।

सिंह : आपका दिन शुभ फलदायी नहीं है। घर में वाद-संवाद का वातावरण रहेगा। परिजनों के साथ ऐसी घटना हो सकती है, जिससे आपके दिल को तकलीफ हो। आप शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहेंगे। मन कुछ अधिक ही व्यग्र रहेगा। नकारात्मक विचार आपको परेशान करेंगे। माता की तंदुरस्ती बिगड़ेगी।

कन्या : आज आपको किसी भी कार्य में बिना सोचे-समझे हिस्सा लें। साथियों के साथ अच्छी तरह से समय बीतेगा। भावनात्मक सम्बंधों से आप नरम हो जाएंगे। मित्रों एवं स्वजनों से भेंट होगी। भाई-बहनों से लाभ होगा। प्रतिस्पर्धियों का आप सामना कर पाएंगे। रहस्यमय आध्यात्मिक बातों में सिद्धि मिलेगी।

तुला : आज आपका मन दुविधाओं में उलझा रहेगा। निर्णय न ले पाने के परिणाम स्वरूप नए कार्यों का प्रारंभ करना आपके लिए हितकर नहीं है। प्रवास न करना हितकर है। आर्थिक लाभ होगा। परिजनों के साथ वाद-विवाद में न उतरिएगा। किसी भी महत्त्वपूर्ण विषय पर आज निर्णय न लें।

वृश्चिक : आज का दिन साधारणतय: ही बीतेगा। तन और मन की प्रसन्नता रहेगी तथा सुख एवं आनंद की प्राप्ति होगी। परिजनों के साथ आनंद-उल्लास में समय व्यतीत होगा। मित्रों, स्नेहीजनों से उपहार मिलने से मन अति प्रसन्न होगा। प्रियजनों के साथ हुई भेंट सफल रहेगी।

धनु : आज का दिन कुछ कष्टदायक होगा। परिजनों के साथ मनमुटाव के प्रसंग उपस्थित होंगे। स्वभाव में उग्रता तथा आवेश होने के कारण किसी से विवाद न हो इस बात का विशेषरूप से ध्यान रखिएगा। स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। वाणी एवं बर्ताव में संयम रखिएगा। दुर्घटना से संभलिएगा।

मकर : सामाजिक कार्यों से आपको लाभ होगा, क्योंकि विविध क्षेत्रों से लाभ होने के आज के योग हैं। मित्रों तथा संबंधियों के साथ हुई भेंट आपके लिए लाभदायी सिद्घ होगी। विवाहोत्सुकों के विवाह के प्रश्नों पर आज कम प्रयास से सफलता मिल सकती है।

कुंभ : आज आपका दिन सानुकूल है। आपका हर कार्य सरलतापूर्वक संपन्न होगा, जिस वजह से आप प्रसन्न रहेंगे। ऑफिस एवं व्यवसाय स्थल पर अनुकूल परिस्थिति का वातावरण रहेगा एवं बड़ी सफलता भी मिल सकती है। गृहस्थजीवन आनंददायी रहेगा।

मीन : मन में व्याकुलता एवं अशांति के अहसास के साथ आपके दिन का प्रारंभ होगा। शारीरिक रूप से आपको थकान का अनुभव होगा। संतान के विषय में चिंता सताएगी। व्यर्थ ही खर्च होगा।

बच्चो के शैक्षणिक भविष्य चौपट न करें सरकार – रामप्रकाश तिवारी

रांची, झारखंड राज्य में 21 माह लगातार कक्षा नर्सरी से पांच की पढ़ाई लिखाई बंद रखने के मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन के शिक्षा विरोधी नीतियों, निर्णयों की कड़ी आलोचना करते हुए स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामप्रकाश तिवारी ने मुख्यमंत्री से अपील करते हुए कहा है कि आप बच्चों का शैक्षणिक भविष्य चौपट मत किजिए, तत्काल नर्सरी से पांच की पढ़ाई लिखाई शुरू करने के लिए आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक बुलाकर सरकार की तरफ से दिशानिर्देश जारी करे, झारखंड सरकार ने 17 मार्च 2020 से कोरोना से बचाव के नाम पर सभी स्कूलों को बंद रखा था अब कक्षा-6 से 12 के बच्चों की पढ़ाई लिखाई स्कूलों में चल रही है एक भी बच्चा कोरोना से संक्रमित नहीं हुआ ऐसे में नर्सरी से पांच कक्षा के बच्चों की स्कूलों में पढ़ाई लिखाई बंद रखने का कोई औचित्य दिखाई नहीं देता है।
स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामप्रकाश तिवारी ने आरोप लगाते हुए कहा है कि झारखंड राज्य में बेरोजगार युवाओं ने भाड़े के मकान में लाखों प्ले स्कूल, प्राइमरी स्कूलों को चला रहे हैं उन प्राइवेट स्कूलों को बंद कराने के साजिश के तहत् 21 माह से प्राइमरी स्कूलों की पढ़ाई लिखाई बंद रखकर हेमन्त सरकार ने झारखंड राज्य में पूर्ण रूप से प्राइमरी शिक्षा व्यवस्था को चौपट कर दिया है जिसके कारण 90% किराये में चल रहे अधिकांश प्राइवेट स्कूल बंद हो गए हैं लाखों शिक्षित युवा लड़के लड़कियां बेरोजगार हो गए हैं झारखंड राज्य से अधिक कोरोनावायरस से अधिक प्रभावित राज्य केरल दिल्ली तमिलनाडु महाराष्ट्र बिहार यूपी राजस्थान छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश पंजाब उड़िसा तेलंगाना इत्यादि राज्यों में कक्षा नर्सरी से पांच की पढ़ाई लिखाई लगभग शुरू कर दिया है।
श्री तिवारी ने कहा है कि पढ़ाई लिखाई बंद होने से छोटे बच्चे बच्चियां पहले पढ़ें पढ़ाई को भूल गए हैं अब बच्चों को शुरू से पढ़ाई करना पड़ेगा, अभिभावकों को अपने बच्चों के शैक्षणिक भविष्य की चिंता हो रही है आगे उनके बच्चों का भविष्य कैसे बचेगा? बच्चें आगे की प्रतियोगिता, नौकरी में केसे सफल होंगे? इसकी चिंता मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को नहीं है फिर झारखंड को अशिक्षित आदमयुग में ले जा रहे हैं और लाखों प्राइवेट शिक्षकों, कर्मचारियों को बेरोजगार करने पर तुली हुई है।
श्री राम प्रकाश तिवारी ने कहा है कि हेमन्त सरकार ने अगर 16 नवंबर 2021 को नर्सरी से पांच की स्कूलों में पढ़ाई लिखाई शुरू नहीं करती है तो स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी 18 नवंबर 2021 को प्रात 11.30 बजे से राजभवन,रांची के सामने हेमन्त सोरेन सरकार के शिक्षा विरोधी, बेरोजगार विरोधी नीतियों के खिलाफ एकदिवसीय धरना देकर पुरे झारखंड राज्य में आंदोलन का बिगुल फूंकेंगी।

इसकी जानकारी रामप्रकाश तिवारी  प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र राष्ट्रवादी पार्टी  झारखंड,राॅंची  ने दी

गाँव की माटी की सुगंध,मिट्टी कैसी होती है? फसल कैसे होते है?

