झारखंड कांग्रेस की पालकी ढोने की मजबूरी

झारखंड कांग्रेस की पालकी ढोने की मजबूरी. झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार कांग्रेस के समर्थन से चल रही है। कांग्रेस के 16 जीते हुए विधायक हैं और दो विधायक बाबूलाल मरांडी की पार्टी छोड़ कर आए थे, जिनमें से एक बंधु तिर्की की सदस्यता खत्म हो गई है। फिर भी कांग्रेस के 17 विधायक हैं और इसके दम पर कांग्रेस को कमांडिंग पोजिशन में होना चाहिए था। लेकिन हैरानी की बात है कि सरकार में कोई महत्व नहीं मिलने के बावजूद कांग्रेस पार्टी सरकार की पालकी ढो रही है। एक विधायक वाली राजद का एक मंत्री है और 16 विधायक वाली कांग्रेस के चार मंत्री हैं। लेकिन मंत्रियों को स्वतंत्र रूप से काम करने की कोई आजादी नहीं है।

राज्य सरकार कई तरह के आरोपों में फंसी है। मुख्यमंत्री के नाम से पत्थर माइंस की लीज की गई थी, जिसे लेकर चुनाव आयोग ने नोटिस जारी किया है। मुख्यमंत्री के विधायक भाई और पत्नी के ऊपर माइंस और जमीन लेने के आरोप हैं। मुख्यमंत्रियों के करीबियों के खिलाफ जांच चल रही है और फर्जी कंपनियों को लेकर हाई कोर्ट ने आदेश दिया है। इसके बावजूद सरकार को जिम्मेदार बनाने के लिए कांग्रेस कुछ नहीं कर रही है। कांग्रेस की ओर से कई बार साझा न्यूनतम कार्यक्रम बनाने और एक कोऑर्डिनेशन कमेटी बनाने की मांग की गई लेकिन मुख्यमंत्री ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया।

मुख्यमंत्री कांग्रेस के समर्थन को फॉर गारंटेड मान कर चल रहे हैं। वे प्रदेश के हाई प्रोफाइल प्रभारी को भी कोई खास तवज्जो नहीं देते। प्रभारी ने दबाव बनाने के लिए कांग्रेस विधायकों को निर्देश दिया था कि वे सीएम से सीधे बात न करें लेकिन यह दबाव भी काम नहीं आया। बताया जा रहा है कि कांग्रेस के अनेक विधायक मुख्यमंत्री के संपर्क में हैं और अगला चुनाव झारखंड मुक्ति मोर्चा की टिकट से लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। कुछ विधायक भाजपा के संपर्क में हैं और चुनाव कमल के निशान पर लड़ेंगे।

ऐसे में कांग्रेस के पास कुछ नहीं बचेगा। कांग्रेस के मजबूरी में सरकार की पालकी ढोने की वजह से पार्टी को बड़ा नुकसान होने का अंदेशा है। कांग्रेस अपना आधार गंवा रही है, जिससे वह बिहार, उत्तर प्रदेश वाली स्थिति में जा सकती है।

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