मंगलवार को जब संसद में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपना चौथा आम बजट पेश किया तो कई मायनों में यह अलग था। कई परंपराएं बदलीं, ये पेपरलेस बजट और भाषण संक्षिप्त था। पांच राज्यों के चुनाव के बीच आये बजट में भले ही नये करों का प्रावधान नहीं था, लेकिन यह लोकलुभावन बजट भी नहीं था। वर्ष 2022-23 के बजट में नौकरीपेशा वर्ग को आयकर में छूट न मिलने पर निराशा जरूर हुई, जो कोरोना संकट में आय संकुचन के दौर में राहत की उम्मीद लगाये हुए था। दरअसल, सरकार का पूरा ध्यान इन्फ्रास्ट्रक्चर पर रहा। लेकिन महंगाई और बेरोजगारी दूर करने को बड़ी पहल होती नजर नहीं आई। सरकार का कहना है कि अमृतकाल में देश को आत्मनिर्भर बनाने की पहल हुई है। इसके अलावा भारत में दखल बनाती क्रिप्टो करंसी पर तीस फीसदी टैक्स लगाने, इसके लेन-देन में टीडीएस लगाने, आरबीआई द्वारा इस वर्ष डिजिटल करंसी जारी करने, डाकघरों को मुख्य बैंकिंग व्यवस्था से जोडऩे, ई-पासपोर्ट सेवा आरंभ करने जैसी कई महत्वपूर्ण घोषणाएं बजट में की गई। वहीं पूर्वोत्तर के विकास हेतु 1500 करोड़ रुपये आवंटित करने तथा आगामी तीन सालों में चार सौ वंदे भारत ट्रेनों के परिचालन की घोषणा की गई। सरकार ने अर्थव्यवस्था में गति लाने के क्रम में राजस्व घाटा 6.4 फीसदी रहने का अनुमान जताया है तथा वर्ष 2022-23 में कुल खर्च 39.45 लाख करोड़ रुपये रहने का आकलन है। वहीं विपक्ष कह रहा है कि देश में रिकॉर्ड महंगाई और बेरोजगारी को नियंत्रित करने के लिये कोई ठोस पहल नहीं हुई है। कोरोना संकट से जूझते आम आदमी को यह बजट राहत नहीं देता। यह भी कि एक ओर सरकार सौर ऊर्जा को बढ़ावा तथा पर्यावरण सुरक्षा को प्राथमिकता देने की बात करती है, वहीं नदी जोड़ योजना के जरिये पारिस्थितिकीय संतुलन से खिलवाड़ कर रही है।
दरअसल, लगातार दो साल से महामारी का दंश झेल रहे और आय के स्रोतों के संकुचन से त्रस्त लोग आस लगाये बैठे थे कि सरकार की तरफ से उनकी क्रयशक्ति बढ़ाने की दिशा में पहल होगी। मगर सरकार ने आपूर्ति शृंखला को ही प्राथमिकता दी है। लेकिन आपूर्ति बढ़ाना तभी सार्थक होगा, जब लोगों की क्रय क्षमता बढऩे से बाजार में मांग बढ़ेगी। वह भी उन वैश्विक रिपोर्टों के बीच कि कोरोना संकट में देश के अस्सी फीसदी लोगों की आय में संकुचन हुआ है और अमीर लोगों की आय दुगुनी से अधिक हो गई है। वहीं लंबे किसान आंदोलन के बाद उम्मीद थी कि सरकार किसानों को राहत देने के लिये कुछ बड़ा करेगी क्योंकि प्रधानमंत्री ने इस साल तक किसानों की आय दुगुनी करने का लक्ष्य रखा था। कुछ लोग देश की आधी आबादी को रोजगार देने वाले कृषि क्षेत्र की आय को बढ़ाने के लिये बड़ी पहल की उम्मीद कर रहे थे। निस्संदेह कोरोना संकट में कृषि क्षेत्र ने ही भारतीय अर्थव्यवस्था को संबल दिया था। वहीं पीएम किसान सम्मान निधि में वृद्धि की उम्मीद भी जतायी जा रही थी। हालांकि, बजट में किसान ड्रोन, प्राकृतिक खेती, लैंड डिजिटाइजेशन, एमएसपी के लिये 2.37 लाख करोड़ रखने, नाबार्ड के जरिये कृषि स्टार्टअप्स के वित्तीय पोषण, 1208 मीट्रिक टन धान-गेहूं की खरीद के प्रावधान रखने से किसानों को राहत देने की पहल जरूर हुई है। दूसरी ओर वक्त की जरूरत के हिसाब से एनिमेशन, विजुअल इफेक्ट, गेमिंग और कॉमिक्स सेक्टर में रोजगार को बढ़ावा देने के लिये प्रमोशन टास्क फोर्स बनाने का फैसला किया गया है। साथ ही व्यावसयिक शिक्षा के लिए डिजिटल यूनिवर्सिटी बनाने का निर्णय हुआ है। अगले पांच साल के लिये छह हजार करोड़ रुपये का प्रावधान बताता है कि एमएसएमई सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है। दो लाख आंगनवाड़ी अपग्रेड करने का मकसद कुपोषण व अशिक्षा के खिलाफ लड़ाई को तेज करने का प्रयास है। लेकिन हेल्थ सेक्टर में महामारी के दौर में अपेक्षित बजट वृद्धि की कमी खलती है। इसके बावजूद साठ लाख रोजगारों का सृजन, अस्सी लाख घर बनाने का लक्ष्य, डाकघरों में एटीएम, पीएम ई-विद्या टीवी चैनल बढ़ाने तथा पच्चीस हजार किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने का लक्ष्य सरकार के कल्याणकारी एजेंडे को ही दर्शाता है।

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