व्यंग –
दिलीप सिंह –
मैं गाँव जाने के लिए अपने समान बाँध रहा था।शहर में पिताजी सरकारी मुलाजिम है। माँ मै और भाई पिताजी के साथ शहर में रहते हैं पिताजी कभी-कभार गाँव जाया करते है। मुझे  जाने का मौका मिला नही। लेकिन मैने भी जिद ठान ली थी कि इस बार मैं  जाऊँगा। वह दिन अब नजदीग आ रहा था गाँव कैसा होता है?  मिट्टी कैसी होती है? फसल कैसे होते है? लहलहाती फसलों को देखने की इच्छा मन में बार-बार बलवती हो रही थी। कब जाऊँ,कब पहुँचू? हालांकि माँ और पिताजी की इच्छा नहीं थी कि मैं  जाऊँ।
इसका कारण यह था कि पिताजी बता रहे थे कि नक्सलियों (दस्तों) ने  पाँव पसार दिए है। इसलिए गाँव जाना ठीक नहीं होगा। किसी अनहोनी आशंका से माँ भी डरी हुई थी। लेकिन मेरी गाँव देखने की इच्छा प्रबल थी। मेरी जिद के आगे दोनो को झूकना पड़ा और मुझे गाँव जाने की इजाजत देनी पड़ी। मैं गाँव जाने के लिए अपने समान बाँध रहा था। मेरा दोस्त रामखेलावन आ पहुँचा। आकर पूछा भैया कहाँ जा रहे है? मै उससे बोला-गाँव जा रहा हूँ। तो वह बोला कुछ ला दिजिएगा। हाँ-हाँ ला देगें मैं बोला। वह मुझे बस स्टैण्ड छोडने आया। बस  जब खुल पड़ी तब वो वापस लौटा।
देखते-देखते बस ने शहर के सरहद  को पार कर दिया। कुछ ही देर बाद चारो ओर हरे-भरे जंगल दिखाई देने लगे। लगभग सात-आठ घंटे के सफर के बाद बस गाँव पहुँची। जहाँ बस रूकी थी वहाँ से गाँव चार-पाँच किलोमीटर दूर था। मैं पूछ-पूछकर अपने गाँव पहुँचा। दादा-दादी मुझे देखकर बहुत खुश हुए। उन्हे सहसा विश्वास नहीं हुआ कि मैं वही दो वर्ष का रामखेलावन पाण्डे हूँ जो अब गबरू जवान बन गया है।
मै भी अपने दादा-दादी से मिलकर बड़ा खुश था। रात में खाने पर बातचीत हुई,सभी के बारे में पूछताछ हुई सोने के समय दादा ने कहा बेटा गाँव आए हो घर के बाहर इधर-उधर बिना किसी को बोले हुए मत जाना। जमाना थोड़ा खराब है। बिस्तर पर लेटते ही मुझे नींद आ गई सबेरा कब हुआ पता ही नहीं चला। सबेरे नित्य क्रिया से निवृत होकर मैं गाँव घुमने के उद्धेश्य से निकला, जो देखता मुझे वो
संदिग्ध नजरों से देखता मुझसे मेरा नाम व पता पूछता। चूँकि मेरे दादाजी गाँव के सेवानिवृत शिक्षक थे। इसलिए हर कोई उन्हें जानता था। मै अपने चाल में गाँव के वातावरण से गैरवाकिफ इधर से उधर घुमता रहा। जब वापस घर पहुँचा तो दादा-दादी परेशान, आते ही सवाल दागा बिना बोले कहाँ चल गए थे। जानते नहीे गाँव का वातावरण बदल गया है। यह गाँव पहले वाला गाँव नहीं है यहाँ सब-कुछ बदल गया हैं। इस गाँव में नक्सलियों ने पाँव फैला दिया है। वक्त बेवक्त वो चले आते हैं। और इसलिए बिना बोले गाँव में घुमना-फिरना नही। आप ये क्या बोल रहे हैं दादाजी मैं तो गाँव को नजदीक से समझने आया था मैं बोला।
 मुझे रहते अभी दो दिन भी नहीं हुआ था कि नक्सलियो का एक दस्ता गाँव पहुँचा। सारे गाँव  वालो को चौपाल पर बुलाया। दस्ते के आदमियों ने गाँव के ही एक आदमी को पकड़कर चौपाल पर खड़ा किया। उसके हाथ पीछे बाँध दिए गए। वही जनअदालत लगाई गई। इस दौरान दस्ते के हथियार-बंद लोग गाँव के आस-पास पहरे देते नजर आए। चप्पे-चप्पे पर उनके आदमी फैले हुए नजर आए थे। जिस व्यक्ति को उन्होने पकड़ रखा था सजा के तौर पर उसे पच्चीस लाठी मारने का हुक्म सुनाया गया। वो बेचारा गिड़गिड़ाता रहा मैं पुलिस मुखबिर नहीं हूँ लेकिन उसकी सुनने वाला वहाँ कौन था? लाठियों की मार से वो अधमरा हो गया। उसकी चित्कार ने पूरे गाँव वालो को सहमा दिया वहाँ का दृश्य  देखकर मेरा हालत खराब हो गया वहाँ से मैं खिसकना तभी दस्ते के एक सदस्य की नजर मुझ पर पड़ी। उसने मुझे पकड़ा बोला तुम तो यहाँ के लगते नहीं कहीं तुम पुलिस मुखबिर तो नहीं और उसने मुझे पकड़कर चौपाल पर खड़ा कर दिया। अब शुरू हुआ मुझसे पूछताछ का सिलसिला। मेरे बारे में गाँव वालो से पूछा गया। मेरे बारे में तो गाँव वाले जानते नहीं थे उन्होने मुझे पहचानने से इंकार कर दिया। मैं अपना परिचय देता रहा मगर किसी को मेरी बातों में यकिन नहीं हुआ। यह मेरा दुर्भाग्य था कि इस दिन मेरे दादा-दादी किसी प्रायोजन में भाग लेने दूसरे गाँव गए थे। मेरी  बातों का विश्वास दिलाने वाला कोई नहीं था।
 दस्ते के लोग मुझे पकड़कर अपने साथ लेते चले गए वे मुझसे मेरे बारे में जानने की कोशिश करते। मेरे गठीले बदन को देखकर उन्हें मेरे बात में विश्वास ही नहीं होता कि मै पुलिस वाला नहीं हूँ। उन्हें शक था कि मैं पुलिस वाला हूँ। मुझे हर समय ऐसा लगता कि वे मुझे मार डालेगें। एक दिन दस्ते का कमाण्डर मुझसे पुछताछ कर रहा था। मै परेशान होकर बोल उठा हे भगवान मुझे किस चक्कर में डाल दिए मेरी बातो को सुनकर दस्ते का कमाण्डर बोला कि तुम भगवान  को कितने दिन से जानते हो वह हमारे हिट लिस्ट में है उसने हमारे कितने आदमियो को पकड़ा है। मै घबड़ा कर बोला कौन भगवान, दस्ते के कमाण्डर बोला वह यहाँ का थाना इंचार्ज है अब हमें पूरा यकिन हो गया कि तुम पुलिस वाले हो मैं बहुत मुश्किल से उन्हें समझा पाया कि मै ऊपर वाले भगवान को याद कर रहा था मै थाना इंचार्ज भगवान को नही जानता उन्हें बहुत मुश्किल से मेरी बातो पर यकिन हुआ था। उनके साथ इस तरह सात दिन बीत गए।
एक दिन दस्ते वाले मुझे लेकर मेरे गाँव गए उन्हें मेरे बारे में पता चल चुका था कि मैं कौन हूँ? शायद उन्होने अपने स्तर से मेरे बारे में खोजबीन की थी। वे मुझे गाँव के पास छोड़कर चले गए। मैं वहाँ से सीधे अपने घर पहुँचा। मुझे देखकर दादा-दादी बहुत खुश हुए। गाँव में बात फैल चुकी थी। इसलिए मेरे आने की खबर सुनकर मुझे देखने के लिए सभी मेरे घर पर इकठठ्े हो गए। यह मामला पुलिस की भी जानकारी में आ गया था। मेरे घर पहुँचने की खबर पुलिसवालों को भी लग गई थी। उस इलाके का दारोगा अपने पुलिसवालों के साथ घर आ धमका। दस्ते के बारे में पूछताछ करने के बहाने उठाकर थाने ले आया। थाने में मुझसे दस्ते के सदस्यों के बारे में पुछताछ की जाने लगी। दस्ते के अडड्ो के बारे में मुझसे जानकारी पूछी जाने लगी कि वे मुझे अपने किस-किस ठिकाने में ले गए। जब मैं उनको यह बताता की मुझे जानकारी नहीं है तो उन्हें यकिन नहीं होता। उसके बाद मुझे प्रताड़ित किया जाने लगा। उनके व्यवहार से घबड़ा कर मै बोला हे राम जी आपने मुझे किस मुसीबत में डाल दिया मुझे बचाओ यह सुन दरोगा चौका और बोला तुम राम जी को जानते हो बताओ उसके बारे में तुम क्या-क्या जानते हो इसका मतलब है कि तुम भी दस्ते के सदस्य हो, मै घबड़ाया और बोला कौन राम जी दरोगा बोला वही रामजी जिसका तुम नाम ले रहे थे वो दस्ते का एरिया कमाण्डर है अब तुम्हे जेल जाना ही पड़ेगा नहीे तो रामजी के बारे में सच-सच बताओ कि उसका ठिकाना कहाँ-कहाँ है मै घबड़ाकर दरोगा से बोला कि मै उस रामजी को नही जानता मै तो भगवान रामजी का बात कर रहा था दारोगा को मेरी बातो पर यकिन नही हो रहा था वो मुझे जेल भेजने की धमकी देने लगा।
यह तो मेरी किस्मत अच्छी थी कि मेरे दादाजी के पहुँच के कारण मैं थाने से छूटा। अगर मेरी जगह कोई और होता तो शायद ही छूट पाता और न जाने उस पर कितने दफा लग गए होते।
थाने से छूटने के बाद मैं सीधा गाँव से शहर की ओर भागा मैं भूल गया गाँव की मिट्टी की सुगंध, लहलहाती फसलों,चहचहाती पक्षियों की आवाज और शायद हमेशा-हमेशा के लिए अपने गाँव को।
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पत्रकार ऐसे होते हैं…!

दिलीप सिंह –
हमारे एक दोस्त हैं झटपट लाल नामी-गिरामी पत्रकार हैं। अक्सर हमारी बैठकी जमते रहती हैं। नामी-गिरामी इतने कि जिनके बारे में लिखा,वो या तो निलंबित कर दिए गए, बर्खास्त कर दिए गए या जेल चले गए। वो चाहे अधिकारी हो या क्लर्क जिस विभाग का खाका निकाला। उस विभाग के भ्रष्टाचारी उनके निगाहों से बच नही पाए। लेकिन अपने रहे फक्कड़ के फक्कड़ ही, औरो की तरह शहर में एयर कंडीशन रूम में बैठकर ग्रामीण क्षेत्रों की खोज खबर नहीं लिखते हैं। बल्कि खुद ही ब्लाॅक के बी.डी.ओ. या सी.ओ. से विकास का आँकड़ा लेने पहुँच जाते हैं। उनके इस लगन और जोश को देखकर,उनके संपादक महोदय बहुत खुश रहते है। जब ये ग्रामीण क्षेत्रों पर लिखने के लिए निकलते है तो कई-कई दिन घर नहीे लौटते हैं। इस दौरान खाने-पीने का भी इनको परवाह नहीं होता है। कहाँ सबेरा हुआ, कहाँ दोपहर खुद इनको भी पता नही। इनके इस जूनून के कारण कई बार इनकी जान जाते-जाते भी बची हैं। लेकिन इनको परवाह नहीं। लिखना हैं यानी भ्रष्टाचारियों का पोल खोलना है।
हम इनको लगभग 20 साल से देख रहे हैं। हमेशा फक्कड़ ही रहे है। जेब खाली हो, पेट खाली हो, तो कोई आदमी भला कितने दिन तक आदर्शवादी बना रह सकता हैं। लेकिन ये बीस वर्षो से वैसे के वैसे ही हैं। एक दिन मैं पुछ बैठा-भाई झटपल लाल! आपको किसी ने आॅफर नहीे किया? देखिए आपके संगी-साथी बंगला बना लिए हैं। आॅल्टो कार में घूमते हैं। उनके बच्चे अंग्रेजी स्कूलो में पढ़ते हैं। और आप वही के वही है। तो वो बोले-रामखेलावन भाई आज आपको दिल की सच्ची बात बताता हूँ मन तो कई बार डोला। औरो की तरह मैं भी बंगले बनाऊँ, आॅल्टो मे घूमूँ, बच्चों को पढ़ने विदेश भेजूँ, लेकिन क्या करूँ? इस कला में हम माहिर नही हूँ। पता नहीं कैसे बाकी लोग फरीया लेते हैं। हमसे नहीे होता हैं। एक बार की बात है, मन बहुत डोल गया था। अंदर की इच्छा जागृत हो गई थी।
इस बार मौका मिला तो औरो की तरह हम भी फरीया लेंगे। जानते हैं रामखेलावन भाई मौका भी आया। मेरी एक रिपोर्टिंग पर एक अफसर सस्पेंड हो गया था। मैं अपने घर से निकलकर कचहरी जा रहा था। तभी देखा मेरा मित्र किसी से बतीया रहा है। मैं भी वहाँ पहुँचा। मेरे मित्र ने सामने वाले व्यक्ति से मेरा परिचय करवाया। और कहा-ये झटपट लाल पत्रकार हैं। और ये जन-वितरण प्रणाली के सप्लाई अफसर हैं। वो आदमी मेरा परिचय जानकर चौंका। उस आदमी का परिचय जानकर मैं भी चौंका। यह वही अफसर था जो मेरे रिपोटींग से सस्पेंड हुआ था। तब वह अफसर मुझसे बोला-झटपट लाल जी आपसे एकांत में कुछ बात करना हैं। मैं भी बोला ठीक है बोलिए कब आपसे मिलूँ। तो उस अफसर ने कहा-रविवार को मेरे घर आइए। उस दिन मै उनसे विदा ले अपने काम की ओर निकल गया।
रविवार का दिन आया। मैं अंदर ही अंदर बड़ा खुश हो रहा था कि आज मुझे फरीया लेने का मौका मिला हैै। दिल बाग-बाग उछल रहा था। मेरे अंदर भी शैतान का वास हो चुका था। मेरा विवेक मर चुका था। मैं यह भूल बैठा था-कलम बेची नहीे जाती। खैर मैं तैयार होकर उस अफसर के घर पहुँचा। मैने वहाँ जाकर देखा उस अफसर के दो छोटे-छोटे बच्चे थे। जिनसे उस अफसर ने मेरा परिचय कराया। अपनी पत्नी से परिचय कराया। चाय-पानी का दौर चला। इस बीच वह अफसर अंदर गया। मेरे अंदर में विचारों की आँधी चल रही थी। जब वो अंदर से बाहर आता तब मैं यह सोचता की वह लिफाफा मेरे लिए ला रहा हैं। इस बीच उसकी पत्नी नाश्ते में चाय के अलावे पूड़ी और भूँजिया लेकर आई। अफसर के बच्चे,पत्नी,और वो और मैं साथ में बैठकर नाश्ता करने लगे। नाश्ता खत्म होने के बाद उस अफसर की पत्नी और बच्चे अंदर चले गए। तब उस अफसर ने मुझसे कहा- जानते हैं आपको मैने घर पर क्यों बुलाया था। मैं मन ही मन बड़ा खुश हुआ की अब यह मुख्य मुद्दा पर आएगा और मुझे लिफाफा थमाएगा। तभी वो अफसर बोला आपको मैनें अपनी बीबी और बच्चों से मिलवाने के लिए बुलाया था कि पत्रकार कैसा होता हैं ?मुझे कुछ समझ में नहीे आया कि वो अफसर ऐसा क्यों बोला? मैने अफसर से पूछा आपके कहने का तात्पर्य क्या हैं, मैं समझा नहीं। तब उस अफसर ने जो कुछ मुझे बताया वह सुन मैं भौंच्चक रह गया। उस अफसर ने मुझे बताया शहर के जितने भी अखबार हैं। उनके जो नामी-गिरामी पत्रकार है। वो मेरे पास रात के 8 बजे, 9 बजे, पहुँच जाते हैं, मुझसे खर्चा-पानी के नाम पर रूपये ले जाते है। मेरी पत्नी और मेरे बच्चे पुछते है कि क्या सभी पत्रकार ऐसे होते है?इसलिए मैने आपको अपनी पत्नी और बच्चों से मिलाने के लिए बुलाया कि देखो पत्रकार ऐसे होते है। बिना लालच,बिना भय, के जो लिखते हैं वही पत्रकार सच्चे पत्रकार है। आपके रिपोर्टिंग से ही मैं सस्पेंड हुआ। लेकिन मुझे खुशी हैं कि जब तक आप जैसे पत्रकार हैं, कलम बिक नही सकती। मेरी पत्नी और बच्चे भी आपसे मिलकर बहुत खुश हैं। उस अफसर की बात सुनकर मेरे अंदर का शैतान मर चुका था। मेरा जमीर फिर से जागृत हो चुकी थी। मैं भगवान को धन्यवाद देने लगा, हे! भगवान तुमने मुझे पतन के रास्ते में गिरने से बचा लिया। मन ही मन उस अफसर को धन्यवाद दिया कि मुझे पतन के रास्ते गिरने से रोक लिया। मैं उस अफसर से विदा ले अपने घर की ओर चल पड़ा।

कैदियों-आरोपियों के मानवाधिकारों का प्रश्न

अनूप भटनागर –
न्यायिक हस्तक्षेप के बाद देश की सभी जेलों और पुलिस थानों में महत्वपूर्ण स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने और कैदियों तथा आरोपियों को यातना नहीं देने के निर्देशों के बावजूद हिरासत में मौतों का सिलसिला बदस्तूर जारी है। कैदियों के प्रति सख्ती का ही नतीजा है कि पुलिस और न्यायिक हिरासत में करीब पांच व्यक्तियों की रोजाना मृत्यु होती है। यह तथ्य थानों और जेलों में कैदियों के मानवाधिकारों के प्रति पुलिस तथा जेल प्राधिकारियों की गंभीरता पर सवाल उठाने के लिए काफी है।
न्यायालय ने बार-बार कहा है कि जेलों में बंद कैदियों और थानों में बंद आरोपियों को भी संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त अधिकार प्राप्त हैं और उनके इन अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए। ऐसे व्यक्तियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
न्यायालय ने 2015 में एक फैसले में कहा था कि राज्य सरकारें मानव अधिकार संरक्षण कानून, 1993 की धारा 30 के अनुरूप अपने यहां मानवाधिकार अदालतें स्थापित करेंगी। न्यायालय ने कैदियों के मानव अधिकारों के हनन की घटनाओं को रिकॉर्ड करने के लिए सभी जेलों और थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के आदेश दिये, लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि हिरासत में मौत के घटनास्थल के आसपास के लगे सीसीटीवी काम नहीं कर रहे होते हैं। यही नहीं, अक्सर हिरासत में मौत के मामले में वरिष्ठ अधिकारी तत्काल सख्त कार्रवाई करने की बजाय इसे रफा-दफा करने का प्रयास करते हैं। लेकिन न्यायालय का हस्तक्षेप होने पर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी हरकत में आते हैं और संबंधित मामले से जुड़े थाने के प्रभारी और दूसरे पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं। कई बार तो अदालत को पुलिस हिरासत में मौत के मामले की जांच सीबीआई को भी सौंपनी पड़ जाती है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार हिरासत में यातनाएं देने के आरोप में 2020-21 में 236 मामले दर्ज हुए थे जबकि 2019-20 में इनकी संख्या 411 और 2018-19 में 542 थी। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट भी बताती है कि पिछले 10 साल में 1004 व्यक्तियों की पुलिस हिरासत में मौत हुई।
दिल्ली की कड़ी सुरक्षा वाली तिहाड़ जेल से लेकर पुलिस के थानों तक में हिरासत में कैदियों की मौत का सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। हाल ही में तिहाड़ जेल में बंद विचाराधीन कैदी अंकित गुर्जर की जेल अधिकारियों द्वारा कथित रूप से बुरी तरह पिटाई की वजह से मौत और आगरा में पुलिस हिरासत में एक दलित की मौत की घटना सुर्खियों में रही है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने तिहाड़ जेल में गैंगस्टर अंकित गुर्जर की कथित हत्या का मामला सीबीआई को सौंपा है। इस घटना में अंकित की दूसरे कैदी के साथ हुई कथित मारपीट के दौरान जेल में लगे सीसीटीवी काम नहीं करने का दावा किया गया। आरोप है कि इस मामले में जेल अधिकारियों ने अंकित की बेरहमी से पिटाई की थी। यही वजह है कि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट शब्दों में कहा कि जेल की दीवारें कितनी भी ऊंची हों, जेल की नींव भारत के संविधान में निहित कैदियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने वाले कानून के शासन पर रखी जाती है।
आगरा के एक थाने में दलित अरुण वाल्मीकि की 19 अक्तूबर की रात में पुलिस हिरासत में मौत की घटना को ही लें। इस मामले में जगदीशपुर थाने के मालखाने से 25 लाख चुराने के आरोप में 18 अक्तूबर को युवक को गिरफ्तार किया गया था। उत्तर प्रदेश सरकार की सख्त कार्रवाई की वजह से यह राजनीतिक मुद्दा नहीं बन सका।
इससे पहले, सितंबर महीने में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जौनपुर में पुलिस हिरासत में 24 वर्षीय पुजारी कृष्ण यादव की मौत के मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी। इस पुजारी को 11 फरवरी, 2021 की रात में गिरफ्तार किया था और अगले ही दिन पुलिस हिरासत में उसकी मौत हो गयी थी। उच्च न्यायालय की पहली नजर में ऐसा लगता है कि आरोपी पुलिसकर्मियों ने अपराध किया है, लेकिन उच्च अधिकारियों ने इस पर पर्दा डालने का प्रयास किया।
कोविड-19 में लॉकडाउन के उल्लंघन के आरोप में 19 जून, 2020 को तमिलनाडु के तूत्तुक्कुडि के संत केलम थाने में हिरासत में लिए गए पिता-पुत्र पी. जयराज और उनके बेटे जे. बेनिक्स की मौत का मामला भी ऐसा ही था। मामले के तूल पकडऩे पर इसकी जांच सीबीआई को सौंपी गयी, जिसने 26 सितंबर को नौ पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या और अन्य आरोपों के साथ अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया है। एक गैर-सरकारी संगठन के अनुसार हमारे देश में पुलिस द्वारा गिरफ्तार आरोपियों में से करीब 63 प्रतिशत की मौत उन्हें मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने से पहले ही हो जाती है। अगर इस तथ्य पर विचार किया जाये तो सवाल उठता है कि भले-चंगे आरोपी की पुलिस हिरासत में आने के 24 घंटे के भीतर ही मौत कैसे हो जाती है। गृह मंत्रालय ने 16 मार्च, 2021 को संसद को बताया था कि देश में वर्ष 2020-21 में 28 फरवरी तक न्यायिक हिरासत में 1685 और पुलिस हिरासत में 86 व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी।
इसी तरह, 2019-20 के दौरान न्यायिक हिरासत में 1584 और पुलिस हिरासत में 112 व्यक्तियों की मृत्यु हुई जबकि 2018-19 में 1796 व्यक्तियों की न्यायिक हिरासत और 136 व्यक्तियों की पुलिस हिरासत में मृत्यु हुई। उच्चतम न्यायालय ने हिरासत में कैदियों के साथ मारपीट और उनकी मृत्यु की बढ़ती घटनाओं पर अंकुश पाने के लिए 18 दिसंबर, 1996 और फिर 24 जुलाई, 2015 को फैसले सुनाये। लेकिन ऐसा लगता है कि न्यायिक निर्देशों पर भी कारगर तरीके से अमल नहीं हो रहा है। हिरासत में लोगों की मृत्यु होना चिंताजनक है।

मुंह की दुर्गंध से हैं परेशान तो, बाज़ार से नहीं बल्कि घर पर बनाएं नेचुरल माउथवॉश

कई लोगों के मुंह से बदबू आती है। हालांकि इसके कई कारण हो सकते हैं। जैसे पेट साफ ना होना, सही से ब्रश ना करना, दांतों का सडऩा और धूम्रपान, मसूड़ों की बीमारी, साइनस आदि। हालांकि मुंह की बदबू का पहला कारण बैक्टीरिया होते हैं। ऐसे में खाना खाने के बाद माउथवॉश करना बहुत जरूरी होता है। यूं तो बाजार में कई तरह के माउथवॉश मिल जाते हैं, लेकिन आप घर में मौजूद सामान से इसे आसानी से बना सकते हैं। आइए जानें इस बारे में….
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मुंह की बदबू को दूर करने के लिए आप दालचीनी और लौंग का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे बनाने के लिए पानी में 10-15 बूंद दालचीनी और लौंग का तेल डाल दें। इसे एक बोतल में रख लें और माउथवॉश की तरह इस्तेमाल करें।
एप्पल सिरका का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। यह दांतों के लिए बेहद लाभकारी होता है। इसके लिए 1 कप गर्म पानी में 3 चम्मच एप्पल सिरका अच्छे से मिलाएं और ब्रश करने के बाद इस्तेमाल करें। यह बदबू के साथ दांतों की सडऩ दूर करने में मदद कर सकता है।
मुंह की बदबू से परेशान हैं, तो बेकिंग सोडा की मदद लें। माउथवॉश बनाने के लिए आधा गिलास पानी में आधा चम्मच बेकिंग सोडा मिलाएं। इसे स्टोर कर के रख लें और माउथ वॉश की तरह इस्तेमाल करें।
माउथ वॉश में टी ट्री और पुदीना ऑयल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए एक कप पानी में 8-10 पुदीना और टी ट्री ऑयल मिलाएं और अच्छी तरह से मिक्स करें। बाद में एक चम्मच बेकिंग सोडा मिला दें और माउथवॉश की तरह इस्तेमाल करें। (एजेंसी)

हॉटनेस के मामले में श्वेता तिवारी अपने से आधी उम्र की एक्ट्रेस को भी देती हैं मात

टेलीविजन स्टार श्वेता तिवारी पिछले दो दशकों से अधिक समय से अभिनय इंडस्ट्री का हिस्सा हैं। अभिनेत्री आए दिनों अपने फैंस के बीच अपनी मनमोहक तस्वीरों को शेयर करती रही हैं। 41 साल की अभिनेत्री ने हाल ही सोशल मीडिया पर गोल्डन ड्रेस में अपने लेटेस्ट फोटोशूट की तस्वीरों को शेयर किया है। इन तस्वीरों में अभिनेत्री बेहद ग्लैमरस लग रही हैं। इस तस्वीर को शेयर करने के कुछ ही घंटों बाद हजारों की संख्या में पोस्ट को लाइक्स मिल गए। फैंस अभिनेत्री की तस्वीर पर प्यार लुटाते हुए नजर आ रहे हैं। अभिनेत्री के बारे में बात करें तो श्वेता ने साल 1999 में काम करना शुरू किया था। लोकप्रिय टीवी शो कसौटी जिंदगी की में प्रेरणा शर्मा बजाज का किरदार उनके करियर में अहम रहा। शो 2001-2008 तक चला, जिसने उन्हें एक घरेलू नाम बना दिया। बाद में उन्हें परवरिश, बेगूसराय और मेरे डैड की दुल्हन सहित टेलीविजन सीरीज में देखा गया।एक इंटरव्यू में श्वेता ने कहा, मैं अपने करियर जर्नी से बहुत खुश हूं, यहां तक कि मैंने अपने करियर में जो गलतियां की हैं। मैंने उनसे कुछ सीखा है। मुझे अपने करियर में किसी बात का पछतावा नहीं है।41 साल की अभिनेत्री ने कहा कि उन्होंने हमेशा कुछ अलग करने की कोशिश की है।श्वेता हाल ही में कलर्स पर फिल्म निमार्ता रोहित शेट्टी की तरफ से होस्ट किए गए खतरों के खिलाड़ी के 11वें सीजन में नजर आई थीं। (एजेंसी)

साड़ी को स्टाइलिश लुक देते हैं क्रॉप टॉप, आप भी कर सकती हैं ट्राई

साड़ी एक एथनिक वियर है, साड़ी को पहनना हमेशा से ही महिलाओं की पसंद रहा है. कोई त्योहार, पार्टी या फिर आम दिन साड़ी सभी को एक नया लुक देती है. साड़ी फीमेल के लिए कलर से लेकर फैब्रिक, पैटर्न आदि में एक वाइड रेंज देती है. लेकिन साड़ी को हमेशा से खास लुक उसका ब्लाउज ही देता है. कई बार साड़ी के साथ उसके ब्लाउज का कपड़ा मिलता है या फिर कभी-कभी सेमी स्टिच ब्लाउज भी मिलते हैं, जिनका फीमेल्स अपने हिसाब से बनवाती है.
हालांकि अब जरूरी नहीं है कि आप साड़ी के साथ हमेशा ब्लाउज ही कैरी करें, आप इसके साथ कुछ नया भी ट्राई कर सकती हैं.अगर आप रेग्युलर लुक से हटकर साड़ी पहनने का मन बना रही हैं और खुद को स्टालिश टच देना चाहती हैं, तो सबसे अच्छा तरीका है कि आप ब्लाउज की जगह क्रॉप टॉप को पेयर करें. आपको बता दें कि इन दिनों क्रॉप टॉप के साथ साड़ी को पहनने का एक खास चलन चल रहा है.तो आइए जानते हैं क्रॉप टॉप के साथ साड़ी को किस तरह किया जा सकता हैं-
वी नेक क्रॉप टॉप लगेंगे बेहद अच्छे
इन दिनों प्लंजिंग नेकलाइन ब्लाउज का ट्रेंड सा चल रहा है, ऐसे में आप अपने क्रॉप टॉप से एक स्टेटमेंट लुक क्रिएट करना चाहती हैं आप खुद को स्टाइलिश दिखाने के लिए वी-नेक क्रॉप टॉप को पहन सकती हैं. आप चाहें इसे साड़ी के अपोजिट कलर का भी ट्राई कर सकती हैं.
हाई नेक क्रॉप टॉप
आप साड़ी के साथ खुद को स्टाइलिश दिखाने के लिए हाई नेक क्रॉप टॉप को पेयर कर सकती हैं. इस लुक से आप पार्टीज में सबसे खास दिखेंगे. आप चाहें तो प्रिंटेड फिटेड हाई नेक क्रॉप को भी कैरी कर सकती हैं.इसके साथ आप गले में चोकर को पहने.
कॉलर्ड क्रॉप टॉप
अगर आप अपनी साड़ी को एक ट्विस्ट के साथ पहनकर सबको अपनी तरफ आकर्षित करना है तो ऐसे में कॉलर्ड क्रॉप टॉप भी साड़ी के साथ ट्राई करें. यह कॉलर्ड क्रॉप टॉप विद साड़ी लुक आप ऑफिस से लेकर त्योहार या पार्टी किसी में भी पहनकर स्टाइलिश नजर आ सकती हैं.
पहनें सीक्वेंस क्रॉप टॉप
पार्टी में साड़ी पहनने के लिए इंस्टेंट स्पाइसअप करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप सीक्वेंस क्रॉप टॉप को पहने. इसके लिए साड़ी हैवी हो,प्लेन या प्रिंटेड आप सीक्वेंस क्रॉप टॉप को हर तरह की साड़ी पर पहन सकती हैं.
क्रॉप टॉप की स्लीव्स के साथ करें प्ले
क्रॉप टॉप पहनते समय स्लीव्स के साथ प्ले करके भी आप एक नया लुक कैरी कर सकती हैं. जैसे शोल्डर कट या ऑफ शोल्डर टॉप से स्टालिश लुक लेना. (एजेंसी)

आज का राशिफल

मेष : आर्थिक और व्यावसायिक रूप से आज का दिन लाभदायक है। आर्थिक लाभ मिलेगा। लंबे समय का वित्तीय आयोजन भी कर सकेंगे। शरीर और मन से स्वस्थ रहेंगे। मित्रों और पारिवारिक सदस्यों के साथ खूब आनंद में दिन व्यतीत होगा। लोकहित का कार्य आपके हाथ से होगा।
वृष : विचारों की विशालता और वाणी का जादू आज अन्य को प्रभावित और मंत्रमुग्ध करेगा। लोगों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रहेगा। बौद्धिक चर्चा या वाद-विवाद में सफलता मिलेगी। वाचन एवं लेखन में अभिरुचि बढ़ेगी। विद्यार्थियों के लिए अच्छा समय है। परिश्रम के अनुपात में कम सफलता मिलने पर भी निष्ठापूर्वक आप आगे बढ़ेंगे।
मिथुन : महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने में आप द्विधा अनुभव करेंगे। माता और स्त्रियों के मामले में अधिक संवेदनशील बनेंगे। विचारों की भरमार से मानसिक थकान अनुभव करेंगे। अनिद्रा के कारण शारीरिक अस्वस्थता रहेगी। हो सके तो प्रवास टालें।
ककर् : कार्य की सफलता और नए कार्य के शुभारंभ के लिए आज का दिन अच्छा रहेगा। मित्रों तथा स्वजनों के साथ की मुलाकात से आप खुशहाल रहेंगे। लघु यात्रा का योग है। भाई-बंधुओं से मेलजोल बना रहेगा। प्रिय व्यक्ति के सानिध्य से मन रोमांचित बनेगा। आर्थिक लाभ तथा समाज में आदर सम्मान मिलेगा। आज प्रेम के बंधन में बंधेंगे।
सिंह : दूर बसने वाले स्नेहीजन तथा मित्रों के साथ के संदेश व्यवहार से आपको लाभ होगा। परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी। उत्तम भोजन की प्राप्ति होगी। अपनी वाकपटुता से किसी के मन को जीत सकते हैं। निर्धारित काम में सफलता मिलेगी। स्त्री मित्र आपको सहायक साबित होंगी।
कन्या : वैचारिक समृद्धि और वाणी की मोहकता से आपको लाभ होगा। व्यवसाय की दृष्टि से आज का दिन लाभदायक साबित होगा। आपका स्वास्थ्य बना रहेगा और मन भी स्वस्थ रहेगा। सगे- संबंधियों के साथ मुलाकात होगी औऱ सुख-आनंद की प्राप्ति होगी। धन लाभ तथा पर्यटन का योग है।
तुला : आपकी वाणी और व्यवहार को संयम में रखना पड़ेगा। अन्य व्यक्तियों या कुटुंबीजनों के साथ उग्र बोलाचाल होने की संभावना है। परोपकार का बदला उपकार से मिल सकता है। आय की अपेक्षा खर्च की मात्रा बढ़ेगी। तबीयत का ध्यान रखें। दुविधाएं और समस्याएं मन की शांति हर लेंगी।
वृश्चिक : आप गृहस्थजीवन में सुख और संतोष की अनुभूति करेंगे। पत्नी तथा पुत्र की तरफ से शुभ समाचार मिलेगा। मांगलिक कार्य होंगे। विवाह के लिए संयोग बनेंगे। नौकरी धंधे में अच्छे अवसर खड़े होने से आय में वृद्धि होगी। मित्रों के साथ पिकनिक का आयोजन होगा। स्त्री मित्रों से लाभ होने का योग है।
धनु : आर्थिक और व्यापारिक आयोजन करने के लिए शुभ दिन है। कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होगा। आमोद-प्रमोद के साथ आपका दिन व्यतीत होगा। नौकरी- व्यवसाय में पदोन्नति और मान-सम्मान प्राप्त होगा। गृहस्थजीवन में आनंद रहेगा।
मकर : आपका आज का दिन मिश्र फलदायक साबित होगा। बौद्धिक कार्यों और व्यवसाय में नई विचारधारा अमल में लाएंगे। लेखन और साहित्य से संबंधित प्रवृत्तियों में आपकी सृजनात्मकता दिखाई देगी। फिर भी मन के किसी कोने में आपको अस्वस्थता अनुभव होगा। संतानों की समस्याओं से चिंता पैदा होगी।
कुंभ : नकारात्मक विचारों से मन में हताशा पैदा होगी। इस समय मानसिक उद्वेग और क्रोध की भावना का अनुभव करेंगे। खर्च बढ़़ेगा। वाणी पर संयम न रहने के कारण परिवार में मनमुटाव और झगड़े होने की संभावना है। स्वास्थ्य खराब होगा।
मीन : आपका आज का दिन सुख-शांति से व्यतीत होगा। व्यापारियों को भागीदारी के लिए उत्तम समय है। पति पत्नी के बीच दांपत्यजीवन में निकटता का अनुभव होगा। (एजेंसी)

 

बिजली संकट से उबरने की बने नीति

भरत झुनझुनवाला
बीते समय बरसात में कोयले की खदानों में पानी भरने से अपने देश में कोयले का उत्पादन कम हुआ था। बिजली का उत्पादन भी कम हुआ और कई शहरों में पॉवर कट लागू किए गए। फिलहाल बरसात के कम होने से यह संकट टल गया है लेकिन यह केवल तात्कालिक राहत है। हमें इस समस्या के मूल कारणों का निवारण करना होगा अन्यथा इस प्रकार की समस्या बार-बार आती रहेगी।
वर्तमान बिजली संकट के तीन कथित कारणों का पहले निवारण करना जरूरी है। पहला कारण बताया जा रहा है कि कोविड संकट के समाप्तप्राय हो जाने के कारण देश में बिजली की मांग बढ़ गई है, जिसके कारण यह संकट पैदा हुआ है। यह स्वीकार नहीं है क्योंकि अप्रैल से सितंबर 2019 की तुलना में अप्रैल से सितंबर 2021 में कोयले का 11 प्रतिशत अधिक उत्पादन हुआ था। इसी अवधि में देश का जीडीपी लगभग उसी स्तर पर रहा। यानी कोयले का उत्पादन बढ़ा और आर्थिक गतिविधि पूर्व के स्तर पर रही। इसलिए बिजली का संकट घटना चाहिए था, न कि बढऩा चाहिए था जैसा कि हुआ है।
दूसरा कारण बताया जा रहा है कि कोयले के खनन में बीते कई वर्षों में निवेश कम हुआ है। बिजली उत्पादकों का रुझान सोलर एवं वायु ऊर्जा की तरह अधिक हो गया है। यह बात सही हो सकती है लेकिन इस कारण बिजली का संकट पैदा नहीं होना चाहिए था। कोयले के खदान में जितने निवेश की कमी हुई है, यदि उतना ही निवेश सोलर और वायु ऊर्जा में किया गया तो कोयले से बनी ऊर्जा में जितनी कमी आयी होगी, उतनी ही वृद्धि सोलर और वायु ऊर्जा में होनी चाहिए थी। ऊर्जा क्षेत्र में कुल निवेश कम हुआ हो, ऐसे संकेत नहीं मिलते हैं। इसलिए कोयले में निवेश की कमी को संकट का कारण नहीं बताया जा सकता।
हाल में आए बिजली संकट का मूल कारण ग्लोबल वार्मिंग दिखता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण एक तरफ बिजली का उत्पादन कम हुआ तो दूसरी तरफ बिजली की मांग बढ़ी है। पहले उत्पादन पर विचार करें, जैसा ऊपर बताया गया है, बीते समय में बाढ़ के कारण कोयले का खनन कम हुआ था। यह बाढ़ स्वयं ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ी है, ऐसे संकेत मिल रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग से वर्षा कम समय में अधिक मात्रा में होने का अनुमान है जो कि बाढ़ का कारण बनता है। इसलिए बाढ़ को दोष देने के स्थान पर हमको ग्लोबल वार्मिंग पर ध्यान देना होगा। ग्लोबल वार्मिंग का दूसरा प्रभाव यह रहा है कि अमेरिका के लुजियाना और टेक्सास राज्यों में कई तूफान आए। इन्हीं राज्यों में तेल का भारी मात्रा में उत्पादन होता है, जिससे विश्व अर्थव्यवस्था में तेल की उपलब्धि कमी हुई और कोयले का उपयोग बढ़ा। विश्व बाजार में कोयले की मांग बढ़ी, दाम बढ़े और हमारे लिए आयातित कोयला महंगा हो गया, जिसके कारण अपने देश में भी संकट पैदा हुआ। ग्लोबल वार्मिंग का तीसरा प्रभाव चीन में रहा है। चीन के कई क्षेत्रों में सूखा पड़ा है, जिसके कारण जल विद्युत का उत्पादन कम हुआ है और कई क्षेत्रों में हवा का वेग कम रहा है, जिसके कारण वायु ऊर्जा का उत्पादन कम हुआ है। इन तीनों रास्तों से ग्लोबल वार्मिंग ने कोयले और बिजली की उपलब्धि को कम किया है। दूसरी तरफ ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही ऊर्जा की मांग बढ़ी है। बीते वर्ष यूरोप एवं अन्य ठंडे देशों में सर्दी का समय लंबा खिंचा है, जिसके कारण वहां घरों को गर्म रखने के लिए तेल की खपत बढ़ी है। इस प्रकार ग्लोबल वार्मिंग के कारण एक तरफ बाढ़, तूफान और सूखे के कारण ऊर्जा का उत्पादन गिरा है तो दूसरी तरफ मकानों को गर्म रखने के लिए तेल की खपत बढ़ी है। इस असंतुलन के कारण विश्व में तेल और कोयले का दाम बढ़ा है और इसका प्रभाव भारत में भी पड़ा है।
हम अपनी खपत का 85 प्रतिशत तेल और 10 प्रतिशत कोयला आयात करते हैं। यूं तो यह 10 प्रतिशत कम दिखता है लेकिन आयातित कोयले के महंगा हो जाने के कारण आयातित कोयले पर चलने वाले घरेलू बिजली संयंत्रों से बिजली का उत्पादन महंगा पडऩे लगा, जिसे बिजली बोर्डों ने खरीदने से मना कर दिया। कई बिजली संयंत्र बंद हो गए। इनके बंद होने से जो बिजली उत्पादन में कटौती हुई, उसकी पूर्ति अन्य माध्यम से नहीं हो सकी क्योंकि कोयले के घरेलू उत्पादन में कटौती हुई। इसलिए अपने देश में यह समस्या पैदा हो गई।
आने वाले समय में ऐसी समस्या पुन: उत्पन्न न हो, इसके लिए हमें दो कदम उठाने होंगे। पहली बात यह कि देश में ऊर्जा का खपत कम करनी होगी। हमारे पास कोयले के भंडार केवल 150 वर्षों के लिए उपलब्ध हैं और तेल के लिए हम आयातों पर निर्भर हैं। इसलिए हमें देश में ऊर्जा के मूल्य को बढ़ाना चाहिए और उस रकम को ऊर्जा के कुशल उपयोग के लिए लगाना चाहिए। जैसे यदि सरकार बिजली का दाम बढ़ा दे और कुशल बिजली की मोटरों को लगाने के लिए सब्सिडी दे तो देश में ऊर्जा की खपत कम होगी लेकिन उद्यमी को नुकसान नहीं होगा और हमारा जीडीपी प्रभावित नहीं होगा। दूसरा, सरकार को बिजली के मूल्यों में उसी प्रकार मासिक परिवर्तन करना होगा, जिस प्रकार तेल के मूल्यों में दैनिक परिवर्तन किया जा रहा है। वर्तमान व्यवस्था में बिजली बोर्डों को उत्पादकों से ईंधन के मूल्य के अनुसार खरीदनी पड़ती है। जब अंतर्राष्ट्रीय कोयले अथवा तेल के दाम बढ़ जाते है तो इन्हें महंगी बिजली खरीदनी पड़ती है। लेकिन उपभोक्ताओं को इन्हें उसी पूर्व के मूल्य पर बिजली बेचनी पड़ती है क्योंकि उपभोक्ताओं को किस मूल्य पर बिजली बेची जाएगी, यह लंबे समय के लिए विद्युत नियामक आयोगों द्वारा निर्धारित किया जाता है। इसलिए बिजली बोर्डों के सामने संकट पैदा हो गया है। एक तरफ उन्हें महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है लेकिन उपभोक्ता से वे पूर्व के अनुसार बिजली के कम दाम ही वसूल कर सकते हैं। इसलिए हमें व्यवस्था करनी होगी कि बिजली के दामों में भी उसी प्रकार परिवर्तन किया जाए, जिस प्रकार डीजल और पेट्रोल के दाम में परिवर्तन होता है। तब बिजली बोर्ड खरीद के मूल्य के अनुसार उपभोक्ता को महंगी अथवा सस्ती बिजली उपलब्ध करा सकेंगे और इस प्रकार का संकट पुन: उत्पन्न नहीं होगा।
लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।
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इस दीपावली सजाएं ये 7 प्रकार की पारंपरिक आकर्षक रंगोली

दीपावली के पर्व पर हर घर-आंगन में रंगोली सजाई जाती है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार किसी भी प्रकार के मंगल कार्य में रंगाली का बहुत महत्व है। दीपों के पर्व दिवाली की तो रंगोली के बिना इस त्योहार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। समय के साथ-साथ रंगोली बनाने के तरीकों में बदलाव आया है, लेकिन इसे लेकर उत्साह बिल्कुल कम नहीं हुआ। यही कारण है कि पारंपरिक रंगोली का नयापन भी मन को मोहता है।

जानिए रंगोली के 7 प्रकार और तरीके-

रंगों की ओली- रंगों की सहायता से, कई लयबद्ध बिंदुओं को मिलाते हुए रंगोली की कई सुंदर-सुंदर आकृतियां बनाई जाती हैं, जो बेहद आसान और आकर्षक होती है। यह तरीका आसान होने के कारण युवतियों के साथ ही छोटी बालिकाएं भी आसानी से रंगोली को आकार दे सकती हैं। इसके बाद इसमें अपने अनुसार रंग भरकर इसे और भी आकर्षक बनाया जाता है। तब तैयार होती है, खूबसूरत रंगोली। अगर आपको रंगोली बनाना कठिन लगता है, तो आपके लिए सबसे बेहतर तरीका यही है। इसके लिए बाजार में किताब उपलब्ध है।
मांडना- वर्तमान में रंगोली का प्रचलन सबसे अधिक है, लेकिन पुरानी परंपरानुसार आज भी आंतरिक इलाकों में मांडने बनाए जाते हैं। यह घर के आंगन या फर्श पर प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर आकर्षक ढंग से बनाए जाते हैं। आप अगर ही दिन रंगोली नहीं बनाना चाहते तो मांडना पारंपरिक और खूबसूरत तरीका है।मांडने की एक खासियत यह भी है, कि यह लंबे समय तक बने रहते हैं। इसे बनाने के लिए गीले रंगों का प्रयोग किया जाता है, जो सूखने के बाद लंबे समय तक उतने ही आकर्षक नजर आते हैं।
फूलों की रंगोली- रंगोली बनाने का एक बेहद खूबसूरत तरीका यह भी है। दुनिया में फूलों से ज्यादा सुंदर चीज और कुछ भी नहीं। इन्हीं रंगबिरंगे फूलों और पंखुडिय़ों का प्रयोग कर जब रंगोली बनाई जाती है, तो यह न केवल आंखों को खूबसूरत दिखाई देती है, बल्कि इसकी महक से आपका मन भी इस खूबसूरती को महसूस करने लगता है। दक्षिण भारत में खास तौर से इस तरह की रंगोली बनाई जाती है, और अब हर जगह यह प्रचलन है।
तैलीय रंगों की रंगोली- जी हां, तैलीय रंगों और सामान्य पक्के रंगों द्वारा भी रंगोली बनाई जाती है, जो लंबे समय तक बरकरार रहती है। इसे बार-बार बनाने की आवश्यकता नहीं होती। और आप इसके लिए जितने चाहें उतने रंगों का इस्तेमाल कर सकते हैं। आप इसे सीधे ब्रश की सहायता से मनचाही आकृतियों में घर के आंगन, फर्श या फिर आप जहां चाहें बना सकते हैं।
कृत्रिम सांचों से बनी रंगोली- यह रंगोली बाजार में उपलब्ध अलग-अलग आकृतियों और सांचों से बनाई जाती है, जिसके लिए आपको हाथ से मेहनत करने की जरूररत नहीं होती। बस सांचे में रंगोली भरकर अपने अनुसार आकृतियां उकेरी जा सकती हैं। इसमें पहले जमीन पर छन्नी से रंगों को समान रूप से फैलाया जाता है, उसके बाद सांचे या फिर छापों की सहायता से सफेद रंगोली का उपयोग कर आकृतियां बनाई जाती है। यह रंगोली आपके लिए बनाना आसान भी होगा और समय की बचत भी होगी।
प्राकृतिक रंगोली- अगर आप बाजार में मिलने वाली रंगोली का उपयोग नहीं करना चाहते, तो घर में प्राकृतिक रंगोली तैयार कर आकृतियां बना सकते हैं। इसके लिए आप घर पर ही सूजी व चावल के आटे को अलग-अलग रंगों में रंग सकते हैं। इसके अलावा हल्दी, मसूर की दाल व बेसन का उपयोग कर सकते हैं।
दीपों की रंगोली- घर के बरामदे या बड़े आंगन में कई दीपों और फूलों की पंखुडिय़ों को सजाकर बनाई गई यह रंगोली जगमगाती हुई बेहद आकर्षक लगती है। खास तौर से दीपावली की रात यह रंगोली बनाई जाती है, जो पूरे वातावरण को रौशन करने के साथ ही महका देती है। आप इसके लिए खुशबूदार दीपों का प्रयोग भी कर सकते हैं। इन सात तरीकों से आप अपने आंगन की रंगोली को सजा सकते हैं।(एजेंसी)

प्रवासी मजदूरों की बढ़ती समस्याएं एवं रोजगार के हालात

विकास कुमार –
कोरोना महामारी के विकराल रूप से सभी प्रकार के वर्ग एवं समुदाय प्रभावित हुआ है। रोजगार के हालात कुछ ऐसे हैं कि काम मिल पाना भी मुश्किल हो रहा है। बहुत से लोगों की नौकरियां छूट रही है। मजदूर काम के लिए भटक रहा है क्योंकि उनको काम नहीं मिल रहा है। इस प्रकार के हालात में एक तरफ रोजगार की समस्या और दूसरी इस तरफ महंगाई की मार, इस दौर में आम आदमी की जिंदगी भटके हुए मुसाफिर की तरह हो गई। आज इस महामारी से सर्वाधिक परेशानी दिहाड़ी मजदूरों को हो रही है, क्योंकि एक ओर इस विकराल प्रकोप से लड़ रहा है, दूसरी ओर भूखमरी, रोजमर्रा की जिंदगी और दैनिक समस्याओं से भी जूझ रहा है। दिहाड़ी मजदूर असंगठित क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं जिनका प्रतिदिन खाना और प्रतिदिन कमाना होता है। इस श्रेणी में- दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा चालक ,मोची ,नाई ,घरों में काम करने वाले ,दुकानों में काम करने वाले लोग , ठेला लगाने वाले लोग और पल्लेदारी करने वाले आदि इसी श्रेणी में आते हैं । यह प्राय: अपने गांव या जिले से स्थानांतरण करके दूसरे शहर या प्रदेश में रोजी-रोटी की तलाश में आते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में ऐसे कामगार वर्गों की आबादी 27 फ़ीसदी यानी 45 करोड़ है। इनमें से कुछ 200 कुछ 400 एवं कुछ ?600 प्रतिदिन कमाते हैं। इस पैसे से यह अपना और अपने संपूर्ण परिवार का खर्च चलाते हैं और उनका भरण पोषण करते हैं । किसी परिवार में कमाने वाला केवल एक ही व्यक्ति होता है और वही संपूर्ण परिवार की आवश्यकता की पूर्ति करता है। इस प्रकार की दिहाड़ी मजदूरों की संख्या सबसे अधिक उत्तर प्रदेश एवं बिहार की है। जो महाराष्ट्र ,दिल्ली एवं गुजरात में रहकर अपना जीवन यापन करते हैं । महाराष्ट्र सरकार ने पहले ही लॉकडाउन की घोषणा कर दिया । जिसमें भारी संख्या में मजदूरों का पलायन गांव की ओर हुआ । पिछले वर्ष सरकार के अचानक लॉकडाउन कर देने की वजह से कुछ को पैदल , कुछ को बस में एवं कुछ को बीच में ही रुकना पड़ा। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि यह समस्या केवल असंगठित क्षेत्र की है। संगठित क्षेत्र के भी सभी प्रकार के उद्योग- धंधे एवं व्यापार- वाणिज्य बंद हैं। एक देश का दूसरे देश से आयात निर्यात पूर्णतया है बंद है। ऐसे में बड़े-बड़े उद्योग एवं कंपनियां भी बंद पड़ी हुई हैं। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन के अनुसार ,भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की संख्या अधिक है इसलिए इनकी समस्याएं भी अधिक हैं। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, लॉकडाउन के चलते विश्व में गरीबी रेखा का स्तर बढ़ा है । जिसमें सबसे अधिक भारत का (27त्न) है। बीते 6 माह में 1 करोड़ 20 लाख लोग प्रत्यक्ष रूप से गरीबी की चपेट में आए हैं। वही 3 करोड़ 50 लाख बी0पी0एल धारकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है । यह दिहाड़ी मजदूर दिन प्रतिदिन काम करके अपना जीवन यापन करते हैं। इनमें से अधिकतम के पास घर नहीं होता , झुग्गी झोपड़ी बनाकर रहते हैं। एक ही झुग्गी में पूरा परिवार रहता है। ऐसे में ना ही फिजिकल दूरी और ना ही सामाजिक दूरी की आशा की जा सकती है। आज यह अपनी दैनिक आवश्यकताएं पूरे करने में असमर्थ हैं। मास्क , सैनिटाइजर की उम्मीद ही नहीं की जा सकती। ऐसा नहीं है कि लापरवाही के कारण कर रहे हैं। बहुत से मजदूरों और लोगों में देखा गया है कि वह अपना गमछा ( साफी) , महिलाएं साड़ी ( फाड़ कर बनाया गया छोटा कपड़ा) और बच्चों को घर में पड़े कपड़े का मास्क इत्यादि बनाकर उपयोग कर रहे हैं। इनके पास मास्क और सैनिटाइजर का पैसा आएगा कहां से? संपूर्ण रोजगार के अवसर तो बंद पड़े हैं। काम की तलाश में इधर-उधर भटक भी रहे हैं। जिससे कि अपनी रोजी-रोटी चला सके परंतु काम कैसे मिले ? शहर में स्वयं का घर ना होने के कारण झुग्गी और झोपड़ी बनाकर रहते हैं । कई शहरों से इनकी झुग्गी झोपडिय़ां खाली करा दी गई । इनका गांव की ओर पलायन हुआ , कुछ गांव ने इनका प्रवेश ही वर्जित कर दिया जिसने प्रवेश दिया भी वहां किसी भी प्रकार की सहायता नहीं दी गई। एक और महामारी का प्रकोप, दूसरी ओर सामाजिक विभेद और रोटी की समस्या, ऐसी स्थिति में क्या करें? इस स्थिति में परिवार का सदस्य बीमार हो जाए तो वह क्या करेगा इसका उल्लेख ही नहीं किया जा सकता ?
अधिकतम मजदूर यह बताते हैं कि उनके पास साहूकारों का कर्ज है। यदि वह गांव जाएंगे तो उनसे कर्ज मांगा जाएगा। पिछला कर्ज ना चुका पाने के कारण इस बार पैसा भी नहीं मिल सकेगा। ऐसी स्थिति में विकल्प विहीन मजदूर अपने भाग्य को कोसने और रोने के अतिरिक्त कुछ कर नहीं सकता है। सरकारों के पास इनके समस्याओं का किसी भी प्रकार का ठोस हल नहीं है। यद्यपि , सरकारों ने राहत पैकेज की घोषणा जरूर की । क्या उसका फायदा सभी वर्गों को मिल पाया है? वर्ल्ड इकोनामिक फोरम के अनुसार पिछले वर्ष के राहत पैकेज से लगभग 13 करोड लोग वंचित रह गए थे। भारत में सभी मजदूरों के पास ना ही लेबर कार्ड, ना ही राशन कार्ड और ना ही बैंक अकाउंट है। ऐसे में सरकार के राहत पैकेज का फायदा कितने लोग उठा पाएंगे। यह बड़ा प्रश्न है! असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों को ना ही छुट्टी का पैसा मिलता है , ना ही किसी भी प्रकार की सुविधाएं। इनको प्रतिदिन काम के अनुसार पैसा दिया जाता है। सरकार के पास भी करोना कि दूसरी लहर के चेन को तोडऩे के लिए संपूर्ण लॉकडाउन के अतिरिक्त दूसरा विकल्प नहीं है। एक्सपर्ट्स के बयान भी सामने आ रहे हैं जिसमें वह संपूर्ण लॉकडाउन की सलाह दे रहे हैं। इसमें यह भी देखने की जरूरत है की संपूर्ण लॉकडाउन के लिए क्या देश तैयार है? क्या सरकार तैयार है? सभी प्रकार की बुनियादी आवश्यकताएं एवं जरूरतों की पूर्ति वह कर सकेगी? महाराष्ट्र में लॉकडाउन को लेकर ही कुछ इलाकों में धरना प्रदर्शन हुआ। यदि इस महामारी की चेन को तोडऩा है तो लॉकडाउन लगाना चाहिए। उसके लिए ठोस तैयारियां और सभी प्रकार के आवश्यक संसाधनों को भी जुटा लेना चाहिए। जिससे कि आवश्यकता पडऩे पर उसका उपयोग किया जा सके। इस साल लॉकडाउन में दिहाड़ी मजदूरों एवं प्रतिदिन काम करने वाले व्यक्तियों की समस्याओं का अत्यंत ध्यान रखना चाहिए। केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को चाहिए कि उनके समस्याओं के लिए ठोस कदम उठाएं। विभिन्न प्रकार की योजनाएं और परियोजनाओं को संचालित करना चाहिए जिसका प्रत्यक्ष लाभ उठा सकें। जो भी राहत पैकेज केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा घोषित किया जाता है , शत-प्रतिशत नहीं मिल पाता। सरकार को चाहिए कि इस कार्य हेतु विशिष्ट अधिकारियों को नियुक्त करें। जो अपना काम निष्ठा के साथ करें। बहुत से लोगों के पास पैकेज का लाभ उठाने के लिए प्रमाण पत्रों का अभाव है। जिसमें यह देखना चाहिए की आवश्यक दस्तावेज ना होने के बावजूद भी उनको इसका लाभ दिया जाए। राशन सामग्री और अधिक दी जाए, क्योंकि यह मूलभूत आवश्यकता है। यदि इन बुनियादी आवश्यकताओं पर ध्यान नहीं दिया गया तो महामारी से ज्यादा भुखमरी से लोग मरेंगे। इस क्रोना प्रकोप के चलते सरकार को कई प्रकार के भोजनालयों की भी व्यवस्था करनी चाहिए। जिसमें वंचित वर्ग भोजन कर सके। समाज और शेंठ भी आश्रितों की यथासंभव सहायता दे । मजदूरों की बस्तियों में पानी का संकट भी देखा जा रहा है ,क्योंकि लॉकडाउन लगने से सार्वजनिक नलों से पानी भर नहीं पा रहे हैं ।अन्य लोग अपने घरों से पानी दे नहीं रहे हैं। उनको भी कोविड-19 का खतरा लग रहा है। जहां पानी इत्यादि समस्या है वहां टैंकरों की व्यवस्था करनी चाहिए। क्योंकि पानी एक मूलभूत आवश्यकता है। अधिक संख्या में मजदूरों का गांव में पलायन करने के कारण , वहां के हालात भी बिगड़ चुके हैं। गांव में ना ही स्वास्थ्य की उचित सुविधा है और ना ही ज्यादा टेस्टिंग हो रही है। इस बार करो ना कि यह लहर गांव को भी परेशान कर रही है। पिछले वर्ष भारत से अधिक अन्य विकसित देशों की स्थिति गंभीर थी परंतु एक और उन्होंने कोरोनावायरस से लड़ा , दूसरे ओर अपने स्वास्थ्य के ढांचे को विकसित किया । यही कारण रहा कि आज वहां यह महामारी नियंत्रण में है। मजदूरों की समस्याओं के निदान हेतु सरकार और समाज दोनों को प्रयास करना चाहिए । लॉकडाउन से सबसे अधिक परेशानी का सामना उन्हीं को करना पड़ेगा।
( लेखक – इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय केंद्रीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के राजनीति विज्ञान विभाग में रिसर्च स्कॉलर हैं)

इस बार अधिक सुरक्षा और सावधानी से मनाएं त्योहार

डॉ. नितिन म. नागरकर
सरकार के अथक प्रयास और जनभागीदारी की बदौलत कुछ ही दिनों में देश में कोरोना टीकाकरण में सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया जाएगा। भारत जैसे विशाल जनसंख्या घनत्व वाले देश के लिए यह एक अहम उपलब्धि है। देश के कोने कोने में हमारे कोरोना वॉरियर ने टीका पहुंचाया। लेकिन सरकार की रणनीति और इन योद्धाओं की मेहनत तब ही कारगर होगी जब हम आने वाले कुछ महीने में और अधिक समझदारी का परिचय देगें। कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है, कुछ राज्यों में अभी भी एक्टिव केस का प्रतिशत ज्यादा है। वैक्सीन को लोगों ने कोरोना से सुरक्षा के हथियार को अपना लिया है उन्हें भी त्योहार में विशेष एहतियात बरतनी होगी।
अधिक दिन नहीं हुए जब देश ने कोरोना की दूसरी लहर का एक भयानक मंजर देखा। मुझे याद है हमारे रायपुर एम्स में मरीजों की लाइन लगी हुई थी और हम उपलब्ध संसाधनों में सभी को इलाज और ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की भरकस कोशिश कर रहे थे। एक एक जान बचाने के लिए दिन रात ड्यूटी पर तैनात नर्स और डॉक्टर्स, वहीं मेडिकल संसाधनों की जरूरत के अनुसार आपूर्ति करने में सरकार की कोशिशें, वह सब कुछ ऐसे नहीं भुलाया जा सकता। कोरोना की दूसरी लहर में जिन लोगों ने अपने प्रियजनों को खोया वह अभी तक उस गम से उबर नहीं पाए है। आने वाले कुछ महीने इस संदर्भ में अति महत्वपूर्ण होने वाले हैं, कोरोना संक्रमण अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। हमारे देश में त्योहारों को हर्षोल्लाष के साथ मनाने की परंपरा रही है, हम एक दूसरे के घर जाते हैं, समूह में अपनी खुशियों को सबके साथ साझा करते हैं, लेकिन हमें इस बात को अच्छी तरह याद रखना है कि कोरोना महामारी अभी खत्म नहीं हुई है। जिन लोगों ने कोविड की पहली या दूसरी डोज ले ली है, उन्हें भी त्योहारों में कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करना है। निर्धारित दूरी, मास्क का प्रयोग और नियमित रूप से हाथ धोते रहने की आदत को व्यवहार में शामिल करें, ऐसा करने से हम अपने आसपास के वातावरण को कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रख सकते हैं। इस संदर्भ में केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य सचिव द्वारा सितंबर महीने में ही राज्यों को दिशा निर्देश जारी कर त्योहार के समय कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करने के लिए अनुचित बंदोबस्त करने के निर्देश दिए गए। सामूहिक रूप से मनाए जाने वाले त्योहार व्यक्तिगत तरीके से घर पर मनाएं जा सकते हैं, हम फोन या वीडियो कॉल के माध्यम से अपने प्रियजनों को त्योहारों की बधाइयां दे सकते हैं। रायपुर में इस बारे में लंबे समय से लोगों को जागरूक किया जा रहा है, छत्तीसगढ़ में आयोजित होने वाले पारंपरिक त्योहार पर स्वास्थ्य विभाग और सरकार की पूरी नजर है। कोरोना के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए स्वास्थ्य विभाग की मोबाइल वैन जिला स्तर पर भेजी गई जिससे गांव व हाट बाजार में भी लोग संक्रमण के प्रति जागरूक हो सकें। त्योहार पर लोगों की खुशियां बाधित न हो, इसके लिए पहले से ही सभी को कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
(लेखक निदेशक, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, रायपुर, छत्तीसगढ़ हैं)

डीसी रांची के निर्देश पर मोराबादी मैदान में मॉर्निंग वॉकर्स के लिए विशेष वैक्सीनेशन कैम्प

रांची, उपायुक्त रांची श्री छवि  रंजन के निदेशानुसार  रांची जिला में कोविड-19 वैक्सीनेशन कार्य युद्ध स्तर पर कराया जा रहा है। शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार  अभियान के तहत लोगों का कोविड टीकाकरण कराया जा रहा है।

इसी अभियान के तहत 1 नवम्बर 2021 को मोराबादी मैदान स्थित बापू वाटिका में कोविड-19 वैक्सीनशन हेतु विशेष कैम्प लगाया गया। यह विशेष कैम्प मॉर्निंग वॉक करने वाले लोगों के लिए लगाया गया।

यह कैम्प सवेरे 6 बजे से 10 बजे तक संचालित किया जाता है। इस कैम्प में ऑन स्पॉट रेजिस्ट्रेशन की सुविधा है।

इस वैक्सीनशन कैम्प में सवेरे टहलने वाले लोगों के अलावा सवेरे कार्यालय जाने वाले तथा अन्य लोग भी अपना कोविड टीकाकरण करवा सकते हैं।

टीके से परहेज

ऐसे वक्त में जब देश एक सौ चार करोड़ से अधिक लोगों को टीके की पहली डोज लगा चुका है, कुछ विसंगतियां हमारी चिंता बढ़ाने वाली साबित हो रही हैं जो कहीं न कहीं कोरोना के खिलाफ जीती जा रही लड़ाई को कमजोर कर सकती हैं। हाल ही में एक परेशान करने वाला यह तथ्य सामने आया है कि देश में करीब ग्यारह करोड़ लोगों ने पहली खुराक के बाद दूसरी खुराक का समय आ जाने के बावजूद टीका नहीं लगवाया। सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि देश में लगभग चार करोड़ वयस्क दूसरी खुराक के लिये निर्धारित तिथि से छह सप्ताह से अधिक लेट हो चुके हैं। इसी तरह डेढ़ करोड़ लोगों को दूसरी डोज के समय से चार से छह सप्ताह अधिक हो चुके हैं। वहीं डेढ़ करोड़ लोग दो से चार सप्ताह गुजरने के बावजूद टीका लगवाने नहीं पहुंचे। साथ ही करीब 3.38 करोड़ लोग दूसरे टीके की निर्धारित अवधि से दो सप्ताह बीत जाने के बावजूद टीका लगाने को उत्सुक नजर नहीं आते। ऐसे समय में जब देश में कोविशील्ड व कोवैक्सीन के अलावा स्पूतनिक-वी वैक्सीन उपलब्ध हैं और उनका भारत में ही उत्पादन हो रहा है, टीके लगाने में उदासीनता का कारण समझ से परे है। देश में पर्याप्त मात्रा में टीके उपलब्ध हैं और देश अब जरूरतमंद देशों को निर्यात का भी मन बना चुका है। ऐसे में जब पहले टीके की खुराक ले चुके लोग दूसरा टीका लेने में कोताही बरत रहे हैं तो अधिकारियों को भी ऐसे लोगों को टीका लगाने के लिये तैयार करने के लिये अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। यह चिंता की बात है कि पिछले दिनों इस गंभीर समस्या के बाबत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री द्वारा आहूत बैठक में कुछ उत्तरी राज्यों ने भाग नहीं लिया। भले ही हमने सौ करोड़ टीकाकरण का मनोवैज्ञानिक लक्ष्य छू लिया हो लेकिन अभी तीसरी लहर का खतरा टला नहीं है। ऐसे में कोई ऐसी चूक नहीं होनी चाहिए जो कालांतर आत्मघाती साबित हो।
भारत जैसे बड़ी आबादी और सीमित संसाधनों वाले देश में यह गर्व की बात है कि हम देश की 76 फीसदी आबादी को टीके की एक खुराक और बत्तीस फीसदी लोगों को दोनों खुराक दे चुके हैं। विगत में कई वैज्ञानिक अध्ययन इस बात की पुष्टि कर चुके हैं कि टीके की एक खुराक की तुलना में दो खुराक कोविड-19 के खिलाफ अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षा प्रदान करती है। ऐसे में यह विश्वसनीय निष्कर्ष स्वयं में प्रमाण है और लोगों को दोनों डोज लेने के लिये प्रेरित करने के लिये पर्याप्त प्रयास होने चाहिए। यदि इसके बावजूद लोग दुराग्रह-अज्ञानता और आलस्यवश दूसरा टीका लगाने आगे नहीं आते तो केंद्र व राज्यों को मिलकर उन्हें प्रेरित करना चाहिए कि वे जितना जल्दी हो सके, दूसरा टीका लगा लें। इसके लिए केंद्र व राज्यों को मल्टी-मीडिया साधनों और जागरूकता अभियानों के जरिये लोगों को इस मुहिम में शामिल करने को प्रेरित किया जाना चाहिए। यदि इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग आगे नहीं आते तो इस बाबत चेतावनी भी देनी चाहिए। दरअसल, कुछ लोगों की लापरवाही सुरक्षा शृंखला को तोड़ सकती है और बड़ी समस्या की वजह बन सकती है। निस्संदेह, इस मामले में हम चूके हैं कि कोवैक्सीन को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता दिलाने में हम कामयाब नहीं हो सके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैक्सीन निर्माता भारत बायोटेक से क्लीनिकल ट्रायल का विस्तृत ब्योरा मांगा है। इस बाबत तीन नवंबर को होने वाली बैठक में कोवैक्सीन को आपातकालीन उपयोग के लिये मंजूरी से जुड़े जोखिम व लाभ पर विचार किया जायेगा। इसके साथ ही डब्ल्यूएचओ की रीति-नीतियों पर भी सवाल उठता है कि बीते जुलाई में भारत बायोटेक द्वारा डाटा उपलब्ध कराये जाने के बावजूद अभी तक इस पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया। विडंबना यह है कि इस टीके को लगाने वाले लाखों वे भारतीय भी हैं जो डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुमति के इंतजार के कारण विदेश यात्रा करने में सक्षम नहीं हैं। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियां भारत के टीकाकरण कार्यक्रम को कमजोर कर सकती हैं, जिसने हाल के महीनों में तेजी से प्रगति की है।

रांची का रॉक गार्डन पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं

रांची,रांची में रॉक गार्डन शहर के सबसे अधिक देखे जाने वाले स्थानों में से एक माना जाता है। अल्बर्ट अक्का चौक से लगभग 4 किमी दूर स्थित है। यह रॉक गार्डन गोंडा हिल की चट्टानों को काटकर बनाया गया है। इस रॉक गार्डन के अंदर चट्टान की मूर्तियां, झरने और एक झील है और यह जगह पिकनिक के लिए बहुत अच्छी है।यदि आप सुंदर दृश्यों का आनंद लेना चाहते हैं और शहर की भीड़ से दूर शांत समय चाहते हैं, तो रॉक गार्डन एक आदर्श स्थान है

*रॉक गार्डन कैसे पहुँचे –

*बिरसा मुंडा एयरपोर्ट से रॉक गार्डन की दुरी लगभग 15 किलोमीटर है।

*रॉक गार्डन काँके प्रखंड में अवगत है और यह लगभग राँची रेलवे स्टेशन से 9 किलोमीटर की दुरी पर है।

*रॉक गार्डन खाद गढ़ा बस स्टैंड से लगभग 9.5 किलोमीटर की दुरी पर है।

*रॉक गार्डन – गांधी नगर, रांची, झारखंड

यूट्यूब सेंसेशन जन्नत जुबैर पंजाबी फिल्म कुलचे छोले से करेंगी डेब्यू

यूट्यूब सेंसेशन जन्नत जुबैर और दिलराज ग्रेवाल आगामी पंजाबी फिल्म कुलचे छोले के साथ अपनी शुरुआत करने के लिए तैयार हैं। बता दें कि दोनों ने हाल ही में वाईआरएफ डिजिटल और सागा संगीत सहयोग के तहत अपना गाना लाली लॉन्च किया था।
फिल्म सागा स्टूडियोज के बैनर तले बनी है और इसे सुमीत सिंह ने प्रोड्यूस किया है। शूटिंग अमृतसर में चल रही है। फिल्म की शूटिंग शुरू करने से पहले फिल्म के कलाकारों और पूरी क्रियु ने पवित्र स्वर्ण मंदिर में श्रद्धांजलि अर्पित की।
निर्माताओं ने फिल्म का शीर्षक पोस्टर जारी किया। यह नए और होनहार कलाकारों के अच्छे तड़के के साथ सभी चीजों को स्वादिष्ट, चटपटा और आकर्षक लग रहा है।
फिल्म उद्योग की बेहतरीन टीमों में से एक में यह फिल्म शामिल हो गई है।
इसका निर्देशन सिमरनजीत हुंडल कर रहे हैं, जो इससे पहले 25 किल्ले, नंका मेला, जट्ट बॉयज पुट जट्टन दे जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं और अन्य बेहतरीन फिल्में भी कर चुके हैं।
फिल्म के निर्माता सुमीत सिंह ने कहा, मैं सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन करना चाहता हूं। अगर हर कोई एक ही रास्ता अपनाता है, तो हम अपने दर्शकों को नई चीजें कैसे पेश कर सकते हैं? जन्नत और दिलराज शानदार अभिनेता हैं। वे सभी अच्छी चीजों के लायक हैं।
मैं सिर्फ एक स्रोत हूं, मैं एक मंच की पेशकश कर सकता हूं और बाकी उनकी कड़ी मेहनत है। मुझे अपनी टीम पर विश्वास है और यह फिल्म ताजी हवा की सांस की तरह होगी।
फिल्म 2022 में रिलीज होने के लिए पूरी तरह तैयार है। संगीत सागा म्यूजिक, सागा स्टूडियोज के इन-हाउस म्यूजिक लेबल के तहत रिलीज किया जाएगा।(एजेंसी)

लैपटॉप की स्क्रीन पर लग गए हैं स्क्रैच? इन ट्रिक्स की मदद से हटाएं

लैपटॉप को ठीक से स्टोर न करने और बार-बार स्क्रीन को छूने से कई बार इस पर स्क्रैच लग जाते हैं और लैपटॉप काफी गंदा दिखने लगता है। इसके अलाव यह डर भी सताने लगता है कि कहीं लैपटॉप की स्क्रीन काम करना न बंद कर दे। आइए आज हम आपको कुछ ट्रिक्स बताते हैं जिन्हें अपनाकर आप आसानी से अपने लैपटॉप की स्क्रीन से स्क्रैच को दूर कर सकते हैं।
पेट्रोलियम जेली का करें इस्तेमाल
अगर आपके लैपटॉप की स्क्रीन पर स्क्रैच लग गए हैं तो उन्हें हटाने के लिए आप पेट्रोलियम जेली का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले लैपटॉप की स्क्रीन को किसी साफ कपड़े से अच्छी तरह पोंछ लें। अब माइक्रोफाइबर कपड़े पर पेट्रोलियम जेली लगाकर इससे लैपटॉप की स्क्रीन को हल्के हाथों से साफ करें। अंत में एक अन्य माइक्रोफाइबर कपड़े से दोबारा लैपटॉप की स्क्रीन को पोंछे।
रबड़ आएगा काम
यहां बात पेंसिल के लिखे हुए को मिटाने वाली रबड़ की हो रही है। इसका इस्तेमाल करके लैपटॉप की स्क्रीन से स्क्रैच को दूर किया जा सकता है। इसके लिए आपको बस इतना करना है कि स्क्रैच लगे हिस्से पर धीरे-धीरे कुछ देर के लिए रबड़ को हल्के हाथ से रगड़ें। लगभग चार से पांच मिनट रगडऩे के बाद आप देखेंगे कि स्क्रैच काफी हद तक हट चुके हैं। ध्यान रखे कि रबड़ पर अधिक दबाव नहीं डालना है।
रबिंग अल्कोहल भी है कारगर
आप चाहें तो लैपटॉप की स्क्रीन से स्क्रैच हटाने के लिए रबिंग अल्कोहल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले लैपटॉप की स्क्रीन को एक बार अच्छे से किसी साफ कपड़े से पोंछ लें। अब एक माइक्रोफाइबर कपड़े को रबिंग अल्कोहल से भिगोकर स्क्रीन पर हल्के हाथों से फेरें। अगर आपके टीवी या मोबाइल पर अधिक स्क्रैच दिखाई दे रहे हैं तो उन्हें हटाने के लिए भी आप रबिंग अल्कोहल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
स्क्रैच रिमूवर रहेगा बहुत ही प्रभावी
आजकल मार्केट में एक से एक बेहतरीन स्क्रैच रिमूवर मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल करके भी आप अपने लैपटॉप की स्क्रीन से स्क्रैच दूर कर सकते हैं। हालांकि ध्यान रखें कि लैपटॉप की स्क्रीन पर स्क्रैच रिमूवर का इस्तेमाल करते समय हल्के हाथों से काम करें क्योंकि अधिक दबाव डालने से स्क्रैच कम होने की बजाय बढ़ सकते हैं। इसके अलावा लैपटॉप से स्क्रैच हटाने के लिए आप टूथपेस्ट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।(एजेंसी)

वैचारिक विश्वसनीयता से ही बढ़ेगी साख

राजकुमार सिंह –
उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने के प्रियंका गांधी वाड्रा के ऐलान को गेम चेंजर मानने वाले कांग्रेसियों की कमी नहीं। जब देश में जुमलों-शिगूफों के जरिये चुनाव जीते भी जाते रहे हों, तब ऐसा उत्साह अस्वाभाविक भी नहीं कहा जा सकता। कुछ लोगों को प्रियंका के ऐलान को शिगूफा या जुमला कहने पर एतराज हो सकता है, लेकिन यह उसके अलावा कुछ और नहीं, यह उनकी अपनी ही इस टिप्पणी से स्पष्ट हो जाता है कि उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों में ऐसा करने का कांग्रेस का कोई इरादा नहीं है। अगर कांग्रेस वाकई चुनावी टिकटों के जरिये महिला सशक्तीकरण के प्रति प्रतिबद्ध है तो फिर अन्य राज्यों में ऐसा करने पर मौन क्यों? प्रियंका का तर्क है कि वह तो सिर्फ उत्तर प्रदेश की ही प्रभारी हैं, इसलिए वहीं के बारे में कह सकती हैं, पर यह तर्क कम, जिम्मेदारी-जवाबदेही से पलायन ज्यादा है। आखिर उत्तर प्रदेश की प्रभारी होते हुए ही प्रियंका राजस्थान से लेकर पंजाब तक कांग्रेस का आंतरिक संकट सुलझाने में पूरी तरह सक्रिय नजर आती रही हैं। क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू की पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी, जिसकी परिणति मुख्यमंत्री पद से कैप्टन अमरेंद्र सिंह की बेआबरू विदाई में भी हुई, में तो प्रियंका की ही भूमिका सबसे अहम मानी जाती है। वैसे राहुल गांधी तो किसी प्रदेश के प्रभारी भी नहीं, लोकसभा सदस्य मात्र हैं, फिर भी देश भर में कांग्रेस से जुड़े तमाम फैसलों में उन्हीं की भूमिका निर्णायक नजर आती है।
इसके अलावा भी प्रियंका का ट्रंप कार्ड बताये जा रहे इस ऐलान के संदर्भ में दो बेहद स्वाभाविक प्रश्न अनुत्तरित हैं: एक, क्या इस जुमले को जन-जन तक पहुंचा कर माहौल बना सकने की विश्वसनीयता वाला चेहरा और सामर्थ्य वाला संगठन कांग्रेस के पास है? दूसरा, क्या सिर्फ टिकटों में हिस्सेदारी से वास्तव में महिला सशक्तीकरण हो जायेगा? पहले प्रश्न की चर्चा पहले करते हैं। ज्यादा अतीत में न भी जायें तो 1989 में बोफोर्स तोप दलाली के आरोपों के शोर में हुए लोकसभा चुनावों में विश्वनाथ प्रताप सिंह की ‘राजा नहीं फकीर है, भारत की तकदीर हैÓ जैसे नारों के साथ गढ़ी गयी छवि और कुर्ते की जेब में हाथ डाल कर, सरकार बनते ही दलालों के नाम सार्वजनिक करने के वायदे ने कांग्रेस के विरोध और जनता दल की अगुवाई वाले राष्ट्रीय मोर्चा के समर्थन में माहौल बनाने में निर्णायक भूमिका निभायी थी। उसके बाद दूसरा अहम उदाहरण वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव का है, जिसमें गुजरात मॉडल के इर्दगिर्द गढ़ी गयी नरेंद्र मोदी की विकास पुरुष की छवि और अच्छे दिन आने के वायदे से उठे बवंडर में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस जमीन से ऐसी उखड़ी कि बमुश्किल 44 सांसद जीत पाये। क्या अभी तक भाई राहुल के सहयोगी की भूमिका में सक्रिय प्रियंका की छवि ऐसी है कि उनके किसी वायदे को बदहाल कांग्रेस संगठन चुनावी हवा में बदल पाये?
इस सवाल का जवाब प्रियंका जानती हैं और उनके समर्थक भी। कुछेक राज्यों को अपवाद मान लें तो कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा लगभग चरमरा चुका है। बेशक इसमें राज्य और स्थानीय स्तर पर व्याप्त गुटबाजी की भूमिका रही है, लेकिन जिम्मेदार आलाकमान भी कम नहीं है, जिसने पार्टी को पिछले ढाई साल से असमंजस में डाल रखा है। जहां थोड़ा-बहुत संगठन सक्रिय है, वहां कांग्रेसियों को आपस में लडऩे से फुर्सत नहीं, और उत्तर प्रदेश-बिहार जैसे बड़े राज्यों में कांग्रेस की उपस्थिति प्रतीकात्मक ज्यादा रह गयी है। ऐसे में गेम चेंजर बताये जाने वाले जुमलों-शिगूफों का कोई व्यावहारिक अर्थ नहीं रह जाता। हां, अगर कांग्रेस ऐसी ही घोषणा पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों के लिए करती, जहां वह सत्ता की दावेदार तो है, तब उसे कम से कम वैचारिक ईमानदारी अवश्य माना जाता। उत्तर प्रदेश में लंबे समय से चौथे नंबर पर चल रही कांग्रेस की दावेदारी दर्जन-दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर नजर नहीं आती। ऐसे में 403 सदस्यीय विधानसभा में हार की संभावना वाली सीटों पर 40 क्या, 50 प्रतिशत टिकट भी कांग्रेस महिलाओं को दे दे तो उससे राजनीति का चरित्र नहीं बदलने वाला। बेशक लोकसभा-विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का मुद्दा पुराना है। राज्यसभा में इस बाबत विधेयक भी पारित हो चुका है। सामाजिक न्याय के स्वयंभू पैरोकार दल-नेता तो अपने-अपने तर्कों के सहारे इसका विरोध करते रहे हैं, लेकिन दोनों बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा ऐसे आरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता जताते रहे हैं। फिर भी विधेयक को लोकसभा में आज तक पारित नहीं करवाया जा सका, तो कहीं न कहीं प्रतिबद्धता पर सवालिया निशान लगेंगे ही।
वैसे अगर नीयत साफ हो तो लोकसभा-विधानसभा चुनाव में महिलाओं को टिकट देने के लिए किसी कानून की बाध्यता की जरूरत नहीं है। जिन दलों-नेताओं की ऐसी ईमानदार प्रतिबद्धता है, वे ऐसा कर भी रहे हैं। हां, यह अवश्य है कि इस मामले में क्षेत्रीय दल, राष्ट्रीय दलों के मुकाबले ज्यादा ईमानदार और प्रतिबद्धता की कसौटी पर खरा उतरने वाले साबित हुए हैं। ओडिशा में बीजू जनता दल और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने बिना जुमलों-शिगूफों के ही महिलाओं को एक-तिहाई से भी ज्यादा टिकट चुनाव में दिये, और वे जीती भीं। ज्यादा अच्छी बात यह है कि ओडिशा और पश्चिम बंगाल में महिलाओं को टिकट छलावा भर नहीं है और राजनेताओं के परिवारों से बाहर आम महिलाओं को भी अवसर मिला है। यह तथ्य इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि आरक्षण की आड़ में अक्सर राजनेता अपने परिवार की महिलाओं को ही आगे बढ़ाते हैं और उनकी आड़ में सत्ता के सूत्र अपने ही हाथों में केंद्रित रखते हैं। जाहिर है, ऐसे छद्म प्रतिनिधित्व से महिला सशक्तीकरण तो नहीं होता, उलटे लोकतंत्र कमजोर अवश्य होता है। तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल को अपवाद मान लें तो अन्य राजनीतिक दलों में महिलाओं को प्रतिनिधित्व परिवारवाद को प्रश्रय ही ज्यादा साबित हुआ है। बिहार में राबड़ी देवी का मुख्यमंत्री बनना ही इसका एकमात्र उदाहरण नहीं है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में अपने ही लाल-लालियों को राजनीति में आगे बढ़ाने के शर्मसार करने वाले ऐसे उदाहरणों की फेहरिस्त बहुत लंबी बन सकती है।
वैसे अहम स्वाभाविक सवाल यह भी है कि क्या प्रतीकात्मक राजनीतिक प्रतिनिधित्व से जमीनी हकीकत बदलती है? इंदिरा गांधी लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहीं। तब तो भारत में महिलाओं का सशक्तीकरण दशकों पहले ही हो जाना चाहिए था। मायावती देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की एक से अधिक बार मुख्यमंत्री रहीं, तब तो उन्हें महिला सशक्तीकरण की मिसाल बन जाना चाहिए था। अगर राजनीति या कहें कि सत्ता राजनीति में प्रतिनिधित्व ही हर मर्ज का इलाज है, तब तो कमोबेश हर वर्ग के प्रतिनिधि को उसकी उसी पहचान के आधार पर सभी प्रमुख पद अक्सर मिल जाने से आजादी के सात दशकों में देश के सभी वर्गों का सशक्तीकरण हो जाना चाहिए था, पर ऐसा हुआ है? अगर, हां, तब फिर आरक्षण और प्रतिनिधित्व की चुनावी लॉलीपॉप हर चुनाव में नयी पैकिंग में क्यों दिखायी जाती है? दरअसल यह सब चुनावी तिकड़में हैं मतदाताओं को भरमाने की। किसी भी वर्ग का सशक्तीकरण होता है, उसे बिना भेदभाव शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सम्मान, सुरक्षा और जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढऩे के अवसर सुनिश्चित करने से, जो किसी भी निर्वाचित सरकार का संवैधानिक दायित्व भी होता है, पर वे अक्सर प्रतीकात्मक पहल और घोषणाएं कर अपनी वास्तविक जिम्मेदारी-जवाबदेही से मुंह चुराती रही हैं।
ऐतिहासिक चुनावी पराभव के बाद अब आंतरिक असंतोष का दबाव झेल रही कांग्रेस के शिगूफे महिलाओं को टिकट के लॉलीपॉप पर ही समाप्त नहीं होते। एक नवंबर से शुरू हो रहे सदस्यता अभियान में कांग्रेस का सदस्य बनने के लिए जो शर्तें रखी गयी हैं, वे भी व्यावहारिकता से कोसों दूर दिखावटी आदर्शवाद हैं। मसलन, शराब समेत किसी भी नशीले पदार्थ का सेवन न करना, प्रामाणिक खादी पहनना, लैंड सीलिंग एक्ट से ज्यादा भूमि का मालिक न होना, जाति-धर्म के आधार पर भेदभाव न करना आदि। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी मद्य निषेध के पैरोकार थे। इसीलिए भारत के संविधान में भी मद्य निषेध को शामिल किया गया, लेकिन आजाद भारत की सरकारों ने वास्तव में तो अधिक राजस्व के लालच में शराब निर्माण-बिक्री, नतीजतन उसके सेवन को ही बढ़ावा दिया। यह भी गोपनीय तथ्य नहीं है कि कमोबेश सभी दलों के अनेक नेता-कार्यकर्ता निस्संकोच शराब का सेवन ही नहीं करते, कारोबार से भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। इसीलिए कांग्रेस की सदस्यता की ऐसी शर्तें व्यावहारिक आदर्श के बजाय अपना दामन दूसरों से साफ दिखाने का शिगूफा नजर आती हैं, और शिगूफों की राजनीति का अंजाम किसी से छिपा नहीं है। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस अभी भी समझने को तैयार नहीं दिखती कि स्पष्ट वैचारिक प्रतिबद्धता ही उसे प्रासंगिक बनायेगी, जुमले-शिगूफे नहीं।

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